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मैं सीरियस टाइप का हूं, फनी बातें कैसे करूं?

सवाल

मेरी उम्र 30 साल की है लेकिन देखने में 25 साल का लगता हूं. मेरे इसी गुड लुक्स की वजह से 24 साल की एक लड़की को मुझसे प्यार हो गया और उस की मस्तमस्त अदाओं पर मैं भी फिदा हो गया. दिक्कत यह आ रही है कि उसे हंसीमजाक पसंद है, जबकि मैं जरा सीरियस टाइप का हूं. चैटिंग करने का उसे बहुत शौक है, जबकि मुझे समझ नहीं आता कि उस से फनी बातें कैसे करूं? मुझे फनी बातें करना बिलकुल पसंद नहीं है. आप ही मेरी इस समस्या का हल बताएं.

जवाब

आप को कुछ चालाकी दिखाने की जरूरत है क्योंकि आप दोनों डिफरैंट नेचर के लग रहे हो. अभी तो लड़की आप के लुक्स की दीवानी हो गई है लेकिन कहीं आप की सीरियसनैस की वजह से वह आप से बोर न होने लगे. इसलिए अपनी बातों को थोड़ा फनी, फनी न भी बना सको, दिलचस्प बनाने की कोशिश तो करनी ही पड़ेगी.

आप चैट करते हुए लड़की से कई फनी बातें पूछ सकते हो जैसे कि तुम ने अपनी हंसी को कहीं जबरदस्ती रोकने की कोशिश की है? क्या कभी कोई अजीब चीज खाई है? अगर एक दिन के लिए गायब हो जाओ तो क्या करना चाहोगी, एक दिन के लिए लड़का बनो तो क्या करोगी, ऐसी कोई चीज जो फिर नहीं करना चाहोगी वगैरावगैरा.

ये कुछ ऐसे फनी सवाल हैं जिन पर बात करतेकरते कितनी ही और मजेदार बातें निकल कर सामने आएंगी और आप की बातें और भी ज्यादा दिलचस्प बन जाएंगी. धीरेधीरे ही सही पर आप को तो उस के नेचर के हिसाब से ढलना ही होगा, तभी बात करने में मजा आएगा.

आप को अपने अनुभव भी याद आएंगे और इस तरह आप दोनों के बीच की बौंडिंग भी स्ट्रौंग बनेगी. कोशिश शुरू कर दीजिए, नतीजा अच्छा ही निकलेगा. होप फौर द बैस्ट.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

समर स्पेशल : ब्रेकफास्ट में बनाएं मूंग दाल चीला

मूंग दाल चीला ब्रेकफास्ट में सर्व होने वाली हेल्दी और टेस्टी रेसिपी है. यह बनाने में जितनी आसान है खाने में उतनी ही स्वादिष्ट और पौष्टिक. तो आइए झट से बताते हैं इसकी रेसिपी.

 सामग्री

1 1/2 भिगोकर, पानी निकाली हुई मूंग दाल

3/4 टेबल स्पून जीरा पाउडर

1/2 टेबल स्पून हरी मिर्च का पेस्ट

1/2 टेबल स्पून अदरक का पेस्ट

2 चुटकी नमक

2 टेबल स्पून वर्जिन औलिव औयल

बनाने की वि​धि

हरी मूंग की दाल को 5 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. जब यह अच्छी तरह फूल जाए, इसका पानी निकाल लें और मिक्सर में पीस लें.

अब पिसी दाल में बाकी सारी सामग्री मिला लें और अच्छी तरह मिक्स करें.

अब एक चपटे नौन-स्टिक पैन में तेल डालकर गरम करें. एक चम्मच दाल का पेस्ट पैन पर डालकर चम्मच के पीछे की साइड से अच्छी तरह फैला लें.

हल्का सा पकने पर चीले को पलट लें और दोनों तरफ से हल्का भूरा होने तक अच्छी तरह सेक लें. तैयार चीले को हरी चटनी या टमैटो सौस के साथ सर्व करें.

मैं कहां आ गई- भाग 5

नरगिस बोली, “तुम लोगों ने यह क्या लिबास पहना है? क्या इसी तरह बाहर जाओगी?”

“क्यों…? इस लिबास में क्या है?” इमराना ने तैश में आ कर कहा.

“यह लिबास शरीफ लड़कियों पर अच्छा नहीं लगता.”

“क्या हम शरीफ लड़कियां नहीं हैं? आप इसलिए आई हैं हमारे घर कि हमारी ही बेइज्जती करें?”

“यह बेइज्जती नहीं, लड़कियों पर दुपट्टा सजता है.”

“बसबस, अपनी नसीहत अपने पास रखें. डैडी, मैं यह बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकती. मैं नहीं जाती, आप लोगों के साथ.”

“मैं भी नहीं जाऊंगी.” फरहाना ने बहन का साथ दिया.

“तुम लोग क्यों इतनी जज्बाती होती हो? नजमा इस तरह के लिबास की आदी नहीं. कुछ दिन यहां रहेगी तो सीख जाएगी.

खुद भी यही लिबास पहना करेगी.”

नरगिस का मुंह लटक गया. वह समझ रही थी कि भाई उस की तारीफ करेंगे और बेटियों को डांटेंगे कि कैसा लिबास पहन

कर आ गईं, मगर वह तो उलटे उन की हिमायत कर रहे थे. भाभी अलग मुंह बनाए खड़ी थीं. अब नरगिस के बिगडऩे का

सबब ही नहीं था. उस ने माफी मांग ली, “मुझे माफ कर दो इमराना. भाईजान ठीक कहते हैं. मैं इस लिबास की आदी नहीं हूं

न, इसलिए यह बात कह दी. आओ, घूमने चलें.”

बुझे मन से दोनों बहनें उस के साथ चल दीं.

अगले दिन नरगिस ने सुना कि मास्टर साहब आए हैं तो उस के तालीम के शौक ने सिर उभारा, “भाईजान, मैं भी मास्टर

साहब के पास जा कर बैठ जाऊं?”

“हांहां, क्यों नहीं. मैं इंटरकौम पर कहता हूं, इमराना दरवाजा खोल देगी, तुम जाओ.” रशीद बोला.

“मगर वह है किस कमरे में?”

“बालरूम में, और कहां.”

“जी अच्छा, मैं जाती हूं.”

नरगिस ने सोचा, मास्टर साहब से वह खुद बात करेगी. मास्टर साहब तैयार हो गए तो भाई से कह कर कल से खुद भी

पढऩा शुरू कर देगी. नरगिस ने दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा खुला हुआ था. रोम, अतोम, ततोम, तना, तरा, री… अंदर

से आवाजें आ रही थीं. नरगिस उन आवाजों से अवगत थी. यह किस किस्म की पढ़ाई है. वह डरतेडरते अंदर गई. जिन्हें वह

मास्टर साहब कह रही थी, वह उस्तादजी थे. उन से इमराना और फरहाना संगीत की तालीम हासिल कर रही थीं. नरगिस

के लिए उस घर में यह एक और नई बात थी. उस्तादजी ने नरगिस की तरफ देखा और गाना बंद कर दिया.

“यह लडक़ी कौन है?”

“डैडी की बहन हैं.”

“आज से पहले तो नजर नहीं आईं?”

“अभी तो आई हैं मुलतान से.”

“अच्छा चलो, तुम सबक दोहराओ.”

नरगिस एक तरफ सिमट कर बैठ गई. सबक फिर शुरू हो गया.

थोड़ी देर बाद मास्टर साहब रुखसत हो गए और दूसरे उस्तादजी के आने का वक्त हो गया. अब नाच की महफिल जम गई.

नरगिस को बारबार महसूस हो रहा था, जैसे वह दिलशाद बेगम के कोठे पर बैठी है. उसी रात 11 बजे की बात है. इमराना

ने नरगिस से कहा, “आओ, तुम्हें अपने दोस्तों से मिलाऊं.”

नरगिस खुशीखुशी उस के साथ चली गई. बालरूम में महफिल जमी हुई थी. नरगिस का खयाल था, इमराना की सहेलियां

होंगी, लेकिन यहां तो मामला ही दूसरा था, 4 लडक़े बैठे थे.

डेक बज रहा था, फरहाना नाच रही थी. चारों लडक़े सोफे पर बैठे दाद दे रहे थे. नरगिस ने सोचा, तमाशबीनों की कसर थी

इस घर में, अब यह भी पूरी हो गई. सिर्फ नोट नहीं बरसाए जा रहे हैं. बाकी सब वही है, जिस से बच कर वह यहां आई थी.

उसे यों लगा, जैसे सब कुछ वही है, सिर्फ कोठा बदल गया है. अब यह उस के बर्दाश्त से बाहर था. वह गुस्से से उठी और सीधे

भाई के पास कमरे में पहुंच गई.

“भाईजान, यह क्या माहौल बनाया है आप ने?”

“क्या हो गया?” रशीद अहमद घबरा कर खड़ा हो गया.

“मैं अभी बालरूम से आ रही हूं,” नरगिस ने बताया, “फरहाना डांस कर रही है और वह भी लडक़ों के सामने.”

“ओह,” रशीद अहमद बुरी तरह हंसने लगा, “बस इतनी सी बात है? उन लोगों ने एक म्युजिकल ग्रुप बनाया है. प्रोग्राम करते

हैं. किसी प्रोग्राम की रिहर्सल कर रहे होंगे.”

“भाईजान, आप की नजर में यह कोई बात ही नहीं है. लोग मुजरा देखने घरों से दूर जाते हैं, मगर यहां तो घर ही में मुजरा

हो रहा है.”

“नजमा,” रशीद जोर से चीखा, “खबरदार, मेरी बच्चियों के शौक को मुजरा कहती हो? मैं ने तो सुन लिया, लेकिन सोचो,

इमराना या फरहाना ने सुन लिया होता तो उन के दिलों पर क्या गुजरती. तुम्हारी भाभी पार्टी में गई हैं. अगर वह होतीं तो

कितना बिगड़तीं तुम पर.”

“लेकिन भाईजान, क्या मैं सच नहीं कर रही हूं?”

“बिलकुल नहीं. म्यूजिक एक आर्ट है और मेरी बच्चियां आॢटस्ट हैं. यह आर्ट उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाएगा.”

“नाम बदलने से मुजरा आर्ट बन सकता है, लेकिन रहेगा तो मुजरा ही.”

“क्या बेवकूफी की रट लगा रखी है. बड़े घरानों में इसे बुरा नहीं समझा जाता. अब तुम बड़े घर में आ गई हो. एडजस्ट होने

की कोशिश करो.”

“बहुत अच्छा, भाईजान.”

नरगिस सोच रही थी, क्या दिलशाद बेगम का कोठा भी बड़ा घर था? क्या वह घर छोड़ कर उस ने गलती की है? क्या वह

एडजस्ट नहीं हो सकी थी? क्या वहां से आना उस की गलती थी?

बहुत दिनों बाद उस रात नरगिस फिर रोई. ये आंसू खुशी के नहीं, पछतावे के थे. नरगिस से नजमा बनने का पछतावा. अब

उस ने तय किया कि वह इस घर के मामलों में दखल नहीं देगी.

दूसरे दिन शाम को घर में भूचाल आ गया. नौकरचाकर भागेभागे फिर रहे थे. शायद कोई अहम मेहमान आने वाले थे.

मुमकिन है, इमराना या फरहाना में से किसी का रिश्ता आया हो. भाभी की जुबानी मालूम हुआ कि टीवी के प्रोड्यूसर

फरहाना से मुलाकात के लिए आए हैं. कोई ड्रामा तैयार हो रहा है. वह फरहाना को उस में शामिल करना चाहते हैं.

नरगिस तो वहां जा कर नहीं बैठी, लेकिन जब वे चले गए तो भाभी ने उसे बताया, “शुक्र है, फरहाना की मेहनत वसूल हो

गई. प्रोड्यूसर ने बताया कि वह एक ड्रामा तैयार कर रहे हैं, जिस में 2-3 मुजरे पेश किए जाएंगे. फरहाना उस ड्रामे में

तवायफ बन कर मुजरा करेगी. अब देखना, कैसी शोहरत होती है उस की.”

नरगिस जहर का घूंट पी कर रह गई.

प्रोड्यूसर और अदाकारों का आनाजाना बढऩे लगा. फरहाना के दिमाग भी अर्श को छू रहे थे. सीधे मुंह बात ही नहीं करती

थी. उठतेबैठते प्रोड्यूसर की तारीफें, अदाकारों के किस्से. फिर उस ड्रामे की शूङ्क्षटग शुरू हो गई. फरहाना रात गए वापस

आती. सुबह होते ही फिर चली जाती.

उसी बीच जापान से नरगिस का दूसरा भाई हमीद आ गया था. नरगिस भाई की मोहब्बत में गुम हो गई. नरगिस ने उस से

भी दबेदबे लफ्जों में फरहाना की शिकायत की, लेकिन उस का कहना भी यही था कि इस में कोई हर्ज नहीं है, यह मौडर्न

जमाना है. और उस को नापसंद करने वाले दकियानूसी हैं. हमीद कुछ दिन रहने के बाद वापस चला गया. नरगिस फिर जैसे

होश में आ गई. उसे होश आया तो मालूम हुआ, ड्रामा मुकम्मल हो गया है.

“आज फरहाना का मुजरा प्रसारित होगा.” भाभी ने नरगिस को बताया.

पूरा घर टीवी के सामने मौजूद था. रशीद अहमद बारबार घड़ी की तरफ देख रहे थे. वक्त हुआ और ड्रामा शुरू हो गया. फिर

वह सीन आया, जिस में मुजरा पेश किया जाना था. प्रोड्यूसर ने हकीकत का रंग भरने के लिए असली वेश्या बाजार में

शूङ्क्षटग की थी. फरहाना बता रही थी, “यह सेट नहीं है, असली कोठा है.”

चंद उच्छृंखल किस्म के जवान तकियों से टेक लगाए बैठे थे. बूढ़ी नायिका पानदान खोले बैठी थी. इतनी देर में फरहाना कैमरे

के सामने आई. दाग की एक गजल पर उस ने नाचना शुरू किया. एक नौजवान बारबार उठता था और फरहाना शरमा कर

कलाई छुड़ा लेती थी और फिर नाच शुरू हो जाता था.

“वेलडन फरहाना.” डांस खत्म होने के बाद रशीद अहमद ने बेटी को मुबारकबाद दी.

“खुदा करे, यह सीन मशहूर हो जाए.” भाभी ने बेटी को मुबारकबाद दी.

इमराना तो खुशी से फरहाना के गले लग गई.

नरगिस इस धूमधाम से बेपरवाह सोच रही थी. यह कैसा इंकलाब है. मैं कोठे पर सिखलाई जाने के बावजूद वहां नाच नहीं

सकी, भाग आई. एक शरीफ घर की लडक़ी वहां पहुंच कर नाच आई. वही लोग, जो तवायफ को गाली समझते हैं, तवायफ

की तरह नाचने पर अपनी बेटी को मुबारकबाद दे रहे हैं.

उस दिन तो फरहाना को होश ही नहीं था, लेकिन दूसरे दिन उस ने नरगिस से पूछा, “नजमा फूफी, कैसा था मेरा डांस?”

“डांस तो बाद की बात है, पहले यह बताओ कि उस वक्त तुम में और किसी तवायफ में कोई फर्क था?” नरगिस ने पूछा.

“फर्क नहीं रहने दिया, यही तो मेरा कमाल था.” फरहाना ने जवाब दिया.

“तुम करो तो कमाल. यही कमाल तवायफ करें तो समाज गाली देता है.”

“इसलिए कि तवायफ आॢटस्ट नहीं होती.” फरहाना ने दलील दी.

“बहुत खूब. मगर यह क्यों भूलती हो कि वे तुम से बड़ी आॢटस्ट होती हैं. तुम से बेहतर नाच सकती हैं.”

“गलत. तवायफ तमाशबीनों को खुश करने की अदाएं जानती हैं, नाच क्या जानें?”

“तमाशबीनों को तो तुम ने भी खुश किया. देखा नहीं, तुम्हारे डैडी और तुम्हारी मम्मी कैसे खुश हो रहे थे. हालांकि उन्हें

फिक्रमंद होना चाहिए था.”

“यह महज अदाकारी थी.”

“तवायफ भी तो अदाकारी करती है.”

“आप कहना क्या चाहती हैं?”

“यही कि उस वक्त तुम में और किसी तवायफ में कोई फर्क नहीं था, सिवाय इस के कि तुम अदाकारा भी थीं.”

“ऐसी घटिया सोच पर मैं इस के अलावा आप से क्या कह सकती हूं कि आप अनपढ़, जाहिल और गंवार हैं. आप इस फन की

एबीसी भी नहीं जानतीं और चली हैं आलोचना करने.”

“जहां तक जानकारी की बात है फरहाना, तो मैं बता सकती हूं कि तुम ने कहांकहां गलती की है.”

“जिन उस्तादों से मैं ने सीखा है, उन की आप को हवा भी नहीं लगी है. पांव उठा कर चलना आता नहीं, चली हैं मेरी

गलतियां निकालने.”

“मैं तुम्हारी गलतफहमी दूर कर दूं?”

“क्या करेंगी आप?”

“उस गजल की रिकौॄडग है तुम्हारे पास, जिस पर तुम नाची थीं?”

“है.”

“बालरूम में चलो और उसे बजाओ.”

फरहाना की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या होने वाला है. उस ने कैसेट को प्लेयर में रख दिया और देखने लगी कि

क्या होता है.

नरगिस का बदन हरकत में आया और उस के अंगों ने शायरी शुरू कर दी. वह नाच रही थी और फरहाना उसे हैरानी से देख

रही थी. जिसे वह जाहिल, गंवार कह रही थी, वह उस वक्त माहिर नर्तकी नजर आ रही थी. फरहाना ने कई बार अपनी

आंखों को मसला, लेकिन यह हकीकत थी, ख्वाब नहीं था.

“फरहाना, इसे कहते हैं नाच.”

“नजमा फूफी, आप ने यह डांस कहां सीखा?”

“इसे छोड़ो कि यह डांस कहां सीखा, यह पूछो कि मैं ने इस वक्त डांस क्यों किया? तुम न भी पूछो तो मैं तुम्हें बताऊंगी. मैं ने

यह अदना सा नमूना इसलिए पेश किया कि तुम यह जान लो कि नाच सिर्फ तवायफ पर सजता है. तुम घर की जन्नत छोड़

कर दोजख तक जाओगी, लेकिन नाच फिर भी नहीं आएगा. यह नाच मैं ने यह बताने के लिए किया है कि मैं नाच सकती हूं,

लेकिन मैं इस पर फख्र नहीं करती. फख्र करती हूं शराफत के उस आंचल पर, जो इस वक्त भी मेरे सिर पर है. आर्ट के नाम पर

खुद को धोखा मत दो. तुम्हारा आर्ट हमारी शराफत और पाकीजगी है, जो तुम कहीं रख कर भूल गई हो. तुम्हें नाच इसलिए

नहीं आ सकता, क्योंकि तुम तवायफ बनने की अदाकारी तो कर सकती हो, पर वह जख्म कैसे खाओगी, जो तवायफ के दिल

पर रोज लगते हैं. अब भी वक्त है, लौट आओ. इसलिए कि तवायफ जब बगावत करती है तो किसी शरीफ घराने में पनाह

लेती है. तुम बगावत करोगी तो कहां जाओगी? कुछ सोचा? सोच लो तो मुझे बता देना.”

फरहाना सोचती तो क्या, उस ने तो पूरे घर में ऐलान कर दिया कि उस ने एक आॢटस्ट खोज लिया है. यह खबर रशीद अहमद

तक कैसे नहीं पहुंचती. रशीद ने पूछा, “सुना है, तुम डांस बहुत अच्छा करती हो?”

“मजबूरियां जब हद से बढ़ जाएं तो नाच बन जाती हैं.” नरगिस बोली.

“तुम्हें यह फन भी आता है, मुझे मालूम ही नहीं था.”

“मालूम होता भी कैसे, मेरे कदम तो भाई की चारदीवारी में हैं.”

“फन और खुशबू को छिपे नहीं रहना चाहिए. तुम कहो तो मैं कोशिश करूं. एमडी से ले कर चेयरमैन तक सब से परिचय है.”

“अब मुझ में भागने की हिम्मत नहीं है.”

“यह तुम किस किस्म की बातें कर रही हो? सोचो तो, तुम्हारी तसवीरें अखबारों की जीनत बनेंगी. मशहूर हो जाओगी.

तुम्हारे साथ मेरी शोहरत भी होगी.”

नरगिस को लगा, जैसे उस का भाई नहीं, गुलजार खां सामने खड़ा है, जो फिर एक शरीफ घर की लडक़ी को उठाने आ गया

है. वह गौर से उन्हें देख रही थी.

“मगर तुम ने यह फन सीखा कहां से?” रशीद ने पूछा.

“सुन सकेंगे?”

“अरे भई, यकीनन किसी अच्छे उस्ताद का नाम आएगा, सुनेंगे क्यों नहीं.”

“मेरी उस्ताद थीं दिलशाद बेगम और मैं ने यह फन लाहौर की हीरा मंडी (वेश्या बाजार) में 15 साल की लगातार मेहनत से

सीखा है.”

“क्या… तो तुम…?”

“हां, भाईजान, मैं तवायफ थी और शराफत की तलाश में अपने वारिसों के साए में पनाह लेने आई थी.”

“आहिस्ता बोलो. किसी ने सुन लिया तो क्या कहेगा. मेरी इज्जत खाक में मिल जाएगी.”

“कह दीजिएगा, फरहाना की तरह अदाकारी कर रही है.”

“खामोश, मेरी बेटी का नाम अपने साथ न लो. अगर तुम पहले यह सब कुछ बता देतीं तो मैं अपने घर के दरवाजे बंद कर

लेता. वैसे भी तुम हमारे लिए मर चुकी थीं.”

“तो बंद कर लीजिए. यों भी मुझे जिस घर की तलाश थी, यह वह घर नहीं है.”

“दरवाजे अब बंद करूंगा तो दुनिया से क्या कहंूगा?”

“कह दीजिएगा कि तवायफ थी, निकाल दिया.”

“बहुत खूब, मैं अपने मुंह पर खुद कालिख मल दूं.”

“मैं अगर आप के मशविरे पर अमल कर के आर्ट के नाम पर नाचने का प्रदर्शन करूं, तो आप का मुंह सलामत रहेगा?”

“वह और बात होगी.”

“मगर इस तरह मेरे मुंह पर कालिख मल जाएगी. दिलशाद बेगम कहेगी, शाबाश, नरगिस बेगम, शाबाश. तू ने कोठा छोड़

दिया, पेशा नहीं छोड़ा. जो काम मैं तुम से नहीं ले सकी, तेरे सगे भाई ने ले लिया.”

रशीद सिर झुका कर अपने कमरे में चला गया और नरगिस अपने कमरे में आ गई.

दोपहर का वक्त था. सब अपनेअपने कमरों में थे. नरगिस खामोशी से उठी. ड्राइंगरूम में रखी हुई रशीद अहमद की तसवीर

अपनी चादर में छिपाई और खामोशी से बाहर आ गई.

“बीबीजी आप…” दरबान ने पूछा.

“हां, मैं जरा पड़ोस में जा रही हूं. कोई पूछे तो बता देना.”

नरगिस सडक़ पर आई और एक टैक्सी को हाथ दे कर रोका, “स्टेशन चलो.”

स्टेशन पहुंच कर नरगिस ने एक कुली से बुङ्क्षकग औफिस का पता पूछा. चंद औरतें खिडक़ी के सामने खड़ी थीं. वह भी खड़ी

हो गई.

“कहां की टिकट दूं?”

“मुलतान.”

टिकट ले कर गाड़ी का वक्त पूछा और प्लेटफार्म पर आ गई. आज वह फिर एक गुलजार खां से, एक दिलशाद बेगम से बच कर

भाग रही थी. हरम गेट, मुलतान- अपनी मांजी के पास.

छिताई का कन्यादान- भाग 5

तब उस ने छिताई को अपने विश्वस्त राघव के महल में भेज दिया. अलाउद्दीन ने उस की सुरक्षा की इस आशय से अलग व्यवस्था की कि भविष्य में समय बदलने पर उस का मन भी बदल जाए. साथ लाई उस की वीणा भी मन बहलाने के लिए भेज दी.

उधर जब सौंरसी तैयारी के साथ देवगिरि वापस पहुंचा तो उसे छिताई के अपहरण की सूचना मिली. यह आघात वह सहन न कर सका. उस ने दुर्ग, सेना, महल, राजपाट सब त्याग दिया. उस की दशा एक बार तो विक्षिप्त की भांति हो गई. वह जंगल में चला गया और उस ने वैरागी रूप धर लिया. जो मिला, खा लिया और इधरउधर घूमने लगा. वह छिताई की हर ओर खोज करने लगा. अपने असह्यï वियोग की करुणा को उस ने वीणा में झंकृत करना आरंभ किया.

संगीत अन्य कलाओं की भांति साधना है जो भावातिरेक में स्वरों को चमत्कार के रूप में प्रकट करता है. भावों की गहनता कला को साधना के सोपानों से सिद्धि के शिखर का स्पर्श करा देती है. जब छिताई की अतृप्त स्मृति को सौंरसी वीणा के विराट सुरों से तृप्त करने का प्रयास करता तो प्रतीत होता जैसे अदृश्य से दृश्य हो रहा हो. एकांत में सौंरसी के वीणा वादन पर पशुपक्षी स्तब्ध हो कर मुग्ध हो जाते. पुष्प झूमने लगते. प्रकृति थिरकने लगती. वैरागी सौंरसी रुकता नहीं था, टोह लेतेलेते मंजिल की ओर बढ़ा जाता था.

वियोगी हृदयों की भी कोई अनजानी आहट होती होगी. भावी प्रेरणावश सौंरसी दिल्ली पहुंच गया. उस ने एक उपवन में डेरा डाला. प्रात: संध्या अथवा जब उस को भावोद्वेग होता, वह वीणा के तार छेड़ देता. तब बटोही थम जाते. पखेरू चित्रलिखित बन जाते और जल का निर्झर संगत करने लगता था.

उधर अलाउद्दीन ने छिताई के पास इस लालसा से वीणा भेज दी थी कि वह जब प्रकृतिस्थ होगी तो मन बहलाएगी. राघव चेतन के महल में वह कुछ संयमित तो हुई, परंतु स्वाभाविक न बन सकी. राघव चेतन की बातों तथा प्रेरक आशावादिता से वह शरीर संरक्षण हेतु कुछ खानेपीने लगी, मगर वीणा को उस ने हाथ नहीं लगाया. यह वही वीणा थी, जिस पर सौंरसी ने उसे वीणा बजाना सिखाया था. वह वीणा को छेड़ती तो न थी, परंतु उसे छोड़ती भी नहीं थी. वह वीणा उसे प्रियतम की सुधि दिलाती रहती थी.

सुलतान छिताई की वीणा सुनना चाहता था. मगर अन्यमनस्का छिताई उन तारों पर अंगुली नहीं रखती थी. अंत में बादशाह की आज्ञा से दिल्ली के प्रसिद्ध वीणावादक गोपाल नायक छिताई को वीणा झंकार की शिक्षा देने हेतु भेजे गए.

सुलतान ने वादा किया कि जिस दिन छिताई वीणावादन करेगी, गोपाल नायक को मुंहमांगा ईनाम मिलेगा. गोपाल नायक ने बारंबार चेष्टा की. गायन और वादन से छिताई में छिपे कलाकार को जगाने की चेष्टा की परंतु सफल न हुए.

अलबत्ता दोनों कलाकारों ने एकदूसरे में अंतर्निहित कला को पहचान लिया. परस्पर सहानुभूति भी हुई. गोपाल नायक छिताई की यातना को समझते थे. छिताई कम से कम एक बार वीणा बजा कर उन की प्रतिष्ठा सुलतान की निगाह में बढ़ाना चाहती थी, मगर कर न सकी.

अंत में उस ने वह वीणा स्वयं गोपाल नायक को दे दी. उस ने कहा, ‘‘गुरुजी, इसे रख लीजिए. शायद कभी वे आएंगे तो देख कर पहचान तो लेंगे अपनी वीणा को. फिर वे इसे बजाएंगे अवश्य. जब उन के हाथ से वीणा बजेगी तो कितना ही शोर हो, मैं सो भी रही होऊं तो इस वीणा के सुरों को पहचान कर जान लूंगी.’’

दिल्ली में सौंरसी के वीणा वादन की अलौकिकता की ख्याति बढ़ रही थी. उस ने भी संगीतज्ञ एवं वीणावादक गोपाल की पारंगतता के विषय में सुना. सौंरसी गोपाल नायक के घर गया. गोपाल नायक ने सम्मानपूर्वक अपने कक्ष में बैठाया. वार्ता करते हुए सौंरसी ने वहां छिताई द्वारा प्रदत्त अपनी वीणा देखी तो उसे बजाने की अभिलाषा व्यक्त की. जैसे ही सौंरसी ने उस वीणा के सुर झनझनाए तो वे चिरपरिचित स्वर छिताई के कानों में गूंज उठे.

उसे प्रियतम के आगमन का आभास हो गया. वह भावातिरेक में विह्वल हो उठी. सुलतान की पाबंदियों के चलते वह अपने स्वामी से मिल नहीं सकती थी. गोपाल नायक इस कौशल से वीणा बजाने और सौंरसी के उत्साह से जान गए कि यह युवक छिताई की प्रियतम है. उन्होंने उसे राघव चेतन की मार्फत सुलतान से मिलने की सलाह दी, परंतु छिताई के विषय में कुछ नहीं बताया.

योगी वेश में सौंरसी राघव चेतन से मिला और उन से सुलतान से मिलाने की प्रार्थना की. राघव योगी की वीणा वादन कला तथा व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ. उस ने योगी की भेंट दरबार में सुलतान से कराई. योगी ने बताया कि वह दक्षिण में सिंहल से आया है और उस का सब कुछ दिल्ली के बाहर के उद्यान में छिन गया है. सुलतान को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उद्यान में कोई आताजाता न था. फिर योगी के पास ऐसी क्या संपत्ति होगी जो कोई छीनेगा.

योगी की बातें रहस्यमय लगीं तो भी अलाउद्दीन ने उसे परखने की दृष्टि से वीणा बजाने को कहा. योगी ने सिर झुका कर अनुरोध किया कि सुलतान यदि एक बार उद्यान में दरबार लगाएं तो उसे उस का खोया सब कुछ मिल जाएगा. वहीं वह वीणा भी बजाएगा. सुलतान मुसकराया.

उद्यान के सुरम्य वातावरण में दरबार का आयोजन किया गया. सुलतान ने अनुभव किया कि योगी का वीणा वादन शुरू होते ही दिल गुलाब के फूल की तरह खिल उठा. फिजा खुशगवार होने लगी. लगा, जैसे कुदरत ने नींद से जाग कर अंगड़ाई ली हो. पशुपक्षी एकत्रित होने लगे. जब तक वीणा बजती रही, पूरा दरबार, पशुपक्षी, पेड़पौधे सब चुपचाप सुनते रहे. वीणा वादन खत्म होने पर सुलतान बोल उठा, ‘‘मरहबा! क्या खूब!’’

उसे छिताई से अपना वादा याद आया. इस वीणा पर भी यदि छिताई ने वीणा नहीं बजाई तो वह बहरी हो चुकी होगी. उस ने राघव चेतन से छिताई को वीणा सहित बुला लाने का आदेश दिया. जब तक छिताई आ नहीं जाती, उस ने योगी को वीणा बजाने का आदेश दिया. सुलतान ने कहा, ‘‘अगर तुम्हारी वीणा से छिताई की तकलीफ दूर हो जाए तो तुम जो मांगोगे, तुम्हें ईनाम दिया जाएगा.’’

सौंरसी तन्मय हो कर बजाने लगा. दूर से आती हुई छिताई ने जब वीणा की वह चिरपरिचित स्वरलहरी सुनी तो उस का दिल उछलने लगा. छिताई के पांव स्वचालित से उठने लगे. जब उस ने सौंरसी को देखा, तो दाढ़ीमूंछ, केश तथा जोगिया भेष के बावजूद पहचान गई. फिर तो प्रच्छन्न आह्लाद का ज्वार उमड़ आया. मुखमंडल प्रफुल्लता की आभा से दीप्त हो उठा. सारी सभा उस की इस असाधारण मन:स्थिति से प्रमुदित हो उठी.

राघव चेतन ने वीणा निकाली. गोपाल नायक ने उसे ला कर बीच सभा में छिताई के सामने वादन की स्थिति में प्रस्तुत कर दिया. आनंद की उदात्त लहरियां सौंरसी तथा छिताई के मानस में गूंज रही थीं. आंखों के मिलते ही वे एकदूसरे को पहचान ही नहीं गए, बल्कि उन में वियोग का संताप, उलाहना, यातना, सब आनंद में परिवर्तित हो गए. उस आनंद में संगीत सुख की वर्षा बन निर्झर सा फूट पड़ा.

अनजाने में छिताई ने सौंरसी की दी हुई वीणा को उठा लिया. लगा कि वह सुहाग के दिनों की पारंगतता को पुन: प्राप्त कर चुकी है. न जाने कब तक दोनों एकदूसरे की ओर अपलक निहारते हुए वीणा बजाते रहे. पशुपक्षी एकटक उन्हें देख रहे थे.

संगीत के ताल पर मोर नाचने लगे. मृग थिरकने लगे. लगता था, जैसे वीणा की स्वर लहरियों से सब अलौकिक हो उठा हो.

धीरेधीरे सौंरसी ने वीणा की गति धीमी की. छिताई ने भी साथ दिया. जब उन्होंने वीणा वादन रोका तो पूरी सभा सन्नाटे से करतल ध्वनि में बदल गई. सुलतान ने छिताई को इतनी उत्फुल्ल कभी नहीं देखा था. छिताई ने वीणा ही नहीं बजाई, उस ने अपनी कला और उल्लास से पूरी सभा को आह्लादित कर दिया था. सुलतान को अपना वादा याद आया. उस ने सौंरसी से पूछा, ‘‘तुम्हारा ईनाम पक्का. बताओ, तुम्हें क्या चाहिए. आज हमें पता चला कि मौसीकी भी एक तरह की इबादत है. और छिताई, हम ने तुम्हारी बारीकियों को भी परखा. गजब का हुनर है तुम दोनों में.’’

सौंरसी बुत बना बैठा रहा. वीणा वैसे ही पकड़े रहा. एकटक सुलतान को देखता रहा. सुलतान ने फिर शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘जोगी, बताओ तुम क्या चाहते हो? तुम जो मांगोगे, वह तुम्हें मिलेगा.’’

जोगी ने अदब से सिर झुकाया, मुसकराया. फिर फरमाया, ‘‘मान्यवर, आप मुझे वचन देते हैं?’’

अलाउद्दीन की पारखी नजरों ने परख लिया था कि वे दोनों एकदूसरे के निकट रहे हैं. तुरंत उसे शक हो गया कि यही सौंरसी है. परंतु सभा के सम्मुख वह दो बार पूर्व ही वचन दे चुका था. उस ने बेसाख्ता कह दिया, ‘‘बेशक, हम अपनी बात पर कायम रहेंगे. अपना ईनाम मांगो.’’

जोगी ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘श्रीमान, मुझे छिताई को ही दान में दे दीजिए.’’

सुलतान कुछ बोले, इस के पहले ही छिताई आर्तस्वर में, जिस में संयोग का आवेग और विरह की विवशता निहित थी, सिसकती हुई अपने पति के चरणों में गिर पड़ी. सुलतान ने एक बार सभा को देखा, फिर राघव चेतन को निहारते हुए बोला, ‘‘पंडित, वो क्या कहते हैं, तुम्हारे मजहब में? हां, कन्यादान. जोगी, तुम चाहे जो भी हो, मैं छिताई को तुम्हें कन्यादान करता हूं.’’

सौंरसी ने उठ कर 3 बार बंदगी की. पूरी सभा में वाहवाह, बाखूब, वल्लाह, आमीन की आवाजें गूंज उठीं. सुलतान ने हंसते हुए फरमाया, ‘‘मगर मैं ने बेटी को तो कुछ दिया ही नहीं. छिताई, बताओ, तुम क्या चाहती हो?’’

कुछ लोग कठोर अलाउद्दीन की इस दरियादिली पर चकित थे. चित्तौड़ और रणथंभौर के किलों को पत्थर के खंडहरों में तब्दील करने वाले अलाउद्दीन ने सब के सामने छिताई को अपनी बेटी पुकारा था. सौंरसी तथा छिताई की तपस्या ने पत्थर को भी पिघला दिया था. संगीत का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. छिताई ने सिसकते हुए, हाथ जोड़ कर भूमि पर सिर रखा. बोली, ‘‘हे सम्राट, हे पिता, मुझे आप का बस आशीर्वाद चाहिए. आप ने मुझे सब कुछ दे दिया.’’

सौंरसी ने विनयपूर्वक अपना वास्तविक परिचय तथा छिताई को अपनी परिणीता बताया. पूरी सभा इस अद्भुत जोड़ी पर स्नेह की वर्षा करने लगी. अलाउद्दीन ने शाही ढंग से छिताई और सौंरसी की विदाई की. देवगिरि पहुंचने पर दोनों का भव्य स्वागत हुआ. छिताई ने अपने धैर्य से विजय प्राप्त की थी. कुछ दिन वहां रह कर दोनों द्वारसमुद्र चले गए. कोई 5 सौ वर्ष पूर्व कवि नारायण दास ने ‘छिताई वार्ता’ प्रेम काव्य की रचना की थी, जिस का विवरण डाक्टर राजमल वोरा ने अपनी पुस्तक ‘देवगिरि के यादव राजा’ में उल्लिखित किया है.

स्वारा भास्कर ने शेयर किया बेबी बंप की फोटो तो यूजर्स नेे किया ये कमेंट

बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वारा भार्कर ने 3 महीने पहले समाजवादी नेता फहद अहमद से शादी रचाई है, इस शादी के बाद से स्वारा काफी ज्यादा चर्चा में आ गई थी, लेकिन स्वारा के फैंस को तब झटका लगा जब उन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी की खबर सोशल मीडिया पर दी. इस खबर के सामने आते ही सोशल मीडिया पर बवाल मच गया था.

बता दें कि हाल ही में स्वारा भास्कर ने एक तस्वीर शेयर की है जिसके सामने आते ही फैंस और यूजर्स कमेंट करना शुरू कर दिए हैं,  स्वारा की तस्वीर सोशल मीडिया पर कुछ लोग ट्रोल कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग स्वारा को बधाई दे रहे हैं.

हाल ही में एक्ट्रेस ने अपना इंस्टाग्राम अकाउंट अपडेट किया है, जिसमें उन्होंने बेबी बंप फ्लॉट करते हुए तस्वीर शेयर की है, एक तस्वीर में स्वारा के पति भी उसके साथ नजर आ रहे हैं. जिसे देखकर स्वारा के चाहने वाले उन्हें बधाई दे रहे हैं.  बता दें कि जब स्वारा की प्रेग्नेंसी की खबर आई तो लोगों ने इस खबर को फर्जी बताया था. लेकिन जैसे ही स्वारा भास्कर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया सब साफ हो गया कि यह खबर सच है. कुछ यूजर्स का कहना है कि स्वारा भास्कर शादी से पहले से प्रेग्ननेंट हैं.

फादर्स डे स्पेशल: त्याग की गाथा- पापा को अनोखा सबक

डाक्टर शर्मा नौकरी के चक्कर में परिवार को छोड़ कर दिल्ली गए और लोगों को लगा कि वह एक लड़की की मजबूरियों से खुल कर खेलने लगे, लेकिन एक दिन उन के बेटे राजेश ने ऐसा पासा फेंका कि उन की जिंदगी बदल गई.

अंखियों से गोली मारे : सोसायटी में नई पङोसन आने के बाद से क्या हुआ था?

हाथों में अखबार लिए गैलरी में बैठे मिस्टर वासु की निगाहें लगभग आधे घंटे से अपने सामने वाली गैलरी में ही टिकी हुई थीं, लेकिन अभी तक उन्हें उस अप्सरा का दीदार नहीं हो पाया था जिस की प्रतीक्षा में वासुजी अखबार पढ़ने की आड़ में अपनी पलकें बिछाए बैठे थे. यह सिलसिला लगभग उसी दिन से प्रारंभ हो गया था जिस दिन से मिस्टर ऐंड मिसेज रंभा वासु के गैलरी के सामने वाले फ्लैट में किराए पर रहने आए थे.

वासु की निगाहों में आज भी रंभाजी की वह तसवीर बसी हुई है, जब उन्होंने रंभाजी को पहली बार अपने गीले बालों को झटकते हुए देखा था. बालों से गिर कर पानी की कुछ बूंदें यों लग रहा था मानो खिले हुए गुलाब पर ओस की बूंदें चमक रही हों और रंभा के सुर्ख गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह. जिन्हें देख कर वासुजी का नन्हा दिल मचल उठा और फिर जब रंभाजी ने उन्हें देख कर मुसकराते हुए अपनी नजरों से एक ऐसा तीर चलाया कि उस दिन से ले कर आज तक वासुजी घायल ही हैं और रंभाजी से अपने दिल का इलाज और दवाई की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

आज रंभाजी तो न जाने क्यों गैलरी में अपने मधुर स्वर के संग वासुजी को सुप्रभात कहने नहीं आईं लेकिन किचन से वासुजी की धर्मपत्नी मोहिनी की कर्कश आवाज जरूर आई,”सुनते हो, आज गैलरी में ही बैठे रहने का इरादा है क्या? अगर स्वच्छ हवा का सेवन हो गया हो तो आ कर नाश्ता भी कर लो.” श्रीमती की आवाज सुनते ही वासुजी हड़बड़ा ग‌ए और बोले,”बस आ ही रहा हूं, तुम नाश्ता लगाओ.” मनमसोस कर वासुजी अंदर आ ग‌ए और बोले,”आज हवा में ताजगी नहीं थी, मजा नहीं आया.”

यह सुन कर मोहिनी बोली,”अरे शहर में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि हवा में ताजगी कहां से रहेगी.” बेचारी मोहिनीजी को कहां पता था कि उन के श्रीमान किस हवा के ठंडे झोंके संग मिलने वाली ताजगी की बात कर रहे हैं. वासुजी नाश्ता तो कर रहे थे लेकिन उन का दिल गैलरी में ही अटका हुआ था और आज रंभाजी को देख न पाने की कसक दिल में चुभ रही थी. तभी मोहिनी बोली,”आज बंटी के स्कूल में पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग है, आप समय निकाल कर मेरे साथ चलिएगा,” इतना सुनते ही वासुजी को अपने औफिस के सारे काम और बौस याद आ गए और बोले,”नहींनहीं… आज तो स्कूल जा‌ पाना मुश्किल है क्योंकि आज औफिस में बहुत काम है और बौस भी छुट्टी नहीं देंगे. मेरा औफिस जाना जरूरी है,” इतना कह कर वे नाश्ता कर औफिस जाने की तैयारी में लग गए और मोहिनी घर के कामों में.

आज रोज की तरह वासुजी गोविंदा का वह गाना भी नहीं गुनगुना रहे थे, “अंखियों से गोली मारे….” क्योंकि आज रंभाजी से आंखें चार ही नहीं हो पाई थीं.

घर से औफिस के लिए निकलते वक्त भी उन का ध्यान गैलरी में खड़ी हाथ हिला रही अपनी पत्नी मोहिनी की ओर नहीं बल्कि रंभाजी की गैलरी पर इस आशा से था कि शायद उन की एक झलक दिख जाएं लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

अपार्टमेंट से निकलते ही मोड़ पर खड़ी रंभाजी को देखते ही वासुजी के चहरे में चमक आ गई. जिस तरह शमां को देख परवाना फड़फड़ाने लगता है ठीक उसी तरह उन का भी यही हाल हो गया और उन्होंने अपनी कार की रफ्तार धीमी कर ली फिर रंभाजी के करीब पहुंच कर उन्होंने कार रोक दी.

गहरे गले का ब्लाउज उस पर स्लीवलैस, गुलाबी रंग की खूबसूरत साड़ी और खुले बालों में रंभाजी पूरी मनमोहिनी लग रही थीं. अपने सामने वासुजी को यों आ कर कार रोकते देख वे बड़ी अदा से कार के विंडो के पास आ कर झुकीं, उन के झुकते ही साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया और उन के दोनों वक्षों के बीच की गहराई दिखाई देने लगी जिसे देख वासुजी की नजरें वहां जा कर थम गईं और वे उस में डूबने को आतुर दिखे, जिसे रंभाजी भी भांप गईं और अपना पल्लू ठीक करती हुई बोलीं,”वासुजी, क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? मुझे मेन मार्केट तक ड्रौप कर दीजिए, मुझे कुछ सामान खरीदना है.”

ललचाई आंखों से रंभाजी को देखते हुए वासुजी बोले,”अरे क्यों नहीं आइए बैठिए, मैं उसी तरफ जा रहा हूं,” कहते हुई उन्होंने कार की अगली सीट का दरवाजा खोल दिया. रंभाजी अपने बालों पर हाथ फेरती हुईं वासुजी के बगल वाले सीट पर सामने आ बैठीं. रंभाजी के बगल में बैठते ही वासुजी का पूरा बदन सिहर उठा और क‌ई रंगीन कल्पनाओं में गोते लगाते हुए उन के मन में लड्डू फूटने लगे. वासुजी ने रोमांटिक गाने लगा दिए.

“वासुजी कार रोकिए…” रंभाजी के ऐसा कहने पर उन्हें एहसास हुआ कि मार्केट तो आ गया. उन्हें लगा पलक झपकते ही मार्केट तक की दूरी तय हो गई. कार से उतरते हुए रंभाजी बोलीं,”थैंक्यू वासुजी, यहां से मैं शौप तक पैदल ही चली जाऊंगी,” उन के इतना कहते ही वासुजी का चेहरा बासी फूल की तरह मुरझा गया, यह देख रंभा थोड़ी मुसकराती हुई बोलीं,”यदि आप फ्री हों तो आप भी साथ चलिए, मेरी शौपिंग में हैल्प हो जाएगी, मुझे कुछ इवनिंग और नाइट गाउन खरिदने हैं. आज आप की पसंद से खरीद लूंगी,” रंभाजी के बस इतना कहने मात्र से ही वासुजी ऐसे खिल उठे जैसे पानी के छीटें पड़ते ही मुरझाए हुए फूलों में ताजगी आ जाती है.

कार पार्क कर रंभाजी को आगे चलने को कह, फटाफट अपने बौस को जरूरी काम की वजह से औफिस नहीं आ पाने के लिए मैसेज कर दिया और फिर रंभाजी के साथ हो लिए.

दुकान पहुंच कर रंभाजी के लिए एक से बढ़ कर एक इवनिंग और नाइट गाउन वासुजी कुछ इस तरह से पसंद कर रहे थे मानो ये सारे गाउन रंभाजी उन के लिए ही पहनने वाली हों और उसी तरह रंभाजी भी वासुजी से गाउन ऐसे पसंद करवा रही थीं जैसे वे गाउन उन्हीं के लिए पहनने वाली हैं.

दोनों को इस प्रकार गाउन सिलैक्ट करता देख काउंटर पर गाउन दिखा रहा लड़का आंखों में थोड़ी शरारत भरते हुए बोला,”भैयाजी, यह गाउन देखिए, फ्रंट ओपन इस गाउन में भाभीजी कमाल की लगेंगी.” इतना सुनते ही उन का चेहरा ऐसे लाल हो गया जैसे उस सैल्स बौय ने बैडरूम के कुछ सीक्रेट्स कह दिए हों.

गाउन पसंद करने के बाद जब दोनों कैश कांउटर पर पहुंचे तो 6 गाउन का बिल ₹12 हजार बना. बिल पेमैंट के लिए अपना पर्स खोलते ही रंभाजी अपसेट होती हुई कांउटर पर बैठे दुकानदार से बोलीं,”ओह… मैं तो अपना क्रैडिट कार्ड लाना ही भूल ग‌ई हूं. भैया, ये सारे गाउन रहने दीजिए, मैं फिर कभी आ कर ले जाऊंगी.”

रंभाजी को अपसेट और गाउन न खरीदते देख वासुजी बोले,”अरे यह क्या कह रही हैं, कोई बात नहीं यदि आप अपना क्रैडिट कार्ड लाना भूल ग‌ई हैं तो मैं अपने क्रैडिट कार्ड से पेमैंट कर देता हूं.”

पहले तो रंभाजी मानीं नहीं लेकिन जब वासुजी ने कहा,”मेरी तरफ से छोटा सा गिफ्ट समझ कर रख लीजिए, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा,” ऐसा सुनते ही रंभाजी फौरन मान गईं और मुसकराते हुए बोलीं,”मैं आप का दिल कैसे तोड़ सकती हूं.” और इस तरह से ₹12 हजार के बिल की कैंची रंभाजी ने बड़ी ही चालाकी से वासुजी के जेब पर चला दी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। इस से पहले भी कई बार रंभाजी किसी न किसी बहाने से वासुजी के जेब की सफाई कर चुकी थीं और वासुजी ने बड़ी खुशी से उन्हें ऐसा करने दिया था.

खरीददारी के बाद रंभाजी अदाएं दिखाती हुई बोलीं,”थैंक यू… वासुजी मैं ने आप के रूप में एक बहुत अच्छा दोस्त पा लिया है.”

रंभा से अपने लिए ‘अच्छा’ दोस्त सुन कर वासुजी फूल कर कुप्पा हो ग‌ए और यह सोच कर मंदमंद मुसकराने लगे कि प्यार की पहली सीढ़ी दोस्ती ही तो होती है. तभी रंभाजी दोबारा बोलीं,”वासुजी, क्या आप मेरी एक और मदद कर सकते हैं? क्या आप मुझे मेरे बेटे चिंटू के स्कूल तक ड्रौप कर देंगे? आज उस के स्कूल में पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग है.” रंभाजी के संग और कुछ समय गुजारने का यह मौका भला वासुजी अपने हाथों से कैसे जाने देते. बिना सोचेसमझे फौरन उन्होंने हामी भर दी और दोनों चिंटू के स्कूल की तरफ चल पड़े.

स्कूल के पार्किंग में पहुंचते ही वासुजी का माथा ठनका, यह तो उन के बेटे बंटी का स्कूल है और आज तो उन की पत्नी मोहिनी भी स्कूल आने वाली है, तभी उन्हें स्कूल के अंदर से मोहिनी आती हुई दिखाई दी. पत्नी को देखते ही वासुजी के पसीने छूट गए. रंभाजी के कार से उतरते ही वासुजी, रंभाजी को बाय कहे बगैर ही गाड़ी रिवर्स गियर में डाल वहां से नौ दो ग्यारह हो ग‌ए.

इस प्रकार एकाएक इतनी तेजी से किसी कार को जाता देख एक पल के लिए मोहिनी को लगा कि शायद यह कार उस के पति की थी पर अगले ही क्षण यह सोच कर कि अभी तो उस के पति औफिस में होंगे, वह टैक्सी स्टैंड की तरफ मुड़ गई. मोहिनी घर पहुंची तो उस ने देखा वासुजी घर पर हैं। यह देख वह आश्चर्य से बोली,”इस वक्त आप यहां घर पर…”

वासुजी पहले ही इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मोहिनी ने उन्हें देख न लिया हो इसलिए लोमड़ी की तरह चालाकी से स्वांग करते हुए अपने चेहरे पर भोलेपन का भाव लाते हुए बोले,”वह सुबह तुम कह रही थीं न कि आज बंटी के स्कूल जाना‌ है पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग में, इसलिए मैं घर आ गया.”

भोलीभाली मोहिनी वासुजी की बातों को सच मान गई और बोली,”अरे, आप आने वाले थे तो फोन कर देते मैं तो अभी स्कूल से ही आ रही हूं.” कहती हुई मोहिनी किचन की ओर चली गई.

उसी वक्त डोरबैल बजा, दरवाजा खोलते ही सामने सोसायटी का वौचमैन हाथों में एक परची लिए खड़ा था, वासुजी को देखते ही परची उन की हाथों में पकड़ा वहां से चला गया.

उस परची में आने वाले रविवार को सोसायटी में होने वाले गेटटुगेदर और सांस्कृतिक कार्यक्रम की सूचना थी, जिसे पढ़ते ही वासुजी के पूरे शरीर में गुदगुदी होने लगी। वह सोचने लगे कि इस रविवार तो खुले आसमान के नीचे पूरी सोसायटी खूबसूरत फूलों से गुलजार रहेगी और उन्हें अपनी आंखें सेंकने का भरपूर मौका मिलेगा. वे रविवार को होने वाले गेटटुगेदर के हसीन सपने और उस की तैयारियों में खो गए.

वह रविवार भी आ गया जिस दिन का वासुजी के साथ ही साथ कालोनी के और भी कई तथाकथित सभ्य एवं शरीफ पुरुषों को इस सुनहरे दिन की प्रतीक्षा थी, जो समाज के समक्ष यह मुखौटा पहने हुए थे कि वे ऐसे सज्जन पुरुष हैं, जो सभी स्त्रियों को सम्मान की नजरों से देखते हैं और कभी भी उन पर बुरी नजर नहीं डालते हैं. कुछ ऐसी स्त्रियां भी थीं जो पुरुषों के ताड़ते नजरों को बड़े आसानी से पकड़ लेती थीं और फिर अपने लटकेझटके दिखा कर उन का भरपूर इस्तेमाल करती थीं और अपने छोटेबड़े काम भी निकलवा लेती थीं.

सुबह से ही सोसायटी ग्राउंड में चहलपहल थी. सोसायटी की ज्यादातर महिलाएं शाम को होने वाले फंक्शन पर क्या पहनना है और कैसे मेकअप करना है इसी की तैयारियों में लगी हुई थीं ताकि वे सब से खूबसूरत लग सकें और अपनी खूबसूरती का जलवा कार्यक्रम में बिखेर सकें.

वासुजी निर्धारित समय पर बिलकुल अपटूडेट हो कर ग्रांउड पहुंच गए, जहां पहले से ही और भी कई लोग उपस्थित थे. धीरेधीरे कर सोसायटी के सभी लोग आ गए थे, लेकिन वासुजी को जिस का बेसब्री से इंतजार था वही रंभाजी अब तक नहीं आई थीं. तभी रंभाजी सजधज कर वहां आ पहुंचीं। उन्हें देखते ही वासुजी के साथ और भी कई लोगों के दिल जोरों से धड़कने लगे। आंखें बड़ी हो गईं और मुंह खुले के खुले रह गए. यों लग रहा था जैसे आज रंभाजी यह प्रण कर के आई हैं, ‘सजधज के मैं जरा बनठन के… बाण चलाऊंगी नैन के…’

वासुजी बारबार अपनी पत्नी मोहिनी और बाकी लोगों से नजरें बचा कर रंभाजी के करीब कोई न कोई बहाना बना कर आ जाते और रंभाजी की तसवीरें लेने लगते। रंभाजी भी अलगअलग पोज में तसवीर खिंचवातीं. कुछ देर बाद रंभाजी से वासुजी कुछ इस तरह व्यवहार एवं निकट होने का प्रयत्न करने लगे जैसे रंभाजी उन की संपत्ति हों, जिसे उन्होंने खरीद लिया हो.

तभी स्टेज पर रंभाजी का नाम पुकारा गया. रंभाजी आज अपना एक सोलो डांस परफौर्मैंस देने वाली थीं. जैसे ही उन्होंने अपना परफौर्मैंस देना शुरू किया तो वहां उपस्थित महिलाएं मुंह बनाने लगीं और पुरूषों में खलबली मच गई। सभी पुरुष भारी उत्साह से रंभाजी की डांस का मजा लेने लगे.

रंभाजी के नृत्य के दौरान उन के एक एक नृत्य मुद्रा पर देर तक तालियां बजती रहीं. डांस के बाद जब वे अपने सीट पर आईं तो काफी देर से उन की अदाओं को देख मचल रहे वासुजी का दिल बागी हो गया और वे रंभाजी के पास चले गए और फिर अपनी मर्यादा से बाहर होने लगे, यह देख उन के पति वहां आ गए क्योंकि इस के पहले भी उन्होंने क‌ई बार मिस्टर वासु को अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार बेतकल्लुफ होते हुए देखा था. बात इतनी बढ़ गई कि पूरी सोसायटी के बीच मिस्टर सिंघ‌ई हाथापाई पर उतर आए और उन्होंने मिस्टर वासु की पिटाई कर दी.

पूरी सोसायटी के समक्ष वासुजी के इज्जत की किरकिरी हो गई. मोहिनी अलग नाराज हो गई और रंभाजी जिस पर वासुजी अपने रूपए बिना सोचेसमझे लुटा रहे थे अपने पति के संग उन्हें ठेंगा दिखा कर चलती बनीं।

1 हफ्ते तक रोज वासुजी सुबह रंभाजी के इंतजार में अखबार पढ़ते, गैलरी में बैठे रहते लेकिन रंभाजी फिर कभी गैलरी में दिखाई नहीं दी. एक रविवार वासुजी ने देखा की रंभाजी के घर का सामान शिफ्ट हो रहा है. मालूम करने पर पता चला कि उन का पूरा परिवार दूसरे कालोनी में शिफ्ट हो रहा है. वासुजी बेहद दुखी हुए, इस बात पर नहीं कि रंभाजी सोसायटी छोड़ कर जा रही हैं बल्कि यह सोच कर कि खायापिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना.

इतने पैसे उन्होंने रंभाजी पर खर्च किए लेकिन रंभाजी उन्हें छूने को भी नहीं मिलीं.

अगली सुबह जब वे गैलरी में बेमन से ग‌ए तो उन्होंने फिर एक नई खूबसूरत हसीन चेहरे को गैलरी में खड़े पाया और फिर वासुजी अखबार ले कर यह गुनगुनाते हुए बैठ ग‌ए,”अंखियों से गोली मारे…

दोस्ती – एक आधार : अलका की दोस्ती प्यार में कैसे बदली?

नवीन कुमार लारोयिआ

घर में हर तरफ चहलपहल थी. सब लोग तैयार हो रहे थे मेरी शादी जो थी. पिताजी ने जिस लड़के को मेरे लिए चुना था, मैं ने चुपचाप उस से शादी करने के लिए हां कर दी थी. मेरे पास और विकल्प नहीं था. पिताजी ने काफी साल पहले यह स्पष्ट कर दिया था की वे मुझे केवल इसलिए पढ़ा रहे थे ताकि मुझे अच्छा वर मिल सके. लड़कियों के नौकरी करने के वे सख्त खिलाफ थे. मेरे लिए परिवार भी उन्होंने ऐसा ढूंढा था जिसे घरगृहस्थी संभालने वाली बहू चाहिए थी, ज़्यादा पढ़ीलिखी लड़की में उस परिवार वालों की कोई दिलचस्पी नहीं थी.

जब भावी ससुराल वाले मुझे देखने आए तो मैं ने अपने होने वाले पति को देखा था. मुझे उन का व्यक्तित्व साधरण सा लगा. कुछ ज्यादा बात नहीं हुई. एक सरकारी कंपनी में इंजीनियर थे. उम्र 25 साल थी. 3 वर्षों से कार्यरत थे वहां. उन की पोस्टिंग एक छोटे से शहर के पास बसी उन की कंपनी की एक कालोनी में थी. अच्छा वेतन था और एक छोटा सा फ्लैट उन्हें अलौट हो चुका था. इसलिए उन के मातापिता चाहते थे कि अब उन की शादी हो जाए और उन का घर बस जाए. एक स्त्री के रूप में घर बसाने का दायित्व अब मुझे निभाना था और उस के लिए उन लोगों ने मुझे उपयुक्त पाया. लड़के के बारे में मुझ से कोई राय नहीं मांगी गई. घर वालों ने देख लिया था, बस, इतना काफी था.

ऐसा नहीं था कि मेरे पिताजी मुझे पढ़ा नहीं सकते थे. वे काफी समृद्ध थे और अगर चाहते तो मैं आगे पढ़ सकती थी. मेरी इच्छा थी कि मैं ग्रेजुएट होने के बाद मास्टर्स करूं और फिर पीएचडी कर के किसी अच्छी यूनिवर्सिटी या कालेज में प्रोफैसर बनूं. पिताजी ने जो एक अच्छा काम किया था वह था मुझे कौन्वेंट स्कूल में पढ़ाना. बचपन से ही मुझे इंग्लिश बहुत पसंद थी और में इंग्लिश लिटरेचर में ही में मास्टर्स और पीएचडी करना चाहती थी पर अब वे सारे सपने गृहस्थी के बोझ तले दबने वाले थे.

पार्लर से आई 2 लड़कियां मुझे तैयार कर रही थीं. मैं चुपचाप उन के सामने बैठी श्रृंगार करवा रही थी. अगर वे मुझ से कुछ पूछती भी थीं तो मेरा यही जवाब होता था, ‘ठीक है.’ और कहती भी क्या. तैयार तो मैं होने वाले पति और ससुराल के लिए हो रही थी, अपने लिए नहीं. पार्लर का चुनाव मेरी सास ने किया था. शादी के कपड़े भी उन्होंने भिजवाए थे और पार्लर वालों को निर्देश भी उन्होंने ही दिया था. लड़कियां भी खुश थीं कि ज़्यादा नानुकुर करने वाली दुलहन नहीं मिली.

तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और मेरी सहेली अलका अंदर आई. अलका का विवाह 2 महीने

पहले ही हुआ था और वह मेरी शादी में शामिल होने आई थी. उस के पति एक व्यापारी परिवार से थे और वे लोग पास के शहर में ही रहते थे.

‘कैसी हो, मेरी लाडो प्रेमिला?’ उस ने पूछा, ‘तो तुम्हारा नंबर भी लग ही गया?’

‘मैं ठीक हूं. जीजाजी नहीं आए?’ मैं ने पूछा.

‘आ जाएंगे. उन्हें छोड़ो और अपने बारे में बताओ. ठीक हो तुम?’ यह कह कर उस ने मेरी ओर देखा, ‘आज तुम्हारा दिन है, उन का नहीं.’

उस का इस तरह से उत्तर देना मुझे थोड़ा अजीब लगा. मेरे विपरीत वह तो शादी के लिए बहुत

उत्सुक थी. पढ़नेलिखने में उस की रुचि साधारण थी. जब उस की शादी पक्की हो गई तो उस के पांव धरती पर नहीं पड़ते थे. अब ऐसी बेरुखी क्यों? शादी को तो अभी सिर्फ 2 ही महीने हुए थे. मैं कुछ कहने ही जा रही थी कि मेरी नज़र उस की बांहों पर पड़ी. मुझे लगा वहां पर चोट के दाग थे.

‘यह क्या है?’ मैं ने उस की बांहों की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

‘कुछ नहीं,’ उस ने जल्दी से कहा और मुंह दूसरी तरफ फेर लिया. मुझे लगा उस की आंखें गीली हो गईं हैं.

मैं ने पार्लर वाली लड़कियों को दो मिनट के लिए बाहर जाने को बोला और अलका को अपनी

तरफ खींचा.

‘बता न, क्या हुआ है, उदास क्यों लग रही है?’ मैं ने थोड़ा ज़ोर से पूछा.

‘और क्या होना है, बस, शादी हुई है,’ यह कहते हुए वह फफक पड़ी.

फिर उस ने बताया कि कैसे उस के पति को उस में नहीं, बस, उस के साथ संबंध बनाने में ही दिलचस्पी है. शादी की पहली रात वह रजस्वला थी पर उस के पति ने फिर भी जबरदस्ती संबंध बनाए. अब भी अगर वह उस की इच्छा पूरी न करे तो वह हाथ उठाने में भी नहीं चूकता. अमीर आदमी है, धमकी देता है कि वह किसी के भी साथ संबंध बना सकता है. शादी तो उस ने परिवार को एक बहू देने के लिए और अपनी मौजमस्ती के लिए की है. एक इंसान के रूप में उसे अपनी पत्नी में कोई दिलचस्पी नहीं है.

अलका की बातें सुन कर मेरा दिल कांप गया. क्या मेरी भी यही नियति होने वाली है? क्या मैं भी एक भोग की वस्तु बन कर रह जाऊंगी?

शादी विधिवत संपन्न हो गई.

सारा समय मेरा ध्यान अलका की बातों में ही अटका रहा. यंत्रवत मैं सारी रस्में करती गई. एकदो बार मैं ने अपने पति की तरफ देखा और अंदाजा लगाने की कोशिश करने लगी कि क्या इस साधारण से दिखने वाले व्यक्ति को मुझ में एक इंसान नज़र आएगा या उस का उद्देश्य केवल मेरा शरीर पाना ही है. पर वह एकदम तटस्थ से बैठे रहे. रस्मों के बाद फोटो खिंचवाने वालों का तांता लग गया और फिर विदाई की बेला आ गई. मुझे बिलकुल रोना नहीं आया. पिता के लिए तो मैं एक बोझ थी जो आज उतर गया था.

दोतीन आंसू छलका के मैं अपने ससुराल पहुंच गई. अब आगे की जिंदगी के लिए मुझे तैयार होना था.

मेरे ससुराल वाले ठीकठाक लोग थे. अच्छा, बड़ा घर था उन का. वहां पर भी कुछ रस्में हुईं और

फिर मेरी ननद मुझे मेरे कमरे में ले गई.

‘लो भाभी, अब आराम करो. भैया अभी आते होंगे,’ यह कह कर वह हंसती हुई चली गई.

कमरा अच्छा था और फूलों से सजाया हुआ था. फर्नीचर पुराना था पर उस पर अच्छे रखरखाव

की झलक दिख रही थी. खैर, अब तो पिताजी का दिया हुआ फर्नीचर आने वाला था. यह सब सोचते हुए मैं दर्पण के सामने जा कर खड़ी हो गई. अपने वजूद को दुलहन के लिबास में निहारा. फिर अपने गहने उतारने लगी. गहनों के भारीपन से सिर दुखने लगा था. इतने में दरवाज़ा खुला और मेरे पति अंदर आ गए.

‘आप ठीक हैं? खुश तो हैं?’ उन्होंने पूछा.

मैं चुप रही पर ‘आप’ शब्द सुन कर थोड़ा अच्छा लगा. पर तभी, अलका का सारा वृत्तांत आंखों के सामने आ गया. अब जबरदस्ती का रिश्ता शुरू होगा क्या?

शादी इतनी जल्दी हो गई कि हमें एकदूसरे को जानने का मौका ही नहीं मिला. वे फिर

बोले, ‘पतिपत्नी तो हम बन गए पर मैं चाहता हूं कि अपने रिश्ते को आगे ले जाने से पहले हम दोस्त बनें. आप क्या सोचती हैं?’

मैं ने सिर उठा कर उन को देखा. उन का चेहरा अब कुछ अलग दिख रहा था. सारी उम्र मेरे पिता ने कभी मेरी मरजी नहीं पूछी और अब यह आदमी मेरी मरजी पूछ रहा है, वह भी उस घडी में जब मर्दों को अपनी मनमरजी करने की जल्दी होती है.

‘जैसा आप कहें,’ मैं ने किसी तरह अपना मुंह खोला.

 

‘नहींनहीं. अब हम पतिपत्नी हैं. एकदूसरे पर अधिकार ज़माने के लिए अपनी मनमरजी नहीं कर

सकते. आगे जो भी होगा, दोनों की रज़ामंदी से होगा,’ वे फिर बोले, ‘दोस्ती हमारे रिश्ते का आधार होगी – जबरदस्ती नहीं.’

‘वह मेरी सहेली, अलका. उस ने कहा था…’ और मैं ने अलका का सारा किस्सा उन्हें सुना दिया. वे चुपचाप सुनते रहे.

फिर वे मेरी तरफ आए और मेरा हाथ पकड़ कर बोले, ‘मैं कोई बलात्कारी नहीं हूं. आप का पति

हूं, ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से आप को तकलीफ पहुंचे. पहले हम डेटिंग करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे, सचमुच में प्यार करेंगे और फिर उस प्यार को उस की पराकाष्ठा तक ले कर जाएंगे. यह मेरा आप से वादा है.’

जिसे मैं ने साधारण समझा था, वह तो असाधारण निकला. उस रात हम एक ही पलंग पर सोए. पर बीच में उन्होंने खुद ही तकियों की एक दीवार बना ली.

‘आप सो जाइए, मैं भी सोना चाहता हूं. बाकी बातें कल करेंगे.’

उन की इस बात से मेरे अंदर चल रही खलबली शांत हो गई.

अगले दिन मेरी ननद ने शरारती अंदाज़ में पूछा, ‘रात कैसे गुज़री, भाभी?’

‘दोस्ती में,’ मैं ने कहा. वह शायद समझी नहीं.

उन्होंने अपना वादा निभाया. ससुराल में एकदो दिन रुक कर हम उन के क्वार्टर पर उन की

पोस्टिंग वाली जगह पर चले गए. प्यार होने में अधिक समय नहीं लगा. हमारी शादी को आज 5 वर्ष हो गए हैं. हम 2 वर्ष के एक बेटे के मांबाप भी बन गए हैं. पर हमारी दोस्ती आज भी कायम है. कोई जबरदस्ती नहीं है. और हां, मेरे ‘दोस्त’ ने मेरी इच्छा पूरी की है. मैं ने अपना मास्टर्स पूरा कर लिया है और अब इन की कालोनी के स्कूल में मैं ने इंग्लिश पढ़ाना शुरू कर दिया है.

नीतू ने खुद उजाड़ा अपना घर

वह 30 अगस्त, 2022 का दिन था. उस समय सुबह के 8 बज रहे थे. हरिद्वार जिले के रुड़की शहर की
कोतवाली गंगनहर के कोतवाल ऐश्वर्य पाल उस समय अपने क्वार्टर में ही थे. उस वक्त वह कोतवाली आने के लिए तैयार हो रहे थे.जैसे ही ऐश्वर्य पाल बाथरूम से नहा कर निकले तो उन्हें अपने क्वार्टर का दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी. ऐश्वर्य पाल जोर से बोले, ‘‘कौन है?’’

तभी गेट की दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘सर, मैं थाने का मुंशी संतोष हूं.’’इस के बाद ऐश्वर्य पाल ने मकान का दरवाजा खोलते हुए संतोष से पूछा, ‘‘सब कुछ ठीक तो है?’’‘‘नहीं सर, काफी देर से कंट्रोलरूम से वायरलैस पर एक मैसेज लगातार आ रहा है. मैसेज में बताया जा रहा है कि अपने थाना क्षेत्र सालियर मंगलौर बाइपास पर सड़क के किनारे एक युवक की गरदन कटी लाश पड़ी है. सर, क्षेत्र में लाश के मिलने का मामला थोड़ा गंभीर है,’’ संतोष बोला‘‘ठीक है संतोष, तुम कोतवाली में फोर्स को तैयार करो. मैं 5 मिनट में वरदी पहन कर आता हूं.’’ ऐश्वर्य पाल बोले.

इस के बाद संतोष चला गया.मामला चूंकि हत्या का था, इसलिए कोतवाल ऐश्वर्य पाल ने लाश मिलने की सूचना तत्काल सीओ विवेक कुमार व एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोभाल को मोबाइल द्वारा दी और खुद तैयार हो कर कोतवाली पहुंच गए.इस के बाद कोतवाल अपने साथ एसएसआई धर्मेंद्र राठी, एसआई पुनीत दसौनी, विक्रम बिष्ट, महिला थानेदार अंशु चौधरी तथा सिपाही इसरार व भूपेंद्र को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.घटनास्थल कोतवाली से महज 8 किलोमीटर दूर था, अत: पुलिस टीम 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गई.

कोतवाल ऐश्वर्य पाल ने देखा कि मौके पर काफी भीड़ थी तथा वहां पर आसपास के गांव वालों की भीड़ युवक की लाश को घेर कर खड़ी थी. वहां खड़े लोग इस लाश के बारे में तरहतरह की बातें कर रहे थे. पुलिस को देख कर वहां से लोगों की भीड़ छंटने लगी थी.ऐश्वर्य पाल ने लोगों से पूछताछ करते हुए पहले मृतक की पहचान कराने का प्रयास किया. लेकिन सभी ने पहचानने से मना कर दिया. मृतक की उम्र यही कोई 30-32 साल थी. इस के बाद एसएसआई धर्मेंद्र राठी ने मृतक की जेब में रखे कागजों को चैक किया. उस में एक आधार कार्ड मिल गया.

वह आधार कार्ड सतवीर पुत्र कुलवीर निवासी शिव मंदिर के पास एक्कड़ कलां थाना पथरी, हरिद्वार के नाम से था.पुलिस ने आधार कार्ड पर प्रिंट फोटो का जब मृतक के चेहरे से मिलान किया तो पाया कि वह आधार कार्ड मृतक का ही था. इस के बाद पुलिस ने मृतक के घर वालों को थाना पथरी के माध्यम से सूचना भिजवाई.

अभी पुलिस मौके का निरीक्षण ही कर रही थी, तभी वहां सीओ विवेक कुमार, एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोभाल तथा क्राइम इनवैस्टीगेशन यूनिट के प्रभारी जहांगीर अली भी पहुंच गए.पहले इन अधिकारियों ने मृतक सतवीर के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक के गले पर धारदारचाकू से रेतने के निशान थे तथा उस के कपड़े खून से तर थे. एसपी (देहात) डोभाल ने लाश का निरीक्षण करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दी. कोतवाल ऐश्वर्य पाल को कुछ दिशानिर्देश देने के बाद श्री डोभाल और विवेक कुमार वापस लौट गए.

आधे घंटे बाद पुलिस ने सतवीर के शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दिया था. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी जहांगीर अली ने आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक करनी शुरू कर दी.लगभग 2 घंटे तक काफी मशक्कत करने के बाद पुलिस को जानकारी मिली कि जिस जगह पर सतवीर का शव मिला था, वहां रात के समय एक यूपी नंबर की बोलेरो गाड़ी देखी गई थी.

उस गाड़ी की जानकारी हासिल करने के लिए पुलिस ने मुजफ्फरनगर की छपार थाने की पुलिस से संपर्क किया था और बहादराबाद के टोल प्लाजा पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी चैक किया. उस फुटेज में बोलेरो गाड़ी में सतवीर अपने 2 दोस्तों के साथ रुड़की की ओर आता हुआ दिखाई दे रहा था. यह फुटेज देखने के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली थी.सतवीर की लाश मिलने की सूचना पा कर उस के पिता कुलवीर, मां, बड़ी बहन व भाई दोपहर 12 बजे राजकीय अस्पताल रुड़की पहुंच गए थे और जैसे ही उन्होंने मोर्चरी में सतवीर के गला कटे शव को देखा था तो फफक कर रो पड़े.

सतवीर के घर वालों को बिलखते देख कर वहां खड़े काफी लोगों की आंखों से आंसू छलक पड़े. सतवीर के मां, बाप, बड़ी बहन व भाई का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. उन के रिश्तेदारों ने दुख की इस घड़ी में उन्हें किसी तरह से शांत किया था.इस के बाद कोतवाल ऐश्वर्य पाल ने जब सतवीर के पिता से मामले की जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि सतवीर का मुख्य काम एक्कड़ कलां में खेती का था और वह खनन का काम भी करता था.

कुछ समय पहले वह पंजाब में भी खनन का काम कर चुका था. सतवीर अपनी पत्नी नवनीत उर्फ नीतू तथा 2 बेटों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी.
पिछली शाम को सतवीर घर से पैदल ही निकला था. उस ने घर पर बताया था कि उस के कुछ दोस्त बाहर से आए हैं. हो सकता है कि उसे ट्रैक्टर का सामान लेने के लिए पंजाब जाना पड़े.यह कह कर वह घर से निकला था. इस के बाद आगे की कोई जानकारी नहीं है कि कैसे उस का शव मंगलौर बाईपास पर पड़ा मिला.

पुलिस ने सतवीर के पिता कुलवीर की तहरीर पर सतवीर की हत्या का मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया और सीआईयू की टीम के साथ जांच शुरू कर दी थी.शाम को सीआईयू ने बहादराबाद टोल प्लाजा की रुड़की रोड की वह फुटेज सतवीर के पिता को दिखाई थी, जिस में सतवीर बोलेरो नंबर यूपी 12 आर 8409 में अपने 2 दोस्तों के साथ जा रहा था.

कुलवीर ने सतवीर के एक दोस्त को पहचान लिया था. वह सतवीर का दूर का रिश्तेदार गुरुसेवक देओल निवासी मदपुरी, जिला बिजनौर था. सतवीर के दूसरे दोस्त को कुलवीर पहचान नहीं सके.गुरुसेवक के बारे में उन्होंने बताया कि वह उन का रिश्तेदार भी है तथा सतवीर की बीवी नवनीत कौर उर्फ नीतू से उस की काफी नजदीकियां भी हैं. सतवीर की गैरमौजूदगी में भी वह घर पर आताजाता रहता है.कुलवीर ने गुरुसेवक के बारे में बताया कि उस का परिवार कनाडा में रहता है तथा गुरुसेवक की खेती की 40 एकड़ जमीन मदपुरी में है.

कुलबीर की इस जानकारी के बाद जब पुलिस ने गुरुसेवक से संपर्क करने का प्रयास किया तो उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद पुलिस की एक टीम गुरुसेवक की तलाश में उस के गांव मदपुरी भेजी गई थी.पुलिस टीम गुरुसेवक की सुरागरसी व पतारसी करते हुए बढ़ापुर पहुंची थी. वहां भी गुरुसेवक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका था.इस के बाद पहली सितंबर, 2022 को पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर गुरुसेवक व उस के साथी मोनू निवासी गांव हिदायतपुर, बिजनौर को हरिद्वार के निकटवर्ती गांव ऐथल से गिरफ्तार कर लिया था. मोनू वही युवक था, जिसे पुलिस ने टोल प्लाजा पर सतवीर के साथ कार में जाते हुए देखा था.

पुलिस टीम दोनों को ले कर रुड़की आ गई थी. पुलिस ने दोनों से सतवीर की हत्या के बारे में गहन पूछताछ की.गुरुसेवक ने पहले तो पुलिस के सामने सतवीर की हत्या के मामले में खुद को बेकसूर बताया था, मगर जब पुलिस ने गुरुसेवक को उस के द्वारा मोबाइल पर सतवीर की बीवी नीतू से की गई बातों के बारे में पूछा तो वह टूट गया.गुरुसेवक ने मोनू के साथ मिल कर 29 व 30 अगस्त की रात को सतवीर की हत्या करना स्वीकार कर लिया था. गुरुसेवक ने यह भी स्वीकार कर लिया था कि सतवीर से उस की रिश्तेदारी थी. इस के अलावा पिछले 3 सालों से सतवीर की पत्नी नवनीत उर्फ नीतू से अवैध संबंध थे. मेरी और नीतू की योजना काफी समय से सतवीर को रास्ते से हटाने की थी.

गुरुसेवक ने पुलिस को आगे बताया कि सतवीर कुछ दबंग किस्म का आदमी था और अकसर नीतू को परेशान करता रहता था. उस ने बताया कि एक बार उस ने किसी नकाबपोश से सतवीर पर फायरिंग भी करवाई थी, जिस में वह बच गया था. इस की सतवीर ने पुलिस से शिकायत नहीं की थी.
सतवीर की हत्या की योजना बनाने के बाद गुरुसेवक 29 अगस्त, 2022 को अपने दोस्त मोनू के साथ मैं सतवीर के घर पहुंचा था. उसे खनन के कारोबार के लिए उस ने पंजाब जाने की बात कही थी. इस बात पर सतवीर उन के साथ चलने के लिए तैयार हो गया था.

शाम को वे तीनों बोलेरो कार से ऐक्कड कलां से पंजाब के लिए चल पड़े थे. पहले रास्ते में तीनों ने एक ढाबे पर रुक कर शराब पी थी और वहीं खाना भी खाया था.जब सतवीर नशे में धुत हो गया था तो वे तीनों मंगलौर बाईपास की ओर चल पड़े थे. नशे में धुत सतवीर ने उन्हें लघुशंका के लिए गाड़ी रोकने को कहा. जब गाड़ी रुकी तो सतवीर नीचे उतरा.इसी दौरान गुरुसेवक ने अपने पास रखे चाकू से सतवीर का गला रेत दिया. फिर सतवीर को वहीं उसी अवस्था में छोड़ कर वे दोनों बोलेरो से वापस अपने घर चले गए थे.
मोनू ने भी अपने बयान में गुरुसेवक के इन बयानों की पुष्टि की और सतवीर की हत्या में गुरुसेवक का साथ देने की बात बताई. इस के बाद पुलिस ने सतवीर की पत्नी नवनीत कौर उर्फ नीतू को भी गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस की पूछताछ में नीतू ने भी पुलिस के सामने सतवीर की हत्या की योजना में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

पहली सितंबर, 2022 को एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोभाल ने कोतवाली गंगनहर में आयोजित प्रैसवार्ता में सतवीर हत्याकांड का मीडिया के सामने खुलासा कर दिया.श्री डोभाल ने इस हत्याकांड को खोलने वाली पुलिस टीम व सीआईयू की टीम की पीठ थपथपाई और उन्हें 2500 रुपए का नकद पुरस्कार देने की भी घोषणा की.सतवीर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सांस की नली कटने तथा ज्यादा खून बहना बताया. सतवीर के परिवार में उस के मां, बाप, एक भाई, एक बड़ी बहन तथा पत्नी नीतू सहित 2 बेटे हैं.
अवैध संबंधों के कारण जहां नीतू ने एक ओर अपना हंसताखेलता परिवार बरबाद कर दिया तो दूसरी ओर वह खुद भी इस हत्याकांड में शामिल हो कर सलाखों के पीछे पहुंच गई थी.

कथा लिखे जाने तक आरोपी गुरुसेवक, मोनू तथा नवनीत कौर उर्फ नीतू रुड़की जेल में बंद थे. कोतवाल ऐश्वर्य पाल द्वारा सतवीर हत्याकांड की विवेचना की जा रही थी. ऐश्वर्य पाल शीघ्र ही इस हत्याकांड की विवेचना पूरी कर के तीनों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेजने की तैयारी कर रहे थे.

कैसे करें दूर एक्जाम की टैंशन

12वीं क्लास का अमन पढ़नेलिखने में तेज था. उसके मम्मीपापा हमेशा उस से एक्जाम में हाईएस्ट नंबर लाने की आशा रखते थे. परीक्षा नजदीक आतेआते अमन पढ़ाई में इतना समय देने लगा कि वक्त पर न खाना खा पाता और न ही पर्याप्त नींद ले पाता. नतीजा यह हुआ कि एक्जाम के वक्त वह वीमार पड़ गया और परीक्षा में उसे कम मार्क्स मिले.

मार्च का महीना युवाओं के एक्जाम का महीना होता है. सीबीएसई और स्टेट बोर्ड ने एक्जाम की डेट भी घोषित कर दी हैं. एक्जाम का समय करीब आतेआते स्टूडैंट के चेहरों पर टैंशन साफ झलकने लगती है.एक्जाम को लेकर स्टूडैंट के बीच टैंशन और भय का माहौल बन जाता है. जैसेजैसे परीक्षा नजदीक आती है,वे अच्छे रिजल्ट और कोर्स कंप्लीट करने की वजह से चिंता से घिरने लगते हैं.

खासकर कमजोर बच्चे इस दौरान अधिक दबाव महसूस करते हैं. परिवार और शिक्षकों की उम्मीदें भी कई बार बच्चों में तनाव का कारण बन जाती हैं. एक्जाम के दौरान कई युवकयुवतियां डिप्रैशन का शिकार होकर अपना कैरियर भी खराब कर लेते हैं. एक्जाम की तैयारी समय रहते एक प्लानिंग के अनुसार की जाए तो भय व तनाव से बचने के साथ अच्छे मार्क्स लेकर एक्जाम पास कर बेहतर मुकाम हासिल किया जा सकता है.

सालभर तो आप पढ़ाई करते ही हैं पर यदि एक्जाम के समय एक टाइमटेबल तैयार कर सभी सब्जैक्ट की तैयारी की जाए तो परिणाम सुखद होते हैं. आज एक्जाम का ढंग भी तकनीक से अछूता नहीं है. बहुत से विद्यार्थी कम समय में अधिक से अधिक सिलेबस कवर करके एक्जाम की तैयारी कर बेहतर प्रदर्शन कर लेते हैं.

इसके लिए वे संबंधित एक्जाम के पूर्व वर्षों के क्वेश्चन पेपर और मौडल आंसर का सहारा लेते हैं. एक्जाम के दिनों में रेगुलर 8 से 10 घंटे की पढ़ाई के साथ यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रतिदिन थोड़ाथोड़ा सिलेबस सभी सब्जैक्ट का पढ़ा जाए. एक्जाम के दिनों में 6 से 8 घंटे की नींद और भोजन में संतुलित आहार भी उतना ही आवश्यक है. आइए जानते हैं एक्जाम के दिनों में ध्यान रखने वाली उन महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में जो आपके लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं.

 

ब्लू प्रिंट का ध्यान रखें

आजकल ब्लू प्रिंट के आधार पर एक्जाम पेपर तैयार होने लगे हैं. ब्लू प्रिंट में पहले से ही तय कर दिया जाता है कि किस चैप्टर से कितने मार्क्स के क्वेश्चन पूछे जाएंगे. ब्लू प्रिंट संबधित बोर्ड की वैबसाइट के अलावा बुक स्टोर्स पर मिलने वाले क्वेश्चन बैंक में आसानी से मिल जाता है. ऐसे में ब्लू प्रिंट को ध्यान में रखकर की गई एक्जाम की तैयारी आपको कम समय और परिश्रम में बेहतर मार्क्स दिला सकती है.

जो चैप्टर ज्यादा मार्क्स के हैं उन पर फोकस ज्यादा होना चाहिए. यदि किसी चैप्टर से केवल औब्जेक्टिव टाइप क्वेश्चन ही पूछे जानेहैं तो उस चैप्टर की छोटीछोटी बातों को याद रखा जाए,लौंग आंसर वाले क्वेश्चन पर ध्यान न दिया जाए.इसी तरह पिछले तीनचार सालों के क्वेश्चन पेपर को देखने से यह आइडिया हो जाता है कि अधिकांश क्वेश्चन जो रिपीट होते हैं उनको अच्छी तरह से तैयार किया जाए.

 

मन लगने तक ही पढ़ें

पढ़ाई के दौरान मन की एकाग्रता का होना नितांत आवश्यक है. पुस्तक खोलकर यह एहसास दिलाना कि आप पढ़ रहे हैं, यह तरीका ठीक नहीं है. जब तक आपका पढ़ाई में मन लगे तभी तक पढ़ने बैठें. बोरियत होने पर थोड़ा टहल लें या थोड़ी देर आंखों को बंद करके लेट जाएं. उसके बाद दोबारा पढ़ाई शुरू कर सकते हैं.

टैलीविजन पर कोई मनोरंजक कार्यक्रम देखकर या कुछ समय मोबाइल चलाकर भी रिफ्रैश हो सकते हैं. पढ़ाई में मन न लगने पर कुछ भी पढ़ने की आदत से बचें, क्योंकि आप ऐसा करके  अपना समय बरबाद करने के साथ और अधिक मानसिक थकान के शिकार हो सकते हैं.

पढ़ाई के वक्त आपका दिल और दिमाग भी आपके साथ होना चाहिए. किसी भी सब्जैक्ट की तैयारी के लिए फ्लो चार्ट पैटर्न का उपयोग करते हुए पढ़ते समय महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का चार्ट बनाएं और फिर दोबारा पढ़ने के लिए उसकी पुनरावृत्ति करें. इससे जानकारियां आपके मनमस्तिष्क में स्थाई रूप से फीड हो जाएंगी. बोलबोलकर रटने के बजाय लिखलिखकर समझने की आदत बनाकर किसी भी विषय की पढ़ाई आसान बनाई जा सकती है.

 

आधुनिक तकनीक से नोट्स तैयार करें

किसी विषय विशेष से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के तरीकों को सूचना तकनीक ने बदल कर रख दिया है. जानकारियां प्राप्त करना अब बहुत आसान हो गया है. इंटरनैट ब्राउजर पर गूगल के अलावा विभिन्न प्रकार के सर्च इंजन हैं जिन पर विषयगत जानकारी सर्च की जा सकती है. संबंधित विषय के वीडियो भी यूट्यूब पर मिल जाते हैं जो किसी भी सब्जैक्ट की जानकारी को रोचक एवं सरल तरीके से प्रस्तुत करते हैं.

किसी भी विषय के नोट्स तैयार करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर एक्जाम की तैयारी को आसान बनाया जा सकता है.इसलिए अपनेआपको को थोड़ा तकनीक से जोड़ें और  मैथ्स के फार्मूले,कैमिस्ट्री व बायोलौजी में सबसे मुश्किल पार्ट किसी रसायन या किसी जीव का वैज्ञानिक नाम याद रखने के लिए उसके नाम का पहला अक्षर और लास्ट अक्षर को ध्यान में रखकर स्थानीय भाषा का कोई शौर्टकट दिमाग में बना लें जिस से याद करने में आसानी हो. नोट्स बनाते समय पुस्तक में लिखे विस्तारपूर्वक तरीके के बजाय अपनी भाषा में उसके संक्षिप्त रूप में पौइंट्स तैयार करें.

 

नकल से रहें दूर

वर्तमान दौर में एक्जाम में सफल होने के लिए परीक्षार्थियों द्वारा नकल के नएनए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं. परीक्षार्थी रातरातभर जागकर पढ़ने के बजाय नकल की परचियां तैयार करने में अपना समय नष्ट कर देते हैं. नकल की बढ़ती प्रवृत्ति आपको किसी एक्जाम में पास तो करा सकती है पर आपको वास्तविक योग्यता नहीं दिला सकती.

नकल करके स्कूलकालेज के एक्जाम में पास तो हो सकते हैं पर सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरियों के लिए होने वाले कंपीटिशन एक्जाम में हम योग्य लड़कों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते. कई बार नकल करते पाए जाने पर अपना कैरियर भी खराब होने का खतरा बना रहता है.सो, नकल के बजाय अक्ल का इस्तेमाल कर बेहतर ढंग से पढ़ाई कर एक्जाम में सफल होने की कोशिश करें.

 

एक्जाम के समय ये बातें रखें याद 

  • 2 माह पूर्व से परीक्षा की तैयारी आरंभ करेंतो परीक्षा के समय हड़बड़ी और तनाव से बच सकते हैं.
  • केवल मौडल टैस्टपेपर से तैयारी के बजाय संपूर्ण पाठ्यक्रम का रिवीजन करके परीक्षा की तैयारी करें.
  • रिवीजन हेतु टाइमटेबल बनाएं. यह रिवीजन परीक्षा तिथि के कम से कम एक सप्ताह पूर्व हो जाना चाहिए.
  • यदि आपको कोई विषयवस्तु समझ में नहीं आ रही है तो उस पर अपने सहपाठी मित्रों या अपने अध्यापकों से चर्चा अवश्य करें.
  • परीक्षा के समय पूरी नींद व हलका खाना दोनों ही परीक्षा देने हेतु अति आवश्यक हैं. परीक्षा पूर्ण तरोताजगी से एवं तनावरहित होकर देनी चाहिए.
  • सकारात्मक सोच रखने वाले दोस्तों से परीक्षा के समय विषय से जुड़े प्रश्नों पर चर्चा करें. परीक्षा को बोझ समझने वाले मि़त्रों से दूरी बनाने में ही समझदारी है.
  • एक्जाम देते समय उत्तरपुस्तिका में आवश्यक प्रविष्टियां कर प्रश्नपत्र को आराम से पूरा पढें. आसान प्रश्न से शुरू करें. पहले वे ही प्रश्न करें जो आप को अच्छी तरह से आते हों. समयसीमा का ध्यान रखें, स्पष्ट एवं स्वच्छ लिखें.
  • प्रश्न को उतरपुस्तिका में न लिखें, केवल प्रश्न नंबर लिखकर प्रश्न वाली लाइन खाली छोड़ दें और अगली ही लाइन से उत्तर लिखना शुरू करें. चित्र स्पष्ट बनाएं. संगत बातें ही लिखें. शब्दमा का ध्यान रखें. इधरउधर देखने में समय न गवाएं.
  • कठिन प्रश्न को छोड़ने के बजाय उसको हल करने का प्रयास करें. उस प्रश्न से संबधित जो भी बातें आपको ज्ञात हों, उत्तर के रूप में उन्हें जरूर लिखें.
  • आज दिए गए प्रश्नपत्र के उत्तरों के सहीगलत होने एवं मित्रों से उस विषय पर वार्त्तालाप में अधिक समय नष्ट न करें. दूसरे विषय के प्रश्नपत्र की तैयारी पर अपना ध्यान केंद्रित करें.
  • याद रखें जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु बहुत कठिन परिश्रम और समर्पण की आवश्यकता है. सफलता हेतु जीवन में सुखसुविधाओं को भी त्यागना पड़ता है.

 

एक्जाम के दौरान इन बातों का खयाल रखकर आप टैंशन से बच सकते हैं और एक्जाम में अच्छे मार्क्सहासिल कर आसानी से पास हो सकते हैं.

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