भोपाल के गोविंदपुरा इलाके में रहने वाले 29 साल के आशीष शर्मा एक रिटायर्ड अधिकारी के बेटे हैं. अपनी टाटा सूमो कार चलाने के लिए आशीष ने एक सितंबर से विज्ञापन के जरिए राजू सिंह नाम के व्यक्ति को बतौर ड्राइवर रखा था. उन्होंने राजू का टैस्टड्राइव लिया और उस के फोटोयुक्त पहचानपत्र लिए और नौकरी दे दी. चौथे दिन ही वे उस वक्त सन्न रह गए जब नयानवेला ड्राइवर कार ले कर फरार हो गया. आशीष उसे फोन करते रहे लेकिन वह लगातार बंद जाता रहा.
इस के बाद वे उस के दिए पते पर पहुंचे तो वहां भी वह नहीं मिला. दो दिन गुजर जाने के बाद वे थाने पहुंचे और अमानत में खयानत की रिपोर्ट दर्ज कराई. मुमकिन है राजू सिंह नाम का वह अनजान शख्स मय कार के कहीं मिल जाए और मुमकिन है न भी मिले. आशीष अब अपना सिर धुन रहे हैं कि राजू के कागजात की सचाई जानने के लिए उन्होंने न तो खुद कोई कोशिश की और न ही पुलिस वैरिफिकेशन कराया. किसी को नौकर रखने से पहले क्याक्या एहतियात बरतनी चाहिए, यह सबक उन्हें लगभग 7 लाख रुपए का पड़ा. किसी को नौकर रखने के बाद उस पर आंख बंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए, यह पाठ उन्हें मुफ्त में सम झ आ गया. दिल्ली के सफदरगंज इलाके की एक और वारदात को देख कहा जा सकता है कि आशीष सस्ते में निबट गए.
इस हादसे में 17 साल का नौकर दिव्यांग की हत्या कर भाग गया और साथ में कुछ ज्वैलरी, मोबाइल फोन और 40 हजार रुपए भी चुरा ले गया. हालांकि आरोपी पकड़ा गया लेकिन इस से दिव्यांग की जिंदगी वापस नहीं मिलने वाली. इस नौकर को भी केवल 3 महीने पहले रखा गया था. हादसे के वक्त मृतक के पेरैंट्स और दादी मंदिर गए हुए थे और बहन किसी काम से बाजार चली गई थी. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पकड़े जाने के बाद इस नौकर ने बताया कि वह लगातार खुद को अपमानित महसूस कर रहा था. हत्या का आइडिया उसे 1996 में प्रदर्शित फिल्म ‘तू चोर मैं सिपाही’ से मिला था, इसलिए वह टूथपेस्ट से बाथरूम की खिड़की पर किलर किंग लिख गया था.
इस नौकर को भी बिना किसी खास छानबीन के नौकरी पर रख लिया गया था और पुलिस वैरिफिकेशन की जरूरत महसूस नहीं की गई थी क्योंकि उस की सिफारिश घर की नौकरानी ने की थी. बिहार के सीतामढ़ी से दिल्ली आया आरोपी नौकरी छोड़ना चाहता था लेकिन दिक्कत यह थी कि दूसरी नौकरी मिलने तक उसे खानेपीने के लाले पड़ जाते क्योंकि उस के पास बिलकुल पैसे नहीं थे जिस के लिए उस ने बजाय मेहनत के शौर्टकट रास्ता चुनते एक लाचार अपाहिज की हत्या कर दी जिस ने उसे घर से चोरी करते देख लिया था.
महंगा पड़ता है भरोसा भोपाल और दिल्ली के ये मामले तो बानगी भर हैं. देशभर में ऐसी घटनाएं होना अब रोजमर्रा की बात हो गई है जिन में घरेलू नौकर द्वारा हत्या, चोरी या लूटपाट की गई हो. दोटूक कहा जाए तो हर मामले में नौकरों पर किए गए विश्वास की कीमत बहुत महंगी चुकानी पड़ती है. इस के बारे में खोखली दलील यह दी जा सकती है कि भरोसा तो अब मजबूरी हो गई है क्योंकि घरेलू नौकर अब आसानी से नहीं मिलते और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि जांचेपरखे व आजमाए नौकर ऐसा नहीं करेंगे. यह ठीक वैसी ही बात है कि ऐक्सिडैंट के डर से सड़कों पर चलना ही छोड़ दिया जाए. भरोसा करना मजबूरी अगर हो ही गई है तो कुछ सावधानियां रख कर क्या किसी अनहोनी से बचा जा सकता है? इस सवाल का जवाब हां में ही निकलता है. भोपाल के आशीष ने तीसरे ही दिन नए ड्राइवर को गाड़ी दे कर दूसरी गलती की थी. पहली तो वह उपयुक्त छानबीन न कर के कर ही चुके थे जिस से नौकर को शह मिली.
यही गलती दिल्ली के सफदरगंज हादसे में हुई थी. घरेलू नौकरों द्वारा किए गए हर अपराध में लगभग यही गलती होती है कि लोग हड़बड़ाहट में अपनी सहूलियत के लिए आंखें बंद कर लेते हैं. जाहिर है खासतौर से नए रखे गए नौकर पर भरोसा करना ‘आ बैल मु झे मार’ वाली कहावत को चरितार्थ करना है. लेकिन इस से ऐसे बचा भी जा सकता है और रिस्क भी कम किया जा सकता है- द्य नए नौकर को रखने से पहले उस के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करें चाहे वह किसी भी सोर्स से आया हो. आजकल सोशल मीडिया पर भी घरेलू नौकर उपलब्ध हैं और कई एजेंसियां भी नौकर दिलवाती हैं लेकिन उन के बारे में जानकारियां उतनी नहीं होतीं जितनी कि होनी चाहिए. सिर्फ आधार कार्ड या कोई दूसरा फोटो आईडी ले लेने भर से नौकर भरोसेमंद नहीं हो जाता. द्य आमतौर पर घरेलू नौकर दूसरे नौकरों की सिफारिश पर रखा जाता है. यह एक बहुत बड़ी चेन है जिसे संक्षेप में सम झना जरूरी है. मिसाल दिल्ली की लें तो वहां बड़ी तादाद में बिहार और उत्तर प्रदेश से लोग कामकाज की तलाश में आते हैं और अपने गांव, शहर या तहसील के पहले से काम कर रहे लोगों से कहीं काम दिलाने की सिफारिश करवाते हैं.
यह बहुत ज्यादा हर्ज की बात नहीं है लेकिन काम दिलाने वाला जिसे पहले से मालिकों का भरोसा हासिल होता है वह भी इतना भर जानता है कि यह हमारी जात, बिरादरी, रिश्तेदारी या समाज का है. उसे भी पता नहीं रहता कि यह कहीं खुराफाती या अपराधी प्रवृत्ति का तो नहीं. उन्हें तो इसी बात की खुशी रहती है कि उन की हैसियत इतनी है कि बड़े शहर के बड़े लोग उन की सिफारिश पर किसी को नौकरी पर रख रहे हैं. यह उन के लिए शान की बात भी होती है. यही काम बड़ी एजेंसियां फीस ले कर करती हैं लेकिन गारंटी वे भी नहीं लेतीं. ऐसे में जाहिर है नौकरी देने वाला इस चेन या चैनल की आखिरी कड़ी है. इसलिए नौकर रखने से पहले पूरी तसल्ली करें. द्य काम पर रखने से पहले सख्त लहजे में यह नौकर को सम झा दें कि उस से मिलनेजुलने को कोई घर नहीं आएगा.
 उस के घर का चक्कर लगा लेना भी हर्ज की बात नहीं. इस से बहुत सी बातें स्पष्ट हो जाएंगी.
उस के संपर्क के ज्यादा से ज्यादा लोगों के मोबाइल नंबर लें और उन के वैरिफिकेशन की बाबत एकाध बार दिए गए नंबरों पर बात भी करें.
नौकर का पुलिस वैरिफिकेशन जरूर करवाएं.
घर की अहम जगहों पर सीसीटीवी जरूर लगाएं. नौकरी देने के बाद द्य नए नौकर के फोटो जरूर खींच कर रखें.
शुरुआती दिनों में नौकर को घर पर अकेला छोड़ने की भूल न करें.
नौकर की हर छोटीबड़ी गतिविधि को ध्यान से देखें.उसे बहुत ज्यादा मुंह न लगाएं और न ही ज्यादा उपेक्षित करें.पैसों और दूसरे लेनदेन के काम उस से न करवाएं. नौकर के सामने आर्थिक और पारिवारिक विषयों पर चर्चा न करें. लौकर, अलमारी वगैरह को उस की पहुंच और नजर से दूर रखें.
उस के काम की मौनिटरिंग ऐसे करते रहें कि यह बात उसे सम झ आ जाए कि उस पर आप की नजर है. कुछ दिनों बाद  जब ऐसा लगने लगे कि नौकर विश्वसनीय है, कोई हेरफेर नहीं करता या करती है तो उसे थोड़ा स्पेस दें.
एडवांस दिया जा सकता है लेकिन वह बहुत ज्यादा न हो. मुंबई में एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम कर रही गुंजन बताती हैं कि हम 3 फ्रैंड्स ने खाना बनाने को कुक यानी बाई रखी थी. 6 महीने में ही उस पर हमें यकीन हो गया था लेकिन पति की बीमारी का रोना रो कर एक बार वह हम से 20 हजार रुपए एडवांस ले गई और फिर कभी नहीं आई. इन तीनों ने महज 20 हजार रुपए के लिए पुलिस थाने के चक्कर में पड़ना ठीक नहीं सम झा.
आजकल ज्यादा नहीं 3 4 महीनों में ही नौकर घर में घुलमिल जाता है. इस वक्त और ज्यादा सावधानी की जरूरत होती है. कई बार नौकरों की मंशा लंबा हाथ मारने की होती है जिस के लिए वे पूरी प्लानिंग से काम करते हैं और मालिक व उस की आदतों व मिजाज के बारे में बहुतकुछ जान लेते हैं जिस में लौकर और तिजोरी खास हैं.
ऐसा कैसे, इसे वाराणसी के होटल व्यवसायी नागेश्वर से सम झते हैं जिन के घर से नौकरानी ने किस्तों में 3 लाख से भी ज्यादा की नकदी व लगभग 10 लाख के गहने चुराए. नागेश्वर की मानें तो छित्तूपुर की रहने वाली इस नौकरानी को काम करते एक साल ही हुआ था. इस बीच उस ने अपने व्यवहार से सब का दिल जीत लिया लेकिन साथ ही ‘शोले’ फिल्म के जय और वीरू की तरह उन के घर की तिजोरी देख ली, जिस में बेटी की शादी के लिए गहने व नकदी रखे थे.
इस नौकरानी ने किश्तों में हाथ साफ किया और जब पोल खुली तो घर में मातम सा मच गया. नागेश्वर की शिकायत पर पुलिस ने नौकरानी को पकड़ कर पूछताछ की तो उस ने महज 3 हजार की चोरी करना स्वीकार किया. द्य नौकर के जाने के बाद घर में रखी नकदी और जेवरात वगैरह की जांच करते रहें. द्य नौकर अगर लंबी छुट्टी पर जा रहा हो और यह कहे कि मैं अपनी जगह फलां को रख जाता/जाती हूं तो इस पेशकश को अस्वीकार कर दें. यह बड़ा रिस्क है.
छोटे बच्चों के मामले में अतिरिक्त सावधानी रखें. बेंगलुरु में खासे पैकेज पर नौकरी कर रहे भोपाल के हर्ष और नेहा ने अपने 3 साल के बच्चे की देखभाल के लिए आया 12 हजार रुपए महीने पर रखी थी. 2 महीने बाद उन की पड़ोसिन आंटी ने उन्हें बताया कि आया न केवल बच्चे को मारतीपीटती है बल्कि कभीकभी तो अपने बौयफ्रैंड के साथ घूमने भी चली जाती है. हैरानी की बात यह है कि जब वह बच्चे को घर में बंद कर जाती है तब वह रोता नहीं. मुमकिन है कि वह नौकरानी बच्चे को अफीम या नशे की कोई दूसरी दवा खिला जाती हो. आंटी ने कुछ वीडियो क्लिप उन्हें दिखाए जिन में आया बच्चे को मार रही थी और एक क्लिप में बच्चे को अंदर अकेला छोड़, फ्लैट पर ताला लगा कर कहीं जा रही थी.
इतना सुनना और देखना था कि हर्ष और नेहा के हाथों के तोते उड़ गए और उन का खून भी खौल उठा लेकिन उन्होंने सब्र से काम लेते उसी दिन नौकरानी का हिसाब कर उस की छुट्टी कर दी और बेटे को क्रैच में छोड़ने लगे. कुछ दिनों में यह अंदाजा लग ही जाता है कि नौकर को शराब या दूसरे किसी नशे की लत तो नहीं. अगर हो तो धीरेधीरे उसे निकालने की तैयारी करें लेकिन सुधारने की ठेकेदारी न लें. बीती 6 सितंबर को झारखंड के एक गांव जामटोली में नौकर सतेंद्र लकड़ा ने अपने मालिक रिचर्ड मिंज और उन की पत्नी मेलानी मिंज की नृशंस हत्या इसलिए कर दी थी कि वे उसे शराब पीने से रोकने लगे थे.
इस बात को ले कर मिंज दंपती उसे धौंसभरी सम झाइश भी दे चुके थे जिसे सतेंद्र ने अपनी बेइज्जती सम झा था. पतिपत्नी दोनों सतर्क रहें ड्राइवर, माली, धोबी जैसे नौकरों के सामने एहतियात से रहना बहुत जरूरी है. उन के सामने कपड़े न बदलें और बाथरूम से आधेअधूरे कपड़ों में बाहर न आएं. फूहड़ और घटिया हंसीमजाक तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए. जोधपुर में इसी साल अप्रैल में एक महिला ने रिपोर्ट लिखाई थी कि 4 साल पहले उन के पति की कपड़ों की दुकान में काम करने वाले एक नौकर ने उन का नहाते हुए वीडियो बना लिया था.
इसे वायरल करने का डर दिखा कर वह मालकिन से 3 साल तक बलात्कार भी करता रहा और पैसे भी ऐंठता रहा. हद तो तब हो गई जब शारीरिक रूप से संतुष्ट होने के बाद वह और ज्यादा पैसे मांगने लगा जोकि इज्जत बचाने के लिए मालकिन ने दिए भी लेकिन जब उस ने उन की बेटी से भी यही सब करने की मांग की तब कहीं मालकिन ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पतियों को भी चाहिए कि नौकरानियों पर लार न टपकाएं और न ही उन से एक खास मंशा से नजदीकियां हासिल करने की कोशिश करें, नहीं तो लेने के देने पड़ जाते हैं. अब से कोई 4 साल पहले भोपाल के सरकारी कालेज के एक प्रोफैसर पर नौकरानी ने बलात्कार का इलजाम लगाते थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.
कुछ दिन जेल का जायका ले कर प्रोफैसर साहब बाहर जमानत पर आए तो उन की खूब जगहंसाई कालेज व रिश्तेदारी में हुई. जब वे कालेज जाते थे तो स्टूडैंट्स उन्हें देख दूर से बलात्कारीबलात्कारी के नारे से लगा कर मजे लेते थे. बलात्कार के मुकदमे की बाद की अदालती झं झटों से बचने के लिए उन्हें नौकरानी को 10 लाख रुपए देने पड़े थे. जिसे बलात्कार का जामा पहनाया गया था वह असल में सहमति से बन रहे संबंध थे. इसलिए हर लिहाज से सावधान और संयमित रहें. नौकरों से सलीके से पेश आएं जिस से वे आप को किसी किस्म का नुकसान न पहुंचा पाएं.

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