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शादी के एक साल में ही हमारा रिश्ता खत्म होने को आ गया है, क्या करें?

सवाल 

हमारी लव मैरिज हुई थी लेकिन शादी हुए एक साल भी नहीं हुआ है कि हमारे बीच लड़ाई  शुरू हो गए हैं. समया नहीं पा रहा कि ऐसा क्या हो गया. कितना प्यार करते थे हम दोनों एकदूसरे से, फिर शादी के बाद पता नहीं क्यों रोज कोई न कोई वजह निकल आती है लड़ाई की. मैं अपनी शादी बचा कर रखना चाहता हूं. मैं अभी भी अपनी पत्नी से पहले जैसा ही प्यार करता हूं. आप ही बताइए हम से कहां गलती हो रही है? क्यों बिागड़े हो रहे हैं कि रिश्ता खत्म हो रहा है?

जवाब

बहुत ही अफसोस की बात है कि घरवालों से लड़ झगड़ कर आप दोनों ने लव मैरिज की और आज दोनों आपस में लड़?ागड़ कर उसी मैरिज को खत्म करने पर तुले हो.

माना कि आप अपनी शादी बचाना चाहते हैं लेकिन क्या आप की पत्नी भी ऐसा कुछ सोच रही है. क्या वह भी अपना रिश्ता बचाना चाहती है. आप दोनों ने लव मैरिज की है. एकदूसरे की रुचियों, अच्छाइयों से अच्छी तरह वाकिफ होंगे, तब भी सम?ादारी से काम नहीं ले रहे.

आप दोनों के बीच अंडरस्टैंडिंग कमजोर है. आप दोनों को चाहिए कि शांति से बैठ कर एकदूसरे की बात सम?ाने की कोशिश करें. ?ागड़ा होता भी हो तो भी एकदूसरे से बात करना बंद न करें. यह बहुत ही सामान्य गलती है जिसे अकसर कपल्स करते हैं. इस कंडीशन में रिश्ते में गलतफहमियां और बढ़ती हैं.

अपने पार्टनर को जताएं कि आप दुनिया में सब से ज्यादा उन पर भरोसा करते हैं, प्यार करते हैं, तभी तो सब से लड़?ागड़ कर आप से शादी की है.

कुछ बातों का बोलना जरूरी होता है. दोनों एकदूसरे के लिए वक्त निकालें, साथ बैठें, घूमें, बाते करें, पुराने हसीन पलों को याद करें. जब शादी नहीं हुई थी तब के सपनों को याद करें. अब तो आप दोनों साथ हैं, वे सपने पूरे करने का वक्त आ गया है. उसे लड़?ागड़ कर बरबाद मत कीजिए.

पुरानी बातें, पुराना ?ागड़ा दूर कर नई शुरुआत कीजिए. अपने प्यार का मजाक मत बनाइए बल्कि अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कीजिए. लड़ाई?ागड़े में कुछ नहीं रखा. जिंदगी ने आप दोनों को एक किया है तो उस का शुक्रिया अदा कीजिए. खुशीखुशी जिंदगी बिताइए.

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पता : कंचन, सरिता ई-8, झंडेवाला एस्टेट, नई दिल्ली-55.

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भारत भूमि युगे युगे: 24 कैरेट के गद्दार

24 कैरेट के गद्दार कांग्रेस के मीडिया प्रमुख बुजुर्ग जयराम रमेश राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान यों तो संयमित से रहे लेकिन मध्य प्रदेश आ कर ज्योतिरादित्य सिंधिया पर यह कहते फट पड़े कि वे 24 कैरेट के गद्दार हैं. वे शायद सोच रहे होंगे कि काश इस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार होती तो अपने युवराज का और भव्य स्वागत होता.

भड़ास निकालना जयराम का भी हक है पर वे हड़बड़ाहट में यह भूल गए कि कैरेट कीमती धातुएं नापने की इकाई है. सिंधिया तो लोहा और एल्युमिनियम सरीखे सस्ते निकले, इन्हें नापने की इकाई अभी बनी ही नहीं है. जयराम जैसे तजरबेकारों को कहना तो अब यह चाहिए कि हम बचेखुचे कांग्रेसियों की वफादारी हमेशा 28 कैरेट की रहेगी. धार्मिक पूंजीवादी अरुण कमल, कुमार विश्वास जितने रईस और लोकप्रिय कवि नहीं हैं क्योंकि उन्होंने पैसों के लिए रामकथा बांचने जैसा पाखंड स्वीकार नहीं किया, उलटे, उन की राय में सच यह है कि आजकल जो जितना धार्मिक है वह उतना ही पूंजीवादी है.

पटना के एक आयोजन में कई छोटेबड़े बुद्धिजीवी साहित्यकार इकट्ठे हुए थे जिन की चिंता साहित्य कम खस्ताहाल होता देश ज्यादा दिखी. अरुण कमल कुछ गलत नहीं कह रहे लेकिन दिक्कत की बात उन जैसों को सुनने और पढ़ने वालों का टोटा है. साहित्य का भी सच यही रह गया है कि आप जितनी ज्यादा चाटुकारिता सत्ताधीशों की करेंगे उतनी ही लक्ष्मी आप पर मेहरबान होती जाएगी. इस के लिए आप में भक्ति नाम के तत्त्व का होना जरूरी है.

अगर यह नहीं है तो आप पटना, लखनऊ, जयपुर, भोपाल, अहमदाबाद कहीं भी इकट्ठा हो लें, कहलाएंगे तो वामपंथी ही. रही बात धर्म और पूंजी के रिश्ते की तो यह तो बहुत पुराना धंधा है जिस की बुनियाद में काल्पनिक डर और उन से बचने की कीमत ही है. कर्मचारियों की गैरत वैसे, देश में कहीं नहीं है लेकिन मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की इज्जत दौ कौड़ी की भी नहीं रह गई है क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह हर कभी मंच से उन्हें सस्पैंड कर देते हैं. इस का हक उन्हें है या नहीं, अभी तक इस पर कोई कुछ नहीं बोला है. राजनीति की विकसित होती इस नई शैली से शिवराज जनता को मैसेज दे देते हैं कि असल लापरवाह और बेईमान यही हैं. इस टोटके का जनता पर असर अगले साल इन्हीं दिनों में दिखेगा जब विधानसभा चुनाव शबाब पर होंगे. कुछकुछ कर्मचारियों का कहना यह है कि जनता की नजर में अपनी इमेज चमकाने को हमें बेईमान ठहरा कर सस्पैंड कर देने का यह तरीका गलत है. इस से हमारी मानहानि भी होती है और दहशत भी फैलती है.

हम कर्मचारी हैं, गुलाम नहीं. निलंबन मुकम्मल जांच के बाद होना चाहिए. यह तो राजाओं और नवाबों जैसी बात हुई. अब कौन इन नादानों को सलाह दे कि भइया, कुछ गलत लगता है तो अदालत का रुख करो. तवायफ और पत्रकार एक तवायफ की वजह से पूरा कोठा ही खरीद लिया लेकिन वह तवायफ ही कमर मटकाते निकल गई. एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने बड़े दार्शनिक से अंदाज में इस्तीफा दिया तो सोशल मीडियावीरों ने उन की तुलना तवायफ से कर डाली जो एक लिहाज से गलत भी नहीं है क्योंकि पत्रकार पैसों के लिए बुद्धि बेचता है और जहां ज्यादा पैसा मिलता है वहां छमछम करने जा पहुंचता है.

कुछ महत्त्वाकांक्षी अपना छोटा कोठा खोल लेते हैं. यह खयाल भी गलतफहमी ही निकला कि अब दर्शक सड़कों पर आते गौतम अडानी हायहाय के नारे लगाएंगे कि हमें स्वस्थ और निष्पक्ष पत्रकारिता चाहिए. देश का पाठक और दर्शक कितना क्रूर या व्यावहारिक है, यह खुशवंत सिंह को याद करते सम झा जा सकता है जिन्हें अब कोई याद भी नहीं करता. रही बात मीडिया संस्थानों की तो वे धन्ना सेठों के ही हैं जिन्हें, बकौल हिंदूवादी, मौसी कहा जा सकता है.

कोई अपना -भाग 3: मधु ने शालीनी से मुंह क्यों मोड़ा

‘ओह, आप,’ मधु का स्वर ठंडा सा था, मानो उसे मुझ से मिलना अच्छा न लगा हो. जब भीतर आई तो उस की सखियों से मुलाकात हुई. उस ने उन से मेरा परिचय कराया, ‘इन से मिलो, ये हैं मेरी रेखा और निशी भाभी, और आप हैं शालिनी भाभी.’

थोड़ी देर बाद 15-20 वर्ष का लड़का मेरे सामने शीतल पेय रख गया. सोफे पर 4-5 सूट बिछाए, वह अपनी सखियों में ही व्यस्त रही. वे तीनों महंगे सूटों और गहनों के बारे में ही बातचीत करती रहीं. मैं एक तरफ अवांछित सी बैठी, चुपचाप अपनी अवहेलना और उन की गपशप सुनती व महसूस करती रही. शीतल पेय के घूंट गले में अटक रहे थे. कितने स्नेह से मैं उस से मिलने गई थी बेगाना सा व्यवहार, आखिर क्यों?

‘अच्छा, मैं चलूं,’ मैं उठ खड़ी हुई तो वहीं बैठेबैठे उस ने हाथ हिला दिया, ‘माफ करना शालिनी भाभी, मैं नीचे तक नहीं आ पाऊंगी.’

‘कोई बात नहीं,’ कहती हुई मैं चली आई थी. मैं मधु के व्यवहार पर हैरान रह गई थी कि कहां इतना अपनापन और कहां इतनी दूरी.

दिनभर बेहद उदास रही. रात को पति से बात की तो उन्होंने बताया, ‘उन्हें बैंक से 2 करोड़ रुपए का कर्ज मिल गया है. नई फैक्टरी का काम जोरों से चल रहा है. भई, मैं तो पहले ही जानता था, उन्हें अपना काम कराना था, इसलिए चापलूसी करते आगेपीछे घूम रहे थे. लेकिन तुम तो उन से भावनात्मक रिश्ता बांध बैठीं.’

‘लेकिन,’ अनायास मैं रो पड़ी, क्योंकि छली जो गई थी, किसी ने मेरे स्नेह को छला था.

‘कई लोग अधिकारी के घर तक में घुस जाते हैं, जबकि काम तो अपनी गति से अपने समय पर ही होता है. कुछ लोग सोचते हैं, अधिकारी से अच्छे संबंध हों तो काम जल्दी होता है और केशव उन्हीं लोगों में से एक है,’ पति ने निष्कर्ष निकाला था.

उस के बाद वे लोग हम से कभी नहीं मिले. मधु का वह दोगला व्यवहार मन में कांटे की तरह चुभता है. कोई ज्यादा झुक कर ‘भाभीजी, भाभीजी’ कहता है तो स्वार्थ की बू आने लगती है. इसी कारण मैं ने उस युवती को टाल दिया. फिर शीतल पेय उन के सामने रख, पंखा तेज कर दिया क्योंकि गरमी बहुत ज्यादा थी. वे दोनों बारबार पसीना पोंछ रहे थे.

चंद क्षणों के बाद उस युवक ने पूछा, ‘‘सुनीलजी कितने बजे तक आ जाते हैं?’’

‘‘कोई निश्चित समय नहीं है. वैसे अच्छा होगा, आप उन से कार्यालय में ही मिलें. ऐसा है कि वे घर पर किसी से मिलना पसंद नहीं करते.’’

‘‘जी, औफिस में उन के पास समय ही कहां होता है.’’

‘‘इस विषय में मैं आप की कोई भी मदद नहीं कर सकती. बेहतर होगा, आप उन से वहीं मिलें,’’ ढकेछिपे शब्दों में ही सही, मैं ने उन्हें फिर वह कहानी दोहराने से रोक दिया जिस की टीस अकसर मेरे मन में उठती रहती थी.

वे दोनों अपना सा मुंह ले कर चले गए. उन के इस तरह उदास हो कर जाने पर मुझे दुख हुआ, परंतु क्या करती? शाम को पति को सब सुनाया तो वे हंस पड़े, ‘‘ऐसा कहने की क्या जरूरत थी, उन की नईनई शादी हुई है. प्रेमविवाह किया है. दोनों के घर वालों ने कुछ नहीं दिया. सो, कर्ज ले कर कोई काम शुरू करना चाहता है. घर चला आया तो हमारा क्या ले गया. तुम प्यार से बात कर लेतीं, तो कौन सा नुकसान हो जाता?’’

‘‘लेकिन काम हो जाने के बाद तो ये मजे से अपना पल्ला झटक लेंगे.’’

‘‘झटक लें, हमारा क्या ले जाएंगे. देखो शालिनी, हम समाज से कट कर तो नहीं रह सकते. मैं बैंक अधिकारी हूं, मुझ से तो वही लोग मिलेंगे, जिन्हें मुझ से काम होगा. अब क्या हम किसी के साथ हंसेंबोलें भी नहीं? कोई आता है या बुलाता है तो इस में कोई खराबी नहीं है. बस, एक सीमारेखा खींचनी चाहिए कि इस के पार नहीं जाना. भावनात्मक नाता बनाने की कोई जरूरत नहीं है. यों मिलो, जैसे हजारों जानने वाले मिलते हैं. इतनी मीठी भी न बनो कि कोई चट कर जाए और इतनी कड़वी भी नहीं कि कोई थूक दे.’’

मेरे पति ने व्यावहारिकता का पाठ पढ़ा दिया, जो मेरी समझ में तो आ गया, मगर भावुकता से भरा मन उसे सहज स्वीकार कर पाया अथवा नहीं, समझ नहीं पाई.

एक शाम एक दंपती हमारे यहां  आए. बातचीत के दौरान पत्नी ने  कहा, ‘‘अब आप कार क्यों नहीं ले लेते.’’

‘‘कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई. जब लगेगा कार होनी चाहिए तब ले लेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘फिर भी भाभीजी, भाईसाहब बैंक में उच्चाधिकारी हैं, स्कूटर पर आनाजाना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों, हमें तो बुरा नहीं लगता. कृपया आप विषय दल लीजिए. हमारी जिंदगी में दखल न ही दें तो अच्छा है.’’

बच्चे बाहर पढ़ रहे थे, जिस वजह से कमरतोड़ खर्चा बड़ी मुश्किल से हम सह रहे थे. ईमानदार इंसान इन सारे खर्चों के बीच भला कहां कार और अन्य सुविधाओं के विषय में सोच सकता है. उस पर तुर्रा यह कि कोई आ कर यह जता जाए कि अब हमें स्कूटर शोभा नहीं देता, तो भला कैसे सुहा सकता है.

एक बार तो कमाल ही हो गया. हमें किसी के जन्मदिन की पार्टी में जाना पड़ा. मेजबान ने मुझे घर की मालकिन से मिलाया, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं और ये हैं मेरी पत्नी सुलेखा.’’ कीमती जेवरों से लदी आधुनिका मुझे देख ज्यादा प्रसन्न नहीं हुईं. फीकी सी मुसकान से मेरा स्वागत कर अन्य मेहमानों में व्यस्त हो गईं. पति को तो 2-3 लोगों ने बैंक की बातों में उलझा लिया, लेकिन मैं अकेली रह गई. चुपचाप एक तरफ बैठी रही. अचानक हाथ में गिलास थामे एक आदमी ने कहा, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘भाभीजी, आप से एक बात करनी थी…जरा सुनीलजी को समझाइए न, पूरे 50 हजार रुपए देने को तैयार हूं. आप कहिए न, मेरा काम हो जाएगा. अरे, ईमानदारी से रोटी ही चलती है, बस? आखिर वे कितना कमा लेते होंगे, यही 14-15 हजार…कितनी बार कहा है, हम से हाथ मिला लें…’’

कुछ भी करा सकता है पैसा

कहते हैं न, पैसे के आगे कोई सगा नहीं. ठीक ऐसे ही आज का समाज बन चुका है. पैसे के लोभ में बच्चे अपने मांबाप को घर से निकालने से ले कर मार डालने तक से परहेज नहीं कर रहे. पत्थरों से ले कर पेड़ों, जानवरों तक पूजने वाले भारत में अपने बुजुर्गों का खयाल नहीं रखा जा रहा है. कभी मांबाप को भगवान मानने वाले भारत के बेटे अब उन्हें बो?ा मानने लगे हैं और उन पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. आधुनिक होते भारत की बदलती जीवनशैली एक बार तो आंखों में चमक भर देती है किंतु जब हकीकत से सामना होता है तो स्थिति काफी भयावह नजर आती है.

परिवार और समाज में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाले बड़ेबुजुर्ग आज उपेक्षित ही नहीं, बल्कि उन की स्थिति काफी दयनीय और बेसहारा भी हो चली है. विकास की दौड़ में आगे निकल चुके बड़े शहरों की हालत वृद्धों के सम्मान और महत्त्व के मामले में काफी खराब है. सांस्कृतिक पतन कहें या महत्त्वाकांक्षा की अंधी दौड़ में मैट्रो शहरों की आबादी अपने बड़ेबुजुर्गों के सम्मान के मामले में नकारात्मक साबित हो रही है. कई लोगों का कहना है कि गांव में उन की स्थिति यहां से अच्छी है. परंतु आएदिन अखबारों में पढ़ने को मिल रहा है कि लड़का मोटरसाइकिल चाहता था, स्मार्ट मोबाइल चाहता था. जब परिवार के बड़ों ने मना किया तो उन पर कातिलाना हमला कर दिया और लड़का भाग गया. कई बार देखने में आया है कि बुजुर्गों के साथ नौकरों से भी बुरा बरताव किया जाता है.

उदारीकृत भारत के नवयुवक बुजुर्गों के साथ अपनी हिंसात्मक और उपेक्षात्मक व्यवहार के लिए जाने जाएंगे. क्या इसे कभी सोचा भी जा सकता था? परिवार के भीतर व्यक्तिगत जीवन और स्वतंत्रता की तलाश को प्रमुखता दी जाने लगी है, जिस के परिणामस्वरूप जिन बच्चों का लालनपोषण अभिभावक बड़े लाड़प्यार से करते हैं, बड़े हो जाने के बाद उन्हीं बच्चों को उन के साथ रहना तक पसंद नहीं आता. यही नहीं, उन्हें तो पसंद नहीं करते परंतु उन की संपत्ति उन्हें चाहिए. भौतिकवाद इस कदर लोगों की मानसिकता पर हावी हो गया है कि अब अपनों का बोध ही समाप्त हो गया है. आर्थिकतौर पर सक्षम होने और आत्मनिर्भर होने के बावजूद वे उन की प्रौपर्टी को हड़पना चाहते हैं क्योंकि बिना मेहनत के वैसे तो उन्हें मिल नहीं सकता. उसे पाने का यही तरीका है. अपनों ने ही लूटा ऐसे वृद्धों की भी कमी नहीं है जो अपने ही बच्चों की धोखाधड़ी का शिकार बने हैं. स्वार्थ और लालच का धंधा आधुनिक मानव अवैध रूप से अपने मातापिता की संपत्ति हथिया कर उन से किनारा करने और उन्हें अपने हाल में छोड़ने से भी नहीं हिचकिचाते. आजकल चाहे अमीर हो गरीब, सभी के साथ ऐसे ही हो रहा है.

जैसे 12 हजार करोड़ रुपए की रेमंड ग्रुप के मालिक विजयपत सिंघानिया पैदल को बेटे ने पैसेपैसे के लिए मुहताज कर दिया. करोड़ों रुपए की फ्लाइट्स की मालकिन आशा साहनी का मुंबई के उन के फ्लैट में ही कंकाल मिला. दोनों ही अपने बच्चों को पढ़ालिखा, योग्य बना कर अपने से ज्यादा कामयाबी की बुलंदी पर देखना चाहते थे. हर मांबाप की यही इच्छा होती है. उन की यह इच्छा पूरी होने के बाद बड़ा आदमी बन जाने के बाद या न बन सकने के कारण मांबाप के मेहनत के पैसे को हड़पने को लालायित रहते हैं क्योंकि वह बिना मेहनत किए ही एकदम से मिल जाता है. उस के लिए वे हिंसा करने में भी नहीं हिचकते? मुंबई में एक आदमी की मां बहुत बीमार हो गई थी. उस ने सोचा, मैं इस से छुटकारा कैसे पाऊं. उस ने आव देखा न ताव मां को छत पर से धक्का दे दिया. बीमार तो थी ही, ऊपर से गिरने पर क्या बचती. यहां बात रमाकांतजी के बारे में भी हो जाए. रमाकांतजी का एक बेटा था.

रमाकांतजी ने एक पौश कालोनी में एक मकान बनाया था. लड़के की शादी हो गई और वे रिटायर हो गए. बेटा एक दिन पापा से बोला, ‘‘पापा, मेरी नौकरी अच्छी नहीं है. मैं बिजनैस करना चाहता हूं.’’ पापा ने कहा, ‘‘कर ले बेटा.’’ ‘‘पापा, उस के लिए तो पैसे चाहिए.’’ ‘‘मेरे पास तो पैसे हैं नहीं. जो कुछ था मकान बना लिया, बच्चों को पढ़ालिखा कर शादीब्याह करने में खर्च हो गए. तुम लोन ले लो.’’ ‘‘लोन तो ले लूं पापा पर कुछ तो गिरवी रखना पड़ेगा. यदि मकान को गिरवी रखता हूं तो मैं रख नहीं सकता क्योंकि यह मेरे नाम से नहीं है. ऐसा करो पापा, यह मेरे नाम से ट्रांसफर करा दो. मैं फिर इस पर लोन ले लूंगा.’’ रमाकांतजी सोचने लगे. उन की पत्नी बोली, ‘‘क्या फर्क पड़ता है. एक ही तो बेटा है. उस को क्या नाराज करना चाहिए?’’ वह जिद करने लगी तो रमाकांतजी ने अपना मकान लड़के के नाम कर दिया. शुरू में कुछ दिन तो ठीक रहा, फिर लड़का कहने लगा, ‘‘बाबूजी, बच्चे बड़े हो रहे हैं, जगह कम पड़ती है. ऐसा करो, आप अपना कमरा खाली कर दो और आप गैरेज में मम्मी के साथ रह लेना.’’ रमाकांतजी को बुरा तो बहुत लगा परंतु मां के अंधपुत्रप्रेम के आगे वे नतमस्तक हो गए.

चलो, यह भी ठीक है परंतु आगे एक ही कमरे में मन न लगने की वजह से खाना खाने के बाद रात को सामने ही बगीचा था, वहां जा कर पतिपत्नी बैठ जाते थे. वहां और भी बुजुर्ग लोग आते थे तो कई बार बात करते समय रात के 10 से 10:30 बज जाते. जब वे वापस आए तो गेट पर ताला लगा मिला. खैर, उन्होंने फोन कर के ताला खुलवा लिया. बाद में लड़का बोला, ‘‘पापा, आप लोग 9:30 बजे तक आ जाओ वरना फिर ताला लग जाएगा.’’ अपना ही मकान, अपना ही घर, सबकुछ दे दिया. गैरेज में उन का रहना भी बेटे को नहीं सुहाया. रमाकांतजी बहुत दुखी हुए. अपने दोस्त से उन्होंने यह बात कही. उन के दोस्त ने सलाह दी कि उस के नाम से किया मकान वापस ले लो. लड़का तो राजी नहीं हुआ. अब बुढ़ापे में केस करना, कोर्ट के चक्कर काटना क्या आसान काम है? जैन परिवार में जैन साहब बिजनैसमैन थे. जब वे और उन की पत्नी छोटी जगह पर थे. जैन साहब की तबीयत खराब हुई तो जैन साहब अपने बेटे के पास जयपुर में दिखाने आए. बेटे ने उन्हें डाक्टर को दिखा दिया और बेटा अपनी पत्नी को साथ ले कर थोड़े दिनों के लिए कहीं बाहर चला गया.

युवाओं की जल्दी अमीर बनने की ख्वाहिश जब बेटा बाहर से आया तो उस ने पापा से पूछा, ‘‘अग्रवाल साहब आए थे तो आप ने दरवाजा क्यों नहीं खोला? वे वापस चले गए. ऐसे क्यों किया?’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं अंदर था, जाप कर रहा था और तुम्हारी मम्मी नहा रही थी. मैं धीरेधीरे चल कर बाहर गया तब तक वे जा चुके थे.’’ जैन साहब सीढि़यों पर खड़े थे. उन का बेटा सीढि़यों पर उन के पीछे था. उस ने बहुत जोर से अपने पापा को धक्का दिया. वे सीढि़यों पर लुढ़कते हुए नीचे गिर गए. उन्होंने जोरजोर से चिल्लाया, ‘‘मार डाला मार डाला.’’ अड़ोसीपड़ोसी भाग कर गए. तब घर पर उन की लड़की भी आई हुई थी. उस ने कहा, ‘‘कुछ नहीं हुआ. पापा को लग गई. मैं अस्पताल ले जा रही हूं.’’ जबकि, उन के घर में बाई काम कर रही थी, उस ने धक्का देते हुए देखा. खैर, वे वापस अपने गांव चले गए.

बेटे ने लोन वगैरह इतना लिया हुआ था कि उस को मकान बेचना पड़ा. कहीं किराए के मकान में रह रहा था. उन के पिताजी की एक तेल की मिल थी. उसे पहले ही किसी को बेच दिया था. अब इस ने अपनी पिता की मृत्यु के बाद कुछ गलत पेपर बनवा लिया और किसी आदमी को बेच दिया. आदमी ने खरीद तो लिया. बाद में पहले खरीदने वाले को पता चला तो उस ने केस कर दिया. अब महाशयजी जेल पहुंच गए. हाथ में पैसा नहीं, कोई जमानत लेने वाला नहीं. बहुत हाथपैर मारे तो जैन समुदाय के लोगों ने मिल कर सहायता की और उस की जमानत हुई. तुरंत करोड़पति बनने के लिए मेहनत न करना, यह ज्यादातर युवाओं की सोच है. इस के लिए उन्हें अपनापराया कोई भी हो, फर्क नहीं पड़ता. वृद्ध होते मातापिता का दर्द ममता के साथ तो बहुत ही बुरा हुआ. लड़का विदेश से आया जब पिता की मृत्यु हुई और मकान को बेच दिया. मां ने कहा ‘‘मैं कहां रहूंगी?’’ ‘‘क्या बात करती हो मम्मी, हमारे साथ. हम साथ ले कर जाएंगे.’’ ममता पढ़ीलिखी थी पर उस की बात पर विश्वास कर लिया. मकान बेच कर रुपयों को लड़के ने अपने नाम करा लिया. मुंबई से उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी. मम्मी से बारबार कहता, अभी आप का वीजा बना नहीं है पर आप परेशान मत हो, बन जाएगा. अभी हम मुंबई चल कर दोतीन दिन घूम लेते हैं. तब तक आ जाएगा आप का वीजा. इसी ऊहापोह में ममता उन के साथ मुंबई चली गई? वहां वे लोग एक होटल में ठहरे. बेटा, बहू और बच्चे एक कमरे में थे. मां ममता को अलग कमरा ले कर दिया था. वह अपने कमरे में रह रही थी. खाना खाते समय बुला लेते और कभी कहते, हम बाहर जा रहे हैं शौपिंग के लिए. हम वहीं खा लेंगे. आप का खाना कमरे में ही आ जाएगा. ममता को बुरा भी नहीं लगा. 2 दिन ठीक निकल गए.

तीसरे दिन सुबह उठी तो बेटेबहू का कोई समाचार नहीं आया तो वह उन के कमरे में गई. कमरा बंद था. उन दिनों में मोबाइल भी नहीं होते थे. उस ने होटल के कर्मचारी से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘साहब लोग तो चले गए, कमरा खाली कर गए. आप के कमरे के लिए भी 2 दिन का किराया वे दे कर गए हैं. आप 2 दिन रह सकती हैं. फिर जैसा आप चाहें.’’ ममता का सिर चकराने लगा. एक मिनट बाद ही वह बेहोश हो कर नीचे गिर गई. कर्मचारी ने ममता को संभाला. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कराया. जब थोड़ी ठीक हुई तो पुलिस ने पूछताछ की. ममता ठीक से कुछ भी बता नहीं सकी. उस ने सोचा, पता वगैरह मैं क्यों पूछूं. मैं तो साथ में जा रही हूं. उसे कैसे पता था उस का बेटा उस को धोखा दे रहा है. पुलिस ने पूछा, ‘‘अब आप को कहां जाना है, पता बता दीजिए.’’ ममता को लगा मैं वापस कहां जाऊं, किस के पास जाऊं. भले ही उस के बेटे ने उसे धोखा दिया हो परंतु उस को लगता है मेरे बेटे के बारे में जानने के बाद सभी को अपने बेटों पर से विश्वास उठ जाएगा. सो, कहीं भी, किसी रिश्तेदार के यहां जाना उस ने पसंद नहीं किया. वहीं पर एक अनाथाश्रम में रहने लगी.

उसे गानाबजाना बहुत अच्छी तरह से आता था. अनाथाश्रम के लोग भी बड़े खुश हुए उसे वहां सुपरवाइजर बना दिया. हैल्प एज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू ने बताया, ‘‘सताने के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं, बहू तो है ही. 38 प्रतिशत मामलों में लड़के भी दोषी हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि मांबाप को तंग करने में बेटियां भी पीछे नहीं.’’ हैल्प एज इंडिया की सोनाली शर्मा कहती हैं, ‘‘कुछ सचाई बहुत कड़वी है. परिस्थितियां इस कदर बदल रही हैं कि बुजुर्गों की दर्दभरी दास्तान सुन कर कानों को यकीन भी न हो. बुजुर्ग अपने घर के भीतर भी असुरक्षित हैं.’’ मैथ्यू कहते हैं, ‘‘बुजुर्गों के प्रति संवेदनहीनता देश के छोटेबड़े सभी शहरों में दिखाई देती है. यह प्रवृत्ति देश के उत्तरदक्षिण और पूरबपश्चिम हर जगह पाई जा रही है.’’ बुजुर्गों पर अत्याचार के लिहाज से देश के 24 शहरों में तमिलनाडु का मदुरई सब से ऊपर है, जबकि उत्तर प्रदेश का कानपुर का नंबर दूसरा है. बड़े महानगरों में हैदराबाद सूची में पहले स्थान पर है जहां 37.5 फीसदी बुजुर्गों को अपने बच्चों से शिकायत है. मैथ्यू का कहना है कि बड़े शहरों के बुजुर्ग अपना दर्द सार्वजनिक नहीं करना चाहते.

मुंह खोलने पर परेशानी और बढ़ने की आशंका के चलते वे चुप रहना पसंद करते हैं. दूसरे, बदनामी का डर भी बना रहता है. संपत्ति विवाद के चलते भी बुजुर्गों पर अत्याचार हो रहे हैं. युवा चाहते हैं इसी समय तुरंत सबकुछ उन को मिल जाए और वे शानोशौकत से रह सकें. बुजुर्गों को घर में कैद किए जाने या फिर घर से बेदखल किए जाने की खबरें आती रहती हैं. ऐसे ही एक मामले में जोधपुर की अदालत ने पिछले दिनों एक बुजुर्ग महिला को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए घर में सीसीटीवी कैमरा लगाने के निर्देश दिए. अभी हाल में ही एक खबर आई थी कि जापान में बुजुर्ग छोटेमोटे अपराध के जरिए अपनी स्वेच्छा से जेलों को आशियाना बना रहे हैं क्योंकि जेल में उन्हें भोजन, कपड़े और चिकित्सा सुविधाएं आदि आसानी से मिलती हैं जो उन्हें घर पर नसीब नहीं होतीं. इसी वजह से अधिकतर बुजुर्ग अपराध कर खुद गिरफ्तार हो कर जेल जा रहे हैं. दरअसल यह सिर्फ जापानी समाज की समस्या नहीं है, बल्कि भारतीय समाज की भी मुख्य समस्या है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में इस समय कुल आबादी के 10 फीसदी बुजुर्ग हैं. बुजुर्गों के लिए कानूनी मदद भी दूर की कौड़ी है. अब सवाल यही है कि क्या इस समस्या का समाधान कानूनी तौर पर किया जा सकता है? सोचने की जरूरत हमारे भारतीय समाज में बुजुर्गों का मुद्दा पाश्चात्य देशों से थोड़ा भिन्न है. पाश्चात्य देशों में कानूनी संरक्षण दे कर उन के लिए ओल्ड एज होम्स खोल कर उन के लिए रोजगार मुहैया करा कर उन की तकलीफ को कम किया जाता है. मगर भारत में परिवार की अवधारणा अलग रही है. यहां पर रिश्ते भावनाओं से चलते हैं, सम?ाते से नहीं. इसीलिए बुजुर्गों की समस्या के समाधान का सब से बेहतर तरीका हमारी संवेदनशीलता और रिश्तों की सम?ा है. युवाओं में हिंसा की प्रवृत्ति इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि टीचर ने कुछ कहा तो भी उसे मार दिया जाए.

अभी थोड़े दिनों पहले भी हम ने देखा था एक बच्चे को बड़ी क्लास के बच्चे ने मार डाला ताकि छुट्टी हो जाए, एग्जाम न देना पड़े. एक दूसरा किस्सा एक बहुत बड़े बिजनैसमैन का है जिन के घर में बड़ा पूजापाठ होता था. दानपुण्य भी बहुत करते थे. उन के 3 बच्चे थे, एक लड़का 2 लड़कियां. बड़े लाड़प्यार से पाला था. पैसे की कोई कमी तो थी नहीं. बच्चे अनापशनाप खर्च करते थे. तीनों बच्चे जिम जाते थे. वहां से आते समय काफी देर से आने लगे. सो, उन के पापा ने पूछा, क्यों देर से आते हो तो वे बोले उन को जिम मास्टर छोड़ता नहीं है. उन का जवाब सुन कर उन के पापा ने जिम जा कर कहा कि बच्चों को समय पर छोड़ दिया करो. एक दिन अचानक उन के यहां पर बड़ा शोरगुल हुआ तो पड़ोसी भाग गए. उन्होंने देखा, बच्चों ने मांबाप पर हमला कर दिया. कुल्हाड़ी से पापा के सिर में मारा और मम्मी के बालों को कैंची से काट दिया और कैंची से वार कर दिया? जब पड़ोसी गए तो लड़कियां कहने लगीं कि हमारी मां का संबंध घर के नौकर से है, इसीलिए हम ने मारा. जबकि पड़ोसी ने देखा कि अलमारी की चाबी लड़की मांग रही थी. मां उस को नहीं दे रही थी, छीना?ापटी हो रही थी. लोगों ने बताया, लड़कियां नशा करती हैं. शायद जिम वाले ने उन्हें पहले नशे से अवगत कराया था. जब वे यूज टू हो गईं तो उन्हें पैसों की जरूरत पड़ी.

मांबाप के मना करने पर उन्होंने मांबाप पर ही हमला कर दिया. फिर तीनों बच्चे मिल कर गाड़ी ले कर भाग गए परंतु पैसे वाले पहुंच वाले थे. सबकुछ पैसे खिला कर ठीकठाक कर लिया. हमारे समाज में युवाओं को क्या हो गया है? उन में सहनशीलता नाम की चीज नहीं है. युवाओं में और बच्चों में जो तुरंत पैसे वाले यानी अमीर बनने की लालसा और देखादेखी दूसरों की भी नकल करने की प्रवृत्ति है वह दूर होनी चाहिए. समाज को हम ही सुधार सकते हैं. इस के लिए हमें ही सोचना होगा. दूसरा आ कर करेगा, कोई कृष्ण जन्म लेगा, राम जन्म लेगा या सरकार करेगी, कानून करेगा, ऐसा बिल्कुल संभव नहीं. जो कुछ करना है हमें ही समाज को सुधारने के लिए करना पड़ेगा.

जीएम फसल और तकनीक

राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली भा डीएनए क्या है? डीएनए एक जैव यौगिक है, जो किसी भी जीव में आनुवांशिक सूचना को समाहित रखता है. मातापिता से संतति में जाने वाले आनुवांशिक गुणों जैसे आकार, प्रकार, रंग इत्यादि से संबंधित सूचना का भी निर्धारण करता है. जैव प्रौद्योगिकी क्या है? जैव प्रौद्योगिकी एक तकनीक है, जिस में किसी भी जीव का उपयोग किसी विशेष उपयोग के लिए या उत्पाद को बनाने या विधि को रूपांतरित करने के लिए किया जाता है.

ट्रांसजेनिक तकनीक क्या है? ट्रांसजेनिक तकनीक आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी का एक उदाहरण है, जिस के अंतर्गत किसी भी जीव के जीन को दूसरे किसी जीव में स्थानांतरित कर के किसी वांछित गुण को प्राप्त किया जाता है. जैसे किसी पौधे को किसी विनाशकारी कीट के प्रति प्रतिरोधी बनाने के लिए जीन का स्थानांतरण करना. जीएम फसल किसे कहते हैं? ट्रांसजेनिक फसल वह फसल है, जिन के जीनों के समूह में किसी दूसरी प्रजाति के जीन या जीनों को स्थानांतरित कर के सम्मलित किया जाता है. इस तकनीक के अंतर्गत जीन को किसी असंबंधित पौधे या पूर्ण रूप से भिन्न प्रजाति से भी लिया जा सकता है. किन हालात में जीएम फसल बनाए जाते हैं?

किसी भी फसल को अपने जीवनकाल में बहुत सारे जैव और अजैव तनाव (स्ट्रैस) से गुजरना पड़ता है, जिन से पूर्ण रूप से लड़ने के लिए इन फसलों या इन से संबंधित प्रजातियों में कभीकभी वांछित गुण नहीं पाए जाते हैं, जो कृषि पैदावार के दृष्टिकोण से काफी नुकसानदायक होते हैं. यदि यह जानकारी हो कि यह वांछित गुण किसी दूसरे जीव में पाए जाते हैं, तो ऐसी परिस्थिति में उस वांछित गुण से संबंधित जीन को उस पौधे में स्थानांतरित किया जाता है या किया जा सकता है. चूंकि फसलों में प्रजनन सिर्फ उसी प्रजाति में ही संभव है, ऐसे गुणों को सिर्फ इसी तकनीक से ही शामिल किया जा सकता है.

बीटी कपास इस का एक उदाहरण है. जीएम फसल की क्या जरूरत है? जैसा कि यह पहले साफ किया जा चुका है कि ट्रांसजेनिक तकनीक का उपयोग वैज्ञानिक फसलों के गुणों को और विकसित करने के लिए करते हैं. यह तकनीक परंपरागत तरीकों से गुणों का संततियों में स्थानांतरण की निर्भरता को दूर करता है. क्या होगा जब हम या हमारे पशु जीएम फसलों का उपयोग खाने में करेंगे? अभी तक हमारे बीच ऐसा कोई भी वैज्ञानिक तथ्य सामने नहीं आया है, जो यह प्रमाणित करता हो कि ट्रांसजेनिक फसलों के डीएनए से मनुष्यों/पशुओं के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर होता हो. वैसे भी डीएनए हमारे हर तरह के खाद्य पदार्थों (शाकाहारी और मांसाहारी) में मौजूद होता है, जिस का हम प्रतिदिन उपयोग करते हैं. ये डीएनए चाहे ट्रांसजेनिक फसलों या गैरट्रांसजेनिक फसलों से हमारे भोजन में आते हों,

पाचन के दौरान छोटेछोटे जैव यौगिकों में बदल जाते हैं या उत्सर्जित हो कर हमारे शरीर से बाहर चले जाते हैं. जीएम फसलों की खेती से मिट्टी या आसपास के वातावरण पर क्या असर पड़ेगा? ऐसी फसलों की खेती पूरे परीक्षण के बाद ही की जाती है. वैज्ञानिक परीक्षणों ने यह साबित किया है कि इस तकनीक के कारण वातावरण, मिट्टी और जैव विविधता पर इस का कोई बुरा असर नहीं पड़ता. भारत में किसानों द्वारा कौन सी जीएम फसलों की खेती की जा रही है? भारत में पड़े पैमाने पर ट्रांसजेनिक कपास (बीटी कपास) की खेती की जा रही है. यह बीटी कपास बौल्वर्म कीटों से प्रतिरोधित है. भारत में कपास की खेती में उपयोग होने वाले खेतों का 95 फीसदी हिस्सा बीटी कपास की खेती में प्रयोग हो रहा है. बीटी कपास क्या है? वैसे, बीटी कपास ट्रांसजेनिक फसल है (आनुवांशिक रूप से संशोधित कपास), जिस में एक विशेष गुण ट्रांसजेनिक तकनीक के द्वारा शामिल किया गया है.

इस के फलस्वरूप यह एक कीटनाशक प्रोटीन का उत्पादन करने लगता है. कीटनाशक प्रोटीन उत्पन्न करने वाला जीन, मिट्टी में पाए जाने वाले एक जीवाणु (बैसिलस थूरींजिएन्सिस) से प्राप्त किया गया है. बीटी जीन कैसे काम करता है? बीटी जीन क्राई नामक प्रोटीन का कोडन करता है, जो कीटपतंगों के लिए विषैला होता है. जब इस प्रोटीन को कीटपतंग खाते हैं, तब यह प्रोटीन उन के मध्य आंत में मौजूद क्षारीय माध्यम में सक्रिय विष प्रोटीन के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं. सक्रिय विष प्रोटीन में बदलने के बाद ही यह ब्रश बार्डर कोशिकाओं में उपस्थित ग्राही (रेसेप्टर) प्रोटीन से स्वीकृत किए जाते हैं. नतीजतन, ऐसी कोशिकाओं में छेद हो जाते हैं और जिन से हो कर जल और आयन प्रवेश करने लगते हैं. अंतत: कोशिकाएं एवं कीट मर जाते हैं. बीटी कपास की खेती से किसानों को क्या लाभ मिला है?

वर्ष 2002-2016 के बीच भारत में किसानों ने बीटी कपास की खेती कर के अपनी आय को तकरीबन 21.1 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंचा दिया है, जिस से तकरीबन 7.5 मिलियन किसानों और उन के परिवारों को लाभ मिला है. बिक्री से पहले जीएम फसलों का कौनकौन सा परीक्षण किया जाता है? भारत में जीईएसी सर्वोच्य संस्था है, जो जीएम फसलों के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति प्रदान करती है. यह अनुमति विभिन्न बायोसेफ्टी परीक्षण जैसे प्रयोगशाला, नैटहाउस, सीमित फील्ड वगैरह के बाद ही दी जाती है. एक बार जब यह वातावरण, मनुष्यों और जानवरों के उपयोग के लिए सुरक्षित पाया जाता है, तब ही खेती के लिए अनुमति दी जाती है.

भविष्य में जीएम फसलों से क्याक्या अपेक्षाएं हैं? ट्रांसजेनिक तकनीक में बहुत सी संभावनाएं हैं, जो उच्य पैदावार वाली, साथ ही साथ अत्यधिक पोषक तत्त्वों वाली किस्में विकसित कर सकती हैं. अनुसंधान ये बताते हैं कि इस तकनीक से हम लवण, सूखा, उष्मा प्रतिरोधी किस्में बना सकते हैं. इस के अतिरिक्त हम ऐसे पौधे विकसित कर सकते हैं, जो व्यावसायिक यौगिक जैसे औद्योगिक तेल, प्लास्टिक, दवा, रोग संबंधित टीका का उत्पादन कर सकते हैं. आधुनिक समय में पादप प्रजनन में कौनकौन सी नई पद्धतियों की खोज हुई है? अभी हाल के वर्षों में कुछ नई तकनीकों जैसे क्रिस्पर (क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शार्ट पैलिंड्रोमिक रेपिट्स), टैलेंस (ट्रांसक्रिप्शन एक्टीवेटर लाइक इफैक्टर न्यूक्लेयज), मैगान्यूक्लेयज की खोज हुई है, जो अत्यधिक सटीक तकनीक है. इन तकनीकों का उपयोग फसलों के गुणों में बेहतर सुधार के लिए किया जा रहा है. संस्था की इस वैबसाइट 222.ठ्ठद्बश्चड्ढ.द्बष्ड्डह्म्.द्दश1.द्बठ्ठ पर भी जानकारी ली जा सकती है.

राशिफल का चक्कर : निर्मला चाची ने क्या तर्क प्रस्तुत किया

आशु तोषी और सुधीर से कह रही थी, ‘‘मैं ने पिछले सप्ताह अपने राशिफल में पढ़ा था कि किसी नजदीकी रिश्तेदार से अचानक भेंट होगी और उसी शाम को मामाजी आ गए.’’ तभी रोमा और अलका ने प्रवेश किया और वे भी उन की बातचीत में शामिल हो गईं. सुधीर बोला, ‘‘ऐसा एक बार मेरे साथ भी हुआ था. मेरे राशिफल में लिखा था कि कोई अच्छा समाचार मिलने की संभावना है और उसी दिन मेरे बड़े भैया की नौकरी का बुलावा आ गया. मुझे लगता है कि राशिफल में कुछ तो सचाई होती ही है.’’

अलका ने कहा, ‘‘आशु भैया, मामाजी को तो आना ही था. उन्होंने अपने पत्र में लिखा था कि वे अगले महीने आ रहे हैं. सुधीर, तुम्हारी बात भी तर्कयुक्त नहीं है. राशिफल तुम ने अपना देखा और नियुक्तिपत्र तुम्हारे बड़े भाई का आया.’’

रोमा, जो अभी तक सिर्फ सुन रही थी. बोली, ‘‘यह तो संयोगवश भी हो सकता है कि किसी दिन का राशिफल उस दिन की घटना से मेल खा जाए, तब हम उसे याद रख लेते हैं, लेकिन 10 में से 8 दिन की जो बातें गलत निकलती हैं, उन्हें हम भुला देते हैं.’’ तोषी ने आशु का पक्ष लेते हुए कहा, ‘‘मेरा तो राशिफल में बहुत विश्वास है. मैं तो हर दिन राशिफल अवश्य देखता हूं. यह कई बार सही भी निकलता है.’’

अभी उन की बातें चल ही रही थीं कि निर्मला चाची आ गईं. अलका ने उन से पूछा, ‘‘चाचीजी, राशिफल के बारे में आप की क्या राय है?’’ ‘‘मैं राशिफल नहीं देखती. एक दिन सभी अपनाअपना राशिफल देख रहे थे. मुझ से भी रमा ने मेरी राशि पूछी और मेरा राशिफल सुनाया कि आप को आज अचानक धन लाभ होने की संभावना है. कहीं से अच्छे समाचार भी मिल सकते हैं. स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा,’’ निर्मला चाची ने कहा.

‘‘चाची, फिर क्या सभी बातें सही निकलीं?’’ रोमा ने पूछा.

निर्मला चाची हंसते हुए बोलीं, ‘‘मैं वही तो बता रही हूं. पूरी बात सुनने के बाद राशिफल का चक्कर समझ में आ जाएगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे चाचाजी 10 बजे दफ्तर जाते हैं और 4 बजे लौटते हैं. मैं दोपहर 12 बजे स्कूल जाती हूं और 5 बजे तक लौटती हूं. उस दिन काम की अधिकता के कारण मैं बहुत व्यस्त रही और जल्दीजल्दी काम निबटा कर स्कूल चली गई.

‘‘स्कूल में भी राशिफल की बातें याद आईं तो मैं सोचने लगी कि धनलाभ कहां से हो सकता है? इस की तो कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही थी. सोचा, हो सकता है कहीं से कोई अच्छा समाचार मिल जाए. हलकी सी ठंड थी. मैं जल्दी में शौल लाना भूल गई थी. करीब साढ़े 3 बजे बारिश होने लगी जो शाम साढ़े 5 बजे तक नहीं रुकी. ‘‘मैं हलकी बारिश में ही घर पहुंची. तुम्हारे चाचाजी के लौटने में भी किसी मीटिंग के कारण विलंब हो गया था. वह भी मेरे साथ ही ऊपर आए. मैं ने कमरा खोला. वहां बड़ा अजीब दृश्य था. मेरा माथा ठनका. कमरे में कई जगह गंदगी पड़ी थी और 1-2 जगह उलटी भी थी. अंदर वाले कमरे में दूध, दही और घी फैला हुआ था. कुछ फल और बिस्कुट भी बिखरे पड़े थे. फ्रिज का दरवाजा खुला पड़ा था.

‘‘चाचाजी कहने लगे कि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब कैसे हुआ. कमरे का ताला तो बंद था.

‘‘मैं जल्दीजल्दी बालटी में पानी भरने लगी. इतने में एक बिल्ली अलमारी के नीचे से निकल कर भागी. अब हम दोनों पूरी बात समझ गए. मैं दोपहर में फ्रिज का दरवाजा ठीक से बंद करना भूल गई थी. बाहर ताला लगाते समय मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि अंदर बिल्ली बंद हो गई है. नतीजा सामने था. उस ने जो कुछ भी खाया था, सब बाहर निकाल दिया. दूध, दही, घी आदि का जो नुकसान हुआ, उस की कीमत लगभग 200 रुपए थी. गंदगी साफ करने में मुझे काफी परेशानी हुई. ‘‘तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी मेरे देवर का फोन था वह बोला कि मंजू की तबीयत बहुत खराब हो गई है. आप शीघ्र जयपुर आ जाएं. मैं अकेला उसे संभालूं या बच्चों को? ‘‘यह खबर सुनते ही हम चिंतित हो गए. स्कूल से आते समय मैं कुछ भीग गई थी और ठंड के कारण मुझे बुखार भी हो गया था.

अगले दिन तबीयत ठीक न होते हुए भी मुझे जयपुर जाना पड़ा. अब तुम्हीं फैसला कर लो कि राशिफल कैसा रहा? अचानक धन प्राप्ति के स्थान पर मुझे लगभग 200 रुपए का नुकसान हुआ. अच्छा समाचार मिलने के बदले देवरानी की तबीयत खराब होने की खबर आई और स्वास्थ्य ठीक होने की जगह मुझे बुखार हो गया.’’

सभी लड़केलड़कियां समझ गए थे कि राशिफल का चक्कर बेकार होता है. इस के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.

जिंदगी की राह-भाग 2: रंजना और दीपक से क्यों दूर हो गई दीप्ति?

कुछ देर तो मैं वहां जड़वत खड़ी टैक्सी को जाते हुए देखती रही, फिर घर की ओर मुड़ गई. यह कैसा फेयरवेल था? सहेली से बिछुड़ने का दुख भी हुआ और गुस्सा भी बहुत आया. मैं वहां खड़ी न होती, तो वह शायद मुझे बता कर भी न जाती. इसी को दोस्ती कहते हैं क्या?

मैं ने उस के फोन का हफ्तों तक इंतजार किया. न कोई फोन आया और न ही कोई मैसेज. मुझे तो ये भी नहीं पता था कि वह गई किस शहर में है. सेलफोन पर फोन किया, तो एक ही जवाब, ‘‘आप जिस फोन से संपर्क करना चाह रहे हैं, वह या तो स्विच्ड औफ है या कवरेज क्षेत्र से बाहर है.‘‘

और कुछ दिन बाद, ‘‘यह नंबर मौजूद नहीं है.‘‘

उस ने अपना फोन नंबर ही बदल लिया था और मुझे फोन करने की जरूरत भी नहीं समझी थी. सेलफोन तो बदला ही, उस ने अपना फेसबुक अकाउंट भी डीएक्टिवेट कर दिया था. उस को भेजी हुई ईमेल भी वापस आ रही थी. मन उस की परेशानी को ले कर पहले ही उदास था, अब मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था कि उस ने मेरी दोस्ती का कैसा भद्दा मजाक उड़ाया था.

इस घटना को कई वर्ष बीत गए. जिंदगी अपनी डगर पर चलती गई. नए रिश्ते बनते गए. नौकरी की बढ़ती हुई जिम्मेदारियां और घर पर बढ़ती उम्र के 2 बच्चों की देखरेख, कुछ सोचने के लिए दो क्षण भी नहीं मिलते थे.

दीप्ति द्वारा दिया गया घाव भी अब संभवतः भर चला था, हालांकि कभीकभी अचानक उस की बहुत याद आती. कहां होगी, कैसी होगी? कौन जाने…?

फिर ऐसे ही एक दिन अचानक दफ्तर में निर्देश मिले. मुझे अहमदाबाद के एक प्रतिष्ठित संस्थान में 3 दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए जाना था. जाने का मन तो नहीं था, पर प्रोग्राम अच्छा था, सो मना नहीं किया और मैं अहमदाबाद पहुंच गई. वहां अलगअलग संस्थानों और बैंकों से अधिकारी आए हुए थे.

पहले दिन ही जब सब प्रशिक्षणार्थी अपनाअपना परिचय दे रहे थे, मैं एक व्यक्ति का परिचय सुन कर सतर्क हो गई. वह उसी बैंक का था, जिस में दीप्ति काम करती थी. मैं ने तभी सोच लिया कि मौका लगते ही उस से दीप्ति के बारे में पूछूंगी. मौका हाथ तो लगा, परंतु आखिरी दिन.

हम लोग लंच के समय एक ही मेज पर थे और मैं पूछे बगैर न रह सकी, ‘‘क्या आप दीप्ति जोशी को जानते हैं? कई वर्ष पूर्व वह दिल्ली हेड औफिस में थी. पता नहीं, अभी कहां है?‘‘

‘‘हां, हां, उसे तो मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. दीप्ति मेरी बैचमेट ही तो है. आजकल वह मुंबई की मुख्य शाखा में है. क्या आप जानती हैं उसे?‘‘

‘‘जी हां, कुछ वर्ष पहले वह मिली थी. हमारी कालोनी में रहती थी,‘‘ कहते हुए मैं कुछ हिचकिचा गई.

कैसे कहती कि वह तो मेरी इतनी अच्छी दोस्त थी.

‘‘क्या वह अभी तक कुंआरी है या शादी कर ली?‘‘ मैं ने कुछ झिझकते हुए पूछा.

‘‘ हां, हां, उस की शादी तो लगभग 6-7 साल पहले, मुंबई आते ही हो गई थी. उस का पति एक जानामाना फाइनैंशियल ऐनालिस्ट है. क्या बंदा है… बड़ीबड़ी कंपनियां उस को अपने यहां रखने के लिए जाल डालती रहती हैं. सुना है, उस ने अमेरिका से पढ़ाई की है. वहां भी सब उसे रखना चाहते थे, पर वह इंडिया वापस लौट आया.‘‘

‘‘वाह, क्या बात है,‘‘ मैं ने आश्चर्य जताया.

“हां, तो और क्या… अच्छा, आप को शायद पता नहीं होगा. उन की प्रेमकथा तो बहुत मजेदार है. उस बेचारी को ब्रेन ट्यूमर हो गया था और डाक्टरों ने आपरेशन में कुछ तो लापरवाही दिखाई और उस के चेहरे पर लकवा मार गया. उस वक्त दीपक मतलब उस का होने वाला पति अमेरिका गया हुआ था. वह उसे वादा कर के गया था कि लौट कर उस से शादी करेगा, पर दीप्ति को लगा कि वह उस से इस हालत में शादी कदापि नहीं करेगा. उस ने बस अपनी ट्रांसफर मुंबई कराई और चली आई और साथ ही, हम सब से वादा लिया कि अगर वह उसे ढूंढ़ता हुआ औफिस आता है, तो हम उसे कुछ नहीं बताएंगे,‘‘ वह मजे लेले कर बोलता जा रहा था.

‘‘अच्छा… फिर क्या हुआ?‘‘ मैं कैसे बताती कि कहानी के यहां तक का भाग तो मैं भी जानती हूं.

‘‘वही हुआ, जो दीप्ति ने सोचा था. यूएसए से लौट कर दीपक उसे ढूंढ़ता हुआ हमारे औफिस आ पहुंचा, पर हम ने अपने वादे के अनुसार उसे कुछ नहीं बताया. पर इतने बड़े बैंक में, आप ही बताइए, किसी अफसर की पोस्टिंग भला छिप सकती है क्या? वह बैंक के मानव संसाधन विकास विभाग में गया, फिर कार्मिक विभाग में गया और उस ने उस का पता मालूम कर ही लिया.‘‘

वह कहानी सुनाए जा रहा था और मेज पर बैठे सभी लोग बड़े ध्यान से दीप्ति की प्रेमकथा सुन रहे थे.

‘‘फिर क्या हुआ…? दीपक मुंबई गया क्या?‘‘ मैं बेसब्री से कहानी के खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

‘‘हां, गया न… उस ने पहली फ्लाइट पकड़ी और मुंबई चल पड़ा,‘‘ कहानी अब क्लाइमैक्स की ओर तेजी से बढ़ रही थी, परंतु उसी समय प्रशिक्षण संस्थान के डायरैक्टर साहब हमारी मेज पर आ गए और सभी लोग उन से बात करने के लिए उठ खड़े हुए. दीप्ति की प्रेमकथा अधूरी ही छूट गई. लंच के बाद मेरा मन क्लास में बिलकुल न लगा. बारबार दीप्ति का हंसतामुसकराता चेहरा सामने आ जाता. उस से मिलने की इच्छा प्रबल हो रही थी. सोचा कि शाम को उस के बैचमेट से उस का सैलफोन नंबर तो ले ही लूंगी, पर क्लास खत्म होने से पहले ही वह निकल गया. शायद उस की फ्लाइट जल्दी जाने वाली थी.

दिल्ली के लिए मेरी फ्लाइट अगले दिन सुबह थी. मैं रातभर दीप्ति के बारे में सोचती रही. क्या हुआ होगा, कैसे हुआ होगा? काश, मैं उस से कभी मिल पाती.

सुबहसुबह एयरपोर्ट जाते हुए भी मुझे बारबार दीप्ति का खयाल सता रहा था, कैसी होगी, पता नहीं. ये टैलीपैथी थी अथवा महज इत्तिफाक, पर दीप्ति को अचानक सिक्योरिटी लौन में देख कर मैं दंग रह गई. वही पतलाछरहरा बदन, वही कंधों तक झूलते सीधे लंबे बाल, वही कैजुअल सी फेडेड जींस और उस का फेवरिट लालकाले चेक की शर्ट, जिस की बांहें उस ने हमेशा की तरह कोहनी तक मोड़ रखी थीं. और तो और पैरों में भी वही कोल्हापुरी चप्पल. कुछ भी तो नहीं बदला था उस में.

दीप्ति एक नटखट बच्चे के पीछे दौड़ रही थी और वह बच्चा मेरी ओर ही आ रहा था. मैं ने आगे बढ़ कर बच्चे को पकड़ लिया, तो दीप्ति ने भी मेरी ओर नजर उठाई. एक हाथ से बच्चे को पकड़, दूसरा हाथ उस ने मेरे गले में डाल दिया, “रंजना, ओ रंजना, कितने साल बाद मिल रहे हैं यार. कहां चली गई थी तू…?”

‘‘मैं चली गई थी या तू कहीं जा के छिप गई थी? कितने साल बीत गए और तेरा कुछ अतापता ही नहीं है. कहां गायब हो गई थी तू? कैसी है?‘‘

जंगलराज-भाग 2 : राजन को कैसे मिली अपने गुनाहों की सजा

पहले तो राजन का आदमी लोगों को कम ब्याज पर पैसे देने का झांसा दे कर अपने चंगुल में फंसाता, फिर 10 से 20 प्रतिशत ब्याज की दर बढ़ा देता. पैसे नहीं देने पर मसल्स पावर के दम पर पैसे वसूले जाते. उस से भी बात न बनती तो वह लोगों को डराधमका कर उन का घरजमीन अपने नाम लिखवा लेता. उन की बहूबेटियों को उठा कर ले जाता. कर्जदार लोगों को वह अपने बंगले के आगे खड़े कर पिटवाता था. उसे कुत्तों से चटवाता और उस का पेशाब तक उन्हें पिला देता. कर्जदारों को वह इतना परेशान करता था कि इंसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते थे, क्योंकि और कोई रास्ता ही नहीं बचता था उन के पास. अपना घर छोड़ कर भाग भी जाए, तो राजन का आदमी उसे ढूंढ लाता था और फिर उस इंसान की वह गत करता कि बस सांसें लेने लायक रह जाता वह आदमी.

एक रूल बना दिया था राजन ने कि जिसे भी पैसे चाहिए वह उस का ही दरवाजा खटखटाएगा, वरना जान से जाएगा. इसलिए न चाहते हुए भी लोग मजबूरीवश राजन के पास ही सूद पर पैसे लेने जाते और फिर पूरी उम्र उस का गुलाम बन कर रह जाते थे. छुटकारा ही नहीं था फिर राजन से उन का. सूद चुकातेचुकाते ही इंसान ऐसे कंगाल बन जाता कि मूल चुकाने के पैसे ही न बचते उन के पास. रुपए कर्ज लेने वाले लोगों को ताउम्र रोना पड़ता. कर्ज लेने वाले ऊपर चले जाते लेकिन कर्ज खत्म न होता. कर्जदार के बाद उस का बेटा कर्ज चुकातेचुकाते बूढ़ा हो जाता, लेकिन कर्ज चुका न पाता. राजन दुश्चरित्र इंसान तो था ही, जालिम भी वह उतना ही था कि जमीन अपने नाम करवाने के बाद वह गरीबलाचार इंसान का अंगूठा ही कटवा देता. सूद पर पैसे दे कर वह लोगों का जीवन अच्छा नहीं, बल्कि नरक बना देता था. फिर जीवनभर लोग उस के चंगुल से छूट न पाते थे.

क्रिमिनल माइंडेड राजन मिश्रा की पहुंच शहर के कुछ बड़े कारोबारियों तक भी है. वह लोगों से 10 माह में पैसे डबल करने का लोभ दे कर रुपस वसूलते और उसे मीडिएटर बना कर किसी छोटे कारोबारी को सूद पर उन्हें उधार दे देते. फिर इन रुपयों का सूद भी उसे 3-4 माह तक मिलता रहता. लेकिन फिर सारे पैसे का बंदरबांट कर हिसाब खत्म कर देता. सिर्फ अपने इलाके में ही नहीं, बल्कि राजन आसपास के कई इलाकों में अपनी सूदखोरी का धंधा चला रहा है. राजन के इस काले धंधे में कई अपराधी शामिल हैं.

पुलिस के पास राजन के सारे काले कारनामों का कच्चाचिट्ठा है, लेकिन फिर भी वह उस पर हाथ नहीं धर पाती, क्योंकि पुलिस भी जानती है वह कितना जालिम इंसान है. और सब से बड़ा कवच तो उस के पास राजनीतिक का है, जो उसे हर बार बचाता जाता है. अभी तक वह कई लोगों को मरवा चुका था, पर सुबूत न होने पर आज तक उसे सजा नहीं हो पाई. राजन मिश्रा का इतना खौफ है लोगों में कि ज़्यादातर लोग उस के खिलाफ गवाही देने या मुकदमा दर्ज करवाने से कांपते हैं. और जिस के कारण ही वह और ताकतवर बनता चला गया. एक कहावत है कि ‘पूत के पैर तो पालने में ही दिख जाते हैं,’ पैसे चोरी करने पर जब राजन की मां ने उसे एक थप्पड़ लगाया था, तब गुस्से में आ कर उस ने अपनी मां की हत्या कर दी थी और घर से फरार हो गया था. पुलिस को यही बतलाया गया कि डाकूलुटेरा चोरी के इरादे से आ कर उसे मार गया. दूसरा कत्ल राजन ने उस लड़के का किया था जिस से उस की बहन प्यार करती थी. बीच चौराहे पर अपने कुछ दोस्तों के साथ उस का कत्ल कर उसे झाड़ी में फेंकवा दिया था. कई दिनों बाद पुलिस को उस की लाश मिली थी पर पता नहीं चल पाया कि उसे किस ने मारा. पर राजन के परिवार वालों को पता चल ही गया था कि यह सब राजन का काम है, फिर भी वे चुप लगा गए थे. और उस का नतीजा यह कि राजन एक अपराधी बन गया. एक चुटकी में वह लोगों की सांसें रुकवा देता है और कोई उस का कुछ बिगाड़ नहीं पाता.

राजन मिश्रा की पत्नी है सुनयना, जो बहुत ही खूबसूरत है. उस के बावजूद, वह अपनी माशूका मोहिनी की आगोश में पड़ा रहता है. सुनयना अपने पति की सारी करतूतें जानती है, पर उस में इतनी हिम्मत नहीं कि अपनी जबान खोल सके या उसे ऐसा करने से रोक सके. सोने के पिंजरे में बंद वह एक गूंगी चिड़िया है जिस का पंख राजन ने पहले ही कतर दिया है. दरअसल, सुनयना के पापा एक ऊंचे ओहदे पर काम करते थे. गांव में भी उन की ख़ासी जगहजमीन थी जो उन के बापदादा ने अर्ज रखी थी. सबकुछ सही था, पर सुनयना के पापा को शराब पीने की बहुत बुरी लत थी. वे अपनी कमाई का आधा से ज्यादा पैसा पीने में उड़ा देते थे. घर तो बस किसी तरह चल रहा था उन का. राजन मिश्रा से सुनयना के पापा की अच्छी दोस्ती थी. अकसर वह उन के घर खानेपीने आता रहता था और सुनयना के पापा भी उस के घर जाते रहते थे. शराबी इंसान को अगर अपने ही तरह कोई पीने वाला दोस्त मिल जाए, तो फिर क्या कहने. एक गाना भी है,‘जहां चार यार मिल जाएं वहीं रात दूं गुजार…’ कहां इन की रात गुजरती थी, इन्हें खुद नहीं पता होता था. लेकिन राजन को शराब पीने या उस के पिता में कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि वह तो उन के घर सिर्फ सुनयना की खातिर आता था. वह सुनयना को बहुत पसंद करता था. शादी करना चाहता था उस से. लेकिन सुनयना उस राजन को जरा भी पसंद नहीं करती थी, बल्कि वह तो उस से घृणा करती थी. वह जानती थी कि यह इंसान कितना कमीना है. लोगों को सूद पर पैसे दे कर वह कैसे उन मजबूर लोगों का फायदा उठाता है, कैसे उन की बहूबेटियों को होटल, रिसोर्ट या अपने फार्महाउस ले जा कर उन की इज्जत का तारतार करता है. उन के मातापिता भी यह बात जानते हैं, लेकिन फिर भी उस के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा पाते, क्योंकि डरते हैं सब उस से.

सुनयना के पिता ने धीरेधीरे अपनी सारी संपत्ति पीने में उड़ा दी. लेकिन फिर भी उस का शराब पीना नहीं रुका, बल्कि उसे तो रोज शराब चाहिए ही थी. अब वह राजन से कर्ज ले कर शराब पीने लगा और सूद देने के नाम और वह अपनी बचीखुची जमीन, पत्नी के जेवर उस के नाम करता गया. आखिर में बचा एक घर वह भी राजन ने अपने नाम करवा लिया और अपने ही घर में सुनयना व उस के परिवार किराएदार बन कर रह गए. लेकिन फिर भी उस के पिता की आंखें नहीं खुलीं. वह राजन से कर्ज ले कर शराब पीता रहा. एक दिन जब राजन ने उस से अपने पैसे मांगे तो उस ने अपने हाथ खड़े कर दिए यह बोलकर कि ‘नहीं है उस के पास पैसे.’ लेकिन राजन को तो अपने पैसे चाहिए ही थे क्योंकि उस के लिए तो ‘बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया’ था.

दरअसल, यह सब राजन की एक चाल थी. उस ने जानबूझ कर सुनयना के पिता से दोस्ती गांठी थी ताकि किसी तरह सुनयना से उस की शादी हो जाए. जब उसे पता चला था कि सुनयना के पिता को शराब पीने की बहुत ज्यादा लत है, तो वह कितना खुश हुआ था कि अब उस का काम आसान होने से कोई रोक नहीं सकता है. और ऐसा हुआ भी. दोस्त बन कर वह उस के पिता का सब से बड़ा हिमायती बन गया. रोज वह उसे ऐसी जगह ले जाता जहां उसे सिर्फ रंगीनियां ही रंगीनियां दिखाई देती थीं. शरम भी नहीं आती था उन्हें कि जिस लड़की से वे संबंध बना रहे हैं उस के उम्र की उन की अपनी बेटी है. लेकिन यह सब तो उसे बरबाद करने की एक साजिश थी राजन की, जिस में वह सफल हो चुका था.

हां, तो राजन को अब किसी तरह अपने पैसे चाहिए ही थे और सुनयना के पिता के पास पैसे थे नहीं. इसलिए यह शर्त रखी कि अगर वह अपनी बेटी सुनयना की शादी उस से करवा देता है, तो वह उस का मूल-सूद सब माफ कर देगा, बल्कि उस का घरजमीन सब लौटा देगा. और क्या चाहिए था सुनयना के पिता को.

Makar Sankranti 2023: स्ट्रौबेरी हलवा, दिल बहार और तिल की टिक्की से करिए मुंह मीठा

  1. स्ट्रौबेरी हलवा

अभी तक आपने बेसन, सूजी और गाजर के हलवे खाएं होगें लेकिन आज हम आपको फेस्टिवल सीजन में स्ट्रौबेरी का हलवा बताना बताएंगे जिसे आप घर पर बना सकते हैं.

सामग्री :

1 कप स्ट्रौबेरी, 1/2 कप सूजी, 1/2 कप चीनी, 1/2 कप घी, 6-7 काजू, बादाम, 4 छोटी इलायची, थोड़े पिस्ते, किशमिश.

विधि :

अगर जैम और हलवा दोनों का स्वाद लेना है तो स्ट्रौबेरी हलवा झटपट बन सकता है. स्ट्रौबेरी की प्यूरी बना लें. गरम घी में सूजी भूनने के बाद इस में पानी, चीनी, स्ट्रौबेरी प्यूरी डालें. गाढ़ा होने तक इसे पकाएं. ऊपर से मेवे डालें. लीजिए, गरमागरम हलवा तैयार है. सौस दिया जा सकता है. यह हलके नाश्ते के रूप में सब से अलग दिखेगा.

2. दिलबहार

त्योहार में खाने के साथ कुछ मीठा न हो तो खाने का मजा नहीं आता. मीठा कुछ अलग होना चाहिए. इस बार पनीर और खोया मिला कर दिलबहार बनाएं. जो डेजर्ट का काम करेगा.

सामग्री :

200-200 ग्राम खोया और पनीर , 200 ग्राम चीनी चाशनी बनाने के लिए, थोड़े पिस्ता, चेरी, बादाम और क्रीम इस के ऊपर लगाने के लिए, फ्राई करने के लिए घी.

विधि :

दिलबहार बनाने के लिए खोया और पनीर को ठीक से मिक्स कर लें. इस को दिल के आकार का बना कर घी में फ्राई करें. जब यह हलका गरम रहे तो सावधानी से तेज चाकू की मदद से काट कर इस के 2 हिस्से कर दें. पहले से तैयार चीनी की चाशनी में इस को डाल दें. जब यह चाशनी में डूब जाए तो बाहर निकाल लें. इस पर पहले क्रीम लगाएं. इस के बाद ऊपर से बारीक कटा पिस्ता, चेरी और बादाम लगा दें. प्लेट में सर्व करने से पहले इसे बारीक कसी चेरी से सजा दें. चेरी का कलर दिलबहार को और सुंदर बना देगा.

3. तिल की चिक्की

सामग्री:

– 250 ग्राम चीनी पिसी हुई

– 250 ग्राम तिल भुना हुआ

– 1/2 बाउल काजू बदाम कटा हुआ

– 1 चम्मच घी

विधि:

सबसे पहले कड़ाही को धीमी आंच में गरम करें और उस में पिसी चीनी डालें. 4-5 मिनट तक चीनी को गरम होने दें. चीनी के पिघलने पर भुना हुआ तिल डाल दें और सामग्री को अच्छे से हिलाएं. उसके बाद कटा काजू बदाम मिश्रण में डालें. ऊपर से आधा चम्मच घी डालें. मिश्रण को अच्छे मिलाएं और गैस बंद करदें. फिर स्लेट और बेलन पर थोड़ा सा घी लगाएं और फिर मिश्रण को गरम रहते अच्छे से बेलें. जितना हो सके पतला बेलें. इससे चिक्की क्रिस्पी होगी. बेलने के बाद चाकू से सामग्री को चौकोर आकार में काटें और परोसें.

– शशी अग्रवाल, गाजियाबाद

तन्हा वे-भाग 3: पावनी के साथ क्या हुआ था?

अनिल ने कहा, “यतिन, महाबलेश्वर में एक मठ है. वहां अकेले रहने वाले काफी लोग रहते हैं. आज वहां के लोग मुझे किसी के घर पर मिले थे. मैं ने तुम्हारे अकेले रहने के बारे में बताया तो वहां के एक कर्मचारी, जिन्हें सब बाबा ही कहते हैं, अभी तुम से मिलने आएंगें.”

“नहीं, मुझे किसी से नहीं मिलना.”

“यहां कभी कोई परेशानी आ जाए तो कौन देखेगा. वहां वे लोग सब देखते हैं. हम भी तुम्हारे साथ जा कर एक बार वहां के इंतज़ाम देख कर आएंगे.”

इतने में डोरबेल बजी. बाबा के साथ एक आदमी और था. वे यतिन से काफी देर बातें करते रहे. बड़ीबड़ी धर्मकर्म की बातें, सेवासुकर्म की बातें. उन्हें समझाते रहे कि इस उम्र में कोई तो चाहिए. आजकल बच्चे नहीं पूछते. अपना आखिरी समय का इंतज़ाम करना ही पड़ेगा.

यतिन चुपचाप सुनते रहे, फिर पूछा, “आप लोग फ्री में अकेले इंसान का ध्यान रखते हैं? क्योंकि मेरे पास तो इतनी बचत नहीं.”

बाबा और उस के साथी  ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर बाबा ने कहा, “आप परेशान क्यों होते हैं, यह घर है न.”

“मतलब?” यतिन के माथे पर सिलवटें उभरीं.

“मतलब श्रीमन, जब आप यहां रहेंगे ही नहीं, तो इस मकान का क्या करेंगे. इसे बेच देना और इस से मिले पैसे से हमारे मठ में बाकी का जीवन आराम  से बिताना. हमें भी तो सब की देखभाल के लिए धनराशि चाहिए होती है.”

“अभी तो ऐसा कोई विचार नहीं, जब कभी ऐसा सोचूंगा, आप से संपर्क करूंगा.”

वे दोनों नाराज़ से चले गए. अनिल और विजय ने कहा, “यार, हमें तो लगा कि यह अच्छा आइडिया है, यहां तो इन लोगों को प्रौपर्टी हड़पने में रुचि है.” यतिन ने कहा, “इन की एक बात ठीक है कि इन्हें भी धनराशि की ज़रूरत होती होगी पर मैं यह फ्लैट बेच कर कहीं नहीं जाने वाला.”

यतिन ने तीनों के लिए चाय बनाई. थोड़ी देर में  उन दोनों के जाने के बाद वे बेड पर ढह से गए. मन ने पावनी को पुकारा, देखो पावनी, तुम्हारे  जाने के बाद कितना तनहा हूं मैं. ओह्ह्ह, इसी तनहाई की बात तुम करती थीं न, तुम कहती थीं कि मेरे सिवा कोई तुम्हारा अपना नहीं है, हम दोनों ही एकदूसरे के अपने हैं. हां, बहुत अकेलापन है, पावनी. हां पावनी, तुम सच कहती थीं. तुम्हारा व्यावहारिक ज्ञान कितना सही था. तुम्हें सचमुच पता था कि एकदूसरे के सिवा हमारा कोई नहीं. देखो, मैं तुम्हारे बिना कितना तनहा हो गया हूं. यह सब सोचते हुए वे एक बार फिर ज़ोर से रो पड़े थे.

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