डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. अंजली वर्मा
फसलों की अच्छी पैदावार के लिए 17 सूक्ष्म पोषक तत्त्व चाहिए. इन में से एक भी पोषक तत्त्व की कमी होने से फसल पर बुरा असर पड़ता है. पौधों की जरूरत के आधार पर इन पोषक तत्त्वों को 2 समूहों में बांटा गया है : पहला, मुख्य पोषक तत्त्व और दूसरा, सूक्ष्म पोषक तत्त्व. सूक्ष्म पोषक तत्त्व ऐसे पोषक तत्त्व हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए जरूरी है, लेकिन प्राथमिक पोषक तत्त्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम) की तुलना में बहुत कम मात्रा में जरूरी है. जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्त्वों में जस्ता, बोरान, कौपर, आयरन, मैंगनीज, मौलिब्डेनम आदि शामिल हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों की वृद्धि, चयापचय और प्रजनन चरण को काफी प्रभावित करते हैं.
हाल के वर्षों में भारतीय मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की व्यापक कमी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. नतीजतन, फसल की पैदावार में काफी कमी हुई है. संकर और उच्च उपज देने वाली किस्म का चयन मृदा से सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उच्च मात्रा को हटाता है और पौधों के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मांग को बढ़ाता है. मृदा परीक्षण और पौधों के विश्लेषण के उपयोग के माध्यम से कई मृदाओं में इन सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को सत्यापित किया गया है. कैसे करें सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का प्रयोग सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को बोआई से पूर्व या खड़ी फसल में प्रयोग कर सकते हैं. मृदा परीक्षण के आधार पर पोषक तत्त्वों की निर्धारित मात्रा को बारीक रेत में मिला कर बोआई से पूर्व खेत में एकसमान छिड़क दें. अगर पहले से मृदा परीक्षण नहीं करवाया गया हो और फसल में तत्त्व की कमी नजर आए, तो उस पोषक तत्त्व का पानी में घोल बना कर खड़ी फसल में छिड़क दें.
इस प्रकार उस पोषक तत्त्व की कमी को दूर किया जा सकता है. मुख्य पोषक तत्त्वों का उपयोग खेतों में अधिकांशत: करते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का लगभग न के बराबर उपयोग होने की वजह से कुछ वर्षों से मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी के लक्षण पौधों पर दिखाई दे रहे हैं. पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होने पर उस के लक्षण पौधों में स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं. इन की कमी केवल संबंधित तत्त्वों का उपयोग कर के पूरी की जा सकती है. सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का महत्त्व जस्ता (जिंक) काम : यह एंजाइम का मुख्य अवयव होता है और क्लोरोफिल बनाने में उत्प्रेरक का काम करता है. इस के साथ ही प्रकाश संश्लेषण और नाइट्रोजन के पाचन में सहायक होता है.
लक्षण : फसल में जिंक की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियां मुड़ जाती हैं और तने की लंबाई घट जाती है. जस्ता की कमी का दिखाई देने वाला लक्षण शार्ट इन्ट्रोड (रोसैटिंग) और पत्ती के आकार में कमी है. जस्ता की कमी होने से पौधों में फूल फलने और परिपक्व होने में देरी हो सकती है.
फसलों में जिंक तत्त्व की कमी से होने वाले रोग व समस्या : * धान में खैरा रोग. * मक्का के पौधों की नई पत्तियां सफेद रंग की निकलती हैं, जिसे ‘सफेद कली’ की समस्या कहते हैं. * आम, नीबू व लीची में लिटिल लीफ की समस्या. निदान : मृदा में जिंक की कमी को दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का 15 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें और 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट व 0.2 फीसदी चूने के घोल को पत्तियों पर छिड़काव कर के इस की पूर्ति की जा सकती है.
तांबा (कौपर) काम : ‘कौपर’ या तांबा सब से स्थूल पोषक तत्त्व है. यह कार्बोहाइड्रेट और एंड्रोजन चयापचय के लिए आवश्यक है. तांबा प्रकाश संश्लेषण और श्वसन में नियंत्रण का काम करता है. यह एमीनो अम्ल को प्रोटीन बनाने और संशोधित करने में एक घटक के रूप में शामिल है. यह प्रोटीन के चयापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और प्लांटसेल की दीवारों में लिग्निन के निर्माण और भीगने से रोकता है.
कमी के लक्षण : इस की कमी से पौधों की नई पत्तियों में सिरा सड़न हो जाता है. बढ़वार कम होना और पत्तियों का रंग हरा होना इस के प्रमुख लक्षण हैं. इस की कमी से नीबू में डाईबैक, चुकंदर और सेब में सफेद सिरा, छाल खुरदुरा और फटने की समस्या होती है.
निदान : तांबे की कमी को दूर करने के लिए कौपर सल्फेट की 10-20 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में जुताई के समय प्रयोग करें.
मैंगनीज काम : क्लोरोफिल के संश्लेषण के दौरान प्रकाश संश्लेषण और हृहृ२ के दौरान ष्टहृ२ को आत्मसात करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. संश्लेषण के दौरान राइबोफ्लेविन, एस्कार्बिक एसिड, कैरोटीन और इलैक्ट्रोन परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह वसा बनाने वाले एंजाइम को भी सक्रिय करता है.
कमी के लक्षण : मैंगनीज की कमी से पत्तियों में छोटेछोटे क्लोरोसिस के धब्बे बन जाते हैं. इंटर विनल क्लोरोसिस एक मैंगनीज कमी का लक्षण है. इस की कमी से चुकंदर में चित्तीदार पीला रोग और ओट में ग्रेस्पाइक नामक रोग होता है.
निदान : मैंगनीज सल्फेट का 10 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए या पर्णीय छिड़काव के लिए 0.4 फीसदी मैंगनीज सल्फेट और 0.3 फीसदी चूने के घोल का छिड़काव करें.
बोरान काम : बोरान का एक प्राथमिक काम पौधों की कोशिकाओं की दीवारों के बनने से संबंधित है और यह दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली ग्रंथियों को बनाने में सहायक होता है. यह पौधों द्वारा जल शोषण को नियंत्रित करता है. बोरान की कमी से शुगर ट्रांसपोर्ट, फ्लावर रिटैंशन, पराग का बनना और अंकुरण भी प्रभावित हो सकता है.
कम बोरान आपूर्ति के साथ बीज और अनाज का उत्पादन कम हो जाता है. इस की कमी मुख्य रूप से उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में अम्लीय, रेतीली मृदा और कम कार्बनिक पदार्थों वाली मृदा में पाई जाती है. कमी के लक्षण : बोरान की कमी से पत्तियां मोटी हो कर मुड़ जाती हैं. पौधों की वृद्धि मंद होती है और पत्तियां पीली या लाल हो जाती हैं. इस की कमी को अकसर प्रजनन अंगों के बां?ापन और अपंगता से जोड़ा जाता है. बोरान की कमी के लक्षण पहले बढ़ते बिंदुओं पर दिखाई देते हैं. यह खराब उपस्थिति, खोखले फल, पत्तों और फलने वाले निकायों को नुकसान पहुंचाता है. इस की कमी से टमाटर में फलों की कार्किंग और पैकिंग, फूलगोभी में ब्राजिंग आदि जैसी असमान्यताएं पैदा होती हैं.
आम में आंतरिक सड़न, आंवला में फल सड़न, अंगूर में हेन एवं चिकन, चुकंदर में आंतरिक गलन, शलजम, मूली और गाजर में ब्राउन हार्ट, फूलगोभी में भूरापन, फल का फटना और आलू की पत्तियों में स्थूल रोग हो जाता है. निदान : बोरान की कमी को दूर करने के लिए 0.2 फीसदी बोरैक्स या बोरिक एसिड का 150 लिटर पानी का घोल बना कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें. सामान्य बोरान उर्वरक बोरैक्स (10.5 फीसदी) और बोरिक एसिड (20 फीसदी) है. ये उर्वरक 5.6-23.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दिए जा सकते हैं. हालांकि यह दर मृदा में बोरान की मूल क्षमता पर निर्भर करती है. मौलिब्डेनम काम : मौलिब्डेनम सीधे एंजाइमों में शामिल है.
यह नाइट्रोजन के निर्धारण से संबंधित है. इस की कमी से नाइट्रोजन चयापचय, प्रोटीन संश्लेषण और सल्फर चयापचय प्रभावित हो सकता है. मौलिब्डेनम का फल और अनाज के गठन पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव है. मौलिब्डेनम की आवश्यकता इतनी कम होती है कि अधिकांश पौधों की किस्में इस की कमी के लक्षणों को प्रदर्शित नहीं करती हैं. फलियों में इन की कमी के लक्षणों को मुख्य रूप से नाइट्रोजन की कमी के लक्षणों के रूप में प्रदर्शित किया जाता है. नाइट्रोजन निर्धारण में मौलिब्डेनम की प्राथमिक भूमिका होती है. अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के विपरीत मौलिब्डेनम की कमी के लक्षण मुख्य रूप से सब से कम उम्र के पत्तों तक ही सीमित नहीं है. कमी के लक्षण : कुछ सब्जियों की फसलों में मौलिब्डेनम की कमी में अनियमित पत्ती ब्लेड का निर्माण होता है.
इस की कमी के कारण पत्तियों की शिराओं के मध्य हरिमाहीनता या क्लोरोसिस हो जाता है. इस की कमी से फूलगोभी में ह्विपटेल और नीबूवर्गीय पौधों की पत्तियों में पीला धब्बा रोग होता है. निदान : इस कमी को दूर करने के लिए सोडियम मौलिब्डेट को 0.2 से 0.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि में जुताई के समय डालें. अमोनियम मौलिब्डेट (54 फीसदी) और सोडियम मौलिब्डेट सामान्यत: बाजार में उपलब्ध है. इसे मृदा में 1-2.3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और पर्णीय छिड़काव के लिए 0.01-0.035 फीसदी का घोल बना कर उपयोग किया जा सकता है.
आयरन (लोहा) काम : यह क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है. पौधों में संपन्न होने वाले औक्सीकरण और अवकरण की क्रिया में यह उत्प्रेरक का काम करता है. क्लोरोफिल के विकास और संयंत्र के भीतर ऊर्जा के हस्तांतरण के लिए यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस में कुछ एंजाइम और प्रोटीन भी होते हैं. यह पौधे के श्वसन को नियंत्रित करता है और निर्धारण में भी शामिल होता है. आयरन को पौधों में सल्फर के साथ जोड़ा जाता है, ताकि वे यौगिक बन सकें, जो अन्य प्रक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं.
कमी के लक्षण : आयरन की कमी मुख्य रूप से क्लोरोफिल के निम्न स्तर के कारण पीले पत्तों द्वारा प्रकट होती है. पत्ती का पीलापन सब से पहले ऊपरी पत्तियों पर अंत:शिरा ऊतकों में दिखाई देता है. पौधों में इस की कमी से नई पत्तियों में हरिमाहीनता हो जाती है और पौधे कमजोर हो जाते हैं. निदान : पौधों में आयरन की कमी को दूर करने के लिए 20 से 40 किलोग्राम फेरस सल्फेट मृदा में डालना चाहिए या 0.4 फीसदी फेरस सल्फेट और 0.2 फीसदी चूने के घोल का पर्णीय छिड़काव करें.