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कैसे करें धान का भंडारण

खेती करने वाले किसानों के लिए उस के भंडारण के लिए भी उचित प्रक्रिया अपनानी चाहिए जिस से लंबे समय तक धान को सुरक्षित रखा जा सके. किसान अपनी सुविधा के मुताबिक जब मंडी में अच्छे दाम मिलें, तब वे उन्हें बेच कर अच्छा मुनाफा ले सकें.

जिन दिनों में फसल पक कर तैयार होती है, तो ज्यादातर किसान उपज का भंडारण न कर पाने के कारण उसे उन्हीं दिनों मंडी में बेच देते हैं, लेकिन जो किसान उपज का भंडारण करने में सक्षम हैं, उन्हें भंडारण पर खासतौर पर ध्यान देना चाहिए. खास बातें

* धान का भंडारण करने के लिए कुछ ऊंची जगह तैयार करें, ताकि नमी न हो, कीटों व चूहों से भी बचाव हो.

* सब से पहले धान या चावल के भंडारण से पहले भंडारघर को धुआं दे कर कीटाणुरहित करें व छेद, दरार आदि को भर दें. पुराने अनाज के दाने आदि न रहें, इस लिए अच्छी तरह से सफाई करें.

* लाइनों में रखे धान के बोरों के बीच थोड़ी खाली जगह छोड़ें, जिस से हवा बनी रहे.

* साफसुथरी बोरियों में धान को भरें. अनाज भरने से पहले बोरियों को 1 फीसदी मैलाथियान घोल में तकरीबन 5 मिनट तक उबाल कर धूप में सुखा लें.

* गोदाम के प्रत्येक 100 वर्गमीटर में 15 दिन के अंतराल में एक बार (शीत मौसम में 21 दिन में एक बार) मैलाथियान (50 फीसदी ईसी) 1:10 के अनुपात का घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. विकल्प के रूप में 40 ग्राम डेल्टामेथ्रिन (2.5 फीसदी) चूर्ण एक लिटर पानी में मिला कर 90 दिन के अंतराल में प्रति 100 वर्गमीटर में 3 लिटर की दर से छिड़काव करना चाहिए. डीडीवीपी (75 फीसदी ईसी 1:150) एक अन्य विकल्प है, जिस की जरूरत पड़ने पर प्रति 100 वर्गमीटर में 3 लिटर की दर से छिड़काव किया जा सकता है.

* गोदाम या भंडारण की अन्य जगह पर बोरों को धूम्रीकरण (धुआं) आवरण से ढकने के बाद 5-7 दिनों तक 9 ग्राम/मीट्रिक टन की दर से एलुमिनियम फास्फाइड से धूम्रीकरण (धुआं) करें. गोदाम में बिना आवरण की स्थिति में 6.3 ग्राम/मीट्रिक टन की दर से प्रयोग करें. मात्र पौलीथिन से ढके हुए व पक्की जगह पर रखे धान की बोरियों में 10.8 ग्राम/मीट्रिक टन की दर से धुआं करें.

* पुरानी और नई बोरियों को अलग रखें, ताकि सफाई रहे व दानों में रोग न लगे.

New Year Special : 5 ब्रेकफास्ट जो बने जल्दी और रखे हेल्दी

सेहत के प्रति लोगों की जागरुकता दर्शाती है कि लोग आजकल ऐसे स्नैक्स खाना चाहते हैं जो खाने में स्वादिष्ठ व पौष्टिक ही न हों बल्कि जल्दी तैयार भी हो जाएं. बाजार से खरीदे किसी स्नैक्स में वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है, तो कुछ में चीनी और सोडियम की मात्रा. उन का अधिक इस्तेमाल शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इसलिए सेहत के प्रति अगर वाकई जागरूक हैं तो जल्दी तैयार हो जाने वाले ऐसे स्नैक्स खाएं जो केवल स्वादिष्ठ ही न हों, पौष्टिक भी हों.

1 बाजरा मूंग पैनकेक

सामग्री : 1/2 कप बाजरे का आटा, 2 बड़े चम्मच जौ का आटा, 3 बड़े चम्मच चावल का आटा, 4 बड़े चम्मच ताजा दही, 1 बड़ा चम्मच अदरक व हरीमिर्च का पेस्ट, 1/4 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, 1 बड़ा चम्मच बारीक कतरा हरा धनिया, पैनकेक सेंकने के लिए 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल, 2 बड़े चम्मच अंकुरित मूंग और नमक स्वादानुसार.

विधि :

बाजरे के आटे में अंकुरित मूंग व तेल को छोड़ कर सभी चीजें मिला लें. घोल काफी गाढ़ा हो तो

थोड़ा सा पानी डालें. मिश्रण को 15 मिनट तक ढक कर रखें. नौनस्टिक तवे को ब्रश से चिकना कर के 1 चम्मच घोल गोलाकार में फैलाएं और उस के ऊपर थोड़े से अंकुरित मूंग बुरकें. दोनों तरफ से उलटपलट कर सेंकें. तैयार पैनकेक चटनी के साथ सर्व करें.

2 इंस्टैंट ओट्स पैटीज

सामग्री

1 छोटा पैकेट इंस्टैंट वैज ओट्स, उबला व मैश किया 1 आलू, 2 बड़े चम्मच बारीक कटा प्याज, 2 बड़े चम्मच कद्दूकस की हुई गाजर, 3 बड़े चम्मच फ्रैश ब्रैड क्रंब्स चूरा, 1 बड़ा चम्मच बारीक कतरा हरा धनिया, 2 छोटे चम्मच बारीक कतरा पुदीना, चाट मसाला और नमक स्वादानुसार. पैटीज के लिए 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल.

विधि :

इंस्टैंट वैज ओट्स के पैकेट पर लिखे निर्देशानुसार ओट्स तैयार कर अच्छी तरह पानी सुखा लें. इस में उपरोक्त लिखी सभी सामग्रियां मिलाएं और मनचाहे आकार की पैटीज बनाएं. नौनस्टिक तवे पर थोड़ा सा तेल लगा कर सुनहरी पैटीज सेंकें. इस हैल्दी स्नैक को धनिएपुदीने की चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

3 ब्रान स्टफ्ड परांठा

सामग्री :

1/2 कप गेहूं का आटा, 4 बड़े चम्मच चोकर, 1/2 छोटा चम्मच नमक, 3 बड़े चम्मच टोंड मिल्क का जमा फ्रैश दही और 2 छोटे चम्मच परांठा सेंकने के लिए औलिव औयल.

भरावन की सामग्री : 3 बड़े चम्मच कद्दूकस की हुई गाजर, 1/4 कप कद्दू- कस किया टोंड मिल्क का पनीर, 1 बड़ा चम्मच बारीक कतरा हरा धनिया, 1 बड़ा चम्मच उबली व मैश की हुई हरी मटर, नमक और कालीमिर्च चूर्ण स्वादानुसार.

विधि :

भरावन की सभी सामग्रियां मिला लें. आटे में चोकर, नमक डालें और दही डाल कर गूंधें. जरूरत हो तो थोड़ा पानी डालें. आटे को ढक कर 20 मिनट तक रख दें. भरावन की सामग्री मिलाएं. आटे की 4 लोई बनाएं. हर लोई को बेल कर थोड़ा भरावन डालें और बंद कर के फिर बेलें. गरम तवे पर उलटपलट कर सेंकें फिर थोड़ा सा तेल लगा कर करारा सेंक लें. इन परांठों को दही व अचार के साथ सर्व करें.

4 डोसा सैंडविच

सामग्री :

ब्राउन ब्रैड की 6 स्लाइस, 2 बड़े चम्मच हंगकर्ड, 2 बड़े चम्मच मैश किया पनीर, 1 बड़ा चम्मच बारीक कतरा हरा धनिया, 1/4 छोटा चम्मच कुटी काली मिर्च, 1 कप रेडीमेड इंस्टैंट डोसा मिक्स पाउडर, सैंडविच सेंकने के लिए 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल और नमक स्वादानुसार.

विधि :

इंस्टैंट डोसा मिक्स पाउडर को पैकेट पर लिखे निर्देशानुसार घोल लें. भरावन वाली सामग्रियों को मिक्स कर लें. ब्रैड के किनारे काट दें. एक ब्रैड की स्लाइस पर थोड़ा भरावन ले कर अच्छी तरह फैलाएं और दूसरी ब्रैड के स्लाइस से ढक दें. सभी इसी तरह तैयार करें. ब्रश में तेल लगा कर नौनस्टिक तवे को चिकना करें. डोसा घोल में प्रत्येक स्टफ्ड ब्रैड को डिप कर के हलकी गैस पर सेंक लें. डोसा सैंडविच को सर्व करें.

5 मक्की दलिया उपमा

सामग्री :

1/2 कप मक्की का दलिया, 2 बड़े चम्मच बारीक कटा प्याज, 2 बड़े चम्मच उबली हरी मटर, 2 बड़े चम्मच छोटे क्यूब्स में कटा टमाटर, 8-10 नग करीपत्ता, 1 छोटा चम्मच राई, 2 बड़े चम्मच छोटे क्यूब्स में कटी हुई हरीपीलीलाल शिमला मिर्चें, बारीक कटा 2 हरी मिर्च, 1 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटी, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस, 2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल और नमक स्वादानुसार.

विधि :

मक्की के दलिये को सूखा ही भून लें व 1 घंटा पानी में भिगोएं. फिर आधा कप पानी में मक्की का दलिया छान कर डालें और प्रेशरपैन में 1 सीटी आने तक पका लें. नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के राई व करीपत्ते का तड़का लगा कर प्याज भूनें. फिर तीनों प्रकार की शिमला मिर्च डाल कर 1 मिनट तक उलटेंपलटें. इस में टमाटर, मक्की का उबला दलिया डाल कर 2 मिनट चलाएं. नीबू का रस व हरा धनिया डाल कर सर्व करें.

12 टिप्स: 30 की उम्र में ऐसे बदलें अपनी डाइट नहीं तो होगा नुकसान

कामकाजी महिलाओं को अपने औफिस और परिवार की जिम्मेदारियों को एकसाथ संभालना होता है. ऐसे में कइयों के लिए अपने बेहद व्यस्त शैड्यूल में से खुद के लिए थोड़ा सा भी समय निकाल पाना मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें लगातार एक से दूसरे काम में व्यस्त रहना पड़ता है. अपने शरीर और समय को ले कर नियमित तनाव की वजह से अकसर इन महिलाओं को खुद की और अपने शरीर की मांगों के स्थान पर अपने कर्तव्यों को चुनना पड़ता है. समय और ऊर्जा से तंग कई महिलाएं खाने की अस्वास्थ्यकर आदतों को अपना लेती हैं.

ये महिलाएं यह भूल जाती हैं कि अगर ये अपने शरीर, अपनी सेहत का ध्यान नहीं देंगी, तो अपने महत्त्वपूर्ण बोझ को उठाने में सक्षम नहीं रह जाएंगी. इसलिए एक खुशनुमा व स्वस्थ जीवन जीने के लिए महिलाओं को अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान देने, समयसमय पर सेहत की जांच कराने, पोषक आहार लेने और नियमित व्यायाम करने के लिए समय निकालने की जरूरत होती है.

सेहत को गंभीरता से लें

जब खाने की बात आती है, तो उम्रदराज वयस्कों को अपने कैलोरी के उपभोग को कम करने और फाइबर व पोषक तत्त्वों से भरपूर खाना खाने की जरूरत होती है. कैलोरी से भरे आहार की वजह से वजन बढ़ सकता है और इस से महिलाओं को डायबिटीज, स्ट्रोक, औस्टियोपोरोसिस, स्तन कैंसर, उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस जैसी कई अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं.

इसलिए महिलाओं के लिए यह अनिवार्य है कि 30 की उम्र के बाद वे अपनी सेहत को गंभीरता से लें. बीमारियों से बचने, अपनी हड्डियों को मजबूत करने, अपने प्रतिरक्षातंत्र को सुदृढ़ करने और त्वचा की रक्षा के लिए सेहतमंद जीवनशैली अपनाएं.

जानिए 30 साल की होने पर अपने आहार में कैसे संशोधन करें:

1 अपने दैनिक आहार में मसूर की दाल और फलीदार सब्जियां शामिल करें. सूखी सेम और मटर, काली सेम, राजमा, पत्तागोभी और मटर की दाल में सेहतमंद फाइबर और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है. पकाई गई 1 कप मसूर की दाल में लगभग 16 ग्राम फाइबर होता है, जो कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के साथ ही पाचन को भी बेहतर बनाने में मदद करता है.

2- एक पैकेट आलू के चिप्स या अपनी पसंदीदा कुकीज में ही संतुष्ट हो जाने की वजह से बाद में जब भी भूख लगे तो ताजा फल और सब्जियां खाने की आदत डालें. चमकीले रंगों वाले फलों का ताजा सलाद या सब्जियों का एक बाउल जैसे कि गाजर, कद्दू, शकरकंद, टमाटर, पपीता या मौसमी हरी सब्जियों का एक बाउल सेहतमंद बीएमआई मैंटेन करने में मदद कर सकता है. यह आप के खून के कोलैस्ट्रौल और शुगर के स्तर को बेहतर करने में भी मदद करता है.

3- मलाई निकला दूध, कम वसा या वसारहित दही और चीज कैल्सियम के अच्छे स्रोत हैं. गाय का दूध खासतौर पर कैल्सियम के अच्छे स्रोत हैं. पीनट बटर में कैल्सियम की काफी मात्रा होने के साथ ही विटामिन ई, मैग्नीशियम, पौटैशियम, और प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने वाले विटामिन बी6 की अच्छाई भी होती है.

4- मिठासरहित बादाम का दूध और नारियल का दूध ऐसे पोषणयुक्त सेहतमंद पेयपदार्थ हैं, जो शरीर को पर्याप्त पोषण देते हैं. बादाम के दूध में विटामिन डी की प्रचुर मात्रा होती है जबकि कैलोरी कम होती है. नारियल का दूध लैक्टोजरहित होता है. यह कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने, रक्त दाब बेहतर करने और हार्ट अटैक या स्ट्रोक रोकने में मदद करता है.

5- सेहत और सौंदर्य को ले कर हलदी के कई फायदे हैं. कढ़ी या सूप जैसे अपने खाने में इस सुनहरे पीले पाउडर की एक चुटकी मिलाने से कई बीमारियों के विरुद्घ सुरक्षा मिलती है, ऐस्ट्रोजन हारमोंस को नियमित रखने में मदद मिलती है, स्तन कैंसर का जोखिम कम होता है, झुर्रियां घटती हैं.

6- पालक, पत्तागोभी और गोभी जैसी सब्जियों में बीटा कैरोटिन की मात्रा पर्याप्त होती है और इन के सेहत संबंधित कई फायदे होते हैं.

7- भले ही रैड मीट में हाई क्वालिटी प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है, लेकिन इस में सैचुरेटेड वसा भी होती है, जिस से हाई कैलोरी काउंट भी मिलता है. इसलिए सालमन, ट्यूना और सार्डिन जैसी कम वसायुक्त मछलियों का सेवन करें.

8- दैनिक उपभोग में बादाम, अखरोट, चिआ के बीज आदि शामिल करें. रोज अगर 1 मुट्ठी बादाम खाए जाएं, तो इस से शरीर को फाइबर, प्रोटीन, कैल्सियम, जिंक, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फास्फोरस, कौपर, आयरन और विटामिन बी मिलेगा. चिआ के बीचों में ओमेगा 3 फैटी ऐसिड्स, कैल्सियम, जिंक, विटामिन बी1, बी2, बी3 और विटामिन ई होता है.

9- सोया मिल्क, टोफू, छोले, अलसी, दलिया, जई, ओटमील, और हाई क्वालिटी प्रोटीन सप्लिमैंट्स को अपने आहार का हिस्सा बनाएं.

10- राजमा, डार्क चौकलेट्स, किशमिश, जई, ब्रोकली, टमाटर, अखरोट, जैसे हाई क्वालिटी ऐंटीऔक्सीडैंट्स को अपने आहार में मिलाएं. इन खा-पदार्थों में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट्स फ्री रैडिकल्स के प्रभावों से कोशिकाओं की रक्षा करते हैं, उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करते हैं, दिल की बीमारी का जोखिम घटाते हैं और प्रतिरक्षा तंत्र को सुदृढ़ करते हैं.

11- डार्क चौकलेट से डायबिटीज, कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारी और दिल से संबंधित अन्य बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है.

12- उम्र बढ़ने की निशानियों को घटाने का सब से अच्छा तरीका है कि रसभरी, स्ट्राबैरी और ब्लूबैरी खाएं.

ऐसे भी कुछ खा-पदार्थ हैं, जिन से महिलाओं को 30 की उम्र के बाद अपनी सेहत के संकल्प को बनाए रखने के लिए पूरी तरह बचना चाहिए:

1- सूप, कटी सब्जियां, फल और सौसेज जैसे कैन्ड फूड्स से पूरी तरह बचना चाहिए. कैन्ड फूड में सोडियम बहुत होता है. इस में प्रिजर्वेटिव्स मौजूद होते हैं और टिन में धातु या प्लास्टिक की कोटिंग के कारण इन के दूषित होने की संभावना होती है.

2- बहुत ज्यादा फ्रोजन खाना भी सेहतमंद नहीं होता है.इस में 700 से 1800 एमजी तक सोडियम शामिल होता है. इस की वजह से ब्लडप्रैशर और सेहत से संबंधित अन्य बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है.

3- ज्यादातर बेक्ड फूड आइटम्स जैसे कि केक, पेस्ट्री और बिस्कुट का सेवन कम करना चाहिए, क्योंकि इन में रिफाइंड आटा मौजूद होता है जो अस्वास्थ्यकर होता है. इन में पोषक तत्त्वों की कमी होती है और कैलोरी ज्यादा होती है. ये वसा और शुगर से बने होते हैं.

4- कैन्ड जूस और गैस भरे ड्रिंक्स का सेवन कम करें, क्योंकि इन में हाई शुगर की सामग्री होती है, जिस से डायबिटीज बढ़ सकती है और आप के दिल व लिवर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

– सोनिया नारंग, न्यूट्रिशनिस्ट ऐंड फिटनैस ऐक्सपर्ट

नए साल पर करें दोस्त के टूटे दिल का इलाज

नया साल है. इस मौके पर सब दोस्तों के साथ जम कर मस्ती व पार्टी करते हैं लेकिन कभी उन दोस्तों के बारे में सोचा है जिन का हाल ही में ब्रेकअप हुआ है, वह तो अकेले गुमसुम है. वह भला न्यू ईयर की पार्टी कैसे एंजौय करेगा. एक सच्चे दोस्त होने के नाते आप की जिम्मेदारी बनती है कि उस के टूटे दिल का इलाज करें, उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं और उसे इस गम भरे फेज से निकालने में मदद करें. यही सही माने में आप के व उस के लिए नए साल का जश्न होगा.

रवि के साथ नीति के 3 वर्ष के प्रेमसंबंधों का जब अंत हो गया तो वह ब्रेकअप के झटके को सह नहीं पाई. सब से कट कर अपने रूम में अलगथलग उदास बैठ गई. मातापिता को उस की इस मानसिक स्थिति का अंदाजा नहीं था. वे इसे पढ़ाई का प्रैशर समझ रहे थे पर उस की बैस्टफ्रैंड विनी को सचाई मालूम थी.

विनी ने उस के रूम में ही अपना डेरा जमा लिया. वह नीति से इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करती रही. वीडियो गेम खेलती रही. खूब रोनेधोने के बाद भी नीति के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. विनी ने उसे कुछ नहीं समझाया, न यह कहा कि रवि तुम्हारे लायक नहीं था, न यह उपदेश दिया कि सब भूल कर आगे बढ़ो. वह इस विषय पर चुप रही.

नीति ने फिर अपने मन की भड़ास निकालनी शुरू की, विनी उसे ही सुनती रही. जब नीति ने अपने दिल के सारे हाल कह दिए तब उस का दिल कुछ हलका हो गया. विनी ने उस की बातें धैर्य से सुनी थीं. नीति के दिल का गुबार एक बार जब निकल गया, तब विनी ने उस के साथ सकारात्मक सोच से भरी बातें करनी शुरू कीं जिन्हें नीति ने पूरी गंभीरता से लिया और समझा.

कुछ ही समय में नीति सामान्य हो गई. इस समय नीति को बस, विनी जैसी दोस्त की ही तो जरूरत थी जो बस, उस के दिल की बात सुने और समझे. ऐसे समय में यही जरूरी होता है कि कोई बस बिना कोई उपदेश दिए आप की बात सुने.

आप का दोस्त चाहे पुरुष हो या स्त्री, दिल टूटने से वह दुखी हो सकता है. उसे आप के साथ की जरूरत होती है. आप उस का ध्यान इस विषय से हटा सकते हैं. कभीकभी समझ नहीं आता कि कैसे अपने दुखी फ्रैंड की मदद करें. दिए जा रहे तरीकों को आजमा कर देखिए, इन के जरिए आप अपने फ्रैंड को फिर से खुशियों की तरफ मोड़ सकते हैं :

फ्रैंड का ब्रेकअप हो तो उसे उस सदमे से उबरने का मौका दें. उस का मजाक न उड़ाएं बल्कि कुछ प्रेम कहानियों के ऐसे किस्से सुनाएं जो ज्यादा लंबी नहीं चलीं. इस से वे अपने ब्रेकअप को स्वाभाविक बात मान कर जल्दी उबर जाएंगे.

जब आप को पता चलता है कि आप की फ्रैंड का ब्रेकअप हो गया है, ‘सौरी’ शब्द बिलकुल न कहें. ‘किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताना,’ यह भी न कहें, इन शब्दों से आप की फ्रैंड को अपने और आप के बीच एक दूरी महसूस होने लगती है. इस के बजाय उसे यह बताएं, यह महसूस करवाएं कि आप उस के इस दर्द में उस के साथ हैं.

फ्रैंड को उस के एकांतवास से बाहर निकालें. यह काम दोस्त ही कर सकते हैं, मातापिता नहीं. हो सके तो दोस्तों के साथ एक स्लीपओवर का प्रोग्राम बनाइए.

ब्रेकअप के बाद आप की फ्रैंड हो सकता है कि बाहर कहीं जाने की इच्छा न करे. वह पूरा दिन घर में बैठ कर ही इस का शोक मना रही हो. ठीक है, उसे यह करने की पूरी आजादी दें. आप इतना कर सकती हैं कि उस के साथ ही उस के घर पर रह कर समय बिताएं जैसे विनी ने नीति के साथ किया था.

उस के साथ समय बिताएं, भले ही कुछ भी न करें, यों ही वीडियोगेम खेलें, म्यूजिक सुनें, लाइफ के रोचक प्लान बनाएं या यों ही उस के साथ चुप बैठें. जो भी उसे अच्छा लगता हो, उस के साथ करें. एक दिन वह आप के इन प्रयासों की खूब प्रशंसा करेगी और आप को धन्यवाद कहेगी.

आप की दोस्त को ऐसे समय में ऐसे ही साथ की जरूरत होती है जो उसे उस की अवस्था पर लंबीलंबी बातें न करे, उसे कोई उपदेश न दे, बस, उस के साथ रह कर उस के दिल और टूटे रिश्ते की बात चुपचाप सुन ले.

जितना वह बोल लेगी, उस का दिल हलका हो जाएगा. एक बार वह  दिल खोल कर अपना गुबार निकाल लेगी, फिर बारबार वही किस्सा वह खुद ही दोहराने से बचेगी.

संभव हो तो अपने बाकी फ्रैंड्स के साथ मिल कर शहर से बाहर एक पिकनिक रख लें. उसे अपने बाकी दोस्तों के साथ मिलवाएं. कई बार उसे अपना दुख याद भी आ सकता है पर दोस्तों के साथ मूड बदलते देर नहीं लगती. आगे बढ़ते रहना ही जीवन है, इस में अपने फ्रैंड की मदद करें, हंसीमजाक करें, झरनों, नदियों के पास घूमें क्योंकि इन जगहों पर सकारात्मकता और प्रसन्नता का अनुभव होता है.

26 जनवरी स्पेशल : जवाबी हमला- भाग 2

‘‘यस सर. पर सर, गुत्थमगुत्था की लड़ाई में कैजुअलिटी की कोई गारंटी नहीं होती. हां, यह गारंटी अवश्य है कैजुअलिटी वहां नहीं छूटेगी.’’

‘‘ओके फाइन, गो अहैड. गिव मी रिपोर्ट आफ्टर कंपलीशन. बेस्ट औफ लक कर्नल.’’

‘‘थैक्स सर.’’ कर्नल साहब थैंक्स कह कर उन के कमरे से बाहर आ गए. और उसी रात राजपूताना राइफल को अवसर मिला. दुश्मन की ओर से गोली आई और कर्नल अमरीक सिंह के जवानों ने तुरंत कार्यवाही की. दूसरे रोज कर्नल साहब ने अपने कमांडर को रिपोर्ट दी, ‘‘सर, टास्क कंपलीटिड. नो कैजुअलिटी. सर, दुश्मन के कम से कम 20 जवानों के सिर उसी प्रकार काट दिए गए थे जिस प्रकार उन्होंने हमारे 2 जवानों के काटे थे. हां, हम उन के सिरों को अपने साथ ले कर नहीं आए जैसे उन्होंने किया था. हम लड़ाई में भी अमानवीयता की हद पार नहीं करते.’’

‘‘गुड जौब कर्नल, भारतीय सेना और पाकिस्तान की सेना में यही अंतर है कि हम दुश्मनी भी मानवता के साथ निभाते हैं. इस का रिऐक्शन हमें बहुत जल्दी सुनने को मिलेगा, न केवल राजनीतिक स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी. शायद कुछ आर्मी कमांडर भी यह कह कर इस का विरोध करें कि पाकिस्तान और हम में क्या अंतर है. पर चिंता मत करो, हमें यह मानना ही नहीं है कि यह हम ने किया है. जैसे पाकिस्तान नहीं मानता. उन्हीं की बात हम उन के मुंह पर मारेंगे कि यह आप के अंदर की लड़ाई है. आप के किसी टैररिस्ट ग्रुप का काम है, हमारा नहीं. ध्यान रहे, हमें इसी बात पर कायम रहना है.’’

‘‘यस सर. मैं आप की बात समझ गया हूं, सर. ऐसा ही होगा,’’ कर्नल साहब ने जवाब दिया.

दूसरे रोज बिग्रेड कमांडर साहब ने फोन कर के बताया, ‘‘वही हुआ, जो मैं ने कल कहा था. मुझे, आप को और विंग कमांडर को कमांड हैडॅक्वार्टर में बुलाया गया है. हम वहां कमांडरों का मूड देख कर बात करेंगे.’’

‘‘राइट सर. हमें कब चलना होगा?’’

‘‘अब से 15 मिनट बाद. हैलिकौप्टर तैयार है, आप आ जाएं.’’

‘‘मैं आ रहा हूं, सर,’’ कर्नल साहब ने जवाब में कहा.

जब हम हैलिकौप्टर में बैठ रहे थे तो हमें सूचना मिली कि हमें जीओसी, जनरल औफिसर कमांडिंग लैफ्टिनैंट जनरल साहब के साथ दिल्ली सेनामुख्यालय में बुलाया गया है. हम ने एकदूसरे की ओर देखा. आंखों ही आंखों में अपनी बात पर दृढ़ रहने की दृढ़ता व्यक्त की.

कुछ समय बाद हम कमांड हैडक्वार्टर में थे. सूचना देने पर लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने हमें तुरंत अंदर बुलाया. वहां डीएमओ, डायरैक्टर मिलिटरी औपरेशन भी मौजूद थे. हमें देखते ही लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने कहा, ‘‘बिग्रेडियर साहब, गुड जौब. कर्नल साहब,

वैरी गुड.’’

हम दोनों भौचक्के रह गए. चाहे यह औपरेशन टौप सीक्रेट था. किसी को हवा भी नहीं लगने दी गई थी तो भी कमांड हैडक्वार्टर में बैठे टौप औफिसर को पता चल गया था. यह मिलिटरी इंटैलिजैंस का कमाल था या जीओसी साहब और डीएमओ साहब का केवल अनुमान मात्र था, हम इसे बिलकुल समझ नहीं पाए. मन के भीतर यह शंका भी कुलबुला रही थी कि कहीं हमें बहकाने के लिए कोई जाल तो नहीं बुना जा रहा. हमें चुप देख कर जीओसी साहब ने आगे कहा, ‘‘चाहे इस अटैक के लिए आप दोनों इनकार करेंगे. हमें इनकार ही करना है. हमें किसी स्तर पर इस अटैक को मानना नहीं है पर मैं जानता हूं जिस सफाई से इस अटैक को अंजाम दिया गया है, वह हमारे ही बहादुर जवान कर सकते हैं. क्यों?’’

जीओसी साहब ने जब हमारी आंखों में आंखें डाल कर ‘क्यों,’ कहा तो हम उन की आंखों की निर्मलता को समझ गए.

‘‘जवानों के आक्रोश, गुस्से और मोरल सपोर्ट के लिए यह अटैक आवश्यक था, सर. दुश्मन हमें कमजोर न समझे, इसलिए भी. चाहे इस का अंजाम कुछ भी होता,’’ कर्नल अमरीक सिंह ने कहा.

‘‘और मैं जानता हूं, आप बिग्रेडियर सतनाम सिंह की मरजी के बिना इस अटैक को अंजाम नहीं दे सकते थे,’’ डीएमओ साहब ने कहा.

‘‘यस, सर.’’

‘‘गुड.’’

जीओसी साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘हमें सेनामुख्यालय में आर्मी चीफ ने बुलाया है. आप के विंग कमांडर भी आते होंगे. हम फर्स्ट लाइट में फ्लाई करेंगे. मैं नहीं जानता आर्मी चीफ इस के प्रति क्या देंगे. बधाई भी दे सकते हैं और नहीं भी. वे स्वयं एक मार्शल कौम से हैं, इस प्रकार की दरिंदगी बरदाश्त नहीं कर सकते. इसलिए आशा बधाई की है. आप सब जाएं. सुबह की तैयारी करें. डीएमओ साहब, हमारी मूवमैंट टौप सीक्रेट होनी चाहिए.’’

‘‘राइट सर,’’ कह कर हम बाहर आ गए. सुबह जब हैलिकौप्टर ने उड़ान भरी तो हम सब के चेहरों पर किसी प्रकार का तनाव नहीं था. हम सब बड़े हलके मूड में बातें कर रहे थे. कोई 2 घंटे बाद हमारे हैलिकौप्टर ने दिल्ली हवाई अड्डे पर लैंड किया. 2 कारों में सेनामुख्यालय पहुंचे. लंच का समय था. पहले हम से लंच करने के लिए कहा गया.

दुस्वप्न-भाग 2: संविधा के साथ ससुराल में क्या हुआ था ?

‘मैं घर आऊं तो मेरी पत्नी को घर में हाजिर होना चाहिए’, ‘इतने सालों में तुम्हें यह भी पता नहीं चला’, ‘तुम्हारा ऐसा कौन सा जरूरी काम था, जो तुम समय पर घर नहीं आ सकीं?’ जैसे शब्द संविधा पहले से सुनती आई थी.

वह कहीं बाहर गई हो, किसी सहेली या रिश्तेदार के यहां गई हो, घर के किसी काम से गई हो, अगर उसे आने में थोड़ी देर हो गई तो क्या बिगड़ गया? राजेश को जस का तस सुनाने का मन होता. शब्द भी होंठों पर आते, पर उस का मिजाज और क्रोध से लालपीला चेहरा देख कर वे शब्द संविधा के गले में अटक कर रह जाते. जब तक हो सकता था, वह घर में ही रहती थी.

एक समय था, जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छी थी. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी. घर के काम करते हुए वह गीत गुनगुनाती रहती थी. यह एक तरह से उस की आदत सी बन गई थी. पर जल्दी ही उसे अपनी इस आदत को सुधारना पड़ा, क्योंकि यह उस की सास को अच्छा नहीं लगता था.

सासूमां ने कहा था, ‘‘अच्छे घर की बहूबेटियों को यह शोभा नहीं देता.’’बस तब से शौक धरा का धरा रह गया. फिर तो एकएक कर के 3 बच्चों की परवरिश करने तथा एक बड़े परिवार में घरपरिवार के तमाम कामों को निबटाने में दिन बीतने लगे. कितनी बरसातें और बसंत ऋतुएं आईं और गईं, संविधा की जिंदगी घर में ही बीतने लगी.

‘संविधा तुुम्हें यह करना है, तुम्हें यह नहीं करना है’, ‘आज शादी में चलना है, तैयार हो जाओ’, ‘तुम्हारे पिताजी की तबीयत खराब है, 3-4 दिन के लिए मायके जा कर उन्हें देख आओ. 5वें दिन वापस आ जाना, इस से ज्यादा रुकने की जरूरत नहीं है’ जैसे वाक्य वह हमेशा सुनती आई है.

घर में कोई मेहमान आया हो या कोई तीजत्योहार या कोई भी मौका हो, उसे क्या बनाना है, यह कह दिया जाता. क्या करना है, कोई यह उस से कहता और बिना कुछ सोचेविचारे वह हर काम करती रहती.ससुराल वाले उस का बखान करते. सासससुर कहते, ‘‘बहू बड़ी मेहनती है, घर की लक्ष्मी है.’’

पश्चाताप-भाग 2: क्या जेठानी के व्यवहार को सहन कर पाई कुसुम?

“पर दीदी आप के बच्चे जब छोटे थे तब यदि मां नौकरी करती थीं तो इस में मेरा क्या दोष? मेरी बच्ची को मां ने पाला, मैं मानती हूं. मगर ऐसा करने में मां को खुशी मिलती थी. बस इतनी सी बात है. इन बातों का जायदाद से क्या संबंध?”

“देख कुसुम, तू हमेशा बहुत चलाक बनती फिरती है. भोली सी सूरत के पीछे कितना शातिर दिमाग पाया है यह मैं भलीभांति जानती हूं.”

“चुप करो मधु. चलो मेरे साथ. इस तरह झगड़ने का कोई मतलब नहीं. चलो.”

बड़ा भाई बीवी को खींच कर ऊपर ले गया. उस के दोनों बेटे भी मां की इस हरकत पर हतप्रभ थे. वे भी चुपचाप अपनेअपने कमरों में जा कर पढ़ने लगे. कुसुम की आंखें डबडबा आईं. पति ने उसे सहारा दिया और अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया. मधु की बातों ने उन दोनों को गहरा संताप दिया था. कुसुम अपनी जेठानी के व्यवहार से हतप्रभ थी.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. अब बड़ी बहू मधु ने कुसुम से बातचीत करनी बंद कर दी. वह केवल व्यंग किया करती. कुसुम कभी जवाब देती तो कभी खामोश रह जाती. तीनों बच्चे भी सहमेसहमे से रहते. दोनों परिवारों में तनाव बढ़ता ही गया. वक्त यों ही गुजरता रहा. जायदाद के बंटवारे का मसला अधर में लटका रहा.

एक दिन मधु का छोटा बेटा ट्यूशन के बाद पहले की तरह अपनी चाची कुसुम के पास चला गया. कुसुम ने पकौड़ियां बनाई थीं. वह प्यार से बच्चे को चाय और पकौड़े खिलाने लगी. तब तक मधु औफिस से वापस लौटी तो बेटे को कुसुम के पास बैठा देख कर उस के बदन में आग लग गई.

आपे से बाहर होती हुई वह चिल्लाई,”खबरदार जो मेरे बच्चे को कुछ खिलाया. पता नहीं कैसा मंतर पढ़ती है. पहले मांजी को अपना शागिर्द बना लिया था. अब मेरे बच्चे के पीछे पड़ी हो…”

सुन कर कुमुद भी बौखला गई. वह गरज कर बोली,” दीदी, ऐसे बेतुके इलजाम तो मुझ पर लगाना मत. यदि मांजी मुझ से प्यार करती थीं तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं ने कुछ खिला कर शागिर्द बना लिया था. वे मेरे व्यवहार पर मरती थीं. समझीं आप.”

“हांहां… छोटी सब समझती हूं. तू ने तो अपनी चासनी जैसी बोली और बलखाती अदाओं से मेरे पति को भी काबू में कर रखा है. एक शब्द नहीं सुनते तेरे विरुद्ध. तू ने बहुत अच्छी तरह उन को अपने जाल में फंसाया है.”

“दीदी, यह क्या कह रही हो तुम? मैं उन्हें भैया मानती हूं. इतनी गंदी सोच रखती हो मेरे लिए? ओह… मैं जिंदा क्यों हूं? ऐसा इलजाम कैसे लगा सकती हो तुम? कहते हुए कुसुम लङखड़ा कर गिरने लगी. उस का सिर किचन के स्लैब से टकराया और वह नीचे गिर कर बेहोश हो गई.

मधु का छोटा बेटा घबरा गया. जल्दी से उस ने पापा को फोन किया. कुसुम को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे आईसीयू में ऐडमिट कर लिया. अच्छी तरह जांचपड़ताल करने के बाद डाक्टर ने बताया कि एक तो बीपी अचानक बढ़ जाने से दिमाग में खून का दबाव बढ़ गया, उस पर सिर में अंदरूनी चोटें भी आई हैं. इस वजह से कुसुम कोमा में चली गई है.

“पर अचानक कुसुम का बीपी हाई कैसे हो गया? उसे तो कभी ऐसी कोई शिकायत नहीं रही….” कुसुम के पति ने पूछा तो मधु ने सफाई दी,”क्या पता? वह तो मैं नीचे गोलू को लेने गई थी, तभी अचानक कुसुम गिर पड़ी.”

मधु के पति ने टेढ़ी नजरों से बीवी की तरफ देखा फिर डाक्टर से बात करने लगे. इधर कुसुम के पति के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था की बीवी की देखभाल करे या बिटिया की. कैसे संभलेंगे सारे काम? कैसे चलेगा अब घर? इधर कुसुम की तबीयत को ले कर चिंता तो थी ही.

तब देवर के करीब आती हुई मधु बोली,”भाई साहब, आप चिंता न करो. मैं हूं कुसुम के पास. जब तक कुसुम ठीक नहीं हो जाती मैं अस्पताल में ही हूं. कुसुम मेरी बहन जैसी है. मैं पूरा खयाल रखूंगी उस का.”

“जी भाभी जैसा आप कहें.”

देवर ने सहमति दे दी मगर जब पति ने सुना तो उस ने शक की नजरों से मधु की तरफ देखा. वह जानता था कि मधु के दिमाग में क्या चल रहा होगा. इधर मधु किसी भी हाल में कुसुम के पास ही रुकना चाहती थी. वह दिखाना चाहती थी कि उसे कुसुम की कितनी फिक्र है. कहीं न कहीं वह पति के आरोपों से बचना चाहती थी कि कुसुम की इस हालत की जिम्मेदार वह है. वह बारबार डाक्टर के पास जा कर कुसुम की हालत की तहकीकात करने लगी.

अंत में पति और देवर मधु को छोड़ कर चले गए. मधु रातभर सो नहीं सकी. इस चिंता में नहीं कि कुसुम का क्या होगा बल्कि इस चिंता में कि कहीं उसे इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार न समझ लिया जाए. वैसे हौस्पिटल का माहौल भी उसे बेचैन कर रहा था.

अगले दिन कुसुम की हालत स्थिर देख कर उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. कुसुम के अलावा उस वार्ड में एक बुजुर्ग महिला थी जिसे दिल की बीमारी थी. महिला के पास उस का 18 साल का बेटा बैठा था. वार्ड में मौजूद महिला की तबियत बारबार बिगड़ रही थी. रात में इमरजैंसी वाले डाक्टर विजिट कर के गए थे. उस की हालत देख मधु सहम सी गई थी. अब उसे वाकई कुसुम की चिंता होने लगी थी.

2-3 दिन इसी तरह बीत गए. मधु कुसुम के पास ही रही. एक बार भी घर नहीं गई.

उस दिन रविवार था. मधु ने अपने बेटों से मिलने की इच्छा जाहिर की तो पति दोनों बेटों को उस के पास छोड़ गए. मधु ने प्यार से उन के माथे को सहलाया लाया और बोली,” सब ठीक तो चल रहा है बेटे? आप लोग रोज स्कूल तो जाते हो न? पापा कुछ बना कर देते हैं खाने को?”

‘हां मां, आप हमारी फिक्र मत करो. पापा हमें बहुत अच्छी तरह संभाल रहे हैं,” रूखे अंदाज में बड़े बेटे ने जवाब दिया तो मधु को थोड़ा अजीब सा लगा.

उसे लगा जैसे बच्चे उस के बगैर ठीक से रह नहीं पा रहे हैं और ऐसे में उस का मन बहलाने के लिए कह रहे हैं कि सब ठीक है.

मधु ने फिर से पुचकारते हुए कहा,”मेरे बच्चो, तुम्हारी चाची की तबीयत ठीक होते ही मैं घर आ जाऊंगी. अभी तो मेरे लिए चाची को देखना ज्यादा जरूरी है न. कितनी तकलीफ में है वह.”

“मम्मी, आप प्लीज ज्यादा ड्रामा न करो. हमें पता है कि चाची की इस हालत का जिम्मेदार कौन है? सबकुछ अपनी आंखों से देखा है मैं ने,” छोटे बेटे ने उस का हाथ झटकते हुए कहा तो बड़ा बेटा भी चिढ़े स्वर में बोलने लगा,” कितनी अच्छी हैं हमारी चाची. कितना प्यार करती थीं हमें. पर आप… मम्मी, आप ने उन के साथ कितना बुरा किया. वी हेट यू,” कहते हुए दोनों बच्चे मधु के पास से उठ कर बाहर भाग गए.

मधु भीगी पलकों से उन्हें जाता देखती रही. उस के हाथ कांप रहे थे. दिल पर 100 मन का भारी पत्थर सा पड़ गया था. उस ने सोचा भी नहीं था कि बच्चे उसे इस तरह दुत्कारेंगे. बिना आगेपीछे सोचे लालच में आ कर उस ने कुसुम के साथ ऐसा बुरा व्यवहार किया. कितनी जलीकटी सुनाई. वे सब बातें बच्चों के दिमाग में इस तरह छप गईं थीं कि अब बच्चे उस के वजूद को ही धिक्कार रहे हैं.

 

 

बगावत-भाग 3 : कैसे प्यार से भर गया उषा का आंचल

‘‘बस कर. सबकुछ इसी राशन की दुकान पर ही पूछ लेगी क्या? चल, कहीं पास के रेस्तरां में कुछ देर बैठते हैं. वहीं आराम से सारी कहानी सुनाऊंगी.’’ ‘‘रेस्तरां क्यों? घर पर ही चल न. और हां, जीजाजी कहां हैं?’’

‘‘वह विभाग के किसी कार्य के सिलसिले में कार्यालय गए हैं. उन्हीं के कार्य के लिए हम लोग यहां आए हैं. अचानक तेरे घर आ कर तुझे हैरान करना चाहते थे, पर तू यहीं मिल गई. हम लोग नीलम होटल में ठहरे हैं, कल ही आए हैं. 2 दिन रुकेंगे. मैं किसी काम से इस ओर आ रही थी कि अचानक तुझे देखा तो तेरा पीछा करती यहां आ गई,’’ उषा चहक रही थी. कितनी निश्छल हंसी है इस की. पर एक टेलीफोन आपरेटर के साथ शादी इस ने किस आधार पर की, यह मेरी समझ से बाहर की बात थी.

‘‘हां, तेरे घर तो हम कल इकट्ठे आएंगे. अभी तो चल, किसी रेस्तरां में बैठते हैं,’’ लगभग मुझे पकड़ कर ले जाने सी उतावली वह दिखा रही थी.

दुकानदार को सारा सामान पैक करने के लिए कह कर मैं ने बता दिया कि घंटे भर बाद आ कर ले जाऊंगी. उषा को ले कर निकट के ही राज रेस्तरां में पहुंची. समोसे और कौफी का आदेश दे कर उषा की ओर मुखातिब होते हुए मैं ने कहा, ‘‘हां, अब बता शादी वाली बात,’’ मेरी उत्सुकता बढ़ चली थी. ‘‘इस के लिए तो पूरा अतीत दोहराना पड़ेगा क्योंकि इस शादी का उस से बहुत गहरा संबंध है,’’ कुछ गंभीर हो कर उषा बोली.

‘‘अब यह दार्शनिकता छोड़, जल्दी बता न, डाक्टर हो कर टेलीफोन आपरेटर के चक्कर में कैसे पड़ गई?’’ 3 भाइयों की अकेली बहन होने के कारण हम तो यही सोचते थे कि उषा मांबाप की लाड़ली व भाइयों की चहेती होगी, लेकिन इस के दूसरे पहलू से हम अनजान थे.

उषा ने अपनी कहानी आरंभ की. बचपन के चुनिंदा वर्ष तो लाड़प्यार में कट गए थे लेकिन किशोरावस्था के साथसाथ भाइयों की तानाकशी, उपेक्षा, डांटफटकार भी वह पहचानने लगी थी. चूंकि पिताजी उसे बेटों से अधिक लाड़ करते थे अत: भाई उस से मन ही मन चिढ़ने लगे थे. पिता द्वारा फटकारे जाने पर वे अपने कोप का शिकार उषा को बनाते.

‘‘मां और पिताजी ने इसे हद से ज्यादा सिर पर चढ़ा रखा है. जो फरमाइशें करती है, आननफानन में पूरी हो जाती हैं,’’ मंझला भाई गुबार निकालता. ‘‘क्यों न हों, आखिर 3-3 मुस्टंडों की अकेली छोटी बहन जो ठहरी. मांबाप का वही सहारा बनेगी. उन्हें कमा कर खिलाएगी, हम तो ठहरे नालायक, तभी तो हर घड़ी डांटफटकार ही मिलती है,’’ बड़ा भाई अपनी खीज व आक्रोश प्रकट करता.

कुशाग्र बुद्धि की होने के कारण उषा पढ़ाई में हर बार अव्वल आती. चूंकि सभी भाई औसत ही थे, अत: हीनभावना के वशीभूत हो कर उस की सफलता पर ईर्ष्या करते, व्यंग्य के तीर छोड़ते. ‘‘उषा, सच बता, किस की नकल की थी?’’

‘‘जरूर इस की अध्यापिका ने उत्तर बताए होंगे. उस के लिए यह हमेशा फूल, गजरे जो ले कर जाती है.’’ उषा तड़प उठती. मां से शिकायत करती लेकिन मांबेटों को कुछ न कह पाती, अपने नारी सुलभ व्यवहार के इस अंश को वह नकार नहीं सकती थी कि उस का आकर्षण बेटी से अधिक बेटों के प्रति था. भले ही वे बेटी के मुकाबले उन्नीस ही हों.

यौवनावस्था आतेआते वह भली प्रकार समझ चुकी थी कि उस के सभी भाई केवल स्नेह का दिखावा करते हैं. सच्चे दिल से कोई स्नेह नहीं करता, बल्कि वे ईर्ष्या भी करते हैं. हां, अवसर पड़ने पर गिरगिट की तरह रंग बदलना भी वे खूब जानते हैं.

‘‘उषा, मेरी बहन, जरा मेरी पैंट तो इस्तिरी कर दे. मुझे बाहर जाना है. मैं दूसरे काम में व्यस्त हूं,’’ खुशामद करता छोटा भाई कहता. ‘‘उषा, तेरी लिखाई बड़ी सुंदर है. कृपया मेरे ये थोड़े से प्रश्नोत्तर लिख दे न. सिर्फ उस कापी में से देख कर इस में लिखने हैं,’’ कापीकलम थमाते हुए बड़ा कहता.

भाइयों की मीठीमीठी बातों से वह कुछ देर के लिए उन के व्यंग्य, उलाहने, डांट भूल जाती और झटपट उन के कार्य कर देती. अगर कभी नानुकर करती तो मां कहतीं, ‘‘बेटी, ये छोटेमोटे झगड़े तो सभी भाईबहनों में होते हैं. तू उन की अकेली बहन है. इसलिए तुझे चिढ़ाने में उन्हें आनंद आता है.’’ भाइयों में से किसी को भी तकनीकी शिक्षा में दाखिला नहीं मिला था. बड़ा बी.काम. कर के दुकान पर जाने लगा और छोटा बी.ए. में प्रवेश ले कर समय काटने के साथसाथ पढ़ाई की खानापूर्ति करने लगा. इस बीच उषा ने हायर सेकंडरी प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता सहित उत्तीर्ण कर ली. कालिज में उस ने विज्ञान विषय ही लिया क्योंकि उस की महत्त्वाकांक्षा डाक्टर बनने की थी.

‘‘मां, इसे डाक्टर बना कर हमें क्या फायदा होगा? यह तो अपने घर चली जाएगी. बेकार इस की पढ़ाई पर इतना खर्च क्यों करें,’’ बड़े भाई ने अपनी राय दी. तड़प उठी थी उषा, जैसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया हो. भाई अपनी असफलता की खीज अपनी छोटी बहन पर उतार रहा था. ‘आखिर उसे क्या अधिकार है उस की जिंदगी के फैसलों में हस्तक्षेप करने का? अभी तो मांबाप सहीसलामत हैं तो ये इतना रोब जमा रहे हैं. उन के न होने पर तो…’ सोच कर के ही वह सिहर उठी.

पिताजी ने अकसर उषा का ही पक्ष लिया था. इस बार भी वही हुआ. अगले वर्ष उसे मेडिकल कालिज में दाखिला मिल गया. डाक्टरी की पढ़ाई कोई मजाक नहीं. दिनरात किताबों में सिर खपाना पड़ता. एक आशंका भी मन में आ बैठी थी कि अगर कहीं पहले साल में अच्छे अंक नहीं आ सके तो भाइयों को उसे चिढ़ाने, अपनी कुढ़न निकालने और अपनी कुंठित मनोवृत्ति दर्शाने का एक और अवसर मिल जाएगा. वे तो इसी फिराक में रहते थे कि कब उस से थोड़ी सी चूक हो और उन्हें उसे डांटने- फटकारने, रोब जमाने का अवसर प्राप्त हो. अत: अधिकांश वक्त वह अपनी पढ़ाई में ही गुजार देती.

कालिज के प्रांगण के बाहर अमरूद, बेर तथा भुट्टे लिए ठेले वाले खड़े रहते थे. वे जानते थे कि कच्चेपक्के बेर, अमरूद तथा ताजे भुट्टों के लोभ का संवरण करना कालिज के विद्यार्थियों के लिए असंभव नहीं तो कम से कम मुश्किल तो है ही. उन का खयाल बेबुनियाद नहीं था क्योंकि शाम तक लगभग सभी ठेले खाली हो जाते थे.

अपनी सहेलियों के संग भुट्टों का आनंद लेती उषा उस दिन प्रांगण के बाहर गपशप में मशगूल थी. पीरियड खाली था. अत: हंसीमजाक के साथसाथ चहल- कदमी जारी थी. छोटा भाई उसी तरफ से कहीं जा रहा था. पूरा नजारा उस ने देखा. उषा के घर लौटते ही उस पर बरस पड़ा, ‘‘तुम कालिज पढ़ने जाती हो या मटरगश्ती करने?’’ उषा कुछ समझी नहीं. विस्मय से उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ? कैसी मटरगश्ती की मैं ने?’’

तब तक मां भी वहां आ चुकी थीं, ‘‘मां, तुम्हारी लाड़ली तो सहेलियों के साथ कालिज में भी पिकनिक मनाती है. मैं ने आज स्वयं देखा है इन सब को सड़कों पर मटरगश्ती करते हुए.’’ ‘‘मां, इन से कहो, चुप हो जाएं वरना…’’ क्रोध से चीख पड़ी उषा, ‘‘हर समय मुझ पर झूठी तोहमत लगाते रहते हैं. शर्म नहीं आती इन को…पता नहीं क्यों मुझ से इतनी खार खाते हैं…’’ कहतेकहते उषा रो पड़ी.

‘‘चुप करो. क्या तमाशा बना रखा है. पता नहीं कब तुम लोगों को समझ आएगी? इतने बड़े हो गए हो पर लड़ते बच्चों की तरह हो. और तू भी तो उषा, छोटीछोटी बातों पर रोने लगती है,’’ मां खीज रही थीं. तभी पिताजी ने घर में प्रवेश किया. भाई झट से अंदर खिसक गया. उषा की रोनी सूरत और पत्नी की क्रोधित मुखमुद्रा देख उन्हें आभास हो गया कि भाईबहन में खींचातानी हुई है. अकसर ऐसे मौकों पर उषा रो देती थी. फिर दोचार दिन उस भाई से कटीकटी रहती, बोलचाल बंद रहती. फिर धीरेधीरे सब सामान्य दिखने लगता, लेकिन अंदर ही अंदर उसे अपने तीनों भाइयों से स्नेह होने के बावजूद चिढ़ थी. उन्होंने उसे स्नेह के स्थान पर सदा व्यंग्य, रोब, डांटडपट और जलीकटी बातें ही सुनाई थीं. शायद पिताजी उस का पक्ष ले कर बेटों को नालायक की पदवी भी दे चुके थे. इस के प्रतिक्रियास्वरूप वे उषा को ही आड़े हाथों लेते थे.

‘‘क्या हुआ हमारी बेटी को? जरूर किसी नालायक से झगड़ा हुआ है,’’ पिताजी ने लाड़ दिखाना चाहा. ‘‘कुछ नहीं. आप बीच में मत बोलिए. मैं जो हूं देखने के लिए. बच्चों के झगड़ों में आप क्यों दिलचस्पी लेते हैं?’’ मां बात को बीच में ही खत्म करते हुए बोलीं.

तन्हा वे-भाग 1: पावनी के साथ क्या हुआ था?

फोन रख कर यतिन का मन हुआ कि अब कभी बेटे से मतलब न रखें पर पावनी की ही बात याद आ गई, वह मां थी, अपने बच्चों की एकएक नस जानती थी. वह हमेशा यही कहती थी कि ‘अब बच्चों से कोई उम्मीद मत रखा करो. वे अब बड़े   हो चुके हैं. उन की अब अपनी घरगृहस्थी है. अब उन्हें हमारी नहीं, हमें ही उन की ज़रूरत है. हमें कुछ हो जाए तो उन पर अब कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा. उन्हें तब तक ही पेरैंट्स की ज़रूरत रहती है जब तक वे छोटे होते हैं और उन पर निर्भर करते हैं.’

उन्हें याद आ रहा था कि पावनी की ये बातें सुन कर उन्हें बुरा लगा था, कहा था, ‘ये तुम अपने बच्चों के बारे में मां हो कर भी कैसी बातें कर रही हो? अरे, बस वे व्यस्त हैं, हमें प्यार तो करते ही हैं न.’

पावनी ने भी हंसते हुए कहा था, ‘अगर तुम्हें गलतफहमियों में खुश होना अच्छा  लगता है तो कोई बात नहीं. पर यह सच है कि बच्चों को अब हम से लगाव नहीं रहा. और यह एक हमारे घर की  कहानी नहीं है, आज के समाज की, घरघर की यही बात है.’

‘बच्चों के सामने तो तुम उन से बहुत प्यार से बोलती हो. उन के बारे में पीछे से ये कैसी बातें करती हो?”

‘मां हूं. उन के चेहरे देखते ही उन पर ममता आती है, पर पीछे से अपने पति से अपने मन की बात तो कह ही सकती हूं न. दोनों को समझ गई हूं, बेटा हो या बेटी, दोनों स्वार्थी, लालची हैं, देख लेना. उन से कभी  सेवा की उम्मीद मत करना.’

यतिन को ऐसा लगा जैसे पावनी अभी उन के सामने बैठी यही बातें कह रही हैं, उन्होंने झट से अपनी आंखें खोल दीं. फिर एक ठंडी सांस ली. अब कहां पावनी.

आरोही का फोन आया तो उन का मन तो हुआ कि न उठाएं, पर मन हो रहा था कोई बात भी कर ले. वह कुछ उदास स्वर में बोली, “पापा, सब हो गया?”

“हां.”

“मुझे बहुत अफ़सोस है कि मैं टाइम पर पहुंच नहीं पाई. आई एम सो सौरी, पापा.”

“कोई बात नहीं, उसे जाना था, चली गई,” एक आह के साथ उन के मुंह से निकला.

“जल्दी आऊंगी, पापा, टेक केयर. मेड कब से आ रही है? आप के पड़ोसियों ने आप का ध्यान रखा न?”

“हां,” कहते हुए उन का मन कसैला हो गया. मन तो हुआ कहें, तुम ने बच्चे हो कर क्या कर लिया जो गैरों के बारे में पूछ रहे हो, एक डांट लगाएं पर चुप रहे. पावनी की बात फिर याद आई, कहती थी, ‘बच्चों की बात बुरी भी लगे तो अपना मुंह और आंख बंद कर लो. बच्चों को टोकने, उन की गलतियां बताने का ज़माना नहीं रहा.’ पावनी अपने बच्चों को कितना जानती थी! अगले तीनचार दिन अनिल और विजय यतिन के साथ ही खड़े रहे. कोई आसपास से कभी आ जाता, कभी कोई फोन आ जाता. बच्चे एकदो बार हालचाल पूछ लेते. कौशल्या लौटी तो यह खबर सुन बहुत रोई. पावनी को उस ने बहुत याद किया. फिर यतिन से बोली, “साब, मैं सुबह आ कर सब काम कर दूंगी, शाम को आने को नई होगा. बच्चा लोग छोटा है, उन को भी देखना मंगता है न. आप भाजी ला कर रखना, दोनों टाइम का खाना मैं बना कर जाएगी.” वह करीब 35 साल की  महाराष्ट्रियन नेक  महिला थी. पावनी उसे बहुत पसंद करती थी. फिर उस ने पूछा, “साब, आप का बच्चा लोग नहीं आए?”

यतिन चुप रहे तो उस ने इतना कहा, “अब मैं घर साफ़ कर देती हूं. फिर कुछ खाना बना दूंगी. कपड़े भी धोने हैं?”

“नहीं, वौशिंग मशीन में धो लूंगा,” उन्होंने कह तो दिया पर चौंक गए. उन्होंने तो वौशिंग मशीन कभी चलाई ही नहीं थी. अब? कौशल्या ने कहा, “साब, मैं तीसरे माले पर वौशिंग मशीन चला कर कपड़े भी धोती है, मेरे को  मशीन चलाना आता है, आप को बता दूं?”

“हां, बता दो.”

कौशल्या ने उन्हें समझा दिया कि मशीन कैसे चलेगी. अब उन्होंने अनिल और विजय को बता दिया कि खाना कौशल्या ही बना देगी, अब वे खाना न लाएं.

अजब मृत्यु -भाग 1: चौकीदार ने मुहल्ले वालों को क्या खबर दी

कितनी अजीब बात है न कि किसी की मौत की खबर लोगों में उस के प्रति कुछ तो संवेदना, दया के भाव जगाती है लेकिन जगत नारायण की मौत ने मानो सब को राहत की सांस दे दी थी. अजब मृत्यु थी उस की. पांडवपुरी कालोनी के रैजिडैंस वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष 75 वर्षीय सदानंद दुबेजी नहीं रहे. अचानक दिल का दौरा पड़ने से 2 दिन पहले निधन हो गया. सदा की तरह इस बार भी आयोजित शांतिसभा में पूरी कालोनी जुटी थी. दुबेजी की भलमनसाहत से सभी लोग परिचित थे. सभी एकएक कर के स्टेज पर आते और उन की फोटो पर फूलमाला चढ़ा कर उन के गुणगान में दो शब्द व्यक्त कर रहे थे.

कार्यक्रम समाप्त हुआ, तो सभी चलने को खड़े हुए कि तभी चौकीदार गोपी ने भागते हुए आ कर यह खबर दी कि बी नाइंटी सेवन फ्लैट वाले जगत नारायण 4 बजे नहीं रहे. सभी कदम ठिठक गए. भीड़ में सरगर्मी के साथ सभी चेहरों पर एक राहत की चमक आ गई. ‘‘अरे नहीं, वो नल्ला?’’ ‘‘सच में? क्या बात कर रहे हो.’’ ‘‘ऐसा क्या?’’ सभी तरहतरह से सवाल कर समाचार की प्रामाणिकता पर सत्य की मुहर लगवाना चाह रहे थे. लोगों के चेहरों पर संतोष छलक रहा था. ‘‘हांहां, सही में साब, वहीं से तो लौट रहा हूं. सुबह भाभीजी ने कहा तो भैयाजी लोगों के साथ क्रियाकर्म में गया. सब अभी लौटे हैं, उस ने अपनी चश्मदीद गवाही का पक्का प्रूफ दे दिया.

 

‘‘चलो, अच्छा हुआ. फांस कटी सब की.’’ ‘‘कालोनी की बला टली समझो.’’ ‘‘अपने परिवार वालों की भी नाक में दम कर रखा था कम्बख्त ने, ऐसा कोई आदमी होता है भला?’’ ‘‘तभी उस के परिवार का कोई दिख नहीं रहा यहां, वरना कोई न कोई तो जरूर आता. मानवधर्म और सुखदुख निभाने में उस के घर वाले कभी न चूकते.’’ सभी जगत नारायण से दुखी हृदय आज बेधड़क हो बोल उठे थे. वरना जगत जैसे लड़ाके के सामने कोई हिम्मत न जुटा पाता. अपने खिलाफ कुछ सुन भर लेता, तो खाट ही खड़ी कर देता सब की, उस की पत्नी नम्रता के लाख कहने पर भी वह किसी के मरने के बाद की शोकसभा आदि में कभी नहीं गया. नम्रता और उस के 3 बच्चे जगत से बिलकुल अलग थे. पास ही में अपने परिवार के साथ रहने वाली जगत की जुड़वां बहन कंचन अपने भाई से बिलकुल उलट थी.

अपने पति शील के साथ ऐसे मौके पर जरूर पहुंचती. ननदभाभी की एक ही कालोनी में रहते हुए भी, ऐसे ही कहीं बातें हो पातीं, क्योंकि जगत ने नम्रता को अपने घरवालों से बात करने पर भी पाबंदी लगा रखी थी. कहीं चोरीछिपे दोनों की मुलाकात देख लेता, तो दूर से ही दोनों को गालियां निकालना शुरू कर देता. पिछली बार हीरामल के निधन पर दोनों इकट्ठी हुई थीं. तभी लोगों को हीरामल का एकएक कर गुणगान करते देख नम्रता बोल उठी थी, ‘देख रही हो कंचन, भले आदमी को कितने लोग मरने के बाद भी याद करते हैं. तुम्हारे भैया तो तब भी उन्हें नहीं पूछते, उलटे गालियां ही निकालते हैं, इन के खयाल से तो इन के अलावा सारी दुनिया ही बदमाश है.’

 

‘नम्रता, भाई मत कहो. किसी से उस की बनी भी है आज तक? जब अम्माबाबूजी को नहीं छोड़ा. दोनों को जबान से मारमार कर हौस्पिटल पहुंचा दिया. खून के आंसू रोते थे वे दोनों, इस की वजह से. ‘शिव भैया और हम तीनों बहनें उस की शिकार हैं. समय की मारी तुम जाने कहां से पत्नी बन गई इस की. मैं तुम्हें पहले मिली होती तो तुम्हें इस से शादी के लिए मना ही कर देती. तुम्हारे सज्जन सीधेसादे पिता को इस ने धोखा दे कर तुम जैसी पढ़ीलिखी सिंपल लड़की से ब्याह रचा लिया, कि बस इसे ढोए जा रही हो आज तक. अरे कैंसर कोई पालता थोड़ी है, कटवा दिया जाता है. बच्चे भी कैसे निभा रहे हैं जंगली, घमंडी धोखेबाज बाप से. ‘क्या जिंदगी बना रखी है तुम सब की. कोई सोशललाइफ ही नहीं रहने दी तुम सब की. सब से लड़ाई ही कर डालता है. इस के संपर्क में आया कोई भी ऐसा नहीं होगा जिस से उस की तूतू मैंमैं न हुई हो. सब से पंगा लेना काम है इस का, फिर चाहे बच्चाबूढ़ाजवान कोई भी हो.

जब मरेगा तो कोई कंधा देने को आगे नहीं बढ़ेगा.’ सच ही तो था कामधाम कोई था नहीं उस के पास. फिर भी जाने किस अकड़ में रहता. सब से दोगुना पैसा वापस देने का झांसा दे कर टोपियां पहनाता रहता. वापस मांगने पर झगड़ा करता, मूल भी बड़ी मुश्किल से चुकाता. इसी से कोई भी उसे मुंह नहीं लगाना चाहता. पैसा जब तक कोई देता रहता तो दोस्त, वरना जानी दुश्मन. चाहे बहन की ससुराल का कोई हो, पड़ोसी, रिश्तेदार हो, पत्नी की जानपहचान का हो या बच्चों के फ्रैंड्स के पेरैंट्स. किसी से भी मांगने में उसे कोई झिझक न होती. यहां तक कि सब्जीवाले, प्रैसवाले, कालोनी के चौकीदार के आगे 10-20 रुपए के लिए भी उसे हाथ फैलाने में कोई शर्म न आती. बच्चे उस की हरकत से परेशान थे. नम्रता से कहते, ‘फार्म में पिता के व्यवसाय कालम में हमें यही डालना चाहिए लड़ना, झगड़ना टोपी पहनाना.’ ‘इन के कुहराम जिद और गालीगलौज से परेशान हो इन का झगड़ा सुलटाने चली जाती थी.

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