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विंटर स्पेशल : कोकोनट औयल के ये टिप्स आपको दिलाएंगी ग्लोइंग स्किन

आजकल के पौल्यूशन और केमिकल से बने प्रोडक्टस का इस्तेमाल न करके हेल्दी स्किन पाना हर किसी की चाहत होती है, जिसके लिए वह होममेड टिप्स का सहारा लेता है. आज हम आपको ऐसी ही होममेड टिप्स के बारे में बताएंगे जिससे आपकी स्किन बिना केमिकल प्रोडक्टस का इस्तेमाल करे चमकेगी. गरमी हो या सरदी हर किसी के घर में कोकोनट औयल का इस्तेमाल होता है. चाहे वह खाना बनाने के लिए हो या बालों को लंबा और शाइनी बनाने के लिए. पर क्या आपको पता है कि कोकोनट औयल का इस्तेमाल स्किन के लिए भी होता है. आज हम कोकोनट की उन्ही टिप्स के बारे में बात करेंगे…

  1. स्‍क्रब के रूप में भी इस्तेमाल होता है कोकोनट औयल

साफ स्किन पाने के लिए कोकोनट स्‍क्रब काफी असरदार है. इस स्‍क्रब को बनाने के लिये आपको शहद, ओट्स और कोकोनट औयल चाहिये. इन सभी चीजों को मिक्‍स करें और पेस्‍ट तैयार कर लें.

फिर इसे अपने हाथों से चेहरे पर लगा कर गोल गोल स्‍क्रब करें. यह हर तरह की स्‍किन पर सूट करता है. इससे डेड स्‍किन हटती है और स्‍किन में चमक आती है. यह स्‍किन का मौइस्‍चर भी देता है. यह ट्रीटमेंट उनके लिये अच्‍छा है जिनके चेहरे पर मुंहासे होते हैं.

  1. डार्क स्‍पौट के लिये फायदेमंद है कोकोनट औयल

अक्‍सर चेहरे पर मुंहासे के दाग रह जाते हैं जो काफी दिनों के बाद जाते हैं, लेकिन इस ट्रीटमेंट से आपको काफी फायदा होगा. इसके लिये आपको कोकोनट औयल, लेवेंडर औसल और फ्रैंकइनसेन्स एशेंशल औयल (frankincense essential oil जो आपको आसानी से दुकानों में मिल जाएगा) मिलाना होगा. ये तीनों चीजों को मिला कर किसी गहरे कांच की शीशी में भर कर रखिए. फिर इसे ड्रौपर से लगाइये. इसे हर रात सोने से पहले लगाएं. कोशिश करें कि अपनी स्‍किन को अच्‍छी तरह से मसाज करें जिससे औयल आपकी स्‍किन में पूरी तरह से समा जाए.

  1. ड्राई स्किन को सौफ्ट बनाएगा कोकोनट औयल

इसके लिये आपको चाहिये कच्‍ची शहद और कोकोनट औयल। शहद स्‍किन को काफी अच्‍छी तरह से हाइड्रेट करती है और स्‍किन को बिल्‍कुल नुकसान नहीं करती। इन दोनों चीजों को मिक्‍स कर के चेहरे पर लगाएं और कछ मिनट के लिये लगा छोड़ दें। फिर इसे गुनगुने पानी से धो लें।

  1. डीप क्‍लीजिंग के अच्छा है कोकोनट औयल

घर पर अगर आपको डीप क्‍लीजिंग करनी हो तो आपको बेकिंग सोडा और कोकोनट औयल लें. बेकिंग सोडे मे एंटीबैक्टीरियल और एंटी इनफ्लेमेंटरी गुण होते हैं. जो पोर्स को डीप क्‍लींज करते है और जिन लोंगो को ब्‍लैकहेड या एक्‍ने होता है उनके लिये यह काफी अच्‍छा है.

विंटर स्पेशल : ऐसे बनाएं हांडी पनीर

आज आपको हांडी पनीर की रेसिपी बताते हैं. जो काफी टेस्टी है और आप इस मसालेदार डिश को घर पर ही रेस्टोरेंट जैसा बना सकतै हैं. तो आइए जानते हैं इस स्वादिष्ट डिश की रेसिपी.

सामग्री

मिर्च पाउडर 1/2 चम्मच

टमाटर 1 बारीक कटा

कटी हुई धनिया की पत्ती मुट्ठीभर

रिफाइंड तेल 4 टेबलस्पून

पनीर 200 ग्राम

हल्दी पाउडर 1/2 चम्मच

गरम मसाला 1/2 चम्मच

पानी 1/2 कप

पिसी हुई काली मिर्च 2 चुटकी

अदरक के टुकड़े 2 घिसे हुए

मेन डिश के लिए

प्याज 3 कटे

दही 1/2 कप

बनाने की वि​धि

हांडी में तेल डालें, मध्यम आंच पर कटा हुआ प्याज फ्राई करें इसके बाद आंच धीमी कर लें.

इसके बाद अदरक, हल्दी, मिर्च, गरम मसाला डालकर अच्छी तरह मिलाएं.

बारीक कटा हुआ टमाटर और हरी मिर्च डालें और धीमी आंच पर 10 मिनट तक पकाएं.

नमक डालने से पहले आधा कप दही डालर सूखने तक पकाएं.

आधा कप पानी डालकर उबाल आने दें.

पनीर और कटी हुई धनिया मिलाएं और मसाले के सूखने तक इसे पकाएं.

काली मिर्च डालकर इसे आंच से हटा लें और धनिया से गार्निश करें.

बंटी-भाग 2: क्या अंगरेजी मीडियम स्कूल दे पाया अच्छे संस्कार?

अगर स्कूल महंगा और बड़ा था तो उस की किताबें भी वैसी ही महंगी और कठिन थीं. बंटी इसलिए परेशान था क्योंकि नए स्कूल की किताबों में से उस के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ रहा था. नए स्कूल की किताबों में जो कुछ था वह पहले वाले स्कूल की किताबों में नहीं था.

शिक्षा के क्षेत्र में जो अजीब चलन चल पड़ा उस का शिकार बंटी जैसे मासूम बच्चे ही बनते हैं.

किसी स्कूल के स्टैंडर्ड का मानदंड इन दिनों भारीभरकम डोनेशन, ऊंची फीस और कठिन सिलेबस बन चुका. जितनी बड़ीबड़ी और कठिन शब्दावली की किताबें उतना ही नामी स्कूल.

नए स्कूल में से जो किताबें बंटी को मिलीं वे खूबसूरत और आकर्षक थीं. चिकने पृष्ठों वाली किताबों के अंदर जानवरों, पक्षियों, वाहनों, नदी और पहाड़ों के सुंदर व रंगबिरंगे चित्र थे. ये चित्र बंटी को खूब भाए थे. लेकिन किताबों में मौजूद अंगरेजी की पोएम्स समझना बंटी के लिए मुश्किल था. कमोवेश शब्दों के अर्थ भी बदल गए थे. जैसे पहले वाले स्कूल की किताबों में बंटी ‘ए फौर एप्पल’ पढ़ता आ रहा था, मगर नए स्कूल की किताबों में ‘ए फौर एलिगेटर’ बन गया था. ‘सी फौर कैट’, नए स्कूल में ‘सी फौर क्राउन’ हो गया था.

स्कूल बदलते समय बंटी के मन की किसी ने नहीं जानी थी. उस की मरजी किसी ने नहीं पूछी थी. यों?भी सोसाइटी में बड़ों की नाक के मामले में मासूमों की भावनाएं कोई माने नहीं रखतीं.

यह साफ था कि नए स्कूल में अपर केजी में पढ़ने वाले बंटी की सारी पढ़ाई भी नए सिरे से ही शुरू होने वाली थी.

उधर बंटी का स्कूल बदल कर सुधा ने बैठेबिठाए अपने लिए परेशानी मोल ले ली थी.

बंटी का पहला स्कूल घर के काफी पास था, उस पर उस को स्कूल ले जाने के लिए रिकशा घर के दरवाजे तक आता था. बंटी को स्कूल भेजने के लिए सुधा काफी आराम से उठती थी. अगर बंटी ने नाश्ता न किया हो और स्कूल की रिकशा आ जाए तो सुधा के कहने पर रिकशा वाला दोचार मिनट रुक भी जाता था.

लेकिन स्कूल को बदलने से सारी बात ही दूसरी हो गई थी. बंटी के नए स्कूल की बस चौराहे तक आती थी जोकि घर से बहुत दूर नहीं तो ज्यादा पास भी नहीं था बंटी को साथ ले और उस का भारीभरकम स्कूल बैग उठा कर पैदल चौराहे तक पहुंचने में सुधा को कम से कम 15-20 मिनट तो लग ही जाते थे. नए स्कूल की बस किसी के लिए 1 मिनट भी नहीं रुकती थी इसलिए उस के आने के समय से काफी पहले ही चौराहे पर जा कर खड़े होना पड़ता था.

यही हालत बंटी के स्कूल से आने के समय होती थी. कड़कती धूप में बस के आने के समय से 10-15 मिनट पहले ही सुधा को चौराहे पर खड़े हो उस की राह देखनी पड़ती थी.

बंटी को स्कूल की बस में चढ़ाने और उतारने के चक्कर में सुधा हांफ जाती थी. कभीकभी खीज भी उठती थी. लेकिन अपनी खीज को वह जाहिर नहीं कर पाती थी.

करती भी कैसे, सारी मुसीबत उस की अपनी ही तो मोल ली हुई थी. केवल एक ही खयाल उस को काफी राहत और संतोष देने वाला था और वह था कि बंटी के कारण अब कम से कम अपनी नखरैल भाभियों के सामने उस की स्थिति कमजोर नहीं पड़ेगी.

एक और समस्या भी बंटी के स्कूल बदलने से सुधा के सामने आ खड़ी हुई थी. बंटी के नए स्कूल की किताबें सुधा के पल्ले नहीं पड़ रही थीं. ऐसे में उस को होमवर्क करवाना सुधा के बस की बात नहीं थी. बंटी के लिए ट्यूशन का इंतजाम करना भी अब जरूरी हो गया था.

इधर बंटी के दिल और दिमाग की हालत क्या थी, किसी को भी इसे जानने की फुरसत न थी.

सुबह सुधा गहरी नींद से उसे जगा देती और फिर जल्दीजल्दी उस को स्कूल के लिए तैयार करती.

बंटी को तैयार करते वक्त सुधा का ध्यान उस की तरफ कम और दीवार पर लटक रही घड़ी की तरफ ज्यादा रहता. उसे डर रहता कि कहीं स्कूल की बस निकल न जाए इसलिए वह बंटी को लगभग घसीटते हुए चौराहे तक ले जाती.

बस में स्कूल जाना बंटी के लिए नया और मजेदार अनुभव था. नए स्कूल की साफसुथरी और शानदार इमारत में प्रवेश भी बंटी के लिए रोमांचपूर्ण अनुभव था. बाकी चीजों के मामले में पहले वाले स्कूल से नया स्कूल बंटी के लिए कुछ अच्छा और कुछ बुरा था.

नए स्कूल में आ कर शुरूशुरू में तो बंटी को ऐसा लगा था जैसे वह किसी एकदम बेगानी दुनिया में आ गया हो. वह बहुत घबराया हुआ था. अपनेआप में ही सिमटा चला जा रहा था. क्लास में बाकी बच्चे उस की इस हालत पर हंसते थे.

नए स्कूल की मैम बंटी को बहुत पसंद आईं. उन का बोलचाल का ढंग भी अच्छा था. पहले वाले स्कूल की मैडम की तरह पढ़ाते समय वे तेज आवाज में बच्चों पर चिल्लाती नहीं थीं. एक बच्चे ने जब अपना सबक ठीक से नहीं सुनाया तो मैम ने बस उस के कान को हलके से खींच दिया था. पहले वाले स्कूल की मैडम तो ऐसे बच्चों को फौरन अपनी टेबल के पास मुर्गा बना देतीं या उन की पीठ अथवा हाथों पर स्केल से जोरजोर से मारती थीं.

बड़ी अच्छी चीजें देखी बंटी ने नए स्कूल में, पर कुछ चीजें बहुत बुरी भी लगीं उस को.

नए स्कूल में बच्चे बड़ी गंदीगंदी हरकतें करते थे. वे गालियां भी निकालते थे, जो अभी बंटी की समझ में नहीं आती थीं, क्योंकि उन के द्वारा दी जाने वाली अधिकांश गालियां अंगरेजी में होती थीं. अपनी उम्र से कहीं बड़ीबड़ी बातें करते थे नए स्कूल के बच्चे.

इधर बंटी को महंगे और बढि़या स्कूल में दाखिल करवाने के बाद गर्व से इतरा रही सुधा को उस दिन फिर अपमान का सामना करना पड़ा जब उस के घर बच्चों समेत आई भाभियों की मौजूदगी में बंटी और उन के बच्चों में झगड़ा हो गया और इस झगड़े में बंटी के मुख से ठेठ पंजाबी जबान में मांबहन वाली गाली निकल गई. गुस्से से सुधा ने बंटी के गाल पर एक जोर का चांटा रसीद कर दिया.

सुधा के लिए शर्म की बात थी कि बढि़या अंगरेजी स्कूल में जाने के बाद भी बंटी की जबान से घटिया गाली निकली थी.

ऐसे मौके पर भी बड़ी भाभी आरती कटाक्ष करने से नहीं चूकी थीं, ‘‘जाने दो दीदी, इतना गुस्सा क्यों करती हो? शुरू से ही इस को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाया होता तो यह ऐसी गालियां नहीं सीखता. नए स्कूल के माहौल का असर होने में थोड़ा समय तो लगता ही है. इसलिए बुरी आदतें भी जाने में कुछ वक्त तो लगेगा ही. आखिर कौआ एकदम से हंस की चाल तो नहीं चल पड़ेगा.’’

सुधा कुछ बोली नहीं, मगर उस का चेहरा अपमान से लाल हो गया.

यह देख दोनों भाभियां कुटिलता से मुसकरा दीं. सुधा को नीचा दिखलाने का कोई मौका वे कभी नहीं छोड़ती थीं.

शाम को दोनों भाभियां बच्चों को ले कर चली गईं, मगर सुधा के मन में अपमान की कड़वाहट छोड़ गईं.

तिलमिलाई सुधा अपने दिल की सारी भड़ास एक बार फिर से बंटी पर निकालना चाहती थी मगर सुधीर ने उस को ऐसा करने से रोक दिया.

बंटी की वजह से सुधा को एक बार फिर नीचा देखना पड़ा था. भाभी की बातें नश्तर बन कर उसे काटे जा रही थीं.

सुधीर उस को शांत करने की लगातार कोशिश करता रहा. सहमा हुआ बंटी रात को भूखा ही सो गया.

बंटी के भूखे सो जाने से सुधा के अंदर की ममता जागी. शायद अपने व्यवहार के लिए उस को पश्चात्ताप भी हुआ था. सुधा बंटी को जगा कर कुछ खिलाना चाहती थी मगर सुधीर ने उसे मना कर दिया.

नए अंगरेजी स्कूल का असर 4-5 महीने में बंटी में साफ नजर आने लगा था. रोजमर्रा की छोटीमोटी बातों के लिए बंटी अंगरेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने लगा था. सुबह उठते ही ‘गुडमौर्निंग पापा, गुडमौर्निंग ममा’ और रात को सोते वक्त ‘गुडनाइट पापा, गुडनाइट ममा’ कहना बंटी की दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. अंडे को अब वह ‘एग’ कहता था और सेब को ‘एप्पल’.

 

 

खनन माफिया का दुस्साहस: कुचल डाला डीएसपी

पुलिस की वरदी का अपराधियों पर खौफ रहता है, लेकिन हरियाणा में खनन माफिया ने प्रदेश पुलिस के डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को जिस निर्दयता के साथ डंपर से कुचला है, उस से यही लगता है कि खनन माफिया को जरूर प्रशासनिक या राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है, वरना एक ड्राइवर का इतना साहस नहीं हो सकता कि वह…

राजधानी दिल्ली एनसीआर के गुरुग्राम से सटे नूंह जिले के तावडू थाने की पुलिस को 18 जुलाई, 2022 की रात में सूचना मिली थी कि पचगांव के पहाड़ी इलाके में अवैध खनन का काम चल रहा है. यह
सूचना उसी वक्त डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को भी भेज दी गई थी.

बगैर समय गंवाए डीएसपी बिश्नोई ने छापेमारी के लिए टीम बनाई और अगले रोज 19 जुलाई की पूर्वाह्न साढ़े 11 बजे अपनी टीम के साथ मेवात के पचगांव के पहाड़ी इलाके में जा पहुंचे. टीम में 2 पुलिसकर्मी, एक ड्राइवर और एक गनमैन था.

सूचना सही थी. इलाके में खनन का काम चल रहा था. पुलिस टीम को देख कर पहाड़ी के पास खड़े पत्थरों से भरे डंपर, उन के चालक और खनन में लगे लोग भागने लगे.

डीएसपी उन के वाहन रोकने के लिए आगे आए और अपनी गाड़ी डंपर से सटा दी और गाड़ी से उतर कर उन्होंने डंपर के ड्राइवर से उस के कागजात मांगे, लेकिन बेखौफ ड्राइवर ने डंपर के ब्रेक से एक पैर हटाया और दूसरे पैर से एक्सीलेटर को एक झटके में दबा दिया. पलक झपकते ही डंपर गति में आ गया, जिस से उस के बिलकुल पास खड़े डीएसपी वहीं गिर गए.

बेलगाम डंपर उन को रौंदता हुआ आगे निकल गया. यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि डीएसपी खुद को नहीं संभाल पाए और डंपर के मोटे टायरों के नीचे आ गए. उन की गाड़ी में बैठे पुलिसकर्मी देखते रह गए और ड्राइवर डंपर ले कर भागने में सफल हो गया.

मौजूद पुलिसकर्मियों ने यह सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद तो प्रदेश के पुलिस अधिकारियों के अलावा सैकड़ों पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए. अपने अधिकारी की दर्दनाक हत्या किए जाने पर सभी हैरान थे.

उस इलाके में पुलिस ने तुरंत सर्च औपरेशन शुरू कर दिया. तब तक यह खबर तेजी से पूरे प्रदेश से ले कर दिल्ली तक पहुंच गई. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत गृहमंत्री अनिल विज ने कड़ी काररवाई के आदेश दे दिए. उन्होंने कहा कि जितनी फोर्स लगानी पड़े, लगाई जाए खनन माफियाओं को नहीं बख्शा जाए. फरार डंपर चालक और खनन माफिया को गिरफ्तार करने के आदेश दिए.

इस का असर भी हुआ. घटना के 4 घंटे बाद ही हरियाणा के नूंह में डीएसपी सुरेंद्र बिश्नोई की हत्या के आरोपियों की धरपकड़ शुरू हो गई. घटनास्थल से कुछ दूरी पर ही आरोपियों संग पुलिस की मुठभेड़ भी हुई. इस में एक आरोपी को गोली लगी और उसे पकड़ लिया गया. पकड़ा गया व्यक्ति डंपर का क्लीनर था, जिस ने अपना नाम इकरार बताया.

टायरों के नीचे आने से डीएसपी की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना की सूचना मिलते ही एसपी (नूंह) वरुण सिंगला मौके पर पहुंचे. उन्होंने डीएसपी को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

दरअसल, डीएसपी बिश्नोई ने यह छापेमारी तावड़ू क्षेत्र में अरावली की पहाडि़यों में बड़े स्तर पर अवैध खनन को रोकने लिए बनाई गई योजना के तहत की थी.

प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संदर्भ में 3 जून को ही उपमंडल स्तर पर एक स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया था. इस में कई विभागों के अधिकारी शामिल किए गए थे. इस की कमान डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई को दी गई थी.

एसडीएम तावड़ू सुरेंद्र पाल के अनुसार, टास्क फोर्स गठित कर अरावली के प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध खनन पर लगाम लगाने की काररवाई प्रशासन कर रहा था. टास्क फोर्स को सप्ताह में 2 बार अरावली क्षेत्र से
लगे गांवों का दौरा कर स्थिति का जायजा लेना था.

3 महीने बाद होने वाले थे रिटायर

डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई हिसार जिले के आदमपुर विधानसभा क्षेत्र में सारंगपुर गांव के रहने वाले थे. वह 12 अप्रैल, 1994 को हरियाणा पुलिस में एएसआई के पद पर भरती हुए थे. हालांकि पहले वह पशुपालन विभाग में क्लस्टर सुपरवाइजर के रूप में भरती हुए थे. यह पद वीएलडी के बराबर होता है. बाद में वर्ष 1993 में उन्होंने हरियाणा पुलिस में एएसआई पद के लिए आवेदन किया. शारीरिक और लिखित परीक्षा पास करने के बाद उन का चयन हो गया. लंबे समय तक वह कुरुक्षेत्र तथा यमुनानगर में तैनात रहे.

सुरेंद्र बिश्नोई ने कुरुक्षेत्र में अपना मकान बनाया हुआ है और करीब 10 साल पहले 2012 में उन की डीएसपी के पद पर पदोन्नति हुई थी. 3 महीने बाद ही पुलिस से 31 अक्तूबर, 2022 रिटायर होने की तारीख थी. परिवार में पत्नी कौशल्या के अलावा उन के 2 बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी.
वह 8 भाई हैं, जिन में 2 भाई जीवित नहीं हैं. इसी साल फरवरी में उन की मां मन्नी देवी और मार्च में उन के पिता उग्रसेन बिश्नोई की मौत हो गई थी. कुल 23 दिनों के अंतराल में मातापिता की मौत होने के बाद सुरेंद्र बिश्नोई अपने पैतृक गांव सारंगपुर आ गए थे.
सब से बड़े भाई अजीत बिश्नोई की 2009 में मौत हो गई थी, जबकि दूसरे नंबर के भाई ओमप्रकाश गांव में ही खेतीबाड़ी का काम संभालते हैं. तीसरे भाई मक्खन राजकीय महाविद्यालय हिसार से रिटायर हो चुके हैं.

चौथे भाई जगदीश हाईकोर्ट में एएजी के पद से रिटायर हुए थे, उन का देहांत हो चुका है. पांचवें नंबर पर सुरेंद्र बिश्नोई थे. छठें भाई सुभाष राजकीय स्कूल में प्रधानाचार्य हैं. सातवें भाई कृष्ण हिसार शहर में डेयरी चलाते हैं. आठवें सब से छोटे भाई अशोक बिश्नोई सहकारी बैंक कुरुक्षेत्र में मैनेजर हैं.

अगले महीने बेटा कनाडा से अचानक आ कर देता सरप्राइज

घटना के दिन उन की छोटे भाई अशोक से ही 19 जुलाई की सुबह करीब 9 बजे बात हुई थी. उन की मौत की खबर सुन कर परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार गुरुग्राम पहुंच गए. उन में बेटी प्रियंका और दामाद भी हैं.

प्रियंका बंगलुरु के एक बैंक में डिप्टी मैनेजर है, जबकि उन के दामाद भी बैंक मैनेजर हैं. बेटा सिद्धार्थ बीटेक के बाद मास्टर डिग्री के लिए कनाडा गया हुआ है. सिद्धार्थ की भी शादी हो चुकी है. उस के जुड़वां बेटे 11 सितंबर, 2020 को पैदा हुए थे.

सुरेंद्र की पत्नी कौशल्या गृहिणी हैं. घटना के दिन ही सुरेंद्र ने छोटे भाई अशोक से सुबहसुबह फोन कर कहा था, ‘‘3 महीने बाद रिटायरमेंट होनी है, फिर जल्द ही घर आऊंगा.’’
साथ ही अशोक ने उसी दिन सुरेंद्र के बेटे सिद्धार्थ से भी फोन पर बात होने की बात बताई. सिद्धार्थ ने उन्हें कहा था कि उस ने अगस्त में अपने पिता को सरप्राइज देने के लिए टिकट बुक करवा ली है.

उन की ड्यूटी पर हुई इस मौत से आहत मुख्यमंत्री खट्टर ने उन के परिवार को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि और एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने के अलावा सुरेंद्र को शहीद का दरजा दिए जाने की घोषणा की.

हरियाणा में यह पहला मामला है, जब खनन माफिया ने किसी डीएसपी को डंपर से कुचल कर मार डाला हो. खनन माफिया गुरुग्राम और नूंह जिले में काफी समय से सक्रिय हैं, जिस के चलते अरावली की तलहटी में पेड़ों की कटाई और पत्थरों की खुदाई का काम लगातार हो रहा है.

इस से पर्यावरण के लिए खतरा बना हुआ है. साथ में जीवजंतुओं की प्रजातियों को भी नुकसान होने की आशंका बनी हुई है. बावजूद इस के खनन माफिया का दुस्साहस बना हुआ है.

हालांकि इस संबंध में नगीना पुलिस ने नांगल मुबारिकपुर, घागस कंसाली तथा झिमरावट, शेखपुर आदि गांवों के लोगों पर अवैध खनन के मुकदमे भी दर्ज किए हैं. अवैध खनन करने वालों के हौसले इतने बुलंद हैं कि पुलिस और खनन विभाग की सख्ती के बावजूद वे नहीं मानते हैं. इसी तरह से पेड़ों को काटने वालों ने भी जुरमाना भरने के बाद भी पेड़ों को काटना बंद नहीं किया है.

35 करोड़ साल पुरानी हैं अरावली पहाडि़यां

यानी कि नूंह जिले के खेड़लीकलां, झिमरावट, घागस कंसाली, फिरोजपुर झिरका, शेखपुर के अलावा कई स्थानों पर अवैध खनन और पेड़ों की लगातार कटाई चरम पर है.

दिल्ली से ले कर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली अरावली पर्वत शृंखला करीब 800 किलोमीटर लंबी है, जो करीब 35 करोड़ साल पुरानी बताई जाती हैं.

यहां तक कि इसे भूवैज्ञानिक हिमालय पर्वत से भी पुराना कहते हैं. ये पहाडि़यां सिर्फ थार के मरुस्थल को फैलने से ही नहीं रोकती हैं, बल्कि इस की बदौलत ही भूजल जमीन में जमा होता रहता है.

और तो और, इस में जैव विविधता के भंडार भरे हुए हैं. इस में से निकलने वाला खनिज तांबा है तो इन पहाडि़यों के जंगलों में 20 पशु अभयारण्य बने हैं.

यहां तक कि इन में होने वाले खनन से राजधानी दिल्ली तक पर असर होता है. कारण, दिल्ली से मात्र 40 किलोमीटर दूरी पर ही अरावली में खनन का काम अवैध तरीके से चल रहा है. स्टोन क्रशर, ट्रक, ट्रैक्टर ट्रौली और बड़ीबड़ी मशीनें इन पहाडि़यों को रौंदती रहती हैं. यहीं से भवन निर्माण की सामग्री आती है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में ही पहाड़ी के इस 10 किलोमीटर लंबे इलाके में खनन पर रोक लगा दी थी, लेकिन यहां कई लोग अभी भी खनन का काम कर रहे हैं. स्थानीय ग्रामीणों कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की रोक का कोई असर नहीं है.

4-5 साल पहले यहां हरियाली से भरापूरा एक पहाड़ हुआ करता था, जिस का अब यहां बस नामोनिशान ही बचा है. पहाडि़यों की खुदाई करना दिल्ली के बाहर एक बड़ा व्यापार बन गया है. जबकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत की वर्तमान स्थिति को जानने के लिए एक केंद्रीय समिति का गठन किया था. समिति ने पाया कि अवैध खनन के चलते पिछले 50 सालों में 128 में से 31 पहाडि़यों का नामोनिशान खत्म हो चुका है.

ऐसा भी नहीं है कि अवैध खनन की शिकायतें खनन विभाग के आला अधिकारियों तक न पहुंचती हैं, फिर भी काररवाई नहीं होने से उन का मनोबल बढ़ा हुआ है. अरावली में वन विभाग द्वारा लगाए गए चौकीदार ही लोगों से अवैध खनन करवाते हैं. साथ में पेड़ों को काट कर आरा मशीन मालिकों को बेच देते हैं.

वन विभाग के चौकीदारों की माफियाओं से रहती है मिलीभगत

जबकि अरावली में हर साल वन विभाग लाखों पौधे पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए लगाता है, लेकिन यहां पर ये पौधे बड़े होने से पहले ही नष्ट कर दिए जाते हैं. वन विभाग को सालाना घाटा होने का एक कारण यह भी है.

इसी तरह से यहां रात में पत्थरों को तोड़ने काम होता है, उस के बाद उस की दिन में ट्रैक्टरों और ट्रकों में भर कर ढुलाई होती है. उन्हें गांवों में ही छिपा कर रखा जाता है, फिर वहां से जरूरतमंद लोगों और बिल्डरों को बेच दिया जाता है.

अरावली पर्वत शृंखला असोला से शुरू हो कर फरीदाबाद के सूरजकुंड, मांगर बणी, पाली बणी, बड़खल व गुड़गांव के दमदमा तक लगभग 180 वर्गकिलोमीटर के करीब है. पर्यावरण के जानकार एवं ‘सेव अरावली’ के सदस्य जितेंद्र भड़ाना का कहना है कि लकड़ी माफियाओं की नजर अरावली के कीमती पेड़ों पर है. अरावली में लकड़ी माफिया यहां की लकडि़यों को काट कर बाजार में बेचते हैं. पूरे इलाके में खनन भी तेजी से हो रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश

अरावली में अवैध खनन को ले कर सरकार और प्रशासन को कोर्ट की फटकार भी लग चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी हरियाणा सरकार और जिला प्रशासन अरावली में अवैध रूप से हो रहे खनन रुकवाने में असफल रहा है. इस के विरोध में ‘न्यायिक सुधार संघर्ष समिति’ ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है.

इस की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में 26 जुलाई, 2022 तय की गई. कथा लिखे जाने तक इस का फैसला नहीं आया था. इस में हरियाणा सरकार और जिला प्रशासन को अवैध खनन नहीं रुकवाने का जवाब मांगा गया है.

इस अवमानना याचिका में चीफ सेक्रेटरी हरियाणा, डीसी फरीदाबाद, खनन विभाग और कई अधिकारियों को पार्टी बनाया गया. कोर्ट का कहना है कि अरावली में सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद वहां बड़े पैमाने पर खनन और अवैध निर्माण क्यों हो रहे हैं?

न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के प्रधान एडवोकेट एल.एन. पाराशर ने बताया कि अरावली में अवैध खनन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध होने के बाद भी हो रहे खनन को देख उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने अवैध खनन की कई तसवीरें और वीडियो कोर्ट को दिए. मामला मीडिया में आने के बाद कुछ खनन माफियाओं पर मामला दर्ज कर खानापूर्ति कर दी गई.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सरकार पिछले दिनों पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन ऐक्ट (पीएलएपी) में संशोधन बिल लाने की तैयारी में जुटी थी. मामला कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद सरकार ने संशोधन बिल पर रोक लगा दी थी. सरकार जो संशोधन बिल ला रही थी, उस से अरावली वन क्षेत्र से बाहर हो जाता. साथ ही यहां हो रहे निर्माण कार्य वैध हो जाते.

क्योंकि पीएलपीए ऐक्ट की धारा 4 व 5 लागू ही नहीं होगी. इस बारे में ‘सेव अरावली व फरीदाबाद एक्टिविस्ट ग्रुप’ का कहना है कि पीएलपीए ऐक्ट 1900 अंगरेजों के जमाने से चला आ रहा है.
इस का मकसद वन क्षेत्र को समाप्त होने से बचाना है. यदि सरकार इस में संशोधन करती है तो आने वाले दिनों में यहां कंक्रीट के जंगल खड़े हो जाएंगे.

इस संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में महज 3.5 फीसदी ही हरियाली बची है. वह भी अरावली पर्वत शृंखला के कारण है. अरावली में एक हेक्टेयर जमीन में प्रतिवर्ष 25 लाख लीटर भूजल रिचार्ज होता है. अरावली खत्म होने से पानी और पर्यावरण दोनों पर संकट पैदा हो जाएगा. द्य

GHKKPM: विराट के साथ काम करेगी सई, सौतन को देगी करारा जवाब

सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों ट्विस्ट और टर्न आ गया है, इस सीरियल को देखने के लिए फैंस इंतजार लगाएं बैठे हुए हैं. यह सीरियल लोगों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. शो लगातार टीआरपी में आने के लिए मेहनत कर रहा है.

बीते दिनों इस सीरियल में दिखाया गया है कि विराट का एक्सीडेंट हो जाता है, जिसकी मदद के लिए विराट सई को अपने साथ लेकर जाता है, इसके अलावा सीरियल में ऐसे ट्विस्ट और टर्न आने वाले हैं जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे.

आगे दिखाया जाएगा कि सई पुलिस की मदद करने की कोशिश करेगी उसी बीच उसके पैर में चोट लग जाएगी, उसका चलना फिरना बंद हो जाएगा. ऐसे में विराट तुरंत उसकी मदद के लिए सामने आएगा. फिर उसे गोद में उठाकर लेकर जाएगा.

सई पुलिस यूनिट की बहुत अच्छे से इलाज करती है, जिसे देखकर पुलिस कमिश्नर खुश हो जाएगा, उसे पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी देने को तैयार हो जाएगा. वह विराट से पूछेगा कि क्या उसके डिपार्टमेंट में सई काम करेगी.

दूसरी तरफ सई विराट के साथ काम नहीं करना पसंद करेगी, वहीं दूसरी तरफ पाखी कमिश्नर सर की बात सुन लेती है और दोनों के हाथ पैर फूलने लगते हैं.

सई और विराट की नजदीकियों से वह परेशान हो जाती है, इतना ही नहीं वह विराट से कहती है कि पाखी को दिए गए ऑफर को कमिश्नर सर ठुकरा दें.

अनुपमा ने शुरू कर दी है बेटे की शादी की तैयारी, जमकर होने वाला है तमाशा

सीरियल अनुपमा में इन दिनों जमकर तमाशा हो रहा है, निमृत और डिंपल के चलते शाह परिवार की शांति भंग हो गई है, बीते दिनों दिखाया गया है कि इस सीरियल में कुछ गुंडें अनुपमा पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं.

अगर बात कि जाए डिंपल की तो वह जल्द समर के साथ सात फेरे लेने वाली है, ऐसे में सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो शेयर किया गया है जिसे देखने के बाद से साफ हो गया है कि जल्द ही इस सीरियल में बवाल होने वाला है.

 

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वहीं इस सीरियल के देखने के बाद से फैंस समर की शादी के इंतजार में जुटे हुए हैं. वहीं आगे दिखाया जाएगा कि अनुपमा डिंपल को अपने घर लेकर आती है, और उसे साथ रखने का फैसला करती है. अनुपमा के इस कदम से घरवालें खुश हो जाते हैं.

वहीं डिंपल के घर आने के फैसले से वनराज नाराज हो जाते हैं, उनको अनुपमा का यह फैसला बिल्कुल पसंद नहीं आएगा. इन दोनों को लगता है कि अनुपमा का यह फैसला एक मुसीबत घर में ला सकता है.

वहीं अनुपमा अपने फैसले से पीछे नहीं हटने वाली है, वह भी अपने जिद्द पर अड़ी रहेगी. देखते हैं आगे क्या होगा सीरियल में. वहीं जल्द डिंपल शादी करके शाह परिवार की बहू बनने वाली है. शाह परिवार के कुछ सदस्य इस फैसले से खुश हैं तो वहीं इस फैसले से परिवार के कुछ सदस्य नाराज हैं.

विंटर स्पेशल : जानें कैसे सेहत का हाल बताती है आपकी स्किन

खिला चेहरा और घने लहराते बाल जहां हमें खूबसूरत दिखाते हैं, वहीं त्वचा और बालों से संबंधित समस्याएं जैसे बाल झड़ने शुरू हो जाना, फटे होंठ, मुंहासे व झुर्रियां हमारी खूबसूरती में ग्रहण भी लगा देते हैं. मगर क्या आप जानती हैं कि ये हमें बहुत सी शारीरिक बीमारियों के भी संकेत देते हैं? दरअसल, आप की त्वचा पर नजर आने वाली कोई भी समस्या यों ही नहीं होती उस का कोई न कोई कारण जरूर होता है, इसलिए उसे कभी नजरअंदाज न करें.

त्वचा

– अगर आप की त्वचा पर अचानक अलगअलग जगहों पर तिल नजर आने लगें तो उन्हें मेकअप कर के छिपाने की गलती न करें, क्योंकि यह स्किन कैंसर का लक्षण भी हो सकता है.

– डर्मावर्ल्ड स्किन क्लिनिक के डर्मैटोलौजिस्ट डा. रोहित बत्रा का कहना है कि कई ऐसे लोग होते हैं जो पूरी तरह केयर करने के बाद भी बारबार होंठों के फटने से परेशान होते हैं. ऐसा कई बार इन्फैक्शन और ऐलर्जी से होता है, साथ ही यह रोगप्रतिरोधक क्षमता में आई कमी को भी दर्शाता है.

– वैसे तो उम्र के साथसाथ झुर्रियां आना एक सामान्य लक्षण है, लेकिन अगर आप की उम्र कम है और फिर भी आप को झुर्रियों की समस्या हो रही है, तो ऐसा औस्टियोपोरोसिस के कारण भी हो सकता है.

– आप की त्वचा अचानक बहुत अधिक रूखी लगने लगी है और उस पर सफेद रंग के धब्बे भी नजर आने लगे हैं तो यह डीहाइड्रेशन या फिर डायबिटीज की संभावना को दर्शाता है.

बाल

– अगर अचानक ही आप के बाल बहुत ज्यादा झड़ने लगें तो हो सकता है कि आप को थायराइड की समस्या हो. इसलिए इसे नजरअंदाज न करते हुए फौरन डाक्टर से संपर्क करें.

– अगर आप के बाल सिर के बीच से झड़ रहे हैं, तो ऐसा बहुत अधिक तनाव में रहने से भी होता है. कई बार इस का कारण दवा का रिएक्शन या फिर हारमोनल बदलाव भी हो सकता है.

– कई बार यह देखा जाता है कि कुछ लड़कियों को अचानक ही शरीर के अलगअलग हिस्सों पर बाल उग आते हैं, जिस का कारण पीसीओएस नाम की बीमारी भी हो सकती है, जो इन्फर्टिलिटी का कारण भी बनती है.

नाखून

– अगर आप के नाखूनों में पीलापन है या फिर उन की रंगत गुलाबी न हो कर सफेद सी है तो हो सकता है आप को ऐनीमिया यानी खून की कमी हो.

– अगर आप के नाखूनों पर लाल या भूरे रंग के धब्बे हैं, तो उन को हलके में न लें, क्योंकि इस का कारण रक्त संक्रमण या फिर ऐसा दिल से संबंधित बीमारियों के कारण भी हो सकता है.

– अगर आप के नाखून नीले रंग के नजर आते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप की उंगलियों तक ब्लड ठीक से सर्कुलेट नहीं हो पा रहा है.

 – डा. विवेक मेहता, पुलत्स्या कैडल स्किन केयर सैंटर के डर्मैटोलौजिस्ट

दूसरा पिता-भाग 1 : क्या कमलकांत को दूसरा पिता मान सकी कल्पना

वह यादों के भंवर में डूबती चली जा रही थी. ‘नहीं, न वह देवदास की पारो है, न चंद्रमुखी. वह तो सिर्फ पद्मा है.’ कितने प्यार से वे उसे पद्म कहते थे. पहली रात उन्होंने पद्म शब्द का मतलब पूछा था.

वह झेंपती हुई बोली थी, ‘कमल’.

‘सचमुच, कमल जैसी ही कोमल और वैसे ही रूपरंग की हो,’ उन्होंने कहा था.

पर फिर पता नहीं क्या हुआ, कमल से वह पंकज रह गई, पंकजा. क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? दूसरी औरत जब पराए मर्द पर डोरे डालती है तो वह यह सब क्यों नहीं सोचा करती कि पहली औरत का क्या होगा? उस के बच्चों का क्या होगा? ऐसी औरतें परपीड़ा में क्यों सुख तलाशती हैं?

हजरतगंज के मेफेयर टाकीज में ‘देवदास’ फिल्म लगी थी. बेटी ने जिद कर के उसे भेजा था, ‘क्या मां, आप हर वक्त घर में पड़ी कुछ न कुछ सोचती रहती हैं, घर से बाहर सिर्फ स्कूल की नौकरी पर जाती हैं, बाकी हर वक्त घर में. ऐसे कैसे चलेगा? इस तरह कसेकसे और टूटेटूटे मन से कहीं जिया जा सकता है?’

लेकिन वह तो जैसे जीना ही भूल गई थी, ‘काहे री कमलिनी, क्यों कुम्हलानी, तेरी नाल सरोवर पानी.’ औरत का सरोवर तो आदमी होता है. आदमी गया, कमल सूखा. औरत पुरुषरूपी पानी के साथ बढ़ती जाती है, ऊपर और ऊपर. और जैसे ही पानी घटा, पीछे हटा, वैसे ही बेसहारा हो कर सूखने लगती है, कमलिनी. यही तो हुआ पद्मा के साथ भी. प्रभाकर एक दिन उसे इस तरह बेसहारा छोड़ कर चले जाएंगे, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. पर ऐसा हुआ.

उस दिन प्रभाकर ने एकदम कह दिया, ‘पद्म, मैं अब और तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता. अगर झगड़ाझंझट करोगी तो ज्यादा घाटे में रहोगी, हार हमेशा औरत की होती है. मुझ से जीतोगी नहीं. इसलिए जो कह रहा हूं, राजीखुशी मान लो. मैं अब मधु के साथ रहना चाहता हूं.’

पति का फैसला सुन कर वह ठगी सी रह गई थी. यह वही मधु थी, जो अकसर उस के घर आयाजाया करती थी. लेकिन उसे क्या पता था, एक दिन वही उस के पति को मोह लेगी. वह भौचक देर तक प्रभाकर की तरफ ताकती रही थी, जैसे उन के कहे वाक्यों पर विश्वास न कर पा रही हो. किसी तरह उस के कंठ से फूटा था, ‘और हमारी बेटी, हमारी कल्पना का क्या होगा?’

‘मेरी नहीं, वह तुम्हारी बेटी है, तुम जानो,’ प्रभाकर जैसे रस्सी तुड़ा कर छूट जाना चाहते थे, ‘स्कूल में नौकरी करती हो, पाल लोगी अपनी बेटी को. इसलिए मुझे उस की बहुत फिक्र नहीं है.’

पद्मा हाथ मलती रह गईर् थी. प्रभाकर उसे छोड़ कर चले गए थे. अगर चाहती तो झगड़ाझंझट करती, घर वालों, रिश्तेदारों को बीच में डालती, पर वह जानती थी, सिवा लोगों की झूठी सहानुभूति के उस के हाथ कुछ नहीं लगेगा.

समझदार होने पर कल्पना ने एक दिन कहा था, ‘मां, आप ने गलती की, इस तरह अपने अधिकार को चुपचाप छोड़ देना कहां की बुद्धिमत्ता है?’

‘बेटी, अधिकार देने वाला कौन होता है?’ उस ने पूछा था, ‘पति ही न, पुरुष ही न? जब वही अधिकार देने से मुकर जाए, तब कैसा अधिकार?’

पद्मा ने बहुत मुश्किल से कल्पना को पढ़ायालिखाया. मैडिकल की तैयारी के लिए लखनऊ में महंगी कोचिंग जौइन कराई. जब वह चुन ली गई और लखनऊ के ही मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया तो पद्मा बहुत खुश हुई. उस का मन हुआ, उन्नाव जा कर प्रभाकर को यह सब बताए, मधु को जलाए, क्योंकि उस के बच्चे तो अभी तक किसी लायक नहीं हुए थे. वह प्रभाकर से कहना चाहती थी कि वह हारी नहीं. उन्नाव जाने की तैयारी भी की, पर कल्पना ने मना कर दिया, ‘इस से क्या लाभ होगा, मां? जब अब तक आप ने संतोष किया, तो अब तो मैं जल्दी ही बहुतकुछ करने लायक हो जाऊंगी. जाने दीजिए, हम ऐसे ही ठीक हैं.’

पद्मा अकेली हजरतगंज के फुटपाथ पर सोचती चली जा रही थी. जया वहीं से डौलीगंज के लिए तिपहिए पर बैठ कर चली गई थी. उसे मुख्य डाकघर से तिपहिया पकड़ना था.

जया और वह एक ही स्कूल में पढ़ाती थीं. पद्मा अकेली फिल्म देखने नहीं जाना चाहती थी. लड़की की जिद बताई तो जया हंस दी, ‘चलो, मैं चलती हूं तुम्हारे साथ. अपने जमाने की प्रसिद्ध फिल्म है.’

 

गेहूं फसल में निमेटोड: पहचान और बचाव

लेखक-डा. ऋषिपाल

निमेटोड बहुत ही छोटे आकार के सांप जैसे जीव होते?हैं, जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता. ये माइक्रोस्कोप से ही दिखाई देते हैं. ये अधिकतर मिट्टी में रह कर पौधों को नुकसान पहुंचाते?हैं. इन के मुंह में एक सुईनुमा अंग स्टाइलेट होता?है. इस की सहायता से ये पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं, जिस के कारण पौधे भूमि से खादपानी पूरी मात्रा में नहीं ले पाते. इस से इन की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है. बीज गाल (पिटिका) निमेटोड (एंगुनिया ट्रिटीसाई) : इस निमेटोड की मादा 6 से 12 दिनों के अंदर 1,000 अंडे नए गाल (पिटिका) के अंदर देती है. जब फसल पकने वाली होती है, तो पिटिका भूरे रंग की हो जाती है. दूसरी अवस्था वाले लार्वे पिटिका में भर जाते हैं.

दूसरी अवस्था के लार्वे 28 साल पुरानी बीज पिटिका में जीवित अवस्था में पाए गए हैं. फसल की कटाई के समय स्वस्थ बीज के साथ पिटिका से ग्रसित बीज भी इकट्ठा कर लिए जाते हैं. जब अगले साल की फसल की बोआई की जाती है, तो अगला जीवनचक्र फिर शुरू हो जाता है. 1 बीज पिटिका में तकरीबन 3,000 से 12,000 दूसरी अवस्था वाले लार्वे पाए गए हैं. जब ये लार्वे नमी वाली भूमि के संपर्क में आते हैं, तो नमी सोखने के कारण मुलायम हो जाते हैं. ये पिटिका को फाड़ कर बाहर निकल आते?हैं. लार्वे की दूसरी अवस्था हानिकारक होती?है इस अवस्था के लार्वे भूमि से 10 से 15 दिनों में बाहर आ जाते हैं और बीज के जमने के समय हमला कर देते हैं.

लार्वे बीज के जमने वाले भाग से ऊपर पौधे के चारों ओर बढ़ने वाले क्षेत्र में और पत्ती की सतह में पानी की पतली परत के सहारे ऊपर चढ़ जाते हैं. ये पत्ती के बढ़ने वाले भाग से पत्ती की चोटी पर चढ़ जाते हैं. पौधे की बढ़वार अवस्था में फूल के बीज बनने वाले स्थान पर निमेटोड हमला करते?हैं और लार्वे फूल के अंदर चले जाते हैं. इस अवस्था में निमेटोड बीज बनने वाले भाग में रहते हैं और संख्या बढ़ने के कारण फूल पिटिका में बदल जाते?हैं. लार्वे 3 से 5 दिनों में फूलों पर आक्रमण कर के नर व मादा में परिवर्तित हो जाते?हैं. बहुत से नर व मादा हरी पिटिका में मौजूद रहते?हैं. नुकसान के लक्षण निमेटोड से ग्रसित नए पौधे का नीचे का भाग हलका सा फूल जाता?है.

इस के अलावा बीज के जमाव के 20-25 दिनों बाद नए पौधे के तने पर निकली पत्ती चोटी पर से मुड़ जाती है. रोग ग्रसित नए पौधे की बढ़वार रुक जाती है और अकसर पौधा मर जाता है. रोग ग्रसित पौधा सामान्य दिखाई देता?है. उस में बालियां 30-40 दिनों पहले निकल आती?हैं. बालियां छोटी व हरी होती हैं, जो लंबे समय तक सामान्य बाली के मुकाबले हरी रहती?हैं. बीज पिटिका में बदल जाते हैं. इस रोग का मुख्य लक्षण यह है कि बीज गाल यानी पिटिका में बदल जाते?हैं. गाल (पिटिका) छोटा व गहरा होता है, जो स्वस्थ बीज के मुकाबले भूरा और अनियमित आकार का हो जाता?है. गाल (पिटिका) के आकार के अनुसार एक गाल में 800 से 3,500 की संख्या में लार्वे पाए जाते?हैं. इस निमेटोड के कारण पीली बाल या टुंडा रोग हो जाता है. निमेटोड बीजाणु फैलाने का काम करते हैं.

इस रोग के कारण नए पौधों की पत्तियों व बालियों पर हलका पीला सा पदार्थ जमा हो जाता है. रोग ग्रसित पौधों से बालियां ठीक से नहीं निकल पातीं और न ही उन में दाने बनते हैं. रोकथाम बीज की सफाई?: टुंडा रोग या बाल गांठ रोग या निमेटोड से रहित बीज लेने चाहिए. बीजों को छन्नी से छान कर पानी में 20 फीसदी के बराइन घोल में डाल कर तैरते हुए बीज अलग कर लेने चाहिए. गरम पानी से उपचारित करना : बीजों को 4 से 6 घंटे तक?ठंडे पानी में भिगोना चाहिए. इस के बाद 54 डिगरी सैंटीग्रेड गरम पानी में 10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए. फसल को हेरफेर कर बोना : निमेटोड को खेत से बाहर करने के लिए प्रभावित फसल की 2 या 3 सालों तक बोआई नहीं करनी चाहिए. रोगरोधी किस्म : निमेटोड अवरोधी प्रजातियां ही खेत में बोनी चाहिए. संक्रमित पौधे निकालना : निमेटोड से संक्रमित पौधे पता लगा कर अगेती अवस्था में ही नष्ट कर देने चाहिए. सूप से फटकना या हवा में उड़ाना : यह विधि भी सहायक गाल को बाहर करने के लिए कारगर है,

पर इस विधि से गाल (पिटिका) पूरी तरह से बाहर नहीं होते?हैं. सिस्ट गांठ निमेटोड (हेटरोडेरा एविनी) : यह गांठ निमेटोड नीबू के आकार की गांठ के अंदर अंडे देता है, जो कई सालों तक जीवित रहते हैं. ये गांठ से अलग हो कर भूमि में निकल आते हैं. मार्चअप्रैल और अक्तूबरनवंबर माह तक गांठ में तकरीबन 400 अंडे रहते हैं. इस समय अंडों में दूसरी अवस्था के लार्वे बेकार अवस्था में रहते हैं. फसल की अगली बोआई के समय नवंबर से जनवरी माह के दौरान रोग ग्रसित लार्वे गांठ से निकलने शुरू हो जाते हैं. एक सीजन में 50 फीसदी अंडे फूट जाते हैं और बाकी अगले सीजन तक महफूज रहते हैं. जब फसल 4 से 5 सप्ताह पुरानी व ताप 16 से 18 डिगरी सैंटीग्रेड हो जाता है, तब दूसरी अवस्था के लार्वे जड़ की चोटी से घुसते हैं. शरीर विकसित होने में 4 हफ्ते लगते हैं.

भोजन लेने के बाद दूसरी अवस्था चौड़ाई में बढ़ती है. मादा नीबू का आकार लेती है और सफेद रंग की होती है. जड़ में घुसने के 4-5 हफ्ते बाद लार्वा को जड़ से बाहर निकलते देखा जा सकता?है. मादा तभी मर जाती है. उस के शरीर का कठोर व गांठ से भरा अवशेष अगले सीजन को संक्रमित करने के काम आता?है. नर वयस्क गोलाकार केंचुए जैसा होता?है. नर का विकास लार्वे में होता है. लार्वे वयस्क में बदलते?हैं. इन का जीवनचक्र 9 से 14 हफ्ते में पूरा होता?है और साल में 1 पीढ़ी पाई जाती?है. यह निमेटोड गेहूं और जौ में मोल्या रोग फैलाता है. नुकसान के लक्षण इस निमेटोड के लक्षण शुरू में खेत में टुकड़ों में दिखाई देते?हैं, जो 3-4 सालों में पूरे खेत में फैल जाते हैं.

इस के शुरुआती लक्षण फसल के जमाव के समय दिखने लगते हैं. इस की वजह से पौधों की जमीन से पोषक तत्त्वों को लेने की कूवत कम हो जाती?है और जड़ों में गांठें बन जाती हैं. इस के अलावा पौधों की बढ़वार रुक जाती है और रोगग्रस्त पौधे हरेपीले रंग के दिखाई देते हैं. ऐसे रोगग्रसित पौधों की बालियों में बहुत कम दाने बनते हैं. पौधों के आधार पर मूसला जड़ें विकसित हो जाती हैं. जड़ों पर फरवरी के मध्य में निमेटोड का आक्रमण दिखाई पड़ता?है. रेशे वाली जड़ें भूमि से आसानी खींची जा सकती हैं. इस के प्रकोप से रेतीली मिट्टी में 45 से 48 फीसदी नुकसान होता?है. रोकथाम कृषि क्रियाएं विधि : गांठ निमेटोड अवरोधी और सूखा न सहने वाला?है.

फसलचक्र व गरमी की जुताई से इस की रोकथाम की जा सकती है. पोषक अवरोधी फसलें जैसे सरसों, चना, कारिंडर, गाजर व फ्रैंचबीन वगैरह से इस की रोकथाम कर सकते?हैं. मईजून महीनों में 2-3 बार गरमी की जुताई करने पर निमेटोड की संख्या कम की जा सकती?है. गरमी के महीनों में गांठें कम हो जाती?हैं. गेहूं की अगेती बोआई करने पर नुकसान को कम किया जा सकता है.

अवरोधी प्रजातियां : भारत में गेहूं की निमेटोड अवरोधी प्रजातियां सीसीएनआरवी 1 व राज एमआर 1 उगाई जाती हैं. जौ की अवरोधी प्रजातियां राज किरन, आरडी 2035, आरडी 2052 और सी 164 संक्रमित क्षेत्र में उगाई जाती हैं. इन प्रजातियों में मादा के अंडे देने में असफल होने के कारण निमेटोड की तादाद कम हो जाती है. रासायनिक विधि : खेत में कार्बोफ्यूरान 3 फीसदी 65 किलोग्राम या फोरेट 10जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से निमेटोड पर काबू पाया जा सकता है. एकीकृत इलाज : मईजून के महीनों में गरमी की जुताई कर के और अवरोधी फसलों जैसे चना व सरसों की बोआई कर के निमेटोड की तादाद को कम करने में सफलता पाई जा सकती है.

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