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मेरे मुंह सेे बदबू आ रही है, मैं 25 वर्षीय युवती हूं, क्या करूं बताएं?

सवाल

सुबह जब सो कर उठी हूं तो मुंह कड़वा होता है. मैं 25 वर्षीया कालेज गोइंग युवती हूं. एक महीने से मैं नोट कर रही हूं कि बाद में कुछ खानेपीने के बाद ठीक हो जाता है. क्या मु?ो डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए?

जवाब

जब हम सुबह उठते हैं तो कई बार हमारे मुंह में कड़वाहट या तीखापन का अनुभव होता है. इस का मुख्य कारण हमारे शरीर में जमे टौक्सिन होते हैं जिन्हें रात में शरीर द्वारा निकाले जाने की जरूरत होती है. अगर इन टौक्ंिसस का निकास नहीं होता तो इन के कारण मुंह में कड़वापन महसूस होता है.

आप इस समस्या से बचने के लिए कुछ उपाय अपना सकती हैं. जैसेरात को ठीक समय पर सोएं. अगर आप रात को समय पर सोती हैं तो शरीर में जमा टौक्ंिसस की मात्रा कम होगी और सुबह मुंह में कड़वापन नहीं होगा. रात को थोड़ा कम दवाएं खाने और सोने में 2 घंटे का अंतर रखें. शरीर को विषाक्त पदार्थों से दूर रखने के लिए रोजाना कम से कम

8 गिलास पानी पिएं और स्वस्थ खानपान का ध्यान रखें. सुबह उठने के बाद सुबह की सैर या ऐक्सरसाइज करें. सुबह उठते ही मुंह की अंदर से अच्छी तरह सफाई करें. फिर एक टीस्पून शहद को गुनगुने पानी में मिला कर पिएं.

अगर ये उपाय भी आप की समस्या को दूर नहीं कर पाते हैं तो डाक्टर से परामर्श लें.

कुछ औप्शन दीजिए ताकि बच्चे को वैराइटी फूड दूं. मैं सिंगल पेरैंट हूं. मैं ने अपने बच्चे का नर्सरी स्कूल में एडमिशन करवाया है. मैं बच्चे को टिफिन में हैल्दी फूड देना चाहता हूं जो वह शौक से खाए और हैल्दी रहे.

नर्सरी स्कूल के बच्चे के लिए टिफिन पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक होना चाहिए. फास्टफूड की आदत बिलकुल मत डालिए. आप अपने बच्चे के टिफिन में वैजिटेबलसैंडविचअंडा सैंडविचआलू टिक्की सैंडविचचीज सैंडविच दे सकते हैं. आलूगोभीपनीरलच्छा परांठा बच्चे शौक से खाते हैं. सिंपल रोटीसब्जी का रोल बना कर दे दें.

वैजिटेबल पुलावमसाला पुलाव तवा पुलाव बच्चे पसंद करते हैं. बच्चे को हैंग कर्ड में फ्रूट्स मिला कर दे सकते हैं. दालचावलखिचड़ीउपमा उन्हें दीजिए.

कभीकभी चेंज के लिए बच्चे को टिफिन में हैल्दी सोया चिप्समल्टीग्रेन कुकीजचिड़वा नमकीनफ्रूट केकनट्स दे सकते हैं. –

पर्यटन: जरूरी मोबाइल औनलाइन एप्लीकेशंस

कहीं घूमने जा रहे हैं तो उस की प्लानिंग पहले ही करनी बेहतर होती है. इस से गलतियां कम होती हैं और ट्रिप का मजा दोगुना हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि उन ऐप्स का इस्तेमाल किया जाए जो आप की ट्रिप को सुविधाजनक और आसान बनाएं. इंटरनैट तकनीक में हो रहे तेजी से विकास के साथ अब किसी भी व्यवसाय के लिए यह आसान हो गया है कि वह डैस्कटौप या स्मार्टफोन पर एप्लिकेशन के माध्यम से यूजर्स तक पहुंच बनाए, साथ ही, यूजर्स के लिए भी आसान हो गया है कि वे आसानी से घर बैठे या राह चलते एक क्लिक से उन की सर्विसेज का फायदा उठाएं. आज टूर में पेपर मैप्स, गाइडबुक्स और अन्य सामान के दिन चले गए हैं.

इंटरनैट पर आज देश की अधिकतर जगह मौजूद हैं. इस के अलावा देश के लगभग हर हाथ में, खासकर युवाओं के पास, स्मार्टफोन जैसी सुविधा पहुंच गई है. भारत स्मार्टफोन यूज करने के मामले में दूसरे नंबर पर आता है. पिछले साल डेलायट ने एक रिपोर्ट जारी की, उस के अनुसार भारत में साल 2021 तक कुल 1.2 अरब मोबाइल यूजर्स थे, जिन में से लगभग 75 करोड़ स्मार्टफोन यूजर्स थे. इस रिपोर्ट में साल 2026 तक एक अरब स्मार्टफोन यूजर्स हो जाने का अनुमान जताया गया.

आज स्मार्टफोन ट्रैवलर्स के लिए बहुत उपयोगी साधन बन गया है. वे अपनी ट्रिप को अच्छे ढंग से मैनेज कर सकते हैं और अपने अनुसार प्लान कर सकते हैं. यही कारण है कि भारत समेत दुनियाभर में ट्रैवल ऐप्स की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है. स्टेटिस्टा की रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2023 तक गूगल प्ले स्टोर में 26 लाख 73 हजार से अधिक एप्लीकेशंस हैं. इतनी सारी एप्लीकेशंस हैं जिन से लोग किसी न किसी तरह से सर्विसेस और सुविधाएं ले रहे हैं. जाहिर है इन में कइयों ऐसी टूर एंड ट्रैवल से संबंधित एप्लीकेशंस भी हैं जिन से एक छत के नीचे रह कर ही पूरे टूर का प्लान किया जा सकता है.

मोबाइल ऐप की अच्छी बात यह है कि अगर कोई पर्यटक ऐप से जुड़ता है तो वह एक ही जगह पर सारा सैटअप हासिल कर सकता है. इस में जिस जगह जाना है उस का चयन, उस जगह पहुंचने के लिए टिकट बुक करना, पौकेटफ्रैंडली टैरिफ, होटल, लौज, होस्टल की बुकिंग, जहां जाना है वहां के लिए कैब बुक करना, घूमने के लिए जगहों की खोज, मौसम की जानकारी लेना आदि ऐप्स के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है. स्मार्टफोन सुविधाजनक और पोर्टेबल होते हैं, इसलिए इन में होटल बुकिंग, एयरलाइन या ट्रेन टिकट और दूसरे डौक्यूमैंट संभाल कर रखे जा सकते हैं.

मोबाइल फोन के ऐप्स का फायदा यह होता है कि ट्रैवल बुकिंग से जुड़ी फौर्मैलिटीज भी कम हो होती हैं. आजकल सब जगह डिजिटल पेमेंट होने लगी है तो ज्यादा कैश कैरी करने का भी झं झट नहीं होता पर इस का मतलब यह नहीं कि बिलकुल भी कैश न रखा जाए. बहुत जगह इंटरनैट काम नहीं करता या हर कोई डिजिटली पैसे नहीं लेता तो कुछ कैश जरूर रखने की जरूरत है. इस का सब से बड़ा फायदा यह कि 24×7 इस की सर्विस अवेलेबल रहती है. मोबाइल, विज्ञापन और मार्केटिंग प्लेटफौर्म ओपेरा मीडिया वर्क्स ने 1,000 अमेरिकी मोबाइल उपयोगकर्ताओं के एक सर्वेक्षण में इन्फोग्राफिक जारी किया, जिस में उन से उन की यात्रा योजना की आदतों के बारे में पूछा गया.

सर्वेक्षण में पाया गया कि टूर रिसर्च और बुकिंग के लिए मोबाइल ऐप्स सब से बेहतर प्लेटफौर्म है, जिस में 66 प्रतिशत टूरिस्ट यूजर्स स्मार्टफोन का उपयोग करना पसंद करते हैं. इस के अलावा, 85 प्रतिशत यूजर्स यात्रा की सारी बुकिंग, ट्रेन, हवाईजहाज, होटल, पर्यटन स्थल इत्यादि के लिए मोबाइल उपकरणों का उपयोग करते हैं. कइयों ने कहा कि इंटरनैट में कई बड़े व्यवसायी हैं तो आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते यूजर्स को डिस्काउंट औफर्स भी देते हैं. भारत में भी लोग टूरिज्म ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं लेकिन बहुत से विजिटर्स आज भी बिना प्लान किए कहीं भी निकल पड़ते हैं, जिस का खमियाजा उन्हें एक खराब ट्रिप के अनुभव से भुगतना पड़ता है. ऐसे में किसी टूर को प्लान करते समय कुछ तरह की एप्लीकेशंस अपने मोबाइल में जरूर रखें ताकि ट्रिप को बेहतर और वैलप्लान्ड बनाया जा सके,

जैसे- वेदर फोरकास्ट : अधिकांश पर्यटक यात्रा पर निकलते समय जिस जगह जा रहे होते हैं वहां के वेदर अपडेट्स नहीं लेते. इस कारण खराब मौसम के चलते पूरा ट्रिप बरबाद हो जाता है. ऐसी परिस्थिति को रोकने के लिए रीयलटाइम क्लाइमेट फोरकास्ंिटग फीचर के साथ ट्रैवल मोबाइल एप्लिकेशन ट्रैवलर्स के लिए बेहतर एप्लीकेशंस हैं. ऐसे में ‘वेदर फोरकास्ट’ ऐप्स को अपने फोन में जरूर शामिल करें. होटल बुकिंग एप्लीकेशंस : कहीं भी जा रहे हैं तो बिना रहने के इंतजाम किए जाना बेवकूफी है. बहुत बार ट्रैवलर ऐसे ही निकल लेते हैं, बाद में पहुंच कर ठिकाना ढूंढ़ते हैं, इस से समय तो काफी लगता ही है, साथ में थकान भी होती है. इस के अलावा पसंद का रूम मिलना भी चैलेंज होता है. ऐसे में जरूरी है कि पहले ही बुकिंग कर ली जाए. इस के लिए गूगल प्ले स्टोर पर कई एप्लीकेशंस मौजूद हैं जो बजट और सुविधा के अनुसार सारी डिटेल देती हैं. ये अगोडा, त्रिवागो, होटल्स डौट कौम, बुकिंग डौट कौम, फेब होटल्स इत्यादि हैं.

ट्रेन, हवाईजहाज बुकिंग एप्लीकेशंस: किसी भी जगह जाना हर समय आसान नहीं रहता. बहुत बार टिकट मिलने में समस्या आती है. इस के लिए कई एप्लीकेशंस हैं जो यात्रा की बुकिंग में मदद करती हैं, जैसे ट्रेन के लिए सरकार की आईआरसीटीसी का उपयोग किया जा सकता है. इस के लिए सीट और टाइमिंग का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. इस के अलावा हवाईयात्रा के लिए ‘इंडिया गो’, ‘मेक माय ट्रिप फ्लाइट’, ‘यात्रा’, ‘एयर इंडिया’, ‘इक्सिगो’, ‘स्काईस्कैनर’ इत्यादि एप्लीकेशंस हैं.

एडवाइजर एप्लीकेशंस : पर्यटन मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए अतुल्य भारत ऐप से फेमस टूरिस्ट स्पौट्स, रैस्तरां, प्रमाणित होटलों और भारत द्वारा प्रदान किए जाने वाले विभिन्न टूरिस्ट स्पौट्स की इनफौर्मेशन प्राप्त की जा सकती है. ऐप का उपयोग देश के शहरों और स्थलों के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्यों को खोजने के लिए भी किया जा सकता है. ऐसी ही कुछ अन्य एप्लीकेशंस, जैसे ट्रिप एडवाइजर, गेट योर गाइड और ट्रिप इट इत्यादि हैं. ये एप्लीकेशंस टूर को प्लान करने के लिए रिमाइंडर भी देती हैं.

गूगल मैप्स : अब वह समय नहीं रहा जब कहीं पहुंचने के लिए पेपर मैप रखना पड़ता था. अब फोन में मैप की एप्लीकेशन मौजूद रहती है जिस के माध्यम से लोकेशन पर जगह ढूंढ़ी जा सकती है और वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है.

गूगल ट्रांसलेटर : टूरिस्टों के लिए भाषा एक सब से बड़ी बाधा होती है कहीं के कल्चर, रहनसहन, वहां की संस्कृति को जानने के लिए. भारत में ही सैकड़ों भाषाएं हैं और 22 तो औफिशियल भाषाएं हैं. ऐसे में हर राज्य की अपनी अलग भाषा है. जरूरी है कि कुछ तरह के शब्दों का ज्ञान र

खा जाए. इस के लिए गूगल ट्रांसलेट एक बेहतरीन एप्लीकेशन के तौर पर मदद कर सकता है.

कैब : शहरों के भीतर कहीं घूमना हो तो कैब एक अच्छा विकल्प है. इसे कहीं भी खड़े हो कर बुक किया जा सकता है. कई एप्लीकेशंस हैं जो रीजनेबल प्राइस में यह सुविधा देती हैं. इस के अलावा ये अनजान शहर में लूट से भी बचाती हैं. ऐसे ही ओला, उबर, इन ड्राइव, रेपिडो कई एप्लीकेशन हैं.

जयपुर – हवा महल जयपुर के इस राजसी महल को 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था और इसे किसी ‘राजमुकुट’ की तरह वास्तुकार लाल चंद उस्ता ने डिजाइन किया था. इस की अद्वितीय 5-मंजिला इमारत बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है,

जिस में 953 खूबसूरत जालीदार खिड़कियां हैं जिन्हें झरोखा कहते हैं. इन खिड़कियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी की निगाह पड़े राजघराने की महिलाएं इन खिड़कियों से बाहर रोजमर्रा की गतिविधियों का अवलोकन कर सकें.

खुशियों का समंदर : भाग 2

वह तो मैं ही था कि इस का उद्धार करने चला था वरना इस की औकात क्या है. सालभर के अंदर ही अपने खसम को खा गई. वह तो यहां है, इसलिए बच गई वरना हमारे यहां तो ऐसी डायन को पहाड़ से ढकेल देते हैं. मैं ने तो इस का भला चाहा, पर तुम्हें समझ में आए तब न. जवानी की गरमी जब जागेगी तो बाहर मुंह मारेगी, इस से तो अच्छा है कि घर की ही भोग्या रहे.’’

सरला के भाई की असभ्यता पर लालचंद चीख उठे, ‘‘अरे, कोई है जो इस जानवर को मेरे घर से निकाले. इस की इतनी हिम्मत कि मेरी बहू के बारे में ऐसी ऊलजलूल बातें करे. सरला, आप ने मुझ से पूछे बिना इसे कैसे बुला लिया. आप के चचेरे भाइयों के परिवार की काली करतूतों से पहाड़ का चप्पाचप्पा वाकिफ है.’’ लालचंद क्रोध के मारे कांप रहे थे. ‘‘न, न, बहनोई साहब, मुझे निकलवाने की जरूरत नहीं है. मैं खुद चला जाऊंगा, पर एक बात याद रखिएगा कि आज आप ने मेरी जो बेइज्जती की है उसे सूद समेत वसूल करूंगा. तुम जिस बहू के रूपगुण पर रिझे हुए हो, सरेआम उसे पहाड़ की भोग्या न बना दिया तो मैं भी ब्राह्मण नहीं.’’ यह कहता हुआ सरला का बदमिजाज भाई निकल गया पर अपनी गर्जना से उन दोनों को दहलाते हुए भयभीत कर गया. उस के जाने के बाद कई दिनों तक घर का वातावरण अशांत रहा.

सरला के भाई की धमकियां पहाड़ के समाज के साथसाथ व्यापार में लालचंद से स्पर्धा रखने वाले व्यवसायियों के समाज में भी प्रतिध्वनित होने लगी थीं. बहू के साथ उन के नाजायज रिश्ते की बात कितनों की जबान पर चढ़ गई थी. यह समाज की नीचता की पराकाष्ठा थी. पर समाज तो समाज ही है जो कुछ भी उलटासीधा कहने और करने का अधिकार रखता है. उस ने बड़ी निर्दयता से ससुरबहू के बीच नाजायज रिश्ता कायम कर दिया. सरेआम उन

पर फब्तियां कसी जाने लगी थीं. आहिस्ताआहिस्ता ये अफवाहें पंख फैलाए लालचंद के घर में भी आ गईं. अपने अति चरित्रवान, सच्चे पति और कुलललना बहू के संबंध में ऐसी लांछनाएं सुन कर सरला मृतवत हो गई. नील की मृत्यु के आघात से उबर भी नहीं पाई थी कि पितापुत्री जैसे पावन रिश्ते पर ऐसा कलुष लांछन बिजली बन कर उन के आशियाने को ध्वंस कर गया. वह उस मनहूस दिन को कोस रही थी जब अपने उस भाई से अहल्या की दूसरी शादी की मंशा जता बैठी थी. लालचंद के कुम्हलाए चेहरे को देखते ही वह बिलख उठती थी.

अहल्या लालचंद के साथ बाहर जाने से कतराने लगी थी. उस ने इस बुरे वक्त से भी समझौता कर लिया था पर लालचंद और सरला को क्या कह कर समझाती. जीवन के एकएक पल उस के लिए पहाड़ बन कर रह गए थे, लेकिन वह करती भी क्या. समाज का मुखौटा इतना घिनौना भी हो सकता है, इस की कल्पना उस ने स्वप्न में भी नहीं की थी. इस के पीछे भी तो सत्यता ही थी. ऐसे नाजायज रिश्तों ने कहीं न कहीं पैर फैला ही रखे थे. एक तो ऐसे ही नील की मृत्यु ने उसे शिला बना दिया था. उस में न तो कोई धड़कन थी और न ही सांसें. बस, पाषाण बनी जी रही थी. उस के जेहन में आत्महत्या कर लेने के खयाल उमड़ रहे थे. कल्पना में उस ने कितनी बार खुद को मृतवत देखा पर सासससुर की दीनहीन अवस्था को स्मरण करते ही ये सारी कल्पनाएं उड़नछू हो जाती थीं.

वह नील की प्रेयसी ही बनी रही, उस के इतने छोटे सान्निध्य में उस के हृदय की साम्राज्ञी बनी रही. प्रकृति ने कितनी निर्दयता से उस के प्रिय को छीन लिया. अभी तो नील की जुदाई ही सर्पदंश बनी हुई थी, ऊपर से बिना सिरपैर की ये अफवाहें. कैसे निबटे, अहल्या को कुछ नहीं सूझ रहा था. अपने ससुर लालचंद का सामना करने से भी वह कतरा रही थी. पर लालचंद ने हिम्मत नहीं खोई. उन्होंने अहल्या को धैर्य बनाए रखने को कहा. अब बाहर भी अहल्या अकेले ही जाने लगी थी तो लालचंद ने भी जाने की जिद नहीं की. फैक्टरी के माल के निर्यात के लिए बड़े ही उखड़े मन से इस बार वह अकेली ही मुंबई गई. जिस शोरूम के लिए माल निर्यात करना था वहां एक बहुत ही परिचित चेहरे को देख कर वह चौंक उठी. वह व्यक्ति भी विगत के परिचय का सूत्र थामे उसे उत्सुकता से निहार रहा था?.

अहल्या अपने को रोक नहीं सकी और झटके से उस की ओर बढ़ गई. ‘‘तुम गिरीश ही हो न, यहां पर कैसे? ऐसे क्या देख रहे हो, मैं अहल्या हूं. क्या तुम्हें मैं याद नहीं हूं. रसोईघर से चुरा कर न जाने कितने व्यंजन तुम्हें खिलाए होंगे. पकड़े जाने पर बड़ी ताई मेरी कितनी धुनाई कर दिया करती थीं. मुझे मार खाए दो दिन भी नहीं होते थे कि मुंहउठाए तुम पहुंच जाया करते थे. दीनू काका कैसे हैं? पहाड़ी के ऊंचेनीचे रास्ते पर जब भी मेरे या मेरी सहेलियों की चप्पल टूट जाती थी, तो उन की सधी उंगलियां उस टूटी चप्पल को नया बना देती थीं. तुम्हें भी तो याद होगा?’’

अहल्या के इतने सारे प्रश्नों के उत्तर में गिरीश मुसकराता रहा, जिस से अहल्या झुंझला उठी, ‘‘अब कुछ बताओगे भी कि नहीं. काकी की असामयिक मृत्यु से संतप्त हो कर, सभी के मना करने के बावजूद वे तुम्हें ले कर कहीं चले गए थे. सभी कितने दुखी हुए थे? मुझे आज भी सबकुछ याद है.’’

‘‘बाबा मुझे ले कर मेरे मामा के पास कानपुर आ गए थे. वहीं पर जूते की दुकान में नौकरी कर ली और अंत तक करते रहे. पिछले साल ही वे गुजर गए हैं, पर उन की इच्छानुसार मैं ने मन लगा कर पढ़ाई की. एमए करने के बाद मैं ने एमबीए कर लिया और इस शोरूम का फायनांस देखने लगा. पर आप यहां पर क्या कर रही हैं?’’ एक निम्न जाति का बेटा हमउम्र और पहाड़ की एक ही बस्ती में रहने वाली अहल्या को तुम कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका. यही क्या कम है कि कम से कम अहल्या ने उसे पहचान तो लिया. उस से बात भी कर ली, यह क्या कम खुशी की बात है उस के लिए वरना उस की औकात क्या है? ‘‘अरे, यह क्या आपआप की रट लगा रखी है. चलो, कहीं चल कर मैं भी अपनी आपबीती से तुम्हें अवगत करा दूं,’’ कहती हुई अहल्या उसे साथ लिए कुछ देर तक सड़क पर ही चहलकदमी करती रही. फिर वे दोनों एक कैफे में जा कर बैठ गए.

अश्रुपूरित आंखों और रुंधे स्वर में अहल्या ने अपनी आपबीती गिरीश से कह सुनाई, सुन कर उस की पलकें गीली हो गईर् थीं, लेकिन घरबाहर फैली हुई अफवाहों को कह कर अहल्या बिलख उठी. जब तक वह मुंबई में रही, दोनों मिलते रहे. गिरीश के कारण इस बार अहल्या के सारे काम बड़ी आसानी से हो गए. सूरत लौटने के रास्ते तक अहल्या पहाड़ पर बिताए अपने बचपन और गिरीश से जुड़े किस्से याद करती रही. बाद में पढ़ाई के लिए उसे भी तो दिल्ली आना पड़ा था.

 

टोबैको कैंसर का ही नहीं, हार्ट रोग का भी प्रमुख कारक है

दुनियाभर में हार्ट संबंधित रोग बुजुर्गों में ज्यादा देखने को मिलते थे, अब युवाओं में भी ये समस्याएं उभरने लगी हैं. युवाओं में इन के होने का बड़ा कारण खानपान, रहनसहन, प्रदूषण और टोबैको उत्पादों का अत्यधिक सेवन करना है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेस, जिस को एसजीपीआई के नाम से जाना जाता है, उत्तर भारत का बहुत ही मशहूर अस्पताल है. राजधानी लखनऊ से 11 किलोमीटर दूर रायबरेली रोड पर बना है.

यहां हार्ट और गुर्दा रोगों के इलाज के लिए दूरदूर से लोग आते हैं. कोर्डियोलौजी का एक बड़ा विभाग है. एसजीपीआई रेफरल अस्पताल है, जिस का मतलब यह होता है कि यहां दूसरे अस्पताल से रेफर हो कर मरीज आते हैं. यहां की ओपीडी में हर रोज करीब 100 नए मरीज आते हैं. मरीज गंभीर हालत में ही यहां आते हैं. हार्ट मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. डाक्टर सुदीप कुमार इस अस्पताल के कार्डियोलौजी विभाग में प्रोफैसर हैं. डाक्टर सुदीप कुमार केवल डाक्टर ही नहीं, हार्ट रोगों को ले कर समाज को जागरूक करने का काम भी वे करते हैं.

वे एक बहुत ही अच्छे साइक्लिस्ट हैं. करीब 35 हजार किलोमीटर की साइकिल यात्रा वे कर चुके हैं. लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में 100 किलोमीटर के दायरे में आनेजाने के लिए कई बार वे साइकिल का उपयोग करते हैं. वे लोगों को जागरूक करते हैं. प्रोफैसर सुदीप कुमार कहते हैं, ‘‘साइक्ंिलग सब से अच्छी कार्डियो ऐक्सरसाइज है. यह कैलोरी घटाती और मोटापा कम करती है. इस में तनाव कम करने की भी क्षमता होती है. नियमित भीड़भाड़ वाले इलाके से हट कर साइक्ंिलग करने से दिल और फेफड़े अच्छे से काम करते हैं.’’

डाक्टर सुदीप कुमार ने अपनी 17 लोगों की टीम के साथ हार्ट रोगों की जागरूकता के लिए मनाली-शिमला से साइकिल यात्रा शुरू की और लद्दाख के सब से ऊंचे खारदूंगला पर पहुंच कर अभियान को पूरा किया. वे कहते हैं, ‘‘करीब 620 किलोमीटर की यह यात्रा सब से रोमांचक रही. ऊंचाई पर औक्सीजन कम हो जाती है. ऐसे में साइक्ंिलग और कठिन हो जाती है. हम इस यात्रा के जरिए लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि अपने दिल का खयाल रखें.’’ सुदीप कुमार जो सलाह अपने मरीजों को देते हैं उस पर वे खुद भी अमल करते हैं. अब साइक्ंिलग उन के लिए पैशन बन चुका है.

डायबिटीज और ब्लडप्रैशर हार्ट के लिए खतरनाक हृदय रोग पर जब प्रोफैसर डाक्टर सुदीप कुमार से बात हुई तो उन का कहना था, ‘‘यह ऐसी बीमारी है जिस को जागरूकता के जरिए कम किया जा सकता है. विश्व में सब से अधिक मौत की वजह हार्ट की बीमारियां हैं. इस के साथ ही साथ डायबिटीज हमारे देश में तेजी से बढ़ रही है. इंडिया को अब ‘डायबिटीज का कैपिटल’ कहा जाने लगा है. शहर में 30 से 40 फीसदी लोगों को ब्लडप्रैशर होता है. आधे से अधिक लोगों को इस का पता ही नहीं होता कि उन को ब्लडप्रैशर है. जिन को पता भी होता है उन में भी अधिकतर लोग ठीक तरह से दवा नहीं लेते.

डायबिटीज और ब्लडप्रैशर दोनों ही हार्ट के लिए खतरनाक होते हैं. ‘‘खतरनाक बात यह है कि पहले ब्लडप्रैशर और हार्ट के रोग 40-45 साल के बाद होते थे, अब ये युवावर्ग में भी होने लगे हैं. स्मोकिंग और टोबैको केवल कैंसर का ही कारण नहीं होते, ये हार्ट की बीमारियों के होने के भी बड़े कारण होते हैं. अल्कोहल का सेवन भी बढ़ रहा है जिस के प्रभाव से युवाओं में हार्ट से जुड़ी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं. युवाओं में हार्ट की बीमारियां बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण तनाव का होना भी है. कैरियर, परिवार व दूसरी तमाम वजहों के कारण तनाव बढ़ता है.

इस के साथ ऐक्सरसाइज न करना हालत को खतरनाक बनाता है.’’ प्रोफैसर डा. सुदीप कुमार आगे कहते हैं, ‘‘हार्ट की बीमारी की एक और वजह वायु प्रदूषण भी सामने आ रही है. कोरोनाकाल में जब लौकडाउन था, सड़कों पर ट्रैफिक नहीं था तब हार्ट रोगों के मामले कम आ रहे थे.’’ स्टडीज से पता चलता है कि वायु प्रदूषण भी हार्ट के लिए खतरनाक है. कम खाएं नमक हार्ट रोगों को बढ़ाने का सब से बड़ा कारण ब्लडप्रैशर है. भारत का रहने वाला सामान्यतौर पर करीब 13 ग्राम नमक दिनभर में प्रयोग करता है. ब्लडप्रैशर रोकने के लिए इस के सेवन को कम करना होगा. प्रतिदिन 5 ग्राम नमक खाने से ही ब्लडप्रैशर और हार्ट के रोग को होने से रोका जा सकता है. इस के अलावा सही खानपान न होने से मोटापा बढ़ता है. कमर के आसपास फैट जमा होने लगता है.

बढ़ती हुई तोंद भी हार्ट के रोग बढ़ने का संकेत देती है. आज औफिस की ज्यादा वर्किंग बैठने वाली हो गई है, जिस से युवाओं में भी तोंद बढ़ने लगी है. युवाओं में तनाव भी एक बड़ा कारण हो गया है. प्रोफैसर सुदीप कुमार कहते हैं, ‘‘युवाओं में हार्ट की बीमारियों के सब से बड़े कारण स्मोकिंग करना, अल्कोहल का प्रयोग करना, कुरसी पर बैठ कर ही सब से ज्यादा औफिस का काम करना, ऐक्सरसाइज न करना और तनाव का बढ़ना है. यही वजह है कि अब 30 साल की उम्र के बाद ही इस के खतरे बढ़ने लगे हैं. टोबैको का प्रयोग कैंसर से अधिक हार्ट रोगों का कारण बनता है.

लाइफस्टाइल में बदलाव कर के और टोबैको व अल्कोहल का प्रयोग छोड़ कर हार्ट को हैल्दी बनाया जा सकता है. इस के साथ ही, ऐक्सरसाइज को नियमित हिस्सा बनाने से अच्छा रहता है. मोटापा नहीं बढ़ता है तो ब्लडप्रैशर और डायबिटीज का भी खतरा कम हो जाता है.’’ स्मोकिंग से हार्ट को नुकसान स्मोकिंग केवल कैंसर का कारण नहीं, यह हार्ट की सेहत को भी खराब करती है. नई जानकारियां इस बात को साबित करती हैं. पहले स्मोकिंग को केवल कैंसर बढ़ाने वाला माना जाता था. स्मोकिंग से शरीर के सभी और्गेन प्रभावित होते हैं. स्मोकिंग करने वालों की हैल्थ कमजोर रहती है.

स्मोकिंग करने से रैस्पिरेटरी सिस्टम यानी श्वसन तंत्र, सर्कुलेटरी सिस्टम, स्किन और हार्ट के अलावा नर्वस सिस्टम भी क्षतिग्रस्त हो सकता है. इस से कई तरह के कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. स्मोकिंग की वजह से मानसिक स्वास्थ्य यानी मैंटल हैल्थ से संबंधित समस्याएं भी बढ़ सकती हैं. सिगरेट से निकलने वाला धुआं दिमाग की मांसपेशियों को सुन्न करता है, जिस से तनाव और ड्रिप्रैशन हो सकता है. स्मोकिंग से पेरिफेरल आर्टरी डिजीज का खतरा भी बढ़ जाता है. चेन स्मोकिंग करने से ब्लड क्लौट, एनजाइना या सीने में दर्द व हार्ट अटैक की समस्या हो सकती है. सैंट्रल नर्वस सिस्टम में ब्रेन और स्पाइनल कोर्ड होती है जो सभी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है.

स्मोकिंग करने वालों का सैंट्रल नर्वस सिस्टम क्षतिग्रस्त हो जाता है क्योंकि निकोटिन हाई बीपी और हार्ट रेट में वृद्धि का कारण बनता है, जिस से हार्ट की बीमारियां बढ़ने लगती हैं. और्गेन समय के साथ कमजोर हो जाते हैं. तंबाकू और निकोटिन न्यूरोलौजिकल हैल्थ पर गंभीर प्रभाव डालते हैं. इस से अल्जाइमर और मल्टीपल स्केलेरोसिस का खतरा भी बढ़ जाता है. सिगरेट में अधिक मात्रा में निकोटिन होता है जो लंग्स को डैमेज कर सकता है. लंग्स कैंसर के विकास के लिए स्मोकिंग जिम्मेदार हो सकती है. स्मोकिंग से पुरुषों के लंग्स डैमेज होने की संभावना 25 गुना और महिलाओं के 25.7 गुना बढ़ जाती है. 10 में से 9 लंग्स कैंसर से होने वाली मौतें स्मोकिंग से जुड़ी होती हैं. सिगरेट पीने से क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसऔर्डर विकसित होने की संभावना भी होती है.

लंग्स के प्रभावित होने का प्रभाव भी हार्ट पर पड़ता है. इस से हार्ट की परेशानियां बढ़ जाती हैं. हैल्दी डाइट से हार्ट होगा हैल्दी प्रोफैसर सुदीप कुमार कहते हैं, ‘‘खाने में चीनी की मात्रा एकदम कम होनी चाहिए. नमक 5 ग्राम से अधिक न हो. कम कैलोरी वाला ही भोजन करें. डाइट में रेशेदार फाइबरयुक्त खाने का अधिक सेवन करें. 400 से 500 ग्राम फ्रैश फूट्स और हरी सब्जियों का सेवन करें. आलू और शकरकंद सब्जी का हिस्सा नहीं हैं. इन का प्रयोग कम ही करें. सरसों का तेल उत्तर भारत के लोगों के लिए सब से अच्छा रहता है. मैदे से बनी चीजों का प्रयोग कम करें. ‘‘मोटापा कम करने के लिए सही डाइट लें. आप का कितना वजन सही है, यह मापने के लिए अपना बीएमआई निकाल लें. नियमित एक घंटे की ऐक्सरसाइज जरूरी है. ग्रीन एरिया में ऐक्सरसाइज करने से ज्यादा लाभ होता है. इस से एक प्लेजर हार्मोन भी निकलता है जो तनाव को दूर कर के दिल को खुशी देता है.’’

प्यार में हुई गोलियों की तड़तड़ाहट

रात के डेढ़ बजे का समय था. अचानक कमरे में गोली चलने की आवाज से प्रीति की आंखें खुल
गईं. उस ने बिस्तर से उठ कर तेजी से कमरे की लाइट जलाई. देखा कि मोहल्ले का ही युवक स्वप्निल छत से कूद कर भाग रहा था. जबकि गली में अंकित खड़ा था. बिस्तर पर प्रीति का पति सुमेर सिंह उर्फ बौबी के सिर से खून बह रहा था.इस दौरान प्रीति द्वारा शोर मचाए जाने पर मोहल्ले के कुछ लोग अपने घरों से निकल कर बौबी के घर के बाहर जमा हो गए.

घटना की जानकारी होते ही लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही थाना शाहगंज के एसएचओ जसवीर सिंह सिरोही मय पुलिस टीम के घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस बौबी को एस.एन. मैडिकल कालेज ले कर पहुंची, जहां उस की मौत हो गई. आरोपी युवक की भागते समय कैप और बेल्ट गली में ही गिर गई थी. यह बात 27 अगस्त, 2022 की है.यह घटना आगरा के थाना शाहगंज के प्रकाश नगर में आधी रात के बाद घटित हुई थी. यहां रहने वाले 28 वर्षीय टेंट हाउस के मालिक बौबी की रात के समय गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. जिस कमरे में गोली मारी गई, उस में पत्नी प्रीति व उस के 3 बच्चे भी सो रहे थे.

अस्पताल से पति की मौत की खबर आते ही घर में कोहराम मच गया. इस घटना से मोहल्ले में सनसनी फैल गई. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद अस्पताल से ही शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.प्रीति ने पड़ोस के 2 युवकों पर पति की हत्या करने का आरोप लगाया. इस संबंध में बताया कि 3 महीने पहले उस के पति का पड़ोसी युवक स्वप्निल उर्फ शिवालिन से झगड़ा हो गया था. शराब के नशे में युवक ने बदतमीजी कर दी थी, इस पर पति से उस की हाथापाई हो गई.

तब शिवालिन ने बौबी को चांटा मार दिया था. इस के साथ ही जान से मारने की धमकी भी दी थी. हत्या के पीछे यही वजह पुलिस को बताई गई.इस संबंध में थाना शाहगंज में दोनों युवकों स्वप्निल उर्फ शिवालिन व अंकित के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई गई. इस के बाद पुलिस नामजदों की गिरफ्तारी के लिए उन की तलाश में जुट गई. लेकिन दोनों ही घर पर नहीं मिले.

सुमेर सिंह उर्फ बौबी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के हरदुआगंज स्थित गांव शिल्ला का रहने वाला था. वह 12 साल से प्रकाश नगर में किराए के मकान में पत्नी प्रीति, 2 बेटियों और बेटे के साथ रह रहा था.घर वालों के अनुसार बौबी पहले जूता कारखाने में काम करता था. कुछ महीने पहले ही उस ने टेंट का काम शुरू किया था, जो अच्छा चल रहा था. उस का कमरा मकान की दूसरी मंजिल पर था.

घटना की जानकारी होते ही गांव शिल्ला से भी परिजन आगरा आ गए. शाम लगभग 4 बजे पोस्टमार्टम के बाद बौबी का शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजन शव को रामनगर पुलिया पर ले आए. उन्होंने शव को सड़क पर रख कर जाम लगा दिया.उन की मांग थी कि आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाए. इस के साथ ही मृतक के घर वालों को मुआवजा दिया जाए. मृतक की पत्नी प्रीति अपने बच्चों के साथ सड़क पर बैठ गई. उस का रोरो कर बुरा हाल था.

जाम की सूचना पर थाने से पुलिस फोर्स पहुंच गई. पुलिस ने लोगों को समझाने व वहां से हटाने का प्रयास किया. इस पर लोग भड़क गए और पुलिस के साथ खींचतान होने लगी. एक घंटे बाद जब लोग नहीं माने तो पुलिस ने लाठियां फटकार कर सभी को हटाया. इस के बाद ही परिजन शव को ले कर अंतिम संस्कार के लिए गांव चले गए थे.

पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि दबंग स्वप्निल और उस का भाई अंकित अपने चाचा दिनेश के साथ रंगबाजी करते हैं. इस में उन के दोस्त रोहित, गौरव और पवन भी साथ देते हैं. पूर्व में एक गार्ड ने अंकित का मारपीट करते हुए वीडियो बना लिया था. वीडियो डिलीट न करने पर उस ने गार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस के अलावा उस पर कई और मुकदमे भी दर्ज हैं.

6 महीने पहले उस ने सोनू नाम के युवक के पैर में गोली मार दी थी. समाज की पंचायत के बाद मामले में सुलहनामा हो गया था. 3 महीने पहले बाइक टकराने पर सुमेर उर्फ बौबी से शिवालिन की हाथापाई हुई थी. तब दबंगों ने पूरे मोहल्ले के सामने 6 महीने के अंदर हत्या का ऐलान किया था.टेंट व्यवसायी बौबी की सिर में गोली मार कर हत्या की गुत्थी को पुलिस सुलझाने में लगी रही. हत्यारोपी किस रास्ते से घर में घुसा और कहां से भागा, इस का पता करने के लिए 29 अगस्त, 2022 को पुलिस टीम गली में फिर गई. मगर घर में बिना दरवाजा खोले अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं मिला.

जबकि पत्नी प्रीति दावा कर रही थी कि नामजद एक आरोपी घर में आया था. पति को गोली मार कर भागते समय उसे व उस के भाई अंकित को गली में खड़ा देखा था. 2 दिनों तक पुलिस हत्यारोपी का पता लगाने में लगी रही.पुलिस ने मामले की गहनता से जांच शुरू की और नामजद आरोपियों में से स्वप्निल उर्फ शिवालिन को हिरासत में ले कर पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के बाद भी युवक ने हत्या में शामिल नहीं होने की बात कही. सर्विलांस में भी युवक की लोकेशन घर पर मिली थी.

घटना वाली रात में घर पर न मिलने की बात पर उस ने बताया कि जब मोहल्ले में यह बात फैली कि हत्या मैं ने व भाई अंकित ने की है तो हम लोग डर गए और झूठे मामले में पकड़े जाने के डर से घर से भाग गए. इस के बाद पुलिस ने दोबारा से घटनास्थल का मुआयना करने का
फैसला लिया.पुलिस ने देखा कि घर की छत पर कोई भी व्यक्ति बाहर से चढ़ कर या कहीं से फांद कर नहीं आ सकता. मकान में नीचे वाला मुख्य गेट खोल कर ही कोई व्यक्ति छत पर आ सकता था. इस का मतलब था कि नीचे का दरवाजा जानबूझ कर खुला छोड़ा गया था या हत्यारे के लिए खोला गया था. तभी हत्यारा सीढि़यां चढ़ कर छत पर पहुंचा था. इस पर पुलिस का शक गहरा गया.

आसपास के लोगों से पूछताछ, सीसीटीवी फुटेज और सर्विलांस के आधार पर पुलिस को पुख्ता सबूत मिले. पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि टेंट व्यवसायी बौबी के अंतिम संस्कार में उस का सगा छोटा भाई धीरज शामिल नहीं हुआ था. इस पर पुलिस का माथा ठनका. उसे लगा कि जरूर दाल में कुछ काला है.पुलिस गांव शिल्ला पहुंची और घर वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि धीरज नौकरी के सिलसिले में गुरुग्राम जाने को कह कर 26 अगस्त को घर से गया था. उस ने बताया कि रास्ते में उस का एक्सीडेंट हो गया था. इसी के चलते धीरज अपने भाई बौबी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका था.
जांच में धीरज की लोकेशन घटना वाले दिन आगरा में मिली. इस से पुलिस को पूरा शक हो गया. मोहल्ले और बस स्टैंड के सीसीटीवी फुटेज में धीरज दिखाई भी दिया.

बस के कंडक्टर और ईरिक्शा चालक ने उसे पहचान लिया. पुलिस से बचने के लिए शातिर धीरज ने जींस टीशर्ट के ऊपर कुरतापायजामा पहन लिया था. लेकिन हत्या के समय वह जींस और टीशर्ट ही पहने था.
धीरज से जब पुलिस ने पूछताछ की तो वह ठीक से जवाब भी नहीं दे पाया. धीरज के दोनों पैरों पर ताजा प्लास्टर चढ़ा था. उस ने पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस के आगे उस की एक न चली.

आखिर में धीरज टूट गया उस ने भाई बौबी की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए हत्या में अपनी भाभी प्रीति के भी शामिल होने की बात बताई. धीरज व मृतक बौबी की पत्नी प्रीति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
धीरज की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा व खोखा भी बरामद कर लिया. पुलिस ने प्रीति और धीरज के मोबाइल भी अपने कब्जे में ले लिए.इस सनसनीखेज हत्याकांड में जो कहानी सामने आई, वह देवरभाभी के बीच अवैध संबंधों की निकली.

शादी के समय प्रीति और बौबी की उम्र में 6 साल का अंतर था. प्रकाश नगर में देवर धीरज अकसर आता था. हमउम्र देवर धीरज जब भी आता, भाभी प्रीति से तरहतरह की चीजें बनाने की फरमाइश करता. प्रीति भी देवर की पसंद का बहुत खयाल रखती.दोनों बैठ कर खूब हंसीठिठोली करते थे. इस दौरान दोनों के बीच प्यार पनपने लगा. अब जब भी धीरज आता, भाभी के लिए कोई न कोई गिफ्ट ले कर आता. इस तरह दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा था.

प्रीति बीचबीच में अपनी ससुराल शिल्ला भी बच्चों को ले कर घूम आती थी. देवर और भाभी के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस से पति बौबी पूरी तरह अनजान था. एक दिन जब धीरज आगरा आया, उस की शर्ट का बटन टूट गया. उस ने भाभी से बटन टांकने को कहा. जब प्रीति बटन टांक रही थी, धीरज ने उसे बाहों के घेरे में कस लिया.‘‘छोड़ो भी, कोई देख लेगा तो क्या कहेगा?’’‘‘भाभी, कोई कुछ नहीं कहेगा.’’
प्रीति अपने को छुड़ा कर उस से दूर हो गई. उस दिन धीरज कुछ देर रुकने के बाद चला गया.
कुछ दिनों बाद जब धीरज आया तो प्रीति ने उस का मुसकरा कर स्वागत किया. धीरज ने भाभी की नजरों को पहचान लिया. वह आगे बढ़ा और प्रीति के नजदीक आ गया. प्रीति भी उस के इरादे
पहचान गई.

प्रीति की कामनाएं सुलग उठीं. धीरज के शरीर में भी उत्साह का ज्वार आ गया. प्रीति धीरज के प्यार की आग में जलती, तब बड़े प्यार से धीरज की मासूमियत पानी डाल कर उसे ठंडा कर देती थी. 2 साल से दोनों के बीच प्यार की आंखमिचौली का खेल चल रहा था.एक दिन बौबी ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया. वह खून का घूंट पी कर रह गया. उस ने पत्नी को डांटने के साथ ही धीरज को चेतावनी देते हुए उसे घर न आने की हिदायत दी. इस के बाद भी धीरज और प्रीति के बीच मोबाइल पर बातचीत का सिलसिला जारी रहा.

जब भी बौबी कामधंधे की वजह से शहर से बाहर जाता, वह एक दिन पहले ही फोन कर धीरज को बता देती. फिर धीरज अलीगढ़ से बस पकड़ कर आ जाता और दोनों एकदूसरे के प्यार में पूरी तरह से डूब जाते. अब दोनों मिलने में बहुत होशियारी बरतते थे. पता नहीं कब बौबी घर आ जाए और वे रंगेहाथों पकड़े जाएं.
घटना से कुछ दिन पहले जब धीरज प्रीति के बुलाने पर घर आया तो प्रीति ने धीरज से कहा, ‘‘धीरज, ऐसे कब तक हम लोग चोरीचोरी मिलते रहेंगे. रास्ते की दीवार को हमें हटा देना चाहिए. हमें इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. बौबी की मौत के बाद सब कुछ भी तुम्हारा हो जाएगा और मैं भी.’’तब दोनों ने साथ रहने और प्रौपर्टी पर कब्जा करने के उद्देश्य से भाई बौबी की हत्या की साजिश रची.

मृतक सुमेर उर्फ बौबी की हत्या के मामले में उस की पत्नी प्रीति पुलिस को शुरुआत से ही गुमराह करती रही. इसी के चलते प्रीति ने पड़ोस के 2 युवकों, जिन से 3 माह पहले विवाद हुआ था, के खिलाफ पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर उस ने बच्चों के साथ सड़क पर धरना भी दिया. लेकिन सीसीटीवी कैमरों की तेज नजरों से प्रीति और प्रेमी देवर धीरज की कारगुजारी छिप नहीं सकी.

भाभी के प्रेम में पड़ कर धीरज सगे रिश्ते को भी भूल गया. भाभी को अपना बना लेने की चाह में वह बड़े भाई बौबी का कातिल बन गया. भाई की हत्या के लिए वह 26 अगस्त, 2022 को बस से आगरा आया. वह दिनभर इधरउधर धूमता रहा.भाभी प्रीति ने उस से कहा था कि वह रात को एक बजे नीचे का गेट खोल देगी. योजना के अनुसार, तय समय रात एक बजे उस ने दरवाजा खोल दिया. धीरज तमंचा ले कर आया था और गेट खुला होने पर अंदर आ गया.जीना चढ़ कर वह छत पर पहुंचा. उस समय कमरे में बच्चे और बौबी गहरी नींद में सोए हुए थे. धीरज ने कमरे में जा कर भाई के सिर में गोली मार दी.

गोली चलने की आवाज सुन कर मोहल्ले के लोग जाग गए. इस पर धीरज डिश की केबल से अपनी बेल्ट बांध कर छत से कूदा. डिश केबल टूट जाने से उस के दोनों पैरों की हड्डियां टूट गईं. वह घिसटता हुआ वहां से किसी तरह भाग निकला.धीरज ने हमीद नगर पहुंच कर तमंचा और खोखा छिपा दिया. भाभी प्रीति को फोन कर उस ने भाई की मौत हो जाने की बात बताई. इस के बाद ईरिक्शा से वह बस स्टैंड पहुंचा और बस से अलीगढ़चला गया.अलीगढ़ पहुंच कर उस ने अपना इलाज कराया. दोनों पैरों की हड्डियां टूट जाने से उसे प्लास्टर कराना पड़ा. गली में जो बेल्ट और कैप मिला था, वह धीरज के ही थे, जो केबल टूटने पर गली में गिर गए थे. पुलिस ने हत्याकांड का परदाफाश कर आरोपी देवरभाभी को जेल भेज दिया.

प्रीति गिरफ्तारी के बाद अपने तीनों मासूम बच्चों का जीवन खराब होने की बात कह कर खूब रो रही थी. उस के घडि़याली आंसू देख मोहल्ले के लोगों का दिल भी पसीज गया कि अब उस के छोटे बच्चों को या तो वह अपने साथ जेल ले जाएगी या किसी रिश्तेदार के पास रहेंगे. मृतक बौबी का सालों की मेहनत से जमाया गया कारोबार भी पत्नी प्रीति के इश्क की भेंट चढ़ कर अब खत्म हो गया.प्रीति ने पति की हत्या में स्वप्निल उर्फ शिवानिल और अंकित नाम के जिन युवकों को नामजद किया था, पुलिस की जांच में वे दोनों बेकुसूर निकले. पुलिस द्वारा उन्हें क्लीन चिट दे दी गई.

कहते हैं कि बुरे काम का बुरा नतीजा होता है. देवर और भाभी के नाजायज रिश्ते के चलते हत्या जैसा जघन्य अपराध कर प्रीति ने जहां अपना सुहाग उजाड़ा, वहीं 3 बच्चों से उन का बचपन भी छीन लिया.द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सखी: रीता को मां ने क्या सलाह दी

रीता और मीना का आज आखिरी पेपर था. दोपहर घर पहुंचीं तो उन की खुशी देखते ही बनती थी. 2 महीनों से पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई में व्यस्त थीं. 12वीं कक्षा की पढ़ाई छात्रों के लिए बेहद अहम होती है. इसी कक्षा के नंबरों पर आगे की पढ़ाई निर्भर करती है. अगर नंबर थोडे़ भी कम हुए तो किसी भी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिल सकता. इसीलिए 2 महीनों से रीता और मीना ने पढ़ाई के लिए दिनरात एक कर दिए थे. आज एक बड़ा बोझ उन के सिर से उतर गया था. आज दोनों का पिक्चर देखने जाने का प्रोग्राम था. रीता और मीना ऐडल्ट मूवी देखने गईं, जिस की उन की सहेलियों में बहुत चर्चा थी. वे दोनों भी खुद को वयस्क मानने लगी थीं. शरीर में होते हारमोनल बदलाव को वे महसूस करने लगी थीं.

पिक्चरहौल में जा कर देखा तो आधे से अधिक दर्शक 12वीं कक्षा के छात्र थे. पिक्चर शुरू होते ही हौल में सन्नाटा छा गया. सब का ध्यान स्क्रीन पर था. हीरो और हीरोइन का रोमांस करना, एकदूसरे को चूमना जवान दिलों की धड़कनों को बढ़ाने के लिए काफी था. पहली बार सब ऐसे दृश्य देख रहे थे. सब की धड़कनें बेकाबू होती जा रही थीं. सभी अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे. मूवी खत्म हुई तो बाहर आने वाले सब छात्रों के चेहरे देखने लायक थे. कुछ के चेहरे रोमांच से लाल थे तो कुछ मुंह नीचा किए जा रहे थे मानों उन से कोई अपराध हो गया हो. रीता और मीना भी कुछ इसी भाव से भरी हुई थीं. आज रात में दोनों एकसाथ ही रहने वाली थीं. दोनों सीधे घर आईं और मूवी के डायलौग दोहराने लगीं. दोनों का हंसहंस कर बुरा हाल था.

रात को खाने की मेज पर रीता के मम्मीपापा भी खाना खाने के लिए साथ बैठे. दोनों ही डाक्टर थे और एक ही अस्पताल में काम करते थे. रीता की मां स्त्रीरोग विशेषज्ञा थीं.

वे बोलीं, ‘‘आज दोनों के चेहरों पर खुशी नजर आ रही है. अब डेढ़ महीना मजे में बिताओ. जब रिजल्ट आएगा तो फिर चिंता शुरू होगी कि दाखिला कहां मिले.’’

‘‘आज तुम दोनों कौन सी मूवी देख कर आईं?’’ रीता के पिता उमेश ने पूछा.

दोनों ने एकदूसरे की ओर देखा और फिर तुरंत किसी दूसरी मूवी का नाम ले दिया. उन का झूठ वे नहीं पकड़ पाए. रीता के मम्मीपापा दोनों ही अपनेअपने काम में इतना व्यस्त रहते थे कि अपनी बेटी की हरकतों की ओर उन का ध्यान नहीं जाता था. इसलिए रीता और मीना की छिपी मुसकराहट को वे नहीं देख पाए. रात को मीना की मां का फोन आया. मीना की मां शहर के एक बहुत बड़े बुटीक की मालकिन थीं और बहुत व्यस्त रहती थीं. मीना को अच्छी से अच्छी चीजें देना ही उन का काम था. मीना भी अपनी कक्षा की वैल ड्रैस्ड गर्ल के रूप में जानी जाती थी. मीना के साथ बैठ कर उन्होंने कभी बात नहीं की.

रात को जब रीता और मीना सोने लगीं तो उन की बातों का केंद्र वही मूवी थी. रीता गुनगुना उठी, ‘‘बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’’

सुन कर मीना ने चुटकी ली, ‘‘तो फिर एक हसीन सनम ढूंढ़ा जाए.’’

‘‘हां जरूर पर सपनों में ही. अगर सच में ढूंढ़ लिया तो मम्मीडैडी घर से निकाल देंगे.’’

‘‘उन्हें कौन बताएगा. उन्हें तो अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती है. हम थोड़ीबहुत शैतानी कर ही सकते हैं.’’

‘‘अगर शैतानी भारी पड़ गई तो?’’

‘‘पहले से ही गलत सोचना शुरू कर दिया तो फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘अगर तुझे डर नहीं लगता है तो तू ही शुरू कर ले. मैं दूर बैठी ही मजा लूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, डूबेंगे तो एकसाथ समझी?’’

‘‘हां, समझ गई मेरी सखी,’’ फिर आगे बोली, ‘‘अरे, सखी सुनते ही मुझे ध्यान आ रहा है कि पेपर शुरू होने से पहले एक डाक्टर स्कूल में आई थीं. उन्होंने सखी नाम की ओरल कौंट्रासैप्टिव पिल के बार में बताया था. तब तो पढ़ाई का भूत सवार था, इसलिए उस ओर ध्यान नहीं दिया. अब वह पैंफ्लेट ला कर पढ़ते हैं. मैं ने अपनी हिंदी की किताब में रखा था,’’ कह कर रीता झट से उसे निकाल लाई.

‘‘ज्यादा उड़ने की कोशिश मत कर. वे सब तो शादी के बाद की बातें हैं… अभी वैसा सोचा तो बहुत मार पड़ेगी.’’

‘‘तू तो बस डरती ही रहती है. जिंदगी का मजा क्या बुढ़ापे में उठाएगी?’’ कह वह सखी का विज्ञापन पढ़ने लगी. उस में लिखा था- जब तक चाहें बच्चा न पाएं और 2 बच्चों में अंतर रखने का सरल उपाय.

‘‘हमें तो बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए… इस आशिकी में सखी ही काम आएगी समझी मेरी सखी?’’ वह गुनगुनाते हुए बोली.

‘‘बस कर… बस कर… तेरी मम्मी को पता चल गया तो गजब हो जाएगा… तू ने आरुषि वाली खबर तो पेपर में जरूर पढ़ी होगी कि मांबाप ने ही आशिकमिजाज बेटी की हत्या कर दी.’’

‘‘अपना उपदेश अपने पास रख. मुझे तो एक अदद सनम चाहिए.’’

दोनों बातें करतीकरती नींद के आगोश में चली गईं. दूसरे दिन जब सुबह उठीं तो भी उन के दिमाग में वही मूवी घूम रही थी. दोनों की आपस में छेड़छाड़ जारी थी.

रीता बोली, ‘‘तुझे कैसा सनम चाहिए?’’

‘‘पहले तू बता?’’

‘‘अक्षय कुमार जैसा.’’

‘‘मुझे तो संजीव कुमार जैसा चाहिए.’’

‘‘तुझे सनम चाहिए या पापा?’’

‘‘सनम ऐसा हो जिस के साथ मैं सुरक्षित महसूस करूं. एक से दूसरे फूल पर उड़ने वाला नहीं चाहिए.’’

‘‘तू तो बहुत दूरदर्शिता की बातें करती है?’’

‘‘मैं तो हमेशा से ही होशियार हूं… तू ने मुझे समझ क्या रखा है? और सुन तुझे भी कोई गलत काम नहीं करने दूंगी.’’

‘‘अच्छा मेरी सखी,’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

दोनों ही हंसी की आवाज सुन कर रीता के पिता डा. उमेश अंदर आए और बोले, ‘‘1 दिन और छुट्टी मना लो. कल सुबह से तुम्हारी ड्राइविंग क्लास शुरू हो जाएगी. मैं ने एक ड्राइवर को फिक्स कर दिया है. वह रोज सुबह 7 बजे आ कर तम्हें ड्राइविंग सिखाने ले जाया करेगा.’’

‘‘सच डैडी, आप मुझे कार चलाने देंगे? आप कितने अच्छे हैं… थैंक्यू डैडी.’’

‘‘और तुम्हारी मां ने दोपहर में तुम्हारा नाम कुकिंग क्लास के लिए भी लिखवा दिया है. दोपहर में 1 घंटा तुम वहां जाओगी. शाम को 1 घंटा जिम में कसरत करोगी.’’

‘‘वाह, आप ने तो पूरे दिन का प्रोग्राम बना दिया. अब बोर होने के लिए समय ही नहीं होगा.’’

मीना दोपहर को अपने घर चली गई. दूसरे दिन जब ड्राइवर आया और रीता ड्राइविंग सीखने निकली तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. 1 हफ्ता बीततेबीतते वह कार चलाना सीख गई. अब उस का ध्यान ड्राइवर की ओर गया. वह बहुत ही स्मार्ट लड़का था. देखने में अक्षय कुमार से कम नहीं था. अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए वह पार्टटाइम में ड्राइविंग सिखाता था. अब अचानक ही उस का हाथ उस के हाथ को छूने लगा और तिरछी नजरों से एकदूसरे को देखना शुरू हो गया. रीता अब उठतेबैठते उस ड्राइवर मनु के बारे में ही सोचती. उस ने मीना को भी फोन पर बताया कि एक अदद आशिक मिल गया है. अब बस आशिकी करने की देर है.

मीना बोली, ‘‘पागल मत बन. एक ड्राइवर को आशिक बनाएगी?’’

‘‘क्यों नहीं? एक ड्राइवर आशिक क्यों नहीं बन सकता? मैं पूरे जीवन की बात नहीं कर रही हूं. मैं तो पार्टटाइम आशिक की बात कर रही हूं.’’

‘‘तू पागल हो गई है. हद में रह तेरी मम्मी को पता चला तो मार डालेगी तुझे… एक और आरुषि मर्डर केस बन जाएगा.’’

‘‘मैं इतनी भोली नहीं हूं. मेरे कारनामे की खबर मम्मी को पता नहीं लगेगी.’’

दूसरे दिन जब तक मीना उस के घर पहुंची तब तक रीता मनमानी कर चुकी थी. उस ने अपनी मम्मी के पर्स से ही सखी पिल निकाल कर खा ली थी. पिल खाने के बाद उस के हौसले बुलंद थे. आशिक के सामने जब रीता ने स्वयं समर्पण कर दिया तो फिर उसे क्यों एतराज होने लगा था और फिर कार की पिछली सीट पर ही सब घटित हो गया. मीना जब रीता के पास पहुंची तो उसे देखते ही वह सब कुछ समझ गई.

अब उस ने रीता को डांटना शुरू किया. बोली, ‘‘यह तू ने क्या किया? अगर पिल ने काम नहीं किया और कुछ गड़बड़ हो गई तो? हमें वह ऐडल्ट मूवी देखनी ही नहीं चाहिए थी.’’

‘‘अच्छा अपना भाषण बंद कर. अब तू भी जल्दी से एक आशिक ढूंढ़ ले.’’

‘‘अपनी सलाह अपने पास रख. अब दोबारा तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिसे छिपाना पड़े.’’

‘‘अच्छा, ऐसी बात है तो मैं तुझे कुछ भी नहीं बताऊंगी. सतिसावित्री तू ही बन. मुझे तो जिंदगी के मजे लेने हैं.’’

मीना ने चुप रहने में ही भलाई समझी. चूंकि रीता के सिर पर आशिकी का भूत सवार था, इसलिए किसी भी सलाह का असर उस पर होने वाला नहीं था. रीता ने मजे लेले कर मीना को सब कुछ बताया. वह सोच रही थी कि उस ने दुनिया की सब से बड़ी नियामत पा ली है. पर उस की इन बातों ने मीना पर कोई असर नहीं किया. वह अपनी हद में रहना जानती थी. रीता की ड्राइविंग तो पूरी हो गई थी, पर उस का मनु ड्राइवर से मिलनाजुलना चलता रहा. धीरेधीरे नए अनुभव पुराने होने लगे. अब वह मनु से पीछा छुड़ाना चाहती थी. रिजल्ट निकलने का समय भी नजदीक आ रहा था. उधर उस ने महसूस किया कि शरीर में कुछ गड़बड़ हो रही है. इस महीने उसे नियत समय पर पीरियड भी नहीं आया. उस ने 1 हफ्ता और इंतजार किया. फिर तो उस की जान सूखनी शुरू हो गई.

उस ने मीना को घर बुलाया और अपनी परेशानी बताई.

मीना उस पर टूट पड़ी. बोली, ‘‘अब भुगत अपनी करनी का फल. बेवकूफ लड़की अब ले आशिकी का मजा. सखी ने भी धोखा दे दिया न? अब क्या करेगी? आंटी को पता चला तो उन्हें कितना दुख होगा.’’

‘‘लैक्चरबाजी बंद कर और मुझे बता अब मैं क्या करूं?’’

‘‘सखी पिल रोज नहीं खाई थी क्या?’’

‘‘छोड़ इन सब बातों को अब मुझे तू इस मुसीबत से निकाल.’’

‘‘अपनी मम्मी को सब कुछ सचसच बता दे. वे डाक्टर हैं. उन्हें ही पता होगा कि अब क्या करना है.’’

‘‘मम्मी को बता दे, वाह क्या अच्छी सलाह दे रही है. क्या और कोई डाक्टर नहीं है?’’

‘‘डाक्टर तो बहुत हैं पर कुछ गड़बड़ हो गई तो आंटी को पता तो चलेगा ही.’’

‘‘क्या गड़बड़ होगी? सुना है कि 10-15 मिनट में सब खत्म हो जाता है और किसी को भी पता नहीं लगता है. ’’

‘‘सुना है कई बार केस बिगड़ जाता है. तब लेने के देने पड़ जाते हैं. देख एक गलती तो कर चुकी है अब दूसरी बड़ी गलती मत कर. अपनी मम्मी को सब बता दे और वे ही तुझे इस बड़ी मुसीबत से निकाल सकती हैं.’’

‘‘मेरी इतनी हिम्मत नहीं है… मैं मम्मी को कुछ भी नहीं बता सकती हूं.’’

‘‘तो फिर लिख कर सब बता दे. तुझे डांट तो जरूर पड़ेगी पर तू सुरक्षित हाथों में रहेगी.’’

रीता अब कुछ भी करने को तैयार थी. उस ने सारी घटना कागज पर लिखी और मां के पर्स में डाल दी. मां ने जब पढ़ा तो उन के पांवों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उन की बेटी ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर ली? उन का दिमाग ही जैसे थम सा गया. पति को बताएं या छिपाएं… वे जल्दी घर आ गईं और फिर खुद को कमरे में बंद कर लिया. 1-2 घंटे बीत जाने पर वे शांत हुईं और फिर रीता को बुलाया.

‘‘मौम मैं ने आप के पर्स में से ही सखी पिल्स निकाल कर खाई थीं.’’

‘‘उन पर ऐक्सपायरी डेट पढ़ी थी क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अब चुप रहो और अपनी नादानी की सजा भुगतो. मैं ने कितनी ही बेवकूफ लड़कियों के अबौर्शन किए हैं पर नहीं जानती थी कि एक दिन मेरी ही बेटी इस तरह मेरे सामने आएगी. तुम्हारे अधकचरे ज्ञान ने तुम्हें मार दिया. मुझे कभी इतनी फुरसत ही नहीं मिली कि तुम्हें सब कुछ समझाऊं. मेरे घर में मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई है, इस का मुझे भान तक नहीं हुआ. मैं तो अपने ही काम में व्यस्त रही. हम दोनों से ही चूक हो गई. अब दोनों को ही सजा मिलेगी. मैं भी सारी उम्र अपने को माफ नहीं कर पाऊंगी. चलो, आज शाम को ही काम कर दिया जाए. आज तेरे डैडी भी घर में नहीं हैं. उन को भी खबर नहीं होनी चाहिए. तेरे पल भर के मजे ने तुझे डुबो दिया.’’

‘‘मां, मुझे माफ कर दो.’’

फिर उसी शाम घर में बने क्लीनिक में एक मां ने अपनी बेटी की गलती का निशान साफ कर दिया. शारीरिक बोझ तो चला गया था, पर इस घटना के मानसिक घाव कभी जाने वाले नहीं थे. बिना उचित जानकारी के अच्छी औषधि भी जहर बन सकती है. वे तो विवाहित महिलाओं को ही समझाती थीं कि जब तक न चाहो संतान न पाओ या बच्चों की आयु में अंतर कैसे रखें. स्कूलकालेज की छात्राएं इस का दुरुपयोग करेंगी, ऐसा तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. बंदर के हाथ में उस्तरे जैसा काम उन की बेटी के जीवन में इन पिल्स ने किया था. उन की बेटी जैसी उन्मुक्त और न जाने कितनी लड़कियों ने इन पिल्स का दुरुपयोग किया होगा. जीवन में ज्ञान के साथसाथ विवेक की भी जरूरत होती है. विवेक को केवल मातापिता ही सिखा सकते हैं. वे तो अच्छी मां साबित नहीं हुईं. उन्होंने काम की अधिकता के कारण कभी बेटी के पास बैठ कर उसे उचितअनुचित का ज्ञान नहीं दिया. आज बेटी की गलती में वे भी अपनेआप को बराबर का भागीदार मान रही थीं, इसीलिए वे रीता को डांट भी नहीं पाईं. बस मनमसोस कर रह गईं.

मुखरता : डर कर चुप बैठ गई रिचा से क्या गलती हुई

रिचा बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी. वह क्लास में आखिरी बैंच पर बैठती थी और एकदम बुझीबुझी सी रहती थी. कुछ पूछने पर वह या तो चुप हो जाती या फिर बहुत कम सवालों का जवाब देती. वैसे रिचा पढ़ने में होशियार और मेहनती थी, लेकिन हरदम अकेली, खुद में खोई रहती. कोई न कोई बात तो थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि वह लड़कों की मौजूदगी में सामान्य नहीं रहती थी. अगर गलती से कोई लड़का उसे छू लेता या कंधे पर हाथ रख देता, तो वह क्रोधित हो जाती.

उस के मातापिता भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे. वे अगर उस से कुछ पूछते, तो वह एक गहरी चुप्पी साध लेती. उस की बचपन की सहेली मीरा जब भी मिलती, रिचा से चुप रहने की वजह पूछती पर उसे कोई जवाब नहीं मिलता. लेकिन मनोविज्ञान की स्टूडैंट होने के कारण वह रिचा की मानसिक अवस्था समझ रही थी. उसे किसी अनहोनी का डर खाए जा रहा था.

एक दिन मीरा ने उस से बात करने का निश्चय किया. शुरू में तो रिचा ने सवालों से बचना चाहा, शायद वह थोड़ी भयभीत भी थी, पर मीरा के साथ रोज वार्त्तालाप करने से उस का हौसला बढ़ने लगा.

एक दिन उस के दुखों का बांध ढह गया और उस की भावनाओं ने उथलपुथल की और वह रोने लगी. फिर धीरेधीरे उस ने अपनी बीती सारी बातें बताईं. उस ने बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मैं इतिहास पढ़ रही थी. वैसे भी इतिहास का विषय सब के लिए नींद की गोली जैसा होता है, पर मेरे लिए यह एक रोमांचक था. अनजाने में ही मेरे अंकल जल्दी घर वापस आ गए. वे हमेशा से ही मेरे कपड़ों, पढ़ाई व मेरे दोस्तों में रुचि रखते थे.

‘‘मैं उन से प्रेरित थी. वे मुझे मेरे पिता से ज्यादा निर्देशित करते थे. कई चीजों के बारे में चर्चा करतेकरते अंकल ने मुझे अपने पास आ कर बैठने को कहा. मुझे इस में कुछ भी अटपटा नहीं लगा और मैं उन के पास जा कर बैठ गई. बात करतेकरते वे अचानक मेरे गुप्तांगों को बेहूदे तरीके से छूने लगे. यह देख कर मैं पीछे हट गई. मुझे उन की इस हरकत से असुविधा महसूस होने लगी. मैं सही समय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाई. संयोग से मेरी मां हौल में आ गईं. मैं मौके का फायदा उठा कर अपने कमरे में भाग गई. मेरे साथ हौल में जो कुछ हुआ वह समझने में मुझे थोड़ा वक्त लगा. वह एक ऐसी अनहोनी थी जिस ने मेरी जिंदगी अस्तव्यस्त कर दी थी.

‘‘मैं ने खुद से घृणा के भाव से पूछा, ‘मेरे साथ क्यों?’ मैं अपनी मां को यह बात नहीं बता पा रही थी, क्योंकि मुझे शर्मिंदगी और घबराहट महसूस हो रही थी.

‘‘अगले दिन अंकल ने मुझे फिर पीछे से पकड़ा और शैतानों वाली हंसी हंसते हुए पूछा कि मुझे कैसा लग रहा है.

‘‘मेरे कुछ जवाब न देने और घूर कर देखने पर उन्होंने मुझे धमकाया. मैं डर के साथसाथ क्रोधित भी हो गई थी. मैं उन्हें थप्पड़ मारना चाहती थी पर उन की पकड़ से छूट ही नहीं पा रही थी.

‘‘मेरी चुप्पी उन की इस हरकत को बढ़ावा दे रही थी. धीरेधीरे मैं अंकल से दूरी बना कर रहने लगी. मैं ऐसी किसी जगह नहीं जाती थी जहां वे मौजूद हों. अब उन्हें देखते ही मुझे घृणा महसूस होने लगती थी. मेरा सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा न लेना मेरे मातापिता को अनुचित लगता था. वे मेरे इस व्यवहार का कारण पूछते थे. मैं इस उलझन में थी कि यह सब सुनने के बाद इस बारे में उन की क्या राय होगी? डर से मैं ने यह बात उन्हें न बताना ही सही समझा.

‘‘मैं अब खुद को असहाय सा महसूस करने लगी हूं और सालों से सबकुछ चुपचाप सह रही हूं. लंबे समय से वे बातें मेरे दिमाग में चलचित्र की तरह ताजी हैं. मैं अपनी मां से इस बारे में बात करना चाहती हूं पर नहीं कर पाती.

‘‘जीवन में आगे चल कर मैं मर्दों के साथ रिश्ता नहीं निभा पाऊंगी. मुझे अपने दोस्तों (किसी लड़के) का साधारण तरीके से छूना भी पसंद नहीं आता. मैं अपने बिगड़ते रिश्तों का कारण नहीं जान पा रही हूं. मैं खुद का आदर नहीं कर पाती और खुद से ही नाराज रहती हूं.’’ यह सब कहते हुए वह रोने लगी.

यह सब सुन कर मीरा को बहुत दुख हुआ. मीरा ने उस से कहा,’’ अच्छा, बुरा मत मानना, अन्याय सहना भी बहुत बड़ा अपराध है. आज अपनी इस दशा की जिम्मेदार तुम खुद हो. अगर तुम खुल कर अपनी मम्मी से इस यौनशोषण के बारे में बतातीं, तो शायद आज यह स्थिति न आती.

‘‘तुम क्यों हिचकिचाती रही? क्यों तुम ने शर्मिंदगी महसूस की. जीवन में बलि का बकरा बनने से अच्छा है कि हम खुद के लिए आवाज उठाएं. तुम आज ही अपनी मां से इस बारे में बात करो. तुम ने कोई अपराध नहीं किया है, जो तुम डरो. अगर तुम डर कर अपराधी को सजा नहीं दोगी, तो तुम उसे अपराध करने के लिए प्रेरित करोगी. कल को कुछ भी हो सकता है.

‘‘मुखरता, सहनशीलता और आक्रामकता का सही बैलेंस है. मुखर होना मतलब खुद के या दूसरों के अधिकार के लिए आराम से और सकारात्मक भाव से अपनी बात रखना होता है, न कि आक्रामक या सहनशील हो कर खड़ा होना. मुखरता खुद में ही एक पुरस्कार की तरह है, क्योंकि यह देख कर अच्छा लगता है कि लोग आप की बातें ध्यान से सुनते हैं और परिस्थितियां भी अकसर अपने अनुसार ही चलती हैं.

‘‘मुखरता हमें अपने सोचविचार को खुल कर सामने लाने का आत्मविश्वास और ताकत देती है. यह हम से किसी को भी गलत फायदा उठाने नहीं देती है. मुखरता एक तरह का व्यावहारिक उपचार है जो लोगों को खुद की मदद करने में सक्षम बनाता है.’’

मीरा की बातें सुन कर रिचा शायद अपनी भूल समझ गई थी. उस ने उसी दिन अपनी मां को सारी बातें बता दीं. रिचा की मां कु्रद्ध हो गईं और उस की इस दुर्दशा को न जान पाने के लिए शर्मिंदगी महसूस करने लगी. अब रिचा को एहसास हुआ कि जिस बात को सब के सामने आने के डर से वह हिचकिचाती थी और शर्मिंदगी महसूस करती थी, अगर चुप नहीं रहती, तो उसे इतने समय तक सबकुछ नहीं सहना पड़ता.

रिचा अपने अंकल से ही नहीं, बल्कि अपनी बात समाज के सामने रखने से भी नहीं डरती. मीरा ने उसे एक नया जीवन दिया. परिचय कराया उस का मुखरता से. उसे एक सकारात्मक आत्मछवि और जीने का विश्वास दिया. रिचा अब चुपचाप कुछ भी नहीं सहती है.

घर पर बनाएं होटल जैसी दीवानी हांडी और मखाने का रायता

त्योहारों की बात हो और खानेपीने का जिक्र न हो तो सब अधूरा है. लजीज पकवानों, जायकेदार खाना, चटपटे स्नैक्स, शीतल पेय, लुभावनी मिठाइयों के बिना भला क्या मजा त्योहारों का. दीवाली के दिन ज्यादातर परिवार किसी होटल या रेस्तरां में खाना खाने के बजाय घर में ही खाना खाना पसंद करते हैं. ऐसे में होटल जैसी डिश घर में भी बनाई जा सकती है.’’ ऐसे हम आपके लिए कुछ ऐसी डिश तैयार की हैं जिन्हें घर में आसानी से बनाया जा सकता है और जिस से घर की पार्टी में होटल जैसा स्वाद मिल सकता है. तो आप भी इस बार घर में फाइव स्टार होटल जैसा खाना बनाइए.

  1. दीवानी हांडी

सामग्री :

1 कप मिक्स वैजिटेबल्स (आलू, फूलगोभी, गाजर, बेबीकौर्न, फ्रैंचबींस और हरे मटर ), 2 मध्यम आकार के कटे प्याज, 3 तेज पत्ते, 2 बड़े चम्मच क्रीम, 1 चुटकी हलदी पाउडर, 2 छोटे चम्मच लालमिर्च पाउडर, 2 छोटे चम्मच गरममसाला, पाउडर 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1 बड़ा चम्मच घी, 2 छोटे चम्मच तेल, 1 गड्डी पालक, 1 छोटी गड्डी धनियापत्ती, 8 काजू, 1/4 कप दूध, 3 हरीमिर्चें, 10 कलियां लहसुन, 2 बड़े चम्मच अदरक कटा, नमक स्वादानुसार.

विधि :

आलू, फ्रैंचबींस, फूलगोभी और गाजर को धो कर  काट लें. मटर को छील लें.

पालक को धो कर ब्लांच कर लें.

बेबी कौर्न को गोलाई में काट कर मिक्सर में प्यूरी बनाएं.

धनियापत्ती को काट कर रख लें.

हरीमिर्च, अदरक व लहसुन का पेस्ट बनाएं.

दूध में काजू का पेस्ट बनाएं. प्याज काटें.

एक बरतन में तेल गरम करें.

तेजपत्ते और प्याज मिला कर फ्राई करें.

फिर इस में अदरक लहसुन का पेस्ट मिला कर भूनें.

फिर गरममसाला, धनिया पाउडर, लालमिर्च पाउडर, हलदी पाउडर और नमक मिलाएं.

फिर सब्जियां मिला कर 1 कप पानी डाल कर उबालें.

जब सब्जियां 3/4 पक जाएं तब पालक की प्यूरी और धनियापत्ती और हरीमिर्च मिला दें.

जब पानी सूख जाए तब क्रीम मिलाएं. आंच से उतार कर तंदूरी रोटियों के साथ गरमगरम सर्व करें.

2. मखाने का रायता

सामग्री :

1 कप मखाने (भुने हुए) 21/2 कप दही, 1/2 चम्मच जीरा पाउडर, 1/4 चम्मच काला नमक, 1/4 चम्मच चीनी, 4 कटी हरी मिर्चें, थोड़े पुदीना के पत्ते.

विधि :

दही को अच्छी तरह फेंट कर उस में पुदीना के पत्ते, कटी हरी मिर्च, जीरा पाउडर, काला नमक व थोड़ी चीनी मिलाएं. अब भुने हुए मखाने उस में डालें. 15-20 मिनट बाद मखाने नरम हो जाएंगे. ठंडा होने पर थोड़ी देर के लिए फ्रिज में रख दें. फिर सर्व करें.

अनुज के वापस वापस आने से खुशी से झूमी अनुपमा, माया ने उठाया ये कदम

सीरियल अनुपमा में लगातार नए-नए मोड़ आ रहे हैं, इन दिनों सीरियल में दिखाया जा रहा है कि अनुज अनुपमा के पास वापस आने वाला है जिसकी खबर मिलते ही अनुपमा खुशी से झूम उठती है वह इस खुशी को अपनी मां को बताती है मां कहती है कि पहले सच क्या है मुझे जानने दो फिर बात करती हूं.

इसके बाद से अनुपमा अनुज के आने की तैयारी में लग जाती है, लेकिन वहीं माया अनुज को रोकने की पूरी कोशिश करती है वह कहती है कि मैं अगर चाह दूंगी तो अनुज  अनुपमा कभी एक नहीं हो पाएंगे, अभी मेरे पास एक रात है इन्हें रोकने के लिए.

 

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अनुज अनुपमा को मैसेज करके बताता है कि वह आ रहा है, पूरे फैमली में सभी लोग खुश हैं, सिर्फ बा और वनराज को छोड़कर पूरा परिवार अनुज के आने की तैयारी में लगा हुआ है. बता दें कि इस सीरियल का ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होता है.

भैरवी के पिता की मौत हो जाने के बाद से भैरवी काफी ज्यादा दुखी है, वहीं अनुपमा को भैरवी के पिता का चेहरा बार-बार याद आते रहता है. भैरवी अपना खर्चा चलाने के लिए सब्जी का ठेला लगाने लगती है. जिसे देखकर अनुपमा को अपना बचपन याद आने लगता है.

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