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नेतागिरी के नशे में अपहरण : क्या सफल हो पाया यह कुचक्र

40  वर्षीय दीपकमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र के देवरिया खास (नगर) मोहल्ले का रहने वाला था. देवरिया खास में उस की अपनी आलीशान कोठी है. फिर भी वह भटनी में किराए का कमरा ले कर अकेला रहता था. उस के परिवार में बड़ी बहन डा. शालिनी शुक्ला के अलावा कोई नहीं है. दीपक ने शादी नहीं की थी.

सालों पहले दीपक के पिता मंगलेश्वरमणि त्रिपाठी का उस समय रहस्यमय तरीके से कत्ल कर दिया गया था, जब वह घर में अकेले सो रहे थे. अपनी जांच के बाद पुलिस ने दीपक को पिता की हत्या का आरोपी बनाया था. पिता की हत्या के आरोप में वह कई साल तक जेल में रहा. इन दिनों वह जमानत पर जेल से बाहर था. कहा जाता है कि दीपक को दांवपेंच खेल कर एक गहरी साजिश के तहत पिता की हत्या के आरोप फंसाया गया था.

शादीशुदा डा. शालिनी की ससुराल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में है. वह अपनी ससुराल में परिवार के साथ रहती हैं. उन्हें दीपक की चिंता रहती है. वैसे भी बहन के अलावा दीपक का कोई और सहारा नहीं था. इसलिए कोई भी बात होती थी तो वह बहन और बहनोई को बता देता था.

20 मार्च, 2018 को मुकदमे की तारीख थी. दीपक को तारीख पर पेश होना था. उधर उस की एमएसटी टिकट की तारीख भी बढ़वानी थी. उस ने सोचा एमएसटी की डेट बढ़वा कर कचहरी चला जाएगा. इसलिए सुबह उठ कर वह सभी कामों से फारिग हो कर करीब 10 बजे एमएसटी की तारीख बढ़वाने भटनी स्टेशन चला गया.

एमएसटी बनवा कर दीपक वहीं से सलेमपुर कचहरी पहुंच गया. भटनी से सलेमपुर कुल 20-22 किलोमीटर दूर है. सलेमपुर पहुंचने में उसे कुल आधे घंटे का समय लगा होगा. सलेमपुर जाते समय उस ने बहन शालिनी को फोन कर के बता दिया था कि वह मुकदमे की तारीख पर पेश होने सलेमपुर जा रहा है. कचहरी से लौटने के बाद मुकदमे की स्थिति बताएगा.

धीरेधीरे शाम ढलने को आ गई. शालिनी भाई के फोन का इंतजार कर रही थी. जब उस का फोन नहीं आया तो उन्होंने खुद ही भाई के नंबर पर काल की. लेकिन दीपक का मोबाइल स्विच्ड औफ था.

शालिनी ने 3-4 बार दीपक के फोन पर काल की. हर बार उन्हें एक ही जवाब मिल रहा था, ‘उपभोक्ता के जिस नंबर पर आप काल कर रहे हैं वो अभी बंद है.’ शालिनी ने सोचा कि हो सकता है, दीपक के फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई हो इसलिए फोन बंद है. रात में फिर से फोन कर के बात कर लेंगी.

रात में 10 साढ़े 10 बजे के करीब शालिनी ने फिर दीपक के मोबाइल पर काल की. लेकिन तब भी उस का फोन स्विच्ड औफ था. यह बात शालिनी को कुछ अटपटी सी लगी, क्योंकि दीपक अपना फोन इतनी देर तक कभी बंद नहीं रखता था. उस ने यह बात जब अपने पति को बताई तो वह भी चौंके. दीपक को ले कर किसी अनहोनी की आशंका से दोनों चिंता में पड़ गए.

रात काफी गहरा चुकी थी. शालिनी ने सोचा कि इतनी रात में किसी से बात करने से कोई फायदा नहीं होगा. अगले दिन ही कुछ हो सकता था. अगले दिन सुबह होते ही शालिनी ने अपने नातेरिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपक के बारे में पता किया, लेकिन दीपक का कहीं कुछ पता नहीं चला.

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वैसे भी वह किसी नातेरिश्तेदार के यहां जाना पसंद नहीं करता था, सिवाय शालिनी को छोड़ कर. शालिनी की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि दीपक गया तो गया कहां? कहीं उस के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं घट गई, यह सोच कर शालिनी परेशान हो रही थीं.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया लेकिन दीपक का कहीं कोई पता नहीं चला. अपने स्तर पर शालिनी ने भाई का हर जगह पता लगा लिया था, उन्हें हर जगह से निराशा ही मिली थी.

दीपक करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस था. सालों से बदमाश उसे जान से मारने की धमकी दे रहे थे. इसीलिए वह गांव की कोठी छोड़ कर भटनी कस्बे में किराए का कमरा ले कर रहता था ताकि चैन और सुकून से जी सके. लेकिन बदमाशों ने यहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था.

यह बात डाक्टर शालिनी शुक्ला भी जानती थीं, इसीलिए वह भाई के लिए फिक्रमंद थीं. शहर के कुछ नामचीन बदमाश और भूमाफिया उस की करोड़ों की संपत्ति को हथियाने की कोशिश में लगे हुए थे.

10 दिन बीत जाने के बाद भी जब दीपक का कहीं कोई पता नहीं चला तो डाक्टर शालिनी सक्रिय हुईं. शालिनी ने 10 अप्रैल, 2018 को बिलासपुर से ही भाई के अपहरण की शिकायत पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रजिस्टर्ड डाक व ईमेल के माध्यम से भेज दीं. दीपक की गुमशुदगी की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में खलबली मच गई.

दीपक करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस था. उसे गायब हुए करीब 20 दिन बीत चुके थे. उस के गायब होने के बारे में पुलिस को भनक तक नहीं लगी थी. डा. शालिनी शुक्ला की शिकायत पर सदर कोतवाली में भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

खैर, एक सप्ताह बाद भी कोई काररवाई न होने पर 17 अप्रैल, 2018 को उन्होंने फिर शिकायत की. 17 अप्रैल को ही पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय को एक चौंका देने वाली सूचना मिली. सूचना यह थी कि नियमों को दरकिनार कर के गायब हुए व्यक्ति से एक ही दिन में कई बैनामे कराए गए थे.

इस में 2 बैनामे जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव उर्फ बबलू के नाम से, तीसरा उस की मां मेवाती देवी, चौथा भाई अमित कुमार यादव और 5वीं रजिस्ट्री मधु देवी पत्नी ब्रह्मानंद चौहान निवासी खोराराम के नाम से हुई थी.

बैनामे के साथ ही बड़े पैमाने पर स्टांप की भी चोरी हुई थी. पुलिस अधीक्षक रोहन सकते में आ गए और उन्होंने तत्काल पूरे मामले से जिलाधिकारी को अवगत करा दिया. बैनामा किसी और के द्वारा नहीं बल्कि कई दिनों से लापता दीपकमणि त्रिपाठी के द्वारा कराया गया था.

इस का मतलब था कि दीपकमणि त्रिपाठी जिंदा था और बदमाशों के कब्जे में था. बदमाशों ने दीपक को कहां छिपा रखा था, ये कोई नहीं जानता था. एसपी रोहन ने दीपक को बदमाशों के चंगुल के सहीसलामत छुड़ाने के लिए कमर कस ली. उन्होंने सीओ सदर सीताराम के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया.

इस टीम में सीओ सदर के अलावा सदर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक प्रभतेश श्रीवास्तव, प्रभारी स्वाट टीम सीआईयू सर्विलांस अनिल यादव, स्वाट टीम के कांस्टेबल घनश्याम सिंह, अरुण खरवार, धनंजय श्रीवास्तव, प्रशांत शर्मा, मेराज खान, सर्विलांस सेल के राहुल सिंह, विमलेश, प्रद्युम्न जायसवाल, कांस्टेबल सूबेदार विश्वकर्मा, रमेश सिंह और सौरभ त्रिपाठी शामिल थे.

उधर डा. शालिनी ने तीसरी बार 23 अप्रैल को मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत की. उन्हें पता चला था कि मुख्यमंत्री के वाट्सऐप नंबर पर शिकायत करने के 3-4 घंटे के भीतर काररवाई हो जाती है.

उन की यह सोच सही साबित हुई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक शिकायत पहुंचने के बाद जिले की पुलिस सक्रिय हो गई और एसपी रोहन पी. कनय मामले में विशेष रुचि लेने लगे.

इधर बदमाशों की सुरागरसी में सीओ सदर सीताराम ने मुखबिर लगा दिए थे. इस बीच पुलिस को जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव और उस के भाई अमित यादव का मोबाइल नंबर मिल गया था. दोनों नंबरों को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया.

आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 2 मई, 2018 को पुलिस को पता चल गया कि बदमाशों ने अपहृत दीपकमणि त्रिपाठी को देवरिया शहर के निकट अमेठी मंदिर, स्थित पूर्व सांसद व सपा के राष्ट्रीय महासचिव रमाशंकर विद्यार्थी के कटरे में रखा था.

सूचना पक्की थी. सीओ सदर सीताराम ने कुछ चुनिंदा पुलिसकर्मियों की टीम बनाई और इस मिशन को गोपनीय रखा ताकि मिशन कामयाब रहे. वे बदमाशों को किसी भी तरह  भागने का मौका नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने पूरी तैयारी के साथ सपा नेता रमाशंकर विद्यार्थी के अमेठी आवास स्थित कटरे पर दबिश दी.

पुलिस टीम ने कटरे को चारों ओर से घेर लिया. उसी कटरे के एक कमरे में बदमाशों ने दीपकमणि त्रिपाठी को हाथपैर बांध कर रख रखा था. उस वक्त वह अर्द्धविक्षिप्तावस्था में था. बदमाशों ने उसे काबू में रखने के लिए नशे का इंजेक्शन लगा रखा था.

पुलिस ने दीपकमणि त्रिपाठी को बदमाशों के चंगुल से सकुशल मुक्त करा लिया. पुलिस ने दबिश के दौरान मौके से 4 बदमाशों को गिरफ्तार किया. पूछताछ में चारों बदमाशों ने अपना नाम अमित यादव, धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद बताए.

पुलिस चारों बदमाशों और उन के कब्जे से मुक्त कराए गए दीपकमणि त्रिपाठी को ले कर सदर कोतवाली लौट आई. सूचना  पा कर पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय बदमाशों से पूछताछ करने कोतवाली पहुंच गए. इस पूछताछ में पता चला कि दीपक अपहरणकांड का मास्टरमाइंड कोई और नहीं, जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव था.

दीपक का अपहरण 10 करोड़ की जमीन का बैनामा कराने के लिए किया गया था. बदमाशों ने शहर में स्थित दीपकमणि की 40 करोड़ से अधिक की बची हुई जमीन का बैनामा बाद में कराने की योजना बनाई थी. लेकिन पुलिस ने उन की योजना पर पानी फेर दिया.

बदमाशों से पूछताछ में पता चला कि अमित यादव इस मामले के मास्टरमाइंड रामप्रवेश का सगा भाई था. धर्मेंद्र गौड़ जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश का वाहन चालक था. मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद रामप्रवेश यादव के गांव के रहने वाले थे और उस के सहयोगियों में से थे. खैर, बदमाशों के पकड़े जाते ही जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव भूमिगत हो गया.

दीपकमणि त्रिपाठी को सकुशल बरामद करने के बाद एसपी रोहन पी. कनय ने पुलिस लाइंस में एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया. उन्होंने पत्रकारों के सामने दीपक को पेश किया. दीपक ने अपहरण की पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी कि उस के साथ क्याक्या हुआ था?

बाद में पुलिस ने चारों अभियुक्तों अमित यादव, धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. अभियुक्तों के बयान के आधार पर पुलिस ने इस केस में धारा 365 के साथ धारा 467, 471, 472 व 120 बी भी जोड़ दीं. भगोड़े नेता रामप्रवेश यादव पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया.

पुलिस ने दीपक अपहरणकांड की जांच आगे बढ़ाई तो कई और चौंकाने वाले तथ्य खुल कर सामने आए. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि दीपकमणि से जमीन का बैनामा करवाने में आरोपी रामप्रवेश यादव का साथ रजिस्ट्री विभाग के फूलचंद यादव निवासी अब्दोपुर, थाना चिरैयाकोट, जनपद मऊ (उप निबंधन अधिकारी), रामशरन सिंह निवासी अंसारी रोड, थाना कोतवाली, देवरिया (वरिष्ठ सहायक निबंधन अधिकारी) ने भी दिया था.

इन के अलावा बैनामा कराने में शोभनाथ राव निवासी राघवनगर, चंदेल भवन, थाना कोतवाली, देवरिया (वरिष्ठ सहायक निबंधन अधिकारी), शोएब चिश्ती निवासी करैली, थाना करैली, इलाहाबाद (कंप्यूटर आपरेटर), कौशलकिशोर निवासी रामगुलाम टोला, थाना कोतवाली, देवरिया और विनोद तिवारी उर्फ मंटू तिवारी निवासी विशुनपुर, थाना भटनी, देवरिया ने भी पूरा सहयोग दिया था.

पुलिस ने रजिस्ट्री विभाग के उक्त 6 कर्मियों को भी कानून के शिकंजे में जकड़ लिया. 5 मई, 2018 को इन 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. अब तक कुल 10 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. लेकिन रामप्रवेश का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. इस बीच पुलिस ने उस पर ईनाम बढ़ा कर 25 हजार कर दिया था. पुलिस रामप्रवेश यादव की तलाश में दिनरात एक किए हुए थी.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई, उसे रामप्रवेश के मोबाइल नंबर की लोकेशन मिल गई. सर्विलांस के जरिए पता चला कि वह नेपाल में था.

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इधर यादव की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भारी दबाव बनने लगा था. शासन के आदेश के बाद आईजी जोन निलाब्जा चौधरी ने रामप्रवेश यादव का ईनाम बढ़ा कर 50 हजार रुपए कर दिया.

ईनाम बढ़ने के साथसाथ पुलिस की जिम्मेदारी भी बढ़ गई थी. जब से पुलिस को रामप्रवेश के नेपाल में छिपे होने की बात पता चली थी, पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए बेचैन थी. चूंकि मामला दूसरे देश से जुड़ा था, इसलिए उसे नेपाल में गिरफ्तार करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था.

पुलिस ने भारतनेपाल के सोनौली बौर्डर पर अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. ऐसा इसलिए कि रामप्रवेश यादव जैसे ही नेपाल से निकल कर भारत की सीमा सोनौली में प्रवेश करे, मुखबिर सूचित कर दें.

आखिरकार 25 मई, 2018 को पुलिस को बड़ी सफलता मिल ही गई. मुखबिर की सूचना पर रामप्रवेश यादव को देवरिया पुलिस ने भारतनेपाल बौर्डर के सोनौली से गिरफ्तार कर लिया. वहां से उसे कोतवाली सदर थाना लाया गया.

पूछताछ में रामप्रवेश ने खुद को बचाते हुए पैतरा चला. उस ने पुलिस के सामने कबूल किया कि दीपकमणि त्रिपाठी से उस के वर्षों से घरेलू संबंध रहे हैं. दीपक का उस के घर खानेपीने से ले कर परेशानी के समय दवा तक का इंतजाम होता था. उस पर अपहरण का आरोप लगाया जाना विपक्षियों की चाल है. उसे किसी ने फंसाने के लिए जानबूझ कर जाल बिछाया है.

लेकिन पुलिस के सामने उस की दाल नहीं गली, उसे झुकना ही पड़ा. रामप्रवेश ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि दीपकमणि त्रिपाठी अपहरण कांड के पीछे असल हाथ उसी का था. उसी ने लालच में उस के अपहरण की पटकथा लिखी थी.

रामप्रवेश यादव के इकबालिया बयान के बाद पुलिस ने उसे अदालत के सामने पेश किया. अदालत ने रामप्रवेश यादव को न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया. उसे हिरासत में ले कर देवरिया जेल भेज दिया गया. आरोपियों से की गई गहन पूछताछ और अपहृत दीपकमणि त्रिपाठी के बयान से अपहरण की पूरी कहानी सामने आ गई—

यूं तो दीपकमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के देवरिया खास का रहने वाला था. उस के पास पैसे की खूब रेलमपेल थी, लेकिन वह अकेला था. शहर की अलगअलग जगहों पर उस की 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति थी. इस के साथ ही गांव में भी उस की काफी जमीन थी.

पिता की हत्या के बाद वह सारी जायदाद का एकलौता वारिस था. कुछ लोगों ने दीपक से शहर के सीसी रोड और चीनी मिल के पीछे की जमीन वर्षों पहले खरीद ली थी. इस के बाद भी शहर के राघव नगर, सीसी रोड, परशुराम चौराहा, देवरिया खास, सुगर मिल के पास उस की करोड़ों की संपत्ति थी. इस के साथ ही गांव रघवापुर, लिलमोहना समेत कई जगहों पर उस की जमीनें थीं.

पिता मंगलेश्वरमणि त्रिपाठी की हत्या के बाद से दीपक अकेला रह रहा था. उस की एकमात्र बहन डाक्टर शालिनी शुक्ला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहती थी. वह बराबर फोन कर के भाई का हालचाल लेती रहती थी. वह जानती थी कि इस जमाने में सीधेसादे लोगों का जीना आसान नहीं है, वह तो वैसे भी करोडों की संपत्ति का मालिक था. यह करोड़ों की संपत्ति ही दीपक की जान के लिए आफत बनी हुई थी.

उस की संपत्ति को ले कर कुछ लोग पहले ही दीपक पर जानलेवा हमला कर चुके थे. इसलिए वह शहर को छोड़ कर भटनी कस्बे में किराए पर कमरा ले कर रहता था. वहीं से वह पिता की हत्या के मुकदमे की पैरवी करता था. उस की संपत्ति पर 2011 से रामप्रवेश यादव की भी नजर गड़ी हुई थी.

40 वर्षीय रामप्रवेश यादव देवरिया जिले के रजला गांव का रहने वाला था. 2 भाइयों में वह बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम अमित यादव था. रामप्रवेश शादीशुदा था. रजला गांव में उस की बडे़ रसूख वालों में गिनती होती थी. रामप्रवेश का ईंट भट्ठे की व्यवसाय था.

भट्ठे की कमाई से पैसा आया तो वह राजनीति की गलियों में पहुंच कर बड़ा नेता बनने का ख्वाब देखने लगा. रामप्रवेश यादव ने गंवई राजनीति से अपनी राजनीतिक पारी खेलनी शुरू की. एक नेता के जरिए उस ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली.

समाजवादी पार्टी की राजनीति करने के साथ ही वह जिला पंचायत सदस्य के लिए चुनाव में कूद पड़ा और जिला पंचायत सदस्य की कुर्सी हासिल कर ली. जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद उस के सपा मुखिया अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव से अच्छे संबंध बन गए.

अखिलेश यादव से संबंधों के चलते उसे पार्टी की ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में टिकट मिल गया. इस में वह जीता और जिला पंचायत अध्यक्ष बन गया.

जिला पंचायत अध्यक्ष बनते ही रामप्रवेश यादव की गिनती बड़े नेताआें में होने लगी. पार्टी के बडे़बड़े नेताओं के बीच उठतेबैठते उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. कुछ ही दिनों में आगे का सफर तय करते हुए उस ने लोगों के बीच अपनी अच्छी छवि बना ली.

सपा पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद 2011 से ही रामप्रवेश की निगाह दीपकमणि त्रिपाठी की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थी. उसे हथियाने के लिए वह साम दाम दंड भेद सभी तरीके अपनाने के लिए तैयार था, लेकिन दीपक तक उस की पकड़ नहीं बन पा रही थी. दीपक को अपने चंगुल में फांसने के लिए उस ने अपने खास सिपहसालार ब्रह्मानंद चौहान को उस के पीछे लगा दिया.

ब्रह्मानंद चौहान के जरिए दीपक को वह अपने नजदीक लाने में कामयाब रहा. रामप्रवेश यादव जानता था कि दीपक अकेला है. उस के आगेपीछे कोई नहीं है. वह जैसा चाहेगा, उसे अपनी धारा में मोड़ लेगा. सीधासादा दीपक रामप्रवेश के मन क्या चल रहा है, नहीं समझ पाया और उस की राजनीतिक यारी का कायल हो कर रह गया.

दीपक की एक बड़ी संपत्ति कुछ दबंगों के हाथों में चली गई थी, जहां वह कुछ नहीं कर पा रहा था. यह बात रामप्रवेश को पता थी. वह इसी बात का फायदा उठा कर दीपक के दिल में जगह बनाना चाहता था और उस ने ऐसा ही किया भी.

दीपक की जमीन से कब्जा हटवा कर रामप्रवेश ने उस के दिल में जगह बना ली. रामप्रवेश यादव दीपक से इस एहसान का बदला उस की बेनामी संपत्तियों को अपने नाम बैनामा करवा कर लेना चाहता था. उस ने अपनी मंशा दीपक के सामने रख भी दी थी कि वह कुछ संपत्ति का उस के नाम बैनामा कर दे. फिर उस की ओर आंख उठा कर देखने की किसी की हिम्मत नहीं होगी.

यह रामप्रवेश के तरकश का पहला तीर था. उस का तर्क था कि एक बार दीपक थोड़ी सी जमीन उस के नाम बैनामा कर दे तो बाकी संपत्ति को वह धीरेधीरे हथिया लेगा. इसलिए वह दीपक का खास ख्याल रखता था. इसी गरज से उस ने दीपक को अपने यहां पनाह दी थी. उस का खूब सेवासत्कार किया था.

देखने में दीपक भले ही सीधासादा था, पर कम चालाक नहीं था. वह रामप्रवेश की मंशा भांप गया था. एक दिन बातोंबातों में रामप्रवेश ने उस के सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपनी कुछ जमीन का बैनामा उस के नाम कर दे, बदले में वह उस की देखभाल करता रहेगा. लेकिन दीपक इस के लिए तैयार नहीं हुआ.

उसे लगा कि रामप्रवेश ताकतवर राजनेता है. वो उस की जमीन का बैनामा करा लेगा. उस के बाद से दीपक ने रामप्रवेश का साथ छोड़ दिया. यही नहीं अपनी जानमाल की सुरक्षा के दृष्टिकोण से उस ने देवरिया की धरती ही छोड़ दी और भटनी में जा कर किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

रामप्रवेश यादव की मंशा पर दीपक ने पानी फेर दिया था. उसे यह बात गंवारा नहीं थी कि कमजोर सा दिखने वाला दीपक उसे हरा दे. उस के इनकार कर देने से रामप्रवेश यादव तिलमिला कर रह गया. लेकिन वह बैकफुट पर जाने के लिए तैयार नहीं था.

जब उस ने देखा कि अब सीधी अंगुली से घी नहीं निकलने वाला तो उस ने अंगुली टेढ़ी कर दी. रामप्रवेश ने दीपक का अपहरण करने और जबरन बैनामा करने की योजना बनाई.

इस योजना में उस ने अपने छोटे भाई अमित यादव सहित ड्राइवर धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद चौहान को शामिल कर लिया. रामप्रवेश यादव को सुरक्षा में एक सरकारी गनर मिला हुआ था. अपहरण की योजना को अंजाम देने से 2 दिन पहले उस ने गनर को यह कह कर वापस भेज दिया था कि अभी उसे उस की जरूरत नहीं है. आवश्यकता पड़ने पर वह खुद ही उसे वापस बुला लेगा.

इस की जानकारी उस ने कप्तान रोहन पी. कनय को दे दी थी ताकि कोई बात हो तो वह खुद को सुरक्षित बचा सके. ऐसा उस ने इसलिए किया था, ताकि उस की योजना विफल न हो जाए. गनर के साथ रहते हुए वह योजना को अंजाम नहीं दे सकता था.

दीपक के क्रियाकलापों से रामप्रवेश यादव वाकिफ था. 20 मार्च, 2018 को मुकदमे की तारीख थी. मुकदमे की पेशी के लिए दीपक भटनी से सलेमपुर कोर्ट पहुंचा. रामप्रवेश को ये बात पता थी. उस ने दीपक का अपहरण करने के लिए अमित, धर्मेंद्र, मुन्ना और ब्रह्मानंद को उस के पीछे लगा दिया.

कोर्ट जाते समय इन चारों को मौका नहीं मिला, लेकिन शाम ढलने के बाद अदालत से घर लौटते समय इन लोगों ने दीपक को सलेमपुर चौराहे पर हथियारों के बल पर घेर लिया और कार में बैठा कर फरार हो गए.

40 दिनों तक जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव दीपकमणि त्रिपाठी को शहर के विभिन्न स्थानों पर रखे रहा. इस दौरान बदमाश उसे नशीला इंजेक्शन लगा कर काबू में करते रहे, उसे शारीरिक यातनाएं देते रहे. साथ ही दबाव बनाने के लिए उसे मारतेपीटते भी रहे.

उस से कहा गया कि अगर वह शहर की 50 करोड़ की संपत्ति नेताजी के नाम पर बैनामा कर दे तो उसे जिंदा छोड़ दिया जाएगा. नहीं तो ऐसे ही यातना दी जाएगी. दीपक अपनी बात पर अडिग रहा कि उसे चाहे जो सजा दे दो, लेकिन वह संपत्ति का बैनामा नहीं करेगा.

जमीन का बैनामा कराने से पहले ही रामप्रवेश ने दीपक के ओरियंटल बैंक के खाते में साढ़े 4 लाख रुपए का आरटीजीएस भी किया था. बाद में 17 अप्रैल को जमीन का बैनामा कराने के बाद उस ने उस रुपए को निकालने के लिए दीपक से उस के चेक पर हस्ताक्षर करा कर बैंक भिजवाया. लेकिन दीपक ने खाता खोलने के दिन से ही शाखा प्रबंधक से कह दिया था कि कभी भी बिना उस की जानकारी के कोई बड़ी रकम उस के खाते से नहीं निकाली जानी चाहिए.

इसलिए वह उस के खाते से रुपए नहीं निकल पाया. ये मात्र साढ़े 4 लाख रुपए जिला पंचायत अध्यक्ष ने जमीन के लिए दिए थे और फिर दिए गए रुपए को वह साजिश रच कर वापस पाना चाहता था. लेकिन उस का इरादा कामयाब नहीं हुआ. पुलिस ने रामप्रवेश के कब्जे से वह चैक भी बरामद कर लिया.

रामप्रवेश यादव ने आस्तीन का सांप बन कर दीपक को डंसा. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रामप्रवेश उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करेगा. नेताजी के कुकृत्यों में साथ दे कर रजिस्ट्री विभाग के कर्मचारियों ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली और नाहक जेल की हवा खानी पड़ी.

नेता रामप्रवेश यादव कभी डीएम और एसपी की कुर्सी के बीच बैठ कर शेखी बघारता था. लेकिन जब पुलिस ने उसे हथकड़ी पहनाई तो उस की सारी हेकड़ी धरी रह गई. कथा लिखे जाने तक सभी 11 आरोपी जेल में बंद थे. बुरी तरह डरा हुआ दीपक कुछ दिनों के लिए अपनी बहन शालिनी के पास छत्तीसगढ़ चला गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मानव तस्करी : हैवानियत की हद

गुजरात के खूबसूरत शहर सूरत की कई मायनों में अपनी अलग पहचान है. हीरा नगरी के नाम से जाने वाले इस शहर में व्यापक स्तर पर हीरे तराशने का काम होता है. इस के अलावा सूरत की साडि़यां भी पूरे देश में मशहूर हैं.

उस दिन सूरत शहर के थाना पांडेसरा क्षेत्र में जीयाव-बुडि़या रोड पर साईंमोहन सोसायटी के पास कुछ बच्चे मैदान में क्रिकेट खेलने गए थे. इन में कुछ बच्चे जमीन में विकेट गाड़ रहे थे तो कुछ बौलिंग और कुछ फील्डिंग की प्रैक्टिस कर रहे थे. तभी उन की बौल मैदान के पास झाडि़यों की तरफ चली गई. 2-3 बच्चे बौल लेने के लिए झाडि़यों की ओर गए तो वहां उन्हें एक लड़की पड़ी दिखाई दी.

लड़की को इस तरह पड़ा देख बच्चे डर गए और अपने साथियों के पास लौट आए. उन्होंने अपने साथियों को झाडि़यों के पास एक लड़की के पड़े होने की बात बताई. इस के बाद 8-10 बच्चे झाडि़यों के पास पहुंचे तो वहां का नजारा देख सन्न रह गए. वहां एक लड़की की लाश पड़ी हुई थी.

यह देख बच्चे अपनी बौल ढूंढना और क्रिकेट खेलना भूल कर दौड़ते हुए साईंमोहन सोसायटी की तरफ आ गए. उन्होंने लोगों को मैदान के पास झाडि़यों में एक लड़की की लाश पड़ी होने की जानकारी दी. बच्चों के बताने पर कई लोग झाडि़यों के पास गए तो वहां सचमुच लाश पड़ी हुई थी. लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में पांडेसरा थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई, पुलिस ने मौकामुआयना किया. लाश को उलटपुलट कर देखा. लाश करीब 10-11 साल की लड़की की थी. उस के बदन पर नीले सफेद रंग की टीशर्ट और नीला पायजामा था. उस के गले के अलावा शरीर पर कई जगह मारपीट के निशान साफ नजर आ रहे थे. पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से मृत लड़की की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन किसी ने उसे नहीं पहचाना.

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पुलिस ने पंचनामे के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम की प्राथमिक रिपोर्ट में पता चला कि लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया था. रिपोर्ट में उस की हत्या कुछ घंटे पहले किए जाने की बात कही गई थी. हत्या गला घोंट कर की गई थी.

पांडेसरा पुलिस स्टेशन में उसी दिन अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या, दुष्कर्म और पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. यह बीते 6 अप्रैल की बात है.

लड़की की शिनाख्त न होने से पुलिस को लगा कि उस की हत्या कहीं दूसरी जगह की गई होगी और शव यहां क्रिकेट मैदान के पास ला कर फेंक दिया गया होगा. पुलिस के लिए सब से पहले लड़की की शिनाख्त होना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने लड़की के फोटो के साथ स्टेट कंट्रोलरूम को इस की जानकारी भेज दी. इस के अलावा शहर के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में दर्ज लापता लड़कियों के बारे में सूचनाएं जुटाई गईं. काफी कोशिश के बाद भी उस लड़की के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

लाश मिलने के अगले ही दिन पुलिस ने लड़की की पहचान में आम लोगों का सहयोग मांगते हुए उस के बारे में सूचना देने वाले को 20 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी. घोषणा में पुलिस ने यह भी जोड़ा कि जानकारी देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा.

पुलिस ने भले ही इनाम का ऐलान कर दिया था, लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ. पुलिस को मृतका के बारे में कोई सूचना नहीं मिली. इस पर पुलिस अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गई.
इसी बीच 9 अप्रैल को सूरत शहर के पांडेसरा इलाके में ही जीयाव गांव के नजदीक हाईवे किनारे की झाडि़यों में एक महिला की सड़ीगली लाश मिली. लाश कई दिन पुरानी थी. यह जगह साईंमोहन सोसायटी से ज्यादा दूर नहीं थी. पुलिस ने महिला की लाश का पोस्टमार्टम करवाया.

पोस्टमार्टम की प्राथमिक रिपोर्ट से पता चला कि महिला की उम्र 35-40 साल के बीच थी और उस की हत्या कई दिन पहले गला घोंट कर की गई थी. इस महिला की भी पहचान नहीं हो सकी.

4 दिन के भीतर एक ही थानाक्षेत्र में एक लड़की और एक महिला की लाश मिलने से इलाके में सनसनी फैल गई थी. पुलिस के लिए यह परेशानी की बात थी कि दोनों शवों की ही शिनाख्त नहीं हो सकी थी. जबकि आमतौर पर शव की शिनाख्त होने पर ही जांच आगे बढ़ती है.

दोनों शव मिलने की जगह में करीब 2 किलोमीटर की दूरी होने के कारण पुलिस को दोनों शवों के बीच आपसी संबंध होने का संदेह हुआ. पुलिस का अनुमान था कि महिला उस लड़की की मां हो सकती है. इस बात की पुष्टि के लिए पुलिस ने महिला और लड़की के शव का डीएनए टेस्ट कराने के लिए सैंपल भेजे.
जहां लड़की की लाश मिली थी, उस के आसपास में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई. फुटेज में तड़के करीब साढ़े 4 बजे एक हैचबैक कार नजर आई. कई कैमरों की फुटेज देखने पर कार का रंग काला होने का पता चला. इस पर पुलिस ने भेस्तान इलाके में काले रंग की सभी हैचबैक कार के बारे में पूछताछ की. आरटीओ कार्यालय से भी काले रंग की सभी हैचबैक कार के बारे में जानकारी जुटाई गई.

काफी भागदौड़ के बाद पुलिस की नजरें कार नंबर जीजे05सी एल8520 पर अटक गई. इस कार के मालिक के बारे में पता चला कि कार भेस्तान के सोमेश्वर नगर में रहने वाले रामनरेश के नाम से रजिस्टर्ड है. पुलिस ने पूछताछ के लिए रामनरेश को थाने बुलवा लिया. उस ने बताया कि उस की कार 6 अप्रैल को हरसहाय गुर्जर ले गया था.

पुलिस हरसहाय गुर्जर की तलाश में जुट गई. पता चला कि हरसहाय गुर्जर सूरत के भेस्तान इलाके में सोमेश्वर सोसायटी की एक बिल्डिंग में अपने बड़े भाई हरिसिंह के साथ रह रहा था. हरिसिंह मार्बल लगाने की ठेकेदारी करता था.

वह मूलरूप से राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी के पास कुरकुरा खुर्द गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बेटे थे. एक बेटा उस के साथ सूरत में और दूसरा बेटा कुरकुरा खुर्द गांव में रहता था.

हरसहाय के बारे में सारी जानकारी जुटा कर पुलिस ने सूरत की सोमेश्वर सोसायटी में उस के मकान पर दबिश दी तो वह वहां नहीं मिला. पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि हरसहाय 2-3 दिन पहले ही पत्नी और बच्चों के साथ अपना सारा सामान ले कर गांव चला गया है.

इस पर अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच की एक टीम राजस्थान भेजी गई. राजस्थान में सवाई माधोपुर पुलिस की मदद से 20 अप्रैल को कुरकुरा खुर्द गांव से हरसहाय गुर्जर को पकड़ लिया गया. गुजरात पुलिस उसे सूरत ले गई.

इस बीच डीएनए जांच से इस बात की पुष्टि हो गई कि पांडेसरा में जीयाव के पास जिस महिला का शव मिला, वह दुष्कर्म पीडि़ता 11 साल की बेटी की मां ही थी. महिला और बच्ची के शव की डीएनए रिपोर्ट पौजिटिव आई.

हरसहाय से की गई पूछताछ में अभागिन मांबेटी के मामले में मानव तसकरी होने की बात सामने आई. दोनों मांबेटी से कई दिनों तक दुष्कर्म कर के बाद में उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया था. इस मामले में बाद में पुलिस ने मानव तस्करी से जुड़े हरसहाय के कुछ अन्य साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस की पूछताछ में मांबेटी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

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राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी के पास कुरकुरा खुर्द गांव का रहने वाला हरसहाय गुर्जर कई साल पहले गुजरात के सूरत चला गया था. उस का बड़ा भाई हरिसिंह भी सूरत में रहता था. हरसहाय सूरत में मकानों और अन्य बिल्डिंगों में ठेके ले कर मार्बल लगाने का काम करता था.

हरसहाय भेस्तान के सोमेश्वर सोसायटी की एक बिल्डिंग में पत्नी रमादेवी और छोटे बेटे प्रियांशु के साथ किराए के मकान में रहता था. उस का बड़ा बेटा दीपांशु राजस्थान में गांव में ही रहता था.

हरसहाय के पास मार्बल लगाने का काम करने वाले एक युवक कुलदीप की शादी नहीं हुई थी. कुलदीप करीब 6 महीने पहले राजस्थान से एक महिला को शादी करने के मकसद से 35 हजार रुपए में खरीद कर सूरत ले आया था. उस महिला के साथ 11 साल की एक बेटी भी थी. बाद में कुलदीप के घर वालों ने खरीदी हुई महिला से उस की शादी करने से इनकार कर दिया.

कुलदीप ने हरसहाय को सारी बात बताई. हरसहाय ने उस महिला और उस की बेटी को रखने की हामी भर ली. इस पर कुलदीप और मुकेश ने वह महिला और उस की बेटी हरसहाय को सौंप दीं. हरसहाय ने मांबेटी के रहने की व्यवस्था सूरत के कामरेज में टाइल्स फिटिंग की एक साइट पर कर दी. उस ने दोनों मांबेटी के रहने के साथ खानेपीने का भी इंतजाम कर लिया. इस के एवज में हरसहाय ने महिला से ज्यादती कर अवैध संबंध बना लिए.

इश्कमुश्क और अवैध संबंधों के मामले ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. यहां भी ऐसा ही हुआ. कुछ दिनों बाद हरसहाय की पत्नी रमादेवी को इस बात का पता चल गया कि उस के पति ने एक महिला को रखा हुआ है.

दरअसल हरसहाय उस महिला के लिए कई बार अपने घर से कई तरह के सामान और कपड़े ले कर जाता था और वहां से कईकई घंटे बाद लौटता था.

रमादेवी जब उस से इस बारे में पूछती तो वह उसे साफ जवाब नहीं देता था. एक दिन रमादेवी ने अपने भरोसे के एक आदमी को पति के पीछे लगा दिया. बाद में उस आदमी ने रमादेवी को बताया कि हरसहाय ने एक औरत रखी हुई है.

रमादेवी इस बात पर पति से झगड़ा करने लगी. घर में रोजरोज की कलह शुरू हो गई. इस बीच हरसहाय ने उस महिला और उस की बेटी को कामरेज से हटा कर मानसरोवर के एक फ्लैट में रख दिया. दूसरी तरफ हरसहाय ने जिस महिला को रखा हुआ था, वह बारबार शादी करने या पैसे देने की बात कहती थी. इस पर हरसहाय परेशान रहने लगा. कोई और रास्ता न देख उस ने महिला से पीछा छुड़ाने का फैसला कर लिया.

मार्च महीने के चौथे सप्ताह में हरसहाय ने पहले उस महिला के सिर पर ईंट मार कर उसे घायल कर दिया. इस के बाद दुपट्टे से उस का गला घोंट कर उसे मार डाला. महिला की हत्या उस की मासूम बेटी के सामने की गई. इस के बाद हरसहाय ने उस महिला का शव पांडेसरा में जीयाव के पास फेंक दिया था. बाद में 9 अप्रैल को पुलिस ने उस महिला का शव सड़ीगली हालत में बरामद किया था.

महिला की हत्या के बाद उस की 11 साल की बेटी को हरसहाय अपने घर पर ले आया. वह बच्ची अपनी मां के लिए रोती रहती थी. किसी दूसरे की बच्ची को अपने घर लाने पर रमादेवी का अपने पति से झगड़ा बढ़ गया. हरसहाय यह तय नहीं कर पा रहा था कि उस बच्ची का क्या करे.

घर में बढ़ते झगड़े को देख कर और उस बच्ची द्वारा कभी भी पोल खोल दिए जाने के डर से वह बच्ची को बंधक बना कर यातनाएं देने लगा. कई बार वह उसे डंडे से बेरहमी से पीटता था. बच्ची के शरीर पर उस ने ब्लेड से कई घाव कर दिए थे. इस दौरान हरसहाय ने उस मासूम से दुष्कर्म भी किया.

5 अप्रैल की रात हरसहाय उस बच्ची को मकान की छत पर ले गया, जहां उस ने उस के साथ दुष्कर्म किया. दुष्कर्म के बाद उस ने उस के नाजुक अंगों पर घाव कर दिए. फिर गला दबा कर बच्ची को मार डाला. बच्ची की हत्या उस ने सिर्फ इसलिए की कि कहीं वह अपनी मां की हत्या का राज उजागर न कर दे.
हरसहाय 6 अप्रैल को तड़के रामनरेश की कार से उस बच्ची के शव को साईंमोहन सोसायटी के पीछे क्रिकेट मैदान के पास झाडि़यों में फेंक आया. बाद में उसी दिन बच्ची का शव पांडेसरा पुलिस ने बरामद किया था. बच्ची की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस के शरीर पर 80 से ज्यादा घाव मिले.

20 दिनों की मशक्कत के बाद सूरत पुलिस ने राजस्थान और सूरत में 40 से ज्यादा लोगों से पूछताछ कर के मांबेटी की शिनाख्त करने में सफलता हासिल कर ली.

वह महिला राजस्थान के सीकर की रहने वाली थी. महिला की मां के मुताबिक, उस की बेटी का चेहरा बचपन में गर्म पानी से झुलस गया था. इस वजह से उस की शादी नहीं हो पा रही थी. बाद में उस की शादी 22 जून, 2007 को सीकर के फतेहपुर कस्बे में कर दी गई. ससुराल में आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के साल भर बाद ही उस महिला ने एक बेटी को जन्म दिया.

बाद में महिला ने फतेहपुर निवासी पति को छोड़ दिया. उस ने 2010 में बूंदी में एक युवक से शादी कर ली. महिला अपनी बेटी को भी बूंदी ले गई. महिला का दूसरा पति बूंदी में जूतेचप्पल बेचने का काम करता था. उस की पहली पत्नी की मौत हो चुकी थी. पहले से ही उस के 3 बच्चे थे. दूसरी शादी के बारे में महिला ने अपने परिवार वालों को नहीं बताया था.

दूसरी शादी करने के बावजूद महिला को सुख नसीब नहीं हुआ. उस का पति से झगड़ा रहने लगा. एक बार पति से झगड़ा होने पर महिला अपने मायके चली गई.

बाद में उस का पति भी बूंदी से सीकर आ गया. उस समय महिला की मां ने उस से कहा कि या तो यहां पर रुक जा, नहीं तो फिर दोबारा यहां पर मत आना. इस के बाद वह सीकर से चली गई थी. इस के बाद महिला के घर वालों का उस से कोई संपर्क नहीं हुआ था.

घटना से करीब 7 महीने पहले यह महिला अपने पति से 2 दिन में आने की बात कह कर बेटी के साथ घर से निकली थी. वह घर से जेवर भी ले गई थी. लोगों ने महिला को बूंदी के बसस्टैंड पर एक युवक के साथ देखा था.

जब वह 2 दिन तक घर नहीं लौटी तो पति ने उसे फोन किया. महिला ने कहा कि वह जयपुर में है और काफी परेशानी में है. इस के बाद उस का महिला से संपर्क नहीं हुआ तो उस ने बूंदी कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

पुलिस ने महिला की मोबाइल लोकेशन निकलवाई तो वह गंगापुर सिटी की आई. इस पर उस के दूसरे पति ने गंगापुर सिटी जा कर भी उस की तलाश की लेकिन उस का पता नहीं चल सका. बाद में उस की मोबाइल लोकेशन दौसा व गंगापुर सिटी और इस के बाद सूरत आती रही.

महिला के दूसरे पति का कहना है कि वह उस की पत्नी को बेचने और खरीदने वाले को नहीं जानता. उस का आरोप है कि पुलिस ने सपोर्ट नहीं किया. पुलिस अगर सपोर्ट करती तो उस की पत्नी सूरत नहीं पहुंचती और आज वह जिंदा होती.

सूरत पुलिस ने सीकर पहुंच कर महिला के परिजनों को खोज लिया. फिर फोटो, आधार कार्ड और अन्य सबूतों के आधार पर महिला की शिनाख्त की. इस के बाद पुलिस सीकर से महिला के घर वालों को सूरत ले गई. सूरत में पुलिस की मौजूदगी में 27 अप्रैल को मोरा भागल स्थित कब्रिस्तान में परिजनों ने महिला और उस की बेटी के शव दफना दिए.

हतभागी मांबेटी को एकता ट्रस्ट के अब्दुल मलबारी के सहयोग से दफनाया गया था. हालांकि यह सब पुलिस ने गुप्तरूप से किया और मीडिया को इस से दूर रखा. पुलिस ने मीडिया को गुमराह करने के लिए कब्रिस्तान के गेट पर ताला भी लगा दिया था.

महिला के परिजनों को पुलिस जिस कार में कब्रिस्तान ले गई, उस के नंबर भी ढक दिए थे. घर वालों को मुंह ढक कर कार में बीच में बैठा कर लाया और ले जाया गया. इस के बाद सूरत पुलिस ने महिला के सीकर से आए घर वालों के बयान दर्ज किए. घर वालों ने बताया कि 2 साल पहले उन की बेटी सीकर में घर आई थी, उस के बाद से उन का उस से कोई संपर्क नहीं था.

इस मामले में यह खास बात रही कि 26 अप्रैल को पांडेसरा इलाके में क्रिकेट मैदान के पास मिले बच्ची के शव की शिनाख्त के लिए सूरत पुलिस और अहमदाबाद क्राइम ब्रांच सहित करीब 500 पुलिस जवानों को लगाया गया था. पुलिस ने करीब 8 हजार घरों पर जा कर बच्ची का फोटो दिखा कर उस की पहचान करने की कोशिश की थी. सूरत शहर में बच्ची के पोस्टर चिपकवाए गए. बच्ची की पहचान बताने वाले को 20 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई.

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भेस्तान क्षेत्र के अलावा नैशनल हाईवे के आसपास के इलाके में करीब 800 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई. गुजरात के अलावा आसपास के 3 राज्यों से गुमशुदा बच्चियों के फोटो से मृतक बच्ची का फोटो मिलान करने का प्रयास किया गया. सूरत से अन्य राज्यों में जाने वाली ट्रेनों में बच्ची के फोटो चिपकवाए गए. सूरत के नागरिकों ने भी अपने स्तर पर बच्ची की पहचान के लिए इनाम का ऐलान किया था.

कपड़ा व्यापारियों ने दूसरे राज्यों में भेजे जाने वाले माल के पार्सलों पर भी बच्ची के फोटो चिपकवाए. जिस जगह बच्ची का शव मिला था, उस के आसपास 5 अप्रैल की रात से 6 अप्रैल की सुबह तक एक्टिव रहे करीब एक हजार मोबाइल नंबरों की जांच की गई.

भेस्तान में सोमेश्वर सोसायटी की जिस बिल्डिंग में बच्ची को बंधक बना कर उस से दुष्कर्म और फिर हत्या की गई थी, उस बिल्डिंग के लोगों को बच्ची का शव मिलने के बाद पुलिस ने फोटो दिखाया था, लेकिन किसी ने उसे नहीं पहचाना था. इस का कारण यह था कि बच्ची को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था.

सूरत के पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा का कहना है कि आरोपियों को सख्त सजा दिलाने के लिए पुलिस के पास काफी सबूत हैं. सीसीटीवी फुटेज हैं. मांबेटी का डीएनए मैच हो गया है. दूसरी ओर गुजरात के गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा का कहना है कि इस मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में होगी. इस के लिए सरकार स्पैशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त करेगी.

बहरहाल, यह मामला न केवल खुल गया है, बल्कि यह बात भी उजागर हो गई है कि महिलाओं की खरीद फरोख्त आज भी हो रही है. खरीदार खरीदी गई महिला को उपभोग की वस्तु मानता है. जब तक मन चाहता है उपभोग करता है. मन भर जाने पर उसे दरदर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देता है या हरसहाय जैसे दरिंदे पीछा छुड़ाने के लिए उसे मौत के घाट उतार देते हैं. इस कहानी में न तो महिला का कोई कसूर था और न उस की बच्ची का. लेकिन दरिंदों ने उन की जान ले ली.

दुलहन का खतरनाक दांव : प्रेमी के साथ मिल पति को लगाया ठिकाने

विवाह के बाद हनीमून हर पत्नी और पति की एक सुखद अनुभूति होती है, जिस के लिए वे हैसियत के अनुसार एक मनोहारी वातावरण वाले स्थान का चयन करते हैं. पुणे निवासी आनंद कांबले ने भी दीक्षा से शादी हो जाने के बाद हनीमून के लिए महाराष्ट्र के महाबलेश्वर जाने का प्लान बनाया था. उन्होंने इस के लिए तारीख तय की 2 जून, 2018.

आनंद कांबले और दीक्षा खुश थे. उन की यह खुशी तब दोगुनी हो गई जब आनंद का जिगरी दोस्त राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी बोवड़े भी इस खुशी में शामिल हो गए.

2 जून को अपराह्न 3 बजे ये चारों लोग मारुति सुजुकी कार नंबर एमएच14जी एक्स7171 से सतारा के लिए निकले. अभी ये लोग पंचगनी के पसरणी घाट ही पहुंचे थे कि उन के सारे सपने बिखर कर चूरचूर हो गए. कुछ देर पहले तक हंसतेहंसाते इन जोड़ों के बीच एकाएक मातम पसर गया.

हुआ यह कि पसरणी घाट पर पहुंचते ही आनंद कांबले की पत्नी दीक्षा ने उल्टियां आने की बात कही. पत्नी के कहने पर आनंद कांबले ने कार साइड में रुकवा दी. कार के रुकते ही दीक्षा मुंह पर हाथ रख कर नीचे उतर आई.

उस के साथसाथ आनंद कांबले भी कार से बाहर आ गया था. जिस जगह पर कार खड़ी थी, वह काफी संकरी थी, इसलिए राजेश बोवड़े ने कार थोड़ा आगे ले जा कर खड़ी कर दी और स्वयं भी कार से उतर कर अपनी पत्नी के साथ वहां के मनोहारी दृश्यों को देखने लगा. उस ने पत्नी के साथ कुछ फोटो खींचे.

हालांकि दीक्षा को उल्टियां नहीं हुई थीं, फिर भी आनंद कांबले उस की हालत देख कर घबरा गया था. वह दौड़ कर गया और कार से दीक्षा के लिए पानी की बोतल ले आया.

दीक्षा रोड के साइड में पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठ कर अभी अपने मुंह पर छींटे मार ही रही थी कि तभी वहां एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. उस पर 2 युवक बैठे थे, जो बिना किसी बात के ही वहां खड़े आनंद कांबले से उलझ गए. जब दीक्षा ने पति का पक्ष लेते हुए ऐतराज जताया तो वे लोग दीक्षा के गहने छीनने लगे.

उन्होंने उस का मंगलसूत्र खींच लिया, जिस से दीक्षा के गले पर जख्म भी हो गया. यह आनंद कांबले को बरदाश्त नहीं हुआ. वह उन दोनों से भिड़ गया. तब उन युवकों में से एक ने अपने साथ लाए कांते से आनंद के सिर पर वार कर दिया. अपनी जान बचाने के लिए आनंद वहां से भाग खड़ा हुआ, लेकिन वह कुछ ही दूर जा कर जमीन पर गिर पड़ा.

इधर अपनी सेल्फी और गपशप में मस्त राजेश और उस की पत्नी कल्याणी ने दीक्षा और आनंद कांबले की चीख सुनी तो वे उन की तरफ दौड़े. वे रोड पर आए तो उन्होंने देखा कि 2 युवक आनंद से मारपीट कर रहे हैं, जिन में से एक के हाथ में खतरनाक हथियार था. राजेश दोस्त की जान बचाने के बजाए डर की वजह से पत्नी के साथ कार में जा कर बैठ गया.

हमलावर युवकों ने जब राजेश को देखा तो वे आनंद को छोड़ कर कार के करीब पहुंच गए. कार के दरवाजे बंद थे. एक युवक ने कांते से कार के आगे वाले शीशे पर वार किया. फलस्वरूप शीशा टूट गया, शीशे के टुकड़े राजेश बोवड़े व उस की पत्नी के सिर में लगे, जिस से खून बहने लगा. लेकिन इस की परवाह न करते हुए राजेश ने कार तेजी से भगा दी.

कुछ ही दूर आगे पंचगनी का पुलिस थाना था. थाने पहुंच कर राजेश ने इस घटना की जानकारी दी. लेकिन वहां से उन्हें कोई सहायता नहीं मिल सकी. वहां की पुलिस ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि घटना वाली जगह वाई पुलिस थाना क्षेत्र में आती है.

जब तक राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी वाई पुलिस थाने पहुंचे, तब तक वहां की पुलिस को सतारा जिला अस्पताल से इस मामले की जानकारी मिल चुकी थी. फिर भी वाई पुलिस थानाप्रभारी इंसपेक्टर विनायक वेताल ने उन दोनों का बयान नोट किए और घटना की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी.

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उन्होंने अपनी एक पुलिस टीम को घटनास्थल पर भेजा और स्वयं अपने सहायकों के साथ सातारा अस्पताल की ओर रवाना हो गए. वहां जाने पर पता चला कि राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी बोवड़े के जाने के बाद दोनों हमलावर मोटरसाइकिल से भाग गए थे.

उन के जाने के बाद दीक्षा किसी से लिफ्ट मांग कर आनंद कांबले को सतारा के क्रांति नानासाहेब पाटिल अस्पताल लाई और सारी बात डाक्टरों को बता दी. डाक्टरों ने गंभीर रूप से घायल आनंद कांबले का चैकअप किया तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. अस्पताल प्रशासन ने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. दीक्षा भी मामूली रूप से जख्मी थी. उस का भी प्राथमिक उपचार किया गया.

थानाप्रभारी विनायक वेताल अस्पताल पहुंच कर डाक्टरों से मिले और आनंद कांबले के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. आनंद कांबले के शरीर पर गहरे जख्म थे. दीक्षा बयान देने की हालत में नहीं थी, इसलिए थानाप्रभारी डाक्टरों से बात कर के थाने लौट आए.

इस मामले की खबर जब आनंद कांबले के परिवार वालों को मिली तो कोहराम मच गया. परिवार के सारे लोग रोतेबिलखते अस्पताल पहुंच गए. आनंद कांबले के शव का पोस्टमार्टम होने के बाद शव उस के परिवार वालों को सौंप दिया गया.

मामला लूटपाट और हत्या से संबंधित था, जिस की जांच के लिए मौकाएवारदात की गवाह दीक्षा कांबले का बयान जरूरी था. घटनास्थल पर गई पुलिस टीम खाली हाथ लौट आई थी. उसे वहां लूटपाट जैसा कोई सूत्र नहीं मिला था. इस बारे में अब दीक्षा ही कुछ बता सकती थी.

मामूली रूप से जख्मी दीक्षा जब कुछ सामान्य हुई तो थानाप्रभारी विनायक वेताल ने उस का बयान दर्ज करने के लिए उसे थाने बुलाया. चूंकि मृतक आनंद कांबले आरपीआई पार्टी का पुणे शहर का उपाध्यक्ष था, इसलिए पुलिस के लिए यह मामला महत्त्वपूर्ण बन गया था.

आनंद की हत्या की जानकारी पूरे शहर में फैल गई थी. देखते ही देखते पार्टी के हजारों कार्यकर्ता पुणे शहर की सड़कों पर उतर आए थे. मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही सतारा के एसीपी संदीप पाटिल और अजित टिके हरकत में आ गए.

थानाप्रभारी विनायक और क्राइम ब्रांच के पीआई पद्माकर घनवट केस की जांच में जुट गए. दिनरात एक कर के पुलिस ने 24 घंटे के अंदर केस को खोलने में सफलता हासिल कर ली. पुलिस ने अभियुक्तों को भी गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी विनायक वेताल और पीआई पद्माकर घनवट पहले आनंद कांबले को अपनी जांच के दायरे में लिया. क्योंकि उन का मानना था कि आनंद कांबले चूंकि आरपीआई पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता था, इसलिए उस की किसी से अनबन या दुश्मनी हो सकती है. लेकिन जांच में ऐसा कुछ नहीं निकला. आनंद कांबले का चरित्र साफसुथरा था.

इस के बाद जब उन का ध्यान कांबले परिवार की नईनवेली दुलहन दीक्षा पर गया तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. उन्होंने देखा कि सिर्फ 7 दिन की दुलहन के चेहरे पर दुख के वैसे भाव नहीं थे, जैसे होने चाहिए थे. जहां सारा परिवार आनंद कांबले के गम में डूबा था, वहीं दीक्षा की आंखों और चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी.

दूसरी बात जो पुलिस को खटक रही थी, वह यह थी कि अगर हत्यारे लूटपाट के इरादे से आए थे तो उन्होंने आनंद कांबले की हत्या क्यों की? उन्हें दीक्षा की हत्या करनी चाहिए थी, क्योंकि सारे गहने दीक्षा के शरीर पर थे. जबकि वे सिर्फ उस का मंगलसूत्र ले कर गए थे.

इन सारी कडि़यों को जोड़ने और दीक्षा की कुंडली खंगालने के बाद दीक्षा पुलिस के निशाने पर आ गई. उन्होंने जब दूसरी बार दीक्षा को थाने बुला कर पूछताछ की तो वह संभल नहीं सकी और उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

24 वर्षीय दीक्षा ओव्हाल देखने में जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही हसीन और चंचल थी. महत्त्वाकांक्षी सौंदर्यरूपी दीक्षा को जो एक बार देख लेता था, वह अपने आप उस की तरफ खिंचा चला आता था. लेकिन दीक्षा जिस की तरफ खिंची चली गई थी, वह खुशनसीब निखिल मलेकर था, जो उस के स्कूल का दोस्त था.

26 वर्षीय निखिल मलेकर पुणे के चिखली गांव का रहने वाला था. उस के पिता सुदाम मलेकर पुणे की एक प्राइवेट फर्म में काम करते थे. परिवार साधनसंपन्न था. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

निखिल मलेकर को पूरा परिवार प्यार करता था, उस की हर मांग पूरा करता था. यही वजह थी कि वह जिद्दी स्वभाव का बन गया था. वह जो चाहता था किसी न किसी तरह हासिल कर लेता था.

दीक्षा के पिता धार्मिक प्रवृत्ति और पुराने खयालों के आदमी थे. उन के लिए समाज और मानमर्यादा ही सब कुछ थी. उन की गिनती गांव के संपन्न काश्तकारों में होती थी. दीक्षा उन की लाडली बेटी थी, जिसे पूरा परिवार प्यार करता था. इसी वजह से परिवार के सामाजिक और रूढि़वादी होने के बावजूद दीक्षा को खुली छूट मिली हुई थी.

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निखिल मलेकर और दीक्षा की लवस्टोरी तब से शुरू हुई थी, जब दोनों स्कूल आतेजाते थे. दीक्षा का गांव निखिल मलेकर के गांव के करीब था. दोनों का स्कूल आनेजाने का रास्ता एक ही था. दोनों स्कूल तो साथसाथ आतेजाते ही थे, स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों और पिकनिक पर भी साथसाथ रहते थे.

जब तक दोनों कम उम्र के थे, तब तक उन का व्यवहार दोस्ती जैसा था. लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ी, वैसेवैसे उन का रंगरूप और खयाल बदले. वक्त के साथ बचपन की दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया. दोनों की पढ़ाई भले ही खत्म हो गई, लेकिन प्यार खत्म नहीं हुआ. उन का मिलनाजुलना पहले जैसा ही चलता रहा.

दोनों जब भी मिलते थे, एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखा करते थे. उन्हें ऐसा लगता था, जैसे वे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. जहां दीक्षा और निखिल मलेकर अपने सुनहरे जीवन का सपना देख रहे थे, वहीं दूसरी ओर दीक्षा के मातापिता उस की शादी का तानाबाना बुन रहे थे.

दीक्षा के पिता उस के लिए वर की तलाश में थे. यह बात जब दीक्षा को पता चली तो वह बेचैन हो गई. वह अपने दिल में निखिल मलेकर की छवि समेटे बैठी थी और उसी से शादी करना चाहती थी.

आखिर एक दिन उस ने अपने रूढि़वादी पिता को सारी बातें बता दीं. उस ने कहा कि वह निखिल से प्यार करती है और उस से विवाह करेगी. निखिल का परिवार भी अच्छा है और घर के लोग भी. हम दोनों खुशीखुशी साथ रह सकते हैं.

दीक्षा की बात सुन कर उस के घर वालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन की बेटी अपनी आजादी का उन्हें इतना बड़ा तोहफा देगी.

पिता ने दीक्षा की बातों को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, हम तुम्हारे अपने हैं, हमेशा तुम्हारा भला ही चाहेंगे. हमारी अपनी मर्यादा भी है और समाज में इज्जत भी. इसलिए हम चाहते हैं कि तुम प्यारव्यार का चक्कर छोड़ कर मानसम्मान से जिओ और परिवार को भी अपना सिर उठा कर चलने दो. इसी में सब की भलाई है.’’

अपने परिवार वालों के सख्त रवैए से दीक्षा यह बात अच्छे से समझ गई थी कि जो सपने सच नहीं हो सकते, उन्हें देखने से क्या फायदा. यही सोच कर वह धीरेधीरे निखिल मलेकर को भूल कर उस से दूर रहने की कोशिश करने लगी. लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था.

एक तरफ जहां दीक्षा का यह हाल था, वहीं दूसरी तरफ निखिल मलेकर भी परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अकसर मिलने और चहकने वाली दीक्षा को अचानक क्या हो गया कि वह खामोश और उदास रहने लगी.

लेकिन कहावत है कि जहां चाह होती है वहां राह जरूर निकल आती है. ऐसा ही दीक्षा के साथ भी हुआ. एक दिन उस ने निखिल को बता दिया कि उस के घर वाले उन दोनों की शादी के खिलाफ हैं और उस की शादी कहीं दूसरी जगह करना चाहते हैं.

दीक्षा ने निखिल से कहा कि वह उसे भूल जाए. दीक्षा की बात सुन कर निखिल के होश उड़ गए. वह बोला, ‘‘दीक्षा, तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे घर वालों से बात करूंगा. उन के पैर पकड़ूंगा, उन से विनती करूंगा.’’

‘‘इस से कुछ नहीं होगा निखिल, मैं अपने परिवार वालों को अच्छी तरह से जानती हूं. वहां तुम्हारा केवल अपमान ही होगा. इस से अच्छा है कि तुम मुझे भूल जाओ.’’ दीक्षा ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे भूल सकती हो?’’ निखिल मलेकर ने सपाट शब्दों में पूछा.

‘‘मैं तुम्हें भूल तो नहीं सकती लेकिन कुछ कर भी तो नहीं सकती.’’ वह बोली.

दीक्षा के काफी समझाने के बाद भी निखिल मलेकर नहीं माना और वह उस के परिवार वालों से जा कर मिला. आखिर वही हुआ जिस का दीक्षा को डर था. निखिल मलेकर को अपमानित कर घर से धक्के मार कर निकाल दिया गया. यह बात दीक्षा से सहन नहीं हुई.

निखिल मलेकर को घर से निकालने की बात ले कर बेटी बगावत न कर दे, यह सोच कर उस के पिता दीक्षा के लिए वर की तलाश में जुट गए. जल्दी ही उन्होंने पुणे के तालुका औंध गांव मंजठानगर के रहने वाले आनंद कांबले से दीक्षा का रिश्ता तय कर दिया.

32 वर्षीय आनंद ज्ञानेश्वर कांबले सुंदर स्वस्थ और मिलनसार युवक था. उस का मातापिता के साथ भाईभाभियों और बहनों का भरापूरा परिवार था. पिता ज्ञानेश्वर कांबले गांव के प्रतिष्ठित काश्तकार थे. संयुक्त परिवार होने के कारण कांबले परिवार में सभी मिलजुल कर रहते और काम करते थे.

आनंद कांबले वाहनों की नंबर प्लेट बनाने का काम करता था. उस की पुणे में आनंद आर्ट्स के नाम से दुकान थी. इस के अलावा वह राजनीति में भी सक्रिय था. वह आरपीआई पार्टी का पुणे शहर का उपाध्यक्ष था. शहर में उस की अच्छी इज्जत थी. उस के भाईबहनों की शादी हो चुकी थी, केवल आनंद कांबले ही अविवाहित था.

26 मई, 2018 को दीक्षा ओव्हाल और आनंद कांबले का विवाह बड़े उत्साह और धूमधाम से हो गया. विवाह में आरपीआई पार्टी के अध्यक्ष रामदास अठावले के अलावा पुणे शहर के सभी कार्यकर्ता और कई प्रतिष्ठित लोग शामिल हुए.

आनंद कांबले दीक्षा को पा कर बहुत खुश था. उस के परिवार वाले भी अपनी सुंदर बहू से बहुत खुश थे. लेकिन दीक्षा वहां पर अपने आप को कैदी की तरह महसूस कर रही थी. उस के दिलोदिमाग पर निखिल मलेकर की छवि हावी थी. वह सारे रस्मोरिवाज के बीच उदास रही. उस की इस उदासी को उस की ससुराल वाले उस के मायके का गम समझ रहे थे.

घर के सारे कार्यक्रमों के हो जाने के बाद भी जब दीक्षा के चेहरे की उदासी नहीं गई तो परिवार वालों ने आनंद कांबले से बहू को कहीं घुमाफिरा कर लाने के लिए कहा.

घर वालों के कहने पर आनंद कांबले ने हनीमून के लिए सतारा के पंचगनी और महाबलेश्वर जाने की योजना बनाई. इस प्रोग्राम में उस ने अपने जिगरी दोस्त राजेश बोवड़े और उस की पत्नी कल्याणी को भी साथ चलने के लिए राजी कर लिया था.

यह बात जब दीक्षा ने अपने प्रेमी निखिल मलेकर को बताई तो वह तिलमिला उठा. उस की प्रेमिका किसी और के साथ सुहागरात के लिए जाए, यह उस से बरदाश्त नहीं हुआ. यही हाल दीक्षा का भी था.

उस ने घर वालों के दबाव में आ कर आनंद कांबले से विवाह जरूर कर लिया था, लेकिन वह आनंद को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह किसी भी तरह उस से छुटकारा पाना चाहती थी. इस के लिए वह निखिल मलेकर के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बना चुकी थी. योजना बना कर निखिल मलेकर घटना के एक दिन पहले ही पंचगनी चला गया.

घटना के दिन दीक्षा उसी समय से निखिल के संपर्क में रही, जिस समय वह पति के साथ पंचगनी महाबलेश्वर के लिए कार से निकली थी. वह निखिल मलेकर को फोन के जरिए पलपल की जानकारी और लोकेशन बता रही थी.

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कार जब पंचगनी पसरणी घाट की तरफ गई तो दीक्षा ने योजना के अनुसार उल्टियां आने का बहाना बना कर कार रुकवा ली. कार को रुके अभी 2-3 मिनट भी नहीं हुए थे कि हत्यारे वहां पहुंच गए और केवल 10 मिनट के अंदर अपना काम कर के निकल गए.

दीक्षा कांबले से पूछताछ कर के पुलिस ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर जांच की तो सारा राज खुल गया. पुलिस ने निखिल मलेकर की सरगर्मी से तलाश शुरू की और 24 घंटे के अंदर उसे पुणे के पिंपरी चिंचवाड़ से गिरफ्तार कर लिया.

विस्तार से पूछताछ में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. दीक्षा कांबले और निखिल मलेकर से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस उन 2 युवकों की तेजी से तलाश कर रही थी, जो आनंद कांबले की हत्या कर के फरार हो गए थे.

– कथा पुलिस की प्रैसवार्ता और समाचारपत्रों पर आधारित

खुद का पाला सांप

तारीख: 5 जनवरी, 2019समय: रात के 10 बजेस्थान: ग्वालियर का थाना गोला का मंदिर.

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

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लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबहसुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

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सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरतेडरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

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बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

सेक्स को मना करने पर हिंसा करता था पति, पत्नी ने की हत्या

पतिपत्नी के संबंध में जहां सेक्स का हौआ हावी हो गया, वह घर तो टूटन की कगार पर खड़ा ही मानो. वैसे, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हुए, आपसी सहमति से सेक्स संबंध बनाया जाए तो कारगर रहता है नहीं तो लड़ाई झगड़ा होना लाजिम है. पर सेक्स के लिए पत्नी को प्रताड़ित करना और बदतमीजी से बोलना व बच्चों के सामने उसे बेइज्जत करना आम घरों की समस्या से रूबरू कराता है. वाकई यह हमारी घिनौनी सोच का ही नतीजा है.

कोलकाता में भी एक ऐसी घटना सामने आई है, जिस में पत्नी ने पति द्वारा तंग करने पर उस की हत्या करने में जरा भी गुरेज नहीं किया.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अपने पति की हत्या करने वाली अनिंदिता पौल डे ने पुलिस को इस के पीछे की अहम वजह बताई. हालांकि वह बारबार अपना बयान बदलती नजर आई. कहीं न कहीं वह अपने पति से आजिज आ चुकी थी, तभी उस ने अपने पति की हत्या करने जैसा कठोर कदम उठाया.

यह दंपती न्यू टाउन इलाके में रहता था. अनिंदिता पौल डे ने बताया कि उस का पति पेशे से वकील था. वह आए दिन उस का यौन उत्पीडन करता था.

अनिंदिता ने आगे बताया कि पिछले हफ्ते मैडिकल सलाह के खिलाफ जा कर उस के पति ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की जिस से गुस्से में आ कर अनिंदिता ने पति रजत डे की हत्या कर दी.

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हालांकि मामला संगीन है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि महिला ने दावा किया है कि उस का पति जिस्मानी और दिमागी तौर पर उसे परेशान किया करता था. इस वजह से दोनों के बीच दूरियां पैदा हो गईं. इसी तरह की एक अजीबोगरीब हरकत पर अनिंदिता ने अपने पति की हत्या कर दी.

पुलिस जांच कर रही है कि यह हत्या अनिंदिता ने अकेले ही की थी या फिर किसी ने उस की मदद की थी.

अनिंदिता के वकील चंद्रशेखर बाग ने बताया कि अनिंदिता के पति ने उस का यौन शोषण किया था. 2 महीने पहले उन की फैलोपियन ट्यूब की सर्जरी हुई थी. इस के बाद डाक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन रजत ने अनिंदिता के साथ जबरदस्ती की थी.

यह तो पति को भी सोचना चाहिए कि पत्नी की परेशानी क्या है पर इस ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और जबरदस्ती पर उतर आया. उस ने अपनी पत्नी की जरा भी नहीं सुनी और अपनी मनमानी करने लगा. जब बात हद से गुजर गई तो उस ने अपने पति की हत्या कर दी.

मामला चाहे जो हो पत्नी ने अपने हाथों को खून से सन ही लिया है. इस हत्या का अनिंदिता की जिंदगी पर कैसा असर पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन सोचने वाली बात यह भी है मर्दऔरत को एकसाथ रखने वाला प्यार जानलेवा कैसे बन गया? क्या इस के पीछे मर्दवादी सोच है, जो पति के लिए पत्नी रात में दिल बहलाने का खिलौना भर है, चाहे वह किसी बीमारी के चलते सेक्स करने से परहेज करना चाहती हो?

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सामूहिक आत्महत्याएं : परिवार को रखें सुरक्षित

परिवार के सदस्यों की हत्या कर मुखिया द्वारा भी आत्महत्या कर लेने का यह कोई पहला या आखिरी मौका नहीं है बल्कि ऐसा अब हर कभी हर कहीं होता रहता है. फर्क आर्थिक स्थिति और प्रतिष्ठा के लिहाज से हत्या और फिर आत्महत्या कर लेने के तरीकों में होता है.

इंदौर निवासी 45 वर्षीय अभिषेक सक्सेना पेशे से एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर थे. उन की 42 वर्षीया पत्नी प्रीति भी एक मल्टीनैशनल ईकौमर्स कंपनी में नौकरी करती थीं. जुड़वां बच्चों बेटे अद्वैत और बेटी अनन्या के अलावा घर में 83 वर्षीया बुजुर्गु मां थीं. बीती 24 सितंबर को अभिषेक मां को यह बता कर घर से सपरिवार निकले थे कि बच्चों को घुमाने ले जा रहा हूं, जल्द ही लौट आऊंगा, क्योंकि वापस लौटने के बाद पापा का श्राद्ध करना है.

बूढ़ी मां बेचारी बेटेबहू और नातीनातिन के लौटने का इंतजार करती रहीं. लेकिन खबर यह आई कि इन चारों ने आत्महत्या कर ली है. मां की आंखें पथराई की पथराई रह गईं. जिस ने भी सुना उस ने सोचा यही कि हंसमुख, मिलनसार सक्सेना दंपती के पास किस चीज की कमी थी जो उन्होंने इतने घातक तरीके से आत्महत्या कर ली और आगेपीछे कुछ नहीं सोचा. जरूर कोई बड़ी बात है या फिर सक्सेना परिवार किसी ऐसी परेशानी या अवसाद का शिकार था जिस की चर्चा वह किसी से नहीं कर पा रहा था.

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अभिजात्य आत्महत्याएं

इंदौर के नजदीक क्रीसेंट वाटर पार्क रिसोर्ट 12 महीनों आबाद रहता है. परिवार सहित 1-2 दिनों की छुट्टियां गुजारने के लिए यहां लोगों का तांता लगा रहता है. अभिषेक ने औनलाइन इस रिसोर्ट में कमरा बुक कराया था और 24 सितंबर को प्रीति व बच्चों सहित रूम नंबर 211 में चैकइन भी कर लिया था.

अद्वैत और अनन्या की तो खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि उन्हें न केवल व्यस्त नौकरीपेशा मम्मीपापा के साथ रिसोर्ट में वक्त गुजारने का मौका मिल रहा था बल्कि स्विमिंग पूल, मनपसंद पकवानों और पार्क का मजा भी मिल रहा था.

किसी को अंदाजा नहीं था कि अभिषेक और प्रीति के जेहन में एक ऐसा कायराना व पलायनवादी विचार पनप रहा है जिस की सभ्य और आधुनिक समाज में आमतौर पर कोई जगह या वजह नहीं होनी चाहिए. 26 सितंबर की दोपहर 3 बजे तक जब कमरा नंबर 211 में कोई हलचल नहीं हुई और न ही कोई बाहर निकला, तो रिसोर्ट प्रबंधन ने दरवाजा खटखटाया और कोई जवाब न मिलने पर दरवाजा डुप्लीकेट चाबी से खोला गया. वहां चारों की लाशें पड़ी थीं.

प्रारंभिक जांच में उजागर हुआ कि आत्महत्या के लिए सोडियम नाइट्रेट नाम के कैमिकल का इस्तेमाल किया गया था. चारों के शरीर नीले पड़ गए थे. कमरे में इलैक्ट्रौनिक वेइंग मशीन पड़ी थी जिसे देख अंदाजा लगाया गया कि उम्र के हिसाब से सोडियम नाइट्रेट की खुराक तोल कर तैयार की गई थी. पहले बच्चों को जहर खिलाया गया, फिर प्रीति और अभिषेक ने भी खा लिया. यह सोच कर ही लोगों की रूह कांप उठी कि इन्होंने आत्महत्या करने की कितनी योजनापूर्ण तैयारी कर रखी थी.

बाद में पता चला कि सक्सेना परिवार मूलतया दिल्ली का रहने वाला था और नौकरी करने के लिए इंदौर के पौश इलाके अपोलो डीबी सिटी में रहता था. हंसमुख व मिलनसार अभिषेक के अपने बहनोई विपिन, जो कि दिल्ली में रहते हैं, से काफी घनिष्ठ और अंतरंग संबंध हैं और इन दोनों परिवारों में आएदिन फोन पर बात व चैटिंग होती रहती थी.

यह छिपाया अभिषेक ने

ऐसी कोई ठोस वजह सामने नहीं आई जिस से यह पता चल पाता कि आखिरकार अभिषेक और प्रीति ने खुदकुशी का फैसला क्यों लिया और उस में मासूम अद्वैत और अनन्या को भी शामिल क्योें किया, जिन्होंने अभीअभी होश संभालते दुनिया देखनी शुरू की थी. उन्हें अपनी जिंदगी जीने का पूरा हक था.

कोई भी कुछ उल्लेखनीय बात नहीं बता सका. इतना जरूर सामने आया कि अभिषेक सौफ्टवेयर कंपनी में जो नौकरी करते थे वह छूट गई थी और कुछ दिनों पहले उन्हें औनलाइन ट्रेडिंग में भी काफी घाटा हुआ था.

यानी फौरीतौर पर आत्महत्याओं की वजह पैसों की तंगी थी. लेकिन क्या यह एक मुकम्मल वजह है? इस सवाल का जवाब न में निकलता है. इस का यह मतलब भी नहीं कि कोई भी और वजह इस हादसे की थी. दरअसल, अभिषेक और प्रीति अगर खुद खुदकुशी के पहले अपने जिगर के टुकड़ों की हत्या करने के लिए मजबूर हुए थे तो यह एक गहरा अवसाद, फुजूल की आशंका और बेवजह का डर था जिस से वे आसानी से बाहर निकल सकते थे. लेकिन, नहीं निकल पाए तो कई और वजहें इस हादसे से आ कर जुड़ गई हैं जो दिखतीं नहीं लेकिन उन का प्रभाव जरूर इन पर पड़ रहा था.

आएदिन परिवार सहित आत्महत्या की खबरें सामने आती रहती हैं. गरीब, मजबूर वर्ग के लोग भी पहले बच्चों की हत्या करते हैं, फिर खुद मौत को गले लगा कर कई सवाल पीछे छोड़ जाते हैं. इन वजहों को सम झा जाना और दूर किया जाना बेहद जरूरी है.

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खर्चीली आदतें

अधिकांश खासा कमाने वाले लोग खर्चीली आदतों के शिकार होते हैं जिस के चलते वे इतनी बचत नहीं कर पाते कि बुरे वक्त के लिए सेविंग अकाउंट में पैसा रखें. महंगे गैजेट्स, बड़ी कारें, आलीशान मकान, फुजूल की शौपिंग और लग्जरी लाइफस्टाइल जीने वाले लोग यह मान कर चलते हैं कि पैसा हाथ का मैल है और जिंदगी पलभर की है. इसलिए जितनी जिंदादिली और विलासिता से जी सकते हो, जी लो, कल का क्या भरोसा.

बात, हालांकि, सच है लेकिन इसे सम झने का तरीका गलत है. अभिषेक और प्रीति के मामले में भी यही हुआ दिख रहा है कि इन्होंने भविष्य के लिए पर्याप्त पैसा बचा कर नहीं रखा था. अभिषेक की नौकरी जाते ही वे घबरा गए. प्रीति की सैलरी इतनी नहीं थी कि उस से घर के खर्च भी पूरे हो पाते.

अंतर्मुखी होते लोग

शहरीकरण और एकल होते परिवारों के इस दौर में लोग सोशल मीडिया की लत के चलते कहने को ही एकदूसरे के करीब और संपर्क में हैं. हकीकत तो यह है कि सोशल मीडिया ने रिश्तों व दोस्ती को बेहद औपचारिक बना दिया है और भावनात्मक लगाव को डेटा में कैद कर रख दिया है.

अभिषेक और प्रीति भी सोशल मीडिया के जरिए रिश्तेदारों, दोस्तों और दूसरे परिचितों के नियमित संपर्क में थे लेकिन किसी से अपनी हालत या दिल की बात शेयर नहीं कर पाए. तो साफसाफ दिख रहा है कि दिखावे की जिंदगी आत्मीयता को निगल रही है.

पाखंडी व खर्चीला धर्मकर्म

आदमी कितना भी सभ्य और आधुनिक हो जाए लेकिन दिलोदिमाग में गहरे तक बैठी धार्मिक मान्यताओं से लड़ने की ताकत अपनेआप में पैदा नहीं कर पाता, जिस की एक बड़ी वजह तेजी से बढ़ता धार्मिक माहौल और उस के पाखंड हैं. पढ़ेलिखे और कथित सभ्य समाज के लोग एक दफा भूतप्रेतों के अस्तित्वों को नकारते खुद को वैज्ञानिक सोच का मान लेते हैं, लेकिन इस मानसिक जकड़न से बाहर नहीं आ पाते कि एक सुप्रीम पावर है जिस से दुनिया और आदमी संचालित होते हैं.

ये लोग मानते हैं कि ऊपर वाला ही देता है और ले भी लेता है. लिहाजा, ये पैसा बचाते कम, लुटाते ज्यादा हैं, जम कर दानपुण्य करते हैं और ब्रैंडेड बाबाओं को खूब दक्षिणा देते हैं. नए दौर के बाबाओं ने भी इस अभिजात्य वर्ग की मानसिकता के लिहाज से धर्म का जाल बुनना शुरू कर दिया है. वे अब यह नहीं कहते कि तुम्हारा शनि क्रूर और खराब है बल्कि शनि की दशा, महादशा को विज्ञान से जोड़ते बताते हैं कि नकारात्मक ऊर्जा आप के मन में घर कर गई है जिसे इनइन तरीकों से दूर किया जा सकता है.

नए जमाने की मूर्खता

लोग शिक्षित तो हुए हैं लेकिन तार्किक और जागरूक नहीं हो पा रहे हैं. लिहाजा, वे आसानी से धार्मिक फंदों में फंस जाते हैं. ये वे कथित आधुनिक लोग हैं जो देहाती कहलाने से बचने के लिए धोती पहन कर पूजा करने से कतराते हैं, लेकिन लाखों रुपए बाबाओं को पूजापाठ के लिए दे देते हैं और फिर चमत्कार की  झूठी आस लिए जीते रहते हैं. नए जमाने के ये मूर्ख भूल जाते हैं कि वे कोई वैज्ञानिक काम नहीं कर रहे बल्कि पंडों और बाबाओं के इशारों पर उसी तरह नाच रहे हैं जिस तरह इन के पूर्वज नाचा करते थे. फर्क इतना है कि नचाने वालों ने इन के हिसाब से ही नचाने के यानी पैसा  झटकने के तरीके बदल दिए हैं.

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सोशल मीडिया के इफैक्ट्स

अधिकतर घरों में अब इनेगिने दोचार लोग ही रहते हैं, लेकिन उन के पास भी एकदूसरे के लिए वक्त नहीं रहता.  यह कम हैरानी की बात नहीं कि किशोरवय का बच्चा अपने कमरे से मां को व्हाट्सऐप करता है या फिर फोन कर कहता है कि मम्मी, दूध ले आओ. पतिपत्नी एक पलंग पर बैठे या लेटे, एकदूसरे से बात नहीं करते, बल्कि हाथ में स्मार्टफोन लिए चैटिंग में मशगूल रहते हैं. वे इसे शान की बात सम झते हैं कि उन्हें कई लोग लाइक और फौलो कर रहे हैं.

उम्मीद करना बेकार है कि वे निहायत व्यक्तिगत बातें, आर्थिक स्थिति और पारिवारिक मसलों पर मुद्दे की बात आपस में शेयर करते उन समस्याओं को हल कर पाएं जो एक अदृश्य जानलेवा वायरस की तरह उन की जिंदगी और घरगृहस्थी को गिरफ्त में ले रही हैं.

दिक्कत यह है कि सोशल मीडिया ने लोगों से सोसाइटी ही छीन ली है. खासे पढ़े लोग और बच्चे औनलाइन गेम्स की तरह घातक और काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं और जब वास्तविकताएं सामने आती हैं तो घबरा उठते हैं. सूटबूट और चमकदमक वाली यह पीढ़ी भीतर से कितनी खोखली होती जा रही है, इस का अंदाजा अभिषेक और प्रीति के मामले से भी लगाया जा सकता है.

जमीन से कटाव

सच यह भी है कि अधिकांश अर्धसंपन्न लोग अब जमीन से कटते जा रहे हैं क्योंकि वे पढ़ नहीं पा रहे. धर्म और सोशल मीडिया दोनों उन्हें  झूठा आश्वासन और मनोरंजन भर देते हैं, कोई व्यावहारिक बातें नहीं सिखाते जो पिछली पीढ़ी को किताबों और पत्रिकाएं पढ़ने से मिल जाती थीं.

मिसाल अभिषेक और प्रीति की ही लें. नौकरी का जाना या फिर पैसों की कमी हो जाना कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं थी. लेकिन ये लोग ऊपर बताई गई वजहों के चलते समाज और रिश्तेदारी से कट गए थे.

अभिषेक के बहनोई और दूसरे रिश्तेदार जब यह दुखद खबर सुन कर इंदौर आए तो हैरत में थे और उन की बातों से साफ लगा कि उन्हें मालूम ही नहीं था कि इन लोगों की आर्थिक व मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि उन्हें आत्महत्या का रास्ता चुनना पड़ा और इस के लिए अपने मासूम बच्चों की हत्या करने का गुनाह भी करना पड़ा.

अगर लोगों की संघर्ष क्षमता यों ही खत्म होती रही और वक्त रहते वे नहीं संभले, तो यकीन मानें ऐसे हादसे आएदिन और ज्यादा होंगे. धर्म और सोशल मीडिया ने लोगों को दिमागीतौर पर इतना अपाहिज बना दिया है कि वे जिंदगी और भविष्य की कोई योजना ही नहीं बना पा रहे.

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 रहा हाल

जरूरी नहीं कि सभी हैरानपरेशान लोग आत्महत्या करें. अधिकांश लोग भीषण तनाव में जी रहे हैं और यह तनाव जिन वजहों – धर्म और सोशल मीडिया – के चलते हैं, उन्हें ही वे गले लगाए बैठे हैं. ऐसे में क्या रास्ता है जो उन्हें शान से जीने की कला दिखाए, कल्पनाओं व अवसाद से बाहर निकाले? इकलौता रास्ता है शिक्षाप्रद पुस्तकें और पत्रिकाएं, क्योंकि जो लोग इन्हें पढ़ रहे हैं वे छोटीमोटी तो क्या, बड़ीबड़ी परेशानियों का भी धैर्य से मुकाबला करते जीत जाते हैं.

लाख टके का सवाल या परेशानी यह है कि इन लोगों को पढ़ने के रास्ते पर कैसे लाया जाए, तो सटीक जवाब यही सम झ आता है कि जो लोग पढ़ने की अहमियत और फायदे सम झते हैं वे समाज और देशहित में दूसरों को प्रेरित करें. धर्मकर्म और सोशल मीडिया में इन से बरबाद हो रहे लोगों को बचाएं. उन्हें इन के दुष्परिणामों के बारे में बताएं. तभी बात बन सकती है वरना कल को फिर किसी  झुग्गी झोंपड़ी से ले कर आलीशान मकान, होटल या रिसोर्ट के कमरे में अकेले या सामूहिक आत्महत्या की हृदयविदारक खबर सुनने को तैयार रहें.

ब्लैकमेलिंग का धंधा, बन गया गले का फंदा !

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आदिम जाति कल्याण विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी का अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने का मामला पुलिस ने उजागर किया है. यहां के एक रिटायर्ड ड्राफ्टमैन को भिलाई निवासी  दंपति ने ब्लैकमेल अर्थात भय दोहन कर लगभग डेढ़ लाख  रुपए झटक लिए . और जैसा की ब्लैकमेलिंग के मामलों में अक्सर होता है. शिकारी शिकार  पर अपना फंदा  कस्ता ही चला जाता है उसकी लालच निरंतर बढ़ती चली जाती है और वह चाहता है कि मैं अपने शिकार को पूरी तरह निचोड़ लूं.  यही लालच उसके गले का फंदा बन जाती है, रायपुर के इस ब्लैक मेलिंग के प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही हुआ. पूरा मामला जानने से पूर्व आपका यह जानना बहुत जरूरी है की पुलिस को शक है यह दंपत्ति पूर्व में भी कई लोगों को अपना शिकार बना चुका है,जिसकी पड़ताल जारी है.

शिकार ने दे दिए डेढ़ लाख रुपए

ब्लैकमेलिंग का शिकार  ड्राफ्टमैन परिमल कुमार को जब लगा कि यह भय दोहन का मामला उसके जीवन को बर्बाद कर देगा तब जाकर उसने  इसकी शिकायत राजधानी रायपुर के सिविल लाइन थाने में दर्ज कराई. पुलिस ने शिकायत के पश्चात  इस मामले को  संज्ञान में लिया  और जांच-पड़ताल  प्रारंभ हो गई पुलिस के अनुसार आरोपी दंपत्ति तपन मजूमदार और रूपा मजूमदार दो महीने से रिटायर्ड ड्राफ्टमैन को पैसों के लिए ब्लैकमेल कर रहे थे. औल और सुबूत मिलते ही पुलिस ने ब्लैक मेलिंग करने वाले दंपत्ति को अपनी गिरफ्त में ले लिया.

प्रार्थी परिमल कुमार ने  हमारे संवाददाता को बताया कि वह लगभग डेढ़ लाख रूपए दे चुका था. लेकिन इसके बाद भी आरोपी पैसों की मांग लगातार कर रहे थे. यही नहीं पैसा न देने पर सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करने की धमकी लगातार दंपत्ति द्वारा दी जा रही थी. जब आरोपी बाज नहीं आए तो पीड़ित को विवश होकर मामला दर्ज करवाना पड़ा. इस मामले में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आरोपी रूपा मजूमदार ने परिमल कुमार के साथ पहले दोस्ती की और फिर छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर और भिलाई में अश्लील वीडियो स्वयं बनाया था.

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ब्लैक मेलिंग अर्थात भया दोहन एक गंभीर अपराध

छत्तीसगढ़ विशेष का राजधानी रायपुर के पुलिस इन दिनों दया दोहन ब्लैकमेलिंग के प्रकरणों पर कुछ विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि यह समाज का एक बड़ा नासूर माना गया है अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रफुल्ल ठाकुर के अनुसार ब्लैक मेलिंग ही अनेक अपराधों का मूल होती है. सिविल लाइन थाने में परिमल की रिपोर्ट पर मजूमदार दंपत्ति के खिलाफ धारा 384 ,34 का केस दर्ज किया गया है.

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रफुल्ल ठाकुर ने जानकारी दी कि अश्लील वीडियो ब्लैकमेल करने वाले दंपत्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है. आरोपी दंपत्ति भिलाई के स्मृति नगर के रहने वाले हैं. यह तथ्य भी सामने आया है कि रिटायर कर्मचारी को नशे की दवाई खिलाकर बेहोशी की हालत में वीडियो बनाया गया था. प्रार्थी से डेढ़ लाख रूपए दंपत्ती ने ब्लैकमेलिंग कर वसूले थे. इस मामले में आरोपी दंपत्ति तपन मजूमदार रूपा मजूमदार को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है.

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शक के कफन में दफन हुआ प्यार : भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी.

16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी.

दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा.

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दी.

मामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश

अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो.

पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका.

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था.

चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुर-मऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया.

कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए.

कुछ ही देर में बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

गांव वालों का विरोध प्रदर्शन

पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी.

घातक निकली बीवी नंबर 2 : भाग 1

3 जुलाई, 2018 की बात है. शाम 6 बजे थाना सजेती का मुंशी अजय पाल रजिस्टर पर दस्तखत कराने थाना परिसर स्थित दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास पर पहुंचा. दरोगाजी के कमरे का दरवाजा बंद था, लेकिन कूलर चल रहा था. अजय पाल ने सोचा कि दरोगाजी शायद सो रहे होंगे. यही सोचते हुए उस ने बाहर से ही आवाज लगाई, ‘‘दरोगाजी…दरोगाजी.’’

अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उस ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, हलके दबाव से ही खुल गया. अजय पाल ने कमरे के अंदर पैर रखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर दरोगा पच्चालाल की लाश पड़ी थी. किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

बदहवास सा मुंशी अजय पाल थाना कार्यालय में आया और उस ने यह जानकारी अन्य पुलिसकर्मियों को दी. यह खबर सुनते ही थाना सजेती में हड़कंप मच गया. घबराए अजय पाल की सांसें दुरुस्त हुईं तो उस ने वायरलैस पर दरोगा पच्चालाल गौतम की थाना परिसर में हत्या किए जाने की जानकारी कंट्रोल रूम को और वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

सूचना पाते ही एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव, सीओ आर.के. चतुर्वेदी, इंसपेक्टर दिलीप बिंद तथा देवेंद्र कुमार दुबे थाना सजेती पहुंच गए. पुलिस अधिकारी पच्चालाल के कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देख सिहर उठे.

कमरे के अंदर फर्श पर 58 वर्षीय दरोगा पच्चालाल गौतम की खून से सनी लाश पड़ी थी. अंडरवियर के अलावा उन के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था. खून से सना चाकू लाश के पास पड़ा था. खून से सना एक तौलिया बैड पर पड़ा था. हत्यारों ने दरोगा पच्चालाल का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था.

पच्चालाल की गरदन, सिर, छाती व पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए गए थे. आंतों के टुकड़े कमरे में फैले थे और दीवारों पर खून के छींटे थे. दरोगा पच्चालाल के शरीर के घाव बता रहे थे कि हत्यारों के मन में उन के प्रति गहरी नफरत थी और वह दरोगा की मौत को ले कर आश्वस्त हो जाना चाहते थे. बैड से ले कर कमरे तक खून ही खून फैला था.

छींटों के अलावा दीवार पर खून से सने हाथों के पंजे के निशान भी थे. इन निशानों में अंगूठे का निशान नहीं था. घटनास्थल को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे दरोगा पच्चालाल गौतम ने हत्यारों से अंतिम सांस तक संघर्ष किया हो.

पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार भी थाना सजेती आ गए. वह अपने साथ फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को लाए थे. दोनों पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन के माथे पर बल पड़ गए.

बेरहमी से किए गए इस कत्ल को अधिकारियों ने गंभीरता से लिया. फोरैंसिक टीम ने चाकू और कमरे की दीवार से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड ने घटनास्थल पर डौग को छोड़ा. डौग लाश व कमरे की कई जगहों को सूंघ कर हाइवे तक गया और वापस लौट आया. वह ऐसी कोई हेल्प नहीं कर सका, जिस से हत्यारे का कोई सूत्र मिलता.

कारण नहीं मिल रहा था बेरहमी से किए गए कत्ल का

मृतक पच्चालाल के आवास की तलाशी ली गई तो पता चला, हत्यारे उन का पर्स, घड़ी व मोबाइल साथ ले गए थे. किचन में रखे फ्रिज में अंडे व सब्जी रखी थी. कमरे में शराब व ग्लास आदि नहीं मिले, जिस से स्पष्ट हुआ कि हत्या से पहले कमरे में बैठ कर शराब नहीं पी गई थी.

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अनुमान लगाया गया कि हत्यारा दरोगा पच्चालाल का बेहद करीबी रहा होगा, जिस से वह आसानी से आवास में दाखिल हो गया और बाद में उस ने अपने साथियों को भी बुला लिया.

आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार यह सोच कर चकित थे कि थाना कार्यालय से महज 20 मीटर की दूरी पर दरोगा पच्चालाल का आवास था. कमरे में चाकू से गोद कर उन की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई और उन की चीखें थाने के किसी पुलिसकर्मी ने नहीं सुनीं, इस से पुलिसकर्मी भी संदेह के घेरे में थे.

लेकिन इस में यह बात भी शामिल थी कि दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास में 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा थाना परिसर की ओर खुलता था, जबकि दूसरा हाइवे के निकट के खेतों की ओर खुलता था. पता चला कि पच्चालाल के करीबी लोगों का आनाजाना हाइवे की तरफ खुलने वाले दरवाजे से ज्यादा होता था. हाइवे पर ट्रकों की धमाचौकड़ी मची रहती थी, जिस की तेज आवाज कमरे में भी गूंजती थी. संभव है, दरोगा की चीखें ट्रकों और कूलर की आवाज में दब कर रह गई हो और किसी पुलिसकर्मी को सुनाई न दी हो.

एसएसपी अखिलेश कुमार ने थाना सजेती के पुलिसकर्मियों से पूछताछ की तो पता चला कि दरोगा पच्चालाल गौतम मूलरूप से सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के रामकुंड के रहने वाले थे.

उन्होंने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी कुंती की मौत के बाद उन्होंने किरन नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था. पहली पत्नी के बच्चे रामकुंड में रहते थे, जबकि दूसरी पत्नी किरन कानपुर शहर में सूर्यविहार (नवाबगंज) में अपने बच्चों के साथ रहती थी.

पारिवारिक जानकारी मिलते ही एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर उन के घर वालों को भिजवा दी. खबर मिलते ही दरोगा की पत्नी किरन थाना सजेती पहुंच गई. पति की क्षतविक्षत लाश देख कर वह दहाड़ मार कर रोने लगी. महिला पुलिसकर्मियों ने उसे सांत्वना दे कर शव से अलग किया.

कुछ देर बाद दरोगा के बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल भी आ गए. पिता का शव देख कर वे भी रोने लगे. पुलिसकर्मियों ने उन्हें धैर्य बंधाया और पंचनामा भर कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया. आलाकत्ल चाकू को परीक्षण हेतु सील कर के रख लिया गया.

4 जुलाई, 2018 को मृतक पच्चालाल के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद शव को पुलिस लाइन लाया गया, जहां एसएसपी अखिलेश कुमार, एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिह व अन्य पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सलामी दे कर अंतिम विदाई दी.

इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार, दिलीप बिंद व सजेती थाने के पुलिसकर्मियों ने पच्चालाल के शव को कंधा दिया. इस के बाद पच्चालाल के चारों बेटे शव को अपने पैतृक गांव  रामकुंड, सीतापुर ले गए, जहां बड़े बेटे सत्येंद्र ने पिता की चिता को मुखाग्नि दे कर अंतिम संस्कार किया. अंतिम संस्कार में किरन व उस के बच्चे शामिल नहीं हुए.

दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर कानपुर से लखनऊ तक फैल गई थी. यह बात एडीजे अविनाश चंद्र के संज्ञान में भी थी. इसी के मद्देनजर एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया और इस के खुलासे के लिए एक विशेष पुलिस टीम गठित की.

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जांच के लिए बनी स्पैशल टीम

इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सेल तथा एसएसपी की स्वान टीम के तेजतर्रार व भरोसेमंद पुलिसकर्मियों को शामिल किया. क्राइम ब्रांच से सुनील लांबा तथा एसओजी से राजेश कुमार रावत, सर्विलांस सेल से शिवराम सिंह, राहुल पांडे, सिपाही बृजेश कुमार, मोहम्मद आरिफ, हरिशंकर और सीमा देवी तथा एसएसपी स्वान टीम से संदीप कुमार, राजेश रावत तथा प्रदीप कुमार को शामिल किया गया.

इस के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बेहतरीन जासूस कहे जाने वाले 3 इंसपेक्टरों देवेंद्र कुमार दुबे, दिलीप बिंद, मनोज रघुवंशी तथा सीओ (घाटमपुर) आर.के. चतुर्वेदी को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. रिपोर्ट में पच्चालाल के शरीर पर 19 गहरे जख्म बताए गए थे जो सिर, गरदन, छाती, पेट व हाथों पर थे. इस टीम ने उन मामलों को भी खंगाला, जिन की जांच पच्चालाल ने की थी. लेकिन ऐसा कोई मामला नहीं मिला, जिस से इस हत्या को जोड़ा जा सकता. इस से साफ हो गया कि क्षेत्र के किसी अपराधी ने उन की हत्या नहीं की थी.

पुलिस टीम ने थाना सजेती में लगे सीसीटीवी फुटेज भी देखे, मगर उस में दरोगा के आवास में कोई भी आतेजाते नहीं दिखा. इस का मतलब हत्यारे पिछले दरवाजे से ही आए थे और हत्या को अंजाम दे कर उसी दरवाजे से चले गए.

टीम ने कुछ दुकानदारों से पूछताछ की तो शराब के ठेके के पास नमकीन बेचने वाले दुकानदार अवधेश ने बताया कि 2 जुलाई को देर शाम उस ने दरोगा पच्चालाल के साथ सांवले रंग के एक युवक को देखा था. उस युवक के साथ दरोगाजी ने ठेके से अंगरेजी शराब की बोतल खरीदी थी. साथ ही उस की दुकान से नमकीन का पैकेट भी लिया था.

वेलेंसिया की भूल: भाग 2

वेलेंसिया की भूल: भाग 1

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आखिरी भाग

रीमा वलीप अपने बड़े भाई शैलेश वलीप के साथ गोवा के मडगांव के संगम तालुका में रहती थी. परिवार के नाम पर वह सिर्फ बहनभाई ही थे. रीमा का भाई शैलेश वलीप भी उसी शौप में सिक्योरिटी गार्ड था. लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का था.

यह बात जब शौप मालिक को पता चली तो उस ने शैलेश को नौकरी से निकाल दिया. इस के बाद वह घर पर ही रहने लगा. उस का सारा खर्च रीमा पर ही था. वह बहन से पैसे लेता और सारा दिन अपने आवारा दोस्तों के साथ इधरउधर मटरगश्ती करता था. कभीकभी वह बहन रीमा से मिलने मैडिकल शौप पर भी जाता था.

वहीं पर उस की मुलाकात वेलेंसिया फर्नांडीस से हुई थी. पहली ही नजर में वह उस पर फिदा हो गया था. चूंकि उस की बहन रीमा वलीप की दोस्ती वेलेंसिया से थी, इसलिए उसे वेलेंसिया के करीब आने में अधिक समय नहीं लगा.

अब वह जब भी अपनी बहन से मिलने मैडिकल स्टोर आता तो वेलेंसिया से भी मीठीमीठी बातें कर लिया करता था. सहेली का भाई होने के नाते वह शैलेश से बात कर लेती थी.

कुछ ही दिनों में शैलेश वेलेंसिया के दिल में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हो गया था. वेलेंसिया जब उस के करीब आई तो शैलेश की तो जैसे लौटरी लग गई थी. क्योंकि वेलेंसिया के पैसों पर शैलेश मौज करने लगा था. इस के अलावा जब भी उसे पैसों की जरूरत पड़ती तो वह उधार के बहाने उस से मांग लिया करता था.

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वेलेंसिया उस के भुलावे में आ जाती थी और उसे पैसे दे दिया करती थी. इस तरह वह वेलेंसिया से लगभग एक लाख रुपए ले चुका था. वेलेंसिया उसे अपना जीवनसाथी बनाने का सपना सजा रही थी, इसलिए वह शैलेश को दिए गए पैसे नहीं मांगती थी.

अगर वेलेंसिया के सामने शैलेश की हकीकत नहीं आती तो पता नहीं वह वेलेंसिया के पैसों पर कब तक ऐश करता रहता. सच्चाई जान कर वेलेंसिया का अस्तित्व हिल गया था. वह जिस शख्स को अपना जीवनसाथी बनाने का ख्वाब देख रही थी, स्थानीय थाने में उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.

यह जानकारी मिलने के बाद वेलेंसिया को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा. उसे शैलेश से नफरत होने लगी और वह उस से दूरियां बनाने लगी.

इसी बीच नवंबर, 2018 में एक दिन वेलेंसिया का रिश्ता कहीं और तय हो गया. शादी की तारीख सितंबर 2019 तय हो गई. शादी तय हो जाने के बाद वेलेंसिया ने शैलेश वलीप से अपनी दोस्ती खत्म कर दी और उस से अपने पैसों की मांग करने लगी.

एक कहावत है कि चोट खाया सांप और धोखा खाया प्रेमी दोनों खतरनाक होते हैं. वेलेंसिया को अपने से दूर जाते हुए देख शैलेश का खून खौल उठा. एक तो वेलेंसिया ने उसे उस के प्यार से वंचित कर दिया था, दूसरे वह उस से उधार दिए पैसे की मांग कर रही थी.

पैसे लौटाने में वह सक्षम नहीं था. इसलिए आजकल कर के वह वेलेंसिया को टाल देता था. शैलेश अब वेलेंसिया से निजात पाने का उपाय खोजने लगा. इसी दौरान योजना बनाने के बाद उस योजना को अमलीजामा पहनाने का सही मौका मिला 6 जून, 2019 को.

6 जून को जब उसे यह जानकारी मिली कि वेलेंसिया आज अपनी ड्यूटी के बाद मौल से शौपिंग करेगी. इस के लिए उस ने एटीएम से पैसे भी निकाल लिए हैं. इस के बाद शैलेश का दिमाग तेजी से काम करने लगा.

अपनी योजना को साकार करने के लिए शैलेश अपने दोस्त देवीदास गावकर के पास गया और उस से यह कह कर उस की स्कूटी मांग लाया कि उसे एक जरूरी काम से गोवा सिटी जाना है. स्कूटी की डिक्की में उस ने वेलेंसिया की मौत का सारा सामान, नायलौन की रस्सी और प्लास्टिक की एक बड़ी थैली रख ली थी.

स्कूटी से वह वेलेंसिया के मैडिकल शौप के सामने पहुंच कर उस का इंतजार करने लगा. उस ने वहीं से वेलेंसिया को फोन मिलाया तो न चाहते हुए भी उस ने शैलेश की काल रिसीव कर ली. शाम 8 बजे वेलेंसिया अपनी ड्यूटी पूरी कर शौप से बाहर निकली तो वह स्कूटी ले कर उस के पास पहुंच गया और उस का पैसा लौटाने के बहाने उसे अपनी स्कूटी पर बैठा लिया.

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पैसे मिलने की खुशी में वेलेंसिया अपने जन्मदिन की शौपिंग करना भूल गई. अपनी स्कूटी पर बैठा कर वह उसे एक सुनसान जगह पर ले गया. रास्ते में उस ने वेलेंसिया को जूस में नींद की गोलियों का पाउडर डाल कर पिला दिया, जिस के कारण वेलेंसिया जल्द ही बेहोशी की हालत में आ गई थी.

वेलेंसिया के बेहोश होने के बाद शैलेश ने उस के हाथपैर अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी से कस कर बांध दिए और उस के गले में उस का ही दुपट्टा डाल कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

वेलेंसिया को मौत के घाट उतारने के बाद शैलेश वलीप ने उस के पर्स में रखे रुपए निकाल कर उस का मोबाइल फोन कुछ दूर जा कर झाडि़यों में फेंक दिया था.

शैलेश वलीप अपनी योजना में कामयाब तो हो गया था लेकिन अब उस के सामने सब से बड़ी समस्या थी, शव को ठिकाने लगाने की. शव गांव के करीब पड़ा होने के कारण उस के पकड़े जाने की संभावना ज्यादा थी और बिना किसी की मदद के अकेले उसे ठिकाने लगाना उस के लिए संभव नहीं था.

ऐसे में उसे अपने दोस्त देवीदास गावकर की याद आई. वह तुरंत गांव वापस गया. देवीदास को पूरी बात बताते हुए जब उस ने शव ठिकाने लगाने में उससे मदद मांगी तो देवीदास गावकर के चेहरे का रंग उड़ गया. पहले तो देवीदास इस के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन जब शैलेश ने उसे 2 हजार रुपए शराब पीने के लिए दिए तो वह फौरन तैयार हो गया.

उस ने अपने घर से एक सफेद चादर ली और घटनास्थल पर पहुंच कर वेलेंसिया का चेहरा बिगाड़ कर उस के शव को पौलीथिन में डाला. फिर वह थैली चादर में लपेट ली और उसे स्कूटी पर रख कर घटनास्थल से करीब 10 किलोमीटर दूर ले जा कर केपे पुलिस थाने की सीमा में फातिमा हाईस्कूल के जंगलों में डाल दिया.

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शैलेश वलीप और देवीदास गावकर से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें मडगांव कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

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