सौम्या को अब हर पल उस के संदेश का इंतजार रहने लगा. कुछ और आगे बढ़े तो वे कभी कौफी शौप या फिर आइसक्रीम पार्लर में मिल लेते.
एक दिन किसी आइसक्रीम पार्लर की शीशे वाली दीवार के पार से रूपक और सौम्या की एक झलक सी जीतेश की बीवी निशा ने देखी, जो अपनी कार से कहीं जा रही थी. उस ने बिना सोचेसमझे अरुणेश भैया से सौम्या की शिकायत कर दी.
न असली हाल जानने की कोशिश की, न नलिनी या मितेश को बताया.
अरुणेश भैया अपने स्वभाव के अनुरूप छोटे भाई मितेश पर चढ़ बैठे.
मितेश तो इस धक्के से ठगे से रह गए. बेटी सौम्या के बारे में वे यह क्या सुन रहे थे.
रूपक और सौम्या इन 3-4 महीनों में बहुत कम सा ही खुले थे. मसलन, उन की पढ़ाई, कैरियर, शौक, परिवार, सपने आदि के बारे में एकदूसरे को शालीनता से बताने की कोशिश करते, और आधे घंटे में जैसेतैसे वे अपने घर लौट जाते.
मितेश ने जब परिवार को एक जगह बुला कर सौम्या से पूछताछ की, तो घर के सारे सदस्य सदमे में थे.
अरुणेश ने कहा था कि मितेश की गरीबी ने उस की बेटी को बाजार का रास्ता दिखा दिया. गिटार बजा कर पैसे भी आ रहे हैं, और छोकरे भी. हमारे पुश्तैनी घर को चौपट कर रहा है मितेश.
इतना कह कर वे अपने कमरे में चले गए और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
नलिनी घबरा कर मितेश के पीछे गई, लेकिन तब तक उस के सामने ही दरवाजा बंद हो चुका था.
अपनी मां नलिनी का पीला पड़ा चेहरा देख कर सौम्या ने तुरंत निर्णय लिया, और सारा मोहमाया त्याग कर पापा के दरवाजे के पास जा कर बड़े जोर से चिल्ला कर कहा, “पापा, दुनिया एक तरफ और मेरे पापा मेरे लिए एक तरफ. आज से गिटार क्लास बंद. और मैं ने एक लड़के के साथ बाहर आइसक्रीम खाई जरूर थी, लेकिन वह एक सामान्य सी मुलाकात थी. अब नहीं मिलूंगी. लड़का अपने भाई को छोड़ने क्लास आता था, पढ़ने में बहुत होशियार था, इसलिए जानपहचान हुई थी, और कोई बात नही.
“पापा, आप तो जानते हैं हमारे बड़े पापा को. क्या आप उन की बातों में आ कर मुझ पर भरोसा नहीं रखेंगे?”
नलिनी ने साहस कर के बाहर से दरवाजा पीटना शुरू किया, बाहर से स्निग्धा भी ‘पापा’ कह कर हल्ला करने लगी, तो मितेश ने चुपचाप दरवाजा खोल दिया और उन से कहा कि उसे वे लोग अभी अकेला छोड़ दें.
गिटार क्लास बंद करने में अभी 4-6 महीने बाकी ही थे, लेकिन सौम्या की पढ़ाई बता कर क्लास को बंद कर दिया गया.
सौम्या ने रूपक को छोटा सा संदेश लिखा.
“छोटी सी एक मुलाकात ने घर में कोहराम कर दिया, मेरी खुशी ऐसी भी क्या मायने रखती है कि मुलाकातों का सिलसिला जारी रखा जाए. हमारा आगे मिलना अब संभव नहीं है. जिंदगी आप की खुशियों भरी हो, इसी तमन्ना के साथ जिंदगीभर यादों में आप को सुरक्षित रखूंगी.”
रूपक ने संदेश देख कर कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया. सौम्या को अफसोस हुआ कि एक पत्थर पर सिर फोड़ने के लिए वह जमाने में मुफ्त बदनाम हुई.
सौम्या जहां तक संभव था, अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा रही थी, लेकिन उस के भटके ध्यान और जिंदगी के प्रति अरुचि पर स्निग्धा की बराबर नजर थी.
एक दिन उस ने दीदी के फोन से टटोल कर रूपक का नंबर अपने फोन में लिया और अपना परिचय देते हुए रूपक को सौम्या का सारा दिल का हाल कह सुनाया.
रूपक ने मिनटों में जवाब दिया, “अपनी दीदी को कह देना, रूपक के दिल में अगर कोई एक बार आ कर बसा है तो जिंदगीभर वो शख्स वहीं रहेगा.
“तुम्हारी दीदी को यह भी कहना कि सही समय आने तक अपना कैरियर बना ले, मैं वक्त आने पर ही उस से फिर से संपर्क करूंगा.”
सौम्या की मुंबई के एक नामी फैशन डिजाइनिंग कालेज में अब भरती प्रक्रिया पूरी हो गई थी. अब सारी समस्या सौम्या के मुंबई शहर में अकेले रहने पर टिक गई थी.
खैर, कुछ मशक्कत के बाद सौम्या को अपने कालेज के पास ही एक पीजी मिल गया और वह वहां रहने चली गई.
पीजी में कई सारी व्यक्तिगत परेशानियां तो थीं, लेकिन सौम्या जैसी सीधीसादी, जिंदगी में आगे बढ़ने की चाह रखने वाली लड़की इन परेशानियों को भाव नहीं देती.
अरुणेश ने बेटी अनाया को एक दिन फोन पर बताते हुए खुद की पीठ ठोंकी, “सौम्या को मितेश तुम्हारे फ्लैट में डालना चाह रहा था, भई. कामकाजी जवान लड़की है, उस का अपना शेड्यूल है. उसे क्यों डिस्टर्ब करना? प्राइवेट लाइफ में दूसरों की ताकाझांकी… मैं ने उन्हें सख्ती से खारिज कर दिया.”
अनाया ने अपने पापा को कुछ कहा नहीं, और उसी रात सौम्या को फोन किया,
“पीजी में मेरे पापा के कहने से धकेला गया तुम्हें?”
“कोई बात नहीं. मैं यहां ठीक हूं.”