Download App

15 अगस्त स्पेशल : औपरेशन, भाग 3

कौफी पीने के बाद थोड़ा आगे बढ़े तो डाक्टर निकुंज मिल गए. ‘‘मेजर साहब, अपने डाक्टर सारांश का जवाब पढ़ना नहीं चाहेंगे,’’ यह कहते हुए उन्होंने डाक्टर सारांश का पत्र मेजर के सामने कर दिया.

मेजर बलदेव ने एक सांस में ही पत्र पढ़ लिया था. डाक्टर सारांश ने प्रस्ताव तो मंजूर किया था मगर शर्त यह रखी थी कि अस्पताल कश्मीर के रामबन इलाके में ही बने, जहां मैडिकल सुविधाएं न के बराबर हैं. लोगों को इलाज के लिए श्रीनगर या जम्मू जाना पड़ता है.

‘‘डाक्टर सारांश ने एक तरह से हमारी पेशकश ठुकरा दी है. मगर मैं हार मानने वाला नहीं हूं. मैं काउंसिल से अस्पताल वहीं बनाने की सिफारिश करूंगा, जहां डाक्टर सारांश चाहते हैं,’’ डा. निकुंज ने कहा.

मेजर बलदेव कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि इस पर वे क्या प्रतिक्रिया दें. एक पल उन्होंने सोचा और कहा, ‘‘डाक्टर निकुंज, मेरी एक राय है. आप इस बात को यहीं खत्म कर दें. काउंसिल में अधिकतर विदेशी हैं, मैं नहीं चाहता कि अपने देश का नाम नीचे हो.’’

‘‘यह कैसी बातें कर रहे हैं मेजर साहब. इस से तो हमारे देश का नाम ऊंचा होगा. डाक्टर सारांश को भी वह सम्मान मिलेगा जिस के वे सही माने में हकदार हैं.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं मगर आप भी एक भारतीय हैं. माना कि आप बरसों से यहां बसे हुए हैं मगर हमारे देश की कार्यप्रणाली को नहीं भूले होंगे. माना कि बदलाव आ रहा है मगर अभी भी बहुतकुछ पहले जैसा ही है, समय लगेगा. आप का प्रस्ताव बरसों दफ्तरों के चक्कर लगाता रहेगा. फाइलें इधर से उधर घूमती रहेंगी. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच खेल शुरू हो जाएगा. विरोधी दल सियासत करेंगे. जम्मू और कश्मीर के खास दर्जे पर चर्चा होगी. सबकुछ होगा मगर अस्पताल का प्रोजैक्ट पास नहीं होगा. सोचिए, क्या गुजरेगी डाक्टर सारांश पर और क्या सोचेंगे आप के विदेशी साथी और सहयोगी.’’

‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं,’’ डाक्टर निकुंज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘सिर्फ एक डाक्टर सारांश के आगे आने से काम नहीं चलेगा. आवश्यकता है कि सरकार के मंत्री और सरकारी कर्मचारी दोनों ही अपनी सोच को बदलें. तभी सही मानों में बदलाव आएगा. बहुत जरूरी है कि देश में वीआईपी कल्चर, लालफीताशाही और जिम्मेदारी से दाएंबाएं होने का खेल सरकारी दफ्तरों से खत्म हो. तभी विदेशों में हमारी छवि और लोगों की हमारे बारे में सोच बदलेगी. वे हमें गंभीरता से लेंगे.’’

डाक्टर सारांश का हवाई जहाज जब दिल्ली पहुंचा तो उन के स्वागत के लिए कई लोग हवाई अड्डे पर मौजूद थे. भीड़ में सब से आगे मंत्री महोदय और मैडिकल डाइरैक्टर थे. उन के चेहरों पर कुटिल मुसकान अभी भी मौजूद थी.

फांसी लगाने से लेकर अंतिम संस्कार तक की Nitin Desai ने की थी प्लानिंग, हुआ खुलासा

Nitin Desai Death : बीते दिन यानी 2 अगस्त 2023 को आर्ट डायरेक्टर नितिन चंद्रकांत देसाई ने अपने खालापुर स्थित स्टूडियो में सुसाइड कर ली थी. उनकी अचानक से हुई मौत ने पूरी बॉलीवुड इंडस्ट्री को हिला दिया है. हालांकि अब तक उनकी (Nitin Desai) आत्महत्या करने के पीछे के सटीक कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन पुलिस को अब इस संबंध में एक लेटर और एक वीडियो रिकॉर्डिंग मिली है.

बेटे को दी थी रिकॉर्डिंग की हिंट

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पता चला है कि ‘नितिन (Nitin Desai) ने फांसी लगाने से लेकर अंतिम संस्कार तक की प्लानिंग कर रखी थी. जिस रात उन्होंने फांसी लगाई थी, उससे एक दिन पहले उन्होंने सिक्योरिटी से स्टूडियो की सारी चाबियां ले लीं थी और अपने बेटे से कहा था कि उन्हें स्टूडियो में अकेला छोड़ दें क्योंकि उन्हें कुछ जरूरी काम करना है.’ इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को गेट तक छोड़ा और उससे अगली सुबह करीब साढ़े आठ बजे तक स्टूडियो आने को कहा. साथ ही उससे कहा कि, ‘वो मेरी एक रिकॉर्डिंग वीडियो देखे, जो उसे स्टूडियो नंबर 10 में मिलेगी.”

जानें कैसे लगाई फांसी

आपको बता दें कि, आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई (Nitin Desai Death) ने मराठी पावूल पढ़ते पुढे, स्टूडियो नंबर 10 के सेट पर फांसी लगाई थी. पुलिस की जांच में पता चला है कि “उन्होंने सबसे पहले रस्सी के साथ एक धनुष और तीर खींचा. फिर धनुष और तीर पर एक सीढ़ी रखी और खुद को लटका लिया.”

रिकॉर्डिंग में किन-किन बातों का किया गया जिक्र

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बताया जा रहा है कि “सुसाइड करने से पहले नीतिन (Nitin Desai Death) ने अपनी एक वीडियो रिकॉर्डिंग की थी, जिसमें उन्होंने एनडी स्टूडियो को उनसे दूर न करने का जिक्र किया है. साथ ही ये भी कहा कि उनका अंतिम संस्कार उनके स्टूडियो नंबर 10 में ही किया जाए.” हालांकि जांच में पता चला है कि नीतिन लंबे समय से आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे थे और उन पर करीब 252 करोड़ रुपए का कर्ज था.

कई बड़ी फिल्मों में किया था काम

आपको बता दें कि नितिन चंद्रकांत देसाई (Nitin Desai) ने मुंबई के बाहरी इलाके खालापुर तालुका में अपना एक विशाल स्टूडियो खोला था जहां जोधा अकबर सहित कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग हुई है. वहीं बॉलीवुड में उन्हें ‘लगान’ और ‘देवदास’ जैसे प्रोजेक्ट के लिए जाना जाता हैं.

इसके अलावा उनकी एक एनडीज़ आर्ट वर्ल्ड नामक कंपनी भी थी. जो थीम रेस्तरां, होटल, शॉपिंग मॉल, एंटरटेनमेंट सेंटर्स और ऐतिहासिक स्मारकों की प्रतिकृतियों को मेंटेन करने के साथ-साथ उन्हें बनाए रखना और ओपरेट करना जैसी कई सुविधाएं और सर्विश प्रोवाइड करवाती थी.

कमीशन- भाग 3

चाय आ गई थी और उस के साथ बिस्कुट भी. उन्होंने मुझे बड़े अदब से चाय पेश की और मुझ से बातें भी करते रहे. बोले, ‘‘चेक ले कर ही जाइएगा दीयाजी. हो सकता है कि थोड़ी देर लग जाए. बहुत खुशी होती है न कुछ करने का पारिश्रमिक पा कर.’’

और तब मैं सोच रही थी कि शायद अब यह मतलब की बात करें कि बदले में मुझे उन्हें कितना कमीशन देना है. मैं तो बिलकुल ही तैयार बैठी थी उन्हें कमीशन देने को. मगर मुझ से उन्होंने उस का कुछ जिक्र ही नहीं किया. मैं ने ही कहा, ‘‘सर, मैं तो आकाशवाणी पर बस प्रोग्राम करना चाहती हूं. बाकी पारिश्रमिक या पैसे में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है. मेरी रचनात्मक प्रवृत्ति का होना ही कुदरत की तरफ से दिया हुआ मुझे सब से बड़ा तोहफा है जो हर किसी को नहीं मिलता है. सर, यह यहां मेरा पहला प्रोग्राम है. आप ही की वजह से यह मुझे मिला है. यह मेरा पहला पारिश्रमिक मेरी तरफ से आप को छोटा सा तोहफा है क्योंकि जो मौका आप ने मुझे दिया वह मेरे लिए अनमोल है.’’

कहने को तो मैं कह गई, लेकिन डर रही थी कि कहीं वे मेरे कहे का बुरा न मान जाएं. सब तरह के लोग होते हैं. पता नहीं यह क्या सोचते हैं इस बारे में. कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर दी मैं ने अपनी बात कहने में. मेरे दिलोदिमाग में विचारों का मंथन चल ही रहा था कि वे कह उठे, ‘‘दीयाजी, आप सही कह रही हैं, यह लेखन और यह बोलने की कला में माहिर होना हर किसी के वश की बात नहीं. इस फील्ड से वही लोग जुड़े होने चाहिए जो दिल से कलाकार हों. मैं समझता हूं कि सही माने में एक कलाकार को पैसे आदि का लोभ संवरण नहीं कर पाता. आप की ही तरह मैं भी अपने को एक ऐसा ही कलाकार मानता हूं. मैं भी अच्छे घर- परिवार से ताल्लुक रखता हूं, जहां पैसे की कोई कमी नहीं. मैं भी यहां सिर्फ अपनी रचनात्मक क्षुधा को तृप्त करने आया हूं. आप अपने पारिश्रमिक चेक को अपने घर पर सब को दिखाएंगी तो आप को बहुत अच्छा लगेगा. यह बहुत छोटा सा तोहफा जरूर है, लेकिन यकीन जानिए कि यह आप को जिंदगी की सब से बड़ी खुशी दे जाएगा.’’

उन की बात सुन कर मैं तो सचमुच अभिभूत सी हो गई. मैं तो जाने क्याक्या सोच कर आई थी और यह क्या हो रहा था मेरे साथ. सचमुच कुछ कह नहीं सकते किसी के भी बारे में, कहीं के भी बारे में. हर जगह हर तरह के लोग होते हैं. एक को देख कर दूसरे का मूल्यांकन करना निरी मूर्खता है. जब हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं तो…यह तो मेरा वास्ता कुछ ऐसे शख्स से पड़ा, कहीं वह मेरी इसी बात का बुरा मान जाता तो. सब शौक रखा रह जाता आकाशवाणी जाने का.

घर आ कर अंकल को यह सब बताया तो उन्हें भी मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ. मम्मीपापा तो यूरोप भ्रमण पर चले गए थे. उन से बात नहीं हो पा रही थी जबकि मैं कितनी बेचैन हो रही थी मम्मी को सबकुछ बताने को.

अब तो कई बार वहां कार्यक्रम देने जा चुकी हूं. कभी कहानी प्रसारित होती है तो कभी वार्ता. बहुत अच्छा लगता है वहां जा कर. मुझे एकाएक लगने लगा है कि जैसे मैं भी कितनी बड़ी कलाकार हो गई हूं. शान से रिकार्डिंग करने जाती हूं और अपने शौक को यों पूरा होते देख खुशी से फूली नहीं समाती. अपने दोस्तों के दायरे में रिश्तेदारों में, अगलबगल मेरी एक अलग ही पहचान बनने लगी है और इन सब के लिए मैं दिल से अंकल की कृतज्ञ थी, जिन्होंने अपने अतीत के इतने कड़वे अनुभव के बावजूद मेरी इतनी मदद की.

इस बीच मम्मीपापा भी यूरोप घूम कर वापस आ गए थे. कुछ सोच कर एक दिन मैं ने मम्मी और पापा को डिनर पर अपने यहां बुला लिया. जब से हम ने यह घर खरीदा था, बस, कभी कुछ, कभी कुछ लगा रहा और मम्मीपापा यहां आ ही नहीं पाए थे. अंकल से धीरेधीरे, बातें कर के मेरा शक यकीन में बदल गया था कि मम्मी और अंकल अतीत की एक कड़वी घटना के तहत एक ही सूत्र से बंधे थे.

मम्मी को थोड़ा हिंट मैं ने फोन पर ही दे दिया था, ताकि अचानक अंकल को अपने सामने देख कर वे फिर कोई बखेड़ा खड़ा न कर दें. कुछ इधर अंकल तो बिलकुल अपने से हो ही गए थे, सो उन्हें भी कुछ इशारा कर दिया. एक न एक दिन तो उन लोगों को मिलना ही था न, वह तो बायचांस यह मुलाकात अब तक नहीं हो पाई थी.

और मेरा उन लोगों को सचेत करना ठीक ही रहा. मम्मी अंकल को देखते ही पहचान गईं पर कुछ कहा नहीं, लेकिन अपना मुंह दूसरी तरफ जरूर फेर लिया. डिनर के दौरान अंकल ने ही हाथ जोड़ कर मम्मी से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप से माफी मांगने का मौका इस तरह से मिलेगा, कभी सोचा भी नहीं था. अपने किए की सजा अपने लिए मैं खुद ही तय कर चुका हूं. मुझे सचमुच अफसोस था कि मैं ने अपने अधिकार, अपनी पोजीशन का गलत फायदा उठाया. अब आप मुझे माफ करेंगी, तभी समझ पाऊंगा कि मेरा प्रायश्चित पूरा हो गया. यह एक दिल पर बहुत बड़ा बोझ है.’’

मम्मी ने पहले पापा को देखा, फिर मुझे. हम दोनों ने ही मूक प्रार्थना की उन से कि अब उन्हें माफ कर ही दें वे. मम्मी भी थोड़ा नरम पड़ीं, बोलीं, ‘‘शायद मैं भी गलत थी अपनी जगह. समय के साथ चल नहीं पाई. जरा सी बात का इतना बवंडर मचा दिया मैं ने भी. हम से ज्यादा समझदार तो हमारे बच्चे हैं, जिन की सोच इतनी सुलझी हुई और व्यावहारिक है,’’ मम्मी ने मेरी तरफ प्रशंसा से देखते हुए कहा. फिर बोलीं, ‘‘अब सही में मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है. मेरी बेटी की इतनी मदद कर के आप ने मेरा गुस्सा पहले ही खत्म कर दिया था. अब माफी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए. दीया की तरह मेरा भी प्रोग्राम वहां करवा सकते हैं क्या आप? मैं आप से वादा करती हूं कि अब कुछ गड़बड़ नहीं करूंगी.’’

मम्मी ने माहौल को थोड़ा सा हल्काफुल्का बनाने के लिए जिस लहजे में कहा, उसे सुन हम सभी जोर से हंस पडेें.

Gadar 2 के प्रमोशन के लिए बॉर्डर पर पहुंचे सनी देओल, जवानों के साथ किया डांस

Gadar 2 : हिन्दी सिनेमा की कई ऐसी फिल्में है, जिनको रिलीज हुए बेशक कई साल हो गए है, लेकिन आज भी ये फिल्में लोगों की आंखों में आंसू ला देती है. इसी में से एक है सनी देओल की ‘गदर: एक प्रेम कथा’. इस फिल्म  को रिलीज हुए 22 साल हो चुके हैं, लेकिन तारा सिंह और सकीना की कहानी आज भी लोगों के दिल-दिमाग में जिंदा है.

‘गदर: एक प्रेम कथा’ की अपार सफलता के बाद मेकर्स इसके आगे की कहानी को ‘गदर 2’ (Gadar 2) में दिखाएंगे, जिसका ट्रेलर भी रिलीज किया जा चुका है. दर्शकों को इसका ट्रेलर काफी पसंद आया है और ये फिल्म 11 अगस्त को बड़े पर्दे पर रिलीज होगी. गदर 2 के प्रमोशन के लिए सनी देओल (Sunny Deol) सबसे पहले जवानों के बीच पहुंचे.

तनोट बॉर्डर पहुंचे तारा सिंह

दरअसल बॉलीवुड एक्टर सनी देओल ने फिल्म ‘गदर 2’ (Gadar 2) के प्रमोशन की शुरुआत राजस्थान के लोंगेवाला के तनोट बॉर्डर से की है. उन्होंने यहां जवानों के साथ समय बिताया और ‘मैं निकला गड्डी लेकर…’ गाने पर डांस भी किया. इसके अलावा एक्टर (Sunny Deol) ने जवानों के साथ पंजा भी लड़ाया. साथ ही भारतीय सेना के वेपेन्स और टैंक के साथ तस्वीर क्लिक करवाई.

सनी देओल ने इंस्टाग्राम पर शेयर की फोटोज

आपको बता दें कि एक्टर (Sunny Deol) ने जवानों के साथ अपनी ये तस्वीरें खुद अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की है. फोटो में देखा जा सकता है कि वो यहां तारा सिंह (Gadar 2) के अवतार में आए. उन्होंने ब्राउन पठानी के साथ ब्राउन पगड़ी पहन रखी है.

अपनी फोटो के कैप्शन में सनी ने लिखा, सीमा सुरक्षा बल, लोंगेवाला राजस्थान में अपने दोस्तों के साथ #Gadar2 का प्रमोशन शुरू किया. ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी और उन सभी बहादुर शहीदों को याद करता हूं जिन्होंने लोंगेवाला की लड़ाई लड़ी और इतिहास लिखा. ऐसे ऐतिहासिक स्थान पर अपने बहादुरों के साथ रहना और प्यार साझा करना हमेशा एक जबरदस्त अहसास होता है. धन्यवाद @bsf_india जय हिन्द!

ऐसे नहीं चलता काम- भाग 3

मेरा मन बिलकुल नहीं था. मन तो अरुण में टंगा था. फिर भी अनिच्छापूर्वक उठना पड़ा. झोंपड़ी के एक किनारे ही रसोई थी. अल्युमुनियम, स्टील, तामचीनी और लकड़ी के भी ढेर सारे बरतन करीने से रखे हुए थे. एक तरफ 2 बड़े ड्रम थे, जिन में पीने का पानी था. सरकारी कृपा से नागालैंड के हर गांव में और कुछ पहुंचे, न पहुंचे, बिजली और पानी की सप्लाई ठीकठाक है. कुछ छोटे पीपों में कुचले हुए बांस के कोंपल भरे थे. उन के उपर करीने से बोतलें सजी थीं, जिन में बांस की कोंपलों का ही रस निकाल कर रखा हुआ था.

नागा समाज अपनी रसोई में तेलमसालों की जगह इन्हीं बांस के कोंपलों के खट्टे रसों का उपयोग करता है, यह बात अरुण ने एक दिन बताई थी. एक तरफ चूल्हे में आग जल रही थी, जिस पर बड़ी सी केतली में पानी खदक रहा था. बुढ़िया ने एक अलग बरतन में कप से पानी नाप कर डाला और चूल्हे के दूसरी तरफ चढ़ा दिया. अब मैं ने ध्यान दिया. चूल्हे के ऊपर मचान बना कर लकड़ियां रखी थीं. और इन दोनों के बीच लोहे के तारों में गूंथे गए मांस के टुकड़े रखे थे. मेरा मन अजीब सा होने लगा था.

बुढ़िया सब को चाय देने लगी थी. वह एक प्लेट में बिस्कुट भी निकाल लाई थी और खाने के लिए बारबार आग्रह कर रही थी. उस का वात्सल्य देख मेरा मन भर आया और प्लेट पकड़ ली. बुजुर्ग अब खुद ही अपने बारे में बताने लगे थे- “मैं यहां का गांव का बूढ़ा (मुखिया) हूं. 3 बेटे और एक बेटी है. बेटी की शादी हो गई. एक बेटा गोहाटी में टीचर है और दूसरा डिमापुर में एक औफिस में क्लर्क है. तीसरा मोकोकचुंग के एक कालेज में पढ़ाई करता है. आज ही वह आया है. मगर अभी जंगल गया हुआ है. आता ही होगा अब. अच्छा, तुम्हारा आदमी क्या करता है?”

“वे मोकोकचुंग कालेज में प्रोफैसर हैं.”

“अच्छा, तो वह टीचर है,” बुढ़ा बुदबुदाया, “और तुम क्या करती है?”

“मैं,” मैं इस तनाव में भी हंस पड़ी, “मैं तो घर पर रहती हूं.”

तब तक डाक्टर आ गया था. हम सभी उठ खड़े हुए. अरुण की जांच करने के बाद उस ने अरुण को एक इंजैक्शन लगाने की तैयारी करने लगा. इंजैक्शन लगते ही अरुण कुनमुनाया. चेहरे पर बेचैनी के कुछ लक्षण उभरे. फिर वह शांत दिखने लगा था. डाक्टर बंगाली था. फिर भी धाराप्रवाह आओ भाषा बोल रहा था. सारी बात उसी में हो रही थी. इसलिए मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था. बस, यही आभास हुआ कि अरुण की दशा देख सभी चिंतित हैं. अरुण को चारपाई समेत बाहर निकाल अस्पताल पहुंचा दिया गया.

अस्पताल क्या था, बस, एक साफसुथरी झोंपड़ी थी, जिस में दवाएं रखी थीं. सफेद परदे का पार्टीशन दे कर चारेक चारपाइयां बिछी थीं. उसी में से एक पर अरुण को लिटा दिया गया. अरुण की बेहोशी पूरे ढाई घंटे बाद टूटी थी. बड़ी तकलीफ के साथ उस ने आंखें खोलीं. मैं उस पर झुक आई.

बाहर खुसरपुसर चल रही थी. अचानक बूढ़ा हिंदी में बोला, “डाक्टर, मेरा खून चढ़ा दो.”

“नहीं जी,” डाक्टर ने जवाब दिया, “बुढ़े का रक्त नहीं चढ़ाया जा सकता. इस के लिए तो किसी जवान का ही खून चाहिए होता है.”

अब वह मुझ से अरुण का ब्लडग्रुप पूछने लगा. मैं ने उसे बताया. उस ने अरुण का रक्त चैक करने के बाद कहा, “यू आर राइट, मैडम.”

“आप मेरा खून इन्हें चढ़ा दीजिए, सर,” मैं बोली, “शायद यह मैच कर जाए.”

“हमलोग के रहते तुम यह काम कैसे कर सकता है. बस्ती में इतना सारा लोग है. किसी न किसी का जरूर मैच कर जाएगा.”

भीड़ में से कई युवक आगे बढ़ आए थे. डाक्टर एकएक कर उन का ब्लड चैक कर नकारता जा रहा था. मेरी बेचैनी बढ़ती जाती थी. अचानक वहां एक युवक प्रकट हुआ. बुजुर्ग दंपती से जाने क्या उस की बात हुई. और अब उस ने अपना हाथ बढ़ा दिया था.

उस का ब्लड ग्रुप अरुण के ब्लड ग्रुप से मैच कर गया था.

बुढ़ा मुझ से मुखातिब हो कर बोला, “यह मेरा बेटा कुमजुक आओ है. यह तुम्हारे हसबैंड के कालेज में ही पढ़ता है और इन्हें जानता है. अच्छी बात, उस का खून उस से मिल गया है. अब वह उसे खून देगा. तुम बेकार डरता था.”

मैं उन लोगों के प्रति कृतज्ञता से भर उठी.

आधेक घंटे में कुमजुक आओ के शरीर से खून निकल कर अरुण के शरीर में पहुंच चुका था. अरुण का चेहरा अब तनावरहित और स्थिर था. ब्लड देने के बाद भी कुमजुक आओ के चेहरे पर एक दिव्य चमक सी थी. मैं उस सुदर्शन युवक को देखती रह गई.

हृष्टपुष्ट खिलाड़ियों का सा बदन, जिस पर कहीं अतिरिक्त चरबी का नाम नहीं था. हिंदी फिल्मों के हीरो समान करीने से कटे, संवारे केश. हंसता हुआ चेहरा, जिस में दुग्धधवल दंतपंक्तियां मोती सी आभा बिखेर रही थीं. उस की अधखुली, स्वप्निल सी आंखों में न जाने कैसा तेज और निश्छलता थी, कि वह कांतिमय हो रहे थे.

बैड से उठते ही उस ने हाथपैर फेंके और सीधा खड़ा हो गया. डाक्टर ने उसे कुछ दवाएं और हिदायतें दीं, जिन्हें हंसते हुए स्वीकार कर लिया. फिर अपने पिता को दवाएं देते हुए मुझ से बोला, “अब सर बिलकुल ठीक हो जाएंगे. सर बहुत अच्छे हैं. एकदम ह्यूमरस नेचर. पढ़ाते भी बहुत अच्छा हैं. दोस्तों की तरह मिलते हैं हम से. आप चिंता न करें. आप यहां आईं, तो इस हालत में. खैर, कोई बात नहीं. चलिए, मैं आप को अपना गांव घुमा दूं.”

शाम ढलने तक मैं उस के साथ सारा गांव घूम चुकी थी. मुझे जरा भी यह एहसास तक नहीं हुआ कि मुझे भी चोट लगी है. उलटे, अब मैं प्रफुल्लित सी महसूस कर रही थी. कुमजुक बातबात में ठहाके लगता, हंसता. उस के पास बातों का पिटारा था. आओ जाति की सभ्यतासंस्कृति के संबंध में अनेक बातें बताईं. विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद उस में इतिहास-भूगोल-समाज विज्ञान की गहरी समझ थी. उस ने गांव के कई युवकयुवतियों से मुझे मिलवाया. फिर कुछ घरों में भी ले गया. घर में रखे प्राचीन सामान के बारे में विस्तार से जानकारी भी दी. यही नहीं, वह दुभाषिए समान बातों की व्याख्या भी करता. एक घर के बाहर कोई आधेक दर्जन खोपड़ियां टंगी थीं. उन्हें देख मैं सिहर उठी.

पूर्वोत्तर प्रदेशों में रात जल्द ढलती है. सो, रात होते ही हम वापस लौट चले थे. अरुण अस्पताल से वापस कुमजुक के घर शिफ्ट कर दिया गया था. और अभी भी सो रहा था. चाय पीने के बाद भी कुमजुक देर तक मेरे साथ बात करता रहा. दाव-भाला से ले कर लकड़ी-बेंत आदि से बने टोकरी-बास्केट और बरतनों के बारे में बताता रहा. उस की वर्णनात्मक पटुता को देख मैं विस्मित थी. जैसे कोई दादीनानी अपने नातीपोतों को कोई प्राचीन लोककथाएं सुना रहा हो.

अचानक उस की मां आ कर बोली कि अरुण की नींद टूट गई है और मुझे याद कर रहा है.

अरुण अब स्वस्थ दिख रहा था. हमें देखते ही वह बोला, “अरे कुमजुक, तुम यहां कैसे?”

“यह तो मेरा ही घर है, सर,” वह हंस कर बोला, “समय का बात कि आप हमारे घर पर हैं. गांव वालों ने आप की जीप को ऐक्सिडैंट करते देख लिया था. मेरे फादर आप को घर ले आए.”

“इन का शुक्रिया अदा करो, अरुण,” मैं बोल पड़ी, “इन्होंने ही तुम्हें अपना खून दिया है. अब तुम्हारी धमनियों में इन्हीं का खून दौड़ रहा है.”

“शुक्रिया कैसा. यह तो अपना ड्यूटी था. अपने गेस्ट को सेफ्टी देना अपना काम है.”

हम सभी हंस पड़े. वातावरण काफी सहज और सुखद हो गया था. तभी कुमजुक की मां खाने के लिए पूछने आ गई थी. कुमजुक बोला, “माफ करेंगे मैडम, हम नागा लोग शाम को ही खाना खा लेते हैं. वैसे, आप लोगों के लिए तो अलग से ही व्यवस्था करनी होगी.”

“नहींनहीं, रहने दो,” मैं बोल उठी, “परेशान होने की जरूरत नहीं. आप लोगों के अनुसार ही हमें भी चलना है.”

आधेक घंटे बाद कुमजुक वापस आया, तो उस के हाथ में 2 थालियां थीं. उन में चावल, सब्जी और उबले अंडे थे. थालियों को टेबल पर रखते हुए वह बोला, “मैं ने इन्हें अलग से स्टोव पर खास आप लोगों के लिए पकाया है. आराम से खाना खाओ.”

अरुण तो अपनी अशक्तता के कारण नहीं के बराबर ही कुछ खा पाया. बमुश्किल मैं ने उसे अंडे खिलाए. अनिच्छा होने के बावजूद मैं ने भोजन किया. फिर अरुण की बगल में पड़ी चारपाई पर पड़ रही. मगर आंखों में नींद कहां थी. पूरा गांव सन्नाटे और अंधेरे में डूबा था. कुमजुक आओ से इतना सबकुछ जानसमझ लेने के बावजूद कुछ अजीब सा लग रहा था. एक बार फिर मन न जाने कहांकहां भटकने लगा था.

इन्हीं भटकावों के बीच कब आंख लग गई, पता नहीं. अचानक शोरगुल सुन कर नींद खुल गई. मन में भांतिभांति की आशंकाएंकुशंकाएं घुमड़ने लगीं. खिड़की में लगे शीशे से बाहर झांक कर देखा. कुछ लोग दौड़तेभागते नजर आए. अनेक टौर्च की रोशनियां जलबुझ रही थीं. एक झुंड वरदीधारियों का भी दिखा. ये कौन हो सकते हैं. अभी सोच ही रही थी कि दरवाजे पर दस्तक पड़ने लगी.

दरवाजा खुलते ही आधेक दर्जन वरदीधारी अंदर घुस आए थे. अंदर घुसते ही वे यहांवहां बिखर कर कुछ खोजने लगे थे. एक कड़कती आवाज गूंजी, “घर में कौनकौन है?”

“मैं हूं और मेरी वाइफ और छोटा बेटा है. 2 गेस्ट भी हैं,” बुजुर्ग सर्द आवाज में बोल रहे थे, “रास्ते में उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. हम उन्हें यहां उठा लाये थे.”

“मुझे इस घर की तलाशी लेनी है,” वही स्वर उभरा, “पक्की सूचना मिली है कि…”

“तो ले लो न.”

धड़ाधड़ सामान इधरउधर किए जाने लगे. एक तरह से फेंके जाने लगे. नागा समाज इतना सहज, सरल है कि उस के पास छिपाने को कुछ नहीं. बेहयाई के साथ सामान बिखेर दिए गए थे. अब वह सैन्य अफसर मेरे सामने खड़ा था- “आप यहां कैसे? कौन हैं आप?”

“मैं दिव्या हूं. ये मेरे पति अरुण हैं और मोकोकचुंग कालेज में प्रोफैसर हैं. हमारी जीप ऐक्सिडैंट कर गई थी.”

“क्या सुबूत है?”

मैं ने अरुण के वौयलेट से उस का परिचयपत्र निकाल कर दिखाया.

“जीप का क्या नंबर था?”

अरुण ने कराहते हुए जीप का नंबर बताया. तभी एक जवान आ कर बोला, “ठीक कहता है. इसी नंबर की एक जीप रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त मिली थी.”

तभी दूसरी तरफ से एक अन्य जवान कुमजुक आओ को पकड़ लाया था. आते ही बोला, “यह देखिए सर, हम ने उसे पकड़ लिया, जिस की हमें तलाश थी.”

कुमजुक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह चिल्ला रहा था, “छोड़ो, छोड़ो मुझे. मैं ने क्या किया है?”

“क्या किया है,” अफसर उसे घुड़क रहा था, “पकड़े गए, तो चालाकी दिखाते हो. कहां रहे 22 दिनों तक?”

“सर, यह आप क्या कह रहे हैं,” अरुण आवेश में आ कर बोला, “यह मेरे मोकोकचुंग कालेज का स्टूडैंट है. मैं इसे अच्छी तरह से जानता हूं. यह कोई गलत काम कर ही नहीं सकता. बड़ी बात यह कि पिछले डेढ़ माह से यह नियमित कालेज आता रहा है. संभव है, इस की मिलतीजुलती शक्लसूरत वाले किसी अन्य की तलाश हो आप को. सभी तो एकजैसे ही दिखते हैं. वह कोई और होगा.”

“देखिए, आप मुझे मत सिखाइए. यह भाषणबाजी कालेज में ही चले तो बेहतर. हमें आदमी पहचानने की ट्रेनिंग मिली है. हम गलती कर ही नहीं सकते. आखिर आर्मीवाले हैं हम. कोई सिविलियन नहीं, समझे जनाब,” अफसर रंज स्वरों में कह रहा था, “इस को बचाने के चक्कर में आप भी फंस जाएंगे, तो होश ठिकाने आ जाएगा.”

“इस ने कल शाम ही इन्हें रक्तदान किया है,” मैं बोल पड़ी, “अभी अशक्त है. थोड़ी इंसानियत भी दिखाइए. ऐसी हालत में आप इसे नहीं ले जा सकते.”

“आप होती कौन हैं हमें अपने काम से रोकने वाली,” अफसर ने मुझे घुड़का, तो मैं सहम गई. कुमजुक आओ को बेड़ी पहनाते वक्त मैं ने फिर मिन्नत की. अफसर बोला, “देखिए, हम कुछ नहीं जानते. अब आर्मी कैंप में ही सचझूठ का पता चलेगा. मैं आप से बहस नहीं करना चाहता. मैं भी देश का ही काम कर रहा हूं.”

“ऐसे आप देश का करते रहे काम, तो हो चुका देश का कल्याण,” अरुण व्यंग्य से बोला, “अपराधी पकड़ पाएंगे या नहीं, पता नहीं. मगर दस अपराधी जरूर तैयार कर जाएंगे.”

“देखिए मिस्टर प्रोफैसर,” अफसर एकदम से अरुण के सिरहाने आ खड़ा हुआ, “मुझे बकवास एकदम पसंद नहीं है. चुपचाप पड़े रहिए.”

बुजुर्ग दंपती पत्थर के बुत जैसे बन कर रह गए थे. गांव में विचित्र सी शांति छा गई थी. और मैं आर्मीवालों के साथ बंदी बनाए गए कुमजुक आओ को जाते हुए देख रही थी.

“मुझे मोकोकचुंग कालेज जाना ही होगा” अरुण उठते हुए बोला, “कल ही कुमजुक की अटेंडेंस शीट की प्रति जमा कर उसे छुड़ाना है.”

मगर वह अपनी अशक्तता की वजह से निढाल हो बिछावन पर गिर पड़ा. हम सभी उसे संभालने में लग लिए.

बुलाया शादी के लिए मार दी गोली

सुबह के 10 बज रहे थे. सोमवार का दिन होने की वजह से सड़कों पर कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. पटना के मीठापुर का भी वही हाल था. सड़कों पर भीड़भाड़ की वजह से गाड़ियां सरकसरक कर चल रही थीं. उसी भीड़ में एक औटो भी हौर्न बजाता हुआ आगे निकलने की कोशिश में लगा था.

उस में एक लड़की बैठी थी, जो औटो ड्राइवर से बारबार जल्दी से जल्दी पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन पर पहुंचाने को कह रही थी. लेकिन भीड़ की वजह से औटो आगे बढ़ नहीं पा रहा था. औटो में बैठी लड़की कभी अपनी घड़ी देखती तो कभी औटो से सिर बाहर निकाल कर पीछे की ओर देखती.

जैसे ही औटो चाणक्य लौ यूनिवर्सिटी के पास पहुंचा, एक सफेद रंग की बुलेट मोटरसाइकिल पीछे से आ कर औटो के साथसाथ चलने लगी. उस पर 2 युवक सवार थे. उन्हें देख कर लड़की घबरा गई और उस ने ड्राइवर से औटो भगाने को कहा.

लेकिन भीड़ की वजह से औटो ड्राइवर औटो भगा नहीं सका. इसी बीच मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे युवक ने पिस्तौल निकाली और औटो में बैठी लड़की को लक्ष्य बना कर 4 गोलियां दाग दीं.

लड़की पर गोलियां दाग कर मोटरसाइकिल सवार जिस तरह पीछे से आराम से आए थे, उसी तरह आराम से आगे बढ़ गए. उन्हें रोकने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सका. गोलियां लगने से लड़की चीखी तो औटो ड्राइवर ने औटो रोका और लड़की की मदद करने के बजाय वह औटो ही छोड़ कर भाग गया.

गोलियां चलने से बाजार में अफरातफरी मच गई थी. लोग दुकानें बंद करने लगे थे. थोड़ी देर में अफरातफरी थमी तो लोगों को पता चला कि औटो में बैठी लड़की पर गोलियां चलाई गई थीं. वह अभी भी उसी में घायल पड़ी है. कुछ लोगों ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

पुलिस को सूचना दी गई. पहले पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद अस्पताल गई. शिनाख्त के लिए लड़की के पर्स और बैग की तलाशी ली गई तो उन में से मिले कागजातों से पता चला कि लड़की का नाम सृष्टि जैन था. वह इंदौर के स्नेहनगर की रहने वाली थी. वह गो एयर की फ्लाइट से दिल्ली से पटना आई थी और मीठापुर के मणि इंटरनेशनल होटल में ठहरी थी.

उसे फ्लाइट से दिल्ली जाना था, लेकिन उस ने फ्लाइट का टिकट कैंसिल करा कर पटना से इंदौर जाने के लिए पटनाइंदौर एक्सप्रैस का टिकट करवाया था. सुबह 10 बजे वह होटल छोड़ कर औटो से पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन जा रही थी, तभी रास्ते में उसे गोली मार दी गई थी.

इस के बाद 11 बजे के करीब उस की मां ममता जैन ने सृष्टि के मोबाइल पर फोन कर के पता करना चाहा कि क्या वह ट्रेन में बैठ गई है तो किसी पुलिस वाले ने फोन रिसीव कर के उन्हें बताया कि सृष्टि को गोली मार दी गई है और वह अस्पताल में है.

जिस समय सृष्टि को गोली मारी गई थी, औटो ड्राइवर राजकपूर सिंह औटो छोड़ कर भाग गया था. पुलिस ने उस के औटो में लिखे पुलिस कोड जे-647 से उस का मोबाइल नंबर और पता ले कर उसे फोन किया. वह परसा बाजार के पूर्वी रहीमपुर गांव का रहने वाला था. थाने आने पर औटो ड्राइवर राजकपूर सिंह से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि लड़की पर गोली चलाए जाने के बाद वह काफी डर गया था. वह उस लड़की को ले कर स्टेशन जा रहा था, तभी चाणक्य लौ यूनिवर्सिटी के पास बुलेट मोटरसाइकिल से 2 लड़के आए और उन में से पीछे बैठे लड़के ने लड़की को गोली मार दी थी. गोली मार कर वे करबिगहिया की ओर गए थे.

पुलिस ने जब सृष्टि के पिता सुशील जैन से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि शादी डौटकौम पर 20 दिनों पहले उन की छोटी बेटी शगुन ने मृतका सृष्टि का प्रोफाइल डाला था. बिहार का कोई लडक़ा उसे पसंद आ गया था तो वह उसी से मिलने पटना आई थी.

जब सृष्टि की बहन शगुन से पूछताछ की गई तो उस ने बताया था कि शादी डौटकौम पर सृष्टि का प्रोफाइल देख कर पटना के रजनीश की ओर से उस के लिए विवाह का प्रस्ताव आया था. रजनीश सृष्टि को अपने घर वालों से मिलवाना चाहता था, इसीलिए उस ने सृष्टि को पटना बुलवाया था.

रजनीश ने ही सृष्टि के लिए फ्लाइट का टिकट भी भेजा था और पटना में ठहरने के लिए होटल का भी इंतजाम किया था. सुबह 11 बज कर 35 मिनट पर वह पटना पहुंची थी और मणि इंटरनेशनल होटल के कमरा नंबर 106 में ठहरी थी.

उसी दिन दोपहर 2 बज कर 10 मिनट पर रजनीश सिंह ने अपने दोस्त राहुल के साथ उसी होटल में कमरा नंबर 107 बुक कराया था. होटल के रजिस्टर में उस ने अपने पिता का नाम राजेश्वर प्रसाद सिंह और पता राघौपुर, जिला वैशाली लिखा था.

सभी होटल से निकल गए थे, लेकिन कुछ देर बाद सृष्टि होटल लौट आई थी और इस बार वह कमरा नंबर 103 में ठहरी थी. उस ने होटल मैनेजर को बताया था कि उस का टिकट कंफर्म नहीं हुआ, इसलिए वह वापस आ गई थी.

एक बार फिर रजनीश अपने दोस्त राहुल के साथ होटल पहुंचा और सीधे सृष्टि के कमरे में गया. होटल के मैनेजर राजकुमार के अनुसार, इस बार रजनीश सृष्टि के कमरे पर गया तो दोनों के बीच किसी बात को ले कर बहस होने लगी. जल्दी ही इस बहस ने तल्खी का रूप ले लिया.

इस कहासुनी में सृष्टि बारबार कह रही थी कि अब वह उस के पीछे नहीं आएगा. जबकि रजनीश उसे धोखेबाज कह रहा था. उस का कहना था कि उस ने उस के 1 लाख रुपए ठग लिए हैं.

रजनीश से मिलने के बाद सृष्टि ने अपने घर वालों को फोन कर के बताया था कि रजनीश उसे ठीक आदमी नहीं लगता. उस के पास पिस्तौल भी है, जिसे ले कर वह घूमता है. वह एयरपोर्ट पर भी पिस्तौल ले कर आया था. वह ऐसे आदमी से कतई विवाह नहीं करेगी, बाकी बातें वह इंदौर लौट कर बताएगी.

सृष्टि की मां ममता जैन ने बताया था कि रजनीश ने उन से भी फोन पर मीठीमीठी बातें की थीं. वापस आने के लिए सृष्टि को फ्लाइट पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पर गई थी, लेकिन फ्लाइट नहीं मिली. इस के बाद उस ने पटनाइंदौर एक्सप्रैस से लौटने का टिकट लिया था.

सृष्टि के पिता सुशील जैन मूलरूप से राजस्थान के उदयपुर के रहने वाले थे. 4 साल पहले ही वह इंदौर आ कर रहने लगे थे. यहां वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी ममता जैन के अलावा 2 बेटियां, बड़ी सृष्टि और छोटी शगुन थी.

सृष्टि ने उदयपुर से एमबीए किया था, जबकि शगुन 12वीं में पढ़ रही थी. उन का परिवार इंदौर के स्नेहनगर में रहता था. इस के पहले वह खातीवाला टैंक में अनमोल पैलेस में फ्लैट नंबर 402 में रहते थे.

इंदौर की कई कंपनियों में काम करने के बाद सृष्टि दिल्ली में इंडिया बुल्स कंपनी में टीम लीडर के पद पर काम कर रही थी. पिछले महीने उस ने यह नौकरी छोड़ दी थी और दूसरी कंपनी में नौकरी पाने की कोशिश कर रही थी. नौकरी छोडऩे के बाद सृष्टि इंदौर आ कर मांबाप के साथ रह रही थी.

लाश के निरीक्षण के दौरान पुलिस ने देखा था सृष्टि के हाथ पर ‘आर एस’ अक्षर का टैटू बना था, जिस से अंदाजा लगाया कि यह ‘रजनीश सृष्टि’ लिखा है. उस के दूसरे हाथ पर ‘सम लव वन, सम लव यू, आई लव यू, दैट इज यू’ लिखा था.

पुलिस ने होटल के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवा कर चेक की तो उस में सृष्टि से जुड़ी कई बातें सामने आईं. फ्लाइट न मिलने पर जब वह होटल लौटी तो उस की मुलाकात बंगलुरु के रहने वाले सुरेश रेड्डी से हुई. फुटेज में वह होटल के रिसैप्शन काउंटर के पास वाले सोफे पर रेड्डी के साथ बैठी हुई दिखाई दे रही थी.

सृष्टि ने रेड्डी के साथ सैल्फी लेने की बात कही तो पहले तो उस ने मना कर दिया. बातचीत में सृष्टि ने उसे बताया था कि वह इंदौर से पटना आई है. वह एक मोबाइल फोन खरीदना चाहती है, वह चल कर खरीदवा दे. इस के बाद रेड्डी उसे औटो से बाजार ले गया था. रेड्डी अपनी कंपनी के काम से पिछले 15 दिनों से उस होटल में ठहरा था.

फुटेज से यही लगता था कि 24 जनवरी को सृष्टि और रेड्डी की मुलाकात थोड़ी ही देर में दोस्ती में बदल गई थी. होटल से निकलने के बाद उन्होंने 10 हजार रुपए का मोबाइल फोन खरीदा था. मोबाइल का बिल रेड्डी के नाम से बना था. इस के बाद दोनों नाइट शो फिल्म देख कर देर रात होटल लौटे थे. होटल स्टाफ ने भी पुलिस को उन के देर से लौटने की बात बताई थी.

पुलिस सूत्रों के अनुसार, सृष्टि के मोबाइल फोन के मेमोरी कार्ड से पुलिस को कुछ आपत्तिजनक वीडियोज मिले थे, लेकिन पुलिस इस बारे में कुछ नहीं बता रही है. मेमोरी कार्ड से पता चलता है कि सृष्टि विवाहित थी. लेकिन वह औनलाइन साथी की तलाश में थी.

रजनीश की तरह सृष्टि ने भी अपने प्रोफाइल में खुद के बारे में गलत जानकारियां दी थीं. सृष्टि के परिवार वालों ने पुलिस को बताया था कि उदयपुर में पढ़ाई के दौरान ही सृष्टि ने प्रेमविवाह कर लिया था, लेकिन वह शादी कुछ समय बाद ही टूट गई थी और सृष्टि ने अपने पति से तलाक ले लिया था.

सोचने वाली बात यह है कि अगर रजनीश से सृष्टि की पहले से जानपहचान नहीं थी तो किसी अजनबी के बुलाने पर वह इंदौर से पटना कैसे चली गई? रजनीश सृष्टि के पड़ोस वाले कमरे में ही रात में ठहरा था.

लेकिन यह बात उस ने अपने घर वालों को नहीं बताई थी. दोनों के बीच कहीं पहले से तो कोई रिश्ता नहीं था? आखिर रजनीश बारबार सृष्टि पर एक लाख रुपए ठगने का आरोप क्यों लगा रहा था? केवल विवाह के प्रस्ताव ठुकराने से कोई किसी लड़की की हत्या क्यों करेगा?

सृष्टि की हत्या के 8 दिनों बाद, सृष्टि के हत्यारे रजनीश को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. वह अपनी पत्नी और  दोनों बच्चों के साथ कंकड़बाग में अपने किसी रिश्तेदार के यहां गया था, तभी पुलिस ने उसे पकड़ लिया था. पुलिस को उस के वहां आने की जानकारी पहले से थी, इसलिए सादे लिबास में वहां पुलिस वालों को तैनात कर दिया गया था. उस के आते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया था. वह पटना से हो कर दिल्ली भागने की फिराक में था.

पूछताछ में रजनीश ने पुलिस को बताया था कि सृष्टि उसे ब्लैकमेल करने लगी थी. लोगों को ब्लैकमेल करना उस की आदत में शुमार था. इस काम में उस का परिवार भी उस का साथ देता था. पुरुषों को फंसा कर वह रुपए ऐंठती थी. यहां आ कर उस ने उस से गहने खरीदने को कहा था.

सृष्टि के बारबार बदलते बातव्यवहार से ही रजनीश को उस पर शक हो गया था, जिस से उस ने गहने खरीदने से मना कर दिया था, इसी बात से सृष्टि उस से नाराज हो गई और होटल में ही उस से बहस करने लगी, जो जल्दी तल्खी में बदल गई. बात ज्यादा बढ़ी तो वह रजनीश को गालियां देने लगी.

इस के बाद सृष्टि ने अपना सामान उठाया और अकेली ही औटो से स्टेशन की ओर चल पड़ी. रजनीश के पास पिस्तौल थी ही, उस ने देखा कि सृष्टि उसे धोखा दे कर जा रही है तो उस ने बुलेट से जा कर रास्ते में उसे गोली मार दी.

राघौपुर के वीरपुर बरारी टोला का रहने वाला रजनीश किसान राजेश्वर प्रसाद सिंह का बेटा है. पुलिस ने उस के गांव वाले घर पर छापा मारा तो वहां से 7.65 बोर की गोलियों के 6 खोखे मिले हैं. रजनीश की 13 साल पहले किरण सिंह से शादी हुई थी. उस के 2 बच्चों में बड़ा बेटा प्रियांशु 12 साल का और छोटा बेटा कुणाल 9 साल का है.  रजनीश की गिरफ्तारी से किरण काफी परेशान है. उस का कहना है कि उस के पति किडनी के मरीज हैं, अगर उन्हें समयसमय पर दवाएं नहीं दी गईं तो उन की जान जा सकती है.

किरण ने दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल में अपनी किडनी दान की थी. दूसरी किडनी रजनीश के बड़े भाई अनिल ने दी थी, जिस की वजह से उसे दिन में 3 बार दवा खानी पड़ती है. पीने के लिए उसे मिनरल वाटर दिया जाता है.

सृष्टि के पिता का कहना है कि रजनीश पुलिस को बेमतलब की कहानियां गढ़ कर सुना रहा है. हत्या को ले कर भी वह पुलिस को बरगला रहा है. सृष्टि की मां का कहना है कि किसी अनजान लड़की से 5-10 दिनों की बातचीत में रजनीश ने ढाई लाख रुपए से ज्यादा उस पर कैसे और क्यों खर्च कर दिए?

4 जनवरी को सृष्टि की बहन शगुन ने उस की शादी का प्रोफाइल शादी डौटकौम वेबसाइट पर डाला था. उस के 10 दिनों बाद रजनीश की ओर से शादी का प्रस्ताव आया था. रजनीश ने बताया था कि उस के पिता की मोटरसाइकिल की एजेंसी है, जिस का सालाना कारोबार 70-80 लाख रुपए का है. अपने बारे में उस ने बताया था कि वह आईपीएस की तैयारी कर रहा है. उस के इसी प्रोफाइल और प्रस्ताव के बाद ही सृष्टि उस से मिलने पटना आई थी.

पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रजनीश की तरह सृष्टि ने भी शादी के वेबसाइट पर अपने बारे में गलत जानकारियां दे रखी थीं. उस ने पहले विवाह और तलाक के बारे में बिलकुल नहीं बताया था. रजनीश तो गलत था ही, सृष्टि भी अपने बारे में गलत जानकारी दे कर दोबारा शादी की फिराक में थी.

पुलिस पूछताछ में रजनीश ने सृष्टि की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. उस ने सृष्टि से हुई जानपहचान के बारे में पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार, उस ने सृष्टि पर काफी रुपए खर्च कर दिए थे. इस के बाद भी वह उस से और कई चीजें खरीदने को कह रही थी. इस से उसे लगा कि यह काफी खर्चीली है. अब तक वह उस से करीब 2 लाख रुपए खर्च करवा चुकी थी.

रजनीश ने सृष्टि के पास एक नया मोबाइल फोन देखा, जिस में सृष्टि ने सुरेश रेड्डी के साथ सैल्फी ले रखी थी. वह फोटो देख कर उस के दिल को काफी गहरी ठेस लगी. रजनीश की अपनी पत्नी से बिलकुल नहीं पटती थी, इसीलिए वह दूसरी शादी के बारे में सोच रहा था.

पहली नजर में सृष्टि रजनीश को बहुत अच्छी लगी थी, जिस से उस ने उस से विवाह करने का मन बना लिया था. विवाह के बाद वह उस के साथ दिल्ली में रहना चाहता था. लेकिन जब वह उस की ऊलजुलूल मांगों को पूरी नहीं कर सका तो सृष्टि ने उस से विवाह करने से मना कर दिया था.

पुलिस को दिए अपने बयान में रजनीश ने बताया था कि सृष्टि की हत्या कर के वह मीठापुर से सीधा अनीसाबाद होते हुए हाजीपुर चला गया था. रास्ते में महात्मा गांधी पुल से उस ने अपना मोबाइल फोन, टैबलेट और पिस्तौल का लाइसेंस गंगा नदी में फेंक दिया था. इसी के साथ अपनी बुलेट मोटरसाइकिल को नाव पर रख कर गंगा नदी के बीच में डुबो दिया था. इस के बाद वह हाजीपुर, वैशाली और पटना में ठिकाने बदलबदल कर समय गुजारता रहा.

रजनीश के बड़े भाई अनिल सिंह ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि रजनीश की किडनी ट्रांसप्लांट कराई गई है, जिस से वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर है. ऐसे में वह किसी की हत्या कैसे कर सकता है? उसे दिन में 4 बार दवाइयां खानी पड़ती हैं और मिनरल वाटर पीना पड़ता है.

ट्रांसपोर्टर का कारोबार करने वाले अनिल का कहना है कि तबीयत खराब रहने की वजह से रजनीश गांव पर ही ब्याज पर रुपए देने  का काम करता था. उसे हत्या के इस मामले में फंसाया गया है. बहरहाल, रजनीश पुलिस की गिरफ्त में है और सृष्टि की मौत हो चुकी है. सृष्टि के पिता इस हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.

पुलिस का कहना है कि रजनीश के तार किडनी बेचने वाले गिरोह से जुड़े हो सकते हैं. शादी के बहाने रजनीश ने अपहरण की नीयत से सृष्टि को पटना बुलाया था, लेकिन उस से बातचीत के बाद सृष्टि को कुछ खतरा महसूस हुआ तो उस ने वापस जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन वह लौट नहीं पाई, क्योंकि रजनीश को उस से खतरा था.

रजनीश पहले भी एक बच्चे के अपहरण के मामले में जेल जा चुका है. वैशाली के थाना जोरावरपुर में उस पर अपहरण का केस दर्ज है. कुछ दिनों पहले ही वह जमानत पर छूटा था. अगवा किए गए बच्चे का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. पुलिस जांच में पता चला है कि बच्चे का अपहरण किडनी निकालने के मकसद से किया गया था.

जांच के बाद पुलिस ने उस का खाता सील कर दिया था, जिस में 90 लाख रुपए जमा थे. उस के घर से फरजी स्टांप और कई सरकारी अफसरों की मुहरें बरामद हुई थीं. रजनीश खुद भी 2 बार किडनी ट्रांसप्लांट करवा चुका है.

पुलिस यह पता कर रही है कि जिस डाक्टर ने उस की किडनी ट्रांसप्लांट की थी, कहीं रजनीश उस डाक्टर या अस्पताल के साथ मिल कर किडनी बेचने का रैकेट तो नहीं चला रहा था?

पुलिस को जानकारी मिली है कि सृष्टि ने दिल्ली में किसी डाक्टर के यहां भी काम किया था. हो सकता है रजनीश की किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान उन की जानपहचान हुई हो? दोनों के बीच रुपयों को ले कर होटल में हुई बहस कहीं किडनी खरीदबिक्री के रैकेट से तो नहीं जुड़ी थी?

रजनीश भी पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में ही रह रहा था और किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों को किडनी मुहैया कराने की दलाली का काम करने लगा था. इस काम से उस ने काफी पैसे कमाए थे. वह जब भी अपने गांव वीरपुर आता था, दोस्तों पर खूब पैसा खर्च करता था. लेकिन सृष्टि के पिता का कहना है कि सृष्टि और रजनीश की पहले से जानपहचान और प्रेम प्रसंग की बात बिलकुल गलत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

विश्वास : भाग 3

‘‘तुम्हारे प्यार में पागल मेरा दिल तुम्हें 2 लाख रुपए देने से बिलकुल नहीं हिचकिचाया था लेकिन मेरा हिसाबी- किताबी मन तुम पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहता था.

‘‘मैं ने दोनों की सुनी और रुपए ले कर खुद यहां चली आई. मेरे ऐसा करने से तुम्हें जरूर तकलीफ हो रही होगी… तुम्हारे दिल को यों चोट पहुंचाने के लिए मैं माफी मांग रही…’’

‘‘नहीं, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. तुम्हारे मन में चली उथलपुथल को मैं अब सम?ा सकता हूं. तुम ने जो किया उस से तुम्हारी मानसिक परिपक्वता और सम?ादारी ?ालकती है. अपनी गांठ का पैसा ही कठिन समय में काम आता है. हमारे जैसे सीमित आय वालों को ऊपरी चमकदमक वाली दिखावे की चीजों पर खर्च करने से बचना चाहिए, ये बातें मेरी सम?ा में आ रही हैं.’’

‘‘अपने अहं को बीच में ला कर मेरा तुम से नाराज होना बिलकुल गलत है. तुम तो मेरे लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से ज्यादा विश्वसनीय साबित हुई हो. मां के इलाज में मदद करने के लिए थैंक यू वेरी मच,’’ राजीव ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूम लिया.

एकदूसरे की आंखों में अपने लिए नजर आ रहे प्यार व चाहत के भावों को देख कर उन दोनों के दिलों में आपसी विश्वास की जड़ों को बहुत गहरी मजबूती मिल गई थी.

15 अगस्त स्पेशल : स्वदेश के परदेसी, भाग 3

‘किस बात का अपना देश. पहले ही बहुतकुछ खो चुके हैं हम यहां. अब और क्या खोना चाहते हो तुम…सैप्टिक होता तो बौडी पार्ट भी काट देना पड़ता है. जब मेनलैंड के वासी हमें इंडियन नहीं मानते तो हम क्यों दिल जोड़ कर बैठे हैं सब से. कुछ नहीं हैं हम यहां, सिवा स्वदेश के परदेसी होने के.’

‘लोगों की सोच बदल रही है, अलाना. धीरेधीरे और बदलेगी. अब उत्तर भारत में से प्रोफैशनल लोग मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु में जाने लगे हैं और दक्षिण भारत से दिल्ली, गुड़गांव में आने लगे हैं. 30 साल पहले यह चलन इतना नहीं था. यह मेलजोल समय के साथ और मिलनेजुलने पर ही संभव हो पाया है.

नौर्थईस्ट के लोगों का दिल्ली आना अभी नई शुरुआत है. वक्त के साथ इस संबंध में भी अनुकूलन बढ़ेगा और आपसी ताल्लुकात में सुधार आएंगे. टू रौंग्स कांट सेट वन राइट. अलाना समझने की कोशिश करो,’ यीरंग अलाना को समझाने का भरसक प्रयास करता.

‘भारतीय नागरिकता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. फिर हमें अपने ही देश में बारबार अपना पासपोर्ट क्यों दिखाना पड़ता है. क्यों हम से उम्मीद की जाती है कि हम अपने माथे पर ‘हम भारतीय ही हैं’ की पट्टी लगा कर घूमें. हम से निष्ठापूर्ण आचरण की आशा क्यों की जाती है जब हमारे इतिहास का कहीं किसी पाठ्यक्रम में जिक्र नहीं, हमारे क्षेत्र के विकास से सरकार का कोई लेनादेना नहीं. मेनलैंड में हमें छूत की बीमारी की तरह माना जाता है. कुछ नहीं मिला हमें यहां, मात्र उपेक्षा के. क्या हमारी गोरखा रेजीमैंट के जवानों का कारगिल युद्ध में योगदान किसी दूसरी रेजीमैंट्स से कम था?’ अलाना सचाई के अंगारे उगलती.

उन्हीं दिनों एंड्रिया का एक मित्र, जो एंड्रिया के गायब होने वाले दिन ही गुवाहाटी चला गया था, अचानक दिल्ली वापस आ गया. वापस आने पर उसे जैसे ही एंड्रिया के दूसरे मित्रों से उस की संदिग्ध मौत का समाचार मिला तो वह तत्काल ही अलाना से मिलने पहुंचा. उस ने अलाना को बताया कि उस दिन एंड्रिया कालेज आने से पहले रास्ते में कोचिंग वाले ट्यूटर के घर से कुछ नोट्स लेने जाने वाली थी, उन्होंने ही उसे अपने फ्लैट पर आ कर नोट्स ले जाने को कहा था.

एंड्रिया के मित्र के बयान के आधार पर पुलिस ने जब उस ट्यूटर के घर की तलाशी ली तो सारा सच सामने आ गया. बिल्ंिडग में लगे सीसीटीवी कैमरे के पुराने रिकौर्ड्स की जांच करने पर पाया गया कि उस दिन एंड्रिया सुबह करीब

9 बजे ट्यूटर के अपार्टमैंट में आई थी. मगर उस के वापस जाने का कहीं कोई रिकौर्ड नहीं था. हां, उसी दिन दोपहर करीब 1 बजे ट्यूटर और उस का एक साथी एक बड़ा सा ब्रीफकेस घसीटते हुए बाहर ले जा रहे थे. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के दबाव में उन्होंने जल्दी ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

घटना वाले दिन जब एंड्रिया वहां नोट्स लेने पहुंची तो ट्यूटर के यहां उस का एक साथी भी मौजूद था. दोनों ने बारीबारी से एंड्रिया के साथ जोरजबरदस्ती की और अपने मोबाइल में उस का वीडियो भी बना लिया. उन्होंने एंड्रिया को धमकाया कि वह इस बारे में किसी से कुछ न कहे. बस, आगे भी ऐसे ही उन से मिलने आती रहे. अगर वह उन की बात नहीं मानेगी तो वे उस का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देंगे. उन के लाख समझाने पर भी एंड्रिया चिल्लाचिल्ला कर कहती रही कि वह चुप नहीं बैठेगी और उन दोनों को उन के किए की सजा दिलवा कर चैन लेगी. जब वह नहीं मानी तो उन्होंने गला दबा कर उस की हत्या कर दी और लाश के टुकड़े कर के एक ब्रीफकेस में भर कर यमुना नदी में फेंक आए.

मुजरिमों की गिरफ्तारी के कुछ समय बाद ही यीरंग को आस्ट्रेलिया से एक अच्छा जौब औफर मिल गया. वह और अलाना एक नई शुरुआत करने के लिए वहां प्रवास कर गए. उन्हें आस्ट्रेलिया आए हुए अब तक करीब 5 साल हो चुके थे और मासूम एंड्रिया को दुनिया छोड़े हुए करीब 6 साल. मगर उस की मौत से मिले जख्म थे कि सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे. जबजब इन जख्मों में टीस उठती, दिल का दर्द शिद्दत पर पहुंच कर दिन का चैन और रातों की नींद हराम कर के रख देता.

एंड्रिया की सारी भौतिक यादें दिल्ली में ही छोड़ दी गई थीं पर क्या भावनात्मक यादों की परछाइयां पीछे छूट पाई थीं? कोई न कोई बात उत्प्रेरक बन कर यादों के बवंडर ले आती. आज मनमीत सिंह की कैंडिल विजिल की खबर उत्प्रेरक बनी थी तो कल कुछ और होगा…कुल मिला कर जीवन में अमन नहीं था. दुनिया के लिए एंड्रिया 6 साल पहले मर चुकी थी पर अलाना के लिए आज तक वह उस के दिलदिमाग में रह कर उस की सभी दुनियावी खुशियों को मार रही थी.

‘‘मैडम, एनीथिंग एल्स?’’ बैरे की आवाज पर अलाना चौंकी और यादों के भंवर से बाहर आई. उस ने घड़ी पर नजर डाली. उसे कैफे में बैठेबैठे 2 घंटे से ज्यादा हो चुके थे. शुष्क मौसम की वजह से कौफी का खाली प्याला सूख चुका था. मेनलैंड के लोगों के व्यवहार की शुष्कता ने अलाना के अंदर की इंसानियत को भी सुखा दिया था. इस शुष्कता का प्रभाव इतना ज्यादा था कि आज मनमीत सिंह की हत्या की खबर भी आंखों में नमी नहीं ला पाई. खुद के साथ हुए हादसों ने मानवता के प्रति उस के दृष्टिकोण को संकुचित कर दिया था.

अब आंखें नम होती तो थीं पर केवल व्यक्तिगत दुख से. वह नफरत बांट रही थी नफरत के बदले. क्या वह समस्या का निदान कर रही थी या फिर जानेअनजाने में खुद समस्या का हिस्सा बनती जा रही थी?

अलाना ने एक और कैपीचीनो और्डर की. शायद दिमाग को थोड़ी सी ताजगी की जरूरत थी. वह सड़ीगली यादों से छुटकारा चाहती थी. वो यादें जो कि उस के वर्तमान को कैद किए बैठी थीं भूतकाल की सलाखों के पीछे.

कैपीचीनो खत्म करते ही वह तेज कदमों से कैफे से बाहर निकल आई. एक निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी वह. एक ताजा हवा का झोंका उस के चेहरे को छूता हुआ गुजरा तो उस ने आकाश की ओर निहारा, जाने क्यों आकाश आज और दिनों की भांति ज्यादा स्वच्छ लग रहा था. उसे घर पहुंचने की जल्दी न थी, इसलिए उस ने स्वान नदी की तरफ से एक लंबा सा ड्राइव लिया. नदी, वायु, आकाश, पेड़पौधे, पक्षी सभी तो हमेशा से थे यहां. जाने क्यों कभी उस का ही ध्यान नहीं गया था अब तक इन खूबसूरत नजारों की ओर. उस ने सोचा, चलो कोई बात नहीं, जब आंख खुले उसी लमहे से एक नई सुबह मान कर एक नई शुरुआत कर देनी चाहिए.

शाम को यीरंग के घर वापस आते ही अलाना ने उस को अपना फैसला सुनाया, ‘‘यीरंग, मैं भी कल मनमीत सिंह की कैंडिल विजिल में चलूंगी तुम्हारे साथ. तुम ठीक ही कहते हो ‘टू रौं कांट सेट वन राइट’.’’

‘‘मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी, अलाना. गलती तो हम भी करते हैं. जो थोड़े से फ्रैंड्स मैं ने और तुम ने दिल्ली में बनाए थे, क्या दिल्ली से चले आने के बाद हम ने उन से कोई संबंध रखा? दोस्ती के पौधे के दिल के आंगन में उग आने के बाद, उस की परवरिश के लिए मेलमिलाप के जिस खादपानी की जरूरत होती है क्या वह सब हम ने दिया? नहीं न, तो फिर हम पूरा दोष दूसरे पर मढ़ कर खुद का दामन क्यों बचा लेते हैं.

‘‘जब कोई परिवर्तन लाने का प्रयास करो तो यह अभिलाषा मत रखो कि परिवर्तन तुम्हें अपने जीवनकाल में देखने को मिल जाएगा. हां, अगर सच्चे मन से परिवर्तन लाने की चेष्टा करो तो बदलाव जरूर आएगा और उस का लाभ आने वाली पीढि़यों को अवश्य होगा.’’

‘‘सही बात है, यीरंग. बहुत से वृक्ष ऐसे होते हैं जिन्हें लगाने वाले उन के फलों का आनंद कभी नहीं ले पाते. मगर फिर भी वे उन्हें लगाते हैं अपनी अगली पीढ़ी के लिए. शायद इसी तरह से कुछ इंसानी रिश्तों के फल भी देर में मिलते हैं. वक्त लगता है इन रिश्तों के अंकुरों को वृक्ष बनने में. एक न एक दिन इन वृक्षों के फल प्रेम की मिठास से जरूर पकते हैं. मगर, पहली बार किसी को तो बीज बोना ही होता है. तुम ने एक बार मुझ से कहा था कि ‘आज भी दुनिया में अच्छे लोगों की संख्या ज्यादा है, इसीलिए यह दुनिया चल भी रही है. जिस दिन यहां बुरे लोगों का प्रतिशत बढ़ेगा, यह दुनिया खत्म हो जाएगी.’ तुम सही थे, यीरंग, तुम बिलकुल सही थे.’’

और दूसरे दिन ‘स्वदेश के परदेसी’ अलाना और यीरंग आस्ट्रेलिया की भूमि पर पूर्णरूप से देसी बन कर अपने देसी भाई मनमीत सिंह की कैंडिल विजिल में शामिल होने के लिए सब से पहले पहुंच गए थे.

फातिमा बीबी- भाग 3: भारतीय फौज दुश्मनों के साथ भी मानवीय व्यवहार करती है?

‘‘‘ले जाओ पर ध्यान रहे, इस की जान को कुछ नहीं होना चाहिए. इस की सुरक्षा हमें अपनी जान से भी प्यारी है. पूरी रैजिमैंट की इज्जत का सवाल है.’

‘‘‘मैं समझता हूं, सर. जान चली जाएगी पर इस को कुछ नहीं होने दिया जाएगा,’ डाक्टर ने कहा.

‘‘‘इसे कुछ खिलापिला देना, सुबह से कुछ नहीं खाया.’

‘‘‘यस सर.’

‘‘‘एडयूटैंट साहब से बोलो, इस के बारे में सारी जानकारी हासिल करें और ब्रिगेड हैडक्वार्टर को इन्फौर्म करें,’ आदेश दे कर मैं अपने कमरे में आ गया.

‘‘थोड़ी देर बाद एडयूटैंट मेजर राम सिंह मेरे सामने थे.

‘‘‘सर, यह लड़की इसी गांव अल्लड़ की रहने वाली है. इस के साथ बहुत बुरा हुआ. सारा परिवार पाकिस्तानी फौजों के हाथों मारा गया. घर की जवान औरतों को वे साथ ले गए और बूढ़ी औरतों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. इस भयानक दृश्य को इस ने अपनी आंखों से देखा है. यह किसी बड़े ट्रंक के पीछे छिपी रह गई और बच गई. पाक फौज इसे ढूंढ़ ही रही थी कि हमारी टुकड़ी से टक्कर हो गई. कुछ मारे गए, कुछ भाग गए. यह सियालकोट के जिन्ना कालेज के फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट है. रावलपिंडी में इस का मामू रहता है जिस का उस ने पता दिया है.’

‘‘‘यह सब ब्रिगेड हैडक्वार्टर को लिख दो और आदेश का इंतजार करो.’

‘‘‘यस सर,’ कह कर एडयूटैंट साहब चले गए.

‘‘युद्ध के बाद चारों ओर भयानक शांति थी, श्मशान सी शांति. दूसरे रोज फातिमा के लिए आदेश आया कि 2 रोज के बाद पाकिस्तान के मिलिटरी कमांडरों के साथ कई मुद्दों को ले कर सियालकोट के पास मीटिंग है. उस में फातिमा के बारे में भी बताया जाएगा. यदि उन के कमांडर रावलपिंडी से उस के मामू को बुला कर वापस लेने के लिए तैयार हो गए तो ठीक है, नहीं तो वह पीछे कैंप में भेजी जाएगी, तब तक वह आप की रैजिमैंट में रहेगी, मेहमान बन कर. हमें ऐसे आदेश की आशा नहीं थी. सारी रैजिमैंट समझ नहीं पा रही थी कि ब्रिगेड ने ऐसा आदेश क्यों दिया.

‘‘हमारे अगले 2 दिन बड़े व्यस्त थे. मोरचाबंदी के साथसाथ घायल सैनिकों को पीछे बड़े अस्पताल में भेजना था. शहीद सैनिकों के शव भी पीछे भिजवाने थे. सब से महत्त्वपूर्ण था, लिस्ट बना कर पाकिस्तान के शहीद सैनिकों को दफनाना. उन की बेकद्री किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं की जा सकती थी. इस में पूरे 2 दिन लग गए. हम जान ही नहीं पाए कि फातिमा कैसी है और किस हाल में है.

‘‘जब याद आया तो मेरे पांव खुद ही एमआई रूम की ओर उठ चले. जब वहां पहुंचा तो फातिमा नाश्ता कर रही थी. मुझे देखते ही उठ खड़ी हुई.

‘‘‘बैठोबैठो, नाश्ता करो. माफ करना, फातिमा, 2 दिन तक हम आप की सुध नहीं ले पाए. आप को कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’

‘‘‘नहीं सर, कोई तकलीफ नहीं हुई, बल्कि सभी ने इतनी खिदमत की कि मैं अपने गमों को भूलने लगी,’ फिर प्रश्न किया, ‘आप सभी दुश्मनों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं?’

‘‘‘यह हिंदुस्तानी फौज की रिवायत है, परंपरा है कि हमारी फौज अपने दुश्मनों के साथ भी मानवीय व्यवहार करने के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है.’

‘‘फिर मैं ने ब्रिगेड के आदेश और 2 दिन बाद कमांडरों की मीटिंग के बारे में बताया कि यदि उन्होंने मान लिया तो बहुत जल्दी वह अपने मामू के पास भेज दी जाएगी.

‘‘‘सर, यदि ऐसा हो गया तो मरते दम तक मैं आप को, आप के पूरे परिवार को यानी आप की रैजिमैंट को, उन जांबाज जवानों को जिन्होंने

अपनी जान पर खेल कर पाक फौजी दरिंदों से मुझे बचाया था, कभी भूल नहीं पाऊंगी.’

‘‘‘हमारी फौज की यही परंपरा है कि जब कोई हम से विदा ले तो वह उम्रभर हमें भूल कर भी भूल न पाए.’

‘‘एक सप्ताह के भीतर फातिमा को हमारे और पाक कमांडरों की देखरेख में सियालकोट के पास उस के मामू के हवाले कर दिया गया.’’

कर्नल अमरीक सिंह पूरी कहानी सुना कर फिर भावुक हो उठे. उन की आंखें फिर नम हो गईं.

कैप्टन नूर मुहम्मद ने कहा, ‘‘सर, मेरे लिए क्या आदेश है? क्या फातिमा को आने के लिए लिखा जाए?’’

‘‘नहीं, कैप्टन साहब, फातिमा को उन की मीठी यादों के सहारे जीने दो. किसी भी मुल्क के सिविलियन को मिलिटरी यूनिट विजिट करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. हां, उस के लिए हमारी ओर से तोहफा ले कर आप अवश्य जाएंगे, बिना किसी अंतर्विरोध के. उस का देश हमारे देश में आतंकवाद फैलाता है, लाइन औफ कंट्रोल पर जवानों के गले काटता है, 26/11 जैसे हमले करता है, सूसाइड बौंबर भेजता है.’’

भाभी : भाग 3

इसी तरह समय बीतने लगा और भाभी की बेटी 3 साल की हो गई तो फिर से उन के गर्भवती होने का पता चला और इस बार भाभी की प्रतिक्रिया पिछली बार से एकदम विपरीत थी. परिस्थितियों ने और समय ने उन को काफी परिपक्व बना दिया था.

गर्भ को 7 महीने बीत गए और अचानक हृदयविदारक सूचना मिली कि भाई की घर लौटते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह अनहोनी सुन कर सभी लोग स्तंभित रह गए. कोई भाभी को मनहूस बता रहा था तो कोई अजन्मे बच्चे को कोस रहा था कि पैदा होने से पहले ही बाप को खा गया. यह किसी ने नहीं सोचा कि पतिविहीन भाभी और बाप के बिना बच्चे की जिंदगी में कितना अंधेरा हो गया है. उन से किसी को सहानुभूति नहीं थी.

समाज का यह रूप देख कर मैं कांप उठी और सोच में पड़ गई कि यदि भाई कमउम्र लिखवा कर लाए हैं या किसी की गलती से दुर्घटना में वे मारे गए हैं तो इस में भाभी का क्या दोष? इस दोष से पुरुष जाति क्यों वंचित रहती है?

एकएक कर के उन के सारे सुहाग चिह्न धोपोंछ दिए गए. उन के सुंदर कोमल हाथ, जो हर समय मीनाकारी वाली चूडि़यों से सजे रहते थे, वे खाली कर दिए गए. उन्हें सफेद साड़ी पहनने को दी गई. भाभी के विवाह की कुछ साडि़यों की तो अभी तह भी नहीं खुल पाई थी. वे तो जैसे पत्थर सी बेजान हो गई थीं. और जड़वत सभी क्रियाकलापों को निशब्द देखती रहीं. वे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं कि उन की दुनिया उजड़ चुकी थी.

एक भाई ही तो थे जिन के कारण वे सबकुछ सह कर भी खुश रहती थीं. उन के बिना वे कैसे जीवित रहेंगी? मेरा हृदय तो चीत्कार करने लगा कि भाभी की ऐसी दशा क्यों की जा रही थी. उन का कुसूर क्या था? पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष पर न तो लांछन लगाए जाते हैं, न ही उन के स्वरूप में कोई बदलाव आता है. भाभी के मायके वाले भाई की तेरहवीं पर आए और उन्हें साथ ले गए कि वे यहां के वातावरण में भाई को याद कर के तनाव में और दुखी रहेंगी, जिस से आने वाले बच्चे और भाभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. सब ने सहर्ष उन को भेज दिया यह सोच कर कि जिम्मेदारी से मुक्ति मिली. कुछ दिनों बाद उन के पिताजी का पत्र आया कि वे भाभी का प्रसव वहीं करवाना चाहते हैं. किसी ने कोई एतराज नहीं किया. और फिर यह खबर आई कि भाभी के बेटा हुआ है.

हमारे यहां से उन को बुलाने का कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने बुलावे का इंतजार नहीं किया और बेटे के 2 महीने का होते ही अपने भाई के साथ वापस आ गईं. कितना बदल गई थीं भाभी, सफेद साड़ी में लिपटी हुई, सूना माथा, हाथ में सोने की एकएक चूड़ी, बस. उन्होंने हमें बताया कि उन के मातापिता उन को आने नहीं दे रहे थे कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वहां जा कर क्या करेगी लेकिन वे नहीं मानीं. उन्होंने सोचा कि वे अपने मांबाप पर बोझ नहीं बनेंगी और जिस घर में ब्याह कर गई हैं, वहीं से उन की अर्थी उठेगी.

मैं ने मन में सोचा, जाने किस मिट्टी की बनी हैं वे. परिस्थितियों ने उन्हें कितना दृढ़निश्चयी और सहनशील बना दिया है. समय बीतते हुए मैं ने पाया कि उन का पहले वाला आत्मसम्मान समाप्त हो चुका है. अंदर से जैसे वे टूट गई थीं. जिस डाली का सहारा था, जब वह ही नहीं रही तो वे किस के सहारे हिम्मत रखतीं. उन को परिस्थितियों से समझौता करने के अतिरिक्त कोई चारा दिखाई नहीं पड़ रहा था. फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया था. सारा दिन सब की सेवा में लगी रहती थीं.

उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.

मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची  से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.

इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.

मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.

‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’

‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’

‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.

‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.

‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.

‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.

‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.

‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं,  ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’

उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.

‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’

‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.

अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें