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धर्म के मामले में कट्टर अनुयायी नुकसान में

धार्मिक कट्टरता व्यक्ति को नुकसान पहुंचाती है. व्यक्ति इन चक्करों में समय और अनापशनाप पैसा बरबाद करता है. इस की जड़ में तमाम धर्म हैं जहां से निकल कर कर्मकांड अंधविश्वास का रूप ले लेते हैं. ऐसे में जरूरी है कि साइंटिफिक टैंपरामैंट बनाया जाए. दिल्ली के बुराड़ी इलाके में घटी ललित भाटिया के परिवार की सामूहिक आत्महत्या का मामला किसे याद नहीं. इस घटना ने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए थे. आखिर महानगर में ठीकठाक खातेपीते परिवार को ऐसा क्या हुआ कि मकान के अंदर परिवार के 11 सदस्यों की लाशें ऐसे टंगी रहीं जैसे छत पर सूखते कपड़े टंगे रहते हैं.

मामला अंधविश्वास का था. मोक्ष के बाद उस कथित भगवान तक पहुंचने का था जिस का डर और लालच दुनियाभर के सभी धर्मों के पंडेपुरोहित अपनेअपने अनुयायियों को बांचा करते हैं. मामला धार्मिक कुरीतियों को कट्टरता से फौलो करने का था. उस सामूहिक आत्महत्या कांड के मास्टरमाइंड ललित की डायरी से तो यही जानने को मिला कि किस तरह पूरा परिवार धार्मिक कर्मकांडों में जकड़ा हुआ था और वह इस कृत्य को भगवान तक पहुंचने का रास्ता मानता था. जिस की प्लानिंग और प्रैक्टिस पूरा परिवार हर रात किया करता था. प्रैक्टिस के दौरान फंदे पर लटकने से पहले पूरा परिवार हवन किया करता था. इस के बाद डायरी में लिखे तरीके के अनुसार फंदों पर लटक जाया करता था. पुलिस के अनुसार ललित की डायरी में लिखा था कि उस के मृतक पिता की आत्मा का परिवार को निर्देश था कि ‘यह भगवान का रास्ता है और जब वे यह कर्मकांड कर रहे होंगे तब मैं (मृतक पिता) खुद प्रकट हो कर सब को बचा लूंगा.’

जाहिर है यह पूरा परिवार अथाह धार्मिक था. ऐसा एकाएक या एक दिन में नहीं हो जाता. इस के लिए दिमाग की ब्रेनवाशिंग जरूरी होती है जो तमाम धर्म के ठेकेदार अपने अनुयायियों को हर रोज बीपी की मैडिसिन की तरह डायरैक्टइनडायरैक्ट दिया करते हैं. जिस पंडे से निर्देश ले कर यह परिवार यह सब कर्मकांड कर रहे थे उसे भी अच्छाखासा दानदक्षिणा देते रहे होंगे. खूब मंदिरों के चक्कर भी काटते रहे होंगे, सालों के अंधविश्वास का जमावड़ा ऐसा हुआ कि इस का अंत इतना डरावना निकल कर सामने आया. अंधविश्वास के फेर में पड़ कर मौत को गले लगा लेना या किसी को मौत के घाट उतार देना, यह कोई पहली घटना नहीं है.

भारत देश में हर समय कोई न कोई इन कर्मकांडों में घुसा हुआ नजर आ जाता है या हर दूसरे दिन अंधविश्वास के चलते ऐसी घटनाएं देखी जाती हैं. धार्मिक नगरी उज्जैन में 2 सगे भाइयों ने 2 साल पहले शिप्रा नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली थी, जिस में से एक मैडिकल की दुकान चलाने वाला प्रवीण चौहान नामक व्यापारी था. इस दौरान उन्होंने एक पत्रिका भी बनाई थी. खुद की कुंडली में प्रवीण प्रधान ने आत्महत्या का योग बताया था. सम?ा जा सकता है कि प्रवीण किस तरह धार्मिक मान्यताओं को मान रहा था. प्रवीण खुद को ज्योतिषाचार्य भी मानता था. प्रवीण की मौत के 2 दिनों बाद उस के छोटे भाई पीयूष चौहान ने भी खुदकुशी कर ली.

इस दौरान पीयूष ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि वह अपनी माता और दादी के पास जा रहा है. अब अगर पीयूष को कोई यह सम?ाता कि मौत के बाद का किसी ने कुछ नहीं देखा, स्वर्गनरक या परलोक में पूर्वजों का होना धर्म के फैलाए कपोलकल्पना के अलावा कुछ नहीं तो वह आत्महत्या न करता. लेकिन कभी तमाम धर्मग्रंथों के सार में यही कुछ देखने को मिलता है कि इस दुनिया के बाद एक पारलौकिक दुनिया है जहां हूरें और अप्सराएं हैं, जहां पापपुण्य का लेखाजोखा है, जहां पूर्वज भी हैं, जिन से मौत के बाद मिला जा सकता है. एक वाक्य में अगर पिरोया जाए तो धर्म ही वह फैक्ट्री है जहां से निकल कर तमाम कर्मकांड अंधविश्वास का रूप ले लेते हैं. जो जितना कम धार्मिक होता है वह उतना ही डर और लालच में अपना जीवन व्यतीत करता है. साथ ही, जो व्यक्ति इन कर्मकांडों और धार्मिक कट्टरता में जितना फंसा रहता है वह अपना और अपने परिवार का उतना ही नुकसान करवा बैठता है जिस का उसे खुद पता नहीं चलता.

कुल देवता को खुश करने के नाम पर उत्तराखंड के पौढ़ी जिले का रहने वाला राजवीर नेगी इस का सटीक उदाहरण है. नयानया फौज से रिटायर हो कर घर आया था. उसे स्किन संबंधी समस्या होने लगी. डाक्टर से उपचार कराने की जगह राजवीर गांव में पंडित के पास चला गया. पंडित ने कहा, ‘कुल देवता नाराज हो गए हैं और उन्हें मनाने के लिए 5 दिन की बड़ी पूजा करवानी पड़ेगी.’ राजवीर धार्मिक था. फौज से कुछ जमापूंजी मिली थी. उस ने सोचा इस विपदा से निबटने का यही एक रास्ता है. बड़ी पूजा करवाने में 8 बकरों की बलि, पूजापाठ का सामान, मेहमानों की खातिरदारी, उन्हें जाते समय उपहार भेंट करना, परिवार समेत हरिद्वार जाना, पंडे की दक्षिणा में नन करतेकरते कोई 3 लाख का खर्चा बैठ गया. इस पूरे कर्मकांड में होनाजाना कुछ नहीं हुआ, उस की स्किन की बीमारी और बिगड़ती चली गई. अंत में शहर के सरकारी अस्पताल आया तो डाक्टर ने स्किन की समस्या बताई.

उसे दवाइयां दीं, जिस से अब थोड़ीबहुत राहत मिलती नजर आ रही है. एक तरफ तो राजवीर दवाइयां ले रहा है, दूसरी तरफ वह यही मान कर बैठा है कि उस की स्किन की समस्या पूजा करने के चलते ठीक हो रही है और देवीदेवता का प्रकोप कम हो रहा है. धार्मिक कट्टरता व्यक्ति का नुकसान करती है. यह सिर्फ अंधविश्वास के चलते ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी असर डालती है. बात जब ऐसे माहौल की हो जहां देश में राजनीति ही वैज्ञानिक और तार्किक न हो कर धार्मिक मामलों को हवा दे तो मामला ज्यादा संगीन हो जाता है. ऐसे में लोग कट्टर सिर्फ इसलिए नहीं बन जाते कि उन्हें अपने धर्म पर अंधश्रद्धा है बल्कि इसलिए भी बन जाते हैं क्योंकि उन्हें दूसरों के धर्मों से नफरत हो चली है और इस का खमियाजा उन्हें जिंदगीभर उठाना भी पड़ जाता है. सोशल मीडिया पर धर्म प्रचार दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाला 25 वर्षीय अनिकेत शर्मा इस की चपेट में है.

अनिकेत शुरू से ही शहर में रहा है. धार्मिक रीतिरिवाज से उस का शुरू में खास लेनादेना नहीं था. अच्छे इंग्लिश स्कृल में पढ़ा. 12वीं से निकलने के बाद मातापिता ने करीब ढाई लाख रुपए खर्च कर उसे एनिमेशन का कोर्स करवाया. डिजिटल दौर की बड़ी दिक्कत यही है कि यह युवाओं को सहूलियत तो दे रही है पर भ्रम का जाल भी खूब डाले हुए है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भरे अनापशनाप धार्मिक प्रचारों और दूसरे धर्म के खिलाफ भरे कंटैंट ने अनिकेत को भी कट्टर बना दिया. वह मानने लगा कि चूंकि देश में उस के धर्म को मानने वाले अनुयायी ज्यादा हैं तो उस के धर्म का राज आना जरूरी है और देश के नियमकानून पौराणिक आधार पर चलने चाहिए.

4 साल पहले कहां एनिमेशन कर किसी कंपनी में नौकरी करने की चाह रखने वाला अनिकेत अब व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया में ट्रोलर बन कर रह गया है. वह जबतब उन मैसेजों को फौरवर्ड करता रहता है जो भ्रामक हैं. वह उन तमाम ग्रुपों से जुड़ गया है जिन में एक धर्म की प्रशंसा दिनरात होती है और दूसरे धर्म को खूब कोसा जाता है. अनिकेत अपना ज्यादातर समय ट्रोलबाजी में बिताता है. उसे हर वह व्यक्ति देशद्रोही दिखने लगा है जो धार्मिक कुरीतियों का आलोचक है. इस कारण हुआ यह कि जो भी दोस्त कुछ रैशनल और तार्किक बात करता है वह उन से ?ागड़ा कर बैठता है. उस के दोस्त उसे रूढि़वादी मानने लगे हैं क्योंकि वह हर बात पर सोशल मीडिया से फैलाए जा रहे कुतर्कों का हवाला देता है. ऊपर से जब से वह इलाके में ऐक्टिव हुए धार्मिक संगठन से जुड़ गया है, अपना अधिकतर समय वह उस संगठन के लिए दरी उठाने, चंदा बटोरने और प्रचार करने में बिताता है.

ऐसे कट्टर आज भरे पड़े हैं. शाहीन बाग आंदोलन के समय ऐसे वाकए घटे जहां एक पक्ष के कट्टर युवा बंदूक ले कर आंदोलन कर रही महिलाओं को मारने निकल पड़े. वे अपने जीवन को बेहतर बनाने की जगह नफरत से भर गए हैं. नफरत का पागलपन राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या बताती है कि इस नफरत का अंजाम मानव को कहां तक ले कर जाता है. वह किस हद तक पागलपन की हद पार कर लेता है. इसी तरह आज जहां व्यक्ति को साइंटिफिक टैंपरामैंट का होना चाहिए, वहां वह धार्मिक मकड़जालों में फंस कर अपने जीवन को तहसनहस कर रहा है. यह एक तथ्य है जिसे नकारना आज मंदिरमसजिदों में बैठे पंडोंमौलवियों के लिए भी नकारना मुश्किल हो जाएगा कि विज्ञान के बिना इंसानी जीवन आदिकाल में पत्ते लपेटे व्यक्ति से ज्यादा कुछ नहीं. क्योंकि वह पंडामौलवी खुद विज्ञान से मिले संसाधनों का भोग कर रहा है.

आज सुबह उठते वे अलार्म क्लौक, पानी गरम करने वाले गीजर, खाना हैल्दी रखने वाले फ्रिज, सड़क पर चलने वाली गाडि़यों, मोबाइल, लैपटौप, इंटरनैट आदि के इर्दगिर्द ही तो घूमते दिखाई देते हैं और यह सब विज्ञान के बिना क्या संभव है? ऐसे ही बिहार के समस्तीपुर का रहने वाला 33 वर्षीय अमन ?ारोज विज्ञान की इन तकनीकों से अवगत होता है, इन्हें सम?ाताजानता भी है क्योंकि वह अपना सारा वर्क फ्रौम होम करते लैपटौप और इंटरनैट के माध्यम से ही करता है. लौकडाउन में उस का घर सिर्फ चल पाया तो इसलिए कि उस की कंपनी ने घर से काम करने की सहूलियत वहां के कर्मचारियों को दे रखी थी और उस की नौकरी बच पाई पर इस के बावजूद अमन धार्मिक कट्टरता से भी घिरा हुआ है. हाल ही में अमन ने 50 लाख रुपए का बनाबनाया मकान दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में लिया. पंडित से घर का मुहूर्त निकलवाने गया तो पंडित ने घर के वास्तुदोष खराब होने का वहम उस के दिमाग में डाल दिया.

चूंकि जिस से उस ने मकान लिया था उस व्यक्ति के मातापिता की मौत कोरोनाकाल में हो गई थी. अमन परेशान हुआ तो उस ने घर को फिर से रीडिजाइन करवाया. किचन और बैडरूम की दिशा को बदला. इस से हुआ कुछ नहीं. बस, पंडित की जेब गरम हुई और मकान बनाने वाले ठेकेदार को काम मिल गया पर अमन, जिस ने रातदिन खट कर पैसे जोड़े, के 8 लाख रुपए खर्च हो गए. इस के बाद गृहप्रवेश हुआ तो उस का खर्चा अलग उसे करना पड़ा. अब अमन को कौन सम?ाए कि कोरोनाकाल में अस्पतालों की कमी और अस्पतालों में औक्सीजन की कमी से यह सब हुआ. इस में घर के वास्तु का मामला ही नहीं था, इस में तो स्टेट की असफलता थी कि वह कोरोनाकाल को ठीक से संभाल नहीं पाया और लाखों लोगों की मौत हो गई.

धर्मस्थलों से फैला कोरोना आज यह जगजाहिर है कि कोरोना के समय पूरी दुनिया में सभी धर्मस्थलों को बंद किया गया क्योंकि यहीं से कोरोना के फैलने का अधिक खतरा बन रहा था चाहे वह मक्कामदीना हो, यरूशलम हो या सोमनाथ मंदिर हो. वहीं इंसानी जानों को बचाने के लिए अस्पतालों को तो खोला ही गया, साथ ही, नए अस्पतालों को बनाने की मुहिम चली. उस के बावजूद लोग अपनी प्राथमिकताओं को अभी तक नहीं सम?ा पाए. आज समस्या यह है कि देश में धर्म के चलते लोग कर्मों पर भरोसा कम और काल्पनिक भाग्य पर भरोसा ज्यादा करने लगे हैं. ज्योतिषी और लाल किताब का प्रचलन बढ़ने लगा है. अब तो लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए टैरो कार्ड और न जाने कौनकौन सी ज्योतिषी विद्या का प्रचलन बढ़ चला है. क्या ये उदाहरण काफी नहीं कि देश में कई धार्मिक बाबा महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों में जेल की सजा काट रहे हैं?

क्या यह उदाहरण काफी नहीं कि कई ऐसे हैं जो धर्म का मंचन रोज कर रहे हैं पर दानदक्षिणा के नाम पर सोने की गद्दी पर बैठे हुए हैं वे राजनीति में अपनी पकड़ भी जमाए हुए हैं और व्यापार कर अपना सामान भी बेच रहे हैं? आज धर्म के इसी डर के चलते अंगूठा शास्त्र, राशियां, कुंडलियां वाली भविष्य बताओ योजनाएं बांटी जा रही हैं. ये भविष्य सुधारने की बातें कर रहे हैं और लोग इन की शरण में जा कर अपनी संपत्ति लुटाए फिर रहे हैं. ऐसे लाखों लुटेरे पैदा हो गए हैं जो लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं. यह हो ही इसलिए रहा है क्योंकि लोग ऐसा होने दे रहे हैं.

इस चक्कर में हो यह रहा है कि कट्टर लोग डरेसहमे हुए हैं. अगर बिल्ली रास्ता काट जाए तो वे घबरा जाते हैं, चप्पल उलटी हो जाए तो घबरा जाते हैं, किसी को मिर्गी हो जाए तो उसे डाक्टर के पास ले जाने की जगह जूता सुंघाया जाता है, रात में बुरा सपना आए तो सुबह पंडे के पास हो आते हैं, कहीं जाते समय कोई पीछे से टोक दे तो नाराज हो जाते हैं, पीपल के पेड़ पर भूत मानने लगते हैं, मंगलवार को बाल कटवाने से घबराते हैं, सूर्यास्त के बाद ?ाड़ू लगाने से डरते हैं, चौराहे पर नीबूमिर्ची रख आते हैं, कई तरह की अंगूठियां, गंडातावीज पहन कर वे घूम रहे हैं. कट्टर व्यक्ति हर समय किसी न किसी डर में रहता ही है. वह जीवन को जी नहीं रहा होता, बल्कि ढो रहा होता है. वह ऐसा कर न सिर्फ खुद को रोकताटोकता है बल्कि वह मानता है कि घर में जो महिला जोरजोर से हंसती है वह अशुभ होता है. ऐसा कर वह दूसरे पर भी नियंत्रण रखने की कोशिश करता है.

एक युग-भाग 1: सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?

‘‘कहो सुषमा, तुम्हारे ‘वे’ कहां हैं? दिखाई नहीं दे रहे, क्या अभी अंदर ही हैं?’’

‘‘नहीं यार, मैं अकेली ही आई हूं. उन्हें फुरसत कहां?’’

‘‘आहें क्यों भर रही है, क्या अभी से यह नौबत आ गई कि तुझे अकेले ही फिल्म देखने आना पड़ता है? क्या कोई चक्करवक्कर है? मुझे तो तेरी सूरत से दाल में काला नजर आ रहा है.’’

‘‘नहीं री, यही तो रोना है कि कोई चक्करवक्कर नहीं. वे ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘तो फिर कैसे हैं? मैं भी तो जरा सुनूं जो मेरी सहेली को अकेले ही फिल्म देखने की जरूरत पड़ गई.’’

‘‘वे कहीं अपनी मां की नब्ज पकड़े बैठे होंगे.’’

‘‘तेरी सास अस्पताल में हैं और तू यहां? पूरी बात तो बता कि क्या हुआ?’’

‘‘जया, चलो किसी पार्क में चल कर बैठते हैं. मैं तो खुद ही तेरे पास आने वाली थी. इन 3-4 महीनों में मेरे साथ जो कुछ गुजर गया, वह सब कैसे हो गया. मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता,’’ कहते हुए सुषमा सिसक पड़ी.

‘‘अरे, तू इतनी परेशान रही और मुझे खबर तक नहीं. ब्याह के बाद तू इतनी बदल जाएगी, इस की तो मुझे आशा ही नहीं थी. जिंदगीभर दोस्ती निभाने का वादा इसी मुंह से किया करती थी?’’ सुषमा की ठोड़ी ऊपर उठाते हुए जया ने कहा, ‘‘मैं तो तेरे पास नहीं आई क्योंकि मैं समझ रही थी कि तू अपनी ससुराल जा कर मुझे भूल ही गई होगी. पर तू चिंता मत कर, मुझे पूरी बात तो बता. मैं अभी कोई न कोई हल निकालने का प्रयास करूंगी, उसी तरह जैसे मैं ने तुझे और पंकज को मिलाने का रास्ता निकाल लिया था.’’

अपनी इस प्यारी सहेली को पा कर सुषमा ने आपबीती बता कर मन का सारा बोझ हलका कर लिया.

पार्वती के पति 10 वर्ष पहले लकवा के शिकार हो कर बिस्तर से लग गए थे. इन 10 वर्षों में उस ने बड़े दुख झेले थे. उस के पति सरकारी नौकरी में थे. अत: उन्हें थोड़ी सी पैंशन मिलती थी. पार्वती ने किसी तरह स्कूल में शिक्षिका बन कर बच्चों के खानेपीने और पढ़नेलिखने का खर्च जुटाया था. 2 जोड़ी कपड़ों से अधिक कपड़े कभी किसी के लिए नहीं जुट पाए थे.

उस पर इकलौते बेटे पंकज को पार्वती इंजीनियर बनाना चाहती थी. गांव की थोड़ी सी जमीन थी, वह भी उन्हें अपनी चाह के लिए बेच देनी पड़ी. एकएक दिन कर के उन्होंने पंकज के पढ़लिख कर इंजीनियर बन जाने का इंतजार किया था. बड़ी प्रतीक्षा के बाद वह सुखद समय आया जब पंकज सरकारी नौकरी में आ गया.

पंकज के नौकरी में आते ही उस के लिए रिश्तों की भीड़ लग गई. उस भीड़ में न भटक कर उन्होंने अपने बेटे के लिए बेटे की ही पसंद की एक संपन्न घर की प्यारी सी बहू ढूंढ़ ली. सुषमा बहू बन कर उन के घर आई तो बरसों बाद घर में पहली बार खुशियों की एक बाढ़ सी आ गई.

पार्वती ने बहू को बड़े लाड़प्यार से अपने सीने से लगा लिया. छुट्टी खत्म होने पर पंकज ने सुषमा से कहा, ‘‘सुमी, मां ने बहुत दुख झेले हैं. तुम थोड़े दिन उन के पास रह कर उन का मन भर दो. मैं हर सप्ताह आता रहूंगा. घर मिलते ही तुम्हें अपने साथ ले चलूंगा.’’

पंकज की बहनें दिनभर सुषमा को घेरे रहतीं. वे उसे घर का कोई भी काम न करने देतीं. सुषमा उन की प्यारी भाभी जो थी. सुषमा को प्यास भी लगती तो उस की कोई न कोई ननद उस के लिए पानी लेने दौड़ पड़ती.

पार्वती के तो कलेजे का टुकड़ा ही थी सुषमा. उस के आने से पूरा घर खुशी से जगमगा उठा. पार्वती उसे प्यार से ‘चांदनी’ कहने लगी. सुषमा के सिर में दर्द भी होता तो वे तुरंत बाम ले कर दौड़ पड़तीं.

धीरेधीरे पंकज के विवाह को 2 महीने बीत गए थे. इस बार जब पंकज घर आया तो सुषमा ने कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी. अब मुझे यहां अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘बस, अगले महीने ही तो घर मिल जाएगा, मैं ने तुम्हें बताया तो था…फिर तुम्हें यहां कौन छोड़ जाएगा?’’

‘‘तो तब तक हम लोग अपने पिताजी के घर रह लेंगे. मां और पिताजी कितने खुश होंगे. इतना बड़ा बंगला है.’’

‘‘नहीं सुषमा, मैं घरजमाई बन कर नहीं रह सकता. यह मुझ से नहीं होगा. यह मैं ने तुम से पहले भी कह दिया था कि मुझ से कभी इस तरह की जिद न करना.’’

लेखिका- शारदा त्रिवेदी

जिंदगी की राह-भाग 3: रंजना और दीपक से क्यों दूर हो गई दीप्ति?

सवालों की बौछार तले से निकलना उसे खूब आता था. तुरंत अपनी गलती मान ली, ‘‘सौरी, सौरी, माई डियर फ्रैंड, मैं ने तुझे जानबूझ कर नहीं बताया था. मुझे लगा कि वह मुझे ढूंढ़ता हुआ अगर कालोनी में आ गया, तो तू कहीं उसे मेरा पता न बता दे.

‘‘मुझे पता है, तू नहीं चाहती थी कि मैं उस से दूर भाग जाऊं.‘‘

“फिर दीपक ने तुझे कैसे खोज लिया? और दीपक को ले कर तेरे सारे डर…? उन का क्या हुआ?‘‘ आधी कहानी तो मुझे पहले ही पता लग चुकी थी.

“अब मैं तुझे कैसे बताऊं कि वह कितना गुस्सा हुआ था कि मैं ने उसे अपने आपरेशन और बाद में लकवे के बारे में कुछ नहीं बताया था. 3-4 महीने से कोई बात नहीं होने से वह बहुत परेशान हो गया था. इंडिया लौट कर उस ने पहला काम किया कि मेरे पुराने घर गया. वहां मेरे बारे में कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. अगले दिन वह मेरे दफ्तर गया और वहां से मेरी नई पोस्टिंग मालूम कर के सीधा मुंबई मेरे घर पहुंच गया. रात के साढ़े 12 बजे, घंटी की आवाज सुन कर पहले तो मैं डर गई. झांक कर देखा तो दीपक खड़ा था.

”दरवाजा खोलने के अलावा मेरे पास कोई और चारा नहीं था. पहले तो उस ने इतना गुस्सा किया कि मैं उस से क्यों भाग रही थी? फिर मेरे आपरेशन के बारे में सारी बातें पूछीं? और जब मैं ने उस से कहा कि उसे किसी और से शादी कर लेनी चाहिए, तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया.‘‘

“अच्छा… क्या बोला?” मैं विस्मयपूर्वक उसे देख रही थी.

“वह कहने लगा, अच्छा अगर मुझे कुछ ऐसा हो जाता तो तुम मुझे छोड़ जातीं? और अगर शादी के बाद ऐसा कुछ हो जाता तो क्या तुम मुझे तलाक दे देतीं? पागल लड़की, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगा?”

‘‘हम सारी रात बहस करते रहे और सुबह उस ने कहा, ‘मैं नाश्ता बनाता हूं, तुम नहाधो कर तैयार हो जाओ. हम आज ही कोर्ट में शादी करने जा रहे हैं. और ऐसे हमारी शादी हो गई’.‘‘

दीप्ति के चेहरे पर वही हजार वाट बल्ब वाली मुसकराहट वापस आ गई थी. मैं ने अचानक नोटिस किया कि उस के चेहरे पर लकवे का तो नामोनिशां भी नहीं था, ना आंख सिली हुई थी और न ही वह सब छिपाने वाला बड़ा सा काला चश्मा था.

“और वो लकवा…? आंख? काला चश्मा?‘‘ मुझे समझ नहीं आया कैसे और क्या पूछूं.

“अरे, दुनिया में बड़े अजूबे होते हैं. ऐसा ही मेरे साथ हुआ. एक वर्ष बाद मेरे चेहरे का लकवा अपनेआप ठीक हो गया. दीपक कहता है उस ने मुझे हंसाहंसा कर कटी हुई नर्व को फिर से जोड़ दिया और डाक्टर कहता है, कभीकभी ऐसा हो जाता है. कहते हैं ना कि सारी बीमारियों का इलाज बस प्यार ही तो है,‘‘ कह कर दीप्ति बहुत जोर से हंस पड़ी, वही पुरानी संक्रामक हंसी. उस के डिंपल फिर वैसे ही गहरा गए.

अचानक पब्लिक एड्रैस सिस्टम पर उस का नाम पुकारा जाने लगा, ‘‘अंतिम काल. श्रीमती दीप्ति जोशी, जो अहमदाबाद से मुंबई जा रही हैं, कृपया विमान की ओर तुरंत प्रस्थान करें.‘‘

आवाज सुन कर दीप्ति ने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और तेजी से प्रस्थान की ओर भागने लगी.

कुछ कदम जा कर उस ने मुड़ कर देखा, हाथ हिलाया और वहीं से चिल्लाई, ‘‘मैं मुंबई जा कर तुझे मैसेज करूंगी. हम फिर मिलेंगे. तेरा फोन नंबर बदला तो नहीं है ना?‘‘

और एक बार फिर दीप्ति भीड़ में गायब हो गई. मुझे खुशी थी कि उस की जिंदगी का वह दुखद अध्याय समाप्त हुआ और उस की जिंदगी में एक बार फिर खुशी की लहर आ गई थी.

वह सामने हवाईजहाज की सीढ़ियां चढ़ रही थी और मेरी आंखें खुशी से नम हो रही थीं. जिंदगी की राह भी कितनी अजीब होती है? हम उसे अपने हिसाब से कितना भी मोड़ने की कोशिश करें, वह हमें अपने अनुसार ही चलाती है. नियति मनुष्य के वश में है या मनुष्य नियति के? पर मैं तो बस यही सोच रही हूं कि क्या इस बार उस का फोन आएगा?

पश्चाताप-भाग 1: क्या जेठानी के व्यवहार को सहन कर पाई कुसुम?

उर्मिला देवी बाथरूम में बेसुध पड़ी थीं. शाम में छोटी बहू कुसुम औफिस से आई और सास के कमरे में चाय ले कर गई तो देखा कि वे बेहोश हैं. कुसुम घबरा गई. तुरंत पति को फोन किया. पति और जेठ दौड़ेदौङे आए.

“जरूर दोपहर में नहाते वक्त मां का पैर फिसल गया होगा और सिर लोहे के नल से टकरा गया होगा,” छोटे बेटे ने कहा.

“पर अभी सांस चल रही है. जल्दी चलो अमन, हम मां को बचा सकते हैं. कुसुम तुम जा कर जरा ऐंबुलैंस वाले को फोन करो. तब तक हम मां को बिस्तर पर लिटाते हैं.”

“हां मैं अभी फोन करती हूं,” घबराई हुई कुसुम ने तुरंत ऐंबुलैंस वाले को काल किया.

आननफानन में मां को पास के सिटी हौस्पिटल ले जाया गया. उन्हें तुरंत इमरजैंसी में ऐडमिट कर लिया गया. ब्रैन हेमरेज का केस था. मां को वैंटीलेटर पर आईसीयू में रखा गया. तब तक बड़ी बहू मधु भी औफिस से अस्पताल आ गई. उस के दोनों लड़के ट्यूशन के बाद घर पहुंच गए थे.

कुसुम की बिटिया मां के साथ ही हौस्पिटल में थी. सबकुछ इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ सोचने का अवसर ही नहीं मिला था.

आज से करीब 20 साल पहले उर्मिलाजी पति कुंदनलाल और 2 बेटों के साथ इस शहर में आई थीं. उन्होंने कामिनी कुंज कालोनी में अपना घर खरीदा था. यह एक पौश कालोनी थी. आसपड़ोस भी अच्छा था. जिंदगी सुकून से गुजर रही थी. पर करीब 15 साल पहले कुंदनलाल नहीं रहे. तब उर्मिलाजी ने बखूबी अपना दायित्व निभाया. दोनों बेटों को अच्छी शिक्षा दिलाई. वे खुद सरकारी नौकरी में थीं. पैसों की कमी नहीं थी. उन्होंने घर को बड़ा करवाया. 2 फ्लोर और बनवा लिए. फिर अच्छे घरों में बेटों की शादी करा दी.

बेटों की शादी के बाद ग्राउंड फ्लोर में वे अकेली रहने लगीं. ऊपर के दोनों फ्लोर में उन के दोनों बेटे अपने परिवार के साथ रहते. बेटेबहू मां का पूरा खयाल रखते. खासकर छोटी बहू कुसुम सास का ज्यादा ही खयाल रखती. वह फर्स्ट फ्लोर पर रहती थी. सो फटाफट चायनाश्ता, खाना आदि बना कर सास को दे आती. शाम को बड़ी बहू के दोनों बेटे भी आ कर दादी के पास ही खेलने लगते और चाची के हाथ के बने स्नैक्स का मजा लेते.

2 साल पहले दोनों बेटों ने अपना नया स्टार्टअप शुरू किया था. दोनों इस पर काफी मेहनत कर रहे थे. दोनों बहुएं काम पर जाती थीं. इसलिए दिनभर घर से बाहर रहतीं. रिटायरमैंट के बाद उर्मिला देवी पीछे से उन के बच्चों का पूरा खयाल रखतीं. खासकर छोटी बहू की बिटिया तो उन की गोद में ही बड़ी हुई थी.

हादसे के बाद पूरा परिवार स्तब्ध था. 3-4 दिन उर्मिलाजी अस्पताल में ही रहीं. पूरे परिवार की रूटीन बदल गई. उर्मिलाजी घर में होती थीं तो सब कुछ कायदे से चलता था. दोनों बहुओं को बच्चों की चिंता नहीं रहती थी. बच्चे स्कूल और ट्यूशन से जल्दी भी आ जाते तो तुरंत दादी के पास पहुंच जाते. घर में किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती थी. दादी हमेशा सब के लिए हाजिर रहतीं. पर आज दादी ही परेशानी में थीं तो जाहिर है पूरा परिवार परेशान था.

चौथे दिन डाक्टर ने आ कर सौरी कह दिया. उर्मिलाजी बच नहीं सकीं. 2-3 दिन तक घर में मातम पसरा रहा. दूरदूर से रिश्तेदार आए थे. धीरेधीरे सब चले गए. फिर शुरुआत हुई एक खास मसले पर बहस की. मसला था जायदाद का बंटवारा. मां ने कोई वसीयत जो नहीं छोड़ी थी.

तुनीषा शर्मा के बर्थ डे पर फलक नाज ने लिखा इमोशनल पोस्ट

टीवी एक्ट्रेस तुनीषा शर्मा का आज बर्थ एनीवर्सरी है, एक्ट्रेस ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी 12 दिन पहले उन्होंने आत्महत्या कर लिया था. इनकी आत्महत्या से टीवी इंडस्ट्री में खलबली मच गई थी. 24 दिसंबर को तुनीषा शर्मा ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी.

तुनीषा शर्मा की उम्र अभी 20 साल थी. तुनीषा शर्मा की मौत के बाद उनकी मां ने शीजान पर आत्महत्या का आरोप लगाया था. जिसके बाद से शीजान पुलिस कस्टडी में है. वहीं शीजान खान की बहन फलक नाज ने तुनीषा के बर्थ डे पर एक पोस्ट शेयर किया है जिसमें उन्होंने तुनीषा को याद किया है.

 

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अदाकारा फलक नाज ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है टुनु मेरा बच्चा मैं तुम्हें ऐसे बर्थ डे विश करूंगी कभी सोचा नहीं था. तु जानती थी कि अप्पी ने प्लान किया है तेरे लिए सरप्राइज. मैं तुम्हें प्यारी प्रिसेंस वाली ड्रेस में देखना चाहती थी.

मैं तुम्हें तैयार करवाती केक बनवाती , तेरा वो सरप्राइजz चेहरा देखना था मुझे, तू जानता है टूनू तू मेरे लिए क्या मायने रखती थी. आगे फलक ने लिखा कि दिल टूटा हुआ है मेरा इतनी तकलीफ कभी नहीं हुईं जितनी तेरे जाने के बाद हुई है. कभी -कभी समझ नहीं आता है कि मैं किसके लिए दुआ करूं . मुझे पता है कि तुम मेरे पास नहीं है लेकिन फिर भी तुम मेरे आस पास ही रहेगी.तू मेरी नन्ही सी जान है मेरा बच्चा नहीं.

अजब मृत्यु -भाग 2: चौकीदार ने मुहल्ले वालों को क्या खबर दी

पर अब तो तय कर लिया, कोई इन्हें पीटे, तो भी नहीं जाऊंगी,’ नम्रता ने कहा. ‘बिलकुल ठीक, न इस के साथ जाने की जरूरत है न कोईर् पैसा देने की. झूठा एक नंबर का. गाता फिरता है कि कंपनी में इंजीनियर था, पैसा नहीं दिया उन लोगों ने तो उन की नौकरी को लात मार के चला आया. कहां का इंजीनियर, बड़ी मुश्किल से 12वीं पास की थी. अम्मा ने किसी तरह सिफारिश कर इसे कालेज में ऐडमिशन दिलाया था. 6 महीने में ही भाग छूटा वहां से, पर इस के सामने कौन कुछ कहे. सड़क पर ही लड़ने बैठ जाएगा. दिमाग का शातिर और गजब का आत्मविश्वासी. ‘देखदेख कर ठेकेदारी के गुर सीख गया. अपने को इंजीनियर बता कर ठेके पर काम हथिया लेता पर खुद की घपलेबाजी के चलते मेजर पेमेंट अटक जाती. फिर उन्हें गालियां बकता फिरता, ‘छोड़ूंगा नहीं सालों को, सीबीआई, कोर्ट, पुलिस सब में मेरी पहचान है. गौड कैन नौट बी चीटेड, उस का पसंदीदा डायलौग. पर सब से बड़ा चीटर तो वह खुद है. हम बहनें तो 10 सालों से इसे राखी तक नहीं बांधतीं, भैया दूज का टीका तो दूर की बात. तुम ने तो देखा ही है. ‘अरे उधर देखो नम्रता, वहां बैठा जगत कुछ खा रहा था. कोई मरे चाहे जिए, जन्म का भुक्खड़. फिर हमें साथ देख लिया तो हम दोनों की शामत. लड़ने ससुराल तक पहुंच जाएगा, नजरें बहुत तेज हैं शैतान की.

चलो बाय.’ कंचन कह कर चली गई थी. नम्रता और कंचन के इस वार्त्तालाप को अभी महीनाभर ही तो हुआ होगा कि कंचन के जगत के प्रति कहे हृदय उद्गार लोगों के मुख से सही में श्रद्धांजलि सुमन के रूप में निकल रहे थे. ‘‘हां भई, हां, सही खबर है. आज सुबह तड़के ही उस नामुराद, नामाकूल जगत ने आखिरी सांस छोड़ी. बड़ा बेवकूफ बनाया था उस ने सब को,’’ सिद्दीकी साहब ने यह कहा तो ललितजी मजे लेते हुए बोल उठे, ‘‘चलो अच्छा हुआ, बड़ा कहता फिरता था ब्रह्म मुहूर्त में पैदा हुआ हूं, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. ब्रह्म मुहूर्त ने ही उसे मार डाला.’’ ‘‘कलेजे विच ठंड पै गई, मैनु इत्ता दुखी कीता इत्ता कि पुच्छो न. साडे वास्ते तो वडी चंगी गल हैगी,’’ गुरमीत साहब मुसकरा पड़े. जगत के घर से तीसरे घर में रहने वाले मिस्टर गौरव हैरान थे, बताने लगे, ‘‘अरे, कल ही तो शाम को देखा था उसे, गालियां निकालते, लंगड़ाते हुए अपने गेट में घुस रहा था. आंखों के नीचे बड़े काले निशान देख कर लग रहा था कि फिर कहीं से पिट कर आया है. उस की हालत देख कर मुझे हंसी आ रही थी, लेकिन कैसे पूछे कोई, कौन मुंह लगे, सोच मैं अंदर हो लिया.’’ ‘‘समझ नहीं आ रहा परिवार वालों को शोक संवदेना दें या बधाई,’

’ गणेश मुसकराते हुए बोले थे. ‘‘अजब संयोग हुआ, कहां नम्रता बिटिया कालेज की लैक्चरार, इतनी पढ़ीलिखी, समझदार, एक संभ्रांत परिवार से और कहां यह स्वभाव से उद्दंड, गंवार. जगत लगता ही नहीं था उस का पति किसी भी ऐंगल से. बिटिया के मांबाप तो पहले ही इस गम में चल बसे.’’ ‘‘नम्रता बहन की वजह से तीनों बच्चे पढ़ाई के साथसाथ संस्कारों में भी अच्छे निकल गए. बेटी स्टेट बैंक में पीओ हो गई, बेटा आस्तिक आईएस में सलैक्ट हो कर ट्रेनिंग पर जा रहा है, छोटी बेटी आराध्या बीटेक के आखिरी साल में पहुंच गई है,’’ ललितजी बोले थे. ‘‘बगैर उचित सुखसुविधाओं के, उस के आएदिन कुहराम के बीच बच्चों की मेहनत, काबिलीयत और नम्रता भाभी की मेहनत का फल है. वरना उस ने तो अपनी तरफ से बच्चे को लफडि़या बनाने में कोई कसर न छोड़ी थी, पढ़ने नहीं देता उन को. कहता, इतना दिमाग खपाने की क्या जरूरत है, पैसे दे कर आराम से पास करा दूंगा,’’ गौरव ने टिप्पणी की. ‘‘वह तो कहो बापदादा का घर है, वरना तो जो कमाई बताता वह उस की लड़ाई के मारे हमेशा अटकी ही पड़ी रही.

परिवार को सड़क पर ही ले आता. बिटिया और बच्चों ने बड़ी ज्यादती बरदाश्त की इस की. अच्छा हुआ गया. बेचारों को चैन की सांस तो आएगी,’’ कह कर गणेश मुसकराए. ‘‘इसलिए, अब तय रहा शोकसंवेदना का कोई औचित्य नहीं. हम सब एकत्रित जरूर हैं लेकिन उस के प्रति अपनीअपनी भड़ास निकालने के लिए,’’ कह कर सोमनाथ मुसकराए थे. ‘‘अंकल, आप वहीं से बैठेबैठे कुछ बोलिए, जगत के पिता आप के अच्छे मित्रों में से थे,’’ सोमनाथ मिस्टर अखिलेश के पास अपना माइक ले आए थे. ‘‘अरे, जब वह छोटा था तब भी सब की नाक में दम कर रखा था उस ने. स्कूल, कालोनी में अकसर मारपिटाई कर के चला आता. टीचरों से भी पंगे लेता. कभी उन के बालों में च्यूइंगम तो कभी सीट पर उलटी कील ठोंक आता. उस से बेहद तंग आ कर पिता बद्री नारायण अपनी कच्ची गृहस्थी छोड़ कर चल बसे. पर 10-12 साल के जगत को कोई दर्द नहीं, उलटे सब से बोलता फिरता, ‘मर गए न, बड़ा टोकते थे खेलने से रोकेंगे और मना करें.’ एक साहित्यकार के बेटे ने जाने कहां से ये शब्द सीख लिए थे. ‘‘गुस्से के मारे उन की अंतिम विदाई में उन्हें अंतिम समय देखा तक नहीं और अंदर ही बैठा रहा, बाहर ही नहीं आया.

तन्हा वे-भाग 2: पावनी के साथ क्या हुआ था?

कौशल्या जब चली गई तो वे चुपचाप बेड पर जा कर लेट गए… कैसे जिएंगें अकेले. बड़ा मुश्किल लग रहा है. अभी तो चार दिन ही हुए हैं, पता नहीं कितना जीना है. वे इस समय हर चीज़ से बेखबर अपने दुख में खोए रहे. अपने अंदर से बाहर आती गहरी सांसों की आवाज़ सुनते रहे. पत्नी के न रहने पर घर ऐसा हो जाता है, कभी सोचा नहीं था. इतना निर्जीव, इतना बेरौनक, चुप सा घर. उन्होंने अपना फोन उठाया और उस में अपनी और पावनी की फोटो देखते रहे, रोते रहे.

आखिरकार तेजस, दीवा बेटे इवान के साथ और आरोही उमंग व बेटी नायरा के साथ आ ही गए. सब आ कर रोने लगे. उन के गले लग कर तेजस और आरोही सिसकते रहे. यतिन शांत रहे, चुप रहे. कौशल्या ने आ कर रोज़ की तरह सब काम संभाल लिया तो आरोही और दीवा ने चैन की सांस ली कि जब तक रहेंगे, उन के सिर पर काम नहीं आएगा. सब का ध्यान इस बात पर था कि यतिन चुपचाप अपनेआप को अकेले रहने के लिए तैयार कर चुके हैं या नहीं. कहीं पिता की  जिम्मेदारी किसी के सिर तो नहीं आने वाली. जब देखा कि यतिन खुद को संभाल चुके हैं तो 3 दिनों में पूरी औपचारिकता निभा कर बच्चे चले गए. उस के बाद फोन पर संपर्क बना रहता. पावनी के सामने कौशल्या सिर्फ झाड़ूपोंछा और बरतन ही किया करती  थी, बाकी सब चीजें पावनी खुद किया करती  थीं.  अब यतिन ने उस से जब कहा, ”सुबह मेरे लिए थोड़ा नाश्ता, खाना रोज़ बना कर रख जाया करो तो उस ने थोड़ा संकोच के साथ कहा, “साब, खाना बनाने का पैसा आप मेरे को  तीन हजार दे देना, औरों से तो मैं चारपांच हज़ार लेती.”

यतिन चौंके, “तीन हज़ार? दो रोटी सुबह, दो रोटी शाम को खाता हूं. कभी खिचड़ी खा लूंगा, कभी चावल. इतना तो मैं नहीं दे पाऊंगा. रहने दो, मैं देख लूंगा.”

कौशल्या चुपचाप दूसरे काम करने लगी. उस ने फिर कहा, “क्या करे साब, बहुत महंगाई है, टाइम जाता है.”

उन्हें फिर पावनी की बात याद आई, कहती थीं, ‘आजकल ऐसा  समय आ गया है कि मेड को भले ही फालतू पैसे दे कर ज़रूरत पड़ने पर काम करवा लो, बच्चों के भरोसे न बैठो. ये तो पैसे ले कर काम कर भी देंगी, बच्चे आसानी से नहीं काम आने वाले.” यही सोच कर उन्होंने कौशल्या की बात का बुरा नहीं माना. जाने दो, कभी ज़रूरत होगी तो हो सकता है इसी से काम करवाना पड़े.

पावनी थी तो घर में उन्होंने कभी धूल नहीं देखी थी. घर हर समय चमकता था. अब सुबह डस्टिंग करते तो शाम को देखते, टेबल पर फिर धूल जम गई. खाना कभी बनाया था नहीं. अब बनाने जाते तो देखते कभी कुछ ख़त्म है, कभी कुछ. कभी भूख तेज़ लगी होती और कुछ समझ न आता क्या खाएं. रोज़रोज़ बाहर का खा नहीं सकते थे, हैल्थ का भी ध्यान रखना था. अब तक यह समझ आ ही गया था कि अब कोई अपना नहीं है. अकेले ही जीना है. अपना ध्यान खुद ही रखना है. कम से कम जब तक जिएं, बीमार तो न ही पड़ें. चिंता सताती, कभी बीमार हो गए तो कौन देखेगा. यह डर उन्हें बहुत सताता और उन्होंने कौन्फ्रैंस कौल पर एक दिन तेजस और आरोही से अपना यह डर बताया तो दोनों ने कहा, “पापा, हम खुद ही छोटे फ्लैट में रहते हैं, क्या करें, हां, अगर आप अपना घर बेच कर कहीं हमारे साथ मिल कर बड़ा घर ले लें तो आप की देखरेख हो सकती है.” यतिन ने अपना फ्लैट बेचने के लिए साफ़साफ़ मना कर दिया, कहा, “अभी मैं ठीक हूं, आगे जो होगा, देखा जाएगा.”

अपनी पैंशन में वे बस अपना गुजारा तो अच्छी तरह से कर सकते थे पर उन के पास इतनी अथाह दौलत नहीं थी कि कहीं घूमघाम कर एंजौय कर लें. वैसे, उन के रिश्तेदार भी अब ज़्यादा नहीं थे. पर पावनी की डैथ की खबर जिन रिश्तेदारों को दी भी थी, उन्होंने भी फोन पर ही शोक प्रकट कर दिया था. अब सब के बच्चे बिजी ही रहते हैं. बुजुर्ग रिश्तेदार अकेले आजा नहीं सकते. तो कोई आता भी तो किस के साथ आता. और जब अपने बच्चे ही लापरवाह हैं तो वे दूसरों से भी किस बात की शिकायत करते. उन्होंने अपने दिल को समझा लिया था. वे अपने कपड़े प्रैस कर ही रहे थे कि अनिल और विजय आ गए. दोनों ने थके से अपने दोस्त को देखा. कुछ समझ नहीं आया कि क्या कहें. कभीकभी दुख के ऐसे पल होते हैं कि सामने वाले को तसल्ली देने वाले अपने शब्द ही खोखले लगते हैं.

 

जंगलराज-भाग 3 : राजन को कैसे मिली अपने गुनाहों की सजा

लेकिन सुनयना ने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि जिस पिता को वह भगवान मानती आई है वही उसे शराब के कारण बेच देगा वह भी ऐसे इंसान को जो दुराचारी व हत्यारा है. जिस सुनयना ने कभी उस राजन को भाव नहीं दिया, वह अब उस की पत्नी बन गई थी वह भी सिर्फ अपने परिवार की खातिर. राजन भी जानता था, चारा क्या है अब उस के पास, इसलिए उस के सामने ही वह अपनी माशूका को ले कर आता और उस के सामने ही वह करने लगता जिसे देख हर पत्नी मर जाना चाहेगी. कहते हैं मर्द को कोई औरत तभी तक अच्छी लगती है जब तक वह उसे संपूर्ण तरह से पा नहीं लेता. सुनयना तो अब उस के घर के शोकेस में रखे जाने वाली मात्र एक महंगी वस्तु थी, जिसे लोग महंगे दामों में खरीद तो लेते हैं पर फिर उसी से उन का मन उकताने लगता है और वह फिर नई की तलाश में निकल पड़ते हैं. रोज नईनई लड़कियों के साथ वह अपनी रातें रंगीन करता था वह भी सुनयना के सामने और वह कुछ नहीं बोल पाती, क्योंकि उस का परिवरा राजन का कर्जदार जो था.

राजन की माशूका मोहिनी को उस के सारे काले कारनामों का पता होता था, बल्कि राजन क्या करता है, कहां जाता है, किस,से मिलता है वह सब भी उसे खबर होती थी. मोहिनी उस के हर पाप की राजदार थी. मोहिनी चाहती थी राजन उस से शादी कर उसे अपना नाम दे दे, पर राजन तो उसे अपनी रखैल बना कर रखना चाहता था और इस बात पर कभीकभी दोनों में मतभेद भी हो जाते थे.

उधर वह रघु अब तक सूद के नाम पर राजन को 2 लाख रुपए दे चुका था. लेकिन अब राजन को अपना पैसा उस से वापस चाहिए था. ऐसे ही तो वह लोगों को मजबूर करता था ताकि इंसान उस के सामने अपने घुटने टेक दे. तय समय से पहले वह लेनदार से अपने पैसे मांगने लगता, क्योंकि कोई लिखापढ़ी तो होती नहीं थी कि इस समय पर पैसे देने हैं. राजन जो बोल देता वही रूल बन जाता था. पैसे चाहिए तो बस चाहिए ही, नहीं तो अपना जमीनघर या जो भी अनमोल चीज है वह गिरवी रख दो उस के पास.

यह बात रघु को भी पता चल चुकी थी कि उस की नईनवेली दुलहन पर राजन की गिद्ध नजर पड़ चुकी है और अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस के साथ भी वही करेगा जो औरों की बहूबेटियों के साथ करता आया है. इसलिए घर छोड़ कर भागने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा था उस के पास. सोचा था बैंक से लोन ले कर अपना ट्रैक्टर खरीद लेंगे. ब्याज भी कम भरना पड़ेगा और उस का काम भी हो जाएगा. बैंक मैनेजर साहब से उस की बात भी हो चुकी थी. कहा था उन्होंने वे उसे लोन दे देंगे. बड़े अच्छे इंसान लगे वे मैनेजर साहब रघु को. लेकिन जाने उस दुष्ट राजन के आदमी को कैसे यह सब पता चल गया. वे लोग तो मैनेजर साहब को भी धमका गए कि अगर उन्होंने किसी को लोन दिया तो उन से बुरा कोई नहीं होगा. वह शहर छोड़कर भागने ही वाला था कि राजन के आदमी ने उसे धरदबोचा और घसीटता हुआ राजन के पास ले गया.

“ये लो राजन भैया, बड़ी मुश्किल से हाथ आया है” रघु को खींचते हुए मुन्ना बोला, “भाग रहा था साला. और इस की चालाकी तो देखो, आगे घर में ताला लगा कर पीछे से भाग रहा था ससुरा अपने परिवार के साथ. मैं तो कहता हूं भैया जी, इसे भी कुत्ते का मूत पिलाओ, फिर यह भी आप के पीछे दुम हिलाता फिरेगा. देखो तो, कैसे आंखें दिखा रहा है,” उस के माथे पर एक धौंल लागते हुए मुन्ना ने कहा तो राजन ने इशारों से उसे रोका.

“क्यों, जान प्यारी नहीं तुझे अपनी? क्या लगा तुझे, मेरे पैसे ले कर भाग जाओगे और मैं कुछ नहीं करूंगा? कहां तक भागोगे,” राजन जब गुर्राया, तो रघु थर्रा उठा. “यही है न तुम्हारी नईनवेली दुलहन,” घूर कर उस ने उसकी पत्नी को देखा, जो एकतरफ दुबकी खड़ी थी और राजन के डर से अपनेआप में ही सिमटने लगी. बेचारे रघु की तो जान ही सूखने लगी कि जाने अब क्या करेगा वह उस की पत्नी के साथ. जानता है, पैसे न मिलने पर वह लोगों को चुटकियों में मार कर फेंकवा देता है. राजन मिश्रा कितना खतरनाक आदमी है, सब जानते हैं. पर कोई इस का आज तक कुछ बिगाड़ नहीं पाया तो वह क्या कर लेगा.

“थोड़े पढ़लिख क्या गए अपनेआप को महान समझने लगे और मुझे बेवकूफ, हूं? नहीं जानते कि मैं क्या कर सकता हूं और क्या नहीं?” राजन ने दहाड़ते हुए कहा तो रघु घिघियाते हुए कहने लगा-

“नहींनहीं राजन भैया, मैं भाग नहीं रहा था. मैं आप के पैसे लौटाने का इंतजाम करने ही जा रहा…“

“इंतजाम…” उस की बात को काटते हुए राजन ने डपटा तो वह सकपका कर चुप हो गया. “साला, मुझे बेवकूफ समझता है? हां, तुम्हारे जैसे कितनों को मैं ने चुटकियों में मसल दिया और तू मुझे समझा रहा है? राजन नाम है मेरा, राजन मिश्रा, भेजे में बैठा लो यह बात. हफ्तेभर की मुहलत देता हूं तुझे, मेरे पैसे मिल जाने चाहिए. और हां, तब तक तुम्हारी ये सुंदर, नाजुक सी पत्नी मेरे पास रहेगी गिरवी के तौर पर,” ठहाके लागते हुए राजन यह बोला तो वहां खड़े उस के सारे चमचे खीखी कर हंसने लगे और बेचारा रघु बुत की तरह खड़े अपनी पत्नी को निहारने लगा जो अब राजन के पास गिरवी थी.

“चलो, अब जाओ, जा कर पैसे का इंतजाम करो,” उसे बाहर ठेलते हुए राजन के आदमी ने कहा और गेट लग गया. पर इतने पैसे का इंतजाम वह कहां से करेगा इतनी जल्दी? और क्या तब तक उस की पत्नी उस राजन के पास ही रहेगी… सोच कर ही वह कांप उठा. जानता है उस की पत्नी की भी स्थिति वही होने वाली है जो औरों की हुई है. कितनी लड़कियों को उस ने वेश्या बना रखा है. यह भी जानता है कि पुलिस कुछ नहीं करेगी क्योंकि वह तो उस के हाथों की कठपुतली है. पुलिस, नेता, बिजली विभाग सभी लोगों को उस ने अपनी मुट्ठी में कैद कर रखा है. हर जगह उस की पैठ है. मन तो कर रहा था रघु का की यहीं राजन के घर के सामने ही आत्मदाह कर ले क्योंकि कैसा मर्द है वह कि उस के सामने ही कोई गैरपुरुष उस की पत्नी के गले में हाथ डाल कर उसे ले गया और वह कुछ नहीं कर पाया. वचन दिया था अपनी पत्नी को कि वह उस की हर हाल में रक्षा करेगा, पर कैसे… कैसे वह अपनी पत्नी को उस दरिंदे के हवाले कर दिया?

भले ही रघु के पास उतने पैसे नहीं थे, गरीब इंसान था वह लेकिन अपनी पत्नी को प्यार करने में वह बड़ा अमीर इंसान था. पत्नी उस की इज्जत, उस,की शान थी. पत्नी के जन्मदिन पर उस ने एक फोन उसे उपहारस्वरूप भेंट किया था. उसी फोन से वह वहां से छिपछिप कर रघु से बात कर रो पड़ रही थी और कह रही थी कि किसी तरह वह उसे वहां से ले जाए. फोन से उस ने ही बताया कि आज रात राजन उसे इस शहर के सब से बड़े होटल में ले जाने वाला है जहां बड़ा जश्न होगा.

“ठीक है तुम इसी तरह मुझे वहां की जानकारी देती रहना और घबराना नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा,” रोते हुए पत्नी को दिलासा देते हुए रघु ने मन ही मन एक प्लान बनाया कि उसे अब क्या करना है और वह प्लान उस ने अपनी पत्नी को भी बताया कि कैसे वह उस का साथ देगी. बड़ी पार्टी है शराबशबाब सब होगा और लोग भी वहां बहुत आएंगे. रघु ने सोचा और किसी तरह वह उस होटल में घुस गया. बड़े पेड़ के नीचे छोटेछोटे पौधे कभी पनप नहीं पाते हैं, इसलिए सोच लिया रघु ने कि अब इस बड़े पेड़ को काटना ही पड़ेगा. यह भी जानता था कि वह पकड़ा भी जा सकता है, लेकिन ऐसी ज़िंदगी से तो मौत भली.

वह उस के ही एक आदमी को मार कर उस के कपड़े पहन कर पार्टी में घुस गया. राजन के आसपास ही रघु की पत्नी थी, इसलिए वह किसी तरह राजन का रिवौल्वर निकालने में कामयाब हो गई. लोगों से बचा कर उस ने वह रिवौल्वर रघु को थमा दी, हालांकि, यह सब करते उस का दिल धक्कधक्क कर रहा था लेकिन खुद को बचाना है तो रिस्क तो लेना पड़ेगा और उस ने वही किया. अपना काम कर फिर वह राजन के पास आ कर खड़ी हो गई ताकि उसे कुछ शंका न होने पाए.

 

क्रीम पाउडर नहीं ड्रीम जरूरी

आजादी के लिए जरूरी है कि वे आत्मनिभर बनें, अपने फैसले लेने में जरा भी न ?ि?ाकें या न डरें, घर में बंधी न रहें, खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएं. एक जमाने में लड़कियों को घर की चारदीवारी में संपूर्ण जिंदगी खपा देनी पड़ती थी. ऐसी लड़कियां गुड्डेगुडि़यों के खेल से ले कर शादीविवाह के तमाम तरह के खेल खेला करती थीं जो होने वाले वैवाहिक जीवन की तैयारी के रूप में सम?ा जाता था. वे घर के अंदर ही रह कर साजसिंगार और अपने रंगरूप संवारने में ही ज्यादा ध्यान देती थीं. कुछ संपन्न घर की लड़कियां फैशन में पारंगत होने की भरपूर कोशिश भी करती थीं ताकि वे ससुराल जा कर पतियों और पतियों के परिवार को रि?ा सकें.

घर में उन की दादी, मां, चाची, भाभी और बूआ सब एक ही हिदायत देती रहती थीं कि यह सब सीखना जरूरी है क्योंकि तुम्हें दूसरों के घर जाना है. ससुराल के घरआंगन को संवारना है. यही सबकुछ सीखते हुए बचपन कब गुजर जाता था, पता नहीं चलता था और जवानी की दहलीज पर पहुंचने से पहले ही दूसरे घर में ब्याह दिए जाने की तैयारी जोरशोर से शुरू होने लगती थी या ब्याह दी जाती थी. तब उन्हें दूसरे घरपरिवार में एडजस्ट होने की जद्दोजेहद का सामना करना पड़ता था. अकसर लड़कियां नए और अनजान घर में घबराने भी लगती थीं. लेकिन देखतेदेखते वे कई बच्चों की मां बन जाती थीं और अपनी खुद की जिंदगी भूल जाती थीं. वे बच्चे पैदा करने की मशीन सी बन जाती थीं और धीरेधीरे उस घर, परिवार और अपने बच्चों की एकमात्र आया बन कर रह जाती थीं. इस प्रकार उन्हें लंबे संघर्षों से गुजरना पड़ता था. जिन लड़कियों का आत्मविश्वास थोड़ा मजबूत होता था वे संघर्ष कर खुद को एडजस्ट कर लेती थीं. वे अपनी जिंदगी जैसेतैसे गुजार देती थीं.

जो अपनेआप को उस माहौल में एडजस्ट नहीं कर पाती थीं उन लड़कियों की जिंदगी ससुराल में नर्क बन जाती थी. समाज की यह परंपरा लगभग अभी भी कमोबेश नहीं बदली है. समाज में आज भी औरतों की स्थिति पहले जैसी ही है. आज आदमी के जीवन में तमाम तरह की सुविधाएं भले ही आ गई हों लेकिन पुरुषवादी समाज की सोच आज भी नहीं बदली है. आज भी वह लगभग जस की तस बनी है. द्य बिहार के औरंगाबाद जिले की रहने वाली पिंकी कुमारी साधारणतया बीए कर चुकी थी. तभी उस की शादी कर दी गई थी. वह देखने में काफी खूबसूरत थी. उस के मातापिता काफी संपन्न परिवार के हैं. उन के घर में पैसे की कमी नहीं है. उस के मातापिता ने काफी दहेज दे कर उस का विवाह नौकरी वाले लड़के से किया था. अब 2 साल के अंदर ही पतिपत्नी के बीच अनबन होने लगी है.

?ागड़े की वजह से पिंकी को अपनी ससुराल छोड़ना पड़ा और अपनी सुरक्षा के लिए उसे मायके में आ कर रहना पड़ रहा है. अब पतिपत्नी के बीच मुकदमे चल रहे हैं. लेकिन कुछ महीने बाद ही पिंकी को महसूस होने लगा कि वह शायद अपने पिता के घर में बो?ा बनी हुई है. इसलिए वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है. इस के लिए वह काफी हिम्मत जुटा कर फिर से अधूरी पढ़ाई पूरी कर रही है. उस का मानना है कि लड़कियों के लिए खूबसूरत और कमसिन जवानी ज्यादा दिन तक माने नहीं रखती है. आर्थिक रूप से मजबूत होना लड़कियों के लिए बेहद जरूरी है. अत्याचार की शिकार औरतें रोहतास जिले की रहने वाली अपर्णा राजस्थान के कोटा में रह कर मैडिकल शिक्षा की तैयारी कर रही है. उस का कहना है, ‘‘अब समय बदल गया है. अब लड़कियां क्रीम, पाउडर और फैशन के पीछे ज्यादा ध्यान नहीं देती हैं और जो सिर्फ इस ओर ही ध्यान दे रही हैं वे आज भी कहीं न कहीं पिछड़ रही हैं.

आज भी उन की जिंदगी वैसे ही गुजर रही है जैसे कल गुजर रही थी. आज भी वे अपने पतियों के अत्याचार की शिकार हो रही हैं. कहीं दहेज के लिए सताई जा रही हैं तो कहीं औरतों को पहले की तरह ही चारदीवारी में बंद कर जुल्म किया जा रहा है और पुरुषों द्वारा पहले की तरह ही आज भी औरतों को शिकार बनाया जा रहा है.’’ वह मुसकराते हुए आगे कहती है, ‘‘अगर खुद को मजबूत और शक्तिशाली बनाना है तो अपने खूबसूरत ड्रीम को ग्रो करिए, फिर उसे पूरी लगन व मेहनत से पूरा करिए. खुद की अलग पहचान बनाइए. आप की सुंदरता अपनेआप बढ़ जाएगी.

आप को क्रीम, पाउडर तो क्षणिक संतुष्टि दे सकते हैं लेकिन अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहती हैं तो अपना ड्रीम पहले पूरा कीजिए.’’ अब गांव की मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियां मुंह अंधेरे में साइकिल चला कर या औटोरिकशा से विभिन्न कोचिंग संस्थानों में पहुंच रही हैं. यह इस बात का सुबूत है कि अब लड़कियां क्रीम के पीछे नहीं, ड्रीम के पीछे भाग रही हैं. दूरदराज के गांवों से चल कर वे छोटेछोटे शहरों व कसबों के कोचिंग संस्थानों में भीड़ लगा रही हैं. अब छोटे शहरों और कसबों की लड़कियों का रहनसहन महानगरों की लड़कियों की तरह रफ एंड टफ हो चुका है. वे भी जींस के ऊपर टीशर्ट, टौप या कुरती डाल कर उतना ही आत्मविश्वास का अनुभव करती हैं जितना एक लड़का करता है. अब वे सब लड़कों की तरह ही क्विज टैस्ट, वादविवाद आदि में हिस्सा लेना पसंद करती हैं.

वे भी फर्राटेदार इंग्लिश बोलना चाहती हैं. वे भी विभिन्न प्रकार की नौकरी के लिए फौर्म भरना पसंद करती हैं, तभी तो फौर्म बिकने वाली दुकानों पर सब से ज्यादा ये लड़कियां उत्साहित दिखती हैं. यही कारण है कि अब लड़कियां नौकरी के लिए पहले की अपेक्षा ज्यादा मारामारी करने लगी हैं. इस का सब से बड़ा कारण समाज में बदलाव आना माना जा रहा है. आज सम?ादार परिवार पढ़ीलिखी बहू को तरजीह देने लगा है. दूसरी बात यह है कि पढ़ीलिखी और नौकरीपेशा लड़कियां ससुराल में अपने पतियों पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं. वे स्वतंत्र रहना चाहती हैं. वे खुद के लिए भी जीना चाहती हैं और यह तभी संभव है जब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी, आर्थिक रूप से सक्षम होंगी. आज पढ़ीलिखी और सम?ादार लड़कियां यह जरूर सम?ा चुकी हैं कि पढ़नेलिखने से ही उन के सपने पूरे होंगे. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने पर योग्य विवाह में भी ज्यादा परेशानी नहीं होती है.

वहीं ससुराल में भी उचित सम्मान मिलता है. वरना वे पहले की तरह ही दुत्कारी जाती रहेंगी. उन पर पहले की तरह अत्याचार होता रहेगा और वे आज भी बेचारी कहलाती रहेंगी. आर्थिक रूप से सक्षम लड़कियां अपने जीवनसाथी के चयन का निर्णय मातापिता पर निर्भर न हो कर स्वयं भी ले रही हैं. कई बार जातबिरादरी से इतर भी जीवनसाथी बना कर अपना जीवन सुखमय बिता रही हैं. जहां कल तक लड़कियों के लिए शादीब्याह पहली प्राथमिकता के रूप में देखा जाता था, अब उन की पहली प्राथमिकता कैरियर बनाना हो गया है. कई बार कैरियर बनाने के चक्कर में शादीब्याह की उम्र भले ही बीती जा रही है लेकिन तो भी उन के लिए ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है.

आज पढ़ीलिखी लड़कियां अपने पतियों के नाम से नहीं, खुद के नाम से पहचानी जाती हैं. तभी तो लड़कियां ओलिंपिक से ले कर अंतरिक्ष में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रही हैं. वे आज कई मोरचों पर अपनी जगह बनाने में सफल हो रही हैं. आज लड़कियां राजनीति से ले कर सेना तक में अपनी जगह बनाने में सफल हो रही हैं. द्य भारतीय महिला हौकी खिलाडि़यों ने टोक्यो ओलिंपिक में बेहतर प्रदर्शन किया. यह उन की बेहतर मेहनत का नतीजा है. महिला हौकी टीम की रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद की रहने वाली एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उन के पिता तांगा चलाते हैं. उन की मां एक गृहिणी है. उन का एक भाई किसी दूसरों के किराने की दुकान पर सहायक के रूप में काम करता है जबकि एक भाई बढ़ईगीरी करता है. ऐसे में वह काफी मेहनत कर इस मुकाम तक पहुंची हैं. द्य महिला हौकी टीम की राष्ट्रीय खिलाड़ी सुशीला चानू मणिपुर के इंफाल की रहने वाली हैं. उन के पिता ट्रक ड्राइविंग का काम करते हैं. उन की मां घर के खर्चे के लिए चाय की दुकान चलाती थीं.

हालांकि उन के हालात सुधरने के बाद मां की चाय की दुकान अब बंद हो चुकी है. उन का शुरुआती रु?ान फुटबौल के प्रति था. बाद में उन्होंने काफी मेहनत कर हौकी खेलना शुरू किया. द्य टोक्यो ओलिंपिक के सैमीफाइनल में भारत के हारने के बाद ऊंची जाति वालों ने उत्तराखंड के होशंगाबाद की रहने वाली अनुसूचित जाति की वंदना कटारिया के घर के आगे पटाखे फोड़ कर जश्न मनाया, साथ ही उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि यह खिलाड़ी छोटी जाति से होने के कारण टोक्यो ओलिंपिक के फाइनल में जगह नहीं बना सकी. इन लड़कियों को समाज से, गरीबी से, दकियानूसी परंपरा और व्यवस्था से काफी संघर्ष करना पड़ा है तब जा कर ये सफलता का स्वाद चख पाई हैं. द्य हरियाणा के किसान परिवार में जन्मी गुरजीत कौर का शुरू में हौकी खेल से दूरदूर का भी वास्ता नहीं था.

लेकिन एक बार वह हौकी खेल देख कर इतना प्रभावित हुई कि हौकी खेलने का मन बना लिया. वर्षों तक खेल के मैदान में पसीना बहाने के बाद टोक्यो ओलिंपिक में आस्ट्रेलिया के खिलाफ गोल कर सैमीफाइनल में जगह बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. द्य ?ारखंड राज्य की रहने वाली 19 वर्षीया सलीमा टेटे बेहद ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. अभाव और गरीबी के कारण उन्हें खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ी थी. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक में खेलने से मात्र कुछ साल पहले स्पोर्ट्स शूज पहली बार पहने थे. वे शुरुआती दिनों में पैसे के अभाव में बिना जूते के ही खेल प्रैक्टिस करती थीं. द्य दीपा ग्रेस एक्का का जन्म ओडिशा राज्य के सुंदरगढ़ जिले के लुलकीदिही गांव के एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ. यह अलग बात है कि वह अपने टैलेंट की बदौलत हौकी टीम में नहीं चुनी गई थी बल्कि वह कदकाठी के कारण हौकी टीम में जगह बनाने में कामयाब हो पाई थी. पहले वह गोलकीपर बनना चाहती थी लेकिन बाद में डिफैंडर के तौर पर खेलने लगी. उसे दूसरी बार टोक्यो ओलिंपिक में खेलने का मौका मिला और इस बार वह टीम के सैमीफाइनल तक पहुंचने में सफल हो पाई. द्य भारतीय महिला हौकी टीम की मजबूत खिलाड़ी शर्मिला देवी का जन्म हरियाणा राज्य के हिसार के कैमरी गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ. उस में जोश,

हौसला और जनून कूटकूट कर भरा है. वह मैदान में करिश्माई अंदाज में खेलने वाली कम उम्र की श्रेष्ठ खिलाड़ी बन गई है. वह भारतीय टीम में जगह पा कर बेहद खुश थी. द्य ओडिशा के जिला राजगांगपूर के एक गांव जोरुमाल की रहने वाली नमिता टोप्पो छोटे से गांव से निकल कर अपने देश की महिला हौकी टीम की तरफ से टोक्यो ओलिंपिक में खेल कर सब के दिल में जगह बना चुकी है. वह जैसे ही खेल समाप्ति के बाद अपने छोटे से गांव में लौटी, पूरे इलाके के लोग उस के स्वागत में उमड़ पड़े थे. द्य ?ारखंड राज्य की महिला हौकी खिलाड़ी निक्की प्रधान के पिता सोमा प्रधान बिहार पुलिस में हैं और उन की मां जीतन देवी गृहिणी हैं. जब वह टोक्यो ओलिंपिक खेल के समय सुर्खियों में आई, तब उस के गांव के लोगों ने जाना कि वह एक हौकी की खिलाड़ी है. आज उस की वजह से अनेक लड़कियां हौकी खेल में जाना चाहती हैं. द्य हरियाणा में जन्मी नेहा गोयल का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है. उन के पिता शराबी थे. उन दिनों उन का परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर था. उन की सहेली ने यह बताया था कि अगर तुम हौकी खेलोगी तो तुम्हें अच्छे जूतेकपड़े पहनने को मिलेंगे. बस,

इसी लालच के कारण वे हौकी खेलने लगी थीं. उन के पिता की 2017 में मृत्यु हो जाने के बाद मां को किसी फैक्ट्री में भी काम करना पड़ा था. कई लोगों ने उन की मां को सम?ाया था कि यह लड़की है, इसे खेलनेकूदने से मना करे पर मां ने ऐसा नहीं किया. इन साधारण दिखने वाली लड़कियों को देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये लड़कियां समाज की परंपराओं से लड़ कर आगे बढ़ीं. अगर ये भी आम लड़कियों की तरह क्रीमपाउडर के पीछे रहतीं तो शायद इतने बड़े मुकाम पर नहीं पहुंच पातीं. ये सभी साधारण दिखने वाली लड़कियां क्रीम के पीछे नहीं, बल्कि एक हसीन ड्रीम के पीछे भागीं. तभी ये अपने जीवन में खूबसूरत मुकाम हासिल कर पाई हैं.

देह व्यापार: फलताफूलता सैक्स टूरिज्म

दुनिया के कई देश सैक्स टूरिज्म के लिए जाने जाते हैं जिन में थाईलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस, जरमनी, स्पेन शामिल हैं. भारत में भी सैक्स का कारोबार फलफूल रहा है पर इसे यहां नजरअंदाज किया जाता है. देहरादून के पास एक रिजौर्ट में अंकिता भंडारी की हत्या इस बात को जाहिर करती है कि रिजौर्टों में सैक्स किस तरह मिल सकता है. इस लड़की ने यह काम करने से मना किया तो इस की हत्या कर दी गई पर बहुत सी किसी लालच या मजबूरी में यह करने के लिए आसानी से तैयार हो जाती हैं. आज 10वीं, 12वीं पास लड़कियों के पास कोई काम नहीं है, कोई हुनर नहीं है,

कोई नौकरी नहीं है. वे छोटीमोटी नौकरी के बहाने इस तरह के काम के लिए तैयार हो जाती हैं. कुछ साल पहले पब्लिक तथा राजनीतिज्ञों के भारी दबाव के कारण महाराष्ट्र सरकार को मुंबई के तमाम डांसबारों को मजबूरन बंद करवाना पड़ा. लेकिन, पौंडिचेरी में इस का व्यापार आज भी तेजी से फलफूल रहा है. इस में दो मत नहीं कि पौंडिचेरी जैसे कई शहरों में कई दशक से देशीविदेशी टूरिस्टों को आकर्षित करने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जिन में सैक्स टूरिज्म का व्यापार भी शामिल है. यह कहने की जरूरत नहीं कि यहां के होटलों में हमेशा सैक्स टूरिस्टों का जमावड़ा लगा रहता है.

वीकैंड में तो इतनी भीड़ रहती है कि यहां के होटलों और गैस्टहाउसों में रूम तक मिलना असंभव रहता है. इस का एक बहुत बड़ा कारण यह है कि यहां दक्षिण भारत से ही नहीं, मुंबई तक से बहुत बड़ी संख्या में सैक्स टूरिस्ट आते हैं और देहव्यापार में लिप्त होते हैं. यह भी एक कटु सत्य है कि देश के कितने ही होटलों में न्यूड डांस वर्षों से चल रहा है जो आम बात है. शाम घिरने के साथ ही होटलों में महफिलें घिरने लगती हैं. साढे़ छह, साढे़ आठ और रात साढे़ दस यानी 3 शिफ्टों में चलने वाले शो में ग्राहक उपस्थित होते हैं जिन से प्रति व्यक्ति ढाई से 3 हजार रुपए वसूले जाते हैं.

इस प्रकार प्रतिदिन लगभग डेढ़ लाख की कमाई हो जाती है. सैक्स वर्कर तथा डांसबार की लड़कियों के बीच काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था की कार्यकर्ता श्यामली के शब्दों में, ‘‘यहां काम करने वाली अधिकतर युवतियां केरल तथा आंध्र प्रदेश की होती हैं. जिन के लिए यह धंधा छोड़ना काफी मुश्किल होता है क्योंकि अधिकतर युवतियां होटल मालिकों से लोन लेती हैं जिसे लौटाना भी होता है. इसी दबाव में वे चाह कर भी इस धंधे को छोड़ नहीं पातीं.’’ महिलाओं द्वारा किसी सार्वजनिक स्थल पर न्यूड डांस करना भारत में पूरी तरह गैरकानूनी है. लेकिन यहां के होटलों तथा क्लबों में यह धड़ल्ले से चल रहा है. हजारों की संख्या में लड़कियां इस के लिए बेची भी जा रही हैं और इस के लिए लड़कियों की तस्करी भी की जा रही है.

प्रति वर्ष टूरिज्म से कितनी ही विदेशी मुद्रा भारत में आती है जिस में खासा सैक्स टूरिज्म की वजह से आती है. वुमन एंड चाइल्ड डैवलपमैंट के अध्ययन की रिपोर्ट के माध्यम से जब इस का खुलासा हुआ तो पूरे सरकारी महकमे में खलबली मच गई थी. केंद्र सरकार जब तक इस को ले कर गंभीर होती, उस बीच आंध्र प्रदेश की सरकार ने तिरुपति जैसे धार्मिक शहर में बढ़ते एचआईवी की संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज दी जिसे देख कर केंद्र सरकार की चिंता और बढ़ गई. सरकार तथा सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों के बीच इस बात को भी ले कर चिंता होने लगी कि भारत में तेजी से टूरिस्ट इंडस्ट्रीज के ग्रोथ में देह व्यापार तथा वेश्यावृत्ति आग में घी का काम कर रहे हैं.

इस खतरनाक समस्या की गंभीरता तथा संवेदनशीलता को देखते हुए भारत सरकार ने दुरुस्त कदम उठाते हुए एक स्वंयसेवी संस्था को इस के कारणों की पड़ताल की जिम्मेदारी इस शर्त पर सौंपी कि इस की रिपोर्ट सार्वजनिक न की जाए. संस्था ने 18 राज्यों में विभिन्न टूरिस्ट सैंटरों तथा धार्मिक स्थलों में आजकल अध्ययन किया, जिस में अब तक एक हजार से भी अधिक पीडि़तों तथा भुक्तभोगियों से बातचीत की. उक्त संस्था से जुड़े एक व्यक्ति का कहना है, ‘‘मैं बस, इतना कहना चाहती हूं कि भारत में सैक्स इंडस्ट्री चिडि़या के पर की तरह अपना विस्तार कर रही है. डाटा इस ओर संकेत करता है कि मूल समस्या देश के अंदर के टूरिस्टों यानी डोमैस्टिक टूरिस्टों से है जो आग में घी का काम रहा है.’’ सीमापार से घुसपैठ यह कहने की अब जरूरत नहीं रही कि पिछले एकडेढ़ दशक से भारत गैरकानूनी रूप से सैक्स टूरिज्म का अभयारण्य बना हुआ है.

इस के लिए भौगोलिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक तंत्र जिम्मेदार माने जा सकते हैं. जगहजगह खुली सीमाएं तथा सुरक्षा व्यवस्था में तमाम तरह की खामियों के चलते नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से बहुत बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं की अवैध तरीकों से मानव तस्करों द्वारा भारतीय सीमाओं में घुसपैठ कराई जाती है. इस में कोई दोराय नहीं कि भारतीय सीमा से बंगलादेश के 28 जिले जुड़े हैं जिन का नाजायज फायदा तस्कर समयसमय पर उठाते रहते हैं. भौगोलिक स्थिति पर गौर करें तो इस के पश्चिमी सीमा पर पश्चिम बंगाल तथा उत्तरी सीमा पर असम राज्य हैं जिन्हें पार कर पड़ोसी देश नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान तथा श्रीलंका की सैक्स व्यापार से जुड़ी लड़कियां तथा महिलाएं भारत की यात्रा करती हैं या फिर इस से जुड़े तस्कर इन की भारत में घुसपैठ कराते हैं.

इस में दो मत नहीं कि पिछले कई सालों से बंगलादेश, नेपाल तथा श्रीलंका के मानव तस्करों के निशाने पर भारत रहा है. वहां से हजारों की संख्या में बच्चे, लड़कियां तथा महिलाओं की गैरकानूनी रूप से घुसपैठ कराई जा रही है जो यहां के बड़ेबड़े शहरों के होटलों, धार्मिक तथा पर्यटन स्थलों में सैक्स व्यापार का गैरकानूनी धंधा करती हैं. ये पर्यटकों की डिमांड पर एक शहर से दूसरे शहर की भी यात्रा करती हैं. इतना ही नहीं, ये जरूरत पड़ने पर विदेश तक की भी यात्रा करती हैं और कौलगर्ल के रूप में अपनी सेवा प्रदान करती हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 2 लाख नेपाली महिलाएं तथा लड़कियां भारत के बड़े शहरों, जैसे मुंबई, पुणे दिल्ली तथा कोलकाता के टूरिस्ट प्लेसों में धंधा कर रही हैं. इन में लगभग 20 फीसदी यानी 40 हजार की उम्र 16 साल से कम है.

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन 50 बंगलादेशी लड़कियां सीमा पार कर भारत में बेची जाती हैं. ये भी देश के बड़े शहरों तथा मैट्रो सिटीज, धार्मिक, ऐतिहासिक तथा दूसरे पर्यटन स्थलों के देशीविदेशी टूरिस्टों को अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं. एक अन्य आंकड़े के अनुसार लगभग 4 लाख बंगलादेशी औरतें भारत में सैक्स टूरिज्म के धंधे से जुड़ी हुई हैं. करीब 3 लाख प्रतिवर्ष यहां से दूसरी जगहों पर तस्करी द्वारा भेजी जाती हैं. जब किसी राज्य की पुलिस इन पर कानूनी शिकंजा कसने लगती है तो ये अपना ठिकाना बदलने में तनिक भी देर नहीं करतीं और सुरक्षित स्थानों पर चली जाती हैं. जैसे यदि गोवा या कर्नाटक के कोवाला में पुलिस छापेमारी करती है तो ये वारकाला, कोचीन या केरल में कुमिली या कर्नाटक के दूसरे समुद्रतटीय इलाकों में चली जाती हैं और वहां धंधा करने लगती हैं.

इतना ही नहीं, पड़ोसी देश के तस्कर भारत की जमीन को ट्रांजिट जोन के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. बंगलादेश, नेपाल और श्रीलंका के तस्कर और सैक्स वर्कर भारत की जमीन को शरणस्थली यानी ठिकाना भी बनाते हैं. अर्थात, इन देशों की लड़कियों, बच्चों तथा महिलाओं को दक्षिणपूर्व एशिया, जैसे सिंगापुर, मलयेशिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड, केन्या या फिर ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात आदि खाड़ी देशों या फिर दुनिया के किसी भी देश में भेजने के पहले बौर्डर क्रौस करा कर भारत लाते हैं और फिर समुद्री रास्ते या फिर दूसरे तरीके से जालसाजी कर इन देशों में भेजते हैं. एक अनुमान के अनुसार भारत के रास्ते प्रतिवर्ष करीब एक लाख नेपाली तथा 50 हजार बंगलादेशी लड़कियां गैरकानूनी रूप से भारतीय जमीन का इस्तेमाल कर दूसरे देशों के वेश्यालयों में भेजी जाती हैं. देश के अंदर भी नाबालिग लड़केलड़कियां तथा औरतें एक जगह से दूसरी जगह स्मगल किए जाते हैं. ग्रामीण, देहाती और पिछड़े इलाकों की महिलाएं तथा लड़कियां तस्करी के माध्यम से शहरी इलाकों में भेजी जाती हैं.

कोई भी देश अछूता नहीं कानून के अनुसार सामान्यतया वयस्क को किसी वेश्यालय में जाना अपराध नहीं माना जाता. लेकिन नाबालिग लड़का या लड़की का इस में संलग्न होना अपराध की श्रेणी में आता है. ऐसा स्वदेश में करें या विदेश में, दोनों ही स्थितियों में अपराध माना जाता है. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि इस के लिए अपने देश के अंदर यात्रा करने को घरेलू सैक्स टूरिज्म तथा विदेश की यात्रा करने को इंटरनैशनल एडल्ट सैक्स टूरिज्म कहते हैं. यह कारोबार मल्टीबिलियन डौलर इंडस्ट्री के रूप में पूरी दुनिया में फैला हुआ है और लाखों लोग इस से जुड़े हैं. ऐसी बात नहीं कि इस से केवल सैक्स उद्योग को ही फायदा होता है, एयरलाइंस, टैक्सी, रैस्टोरैंट तथा होटल इंडस्ट्री को भी इस से फायदा होता है. लेकिन मानवाधिकार से जुड़े संगठन इस से इस बात को ले कर परेशान रहते हैं कि इस इंडस्ट्री से मानव तस्करी और बाल वेश्यावृति को प्रोत्साहन मिलता है.

इस में दो मत नहीं कि सैक्स टूरिज्म केवल भारत की ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए समस्या बना हुआ है. एक आंकड़े के अनुसार लगभग साढ़े 6 लाख पश्चिमी देशों की महिलाएं तथा पूरी दुनिया में लगभग 20 लाख बच्चे इस उद्योग से जुड़े हुए हैं. लैटिन अमेरिका तथा साउथईस्ट एशिया में सड़कों के आवारा बच्चे इस धंधे से जुड़े हुए हैं. थाईलैंड, ब्राजील, कंबोडिया, भारत तथा मैक्सिको जैसे देशों में नाबालिग लड़केलड़कियों के साथ यौनव्यभिचार की घटनाएं ज्यादा होती हैं. थाईलैंड में तो 40 फीसदी नाबालिग इस धंधे का हिस्सा हैं, कंबोडिया में एकतिहाई सैक्स वर्कर 18 वर्ष से कम उम्र की हैं और भारत में लगभग 20 लाख बच्चे इस धंधे में लगे हुए हैं. हर जगह इस को ले कर कड़े कानून बने हुए हैं. इस कानून के अनुसार कोई भी अमेरिकी इस धंधे में नहीं लिप्त हो सकता. जो भी हो, इस धंधे में लगे लड़केलड़कियों को कई तरह के शारीरिक तथा मानसिक शोषण के दौर से गुजरना पड़ता है,

जिस की वजह से एड्स, प्रैग्नैंसी, कुपोषण, नशीली दवाओं के आदी होने से ले कर इन की मौत तक हो जाती है. यूनाइटेड नैशंस की टूरिज्म एजेंसी के अनुसार, ‘‘किसी टूरिस्ट सैक्टर या फिर इस के बाहर के सैक्टर द्वारा ऐसी व्यवस्था करना जिस का पहला उद्देश्य स्थानीय लोगों को टूरिस्टों द्वारा व्यावसायिक यौन संबंध स्थापित करना होता है, सैक्स टूरिज्म कहलाता है. ये व्यावसायिक सैक्स एक्टिविटीज की पहचान के लिए कई तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जैसे एडल्ट सैक्स टूरिज्म, चाइल्ड सैक्स टूरिज्म तथा फीमेल सैक्स टूरिज्म. आज की तारीख में यह व्यवसाय पूरे विश्व में मल्टीबिलियन डौलर के रूप में फैला हुआ है.’’ जो देश सैक्स टूरिज्म के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं उन में थाईलैंड, ब्राजील, श्रीलंका, क्यूबा, कोस्टारिका, डोमीनिकल रिपब्लिक तथा केन्या आदि शामिल हैं.

इस के अतिरिक्त कई ऐसे देश हैं जिन का कोई खास क्षेत्र या शहर इस के लिए प्रसिद्ध है, जो मूलरूप से रैडलाइट डिस्ट्रिक्ट या एरिया के रूप में जाने जाते हैं, जैसे एम्सटर्डम (नीदरलैंड), जोना नोटी, टियूआना (मैक्सिको) तथा रियो डी जैनेरियो (ब्राजील) बैंकौक, पटाया तथा फुकेट (थाईलैंड) क्राइनिया (यूक्रेन) आदि. इस के अतिरिक्त और भी कई ऐसे एरिया हैं जो इस के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. विदेशों में भी इस धंधे से जुड़ी महिलाएं धंधे के लिए एक देश से दूसरे देश की यात्रा करती हैं या फिर विशेष रूप से तस्करों द्वारा पहुंचाई जाती हैं. लगभग 80 हजार उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप की महिलाएं प्रतिवर्ष इस के लिए जमैका की यात्रा करती हैं.

नेपाल सरकार द्वारा सही दिशा में किए जा रहे प्रयास के बावजूद भारत से प्रतिवर्ष 10 से 15 हजार नेपाली महिलाएं तथा लड़कियां तस्करों द्वारा विदेशों में सैक्स व्यापार के लिए भेजी जा रही हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी 8वीं वार्षिक मानव तस्करी रिपोर्ट में ये बातें कही गई हैं. रिपोर्ट के अनुसार, सहीसही आंकड़ों के अभाव में यह संख्या बढ़ भी सकती है. वहां की स्वयंसेवी संस्था, जो मानव तस्करी पर शोध कर रही है, उस की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय तस्करी में लगातार वृद्धि हो रही है. अधिकतर स्थितियों में सैक्स एक्सप्लौइटेशन की ही बात उभर कर सामने आ रही है. जिस में राजनीतिज्ञों, व्यवसायी, अधिकारी, पुलिस, कस्टम अधिकारी तथा सीमा पर तैनात पुलिस की मिलीभगत तथा सहमति जगजाहिर है. इन्हीं के इशारे पर मानव तस्करी का इतना व्यापक तथा विशाल रैकेट चल रहा है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता.

भारत के अतिरिक्त एशिया के दूसरे देशों, जैसे मलयेशिया, हौंगकौंग तथा साउथ कोरिया के देशों में भारत से लड़कियों, बच्चों तथा महिलाओं को यौनशोषण व मजदूरी के लिए जबरन भेजा जा रहा है. एक रिकौर्ड के अनुसार, करीब 10 लाख से भी अधिक नेपाली पुरुष तथा महिलाएं इसराईल, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा दूसरे खाड़ी देशों में मजदूरी और यौनशोषण के लिए तस्करों तथा मैन पावर एजेंसीज द्वारा भेजे जाते हैं. इन देशों में इन से कई तरह के काम लिए जाते हैं, जैसे घरेलू नौकर, बड़ेबड़े भवनों के निर्माण में मजदूर के रूप में या फिर छोटेछोटे धंधों में लगाए जाते हैं. इस के लिए इन्हें तरहतरह की प्रताड़नाएं भी दी जाती हैं जिन में पासपोर्ट जब्त कर लेना, घूमनेफिरने की मनाही, तनख्वाह का भुगतान नहीं करना तथा धमकी देने से ले कर यौनशोषण तक शामिल हैं.

अभी जुलाई में उज्बेक लड़कियों को नेपाल से भारत मोटरबाइक पर लाया गया क्योंकि उस पर चैकिंग कम होती है और उज्बेक लड़की अपने को नेपाली आसानी से कह सकती है. एंटी ह्यूमन ट्रैफिक यूनिट ने दिल्ली के मालवीय नगर में विदेशी युवतियों को पकड़ा जो सैक्स टूरिज्म के लिए लाई गई थीं. भारत के कोलकाता में सोनागाछी, लैकिंगटन रोड, दहिसर, बोरीविकी, कमाठीपुरा मुंबई में, बुधवार पेठ पूना का, मीरगंज इलाहाबाद का, दिल्ली की जीबी रोड, इतवारा इलाका नागपुर का, चतुर्भुज स्थान मुजफ्फरपुर, बिहार का, शिव की नगरी वाराणसी में शिवदासपुर उन कुछ जगहों के नाम हैं जहां सैक्स टूरिज्म फलफूल रहा है. बहुत से तीर्थस्थल जैसे उज्जैन, इलाहाबाद भी अपने वेश्याओं के इलाकों के लिए जाने जाते हैं. लोग पूजापाठ कर के वहां जाते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है.

भारत की स्थिति चिंताजनक इस में शक नहीं कि सैक्स टूरिज्म और मानव तस्करी के मामले में भारत की स्थिति विस्फोटक बनी हुई है. यहां इस का धंधा बहुत तेजी के साथ फलफूल रहा है जिस के लिए राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक कारण जिम्मेदार माने जा सकते हैं. एक तो यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि पड़ोसी देशों से बहुत बड़ी संख्या में नाबालिग लड़केलड़कियों की तस्करी आसान है क्योंकि यहां की सीमाएं पूरी तरह से सुरक्षाप्रूफ नहीं हैं जिस का फायदा मानव तस्कर उठाने से बाज नहीं आ रहे. दूसरी बात यह है कि यहां के राजनीतिज्ञों तथा कानून नियंताओं में भी इच्छाशक्ति की घोर कमी है जिस के कारण इस को रोकने के लिए कोई कड़ा कानून बन ही नहीं पा रहा है. यदि बन भी रहा है तो उस का पालन ईमानदारीपूर्वक नहीं हो पा रहा है. तीसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यहां इतनी ज्यादा गरीबी है कि इस का भी फायदा तस्कर उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं. पैसे का प्रलोभन दे कर गरीब मांबाप से ये लोग इन की बेटियों को खरीद कर उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में ?ांकने से बाज नहीं आते.

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