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पति की कातिल: पत्नी ने क्यों उठाया इतना बड़ा कदम?

उस दिन जून 2020 की 6 तारीख थी. सुबह होने पर प्रियंका की आंखें खुलीं तो खिड़की से आती तेज रोशनी उसकी आंखों में लगी. पिंकी ने आंखें बंद कर लीं, फिर आंखों को मलते हुए जम्हाई ले कर बैड पर उठ कर बैठ गई.

कुछ देर वह अलसाई सी बैठी रही, फिर मुंह घुमा कर बैड के दूसरे किनारे की ओर देखा तो पति चंदन वहां नहीं था.

शायद आज जल्दी उठ गया, बाहर होगा, सोच कर वह बैड से उठी और पैरों में चप्पल पहन कर बैडरूम से बाहर निकल आई.

जैसे ही वह बाहर आई तो बाहर का दृश्य देख कर सन्न रह गई. चंदन नायलौन की रस्सी से मुख्यद्वार की लोहे की चौखट से लटका था. यह देख पिंकी के मुंह से चीख निकल गई. चीखते हुए वह बाहर की तरफ भागी और पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने आ कर देखा तो सब अपनेअपने कयास लगाने लगे. चंदन रेलवे में नौकरी करता था और पत्नी के साथ रहता था.

यह मामला सोनभद्र जिले के थाना कोतवाली राबर्ट्सगंज क्षेत्र के बिचपई गांव का था. किसी ने सुबह 8 बजे राबर्ट्सगंज कोतवाली को घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चंदन की उम्र 34-35 वर्ष रही होगी. वह दरवाजे की लोहे की चौखट से नायलोन की रस्सी से लटका हुआ था. उस के पैर जमीन को छू रहे थे, घुटने मुड़े हुए थे.

देखने से लग रहा था जैसे चंदन ने आत्महत्या की हो, लेकिन पैर जमीन पर लगे होने से थोड़ा संदेह भी था कि क्या वाकई चंदन ने आत्महत्या की है या किसी ने उस की हत्या कर के आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है.

इंसपेक्टर मिश्रा के दिमाग में ऐसी ही बातें उमड़घुमड़ रही थीं. फिर मिश्राजी ने सोचा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सारी हकीकत सामने आ जाएगी. उन्होंने सिर को झटका और सोचों के भंवर से बाहर आए.

उन्होंने पास में बैठी मृतक चंदन की पत्नी पिंकी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में खाना खा कर दोनों साथ बैड पर सोए थे. सुबह उस की आंख खुली तो चंदन बैड पर नहीं था. वह बाहर आई तो चंदन को इस हालत में चौखट से लटकते हुए पाया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने उस से और विस्तृत पूछताछ की तो पता चला वह चंदन के साथ जिस मकान में रह रही थी, वह पिंकी के पिता परमेश्वर भारती का था. वह खुद बीजपुर में रहते हैं. पिंकी और चंदन के दोनों बच्चे भी अपने नाना के पास रह रहे थे. पतिपत्नी के अलावा उस मकान में कोई नहीं रहता था.

चंदन बिचपई से 25 किमी दूर मदैनिया गांव का निवासी था, जो करमा थाना क्षेत्र में आता था. घटना की सूचना करमा थाने को दी गई, वहां से यह खबर चंदन के परिवार तक पहुंचा दी गई.

इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और कोतवाली लौट आए. 2 घंटे बाद चंदन का भाई अपने गांव से राबर्ट्सगंज कोतवाली पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर मिश्रा को एक लिखित तहरीर दी, जिस में उस ने चंदन की हत्या का आरोप उस की पत्नी पिंकी उर्फ प्रियंका, ससुर परमेश्वर भारती, सास चमेली, साले पिंटू और पड़ोसी कृष्णा चौहान पर लगाया था. भाई ने तहरीर में कृष्णा से पिंकी के संबंध होने का जिक्र किया था.

तहरीर देख कर इंसपेक्टर मिश्रा चौंके. उन के मन का संदेह सच होता दिखने लगा. लाश की स्थिति देख कर उन्हें पहले ही चंदन के आत्महत्या पर संदेह था. पति की मौत पर पिंकी भी उतनी दुखी नहीं लग रही थी, उस का चीखनाचिल्लाना नाटक सा लग रहा था.

खैर, अब इंसपेक्टर मिश्रा को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने का इंतजार था. शाम को जब रिपोर्ट आई तो उस में चंदन की हत्या किए जाने की पुष्टि हो गई.

इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने चंदन की लिखित तहरीर के आधार पर पिंकी, कृष्णा चौहान, परमेश्वर भारती, चमेली और पिंटू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने केस की जांच शुरू करते हुए कृष्णा चौहान उर्फ किशन के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. बिचपई में वह पिंकी के घर के पड़ोस में अपनी मां के साथ किराए पर रहता था.

जांच के दौरान पूछताछ में यह भी पता चला कि कृष्णा का पिंकी के घर काफी आनाजाना था. वह घर से गायब भी था. पिंकी और कृष्णा की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस से भी दोनों के संबंधों की पुष्टि हो गई. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा किशन उर्फ कृष्णा की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गए.

11 जून को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर राबर्ट्सगंज के रोडवेज बस स्टैंड से किशन और प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया. भेद खुल जाने की आशंका से प्रियंका किशन के साथ कहीं भाग जाने की फिराक में थी, लेकिन पकड़ी गई.

कोतवाली ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने चंदन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या करने के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी—

उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के थाना करमा क्षेत्र के मदैनिया गांव में शंकर भारती रहते थे. वह रेलवे में थे. उन के परिवार में पत्नी कबूतरी के अलावा एक बेटी राजकुमारी और 2 बेटे चंद्रशेखर व चंदन थे.

उन्होंने सब से बड़ी बेटी राजकुमारी का विवाह समय रहते कर दिया था. बेटों में चंद्रशेखर बड़ा था. वह किसी के यहां कार ड्राइवर की नौकरी करता था. सब से छोटे चंदन ने बीए तक पढ़ाई की थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि 2002 में शंकर भारती की मृत्यु हो गई.

मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो आपसी सहमति से चंदन का नाम दिया गया. 2004 में चंदन रेलवे में भरती हो गया. वर्तमान में वह चुर्क में बतौर केबिनमैन कार्यरत था. रेलवे में नौकरी लगते ही चंदन के लिए रिश्ते आने लगे.

एनटीपीसी में इंजीनियर परमेश्वर भारती बीजपुर में रहते थे. परिवार में पत्नी चमेली और एक बेटी पिंकी उर्फ प्रियंका व 2 बेटे थे पिंटू और रिंकू.

पिंकी सब से बड़ी थी. उस ने बीए कर रखा था. परमेश्वर को चंदन के बारे में पता चला तो उन्होंने उस के बारे में जानकारी हासिल की. उस समय करमा थाने के जो इंसपेक्टर थे, वह परमेश्वर के रिश्तेदार थे. परमेश्वर ने उन से बात की तो उन्होंने पता करके परमेश्वर को बताया कि लड़का बहुत अच्छा और सीधासादा है. उस में कोई ऐब भी नहीं है, सरकारी नौकरी में है. फिर रिश्ता तय हुआ और 2005 में चंदन और पिंकी का विवाह हो गया.

पिंकी खबसूरत और पढ़ीलिखी थी. वह अच्छे खातेपीते परिवार से ताल्लुक रखती थी. विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल आई तो वहां का मकान और रहनसहन उसे अच्छा नहीं लगा. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.

शादी के बाद पिंकी चंदन से जिद करने लगी कि वह बिचपई में रहे. बिचपई में पिंकी के पिता का एक मकान खाली पड़ा था. पिंकी ने उस में चंदन के साथ रहने की बात अपने पिता परमेश्वर से कर ली थी.

चंदन को मानना पड़ा

आए दिन पिंकी चंदन से बिचपई चल कर रहने की जिद करती. चंदन अपने परिवार के साथ रहना चाहता था, इसलिए पिंकी की बात पर ध्यान नहीं देता था. अपनी बात न मानते देख पिंकी बीवियों वाले हथकंडे अपनाने लगी. उस से नाराज हो कर बोलना बंद कर देती, खाना नहीं खाती थी. इस पर चंदन समझाता तो उस की बात सुनती तक नहीं थी. आखिर चंदन को उस की जिद के आगे झुकना ही पड़ा.

वह पिंकी के साथ बिचपई में अपने ससुर परमेश्वर के मकान में रहने लगा. कालांतर में प्रियंका 2 बेटों अमन और नमन की मां बनी. स्कूल जाने लायक तो प्रियंका ने उन्हें नाना परमेश्वर के पास भेज दिया.

चंदन कभीकभी शराब पी लेता था. पीने पर पिंकी कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पिंकी भी चंदन के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी. वह ज्यादातर मायके का ही गुणगान करती रहती थी.

चंदन अपने घरवालों से बात करता या उन की तारीफ करने लगता तो पिंकी के तनबदन में आग लग जाती थी. पत्नी के रूखे व्यवहार के कारण चंदन ज्यादा शराब पीने लगा था. शराब पीने के बाद दोनों में झगड़ा जरूर होता था.

किशन उर्फ कृष्णा चौहान फुलाइच तरवा आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता रामत चौहान ने 2 शादियां की थीं. रामत चौहान पहली पत्नी और उस की 2 बेटियों के साथ आजमगढ़ में रह रहा था. किशन उस की दूसरी पत्नी रमा का बेटा था.

कृष्णा अपनी मां के साथ डेढ़ साल से पिंकी के घर के पड़ोस में किराए पर रह रहा था. वह अपराधी प्रवृत्ति का था. राबर्ट्सगंज कोतवाली में उस पर 2019 में धारा 457/380/411 के तहत मुकदमा भी दर्ज था. 29 साल का किशन अविवाहित था.

पड़ोस में रहते हुए उस की नजर पिंकी पर गई तो उस की खूबसूरती देख कर किशन उस की ओर आकर्षित हो गया. चंदन ड्यूटी पर रहता था, प्रियंका घर में अकेली होती थी.

पड़ोसी होने के नाते पिंकी और किशन एकदूसरे को जानते  थे, पर अभी तक बात नहीं हुई थी. दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ती, तो जल्दी नहीं हटती थी.

एक दिन किशन सुबहसुबह पिंकी के घर पहुंच गया. हमेशा की तरह पिंकी उस समय भी अकेली थी. दरवाजा खटखटाने पर पिंकी ने दरवाजा खोला तो किशन को खडे़ पाया और मुंह से निकला, ‘‘अरे आप…’’

‘‘जी, मैं आप का पड़ोसी किशन.’’

‘‘जानती हूं आप को, बताने की जरूरत नहीं.’’ पिंकी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘अरे अंदर आइए, बाहर क्यों खड़े हैं.’’

औपचारिकतावश पिंकी ने कहा तो किशन बोला, ‘‘चाय बनाने जा रहा था तो देखा चीनी नहीं है. अभी दुकानें भी नहीं खुली हैं. फिर सोचा पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है, इसलिए आप के पास चला आया. इस बहाने आप से परिचय भी हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा किया. अब मैं खुद आप को चाय बना कर पिलाती हूं. उस के बाद आप चीनी भी ले जाइएगा.’’ कह कर पिंकी ने उसे कुरसी पर बैठाया और खुद चाय बनाने किचन में चली गई.

कामी नजर

किशन जिस जगह कुरसी पर बैठा था, ठीक उसी के सामने किचन थी. किशन चाय बनाती पिंकी को पीछे से ताड़ रहा था. पिंकी के शरीर की बेहतरीन बनावट उस की आंखों में प्यास जगा रही थी. इसी बीच पिंकी ने पलट कर उस की ओर देखा तो उसे अपनी ओर देखते पाया. एकाएक दोनों की आंखें मिलीं तो होंठ खिल उठे. चाय के कप टे्र में रख कर पिंकी किचन से बाहर आई और टे्र मेज पर रख कर किशन को चाय देते हुए पूछा, ‘‘आप लोग कुछ समय पहले यहां रहने आए हैं, इस से पहले कहां रहते थे?’’

‘‘भाभी, मैं पहले आजमगढ़ में रहता था. वहां मेरे पिता रहते हैं. यहां मैं अपनी मां के साथ रहता हूं.’’

फिर चाय का घूंट भरते हुए किशन पिंकी की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘वाह, आप चाय बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ तारीफ सुन कर पिंकी खुशी से बोली.

चाय पीतेपीते उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी ली. पिंकी को किशन से बात करना बहुत अच्छा लग रहा था. उस की बातें और बात करने का ढंग अलग ही था. काफी देर तक बातें करने के बाद किशन वहां से चला गया.

इस के बाद तो दोनों के बीच हर रोज बातें होने लगीं. किशन किसी न किसी बहाने से पिंकी के पास पहुंच जाता. पिंकी भी जान गई थी कि किशन उस से मिलने और बातें करने के लिए बहानों का सहारा लेता है. इसलिए एक दिन उस ने किशन से कह दिया कि उसे मिलने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं है. वह ऐसे भी मिलने आ सकता है.

किशन खुश हो गया कि अब उसे बहाने नहीं बनाने पड़ेंगे. अब जब देखो किशन पिंकी के पास ही नजर आने लगा. घर के कामों में भी उस की मदद करने लगा. साथ में काम करतेकरते हंसीमजाक करते कब समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता. चंदन के घर आने से पहले ही किशन वहां से चला आता था.

कुछ ही दिनों में दोनों काफी घुलमिल गए. दोनों को एकदूसरे के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था. किशन तो जानता था कि वह पिंकी को जी जान से चाहने लगा है. लेकिन अब पिंकी को भी एहसास होने लगा कि किशन चुपके से आ कर किस तरह उस की जिंदगी बन गया, उस के दिलोदिमाग पर छा गया.

पिंकी के दिमाग में सिर्फ उस की बातें ही घूमती रहती थीं. किशन पिंकी के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि वह भी उस की ओर खिंचने लगी. जब प्यार का एहसास हुआ तो वह भी किशन से मजाक कर के लिपटनेचिपटने लगी. पिंकी का ऐसा करना किशन के लिए शुभ संकेत था कि वह उस की होने के लिए बेताब है.

एक दिन दोनों पासपास बैठे किशन की लाई आइसक्रीम खा रहे थे. किशन ने अपनी आइसक्रीम खाई तो उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे उसे आइसक्रीम अच्छी न लगी हो. फिर उस ने पिंकी की आइसक्रीम की ओर देखा और तेजी से उस का हाथ पकड़ कर उस की आइसक्रीम की एक बाइट खा ली.

किशन की इस हरकत पर पिंकी भौंचक्की रह गई. फिर शरारती अंदाज में उस की पीठ पर प्यार से धौल जमाने लगी. उस के इस अंदाज से किशन हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘आप की आइसक्रीम सच में बहुत मीठी है.’’

पिंकी उस से नाराज होने की बात कह कर चुपचाप बैठ गई तो किशन की नजर पिंकी के पिंक लिप्स पर गई, जहां कुछ आइसक्रीम लगी हुई थी. उसे शरारत सूझी, वह अपने चेहरे को पिंकी के चेहरे के पास ले गया और उस के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उस के पिंक लिप्स को अपने होंठों से चाट लिया.

इस शरारत से पिंकी अचंभित रह गई, लेकिन इस शरारत ने उस के शरीर में आग भरने का काम किया. किशन भी अपने आप को नहीं रोक पाया. वह बराबर पिंकी के लिप्स को चूमने लगा तो पिंकी ने मस्त हो कर आंखें मूंद लीं. इस के बाद तो उन के बीच वही हुआ जो अकसर उन्माद के क्षणों में होता है. दोनों बहके तो ऐसे फिसले कि अपनी इच्छा पूरी करने के बाद ही अलग हुए.

उन के बीच एक बार जो अनैतिक रिश्ता बना तो वह बारबार दोहराया जाने लगा. लेकिन ऐसे रिश्ते की सच्चाई अधिक दिनों तक छिपी नहीं रह पाती. एक दिन चंदन ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद किशन तो वहां से चला गया, लेकिन चंदन ने पिंकी को जम कर पीटा. साथ ही आगे से ऐसी नापाक हरकत न करने की हिदायत दी.

पिंकी के इस गलत कदम से चंदन परेशान रहने लगा. उस की अपने भाई चंद्रशेखर से बात होती रहती थी. उस ने भाई को भी पिंकी के किशन से अवैध संबंध के बारे में बता दिया.

दूसरी ओर पिंकी पर चंदन द्वारा की गई पिटाई और हिदायत का कोई असर नहीं हुआ. वैसे भी चंदन हर वक्त घर पर रह नहीं सकता था. इस के अलावा घर में पिंकी पर नजर रखने वाला कोई नहीं था. पिंकी पहले की तरह ही किशन के साथ रंगरलियां मनाती रही. वह चाहती थी कि उस के और किशन के रिश्ते पर कोई तर्कवितर्क न करे.

5/6 जून की रात किशन और पिंकी रंगरलियां मना रहे थे कि रात 12 बजे चंदन घर लौट आया. उस ने पिंकी और किशन को एक साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो वह उन से झगड़ने लगा. इस पर किशन ने पिंकी से कहा कि आज इस का काम खत्म कर देते हैं.

पिंकी भी उस की बात से सहमत थी, इसलिए उस का साथ देने लगी. वह घर में पड़ी नायलोन की रस्सी उठा लाई. दोनों ने मिल कर रस्सी से चंदन का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

चंदन की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को नायलोन की रस्सी से बांध कर घर की लोहे की चौखट से लटका दिया, जिस से यह लगे कि चंदन ने आत्महत्या की है. इस के बाद किशन वहां से चला गया.

सुबह जब पुलिस आई तो पिंकी ने उस के आत्महत्या कर लेने की बात ही बताई. लेकिन उन दोनों की चाल काम न आई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व चंद्रशेखर से पूछताछ पर आधारित

युवाओं में क्यों बढ़ रहा है यूटीआई का खतरा ?

सवाल
मेरी शादी को कुछ ही महीने हुए हैं. मुझे 2 बार यूटीआई हो गया है. मेरी समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब
शादी के बाद नयानया सैक्सुअल इंटरकोर्स होता है, इसलिए संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. जो महिलाएं नियमित यौन संबंध बनाती हैं, उस से ज्यादा संख्या में बैक्टीरिया ब्लैडर में चले जाते हैं. बारबार यौन संबंध बनाने से हुए संक्रमण को हनीमून सिस्टिरिस कहते हैं. अत: यौन संबंध बनाने के बाद यौन अंग को अच्छी तरह धो लें और यूरिन पास करें ताकि बैक्टीरिया शरीर से बाहर निकल जाएं. शारीरिक संबंध बनाने के बाद दर्द हो या फिर यूरिन पास करते समय जलन हो तो डाक्टर से संपर्क करें.

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यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन या यूटीआई (यह ट्रैक्ट शरीर से मुख्यरूप से किडनी, यूरेटर ब्लैडर और यूरेथरा से मूत्र निकालता है) एक प्रकार का विषाणुजनित संक्रमण है. यह ब्लैडर में होने वाला सब से सामान्य प्रकार का संक्रमण है लेकिन कई बार मरीजों को किडनी में गंभीर प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है जिसे पाइलोनफ्रिटिस कहते हैं.

यौनरूप से सक्रिय महिलाओं में यह अधिक होता है क्योंकि यूरेथरा सिर्फ 4 सैंटीमीटर लंबा होता है और जीवाणु के पास ब्लैडर के बाहर से ले कर भीतर तक घूमने के लिए इतनी ही जगह होती है. डायबिटीज होने से मरीजों में यूटीआई होने का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है.

डायबिटीज से बढ़ता है जोखिम

–     डायबिटीज के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, इसलिए शरीर जीवाणुओं, विषाणुओं और फुंगी से मुकाबला करने में अक्षम हो जाता है. इस वजह से डायबिटीज से पीडि़त मरीजों को अकसर ऐसे जीवाणुओं की वजह से यूटीआई हो जाता है. इस में सामान्य एंटीबायोटिक काम नहीं आते हैं.

–     लंबी अवधि की डायबिटीज ब्लैडर को आपूर्ति करने वाली नसों को प्रभावित कर सकती है जिस की वजह से ब्लैडर की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं जो यूरिनरी सिस्टम के बीच सिग्नल को प्रभावित कर ब्लैडर को खाली होने से रोक सकती हैं. परिणामस्वरूप, मूत्र पूरी तरह से नहीं निकल पाता है और इस की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

–     मेटाबोलिक नियंत्रण खराब होने से डायबिटीज से पीडि़त मरीज में किसी प्रकार के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है.

–     कुछ नई एंटीडायबिटीक दवाओं की वजह से मामूली यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन हो सकता है.

क्या हैं लक्षण

लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

–     पेशाब करते हुए दर्द होना.

–     पेशाब में जलन महसूस होना.

–     तत्काल पेशाब करने की जरूरत महसूस होना.

–     असमंजस.

–     क्लाउडी यूरिन.

–     पेशाब में से अजीब सी बदबू आना.

–     पेशाब में खून.

–     पेट के निचले हिस्से में दर्द.

–     पीठ में दर्द.

अपर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

–     सर्दी के साथ तेज बुखार.

–     उलटी होना.

–     पेट के निचले हिस्से में दर्द.

–     बगल में दर्द.

आमतौर पर इन लक्षणों का मतलब होता है कि संक्रमण किडनी तकपहुंच चुका है. इस गंभीर समस्या से नजात पाने के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत हो सकती है. तत्काल उपचार से लक्षणों से भी छुटकारा मिल सकता है और संक्रमण के फैलने से भी बचा जा सकता है. कई दुर्लभ मामलों में यूटीआई की वजह से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे किडनी को नुकसान या फिर किडनी फेल होना. यूटीआई का पता लगाने के लिए बैक्टीरिया और पस के लिए एक अत्यंत साधारण मूत्र परीक्षण काफी है. एंटीबायोटिक को ले कर संवेदनशीलता के लिए यूरिन कल्चर, पेट का अल्ट्रासाउंड और गंभीर मामलों में सीटी स्कैन किया जाता है.

उपचार

लोअर यूटीआई, जो जटिल नहीं होता है, का उपचार बाहरी रोगी के तौर पर ओरल एंटीबायोटिक के साथ डाक्टर की उचित देखरेख में किया जा सकता है. कोई भी रेनल या कार्डिएक बीमारी न होने पर विभिन्न प्रकार के ओरल फ्लुइड्स लेने की सलाह दी जा सकती है. उपचार करने वाले डाकटर की अनुमति से दर्द में राहत देने वाली सुरक्षित दवाएं दी जा सकती हैं. दर्दनिवारक दवाओं से आमतौर पर बचना चाहिए क्योंकि इन से किडनी को नुकसान हो सकता है.

जटिल यानी अपर यूटीआई के लिए अस्पताल में भरती होने के साथ लंबे समय तक एंटीबायोटिक लेनी पड़ती है.

पौलीस्टिक ओवरियन सिंड्रोम और डायबिटीज का संबंध

यह ऐसी परिस्थिति है जो बच्चे पैदा करने की उम्र की महिलाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है जहां उन के अंडाशय की सतह पर असामान्य छोटे दर्दरहित सिस्ट होते हैं. इस के अलावा उन में असामान्यरूप से अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरौन होते हैं और अन्य हार्मोन का असामान्य अनुपात होता है जिस के परिणामस्वरूप शरीर में इंसुलिन की मात्रा उच्च होने के साथ ही अनियमित मासिकचक्र होता है.

संकेत

–     अनियमित मासिकधर्म.

–     ओलिगोमेनोहोयिया यानी मासिकचक्र के दौरान कम रक्तस्राव.

–     चेहरे, छाती और निपल के पास अधिक बाल.

–     एक्ने.

–     बांझपन.

–     अधिक वजन.

कारक

इंसुलिन प्रतिरोध और वजन बढ़ना पौलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस के 2 प्रमुख कारक हैं. इंसुलिन प्रतिरोध की वजह से शरीर में सामान्य से अधिक इंसुलिन का उत्पादन होता है जिसे हाइपरइंसुलिनेमिया कहते हैं. अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से अंडाशय में अत्यधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरौन होता है जिस की वजह से सामान्य अंडोत्सर्ग पैदा हो सकता है.

अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से वजन भी बढ़ सकता है जिसे टाइप 2 डायबिटीज और पीसीओएस से जोड़ा जा सकता है. पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कम उम्र में डायबिटीज होने का जोखिम चारगुना अधिक होता है.

पीसीओएस से पीडि़त कई मरीजों में मेटाबोलिक सिंड्रोम होते हैं जिन में पेट पर मोटापा, बैड कोलैस्ट्रौल सीरम ट्रिगलीसेराइड्स का बढ़ना, गुड कोलैस्ट्रौल का घटना, सीरम हाई डैंसिटी लिपोप्रोटिन और रक्तचाप बढ़ना शामिल हैं.

पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कोरोनरी आर्टरी कैल्शिफिकेशन और बढ़ा हुआ कैरोटिड इंटिमा की मोटाई देखने को मिलती है.

बचाव

–     जीवनशैली प्रबंधन, खाने पर ध्यान और व्यायाम करें.

–     वजन कम करें.

–     डाक्टर से सलाह कर इंसुलिन सैंसिटाइजर्स मैडिकेशन मेटफौर्मिन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

–     हार्मोनली मैडिकेशन.

जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस

जब गर्भवती मां में गर्भवती होने के दौरान पहली बार ग्लूकोज प्रतिरोध अनियमित पाया जाता है तो उसे जेस्टेशन डायबिटीज कहते हैं. ऐसी महिलाओं में भ्रूण द्वारा अधिक मात्रा में ग्लूकोज लेने के परिणामस्वरूप बड़े आकार के बच्चे को जन्म देने का जोखिम होता है. अधिक ब्लड ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित न करने पर नवजात बच्चे की मौत का खतरा बना रहता है.

जेस्टेशनल डायबिटीजका इलाज

–     औब्सेट्रेटीशियन की सलाह के साथ नियमित व्यायाम करें.

–     न्यूट्रीशनिस्ट के पास जाएं और कम कार्बोहाइड्रेट अनुपात वाला डाइट चार्ट बनवाएं.

–     हर दिन ब्लड ग्लूकोज का स्तर जांचें.

–     नियमितरूप से अपने डायबिटीज डाक्टर और औब्सेट्रेटीशियन से मिलें.

–     जरूरत पड़ने पर आप को इंसुलिन लेने की सलाह दी जा सकती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान एंटी डायबिटीक दवाएं नहीं ली जा सकती हैं.

डिलीवरी के बाद क्या करें

–     जेस्टेशन डायबिटीज वाली महिलाओं में डायबिटीज होने का जोखिम सामान्य जेस्टेशन वाली महिलाओं के मुकाबले कम रहता है.

–     डिलीवरी के 6-12 हफ्तों बाद पोस्ट पारटम ओरल ग्लूकोज टौलरैंस किया जाना चाहिए और उस के बाद प्रत्येक 3 वर्षों में एक बार.

–     महिला को सख्त जीवनशैली का पालन अवश्य करना चाहिए और अपना वजन कम करने की कोशिश करनी चाहिए व बीएमआई बरकरार रखनी चाहिए.

–     नियमित एरोबिक और मांसपेशियों को मजबूती देने वाले व्यायाम अवश्य करने चाहिए.

–     महिलाओं में धूम्रपान अधिक नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि इस से इंसुलिन का स्तर बढ़ता है जिस से इंसुलिन प्रतिरोध पैदा होता है जिस के परिणामस्वरूप डायबिटीज बढ़ सकती है. या इस से ठीक उलट भी हो सकता है क्योंकि डायबिटीज से पीडि़त मरीज, जो धूम्रपान करता है, की बीमारी ठीक करना बहुत मुश्किल होता है.

–     धूम्रपान करने वाली महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले कार्डियोवैस्क्यूलर जटिलताएं विकसित होने का खतरा अधिक रहता है.

–     धूम्रपान करने वाली महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन का खतरा अधिक रहता है जिस की वजह से समय से रजोनिवृत्ति, हड्डियों में कमजोरी यानी ओस्टियोपोरोसिस जैसी चीजें हो सकती हैं.

–     कुछ अध्ययन बताते हैं कि मासिकचक्र में अनियमितता, ओवरियन सिस्ट इंफर्टिलिटी धूम्रपान से जुड़ी हैं.

–     गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं में समय से पहले जन्म देने, अस्थानिक गर्भावस्था, मृतबच्चे का जन्म, बच्चे के कम वजन जैसे खतरे होते हैं.

यूटीआई से कैसे बचें

–     सख्त ग्लाइकैमिक नियंत्रण.

–     अगर कोई रेनल या कार्डिएक समस्या न हो तो अधिक मात्रा में तरल लें.

–     अच्छा जेनाइटल हाइजिन बनाए रखें.

–     सैनिटरी नैपकिंस को बारबार बदलें.

–     ब्लैडर को लगातार खाली करती रहें.

–     प्रसूति रोग विशेषज्ञ से चर्चा करने के बाद रजोनिवृत्त हो चुकी महिलाएं एस्ट्रोजेन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं.

–     यौनसंबंध बनाने के बाद उचित साफसफाई पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

–     यूटीआई का खतरा पैदा करने वाली एंटीडायबिटीक दवाओं के बारे में डायबिटीक विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लें.

–     लैक्स ब्लैडर का उपचार किया जाना चाहिए.

थायरायड और डायबिटीज

–     थायरायड विकार एक पैथोलौजिकल स्थिति है जो डायबिटीज नियंत्रण को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और इस में मरीज के परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता होती है.

–     थायरायड बीमारी डायबिटीज के सब से सामान्यरूप में पाई जाती है और यह अधिक उम्र के साथ जुड़ी होती है. खासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज और टाइप 1 डायबिटीज में औटोइम्यून बीमारियां जुड़ी होती हैं.

–     थायरायड विकार शरीर के मेटाबोलिक नियंत्रण को प्रभावित करता है और इसलिए ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित करना मुश्किल होता है.

–     थायरायड प्रोफाइल मरीजों को औटोइम्यूनिटी पर संशय होने पर थायरायड औटोएंटीबौडी की भी जांच करानी चाहिए.

–     ब्लड ग्लूकोज प्रबंधन के साथ उचित ढंग से नजर रखने के साथ ही थायरायड का उचित उपचार किया जाना चाहिए.

जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस की स्थिति में गर्भधारण के दौरान नवजात को जान का खतरा रहता है.

धंसता न्यूयॉर्क

वैज्ञानिकों की खासीयत तो इसी में है कि वे कुछ अद्भुत सोचें जिस का आम आदमी को पता न हो और सीधे मतलब भी न हो. ???…जैसे, पृथ्वी की सूर्य से दूरी या सूर्य तारे की दूसरे अन्य उसी तरह के तारे से दूरी (अल्फा सेंटौरी एववी पाउड लाइट ईयर दूर जबकि लाइट ईयर दूरी नापने का पैमाना है जिस का मतलब है कि दूरी जितने में एक साल में लाइट एक जगह से दूसरी जगह जाएगी जब लाइट की गति 1,85,000 मील प्रति सैकंड हो) 39,90,00,00,00,00,000 किलोमीटर है…??? धार्मिक गुरु इस संख्या को अनंत कह कर टाल देते हैं पर वैज्ञानिक तर्क, टैलीस्कोप, गणित से खोजते हैं.

अब इन्हीं वैज्ञानिकों ने कहा है कि अमेरिका का प्रमुख शहर न्यूयॉर्क, जो एक द्वीप पर बसा है, धंस रहा है क्योंकि उस पर हर रोज बड़ीबड़ी बिल्डिगों, लोगों और समय का बोझ बढ़ रहा है. उन का अनुभव है कि न्यूयॉर्क पर 17 खरब टन लोहा, सीमेंट, कंक्रीट, रोड़ी, पत्थर आदि यानी 4,700 एंपायर एस्टेट जैसी बिल्डिंगों का भार हो गया है जो न्यूयॉर्क को धंसा रहा है.

वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का पानी ऊपर हो रहा है और एक दिन न्यूयॉर्क की सडक़ें पानी से भर सकती हैं.

पर साथ ही, वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि न्यूयॉर्क वालों को अभी नावें खरीदने की जरूरत नहीं है. धंसने से पानी के ऊपर आने की गति इतनी धीमी है कि न्यूयॉर्क के मैनहट्टन इलाके, जो ठोस रौक पर बसा है, में पानी पहुंचने में कई सौ साल लगेंगे.

वैज्ञानिकों की तरह प्रलय की भविष्यवाणी सभी धर्मगुरु करते रहे हैं पर उन का उद्देश्य सिर्फ एक होता है कि आप के पास आज जो है वह चर्च, मठ आश्रम, मसजिद को दे दो. प्रलय के बाद भगवान आप दानियों को स्वर्ग में सुरक्षित स्थान देगा. जबकि, वैज्ञानिक छिपी हुई चेतावनी देता है कुछ ज्ञान बढ़ाने के लिए तो कुछ नीतियों को बनाने वालों को नई सोच देने के अवसर देने के लिए.
न्यूयॉर्क फिलहाल बस 1 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की गति से धंस रहा है.

नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा, जयकारे और जलता मणिपुर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा पर निकल गए हैं, जहां उन का स्वागत मोदी… मोदी… कर के कुछ इस तरह हो रहा है जैसे मानो कोई आकाश से धरती पर देवपुरुष उतर आया हो. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सब अच्छा लगता है क्योंकि वे जहां भी जाते हैं लगभग इसी तरह की पटकथा लिखी जाती है. वहां भारतीयों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है और उन के बीच जाते हैं, लोग मोदी…मोदी… करते हैं और देश का गोदी मीडिया उसे कुछ इस तरह दिखाता है मानो यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है.

सीधी सी बात है, आप सत्ता में हैं आप के पास ताकत है तो कोई भी आप की जयजयकार करेगा. महत्त्व तब है जब आप सत्ता में न हों, आप पैसे खर्च करने की बखत न रखते हों और कोई आप को तब नमस्ते करे, आप की जयजयकार करे. मगर यहां सब कुछ उलटा हो रहा है. यह एक नई परंपरा है.

देश की आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू से ले कर अटल बिहारी वाजपेयी तक की अगर हम बात करें तो किसी भी प्रधानमंत्री ने अपनी जयजयकार इस तरह नहीं करवाई है. नरेंद्र मोदी को अपनी जयजयकार करवाने में आनंद आता है।

देश यह पूछना चाह रहा है कि मणिपुर जल रहा है और केंद्र सरकार का यह दायित्व है कि उसे शांति के रास्ते पर लाए. मगर ऐसा नहीं कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में राजकीय अतिथि बनना पसंद किया तो सवाल खड़े हो गए हैं कि आखिर आप प्रधानमंत्री पद का दायित्व किस तरह निभा रहे हैं? क्या आप को मणिपुर की हिंसा से तकलीफ नहीं है?

इस का जवाब तो आप को आज नहीं तो कल देना होगा. क्योंकि आप जिस पद पर हैं इतिहास आप का पीछा नहीं छोड़ेगा. इतिहास तो आप से पूछेगा जब मणिपुर जल रहा था, आप राजकीय अतिथि बन कर अपने जयजयकारे अमरीका में क्यों लगवा गए थे? उस समय आप का सिर नीचा होगा। शायद यही कारण है कि देश के विपक्ष ने अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाते हुए एक बड़ी पहल की मगर मोदी ने उन की मांग को अनदेखा कर दिया.

इन जयकारों का क्या मतलब है

मणिपुर में जारी हिंसा को ले कर कांग्रेस समेत 10 विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग की थी. विपक्षी दलों ने मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री अटल अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिलाई. इस मामले में इन दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि अमेरिका के दौरे पर रवाना होने से पहले उन्हें मिलने का समय दें ताकि वे मणिपुर राज्य से जुड़े मुद्दों को उन के समक्ष रख सकें.

कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस महासचिव जयराम ने इस पर विस्तार से प्रकाश डाला था और बताया कि कांग्रेस, जनता दल (एकी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) तृणमल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, औल इंडिया फारवर्ड ब्लौक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (यूबीटी) और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी). इस तरह एक तरह से विपक्ष ने अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाते हुए 12 जून, 2023 को लगभग 10 दिन पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से संवाद करते हुए नरेंद्र मोदी से मिलने की पेशकश की थी ताकि मणिपुर में शांति का रास्ता निकल सके.

जयराम रमेश चाहते थे कि मणिपुर में समान विचार वाले 10 विपक्षी दलों के नेता प्रधानमंत्री से मिल कर जलते हुए मणिपुर में शांति कायम करने का प्रयास करेंगे. उन्हें विश्वास था कि प्रधानमंत्री विदेश यात्रा के लिए रवाना होने से पहले इन नेताओं से मिलेंगे. मगर ऐसा नहीं हुआ और विपक्ष को अनदेखा करते हुए प्रधानमंत्री अमेरिका रवाना हो गए.

विपक्ष की सुने सरकार

यहां याद दिलाते चलें कि 20 साल पहले भी मणिपुर जल रहा था और उस समय सभी दलों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने का आग्रह किया था. इस के बाद सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वाजपेयी से 2 बार मिला और इस तरह आखिरकार मणिपुर में शांति कायम हो गई थी.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश कहते हैं,”प्रधानमंत्री से हम कहना चाहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी को याद रखिए.”

रमेश ने आरोप लगाया कि मणिपुर की मौजूदा स्थिति के लिए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिम्मेदार है. मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोब सिंह ने कहा है कि हम राजनीति करने के लिए नहीं आए हैं, प्रधानमंत्री से सिर्फ यह आग्रह करना चाह रहे हैं कि पहले मणिपुर में सामान्य स्थिति सुनिश्चित की जाए और फिर 2 समुदायों के बीच बातचीत शुरू की जाए. मणिपुर में मई से मेड़ती और कुक समुदाय के लोगों के बीच भड़की जातीय हिंसा के बाद से 100 से अधिक लोगों की जानें चली गई हैं. कुल जमा यह कि अमेरिका के सांसद भारत के मणिपुर में इंटरनैट बंद करने पर सवाल उठा रहे हैं। मणिपुर के अशांत होने पर चिंता जाहिर कर रहे हैं और दूसरी तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा में अपने जयकारे लगवा रहे हैं.

Navya Nanda Video : अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या की हिंदी से इंप्रेस हुए लोग, बांधे तारीफों के पुल

Navya Naveli Nanda Viral Video : अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली नंदा आए दिन सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. वह अपनी जिंदगी की हर एक अपडेट अपने फैंस के साथ शेयर करती है. अभी तो उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम भी नहीं रखा है. इससे पहले ही वह फैंस की फेवरेट बन गई हैं. नव्या एक बिजनेसवुमैन हैं, जो महिलाओं के लिए काम करती हैं.

इस समय सोशल मीडिया पर नव्या (Navya Naveli Nanda Viral Video) का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह हिंदी भाषा में लोगों की भलाई के बारे में बात कर रही हैं. इससे उनके फैंस उनकी सोच से तो इंप्रेस हुए है ही. साथ ही लोग उनकी हिंदी की भी तारीफ कर रहें हैं.

जानें क्या कहा नव्या ने?

आपको बता दें कि, अपने सोशल मीडया अकाउंट पर नव्या (Navya Naveli Nanda Viral Video) ने खूद ये वीडियो शेयर किया है. जो उनके एक इंटरव्यू का टीजर है. वीडियो में नव्या कहती हैं, ‘एक चीज जो बार-बार सुनती हूं वह यह है कि आप बहुत यंग हो. आपके पास एक्सपीयंस नहीं है. तो ऐसे में एक सवाल आता है कि अरे आप तो 25 साल की हो. लाइफ के बारे में आपको क्या एक्सपीरियंस है? तो आप कैसे हेल्थकेयर, लीगल अवेयरनेस और घरेलू हिंसा आदि विषयों के बारे में काम कर सकती हो?’

नव्या- इस जनरेशन का क्या होगा?

इसके आगे नव्या कहती हैं, ‘मैं हमेशा सोचती हूं कि अरे मैं अगर 80 साल तक रुक जाऊं कुछ करने के लिए तो दुनिया का क्या होगा? हमारे देश के कम से कम 80 प्रतिशत लोग हमारी उम्र यानी 20-30 साल के ही हैं. अगर हम सब अभी 50 साल तक इंतजार करेंगे कुछ करने के लिए तो इस पीढ़ी का क्या होगा? इस जनरेशन का क्या होगा? और फिर देश में बदलाव कौन लाएगा? मुझे लगता है कि ये जो बच्चों की नई पीढ़ी आई है. उन्हें इतना ज्ञान है वो भी इतनी कम उम्र में, तो हमे उन्हें अंडरएस्टिमेट नहीं करना चाहिए क्योंकि आज हम बहुत कैपेबल है.

नव्या की हिंदी पर फिदा हुए फैंस

इस वीडियो में नव्या (Navya Naveli Nanda Viral Video) हिंदी में बोल रही है, जिसे देखकर यूजर्स उनसे इंप्रेस हो गए हैं. उनके इस पोस्ट पर लोग जमकर कमेंट कर रहे हैं. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘नव्या की हिंदी बहुत शानदार है. ऐसे ही अच्छा काम करती रहो. मुझे वो पेरेंट्स समझ नहीं आते हैं जो अपने बच्चों को हिंदी नहीं सिखाते हैं.’ वहीं एक अन्य यूजर ने तो बॉलीवुड पर ही तंज कस दिया. उसने लिखा, ‘इकलौती स्टार किड जिसके पास दिमाग है’.

YRKKH: अबीर को अक्षरा से हमेशा के लिए दूर ले जाएगा अभिमन्यु, देखें वीडियो

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai New Promo : स्टार प्लस का सबसे पॉपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की टीआरपी लगातार बढ़ती जा रही है। हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौर का ये सीरियल टीवी का सबसे चहेता शो बना हुआ हैं। शो में आए दिन नए-नए ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिलते रहते है। शो के पिछले एपिसोड में दिखाया गया था कि मंजरी अभिनव से भीख मांगती है, जिससे अक्षरा और अभिमन्यु एक हो जाए। हालांकि ये सारी बाते आरोही सुन लेती है, जिससे उसका दिल टूट जाता है।

हाल ही में शो (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai New Promo) के मेकर्स ने सीरियल ‘ये रिशता क्या कहलाता है’ का एक नया प्रोमो शेयर किया है, जिसमें देखा जा रहा है कि अब जल्द ही अक्षरा की जिंदगी में भूचाल आने वाला है।

आगामी एपिसोड में आएगा नया ट्विस्ट

शो के लेटेस्ट प्रोमो (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai New Promo) में दिखाया गया है कि अबीर कहीं जा रहा है, जिसके जाने से पहले अक्षरा उसे कुछ समझा रही है। इस बीच अक्षरा रोने लगती है तो अबीर उससे कहता है कि मैं हमेशा-हमेशा के लिए थोड़ी न जा रहा हूं कुछ समय में ही वापस आ जाउंगा।

इसके आगे देखने को मिलेगा कि अभिमन्यु अबीर को अक्षरा-अभिनव से छीन कर बिरला हाअस लेकर जा रहा होता है। इसे देख अभिनव अक्षरा से कहता है आज कानून के सामने मां की ममता हार गई। अबीर को जाता देख अक्षरा बहुत रोती है। इस प्रोमो को देखने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि अब जल्द ही शो में अबीर की कस्टडी की कहानी शुरू होगी।

सब से बड़ा रुपया

‘‘नहीं खाऊंगी, नहीं खाऊंगी,’’ राशि इतनी जोर से चीखी कि रुक्मिणी देवी कांप उठी थीं.

राशि का हाथ लगने से रुक्मिणी देवी के हाथ से प्लेट गिर कर चकनाचूर हो गई थी. राशि के चीखने और प्लेट गिरने की आवाज सुन कर दालान में काम करते मंगल की भवें तन गई थीं. उस के हाथ एकदम थम गए. वह तेजी से अंदर आया और राशि पर एक भरपूर नजर डाली. उस की आंखों में इतना क्रोध था कि राशि ने सहम कर नजरें झुका ली थीं.

‘‘उठो, थाली लो, उस में खाना निकाल लो. खुद भी खाओ और हार्दिक को भी खिलाओ. यहां कोई नहीं है तुम्हारे नखरे उठाने को,’’ मंगल की चेतावनी सुन कर राशि और उस से एक साल छोटा हार्दिक दोनों ही सहम गए. रुक्मिणी देवी ने कनखियों से मंगल को शांत रहने का इशारा किया.

‘‘मुझे नहीं रहना यहां. मैं तो मम्मीपापा के पास जाऊंगा,’’ बहन को रोते देख कर हार्दिक गला फाड़ कर रो उठा.

‘‘कहीं नहीं जाना है. कहा न, खाना खा लो,’’ कहते हुए मंगल ने मारने के लिए हाथ उठाया.

‘‘रहने दे, बेटा, बहुत छोटा बच्चा है. क्यों सताता है उसे?’’ रुक्मिणी देवी ने मंगल को रोकते हुए कहा.

‘‘छोटा है तो छोटे की तरह रहे, दोनों भाईबहनों ने मिल कर जीना मुश्किल कर रखा है,’’ मंगल बेहद गुस्साए स्वर में बोला.

रुक्मिणी देवी ने हार्दिक को गोद में बिठा कर उस के आंसू पोंछे. उसे देख मंगल की आंखें भी छलछला आई थीं. नीलेश बाबू अपने कमरे में से मांबेटे का यह वार्त्तालाप अपनी थकी आंखों से देख रहे थे.

‘‘मामाजी, मुझे माफ कर दो. हम दोनों ने आप को बहुत दुख पहुंचाया है. अब हमें जो भी मिलेगा, चुपचाप वही खा लेंगे. कभी जिद नहीं करेंगे,” राशि बोली.

रुक्मिणी देवी ने फिर खाना निकाल कर दोनों बच्चों को खिलाया. थोड़ाबहुत खा कर दोनों बच्चे सो गए, तो रुक्मिणी देवी काम में लग गईं. पर मंगल शून्य में ताकता बैठा रहा. उस की बहन उर्मिला का हंसताखिलखिलाता चेहरा उस की आंखों में तैर गया था. कितनी सुखी गृहस्थी थी उस की. किराने की बड़ी सी दुकान से 5-6 लोगों के परिवार का काम अच्छी तरह चल जाता था. दोमंजिला मकान उन की संपन्नता की पहचान था, पर भूकंप के उन कुछ क्षणों ने सबकुछ लील लिया था. नीचे की मंजिल पर उस की बहन उर्मिला, उस का पति रीतेश, छोटा भाई और विधवा मां सब दब गए थे. दोमंजिला घर मानो किसी बड़े से अंधे कुंए में धंसता चला गया था.

उस पर विडंबना यह थी कि दोनों बच्चे राशि और हार्दिक डरेसहमे सुबकते हुए भुज में स्थित अपने घर से ऐसे निकल आए मानो कुछ हुआ ही न हो. उन के शरीर पर खरोंच के निशान तक न थे. नानानानी नीलेश लाल व रुक्मिणी देवी और मामा मंगल के अलावा केवल दूर के रिश्ते की एक बूआ ऋचा थी, जो भाई के परिवार पर आई विपत्ति का समाचार सुन कर वहां पहुंची अवश्य थी, पर बच्चों का भार उठाने में अपनी असमर्थता जता कर चली गई थी.

राशि और हार्दिक को रुक्मिणी देवी बिना कुछ बताए अपने साथ ले आई थीं. पहले से डरेसहमे बच्चों को सचाई बताने का उन का साहस नहीं होता था. वे जब भी मातापिता के बारे में पूछते तो नानानानी और मामा उन्हें यही बताते कि उन के मम्मीपापा ऊना गए हैं जरूरी दवाएं खरीदने.

‘इतने दिन हो गए अभी तक लौटे क्यों नहीं, मम्मीपापा?’ राशि दिन में 3-4 बार पूछ लेती और हार्दिक तो मचल कर, रोरो कर घर सिर पर उठा लेता था. यहां तक कि रुक्मिणी देवी और मंगल, उर्मिला और उस के परिवार को याद कर के फूटफूट कर रो पड़ते थे. नीलेश बाबू धैर्य से सब के आंसू पोंछते रहते थे.

मित्रों, सगेसंबंधियों को समझा दिया गया था कि बच्चों को उन के मम्मीपापा के बारे में कुछ न बताया जाए. उन से ऐसा ही व्यवहार किया जाए मानो उन के मम्मीपापा कहीं बाहर गए हैं और शीघ्र ही लौट आएंगे, पर वृद्ध दंपती को यही चिंता खाए जा रही थी कि बच्चों की देखभाल कैसे होगी. उन दोनों की तो खैर आयु हो चली थी.
उन के बेटे मंगल की लोहे के कलपुरजे बनाने की छोटी सी वर्कशौप थी. अभी तो मंगल गुजरबसर लायक कमा लेता था, पर कल को विवाह होगा तब उस की पत्नी पता नहीं बच्चों की देखभाल करेगी भी या नहीं. इन्हीं बातों को सोच कर रुक्मिणी देवी की रातों की नींद उड़ जाती थी.

‘‘देखो तो, दोनों कैसे चैन की नींद सो रहे हैं, भोलेभाले, निश्छल, निष्कपट मानो केले के पत्ते पर ओस की बूंद,” रुक्मिणी देवी सोते हुए बच्चों को निहारती हुई बोलीं.

‘‘वाह, तुम तो बच्चों को देखते ही कविता करने लगीं. पर सोचो, यह सब कितने दिन चलेगा. जब इन्हें पता चलेगा कि इन के मम्मीपापा इस दुनिया में नहीं रहे तो क्या गुजरेगी इन पर,’’ नीलेश बाबू गंभीर स्वर में बोले.

‘‘यह सब सोच कर तो कलेजा मुंह को आता है. कौन करेगा मांबाप की तरह इन की सारसंभाल…’’ रुक्मिणी देवी की आंखें डबडबा आईं और स्वर भर्रा गया.

‘‘मेरे मन में एक बात आई है. यदि तुम लोग तैयार हो, तो मैं कुछ कहूं,’’ नीलेश बाबू धीरे से बोले.

‘‘अरे, तो कहो न. इस में अनुमति मांगने की कौन सी बात है,’’ रुक्मिणी देवी मुसकराई थीं.

‘‘क्यों न हम इन दोनों बच्चों को संपन्न परिवारों में गोद दे दें. निसंतान दंपतियों को संतान मिल जाएगी और इन अनाथ बच्चों को मातापिता.’’

‘‘कोई ऐसा परिवार है क्या आप की नजरों में?’’

‘‘कल ही एक समाजसेवक मिले थे. कहने लगे, कैसी विडंबना है, कहीं बच्चे मातापिता का प्यार पाने को तरस रहे हैं और कहीं मातापिता एक अदद बच्चे के लिए अपना सबकुछ निछावर करने को तैयार हैं,’’ नीलेश बाबू ने अपनी बात स्पष्ट की, ‘‘बातोंबातों में राशि और हार्दिक की बात निकली थी. वह तो कह रहा था कि एक अत्यंत संपन्न दंपती को जानता है, जहां बच्चे राज करेंगे, राज.’’

‘‘फिर आप ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने तो कह दिया कि घर बुलाओ उन्हें चायनाश्ते पर. बच्चों को उन्हें सौंपने से पहले हम भी तो अपनी तसल्ली कर लें,’’ नीलेश बाबू ने बताया.

‘‘ठीक ही किया आप ने.’’

‘‘क्या खाक ठीक किया, हमारा खून क्या इतना सफेद हो गया है कि उर्मिला के बच्चों को किसी अन्य को सौंप देंगे,’’ रुक्मिणी देवी की बात पूरी होने से पहले ही मंगल चीख उठा था.

‘‘बेटे, कोरे उत्साह से काम नहीं चलता. तुम क्या समझते हो हमें राशि और हार्दिक प्यारे नहीं हैं. पर जीवन केवल भावुकता से नहीं जिया जाता. फिर संपन्न परिवार में जाने से बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा,’’ नीलेश बाबू धीरगंभीर स्वर में बोले.

‘‘साफसाफ क्यों नहीं कहते कि आप का बेटा इतना नालायक है, जो अपनी बहन के बच्चों का भार उठाने लायक ही नहीं है?’’ क्रोधित स्वर में वह बोलता हुआ बाहर निकला.

‘‘आप उस की चिंता न करें. मंगल को तो दुनियादारी की समझ ही नहीं है, पर मेरे जीतेजी बच्चे जीवन में सुव्यवस्थित हो गए तो चैन से आंखें मूंद सकूंगी,’’ रुक्मिणी देवी ने अपना निर्णय सुनाया.

दूसरे ही दिन वह समाजसेवक श्रीधर एक दंपती कमलेश्वर और उस की पत्नी कामायिनी को ले कर आ गया. रुक्मिणी देवी ने राशि और हार्दिक को सजाधजा कर प्रस्तुत किया.

‘‘बहुत ही प्यारे बच्चे हैं,” कामायिनी ने बच्चों को देखते ही कहा.

‘‘बच्चो, आप के मम्मीपापा कहां हैं?” कमलेश्वर ने पूछा.

‘‘ऊना गए हैं, हमारे लिए दवा लेने. यह मेरा छोटा भाई है न, हार्दिक, जब देखो तब बीमार पड़ता रहता है,” राशि बोली.

‘‘ठीक है, आप दोनों अंदर जा कर खेलो. बड़ों के बीच बच्चों का क्या काम,” रुक्मिणी देवी ने प्यार से उन्हें थपथपाते हुए कहा, तो राशि और हार्दिक कमरे में चले गए.

‘‘देखिए, हम तो एक ही बच्चा चाहते हैं, वह भी एक साल से छोटा, जिसे हम अपने समान ढाल सकें,’’ कामायिनी बोली.

‘‘हम आप की बात समझते हैं, पर हम अपने बच्चों को अलग नहीं कर सकते. मातापिता से अलग हो कर उन्हें एकदूसरे के साथ का ही तो सहारा है,’’ नीलेश बाबू दुखी स्वर में बोले.

‘‘वही तो, आप ने तो बच्चों को उन के मातापिता के निधन के बारे में कुछ बताया तक नहीं है. यदि आप उन्हें बता देते तो अब तक तो वे संभल जाते. इस बात को आप कब तक उन से छिपाएंगे.’’

‘‘हो सकता है कि आप ठीक कह रहे हों, पर हमारे विचार आप से पूरी तरह भिन्न हैं. हम नहीं चाहते कि इतने छोटे बच्चों को ऐसी भयानक सचाई बता कर आहत कर दें,’’ रुक्मिणी देवी आहत हो उठीं.

‘‘श्रीधर बाबू, उस संबंध में पूछिए न,’’ कमलेश्वर ने समाजसेवक श्रीधर से कहा.

‘‘आप ही पूछ लीजिए. मैं नहीं चाहता कि दोनों पक्षों के बीच कुछ गुप्त रहे.’’

‘‘बात क्या है,’’ नीलेश बाबू हैरान स्वर में बोले.

‘‘हम पूछना तो नहीं चाहते, पर बच्चों के भविष्य के बारे में कोई निर्णय लेने से पहले यह जानना भी जरूरी है.’’

‘‘हां, कहिए न, हम भी कुछ छिपाना नहीं चाहते.’’

‘‘आप की पुत्री का परिवार अपेक्षाकृत संपन्न ही था न, नीलेश बाबू,’’ कमलेश्वर ने पूछा.

‘‘जी हां, पर आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘अब, जब उन के परिवार में इन बच्चों के अलावा और कोई नहीं बचा है, तो जोकुछ परिवार की संपत्ति है इन बच्चों के नाम ही की जानी चाहिए,’’ कामायिनी ने अपना मंतव्य स्पष्ट किया.

‘‘देखिए, खातापीता परिवार था हमारी बेटी का, पर भूंकप में सब स्वाहा हो गया. घर का खंडहर अवश्य खड़ा है. उस भूमि का, जो भी मूल्य हो. उस के अलावा नकदी, गहनों या बैंक में जमा पैसे के बारे में हम कुछ नहीं जानते,’’ इस बार उत्तर रुक्मिणी देवी ने दिया.

‘‘तो पता कीजिए न, नीलेश बाबू. अब संसार में आप के अलावा इन का है ही कौन?’’ कमलेश्वर ने कहा और चलने को उठ खड़े हुए.

मंगल के क्रोधित चेहरे का बदलता रंग नीलेश से छिपा नहीं रहा था. वह कुछ कहता, इस से पहले ही उन्होंने इशारे से उसे शांत रहने को कहा.

कमलेश्वर और कामायिनी श्रीधर के साथ बाहर निकल गए. कुछ देर बाद श्रीधर फिर आया और बोला, ‘‘आप गलत मत समझिएगा, नीलेश बाबू, हाल ही में कमलेश्वरजी को व्यापार में भारी घाटा हुआ है. वे अब ऐसे अनाथ बच्चे को गोद लेना चाहते हैं जिस के नाम कम से कम 10 लाख रुपए तो हों, ताकि उस रकम से उन का व्यापार पटरी पर आ सके.’’

‘‘भूकंप ने कई अभागों को अनाथ बना दिया है. कोई ‘आंख का अंधा, गांठ का पूरा’ मिल ही जाएगा. तो क्षमा ही कीजिए,’’ कहते हुए नीलेश बाबू ने हाथ जोड़ दिए.

‘‘देख लीजिए, परिवार बहुत शालीन व सुसंस्कृत है,” श्रीधर ने सिफारिश की.

‘‘नहीं, श्रीधर बाबू, यह संभव नहीं हो सकेगा. हम बूढ़े व अशक्त ही सही. इन का मामा मंगल इन का लालनपालन बिना किसी लालच के कर सकता है.”

श्रीधर ने 2-4 निसंतान दंपतियों को नीलेश बाबू व रुक्मिणी देवी से और मिलवाया, पर हर जगह किसी न किसी रूप में धनसंपत्ति का प्रश्न आ जाता.

एक दिन मंगल ने स्पष्ट स्वर में घोषणा कर दी थी कि राशि और हार्दिक कहीं नहीं जाएंगे. वे उन के साथ ही रहेंगे. यदि नीलेश बाबू व रुक्मिणी देवी चाहें तो वह आजीवन अविवाहित रहने को भी तैयार है.

“दूसरा भीष्म पितामह बनने की जरूरत नहीं है. हम तुम्हारे लिए ऐसी पत्नी ढूंढ़ेंगे, जो राशि और हार्दिक का भार भी संभालने को तैयार हो,” रुक्मिणी देवी ने मंगल की बात पर अपनी मुहर लगा दी.

जीवन अपने ही ढर्रे पर चलने लगा. राशि और हार्दिक का स्कूल में दाखिला करवा दिया गया. बच्चे भी ननिहाल में घुलनेमिलने लगे. लगता था, कुछ ही समय में सबकुछ सामान्य हो जाएगा, पर एक दिन अचानक ही राशि और हार्दिक की दूर रिश्ते की बूआ ऋचा आ पहुंची. आते ही राशि और हार्दिक को गले लगा कर वह विलाप करने लगी, ‘‘कैसी विपत्ति आई है मेरे बच्चों पर? इतनी कम उम्र में मातापिता, चाचा, दादी सब सिधार गए. मैं ने सोचा, इन बच्चों का भार आगे से मैं ही उठाऊंगी.’’

‘‘मेरी दीदी, जीजाजी को एक तो 6 माह से ऊपर हो गए, आज अचानक ही राशि और हार्दिक की याद कैसे आ गई,’’ मंगल ने व्यंग्य किया.

‘‘बनो मत मंगल, हम भी इसी धरती पर रहते हैं. तुम भी तो इन बच्चों को गोद देने वाले थे, फिर इरादा कैसे बदल दिया. पर यह मत समझना कि 10 लाख रुपए अकेले ही हड़प जाओगे,’’ ऋचा बोली.

‘‘10 लाख रुपए? किस 10 लाख रुपए की बात कर रही हो.’’

‘‘इतने भोले मत बनो, जैसे कि तुम जानते ही नहीं कि राशि और हार्दिक को 10 लाख रुपए बीमे की रकम मिलने वाली है.”

‘‘ओह, तो इसीलिए राशि व हार्दिक के प्रति आप का स्नेह उमड़ पड़ा है,’’ कहता हुआ मंगल व्यंग्य से मुसकराया, ‘‘मैं आप का अनादर नहीं करना चाहता. पर आप यहां से चली जाएं, इसी में सब की भलाई है,’’ मंगल क्रोधित स्वर में बोला.

‘‘ठीक है, अभी तो मैं चली जाती हूं, पर मैं फिर आऊंगी. रकम तुम्हें अकेले नहीं हजम करने दूंगी,” कहती हुई ऋचा चली गई.

अब सब का ध्यान राशि और हार्दिक की ओर गया था. वे दोनों पत्थर की मूरत बने बैठे थे.

‘‘क्या हुआ?’’ रुक्मिणी देवी ने पूछा.

‘‘मम्मीपापा दवा लेने नहीं गए हैं न, नानीमां. वे अब कभी नहीं आएंगे न,’’ राशि ने रोंआसे स्वर में पूछा और जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही दोनों बच्चे फूटफूट कर रो पड़े. नीलेश बाबू, मंगल और रुक्मिणी देवी उन्हें चुप कराने का प्रयत्न कर रहे थे, तभी फोन की घंटी बज उठी.

‘‘राशि और हार्दिक कैसे हैं? मैं उन का चचेरा चाचा प्रसून बोल रहा हूं.’’

‘‘ओह, काफी जल्दी याद आई है, उन की. स्वयं ही आ कर देख लीजिए न,’’ कह कर मंगल ने रिसीवर पटक दिया.

‘‘लगता है, इन बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए किसी वकील से सलाह लेनी पड़ेगी,’’ कहते हुए नीलेश बाबू बाहर निकल गए.

व्यंग्य : फर्जी हुई तो क्या हुआ

हमारे महल्ले के वरिष्ठ नागरिकों के पास एकदूसरे की टांग खींचने के सिवा कोई काम नहीं. दूसरे काम वे कर भी नहीं सकते. सुबह चाय ली और लग गए आज जिस की टांग खींचनी है, उस प्रोजैक्ट पर काम करने. चाय के बाद बैठे तो प्रभु पूजन को परलोक सुधारने के लिए, लेकिन दिमाग में प्रोजैक्ट वही. बैठे हैं प्रभु भजन को, सोचन रहे टांग. वैसे, गीता में कहा भी है कि कर्म ही पूजा है. यहां कुकर्म/सुकर्म कुछ नहीं. सब व्यक्ति सापेक्ष है. जो बलवान है उस के कुकर्म सुकर्मों से भी आगे का फल देते हैं.

फिर लंच किया और दो घड़ी सुस्तातेसुस्ताते भी लगे रहे किसी की टांग खींचने के प्लान को अमली जामा पहनाने, भले ही खुद उस वक्त पाजामा पहना हो या न. रात को डिनर किया और डिनर के बाद बिस्तर पर पड़ेपड़े करते रहे मंथन कि आज जिस की टांग खींची थी, उस में कहां, कैसे, क्या तकनीकी कमी रह गई थी जो टांग खींचने के बदले उस की टांग मरोड़ने के बाद भी मजा नहीं आया ताकि कल जो किसी की टांग खींची जाए तो वह कमी न रहे.

इसी क्रम के उपक्रम में हर रोज आठ पहर चौबीस घंटे अपने महल्ले के कुछ खास वरिष्ठ टाइप के वरिष्ठ चैलेंज देते हुए दूसरों की टांग खींचने का परमानंद लेते हैं तो कुछ दब्बू टाइप के टांगखेंचू या सरेआम जिन में टांग खींचने का दुस्साहस नहीं होता वे परोक्ष में किसी दूसरे की टांग पर अपनी टांग रख दूसरों की टांग खींचने का जौहर दिखाते हैं.

निर्लिप्त भाव के टांग खेंचुओं की सब से बड़ी तमन्ना, बस, यही होती है कि उन्हें बातबेबात किसी की भी टांग खींचने का नियमित जौब मिलता रहे तो वे स्वर्ग (अगर कहीं है तो) में. जबजब उन की यह इच्छा पूरी हो जाए तो वे तब तक उस की टांग खींचने से नहीं छोड़ते जब तक उन्हें कोई अगली टांग खींचने को नहीं मिल जाती. जो ऐसा न हो तो वे गुस्से में अपने समय को कोसते हुए अपनी ही टांग खींच लेते हैं, अपने समय को सौसौ जूते मारते हुए.

तो जनाब! किसी की भी, कभी भी, कहीं भी टांग खींचने के मामले में मेरे और उन के बीच एमओयू साइन हुआ है. इसलिए मैं और वे एकदूसरे के टांगखींची दोस्त हैं. हम दोनों पूरी ईमानदारी व निष्ठा से दूसरों की टांग मिल कर खींचते हैं. जो आज के दौर में मिल कर कोई भी काम करें, उन की जीत पक्की नहीं, बिलकुल पक्की होती है. संघे शक्ति ठगेयुगे! वैसे, चोरीचोरी हम एकदूसरे की टांग भी कभीकभार खींच लेते हैं. ऐसा करने से टांग खींचने की मौक रिहर्सल हो जाती है. कल वे चाय पीने के बहाने मुझे गुप्त सूचना देने आए. आते ही बोले, ‘यार, महल्ले के सीनियरों से सीनियरों का एक धड़ा तुम्हारी डिग्री की टांग खींचने की तैयारी में है. वे कह रहे हैं, ‘तेरी डिग्री फर्जी है.’

‘कहने दो, मैं तो उसी डिग्री के सहारे 30 साल तक सीना तान कर प्रोफैसरी कर के ससम्मान रिटायर भी हो चुका हूं. अब रिटायरमैंट के बाद क्या असली, क्या नकली. कुत्तों को भूंकने से और विपक्ष को हमजैसों पर कीचड़ उछालने से कौन रोक सकता है भला,’ मैं ने अपनी पीठ खुद ही ठोकते हुए कहा.

‘मतलब?’

‘ मतलब यह कि असली यहां आज है ही कौन? यहां न संस्कार असली हैं न चमत्कार असली. ऐसे में पता नहीं इन्हें किसी की डिग्री को चैंलेज करने से मिलता क्या है? अरे, हर डिग्री एक कागज का टुकड़ा ही तो है. चाहे असली हो या नकली. डिग्री फर्जी भी होगी तो मेरी ही है न! उन की तो नहीं है न! जब मैं ही किसी की असली डिग्री को चैलेंज नहीं कर रहा तो वे मेरी डिग्री की असलियत या उस के फर्जीपने को ललकारने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रखते. जिन की असली डिग्रियां हों वे संभाले रहें अपनी असली डिग्रियां, अपनी छाती से लगाएचिपकाए अपने पास और खाते रहें औफिसऔफिस धक्के. देते रहें इस को उस को जस्टिफिकेशन कि साहब, मेरी डिग्री सोलह आने टंच हैं. पर जो सब के पास असली डिग्रियां होने लगें तो देश में असली डिग्रियों वाले कागज की कमी पड़ जाए. असली डिग्रियां छापने को स्याही विदेश से मंगवानी पड़े. विश्वविद्यालयों में उन का रिकौर्ड मेनटेन करने को रजिस्टर कम पड़ जाएं. अच्छा तो एक बात बताओ, यहां असली डिग्रियों से आज तक कौन बड़ा हुआ? असली डिग्री वाले भी कुछ न कुछ सपोर्टिंग अपने पास फर्जी रख ही लेते हैं वक्त पर काम आने के लिए. आदमी डिग्रियों से बड़ा नहीं होता, आदमी बड़ा होता है तो पढ़ेलिखों को उल्लू बनाने से. और वह मैं मजे से बनाता रहा हूं, बनाता रहूंगा. तुम ने मदारी का खेल देखा है क्या?’

‘हां,बचपन में देखा था.’

‘उस के खेल को देख अधिकतर कौन तालियां बजाते हैं?’

‘पढ़ेलिखे ही ज्यादा, पर इस का मतलब…?’

‘मतलब यह कि यहां दुनियादारी की बाजीगरी सिर चढ़ कर बोलती है, असली डिग्री नहीं. सर्वोच्च राजनीतिक पद पर बैठे व्यक्ति के पास असली डिग्री है क्या! इसलिए फर्जी हुई तो क्या हुआ, खाए मोतीचूर. असली को भी छाया दे, फर्जी पर मुझे गरूर,’ मैं ने उपदेशक हो कहा तो उन्होंने मुझ से बड़े होने के बाद भी सादर मेरे पावं छुए और बिन चाय पिए ही वहां से नौ दो बारह हो लिए.

एड़ियां ऊंची करने से कोई ऊंचा थोड़े ही हो जाया करता है, मित्रो! इस के लिए कीचड़ से नींव होना जरूरी होता है.

4 साल बाद जब मैं घर गई तो माता-पिता ने मुझे अपनाने से मना कर दिया नहीं, अब क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 28 वर्ष है, मैं पिछले 4 वर्षों से पेरैंट्स से दूर रह रही हूं क्योंकि मेरी उन से हमेशा लड़ाई होती रहती थी. मुझे रोकटोक बिलकुल भी पसंद नहीं है. पिछले दिनों मुझे खबर मिली कि मां की तबीयत काफी खराब है, जिस से पिता काफी परेशान हैं. ऐसे में घर के हालात को देखते हुए मेरा उन से मिलने का बहुत मन करता है. लेकिन बस यही सोच कर पीछे हट रही हूं कि मै किस मुंह से उन से मिलने जाऊंगी. कहीं उन्होंने मुझे घर में घुसने से ही मना कर दिया तो? आप ही बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब

भले ही आप उन से हमेशा लड़ती रहती हों जिस के कारण आप ने घर से दूर जाने तक का फैसला कर लिया हो, लेकिन आप की बातों से लग रहा है कि आप आज भी उन से बहुत प्यार करती हैं. तभी, आप से उन का दर्द नहीं देखा जा रहा. ऐसे में आप बिना सोचेसमझे उन से मिलने पहुंच जाएं और अपनी गलती के लिए उन से माफी मांगें. यकीन मानिए आप को देखने मात्र से ही वे आप को माफ करने के लिए तैयार हो जाएंगे. वहां रह कर आप काम में हाथ बंटाएं और फिर कभी भूल कर भी घर से दूर जाने की बात मन में मत लाइए.

अकसर इस उम्र में हम सपनों की दुनिया में ज्यादा जीने लगते हैं. हमें लगने लगता है कि हम अकेले ही सबकुछ संभाल लेंगे लेकिन जब हकीकत से वास्ता पड़ता है तब समझ आता है कि भले ही हम कितनी भी ऊंचाइयों को छू लें लेकिन अपनों का साथ हमेशा जरूरी होता है. इसलिए कभी भी अपनों से दूर जाने की बात मत सोचिए.

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पौराणिक उपन्यास महाभारत जिस में भाईभाई जमीनजायदाद के लिए युद्ध के मैदान में आ कर एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, में एक किशोर पात्र है अभिमन्यु, जो कौरवों के बनाए चक्रव्यूह में घिर जाता है और अपनी नासमझी के चलते मारा जाता है. जाहिर है वह वीर नहीं बल्कि बेवकूफ था, जिस ने अपने पिता अर्जुन और उस के भाइयों की लड़ाई लड़ी. कम उम्र के चलते अभिमन्यु में जोश तो था पर उसे यह मालूम नहीं था कि अपने से बड़ों से लड़ा कैसे जाना है. कथानक को दिलचस्प बनाने के लिए लेखक ने इस उपन्यास में एक ऐसे चक्रव्यूह की कल्पना की है, जिस में से निकलना असंभव था पर अभिमन्यु इस में गया और इस चक्रव्यूह भेदन में मारा गया.

आज का हर किशोर खुद को इसी तरह के किसी चक्रव्यूह में घिरा पाता है. जब उस के मम्मीपापा की लड़ाई किसी और से हो जाती है और अधिकांश किशोर स्वाभाविक बात है मांबाप का झगड़ा लड़ना अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं.

भोपाल के 14 वर्षीय उत्कर्ष का किस्सा एक उदाहरण है कि बच्चों को मांबाप के बाहरी झगड़ों में क्यों नहीं पड़ना चाहिए. अब से एक साल पहले उत्कर्ष अपने मम्मीपापा के साथ पुरी घूमने जा रहा था. पुरी पहुंचने के लिए उन्हें बीना जंक्शन से ट्रेन बदलनी थी. बीना स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करतेकरते उत्कर्ष मन ही मन पुलकित हो रहा था कि पुरी और चिलका झील जो डौलफिन मछलियों के लिए जानी जाती है, घूमने में कितना मजा आएगा. वह भी तब जब पापा ने सारा टूर प्लान कर रखा है और भुवनेश्वर सहित ओडिसा के दूसरे पर्यटन स्थलों पर भी ठहरने के लिए होटल बुक करा रखे हैं.

अभी उत्कर्ष खयालों की दुनिया में खोया अपने टूर के रोमांच के बारे में सोच ही रहा था कि प्लेटफौर्म पर बेखयाली में चलते उस के पापा एक अन्य मुसाफिर से टकरा गए. उस मुसाफिर ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘अंधे हो गए हो क्या?’’

उत्कर्ष के पापा भी ताव में आ गए और बोले, ‘‘अंधा मैं हूं या आप, देख कहीं रहे हैं और चल कहीं रहे हैं. आप को भी देख कर चलना चाहिए.’’

बस, देखते ही देखते खासा तमाशा खड़ा हो गया और उस मुसाफिर ने उत्कर्ष के पापा का गरीबान पकड़ लिया. इस पर उत्कर्ष को भी गुस्सा आ गया और उस ने जोरदार घूंसा पापा का गरीबान पकड़े मुसाफिर के पेट पर दे मारा, जिस से वह गिर गया. इस झगड़े के कारण वहां काफी भीड़ जमा हो गई और उन्हें हल्ला मचाने का खासा मौका और बहाना मिल गया. कोई चिल्लाया, ‘अरे देखो, कहीं मर तो नहीं गया.’ एक ने कहा कि आजकल के लड़कों की हिम्मत तो देखो सरेआम गुंडागर्दी करने लगे हैं.

भीड़ बढ़ी और नीचे पड़ा मुसाफिर उठा नहीं तो उस के पापा भी घबरा गए. उन्होंने मारे गुस्से के एक जोरदार थप्पड़ उत्कर्ष के गाल पर दे मारा कि तुझे क्या जरूरत थी बीच में पड़ने की. तभी हल्ला सुन कर पुलिस के 2 सिपाही भी लठ बजाते वहां आ गए. जैसेतैसे वह मुसाफिर होश में आया तो पुलिस वाले ने सभी को थाने चलने का हुक्म सुना दिया. पुलिस को देख भीड़ काई की तरह छंट गई, लेकिन थोड़ी देर बाद उत्कर्ष मम्मीपापा सहित रेलवे पुलिस के थाने में बैठा हुआ था. वह मुसाफिर माहौल अपने पक्ष में देख पहले से ही आक्रामक हो गया था और बारबार कह रहा था कि इन दोनों ने मुझे मारा जबकि गलती मेरी नहीं थी. आप मेरी रिपोर्ट लिखिए.  वहां मौजूद इंस्पैक्टर ने दोनों पक्षों की बातें सुनीं और फिर फटकार लगाई कि आप लोग खुद देखसमझ लीजिए. देखने में तो आप पढ़ेलिखे और शरीफ नजर आते हैं, पर स्टेशन पर गुंडेमवालियों की तरह झगड़ते हैं और शांति भंग करते हैं. मामला दर्ज हुआ तो दिक्कत आप लोगों को ही होगी, हमें नहीं.

फिर वह पुलिसकर्मी उत्कर्ष से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘और… साहबजादे, इस उम्र में आप के ये तेवर हैं तो बड़े हो कर डौन बनेंगे क्या, अपने पंख ज्यादा मत फड़फड़ाओ नहीं तो किसी दिन बुरे फंसोगे.’’

उत्कर्ष ने पहली बार थाना देखा था, जिस से वह सहम उठा था. उधर पापा परेशान थे कि इस बिन बुलाई मुसीबत से छुटकारा कैसे पाया जाए. उन से भी बुरी हालत मम्मी की थी जो पहले भीड़ और अब थाने का माहौल देख कर कांपने लगी थीं.

इस तरह की बातों में घंटा भर गुजर गया और आखिरकार कुछ लेदे कर और उत्कर्ष के पापा द्वारा उस मुसाफिर से माफी मांगने पर बगैर रिपोर्ट लिखे मामला सुलट गया, लेकिन इस बीच उन की पुरी जाने वाली उत्कल ऐक्सप्रैस भी निकल चुकी थी.

उत्कर्ष का सारा मजा किरकिरा हो गया. मम्मीपापा का भी मूड खराब हो गया था इसलिए वे यात्रा रद्द कर वापस भोपाल आ गए. एक संभावित मजा तो किरकिरा हुआ ही साथ ही पैसों की भी बरबादी हुई सो अलग और मानसिक यंत्रणा भी भुगतनी पड़ी.

इस घटना से कई बातें और वजहें समझ आती हैं, जिन के चलते यह कहा जा सकता है कि मांबाप के बाहरी झगड़ों में बच्चों को क्यों नहीं पड़ना चाहिए, फिर वे झगड़े चाहे कैसे भी हों यह बात खास माने नहीं रखती.

मांबाप कमजोर पड़ते हैं

मांबाप बच्चे की सुरक्षा के प्रति कितने गंभीर होते हैं, यह बात काफी बड़े हो जाने और कभीकभी तो खुद पिता बनने के बाद समझ आती है. कोई मांबाप नहीं चाहता कि उन के बच्चे को जरा सी भी चोट लगे, फिर हाथापाई में तो बड़ी चोट की आशंका रहती है.

जब मांबाप ऐसे किसी हादसे से जूझ रहे हों और बच्चा बीच में कूद पड़े तो उन की हालत पतली हो जाती है और वे लड़ाई में कमजोर पड़ने लगते हैं. उन का सारा ध्यान बच्चे की हिफाजत में लग जाता है या फिर उसे रोकने में, ऐसे में फायदा सामने वाले को ही मिलता है.

नासमझी भारी पड़ती है

गुस्से में किसी पर हमला करना नादानी वाली बात है, अगर वाकई चोट ज्यादा लग जाए तो कोई ऐसा हादसा भी हो सकता है, जिस की उम्मीद बच्चे नहीं कर पाते. ऐसा इसलिए कि वे बचाव कम हमला ज्यादा करते हैं, जो इस उम्र का तकाजा भी है, लेकिन बात आखिरकार है तो बेवकूफी वाली.

बढ़ता है झगड़ा

बच्चे सोचते हैं कि वे मांबाप की तरफदारी कर उन की हिफाजत कर रहे हैं, जबकि झगड़े के दौरान उन के बीच में कूदने से झगड़ा और बढ़ जाता है. झगड़ रहे लोग अपनी भड़ास निकल जाने के बाद समझौते के मूड में आ जाते हैं, पर यदि बच्चा बीच में कूद पड़े तो झगड़ा बजाय कम होने के और बढ़ता है.

किसी का फायदा नहीं

लड़ाईझगड़े तात्कालिक हों या दीर्घकालिक इन से किसी का फायदा या भला नहीं होता. यह एक अप्रिय स्थिति भर है जिसे समझबूझ से टाला जा सकता है, लेकिन बच्चों के बीच में पड़ने से मांबाप को ज्यादा मुश्किलें उठानी पड़ती हैं.

7वीं के छात्र शाश्वत के मांबाप का झगड़ा आएदिन पड़ोसियों से कचरा फेंकने को ले कर होता रहता था. एक दिन विवाद बढ़ा तो शाश्वत ने भी पड़ोसी अंकल को खरीखोटी सुना दी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई तो उन्होंने एक तमाचा उस के गाल पर लगा दिया, जिस से शाश्वत के कान का परदा फट गया. बाद में क्या हुआ यह ज्यादा अहम बात नहीं पर शाश्वत को लंबे इलाज से हो कर गुजरना पड़ा और आज भी वह थप्पड़ याद कर सहम उठता है यानी झगड़े सभी के लिए खासतौर से बच्चों के लिए तो नुकसानदेह साबित होते हैं.

शर्मिंदगी बहादुरी की

कई बार बच्चे उग्र हो कर मांबाप का पक्ष लेते हैं, लेकिन इस से मांबाप को कोई खुशी नहीं मिलती उलटे शर्मिंदगी ही उठानी पड़ती है. जब विवाद या झगड़ा मामूली हो और उन्हें यह सुनना पडे़ कि आप ने तो बच्चे को संस्कार ही नहीं दिए अभी से गुंडा बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, क्या? और दम है तो खुद सामने आओ, बच्चों को क्यों आगे करते हो. ऐसी बातें किसी भी मांबाप को शर्मिंदा करने वाली होती हैं.

बात गलत कहीं से नहीं है, हर बच्चा मांबाप को बहुत चाहता है और उन के झगड़ों को अपना समझता है, लेकिन इन्हें वह अपने ऊपर ले कर गलती करता है. वह यह नहीं सोच पाता कि उस के झगड़े में पड़ने से झगड़ा सुलझने के बजाय और बढ़ना तय है. सभी मांबाप बच्चों से शिष्ट और शालीन होने की उम्मीद रखते हैं पर हालात के चलते वे अशिष्ट हो जाएं यह पसंद नहीं करते.

बच्चों का यह सोचना भी गलत है कि उन के झगड़े में पड़ने से मांबाप खुश होंगे या फिर उन्हें शाबाशी देंगे, और न ही उन के ऐसा करने से उन्हें किसी तरह का सहारा मिलेगा, उलटे वे बच्चे के भविष्य को ले कर दुखी और आशंकित हो उठते हैं.

ऐसे में बच्चों को चाहिए कि वे मांबाप के बाहरी मामलों में दखल न दें, उन की लड़ाई चाहे वह कैसी भी हो उन्हें लड़ने दें, अपनी तरफ से कोई सिरदर्दी उन के लिए खड़ी न करें, जिस के चलते उन्हें हार कबूल करनी पड़े, नीचा देखना पड़े या फिर अस्पतालों, थानों और अदालतों के चक्कर काटने पड़े.

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