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बढ़ती उम्र में बदलें खानपान वरना हो सकते हैं कुपोषण के शिकार

जीवन के हर पड़ाव पर पौष्टिकता की जरूरतें बदलती रहती हैं. उस में से एक पड़ाव है बुढ़ापा. उम्र के साथ पौष्टिकता की विशेष जरूरतें और समस्याएं आती रहती हैं. उम्र के साथ कई बदलाव भी आते हैं जैसे कि शरीर के आकार में बदलाव, शारीरिक गतिविधियों में कमी और खानपान में कम रुचि आदि. ये सब बदलाव उम्रदराज लोगों को आवश्यक पौष्टिकता प्रदान करने में रुकावट बनते हैं. शरीर में यह बदलाव धीरेधीरे अपनेआप आते हैं और अकसर हमें इन के बारे में पता नहीं होता. बढ़ती उम्र में अच्छी और संतुलित खुराक लेने से औस्टियोपोरोसिस, हाई ब्लडप्रैशर, दिल के रोग और कई किस्म के कैंसर होने का खतरा टल जाता है. लेकिन फिर भी बुढ़ापे में पौष्टिकता की जरूरतों को प्राथमिकता जरूर देनी चाहिए.

बढ़ती उम्र और कुपोषण

अध्ययन के मुताबिक, बुढ़ापे में सब से बड़ी समस्या कुपोषण की होती है. कुपोषण की वजह से मौत की दर में वृद्धि, अस्पतालों में ज्यादा समय बिताना और ज्यादा जटिलताएं होती हैं. इस के साथ ही संक्रमण, एनीमिया, त्वचा की समस्याएं, कमजोरी, चक्कर आना और रक्त में इलैक्ट्रोलाइट असंतुलन होता है.

कुपोषण 2 तरह का होता है : ज्यादा पोषण या कम पोषण. जब आवश्यक आहार नहीं लिया जाता तो इसे कम पौष्टिकता कहा जाता है. इस की वजह से वजन कम होना और उस की वजह से अन्य समस्याएं हो सकती हैं. अत्यधिक वजन कम हो जाए तो उसे वास्ंिटग या केशेक्सिया कहा जाता है. बुजुर्ग जिन्हें रूमेटाइड आर्थ्राइटिस, हार्ट फेल, कैंसर, अंगों का काम करना बंद करना आदि समस्याएं हों, उन में वजन की भारी कमी हो सकती है. लैप्टिन और घ्रेलिन हार्मोंस में उम्र के साथ बढ़ोतरी हो सकती है. इस से भूख मर जाती है जो कम पोषण की वजह बनता है.

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कई बार उम्र के साथ लोगों की शारीरिक गतिविधियां तो कम हो जाती हैं लेकिन उन के खाने की आदत जवानी वाली ही रहती है. इस वजह से ज्यादा पोषण हो जाता है. वजन बढ़ने से दिल के रोग, आर्थ्राइटिस और डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है. ज्यादा आहार लेने के बावजूद उन को उचित पोषण नहीं मिलता.

बुढ़ापे में कुपोषण के कारण

  • –       कोई बीमारी जिस की वजह से खाने की किस्में या मात्रा बढ़ जाती है.
  • –       दिन में 2 बार से कम खाना.
  • –       फलों, सब्जियों और दूध के उत्पाद कम खाना.
  • –       शराब का सेवन.
  • –       दांतों की समस्याएं.
  • –       वित्तीय हालात.
  • –       अकेले खाना, जिस से खाने में दिलचस्पी कम होना.
  • –       दवाएं.
  • –       पकाने, राशन खरीदने या अपनेआप खाने की समस्याएं.

अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 65 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले बड़ी संख्या में दोनों में से किसी तरह के कुपोषण से पीडि़त होते हैं. 10 में से 1 को कम पोषण की आवश्यकता होती है. कई उम्रदराज लोग हैं जो एक वक्त का खाना छोड़ देते हैं. अस्पताल में भरती होने की वजह से 60 प्रतिशत बुजुर्गों में कम पोषण की संभावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.

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वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों में कुपोषण की समस्या 85 प्रतिशत तक है. 65 वर्ष से ज्यादा के एकतिहाई लोग जरूरत से ज्यादा खाते हैं. इस वजह से उन में ज्यादा पोषण की समस्या होती है. मोटापा और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां आम हैं, जो कि बढ़ती उम्र के साथ आने वाले शारीरिक बदलाव की वजह से बढ़ जाती हैं.

कुपोषण के बुढ़ापे पर प्रभाव

बुजुर्गों द्वारा आहार में फैट के ज्यादा सेवन से कोलोन का कैंसर, पैंक्रियाज और प्रोस्टेट की समस्या हो सकती है. असंतुलित खानपान से ब्लडप्रैशर, ब्लड लिपिड में बढ़ोतरी, ग्लूकोज को पचाने की क्षमता में कमी के चलते कोरोनरी हार्ट डिजीज हो सकती हैं.

आहार से जुड़ी अन्य बीमारियों में कार्डियोवैस्कुलर और सेरेब्रोवैस्कुलर विकार, डायबिटीज और औस्टियोपोरोसिस भी शामिल हैं. माइक्रो पोषक तत्त्व हमें सेहतमंद और छूत के रोगों से बचाने में मदद करते हैं. बुजुर्गों में कम खाने या एकजैसा खाना लगातार खाते रहने से माइक्रो पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है. उम्र बढ़ने के साथ रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिस से समस्याएं और बढ़ जाती हैं.

बदलाव का समय

डब्लूएचओ के मुताबिक, पौष्टिकता के दिशानिर्देश तय करने का समय आ गया है जिस का प्रयोग सरकारें अपने देश में पौष्टिकता की कमियों को पूरा करने में कर सकेंगी. बुजुर्गों में भी दवाइयां आखिरी विकल्प होनी चाहिए. एक अध्ययन के मुताबिक, ब्लडप्रैशर 6 एमएमएचजी कम करने से स्ट्रोक की संभावना 40 प्रतिशत और दिल के दौरे की 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है. वहीं, ब्लड कोलैस्ट्रौल में 10 प्रतिशत की कमी दिल के कोरोनरी रोगों में 30 प्रतिशत कमी ले आती है. खानपान में बदलाव से कार्डियोवैस्कुलर विकारों का खतरा कम किया जा सकता है.

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हम सब को बुढ़ापे की ओर बढ़ना है. यह हमारे हाथ में है कि हम बुढ़ापा गौरव से ले कर आएं या नहीं. औद्योगिक देशों में बुढ़ापा बड़ी चुनौती माना जाता है. अगर समय रहते उचित सावधानियां न बरती जाएं तो औसतन उम्र में वृद्धि से लोगों को अपने जीवन का ज्यादा समय बीमारियों में गुजारना पड़ सकता है.

रोज व्यायाम करना सभी के लिए जरूरी है. सैर करना, स्थिर व्यायाम, बागबानी आदि ऐसी गतिविधियां हैं जो ऊर्जा को संचारित करती हैं और मांसपेशियों व जोड़ों को कार्यरत बनाए रखती हैं. इस से पाचनतंत्र भी ठीक रहता है. उम्रदराज लोगों के लिए विशेष कसरतें होती हैं जो उन्हें तंदुरुस्त भी रखती हैं और गिरने से भी बचाती हैं. साथ ही, केवल पौष्टिकता से ही बुजुर्गों की देखभाल न करें बल्कि प्यार, दुलार व रिश्तों की गरमाहट के साथ उन का खयाल रखें.

(डा. एम उदया कुमार माइया, लेखक पोर्टियो के मैडिकल डायरैक्टर हैं.)     

क्या करें

  • –       कम सैचुरेटेड फैट और ट्रांसफैट चौकलेट, कुकीज, चिप्स, पैस्ट्रीज आदि ऐसी चीजें हैं जिन्हें बिलकुल नहीं खाना चाहिए.
  • –       शरीर में पानी की मात्रा, पाचन और रक्त का घनत्व बनाए रखने के लिए पानी पीते रहें.
  • –       मीठे के शौकीन दही के साथ ताजा फल और संपूर्ण अनाज वाले फल खा सकते हैं.
  • –       उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा नमक वाले आहार न लें.

पौष्टिक तत्त्वों वाले आहार लेना बेहद आवश्यक है. उम्र बढ़ने के साथ पौष्टिकता का संतुलन बनाए रखना जरूरी है. जख्मों और टूटी हड्डी के ठीक होने और ऐसी अन्य समस्याओं के मौके पर अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है.

तंतुओं की सघनता बनाए रखने, मांसपेशियों की मजबूती और रोगप्रतिरोधक क्षमता को कायम रखने के लिए आहारीय प्रोटीन लेते रहना चाहिए. उम्र बढ़ने से फ्रैंडली (गुड) बैक्टीरिया पाचनतंत्र से कम हो जाते हैं. इस से पाचनतंत्र के संक्रमण और गड़बडि़यों की समस्या हो सकती है. इसलिए वृद्धावस्था के दौरान आहार में सेहतमंद बैक्टीरिया वाले तत्त्व शामिल किए जाने चाहिए.

सुसाइड करने की कोशिश करने वाले थें तीर्थानंद गर्लफ्रेंड बोली मरने दो उसे

जूनियर नाना पाटेकर के नाम से मशहूर एक्टर तीर्थानंद राव ने हाल ही में सुसाइड करने की कोशिश की थी, बता दें कि तीर्थानंद फेसबुक लाइव आकर सुसाइड करने की कोशिश की. हालांकि जानकारी मिलते ही पुलिस ने तीर्थानंद को बचा ली. जैसे ही इस बात की खबर तीर्थानंद की गर्लफ्रंड को दिया गया उसने कहा कि मरने दो उसे.

गर्लफ्रेंड ने कहा कि मरने दो उसे मैं वैसे भी छोड़ने वाली थी, एक बार और साल 2022 में तीर्थानंद ने सुसाइड करने की कोशिश की थी, उस वक्त वह आर्थिक परेशानी से जुझ रहे थें, लेकिन इस बार तीर्थानंद ने बताया कि वह जिस महिला के साथ रहते हैं, वह उसे बहुत टर्चर करती है. इसलिए वह सुसाइड करने जा रहे थें.

तीर्थानंद कपिल शर्मा और श्वेता तिवारी संग काम कर चुके हैं,तीर्थानंद नाना पाटेकर जैसे दिखते हैं और उनकी मिममिकरी भी करते हैं, इसिलिए उन्हें जूनियर नाना पाटेकर भी कहा जाता है.  तीर्थआनंद ने कपिल शर्मा शओ के अलावा और भी कई सारे शो में काम किया है. जिसमें उन्हें खूब पसंद किया जाता था. इसी साल तीर्थानंद ने अभिषेक बच्चन के साथ फिल्म की शूटिंग की है जो साउथ की रीमेक है.

जी-7 और भारत

भारत और चीन कुल मिला कर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चाहे दूसरेतीसरे नंबर की जगह रखते हों पर आज भी दुनिया की बागडोर जी-7 देशों के हाथ में है जिन का एक ताजा सम्मेलन हिरोशिमा, जापान में हुआ जिस में भारत और वियतनाम को भी अतिथि के तौर पर बुलाया गया. आज अमेरिका की प्रतिव्यक्ति आय 65 हजार डौलर है और जरमनी में प्रतिव्यक्ति आय 60 हजार डौलर है जबकि चीन की अब मुश्किल से 14 हजार डौलर पर पहुंची है, वहीं, भारत की प्रतिव्यक्ति आय 2 हजार के आसपास ही लटकी हुई है.

चीन और भारत अपनी बड़ी आबादी के कारण बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं वरना आम चीनी और आम भारतीय की आय अमेरिकी, जरमन या ब्रिटिश से कहीं पीछे हैं और अभी 2-3 पीढिय़ों तक वे बराबरी नहीं कर पाएंगे. तेजी से बढऩे के बावजूद प्रति वर्ष अमीर देशों की प्रतिव्यक्ति आय चीन व भारत की प्रतिव्यक्ति आय से डौलरों में ज्यादा बढ़ जाती है.

चीन का तो मालूम नहीं लेकिन भारत में बड़ी व्यवस्था होने को ढोलनगाड़ों की तरह पीटा जा रहा है, यह भ्रामक है और गलत है. गलत इसलिए कि यह गीदड़ के नीले ड्रम में कूद जाने से अपने को कुछ अलग समझ लेने जैसा है. भारत सरकार के नेता व प्रशासन ही नहीं, जनता का एक वर्ग, जिस में उद्योगपति, विचारक, पैसे वाले आते हैं, खुद को अब बराबरी का समझने लगा है. उन सब को लगता है कि प्रगति के लिए दौड़ समाप्त हो गई है और अब प्रगति के लाभों का मजा लिया जाए. देश को दुरुस्त करने की भावना अब हर वर्ग से खत्म हो गई है. हर जगह बरबादी नजर आने लगी है. राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के लिए विशाल हवाई जहाज खरीदे गए हैं, विशाल नया महंगा संसद भवन बना है. प्रधानमंत्री का घर बन रहा है, हर कोने पर फाइवस्टार होटल बन रहे हैं, एक्सप्रैस वे बन रहे हैं जिन पर सिर्फ मंहगी कारें या एयरकंडीशंड बसें चल रही हैं, महंगे प्राइवेट अस्पताल बन रहे हैं, एयरकंडीशंड स्कूल बन रहे हैं, इनडोर स्टेडियम बन रहे हैं.

देश का निर्माण, समाज का उद्धार रुक गया है, पैसे की बरबादी जारी है. इसी से खीझ कर देश के प्रतिभाशाली युवा अब देश में न रह कर विदेशों में जा कर बसने लगे हैं और भारतीय मूल के लोगों से दुनिया का हर बाजार भरने लगा है. पर देश तो वहीं का वहीं है, जी-7 में बैठने लायक नहीं है.
आज भी देश बड़ा है तो इसलिए कि उस के पास सस्ते मजदूर देश में काम करने के लिए भी हैं और एक्सपोर्ट करने के लिए भी. देश को 110 बिलियन डौलर तो सीधे मजदूरों द्वारा भेजे पैसे से मिलते हैं. उस के अलावा इतने का सामान जब वे आते है, तो लाते हैं या हवाला से पैसा भेज देते हैं. इस अतिरिक्त आय पर अमीर फूल कर कुप्पा हो रहे हैं वरना हर इंडैक्स में भारतीय पीछे हैं. जी-7 देशों के बराबर पहुंचना तो सपना ही है.

मुझे उम्मीद न थी- भाग 1

हिंदू कालेज में बीए पार्ट-1 का अपना पीरियड ले कर प्रोफैसर रमाकांत स्टाफरूम की ओर बढ़े. अगले 2 पीरियड उन के खाली थे. अधेड़ उम्र के प्रोफैसर रमाकांत कुछ परेशान और निराश थे. आज की युवा पीढ़ी ने उन्हें बहुत निराश किया था.

अमीर युवा पीढ़ी तो बिगड़ी हुई थी ही, मध्य और निम्नमध्य वर्ग की युवा पीढ़ी भी उन्हीं के नक़्शेकदमों पर चलने लगी है और बरबादी की ओर बढ़ रही है बिना अपनी सीमाओं को समझे, बिना जाने कि उन के मांबाप की क्या स्थितियां हैं, क्या हालात हैं, किन आर्थिक परेशानियों से गुजर कर वे उन को पढ़ा रहे हैं.

ऐसे ही मध्यवर्गीय परिवार के लड़के रामसहाय को कल रात सिटी कलब में देख कर वे दुखी और पीड़ित हो रहे थे. वहां वे किसी से मिलने गए थे. वह नशे में धुत था. प्रोफैसर रमाकांत से नजरें मिलीं, पहचान कर कहा, ‘सर, आप? आप भी नशा करने आए हैं?’ उस के ढीठपने से वे और पीड़ित हुए. मन के आक्रोश से उन के मन में आया कि वे उस के कस के थप्पड़ मारें पर उन्हें लगा, ऐसी स्थिति में ऐसा करना अच्छा न होगा. ऐसा कर के शायद वे अपनी ही फजीहत करवा लेते. आज के लड़के अपने प्रोफैसर को क्या समझते हैं.

लेकिन वे यह सोचे बिना नहीं रह सके कि मेरा पंजाब कहां जा रहा है? मेरा देश किस ओर जा रहा है? क्या बच्चे, क्या युवा, क्या बूढ़े सब नशे में डूबते जा रहे हैं. कई लड़कियों और औरतों को भी वहां उन्होंने नशा करते देखा था. हम कहां गलत हो रहे हैं, चाह कर भी उन के पास इन सवालों के उत्तर न थे.

रामसहाय उन के घर के पास रहता है. वह एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है. उस के पिता बैंक में शायद क्लर्क हैं. मां गृहिणी हैं, एक बहन शायद 10वीं में पढ़ती है. बैंक क्लर्क की कितनी तन्ख्वाह होती है, हर कोई जानता है. हां, उन का मकान पुश्तैनी है. मकान का किराया नहीं देना पड़ता. पर यह लड़का ऐसे ही चलता रहा तो किराए पर आने में क्या देर लगेगी… ‘क्यों प्रोफैसर साहब, किस सोच में डूबे हुए हैं? ’ हिंदी की प्रोफैसर नम्रता की आवाज ने उन का ध्यान भंग किया.

‘कुछ नहीं, प्रोफैसर नम्रता, आज की युवा पीढ़ी के बारे में सोच रहा हूं कि वह किस ओर जा रही है. युवा ही क्यों, क्या बूढे, क्या लड़कियां, क्या औरतें सब ड्रग के नशे में डूब रहे हैं, शराब के नशे में डूब रहे हैं. कल रात सिटी कलब में देख कर आ रहा हूं. लगा, जैसे पूरा पंजाब नशे में डूबा हुआ है. और हम शिक्षा के क्षेत्र के लोग कम से कम अपने यहां पढ़ रही युवा पीढ़ी को तो मोटीवेट कर सकते हैं. पर हम इस में फेल हो रहे हैं.’ निराशा से एक खाली कुरसी पर वे पसर गए.

‘हां सर, आप की बात सही है. आज किसी को कुछ कहने का जमाना नहीं है. कहो तो उलटे जवाब मिलता है. गुरु-शिष्य का जमाना रहा ही नहीं. वैसे, बुरा न मानिएगा, आज न अच्छे गुरु हैं और न अच्छे शिष्य. गुरु जब रात होते ही बोतल खोल कर पीने बैठेंगे तो शिष्यों से क्या उम्मीद कर सकते हैं. तभी उन पर हमारा प्रभाव भी नहीं पड़़ता,’ प्रो. नम्रता ने अच्छाखासा लैक्चर दे डाला.

‘इंटरनैट का जमाना है, उस पर जाने क्याक्या देखा जाता है. युवा पीढ़ी तो बिगड़ेगी ही,’ अभीअभी आ कर बैठे प्रो. सतनाम सिंह ने कहा. उस ने शायद प्रो. नम्रता की बात सुन ली थी. ‘ इंटरनैट तो अच्छी चीज है अगर इस का इस्तेमाल सही किया जाए. पर मैं तो अपने घर के पास रहने वाले फाइनल ईयर के लड़के रामसहाय की बात कर रहा हूं. वह एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है और बरबादी की कगार पर है, बल्कि, बरबाद हो गया है.’ फिर रात की सारी घटना सुनाई.

‘अच्छा, वह रामसहाय? वह तो हर दूसरे तीसरे दिन कालेज से बंक मारता है. मैं उस की कलास की इंचार्ज प्रोफैसर हूं, इसलिए मुझे पता है. पिछली बार उस ने फीस के साथ 3 हजार रुपए बंक का जुर्माना दिया है,’ प्रो. नम्रता ने कहा.

‘यही नहीं, सुना है, वह किसी लड़की से प्यार करता है. उसी को ले कर वह कालेज से बंक मारता है,’ प्रो. सतनाम सिंह ने कहा.

‘अच्छा, तभी तो. जाने उस के मांबाप पैसों का प्रबंध कैसे करते होंगे?’ प्रो. नम्रता ने अफसोस जताया.

‘आज की पीढ़ी के लिए यह प्यार एक बीमारी बनती जा रही है कैंसर की तरह जिस का कोई इलाज नहीं है.बौयफ्रैंड गर्लफ्रैंड, माई फुट, सब सैक्स के लिए है. वासना है. उस पर नशे की लत. बरबादी तो होनी ही है. कैरियर बना नहीं, चले हैं मियां प्यार करने,’ प्रो. सतनाम सिंह ने कहा. उन का चेहरा आक्रोष से तमतमा गया था.

‘इस के अलावा मैं समझता हूं, उस की संगत भी खराब है. वह अमरीक जैसे अमीर और बिगडैल

लड़कों की संगत में है जो केवल टाइमपास करने कालेज आते हैं. उन को पढ़ाई से कोई मतलब नहीं है. वे खुद तो खराब होते हैं, औरों को भी खराब करते हैं. विषेशकर मध्यवर्गीय परिवार के लड़कों को, जो महत्त्वाकांक्षी होते हैं और जीवन से बहुत सी अपेक्षांए रखते हैं. बिना सोचे वे ऐसे कार्य कर जाते हैं जिन के दूरगामी परिणाम बुरे होते हैं. ये अमीर लड़के अगर न भी पढ़ें तो इन को कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही इन के भविष्य पर असर पड़ता है या पड़ेगा. वे अपने बाप के स्थापित व्यवसाय में कभी भी शामिल हो जाएंगे. या उन का बाप उन को अलग व्यवसाय खोल देगा. पर रामसहाय जैसे लड़कों का क्या होगा जिन के परिवार हैंड टू माऊथ हैं. बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चलता है. उन को तो अपना जीवन बनाने के लिए पढ़ाई को अपना आधार बनाना चाहिए, बनाना पडेगा. मैं समझता हूं , मुझे रामसहाय के मांबाप से बात करनी चाहिए. यदि मैं एक भी लड़के को सीधा कर पाया या उसे सुधार पाया. या उस की कटु परिस्थितियों से अवगत करवा पाया और अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करवा पाया तो मैं अपने शिक्षा धर्म को सार्थक समझूगा.’

इस सफर की कोई मंजिल नहीं- भाग 4

रजनी घंटों तक लोटपोट कर हंसती रही। फिर उस ने कहा,”मीनाक्षी दी, आप के पास दिल नहीं है।”

“हां, मेरे पास तो नहीं है मगर तुम्हारे पास 3-4 जरूर हैं,” मैं चिढ़ कर बोली, तो रजनी फिर से हंसने लगी। मैं ने फिर कहा,”रजनी, अभी भी समय है, सत्य की तरफ लौट आओ।”

“सत्य क्या और झूठ क्या, दोनों तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एकदूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं और एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है,” रजनी ने कहा।

“जिस दिन इस झूठ के कारण गहरी खाई में गिरोगी उस दिन इस का अस्तित्व क्या है, मालूम पड़ेगा?” मैं ने कहा। फिर मेरी रजनी से बात करने की इच्छा नहीं हुई और मैं उठ कर चल दी।

रजनी और मनोज की बातें चारों तरफ फैल चुकी थीं। स्कूल में वह चर्चा का विषय बन चुकी थी। मगर इन सब से बेखबर रजनी को मनोज के सिवा कोई और दिखाई नहीं पड़ता था। न ही किसी की बातों पर ध्यान देती थी वह। मगर मुझे मनोज के रंगढंग सही नहीं लगते थे। एक तरफ मनोज की नियत में खोट दिखाई पड़ती, तो दूसरी तरफ रजनी के उल्लास को देख कर भविष्य की आशंकाओं से मैं विचलित हो जाती। फिर भी मैं अपने को समझा लेती कि मुझे क्या, उस का जीवन है चाहे जैसे जिए।

“आज पूर्णिमा है मीनाक्षी दी,” रजनी ने आ कर धीरे से मेरे कान में कहा तो मैं चिल्ला कर बोली,”कभी अपने पूर्णिमा के चांद को ध्यान से देखा है?”

रजनी बोली,”हां, देखा है आगे बोलो…”

“मैं ने बेमन से कहा,”क्या देखा है?”

“यही कि यह एक मृत ग्रह है और जहां जीवन नहीं है,” रजनी फिर हंस पड़ी।

“कोई चीज आप को खूबसूरत क्यों नहीं दिखाई पड़ती?” रजनी ने कहा।

“क्योंकि हर चीज में मैं सत्य को तलाश करती हूं और सत्य कभी खूबसूरत नहीं होता,” मैं ने गंभीरता से कहा। मैं फिर बोली,”रजनी, तुम्हारे में यही कमी है। तुम हमेशा तसवीर का एक ही रुख देखती हो। तसवीर के दोनों तरफ देखो तभी यथार्थ को परख पाओगी।”

“यदि एक ही रूप से सबकुछ मिल जाए तो दोनों तरफ देखने की क्या जरूरत है,” रजनी ने कहा। मैं चुप हो गई। रजनी फिर बोली,”मीनाक्षी दी, आप ऐसी क्यों हैं? इतनी सुंदर हैं आप, आप को मन नहीं होता कि कोई आप की तरफ आकर्षित हो, कोई आप से प्यार करे?”

“मुझ से या मेरी सुंदरता से और फिर सिर्फ आकर्षण या प्रेम?” मैं ने सवाल किया।

“दोनों से… और रही बात प्रेम या आकर्षण की तो हम आकर्षित होते हैं तभी तो प्रेम करते हैं,” रजनी ने कहा।

“तब तुम ने प्रेम को समझा ही नहीं। प्रेम में आकर्षण नहीं, समर्पण होता है और यह सफल तभी होता है जब दोनों तरफ से हो तभी मंजिल मिलती है वरना यह प्रेम सिर्फ सफर बन कर रह जाता है,” मैं ने कहा।

अचानक रजनी उठ कर खड़ी हो गई और कहा,”मगर मंजिल तो तभी मिलती है जब सफर समाप्त हो जाता है और सफर ही तो प्रेम है। सफर समाप्त तो प्रेम भी समाप्त। मैं यह नहीं चाहती मीनाक्षी दी,” और वह सीढ़ियों से नीचे उतर गई।

समय बीतता रहा। रजनी सफर का आनंद लेती रही और मैं मंजिल की तलाश में थी। एक दिन मैं ने उस शहर  को छोड़ दिया और रजनी मुझ से दूर हो गई। जाने क्यों न चाहते हुए भी मैं उस से जुड़ गई थी। जीवन में पहली बार मुझे किसी की कमी का एहसास हुआ था और संयोगवश जब दोबारा उसी शहर में आई तो उस कमी को पूरा करने का लोभ मैं छोड़ नहीं पाई।  मगर आज तो वह रजनी थी ही नहीं, जिसे मैं ढूंढ़ने आई थी। रजनी का यह रूप देख कर मैं दंग रह गई थी।

रजनी आज भी मेरे पास बैठती थी, मगर कभी गुनगुनाती नहीं थी। न कभी हंसती, न बहुत बोलती। चुप सी रजनी हमेशा अपने काम में व्यस्त रहती थी।

आने के बाद पता चला था कि मनोज यह स्कूल छोड़ कर चला गया था। मैं रजनी से सबकुछ जानना चाहती थी  मगर उस की चुप्पी को देख कर कभी हिम्मत नहीं हुई। रजनी की जिन आदतों से मुझे चिढ़ थी आज उन्हीं को देखने को मैं तड़प उठी थी। उस का यह परिवर्तित रूप मैं स्वीकार कर ही नहीं पा रही थी। जी चाहता था कि फिर से उसी रजनी को देखूं। उल्लास, उमंग और स्फूर्ति से परिपूर्ण। वही आंखें देखना चाहती थी जिस में जीवन के रंगों के सिवा कुछ नहीं था। बहुत पीड़ा होती मुझे। कभी अपनेआप पर हंसती कि रजनी के साथ मैं क्यों बदल गई। कभी अपनेआप पर आश्चर्य होता है कि रजनी को कुछ भी कहने में मुझे कभी कोई संकोच नहीं होता था मगर आज हिम्मत ही नहीं होती कुछ कहने की।

मगर एक दिन मैं ने पूछ ही लिया,”रजनी, मनोज कहां है?”

“जहां उसे होना चाहिए,” उस ने सीधा सा जवाब दिया।

“क्या मतलब…” मैं ने चौंक कर पूछा।

“उसे मंजिल की तलाश थी, उसे मिल गई,” रजनी ने कहा।

“और तुम? तुम्हारी मंजिल कहां है?” मैं ने पूछा।

“मीनाक्षी दी, इतने थोड़े दिनों में आप मुझे भूल कैसे गईं? मैं ने तो कभी मंजिल चाहा ही नहीं था, सिर्फ सफर चाहा था,” रजनी ने कहा।

“जब तुम्हें मंजिल की तलाश नहीं थी तो फिर इतनी उदास, इतनी निराश क्यों रहती हो? क्यों बदल गईं तुम?” “मैं ने पूछा।

“क्योंकि सफर हमेशा सुखद नहीं होता, इस में कष्ट भी होता है,” कहते हुए रजनी चुप हो गई। वह मेरी बातों का जवाब देना नहीं चाहती थी इसलिए मैं भी चुप हो गई।

गरमी के दिन थे। छत पर लेटी मैं रजनी के बारे में ही सोच रही थी…’रजनी के इसी रूप को तो मैं देखना चाहती थी, फिर इस रूप को देख कर मैं विचलित क्यों हूं?” मैं ने अपनेआप से सवाल किया।

उस की जिन आदतों से मुझे चिढ़ थी, आज उसी से इतना प्रेम कैसे हो गया? रजनी के साथ कहीं मैं भी तो नहीं बदल गई? या फिर मुझे वही पुरानी रजनी देखने की आदत सी पड़ गई थी?” तरहतरह के सवालों से जूझते हुए मैं ने कई रातें बिता दीं। मन में बहुत तरह के सवाल थे, पीड़ा थी,  बेचैनी थी, छटपटाहट थी मगर मेरे होंठ कभी नहीं खुलते। ऊपर से जितनी खामोश थी मैं भीतर उतना ही तूफान था और एक दिन यह तूफान आ ही गया।

बगल में रजनी बैठी थी। मैं फट पड़ी,”रजनी, यह क्या हाल बना लिया तुम ने?” रजनी ने मुझे देखा मगर बोली कुछ भी नहीं।

“रजनी कुछ कहती क्यों नहीं?” मैं चिल्ला पड़ी।

“क्या कहूं? आप तो इसी रूप को हमेशा देखना चाहती थीं, मैं ने आप की बात मान ली,” कहते हुए वह हंस पड़ी।

उस की उस नपीतुली हंसी देख कर मैं और विचलित हो गई,”नहीं रजनी, तुम्हारा वह पुराना रूप, तुम्हारे व्यक्तित्व का हिस्सा था। उस में तुम्हारा अस्तित्व था मगर आज तो जैसे सबकुछ खत्म हुआ दिखाई पड़ता है। रजनी, मैं कहती थी न कि मनोज को तुम पहचानो, वह भरोसा करने लायक नहीं है, फिर भी तुम ने मेरा कहा नहीं माना, जिस का नतीजा आज तुम भुगत रही हो। वह तुम्हें छोड़ कर क्यों चला गया?” मैं ने सवाल किया।

“उस ने मुझे पकड़ा कब था जो छोड़ कर चला गया,” रजनी ने गंभीरता से कहा।

“क्या मतलब?” मैं चौंक गई।

“मीनाक्षी दी, मैं कहा करती थी न कि झूठ से मुझे लगाव है और सत्य से नफरत क्योंकि झूठ जितना खूबसूरत होता है, सत्य उतना ही बदसूरत। मैं बदली नहीं हूं, वही हूं, बदला तो सिर्फ यही है कि आज मुझे सत्य से प्रेम है झूठ से नहीं।”

“तो क्या जो मैं ने अपनी आंखों से देखा था वह झूठ था? धोखा था?” मैं चिल्ला पड़ी।

“हां, मीनाक्षी दी।” रजनी ने शांति से जवाब दिया।”

तो क्या मनोज से तुम्हारा प्रेम कुछ नहीं था?” मैं ने पूछा।

“नहीं,” रजनी ने दृढ़ता से जवाब दिया।

“मैं नहीं मानती, मनोज का मैं नहीं जानती, मगर तुम्हें उस से प्रेम था और इस का सुबूत तुम्हारी यह आज की हालत है,” मैं ने कहा। मैं ने रजनी को झकझोरते हुए कहा,”रजनी, मुझे जवाब दो?”

“मैं किसी दिन अपने बारे में आप को बताऊंगी,” रजनी ने लंबी सांस खींच कर कहा।

“किसी दिन नहीं आज बताओ, मेरे भीतर की पीड़ा को तुम क्यों नहीं समझ पा रही हो रजनी?” मैं ने उत्तेजित हो कर कहा।

रजनी ने अपनी आंखें बंद कर लीं मानो अतीत में जाने का प्रयास कर रही थी,”मीनाक्षी दी, आप मेरे लिए जिस समय सत्य बन कर आई थीं, उस समय मैं झूठ के पीछे भाग रही थी। एक खूबसूरत झूठ…एक खूबसूरत धोखा…” और उस के बाद रजनी ने जो मुझे सुनाया सुन कर मैं स्तब्ध रह गई थी।

रजनी की कहानी बहुत लंबी नहीं थी। छोटी सी, मगर गहरी खाई जैसी थी। बचपन में ही मातापिता के देहांत के बाद चाचाचाची के घर में पलीबङी हुई रजनी सामान्य चेहरे के होते हुए भी हीनभावना की शिकार नहीं थी। चाचाचाची के खूबसूरत बच्चों के बीच में रह कर भी उसे अपनी बदसूरती का गुमान नहीं था। मगर धीरेधीरे उसे हीनता के आवरण से बांध दिया गया। शुरुआत हुई उस के परिवार से, फिर समाज से। विवाह के उस के कई  रिश्ते टूट गए और घर के लोगों के तानों और सवालों का जवाब देतदेते  वह थक सी गई और तब हार कर उस ने विवाह करने से मना कर दिया था।

उस के इस निर्णय ने उसे घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया और इस बड़ी दुनिया में अकेली रजनी ने किस प्रकार अपने वजूद को कायम रखने के लिए संघर्ष किया होगा, इस की पीड़ा तो वही जानती होगी। उस की उतारचढ़ाव भरी जिंदगी, एक समतल मार्ग पर तब चल पड़ी जब उसे एक स्कूल में नौकरी मिल गई और उस की जिंदगी में वह पल आया जब उस ने अपने पूरे जीवन का छोटा सा हिस्सा जीना चाहा था और जो भी उस ने जीया उसे भरपूर जीया। हीनता के आवरण में लिपटी रजनी को खूबसूरती का एहसास तब हुआ जब मनोज उस की जिंदगी में आया। एक झटके में इस आवरण को तोड़ रजनी बाहर निकल गई। मनोज के झूठे इजहारों को प्रेम समझ बैठी मगर बहुत जल्दी उसे पता चल गया कि मनोज की जिंदगी में वह नहीं कोई और थी।

रजनी फिर से बदसूरती के उस आवरण में लौटना नहीं चाहती थी। जिंदगी उस के इतने करीब थी, फिर वह उसे दूर कैसे जाने देती। मन को दृढ़ किया उस ने कि कोई बात नहीं एकतरफा प्रेम ही सही। उस ने मनोज  को यह जानने ही नहीं दिया कि वह उस के बारे में सबकुछ जानती है। उस के सामने बिलकुल अनजान बनी रही वह। झूठ का सहारा लिया और अपनी भावनाओं से खेलने के लिए मनोज को मजबूर कर दिया। मनोज उस की भावनाओं से खेलता रहा और वह जानबूझ कर इस खूबसूरत झूठ का आनंद लेती रही।

अपने कोरे कागज सी जिंदगी में उस ने जबरदस्ती रंग भर लिया था और जिस दिन मैं उसे मिली उस दिन उसे एहसास हुआ कि उस ने अपने जीवन में इतना अधिक रंग भर लिया था कि वह अब बदसूरत दिखने लगा था। फिर भी सत्य को झुठलाती रही और इस रंगीन सफर का आनंद लेती रही क्योंकि वह जानती थी कि इस सफर की कोई मंजिल ही नहीं थी।

दो चेहरे वाले लोग: मुकुंद क्या सोचकर हैदराबाद गया था?

रश्मि जीजाजी का दोगलापन देख हैरान रह गई थी. बेटों जैसी पलीबढ़ी बेटी पर तो उन्हें फख्र था परंतु बहू को आजादी देने के पक्ष में वे न थे. दो चेहरों वाले इस इंसान का कौन सा चेहरा असली था, कौन सा नकली, क्या कोई जान सका? वैसे, जीजी मेरी सगी बहन तो नहीं, लेकिन अम्मा और आपा ने उन्हें हमेशा अपनी बेटी के समान ही माना. इसलिए जब मेरे पति ने मुंबई की नौकरी छोड़ कर हैदराबाद में काम करने का निश्चय किया,

तब आपा ने नागपुर से चिट्ठी में लिखा, ‘अच्छा है, हमारे कुछ पास आओगे तुम लोग. और हां, जीजी के हैदराबाद में होते हुए फिर हमें चिंता कैसी.’ जीजी बड़ी सीधीसादी, मीठे स्वभाव की हैं. दूसरों के बारे में सोचतेसोचते अपने बारे में सबकुछ भूल जाने वाले लोगों में वे सब से आगे गिनी जा सकती हैं. अपने मातापिता, भाईबहन, कोई न होने पर भी केवल निस्वार्थ प्रेम के बल पर उन्होंने सैकड़ों अपने जोड़े हैं. ‘लेकिन, तुम्हारे जीजाजी को वे जीत नहीं पाई हैं,’ मुकुंद मेरे पति ने 2-3 बार टिप्पणी की थी. ‘जीजाजी कितना प्यार करते हैं जीजी से,’ मैं ने विरोध करते हुए कहा था, ‘घर उन के नाम पर, गाड़ी उन के लिए, साडि़यां, गहने…

सबकुछ.’ मुकुंद ने हर बार मेरी तरफ ऐसे देखा था जैसे कह रहे हों, ‘बच्ची हो, तुम क्या सम?ागी.’ हैदराबाद आने के बाद मेरा जीजाजी के घर आनाजाना शुरू हुआ. घरों में फासला था पर मैं या जीजी समय निकाल कर सप्ताह में एक बार तो मिल ही लेतीं. अब तक मैं ने जीजी को मायके में ही देखा था. अब ससुराल में जिम्मदारियों के बो?ा से दबी, लोगों की अकारण उठती उंगलियों से अपने भावनाशील मन को बचाने की कोशिश करती जीजी मु?ो दिखाई दीं, कुछ असुरक्षित सी, कुछ घबराई सी और मैं केवल उन्हें देख ही सकती थी. जीजी की बेटी शिवानी कंप्यूटर इंजीनियर थी. वह मैनेजमैंट का कोर्स करने के बाद अब एक प्रतिष्ठित फर्म में अच्छे पद पर काम कर रही थी. जीजाजी उस के लिए योग्य वर की तलाश में थे. मैं ने कुछ अच्छे रिश्ते सु?ाए भी पर जीजाजी ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘क्या तुम भी रश्मि, शिवानी की योग्यता का कोई लड़का बताओ तो जानें.’’

‘‘लेकिन जीजाजी, उमेश बहुत अच्छा लड़का है. होशियार, सुदर्शन, स्वस्थ, अच्छा कमाता है. कोई बुरी आदत नहीं है.’’ ‘‘पर, उस पर अपनी 2 छोटी बहनों के विवाह की जिम्मेदारी है और उस का अपना कोई मकान भी नहीं,’’ जीजाजी ने एकएक उंगली मोड़ कर गिनाना चाहा. ‘‘यह तो दोनों मिल कर आराम से कर सकते हैं. शिवानी भी तो कमाती है,’’ मैं ने उन की बातों को काटते हुए कहा. ‘‘देखो रश्मि, मैं ने अपनी बेटी को बेटे की तरह पाला है. उसे उस की काबिलीयत का पैसा मिल रहा है. इतने सालों की उस की कड़ी मेहनत, मेरा मार्गदर्शन अब जा कर रंग लाया है. वह सब किसी दूसरे के लिए क्यों फूजूल में फेंक दिया जाए?’’ मैं स्तब्ध रह गई, जीजी की कितनी ही चीजें जीजाजी की बहनें मांग कर ले जाती थीं. हम लोगों की तरफ से दिए गए उपहार ‘उफ’ तक मुंह से न निकालते हुए जीजी ने अपने देवरों को उन के मांगने पर दे दिए थे. मां कभी पूछतीं, ‘‘आरती,

वह पेन कहां गया जो तुम्हें पिछली दीवाली में भैया ने दिया था.’’ जीजी बेहद विनम्रता के साथ कहतीं, ‘‘रमन भैया ने परीक्षा के लिए लिया था, पसंद आ गया तो पूछा कि मैं रख लूं, भाभी. मैं मना कैसे करती, मां.’’ एक बार भैया दीदी के लिए भैयादूज पर एक बढि़या धानी साड़ी लाए थे. तब जीजी की सहेली अरुणा दीदी भी उन से मिलने के लिए आई थीं. उन्होंने छूटते ही कहा, ‘‘मत दो इस पगली को कुछ भी. साड़ी भी ननद ने मांग ली तो दे देगी.’’ तब जीजी ने अपनी मुसकान बिखेरते हुए कहा था, ‘‘वे भी तो मेरे अपने हैं. जैसे मेरे भैया, मेरी रश्मि, मेरी अरुणा.’’ अब उसी जीजी की बेटी को पिता से क्या सीख मिल रही थी. मैं ने जीजा की ओर देखा. वह काम में मगन थे.

जैसे उन्होंने सुना ही न हो. मुकुंद कहते हैं, ‘‘मैं कुछ ज्यादा ही आशावादी हूं, दीवार से सिर टकराने के बाद भी दरवाजे की टोह लेती रहती हूं.’’ जीजी के बारे में मैं कुछ ज्यादा भावुक भी तो हूं. शिवानी, हालांकि कुछ नकचढ़ी है, फिर भी बचपन से उसे देखने के कारण उस से लगाव भी तो हो गया है. इसलिए बारबार प्रस्ताव ले कर आती हूं. ‘‘क्या रश्मि, तुम ने बताया था न पता. वहां चिट्ठी भेजी थी,’’ एक दिन जीजाजी बोले, ‘‘कौन, वह बेंगलुरु वाला.’’ मैं कुछ उत्साहित हो गई. ‘‘हां, वही महाशय, उन की यह लंबीचौड़ी चिट्ठी आईर् है. मैं इसे पढ़ कर तुम्हें सुना देता पर ऐसी मूर्खताभरी बातों का मैं फिर से उच्चारण नहीं करना चाहता.’’ ‘‘इस में उन की क्या गलती है,’’ जीजी ने पहली बार चर्चा में भाग लिया, ‘‘वे लोग चाहते हैं कि उन की बहू को गाना आना चाहिए. वे सब गाते हैं.’’

‘‘तुम चुप रहो, आरती,’’ जीजाजी की आवाज में कड़वाहट थी, ‘‘शिवानी को गाना ही सीखना होता तो कंप्यूटर इंजीनियर क्यों बनती. अरे, घंटेभर के गाने के लिए 1,000-1,200 रुपए दे कर वह जब चाहे 10-12 गाने वालों का गाना सुनवा सकती है. तुम भी आरती…’’ ‘‘लेकिन जीजाजी, उन्होंने तो अपनी अपेक्षाएं आप को बता दी हैं. वह भी आप ने संपर्क किया तब,’’ मैं ने कहा. ‘‘तुम दोनों बहनें पूरी गंवार मनोवृत्ति वाली बन रही हो,’’ शिवानी ने कहा, ‘‘लड़की है, इसलिए उसे रंगोली बनाना, गाना गाना, खाना बनाना आदि आना ही चाहिए. यह सब विचार कितने दकियानूसी भरे हैं. अब हम लड़कियां बैंक, औफिस आदि हर जगह मर्दों की तरह कुशलता से सबकुछ संभालती हैं तो सिलाईबुनाई अब मर्द क्यों नहीं सीखते.’’ ‘‘शिवानी, अगर तुम्हें कोई लड़का पसंद नहीं है तो मना कर दो पर किसी की अपेक्षाओं की खिल्ली उड़ाना कहां तक उचित है,’’ जीजी का स्वर जरा ऊंचा था. ‘‘तुम मेरी बेटी पर किसी तरह का दबाव नहीं डालोगी,’’ जीजाजी ने एकएक शब्द अलग करते हुए सख्त आवाज में कहा, ‘‘मैं ने देखा है, रश्मि साथ होती है तब तुम्हें कुछ ज्यादा ही शब्द सू?ाते हैं.’’ मैं दंग रह गई और जीजी चुप.

हम क्या शिवानी की या जीजी के ससुराल वालों की दुश्मन थीं, जो दोनों साथ मिल कर शब्दयुद्ध छेड़तीं. मुकुंद को मैं ने यह सब बताया ही नहीं. शायद वह जीजी के घर से संबंध कम करने के लिए कहते. जीजी की दुनिया में मैं शीतल छाया बन कर रहना चाहती थी. कितना कुछ ?ोला होगा जीजी ने आज तक. जीजाजी के सभ्य, सुसंस्कृत चेहरे के पीछे इतना जिद्दी, इतना स्वकेंद्रित व्यक्ति होगा, यह किसे पता था. मेरी जीजी से सारे परिवार के लिए स्वेटर बुनवाने वाले जीजाजी अपनी बेटी के बारे में इतना अलग दृष्टिकोण क्यों अपनाते होंगे. आएदिन अपने दोस्तों के लिए मेहमाननवाजी के बहाने जीजी को रसोई में व्यस्त रखते थे, जीजाजी. क्या खाना बनाना सुशिक्षित लड़कियों के लिए ‘बिलो डिग्निटी’ है. जीजी भी तो पढ़ीलिखी हैं. पढ़ाने की क्षमता रखती हैं.

अपने बच्चों की पढ़ाई में कई सालों तक सहायता करती रहती हैं. बाहर की दुनिया में कदम रखते ही अगर औरत ही घर को भुला देगी तो घर सिर्फ ईंटों का, लोहे का, सीमेंट का एक ढांचा ही तो रहेगा. उस का घरपन कैसे टिक पाएगा? करीब 2 साल के बाद शिवानी का विवाह हो गया. ससुराल के लोग बड़े अच्छे हैं. दामाद तो हीरा है पर अमेरिका में नौकरी कर रहा है, जहां शिवानी को खाना भी बनाना पड़ता है. ?ाड़ू, बरतन, कपड़े सबकुछ करती है वह. उस से अधिक पढ़ेलिखे, अधिक कमाने वाले जमाई राजा भी उस का हाथ बंटाते हैं. सुखी दांपत्य के लिए पतिपत्नी को एकदूसरे के कामों में हाथ तो बंटाना ही पड़ता है. जीजाजी जा कर सबकुछ देख आए हैं. मैं ने एक दिन नौकरों के बारे में पूछ ही लिया. ‘‘क्या पागलों जैसे सवाल करती हो रश्मि,’’ उन्होंने डांटा, ‘‘वहां नौकर नहीं मिलते.

हर व्यक्ति को अपना काम स्वयं करना पड़ता है. भई, अपना काम खुद करने में वहां के लोग संकोच नहीं करते. उन का मानना है कि व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए. फिर मेरे दामाद मदद भी तो करते हैं, अमेरिका में महिलाओं की बड़ी इज्जत है.’’ मैं ने चुप रहना ही उचित सम?ा. अमेरिका में महिलाओं की इज्जत किस प्रकार होती है, इस बारे में कौन क्या कह सकता है. काम में हाथ बंटा कर, वक्त आने पर पत्नियों को मारने वाले, पत्नी को छोड़ कर दूसरी स्त्री के साथ जाने वाले या छोटे से कारण से तलाक देने वाले अमेरिकी पतियों की संख्या के बारे में कौन नहीं जानता है. फिर उन की संस्कृति की प्रशंसा करने वाले जीजाजी अपने घर में एक गिलास पानी भी खुद हाथों से ले कर नहीं पीते, यह क्या मैं ने देखा नहीं. खैर, दो चेहरे वाले लोगों के ?ां?ाट में कौन सिर खपाए.

‘‘अविनाश के लिए अब ढेरों रिश्ते आ रहे हैं,’’ चाय पीते हुए जीजाजी बोले, ‘‘लड़की वालों को पता है कि ऐसा अच्छा घरवर और कहीं तो बड़ी मुश्किल से मिलेगा.’’ उन्होंने गर्व से जीजी की तरफ देखा. जीजी प्लेट में बिस्कुट सजाने में मगन थीं. ‘‘आप की बात सौ फीसदी सच है, जीजाजी,’’ मैं ने कहा, ‘‘रूप, गुण, शिक्षा, वैभव क्या कुछ नहीं है हमारे अविनाश के पास और जीजी जैसी ममतामयी सास,’’ इतना कह कर मैं ने प्यार से जीजी के गले में अपनी बांहें डाल दीं. ‘‘क्या चाहिए, रश्मि,’’ जीजा ने पूछा, ‘‘इतना मस्का क्यों लगा रही हो जीजी को.’’ ‘‘अविनाश की तसवीर और बायोडाटा दे दो. तुम्हारे लिए 2-4 अच्छी बहुएं लाऊंगी, जिन में से शायद एक तुम्हें पसंद भी आ जाए.’’ ‘‘जरा देखपरख के लाना रिश्ते,’’ जीजाजी ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘आजकल की लड़कियां बहुत तेजतर्रार हो गई हैं.’’ ‘‘मतलब…’’ ‘‘अरे, 4 दिनों पहले एक लड़की के मातापिता मिलने आए थे.

वैसे तो वे हैदराबाद किसी की शादी में आए थे, लेकिन जब अविनाश के बारे में उन्हें पता चला तो अपनी बेटी के लिए रिश्ता ले कर मिलने आ गए.’’ ‘‘अच्छी थी लड़की?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा. ‘‘फोटो लाए नहीं, पर हां, जानकारी तो प्रभावित करने वाली थी,’’ जीजाजी ने बताया, ‘‘उन की बेटी ने एमबीए किया है और पिछ?ले 6 सालों से पुणे में नौकरी कर रही है. अगर अविनाश पुणे में कोई नौकरी कर ले तो काम हो सकता है.’’ ‘‘अच्छा, और अविनाश का यहां का काम.’’ ‘‘वही तो मैं कह रहा हूं. आजकल तो लड़की वालों के बातविचार ही सम?ा में नहीं आते. उन की लड़की एक एमबीए डिगरी को छोड़ कर और किसी चीज में निपुण नहीं है और 8 साल से यहां काम जमा कर बैठा हुआ मेरा बेटा शहर छोड़ कर वहां जाए.’’ ‘‘मना कर देते आप,’’ जीजी ने धीरे से कहा. ‘‘वही तो किया. लेकिन आरती, इन इंजीनियर, डाक्टर लड़कियों के मातापिता सोचते हैं कि उन्होंने जैसे आकाश छू लिया है.

अगर लड़की उन्नीस है तो लड़का भी तो बीस या इक्कीस वाला ही ढूंढ़ेंगे न? फिर इतनी शर्तें, इतना घमंड क्यों.’’ जीजी बोलीं, ‘‘आजकल लोग लड़कालड़की की परवरिश में फर्क नहीं करते. उन्हें भी अपनी अपेक्षाएं बताने का हक है.’’ ‘‘अरे भई, शिक्षादीक्षा, खानापीना, लाड़प्यार सभी में लड़केलड़की बराबर होंगे तब भी फर्क तो रहेगा न,’’ जीजाजी बोले, ‘‘बहू इस घर में आएगी, अविनाश उस घर को नहीं जाने वाला.’’ बातों से लगा कि जीजाजी अब चिढ़ गए हैं. ‘‘लेकिन जीजाजी, आजकल दोनों की कमाई में फर्क नहीं है. समान अधिकार हैं स्त्रीपुरुष के.’’ ‘‘देखो रश्मि, हम लोगों को बहू चाहिए, नौकरी नहीं. इस घर को एक कुशल गृहिणी की जरूरत है, अफसर की नहीं. अगर लड़की होशियार है, कोई काम कर रही है तो इस घर से उसे पूरा सहयोग मिलेगा, लेकिन अगर वह घर से ज्यादा महत्त्व अपने कैरियर को देना चाहती है तो उसे शादी नहीं करनी चाहिए.’’ ‘‘जीजाजी, आप ने मेरे सामने यह अभिप्राय बता दिया तो ठीक है, लेकिन किसी आधुनिक विचारों वाली लड़की के सामने मत बोलिएगा.

?ागड़ा हो जाएगा.’’ ‘‘होने दो, लेकिन अपने अनुभव की बातें बताने से मु?ो कोई नहीं रोक पाएगा,’’ जीजाजी की आवाज कुछ ऊंची उठ गई, ‘‘उस दिन एक महाशय पत्नी के साथ आए थे. कहने लगे कि उन की बेटी को विदेश जाने का मौका मिलने वाला है तो क्या अविनाश उस के साथ अपने खर्च से जा पाएगा?’’ ‘‘फिर…’’ ‘‘मैं ने कह दिया कि महाशय, मेरे बेटे को विदेश जाने का मौका मिलता तो पत्नी का खर्चा वह खुद देता और उसे साथ ले जाता. उन की बेटी भी तो मेरे बेटे का टिकट खरीद सकती है. दोनों की कमाई में फर्क नहीं. अधिकार समान है, फिर यह दोहरा मानदंड क्यों?’’ मैं चुप्पी लगा गई. अगर कहती कि जीजाजी, दोहरे मानदंड वाले तो आप हैं. शिवानी की शादी के समय आप के विचार कुछ अलग थे और आज बेटे की शादी के समय में कुछ अलग हैं. जीजी ने कितनाकुछ खो कर घरपरिवार को, संस्कृति के मूल्यों को बरकरार रखा था. जीजाजी सम?ादार होते तो जीजी अपने व्यक्तित्व को गरिमामय रख कर भी वह सबकुछ कर सकती थीं. कोई काम भी कर सकती थीं.

जीजी को खरोंचने का काम अकेले जीजाजी करते थे. बेटी और बहू में फर्क करने वाली सास पर अनेक धारावाहिक देखने और दिखाने वाले समाज में जीजाजी जैसे कई पुरुष भी हैं जो पत्नी और बेटी के सम्मान में जमीनआसमान का अंतर रखते हैं. मैं जब सीधीसादी पर सम?ादार नंदिनी का रिश्ता ले कर गई, तब मु?ो जीजाजी की पसंद पर कोई खास भरोसा नहीं था. मेरे मन में जीजी के लिए एक अच्छी, प्यार और सम्मान देने वाली बहू लाने की इच्छा इतनी प्रबल न होती तो मैं जीजाजी के सामने इतने सारे प्रस्ताव न रखती. मु?ो पता था कि अविनाश को नंदिनी पसंद आएगी, क्योंकि वह मां के संस्कारों के सांचे में ढला था. मैं यह भी जानती थी कि शिवानी की मुंहफट बातों को स्मार्टनैस सम?ाने वाले जीजाजी को कम बोलने वाली नंदिनी कैसे पसंद आएगी.

घर संभाल कर अनुवाद और लेखन करने वाली लड़की किसी डाक्टर या इंजीनियर लड़की जितनी बोल्ड कैसे हो सकती है. शिवानी बिजली है. उस के सामने नंदिनी एक दीपक की छोटी सी लौ की तरह मंद, आलोकहीन लगेगी. लेकिन मेरी सोच गलत साबित हुई. अपनी मधुरता से नंदिनी ने सब को मोह लिया. विवाह हो गया. बहुत खुश है अविनाश. जीजी को मेरी तरह एक शीतल छाया मिल गई है. जब मैं जीजाजी को बड़े शौक से खाना खाते और नंदिनी को कोई खास बनाई गई चीज परोसते हुए देखती हूं, तब मेरे मन में संदेह जागता है कि मैं ने नंदिनी के साथ अन्याय तो नहीं किया. शायद जीजाजी को जीजी जैसी स्नेहिल, घर को प्यार करने वाली ही बहू चाहिए थी ताकि उन का,

उन के बेटे का घर अक्षुण्ण रहे. उन के चैन और आराम बने रहें. लेकिन मेरा मन खुद से प्रश्न करता है, दो चेहरे वाले इंसानों की असलियत कौन जान सकता है. क्या पता अविनाश भी कुछ सालों बाद जीजाजी की तरह… मैं राह देख रही हूं जीजी के पोतेपोतियों की. पोती आएगी, तभी पता चलेगा कि जीजाजी का दूसरा चेहरा सचमुच उतर चुका है या मौका मिलते ही वह फिर उन के आजकल के चेहरे को ढ?कने आ पहुंचेगा. मेरा आशावादी मन कल्पना में देख रहा है, उस उतरे हुए चेहरे की धज्जियां और अब चढ़े हुए चेहरे पर ?ालकती तंदुरुस्ती की गुलाबी चमक. द्य इन्हें आजमाइए ? अपने घर के लिए कुछ खरीदें तो स्पेसिफिक जगह को दिमाग में रखें. ड्राइंगरूम का कारपेट रूम के साइज के अनुसार होना चाहिए. अगर अपने बैडरूम में कपल फोटो लगाना है तो वौल का साइज चेंज कर के ही फ्रेम का साइज चुनें क्योंकि चीजें स्पेस के अनुसार जंचती हैं. ? प्रैग्नैंसी के दौरान आप का उठना,

बैठना और सोना ये तीनों चीजें आप के पेट में पल रहे शिशु पर असर डाल सकती हैं. इसलिए अपने शरीर की पोजीशन का हमेशा ध्यान रखें. सही तरीके से उठें, बैठें और सोएं ताकि शिशु पर किसी तरह का कोई प्रभाव न पड़े. ? वजन कम करने के चक्कर में बाहर के पैकेट प्रौडक्ट्स का सेवन ज्यादा करने लगते हैं जो सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है. वजन को कम करने के लिए घर का बना खाना खाएं, जो हैल्दी और प्रिजर्वेटिव फ्री होता है. ? महिलाएं इसे नजरअंदाज करती हैं, लेकिन सही ब्रैस्ट शेप के लिए सही ब्रा बहुत जरूरी है. अगर आप अपनी ब्रा को ले कर श्योर नहीं हैं तो एक बार एक्स्पर्ट से बात जरूर कर लें. ? यदि आप जिम से वर्कआउट करने के बाद प्रोटीन पाउडर लेते हैं तो यह आप को एनर्जी देने वाला तथा आप की मसल्स में ग्रोथ करने वाला साबित होगा.

अविवाहित ननद यानि डेढ़ सास

इसमें कोई शक नहीं कि बेटी का रिश्ता तय करते वक्त मां बाप इस बात पर ज्यादा गौर करते हैं कि कहीं लड़के की बड़ी बहन अविवाहित तो नहीं. इसकी वजह भी बेहद साफ है कि घर में चलती उसी की है. सास अब पहले की तरह ललिता पवार जैसी क्रूर नहीं रह गई है, लेकिन बड़ी अविवाहित ननद बिन्दु, अरुणा ईरानी और जयश्री टी जैसी हैं, जिसके हाथ में घर की न केवल चाबियां बल्कि सत्ता भी रहती है, इसीलिए उसे डेढ़ सास के खिताब से नवाजा जाता है. छोटे भाई को वह बेटा भी कहती है और दोस्त भी मानती है. ऐसे में बेटी शादी के बाद उससे तालमेल बैठा पाएगी इसमें हर मां बाप को शक रहता है.

बेटी भले ही रानी बनकर राज न करे चिंता की बात नहीं, लेकिन ससुराल जाकर ननद के इशारों पर नाचने मजबूर हो यह कोई नहीं चाहता क्योंकि भाई का स्वभाविक झुकाव कुंवारी बड़ी बहन की तरफ रहता ही है. हालांकि इसके पीछे उसकी मंशा यह रहती है कि दीदी को एक अच्छी सहेली और छोटी बहन मिल जाएगी, लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा होता नहीं है क्योंकि पत्नी और बहन दोनों उस पर बराबरी से हक जमाते कुछ दिनों बाद बिल्लियों की तरह लड़ती नजर आती हैं.

भोपाल के 32 वर्षीय बैंक अधिकारी विवेक की बड़ी बहन 36 वर्षीय प्रेरणा की शादी किन्हीं वजहों के चलते नहीं हो पाई थी. मां की इच्छा और असशक्ता के चलते तीनों ने फैसला यह लिया लिया कि विवेक ही शादी कर ले. पिता थे नहीं, इसलिए विवेक की तरफ से शादी के सारे फैसले प्रेरणा ने लिए. शुचि के मां बाप ने भी मन में खटका लिए ही सही शादी कर दी. शुरू में प्रेरणा का रवैया बेहद गंभीर और परिपक्व था उसने पूरे उत्साह और जिम्मेदारी से शादी सम्पन्न कराई और शुचि को भाभी के बजाय छोटी बहन ही कहा.

दो चार महीने ठीक ठाक गुजरे.  शुचि भी बैंक कर्मी थी लिहाजा हनीमून से लौटने के बाद वह अपनी नौकरी में लग गई. एक बात उसने न चाहते हुये भी नोटिस की कि पूरे हनीमून के दौरान विवेक दीदी की बातें ज्यादा करता रहा था कि पापा के असामयिक निधन के बाद मम्मी बिलकुल टूट गईं थी और बिस्तर से लग गईं थीं तो उनकी देखभाल के लिए दीदी ने शादी नहीं की क्योंकि उस वक्त वह पढ़ रहा था.

विवेक की नजर में दीदी का यह त्याग अतुलनीय था. शुचि उसकी भावनाओं को समझ रही थी लेकिन यह बात उसे खटक रही थी कि नैनीताल वे दीदी के त्याग का पुराण बांचने आए हैं या फिर रोमांस करते एक दूसरे को समझने आए हैं.

भोपाल लौटते ही बात आई गई हो गई और चारों अपनी दिनचर्या में बांध गए. बहू बेटा और बेटी साथ खाने बैठते थे तो मां खुश हो जातीं थीं और बार बार हर कभी शुचि की तारीफों में कसीदे गढ़तीं रहतीं थीं कि उसके आने से घर में रौनक आ गई है, उलट इसके विवेक का पूरा ध्यान प्रेरणा पर रहता था कि ऐसी कोई बात न हो जो दीदी को बुरी लगे. हर बात में दीदी उसकी प्राथमिकता में रहती थीं. वह जो भी शुचि के लिए खरीदता था वही प्रेरणा के लिए भी खरीदता था ताकि उसे बुरा न लगे.

शुचि को इस पर कोई एतराज नहीं था हालांकि कभी कभी उसे यह सब बुरा लगता था लेकिन मम्मी की दी यह सीख उसे याद थी कि ऐसा शुरू शुरू में हो सकता है इसलिए उसे इन बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, बल्कि पति का सहयोग करना चाहिए फिर धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा और मुमकिन है अब प्रेरणा की भी शादी हो जाये.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं उल्टे दिक्कत उस वक्त शुरू हो गई जब दिन भर घर में खाली बैठी रहने वाली प्रेरणा शुचि के कामों में मीनमेख निकालने लगी और विवेक दीदी के लिहाज में चुप रहा. यहां तक भी शुचि कुछ नहीं बोली लेकिन ननद का व्यवहार और घर में एकछत्र दबदबा उसे अखरने लगा था. घर में क्या आना है, रिश्तेदारी कैसे निभाना है जैसी बातें प्रेरणा ही तय करती थी. और तो और आज सब्जी कौनसी बनेगी यह फैसला भी वही लेती थी.

शुरू में जब शुचि बैंक से आती थी तो प्रेरणा उसे चाय बनाकर दे देती थी, इस परिहास के साथ कि मेरी भाभी कम बहन ज्यादा थक गई होगी लेकिन वक्त के साथ घर में पैदा हुआ यह सौहाद्र छू हो रहा था. थकी हारी शुचि या तो खुद चाय बनाकर पी लेती थी या फिर बिना पिये ही रह जाती थी. इस और ऐसे कई बदलावों पर प्रेरणा पहले तो खामोश रही पर जल्द ही उसने शुचि को महारानी के खिताब से नवाजते एक दिन विवेक को कह दिया कि बेहतर होगा कि वह अलग रहने लगे.

इस धमाके से सभी भौंचक्क रह गए खासतौर से विवेक जिसने कभी ऐसी स्थिति की उम्मीद ही नहीं की थी. अब घर में स्थायी रूप से कलह पसर गई है और शुचि का मुंह भी खुल गया गया है.

यह सच्चा वाकिया हर उस घर का है जहां डेढ़ सास है. रिश्तों को समझने और निभाने में कहां किससे कितनी चूक हुई है, इसे हर किरदार के लिहाज से देखा जाना जरूरी है जिससे यह समझ आए कि इस अप्रिय और अप्रत्याशित स्थिति की वजह क्या है.

विवेक – विवेक की गलती यह है कि उसने पत्नी के मुकाबले बहन को ज्यादा तरजीह दी, जबकि उसे शुचि की भावनाओं का भी खयाल बराबरी से रखते दोनों के बीच तालमेल बैठाना चाहिए था. शादी के बाद उसे बहन पर निर्भरता कम करनी चाहिए थी और शुचि को भी हर छोटे बड़े फैसले में महत्व देना चाहिए था. दीदी अकेली है, बड़ी है और अब हमें ही उसका ध्यान रखना है जैसी बातों से साफ है कि वह शुचि को प्रेरणा का प्रतिस्पर्धी मानने की गलती कर रहा था. उसकी मंशा गलत नहीं थी लेकिन हालातों को ओपरेट करने का तरीका गलत था.

शुचि – ससुराल आते ही शुचि के मन में यह बात बैठ गई थी कि घर में उसकी भूमिका एक सदस्य की नहीं बल्कि मेहमान की की है लिहाजा उसने अपने अधिकार न तो हासिल किए और न ही इस्तेमाल किए. उसने यह भी मान लिया कि जब सब कुछ प्रेरणा ने ही करना है तो वह क्यों खामखा किसी मामले में टांग अड़ाये. एक तरह से विवादों और जिम्मेदारियों से बचने वह डिफेंस में रही, लेकिन प्रेरणा के ताने सुन आपा खो बैठी और विवेक से दीदी के लगाव के चलते हर ज्यादती बर्दाश्त करती रही.

प्रेरणा – शुरू में प्रेरणा की भूमिका अभिभावक की थी लेकिन असुरक्षा के चलते वह खुद की तुलना शुचि से करने की गलती कर बैठी. खासी पढ़ी लिखी प्रेरणा यह नहीं समझ पाई कि विवेक और शुचि को एक दूसरे को समझने नजदीकियां और एकांत चाहिए और इसमें उसे आड़े नहीं आना चाहिए. उसे यह काल्पनिक चिंता सताने लगी थी कि शुचि घर की बहू है इस नाते वह उसके अधिकार छीन लेगी इस गलतफहमी के चलते वह लगातार आक्रामक होती गई. अलावा इसके खुद के अकेलेपन का दंश भी उसे सालने लगा था जो निरधार था. उसने शुचि को न भाभी समझा और न ही बहिन मान पाई.

मां –  मां की तटस्थ भूमिका का खामियाजा सभी भुगत रहे हैं जिन्होंने हालातों को भांपने के बाद भी दखल नहीं दिया जो जरूरी था. बेटी की परेशानी के सामने उन्हें बहू की परेशानी समझ नहीं आई और आई भी तो वे चुप रहीं. जरूरी तो यह था कि वे तीनों को अलग अलग और इकट्ठा बैठाकर भी समझातीं, खासतौर से विवेक को कि उसे कैसे बहन और पत्नी के बीच में संतुलन बैठालना है.

अब शुचि प्रेगनेंट है और मायके में रह रही है, उसके मम्मी पापा को भी समझ नहीं आ रहा है कि ऐसी हालत में क्या किया जाये. अगर विवेक को ज्यादा  समझाएंगे तो वह भड़क भी सकता है, हालांकि वह हर सप्ताह शुचि से मिलने आता है और उसे समझाता है कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. दीदी ने तो गुस्से में अलग होने की बात कह दी है.

लेकिन शुचि को लगता है कि अब कुछ ठीक नहीं होगा और होगा तो तभी जब डेढ़ सास की शादी हो जाये.

हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में पहचाने फर्क

53 साल के मशहूर सिंगर केके यानी कृष्ण कुमार कुन्नथ अब हमारे बीच नहीं हैं. कोलकाता कौन्सर्ट के दौरान वे थोड़ा असहज महसूस कर रहे थे. इस के बावजूद उन्होंने करीब घंटेभर के अपने शो को पूरा किया और कौन्सर्ट से होटल जाते हुए उन की तबीयत बिगड़ी और वे गिर पड़े.

अस्पताल ले जाए जाने पर डाक्टरों द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. पुलिस को इंतजाम में किसी गड़बड़ी का शक था तो किसी ने इसे हार्ट अटैक की संभावना बताई, जबकि पोस्टमार्टम और औटोप्सी के अनुसार गायक की मौत के कारण के रूप में ‘मायोकार्डियल इंफार्कशन’ बताया गया.

ऐसी ही एक घटना मुंबई की पौश एरिया में 38 साल के एक व्यक्ति के साथ हुई. औफिस से घर लौटने पर उस की पत्नी और बेटी ने उस की घबराहट को देखा. उसे नीचे बैठा कर पानी दिया. पानी पीने से पहले उस का गिलास हाथ से गिर गया और वह बेहोश हो गया. तुरंत डाक्टर को बुलाया गया लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी. इस व्यक्ति के पीछे घरेलू हाउसवाइफ और 2 छोटीछोटी बेटियां बिना किसी सहारे के रह गईं.

मायोकार्डियल इंफार्कशन (एमआई) को आमतौर पर हार्ट अटैक कहा जाता है. जब हार्ट में ब्लड फ्लो कम होने लगता है या हार्ट की कोरोनरी आर्टरी बंद हो जाती है तब ऐसी अवस्था होती है. इस रोग में हृदय की धमनियों के भीतर एक प्लेक सा पदार्थ जमने लगता है जिस की वजह से ये धमनियां सिकुड़ने लगती हैं और हृदय तक खून का पहुंचना बंद हो जाता है.

क्या है अंतर

बहुत से लोग अकसर हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट को समानार्थी सम झ लेते हैं लेकिन इन दोनों स्थितियों में काफी अंतर होता है. कुछ लोग कार्डियक अरेस्ट का मतलब दिल का दौरा सम झ लेते हैं पर दिल का दौरा पड़ने का मतलब होता है हार्ट अटैक आना. दिल का दौरा तब होता है जब हृदय में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और कार्डियक अरेस्ट तब होता है जब मनुष्य का हृदय अचानक कार्य करना बंद कर देता है जिस से दिल का धड़कना भी अचानक बंद हो जाता है.

कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक की तुलना में अधिक घातक होता है क्योंकि कार्डियक अरेस्ट में व्यक्ति को बचाने का समय बहुत कम मिल पाता है.

बनें जागरूक

इस बारे में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण कहाले कहते हैं, ‘‘दिल का दौरा (हार्ट अटैक) तब होता है जब हृदय की धमनियों यानी रक्त वाहिकाओं, जो हृदय की मांसपेशियों को पंप करने के लिए औक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करती है, में से एक ब्लौक हो जाती है. हृदय मांसपेशी को उस का कार्य सुचारु रूप से कर पाने के लिए सब से जरूरी होता है रक्त, लेकिन धमनी के ब्लौक हो जाने पर वह नहीं मिल पाता है और अगर इस का इलाज समय पर नहीं किया गया तो पर्याप्त मात्रा में औक्सीजन न मिल पाने की वजह से हृदय मांसपेशी का कार्य बंद पड़ने लगता है. जब किसी व्यक्ति का हृदय रक्त पंप करना बंद कर देता है तब हृदय की गति रुक जाती है जिसे कार्डियक अरेस्ट कहते हैं.

‘‘यह व्यक्ति सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाता है. वयस्कों में कार्डियक अरेस्ट बहुत बार दिल के दौरे की वजह से होता है. जब दिल का दौरा पड़ता है तब हृदय की धड़कन में खतरनाक अनियमितता आ जाती है जिस से कार्डियक अरेस्ट हो सकता है. कमजोर हृदय वाले लोगों को यह तकलीफ होती है यानी उन के हृदय की पंपिंग क्षमता (इजैक्शन फ्रैक्शन) बड़े पैमाने पर कम हो जाती है (35त्न से कम). इसे अचानक होने वाली ‘कार्डियक डैथ’ भी कहा जाता है.

दिल के दौरे के लक्षण

चैस्ट में बेचैनी : दिल के दौरों के ज्यादातर केसेस में चैस्ट के बीचोंबीच बेचैनी महसूस होती है जो कई मिनटों तक रहती है, फिर दूर होती है और फिर से होने लगती है. बेचैन कर देने वाला दबाव, छाती को निचोड़ा जा रहा हो ऐसा दर्द, छाती भरीभरी सी महसूस होना या छाती में दर्द होना आदि में से कुछ भी हो सकता है.

शरीर के दूसरे हिस्सों में बेचैनी : दोनों या किसी एक हाथ में, पीठ, गरदन, जबड़े या पेट में दर्द या बेचैनी होना.

सांस लेने में तकलीफ : छाती में बेचैनी के साथसाथ सांस लेने में तकलीफ होना दिल के दौरे का एक लक्षण हो सकता है. कई दूसरे लक्षण जिन्हें अधिकतर व्यक्ति सम झ नहीं पाते, इन में बहुत सारा पसीना निकलना, मतली या चक्कर आना शामिल हैं.

पुरुषों और महिलाओं में लक्षण कई बार अलगअलग हो सकते हैं, इसलिए यह भी जान लेना जरूरी है.

पुरुषों की तरह महिलाओं में भी दिल के दौरे का सब से प्रमुख लक्षण छाती में दर्द या बेचैनी होना है लेकिन इस के दूसरे लक्षण पुरुषों से अधिक महिलाओं में दिखाई पड़ते हैं जिन में, खासकर, सांस लेने में तकलीफ, मतली, उलटी होना, पीठ और जबड़े में दर्द आदि शामिल हैं.

कार्डियक अरेस्ट में अचानक दिल का काम करना बंद हो जाता है. कार्डियक अरेस्ट किसी लंबी या पुरानी बीमारी का हिस्सा नहीं है, इसलिए कार्डियक अरेस्ट को दिल से जुड़ी बीमारियों में सब से खतरनाक माना जाता है. लोग अकसर इसे दिल का दौरा पड़ना सम झते हैं. इस बारे में डा. प्रवीण कहते हैं कि इस के लक्षण को जानना बहुत जरूरी है.

कार्डियक अरेस्ट के लक्षण

व्यक्ति का अचानक होश खो देना और उसे हिलाने पर भी उस का कोई प्रतिक्रिया न देना.

सामान्य रूप से सांस न ले पाना.

अगर कार्डियक अरेस्ट के व्यक्ति का सिर उठा कर कम से कम 5 सैकंड्स तक देखते हैं तो पता चलेगा कि वह सामान्य तरीके से सांस नहीं ले पा रहा है.

क्या करें अचानक उपाय

कार्डियक अरेस्ट होते ही उस व्यक्ति को सुरक्षित स्थिति में रखें, उस की प्रतिक्रिया की जांच करें.

अगर उस की प्रतिक्रिया महसूस नहीं कर पा रहे हैं तो तुरंत मदद के लिए चिल्लाएं, अपने आसपास के

किसी व्यक्ति को अपने इमरजैंसी नंबर पर कौल करने के लिए कहें. इस के अलावा उस व्यक्ति को एईडी (औटोमेटेड एक्सटर्नल डिफाइब्रिलेटर) ले कर आने को कहें. उन्हें जल्दी करने के लिए कहें क्योंकि इस में समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. यदि आप किसी ऐसे वयस्क के साथ अकेले हैं जिस में कार्डियक अरेस्ट के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो इमरजैंसी नंबर पर कौल करना सब से जरूरी होता है.

उस व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, सिर्फ हांफ रहा है, सांस नहीं ले पा रहा है, तो कंप्रैशन के साथ सीपीआर देना शुरू करें.

हाई क्वालिटी सीपीआर देना शुरू करें, अपने हाथों को मिला कर छाती को बीचोंबीच रखें और छाती कम से कम दो इंच भीतर जाए, इस प्रकार दबाएं. एक मिनट में 100 से 120 बार दबाया जाना चाहिए. हर बार दबाए जाने के बाद छाती को उस की सामान्य स्थिति में आने दें.

एईडी का इस्तेमाल करें, जैसे ही एईडी आता है उसे शुरू करें और संकेतों का पालन करें.

सीपीआर देना जारी रखें. जब तक वह व्यक्ति सांस लेना या हिलना शुरू न कर दे या ईएमएस टीम सदस्य जैसा अधिक उन्नत प्रशिक्षण लिया हुआ कोई व्यक्ति जब तक वहां न पहुंचे, तब तक सीपीआर को जारी रखना पड़ता है.

मैं सीरियस टाइप का हूं, फनी बातें कैसे करूं?

सवाल

मेरी उम्र 30 साल की है लेकिन देखने में 25 साल का लगता हूं. मेरे इसी गुड लुक्स की वजह से 24 साल की एक लड़की को मुझसे प्यार हो गया और उस की मस्तमस्त अदाओं पर मैं भी फिदा हो गया. दिक्कत यह आ रही है कि उसे हंसीमजाक पसंद है, जबकि मैं जरा सीरियस टाइप का हूं. चैटिंग करने का उसे बहुत शौक है, जबकि मुझे समझ नहीं आता कि उस से फनी बातें कैसे करूं? मुझे फनी बातें करना बिलकुल पसंद नहीं है. आप ही मेरी इस समस्या का हल बताएं.

जवाब

आप को कुछ चालाकी दिखाने की जरूरत है क्योंकि आप दोनों डिफरैंट नेचर के लग रहे हो. अभी तो लड़की आप के लुक्स की दीवानी हो गई है लेकिन कहीं आप की सीरियसनैस की वजह से वह आप से बोर न होने लगे. इसलिए अपनी बातों को थोड़ा फनी, फनी न भी बना सको, दिलचस्प बनाने की कोशिश तो करनी ही पड़ेगी.

आप चैट करते हुए लड़की से कई फनी बातें पूछ सकते हो जैसे कि तुम ने अपनी हंसी को कहीं जबरदस्ती रोकने की कोशिश की है? क्या कभी कोई अजीब चीज खाई है? अगर एक दिन के लिए गायब हो जाओ तो क्या करना चाहोगी, एक दिन के लिए लड़का बनो तो क्या करोगी, ऐसी कोई चीज जो फिर नहीं करना चाहोगी वगैरावगैरा.

ये कुछ ऐसे फनी सवाल हैं जिन पर बात करतेकरते कितनी ही और मजेदार बातें निकल कर सामने आएंगी और आप की बातें और भी ज्यादा दिलचस्प बन जाएंगी. धीरेधीरे ही सही पर आप को तो उस के नेचर के हिसाब से ढलना ही होगा, तभी बात करने में मजा आएगा.

आप को अपने अनुभव भी याद आएंगे और इस तरह आप दोनों के बीच की बौंडिंग भी स्ट्रौंग बनेगी. कोशिश शुरू कर दीजिए, नतीजा अच्छा ही निकलेगा. होप फौर द बैस्ट.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

समर स्पेशल : ब्रेकफास्ट में बनाएं मूंग दाल चीला

मूंग दाल चीला ब्रेकफास्ट में सर्व होने वाली हेल्दी और टेस्टी रेसिपी है. यह बनाने में जितनी आसान है खाने में उतनी ही स्वादिष्ट और पौष्टिक. तो आइए झट से बताते हैं इसकी रेसिपी.

 सामग्री

1 1/2 भिगोकर, पानी निकाली हुई मूंग दाल

3/4 टेबल स्पून जीरा पाउडर

1/2 टेबल स्पून हरी मिर्च का पेस्ट

1/2 टेबल स्पून अदरक का पेस्ट

2 चुटकी नमक

2 टेबल स्पून वर्जिन औलिव औयल

बनाने की वि​धि

हरी मूंग की दाल को 5 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. जब यह अच्छी तरह फूल जाए, इसका पानी निकाल लें और मिक्सर में पीस लें.

अब पिसी दाल में बाकी सारी सामग्री मिला लें और अच्छी तरह मिक्स करें.

अब एक चपटे नौन-स्टिक पैन में तेल डालकर गरम करें. एक चम्मच दाल का पेस्ट पैन पर डालकर चम्मच के पीछे की साइड से अच्छी तरह फैला लें.

हल्का सा पकने पर चीले को पलट लें और दोनों तरफ से हल्का भूरा होने तक अच्छी तरह सेक लें. तैयार चीले को हरी चटनी या टमैटो सौस के साथ सर्व करें.

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