‘‘वाह रानीजी, वाह, गलती तुम करो और दूसरा अपने मन का तनिक सा रोष भी न निकाल सके?’’
‘‘तो फिर मैं क्या करूं, बताओ न?’’
‘‘एक बात बता, क्या पंकज में कोई कमी है जो दूसरी शादी कर के तुझे उस से अच्छा पति मिल जाएगा? क्या गारंटी है कि आगे किसी छोटे से झगड़े पर तू फिर तलाक नहीं ले लेगी या जिस व्यक्ति से तेरी दूसरी शादी होगी वह अच्छा ही होगा, इस की भी क्या गारंटी है?’’ जया ने तनिक गुस्से से पूछा.
‘‘दूसरी शादी की बात मत कहो, जया. मैं तो पंकज के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती. शायद उस से अच्छा व्यक्ति इस संसार में दूसरा कोई हो ही नहीं सकता.’’
‘‘फिर किस बात का इंतजार है. क्या तुम समझती हो कि पंकज एक होनहार युवक तुम्हारी प्रतीक्षा में जिंदगी भर अकेला बैठा रहेगा? क्या उस के घर वाले उस के भविष्य के प्रति उदासीन बैठे होंगे? पंकज अपने घर का अकेला होनहार चिराग है.’’
‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. अब बता कि मैं क्या करूं?’’
‘‘तू तुरंत पंकज से मिल कर अपने मन की दूरियां मिटा ले. उस से क्षमा मांग ले. आखिर गलती की पहल तो तू ने ही की थी.’’
‘‘लेकिन पिताजी?’’
‘‘क्या पिताजीपिताजी की रट लगा रखी है. क्या तू कोई दूध पीती बच्ची है? पिता क्या हमेशा ही तेरी जिंदगी के छोटेछोटे मसले हल करते रहेंगे? उन्हें अपने मुकदमों के फैसले ही करने दे, अपना फैसला तू खुद कर.’’
‘‘अगर पंकज ने मुझे क्षमा न किया तो? मुझ से मिलने से ही इनकार कर दिया तो?’’ सुषमा ने बेचारगी से कहा.
‘‘पंकज जैसा सुलझा हुआ व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता. तुझे उस ने क्षमा न कर दिया होता तो वह तेरे घर क्या करने आता. क्या तू इतना भी नहीं समझ सकती?’’
‘‘सच जया, तुम ने तो मेरी आंखें ही खोल दी हैं. मेरी तो सारी दुविधा दूर कर दी. मैं अभी पंकज के पास जाऊंगी. इस समय वह संभवत: दफ्तर में ही होगा. मैं अभी उसे फोन मिलाती हूं.’’
बिना तनिक भी देर किए हुए सुषमा जया के साथ तुरंत पास के टैलीफोन बूथ पर बात करने चली गई. उस ने दफ्तर का नंबर मिलाया तो पता चला कि पंकज किसी आवश्यक कार्य से अचानक आज दोपहर के बाद छुट्टी ले कर अपने घर के लिए चला गया है. पूछने पर पता चला कि शायद सगाई की तारीख तय हो रही है.
सुषमा का मन हजार शंकाओं से घिर आया. उस ने समय देखा तो ध्यान आया कि पंकज की गाड़ी छूटने में अभी आधे घंटे का समय बाकी है. अब उसे पंकज के बिछोह का एकएक क्षण एक युग जैसा लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘जया, मैं अभी, इसी समय स्टेशन जा रही हूं. तू भी मेरे साथ चली चल.’’
‘‘नहीं जी, अब मैं मियांबीवी के बीच दालभात में मूसलचंद बनने वाली नहीं, कल मिलूंगी तो हाल बताना. वैसे अब तू मुझे ढूंढ़ने वाली नहीं. मैं अपनी औकात समझती हूं,’’ कह कर जया अपने घर की ओर मुसकराती हुई चल पड़ी.
सुषमा का हृदय तेजी से धड़क रहा था. सोचने लगी कि ट्रेन में मैं उन्हें न ढूंढ़ पाई तो, टे्रन छूट गई तो? क्या करूंगी? उन्होंने देख कर मुंह फेर लिया तो क्या होगा? हजार शंकाओं से घिरी सुषमा टे्रन के हर डब्बे के बाहर निगाहें दौड़ा कर पंकज को ढूंढ़ रही थी. तभी टे्रन ने सीटी दे दी. उस की धड़कनें और भी तेज हो उठीं. पांव एकएक मन के भारी हो गए. सोचने लगी, आज तो उसे कैसे भी हो पंकज से मिलना ही है. न मिला तो क्या होगा. उस का तो दम ही निकल जाएगा. वह और भी तेजी से चलती इधरउधर देख रही थी. हर क्षण दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं. तभी उस का पैर स्टेशन पर रखे किसी सामान से टकराया और वह औंधे मुंह गिरने को हो आई.
लेकिन किन्हीं मजबूत बांहों ने उसे गिरने से संभाल लिया और एक चिरपरिचित आवाज उस के कानों में सुनाई दी, ‘‘किसे ढूंढ़ रही हो, सुषमा? बहुत देर से तुम्हें देख रहा हूं,’’ अपने डब्बे की ओर बढ़ते हुए पंकज ने कहा.
‘‘मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ घबराहट में धड़कते हृदय से सुषमा बस इतना ही बोल सकी.
‘‘अब तो बहुत देर हो चुकी है. मेरी गाड़ी छूट रही है.’’
सुषमा के पैरों के नीचे से तो मानो जमीन ही सरक गई. उस ने फिर कहा, ‘‘मुझे आप से जरूरी बात करनी है.’’
‘‘4 दिन बाद लौटूंगा तब यदि तुम ने मौका दिया तो जरूर बात करूंगा.’’
‘‘इतने दिन तो बहुत होते हैं. क्या मैं आप के साथ चल सकती हूं? मुझे अभी बातें करनी हैं.’’
‘‘तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगी? तुम्हारा सामान कहां है? तुम्हारे पिता…’’
‘‘बस, अब कुछ न कहें, मुझे अपने साथ लेते चलें. आप के साथ मुझे सबकुछ मिल जाएगा.’’
ट्रेन सरकने लगी थी. पंकज ने तेजी से हाथ बढ़ा कर सुषमा को अपने डब्बे में चढ़ा लिया.
सुषमा उस के सीने से लग कर सिसक पड़ी. वह यह भी भूल गई कि सब उसी की ओर देख रहे हैं.