अब ठंड का मौसम है तो ठंड तो लगेगी ही, ठंड का मजा लेना चाहिए. आखिर साल में यह तीन महीने ही तो होते हैं जब दिल्ली वाले भी शिमला और कश्मीर का आनन्द ले पाते हैं, वरना बाकी नौ महीने तो वही गर्मी, चिपचिपाहट, प्रदूषण और पसीना. लेकिन सर्दियां शुरू होते ही अनुराधा तो ऊपर से नीचे तक बिल्कुल पैक हो जाती है. मोजे, टोपे, ग्लव्ज, कोट, स्कार्फ, मफलर और न जाने क्या क्या. सुबह दस बजे से पहले रजाई से नहीं निकलती. सूरज कोहरे में छिपा रहे तो बारह बजे तक बिस्तर में घुसी रहती है. तीन-तीन, चार-चार दिन हो जाते हैं, नहाती नहीं है. हाथ-मुंह धोने के लिए भी पहले पानी गर्म करती है. शाम से पहले ही खाना बना कर रख देती है, ताकि जल्दी-जल्दी डिनर करके सब लोग बिस्तर में घुस जाएं. उसकी इन हरकतों से घर के दूसरे सदस्य बड़े परेशान रहते हैं.

सर्दी की शामें कितनी रूमानी होती हैं. कोट की जेबों में हाथ डाले लोग सड़कों पर घूमते-टहलते मौसम का लुत्फ उठाते हैं. कुछ नौजवान जोड़े तो ठंड भी आइसक्रीम खाकर सेलिब्रेट करते हैं. ठंड की शाम किसी चाय वाले की दुकान की रौनक देखिए. कुल्हड़ चाय से उठता धुआं कितना अच्छा लगता है. मगर ठंड शुरू होते ही अनुराधा तो घर में ही कैद हो जाती है. उसको हर वक्त यह डर बना रहता है कि बाहर की ठंडी हवा लगी नहीं, कि सर्दी-जुकाम ने पकड़ा. और फिर सारी सर्दियां वह छींकते-खांसते परेशान रहना पड़ेगा. वह कहती है कि ठंड जैसे उसकी हड्डियों में समा जाती है. पूरा बदन दर्द करता है. कभी-कभी तो बुखार भी हो जाता है. इसीलिए ठंड शुरू होने से पहले ही वह अपने सारे गर्म कपड़े निकाल कर धूप दिखा कर सामने की अलमारी में रख लेती है. रात को मोटी रजाई के नीचे गर्म-ऊनी कम्बल लेती है और सिर को गर्म शॉल से लपेट कर सोती है.

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