सवाल
मैं 25 साल का एक शादीशुदा नौजवान हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. एक लड़की मुझ से बहुत प्यार करती है और मैं भी उस से प्यार करता हूं. वह मेरे साथ शादी करने के लिए तैयार है. मैं क्या करूं?
जवाब
नाजायज संबंधों को प्यार का नाम देने से आप अपनी जिम्मेदारियों और गलती से बचने की कोशिश करने वाले पहले या आखिरी मर्द नहीं हैं. गलती यह है कि बीवी व 2 बच्चों के रहते आप किसी और लड़की से प्यार करतेहैं, तो फिर आप यह भी जानते होंगे कि माशूका से शादी करने के लिए आप को अपनी बीवी को तलाक देना पडे़गा. यह पत्नी और बच्चों के साथ ज्यादती नहीं तो क्या है. बेहतर होगा कि आप अपनी शादीशुदा जिंदगी को फिर से दिलचस्प बनाएं. अपनी माशूका से वक्त रहते धीरेधीरे किनारा कर अपनी घरगृहस्थी, कैरियर और बच्चों पर ध्यान दें.
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जब बहकने लगें इनके कदम
पुलिस की 25 साल से भी ज्यादा नौकरी कर चुके 59 साला सबइंस्पैक्टर मोहन सक्सेना को मध्य प्रदेश के मालवा इलाके के शहर शाजापुर में हर कोई जानता था. इस की एकलौती वजह यह नहीं थी कि वे पुलिस महकमे में थे और वरदी पहन कर शहर में निकलते थे, तो लोग इज्जत से सिर झुका कर उन्हें सलाम ठोंकते थे. दूसरी वजह थी उन का एक इज्जतदार कायस्थ घराने से होना. तीसरी अहम वजह जो बीते 2 साल में पैदा हुई थी, वह उन की बहू मालती (बदला नाम) थी, जिस के बारे में हर कोई जानता था कि वह ड्राइवर अंकित चौरसिया से अकसर चोरीछिपे मिला करती थी.
दुनियाभर के लोगों को सही रास्ते पर आने की नसीहत देने वाले दारोगाजी खुद अपनी बहू के बहकते कदम नहीं संभाल पा रहे थे. खून तो खूब खौलता था, लेकिन क्या करें यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.
यों बहकी बहू
24 साला अंकित चौरसिया पेशे से ड्राइवर था, जो फिलहाल शाजापुर की ही एक मालदार व इज्जतदार औरत निर्मला गौर की कार चला रहा था. गोराचिट्टा खूबसूरत बांका अंकित खुशमिजाज और बातूनी था. जल्दी ही वह घर के सभी लोगों से घुलमिल गया था. इस के पहले वह मोहन सक्सेना की कार चलाता था. लेकिन 25 साला बहू मालती ड्राइवर अंकित चौरसिया से जरूरत से ज्यादा घुलमिल गई थी. शुरू में तो किसी ने इस बात पर गौर नहीं किया, लेकिन जल्दी ही वे दोनों चोरीछिपे मिलनेजुलने लगे और उन के प्यार की सुगबुगाहट दारोगाजी के कानों में पड़ी, तो उन्होंने तुरंत अंकित को नौकरी से निकाल दिया और आइंदा मालती से दूर रहने की धमकी दे डाली. यह नसीहत और धौंस बेकार साबित हुई. अंकित की नौकरी छूटी थी, महबूबा नहीं. लिहाजा, वह मोहन सक्सेना और नितिन की परवाह किए बिना मालती से मिलता रहा.
और एक दिन…
बदनामी का पानी तो काफी पहले ही सिर से गुजर चुका था, पर अब इतना लबालब भर गया था कि मोहन सक्सेना को सांस लेना भी मुहाल हो चला था. लिहाजा, उन्होंने नए साल की शुरुआत में कसम खा ली थी कि अगर अंकित सीधे बात नहीं मानता है, तो उसे सबक सिखाने के लिए जो भी रास्ता अख्तियार करना पड़े वे करेंगे. जब किसी भी तरह मानमनोव्वल और धौंस के अलावा तंत्रमंत्र से भी बात नहीं बनी, तो मोहन सक्सेना का अक्ल और सब्र से नाता टूट गया. लेकिन इस बाबत उन्होंने जो रास्ता चुना, वह बेहद खतरनाक था.
झमेला तंत्रमंत्र का
संजय व्यास जैसे तांत्रिकों की छोटे शहरों में बड़ी धाक और पूछपरख रहती है, जिन के बारे में यह मशहूर रहा है कि उन के नीबू काटने की देर भर है, अच्छेअच्छे रास्ते पर आ जाते हैं. इस मामले में एक बात बड़ी दिलचस्प रही कि मोहन सक्सेना और नितिन तो इस तांत्रिक के चक्कर काट ही रहे थे, लेकिन इस बात से अनजान अंकित भी उस के फेर में आ गया था, जिस की परेशानी यह थी कि मालती उस के वश में पूरी तरह नहीं आ रही थी. वह उसे पसंद तो करती थी, पर शादी करने के लिए राजी नहीं हो रही थी. कुछ दिन तो मजे ले कर संजय व्यास ने उन दोनों से पैसा झटका, पर अंकित गरीब था, इसलिए अनुष्ठानों के नाम पर ज्यादा चढ़ावा नहीं दे पा रहा था. इसी बीच काम हो जाने के लिए लगातार दबाव बना रहे मोहन सक्सेना को वह यह समझा पाने में कामयाब हो गया कि बहू के ऊपर कोई बड़ी बला है, इसलिए अंकित को रास्ते से हटाने का एकलौता उपाय उसे इस दुनिया से ही उठा देना है.
योजना के मुताबिक, संजय व्यास ने अंकित को यह झांसा दिया कि मालती हमेशा के लिए उस के वश में हो सकती है, लेकिन इस के लिए एक खास किस्म का अनुष्ठान करना पड़ेगा. उम्मीद के मुताबिक, मालती के लिए पगलाया अंकित पूजा कराने को तुरंत तैयार हो गया. संजय ने उसे बताया था कि यह खास किस्म की तांत्रिक क्रिया दूर किसी सुनसान सिद्ध जगह पर करनी पड़ेगी. इस पर अंकित ने एतराज नहीं जताया, न ही कोई सवाल किया. 17 जनवरी, 2016 की सुबह अंकित अपनी मालकिन निर्मला गौर के पास गया और उज्जैन जाने के लिए उन की कार मांगी. उस ने बहाना यह बनाया कि वह कुछ दोस्तों के साथ महाकाल मंदिर के दर्शन करने जाना चाहता है. उस की बात पर निर्मला गौर को कोई शक नहीं हुआ, इसलिए उन्होंने अपनी कार उसे दे दी.
दोस्त तो नहीं, पर अपने कातिलों में से एक संजय व्यास को उस ने कार में बैठाया और बजाय उज्जैन जाने के तांत्रिक के बताए रास्ते पर गाड़ी दौड़ा दी. बैरसिया तहसील के पास भोजपुरा के घने जंगलों में संजय व्यास ने कार रुकवाई और कहा कि यहीं पूजा होगी. उधर पहले से ही बनाई योजना के मुताबिक, मोहन सक्सेना और नितिन बैरसिया होते हुए भोजपुरा पहुंच गए थे. एक सुनसान जगह को तांत्रिक क्रियाओं के लिए मशहूर बताते हुए संजय व्यास ने अंकित को पूजापाठ के लिए बैठाया. कुछ देर ऊलजलूल क्रियाएं करने के बाद तांत्रिक ने उसे आंखें बंद करने को कहा, तो अंकित ने तुरंत उस के हुक्म की तामील की. अंकित ने जैसे ही अपनी आंखें बंद कीं, तभी पीछे से मोहन सक्सेना और नितिन आ गए. अंकित ने आहट पा कर जैसे ही आंखें खोलीं, तो उन दोनों ने उस की आंखों में पिसी लाल मिर्च झोंक दी. तिलमिलाया अंकित समझ तो गया कि उस के साथ धोखा हुआ है, लेकिन कुछ कर पाता इस के पहले ही उन तीनों ने लोहे की छड़ उस के सिर पर दे मारी. कहीं वह जिंदा न बच जाए, इसलिए वहशी हो गए मोहन सक्सेना, नितिन और संजय ने उस पर पत्थरों से भी हमले किए. जब उस के मरने की तसल्ली हो गई, तो वे तीनों वहां से फरार हो गए.
यों पकड़े गए
17 जनवरी, 2016 की ही दोपहर को बैरसिया पुलिस को एक नौजवान की लाश जंगल में पड़ी होने की खबर मिली, तो लाश बरामद कर कातिलों को ढूंढ़ने का काम शुरू हो गया. हत्या की जगह से कुछ दूर ही खड़ी कार की पड़ताल से पता चला कि यह कार तो शाजापुर की निर्मला गौर नाम की औरत की है. जब उन से पुलिस ने पूछताछ की, तो उन्होंने तुरंत बता दिया कि उन का ड्राइवर अंकित उन से उज्जैन जाने की कह कर कार ले गया था. बैरसिया कैसे पहुंच गया, यह उन्हें नहीं मालूम. इधर मोहन सक्सेना इंदौर होते हुए शाजापुर लौट आए और थाने में शिकायत दर्ज करा दी. उन तीनों ने होशियारी दिखाते हुए मोबाइल फोन साथ नहीं रखे थे, क्योंकि इस से तुरंत लोकेशन पता चल जाती. लेकिन बैरसिया के पैट्रोल पंप पर अंकित ने कार में पैट्रोल डलवाया था. वहां के मुलाजिमों ने कार में संजय व्यास के होने की शिनाख्त की, तो पुलिस वालों के पास अब कहने और करने को ज्यादा कुछ नहीं रह गया था.
हत्या के जुर्म में गिरफ्तार होते ही संजय व्यास तमाम तंत्रमंत्र भूल गया और सारी बात सच उगल दी. जल्दी ही मोहन सक्सेना और नितिन को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में मोहन सक्सेना ने अपने ही महकमे के मुलाजिमों को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन कहानी में दम नहीं रह गया था, इसलिए उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया.
क्या करें घर वाले
जैसे ही बहू, बेटी या घर की दूसरी किसी औरत के बाहरी मर्द से संबंध पकड़े जाते हैं या बदनामी की वजह बनने लगते हैं, तो घर वालों को समझ नहीं आता कि ऐसा क्या करें कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. बहकी औरत अगर बहू है, तो ज्यादा रोकने या मारपीट करने पर दहेज का मुकदमा दर्ज कराने की धौंस देती है यानी ससुराल वालों की बेबसी का पूरा फायदा उठाती है और वहीं रह कर उन के सामने ही गलत रास्ते पर चलते रहना चाहती है, क्योंकि यह महफूज रहता है. अगर वह औरत बेटी है, तो डर उस के भागने या पेट से होने का बना रहता है. तीसरा बड़ा डर खुदकुशी कर लेने का होता है, जिस की धौंस पराए मर्द की मुहब्बत में पड़ चुकी औरत अकसर देती भी रहती है. जिस्मानी और जज्बाती तौर पर दूसरे की गिरफ्त में आ चुकी औरत किसी का कहना नहीं मानती और न ही उसे घर की इज्जत और समाज के कायदेकानूनों के अलावा नातेरिश्तों से कोई वास्ता रहता. बात उस समय और बिगड़ती है, जब उस का आशिक भी हौसले दिखाने लगता है. दोनों ही अपने मांबाप और दुनियाजहान के बारे में नहीं सोचते, तो साफ है कि उन्हें समझाने या रोकनेटोकने से कोई फायदा नहीं होता.
इसलिए बेहतर यही है कि जब औरत के कदम बहकने लगे और तमाम नसीहतों के बाद भी वह न माने तो बजाय जुर्म का रास्ता चुनने के उसे अपनी मरजी से जीने दिया जाना चाहिए. इज्जत और समाज की बात इसलिए माने नहीं रखती कि कोई इश्क कभी छिपता नहीं, बल्कि जितना छिपाया जाए उलटे ज्यादा ही विस्फोटक तरीके से दुनिया के सामने आता है. समझाने पर न माने जैसा कि ऐसे मामलों में अकसर होता है, तो कानूनी लिखापढ़ी कर औरत को उस के आशिक के साथ जाने दे कर अपना पिंड छुड़ा लेना एक बेहतर रास्ता है.
हालांकि इस में जगहंसाई भी होगी, पर वैसी और उतनी खतरनाक नुकसानदेह नहीं होगी, जैसी मोहन सक्सेना के मामले में हुई.
औरतें भी समझें हकीकत
पराए मर्द के प्यार में जिन औरतों के पैर संभाले नहीं संभलते हों, उन्हें इस मामले से सबक लेना चाहिए कि जो मर्द उन्हें ब्याह कर लाया है, उस में कोई कमी या कमजोरी हो सकती है, पर उस का यह मतलब कतई नहीं कि उस से इस तरह बदला लिया जाए. दूसरा, यह भी सोचसमझ लेना चाहिए कि ऐसे रिश्तों की उम्र ज्यादा नहीं होती और न ही अंजाम हमेशा अच्छा होता है. इस के अलावा दूसरा मर्द यानी आशिक वफादार ही होगा, इस की कोई गारंटी नहीं होती. कई मामलों से साफ हो चुका है कि वह जिस्म से खेलता है, पैसे ऐंठता है और जोर डालने पर बीच भंवर में छोड़ कर भाग भी जाता है. ऐसी औरत कहीं की नहीं रह पाती.
ऐसे ताल्लुकों से किसी को कुछ हासिल नहीं होता, सिवाय तांत्रिकों के, जो दोनों पार्टियों से पैसा ऐंठते हैं और फिर बात न बनने पर कत्ल जैसे संगीन जुर्म के लिए उकसाते हैं और ज्यादा पैसों के लालच में उस में साथ भी देते हैं. अगर वे नहीं पकड़े जाते तो तय है कि तांत्रिक संजय व्यास जिंदगीभर सक्सेना परिवार को ब्लैकमेल कर उन से रकम ऐंठता रहता. सब से बड़ा तनाव झेलने वाले घर वालों को चाहिए कि वे चार लोगों को बैठा कर सारा सच खुद उगलें और औरत को भी साथ बैठा लें, जिस से वह कोई झूठ न बोल सके और न ही गलत इलजाम लगा सके. इस से बदनामी जो आज नहीं तो कल होती जरूर होगी, लेकिन जिंदगी बची रहेगी और औरत की गलती भी सामने आ जाएगी.
क्यों बहकती हैं औरतें
* पति से जिस्मानी सुख न मिल पाना और शर्म के मारे इस की बात किसी से न कर पाना.
* ससुराल वालों खासतौर से पति से जज्बाती लगाव का पैदा न हो पाना.
* कम उम्र में ही पराए मर्दों से घुलनेमिलने या सैक्स की आदत पड़ जाना.
* घर या ससुराल में बंदिशों का ज्यादा होना और रोजरोज कलह होना.
* दिलफेंक, खूबसूरत जवां मर्दों पर दिल आ जाना, उन की लच्छेदार बातों में फंस जाना, फिर छुटकारा पाने की कोशिश में और उस के जाल में और फंसते जाना.
* पति से समय न मिलना.
* पति का उम्मीद के मुताबिक रोमांटिक न हो पाना.
* इस बात का फायदा उठाना कि ससुराल या घर वाले तो इज्जत के लिए खामोश रहेंगे.
* घर में मन न लगना और हमेशा रोमांटिक और सैक्सी खयालों में डूबे रहना.