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मुसाफिर -भाग 3: कैसे एक ट्रक डाइवर ने चांदनी की इच्छा पूरी की

चांदनी को जैसे पैर में पंख लग गए थे. उसे बलभद्र की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था. बरतन नाली पर रख कर चांदनी फिर भट्ठी के पास आ बैठी. बलभद्र लेटेलेटे ही गुनगुना रहा था.

गीत गुनगुनाने के बाद बलभद्र बोला, ‘‘बाई, आज यहां रुकने की इच्छा है. आधी रात को कहां ट्रक के पास जाऊंगा. क्लीनर ही गाड़ी की रखवाली कर लेगा. क्यों बाई, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?’’

चांदनी को भला क्या एतराज होता. उस ने कह दिया कि उसे कोई एतराज नहीं है. अगर रुकना चाहो तो रुक जाओ और बलभद्र गहरी तान कर सो गया.

चांदनी की चारों बेटियां ढाबे के पिछले कमरे में बेसुध सोई पड़ी थीं. रात गहरी हो रही थी. बादलों से घिरे आसमान में बिजली की चमक और गड़गड़ाहट रहरह कर गूंज रही थी.

तब रात के 12 बजे होंगे. किसी और ग्राहक के आने की उम्मीद छोड़ कर चांदनी वहां से हटी. देखा तो बलभद्र धनुष बना गुड़ीमुड़ी हुआ चारपाई पर पड़ा था.

चांदनी भीतर गई और एक कंबल उठा लाई. बलभद्र को कंबल डालते समय चांदनी का हाथ उस के माथे से टकराया, तो उसे लगा कि उसे तेज बुखार है.

चांदनी ने अचानक अपनी हथेली बलभद्र के माथे पर रखी. वह टुकुरटुकुर उसे ही ताक रहा था. उन आंखों में चांदनी ने अपने लिए एक चाहत देखी. तभी अचानक तेज हवा चली और पैट्रोमैक्स भभक कर बुझ गया. हड़बड़ा कर उठती चांदनी का हाथ सकुचाते हुए बलभद्र ने थाम लिया. थोड़ी देर कसमसाने के बाद चांदनी अपने बदन में छा गए नशे से बेसुध हो कर उस के ऊपर ढेर हो गई थी. सालों बाद चांदनी को बड़ा सुख मिला था.

भोर होने से पहले ही वह उठी और पिछले कमरे की ओर चल पड़ी थी. उस ने सोचा कि खुद भीमा ने ही तो इस के लिए उस से कहा था, और फिर इस काली गहरी अंधेरी रात में भला किस ने देखा था. यही सब सोचतेसोचते वह नींद में लुढ़क गई.

सूरज कितना चढ़ आया था, तब बड़ी बेटी ने उसे जगाया और बोली, ‘‘रात का मुसाफिर 5 सौ रुपए दे गया है.’’

वह चौंकती सी उठी, तो देखा बलभद्र जा चुका था. चारपाई पर पड़ा हुआ कंबल उसे बड़ा घिनौना लगा. वह देर तक बैठी रात के बारे में सोचती रही.

15 दिन बाद बलभद्र फिर लौटा और भीमा के साथ उस ने खूब खायापीया. नशे में डूबा भीमा बलभद्र का गुण गाता भीतर जा कर लुढ़क गया और चांदनी ने इस बार जानबूझ कर पैट्रोमैक्स बुझा दिया. बलभद्र का अपना ट्रक था और खुद ही उसे चलाता था, इसलिए उस के हाथ में खूब पैसा भी रहता था. चांदनी का सांचे में ढला बदन और उस की चुप रहने की आदत बहुत भाई थी उसे. चांदनी अपने शरीर के आगे मजबूर होती जा रही थी और बलभद्र के जाते ही हर बार खुद को मन ही मन कोसती रहती थी.

अब बलभद्र के कारण भीमा की माली हालत सुधरने लगी. वह उस का भी गहरा दोस्त हो गया था. 3 लड़कों का बाप बलभद्र बताता था कि कितना अजीब है कि वह लड़की पैदा करना चाहता है और भीमा लड़के की अभिलाषा रखता है.

चांदनी चुप जरूर थी, लेकिन अंदर ही अंदर खुश रहती थी. उस का सातवां महीना था. भीमा के साथ आसपास के जानने वाले लोग भी बेचैनी से इस बच्चे के जन्म का इंतजार कर रहे थे.

तब पूरे 9 महीने हो गए थे. एक दिन अचानक बलभद्र खाली ट्रक ले कर वहां आ धमका और उदास होता हुआ बोला, ‘‘अब वह पंजाब में ही ट्रक चलाएगा, क्योंकि घर के लोगों ने नाराज हो कर उसे वापस बुलाया है.’’

यह सुन कर भीमा और चांदनी बेहद उदास हो गए थे. आखिरी बार चांदनी ने उसे अच्छा खाना खिलाया और दुखी मन से विदा किया.

अगले ही दिन उसे अस्पताल आना पड़ा था. तब से वह बच्चा पैदा होने के इंतजार में थे. उसे दर्द बढ़ गया, तो उस ने नर्स को बुलाया. आननफानन उसे भीतर ले जाया गया. आखिरकार उस ने बच्चे को जन्म दिया और बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद होश में आने पर चांदनी ने जाना कि उस ने एक बेटे को जन्म दिया है. वह जल्दी से बच्चे को घूरने लगी कि लड़के की शक्ल किस से मिलती है… भीमा से या बलभद्र से?

सरोगेसी की चमक पर काला बादल : भाग 5

उस के और प्रभाष के अंश, सक्सेना खानदान के 2 चिराग इस दुनिया में आ चुके हैं. उस की सास रजनी ने तो जाने कहांकहां की मिन्नतें पूरी करने की लिस्ट बना ली है पर अब प्रभाष यह सोच कर परेशान था कि लोगों से क्या बताए और क्या छिपाए. इस पूरी बात की जानकारी दोनों के मांबाप के अलावा सिर्फ रोहन को थी. प्रभाष के मन में डर था कि सब को सच बताने पर लोग कहीं न कहीं माधुरी के स्त्रीत्व या उस के पौरुष पर जरूर सवाल खड़ा करेंगे. उसी दिन माधुरी कानपुर वापस आई और अगले दिन प्रभाष उसे सीधा चाइल्ड केयर हौस्पिटल ले गया.

गुलाबी कपड़ों में लिपटे एकएक दिन के 2 मासूम बच्चे माधुरी की गोद में डालते हुए डा. लतिका ने कहा, ‘ये दोनों डब्बे वाला दूध पीते हैं. हर 2 घंटे पर इन्हें दूध पिलाते रहना. हर बार दूध पिलाने के बाद बोतल गरम पानी में उबाल लेना. आने वाले 3 महीने इन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं.’ माधुरी की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. उस ने डाक्टर की ओर देखते हुए पूछा, ‘मैडम, इन की असली मां ने कैसे इन्हें खुद से अलग किया होगा? 9 महीने कोख में पालने के बाद तुरंत अलग कर देना, यह सोच कर ही दिल दहल जा रहा है कि आज उस मां पर क्या बीत रही होगी.

मु झे दो मिनट में इन से लगाव हो गया है. उस ने तो 9 महीने…’ कहती हुई माधुरी रोने लगी. ‘माधुरी, ये सब बातें दिमाग से निकाल दो. तुम ने कम कष्ट सहे हैं क्या इस दिन के लिए. यह इस पूरी प्रक्रिया का सब से मार्मिक पहलू है. अब दिमाग से यह निकाल दो कि ये तुम्हारी कोख से नहीं जन्मे हैं. आज से तुम ही इन की मां हो. दुनिया यशोदा को ही कान्हा की मैया कहती है. कान्हा का जन्म तो देवकी की कोख से हुआ था. जिस ने इन्हें जन्म दिया उस का तुम हमारे ऊपर छोड़ दो. सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं. आज पैसा बहुतों के पास है लेकिन सब को सरोगेट मदर नहीं मिलती है.

और हां, आज के बाद मेरे सामने इस विषय पर दोबारा बात नहीं होनी चाहिए. इन बच्चों के साथ एक नए जीवन की शुरुआत करो,’ कहते हुए डा. लतिका का चेहरा गंभीर और लहजा सख्त हो गया. डा. लतिका का धीरगंभीर व्यक्तित्व इन्हें और भी खूबसूरत बनाता था. पहली नजर में उन्हें देख कर सब उन से प्रभावित हो जाते थे. प्रभाष ने तुरंत कहा, ‘जी मैडम, आप का धन्यवाद हम कैसे करें. बस, यही कहूंगा कि हमारा रोमरोम आप का कर्जदार है.’

डा. लतिका से मिलने के बाद दोनों केबिन से बाहर आ गए. और डा. नटियाल के केबिन के बाहर बैठ कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे. माधुरी ने किसी तरह दोनों हाथों में अलगअलग बच्चों को पकड़ा था. उस के हाथ कांप रहे थे और दिल जोरों से धड़क रहा था. उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सच है. वह आंखें मूंदे सो रहे दोनों नवजन्मे बच्चों को डबडबाई आंखों से देख रही है. उसे इन्हें ठीक से पकड़ना भी नहीं आ रहा. एकएक कर के उस ने दोनों का माथा चूमा, पैर चूमे.

प्रभाष की ओर देखते हुए उस ने कहा, ‘आज मैं संपूर्ण हो गई. प्रकृति से मु झे अब कुछ नहीं चाहिए. मैं इन्हें इतना प्यार दूंगी जितना किसी ने अपने बच्चों को न दिया होगा. इन के नाम होंगे अंशुल और रोली.’ इस के बाद दोनों डा. शिरीष नटियाल से मिले जिन्होंने बच्चों को समयसमय पर लगने वाले टीकों की फाइल दी. डब्बे वाले दूध को बनाने, बोतल से उसे पिलाने के तरीके इत्यादि के बारे में सबकुछ विस्तार से सम झाया. दोनों बच्चों के साथ प्रभाष ने एक सैल्फी ली. माधुरी ने उसे तुरंत टोकते हुए कहा, ‘इसे कहीं पोस्ट मत करना. बच्चों को नजर लग जाएगी.

 

जंगलराज-भाग 1 : राजन को कैसे मिली अपने गुनाहों की सजा

“साहब, मेरी बेटी 10 दिनों से लापता है. साहब, कुछ करो,” अपनी बेटी की फोटो पुलिस के आगे बढ़ाते हुए वह शख्स घिघियाते हुए बोला. लेकिन हर बार की तरह पुलिस ने उस फोटो को अनदेखा कर कहा-

“कितनी बार कहा कि तेरी बेटी गायब नहीं हुई, भाग गई है किसी के साथ. आना होगा, तो खुद ही आ जाएगी. अब जाओ यहां से वरना पकड़ कर जेल में डाल दूंगा. चले आते हैं कहांकहां से,” यह बोल कर उस पुलिस वाले ने डंडा घुमाया.

पुलिस के सामने तो अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती है, फिर वह तो एक गरीब आदमी था. लड़खड़ाते कदमों से आंखों में आंसू लिए वह वहां से निकल आया. नहीं तो बेकार में उसे पुलिस के डंडे खाने पड़ते और अब उस के शरीर में मार खाने की ताकत नहीं बची थी. वह राजन मिश्रा तो पहले ही मारमार कर उसे अधमरा कर चुका है. इतने जुल्म ढाए थे उस पर कि अब पुलिस के डंडे खाने की ताकत उस में नहीं थी.

लेकिन फिर भी किसी तरह अपने पैरों को घिसेटता वह रोज पुलिस स्टेशन पहुंच जाता और गुहार लगाता अपनी खोई हुई बेटी के लिए. लेकिन निराश हो कर खाली हाथ लौट आता. पुलिस वालों को भी अच्छे से पता है उस की बेटी कहां हैं, किस ने गायब किया उसे. पर पुलिस उस की मदद नहीं कर रही क्योंकि पुलिस भी उसी की ही सुनती है जिस के पास पैसा और पावर होता है. गरीब लोगों के तो भगवान भी नहीं होते. वे भी उन्हीं की सुनते हैं जो लाखों का चढ़ावा चढ़ाते हैं. आज महीना से ऊपर हो गया है, लेकिना अब तक उस आदमी की बेटी का कुछ अतापता नहीं.

पुलिस जानती है यह सब उस राजन मिश्रा का किया धरा है. उस ने ही उस की बेटी को अगवा किया है, लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं कह रही है, उलटे उसे ही डांटडपट कर भगा देती है. गलती उस इंसान की सिर्फ इतनी थी कि जरूरत के वक़्त उस ने राजन मिश्रा से पैसे उधार लिए थे जिस का वह सूद भी भर रहा था. लेकिन समय पर पैसे नहीं लौटा पाने के कारण वह राजन मिश्रा उस की जवान बेटी को उठा ले गया. जब वह अपनी बेटी को उस से मांगने गया, तो राजन ने उसे अपने आदमियों से पिटवाया और उसे कुत्ते का पेशाब पिला दिया. धमकी दी कि अगर पुलिस के पास जाओगे तो तुम्हारी बेटी तुम्हें कभी नहीं मिलेगी. और वही हुआ भी. कर्ज लिया पैसा वापस करने के बाद भी राजन ने उस की बेटी को नहीं लौटाया. जाने कहां बेच दिया उसे या मार दिया, कुछ पता नहीं. अब तो उस ने अपनी बेटी के आने की आश ही छोड़ दी है.

राजन मिश्रा इस शहर का जानापहचाना नाम है. वह इस शहर के पूर्व विधायक का भतीजा और अपने गांव के सरपंच का बेटा है. उस का बड़ेबड़े लोगों और नेताओं के साथ उठनाबैठना होता है. राजन मिश्रा सिर्फ सूद पर ही पैसे नहीं लगाता बल्कि उस का शराब का ठेका भी चलता है. और भी जाने कितने उलटेसीधे धंधे हैं उस के. राजन मिश्रा के इस पाप में साथ देता है मुन्ना जो कि उस का दायां हाथ है. और भी उस ने गुंडों की फौज खड़ी कर रखी है जो लोगों को डरानेधमकाने का काम करते हैं. राजन के एक इशारे पर लोगों को ‘स्वर्ग’ पहुंचा दिया जाता है.

“भैया जी, यह सूअर की औलाद बैंक से कर्ज लेने जा रहा था,” उस युवक को घसीटते हुए मुन्ना ने उसे राजन के कदमों में पटक दिया और बोला, “कहता है, बैंक कम ब्याज पर पैसे देता है तो हम वहीं से कर्ज लेंगे. तुम में इतनी हिम्मत आई कहां से रे?” उस युवक को एक धौल लगाते हुए मुन्ना ने पूछा तो हाथ के इशारों से राजन ने उसे रोका. “पर भैया जी, आप कहो तो मैं इसे यहीं टपका दूं अभी के अभी,” उस का गला दबोचते हुए मुन्ना लग रहा था उसे मार ही डालेगा.

“मुन्ना,” राजन गुर्राया, “मैं ने कहा न, रुक जाओ.” तो मुन्ना एक तरफ अपने दोनों हाथ बांध कर खड़ा हो गया राजन के अगले आदेश तक.

“रघु, यही नाम है न तुम्हारा? सुना है अभीअभी तुम्हारी शादी हुई है. तो क्या चाहते हो भरी जवानी में तुम्हारी पत्नी विधवा हो जाए? और दिक्कत क्या है हम से कर्ज लेने में? बू आती है हमारे पैसों से?” उस की ठुड्डी ऊपर उठाते हुए राजन ने पूछा तो रघु थर्रा उठा.

“तुम्हारे बापदादा भी मेरे बापदादा से ब्याज पर पैसे लेते थे. सो, तुम ने कैसे सोच लिया बैंक जाने का, हूं?”

उस की बड़ीबड़ी लाल डरावनी आंखें देख और आगेपीछे खड़े मुस्टंडों को देख रघु की जबान तो उस के तालू से ही चिपक गई. लगा उसे कि क्या पता कब कहां से गोली चले और वह वहीं ढेर हो जाए. इसलिए राजन के सामने नतमस्तक होने के सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था उस के पास.

दरअसल, रघु खेत जोतने के लिए अपना खुद का ट्रैक्टर खरीदना चाह रहा था और इस के लिए ही वह बैंक से लोन लेने गया था. जानता है, बैंक लोगों को बहुत ही कम ब्याज पर लोन देता है. और राजन से जिस ने भी आज तक कर्ज लिया, उबर नहीं पाया. यहां तक कि अपने घर की इज्जत भी उस के यहां नीलाम करना पड़ा. फिर भी वह कर्जमुक्त नहीं हो पाया आज तक. राजन लोगों की भावनाओं से तो खेलता ही था, उन की बहूबेटियों पर भी वह हाथ साफ करता रहता था. जब जो लड़की उसे पसंद आ जाती थी वह उस रात उस के फार्महाउस की मेहमान होती थी.

भगवन, तेरी कृपा बरसती रहे: भाग 1

मां की चपलता और एक पुजारी से सीख कर दयाशंकर पंडिताई का व्यवसाय करने लगा. उस की शादी हुई तो नईनवेली दुलहन ने फरमाइश कर दी. पंडिताई के पेशे से पत्नी की फरमाइश को पूरा करना उस के लिए मुश्किल न था. सब भगवान की कृपा थी. आज सुबह से ही पंडित दयाशंकर बहुत बेचैन थे. उन की समस्या में ही नहीं आ रहा था कि कहां क्या गड़बड़ हो गई भगवान की पूजा में या फिर आज के सारे यजमान दिल की जगह दिमाग से काम लेने लगे हैं जो गत पूरे महीने से उन के पास कहीं से कोई न्योता नहीं आया.

वैसे तो हर दूसरे तीसरे दिन ही नामकरण, गृहप्रवेश, सत्यनारायण की कथा या फिर सुंदर कांड के लिए उन के पास निमंत्रण आते ही रहते हैं जिन्हें वे बड़ी खुशीखुशी मैनेज भी कर लेते हैं. इन आयोजनों से उन की रोजीरोटी बड़े मजे से चलती रहती है पर इस बार तो अति ही हो गई. पूरा महीना होने को आया किसी ने कुछ करवाया ही नहीं.

यों तो रोज ही वे 3 सोसाइटियों के मंदिर में सुबहशाम पूजापाठ करने जाते हैं जिस की उन्हें हर माह 8 हजार रुपए प्रति सोसाइटी के हिसाब से तनख्वाह मिलती है. सो, 24 हजार रुपए कुल तनख्वाह और ऊपर से चढ़ावे के तीनों सोसाइटियों से 3 से 4 हजार रुपए तक आ जाया करते हैं पर असली कमाई तो यजमानों द्वारा घर बुला कर पूजापाठ करवाने से होती है जिस में वीआईपी ट्रीटमैंट, बढि़या खाना, दानदक्षिणा और फलमेवा आदि मिलते हैं. यही सब सोचतेसोचते उन की आंख लगी ही थी और जब तक कि वे गहरी निद्रा में जा पाते तभी उन के मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने फोन उठाया तो सोसाइटी की ही एक निवासी मिसेज गुप्ता का फोन था. ‘‘कैसे हैं पंडितजी? हम लोग कुछ दिनों पूर्व ही कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर लौटे हैं, सोच रहे हैं कि कथा करवा लें.

जनसुनवाई में दिया कंबल

गोंडा । ज़िले में जनसुनवाई के दौरान जब एक बुजुर्ग आया तो वहाँ के डीएम उज्ज्वल कुमार ने ना केवल बुजुर्ग की समस्या का समाधान किया बल्कि बुजुर्ग को जाड़ा ना लग जाये इसलिए एक कंबल भी दिया. उज्ज्वल कुमार बेहद संवेदनशील अधिकारी है जहां भी उनको इस तरह की सेवा का मौक़ा मिलता है आगे बढ़ कर समाज की सेवा करते है.

गुलाम नबी आजाद की डूबती नैया

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के पश्चात जहां कांग्रेस को एक नई ऊर्जा से भर दिया है वहीं अब भारतीय जनता पार्टी और उसके नामचीन चेहरे बैकफुट पर है. यही नहीं जिन लोगों ने राहुल गांधी को डूबती नैया समझ कर के छलांग लगा दी थी और राहुल गांधी के नेतृत्व पर प्रश्न खड़ा किया था. मगर आज वह स्वयं प्रश्नचिन्ह से घिरे हुए हैं और उनके पास कोई जवाब नहीं है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण कांग्रेस के एक बड़े चेहरे के रूप में गुलाम नबी आजाद हैं जिनकी छवि कांग्रेस को छोड़ने के बाद भी अभी भी एक “कांग्रेस मैन” की है उन्होंने भविष्य में कश्मीर में अपने पांव जमाने के लिए कांग्रेस को ठोकर मार कर के कश्मीर की और बढ़ गए थे मगर नई परिस्थितियों में एक तरह से उनकी बोलती बंद हो गई है.

जिस तरह गुलाम नबी आजाद को उनके समर्थक छोड़ कर के कांग्रेस की ओर भाग रहे हैं वह एक कांग्रेस के लिए सुखद संकेत है वहीं भारतीय राजनीति के उस चरित्र को भी उजागर कर रहा है जिसमें स्वार्थी नेता पद और प्रतिष्ठा पाने के लिए इस तरह पार्टियों को बदलते हैं अपने नेताओं और आकाओं को बदलते हैं. ___._ गुलाम का “सबक” ________ ‌ कांग्रेस छोड़ कर के जाने वाले नेताओं में गुलाम नबी आजाद एक ऐसा चेहरा है जो लंबे समय से निष्ठावान कांग्रेसी के रूप में जाना जाता था मगर जैसे ही कांग्रेस की हालात उन्हें खराब महसूस होने लगी उन्हें अपना भविष्य अंधकार में दिखाई देने लगा.

संभवत यही कारण था कि उन्होंने कांग्रेस को छोड़ कर के एक नई पार्टी बना ली मगर आज जिस तरह लोकसभा चुनाव से पूर्व देश की राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं और राहुल गांधी एक सर्वमान्य नेता के रूप में देश में अपने साथ बनाते चले जा रहे हैं तो गुलाम नबी आजाद के हाथों के तोते मानो उड़ गए हैं और उनके साथी नेता कार्यकर्ता उन्हें छोड़ कर के कांग्रेस की ओर दौड़ पड़े. यह सच, भारतीय राजनीति का एक ऐसा चरित्र है जो इसकी सबसे बड़ी कमी है तो ताकत भी. जैसा कि आज देश को जानकारी है कांग्रेस की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (डीएपी) से 17 नेता इस्तीफा देकर कांग्रेस में वापस आ गए हैं. इनमें जम्मू-कश्मीर के पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष पीराजादा मोहम्मद सईद जैसे बड़े चेहरे शामिल हैं.

कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कांग्रेस मुख्यालय दिल्ली में इन नेताओं का स्वागत करते हुए कहा -” पार्टी का मानना है कि ये सभी नेता कांग्रेस छोड़कर नहीं गए थे, बल्कि ये दो महीने के अवकाश पर थे और अब लौटे हैं.” वेणुगोपाल ने आगे कहा -” भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू-कश्मीर में दाखिल होने से पहले हमारे कई नेता घर वापस आ रहे हैं. यह बहुत खुशी की बात है.” आज लाख टके का सवाल राजनीति की फिजा में यह तैर रहा है कि क्या गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस में वापसी को लेकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई संपर्क किया है .

इसका भी जवाब देते हुए
वेणुगोपाल ने कहा -” आजाद ने इससे खुद इनकार किया है.” तारा चंद और सईद के अलावा डीएपी में पदाधिकारी रहे ठाकुर बलवान सिंह, मोहम्मद मुजफ्फर परे, सहित अन्य ने कांग्रेस में वापसी की है.
कांग्रेस में वापसी करने वाले कुछ नेताओं को डीएपी से हाल ही में निष्कासित किया गया था तो कई नेताओं ने आजाद की पार्टी खुद छोड़ी है. पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद ने गांधी परिवार और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का आभार जताते हुए कहा-” हमारी पूरी उम्र कांग्रेस में बीती है. हमने जज्बाती होकर और ( आजाद से) दोस्ती के चलते गलत कदम उठा लिया था.”

रजादा मोहम्मद सईद के मुताबिक -” मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी. मैं कांग्रेस छोड़ने के लिए अपनी इस पार्टी और कश्मीर एवं देश के लोगों से माफी मांगता हूं.”इन सभी संवादों को अगर हम ध्यान से पढ़ें तो स्पष्ट हो जाता है कि राहुल गांधी के निर्णय अब फलीभूत होते दिखाई दे रहे हैं. जिस तरह उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद को छोड़ा और मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया उससे यह संदेश भी गया कि राहुल गांधी पद लिप्सा से दूर है सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने राजनीति के रास्ते पर पदयात्रा की जो एक बड़ी लकीर खींची है उससे भाजपा तो हतप्रभ है ही नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव सभी चिंतित हो चले हैं. शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार ने भी ऐलान कर दिया है कि वे स्वयं 2024 के आम चुनाव के पहले भारत की पदयात्रा बड़े स्तर पर करने वाले हैं.

सर्दी का मौसम आते ही त्वचा खराब होने लगती है, इसके लिए कुछ उपाय बताएं?

सवाल

सर्दी का मौसम आते ही मेरी त्वचा शुष्क हो जाती है, जो देखने में बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती. मौइश्चराइजर लगाती हूं लेकिन थोड़ी देर बाद वह फिर रूखी सी हो जाती है. ऐसा क्या करूं कि स्किन सौफ्ट नजर आए?

जवाब

सर्दी के मौसम में यह एक आम समस्या है. स्किन में इस कदर रूखापन आ जाता है कि ध्यान न दिया जाए तो स्किन डैड हो कर ?ाड़ने लगती है और त्वचा एकदम सफेद नजर आने लगती है. इस के कई कारण हैं. ठंडी हवा द्वारा त्वचा की नमी को सोख लेना, त्वचा में सीबम का कम बनना, गरम पानी से नहाना, नहाने के बाद त्वचा पर तेल या लोशन न लगाना.

आप के सामने भी यह समस्या है, सो, नहाते वक्त गुनगुने पानी की बाल्टी में डेढ़ कप सेब का सिरका मिलाएं, फिर उस से स्नान करें. हो सके तो नहाने के बाद त्वचा को पोंछें नहीं बल्कि सूखने दें और हलका सूखने पर ही त्वचा पर लोशन या औयल लगाना शुरू कर दें.

सर्दी के मौसम में त्वचा पर लगाने के लिए सरसों का तेल सब से अधिक उपयोगी होता है. चेहरे और गरदन को छोड़ कर आप पूरे शरीर पर इस तेल से मालिश करें. सरसों का तेल त्वचा पर देर तक टिका रहता है. यदि आप रात को सोने से पहले इस तेल को शरीर पर लोशन की तरह लगा कर हलकी मसाज करते हैं तो अगले दिन नहाने के बाद भी आप की त्वचा रूखी नहीं होगी. यही कारण है कि जब आप सर्दी के मौसम में दिन में एक बार भी सरसों का तेल लगा लेते हैं तो पूरे दिन स्किन पर ड्राइनैस का असर नहीं होता.       ?-कंचन द्य

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धर्म के मामले में कट्टर अनुयायी नुकसान में

धार्मिक कट्टरता व्यक्ति को नुकसान पहुंचाती है. व्यक्ति इन चक्करों में समय और अनापशनाप पैसा बरबाद करता है. इस की जड़ में तमाम धर्म हैं जहां से निकल कर कर्मकांड अंधविश्वास का रूप ले लेते हैं. ऐसे में जरूरी है कि साइंटिफिक टैंपरामैंट बनाया जाए. दिल्ली के बुराड़ी इलाके में घटी ललित भाटिया के परिवार की सामूहिक आत्महत्या का मामला किसे याद नहीं. इस घटना ने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए थे. आखिर महानगर में ठीकठाक खातेपीते परिवार को ऐसा क्या हुआ कि मकान के अंदर परिवार के 11 सदस्यों की लाशें ऐसे टंगी रहीं जैसे छत पर सूखते कपड़े टंगे रहते हैं.

मामला अंधविश्वास का था. मोक्ष के बाद उस कथित भगवान तक पहुंचने का था जिस का डर और लालच दुनियाभर के सभी धर्मों के पंडेपुरोहित अपनेअपने अनुयायियों को बांचा करते हैं. मामला धार्मिक कुरीतियों को कट्टरता से फौलो करने का था. उस सामूहिक आत्महत्या कांड के मास्टरमाइंड ललित की डायरी से तो यही जानने को मिला कि किस तरह पूरा परिवार धार्मिक कर्मकांडों में जकड़ा हुआ था और वह इस कृत्य को भगवान तक पहुंचने का रास्ता मानता था. जिस की प्लानिंग और प्रैक्टिस पूरा परिवार हर रात किया करता था. प्रैक्टिस के दौरान फंदे पर लटकने से पहले पूरा परिवार हवन किया करता था. इस के बाद डायरी में लिखे तरीके के अनुसार फंदों पर लटक जाया करता था. पुलिस के अनुसार ललित की डायरी में लिखा था कि उस के मृतक पिता की आत्मा का परिवार को निर्देश था कि ‘यह भगवान का रास्ता है और जब वे यह कर्मकांड कर रहे होंगे तब मैं (मृतक पिता) खुद प्रकट हो कर सब को बचा लूंगा.’

जाहिर है यह पूरा परिवार अथाह धार्मिक था. ऐसा एकाएक या एक दिन में नहीं हो जाता. इस के लिए दिमाग की ब्रेनवाशिंग जरूरी होती है जो तमाम धर्म के ठेकेदार अपने अनुयायियों को हर रोज बीपी की मैडिसिन की तरह डायरैक्टइनडायरैक्ट दिया करते हैं. जिस पंडे से निर्देश ले कर यह परिवार यह सब कर्मकांड कर रहे थे उसे भी अच्छाखासा दानदक्षिणा देते रहे होंगे. खूब मंदिरों के चक्कर भी काटते रहे होंगे, सालों के अंधविश्वास का जमावड़ा ऐसा हुआ कि इस का अंत इतना डरावना निकल कर सामने आया. अंधविश्वास के फेर में पड़ कर मौत को गले लगा लेना या किसी को मौत के घाट उतार देना, यह कोई पहली घटना नहीं है.

भारत देश में हर समय कोई न कोई इन कर्मकांडों में घुसा हुआ नजर आ जाता है या हर दूसरे दिन अंधविश्वास के चलते ऐसी घटनाएं देखी जाती हैं. धार्मिक नगरी उज्जैन में 2 सगे भाइयों ने 2 साल पहले शिप्रा नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली थी, जिस में से एक मैडिकल की दुकान चलाने वाला प्रवीण चौहान नामक व्यापारी था. इस दौरान उन्होंने एक पत्रिका भी बनाई थी. खुद की कुंडली में प्रवीण प्रधान ने आत्महत्या का योग बताया था. सम?ा जा सकता है कि प्रवीण किस तरह धार्मिक मान्यताओं को मान रहा था. प्रवीण खुद को ज्योतिषाचार्य भी मानता था. प्रवीण की मौत के 2 दिनों बाद उस के छोटे भाई पीयूष चौहान ने भी खुदकुशी कर ली.

इस दौरान पीयूष ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि वह अपनी माता और दादी के पास जा रहा है. अब अगर पीयूष को कोई यह सम?ाता कि मौत के बाद का किसी ने कुछ नहीं देखा, स्वर्गनरक या परलोक में पूर्वजों का होना धर्म के फैलाए कपोलकल्पना के अलावा कुछ नहीं तो वह आत्महत्या न करता. लेकिन कभी तमाम धर्मग्रंथों के सार में यही कुछ देखने को मिलता है कि इस दुनिया के बाद एक पारलौकिक दुनिया है जहां हूरें और अप्सराएं हैं, जहां पापपुण्य का लेखाजोखा है, जहां पूर्वज भी हैं, जिन से मौत के बाद मिला जा सकता है. एक वाक्य में अगर पिरोया जाए तो धर्म ही वह फैक्ट्री है जहां से निकल कर तमाम कर्मकांड अंधविश्वास का रूप ले लेते हैं. जो जितना कम धार्मिक होता है वह उतना ही डर और लालच में अपना जीवन व्यतीत करता है. साथ ही, जो व्यक्ति इन कर्मकांडों और धार्मिक कट्टरता में जितना फंसा रहता है वह अपना और अपने परिवार का उतना ही नुकसान करवा बैठता है जिस का उसे खुद पता नहीं चलता.

कुल देवता को खुश करने के नाम पर उत्तराखंड के पौढ़ी जिले का रहने वाला राजवीर नेगी इस का सटीक उदाहरण है. नयानया फौज से रिटायर हो कर घर आया था. उसे स्किन संबंधी समस्या होने लगी. डाक्टर से उपचार कराने की जगह राजवीर गांव में पंडित के पास चला गया. पंडित ने कहा, ‘कुल देवता नाराज हो गए हैं और उन्हें मनाने के लिए 5 दिन की बड़ी पूजा करवानी पड़ेगी.’ राजवीर धार्मिक था. फौज से कुछ जमापूंजी मिली थी. उस ने सोचा इस विपदा से निबटने का यही एक रास्ता है. बड़ी पूजा करवाने में 8 बकरों की बलि, पूजापाठ का सामान, मेहमानों की खातिरदारी, उन्हें जाते समय उपहार भेंट करना, परिवार समेत हरिद्वार जाना, पंडे की दक्षिणा में नन करतेकरते कोई 3 लाख का खर्चा बैठ गया. इस पूरे कर्मकांड में होनाजाना कुछ नहीं हुआ, उस की स्किन की बीमारी और बिगड़ती चली गई. अंत में शहर के सरकारी अस्पताल आया तो डाक्टर ने स्किन की समस्या बताई.

उसे दवाइयां दीं, जिस से अब थोड़ीबहुत राहत मिलती नजर आ रही है. एक तरफ तो राजवीर दवाइयां ले रहा है, दूसरी तरफ वह यही मान कर बैठा है कि उस की स्किन की समस्या पूजा करने के चलते ठीक हो रही है और देवीदेवता का प्रकोप कम हो रहा है. धार्मिक कट्टरता व्यक्ति का नुकसान करती है. यह सिर्फ अंधविश्वास के चलते ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी असर डालती है. बात जब ऐसे माहौल की हो जहां देश में राजनीति ही वैज्ञानिक और तार्किक न हो कर धार्मिक मामलों को हवा दे तो मामला ज्यादा संगीन हो जाता है. ऐसे में लोग कट्टर सिर्फ इसलिए नहीं बन जाते कि उन्हें अपने धर्म पर अंधश्रद्धा है बल्कि इसलिए भी बन जाते हैं क्योंकि उन्हें दूसरों के धर्मों से नफरत हो चली है और इस का खमियाजा उन्हें जिंदगीभर उठाना भी पड़ जाता है. सोशल मीडिया पर धर्म प्रचार दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाला 25 वर्षीय अनिकेत शर्मा इस की चपेट में है.

अनिकेत शुरू से ही शहर में रहा है. धार्मिक रीतिरिवाज से उस का शुरू में खास लेनादेना नहीं था. अच्छे इंग्लिश स्कृल में पढ़ा. 12वीं से निकलने के बाद मातापिता ने करीब ढाई लाख रुपए खर्च कर उसे एनिमेशन का कोर्स करवाया. डिजिटल दौर की बड़ी दिक्कत यही है कि यह युवाओं को सहूलियत तो दे रही है पर भ्रम का जाल भी खूब डाले हुए है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भरे अनापशनाप धार्मिक प्रचारों और दूसरे धर्म के खिलाफ भरे कंटैंट ने अनिकेत को भी कट्टर बना दिया. वह मानने लगा कि चूंकि देश में उस के धर्म को मानने वाले अनुयायी ज्यादा हैं तो उस के धर्म का राज आना जरूरी है और देश के नियमकानून पौराणिक आधार पर चलने चाहिए.

4 साल पहले कहां एनिमेशन कर किसी कंपनी में नौकरी करने की चाह रखने वाला अनिकेत अब व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया में ट्रोलर बन कर रह गया है. वह जबतब उन मैसेजों को फौरवर्ड करता रहता है जो भ्रामक हैं. वह उन तमाम ग्रुपों से जुड़ गया है जिन में एक धर्म की प्रशंसा दिनरात होती है और दूसरे धर्म को खूब कोसा जाता है. अनिकेत अपना ज्यादातर समय ट्रोलबाजी में बिताता है. उसे हर वह व्यक्ति देशद्रोही दिखने लगा है जो धार्मिक कुरीतियों का आलोचक है. इस कारण हुआ यह कि जो भी दोस्त कुछ रैशनल और तार्किक बात करता है वह उन से ?ागड़ा कर बैठता है. उस के दोस्त उसे रूढि़वादी मानने लगे हैं क्योंकि वह हर बात पर सोशल मीडिया से फैलाए जा रहे कुतर्कों का हवाला देता है. ऊपर से जब से वह इलाके में ऐक्टिव हुए धार्मिक संगठन से जुड़ गया है, अपना अधिकतर समय वह उस संगठन के लिए दरी उठाने, चंदा बटोरने और प्रचार करने में बिताता है.

ऐसे कट्टर आज भरे पड़े हैं. शाहीन बाग आंदोलन के समय ऐसे वाकए घटे जहां एक पक्ष के कट्टर युवा बंदूक ले कर आंदोलन कर रही महिलाओं को मारने निकल पड़े. वे अपने जीवन को बेहतर बनाने की जगह नफरत से भर गए हैं. नफरत का पागलपन राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या बताती है कि इस नफरत का अंजाम मानव को कहां तक ले कर जाता है. वह किस हद तक पागलपन की हद पार कर लेता है. इसी तरह आज जहां व्यक्ति को साइंटिफिक टैंपरामैंट का होना चाहिए, वहां वह धार्मिक मकड़जालों में फंस कर अपने जीवन को तहसनहस कर रहा है. यह एक तथ्य है जिसे नकारना आज मंदिरमसजिदों में बैठे पंडोंमौलवियों के लिए भी नकारना मुश्किल हो जाएगा कि विज्ञान के बिना इंसानी जीवन आदिकाल में पत्ते लपेटे व्यक्ति से ज्यादा कुछ नहीं. क्योंकि वह पंडामौलवी खुद विज्ञान से मिले संसाधनों का भोग कर रहा है.

आज सुबह उठते वे अलार्म क्लौक, पानी गरम करने वाले गीजर, खाना हैल्दी रखने वाले फ्रिज, सड़क पर चलने वाली गाडि़यों, मोबाइल, लैपटौप, इंटरनैट आदि के इर्दगिर्द ही तो घूमते दिखाई देते हैं और यह सब विज्ञान के बिना क्या संभव है? ऐसे ही बिहार के समस्तीपुर का रहने वाला 33 वर्षीय अमन ?ारोज विज्ञान की इन तकनीकों से अवगत होता है, इन्हें सम?ाताजानता भी है क्योंकि वह अपना सारा वर्क फ्रौम होम करते लैपटौप और इंटरनैट के माध्यम से ही करता है. लौकडाउन में उस का घर सिर्फ चल पाया तो इसलिए कि उस की कंपनी ने घर से काम करने की सहूलियत वहां के कर्मचारियों को दे रखी थी और उस की नौकरी बच पाई पर इस के बावजूद अमन धार्मिक कट्टरता से भी घिरा हुआ है. हाल ही में अमन ने 50 लाख रुपए का बनाबनाया मकान दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में लिया. पंडित से घर का मुहूर्त निकलवाने गया तो पंडित ने घर के वास्तुदोष खराब होने का वहम उस के दिमाग में डाल दिया.

चूंकि जिस से उस ने मकान लिया था उस व्यक्ति के मातापिता की मौत कोरोनाकाल में हो गई थी. अमन परेशान हुआ तो उस ने घर को फिर से रीडिजाइन करवाया. किचन और बैडरूम की दिशा को बदला. इस से हुआ कुछ नहीं. बस, पंडित की जेब गरम हुई और मकान बनाने वाले ठेकेदार को काम मिल गया पर अमन, जिस ने रातदिन खट कर पैसे जोड़े, के 8 लाख रुपए खर्च हो गए. इस के बाद गृहप्रवेश हुआ तो उस का खर्चा अलग उसे करना पड़ा. अब अमन को कौन सम?ाए कि कोरोनाकाल में अस्पतालों की कमी और अस्पतालों में औक्सीजन की कमी से यह सब हुआ. इस में घर के वास्तु का मामला ही नहीं था, इस में तो स्टेट की असफलता थी कि वह कोरोनाकाल को ठीक से संभाल नहीं पाया और लाखों लोगों की मौत हो गई.

धर्मस्थलों से फैला कोरोना आज यह जगजाहिर है कि कोरोना के समय पूरी दुनिया में सभी धर्मस्थलों को बंद किया गया क्योंकि यहीं से कोरोना के फैलने का अधिक खतरा बन रहा था चाहे वह मक्कामदीना हो, यरूशलम हो या सोमनाथ मंदिर हो. वहीं इंसानी जानों को बचाने के लिए अस्पतालों को तो खोला ही गया, साथ ही, नए अस्पतालों को बनाने की मुहिम चली. उस के बावजूद लोग अपनी प्राथमिकताओं को अभी तक नहीं सम?ा पाए. आज समस्या यह है कि देश में धर्म के चलते लोग कर्मों पर भरोसा कम और काल्पनिक भाग्य पर भरोसा ज्यादा करने लगे हैं. ज्योतिषी और लाल किताब का प्रचलन बढ़ने लगा है. अब तो लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए टैरो कार्ड और न जाने कौनकौन सी ज्योतिषी विद्या का प्रचलन बढ़ चला है. क्या ये उदाहरण काफी नहीं कि देश में कई धार्मिक बाबा महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों में जेल की सजा काट रहे हैं?

क्या यह उदाहरण काफी नहीं कि कई ऐसे हैं जो धर्म का मंचन रोज कर रहे हैं पर दानदक्षिणा के नाम पर सोने की गद्दी पर बैठे हुए हैं वे राजनीति में अपनी पकड़ भी जमाए हुए हैं और व्यापार कर अपना सामान भी बेच रहे हैं? आज धर्म के इसी डर के चलते अंगूठा शास्त्र, राशियां, कुंडलियां वाली भविष्य बताओ योजनाएं बांटी जा रही हैं. ये भविष्य सुधारने की बातें कर रहे हैं और लोग इन की शरण में जा कर अपनी संपत्ति लुटाए फिर रहे हैं. ऐसे लाखों लुटेरे पैदा हो गए हैं जो लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं. यह हो ही इसलिए रहा है क्योंकि लोग ऐसा होने दे रहे हैं.

इस चक्कर में हो यह रहा है कि कट्टर लोग डरेसहमे हुए हैं. अगर बिल्ली रास्ता काट जाए तो वे घबरा जाते हैं, चप्पल उलटी हो जाए तो घबरा जाते हैं, किसी को मिर्गी हो जाए तो उसे डाक्टर के पास ले जाने की जगह जूता सुंघाया जाता है, रात में बुरा सपना आए तो सुबह पंडे के पास हो आते हैं, कहीं जाते समय कोई पीछे से टोक दे तो नाराज हो जाते हैं, पीपल के पेड़ पर भूत मानने लगते हैं, मंगलवार को बाल कटवाने से घबराते हैं, सूर्यास्त के बाद ?ाड़ू लगाने से डरते हैं, चौराहे पर नीबूमिर्ची रख आते हैं, कई तरह की अंगूठियां, गंडातावीज पहन कर वे घूम रहे हैं. कट्टर व्यक्ति हर समय किसी न किसी डर में रहता ही है. वह जीवन को जी नहीं रहा होता, बल्कि ढो रहा होता है. वह ऐसा कर न सिर्फ खुद को रोकताटोकता है बल्कि वह मानता है कि घर में जो महिला जोरजोर से हंसती है वह अशुभ होता है. ऐसा कर वह दूसरे पर भी नियंत्रण रखने की कोशिश करता है.

एक युग-भाग 1: सुषमा और पंकज की लव मैरिज में किसने घोला जहर?

‘‘कहो सुषमा, तुम्हारे ‘वे’ कहां हैं? दिखाई नहीं दे रहे, क्या अभी अंदर ही हैं?’’

‘‘नहीं यार, मैं अकेली ही आई हूं. उन्हें फुरसत कहां?’’

‘‘आहें क्यों भर रही है, क्या अभी से यह नौबत आ गई कि तुझे अकेले ही फिल्म देखने आना पड़ता है? क्या कोई चक्करवक्कर है? मुझे तो तेरी सूरत से दाल में काला नजर आ रहा है.’’

‘‘नहीं री, यही तो रोना है कि कोई चक्करवक्कर नहीं. वे ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘तो फिर कैसे हैं? मैं भी तो जरा सुनूं जो मेरी सहेली को अकेले ही फिल्म देखने की जरूरत पड़ गई.’’

‘‘वे कहीं अपनी मां की नब्ज पकड़े बैठे होंगे.’’

‘‘तेरी सास अस्पताल में हैं और तू यहां? पूरी बात तो बता कि क्या हुआ?’’

‘‘जया, चलो किसी पार्क में चल कर बैठते हैं. मैं तो खुद ही तेरे पास आने वाली थी. इन 3-4 महीनों में मेरे साथ जो कुछ गुजर गया, वह सब कैसे हो गया. मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता,’’ कहते हुए सुषमा सिसक पड़ी.

‘‘अरे, तू इतनी परेशान रही और मुझे खबर तक नहीं. ब्याह के बाद तू इतनी बदल जाएगी, इस की तो मुझे आशा ही नहीं थी. जिंदगीभर दोस्ती निभाने का वादा इसी मुंह से किया करती थी?’’ सुषमा की ठोड़ी ऊपर उठाते हुए जया ने कहा, ‘‘मैं तो तेरे पास नहीं आई क्योंकि मैं समझ रही थी कि तू अपनी ससुराल जा कर मुझे भूल ही गई होगी. पर तू चिंता मत कर, मुझे पूरी बात तो बता. मैं अभी कोई न कोई हल निकालने का प्रयास करूंगी, उसी तरह जैसे मैं ने तुझे और पंकज को मिलाने का रास्ता निकाल लिया था.’’

अपनी इस प्यारी सहेली को पा कर सुषमा ने आपबीती बता कर मन का सारा बोझ हलका कर लिया.

पार्वती के पति 10 वर्ष पहले लकवा के शिकार हो कर बिस्तर से लग गए थे. इन 10 वर्षों में उस ने बड़े दुख झेले थे. उस के पति सरकारी नौकरी में थे. अत: उन्हें थोड़ी सी पैंशन मिलती थी. पार्वती ने किसी तरह स्कूल में शिक्षिका बन कर बच्चों के खानेपीने और पढ़नेलिखने का खर्च जुटाया था. 2 जोड़ी कपड़ों से अधिक कपड़े कभी किसी के लिए नहीं जुट पाए थे.

उस पर इकलौते बेटे पंकज को पार्वती इंजीनियर बनाना चाहती थी. गांव की थोड़ी सी जमीन थी, वह भी उन्हें अपनी चाह के लिए बेच देनी पड़ी. एकएक दिन कर के उन्होंने पंकज के पढ़लिख कर इंजीनियर बन जाने का इंतजार किया था. बड़ी प्रतीक्षा के बाद वह सुखद समय आया जब पंकज सरकारी नौकरी में आ गया.

पंकज के नौकरी में आते ही उस के लिए रिश्तों की भीड़ लग गई. उस भीड़ में न भटक कर उन्होंने अपने बेटे के लिए बेटे की ही पसंद की एक संपन्न घर की प्यारी सी बहू ढूंढ़ ली. सुषमा बहू बन कर उन के घर आई तो बरसों बाद घर में पहली बार खुशियों की एक बाढ़ सी आ गई.

पार्वती ने बहू को बड़े लाड़प्यार से अपने सीने से लगा लिया. छुट्टी खत्म होने पर पंकज ने सुषमा से कहा, ‘‘सुमी, मां ने बहुत दुख झेले हैं. तुम थोड़े दिन उन के पास रह कर उन का मन भर दो. मैं हर सप्ताह आता रहूंगा. घर मिलते ही तुम्हें अपने साथ ले चलूंगा.’’

पंकज की बहनें दिनभर सुषमा को घेरे रहतीं. वे उसे घर का कोई भी काम न करने देतीं. सुषमा उन की प्यारी भाभी जो थी. सुषमा को प्यास भी लगती तो उस की कोई न कोई ननद उस के लिए पानी लेने दौड़ पड़ती.

पार्वती के तो कलेजे का टुकड़ा ही थी सुषमा. उस के आने से पूरा घर खुशी से जगमगा उठा. पार्वती उसे प्यार से ‘चांदनी’ कहने लगी. सुषमा के सिर में दर्द भी होता तो वे तुरंत बाम ले कर दौड़ पड़तीं.

धीरेधीरे पंकज के विवाह को 2 महीने बीत गए थे. इस बार जब पंकज घर आया तो सुषमा ने कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी. अब मुझे यहां अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘बस, अगले महीने ही तो घर मिल जाएगा, मैं ने तुम्हें बताया तो था…फिर तुम्हें यहां कौन छोड़ जाएगा?’’

‘‘तो तब तक हम लोग अपने पिताजी के घर रह लेंगे. मां और पिताजी कितने खुश होंगे. इतना बड़ा बंगला है.’’

‘‘नहीं सुषमा, मैं घरजमाई बन कर नहीं रह सकता. यह मुझ से नहीं होगा. यह मैं ने तुम से पहले भी कह दिया था कि मुझ से कभी इस तरह की जिद न करना.’’

लेखिका- शारदा त्रिवेदी

जिंदगी की राह-भाग 3: रंजना और दीपक से क्यों दूर हो गई दीप्ति?

सवालों की बौछार तले से निकलना उसे खूब आता था. तुरंत अपनी गलती मान ली, ‘‘सौरी, सौरी, माई डियर फ्रैंड, मैं ने तुझे जानबूझ कर नहीं बताया था. मुझे लगा कि वह मुझे ढूंढ़ता हुआ अगर कालोनी में आ गया, तो तू कहीं उसे मेरा पता न बता दे.

‘‘मुझे पता है, तू नहीं चाहती थी कि मैं उस से दूर भाग जाऊं.‘‘

“फिर दीपक ने तुझे कैसे खोज लिया? और दीपक को ले कर तेरे सारे डर…? उन का क्या हुआ?‘‘ आधी कहानी तो मुझे पहले ही पता लग चुकी थी.

“अब मैं तुझे कैसे बताऊं कि वह कितना गुस्सा हुआ था कि मैं ने उसे अपने आपरेशन और बाद में लकवे के बारे में कुछ नहीं बताया था. 3-4 महीने से कोई बात नहीं होने से वह बहुत परेशान हो गया था. इंडिया लौट कर उस ने पहला काम किया कि मेरे पुराने घर गया. वहां मेरे बारे में कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. अगले दिन वह मेरे दफ्तर गया और वहां से मेरी नई पोस्टिंग मालूम कर के सीधा मुंबई मेरे घर पहुंच गया. रात के साढ़े 12 बजे, घंटी की आवाज सुन कर पहले तो मैं डर गई. झांक कर देखा तो दीपक खड़ा था.

”दरवाजा खोलने के अलावा मेरे पास कोई और चारा नहीं था. पहले तो उस ने इतना गुस्सा किया कि मैं उस से क्यों भाग रही थी? फिर मेरे आपरेशन के बारे में सारी बातें पूछीं? और जब मैं ने उस से कहा कि उसे किसी और से शादी कर लेनी चाहिए, तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया.‘‘

“अच्छा… क्या बोला?” मैं विस्मयपूर्वक उसे देख रही थी.

“वह कहने लगा, अच्छा अगर मुझे कुछ ऐसा हो जाता तो तुम मुझे छोड़ जातीं? और अगर शादी के बाद ऐसा कुछ हो जाता तो क्या तुम मुझे तलाक दे देतीं? पागल लड़की, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगा?”

‘‘हम सारी रात बहस करते रहे और सुबह उस ने कहा, ‘मैं नाश्ता बनाता हूं, तुम नहाधो कर तैयार हो जाओ. हम आज ही कोर्ट में शादी करने जा रहे हैं. और ऐसे हमारी शादी हो गई’.‘‘

दीप्ति के चेहरे पर वही हजार वाट बल्ब वाली मुसकराहट वापस आ गई थी. मैं ने अचानक नोटिस किया कि उस के चेहरे पर लकवे का तो नामोनिशां भी नहीं था, ना आंख सिली हुई थी और न ही वह सब छिपाने वाला बड़ा सा काला चश्मा था.

“और वो लकवा…? आंख? काला चश्मा?‘‘ मुझे समझ नहीं आया कैसे और क्या पूछूं.

“अरे, दुनिया में बड़े अजूबे होते हैं. ऐसा ही मेरे साथ हुआ. एक वर्ष बाद मेरे चेहरे का लकवा अपनेआप ठीक हो गया. दीपक कहता है उस ने मुझे हंसाहंसा कर कटी हुई नर्व को फिर से जोड़ दिया और डाक्टर कहता है, कभीकभी ऐसा हो जाता है. कहते हैं ना कि सारी बीमारियों का इलाज बस प्यार ही तो है,‘‘ कह कर दीप्ति बहुत जोर से हंस पड़ी, वही पुरानी संक्रामक हंसी. उस के डिंपल फिर वैसे ही गहरा गए.

अचानक पब्लिक एड्रैस सिस्टम पर उस का नाम पुकारा जाने लगा, ‘‘अंतिम काल. श्रीमती दीप्ति जोशी, जो अहमदाबाद से मुंबई जा रही हैं, कृपया विमान की ओर तुरंत प्रस्थान करें.‘‘

आवाज सुन कर दीप्ति ने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और तेजी से प्रस्थान की ओर भागने लगी.

कुछ कदम जा कर उस ने मुड़ कर देखा, हाथ हिलाया और वहीं से चिल्लाई, ‘‘मैं मुंबई जा कर तुझे मैसेज करूंगी. हम फिर मिलेंगे. तेरा फोन नंबर बदला तो नहीं है ना?‘‘

और एक बार फिर दीप्ति भीड़ में गायब हो गई. मुझे खुशी थी कि उस की जिंदगी का वह दुखद अध्याय समाप्त हुआ और उस की जिंदगी में एक बार फिर खुशी की लहर आ गई थी.

वह सामने हवाईजहाज की सीढ़ियां चढ़ रही थी और मेरी आंखें खुशी से नम हो रही थीं. जिंदगी की राह भी कितनी अजीब होती है? हम उसे अपने हिसाब से कितना भी मोड़ने की कोशिश करें, वह हमें अपने अनुसार ही चलाती है. नियति मनुष्य के वश में है या मनुष्य नियति के? पर मैं तो बस यही सोच रही हूं कि क्या इस बार उस का फोन आएगा?

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