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YRKKH : अबीर का सच जानने के बाद मंजरी उठाएगी बड़ा कदम

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए-नए ड्रामें देखने को मिल रहे हैं, सीरियल की कहानी में दिखाया जा रहा है कि अभिमन्यु के बाद से अब मंजरी को भी अबीर की सच्चाई का पता चल गया है.

सच सामने आते ही मंजरी हंगामा खड़ा कर देती है अक्षरा को धमकी देती है कि वह अबीर को उससे दूर कर देगी, अबीर उसका पोता है. अक्षरा मंजरी की धमकी से काफी ज्यादा डरी हुई नजर आ रही है. मंजरी अबीर पर ढ़ेर सारा प्यार लुटाती नजर आती है. तभी अभिनव देख लेता है. उसे शक होता है कि अचानक मंजरी क्यों प्यार लुटा रही है.

 

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अभिनव अबीर को लेकर चला जाता है, मंजरी उससेे नाराज होकर थप्पड़ मारने जाती है लेकिन अभिमन्यु उसे रोक लेता है. वह अपनी मां को शांत करवाता है. इसके बाद सब घर से निकल जाते हैं. आगे कि कहानी में दिखाया जाएगा कि मुस्कान को देखने वाले चले जाएंगे कायरव से नाराज होकर वह कहेंगे कि मैं अपने बेटे कि बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं.

इस पर कायरव अपनी फैमली वालों को समझाते हुए कहेगा कि मैं मुस्कान की शादी किसी गलत लड़के के साथ नहीं होने दूंगा.

भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था का श्रेय किसको?

भारत के आॢथक विशेषज्ञ 2014 से राग अलाप रहे हैं कि भारत दुनिया की सब से तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है. अरुण जेटली तो इसे नरेंद्र मोदी का कमाल मानते रहे हैं जबकि अर्थव्यवस्था तो पिछले एक दशक से खासी गति से बढ़ रही है.

इस तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की एक कमी अरुण जेटली भी छिपा जाते थे और अब निर्मला सीतारमण भी छिपा जाती हैं. दूसरे देशों के मुकाबले आखिर हमारे नागरिक कितनी तेजी से विकास कर रहे है यह तो बताया. जिसे प्रति व्यक्ति सफल उत्पादन या अंग्रेजी में परकैपिटी जीडीपी कहते हैं उस पर मंत्रियों को सांप सूंघ जाता है, होठों पर ताले लग जाते हैं, जबरन रख कर लडख़ड़ाने लगती है.

भारतीय नेता भूल कर भी प्रति व्यक्ति आय की बात नहीं करते. भारतीय नेता यह भी कहने से कतराते हैं कि आखिर कितना पैसा भारतीय नेता मजदूर विदेशों में रगड़ खा कर कमा कर अपने रिश्तेदारों को भेज रहे हैं जिसे भारत सरकार असल में अपना कारनामा मानती है जबकि है यह गुलामी के व्यापार का फायदा. भारत सरकार 107 अरब डालर हर साल विदेशी मजदूरों का पचा रही है जिस से विदेशों में भारतीय अमीर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, सैर कर रहे हैं, मकान खरीद रहे हैं, अरबों का सैनिक सामान खरीदा जा रहा है.

आम आदमी की चाल में भारत दूसरे देशों से हर साल पिछडऩे वालों में सब से तेज है, अर्थव्यवस्था बढ़ाने में नहीं. कुछ अपने पड़ोसी देशों का उदाहरण लें. चीन का प्रति व्यक्ति आय 2014 में 7636 डौलर थी और 2021 में 21,556 यानी 7 सालों से हर चीनी के पास हर साल 4920 डौलर ज्यादा आए. कजाकिस्तान जैसे छोटे पिछड़े एशियाई देश कि 2016 में प्रति व्यक्ति आय 7715 जो 2021 में 10,374 हो गई, 2016 के मुकाबले 2.659 डौलर ज्यादा.

थाईलैंड बहुत अमीर देश नहीं है. 2014 में यहां प्रति व्यक्ति आय 5822 डौलर थी जो 2021 में 7068 डौलर हो गई यानी 1246 डौलर ज्यादा.

इस दौरान भारत के प्रति व्यक्ति की डौलर में आय 700 डौलर से भी कम बड़ी है, 1560 से 2100-2200 हुई है. मनमोहन ङ्क्षसह सरकार के 10 सालों में जब इस का हल्ला नहीं मचाया जा रहा था. प्रति व्यक्ति आय 84 डालर 2005 से 2014 तक बढ़ी थी.

यह न भूले 2014 से 2021 के बीच अमेरिकी नागरिक को प्रति व्यक्ति आय 15,165 डौलर बढ़ गई थी यानी हर आम भारतीय से 35 गुना अमीर हो गया था.

जापान को उस व्यक्ति बूढ़ी होती जनता के कारण घट रही है फिर भी भारतीयों के मुकाबले वे 17 गुने अमीर है, इजरायल भी एशियाई देश है. वहां का नागरिक 26 गुना अमीर है. सिंगापुर का नागरिक भारतीय नागरिक से 36 गुना अमीर है और 2014 के मुकाबले अब 1500 डौलर अतिरिक्त पा रहा है. हम झूठ के लबादे के इतने आदी हो गए हैं कि यह हमारे कणकण में समा गया है. हम झूठे नेताओं पर आंख दिमाग मूंद कर भरोसा करते हैं, झूठे पंडों की बातें सुन कर मंदिरों में दान करते हैं. झूठे क्रिकेट मैचों में पैसा लगाते हैं, झूठ पर आधारित शेयर बाजार में इनवैस्ट करते हैं.

पिछले सालों में जो उन्नति हुई भी है वह भी यहां की सरकार के रहम पर टिके अमीरों ने गरीबों से छीन ली है. गरीब और गरीब हो गए हैं, अमीरों की अमीरी तो विख्यात हो गई है. हमारे कई अमीर स्वीजरलैंड के अमीरों का मुकाबला करते हैं जबकि आम आदमी की आय 40-45 गुना कम है.

भारत विश्वगुरू है पर झूठ पर ङ्क्षजदा रहने वालों के लिए.

घर की नींव : क्या मां की तड़प को समझ पाया मधुकर?

ट्रेन एक हलके से धक्के के साथ चल पड़ी. सैकड़ों विशालकाय लोहे की कैंचियों ने ऋषिकेश तक की दूरी को काटना शुरू कर दिया.

‘बाहर बारिश हो रही है, इधर कई दिनों से उमस हो रही थी. बादल पूरे आसमान में छाए हुए थे, कई दिनों से आसमान को घेरे पड़े थे, उमड़घुमड़ रहे थे, अब जा कर बरसे हैं तो वातावरण हलका हो जाएगा,’ मधुकर ने नीचे की बर्थ पर चादर बिछाते हुए सोचा, ‘उस का अपना मन भी तो ऐसे ही बोझिल है, जाने कब हलका होगा,’ उस ने जूते उतारे और पैर समेट कर आराम से बैठ गया. बाहर देखने की कोशिश में अपना चेहरा खिड़की के शीशे से सटा दिया. बाहर खिड़की के कांच पर एकएक बूंद गिरती है, फिर ये एकदूसरे के साथ मिल कर धार बना लेती हैं, अनवरत धार, जो बहती ही चली जाती है. बूंदों में उसे एक चेहरा नजर आने लगा. झुर्रियों भरा, ढेर सारा वात्सल्य समेटे वह चेहरा जिस ने उसे प्यार दिया, जन्म दिया, अपने उदर में आश्रय दिया, आंचल की छांव दी.

उस चेहरे की याद आते ही मधुकर की छाती में जैसे गोला सा अटकने लग जाता है. उस की मां पिछले साल से ऋषिकेश के एक आश्रम में रह रही हैं. अपने कामधंधे में इस बीच वह इतना व्यस्त रहा कि पिछले 4 महीनों से मां के खर्च के लिए रुपए भी नहीं भेज सका. वह लगातार टूर पर था. उस ने सोचा कि नमिता ने भेज दिए होंगे और नमिता ने सोचा कि उस ने भेज दिए होंगे. कल जब पता चला कि 4 महीनों से किराया नहीं गया तो फिर उस की बेचैनी का अंत न रहा और उस ने तुरंत ऋषिकेश जाने का निश्चय कर लिया. जाने मां किस हाल में होंगी, उन्होंने कोई पत्र भी नहीं लिखा, असल में वह स्वाभिमानी तो शुरू से ही रही हैं, उस के लिए यही स्वाभाविक था. उन्हें कितनी भी तकलीफ क्यों न हो, दयनीय बनना तो उन की फितरत में नहीं है.

‘सर्वे भवंतु सुखिन: बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा हुआ, आश्रम का मटमैला गेट उस की नजरों में तैर रहा है. वह कब वहां पहुंचेगा, सोच कर उस ने बेचैनी से पहलू बदला.

मधुकर 10 वर्ष का था, तभी हृदयगति रुक जाने से पिता की असामयिक मृत्यु हो गई थी. दबीढकी, सकुचीसहमी, व्यक्तित्वहीन सी मां ने इस विकट परिस्थिति में कैसे रंग बदला देख कर वह दंग रह गया. उन्होंने उसे मांबाप दोनों बन कर पाला. उन के जीवन का सूत्र वही था, ‘उस की पढ़ाई, उस का स्वास्थ्य, उस की खुशी,’ मां की सारी दुनिया यहीं तक सिमट आई थी. जब मधुकर की नौकरी लगी, तो मां के चेहरे पर एक गहरी परितृप्ति की आभा दिखाई पड़ी, जैसे वह इसी दिन के लिए तो जी रही थीं.

मधुकर ने पहली तनख्वाह ला कर मां को दी और कहा कि मां, अब तक तुम बहुत मेहनत कर चुकीं, अब बस करो, आशा के विपरीत बिना किसी नानुकर के मां मान गई, जैसे वह इसी का इंतजार का रही हों.

मधुकर को पहली बार संतोष का एहसास और अपने कर्तव्य को पूरा कर सकने की कृतार्थता जैसी अनुभूति हुई, पर तभी जाने कहां से, मां को उस की शादी कर देने की धुन सवार हो गई.

बड़ी खोजबीन के बाद नमिता को उस के लिए मां ने पसंद किया. कई बड़े घरों से रिश्ते आए, लाखों रुपए दहेज का प्रस्ताव भी मां ने ठुकरा दिया यह कह कर कि गरीब घर की लड़की अधिक संवेदनशील होगी, वह तेरा घर सुखमय बनाए रखेगी, एक अच्छी पत्नी और सुघड़ बहू साबित होगी.

नमिता को देख कर मधुकर को भी अच्छा लगा. वह उसे विनम्र, सुभाषिणी और संस्कारवान लगी थी. पहली ही मुलाकात में उस ने कहा था, ‘नमिता, मेरी मां का खयाल रखना, मेरे लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी होम कर दी है.’

उस समय तो नमिता ने मुसकरा कर सिर हिला दिया था, पर अब उसे लगता है कि तभी गलती हो गई थी. उसी समय नमिता के मन ने मां को अपना प्रतिद्वंद्वी मान लिया था.

समय बीतने के साथसाथ यह प्रतिद्वंद्विता और गहरी होती गई थी. बच्चे होने के साथ तो यह संघर्ष बढ़ता ही चला गया. बच्चों के पालनपोषण को ले कर मां कोई भी सुझाव देतीं तो वह उन के मुंह पर ही उन की हंसी उड़ाती. संवेदनशील मां आहत हो कर धीरेधीरे अपने में ही सिमटती चली गई.

मधुकर ने जब भी विरोध करना चाहा, तो मां ने दृढ़ता से कह दिया, ‘देख मधु, मेरी जिंदगी आखिर और कितनी बची है. मेरे लिए तू अपनी गृहस्थी में दरार मत डाल.’

हां, दादी के हाथों पले बच्चे बड़े होने के बाद, दादी के ही ज्यादा नजदीक थे. मां तो उन के लिए एक थानेदार जैसी थीं, जो केवल निर्देश दिया करती थीं, ‘यह करो’ और ‘वह न करो.’ दादी ही उन की असली मां बन गई थीं. दोस्तों से झगड़ कर आने के बाद बच्चे दादी की गोद में ही सिर छिपा कर रोते.

यह सब नमिता को उग्र से उग्रतर बनाते चले जा रहे थे. सारी समस्याओं की जड़ में उसे मां ही नजर आतीं.
ऋषिकेश के छोटे से स्टेशन पर उतर कर उस का मन हुआ कि एक कप चाय पी ले, आश्रम में पता नहीं चाय मिलेगी भी या नहीं, तो तुरंत खयाल आया कि मां तो बारबार चाय पीती थीं. जब वह पढ़ता था तो मां रात में उस के साथ जागी रहती थीं, घंटे, डेढ़ घंटे में बिना कहे चाय बनातीं. अदरक डली हुई कड़क चाय का प्याला उसे स्फूर्ति दे जाता था, उसी समय मां को भी बारबार चाय पीने की आदत पड़ गई थी.

जीवन में ऐसे ढेरों क्षण आते हैं जो चुपचाप गुजर जाते हैं, पर उन में से कुछ स्मृतियों की दहलीज पर अंगद की तरह पैर जमा कर खड़े रह जाते हैं. हमारी चेतना के पटल पर वे फ्रीज हैं तो हैं. मां के साथ बिताए कितने सारे क्षण, जिन में वह केवल याचक है, उस की स्मृति की दहलीज पर कतार बांधे खड़े हैं.

विचारों में डूबताउतराता मधुकर आश्रम के जंग खाए, विशालकाय गेट के सामने आ खड़ा हुआ. सड़क पतली, वीरान और खामोश थी. चारों तरफ दरख्तों के झुंड में धूपछांव का खेल चल रहा था. नीला आसमान था, साफ हवा के झोंके थे, मधुकर पुलकित हो कर यह दृश्य देखता रहा. जाने क्या जादू था यहां कि उस की सारी चिंताएं, सारे तनाव जाने कहां खो गए.

गेट खोल कर मधुकर अंदर आया तो मां एक खुरपी से मोगरा के फूलों की क्यारी ठीक कर रही थीं. मधुकर को देख उन के मुंह से निकला, ‘‘बेटा, तू आ गया,’’ और अपनी डबडबाई आंखों को छिपाने के लिए वह इधरउधर देखने लगीं. आंखें तो उस की भी भर आईं, उस ने मां को यहां क्यों आने दिया. सैकड़ों बार स्वयं से पूछा गया यह सवाल आज भी उस की अंतरात्मा को कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया.

मां अत्यंत बेचैन हो उठीं कि उसे क्या खिलाएंपिलाएं. ‘‘मां, तुम मेरे खानेपीने की चिंता मत करो, आज तो हम मांबेटे सिर्फ बातें करेंगे,’’ लाड़ जताता हुआ मधुकर बोला.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, पर पहले तुम नहा कर तो आओ.’’

‘‘तो मां, तुम नहीं सुधरोगी,’’ कहता हुआ मधुकर हंस पड़ा.

मां को हमेशा से अच्छा लगता था कि घर के सब लोग सुबहसुबह नहाधो कर तैयार हो जाएं और मधुकर इस बात पर खूब टालमटोल करता था.

‘‘अरे, आश्रम के पास ही गंगा का घाट है, नहा कर तो देखो, कितना अच्छा लगता है,’’ मां ने फिर से अपनी बात पर जोर दिया.

‘‘जाता हूं, मां जाता हूं,’’ कहता हुआ मधुकर उठ खड़ा हुआ.

गंगाजल का शीतल, पावन स्पर्श उस की शिराओं में अज्ञात टौनिक का संचार कर गया. वह बड़ी देर तक तैरता रहा. नहा कर आया तो मां ने उस की पसंद के आलू के मोटेमोटे परांठे, घर का निकाला हुआ मक्खन का बड़ा सा डला और दहीचीनी परोसा.

बहुत दिनों बाद डायबिटीज और कोलैस्ट्राल को भूल मधुकर ने भरपेट खाना खाया और लेट गया.
मां उस के बारबार मना करने के बावजूद उस के सिर में तेल लगाने बैठ गईं, साथ ही, ‘नमिता कैसी है? चिंकी और मिंकू कैसे हैं? मिंकू अब दूध पी लेता है न, रात में बिस्तर गीला करने की आदत छूटी या नहीं’ इत्यादि सवाल करते समय मां के स्वर का गीलापन साफसाफ पकड़ में आ रहा था.

मधुकर खुद को फिर से कठघरे में खड़ा पा रहा था, साथ ही, लरजता हुआ यह ममतामय स्पर्श, उस का मन हो रहा था कि मां की गोद में सिर छिपा कर फूटफूट कर रो पड़े. नमिता तो पराई जाति थी, पर उसे क्या हो गया था. अपना घर बचाने के लिए उस ने कैसी कीमत चुकाई? क्या उस का घर इतना कीमती है कि उस की बूढ़ी मां का वात्सल्य भी उस के आगे छोटा पड़ जाए.

शाम को मधुकर सो कर उठा तो मां भोजन की तैयारी में जुट गई थीं. उस ने कहा, ‘‘मां, तुम अपना काम निबटाओ, तब तक मैं घूम कर आता हूं.’’

शाम का समय, गंगा का किनारा, शीतल जल, साफ पानी के अंदर गोल चमकीले पत्थर, तनमन का मैल धोने आए कितने ही श्रद्धालु वहां आसपास घूम रहे थे. संध्याकालीन आरती के साथ घंटेघड़ियालों एवं शंखों की ध्वनि वातावरण में सम्मोहन घोल रहे थे. गंगा की लहरों पर इमारती लकड़ी का एक बड़ा सा कुंदा बहता जा रहा था, उस की जिंदगी भी तो ऐसे ही समय की लहरों से धकेली जा रही है. सुबह, दोपहर, शाम और वह बहता रहा, बहता रहा. परिस्थितियों के हाथों खेलता रहा. नमिता ने मां की शिकायतें कीं, उस ने सुन लिया, मां और फिर बेटा दोनों उस कर्कशा, झगड़ालू पत्नी के हाथों प्रताड़ित होते रहे. उस ने जब भी प्रतिवाद करना चाहा, नमिता ने घर छोड़ कर चले जाने की धमकी दे डाली.

बेटेबहू में बढ़ते तनाव को देखते हुए परेशान मां ने उन के बीच से हट जाने का फैसला लिया और बेटे को समझा दिया कि अब उस के पूजापाठ में मन लगाने के दिन हैं. अपनी एक परिचिता का दिया हुआ ऋषिकेश के आश्रम का पता भी दिया.

मधुकर को मां का यह प्रस्ताव बहुत ही अरुचिकर और हृदयविदारक लगा, पर मां को आश्रम भेजने में नमिता की तत्परता और बेटे का घर बना रहे इस के लिए मां का त्याग, दोनों के आगे वह कुछ न कर पाया.

‘काश, वह कुछ कर पाता. यह इतना बड़ा ब्रह्मांड, आकाश, तारे, नक्षत्र, सूर्य, चंद्रमा सब अपनी धुरी पर अपना दायित्व निभाते रहते हैं. कमाल का समायोजन है. हम मानव ही इतने असंतुलित क्यों हैं,’ सोचते हुए मधुकर के अंदर एक बेचैनी पलने लगी थी, अंदर ही अंदर वह खौल रहा था, उबलते पानी की तरह. कई बार सोचता है, ‘वह कुछ बोलता क्यों नहीं? क्यों अपनी आत्मा पर बोझ ले कर जिंदा है? मां के प्यार का क्या प्रतिदान वह दे रहा है?’ वह सोच रहा था कि अचानक ‘छपाक’ की आवाज और किसी औरत की चीख सुनाई दी, ‘अरे, कोई बचाओ, मेरा बच्चा डूब रहा है. बचाओ, अरे कोई तो बचाओ…’

बेचैन मां की हृदयविदारक चीख सुनाई पड़ते ही मधुकर अपनी तंद्रा से बाहर आता है, उछल कर खड़ा हो जाता है, तब तक बेटे को बचाने के लिए मां भी उस के पीछे नदी में डुबकी लगा चुकी है, न मां का पता है, न बच्चे का… 3-4 मल्लाह पानी में संघर्ष करते दिखाई पड़ते हैं. थोड़ी ही देर में बच्चा ढूंढ़ लिया जाता है, पर मां नहीं मिलती. लगता है, उस ने जलसमाधि ले ली.

हलचल मची हुई है, लोग बातें कर रहे हैं, ‘‘बेचारा बच्चा अनाथ हो गया. मां को तैरना नहीं आता था तो कूदी क्यों, बेचारी, डूब गई.’’

मधुकर को जरा भी आश्चर्य नहीं है. अगर वह डूब रहा होता तो उस की मां भी यही करती. और वह खुद कायर की तरह नमिता के हाथों खेलता रहा, केवल इसलिए कि घर की शांति न भंग हो, घर बचा रहे. अरे, ये बुजुर्ग ही तो घर की नींव होते हैं, बिना नींव के क्या कभी घर टिका है.

एक पल में उस का मन निर्द्वंद्व हो गया. उस ने निश्चय कर लिया कि अब चाहे जो हो, अपने घर की नींव को वह पुख्ता और मजबूत बनाएगा. फिर तो उस का घर आंधीतूफान, सबकुछ झेल लेगा, सबकुछ. इस का उसे पक्का यकीन है. और वह सधे कदमों से आश्रम की ओर चल पड़ा.

Mother’s Day 2023: मैं लौट आया मां- भाग 2

‘हां छवि, दीवाली का ऐसा उपहार तो किसी ने किसी को नहीं दिया होगा.’ भावातिरेक में छवि ने नन्हे को अपनी छाती से लगा लिया और आंसुओं से उस के नाजुक शरीर को भिगोने लगी. ‘भाभी, कानून की औपचारिकता आप जब कहोगे मैं पूरी कर जाऊंगा.’ नन्हे को छाती से लगाए हुए ही छवि ने समर और प्रिया को कृतज्ञतापूर्ण निगाहों से निहारा. समर ने आंसू पोंछ दिए छवि के. ‘लेकिन प्रिया का यह पहला बच्चा है,’ वह अभी भी दुविधा में थी. ‘भाभी…’ प्रिया उस के पास बैठती हुई बोली, ‘‘हम सब आप के ही तो हैं, आप इस की मां हों या मैं, क्या फर्क पड़ता है, आप ने समर को पाला है, मनु को पाला, और इस बच्चे को तो हम ने जन्म ही आप के लिए दिया है, विश्वास करो भाभी, इसे आप से कोई नहीं छीनेगा.’ छवि ने परम संतोष से नन्हे के गाल से अपना गाल सटा लिया.

दीवाली के बाद समर का परिवार चला गया. सूना घर नन्हे की किलकारियों से गूंजने लगा. छवि की ताकत और रौनक फिर से लौट आई. नीरज को भी जल्दी घर आने का बहाना मिल गया. नन्हा रुद्र कब पलंग से उतर कर घुटनों के बल चला और कब अपने पैरों पर दौड़ने लगा, पता ही नहीं चला. छवि के दिनरात जैसे एक हो गए. 3 साल का रुद्र ड्रैस पहन कर स्कूल भी जाने लगा. उसे पढ़ाना, होमवर्क कराना, छवि को मानो दिनरात भी कम पड़ने लगे. वह खुश थी, मस्त थी अपनी सुहानी दुनिया में. रुद्र का पालनपोषण करने, उसे अच्छे संस्कार देने में वह भूल ही गई कि रुद्र ने प्रिया की कोख से जन्म लिया है. छुट्टियों में समर अपने परिवार के साथ आता तो छवि शंकित हो जाती, कहीं फिर पहले की तरह न हो जाए. कहीं प्रिया की ममता जोर न मारने लग जाए. कहीं समर का हृदय डांवांडोल न हो जाए. लेकिन समर और प्रिया ने कभी अपनी किसी बात या भाव से यह नहीं जताया कि उन्हें रुद्र को गोद देने का कोई अफसोस है. शुरूशुरू में समर के परिवार का आना जल्दीजल्दी होता था, फिर समर की व्यस्तता की वजह से कम होने लगा. उसे ठीक ही लगता उन का कम आना. क्योंकि रुद्र अब बड़ा हो रहा था और उसे लगता कि अनजाने में उन की किसी बात से रुद्र पर असलियत जाहिर न हो जाए. कई वर्ष बीत गए. रुद्र 19 साल का हो गया था. अब नीरज गाहेबगाहे छवि से कहने लगे थे कि रुद्र को असलियत बता देनी चाहिए. परिवार की ही बात है और यह बात कभी न कभी खुल ही जाएगी. पर छवि इस के लिए तैयार नहीं होती थी. रुद्र ने 12वीं पास कर ली थी. नीरज ने जब उसे कालेज की पढ़ाई खत्म कर एमबीए कर के अपना व्यवसाय संभालने को कहा तो उस ने मना कर दिया, ‘‘मैं मैडिकल लाइन में जाना चाहता हूं पापा, डाक्टर बनना चाहता हूं.’’ नीरज अचंभित रह गए, ‘लेकिन तुम ने पहले तो कभी डाक्टर बनने की बात नहीं कही.’

‘मैं ने डाक्टर बनने के हिसाब से ही तो 12वीं के अपने विषय लिए थे पापा, मैं ने सोचा आप समझ रहे होंगे.’ ‘इस में समझना कैसा, तुम मैडिकल लाइन में जाओगे तो इतना बड़ा व्यवसाय मैं कैसे अकेले संभालूंगा.’ ‘पापा, मुझे आप के व्यवसाय में जरा भी रुचि नहीं है और अपना मनपसंद काम न होने की वजह से मैं ठीक से कर नहीं पाऊंगा.’ नीरज समझ रहे थे. ये उस के जींस थे जो उसे समर से मिले थे. उस की रुचियों पर समर का पूरा असर था.

‘ठीक है,’ उन्होंने हथियार डाल दिए. ‘आप ने उसे मैडिकल लाइन में जाने से रोका क्यों नहीं? कहीं वह भी समर की तरह घर से चला गया तो?’ छवि ने नीरज से अकेले में कहा. ‘तो क्या करूं छवि, उसे जबरदस्ती तो नहीं रोक सकते हैं न. और ये भी तो हो सकता है नर्सिंग होम बनाने का जो सपना हमारा समर पूरा नहीं कर सका वह रुद्र पूरा कर दे.’ नीरज फिर अपने भूलेबिसरे सपने को आकार देने लगे. रुद्र्र अपने मैडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगा. लेकिन छवि के हृदय में जैसे शूल गड़ गया था. उन्हें क्या पता था कि यही गड़ा हुआ शूल एक दिन उन के हृदयों से आरपार हो कर टुकड़ेटुकड़े कर देगा. एक दिन पता नहीं कैसे रुद्र्र के हाथ दराज से कागजों के बीच से वह फोटो हाथ लग गई जो रुद्र्र के जन्म के बाद मुंबई के अस्पताल से बाहर आते समय खिंची हुई थी. उस में प्रिया की गोद में रुद्र और मनु का हाथ समर ने पकड़ा हुआ था. वह फोटो ले कर उन के पास आ गया, ‘ममा, यह फोटो तो बहुत पुरानी है, चाची की गोद में यह बच्चा कौन है?’ दोनों उस फोटो को देख कर चौंक गए. छवि ने फोटो हाथ से छीन ली, ‘अरे होगा कोई बच्चा, मुंबई की फोटो है यह तो.’ ‘हां ममा, इसीलिए तो पूछ रहा हूं कि चाची की गोद में यह ‘न्यूली बौर्न बेबी’ कौन है?’ ‘होगा कोई, मुझे नहीं पता. तू अपना काम कर,’ कह कर छवि उठ खड़ी हुई.

‘ठहरो छवि,’ एकाएक नीरज बोले, ‘उस की बात का सही जवाब दो, कभी न कभी यह सवाल अपना जवाब मांगेगा ही.’ ‘कौन सा सवाल और कौन सा जवाब, यह आप क्या कर रहे हैं,’ छवि हड़बड़ा गई कि नीरज रुद्र को सच न बता दें. लेकिन नीरज तो आज जैसे रुद्र को सच बताने के लिए कटिबद्ध थे. ‘नीरज प्लीज,’ छवि की निगाहें कातर हो गईं. उसे लगा उस की गोद आज उजड़ने ही वाली है. नीरज ने रुद्र का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया. ‘दरअसल, रुद्र बेटा, प्रिया की गोद में तुम हो.’

‘लेकिन मैं, क्यों?’

‘हां, तो क्या हुआ. चाची की गोद में तुम नहीं हो सकते,’ छवि ने बात संभालनी चाही. लेकिन नीरज अब झूठ की बुनियाद का महल खड़ा नहीं करना चाहते थे. हमेशा मन में एक डर सा लगा रहता था कि जब रुद्र को सच पता लगेगा तो पता नहीं वह इसे किस तरह से लेगा. उसे सच पता हो तभी वे अपनी वृद्धावस्था सुखसंतोष से बिता सकेंगे. ‘रुद्र बेटा, एक सचाई है जो तुम्हें अभी पता नहीं है लेकिन वादा करो कि तुम मेरी बात को सुन कर समझोगे और उसे सहजता से लोगे.’

‘ऐसी क्या बात है पापा?’

‘यही कि तुम…’ नीरज का गला अटक गया. पता नहीं अगले पल क्या होने वाला था पर अब तो तीर कमान से निकल चुका था, ‘तुम हमारे प्यारे बेटे हो पर तुम्हें जन्म समर और प्रिया ने दिया है.’’ किसी तरह अपनी बात कह कर उन्होंने प्रतिक्रिया जानने के लिए रुद्र के चेहरे की तरफ देखा. छवि अपनी जगह पर जैसे निष्प्राण खड़ी रह गई. रुद्र्र चुप, भावहीन, निस्तेज, अविश्वास भरी नजरों से उन की तरफ देख रहा था. ‘आप यह बात मजाक में कह रहे हैं पापा या सचमुच ऐसी बात है?’

रिश्तों का सच -भाग 1: क्या दोनों के मन की गांठें कभी खुल सकीं

घर में घुसते ही चंद्रिका के बिगड़ेबिगड़े से तेवर देख रवि भांपने लगा था कि आज कुछ हुआ है, वरना रोज मुसकरा कर स्वागत करने वाली चंद्रिका का चेहरा यों उतरा हुआ न होता. ‘‘लो, दीदी का पत्र आया है,’’ चंद्रिका के बढ़े हुए हाथों पर सरसरी सी नजर डाल रवि बोला, ‘‘रख दो, जरा कपड़ेवपड़े तो बदल लूं, पत्र कहीं भागा जा रहा है क्या?’’

चंद्रिका की हैरतभरी नजरों का मुसकराहट से जवाब देता हुआ रवि बाथरूम में घुस गया. चंद्रिका के उतरे हुए चेहरे का राज भी उस पर खुल गया था. रवि मन ही मन सोच कर मुसकरा उठा, ‘सोच रही होगी कि आज मुझे हुआ क्या है, दीदी का पत्र हर बार की तरह झपट कर जो नहीं लिया.’ हर साल गरमी की छुट्टियों में दीदी के आने का सिलसिला बहुत पुराना था. परंतु विवाह के 5 वर्षों में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो जब उन के आने को ले कर चंद्रिका से उस की जोरदार तकरार न हुई हो. बेचारी दीदी, जो इतनी आस और प्यार के साथ अपने एकलौते, छोटे भाई के घर थोड़े से मान और सम्मान की आशा ले कर आती थीं, चंद्रिका के रूखे बरताव व उन दोनों के बीच होती तकरार से अब चंद दिनों में ही लौट जाती थीं.

दीदी से रवि का लगाव कम होता भी, तो कैसे? दीदी 10 वर्ष की ही थीं, जब मां रवि को जन्म देते समय ही उसे छोड़ दूसरी दुनिया की ओर चल दी थीं. ‘दीदी न होतीं तो मेरा क्या होता?’ यह सोच कर ही उस की आंखें भर उठतीं. दीदी उस की बड़ी बहन बाद में थी, मां जैसी पहले थीं. कैसे भूल जाता रवि बचपन से ले कर जवानी तक के उन दिनों को, जब कदमकदम पर दीदी ममता और प्यार की छाया ले उस के साथ चलती रही थीं.

दीदी तो विवाह भी न करतीं, परंतु रिश्तेदारों के तानों और बेटी की बढ़ती उम्र से चिंतित पिताजी के चेहरे पर बढ़ती झुर्रियों को देखने के बाद रवि ने अपनी कसम दे कर दीदी को विवाह के लिए मजबूर कर दिया था. उन के विवाह के समय वह बीए में आया ही था. विवाह के बाद भी बेटे की तरह पाले भाई की तड़प दीदी के अंदर से गई नहीं थी, उस की जरा सी खबर पाते ही दौड़ी चली आतीं. वह भी उन के जाने के बाद कितना अकेला हो गया था. यह तो अच्छा हुआ कि जीजाजी अच्छे स्वभाव के थे. दीदी की तड़प समझते थे, भाईबहन के प्यार के बीच कभी बाधा नहीं बने थे.

चंद्रिका को भी तो वह ही ढूंढ़ कर लाई थीं. उन दिनों की याद से रवि मुसकरा उठा. दीदी उस के विवाह की तैयारी में बावरी हो उठी थीं. ऐसा भी नहीं था कि चंद्रिका को इन बातों की जानकारी न हो, विवाह के शुरुआती दिनों में ही सारी रामकहानी उस ने सुना दी थी. विवाह के बाद जब पहली बार दीदी आईर् थीं तो चंद्रिका भी उन से मिलने के लिए बड़ी उत्साहित थी और स्वयं रवि तो पगला सा गया था. आखिर उस के विवाह के बाद वह पहली बार आ रही थीं. वह चाहता था भाई की सुखी गृहस्थी देख वह खिल उठें.

पति के ढेरों आदेशनिर्देश पा कर चंद्रिका का उत्साह कुछ कम हो गया था, वह कुछ सहम सी भी गई थी. परंतु रवि तो अपनी ही धुन में था, चाहे कुछ हो जाए, दीदी को इतना सम्मान और प्यार मिलना चाहिए कि उन की ममता का जरा सा कर्ज तो वह उतार सके.

दीदी के आने के बाद उन दोनों के बीच चंद्रिका कहीं खो सी गई थी. उन दोनों को अपने में ही मस्त पा उन के साथ बैठ कर स्वयं भी उन की बातों में शामिल होने की कोशिश करती, पर रवि ऐसा मौका ही न देता. तब वह खीज कर रसोई में घुस खाना बनाने की कोशिश में लग जाती. मेहनत से बनाया गया खाना देख कर भी रवि उस पर नाराज हो उठता, ‘यह क्या बना दिया? पता नहीं है, दीदी को पालकपनीर की सब्जी अच्छी लगती है, शाही पनीर नहीं.’ फिर रसोई में काम करती चंद्रिका का हाथ पकड़ कर बाहर ला खड़ा करता और कहता, ‘आज तो दीदी के हाथ का बना हुआ ही खाऊंगा. वे कितना अच्छा बनाती हैं.’

तब भाईबहन चुहलबाजी करते हुए रसोई में मशगूल हो जाते और चंद्रिका बिना अपराध के ही अपराधी सी रसोई के बाहर खड़ी उन्हें देखती रहती. दीदी जरूर कभीकभी चंद्रिका को भी साथ लेने की कोशिश करतीं, लेकिन रवि अनजाने ही उन के बीच एक ऐसी दीवार बन गया था कि दोनों औपचारिकता से आगे कभी बढ़ ही न पाई थीं. उस समय तो किसी तरह चंद्रिका ने हालात से समझौता कर लिया था, लेकिन उस के बाद जब भी दीदी आतीं, वह कुछ तीखी हो उठती. सीधे दीदी से कभी कुछ नहीं कहा था, लेकिन रवि के साथ उस के झगड़े शुरू हो गए थे. दीदी भी शायद भांप गई थीं, इसीलिए धीरेधीरे उन का आना कम होता जा रहा था. इस बार तो पूरे एक वर्ष बाद आ रही थीं, पिछली बार उन के सामने ही चंद्रिका ने रवि से इतना झगड़ा किया कि वे बेचारी 4 दिनों में ही वापस चली गई थीं. जितने भी दिन वे रहीं, चंद्रिका ने बिस्तर से नीचे कदम न रखा, हमेशा सिरदर्द का बहाना बना अपने कमरे में ही पड़ी रहती.

एक दोपहर दीदी को अकेले काम में लगा देख भनभनाता हुआ रवि, चंद्रिका से लड़ पड़ा था. तब वह तीखी आवाज में बोली थी, ‘तुम क्या समझते हो, मैं बहाना कर रही हूं? वैसे भी तुम्हें और तुम्हारी दीदी को मेरा कोई काम पसंद ही कब आता है, तुम दोनों तो बातों में मशगूल हो जाओगे, फिर मैं वहां क्या करूंगी?’ बढ़तेबढ़ते बात तेज झगड़े का रूप ले चुकी थी. दीदी कुछ बोलीं नहीं, पर दूसरे ही दिन सुबह रवि द्वारा मिन्नतें करने के बाद भी चली गई थीं. उन के चले जाने के बाद भी बहुत दिनों तक उन दोनों के संबंध सामान्य न हो पाए थे, दीदी के इस तरह चले जाने के कारण वह चंद्रिका को माफ नहीं कर पाया था.

पति को रात को पूरा टाइम नहीं दे पाती हूं, मुझे नींद आने लगती है मैं क्या करूं?

सवाल

हसबैंड रात को सैक्स करने का मूड में रहते हैं लेकिन मुझे रात में डिनर लेने के बाद नींद के झोंके आने लगते हैं. मेरी नईनई शादी हुई है. प्राइवेट जौब करती हूं. पति भी प्राइवेट सैक्टर में अच्छी पोस्ट पर हैं. सबकुछ अच्छा है लेकिन एक दिक्कत आ रही है जिस का मेरे पास हल नहीं है. पति वर्क एट होम करते हैंदिन में काम करने के दौरान जब नींद आती है तो वे स्मौल चैप लेते रहते हैं. जबकि मैं सारा दिन औफिस में लगातार काम करती हूं. जाहिर सी बात हैउन्हें बेसब्री से मेरा बैड पर इंतजार होता है. मन तो मेरा भी करता है कि पति का पूरापूरा साथ दूं लेकिन थकावट के कारण सोचा हुआ कुछ नहीं कर पाती. नींद आनी शुरू हो जाती है.

दिल करता है कि जौब छोड़ दूं लेकिन अच्छीखासी जौब छोड़ना भी बेवकूफी होगी क्योंकि मैं अकेली लड़की तो हूं नहीं जो शादी के बाद जौब कर रही हूं. सभी लड़कियां करती हैं. उन्होंने भी तो यह सिचुएशन फेस की होगी. पर कैसे. आप कुछ राय दीजिए ताकि मेरी मैरिड लाइफ मजे से चले और औफिशियल भी.

जवाब

आप पतिपत्नी पढ़ेलिखे हैंसमदार हैं. आप दोनों को एकदूसरे की सिचुएशन को समना होगा. खासकर आप के पति को आप की स्थिति समते हुए समदारी से काम लेना होगा. नईनई शादी में सब के साथ अपनी तरह की अलगअलग समस्याएं आती हैं लेकिन जौब छोड़ देना बिलकुल भी सही डिसीजन नहीं होगा. यह बात तो आप खुद भी मान रही हैं.

खैरदिक्कत कोई इतनी बड़ी भी नहीं है कि उसे हौवा बना दिया जाए. हर समस्या का हल होता है. आप की समस्या भी हम सुल?ाएंगे.

सब से पहला सु?ाव यह है कि आप अपने औफिस वर्क को मैनेज करें. वर्क लोड ज्यादा है तो आप किसी कलीग की मदद ले सकती हैंथोड़े दिनों के लिए. काम की ज्यादा टैंशन मत लीजिए. प्रायोरिटी बेसिस पर काम को बांट

कर कीजिए.

काम करते वक्त अपनी ऊर्जा को बनाए रखने के लिए एनर्जाइजिंग चीजों का सेवन करती रहिए. फ्रूट्सनट्समखानेकौफी आदि खाते रहने से नींद भी नहीं आएगी और थकान दूर होगी.

दिन में ज्यादा थकावट नहीं होगी तो रात को नींद कम आएगी और आप पति के साथ स्वयं को एनर्जी से भरा पाएंगी.

रात को डिनर जल्दी कर लें ताकि रात को ज्यादा से ज्यादा वक्त पति को दे सकें और अपनी नींद भी पूरी कर लें. सुबह कुछ वक्त ऐक्सरसाइज के लिए निकाल सकती हैं तो बहुत अच्छा रहेगा. रोजाना ऐक्सरसाइज आप को ऊर्जा देगी और थकान को दूर रखेगी. पौष्टिक आहारविटामिंस लीजिएस्वस्थ शरीर से ही मन स्वस्थ और प्रफुल्लित रहता है.

इसलिए अपनी इस समस्या को अपनी लाइफ का एक फेस मान कर चलिए और लाइफ के मजे लेने की कोशिश कीजिएनईनई शादी हुई है. यह वक्त दोबारा लौट कर नहीं आने वाला.

इंटरक्रौपिंग खेती: दो या उस से अधिक फसलें ले कर मुनाफा पाएं

कु छ किसानों के पास जमीन है, तो पानी नहीं. अगर पानी है, तो जमीन नहीं. और अगर दोनों हैं, तो नवाचार करने की क्षमता नहीं है. साथ ही साथ सरकारी योजनाओं का लाभ उठा कर कोई भी किसान उन्नत खेती कर सकता है, बस जरूरत होगी एक सही कदम की. अजमेर जिले के एक परिवार के 4 किसान भाइयों ने समूह में इंटरक्रौपिंग खेती का एक सही कदम उठा कर न सिर्फ सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया, बल्कि इलाके में एक मिसाल भी कायम की है.

यह परिवार 5 सौर ऊर्जा संयंत्रों से 5 ट्यूबवैल चला कर 95 बीघा भूमि में सिंचाई कर रहा है और सालाना तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपए की आमदनी ले रहा है. एक साल में ले रहे 3 से 4 फसलें अजमेर जिला मुख्यालय के निकट बूढ़ा पुष्कर क्षेत्र में किसान कैलाश चंद्र चौहान अपने भाइयों की जमीन में इंटरक्रौपिंग प्रणाली से साल में 3 से 4 फसलें ले रहे हैं. इन्होंने समूह बना कर 5 सौर ऊर्जा संयंत्र लगा रखे हैं. इस जमीन पर 5 ट्यूबवैल हैं. इतना ही नहीं, प्याज भंडारण केंद्र, बूंदबूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई और नर्सरी पर भी सरकारी लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

बेर, आंवला, अनार, करेला, नीबू के पेड़ों के साथसाथ मटर, मूंगफली, तरबूज, प्याज, गेहूं, चना, जौ, सरसों की फसल पैदा की जा रही है. मूंगफली के बाद उसी खेत में मटर की खेती की जा रही है. इस के बाद इसी में तरबूज का उत्पादन किया जाता है. इस साल तकरीबन 50 बीघा में मटर की फसल लहलहा रही है. एक बीघा में 2,300 क्विंटल मटर का उत्पादन हो रहा है. ऐसे में डेढ़ लाख क्विंटल मटर का उत्पादन होने की संभावना है. एक साल में मटर से तकरीबन 20 लाख रुपए की कमाई हो रही है, वहीं आंवला के 1,614 पेड़ लगे हैं, जिन में से 600 पौधे पर उत्पादन हो रहा है. खेतों में 5 ट्यूबवैल से पानी निकालने के लिए 5 सौर ऊर्जा प्लांट लगा रखे हैं.

यह सभी प्लांट केंद्र व राज्य सरकार के अनुदान पर लगाए गए हैं. इस से बिजली पर खर्च होने वाले लाखों रुपए की बचत हो गई है यानी एक बार खर्च की गई राशि से हमेशा के लिए बिजली खर्च की बचत हो गई है. किसान कैलाश चंद चौहान नर्सरी में आंवला, बैर, नीबू, बिल्वपत्र, गुलाब, अनार की पौध तैयार की जाती है. आंध्र प्रदेश, गुजरात के अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश के कायमगंज आदि जगह से इन की डिमांड रहती है. इन के खेतों में 250 जामुन के पेड़, अनार के 500, अमरूद के 150, बेर के 130 पौधे लगे हुए हैं, जो अच्छा उत्पादन दे रहे हैं. क्या है इंटरक्रौपिंग खेती आमतौर पर किसान एक खेत में एक समय एक ही फसल की बोआई करते हैं, लेकिन किसान 2 या उस से अधिक फसलें भी एक ही खेत में एक ऋतु में उगा सकते हैं. हमारे देश में फसल उत्पादन मौसम की प्रतिकूल दशाओं में जैसे- बाड़, पाला, सूखा, ओला आदि से प्रभावित रहता है.

इस के अतिरिक्त कीट व रोगों द्वारा भी कई बार फसलों को भारी नुकसान होता है. इन दशाओं में किसान फसल उत्पादन के प्रति निरंतर डरा हुआ या आशंकित रहता है कि उसे अपेक्षित पैदावार मिलेगी या नहीं. ऐसे में मिश्रित फसल उगाना किसान के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. मिश्रित फसल की अवधारणा हमारे देश के लिए कोई नई नहीं है. पुराने जमाने से ही मिश्रित खेती हमारे कृषि प्रणाली का अभिन्न अंग रहा है. मिश्रित फसल में 2 या 2 से अधिक फसलें एक निश्चित दूरी पर पंक्ति में या बिना पंक्ति के बोई जाती हैं. इंटरक्रौपिंग खेती के फायदे मिश्रित फसल के लिए फसलों का चुनाव इस प्रकार करना चाहिए कि फसलें उस क्षेत्र की जलवायु, भूमि व सिंचाई की आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त हों.

दलहनी फसलों के साथ अदलहनी फसलों का मिश्रण किया जाना चाहिए. दलहनी फसल की जड़ों पर पाई जाने वाली ग्रंथियों में वायु की नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर करने वाले लाभदायक जीवाणु होते हैं. यह जीवाणु मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण कर के जमीन में उर्वराशक्ति को बढ़ाते हैं, जिस से दलहनी फसल से भी अधिक उपज प्राप्त होती है. जैसे बाजरा+मूंग, बाजरा+मोठ, मक्का+उड़द. सीधी बढ़ने वाली मुख्य फसलों के साथ भूमि पर फैलने वाली फसलें बोई जानी चाहिए. जैसे मूंग, सोयाबीन, उड़द आदि जमीन पर अधिक फैलती हैं, वहीं गेहूं, मक्का, ज्वार, जौ सीधी बढ़ती हैं. फैलने वाली फसलें मिट्टी का कटाव रोकने के साथसाथ वाष्पीकरण द्वारा होने वाली जल हानि को भी रोकने में सहायक है.

जैसे ज्वार+बाजरा, बाजरा+ग्वार. एक ही प्रकार के कीट व रोगों की शरण देने वाली फसलों का चयन मिश्रित फसल के लिए नहीं करना चाहिए. जैसे मक्का, बाजरा, ज्वार का तना छेदक तीनों फसलों को हानि पहुंचाता है. इस तरह का फसल मिश्रण न करें. गहरी जड़ वाली फसलों के साथ उथली जड़ वाली फसलें बोई जानी चाहिए. इस से दोनों फसलें पोषक तत्त्व एवं नमी का अवशोषण जमीन की अलगअलग गहराई से कर सकेंगी और दोनों फसलों में पोषक तत्त्वों के लिए प्रतियोगिता भी नहीं होगी. जैसे मक्का+अरहर, मक्का+उड़द आदि. मिश्रित फसल के लिए फसल मिश्रण इस प्रकार का हो कि चुनी गई फसलों में प्रकाश, नमी व स्थान के लिए अधिक प्रतियोगिता न हो.

जैसे- बाजरा+मोठ, चना+सरसों. मिश्रित फसल के लिए मिश्रण में काम में ली जाने वाली फसलों की पोषक संबंधी आवश्यकताएं एकजैसी हों, जैसे-उड़द+तिल, मूंगफली+बाजरा, मक्का+कपास आदि. हलकी मिट्टी में दलहनी फसलों को फसल मिश्रण में अवश्य स्थान दें. राजस्थान के शुष्क मैदानी इलाकों में बाजरा के साथसाथ मोठ या ग्वार का मिश्रण उपयुक्त है. साथ ही, दक्षिण राजस्थान में मक्का के साथ उड़द का मिश्रण उपयुक्त है. मिश्रित फसलें मिट्टी की उर्वरकता को बनाए रखने में सहायक हैं. मिश्रित फसल में इन की जड़ों द्वारा विभिन्न गहराइयों से पोषक ग्रहण किए जाते हैं.

साथ ही, दलहनी फसलों को मिश्रण में स्थान देने पर मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण अधिक होता है, जिस से जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ती है. मिश्रित फसलों के चारे पशुओं के लिए अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ठ होते हैं. जैसे मक्का+लोबिया, बरसीम+सरसों, जई+मेथी. अनुसंधानों से यह जानकारी हुई है कि दलहनी व अनाज वाली दोनों फसलों को साथ मिला कर बोने से दोनों फसलों से अधिक उपज प्राप्त होती है. मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से एक फसल को नुकसान हो सकता है, तो दूसरी फसल से कुछ उपज अवश्य मिल जाएगी.

सीधी बढ़ने वाली व फैल कर चलने वाली दोनों फसलें साथसाथ बोने से मिट्टी कटाव में कमी आती है, क्योंकि भूमि पर दोनों फसलें अधिकतम स्थान पर आवरण कर काम करती हैं. वर्षा की बूंदों का सीधा प्रभाव मिट्टी पर नहीं पड़ता और पौधों की जड़ मिट्टी को बांध कर भूमि सरंक्षण में सहायता करती है. एक ही खेत में विभिन्न फसलें मिश्रित रूप में उगाने पर रोग व कीट का अधिक प्रभाव किसी एक फसल पर होने की स्थिति में दूसरी फसलें बचाई जा सकती हैं. मिश्रित फसल बोने से भूमि की भी बचत होती है. जिन फसलों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी अधिक होती है, उन फसलों के मध्य फसल उगा कर किसान भूमि का उपयोग कर लेते हैं और मिश्रित फसल बोने से किसान को कम क्षेत्र से ही अनाज, दाल, तिलहन, मसाले वाली फसलों की उपज प्राप्त हो जाती है, जिस से घरेलू जरूरतों की पूर्ति होती है.

ऐसे बनाएं चटपटे दही भल्ले

दही भल्ले का नाम लेते ही सभी के मुंह में पानी आ जाता है ऐसे में अगर आप भी बनाना चाहते हैं घर पर दही भल्ले तो अपनाएं ये रेसिपी.

 

सामग्री :

– 1 कप मूंग

– 1 कप उड़द की धुली दाल

– 1/2 टी स्पून नमक

– 1 टी स्पून जीरा

– 2 टी स्पून अदरक कटा हुआ

– 5 ग्राम हरी मिर्च कटी हुई

– 250 मिली. तेल

दही के लिए:

– 2 कप गाढ़ा दही

-1 टी स्पून चीनी

– 1/2 टी स्पून नमक

– 3/4 टी स्पून भुना जीरा पाउडर

– 1/2 टी स्पून काला नमक

– 1/2 टी स्पून सफेद मिर्च पाउडर

गार्निशिंग के लिए

– 1 टी स्पून हरा धनिया कटा हुआ

– 1 चुटकी लाल मिर्च पाउडर

– 1 चुटकी जीरा पाउडर

– 4 पुदीना पत्ती

–  इमली की चटनी (2/3 टे.स्पून)

–  हरी चटनी (1/4 कप)

बनाने की विधि :

-1.मूंग और उड़द दाल को धोकर 5 घंटे के लिए पानी में भिगो दें.

2- जब दाल भीग जाये तो उसका अतिरिक्त पानी निकाल दें.

3- और मिक्सी में हल्का दरदरा पीस लें.

4- दाल के पेस्ट में नमक, जीरा, अदरक और हरी मिर्च डालकरकर अच्छी तरह मिला लें.

5- अब एक कड़ाही में तेल गर्म करें जब तेल गर्म हो जाये तो दाल के पेस्ट के गोल-गोल   भल्ले बनाकर गर्म तेल में ब्राउन होने तक तले.

6- भल्लो को तलकर पेपर पर निकाल लें जिससे उनका अतिरिक्त तेल निकल जाये ठंडा   होने पर इन्हें हल्के गर्म पानी में भिगो दें.

7-  दही को अच्छी तरह मथ लें, इसमें चीनी, नमक, जीरा पाउडर, काला नमक और           सफेद  मिर्च पाउडर डालकर अच्छी तरह मिला लें.

सर्रि्वग के लिए:

भल्लो को पानी से निकाल कर बिना तोड़े अच्छी तरह निचोड़ लें. इन भल्लो को दही में डाल दें और 10-15 मिनट तक भीगने दें. इमली की चटनी और बारीक कटा हरा धनिया डालकर ठंडे भल्ले सर्व करें.

बदलती जीवनशैली से बढ़ रही बीमारियां

पहले उम्रदराज लोग हृदय रोग से पीडि़त होते थे, अब युवाओं में भी हृदय संबंधित खतरे बढ़ गए हैं. इस का कारण जीवनशैली में भारी बदलाव का आना है, जिस में युवा गलत खानपान, रहनसहन और खराब पर्यावरण का शिकार बन रहे हैं. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में रहने वाले 40 साल के आनंद पटेल एक प्राइवेट कंपनी में जौब करते थे. एक दिन वे औफिस से लौट कर घर आए तो कुछ थकान महसूस कर रहे थे. फ्रैश हो कर वे आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गए.

कुछ देर बाद उन्हें सीने में जलन महसूस हुई और शरीर से पसीना निकलने लगा. कुछ ही देर में आनंद के बेहोश होने पर घर वाले आननफानन उन्हें अस्पताल ले गए, जहां डाक्टर ने जांच कर बताया कि हार्ट अटैक से उस की मौत हो गई है. कम उम्र में हार्ट अटैक का यह मामला अकेले आनंद जैसे नौजवान के साथ नहीं हुआ है. हमारे देश में इस तरह के मामले आएदिन देखने को मिल रहे हैं. इस की वजह डाक्टर लोगों की बदलती जीवनशैली को मान रहे हैं.

केंद्र सरकार ने गैरसंचारी रोग (एनसीडी) नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सितंबर 2022 तक प्रदेश के 2.98 करोड़ लोगों में से 65 प्रतिशत लोगों की स्क्रीनिंग का लक्ष्य दिया था. मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने 1.68 करोड़ व्यक्तियों की स्क्रीनिंग कर लक्ष्य पूरा किया तो केंद्र सरकार ने इसे बढ़ा कर 3.15 करोड़ कर दिया था. अब तक 2 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है. इस में सामने आया है कि राज्य में करीब 8 लाख 50 हजार लोग हाइपरटैंशन की चपेट में हैं. 4 लाख 61 हजार को डायबिटीज ने जकड़ लिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, छिंदवाड़ा जिले में सर्वाधिक 64,246 लोग हाइपरटैंशन की चपेट में मिले हैं. इंदौर में सब से ज्यादा 24,750 व्यक्तियों में डायबिटीज की बीमारी मिली है. एनएचएम की डिप्टी डायरैक्टर डा. नमिता नीलकांत के मुताबिक, इंडिया हाइपरटैंशन कंट्रोल इनिशिएटिव 2018 में शुरू हुआ था. पहले मध्य प्रदेश के 6 जिले चुने गए थे, बाद में भोपाल, इंदौर, उज्जैन, बैतूल, नीमच, बड़वानी, रतलाम, सागर, गुना, पन्ना, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर और सीहोर सहित 17 जिलों को भी इस में शामिल किया गया. इस के तहत 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की स्क्रीनिंग की जानी थी.

कम उम्र में हार्ट अटैक जैसे गंभीर मामलों को देखते हुए मध्य प्रदेश ने इस में 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को भी शामिल किया. इस के तहत अस्पताल में किसी भी तरह के इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों के अलावा घरघर जा कर सर्वे किया गया था. इस में मरीजों का ब्लडप्रैशर का स्तर 140/90 से ऊपर मिला. शहरों में रहने वाले वयस्कों की तकरीबन 50 फीसदी से ज्यादा आबादी डायबिटीज की चपेट में है. इस का कारण आनुवंशिक तो है ही, इस के अलावा जीवनशैली भी एक बड़ी वजह है. मसलन, कंफर्टेबल लाइफ, फास्टफूड का सेवन, शरीर में कैलोरी का असंतुलन, मोटापे की वजह से भी डायबिटीज पनप जाती है. डायबिटीज लैवल कंट्रोल करने के लिए मरीज नियमित रूप से स्क्रीनिंग कराएं और अपनी डाइट में संतुलन बना कर रखें.

उन फल और सब्जियों से परहेज करें जिन के खाने से डायबिटीज लैवल बढ़ जाता है. नियमित ऐक्सरसाइज के साथ डाक्टर की सलाह लें और उस का पालन भी करें. बढ़ रहे हैं दिल के मरीज पहले ज्यादा उम्र के लोग हृदय रोग से पीडि़त होते थे, लेकिन अब कम उम्र में भी हार्ट अटैक का खतरा बढ़ गया है. 45 से अधिक की उम्र, चलनेफिरने से परहेज, एक ही जगह बैठ कर घंटों मोबाइल का प्रयोग, हाई कोलैस्ट्रौल युक्त भोजन और डायबिटीज, ब्लडप्रैशर की बीमारी दिल को भी खतरे में डाल सकती है.

हार्ट स्पैशलिस्ट डा. डी एस चौधरी बताते हैं कि तेल, घी, मक्खन का खाने में उपयोग कम से कम करने के साथ ही ताजा सब्जी, फल ज्यादा से ज्यादा खाना चाहिए. मटन और अंडे में कोलैस्ट्रौल ज्यादा होता है, इसलिए इस के सेवन से परहेज करें. अकसर देखा गया है कि सो कर उठने से ले कर, नहाने, खाने और सोने तक का समय उन का अनिश्चित रहता है.

ऐसे लोग हमेशा अस्तव्यस्त रहने के कारण तनाव में रहते हैं. जिन व्यक्तियों की दिनचर्या उचित व नियमित होती है, उन का जीवन सुख और संतोष से भरा होता है, जबकि यदि दिनचर्या व्यवस्थित नहीं है तो एक ओर मन में अशांति उत्पन्न होती है, वहीं समूची शारीरिक क्रियाएं भी बिगड़ जाती हैं और व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रोगों से पीडि़त हो जाता है. नियमित दिनचर्या से हमारे कार्य न सिर्फ क्रमबद्ध और नियोजित होते हैं बल्कि समाज में दूसरे लोगों पर उस का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है. जीवन को स्वस्थ और सुखी बनाने के लिए प्रतिदिन समय पर उठना और समय पर सोना नियमित दिनचर्या का पहला सूत्र है.

सुबह एकदो किलोमीटर पैदल चलना और रात्रि के भोजन के बाद लगभग एक हजार कदम टहलना आप को स्वस्थ व तंदुरुस्त रखता है. महिलाओं की दिनचर्या घरेलू महिलाओं की दिनचर्या आमतौर पर सब से ज्यादा अनियमित होती है. अपने पति व बच्चों की दिनचर्या को नियमित रखने के चक्कर में उन की खुद की दिनचर्या बिगड़ जाती है. बच्चों को स्कूल और पति को काम पर भेजने के बाद दोपहर को 2 से 3 बजे तक वे खाना खा पाती हैं.

दिनचर्या अनियमित रहने से महिलाओं का स्वभाव क्रोधी व चिड़चिड़ा हो जाता है. नैशनल हौस्पिटल, जबलपुर की डाक्टर सुभदा तिवारी का मानना है कि काम की व्यस्तता की वजह से महिलाओं की दिनचर्या अस्तव्यस्त रहने व सही खानपान न होने के कारण वे अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. ऐसे में महिलाओं में अनिद्रा, तनाव, ब्लडप्रैशर, डायबिटीज और थायराइड जैसी बीमारियां आम हो गई हैं. जीवनशैली में थोड़ा सा बदलाव ला कर अपनी दिनचर्या को नियमित कर महिलाएं अपनेआप को स्वस्थ व प्रसन्न रख सकती हैं.

-जरूरी नहीं बीपी की दवा हमेशा चले आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति का ब्लडप्रैशर यानी बीपी 120/80 होना चाहिए. इस चीज को सम?ाने के लिए हम ने बात की दिल्ली के मशहूर कंसल्टैंट, फिजीशियन डा. बी एम डोडा से. वे कहते हैं, ‘‘ऊपर वाले ब्लडप्रैशर को मैडिकल की भाषा में सिस्टोलिक और नीचे वाले को डायस्टोलिक कहा जाता है. हार्ट ब्लड को पंप करता है तब जो ब्लड में प्रैशर बनता है उसे सिस्टोलिक ब्लड प्रैशर कहते हैं और जब हार्ट आराम कर रहा होता है और उस दौरान जो ब्लड का प्रैशर बन रहा होता है उसे डायस्टोलिक ब्लड प्रैशर कहते हैं.

‘‘हार्ट एक मशीनरी है जो ब्लड को पंप करता है और हमारी नसें उन को ऐक्सैप्ट करती हैं. नसें हमारी जान हैं क्योंकि नसों द्वारा ही खून हार्ट, किडनी और आंतों में जाता है, यानी शरीर के हर हिस्से में खून की सप्लाई नसों से होती है. इसलिए, नसों का ठीक रहना बहुत जरूरी है.

नसें खराब होने का मतलब है कि पेड़ में पत?ाड़ आ जाना. नसें ठीक नहीं होंगी तो शरीर का हर और्गन पर इफैक्ट पड़ने लगता है.’’ डा. बी एम डोडा आगे कहते हैं, ‘‘ब्लडप्रैशर का एक रेंज होता है. ऊपर का ब्लडप्रैशर 90 से 150 के बीच में और नीचे का ब्लडप्रैशर 50 से 90 के बीच में होना चाहिए. लेकिन बेहतर यही होगा कि ऊपर का ब्लडप्रैशर 120 और नीचे का 80 होना चाहिए या इस से थोड़ा कम रहे तो अच्छा ही रहेगा.’’ वे कहते हैं, ‘‘95 प्रतिशत मामलों में ब्लडप्रैशर बढ़ने का कारण पता ही नहीं होता.

लेकिन दोचार प्रतिशत मामलों में देखा गया कि किडनी की वजह से बीपी बढ़ता है. हालांकि बीपी बढ़ने के कई कारण होते हैं.’’ क्या बीपी की दवा एक बार शुरू हो गई तो जिंदगीभर खानी पड़ेगी? इस सवाल पर डोडा कहते हैं, ‘‘नहीं, यह गलत है. कई बार मरीजों का बीपी टैंपरेरी होता है. कई बार महीनेदोमहीने या धीरेधीरे जब मरीज का ब्लडप्रैशर नौर्मल रेंज में आ जाता है तो डाक्टर उसे देख कर धीरेधीरे दवा की डोज कम कर देता है. हो सकता है वह डोज बंद ही कर दे, यह वैरिएबल होता है.’’ बच्चों में भी ब्लडप्रैशर की शिकायतें बढ़ रही हैं, इस के बारे में पूछने पर वे कहते हैं,

‘‘बच्चों में ओबेसिटी बढ़ रही है. इस का एक कारण फास्ट फूड का सेवन होता है. इसलिए फास्ट फूड का सेवन नहीं करना चाहिए. बीपी न बढ़े, इस के लिए आप रैगुलर ऐक्सरसाइज करें. अपनी रेंज के मुताबिक वजन कम रखें. सौफ्ट ड्रिंक या एल्कोहल का सेवन न करें, ट्राय करने के लिए भी नहीं. नमक कम खाएं, औयली फूड अवौयड करें. तभी आप एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं. ‘‘यदि कोई व्यक्ति ब्लडप्रैशर का मरीज है और वह दवा रैगुलर खाता है और किसी कारणवश दवा खाना भूल जाता है और कुछ ही घंटों में वह दवा दोबारा खा लेता है, ऐसी स्थिति में यदि मरीज को अनकम्फर्ट लगे तो वह अपना बीपी चैक कराए और देखे कि यदि बीपी नीचे जा रहा है तो अपने डाक्टर के पास पहुंच जाए, नहीं तो आप कहीं भी चक्कर खा कर गिर सकते हैं.’’ वे आगे कहते हैं,

‘‘बीपी हमेशा राइट आर्म में चैक करें, आराम से बैठ कर चैक करें. चैक करने से पहले ध्यान रखिए कि आप ने सौफ्ट ड्रिंक, तंबाकू या एल्कोहल का सेवन न किया हो. कई बार सिरदर्द होता है तो लोग बीपी नापने के लिए बैठ जाते हैं, ऐसा न करें. ध्यान रखें कि बीपी की वजह से सिरदर्द नहीं होता, सिरदर्द की वजह से बीपी होता है. यदि आप को सिरदर्द हो रहा हो तो पहले अपना सिरदर्द ठीक करें वरना सिरदर्द की वजह से बीपी हाई हो सकता है और बीपी हाई होने से आप दवा ले लेंगे तो इस का असर उलटा हो सकता है. इसलिए ऐसी गलतियां बिलकुल न करें.’’

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