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शादी के लिए लड़की की ‘हां’ भी है जरूरी

उज्जैन के राजीव ने अपनी बेटी की शादी ग्वालियर के एक इंजीनियर लड़के से तय की. दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से सारी बातें तय कीं. शादी से एक दिन पहले संगीत के कार्यक्रम में वधू की बहन ने डांस परफौर्म करने के लिए वर पक्ष से एक गाना बजाने की डिमांड की. वधू की बहन के बारबार कहने पर भी जब गाना नहीं बजाया गया तो बात बड़ों तक पहुंची और बात बढ़तेबढ़ते इतनी बढ़ गई कि लड़की वालों ने शादी करने से इनकार कर दिया.

लड़की वालों का कहना था कि इतनी छोटी सी बात पर हमारा मान नहीं रखे जाने का मतलब है कि हमें ताउम्र नीचा दिखाया जाएगा. ऐसे परिवार में हम अपनी बेटी नहीं दे सकते, क्योंकि जिस घरपरिवार में अभी हमारी ही इज्जत नहीं वहां हमारी बेटी का भविष्य सुखद कैसे हो सकता है?

समाज में धीरेधीरे अपने पैर फैला रही सामाजिक क्रांति के इस दौर में लड़की देखने से ले कर विवाह के संपन्न होने तक अब समाज में लड़के वालों की तुनकमिजाजी असहनीय है. फिर चाहे बात दहेज की हो अथवा लड़की और लड़के के नजरिए में भिन्नता की, बेटी के परिवार के मानसम्मान अथवा शादी के अवसर पर होने वाली रस्मों की, अब मातापिता विवाह जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णय में बेटी की राय और निर्णय को प्राथमिकता देने लगे हैं. अब जोरजबरदस्ती से नहीं, बल्कि बेटी की हां पर ही अभिभावक उस का विवाह तय करते हैं.

सम्मान को प्राथमिकता

आज की सदी की बेटियां केवल उसी परिवार में विवाह करने को प्राथमिकता दे रही हैं जहां उन के मातापिता और उन का उचित सम्मान हो. 18 साल पहले जब मैं ने बेटी को जन्म दिया तो हमारे कितने ही शुभचिंतकों ने हमें बेटी के लिए दहेज की सलाह दी थी. परंतु अब यह मिथक टूट रहा है. आज कितने ही अभिभावक इकलौती बेटी को ही संतान के रूप में पा कर खुश हैं.

आधुनिक मातापिता अपनी बेटियों को महज स्नातक या स्नातकोत्तर की डिगरी दिला कर विवाह करने की अपेक्षा उच्चशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं. ऐसे में वरपक्ष की किसी भी प्रकार की तुनकमिजाजी को वधूपक्ष स्वीकार नहीं करता और करे भी क्यों? आज समानता का युग है, बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं. वे जीवन की हर चुनौती को खुशीखुशी स्वीकार कर रही हैं.

बदलाव के कारण

सीमित परिवार : वर्तमान समय में परिवार का आकार एक अथवा अधिक से अधिक दो बच्चों तक सीमित हो कर रह गया है. कमरतोड़ महंगाई और महंगी शिक्षा के कारण आज अधिकांश दंपती

एक अथवा दो बच्चों वाले छोटे परिवार को ही प्राथमिकता देने लगे हैं. फिर चाहे वे एक या दो बेटियां ही क्यों न हों. ऐसे में प्रत्येक मातापिता अपनी बेटियों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बनाना चाहता है. उन के लिए आज बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं है.

आत्मनिर्भर होती बेटियां : आज बेटियों को भी बेटों के ही समान प्रत्येक क्षेत्र में नौकरियों के समान अवसर प्राप्त हैं. बोर्ड परीक्षा परिणाम आने पर बेटियां प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. निर्मला सीतारमण, हिमा दास, मिताली राज, इरा सिंघल, पी टी उषा, मैरी कौम जैसी अनेक हस्तियां आज विभिन्न क्षेत्रों में अपनी काबिलीयत का लोहा मनवा रही हैं. ऐसे उदाहरण समाज की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत का काम करते हैं. आज बेटियां केवल शादी कर के घर बसाना नहीं, बल्कि अपने कैरियर को भी प्राथमिकता दे रही हैं, साथ ही, अभिभावक भी बेटियों को आत्मनिर्भर बना कर ही उन्हें विवाहबंधन में बांधना चाहते हैं.

बेटियां नहीं हैं पराई : कुछ समय पहले तक कहा जाता था कि बेटियां पराई होती हैं, उन्हें पढ़ालिखा कर बड़ा करो और फिर दूसरे परिवार में विदा कर दो. इस की अपेक्षा आज बेटियां मातापिता का अभिमान हैं. उन के बुढ़ापे की लाठी हैं. कितने ही मातापिता आज अपनी बेटियों के परिवार के साथ रहते हैं. अपने मातापिता के लिए आज की शिक्षित, आत्मनिर्भर बेटी कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है. बेटे द्वारा दी गई मुखाग्नि से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह मिथक अब टूट रहा है और बेटियां अपने मातापिता की अर्थी को कंधा देने से ले कर उन की चिता को मुखाग्नि तक दे रही हैं. सो, बेटियां अब किसी भी कीमत पर पराई नहीं रहीं.

अंतर्जातीय विवाह : लड़के वालों की तुनकमिजाजी को न सहने का सर्वप्रमुख कारण अंतर्जातीय विवाह है. पहले जहां दूसरी जाति में विवाह करने वाले लड़केलड़की को समाज से निष्कासित कर दिया जाता था और उन के मातापिता को हेय दृष्टि से देखा जाता था वहीं अब इस सामाजिक बदलाव को खुलेआम स्वीकार किया जाने लगा है. अब मातापिता स्वयं अपने बच्चों का अंतर्जातीय विवाह कर रहे हैं. वे अब जाति की अपेक्षा शिक्षा, नौकरी और परिवार को प्राथमिकता देने लगे हैं.

भावनात्मक जुड़ाव : 3 बेटों और एक बेटी की मां अविका मिश्रा कहती हैं, ‘‘3 बेटों की अपेक्षा हमारी बेटी हमें और हमारी जरूरतों को बहुत अच्छी तरह सम झती है.’’

वास्तव में बेटियों को अपने मातापिता से अत्यधिक भावनात्मक लगाव होता है. यदि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो बेटियां अपने मातापिता की बेटों से अधिक चिंता और देखभाल करती हैं. मातापिता भी बेटों की अपेक्षा अपने बेटियों से अधिक खुल कर बातचीत कर पाते हैं.

वास्तव में आज की बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं. आज बेटे और बेटी के पालनपोषण में किसी प्रकार का भेद नहीं किया जाता है. उन की शिक्षा पर होने वाला खर्च समान है. वे अपने मातापिता की देखभाल करने में पूरी तरह सक्षम हैं. फिर क्यों लड़के वालों को उच्चतर सम झा जाए और क्यों लड़की को रिजैक्ट और ऐक्सैप्ट करने का अधिकार केवल उन्हें ही दिया जाए? क्यों शुरू में ही उन की बेबुनियादी बातों को माना जाए और क्यों उन की तुनकमिजाजी को स्वीकार किया जाए.

विवाह संबंध केवल वरवधू का ही नहीं, बल्कि 2 परिवारों का भी मिलन होता है, जिसे आपसी सुखद व्यवहार और मेलमिलाप से आदर्श बनाया जाना चाहिए. आज आवश्यकता इस बात की है कि लड़के के मातापिता और लड़का दोनों ही लड़की के मातापिता को उचित सम्मान दें और लड़का उन की भी अपने मातापिता की ही भांति देखभाल करें. तभी लड़की भी अपनी ससुराल वालों को उचित सम्मान दे पाएगी, क्योंकि लड़के के मातापिता की ही भांति उस के मातापिता भी उस की ही जिम्मेदारी हैं.

आदिपुरुष : एक फिल्म अजब गजब

देश के सबसे महंगे अभिनेता प्रभाष की आदिपुरुष के साथ एक अद्भुत संयोग देश के सामने आया है वह है, चाहे भारतीय जनता पार्टी हो अथवा अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप या फिर कांग्रेस सभी ने अपने अपने तरीके से इसका विरोध किया है. ऐसा प्रतीत होता है मानो  सभी नेता आज  राम और हनुमान का स्वयं को सबसे बड़ा अनुयाई  और भक्त दिखाना चाहता है.

गौरतलब है कि आज केंद्र में भाजपा की सरकार है इसके बावजूद सेंसर बोर्ड से  आदिपुरुष को अनुमति मिल गई है तो फिर भाजपा का विरोध दर्ज कराना अपने आप मे कई सवाल खड़े करता है. भाजपा लंबे समय से स्वयं को देश के हर धार्मिक मसले पर प्रवक्ता मानती रही है अब जब भाजपा की ही केंद में सरकार है और कथित रूप से बजरंगबली की अवमानना आदिपुरुष में हो रही है तो फिर दोषी कौन है. इस सब के बाद जिस तरह देश और नेपाल में आदिपुरुष के कुल पांच डायलॉग का विरोध हो रहा है फिल्म के निर्माता निर्देशक और लेखक ने इन्हे परिवर्तन करने का आश्वासन दे दिया है.

नेपाल में तो आदिपुरुष के बरक्स हिंदी की सारी फिल्मों को सोमवार 19 जून2023 से नहीं दिखाने का ऐलान कर दिया गया है. नेपाल को आपत्ति है सिर्फ एक डायलॉग  से ,  इसमें कहा गया है  जानकी भारत की बेटी है…! अब फिल्म निर्माता-निर्देशक इस डायलॉग को भी बदलने जा रहे है. दरअसल, विरोध करने वाले सिर्फ नाम के लिए विरोध कर रहे हैं या फिर अपनी अध कचरी बुद्धि को प्रदर्शित कर रहे हैं . सच्चाई यह है की राम कथा के सैकड़ों संस्करण है और सब में भिन्नता है. कहा भी जाता है वाल्मीकि के राम अलग तुलसीदास के बिल्कुल अलग गांधी के ग्राम अलग तो कबीरदास के बिल्कुल अलग, इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के राम अलग हैं तो कांग्रेस के राम अलग। सभी में विविधता है।

ऐसे में आदिपुरुष कोई राम  की अधिकृत कहानी नहीं  कहती, बल्कि यह सिर्फ एक फेंटेसी मात्र है. जिसका मकसद मनोरंजन है.

भूपेश बघेल भी मैदान में

इस सबके बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में आदि पुरूष फिल्म को बैन करने के संकेत दिए हैं. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया  आदिपुरुष के बजरंग बली से बजरंग दल की भाषा बुलवाई गई है.

इस तरह भूपेश बघेल ने एक बड़ी बात कही है जिसके पीछे की मंशा यह है कि भारतीय जनता पार्टी का सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जानबूझकर के इस फिल्म को रिलीज होने दिया है और देश समाज को माहौल हो विषाक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदि पुरुष के रिलीज होने के पश्चात  आरोप लगाया कि फिल्म “आदिपुरुष” में  राम और  हनुमान की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा  अगर लोग मांग करते हैं तो कांग्रेस सरकार राज्य में इसे बैन करने पर विचार कर सकती है. उन्होंने आरोप लगाया कि फिल्म में डायलॉग आपत्तिजनक और अशोभनीय हैं.

 भाजपा : चित भी मेरी पट भी मेरी

एक तरफ भाजपा फिल्म को रिलीज कराती है दूसरी तरफ विरोध करती है याने चित भी मेरी पट भी मेरी.भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई ने आदिपुरुष के ‘विवादित’ दृश्यों और संवादों की पुनः समीक्षा किए जाने तक ‘आदिपुरुष’ के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की गई है.

यही नहीं अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी  और शिवसेना (यूबीटी) सहित अन्य दलों ने भी फिल्मकार ओम राउत की फिल्म में भगवान हनुमान की प्रस्तुति से लोगों की भावनाएं कथित तौर पर आहत करने को लेकर आलोचना की है . भाजपा की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से अनुरोध किया है कि फिल्म के विवादित दृश्यों और संवादों की दोबारा समीक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने ट्वीट किया, ‘फिल्म ‘आदिपुरुष’ का हर ओर विरोध हो रहा है. फिल्म प्रमाणन बोर्ड इस फिल्म का सेंसर सर्टिफिकेट अस्थायी रूप से निलंबित करे.’

बताते चलें ‘आप’ ने भी फिल्म की आलोचना की है और कहा कि भाजपा ऐसे फिल्म का समर्थन कर रही है जिसमें  राम, सीता और हनुमान का अपमान किया गया है. राज्यसभा सदस्य और आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह ने कुछ संवाद पढ़े और उन्हें  राम, देवी सीता और हनुमान के साथ-साथ हिंदू धर्म का अपमान करार दिया

उन्होंने कहा, “फिल्म के डायलॉग घटिया हैं. ऐसे घटिया डायलॉग से हिंदू धर्म की भावनाओं को आहत करने का काम किया है. एक सीन कल्पना के आधार पर है कि माता सीता को छुरी मार दी जाती है. कल्पना के आधार पर क्या कुछ भी दिखा सकते हो. कल्पना के आधार पर रामचरितमानस के आधार को बदल दोगे.”

बीजेपी नेताओं पर निशाना साधते हुए आप सांसद ने आगे कहा, “फिल्म पुष्कर धामी, नरोत्तम मिश्रा, सीएम योगी, शिवराज चौहान, एकनाथ शिंदे, मनोहर लाल खट्टर के आशीर्वाद से बनी है. ये लोग ना राम के हैं, न आम के हैं.

Adipurush : मनोज मुंतशिर को पुलिस ने मुहैया कराई सुरक्षा, जान से मारने की मिली थी धमकी

Adipurush : प्रभास, कृति सेनन और सैफ अली खान स्टारर फिल्म आदिपुरुष लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं। जहां पहले फिल्म में स्टार्स के लुक्स और वीएफएक्स को लेकर विवादों खड़ा हुआ था। तो अब वहीं कुछ डायलॉग और सीन्स को लेकर बवाल मच रहा है। बीते दिन ही अयोध्या के संतों ने आदिपुरुष को बैन करने की मांग की थी। इसके अलावा पालघर में चल रही फिल्म की स्क्रीनिंग को भी बीच में रोक दिया गया था।

वहीं सोशल मीडिया पर भी लोग ‘आदिपुरुष’ (Adipurush) के निर्देशक ओम राउत और लेखक मनोज मुंतशिर (manoj muntashir) को निशाना बना रहे हैं। ऐसे में अब मुंबई पुलिस ने मनोज मुंतशिर को सुरक्षा मुहैया करवाने का फैसला किया है।

लेखक ने बताया था जान को खतरा

दरअसल, मीडिया से बात करते हुए मनोज मुंतशिर ने बताया था कि, फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) के डायलॉग को लेकर लोग उन्हें जिम्मेदार मान रहे हैं। इसी वजह से उन्होंने खुद की जान पर खतरा बताते हुए मुंबई पुलिस से सुरक्षा की मांग की थी, जिसके बाद मुंबई पुलिस ने उन्हें (manoj muntashir) सुरक्षा देने का फैसला किया है। इसके अलावा मुंबई पुलिस ने लेखक को आश्वासन भी दिया है कि वह इस मामले की छानबीन कर रही है।

Adipurush : आदिपुरूष के डायरेक्टर और लेखक के बीच छिड़ी जंग! जानें क्या है पूरा मामला

मनोज ने दी थी सफाई

बता दें कि, बीते दिन मनोज मुंतशिर ने ट्वीट कर सफाई भी दी थी। सोशल मीडिया पर पोस्ट कर उन्होंने कहा था कि मैंने और फिल्म (Adipurush) के निर्माता-निर्देशक ने फैसला लिया है कि जो संवाद दर्शकों को आहत कर रहे हैं, हम उनमें संशोधित करेंगे और इसी सप्ताह वो फिल्म में शामिल किए जाएंगे। हालांकि तमाम समालोचना के बीच फिल्म ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर ताबडतोड़ कमाई की थी। रीलिज के पहले दिन मूवी ने 140 करोड़ का आंकड़ा पार किया हैं।

मुझे मेरी कलीग की बहन अच्छी लगती है और मैं उसके साथ संबंध बनाना चाहता हूं, क्या ऐसा करना सही होगा?

सवाल
मैं बहुत ही अच्छी पोस्ट पर काम करता हूं. मेरी उम्र 32 वर्ष है. मेरा एक सहकर्मी है जो उम्र में भले ही काफी बड़ा है लेकिन उस से मेरी काफी बनती है. मेरा उस के घर में काफी आनाजाना है. उस के घर में उस की मौसी की लड़की रहती है जो जौब कर रही है. उसे मैं जब भी देखता हूं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं उसे चाहने लगा हूं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
वैसे इस में कोई बुराई नहीं है कि आप जिसे चाहने लगे हैं उस से शादी करने के बारे में सोच रहे हैं. लेकिन शादी की बात आगे बढ़ाने से पहले अच्छी तरह सोच लें कि आप उस लड़की के बारे में व उस के परिवार के बारे में कितना जानते हैं. अगर लड़की ने आप में रुचि दिखाई है तो ठीक है वरना उस मामले को ठंडा पड़ा रहने दें.

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पहले मिलन को कुछ इस तरह से बनाएं यादगार

अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास: वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग: पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

प्यार भरा उपहार: पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए आप एकदूसरे के लिए गिफ्ट भी खरीद सकते हैं. जो आप दोनों का पर्सनलाइज्ड फोटो फ्रेम, की रिंग या सैक्सी इनरवियर भी हो सकता है. ऐसा कर के आप माहौल को रोमांटिक और उत्तेजक बना सकती हैं.

खुल कर बात करें: पहले मिलन को रोमांचक और यादगार बनाने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करें. अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें. अपने मन में उठ रहे सवालों के हल पूछें. एकदूसरे की पसंदनापसंद पूछें. जितना हो सके पौजिटिव रहने की कोशिश करें.

सैक्स सुरक्षा: संबंध बनाने से पहले सैक्सुअल सुरक्षा की पूरी तैयारी कीजिए. सैक्सुअल प्लेजर को ऐंजौय करने से पहले सैक्स प्रीकौशंस पर ध्यान दें. आप का जीवनसाथी कंडोम का प्रयोग कर सकता है. इस से अनचाही प्रैगनैंसी का डर भी नहीं रहेगा और आप यौन रोगों से भी बच जाएंगी.

सैक्स के दौरान

 – सैक्सी पलों की शुरुआत सैक्सी फूड जैसे स्ट्राबैरी, अंगूर या चौकलेट से करें.

– ज्यादा इंतजार न कराएं.

– मिलन के दौरान कोई भी ऐसी बात न करें जो एकदूसरे का मूड खराब करे या एकदूसरे को आहत करे. इस दौरान वर्जिनिटी या पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के बारे में कोई बात न करें.

– संबंध के दौरान कल्पनाओं को एक तरफ रख दें. पोर्न मूवी की तुलना खुद से या पार्टनर से न करें और वास्तविकता के धरातल पर एकदूसरे को खुश करने की कोशिश करें.

– बैडरूम में बैड पर जाने से पहले अगर आप घर में या होटल के रूम में अकेली हों तो थोड़ी सी मस्ती, थोड़ी सी शरारत आप काउच पर भी कर सकती हैं. ऐसी शरारतों से पहले सैक्स का रोमांच और बढ़ जाएगा.

– सैक्स संबंध के दौरान उंगलियों से छेड़खानी करें. पार्टनर के शरीर के उत्तेजित करने वाले अंगों को सहलाएं और मिलन को चरमसीमा पर ले जा कर पहले मिलन को यादगार बनाएं.

– मिलन से पहले फोरप्ले करें. पार्टनर को किस करें. उस के खास अंगों पर आप की प्यार भरी छुअन सैक्स प्लेजर को बढ़ाने में मदद करेगी.

– सैक्स के दौरान सैक्सी टौक करें. चाहें तो सैक्सुअल फैंटेसीज का सहारा ले सकती हैं. ऐसा करने से आप दोनों सैक्स को ज्यादा ऐंजौय कर पाएंगे. लेकिन ध्यान रहे सैक्सुअल फैंटेसीज को पूरा के लिए पार्टनर पर दबाव न डालें.

– संयम रखें. यह पहले मिलन के दौरान सब से ज्यादा ध्यान रखने वाली बात है, क्योंकि पहले मिलन में किसी भी तरह की जल्दबाजी न केवल आप के लिए नुकसानदेह होगी, बल्कि आप की पहली सैक्स नाइट को भी खराब कर सकती है.

सैक्स के दौरान बातें करते हुए सहज रह कर संबंध बनाएं. तभी आप पहले मिलन को यादगार बना पाएंगे. संबंध के दौरान एकदूसरे के साथ आई कौंटैक्ट बनाएं. ऐसा करने से पार्टनर को लगेगा कि आप संबंध को ऐंजौय कर रहे हैं.

कब्‍ज, गैस और बदहजमी से चाहते हैं छुटकारा तो इन बातों पर दें ध्यान

जरूरी है स्वस्थ भोजन

हैल्दी लाइफ के लिए स्‍वस्‍थ आहार आवश्‍यक होता है, क्‍योंकि स्‍वस्‍थ खानपान न सिर्फ आप की पाचनक्रिया को तंदुरुस्त रखता है, बल्कि यह आप को कई रोगों से बचाने में भी मददगार साबित होता है. लेकिन आज की जीवनशैली के चलते आप भले ही हर रोज हैल्‍दी फूड खाते हों, मगर कई और कारणों से आप का डाइजेशन खराब हो ही जाता है.

इस के कारण अकसर लोगों को कब्‍ज या गैस की शिकायत रहती है. कई बार भोजन के बाद की जाने वाली कुछ खराब आदतों की वजह से भी आप का डाइजेशन बिगड़ जाता है, तो आइए, जानते हैं कि हमें भोजन के बाद कौन सी आदतें अपनानी चाहिए, जिस से हमारा डाइजेशन लंबे समय तक ठीक रहे.

सौंफ और मिश्री खाएं

सौंफ सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. यह मुंह की दुर्गंध तो दूर करती ही है, आंतों की सफाई भी करती है. रोजाना खाना खाने के बाद 1 चम्‍मच सौंफ और उस में कुछ दाने मिश्री के मिला कर खाने चाहिए. इस से पाचनक्रिया अच्छी रहती है.

नीबू पानी पीएं

खाना खाने के तुरंत बाद पानी न पीएं, बल्कि  30 मिनट बाद नीबू पानी पीएं. हमेशा नॉर्मल पानी ही पीएं. यह आप की पाचनक्रिया में सुधार करता है. इस से कब्‍ज और गैस जैसी समस्‍या से नजात मिल जाती है. नीबू पानी आप के शरीर से विषैले पदार्थों को भी बाहर निकालने में मदद करता है.

खाने के बाद हमेशा वॉक करें  

अकसर बहुत से लोग खाना खाते ही बिस्‍तर पर लेट जाते हैं, जिस की वजह से भोजन ठीक से नहीं पच पाता है. आप को खाना खाने के 5 मिनट बाद 10 से 15 मिनट वॉक जरूर करनी चाहिए. इस से डाइजेशन ठीक रहता है और एसिडिटी की समस्‍या नही होती.

खाने के बाद कुल्‍ला जरूर करें

खाना खाजने के बाद हमेशा कुल्‍ला करें. ऐसा करने आप की दांतों में फंसा भोजन बाहर निकल जाता है, क्‍योंकि मुंह में मौजूद भोजन के कण की दुर्गंध, दांतों में कीड़े लगने की वजह बन सकते हैं.

पेट की मसाज करें

खाना खाने के बाद हल्‍के हाथों से पेट की मसाज करें. इस से आप का डाइजेशन अच्छा रहता है. इस के लिए आप अपने हाथों से पेट पर हाथ रखते हुए हल्‍के से पहले क्‍लॉक वाइस उस के बाद एंटी क्‍लॉक वाइस में 10-10 बार घुमाना है. इसे आप 3 से 4 बार करें. इस से आप का पाचनतंत्र बेहतर होता है.

खाना खाने के बाद  क्या न करें

*‌खाने के तुरंत बाद ब्रश कभी न करें.
*‌
खाना खाने के बाद चाय या कॉफी का सेवन न करें.
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धूम्रपान कभी न पीएं.
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खाने के एक घंटे तक कोई फल न खाएं.

अकेले रह कर भी आप ऐसे मस्त रह सकते हैं

अभिनेता मनोज वाजपेयी की एक फिल्म है ‘गली गुलियां’, जो पुरानी दिल्ली की पतलीसंकरी गलियों में प्रेमीप्रेमिका की तरह सटे घरों में रहने वालों की उस घुटनभरी जिंदगी के दीदार कराती है, जहां अंधेरा ज्यादा है और रोशनी कम. जहां रिश्तों में आई सीलन उघड़ कर सामने आती है और साथ ही हम मिलते हैं फिल्म के मुख्य किरदार ‘खुद्दूस’ से जो इतना अकेला है कि उसे दूसरों की जिंदगी में झांकने की बीमारी हो जाती है.

मनोज वाजपेयी ने ‘खुद्दूस’ को इतनी बारीकी से जिया है कि क्या कहने. पर जब उन्होंने अपने इस खड़ूस किरदार के बारे में अजीब सा खुलासा किया तो लगा कि जिंदगी में अकेलापन किसी घुन से कम नहीं जो धीरेधीरे अच्छेभले इंसान को चलताफिरता भूत बना देता है. वह सस्ता नशा करता है, बीड़ी फूंकता है और उस के खानेपीने का भी कोई ठिकाना नहीं होता है. ऐसा नहीं है कि वह काम नहीं कर सकता, पर दूसरों पर पलना उस की आदत सी बन जाती है.

दरअसल, मनोज वाजपेयी ने इस फिल्म का पोस्टर शेयर करते हुए एक इंस्टग्राम पोस्ट लिखी थी. उस में उन्होंने बताया था कि इस फिल्म में काम करते समय वे अपना मानसिक संतुलन खोने के कगार पर पहुंच गए थे. तो क्या यह मान लिया जाए कि जो इंसान अकेला है, वह कभी खुश नहीं रह सकता? उसे दुनिया की सुखसुविधाएं भोगने का हक नहीं है?

जी नहीं, ऐसा कतई नहीं है. अकेलापन कोई सजा नहीं है, बल्कि यह तो मजा है, जिंदगी अपने लिहाज से जीने का अंदाज है. फरीदाबाद के सैक्टर 31 में अमन नाम का एक इंजीनियर रहता है. उम्र 41 साल. शादी के झमेले में नहीं फंसा, पर अपने घर को संवार कर रखने की कला में माहिर है. वह 2 बैडरूम के फ्लैट में रहता है. कोरोना के बाद से वर्क फ्रौम होम ज्यादा करता है, पर अगर उस के घर में कभी जाएंगे तो लगेगा ही नहीं कि वह किसी अकेले का घर है.

दरअसल, जिस तरह का भारतीय समाज है, वहां किसी अकेले के रहने पर शक करने वालों की कमी नहीं होती. पर अमन अलग ही मिट्टी का बना है और उस के घर में जा कर जो अपनापन मिलता है, वह बेमिसाल है.

अमन ने अपने किराए के उस घर को करीने से सजाया हुआ है. उसे बागबानी करने का शौक है और उस के ड्राइंगरूम में सजे पौधे उस की चौइस का बेहतरीन उदाहरण हैं. नाग पौधा, चीनी सदाबहार पौधा, रबड़ का पौधा, ऐलोवैरा आदि प्लांट्स उस के ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाते हैं. साफसुथरे सोफे, क्लीन सैंटर टेबल का होना यह जता देता है कि अमन कितना सफाईपसंद है.

अमन के घर की एक और खासीयत है- रसोई. साइज में छोटी है, पर हर शैल्फ में जरूरत का पूरा सामान दिखता है.

एक बार अमन के एक दोस्त ने उस से सवाल किया था कि किचन में इतना सामान भरने की जरूरत क्या है? इस पर अमन ने उसी से सवाल कर दिया, ‘क्यों नहीं? अरे, तुम जैसे लोगों को लगता है कि कोई अकेला रह रहा है, तो वह क्या ही रोजरोज नहाता होगा. उस के बैडरूम का हाल तो ऐसा होगा जैसे तीसरा वर्ल्ड वार यहीं हुआ था. मतलब, हम जैसों को तो रहने का सलीका ही नहीं आता होगा, फिर किचन में क्या ही सामान भरेंगे.

‘पर ऐसा नहीं है बंधु. मैं घरवाली नहीं लाया तो इस का मतलब यह नहीं है कि मुझे घर संवारना नहीं आता. फिर दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जो किन्हीं दूसरी वजह से अकेले हैं. किसी का जीवनसाथी अब इस दुनिया में नहीं है, तो कोई तलाकशुदा है. इस का मतलब यह तो नहीं है कि वे सब बेहूदा ढंग से रहना शुरू कर दें?

‘मैं रहता भले ही अकेला हूं, पर पूरी तरह सामाजिक हूं. मेरे घर में कामवाली आती है. रोज सुबह अखबार वाला न्यूजपेपर फेंक कर जाता है. दूध वाला भी हर तीसरे दिन दूध दे जाता है. मैं अपनी आरडब्ल्यूए का सक्रिय सदस्य हूं और एक जिम की मैंबरशिप भी मेरे पास है. मैं ट्रैवलिंग करता हूं, मूवी देखता हूं और हर वह काम करता हूं, जो मुझे बिजी रखता है.’

अमन की बात का उस के दोस्त के पास कोई जवाब नहीं था. अमन की अच्छी सेहत और अकेलेपन के तनाव से बचे रहने की वजह यह थी कि वह अपनी जिंदगी को भरपूर जी रहा था.

पर जापान जैसे विकसित देश में लोगों पर अकेलापन हावी होता दिख रहा है. इस बात में कोई दोराय नहीं है कि कोरोना महामारी के बाद लोगों में अकेलापन बढ़ा है और जापान में तो ‘हिकिकोमोरी’ या ‘शटइंस’ जैसी जीवनशैली चलन में आ गई है, जो जवानी फूटने से ले कर बुढ़ापे तक बड़े पैमाने पर वहां के समाज पर असर डाल रही है.

इस अवस्था में लोग किराने का सामान खरीदने या महज शौक पूरा करने के लिए घरों से बाहर जाते हैं या फिर गंभीर मामलों में ही घर से बाहर निकलते हैं.

एक सर्वे में यह पाया गया कि 15 से 64 साल के बीच के तकरीबन 2 फीसदी लोगों ने कुछ हद तक समाज से किनारा कर लिया है. इन की तादाद तकरीबन साढ़े 14 लाख है.

इसी सर्वे के मुताबिक, पूछे गए सवालों के जवाब देने वाले लोगों ने कहा कि उन की खुद को समाज से अलग करने की वजह नौकरी छोड़ना थी, इस के ठीक बाद कोविड महामारी आ गई थी, जिसे 15-39 आयुवर्ग के 18 फीसदी और 40-64 आयुवर्ग के 20 फीसदी लोगों ने एकांत में रहने की अहम वजह बताया.

एकांत में रहने की यह आदत लोगों को शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान कर सकती है. उन में दूसरों से अलगाव की भावना पनपने लगती है. वे सामने वाले से बात करने से बचते हैं. उन्हें अपने इमोशन दबाने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें घर के दायरे में ही कैद कर के रख देती है.

भारत जैसे देश में तो किसी को अकेले रहते देख कर उसे अजीब सी निगाहों से तोला जाता है. अगर वह कोई शादीशुदा औरत हो और अपनी नौकरी के चलते परिवार से अलग कहीं दूर किराए के मकान में रह रही हो तो आप मामले की गंभीरता को समझ सकते हैं.

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की रहने वाली टीचर प्रियंवदा शर्मा को कुछ साल तक अकेले पोंटा साहिब इलाके में रहना पड़ा था. बेशक उन के सामने कई तरह की मुश्किलें थीं, पर उन्होंने अपने अकेलेपन को भरपूर एंजौय किया.

प्रियंवदा शर्मा ने बताया, “बतौर शिक्षिका मेरी नियुक्ति जिला सिरमौर के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, जामनीवाला में हुई. परिवार से दूर अकेले रहने का यह मेरा पहला और अनोखा अनुभव था. पढ़नेपढ़ाने में ही नहीं, बल्कि अपने कमरे में अपनी बादशाहत के साथ अकेले रहना चुनौतीपूर्ण भी था.

“मेरे लिए एक विकल्प बाहर खाना खाने का था, लेकिन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए यह उचित नहीं लगा, इसलिए अपने लिए खाना बनाना, बरतन धोना, लौंड्री में कपड़े न दे कर खुद धोना मेरा बैस्ट टाइमपास रहा. शारीरिक व्यायाम के साथ आत्मनिर्भर बनने की ओर उठाए गए कदम बेहतर जान पड़े.

“इस के बाद मेरे लिए अकेले रहना आनंदमय अनुभव लगा. साथियों से बातचीत की तो उन का मिलने आना. यह व्यस्तता को बढ़ाने वाला तो था, मगर इस से मिली प्रसन्नता से मन हमेशा प्रफुल्लित रहता था. अकेले रहने के इस अनुभव ने इतना आत्मनिर्भर बना दिया कि मैं ने वहीं स्कूटी चलाना भी सीखा और अपनी नई एक्टिवा खरीद कर घूमने का खूब आनंद लिया.”

याद रखिए, अकेलापन अगर आप को आनंदित करने लगे तो वह आप की आत्मनिर्भरता की पहली सीढ़ी बन सकता है, जो आप के जीवन को 360 डिगरी बदल देता है, इसलिए अकेले रहिए, मस्त रहिए.

अब पुरुषों के साथ बढ़ रहा है अन्याय

दिल्ली के आत्माराम सनातन धर्म कालेज की आर्ट्स की स्टूडैंट आयुषी भाटिया ने पिछले एक साल में 7 रेप केसेस अलगअलग पुलिस स्टेशनों में दर्ज कराए लेकिन ये सारे फौल्स रेप केसेस थे. सख्ती करने पर पुलिस के सामने आयुशी ने स्वीकार किया कि वह लड़कों पर रेप के झूठे आरोप लगा कर उन से जबरन पैसे वसूलती थी.

उस ने बताया कि कैसे वह जिम, इंस्टा, औनलाइन डेटिंग ऐप पर 20 से 22 साल के लड़कों से दोस्ती करती और फिर उन से मिलती थी. लड़के के साथ फिजिकल रिलेशनशिप और किसी के साथ प्यार के वादे के बाद वह उस पर रेप का आरोप लगा दिया करती थी. सब  से अजीब बात तो यह कि उस ने एक साल में 7 झूठे रेप केसेस पुलिस स्टेशनों में दर्ज कराए.

वहीं मेरठ की एक महिला ने सरकारी अस्पताल से फर्जी मैडिकल सर्टिफिकेट बनवा कर अपने पति के खिलाफ थाने में मुकदमा दर्ज करवाया. महिला की बातों में आ कर पुलिस ने उस के पति को गिरफ्तार भी कर लिया लेकिन बाद में इस मामले की जांच में पता चला कि महिला का किसी गैरमर्द से नाजायज संबंध था और जिस के लिए पति उसे मना करता था. अपने पति को रास्ते से हटाने के लिए महिला ने यह योजना बनाई और पति को झूठे केस में फंसा कर उसे जेल करवा दिया.

बलात्कार एक घिनौना अपराध तो है ही लेकिन उस से भी ज्यादा घिनौना अपराध यह है कि एक निर्दोष व्यक्ति पर बलात्कारी होने का ठप्पा लग जाना. क्योंकि यहां पर एक निर्दोष व्यक्ति की मानप्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है, साथ में, उस की जिंदगी भी नर्क बन जाती है.

कुछ सालों पहले नई दिल्ली के करावल नगर के इब्राहिम खान पर बलात्कार का आरोप लगा था और आरोप भी किसी गैर ने नहीं, बल्कि उस की खुद की सगी बेटी ने लगाया था. संगीन आरोप थे कि उस ने अपनी बेटी का रेप किया जिस से वह गर्भवती हो गई. इस आरोप के बाद इब्राहिम का सामाजिक बहिष्कार तो हुआ ही, उसे जेल भी हुई. वहां जेल में भी उसे कैदियों ने पीटा.

7 साल जेल में रहने के बाद साबित हुआ कि उस की बेटी ने उस पर झूठा इलजाम लगाया था क्योंकि वह बेटी के देह व्यापार में बाधक बन रहा था. बेटी के पेट में जो बच्चा था वह भी उस का नहीं था. अदालत ने इब्राहिम को बेगुनाह साबित होने पर उसे छोड़ तो दिया मगर उस की पूरी दुनिया तबाह हो चुकी थी.

जमीन और घर विवाद में एक महिला ने यह कह कर अपने ससुर और जेठ को धमकाया कि अगर उन्होंने उस की बात नहीं मानी तो वह उन के खिलाफ बलात्कार का केस कर देगी और मजबूरन उन्हें उस महिला की बात माननी पड़ी. दिमापुर, नागालैंड में एक पुरुष को झूठे बलात्कार केस में सरेआम पीटपीट कर बेरहमी से मार दिया गया.

मुहावजे के लिए दर्ज हो रहे झूठे रेप केस

मध्यप्रदेश में सरकारी मुआवजा प्राप्त करने के लिए रेप केस के कई मामले दर्ज कराए गए. हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि अधिकतर केस झूठे और सरकारी मुआवजा लेने के लिए किए गए. दरअसल, एमपी में राज्य सरकार एससी एसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत पीड़ित महिला को 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है.

मामले में एफआईआर होने पर एक लाख और कोर्ट में चार्जशीट पेश होने पर 2 लाख रुपए दिए जाते हैं. यानी 3 लाख रुपए तो सजा होने के पहले ही दे दिए जाते हैं. अगर आरोपी को सजा होती है तो एक लाख रुपए और दिए जाते हैं. सजा न भी तो पहले दिया गया मुआवजा वापस नहीं मांगा जाता. यह प्रावधान केवल एससी एसटी वर्ग के लिए ही है, अन्य को नहीं.

आखिर झूठे रेप केस की अफवाह क्यों उठी

सागर की रहने वाली एक महिला ने एक व्यक्ति पर अपनी बेटी के बलात्कार का मामला दर्ज कराया. जब आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई तब दलित महिला ने ट्रायल कोर्ट में कुबूला कि साधारण झगड़े में उस ने आरोपी पर अपनी नाबालिग बेटी से रेप का झूठा केस दर्ज कराया था. यहां मुआवजे का लालच इस हद तक बढ़ चुका है कि झूठे आरोप लगा कर सरकारी मुआवजा हासिल किया जा रहा है.

यूपी के बरेली की नेहा गुप्ता और सफिया नाम की 2 लड़कियां पैसे के लिए पुरुषों को फंसाने का रैकेट चला रही थीं. कई लड़कों पर बलात्कार के झूठे केस कर के पैसे हड़पने के बाद पकड़ी गईं.

अकसर देखने में भी आता है कि घरेलू झगड़ों को बढ़ाचढ़ा कर अपराध बना दिया जाता है. कई मामलों में पड़ोसी के साथ झगड़ा नाली को ले कर शुरू होता है और अंत में वह रेप के मुकदमे में तबदील हो जाता है. कई मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि एक व्यक्ति अपनी उधारी के पैसे मांगने गया तो उसे रेप जैसे घिनौने अपराध में फंसा दिया गया. इस के अलावा धन, जमीन जायदाद हड़पने, रंजिश निकालने व परेशान करने के लिए झूठे केस बनाए जाते हैं. कोर्टकचहरी में मुकदमों की भरमार है.

महिलाओं की सुरक्षा के लिए बलात्कार, दहेज आदि कानून जरूरी हैं. लेकिन कहीं न कहीं इन कानून को हथियार बना कर कुछ महिलाएं उन का दुरुपयोग भी कर रही हैं. ऐसे केसों में जो पुरुष फंसे या फंसाए जा रहे हैं उन की इज्जत, समय और जो पैसों की बरबादी होती है उस की भरपाई कौन करेगा? कानून का आज जो दुरुपयोग किया जा रहा है, उसे रोकना बहुत जरूरी है, वरना निर्दोष पुरुष बेवजह झूठे केसों में फंसते जाएंगे.

दुनियाभर में केवल महिलाओं और बच्चों के साथ ही नहीं, बल्कि पुरुषों के साथ भी अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं. सिर्फ भारत देश में हर साल लगभग 65 हजार से अधिक शादीशुदा पुरुष खुदकुशी कर लेते हैं, जिस का कारण उन पर दहेज, घरेलू हिंसा, रेप जैसे झूठे मुकदमों का दर्ज होना है.

लोगों की एक मानसिकता कि पुरुष ताकतवर होते हैं इसलिए शोषण जैसे शब्द उन के लिए नहीं बना है और उन के साथ कोई क्रूरता कर ही नहीं सकता. लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2015 में लगभग 1,33,623 लोगों ने आत्महत्या की थी. जिन में 91,528 यानी 68 फीसदी पुरुष और बाकी 42,088 महिलाएं थीं. उन 91,528 पुरुषों में से 24,043 ऐसे पुरुष थे जिन्होंने पारिवारिक मामलों से तंग आ कर आत्महत्या की थी. जबकि 67,485 पुरुषों ने मानसिक शोषण और फर्जी पुलिस केस से परेशान हो कर आत्महत्या करने जैसा कदम उठाया था.

बलात्कार की परिभाषा, जहां एक महिला के साथ उस की इच्छा के विरूद्ध, उस की सहमति के बिना, जबर्दस्ती गलत बयानी या धोखाधड़ी द्वारा या ऐसे समय में जब वह नशे में थी ठगी गई हो या अस्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य की हो और किसी भी मामले में, यदि वह 18 साल से कम उम्र की हो, बलात्कार माना जाता है. लेकिन कुछ महिलाएं अपने लिए बनाए गए कानून का फायदा उठा कर पुरुषों को बदनाम करने का काम कर रही हैं.

घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष भी

घरेलू हिंसा और शोषण की बात वैसे तो घर की चारदीवारी से बहुत मुश्किल से बाहर आ पाती है, अगर आती भी है तो अमूमन समझा जाता है कि पीड़ित महिलाएं ही होंगी. लेकिन कई बार पुरुष भी चुप रह कर सबकुछ झेलते हैं. शर्मिंदगी, समाज के डर के कारण वे अपना दर्द बयां नहीं कर पाते हैं और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं.

हौलीवुड सुपरस्टार जौनी डेप के साथ भी यही हुआ कि पत्नी के हाथों घरेलू हिंसा के शिकार होते हुए भी वे चुप रहे कि लोग और समाज उन के बारे में क्या कहेंगे. जौनी डेप की एक्स वाइफ एंबर डेप ने उन पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए कहा था कि नशे की हालत में डेप उस का यौन उत्पीड़न करते हैं और उसे मारने की धमकी देते हैं.

एम्बर हर्ड की तरफ से उन की डाक्टर ने भी गवाही दी थी कि शराब के नशे में जौनी उस के साथ जबरन संबंध बनाने की कोशिश करते हैं और उस के साथ मारपीट भी करते हैं. डाक्टर ने गवाही में यह भी कहा कि एक बार जौनी इतना हिंसक हो गए थे कि वे एंबर के प्राइवेट पार्ट में कोकीन ढूंढने की कोशिश करने लगे थे. मगर तमाम गवाहों, सुबूतों, वीडियो, औडियो व सैकड़ों मैसेज को खांगालने के बाद यही पता चला कि जौनी डेप पर लगाए गए सारे इलजाम झूठे थे.

बीते साल कोरोना वायरस में पूरे देश में लौकडाउन के चलते लोग अपनेअपने घरों में कैद हो कर रह गए थे. उस दौरान घरेलू हिंसा के मामले में काफी बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन उस दौरान सिर्फ महिलाएं ही घरेलू हिंसा की शिकार नहीं हुईं, बल्कि कई पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार हुए थे.

यह बात अलग है कि भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सर्वेक्षण नहीं हुआ जिस से इस बात का पता चल सके कि घरेलू हिंसा में शिकार पुरुष की तादाद कितनी है. लेकिन कुछ गैर संस्थान इस दिशा में जरूर काम कर रही हैं.

‘सेव इंडिया फैमिली फाउंडेशन’ और ‘माई नैशन’ नाम की गैरसरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में 90 फीसदी से कहीं ज्यादा पति 3 साल के रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके होते हैं. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पुरुष जब अपनी शिकायतें पुलिस या फिर किसी और प्लेटफौर्म में करना चाहते हैं तो लोगों को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ, बल्कि और वे हंसी के पात्र बन गए.

उत्तरी इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में रिसर्चर एलिजाबेथ बेट्स बताती हैं कि समाज पुरुषों को अपराधी मनाने में बिलकुल भी देर नहीं लगाता, लेकिन उन्हें पीड़ित मानने में उसे बड़ी दिक्कत होती है. वे कहती हैं, “टीवी पर कौमेडी शो में कई बार लोगों को हंसाने के लिए पुरुष पर अत्याचार होते दिखाया जाता है. इसलिए किसी महिला के हाथों पुरुष की पिटाई होते देख हमारा समाज हंसता है. जिस का हिंसा के अकसर पीड़ितों पर बुरा असर पड़ता है.”

कई बार इस से जुड़ी शर्मिंदगी और मजाक उड़ाए जाने के डर से पुरुष सामने नहीं आते,  हिंसा झेलते हैं और मदद मांगने में शरमाते हैं. बेट्स की रिसर्च दिखाती है कि समाज में इसे जिस तरह से देखा जाता है उस का असर घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों पर पड़ता है. ऐसे पीड़ितों में हिंसा झेलने के कारण कई लौंग टर्म मानसिक और शारीरिक समस्याएं सामने आती हैं.

एक स्टडी कहती है कि जीवन में कभी न कभी अपने पार्टनर के हाथों हिंसा झेलने में महिलाओं और पुरुषों की तादाद लगभग बराबर है. हालांकि, गंभीर हिंसा के मामले पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले थोड़े कम होते हैं.

हमारे देश में जहां हर 15 मिनट पर एक रेप की घटना दर्ज होती है, हर 5वें मिनट में घरेलू हिंसा का मामला सामने आता है, हर 69वें मिनट में दहेज के लिए दुलहन की हत्या की जाती है और हर साल हजारों की संख्या में बेटियां पैदा होने से पहले मां के गर्भ में ही मार दी जाती हैं, ऐसे सामाजिक परिवेश में दीपिका नारायण भारद्वाज पत्थर पर दूब उगाने का काम करती हैं. उन के सवाल हैं कि क्या मर्द असुरक्षित नहीं हैं? क्या उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता? क्या वे पीड़ित नहीं हो सकते?

दीपिका नारायण कभी इंफोसिस में सौफ्टवेयर इंजीनियर थीं. फिर अपनी नौकरी छोड़ कर वे पत्रकारिता में आ गईं. दीपिका नारायण डाक्युमैंट्री फिल्म भी बनाती हैं. उन्होंने वर्ष 2012 में पुरुष पक्षधर के इस मुद्दे पर रिसर्च शुरू किया था और पाया कि ज्यादातर दहेज प्रताड़ना केस झूठे हैं.

झूठे आरोप में फंसाए जाने के कारण कई बेटों के मातापिता ने बदनामी के डर से आत्महत्या कर ली. वे पहली महिला हैं जिन का कहना है कि भारत में असली प्रताड़ना पुरुष झेल रहे हैं. हालांकि, ऐसी बात नहीं है. महिलाएं भी कम प्रताड़ित नहीं हो रही हैं.

दीपिका नारायण का कहना है कि बदलाव लाना है तो पुरुषों के सहयोग की जरूरत है, न कि कुछ प्रतिशत पुरुषों के दुर्व्यवहार का उदाहरण दे कर पूरी पुरुष जाति को आपराधिक मानसिकता का ठहरा देना है. उन का कहना है कि ऐसे ज्यादातर संगठनों का नेतृत्व कर रही महिलाएं खुद को महान कहलवाने, दूसरों के किए कामों में मुफ्त की स्पोर्टलाइट लेने, कानून, संविधान और सरकार को अपनी तरफ झुकाने (ताकि बैठेबिठाए बिना कुछ किए मुफ्त की रोटी और तारीफ मिलती रहे) आदि के लिए हमारी सामाजिक बनावट में गलत हस्तक्षेप कर रही हैं. उन के हठ से तमाम घर बरबाद हो रहे हैं.

यह बात सच है कि दुनिया की आधी आबादी आज भी हर स्तर पर संघर्ष कर रही है और पितृसत्तात्मक व्यवस्था में उसे वह स्थान नहीं मिल पा रहा है जिस की वह अधिकारिणी है. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि समानता के इस संघर्ष के बीच एक ऐसी धारा बह निकली जहां पुरुषों को सदैव शोषक और महिलाओं को शोषित के रूप में दिखलाया जाता रहा है.

सत्य तो यह है कि ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, प्रेम आदि पुरुष और स्त्री में समान रूप से प्रभावित होते हैं. तो, सिर्फ पुरुष ही शोषक कैसे हो सकता है?

यह कहना गलत नहीं होगा कि आमजन से ले कर हमारी न्यानिक व्यवस्था तक पुरुषों की पीड़ा की उपेक्षा करती है. घरेलू हिंसा, दहेज, यौन उत्पीड़न अधिनियम महिलाओं की सुरक्षा और उन को सम्मानपूर्वक जीवन देने के लिए बनाए गए हैं. ये लैंगिक समानता को स्थापित करने के लिए आवश्यक भी हैं. लेकिन जब एक के साथ न्याय और दूसरे के साथ अन्याय हो तो समाज ही बिखर कर रह जाएगा.

कुछ महिलाएं इन कानूनों को निजी हितों के लिए इस्तेमाल करने लगी हैं. वे इसे पुरुषों से बदला लेने का रास्ता समझने लगी हैं. 2005 में उच्चतम न्यायालय ने इसे कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी थी, वहीं विधि आयोग ने अपनी 154वीं रिपोर्ट में इस बात को स्पष्ट शब्दों में स्वीकारा था कि आईपीसी की धारा 498ए का दुरुपयोग हो रहा है.

आखिर ऐसा क्यों

क्योंकि आज रिश्तों में भौतिकता ने घुसपैठ कर लिया है, रिश्तों में ‘हम’ की जगह ‘मैं’ ने ले लिया है. संबंधों में प्रेम खत्म हो रहा है, जिस के चलते अहं टकराने लगे हैं. महिलाएं शिक्षित हुई हैं तो वे अपने अधिकारों को जनानेसमझने लगी हैं. हालांकि, यह किसी देश की तरक्की के लिए आवश्यक है लेकिन इस के साथ स्वार्थ की पूर्ति के लिए वे कानून से मिले अधिकारों का दुरुपयोग भी करने लगी हैं.

दिसंबर 2017 में एक आदमी की शादी हुई और पत्नी से उस की नहीं बनी. एक साल के भीतर ही ऐसे हालत हो गए कि उसे लगा इस रिश्ते में रहा तो वह मर जाएगा. उस ने पत्नी से अलग होने का फैसला ले लिया और कोर्ट जा कर तलाक की अपील की. वह इंसान 10 साल तक केस लड़ता रहा लेकिन इस दौरान उस पर क्याकुछ गुजरा वह बता नहीं सकता.

पत्नी ने 498ए का केस कर दिया. वह जेल चला गया. लेकिन किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि सच क्या है और कहीं यह मुकदमा झूठा तो नहीं है. किसी तरह उसे कोर्ट से जमानत मिली तो उस ने अपना केस खुद लड़ने का फैसला किया.

फिजियोथेरैपिस्ट की नौकरी छोड़ कर उस ने वकालत की पढ़ाई की ताकि खुद को बेगुनाह साबित कर सके. उस की मेहनत रंग लाई और वह बाइज्जत बरी हो गया और पत्नी से उसे तलाक भी मिल गया. लेकिन उसे पत्नी से आजाद होने की भारी कीमत चुकानी पड़ी. समय और पैसा बरबाद हुआ सो अलग.

ऐसा ही एक मामला है जहां तलाक के बाद भी पत्नी ने पीछा नहीं छोड़ा. वह पति के औफिस जा कर हंगामा शुरू कर देती, उसे गालियां देती, शोर मचाती. आजिज हो कर वह इंसान नौकरी छोड़ कर भाग गया. तो वह उसे व्हाट्सऐप पर मैसेज कर परेशान करने लगी. उसे लोगों से पिटवाया, सिर पर मारा और उसे अगवा करवा कर अपने घर में ले जा कर बंद कर दिया. फिर 100 नंबर पर कौल कर के पुलिस को बुला कर कहा कि वह उस का रेप करने की कोशिश कर रहा था.

रेप केस में उस इंसान को जेल हो गई. जेल से निकल कर जब वह फिर से ज़िंदगी जीने की कोशिश करने लगा तो फिर वह आ धमकी और उसे गालियां बकने लगी. उस इंसान के सब्र का बांध टूट गया और उस ने 24 पन्ने का लंबा सुसाइड नोट लिख कर आत्महत्या कर ली. आखिर उस इंसान की गलती क्या थी, पुरुष होने की? कोर्ट को उस की बात नहीं सुननी चाहिए थी? और क्या समाज का फर्ज नहीं बनता कि वह दोनों का पक्ष सुने?

घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा देने की बात तो करता है पर पुरुषों के साथ होने वाली घरलू हिंसा को महत्त्व नहीं देता. समाज की सोच है कि पुरुष तो घरेलू हिंसा के शिकार हो ही नहीं सकते. जबकि, पूरी दुनिया में करीब 40 फीसदी पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं.

एक अध्ययन के मुताबिक, महिला और पुरुष अगर एक ही अपराध करें तो उस के लिए पुरुषों के जेल जाने की नौबत महिलाओं से 4 गुना ज्यादा होतीत है. इंडियन जरनल औफ कम्यूनिटी मैडिसिन के मुताबिक, 21 से 49 वर्ष के 53 प्रतिशत पुरुषों के साथ सिर्फ इसलिए हिंसा होती है क्योंकि वे पुरुष हैं.

विश्वभर में घरेलू हिंसा से सुरक्षा संबंधी कानून स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं करता. यही कारण है कि जरमनी में पिछले वर्ष 26 हजार पुरुषों ने अपने विरुद्ध हो रही घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कारवाई. वहीं मैक्सिको में घरेलू हिंसा के कुल पीड़ितों ने करीब 25 प्रतिशत पुरुष हैं. लेकिन भारत में पुरुष इसलिए चुप रह कर हिंसा झेलने को मजबूर हैं क्योंकि यहां यह बात सहज विश्वसनीय नहीं होती. अगर कोई पुरुष अपने साथ हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठा भी ले तो उस के पास कानूनी संरक्षण नहीं है जो उस के साथ खड़ा हो सके, सिवा एक लंबी कानूनी प्रक्रिया को अपनाने के.

आज के दौर में दुष्कर्म के अपराध को ले कर बनाए गए कानून का सब से अधिक दुरुपयोग युवतियों द्वारा किया जा रहा है. विशेषतौर पर लिवइन में रहने वाली लड़कियां या प्रेमप्रसंग में असफल होने वाली लड़कियां, जब उन का प्रेमी या साथी विवाह से इनकार कर देता है तो वे, अपने प्रेमी के खिलाफ शादी का झांसा दे कर दुष्कर्म करने का मुकदमा दर्ज करा देती हैं. दिल्ली में ऐसे मामले बहुतायत मात्रा में दर्ज हो रहे हैं.

हर कोई महिलाओं के अधिकार को ले कर लड़ रहा है. लेकिन पुरुषों के लिए कानून कहां है जो महिलाओं द्वारा झूठे इलजाम में फंसाए जा रहे हैं? किसी एक लिए न्याय की लड़ाई इतनी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होनी चाहिए कि दूसरा पक्ष बिना अपराध किए प्रताड़ित और अपमानित होता रहे और बिना अपराध के ही सजा भुगतता रहे. इस बारे में अब कदम उठाने का वक्त आ गया है कि न्याय जैंडर के हिसाब से नहीं, अपराधी के किए अपराध के हिसाब से मिलना चाहिए.

आदिपुरुष: भाजपा की चित भी मेरी पट भी मेरी

Adipurush : अभिनेता प्रभास की गिनती महंगे अभिनेताओं में होती है. हाल ही में रिलीज फिल्म ‘आदिपुरुष’ का विरोध हो रहा है. चाहे भारतीय जनता पार्टी हो अथवा अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी या फिर कांग्रेस सभी ने अपनेअपने तरीके से इस फिल्म का विरोध किया है. ऐसा प्रतीत होता है मानो सभी नेता आज राम और हनुमान का स्वयं को सब से बड़ा अनुयाई और भक्त दिखाना चाहता है.

गौरतलब है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है. इस के बावजूद फिल्म सैंसर बोर्ड से ‘आदिपुरुष’ को अनुमति मिल गई है तो फिर भाजपा का विरोध दर्ज कराना अपनेआप में कई सवाल खड़े करता है. भाजपा लंबे समय से स्वयं को देश के हर धार्मिक मसले पर प्रवक्ता मानती रही है अब जब भाजपा की ही केंद में सरकार है और कथित रूप से बजरंगबली की अवमानना फिल्म ‘आदिपुरुष’ में हो रही है तो फिर दोषी कौन है? इस सब के बाद जिस तरह भारत और नेपाल में ‘आदिपुरुष’ के कुल 5 डायलौग्स का विरोध हो रहा है, फिल्म के निर्मातानिर्देशक और लेखक ने इन्हें परिवर्तन करने का आश्वासन दे दिया है. नेपाल में तो ‘आदिपुरुष’ के बरक्स हिंदी की सारी फिल्मों को सोमवार 19 जून, 2023 से नहीं दिखाने का ऐलान कर दिया गया है. नेपाल को आपत्ति है सिर्फ 1 डायलौग से. इस में कहा गया है,”जानकी भारत की बेटी है…”

अब फिल्म निर्मातानिर्देशक इस डायलौग को भी बदलने जा रहे हैं. दरअसल, विरोध करने वाले सिर्फ नाम के लिए विरोध कर रहे हैं या फिर अपनी अधकचरी बुद्धि को प्रदर्शित कर रहे हैं. मगर सचाई यही है कि राम कथा के सैकड़ों संस्करण हैं और सब में भिन्नता है. कहा भी जाता है कि वाल्मीकि के राम अलग और तुलसीदास के बिलकुल अलग, गांधी के राम अलग तो कबीरदास के बिलकुल अलग. इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के राम अलग हैं तो कांग्रेस के राम अलग. सभी में विविधता है. ऐसे में ‘आदिपुरुष’ कोई राम की अधिकृत कहानी नहीं  कहती, बल्कि यह सिर्फ एक फैंटेसी मात्र है जिस का मकसद मनोरंजन है.

भूपेश बघेल भी मैदान में

इस सब के बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में ‘आदिपुरूष’ फिल्म को बैन करने के संकेत दिए हैं. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि आदिपुरुष के बजरंगबली से बजरंगदल की भाषा बुलवाई गई है.

इस तरह भूपेश बघेल ने एक बड़ी बात कही है जिस के पीछे की मंशा यह है कि भारतीय जनता पार्टी का सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जानबूझ कर के इस फिल्म को रिलीज होने दिया है और देशसमाज के माहौल को विषाक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिल्म ‘आदिपुरुष’ के रिलीज होने के बाद आरोप लगाया,”फिल्म ‘आदिपुरुष’ में  राम और हनुमान की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है. अगर लोग मांग करते हैं तो कांग्रेस सरकार राज्य में इसे बैन करने पर विचार कर सकती है. उन्होंने आरोप लगाया कि फिल्म के डायलौग आपत्तिजनक और अशोभनीय हैं.

डायलौग्स पर विवाद : गलती किस की

फिल्म में राम को बाहुबली मोड में दिखाया गया है, जो हर वक्त क्रोध में रहते हैं. सोने की लंका का रंग काला है. रावण का पुष्पक विमान चमगादड़ से रिप्लैस किया गया है.

  • “तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया है” जैसे डायलौग्स हैं. और तो और इस फिल्म में हनुमान के डायलौग्स टिकटोकर्स को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. मसलन :
  • बोल आया हूं लंका में कि हमारी बहन को उठाने वाले की हम लंका लगा देंगे…
  • कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, जलेगी भी तेरे बाप की…

भाजपा : अब विरोध क्यों

एक तरफ भाजपा फिल्म को रिलीज कराती है, तो दूसरी तरफ विरोध भी करती है यानी चित भी मेरी पट भी मेरी. भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई ने ‘आदिपुरुष’ के विवादित दृश्यों और संवादों की फिर से समीक्षा किए जाने तक फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की है.

यही नहीं, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और शिवसेना (यूबीटी) सहित अन्य दलों ने भी फिल्मकार ओम राउत की फिल्म में हनुमान की प्रस्तुति से लोगों की भावनाएं कथित तौर पर आहत करने को ले कर आलोचना की है. भाजपा की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से अनुरोध किया है कि फिल्म के विवादित दृश्यों और संवादों की दोबारा समीक्षा की जानी चाहिए.

उन्होंने ट्विट करते हुए कहा,”फिल्म ‘आदिपुरुष’ का हर ओर विरोध हो रहा है. फिल्म प्रमाणन बोर्ड इस फिल्म का सैंसर सर्टिफिकेट अस्थायी रूप से निलंबित करे.”

बताते चलें कि आम आदमी पार्टी ने भी फिल्म की आलोचना की है और कहा है कि भाजपा ऐसी फिल्म का समर्थन कर रही है जिस में राम, सीता और हनुमान का अपमान किया गया है. राज्यसभा सदस्य और आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह ने कुछ संवाद पढ़े और उन्हें राम, सीता और हनुमान के साथसाथ हिंदू धर्म का अपमान करार दिया.

उन्होंने कहा, “फिल्म के डायलौग घटिया हैं. ऐसे घटिया डायलौग से हिंदू धर्म की भावनाओं को आहत करने का काम किया गया है. एक सीन कल्पना के आधार पर है कि सीता को छुरी मार दी जाती है. कल्पना के आधार पर क्या कुछ भी दिखा सकते हो. कल्पना के आधार पर रामचरितमानस के आधार को बदल दोगे…”

बीजेपी नेताओं पर निशाना साधते हुए आप सांसद ने आगे कहा, “फिल्म पुष्कर धामी, नरोत्तम मिश्रा, सीएम योगी, शिवराज चौहान, एकनाथ शिंदे, मनोहर लाल खट्टर के आशीर्वाद से बनी है. ये लोग न राम के हैं, न आम के.

बृजभूषण सिंह केस: सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का

सत्ता का प्रभाव किस तरह दुष्प्रभाव बन जाता है, इस का हाल ही में उदाहरण है पहलवान बेटियों और भाजपा का सरंक्षण प्राप्त कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह का. आज इस मसले पर देश में चर्चा हो रही है, लोग सरकार पर उंगलियां उठा रहे हैं। देश की आधी आबादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ होती चली जा रही है.

दरअसल, देश का संविधान और सत्ता प्रमुख के रूप में नरेंद्र मोदी से देश आज पूछ रहा है कि जब किसी आम आदमी पर ऐसे ही आरोप लगते हैं तो पुलिस तत्काल आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश करती है और फिर ट्रायल चलता है. मगर देश के लिए खेलने वाली रैसलर पहलवान बेटियों के द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद क्या हुआ? देश ने देखा है कि किस तरह आंसू बहाते हुए लंबा आंदोलन किया गया, देश की सत्ता से फरियाद की गई मगर भारतीय जनता पार्टी के बृजभूषण सिंह मुसकराते हुए टीवी पर आते रहे और तल्ख टिप्पणियां करते रहे मानो यह उन का चैलेंज था कि मेरा कोई क्या कर लेगा.

मुट्ठी में कानून और सरकार

बृजभूषण सिंह कह रहे हैं कि कानून और सरकार तो मेरी मुट्ठी में हैं. उधर पुलिस ने मामले को न्यायालय में पेश करने से पहले एक तरह से क्लीन चिट देते हुए बयान दिया है, जो निराश करने वाला है. आश्चर्य यह सब देश की राजधानी दिल्ली में हो रहा है. ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि देश के सुदूर गांवों में, कस्बे और शहरों में पैसे और सत्ता के दम पर समाज में क्या हो रहा होगा और इस प्रकरण के बाद और भी ज्यादा अत्याचार होने लगेगा. यह एक ऐसा सत्य है जिस से पता चलता है कि लोकतंत्र, आजादी के इतने लंबे समय बाद भी देश की लाखों बेटियां अत्याचार का शिकार हो रही हैं. मगर उन की कोई सुनने वाला नहीं है.

यदाकदा कोई एकाध मामला ऐसा हो जाता है जिस में अगर सत्ता या पैसों का प्रभाव नहीं होता तो पुलिस मुस्तैद हो जाती है और डंडा ले कर आरोपी को जेल भेज देती है.

कांग्रेस ने भारतीय कुश्ती महासंघ के वर्तमान प्रमुख बृजभूषण सिंह के खिलाफ नाबालिग पहलवान द्वारा दर्ज कराए गए यौन उत्पीड़न के मामले को रद्द करने के दिल्ली पुलिस के अनुरोध के बाद आरोप लगाया, “भारतीय जनता पार्टी का नारा ‘बेटी डराओ बृजभूषण बचाओ’ है.”

 एक प्यादे को बचाने की कवायद

दरअसल, बृजभूषण सिंह का मामला सत्ता का अपने एक प्यादे को बचाने का एक ऐसा मामला या नजीर बन गया है जो कभी भुलाया नहीं जा सकता. जहां इस से आधी आबादी में आक्रोश देखा जा रहा है, वहीं नरेंद्र मोदी की सत्ता और न्याय पर प्रश्नचिन्ह लग गया है.

निस्संदेह आज देश के लिए यह प्रकरण एक ऐसी नजीर बन गया है जो अकेले नरेंद्र मोदी की ताबूत का अंतिम कील बन सकता है. कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा,”ऐसे मामले की शिकायत पर आरोपी को तुरंत खिलाफ पौक्सो ऐक्ट के तहत हिरासत में लिया जाता है मगर बृजभूषण सिंह मीडिया में साक्षात्कार देते हैं, रैलियों में शक्ति प्रदर्शन करते हैं. उस से दिल्ली पुलिस पूछताछ तक नहीं करती और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद प्राथमिकी दर्ज हो पाती है.”

उन्होंने कहा कि खेलमंत्री को कैसे पता चला कि 15 जून तक आरोपपत्र दायर हो जाएगा? आरोपपत्र दिल्ली पुलिस ने तैयार किया या भाजपा कार्यालय में इसे तैयार किया गया?

सुप्रिया ने दावा किया कि एक नाबालिग लड़की बृजभूषण सिंह जैसे बड़े आदमी के खिलाफ पौक्सो के तहत शिकायत दर्ज कराती है, यौनशोषण का आरोप लगाती है उस के बाद सारा तंत्र, पुलिस, सरकार के मंत्री व सांसद मिल कर उस लड़की के खिलाफ खड़े हो जाते हैं और बृजभूषण सिंह को सरंक्षण दिया जाता है.

Adipurush : आदिपुरूष के डायरेक्टर और लेखक के बीच छिड़ी जंग! जानें क्या है पूरा मामला

Adipurush : तमिल सुपरस्टार प्रभास की फिल्म ‘आदिपुरूष’ इन दिनों हर जगह सुर्खियों में बनी हुई है। जहां कई लोगों को ये फिल्म बेहद पंसद आ रही है तो वहीं कुछ लोग इस फिल्म के डायलॉग और सीन्स को लेकर बवाल मचा रहे है। वह फिल्म को निगेटिव रिव्यू दे रहे हैं।  हालांकि इस बीच खबर आ रही है कि फिल्म के डायरेक्टर ओम राउत और लेखर मनोज मुंतशिर के बीच तकरार शुरू हो गई है।

दरअसल, ‘आदिपुरुष’ के खराब डायलॉग्स को लेकर सोशल मीडिया पर लोग मनोज की क्लास लगा रहे हैं। इसी बीच अब मनोज ने खराब डायलॉग्स का पूरा ठीकरा डायरेक्टर ओम राउत (om raut) के सिर पर मढ़ दिया हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि अब उनके और ओम राउत के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हैं।

मनोज ने कहा डायरेक्टर से करें सवाल

बता दें कि, मीडिया ने जब मुंतशिर (manoj muntashir) से सवाल किया गया कि निर्माताओं को भगवान लक्ष्मण को विभीषण की पत्नी से संजीवनी बूटी के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले सीन को शामिल करने का विचार कैसे आया तो इस पर लेखक ने कहा इतिहास और कैरेक्टर से जुड़े सारे सवाल आपको डायरेक्टर से पूछने चाहिए। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि- ‘कहानी और संवादों के बीच यही संबंध है… संवाद कहानियों के लिए ही तो लिखे जाते हैं जबकि कहानी के बिना संवादों का कोई उद्देश्य ही नहीं रहता है।’

मनोज ने किया माफी मांगने से मना 

वहीं जब मनोज से सवाल किया गया कि, ‘क्या आप बिना जांचे-परखे संवाद लिखते हैं?’ तो इस पर मुंतशिर ने जवाब दिया, ‘यह टीम वर्क है। मैंने ओम पर पूरी तरह भरोसा किया। मुझे लगा जब ओम (om raut) इस कहानी (Adipurush) को बडे पर्दे पर दिखा रहे हैं तो उनके पास इसके पूरे फैक्ट्स भी होंगे।’ इसके अलावा जब उनसे सवाल किया गया कि क्या आप माफी मांगेगे? तो इस पर मनोज ने कहा, ‘मैं माफी नहीं मांगूंगा।‘ इसके आगे उन्होंने कहा, ‘माफी से बड़ी भी कई चीजें होती हैं। आप जब माफी मांगते हैं तो अगली गलती की तैयारी शुरू कर देते हैं। इसलिए मैं सुधार अपने एक्शन्स में करूंगा।‘

साथ ही उन्होंने (manoj muntashir) ये भी कहा कि, ‘फिल्म आदिपुरूष की कहानी सिर्फ रामायण से प्रेरित है। इसलिए इसका टाइटल आदिपुरुष रखा गया है। इस कहानी को हमने रामायण के युद्ध कांड से लिया है। इसमें हमने पूरी रामायण नहीं दिखाई है। इसलिए जब हम रामायण से प्रेरित कहानी आदिपुरुष के बारे में बात कर रहे हैं, तो इसकी पटकथा के बारे में मुझसे कोई सवाल नहीं किया जाना चाहिए। मैं केवल संवादों के बारे में उत्तर दे सकता हूं।’

मनोज ने ट्वीट कर दी थी सफाई

आपको बता दें कि, बीते दिन मनोज मुंतशिर ने ट्वीट कर सफाई भी दी थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा था कि मैंने और फिल्म (Adipurush) के निर्माता-निर्देशक ने फैसला लिया है कि वो जो कुछ संवाद आपको आहत कर रहे हैं, हम उन्हें संशोधित करेंगे और इसी सप्ताह वो फिल्म में शामिल किए जाएंगे।

पहले दिन 100 करोड़ का आंकडा किया पार

प्रभास, कृति सेनन और सैफ अली खान स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ (Adipurush) शुक्रवार को बडे पर्दे पर रिलीज हुई है। गौरतलब है कि तमाम समालोचना के बीच फिल्म ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है।

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