जरूरी नहीं कि सीने की हर जलन हार्ट से संबंधित समस्या हो, लेकिन कहते हैं न कि एक प्रतिशत चांस भी अगर हार्ट का बन रहा है तो डाक्टरी परामर्श लेना जरूरी हो जाता है. पर क्या हो जब यह परामर्श लेने गए हों और डाक्टर व अस्पताल इसे समस्या से अधिक पैसे ऐंठने का मौका सम झ लें. सीने में जलन हो रही है, सीने में भारीपन हो रहा है तो इस का सीधासीधा संबंध हृदय से होता है. हालांकि कई बार इस का कारण एसिडिटी होता है. एसिडिटी की समस्या ज्यादा होने से सीने में भारीपन और सीने में दर्द होता है. सावधानी भी जरूरी है. ज्यादा तेज मसाले का भोजन कोलैस्ट्रौल को बढ़ाने का एक कारण होता है.

उस के कारण भी हृदय में भारीपन होता है. यदि आप को जानकारी है तो ठीक, अगर जानकारी नहीं है तो इस की गंभीरता को जानें. निलेश को कुछ दिनों से चलने में और सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. हृदय में भारीपन की समस्या के कारण तुरंत मैट्रोपोलिस से ब्लड के सभी टैस्ट करवाए. वैसे भी आजकल डाक्टर कोई भी इलाज शुरू करने से पहले सभी प्रकार से जांच करवाते हैं. अपनी रिपोर्ट ले कर हम डाक्टर के पास गए तो उन्होंने हमारी बाहर से कराई हुई ब्लड टैस्ट रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया और अस्पताल में फिर सारे ब्लड टैस्ट करवाए.

मैं ने उन से कहा कि हम ने अभी ही सारे टैस्ट करवाएं हैं तो अस्पताल वालों का जवाब था कि हमारे यहां से टैस्ट एकदम परफैक्ट होते हैं. हार्ट की प्रौब्लम है, कोई रिस्क नहीं ले सकते. हमारे यहां सभी पैकेज हैं. आप को इस में फायदा होगा और आप के सारे टैस्ट हो जाएंगे जो भी डाक्टर ने कहे हैं. मरता क्या न करता, तुरंत सारे टैस्ट करवाए और उस के बाद सिम्प्टम्स को देखते हुए टीएमटी टैस्ट, सीटी, एंजियोग्राफी, ट्रेडमिल टैस्ट किए गए. ट्रेडमिल टैस्ट में डाक्टरों को अंदेशा हुआ कि हार्ट में ब्लौकेज है, ब्लौकेज मुख्य आर्टरी में है जिस से हार्ट अटैक की पूरी संभावना है. सीटी एंजियोग्राफी में 90 फीसदी ब्लौकेज आया. जो काफी चिंताजनक था. रिपोर्ट देख कर हमारी जान ही निकल गई.

खानपान और हैल्थ का ध्यान रखने के बाद भी यह स्थिति कैसे हो गई. जो भी था, हमें स्थिति का सामना करना जरूरी था. जब इसे क्रौस चैक करने के लिए दूसरे अस्पताल में एंजियोग्राफी करवाई तो उस में 60 फीसदी ब्लौकेज आया. चूंकि ब्लौकेज हार्ट की मुख्य धमनियों में था, इसीलिए उस का उपाय करना जरूरी था. हम ने रिपोर्ट को चैक करने के लिए अन्य डाक्टरों से भी संपर्क किया. सभी ने एंजियोप्लास्टी की सलाह दी. एंजियोप्लास्टी एक ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है जिस में दिल की मांसपेशियों तक ब्लड सप्लाई करने वाली रक्त वाहिकाओं को खोला जाता है. मैडिकल भाषा में इन रक्तवाहिकाओं को कोरोनरी आर्टरीज कहते हैं. डाक्टर अकसर दिल का दौरा या स्ट्रोक जैसी समस्याओं के बाद एंजियोप्लास्टी का सहारा लेते हैं. जितने बड़े अस्पताल उतने बड़े खर्चे. एक मध्यवर्गीय परिवार को पैसा जमा करने में बहुत मुश्किलें आती हैं क्योंकि इतना पैसा घर में नहीं होता है.

यह सत्य है कि आजकल डाक्टर मरीज का गला काटने को तैयार रहते हैं. उन्हें मरीजों से कोई लेनादेना नहीं है. उन की फीस का खर्चा निकलना बहुत जरूरी है. डाक्टर ने कहा कि हमें निर्णय बहुत जल्दी लेना चाहिए क्योंकि अगर पेशेंट पैनिक हो जाता है तो हम कुछ नहीं कह सकते हैं, हार्ट अटैक आने की पूर्ण संभावना है. उस के बाद सर्जरी करना बहुत रिस्की हो जाएगा. हम ने जब डाक्टर को अपनी कंडीशन बताई कि इतनी बड़ी रकम हम एकसाथ कैसे निकालेंगे तो उन्होंने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, आप जा कर अस्पताल के कैशियर से मिल लीजिए, वह आप को आसानी से सब चीजें सम झा देगा. आप अपना निर्णय लीजिए और एडमिट हो जाएं. मैं कह दूंगा आप पैसे बाद में जमा कर सकते हैं.

कुछ रकम आप को एडमिट होने से पहले ही जमा करनी पड़ेगी, कम से कम 60,000 रुपए.’’ वे अपनी बात कहते जा रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘वैसे आप चाहें तो सरकारी अस्पताल में भी अपना इलाज करवा सकते हैं. दोनों की सामग्री में कोई फर्क नहीं रहेगा पर मैं फिर भी गारंटी लेता हूं कि प्राइवेट हौस्पिटल में हर चीज बहुत अच्छी उपयोग में ली जाती है. वैसे आप की मैडिकल पौलिसी होगी. आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, सारा पैसा वे ही जमा करते हैं.’’ हम ने उन से कहा कि हमारी कोई मैडिकल पौलिसी नहीं है तो वे मायूस हो गए. शायद कमाई का एक जरिया है क्योंकि मैडिकल पौलिसी होने के बाद अस्पताल वाले अनापशनाप बिल बनाते हैं.

जब कैशियर से बात हुई तो उन्होंने जो पैकेज बताया उसे देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि उन का पैकेज होटल के टूर ट्रैवल की तरह था. जिस तरह ट्रैवल और दूर वालों के पैकेज होते हैं उसी तरह अस्पताल में सर्जरी के पैकेज थे. मरीज अपने बजट के अनुसार तय कर सकता है कि वह किस पैकेज में अपनी सर्जरी करवाना पसंद करेगा. हालांकि सर्जरी में उपयोग होने वाली सामग्री, मरीज का भोजन, सबकुछ वही था, सिर्फ लग्जरी सुविधाएं पैकेज के अनुसार थीं. पहले 1,00,000 रुपए जमा करने पड़ेंगे, वह भी कैश या औनलाइन ट्रांजैक्शन. हम चैक नहीं लेते हैं. एंजियोग्राफी करते समय जैसी स्थिति रहेगी, तुरंत निर्णय लिया जाएगा और उसी के अनुसार एंजियोप्लास्टी और ओपन हार्ट सर्जरी दोनों के लिए हम तैयार रहेंगे. उन की बुकलेट में डिपौजिट चार्जेस, डाक्टर की फीस, औपरेशन थिएटर के चार्जेस आदि सभी का ब्योरा लिखा हुआ था.

अब यह हमें तय करना था कि हम किस प्रकार की सर्विस चाहते हैं. अस्पताल की सर्विस ठीक उसी प्रकार की थी जैसे किसी हाई क्लास होटल की होती है. आप अपने अनुसार अपना रूम तय कर सकते हैं. अलगअलग रूम का चार्ज 15000-20,000 से ले कर 25,000 तक प्रतिदिन था. उन में एक डीलक्स रूम था, जिस में आप को पेशेंट के साथ रुकने के लिए पूरी सुविधाएं मौजूद थीं. अटेंडैंट एयर कंडीशनर बैडरूम, सोफा, बैड, टैलीविजन, कपड़े, माइक्रोवेव से ले कर सबकुछ उपलब्ध था. इसी प्रकार अन्य रूम थे जिन में सुविधाएं कम थीं. कुछ स्पैशल फ्लोर पर थे. औक्सीजन पाइप वगैरह सब उपलब्ध था और बाथरूम अटैच थे. बिना बाथरूम वाले रूम का चार्ज थोड़ा कम था. उस में आप को जनरल बाथरूम का उपयोग करना था. जनरल वार्ड में आप को सिर्फ पेशेंट को रुकने की सुविधा और साथ में रहने वाले के लिए सिर्फ एक चेयर उपलब्ध थी.

उस का चार्ज 2500-3000 रुपए तक था. यह टौप 10 का अस्पताल तो नहीं था लेकिन टौप 20 के अंदर था. इस से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जो टौप के अस्पताल होंगे उन के रूम का खर्चा कितना हो सकता है. जब हम अस्पताल गए तो हमें पैकेज की लिस्ट दी गई- द्य एंजियोग्राफी 1,10,000-81,000-60,000-50,000-40,000.

-एंजियोप्लास्टी 4,95,000-4,30,000-3,40,000- 2,60,000-2,25,000-1,90,000. द्य एंजियोग्राफी एंजियोप्लास्टी 5,85,000-5,00,000-3,90,000-2,85,000-2,55,000-1,90,000. मरीजों के लिए यह आसान है कि पैकेज का चुनाव करें और अपने बजट अनुसार अपना रूम बुक करें. हम ने अपने बजट के अनुसार रूम का पैकेज लिया लेकिन एंजियोप्लास्टी के बाद जो बिल बना वह हमें पूरी तरह हिलाने के लिए पर्याप्त था. हम ने डाक्टर से पहले ही कह दिया था कि हम एंजियोप्लास्टी व सर्जरी के पक्ष में नहीं हैं. आप हमें सोचने का मौका दीजिए.

ब्लौकेज 60 फीसदी होगा तो हम एंजियोप्लास्टी नहीं चाहते हैं. एक बहुत बड़ा कारण यह था कि कुछ दिनों पहले ही हमारे एक परिचित को सीने में काफी जलन हो रही थी, जैसे एसिडिटी के समय होती है. उन्हें पास के एक अस्पताल में दिखाया गया, जहां डाक्टरों ने बड़े हौस्पिटल में जाने की सलाह दी. उन से कहा गया कि हार्टअटैक है. लेकिन परिवार से जानकारी ली तो ज्ञात हुआ कि सीने में कोई दर्द नहीं हो रहा था. हम जिस अस्पताल में गए वहां डाक्टर ने चैकअप कराया और तुरंत ही उन की एंजियोप्लास्टी की गई. उन्हें 3 दिन आईसीयू में रखा गया.

उस के बाद उन्हें 3 दिन बाहर रूम में रखा गया. हकीकत क्या थी, यह तो पता नहीं क्योंकि जब मैं ने अपने हसबैंड को दिखाया था तब डाक्टर ने कहा था कि यदि अटैक आता है तो कोई सर्जरी नहीं होती है. फिर उस की सर्जरी 2 घंटे के भीतर कैसे की गई, यह प्रश्न यक्ष प्रश्न बन कर रह गया और मेरे परिचित के करीब 10 लाख से ज्यादा रुपए अस्पताल में लगे. हमारे अस्पताल का खर्च सब मिला कर करीब 4,00,000 होना चाहिए था लेकिन बिल बनने के बाद हकीकत सामने आई तो पैरोंतले जमीन खिसक गई. 6,00,000 का बिल तैयार हुआ. जिस में मरीज को 3 दिन ही अस्पताल में रखा गया.

दवाई वगैरह सब हम ले कर आते रहे. काफी मानसिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. मैं बहुत तनाव से गुजरी हूं. यदि सर्जरी होती है तो आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो सकती है पर यदि हमारे अपने को कुछ हो जाता है तो हम सड़क पर आ जाएंगे. बिल चैक करने के लिए मैं काउंटर पर चली गई. वहां जब मैं ने अन्य लोगों को देखा तो ज्ञात हुआ जिस की मैडिकल पौलिसी होती है, उस से अनापशनाप पैसा वसूल किया जाता है. आजकल डाक्टरों के लिए सर्जरी करना पैसा उगाहने का साधन बन गया है.

मरीजों की हालत से उन्हें लेनादेना कम ही होता है. बहुत कम डाक्टर ऐसे हैं जो आज भी ईमानदारी से कार्य करते हैं. कुछ लोगों की बातें ज्ञात हुईं कि जिन की मैडिकल पौलिसी थी उन्हें सिर्फ 60,000 रुपए जमा करने थे. शेष पौलिसी वाले भर देंगे. एक मध्यवर्गीय सिर्फ कमा कर अपना पेट पाल सकता है. ऐसी पौलिसी में पैसा जमा करना, जहां से कोई रिफंड नहीं है, उस की नजर में बेवकूफी होती है. जिन की पौलिसी नहीं है वे सब से ज्यादा दिक्कतों का सामना करते हैं.

किसी तरह अंदर से अपना बिल निकलवाया, जो भी था वह हमें भरना ही था. बिल में सर्जरी के पहले की जाने वाली शरीर की शेविंग किट, डिस्टिल वाटर से ले कर मरीज को उपयोग में दिए जाने वाले सामान दवाइयां, एडमिशन चार्ज, टोटल दिन, सर्जन चार्जेस, असिस्टैंट चार्ज, मास्क, ग्लब्स, डाक्टर गाउन, कूल गाउन, सरचार्जेस, सर्जरी में उपयोग होने वाली सभी सामग्रियों, दवाइयां, एनएसथीसिया चार्ज, औपरेशन थिएटर चार्ज, डा. विजिटिंग चार्जेस, जूनियर डा. विजिटिंग चार्ज, ब्लड टैस्ट किट, आई वी किट, वनप्लस टैस्ट किट, डिस्पोजेबल सिरिंज, स्टेराइल वाटर, रामसन कनैक्टर, औक्सीजन जैसे अनगिनत चार्ज जोड़े गए. उन में से कई सामग्रियों का उपयोग सिर्फ पहले दिन ही हुआ था.

औक्सीजन व अन्य कई सर्जिकल चीजों व दवाइयों की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मरीज को 3 दिन तक बनाए रखा, इसीलिए सभी चीजों के चार्ज तीनगुणा कर जोड़ दिए. इसे देख कर मैं बहुत आश्चर्य में पड़ गई. हम ने पैसा जमा किया और उस के बाद तोबा कर ली कि आगे से ऐसे अस्पतालों में जाने से बचें. सर्जरी के बाद हमें जो भी प्रिसक्रिप्शन मिलता था, हमें अस्पताल के ही मैडिकल शौप से दवाई लेनी पड़ती थी. तब यह नहीं बताया गया था कि इस के भी चार्जेस लगेंगे. मैडिकल शौप वाले हम से उस समय पैसे नहीं लेते थे, सिर्फ हमें दवा व रूम नंबर का बिल देते थे.

बाद में ये सारे बिल डिस्चार्ज के समय जोड़े गए. जो दवा सामग्री उपयोग में नहीं आई, उसे भी अस्पताल वालों ने रख लिया. पेशेंट के साथ जो भी रुकता है उन की मानसिक हालत ऐसी नहीं होती है कि वे इन छोटीछोटी चीजों पर ध्यान दें. कमोबेश जिस का फायदा अस्पताल वाले उठाते हैं. शेविंग करने व?ाला भी इसी तरह पैसे कमाता है कि एक ही ब्लेड यूज करे और उस के बाद अस्पताल वालों से कह कर ज्यादा चार्जेस लगाए कि उस ने तो 5-5 ब्लेड रोज यूज किए हैं.

इतना लंबा आदमी है, कितने बाल है, कितना सामान लग गया. हालांकि हकीकत कुछ और थी. जब अस्पताल वाले इतना लूटते हैं तो ये छोटे लोग उस में से अगर लेते हैं तो इस में उन की कोई गलती नहीं है. अस्पताल के अपने नियमकायदे होते हैं. कोई कुछ नहीं कर सकता. खैर, किसी तरह तो हम ने बिल जमा कर दिया. एक बीमारी पूरे घर को हिला देती है. अस्पताल और डाक्टर कसाई बन कर मरीज का गला काटने के लिए तैयार बैठे हैं. यदि किसी के पास पैसा नहीं हो तो वह तो अपनी जिंदगी को ही दांव पर लगा देगा? यह दुखद बात है कि इंसानियत आज खत्म हो गई है.

ऐसे में यदि इंसान परेशान हो कर जाए तो कहां जाए. जब मैं बीमार हूं और मु झे समस्या हुई तब मैं सरकारी अस्पताल में गई. लेकिन सरकारी अस्पतालों के भी यही हाल हैं. मेरे सारे टैस्ट किए गए क्योंकि मु झे बुखार आ रहा था तो उन्होंने तुरंत इंजैक्शन दे दिए. एंटीबायोटिक, टैस्ट, हृदय में तकलीफ हो रही थी तो एंजियोग्राफी भी कर दी. उस एंजियोग्राफी की डाई से इतनी ज्यादा तकलीफ हुई कि मेरी हालत ही बिगड़ गई. आखिर मशीनों में इतनी गड़बड़ी क्यों होती है, लोग इतना अंदाजा क्यों नहीं लगाते हैं? जब मेरा ट्रेडमिल टैस्ट हुआ, मैं अच्छे से चल रही थी.

उस के बाद जो डाक्टरों ने कहा कि नहीं, कुछ समस्या है, एंजियोग्राफी करनी ही पड़ेगी तो उस से हालत इतनी खराब हो गई कि मैं बेसुध हो गई. मेरे कई बार बोलने पर कि मु झे ज्यादा पावर की दवाइयां सूट नहीं होती हैं, इस के बावजूद वे मु झे इंजैक्ट के द्वारा दी गईं. उन्होंने सारे एक्सपैरिमैंट मु झ पर कर लिए. उन का कहना था कि कितनी बीमारियां होती हैं. सब चीज का टैस्ट नहीं होता है. आखिर किसी न किसी की दवा से तो फर्क पड़ जाएगा. हम ने जो मानसिक और शारीरिक कष्ट झेला वह इतना आसान नहीं था और उस से उबरने के लिए काफी लंबा वक्त लगा और जो मैडिसिन के साइड इफैक्ट होते हैं वे लंबे समय तक शरीर को कष्ट देते हैं.

क्या इस तरह इलाज किया जाता है? आखिर हम किस पर भरोसा करें? संवेदना शून्य हो गई है. आजकल तो छोटीछोटी सी बीमारियों में टैस्ट किए जाते हैं तो बड़ी बीमारी में परिवार की आर्थिक और मानसिक दोनों स्थितियां खराब हो जाती हैं. बड़ेबड़े शहरों में अस्पतालों में डाक्टर इस तरह का व्यवहार करते हैं. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर मरीज कैसे भरोसा करे, किस पर भरोसा करे? बेहतर है अपने हृदय को संभालें, अपने खानपान पर ध्यान दें और गला काटने वाले सिस्टम से बचें. द्य इलाज कराते समय मरीज क्या ध्यान रखें निजी अस्पतालों में अकसर इलाज के नाम पर लूट की खबरें देखने को मिल जाती हैं.

कई बार तो पेशेंट का परिवार टैस्ट के नाम पर, गैरजरूरी हौस्पिटल स्टे के नाम पर लुट रहा होता है और उसे इस बारे में पता भी होता है, फिर भी वह कुछ नहीं कर पाता. ऐसे में सवाल उठता है कि जब ऐसी सिचुएशन आए तो क्या करना चाहिए? बीबीसी में छपी रिपोर्ट में कंज्यूमर राइट एक्टिविस्ट और लेखिका पुष्पा गिरिमाजी के मुताबिक, स्वास्थ्य सेवा के उपभोक्ता होने के नाते हम देश के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) कानून के तहत अपने अधिकार की लड़ाई लड़ सकते हैं. हालांकि हमारे देश में पेशेंट राइट नाम का कोई कानून नहीं है, फिर भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भी हमारे अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए काफी है.’ मरीज के परिजन के पास दूसरा सब से बड़ा हथियार होता है सूचना का अधिकार.

हालांकि यह कानून भाजपा सरकार में कमजोर हुआ है उस के बावजूद इस कानून के तहत सब से पहले हमें डाक्टर और अस्पताल से यह जानने का अधिकार होता है कि मरीज पर किस तरह का उपचार चल रहा है, अस्पताल की जांच में क्या निकल कर सामने आया है, हर टैस्ट की क्या कीमत है, मरीज को जो दवाइयां दी जा रही हैं उन का असर कब और कितना हो रहा है. अगर मरीज ये सब पूछने की स्थिति में नहीं है तो अस्पताल में साथ रह रहे परिजन इस की जानकारी अस्पताल प्रशासन से मांग सकते हैं और इस जानकारी को हासिल करना सब का अधिकार है. इतना ही नहीं, इस से डाक्टर की योग्यता और डिग्रियों के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है.

यह जानकारी अस्पताल प्रशासन से भी मांगी जा सकती है. क्लिनिकल इस्टैब्लिशमैंट एक्ट 2010 के तहत हर अस्पताल, क्लिनिक या फिर नर्सिंग होम को रजिस्टर करना अनिवार्य होता है. साथ ही, एक गाइडलाइन के तहत हर बीमारी के इलाज और टैस्ट की प्रक्रिया निर्धारित है. ऐसा न करने पर इस एक्ट में जुर्माने का प्रावधान भी है. हालांकि, पुष्पा गिरिमाजी के मुताबिक, सभी राज्यों ने अभी तक इसे लागू नहीं किया है. इस में अस्पताल और क्लिनिक संस्थाओं का सरकार पर दबाव सम झा जा सकता है.

अकसर देखा जाता है कि अस्पताल या क्लिनिक पेशेंट पर दबाव डालते हैं कि वे दवाइयां उन की बताई जगह से ही खरीदें. ऐसा कर वे अपना मुनाफा बनाते हैं. एमआरटीपी एक्ट 1969 के कई प्रावधानों के तहत कोई भी अस्पताल ‘वहीं’ से दवाई खरीदने का दबाव पेशेंट पर नहीं बना सकता. प्रोफैशनल कंडक्ट एंड एथिक्स एक्ट 2002 कहता है, इमरजैंसी में पेशेंट को इलाज की जरूरत है तो कोई डाक्टर इस के लिए मना नहीं कर सकता जब तक वह फर्स्ट एड दे कर मरीज की स्थिति खतरे से बाहर न कर ले.

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