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एक युग-भाग 3 : सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?

‘‘वाह रानीजी, वाह, गलती तुम करो और दूसरा अपने मन का तनिक सा रोष भी न निकाल सके?’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं, बताओ न?’’

‘‘एक बात बता, क्या पंकज में कोई कमी है जो दूसरी शादी कर के तुझे उस से अच्छा पति मिल जाएगा? क्या गारंटी है कि आगे किसी छोटे से झगड़े पर तू फिर तलाक नहीं ले लेगी या जिस व्यक्ति से तेरी दूसरी शादी होगी वह अच्छा ही होगा, इस की भी क्या गारंटी है?’’ जया ने तनिक गुस्से से पूछा.

‘‘दूसरी शादी की बात मत कहो, जया. मैं तो पंकज के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती. शायद उस से अच्छा व्यक्ति इस संसार में दूसरा कोई हो ही नहीं सकता.’’

‘‘फिर किस बात का इंतजार है. क्या तुम समझती हो कि पंकज एक होनहार युवक तुम्हारी प्रतीक्षा में जिंदगी भर अकेला बैठा रहेगा? क्या उस के घर वाले उस के भविष्य के प्रति उदासीन बैठे होंगे? पंकज अपने घर का अकेला होनहार चिराग है.’’

‘‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. अब बता कि मैं क्या करूं?’’

‘‘तू तुरंत पंकज से मिल कर अपने मन की दूरियां मिटा ले. उस से क्षमा मांग ले. आखिर गलती की पहल तो तू ने ही की थी.’’

‘‘लेकिन पिताजी?’’

‘‘क्या पिताजीपिताजी की रट लगा रखी है. क्या तू कोई दूध पीती बच्ची है? पिता क्या हमेशा ही तेरी जिंदगी के छोटेछोटे मसले हल करते रहेंगे? उन्हें अपने मुकदमों के फैसले ही करने दे, अपना फैसला तू खुद कर.’’

‘‘अगर पंकज ने मुझे क्षमा न किया तो? मुझ से मिलने से ही इनकार कर दिया तो?’’ सुषमा ने बेचारगी से कहा.

‘‘पंकज जैसा सुलझा हुआ व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता. तुझे उस ने क्षमा न कर दिया होता तो वह तेरे घर क्या करने आता. क्या तू इतना भी नहीं समझ सकती?’’

‘‘सच जया, तुम ने तो मेरी आंखें ही खोल दी हैं. मेरी तो सारी दुविधा दूर कर दी. मैं अभी पंकज के पास जाऊंगी. इस समय वह संभवत: दफ्तर में ही होगा. मैं अभी उसे फोन मिलाती हूं.’’

बिना तनिक भी देर किए हुए सुषमा जया के साथ तुरंत पास के टैलीफोन बूथ पर बात करने चली गई. उस ने दफ्तर का नंबर मिलाया तो पता चला कि पंकज किसी आवश्यक कार्य से अचानक आज दोपहर के बाद छुट्टी ले कर अपने घर के लिए चला गया है. पूछने पर पता चला कि शायद सगाई की तारीख तय हो रही है.

सुषमा का मन हजार शंकाओं से घिर आया. उस ने समय देखा तो ध्यान आया कि पंकज की गाड़ी छूटने में अभी आधे घंटे का समय बाकी है. अब उसे पंकज के बिछोह का एकएक क्षण एक युग जैसा लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘जया, मैं अभी, इसी समय स्टेशन जा रही हूं. तू भी मेरे साथ चली चल.’’

‘‘नहीं जी, अब मैं मियांबीवी के बीच दालभात में मूसलचंद बनने वाली नहीं, कल मिलूंगी तो हाल बताना. वैसे अब तू मुझे ढूंढ़ने वाली नहीं. मैं अपनी औकात समझती हूं,’’ कह कर जया अपने घर की ओर मुसकराती हुई चल पड़ी.

सुषमा का हृदय तेजी से धड़क रहा था. सोचने लगी कि ट्रेन में मैं उन्हें न ढूंढ़ पाई तो, टे्रन छूट गई तो? क्या करूंगी? उन्होंने देख कर मुंह फेर लिया तो क्या होगा? हजार शंकाओं से घिरी सुषमा टे्रन के हर डब्बे के बाहर निगाहें दौड़ा कर पंकज को ढूंढ़ रही थी. तभी टे्रन ने सीटी दे दी. उस की धड़कनें और भी तेज हो उठीं. पांव एकएक मन के भारी हो गए. सोचने लगी, आज तो उसे कैसे भी हो पंकज से मिलना ही है. न मिला तो क्या होगा. उस का तो दम ही निकल जाएगा. वह और भी तेजी से चलती इधरउधर देख रही थी. हर क्षण दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं. तभी उस का पैर स्टेशन पर रखे किसी सामान से टकराया और वह औंधे मुंह गिरने को हो आई.

लेकिन किन्हीं मजबूत बांहों ने उसे गिरने से संभाल लिया और एक चिरपरिचित आवाज उस के कानों में सुनाई दी, ‘‘किसे ढूंढ़ रही हो, सुषमा? बहुत देर से तुम्हें देख रहा हूं,’’ अपने डब्बे की ओर बढ़ते हुए पंकज ने कहा.

‘‘मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ घबराहट में धड़कते हृदय से सुषमा बस इतना ही बोल सकी.

‘‘अब तो बहुत देर हो चुकी है. मेरी गाड़ी छूट रही है.’’

सुषमा के पैरों के नीचे से तो मानो जमीन ही सरक गई. उस ने फिर कहा, ‘‘मुझे आप से जरूरी बात करनी है.’’

‘‘4 दिन बाद लौटूंगा तब यदि तुम ने मौका दिया तो जरूर बात करूंगा.’’

‘‘इतने दिन तो बहुत होते हैं. क्या मैं आप के साथ चल सकती हूं? मुझे अभी बातें करनी हैं.’’

‘‘तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगी? तुम्हारा सामान कहां है? तुम्हारे पिता…’’

‘‘बस, अब कुछ न कहें, मुझे अपने साथ लेते चलें. आप के साथ मुझे सबकुछ मिल जाएगा.’’

ट्रेन सरकने लगी थी. पंकज ने तेजी से हाथ बढ़ा कर सुषमा को अपने डब्बे में चढ़ा लिया.

सुषमा उस के सीने से लग कर सिसक पड़ी. वह यह भी भूल गई कि सब उसी की ओर देख रहे हैं.

मिल गई मंजिल-भाग 3: सविता ने कौनसा रास्ता चुना?

ऐसा माहौल देख सविता सोच में पड़ गई. इधर लौकडाउन बढ़ता जा रहा था, उधर सविता की चिंता बढ़ती जा रही थी कि अंतिम पेपर कैसे देना है, तभी ऐलान हुआ कि अब पेपर ही नहीं होगा. पिछले दिए गए पेपरोें की योग्यता के आधार पर नंबर दे दिए जाएंगे.

यह खबर सविता को राहत देने वाली लगी. अब सविता रिजल्ट के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी.

जुलाई के दूसरे सप्ताह में सविता का रिजल्ट आया, तो वह काफी अच्छे नंबरों से पास हो गई, वहीं रोहित का खत अलमारी में से निकाल उस का रोल नंबर कंप्यूटर की स्क्रीन पर देखा तो वह भी पास हो गया था.

रोहित का रिजल्ट जान कर सविता खुश हो गई. उस की सहेलियों में केवल मीता और सुनीता ही फेल थीं, बाकी तो सभी पास हो गई थीं.

उस खत को फिर से सविता ने पढ़ा. पढ़ते समय उस के चेहरे पर मुसकराहट थी. वहीं सविता को अपने पर गुमान हुआ कि इतनी सारी लड़कियों में रोहित को वह पसंद आई.

उसी दिन शाम को सविता ने अपने पिता से फोन मांगा.

‘‘पापा, जरा अपना फोन देना. बात करनी है,’’ सविता ने कहा, तो पापा ने जेब से निकाल कर फोन पकड़ा दिया.

फोन ले कर सविता छत पर आ गई.

‘‘हैलो रोहित, पास होने की बधाई. मुबारक हो,’’ सविता धीरे से बोली.

‘‘हैल्लो सविता…’’ रोहित की आवाज में जोशीलापन था.

“थैंक्स सविता.”

‘‘तुम ने कैसे पहचाना कि मेरा फोन है?’’ सविता ने मुस्कराते हुए पूछा.

‘‘मैं तुम्हारी आवाज पहचान नहीं सकता क्या… मैं तो तभी से फोन का इंतजार कर रहा था, जब तुम्हें खत दिया था.’’

‘‘मुझे डर लग रहा था,’’ सविता बोली.

‘‘अरे, सिर्फ दोस्ती करनी है. और तुम्हें डर लग रहा है? बोलो भी अब.’’

‘‘ठीक है, मुझे दोस्ती मंजूर है,’’ इतना कहते ही सविता ने फोन काट दिया.

रोहित की आवाज सुन सविता को अपने बदन में कुछ अजीब सी सिहरन महसूस हुई. उधर रोहित का भी ऐसा ही हाल था.

रात ठीक 11 बजे रोहित ने सविता के उसी नंबर पर फोन किया, तो दूसरी तरफ से सविता के पापा ने फोन उठा लिया. रोबीली आवाज सुन रोहित ने हड़बड़ाहट में फोन काट दिया.

‘‘शायद किसी से गलत नंबर लग गया होगा,’’ कह कर सविता के पापा सोने के लिए अपने कमरे में चले गए.

दूसरे दिन सविता अपनी सहेली मीता के यहां गई. वहां जा कर उस ने रोहित को फोन लगाया.

‘‘हैलो रोहित,’’ सविता मुसकराते हुए बोली.

‘‘अरे यार, कहां हो तुम? हद है, एक फोन भी नहीं किया? कहां थीं अब तक?’’ रोहित अपनी रौ में बोलता गया.

‘‘रोहित, मैं ने अभी फोन किया न,’’ सविता मुसकराते हुए बोली.

‘‘क्या खाक किया? 2 दिन पहले मैं ने तुम्हारे नंबर पर फोन किया था, शायद तुम्हारे पापा ने फोन उठाया था.’’

‘‘क्या…’’ सविता के मुंह से चीख सी निकल पड़ी.

‘‘कब किया तुम ने? वह तो मेरे पापा का फोन है. दूसरी बार मत करना, तुम मुझे मरवाओगे क्या…?’’

‘‘सविता, तुम मुझे अपना नंबर दो,’’ रोहित बोला.

‘‘मेरा नंबर… मेरे पास तो फोन ही नहीं है.’’

‘‘ओह,’’ रोहित के मुंह से निकला. कुछ सोच कर रोहित बोला, ‘‘क्या तुम आज मिल सकती हो?’’

सविता सोचने लगी, फिर बोली, ‘‘आज नहीं, कल आ सकती हूं.’’

‘‘ओके.’’

‘‘मैं सुबह 10 बजे मिल सकती हूं.’’

‘‘ठीक है.’’

अगले दिन सुबह सविता मम्मी से बोली, ‘‘मुझे कुछ काम है. पैसे चाहिए.’’

‘‘पापा से मांग ले. और सुन, घर जल्दी आ जाना.’’

‘‘ठीक है.’’

सविता बड़ी देर तक आईने के सामने खुद को निहारती रही. उस ने नीले रंग का सूट पहना, बालों में 2 चोटियां कीं, पैसों को पर्स में डाला और चल दी रोहित से मिलने.

अचानक एक गोलगप्पे की रेहड़ी देख कर उस का मन चाट खाने का हो आया. जैसे ही उस ने चाट का आर्डर दिया, चाट वाले ने घूम कर उसे देखा. चाट वाले को देखते ही वह हैरान रह गई, वह तो रोहित था यानी रोहित ही गोलगप्पे की रेहड़ी लगाता था.

अगले दिन सविता को उस की सहेली मीता के साथ आया देख वह खुश हो गया. उस की सहेली और सविता को वहां लगी बैंच पर बैठने का इशारा किया.

सविता और उस की सहेली मीता बैंच पर बैठ गईं. रोहित ने मुसकराते हुए दोनों से पूछा, ‘‘कोल्ड ड्रिंक लेंगी या चाय…’’

‘‘हम तो गोलगप्पे ही खा लेंगे,’’ सविता की सहेली मीता मुसकराते हुए बोली.

रोहित ने सविता और उस की सहेली मीता को पहले चाट बना कर दी. चाट की तारीफ करते हुए उस की सहेली मीता रोहित से बोली, ‘‘चाट तो अच्छी बना लेते हो.’’

यह सुन रोहित मुसकरा कर रह गया.

पहले तो सविता को यह जान कर बहुत बुरा लगा कि रोहित एक गोलगप्पे बेचने वाला है. पर बाद में लगा कि क्या बुरा है, वह अपने पैरों पर तो खड़ा है. प्यार सच में अंधा होता है.

अब तो सविता हर दूसरे दिन अपनी अलगअलग सहेलियों के साथ रोहित के पास आ धमकती और गोलगप्पे व चाट खा कर ही जाती.

रोहित भी सविता और उस की सहेलियों को बिना संकोच चाट व गोलगप्पे खिलाता.

एक दिन सविता अकेले ही चाट खाने पहुंच गई. उसे अकेले आया देख रोहित हैरान था.

रोहित ने उसे बैंच पर बैठने का इशारा किया. सविता बैंच पर निःसंकोच बैठ गई. रोहित ने पूछा, ‘‘और कैसी हो? आज अकेले…’

‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो? आज मेरा मन नहीं माना तो अकेले ही चाट खाने चली आई.’’

‘‘अरे वाह, मेरी चाट इतनी अच्छी लगी कि अकेले ही आ गए,’’ रोहित ने मुसकराते हुए कहा, तो सविता शरमा सी गई.

रोहित ने सविता को चाट बना कर दी. चाट खा कर सविता जाने को हुई तो रोहित बोला, ‘‘तुम्हारे लिए कुछ है. बैग उठाओ और खोलो.’’

‘‘क्या है…?’’ सविता हैरानी से बोली.

‘‘खुद ही खोलो और देख लो,’’ रोहित मुसकराते हुए बोला.

सविता ने बैग खोला. उस में मोबाइल था.

‘‘मोबाइल… पर, मैं इसे अपने साथ नहीं रख सकती, मम्मीपापा गुस्सा करेंगे.’’

‘‘मम्मीपापा को बताने को कौन कह रहा है. छिपा कर रखना. मैं रात को फोन किया करूंगा.’’

सविता ने ज्यादा नानुकर नहीं की.

सविता बोली, ‘‘रोहित, मुझे अब घर जाना है.’’

‘‘जल्दी क्या है, थोड़ी देर बाद चली जाना.’’

‘‘नहीं, मम्मी गुस्सा करेंगी,’’ कह कर सविता जाने को उठी. रोहित उस का शरमाता चेहरा देखता रह गया. दोनों ने मुसकरा कर एकदूसरे से विदा ली.

अब दोनों के बीच हर रोज रात को फोन पर बात होती. घर में सविता के फोन की किसी को खबर नहीं हुई.

समय यों ही पंख लगा कर उड़ रहा था. लौकडाउन भी अब धीरेधीरे खुलने लगा था. बसें भी चलने लगी थीं. आटो भी चल रहे थे. मार्केट में लोगों की आवाजाही बढ़ गई थी. रोहित भी अब गोलगप्पे की रेहड़ी लगाने लगा था.  उस ने सविता से बात कर एक दिन मिलने का प्लान बनाया.

सविता और रोहित दोनों एकदूसरे से गर्मजोशी से मिले. रोहित ने हिचकिचाते हुए सविता से पूछ लिया, ‘‘अगर मैं तुम से शादी करूं तो क्या तुम मुझे अपनाओगी?’’

यह सुन कर सविता रोहित के गले लग गई. यह भी कोई पूछने की बात है, मैं तो हूं ही तुम्हारी.

अब तो मेलमुलाकातों का  सिलसिला चल निकला.

आखिर एक दिन रात में मौका देख सविता रोहित के साथ फरार हो गई.

सुबह जब घर वालों को इस घटना की जानकारी हुई तो उन्होंने सिर पीट लिया. एक अनजाने डर से खोजबीन करने लगे. साथ ही, एक तांत्रिक के पास भी गए तो तांत्रिक ने बताया कि रात में सविता को मुंह बांध कर 2 युवक अगवा कर उठा ले गए हैं.

इस के बाद सविता के पापा ने थाने में तहरीर दी. तहरीर मिलते ही पुलिस भी सक्रिय हो गई. वहीं दोपहर बाद सविता को भगा कर ले जाने वाले रोहित ने अपनी प्रेमिका सविता के घर फोन किया कि वह आगरा से झांसी जाने वाली ट्रेन पकड़ रहा है. आप जरा भी परेशान न हों.

इस पर घर वालों ने कहा कि जहां हो वहीं रुक जाओ. हम लोग तुम्हें लेने आ रहे हैं.

फोन पर ऐसा बोलते समय सविता के पापा के नथुने फड़फड़ाने लगे थे. वहीं उन की पूरे महल्ले में काफी बदनामी हो गई थी. इस बदनामी के चलते सविता के मम्मीपापा अंदर तक टूट गए थे. वे आगरा से सविता को ले तो आए, पर इस घटना को भूल नहीं पा रहे.

इधर काफी हिम्मत कर के रोहित ने सविता के मम्मीपापा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा.

फोन पर रोहित की आवाज सुनते ही सविता के पापा उस पर काफी बिगड़े, पर वह उन की जलीकटी बातें चुपचाप सुनता रहा.

अगले दिन फिर रोहित ने सविता से फोन पर बात की. सविता ने अपने घर वालों को काफी समझाया, बदनामी से बचने का एकमात्र उपाय सुझाया. तब बेमन से सविता के मम्मीपापा माने.

सविता के कहने पर रोहित वहां गया और माफी मांगते हुए अपनी बात रखी.

जब सविता और राहुल राजी थे ही, सविता के मम्मीपापा कुछ सोच कर  राजी हो गए.

आखिर शादी की बात पक्की हो गई और तारीख भी तय हुई.

रोहित ने सविता से आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली, पर बदनामी के चलते अब वे कहीं आजा नहीं सकते थे. लोग उन पर ताने मारते, यारदोस्त फब्तियां कसते, फिर भी वे दोनों आपस में खुश थे और नई जिंदगी की शुरुआत कर चुके थे. आखिर उन्हें अपनी मंजिल जो मिल गई थी.

निकाह-भाग 1 : बेटे की अनोखी जिद

स्कूल के रजिस्टर में तो उस का नाम अब्दुल लिखा था, पर हम सभी उसे पप्पू ही कह कर बुलाया करते. पप्पू और मैं 8वीं कक्षा के सहपाठी थे. स्कूल चलने के लिए कभी मैं उस के यहां पहुंच जाता और कभी वह मुझे लेने मेरे यहां आ जाता, जो भी पहले तैयार हो चुका होता.

हमारे घर ‘नए महल्ले’ में पासपास ही थे. यह महल्ला कहलाता तो नया महल्ला था, पर अधिकांश घर पुराने और खपरैल के छप्पर वाले थे. सिर्फ पप्पू का मकान ही ऐसा था, जो पूरे महल्ले में अलग दिखता. दोमंजिला पक्का मकान और सामने बड़ा चौड़ा चबूतरा. मकान की बाहरी दीवारों पर गाढ़े हरे रंग का पेंट. दूर से मकान ऐसे दिखता, जैसे किसी ने हरे रंग की मखमली चादर किसी गुंबद पर ओढ़ा दी हो. नए महल्ले में 90 फीसदी आबादी मुसलमानों की थी. शायद इसीलिए शहर के लोग इस महल्ले को ‘मुसलमानी महल्ला’ कहने लगे थे. यहां सभी घरों में मुरगियों और बकरियों की भरमार थी, जिस के कारण पूरे महल्ले में एक विशेष प्रकार की गंध फैली रहती.

यहां रहने वालों को तो इस गंध का कोई एहसास नहीं होता, पर बाहर से आने वालों को वह महसूस होती. नए महल्ले से हमारे स्कूल की दूरी लगभग 4 किलोमीटर थी. घर से 2 किलोमीटर की दूरी तक तो लोगों की आवाजाही, चहलपहल दिखा करती, पर उस के बाद के 2 किलोमीटर में सन्नाटा पसरा रहता. जाते समय तो हम 30-35 मिनट में स्कूल पहुंच जाते, पर लौटते समय आराम से चलतेचलाते, रुकतेरुकाते एक घंटा लगता.

दरअसल, स्कूल से वापसी में हम पहले पुलिस लाइन और फिर जेल के सामने थोड़ा रुक कर, वहां चल रही गतिविधियों को निहारा करते. पुलिस लाइन के मैदान में उस समय सिपाहियों की परेड चल रही होती. एक लाइन में मार्च पास्ट करते सिपाहियों को देखने में बड़ा मजा आता. कभीकभी यही सिपाही दंगे रोकने के लिए अपनी रक्षा करते हुए, भीड़ पर लाठीचार्ज का अभ्यास कर रहे होते.

पुलिस लाइन से आगे बढ़ने पर जिला जेल की बिल्डिंग आ जाती. लोहे के विशाल काले रंग के दरवाजे में बनी एक छोटी सी खिड़की से सिपाही और कैदी या तो बाहर निकल रहे होते या फिर अंदर जाते दिखते. हम लोगों की उत्सुकता रहती कि जेल में बंद कोई डाकू बाहर निकले, जिसे हम देख सकें.

दुस्वप्न-भाग 1: संविधा के साथ ससुराल में क्या हुआ था ?

संविधा ने घर में प्रवेश किया तो उस का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह काफी तेजतेज चली थी, इसलिए उस की सांसें भी काफी तेज चल रही थीं. दम फूल रहा था उस का. राजेश के घर आने का समय हो गया था, पर संयोग से वह अभी आया नहीं था. अच्छा ही हुआ, जो अभी नहीं आया था. शायद कहीं जाम में फंस गया होगा. घर पहुंच कर वह सीधे बाथरूम में गई. हाथपैर और मुंह धो कर बैडरूम में जा कर जल्दी से कपड़े बदले.

राजेश के आने का समय हो गया था, इसलिए रसोई में जा कर गैस धीमी कर के चाय का पानी चढ़ा दिया. चाय बनने में अभी समय था, इसलिए वह बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.सामने सड़क पर भाग रही कारों और बसों के बीच से लोग सड़क पार कर रहे थे. बरसाती बादलों से घिरी शाम ने आकाश को चमकीले रंगों से सजा दिया था.

सामने गुलमोहर के पेड़ से एक चिड़िया उड़ी और ऊंचाई पर उड़ रहे पंछियों की कतार में शामिल हो गई. पंछियों के पंख थे, इसलिए वे असीम और अनंत आकाश में विचरण कर सकते थे.वह सोचने लगी कि उन में मादाएं भी होंगी. उस के मन में एक सवाल उठा और उसी के साथ उस के चेहरे पर मुसकान नाच उठी, ‘अरे पागल ये तो पक्षी हैं, इन में नर और मादा क्या? वह तो मनुष्य है, वह भी औरत.

सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना जाने वाला मानव अवतार उसे मिला है. सोचनेविचारने के लिए बुद्धि मिली है. सुखदुख, स्नेह, माया, ममता और क्रोध का अनुभव करने के लिए उस के पास दिल है. कोमल और संवेदनशील हृदय है, मजबूत कमनीय काया है, पर कैसी विडंबना है कि मनुष्य योनि में जन्म लेने के बावजूद देह नारी की है. इसलिए उस पर तमाम बंधन हैं.

संविधा के मन के पंछी के पंख पैदा होते ही काट दिए गए थे, जिस से वह इच्छानुसार ऊंचाई पर न उड़ सके. उस की बुद्धि को इस तरह गढ़ा गया था कि वह स्वतंत्र रूप से सोच न सके. उस के मन को इस तरह कुचल दिया गया था कि वह सदैव दूसरों के अधीन रहे, दूसरों के वश में रहे. इसी में उस की भलाई थी. यही उस का धर्म और कर्तव्य था. इसी में उस का सुख भी था और सुरक्षा भी.

शादी के 3 दशक बीत चुके थे. लगभग आधी उम्र बीत चुकी थी उस की. इस के बावजूद अभी भी उस का दिल धड़कता था, मन में डर था. देखा जाए तो वह अभी भी एक तरह से हिरनी की तरह घबराई रहती थी. राजेश औफिस से घर आ गया होगा तो…? तो गुस्से से लालपीला चेहरा देखना होगा, कटाक्ष भरे शब्द सुनने पड़ेंगे.

26 जनवरी स्पेशल : जवाबी हमला- भाग 1

कमांडिंग अफसर कर्नल अमरीक सिंह समेत सभी के चेहरों पर आक्रोश और गुस्सा था. कुछ देर कर्नल साहब चुप रहे, फिर बोले, स्वर में अत्यंत तीखापन था, ‘‘आप सब जानते हैं, दुश्मन ने हमारे 2 जवानों के साथ क्या किया. एक का गला काट दिया, दूसरे का गला काट कर अपने साथ ले गए.’’

‘‘हां साहबजी, इस का जवाब दिया जाना चाहिए,’’ सूबेदार मेजर सुमेर सिंह गुस्से और आक्रोश के कारण आगे और कुछ बोल नहीं पाए.

‘‘हां, सूबेदार मेजर साहब, जवाब दिया जाना चाहिए, जवाब देना होगा. दुश्मनदेश को प्यार और शब्दों की भाषा समझ नहीं आती है. जो वह कर सकता है, उसे हम और भी अच्छे ढंग से कर सकते हैं. जान का बदला जान और सिर का बदला सिर,’’ सैकंड इन कमांड लैफ्टिनैंट कर्नल दीपक कुमार ने कहा.

‘‘हां सर, जान का बदला जान, सिर का बदला सिर. दुश्मन शायद यही भाषा समझता है. कैसी हैरानी है, सर, एक आतंकवादी मारा जाता है तो सारे मानवाधिकार वाले, एनजीओ और सरकार तक सेना के खिलाफ बोलने लगते हैं. जवानों के गले काटे जा रहे हैं, वे शहीद हो रहे हैं. कोई मानवाधिकार वाला नहीं बोलता.

‘‘पत्थरबाज हमारे जवानों को थप्पड़ मारते हैं. हाथ में राइफल और गोलियां होते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाते क्योंकि उन को कुछ न करने का आदेश होता है. उन को आत्मरक्षा में भी गोली चलाने का हुक्म नहीं होता. क्यों? तब ये मानवाधिकार वाले कहां मर जाते हैं? कहां मर जाते हैं एनजीओ वाले और सरकार? और एक अफसर किसी पत्थरबाज को जीप के आगे बांध कर 10 सिविलियन को बचा ले जाता है तो उस के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘बस सर, हमें जवाब देना है. हमें आदेश चाहिए.’’

‘‘हां, साहबजी, अंजाम चाहे जो भी हो, हमें जवाब देना होगा,’’ तकरीबन सभी ने एकसाथ कहा.

‘‘ठीक है, हम जवाब जरूर देंगे, चाहे इस की गूंज हमें दिल्ली और इसलामाबाद तक सुनाई दे. पर, हमारी सेना ऐसी अमानवीयता के लिए मशहूर नहीं है. हमारी सेना अनुशासनप्रियता और आदेशों पर कार्यवाही के लिए विश्वभर में जानी जाती है. अपनी जानों की बाजी लगा कर भी हम ने सेना की इस परंपरा का पालन किया है, परंतु दुश्मन सेना इसे हमारी कमजोरी समझे, यह हमें बरदाश्त नहीं है. इस के लिए हमें उन के छोटे हमले का इंतजार करना होगा. तभी हमें उस का जवाब देना है और ऐसा समय बहुत जल्दी आएगा क्योंकि वह हमेशा ऐसा ही करता रहा है,’’ कर्नल साहब ने सब के चेहरों को बड़े गौर से देखा, फिर आगे कहा, ‘‘योजना इस प्रकार रहेगी, हमारी 2 प्लाटूनें जाएंगी. भयानक बर्फबारी की रात में चुपचाप जाएंगी और कार्यवाही को अंजाम देंगी. कार्यवाही इतनी चुपचाप और जबरदस्त होनी चाहिए कि दुश्मन को कुछ भी सोचने का मौका न मिले. उन्होंने हमारे 2 जवानों का गला काटा है, हम उन के 20 जवानों का गला काट कर आएंगे. एक जवान के बदले 10 जवानों का गला. ध्यान रहे, अपनी किसी भी कैजुअलिटी को वहां छोड़ कर नहीं आएंगे. अटैक सुबह मुंहअंधेरे होगा. मैं खुद लीड करूंगा.’’

‘‘नहीं सर, लीड मैं करूंगा, कार्यवाही आप की योजनानुसार होगी,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा.

कर्नल साहब ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘ठीक है, तैयारी शुरू करो. मैं ब्रिगेड कमांडर साहब से मिल कर आता हूं.’’ सभी चले गए.

थोड़ी देर बाद कर्नल साहब ब्रिगेडियर सतनाम सिंह साहब के सामने थे. वे सिख रैजिमैंट से हैं. उन की बहादुरी का एक लंबा इतिहास है. वे धीरगंभीर थे हमेशा की तरह. उन्होंने कर्नल साहब को बैठने का इशारा किया. थोड़ी देर वे गहरी नजरों से देखते रहे, फिर कहा, ‘‘मुझे दुख है…’’

‘‘हां सर, दुख तो मुझे भी है पर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं जवानों के आक्रोश और गुस्से को कैसे सहन करूं. मैं उन 2 जवानों के मांबाप को, उन की पत्नी और बच्चों को क्या जवाब दूं जो पाकिस्तान की दरिंदगी का शिकार हुए हैं. वे अपने बेटे, पति और बाप के दर्शन तो करेंगे पर बिना सिर के. वे जीवनभर इसे भूल नहीं पाएंगे. जीवनभर इसी गम में डूबे रहेंगे और जब वे अपनी दुखी नजरों से मुझे देखेंगे तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगा. मैं उन को क्या जवाब दूंगा, मैं यही समझ नहीं पा रहा हूं. वे मुझे कायर ही समझेंगे.’’

‘‘कर्नल अमरीक सिंह, संभालो अपनेआप को. हमें जवाब देना होगा. हमारी ब्रिगेड और तुम्हारी रैजिमैंट उन की कुरबानी को वैस्ट नहीं होने देगी. दुश्मन को उन की इस कायरतापूर्ण कार्यवाही का जवाब देना है, उन के परिवारों को जवाब अपनेआप मिल जाएगा. जाओ, दुश्मन को ऐसा जवाब दो कि वह फिर ऐसा करने का दुस्साहस न कर सके. मुझ से जो मदद चाहिए मैं देने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘राइट सर, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मैं जानता था, आप ऐसा ही कहेंगे.’’ कर्नल साहब अपने ब्रिगेड कमांडर साहब की सहमति पा कर जोश से भर उठे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे केवल आप की सहमति और आदेश चाहिए था, शेष मेरी रैजिमैंट के जवान करेंगे.’’ फिर उन्होंने दुश्मन पर होने वाली सारी कार्यवाही की योजना बताई. सब सुन कर कमांडर साहब ने कहा, ‘‘ध्यान रहे, कैजुअलिटी कम से कम हो. अगर होती है तो वहां कोई छूटनी नहीं चाहिए.’’

यूपी-112 ने नागरिकों को किया जागरुक

लखनऊ. पुलिस ने जानता को जागरूक करने के लिए अभियान शुरू किया है. अशोक कुमार सिंह, ADG UP -112 के निर्देशन में दिनांक 30 दिसम्बर 2022 से 01 जनवरी 2023 तक 03 दिवसीय जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. जिसमे पुलिस सहायता, आग लगने पर फायर बिग्रेट, मेडिकल सहायता व  दुर्घटना/आपदा के साथ-साथ सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करने हेतु नागरिकों को प्रेरित किया जा रहा है.

​नव वर्ष के अवसर पर आम नागरिकों को उत्तर प्रदेश पुलिस की विभिन्न जनोपयोगी सेवाओं जागरुक करने के उद्देश्य से  प्रदेश सभी जनपदों के माल व अन्य स्थानों पर 2-2 स्टाल लगाये गए, प्रदेश में कुल 155 सार्वजनिक स्थानों पर ये स्टॉल लगायें गए है.

इस नव वर्ष के अवसर पर नव संकल्प उठाएँ, दूसरों की मदद को आगे आएँ, इस संदेश के साथ यूपी-112 के कर्मियों ने स्टाल पर नागरिकों को पुलिस की सेवाओं से जागरुक किया.  इसी क्रम में पुलिस कर्मियों ने बुजुर्गों और महिलाओं से भी संवाद कर उनसे 112 की सवेरा और नाईट एस्कॉर्ट सेवा की जानकारी साझा की. इस मौक़े पर यूपी-112 द्वारा मित्र पुलिसिंग का संदेश दिया और बताया कि पुलिस कैसे मित्र बनकर मदद करती आ रही है .

तुनीषा शर्मा की मां ने शीजान की सजा को लेकर लगाई गुहार

20 साल की उम्र में आत्महत्या करने वाली एक्ट्रेस तुनीषा शर्मा इन दिनों लगातार चर्चा में बने हुए हैं. तुनीषा शर्मा के अचनाक चले जाने से सभी को धक्का लगा है. तुनीषा की मौत के जिम्मेदार उनके बॉयफ्रेंड शीजान को बताया जा रहा है.

तुनीषा की मां लगातार गुहार लगा रही हैं कि शीजान को सजा होनी चाहिए उसकी वजह से ही उसके बेटी की जान चली गई है. तुनीषा शर्मा की मां का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वह अपनी बेटी के न्याय की मांग कर रही हैं.

 

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तुनीषा शर्मा की मां कह रही है कि मेरी हाथ जोड़कर विनती है कि शीजान को उसके किए की सजा मिलनी चाहिए.  गौरतलब है कि शीजान की वजह से एक्ट्रेस ने सेट पर फांसी लगातार आत्महत्या कर ली थी. जिसके बाद से लगातार यह चर्चा का विषय बना हुआ है.

इस घटना के बाद से शीजान मोहम्मद को गिरफ्तार कर लिया गया था, अब इस मामले को लेकर शुक्रवार को शीजान मोहम्मद से पूछताछ की जा रही है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि शीजान का संबंध किसी और महिला के साथ था, जिस वजह से शीजान का ब्रेकअप तुनीषा शर्मा से हो गया था. लेकिन ब्रेकअप के बाद से लगातार तुनीषा डिप्रेशन में चल रही थी.

फांसी लगाने से पहले आखिरी बार शीजान को कॉल की थी, शीजान ने उससे आखिर ऐसी क्या बात कही होगी जिससे वह फांसी लगाकर जान दे दी.

मां बनने के बाद आलिया ने शेयर किया पहला ग्लैमरस लुक, लोग कर रहे हैं तारीफ

बॉलीवुड एकटर आलिया भट्ट इन दिनों अपनी बेटी के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रही हैं, इसके साथ ही आलिया भट्ट अपनी नई-नई तस्वीर को भी सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. हाल ही में अदाकारा ने अपी एक नई तस्वीर शेयर की है जिसमें काफी खूबसूरत लग रही हैं.

फिल्म स्टार आलिया भट्ट काफी ज्यादा क्लासी लग रही हैं, फैंस भी इनकी जमकर तारीफ करते नजर आ रहे हैं. वैसे आलिया भट्ट पहली बार ग्लैमरस तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है. जिसे देखकर फैंस लगातार कमेंट करते नजर आ रहे हैं.

 

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नए तस्वीर में अदाकारा फीट और फाइन लग रही हैं, जिसकी तारीफ फैंस लगातार करते नजर आ रहे हैं. 6 नवंबर को आलिया की बेटी राहा कपूर इस दुनिया में आईं है. जिसके बाद से वह लगातार चर्चा में बनी हुईं हैं.

अदाकारा के चेहरे पर लगातार मदरहुड ग्लो नजर आ रहा है. कई बार वह क्वालिटी टाइम स्पेंड करते हुए अपनी बेटी के लाथ तस्वीर शेयर करती नजर आती हैं.

दरअसल बीते दिनों आलिया भट्ट ने अनंत अंबानी का पार्टी में इस ड्रेस को पहनकर हिस्सा लिया था, जिसमें लोगों ने उनकी खूब तारीफ की थी. जिसके बाद से अदाकारा की तस्वीर लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

कपूर खानदान में आलिया की बेटी के आने के बाद से अजब सी रौनक आ गई है. रणबीर कपूर भी पिता बनने के बाद काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं.

(अ) न्याय पर नजर

जजों की नियुक्ति को ले कर नरेंद्र मोदी सरकार ने एक हल्ला छोड़ दिया है जैसे कभी उन्होंने राममंदिर को ले कर, धारा अनुच्छेद 370 को ले कर छेड़ा था. अभी बातें धीरेधीरे एक मंत्री द्वारा कहलवाई जा रही हैं और मामला अपने पक्ष में आया दिखा, तो इसे तूफान की तरह लाया जा सकता है.

1970-75 तक जजों की नियुक्ति केंद्र सरकार को करनी थी और सारे उच्च न्यायालय व सर्वोच न्यायालय के जज तब की कांग्रेस सरकार की देन थे. लेकिन संविधान में जजों को हटाने की प्रक्रिया बहुत टेढ़ी है, इसलिए बनाए जाने के बाद जज जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के प्रति भी निष्ठावान नहीं रहे और धीरेधीरे उन्होंने अपना ही एक सिस्टम ईजाद कर लिया जिसे अब कौलेजियम सिस्टम कहा जा रहा है जिस में जज कुछ नाम केंद्र सरकार को भेजते हैं और उस की स्वीकृति के बाद उन्हें नियुक्त कर दिया जाता है. यह किसी कानून के अंतर्गत नहीं किया गया हैयह सर्वोच्च न्यायालय के अपने फैसलों के आधार पर है. संवैधानिक व्यवस्था कुछ इस प्रकार की है कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अपनेआप में कानून बन जाता है.

इस से सरकारें बहुत खफा रही हैं क्योंकि वे अपने मन के जज नियुक्त नहीं कर सकतीं. जजों को निर्णय देने के लिए प्रभावित करने के लिए उन्हें उन के नातेरिश्तेदारों पर दबाव डालने पड़ते हैं. नरेंद्र मोदी सरकार नेहरू और इंदिरा गांधी का उन के लिए सवर्णयुण लाना चाहती है ताकि केवल पूजापाठी भक्त किस्म के लोग ही जज बन सकें.

कौलेजियम सिस्टम बहुत अच्छा है, यह तो नहीं कहा जा सकता पर इस का पर्याय कि सरकार या लोकसभा का बहुमत जज नियुक्त करे, वह भी अच्छा नहीं है. कौलेजियम सिस्टम में जज अपने जानपहचान वालों को वरीयता दे सकते हैं पर उन का उद्देश्य कोई राजनीतिक लक्ष्य पाना नहीं होता. सरकारी जज तो सरकार इसलिए नियुक्त कर सकती है कि उसे अपने मतलब के फैसले चाहिएऐसे जज जो सरकार की हर बात पर स्वीकृति की मोहर लगा दें.

सरकार के फैसले हमेशा गुप्त कमरों में होते हैं और उन के कागजात छिपे रहते हैंतथ्यतर्क व उद्देश्य मालूम नहीं होते. संसद या विधानसभा में सरकार हर बात पूरी तरह नहीं बताती. दूसरी तरफ जजों के फैसले खुली अदालतों में होते हैं जहां हर पक्ष आ कर अपनी बात कह सकता है. तर्क और तथ्य जगजाहिर होते हैं. जज सवाल कर सकते हैं. दोनों पक्ष एकदूसरे से प्रश्न कर सकते हैं. जनता के मतलब के निर्णय लेने में यह सब से ज्यादा अच्छा तरीका है और अगर जज खुद भी जजों को नियुक्त करे और सरकार को जनता वोटों से, तो यह एक अच्छा लोकतांत्रिक तरीका है.

जजों की नियुक्तियां आजकल आमतौर पर निचले स्तर के जजों के काम को देख कर की जाती हैं. उन की राजनीतिक पहुंच नहींकानून की पकड़ ज्यादा जरूर होती है. यह सिस्टम लाख खामियों वाला हो लेकिन सरकारी सिस्टम से बेहतर है.

Satyakatha: अवनीश का खूनी कारनामा

सौजन्यसत्यकथा

कानपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है अकबरपुर. यह कानपुर (देहात) जिले के अंतर्गत आता है. तहसील व जिला मुख्यालय होने के कारण कस्बे में हर रोज चहलपहल रहती है. इस नगर से हो कर स्वर्णिम चतुर्भुज राष्ट्रीय मार्ग जाता है जो पूर्व में कानपुर, पटना, हावड़ा तथा पश्चिम में आगरा, दिल्ली से जुड़ा है.

इस नगर में एक ऐतिहासिक तालाब भी है जो शुक्ल तालाब के नाम से जाना जाता है. शुक्ल तालाब ऐतिहासिक वास्तुकारी का नायाब नमूना है. बताया जाता है कि सन 1553 में बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल ने शीतल शुक्ल को इस क्षेत्र का दीवान नियुक्त किया था. दीवान शीतल शुक्ल ने सन 1578 में इस ऐतिहासिक तालाब को बनवाया था.

इसी अकबरपुर कस्बे के जवाहर नगर मोहल्ले में सभासद जितेंद्र यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना यादव के अलावा बेटी अक्षिता (5 वर्ष) तथा बेटा हनू (डेढ़ वर्ष) था. जितेंद्र के पिता कैलाश नाथ यादव भी साथ रहते थे.

वह पुलिस में दरोगा थे, लेकिन अब रिटायर हो चुके हैं. जितेंद्र यादव की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना बहुमंजिला आलीशान मकान था.

जितेंद्र यादव की पत्नी अर्चना यादव पढ़ीलिखी महिला थी. वह नगर के रामगंज मोहल्ला स्थित प्राइमरी पाठशाला में सहायक शिक्षिका थी, जबकि जितेंद्र यादव समाजवादी पार्टी के सक्रिय सदस्य थे.

2 साल पहले उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सभासद का चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. वर्तमान में वह जवाहर नगर (वार्ड 14) से सभासद है. जितेंद्र यादव का अपने मकान के भूतल पर कार्यालय था, साथ ही पिता कैलाश नाथ यादव रहते थे, जबकि भूतल पर जितेंद्र अपनी पत्नी अर्चना व बच्चों के साथ रहते थे.

मकान के दूसरी और तीसरी मंजिल पर 4 किराएदार रहते थे, जिन में 2 महिला पुलिसकर्मी अनीता व ऊषा प्रजापति थीं. मकान की देखरेख व किराया वसूली का काम कैलाश नाथ यादव करते थे.

ऊषा का पति अवनीश प्रजापति मूलरूप से प्रयागराज जनपद के फूलपुर का रहने वाला था. महिला कांसटेबल ऊषा पहले प्रयागराज में तैनात थी. उस के साथ उस का पति भी रहता था. अवनीश वहां लैब टैक्नीशियन था, लेकिन लौकडाउन लगने के कारण मई 2020 में उस की लैब बंद हो गई थी.

ऊषा का ट्रांसफर भी प्रयागराज से कानपुर देहात जनपद के थाना अकबरपुर में हो गया था. उस के बाद वह पति अवनीश के साथ अकबरपुर कस्बे में सभासद जितेंद्र यादव के मकान में किराए पर रहने लगी थी.

ऊषा की शादी अवनीश प्रजापति के साथ 4 साल पहले हुई थी. 4 साल बीत जाने के बाद भी ऊषा मां नहीं बन सकी थी. इस से उस का बेरोजगार पति अवनीश टेंशन में रहता था. अवनीश घर में ही पड़ा रहता था. उस का काम केवल इतना था कि वह पत्नी ऊषा को ड्यूटी पर अकबरपुर कोतवाली स्कूटर से छोड़ आता था और ड्यूटी समाप्त होने पर घर ले आता था.

ऊषा पुलिसकर्मी होने के बावजूद जितनी सरल स्वभाव की थी, उस का पति बेरोजगार होते हुए भी उतने ही कठोर स्वभाव का था. अवनीश की न तो किसी अन्य किराएदार से पटती थी और न मकान मालिक से. हां, वह सभासद जितेंद्र यादव से जरूर भय खाता था, जितेंद्र की पत्नी अर्चना यादव तो उसे फूटी आंख नहीं सुहाती थी.

सभासद की पत्नी अर्चना यादव तथा ऊषा के पति अवनीश प्रजापति के बीच पटरी नहीं बैठती थी. दोनों के बीच अकसर तनाव बना रहता था. तनाव का पहला कारण यह था कि अवनीश साफसफाई से नहीं रहता था. वह मकान में भी गंदगी फैलाता रहता था.

अर्चना यादव शिक्षिका थीं. वह खुद भी साफसफाई से रहती थीं और मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों को भी साफसफाई से रहने को कहती थीं. अन्य किराएदार तो अर्चना के सुझाव पर अमल करते थे, लेकिन अवनीश नहीं करता था.

वह गुटखा और पान खाने का शौकीन था. पान खा कर उस की पीक कमरे के बाहर ही थूक देता था. कमरे के अंदर की साफसफाई का कूड़ा भी बाहर जमा कर देता था, जो हवा में उड़ कर पूरे फ्लोर पर फैल जाता था.

तनाव का दूसरा कारण अवनीश की बेशरमी थी. उस की नजर में खोट था. वह अर्चना को घूरघूर कर देखता था. उसे देख कर वह कभी मुसकरा देता, तो कभी कमेंट कस देता. उस की हरकतों से अर्चना गुस्सा करती तो कहता, ‘‘अर्चना भाभी, जब तुम गुस्सा करती हो तो तुम्हारा चेहरा गुलाब जैसा लाल हो जाता है और गुलाब मुझे बहुत पसंद है.’’

अर्चना ने अवनीश की हरकतों और गंदगी फैलाने की शिकायत अपने ससुर कैलाश नाथ यादव से की तो उन्होंने अवनीश को डांटाफटकारा और कमरा खाली करने को कह दिया. लेकिन अवनीश की पत्नी ऊषा ने बीच में पड़ कर मामले को शांत कर दिया.

ऊषा प्रजापति ने मामला भले ही शांत कर दिया था, लेकिन अर्चना की शिकायत ने अवनीश के मन में नफरत के बीज बो दिए थे. वह मन ही मन उस से नफरत करने लगा था. अर्चना अपने बच्चों को भी अवनीश से दूर रखती थी. दरअसल, ऊषा की कोई संतान नहीं थी, अर्चना को डर था कि गोद भरने के लिए कहीं ऊषा व अवनीश उस के बच्चों पर कोई टोनाटोटका न कर दें.

एक रोज अर्चना किसी काम से छत पर जा रही थी. वह पहली मंजिल पर पहुंची तो अवनीश के कमरे के अंदरबाहर कूड़ा बिखरा देखा. इस पर उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अवनीश कुत्ता भी पूंछ से जगह साफ कर के बैठता है, लेकिन तुम तो उस से भी गएगुजरे हो जो गंदगी में पैर फैलाए बैठे हो.’’

अर्चना की बात सुन कर अवनीश का गुस्सा बढ़ गया, ‘‘भाभी, मैं कुत्ता नहीं इंसान हूं. मुझे कुत्ता मत बनाओ. आप मकान मालकिन हैं, लेकिन इतना हक नहीं है कि आप मुझे कुत्ता कहें. आज तो मैं किसी तरह आप की बात बरदाश्त कर रहा हूं, लेकिन आइंदा नहीं करूंगा.’’

इस बार अर्चना ने अपने सभासद पति जितेंद्र से अवनीश की शिकायत की. इस पर सभासद ने अवनीश को खूब फटकार लगाई, साथ ही चेतावनी भी दी कि अगर उसे मकान में रहना है तो सफाई का पूरा ध्यान रखना होगा. वरना मकान खाली कर दो.

अर्चना द्वारा बारबार शिकायत करने से अवनीश के मन में नफरत और बढ़ गई. उसे लगने लगा कि अर्चना जानबूझ कर किराएदारों के सामने उस की बेइज्जती करती है. उस के मन में प्रतिशोध की ज्वाला भड़कने लगी. वह बेइज्जती का बदला लेने की सोचने लगा.

28 फरवरी, 2021 की सुबह अवनीश ने पान की पीक कमरे के बाहर थूक दी. पीक की गंदगी को ले कर अर्चना और अवनीश में जम कर तूतूमैंमैं हुई. ऊषा ने किसी तरह पति को समझा कर शांत किया और गंदगी साफ कर दी. झगड़ा करने के बाद अवनीश दिन भर कमरे में पड़ा रहा और अर्चना को सबक सिखाने की सोचता रहा. आखिर उस ने एक बेहद खतरनाक योजना बना ली.

रात 8 बजे अवनीश अपनी पत्नी ऊषा को अकबरपुर कोतवाली छोड़ने गया. वहां से लौटते समय उस ने पैट्रोल पंप से एक बोतल में आधा लीटर पैट्रोल लिया और वापस घर लौट आया.

उस ने ऊपरनीचे घूम कर पूरे मकान का जायजा लिया. ग्राउंड फ्लोर स्थित कार्यालय में सभासद जितेंद्र यादव क्षेत्रीय लोगों के साथ क्षेत्र की समस्यायों के संबंध में बातचीत कर रहे थे, कैलाश नाथ भी अपने कमरे में थे.

जायजा लेने के बाद अवनीश पहली मंजिल पर आया. वहां अर्चना यादव रसोई में थी. पास में उन की 5 साल की बेटी अक्षिता तथा 18 माह का बेटा हनू भी बैठा था. अर्चना खाना पका रही थीं, जबकि दोनों बच्चे खेल रहे थे. इस बीच सिपाही अनीता कोई सामान मांगने अर्चना के पास आई. फिर वापस अपने कमरे में चली गई.

सही मौका देख कर अवनीश अपने कमरे में गया और वहां से पैट्रोल भरी बोतल ले आया. फिर वह रसोई में पहुंचा और पीछे से अर्चना यादव व उस के बच्चों पर पैट्रोल उड़ेल दिया. उस समय गैस जल रही थी, अत: पैट्रोल पड़ते ही गैस ने आग पकड़ ली. अर्चना व उस के बच्चे धूधू कर जलने लगे.

आग की लपटों से घिरी अर्चना चीखी तो महिला सिपाही अनीता ने दरवाजा खोला. सामने का खौफनाक मंजर देख कर वह सहम गई. वह उसे बचाने को आगे बढ़ी तो अवनीश ने उस पर वार कर दिया. अनीता चीखनेचिल्लाने लगी.

भूतल पर सभासद जितेंद्र यादव साथियों सहित मौजूद थे. उन्होंने चीखपुकार सुनी तो पिता कैलाश नाथ व अन्य लोगों के साथ भूतल पर पहुंचे और आग की लपटों से घिरी पत्नी अर्चना व बच्चों के ऊपर कंबल डाल कर आग बुझाई.

इसी बीच पकड़े जाने के डर से अवनीश भागा और केबिल के सहारे नीचे आ गया. घर के बाहर सभासद की स्कौर्पियो कार खड़ी थी. उस ने उसे भी जलाने का प्रयास किया. इसी बीच सभासद के साथियों ने उसे दौड़ाया तो वह भागने लगा. भागते समय सड़क पार करते हुए वह मिनी ट्रक की चपेट में आ गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उपचार हेतु सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया.

इधर सभासद जितेंद्र यादव ने गंभीर रूप से जली पत्नी और दोनों बच्चों को अपनी कार से प्राइवेट अस्पताल राजावत पहुंचाया. लेकिन डाक्टरों ने उन की गंभीर हालत देख कर जिला अस्पताल रेफर कर दिया.

सभासद  के पिता कैलाश नाथ यादव ने घटना की सूचना पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया. कुछ ही देर में कोतवाल तुलसी राम पांडेय, डीएसपी संदीप सिंह, एसपी केशव कुमार चौधरी, एएसपी घनश्याम चौरसिया तथा डीएम दिनेश चंद्र जिला अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने सभासद जितेंद्र यादव को धैर्य बंधाया और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया.

चूंकि अर्चना की हालत नाजुक थी. अत: जिलाधिकारी डा. दिनेश चंद्र ने अर्चना का बयान दर्ज कराने के लिए एसडीएम संजय कुशवाहा को जिला अस्पताल बुलवा लिया. संजय कुशवाहा ने अर्चना का बयान दर्ज किया. अर्चना ने कहा कि किराएदार अवनीश ने पैट्रोल डाल कर उसे और उस के दोनों मासूम बच्चों को जलाया है.

जिला अस्पताल में अर्चना व उस के बच्चों की हालत बिगड़ी तो डाक्टरों ने उन्हें कानपुर शहर के उर्सला अस्पताल में रेफर कर दिया. उर्सला अस्पताल में रात 11 बजे जितेंद्र के मासूम बेटे हनू ने दम तोड़ दिया.

रात 1 बजे बेटी अक्षिता की भी सांसें थम गईं. उस के बाद 4 बजे अर्चना ने भी उर्सला अस्पताल में आखिरी सांस ली. इस के बाद तो परिवार में कोहराम मच गया. जितेंद्र पत्नी व मासूम बच्चों का शव देख कर बिलख पड़े. अर्चना की मां व भाई भी आंसू बहाने लगे.

पहली मार्च को सभासद जितेंद्र यादव की पत्नी अर्चना यादव व उस के मासूम बच्चों को किराएदार अवनीश द्वारा जिंदा जलाने की खबर अकबरपुर कस्बे में फैली तो सनसनी फैल गई. चूंकि मामला सभासद के परिवार का था, उन के सैकड़ों समर्थक थे. अत: उपद्रव की आशंका से पुलिस अधिकारियों ने अकबरपुर कस्बे में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया.

इधर अर्चना व उस के बच्चों की मौत की खबर अकबरपुर कोतवाल तुलसीराम पांडेय को मिली तो उन्होंने अवनीश व उस की पत्नी ऊषा की सुरक्षा बढ़ा दी. उन्होंने अवनीश को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर अपनी कस्टडी में ले लिया. सभासद जितेंद्र यादव की तहरीर पर कोतवाल तुलसीराम पांडेय ने भादंवि की धारा 326/302 के तहत अवनीश प्रजापति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे बंदी बना लिया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद डीएसपी संदीप सिंह ने अभियुक्त अवनीश से घटना के संबंध में पूछताछ की तथा उस का बयान दर्ज किया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का भी बारीकी से निरीक्षण किया तथा साक्ष्य जुटाए.

2 मार्च, 2021 को नगरवासियों ने मृतकों की आत्माओं की शांति के लिए कैंडल मार्च निकाला और अंडर ब्रिज के नीचे उन की फोटो पर पुष्प अर्पित किए. अनेक युवकों के हाथों में हस्तलिखित तख्तियां थी.

उन की मांग थी कि हत्यारे को फांसी की सजा मिले. युवक सीबीआई जांच की भी मांग कर रहे थे. उन को शक था कि इस साजिश में कुछ और लोग भी शामिल हैं, जिन का परदाफाश होना जरूरी है.

3 मार्च, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त अवनीश प्रजापति को कानपुर देहात की माती कोर्ट में मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

सभासद जितेंद्र यादव और उन के पिता इस हृदयविदारक घटना से बेहद दुखी हैं. जितेंद्र यादव से दर्द साझा किया गया तो वह फफक पड़े. बोले, ‘किस पर भरोसा करूं. चंद मिनटों में ही हमारा सब कुछ खत्म हो गया. किराएदार ऐसा कर सकता है, कभी सोचा नहीं था. अवनीश ने मेरे परिवार को योजना बना कर जलाया है. बदले की आग में उस ने हमारी दुनिया ही उजाड़ डाली.’

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