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दोस्ती अनमोल है इसकी बुनियाद सच्चाई है

दोस्ती  इस सृष्टि का अनमोल रिश्ता है, यह अकेला ऐसा रिश्ता है, जिसको कभी भी कितने ही लोगों से बांटा जा सकता है. यह रिश्ता खून के रिश्ते से भी अधिक गहरा और सगे रिश्ते से भी अधिक सच्चा होता है. ज़माने के बदलते दौर के साथ दोस्ते के स्वरूप भी बदला है, आधुनिक जीवन में तकनीक का बढ़ता योगदान दोस्ती के दायरे कों और फैला दिया है .

सोशल -नेट्वर्किंग सीटो और तकनीक ने हमारे दोस्तों कों और अधिक हमारे नजदीक ला दिया है. आधुनिक परिवेश में दोस्ती के स्वरूपों कों भापने और दोस्ती के अनमोल रिश्तो कों समझने के उद्देश्य से हमने कई युवाओ के बात किया, बातचीत के बाद जो नतीजो से पत्ता चला कि  आधुनिकता के इस दौर में भी दोस्ती का सच्चा रिश्ता सच, भरोसे और विश्वास पर टिका हुआ है.  आज भी दोस्ती का नीव सच के बुनियाद पर टिका है. आज भी बचपन के दोस्त  सबसे अधिक याद आते है . सृष्टि के इस अनमोल रिश्तो कों लेकर कि गई बातचीत के नतीजे विनय सिंह की कलम से…

दोस्ती इंसानी रिश्तों की रंगीनियों से भीगा एक खूबसूरत एहसास है. किसी ने कहा है कि दोस्त है तो जिंदगी है. तों कोई कहते है कि दुनिया में और कुछ न मिले और एक अच्छा दोस्त मिल जाए तो जीवन सफल है, लेकिन दुनिया की हर चीज मिल जाए और दोस्त न मिले तो सब कुछ व्यर्थ है. आधुनिक परिवेश में दोस्ती के स्वरूपों कों भापने और दोस्ती के अनमोल रिश्तो के रंग रूप कों जानने और समझने के उद्देश्य से हमने उत्तरप्रदेश,बिहार और दिल्ली के 200  युवाओ से बात कर दोस्ती से जुड़े विभिन्न प्रश्नों पर उनके विचार जानने की कोशिश किया  . जिसके परिणाम स्वरूप दोस्ती से जुड़े कई बाते उभर कर सामने आई जो साफ शब्दों में यह संदेश देती है कि  आज भी स्कूल के क्लास रूम से,कालेज के गलियारों तक बाजार के भीड़ से मॉल की शीतलता तक, गाँव के चौपाल से शहर के चराहे तक , छोटे शहरों के बड़े सपनों से बड़े शहरों की बड़ी उम्मीदों तक दोस्ती विभिन्न स्वरूपों में भिन्न रंग-रूपों में दिखता है . आज भी दोस्ती का सच्चा रिश्ता विश्वास और भरोसे के नीव पर टिका है. आज भी कई दोस्त अपने दोस्त के लिए अपने घर पर झूठ बोलते है, कई दोस्त तो अपने दोस्त को इस कदर चाहते है कि वह उसके बारे में एक शब्द भी बुरा नही सुन सकते है, तो कई दोस्त अपने दोस्ती को लेकर कई दफा अपने प्रेमी/प्रेमिका से लड़ पड़ते है .

 65 फीसदी मानते है दोस्त हमारे और नजदीक गये है

64 फीसदी लोगो के लिए आज भी उनके जिन्दगी के सफ़र  में दोस्ती एक अनमोल रिश्ता है , तो 28 फीसदी युवा इसे रिश्ते नाते  से ऊपर का रिश्ता मानते है. वही बाकि लोग इसे सामान्य संबंध मानते है . 38 प्रतिशत लोग अपने दोस्त से पहली बार स्कूल में मिले, तो 42 फीसदी लोगो को अपने दोस्त से कॉलेज पढाई के दौरान मिले .  वही बाकि लोग चलते- फिरते किसी को  सफ़र में , किसी को  काम करते हुई अपने दफ्तर में,  किसी को किसी कार्यकम या किसी आयोजन के दौरान में मिले और वह उनके  दोस्त बन गये .  आज भी 48 फीसदी लोग अपने दोस्त को प्यार से ऊपर मानते है , वही 18 फीसदी लोगो का मानना है कि दोस्ती और प्यार दोनों अपने जगह पर अलग रिश्ता है.  आज भी 39 फीसदी दोस्ती को अधिक प्यार से अधिक तबज्जो देते है, वही बाकि बचे लोग  प्यार में अधिक तबज्जो देते है.  62 फीसदी लोग मानते है कि  उन्होंने कई दफा दोस्तों के लिए  अपने घर वालो से भी  झूठ बोला है .  65 फीसदी लोग मानते है कि आज के समय में दोस्त हमारे और नजदीक आ गये है.

 दोस्ती का कोई मोल नही

बनारस  की रहने वाली साक्षी मानती है कि दोस्ती अनमोल है, इसका कोई मोल नही लेकिन साक्षी यह भी कहती है, कि हर एक दोस्त एक तरह का नही होता है. कोई दोस्ती के रिश्तो कों प्यार के रोमांटिक जाल में उलझाकर दोस्तों से बहुत कुल पाना चाहते है, तों कई बिना किसी मोल के हर वक्त अपने दोस्तों का साथ देते है .

आज भी बहुत याद आते दिल्ली के  फ्रैंड

पुणे में टच महिंद्रा में कार्यरत अश्वनी कहते है कि उन्हें आज भी उन्हें दिल्ली के कॉलेज फ्रैंड बहुत याद आते है. स्कूल की दोस्तों और कॉलेज की दोस्ती कों अन्य दोस्तों से अलग बताते हुए अश्वनी कहते है कि मै खुश नसीब हूँ कि मेरे पास आज भी मेरे  बचपन के दोस्त नटखट दोस्त है और साथ ही कॉलेज के वहा फ्रैंड भी है, जिनके साथ मिलकर मैंने कई फिल्मो का फस्ट शो देखा है , और खूब मस्ती की है .

दोस्ती के बीच कभी धर्म और समुदाय माईने नहीं रखता

भारतीय रेलवे में कनिष्ठ इंजीनियर के पद पर कार्यरत अलीगढ के मोहमद अनवर कहते है कि  दोस्ती धरती का सबसे सुंदर रिश्ता है .  हम  दोस्ती को कितनी ही कैटेगरी में बांट ले लेकिन एक सच दोस्त वही है, जो तमाम रूकावटो के बावजूद जीवन भर साथ निभाते हैं .  अलीगढ के अनवर बताते है कि दोस्ती के बीच कभी धर्म और समुदाय माईने नहीं रखता है.  अनवर के सबसे चाहे दोस्त प्रमोद चौबे है, जो  गया ( बिहार) के रहने वाले है . अनवर और प्रमोद पिछले दस साल से दोस्त है , इन दोनों दोस्तों की पहली मुलाकात अलीगढ विश्वविध्यालय के इंजीनियरिंग के क्लास रूम में आज से दस साल पहले हुआ था .  तब इन्होने ने भी नही सोचा था, कि यह किसी दिन एक दूजे के बिन नहीं रह पायेगे . अनवर बताते है कि आज उनके प्रमोद के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है, किसी के घर कोई भी पारिवारिक आयोजन हो, उसमें पहुचना पड़ता है .

पूछे गये प्रश्न – 

आपके माईने में दोस्ती क्या है ?

आपके सबसे खास मित्र से आपकी पहली मुलाकात कहा हुई ?

दोस्ती और प्यार में आप किसे अधिक तबज्जो देते है ?

दोस्तों के लिए क्या कभी आप ने अपने बॉय फ्रैंड या गर्ल फ्रैंड से लडाई किया है ?

हर एक दोस्त जरुरी होता है, इस वाक्य में आप कितना विश्वास करते है ?

क्या आप मानते है कि आज समय में दोस्त हमारे और नजदीक आ गये है ?

क्या कहते है नवयुवक

चंद्रप्रकाश   –  जिंदगी की रपटीली राहों पर सफर आसान बनाने वाला हमराही है दोस्त.

प्रिया – दोस्ती यानि परिवार और प्रियतम से अलग रिश्तों की एक नई और अनमोल धुरी . सगे संबंधियों से परे एक ऐसा नाता, जिसका हर रेशा विश्वास की आँच पर पककर मजबूत हुआ है .

कुमुद  – हमारे जीवन को हर पल संगीतमय रखने वाली धुन है दोस्ती  .

पायल   – जीवन सफ़र में के सुख-दुख से भरे राहों पर कई लोग मिलते हैं लेकिन जिस शख्स का प्रतीक  चिन्ह  के निशान हमारे मन मस्तिष्क को आन्दित कर दे, हर मुसीबत में उसका साथ मिले और हर सुख उसके बिना अधूरा हो, वही हमारा पक्का दोस्त होता है .

रोहित – दोस्ती यानी एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें प्यार, तकरार, इजहार, इंकार, स्वीकार जैसे भाव तो भरे ही हैं, विश्वास और त्याग की भावना भी चरम पर रहती है.

स्वेता – मानवीय संबंधों के संग्रह का सबसे चमकता सितारा है दोस्ती.

Friendship Day Special : दोस्ती का एक रिश्ता ऐसा भी

मेरी सहेली रागिनी मेरे घर आई हुई थी. अभी कुछ ही देर हुई होगी कि मेरी बेटी का फोन आ गया. मैं रागिनी को चाय पीने का इशारा कर बेटी के साथ तन्मयता से बातें करने लगी. हर दिन की ही तरह बेटी ने अपने दफ्तर की बातें, दोस्तों की बातें बताते, घर जा कर क्या पकाएगी इस का मेन्यू और तरीका डिस्कस करते हुए मेरा, अपने पापा, नानानानी सहित सब का हालचाल ले फोन रखा. जैसे ही मैं ने फोन रखा कि रागिनी बोल पड़ी, ‘‘तुम्हारी बेटी तुम से कितनी बातें करती है. मेरे बेटे तो कईकईर् दिनों तक फोन नहीं करते हैं. मैं करती हूं तो भी हूंहां कर संक्षिप्त सा उत्तर दे कर फोन औफ कर देते हैं. लड़की है न इसलिए इतनी बातें करती है.’’

मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. मेरा बेटा भी तो होस्टल में रह कर पढ़ रहा है. वह भी अपनी दिन भर की बातें, पढ़ाईलिखाई के अलावा अपने दोस्तों के विषय में और अपने कैंपस में होने वाली गतिविधियों की भी जानकारी देता है. सच पूछो तो रागिनी मुझे या मेरे बच्चों को आपस में बातें करने के लिए टौपिक नहीं तलाशने होते हैं.’’ मैं रागिनी के अकेलेपन और उदासी का कारण समझ रही थी. बच्चे तो उस के भी बाहर चले गए थे पर उस का अपने बच्चों के साथ संप्रेषण का  स्तर बेहद बुरा था. उसे पता ही नहीं रहता कि उस के बच्चों के जीवन में क्या चल रहा है. बेटे उदास हैं या खुश उसे यह भी नहीं पता चल पाता. कई बार तो वह, ‘‘बेटा खाना खाया? क्या खाया?’’ से अधिक बातें कर ही नहीं पाती थी.

मैं रागिनी को बरसों से जानती हूं, तब से जब हमारे बच्चे छोटे थे. मैं जब भी रागिनी के घर जाती, देखती कि वह या तो किसी से फोन पर बातें कर रही होती या फिर कान में इयरफोन लगा अपना काम कर रही होती. उस के घर दिन भर टीवी चलता रहता था. बच्चे लगातार घंटों कार्टून चैनल देखते रहते. रागिनी या उस के पति का भी पसंदीदा टाइम पास टीवी देखना ही था. अब जब बच्चों ने बचपन में दिन का अधिकांश वक्त मातापिता से बातें किए बगैर ही बिताया था तो अचानक उन्हें सपना तो नहीं आएगा कि मातापिता से भी दिल की बातें की जा सकती हैं.

जैसा चाहे ढाल लें

वाकई यह मातापिता के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वे अपने बच्चों के वक्त को, उन के बचपन को किस दिशा में खर्च कर रहे हैं. बच्चे तो गीली मिट्टी की तरह होते हैं. उस गीली मिट्टी को अच्छे आचारव्यवहार और समझदारी की धीमी आंच में पका कर ही एक इनसान बनाया जाता है. जन्म के पहलेदूसरे महीने से शिशु अपनी मां की आवाज को पहचानने लगता है. एक तरह से बच्चा गर्भ से ही अपने मातापिता की आवाज को सुननेसमझने लगता है. इसलिए बच्चों के सामने हमेशा अच्छीअच्छी बातें करें. अनगढ़ गीली मिट्टी के बने बाल मानस को आप जैसे चाहें ढाल लें.

बाल मनोचिकित्सक मौलिक्का शर्मा बताती हैं कि जो मातापिता अपने बच्चों से शुरुआत से ही खूब बतियाते हैं, हंसते हैं हंसाते हैं, अपनी रोजमर्रा की छोटीछोटी बातें भी शेयर करते हैं, उन के बच्चों को भी आदत हो जाती है अपने मातापिता से सारी बातें शेयर करने की. और फिर यह सिलसिला बाद की जिंदगी में भी चलता रहता है. लाख व्यस्तताओं के बीच अन्य दूसरे जरूरी कामों के साथ बच्चे अपने मातापिता से जरूर बतिया लेते हैं. संयुक्त परिवारों में बच्चों से बातें करने, उन्हें सुनने वाले कई लोग होते हैं मातापिता से इतर, इस के विपरीत एकल परिवारों में मातापिता दोनों  अपनेअपने काम से थके होने के चलते बच्चों को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते हैं बातचीत करनी तो दूर की बात है.

मातापिता से सीखते हैं बच्चे

होली फैमिली हौस्पिटल, बांद्रा, मुंबई के चाइल्ड साइकोलौजिस्ट डाक्टर अरमान का कहना है कि अपने बच्चों के बचपन को सकारात्मक दिशा में खर्च करना मातापिता का प्रथम कर्तव्य है. अकसर घरों में बच्चों को टीवी के सामने बैठा दिया जाता है, खानापीना खाते हुए वे घंटों कार्टून देखते रहते हैं. खुद मोबाइल, कंप्यूटर या किसी भी अन्य चीज में व्यस्त हो जाते हैं. इस दिनचर्या में बेहद औपचारिक बातों के अलावा मातापिता बच्चों से बातें नहीं करते हैं. बच्चों के सामने बातें करना मानो आईने के समक्ष बोलना है, क्योंकि आप के बोलने की लय, स्वर, लहजा, भाषा वे सब सीखते हैं. बातचीत के वे ही पल होते हैं जब आप अपने अनुभव और विचारों से उन्हें अवगत करते हैं, अपनी सोच उन में रोपित करते हैं. जैसा इनसान उन्हें बनाना चाहते हैं वैसे भाव उन में भरते हैं.

आप जब बूढ़े हो जाएं तब भी आप के बच्चे आप से बातें करने को लालायित रहें तो इस के लिए आप को इन बातों पर अमल करना होगा:

– छोटे बच्चों को खिलातेपिलाते, मालिश करते, नहलाते यानी जब तक वह जगा रहे उस के साथ कुछ न कुछ बोलते रहें. ऐसे बच्चे जल्दी बोलना भी शुरू करते हैं.

– थोड़ा बड़ा होने पर गीत और कहानी सुनाने की आदत डालें. इस से कुछ ही वर्षों में बच्चे पठन के लिए प्रेरित होंगे. उन्हें रंगबिरंगी किताबों से लुभाएं और किताबों से दोस्ती कराने की भरसक कोशिश करें.

– टीवी चलाने के घंटे और प्रोग्राम तय करें. अनर्गल, अनगिनत वक्त तक न आप टीवी देखें और न ही बच्चों को देखने दें. यदि आप अपने मन को थोड़ा साध लेते हैं, तो यकीन मानिए आप स्वअनुशासन का एक बेहतरीन पाठ अपने बच्चों को पढ़ा देंगे.

– अपने संप्रेषण के जरीए आप छोटे बच्चों में कई अच्छे संस्कार रोपित कर सकते हैं जैसे  देश प्रेम, स्वच्छता, सच बोलना, लड़की को इज्जत देना इत्यादि. आज का आप के द्वारा रोपित बीजरूपेण संस्कार के वटवृक्ष के तले भविष्य में समाज और देश खुशहाल होगा.

– यदि छोटा बच्चा कुछ बोलता है, तो उसे ध्यान से सुनें. कई बार मातापिता बच्चों की बातों को अनसुनी करते हुए अपनी धुन में रहते हैं. अपने बच्चों की बातों को तवज्जो दें. उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि आप उन की बातों को हमेशा ध्यान से सुनेंगे चाहे कोई और सुने या नहीं.

– लगातार संप्रेषण से ही आप बच्चे में किसी भी तरह की आ रही तबदीलियों को भांप सकेंगे. ठीक इसी तरह जब आप से अलग वह रहेगा/रहेगी तो आप की अनकही बातों को वह महसूस कर लेगा. मेरी बेटी हजारों मील दूर फोन पर मेरी आवाज से समझ जाती है कि मैं बीमार हूं, दुखी हूं या उस से कुछ छिपा रही हूं.

– बच्चों के संग बोलतेबतियाते आप दुनियादारी की कई बातें उन्हें सिखा सकते हैं. एकल परिवार में रहने वाला बच्चा भी इसी जरीए रिश्तों और समाज के तौरतरीकों से वाकिफ होता है. यदि बच्चे आप से पूरी तरह खुले रहेंगे तो आप उन्हें बैड टच गुड टच और सैक्स संबंधित ज्ञान भी आसानी से दे सकेंगे.

– सिर्फ छुट्टियों में बात करने या वक्त देने वाली सोच से आप बच्चों के कई हावभावों से अनभिज्ञ रह जाते हैं. परीक्षा की घड़ी हो या पहले प्यार का पल युवा होते बच्चे अपनी बचपन की आदतानुसार आप से शेयर करते रहेंगे. फिर दुनिया में आप से बेहतर काउंसलर उन के लिए कोई नहीं होगा.

– यकीन मानिए अपने बच्चों से बेहतर मित्र दुनिया में कोई नहीं होता है. संप्रेषण वह पुल होता है, जो आप को अपने बच्चों से जोड़े रखता है ताउम्र.

Friendship Day Special: दिल से नहीं दिमाग से निभाएं दोस्ती

व्हाट्सऐप पर कुछ दोस्तों ने एक गु्रप बनाया और उस के बाद उस पर संदेशों का आदानप्रदान शुरू हुआ. ऐसे में एक दिन जब रमेश ने एक शायरी पोस्ट की तो रश्मि को लगा कि रमेश उस की व्यक्तिगत जिंदगी पर कमैंट कर रहा है. इस के बाद रश्मि ने उस ग्रुप में कई गुस्से वाले मैसेज भेजे और अपने गुस्से का इजहार किया जबकि रमेश ने हर बार सफाई दी कि उस ने बस एक शायरी पोस्ट की और किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का उस का इरादा नहीं था. न ही उसे रश्मि की व्यक्तिगत जिंदगी की ही जानकारी थी. रश्मि ने रमेश की एक भी बात नहीं मानी और उस ग्रुप से अलग हो गई.

विवेक के बड़ी कंपनी में मैनेजर बनने की यह 5वीं सालगिरह थी. वह खुश था कि इन 5 वर्षों में उस ने लगन और मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है और तरक्की कर रहा है. कंपनी ने उसे 5 साल में कहां से कहां पहुंचा दिया और कंपनी ने भी इन सालों में कितनी तरक्की की है. उस दिन पता नहीं विवेक को क्या सूझा कि उस ने अपने फेसबुक अकाउंट पर कंपनी में 5 साल पूरे होने और इतनी तरक्की पाने की जानकारी तो दी ही, साथ ही उस ने उन दिनों को याद किया जब उस ने इस नई कंपनी को जौइन किया था.

अपने पोस्ट में उस ने उन सारी बातों को शेयर किया कि कैसे उस के कालेज के उस के सहपाठियों और सीनियर्स ने उस की इस नौकरी पर कमैंट पास किए थे. इस का परिणाम यह हुआ कि उस के पोस्ट शेयर करते ही कमैंट और लाइक करने वालों की बौछार हो गई, वहीं जिन लोगों का नाम पोस्ट में लिखा था, उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कमैंट देने शुरू कर दिए. इतना ही नहीं, उस की सहयोगी रही राधा ने तो पुलिस केस करने की धमकी भी दे डाली कि विवेक हमारा मजाक उड़ा रहा है और उस में अपने पद का घमंड आ गया है. अंजाम यह हुआ कि विवेक ने न सिर्फ फेसबुक से उस पोस्ट को हटाया बल्कि अपने कुछ दोस्तों को ब्लौक भी कर दिया. इस तनाव ने विवेक का मूड खराब कर दिया, जिस से उस का पार्टी का सारा मजा भी फीका पड़ गया.

उपरोक्त दोनों ही मामले वास्तविक जीवन से जुड़े हैं. दोनों ही मामलों में दोनों पक्षों की ओर से गलतियां हुईं, जिस से गलतफहमी पैदा हुई और परिणाम यह हुआ कि वर्षों की दोस्ती टूटी. हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहां दोस्ती दिल से नहीं दिमाग से निभाने की जरूरत होती है, बदलते वक्त के साथ भले ही सोशल मीडिया के जरिए हम खुद को अधिक सामाजिक दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन वास्तविकता के धरातल पर हम सामाजिक नहीं हैं. एक ओर जहां हम सोशल नैटवर्किंग साइट्स, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप पर हमेशा ऐक्टिव रहते हैं वहीं हम अपने दोस्तों के दुखसुख से कोई मतलब नहीं रखते.

मैसेज लिखने से पहले रखें खयाल

यदि आप कोई मैसेज या कमैंट लिख रहे हैं तो पोस्ट करने से पहले सौ बार सोचें कि आप की प्रतिक्रिया किसी की भावना को ठेस तो नहीं पहुंचा रही. हालांकि किसी के दिल में क्या है, यह तो आप नहीं जान सकते लेकिन सावधानी बरत सकते हैं. व्यक्तिगत आक्षेप से बचें. भले ही आप सोशल मीडिया के जरिए एकदूसरे के निकट हों लेकिन वैसे आप एकदूसरे से दूर हैं और नहीं जानते कि जब सामने वाला आप का संदेश पढ़ रहा है तो उस की मनोदशा क्या है और वह क्या सोच रहा है. मैसेज शेयर करने से पहले अपने स्तर का भी खयाल रखें. द्विअर्थी संदेश भूल से भी शेयर न करें. इस से सामने वाले पर आप की गलत छवि बनती है और कोई आप का कितना भी अच्छा दोस्त हो, धीरेधीरे वह आप से दूर होता जाएगा.

अकसर ऐसा होता है कि हम किसी संदेश को पढ़ कर तुरंत खुश हो जाते हैं तो उतनी ही जल्दी गुस्सा भी हो जाते हैं. ऐसे में किसी छोटी सी बात को भी तिल का ताड़ बना डालते हैं और अपने संबंधों का भी खयाल नहीं करते हैं.

मसलन, पिछले 10 वर्ष से जरमनी में रह रही स्वाति का मानना था कि भारत में लड़कियों की स्थिति नहीं बदली है और पाश्चात्य देशों की लड़कियां भारत के मुकाबले काफी स्वतंत्र रूप में जीती हैं. जब उस ने अपने मन की बात व्हाट्सऐप पर अपने ग्रुप में शेयर की तो उस के अधिकतर दोस्तों ने इस का विरोध किया. उस के दोस्तों का मत था कि भारत की सामाजिक व्यवस्था दूसरे देशों से अलग है और यहां की लड़कियां शुरुआती दौर से फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं. केवल देह दिखाने वाले कपड़े पहनना स्वतंत्रता नहीं है. वहीं कुछ दोस्तों का मत था कि जब स्वाति 10 साल से भारत आई ही नहीं तो वह वर्तमान में यहां की लड़कियों की स्थिति के बारे में कैसे अच्छे से बता सकती है. इस बहस में स्वाति ने आवेश में आ कर भारत के सभी दोस्तों को आउटडेटेड कह दिया. जबकि सचाई यह है कि पिछले 10-12 साल में भारत की लड़कियों ने काफी तरक्की की है और हर मोरचे पर अपनी पहचान कायम की है.

ऐसे में यह हुआ कि स्वाति की सोच को ले कर उस के तमाम दोस्तों में आक्रोश उत्पन्न हुआ और सभी ने उस की बातों को अनदेखा करना शुरू कर दिया. इसलिए हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि हम कोई बात सार्वजनिक तौर पर रख रहे हैं तो उस में सचाई कितनी है और कितना दम है. यदि किसी मुद्दे पर बहस हो रही है तो सुबूतों और तर्कों के आधार पर अपनी बात रखें. हमेशा खुद पर काबू रखें और आवेश में आ कर अपना गुस्सा दूसरों पर न दिखाएं. हमेशा खयाल रखें कि जितना आप को गुस्सा आता है, उस से कहीं अधिक गुस्सा सामने वाले को भी आ सकता है.

गलत धारणाओं से बचें

किसी के संदेश या कमैंट को हमेशा अपने ऊपर न लें. यदि रमेश की शायरी को रश्मि दिल पर न लेती और उस तरह प्रतिक्रिया न करती तो संबंधों में खटास पैदा नहीं होती. याद रखें, दोस्ती का बंधन काफी नाजुक होता है. इसे बनने में देर लगती है लेकिन टूटने में जरा भी वक्त नहीं लगता. मान लीजिए रमेश ने जानबूझ कर रश्मि को चोट पहुंचाने के लिए शायरी लिखी, पर यदि रश्मि उसे नजरअंदाज कर देती तो उस का क्या बिगड़ जाता. वैसे भी रश्मि के पास इस बात का क्या सुबूत था कि रमेश ने उसे प्रताडि़त करने के लिए ही वह शायरी पोस्ट की थी.

जानबूझ कर किसी की हंसी न उड़ाएं

दोस्तों के साथ मजाक करना अलग बात है लेकिन किसी की हंसी उड़ाना दूसरी बात. मजाक की बात का कोई बुरा नहीं मानता लेकिन मजाकमजाक में हंसी उड़ाने की बात को हर कोई समझता है. मजाक में कभी भी कोई ऐसी बात न करें जिस से सामने वाले को ठेस पहुंचे. विवेक के मामले को देखें तो हम पाते हैं कि नई कंपनी में नौकरी पाने के वक्त उस के सहयोगियों और सीनियर्स ने उस का मजाक उड़ाया था. यह बात उस के दिल पर लगी थी. वह उसे भूला नहीं था. यही कारण था कि कंपनी में 5 साल होने और कंपनी के कारोबार में वृद्धि होने के साथसाथ अपनी पदोन्नति की खुशी को वह छिपा नहीं पाया. वह अपनी प्रतिक्रिया में उन बातों को भी छिपा नहीं पाया जो उस के दिल में थीं. गलती दोनों तरफ की थी. पहली बात तो यह कि यदि कोई व्यक्ति कोई नया काम कर रहा है, किसी नए क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है, लीक से हट कर कोर्स करने की सोच रहा है तो उस का मजाक न बनाएं, उसे हतोत्साहित न करें. जहां तक संभव हो, उसे प्रोत्साहित करें. मान लें कि विवेक के नई कंपनी जौइन करने और वहां की स्थिति को ले कर उस के दोस्त चिंतित रहे हों, ऐसे में विवेक को सही ढंग से समझाने की जरूरत थी न कि कमैंट पास करने की. ऐसा भी हो सकता है कि विवेक को उस के दोस्तों ने मजाकमजाक में उस के भविष्य को ले कर चिंतित होने की बात कही हो, जिसे विवेक समझ न पाया हो.

फिर यदि 5 साल बाद विवेक ने पुरानी बातों को याद ही कर लिया तो उस में गुस्सा करने वाली बात ही क्या है. जितना सफल विवेक का कैरियर हुआ, उतना उस के दोस्तों का नहीं हो पाया तो जलन तो हो ही सकती है. लेकिन इस मामले में उस के दोस्तों ने भी अपनी भड़ास निकाली. यदि 5 साल पहले आप ने उस की नौकरी को ले कर मजाक बनाया और उस ने सारी बातें सोशल मीडिया के माध्यम से व्यक्त कीं तो इस में बुराई क्या है? ध्यान रखें, यदि आप किसी के साथ मजाक करते हैं तो सामने वाले के मजाक को भी स्वीकारें. उस का भी सम्मान करें. हां, यह बात और है कि मजाक करने के शब्द और समय सब के अलगअलग होते हैं.

अपनी हद को समझें

केवल सोशल मीडिया के प्लेटफौर्म पर ही नहीं, दोस्ती निभाने के लिए भी काफी कुछ सहना पड़ता है. एकदूसरे की भावना का खयाल रखना पड़ता है. जिंदगी में छोटीमोटी परेशानियां आती रहती हैं और ऐसे में कोई ऐसी हरकत करना, जिस से सामने वाले के दिल को ठेस पहुंचे, आप को विपरीत परिस्थिति में खड़ा कर सकता है. यदि आप अपने दायरे में रहेंगे तो संबंधों का निर्वाह बेहतर ढंग से कर पाएंगे. याद रखें, यदि पूरी जिंदगी में एक अच्छा दोस्त मिल जाए तो आप दुनिया के चुनिंदा खुशनसीबों में से एक हैं.

Friendship Day Special : फर्स्ट ईयर

कालेज शुरू हुए कुछ दिन बीते थे मगर फिर भी पहले साल के विद्यार्थियों में हलचल कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. युवा उत्साह का तकाजा था और कुछ कालेजलाइफ का शुरुआती रोमांच भी था. एक अजीब सी लहर चल रही थी क्लास में, दोस्ती की शुरुआत की. हालांकि दोस्ती की लहर तो ऊपरी तौर पर थी, लेकिन सतह के नीचे कहीं न कहीं प्यार वाली लहरों की भी हलचल जारी थी.

दोस्ती की लहर तो आप ऊपरी तौर पर हर जगह देख सकते थे, लेकिन प्यार की लहर देखने के लिए आप को किसी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ सकती थी. कनखियों से देखना, इक पल को एकदूसरे को देख कर मुसकराना, ये सब आप खुली आंखों से कहां देख सकते हैं. जरा ध्यान देना पड़ता है, हुजूर. मैं खुद कुछ उलझन में था कि वह मुझे देख कर मुसकराती है या फिर मुझे कनखियों से देखती है. खैर, मैं ठहरा कवि, कहानीकार. मेरे अतिगंभीर स्वभाव के कारण जो युवतियां मुझ में शुरू में रुचि लेती थीं वे अब दूसरे ठिठोलीबाज युवकों के साथ घूमनेफिरने लगी थीं. यहां मेरी रुचि का तो कोई सवाल ही नहीं था, भाई, मेरे लिए भागते चोर की लंगोटी ही काफी थी, लेकिन मेरे पास तो उस लंगोटी का भी विकल्प नहीं छूटा था.

लेकिन कुछ लड़कों का कनखियों से देखने व मुसकराने का सिलसिला जरा लंबा खिंच गया था और प्यार का धीमाधीमा धुआं उठने लगा था, अब वह धुआं कच्चा था या पक्का, यह तो आग सुलगने के बाद ही पता चलना था. खैर, उन सहपाठियों में मेरा दोस्त भी शामिल था. गगन नाम था उस का. वह उस समय किसी विनीशा नाम की लड़की पर फिदा हो चुका था. दोनों का एकदूसरे को कनखियों से देखने का सिलसिला अब मुसकराहटों पर जा कर अटक चुका था. मैं इतना बोरिंग और पढ़ाकू था कि मुझे अपने उस मित्र के बारे में कुछ पता ही नहीं चल सकता था. खैर, उस ने एक दिन मुझे बता ही दिया.

’’यार कवि, तुझे पता है विनीशा और मेरा कुछ चल रहा है,’’ गगन ने हलका सा मुसकराते हुए मुझे बताया था. ’’कौन विनीशा?’’ मेरा यह सवाल था, क्योंकि मैं अपने संकोची व्यवहार के कारण क्लास की सभी लड़कियों का नाम तक नहीं जानता था.

पास ही हामिद भी खड़ा था, जो मेरे बाद गगन का क्लास में सब से अच्छा दोस्त था. उस ने बताया, ’’अरे, वह जो आगे की बैंच पर बैठती है,’’ हामिद ने मुझे इशारा किया. ’’कौन निशा?’’ मैं ने अंदाजा लगाया, क्योंकि मैं खुद शुरू में उस लड़की में रुचि लेता था, इसलिए उस का नाम मुझे मालूम था.

’’नहीं यार, निशा के पास जो बैठती है,’’ गगन ने फिर मुसकराते हुए बताया था. ’’अच्छा वह,’’ अब मैं मुसकरा रहा था, मैं अब उस लड़की को चेहरे से पहचान गया था. ’’उस का नाम विनीशा है,’’ मैं ने हलका सा आश्चर्य व्यक्त किया था.

’’हां यार, वही,’’ गगन ने हलका भावुक हो कर कहा था. ’’अच्छा, तो मेरे लायक कोई काम इस मामले में, मैं ने हंसते हुए पूछा था.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. तुझे तो मैं अपनी पर्सनल फीलिंग बताऊंगा ही,’’ गगन ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था. वह पल ऐसा था, जिस में भले ही विनीशा का जिक्र था, लेकिन मुझे हमेशा वह पल मेरा अपना ही लगा. वह एहसास था एक अच्छी और सच्ची दोस्ती की शुरुआत का. मैं मुसकराया और धीमे से बोला, ’’मेरी विशेज हमेशा तुम्हारे साथ हैं, तो मैं चलूं. मुझे लाइब्रेरी जाना है.’’

’’हां, चल ठीक है,’’ गगन के इतना कहते ही मैं लाइब्रेरी की ओर चल दिया. मुझे किसी विनीशा की फिक्र नहीं थी लेकिन एक ताजा सा खयाल था नई दोस्ती की शुरुआत का. वह क्लास की लहर कहीं न कहीं मुझ में भी दौड़ रही थी.

अगले दिन जब मैं कालेज के हाफटाइम में कुछ समय के लिए कालेज की सीढि़यों पर बैठा था, तो राजन मिला. ’’हाय राजन,’’ मैं इतना कह कर कालेज के गेट के बाहर वाली सड़क के पार मैदान में देखने लगा.

तभी मेरी नजरें मैदान में जाने से पहले उस सड़क पर ठहर गईं जहां गगन निशा के साथ टहल रहा था. मेरे मन में कई सवाल उठे कि गगन तो विनीशा को पसंद करता है तो फिर निशा के साथ क्या कर रहा है. खैर, मैं ने हाफटाइम के बाद गगन के क्लास में आने पर उस से पूछा, ’’यार गगन, तू तो कह रहा था कि तू विनीशा को पसंद करता है, फिर निशा?’’

’’अरे, मैं विनीशा के बारे में ही उस से बात कर रहा था,’’ गगन ने गंभीरता से बताया. ’’फिर,’’ मैं ने पूछा था.

’’वह बता रही थी कि विनीशा का पहले से ही कोई बौयफ्रैंड है,’’ उस ने उतनी ही गंभीरता से बताया. ’’हूं… अभी,’’ मैं ने भी गंभीरता व्यक्त की थी.

’’मैं यार, फिर भी उस से एक बार मिलना चाहता हूं,’’ गगन में कहीं न कहीं उम्मीद अभी भी दबी नहीं थी. ’’ठीक है, फिर बताना. अच्छा हो कि निशा की बात गलत हो,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, फिर पूरी क्लास पढ़ाई में लग गई, क्योंकि हमारे टीचर अब थोड़े सख्ती बरत रहे थे.

अगले दिन तक गगन विनीशा से मिल चुका था और मुझे बता रहा था, ’’यार, वह तो मुझे कन्फ्यूज कर रही है, उस का बौयफ्रैंड है तो वह सीधीसीधी बात क्यों नहीं कहती?’’ ’’हो सकता है वह अपने बौयफ्रैंड से छुटकारा पाना चाहती हो, ब्रेकअप करना चाहती हो,’’ मैं ने उसे समझाया, जबकि मैं खुद इन मामलों में अनाड़ी था.

’’हां यार, देखते हैं. मैं खुद समझ नहीं पा रहा हूं,’’ गगन गंभीर था. खैर, फिर यों ही चलता रहा और आखिर में पहले सैमेस्टर की परीक्षाएं करीब आ गईं. तब तक मैं विनीशा और गगन के चक्कर को भूल ही गया था.

रिजल्ट आया, गगन पास तो हो गया था, लेकिन पूरी क्लास की अपेक्षा उसे कम नंबर मिले थे. गगन उन दिनों हामिद के साथ ज्यादा रहने लगा था. दूसरे सैमेस्टर में तो वह मेरे साथ ज्यादा रहा ही नहीं, लेकिन दूसरे साल में वह अब फिर मेरे साथ रहने लगा था. मैं ने एक दिन उस से विनीशा का जिक्र किया, तो वह बताने लगा, ’’यार, मैं ने उस लड़की की खूबियां देखी थीं, लेकिन कमियां नहीं देखी थीं. वह मुझे उलझाए बैठी थी. उस का बौयफै्रंड था तो भी वह मुझ से क्या चाह रही थी, मैं समझ नहीं पा रहा था. एक दिन वह मेरा इंतजार करती रही और मैं उस से मिलने नहीं गया.’’

’’हूं… मतलब सब ओवर,’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा. ’’देखो कवि, एक बात बताऊं,’’ वह मुझे अकसर कवि ही कहता था, ’’तेरे और मेरे जैसे लोग इस कालेज में लाखों रुपए फीस दे कर कोई लक्ष्य ले कर आए हैं और ये सब फालतू चीजें हमें अपने लक्ष्य से भटका देती हैं.’’

मैं उसे ध्यान से सुन रहा था और गौर भी कर रहा था. ’’यार, तू ने देखा न, पिछले सैमेस्टरों में मेरा क्या रिजल्ट रहा,’’ वह मेरी तरफ देख रहा था.

’’अब तू ही बता. एक लड़की के प्यार के पीछे मैं ने कितना कुछ खो दिया,’’ वह गंभीर था. ’’हां यार, मैं तुझे पहले ही कहने वाला था, पर मुझे लगा कि तू बुरा मान जाएगा,’’ मैं ने आज अपने दिल की बात कह दी.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. अब तो मैं ने तय कर लिया है कि फालतू यारीदोस्ती व प्यारमुहब्बत में पड़ूंगा ही नहीं और बस, तेरे और दोचार लोगों के साथ ही रहूंगा,’’ उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ’’दोस्त, तुम मिडिल क्लास पर्सन हो, और तुम आज को ऐंजौय करने की नहीं बल्कि भविष्य संवारने की सोचते हो.’’ ’’वह तो है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

’’और मैं भी फालतू बातों से ध्यान हटा कर अपना भविष्य संवारना चाहता हूं,’’ उस का हाथ मेरे कंधे पर ही था. वह भावुक हो गया था. हमारी दोस्ती की यह लहर मुझे अभी भी ताजी महसूस हो रही थी. उस के बाद से अब तक वह मेरे साथ ही रहता है. कालेज में विनीशा की तरफ देखता भी नहीं है. क्लास में खाली समय में भी पढ़ता रहता है.

वह समय पर एनसीसी जौइन नहीं कर पाया था, लेकिन अपनी मेहनत के बलबूते पर अब वह एनसीसी में न सिर्फ सिलैक्ट हो गया, बल्कि एक कैंप भी अटैंड कर के आया है. कैंप में फायरिंग सीखने के बाद अब वह एक और कैंप में एयर फ्लाइंग के लिए भी जाने वाला है. उस का लक्ष्य आर्मी या पुलिस में जाना है और वह उस के करीब भी नजर आने लगा है. गगन एक विशालकाय समुद्र की लहरों को चीरते हुए सतह पर आने लगा है, जिस में कई नौजवान गोते खाते रहते हैं. फर्स्ट ईयर के बाद अब सैकंड ईयर उस का ज्यादा मजे में व उद्देश्यपूर्ण ढंग से बीत रहा है.

सिगरेट : हैल्थ टौनिक नहीं

आशू बहुत साधारण फैमिली से था. वह हर काम अपने पेरैंट्स की मरजी से करता था. उस के पेरैंट्स अपने इस आज्ञाकारी बच्चे को बहुत पसंद करते थे, लेकिन उस की ऐसी गुडविल स्कूली दिनों तक ही कायम रही, क्योंकि कालेज में जाते ही उस की रंगत बदल गई. वह अब अपने दोस्तों से ज्यादा प्रभावित होने लगा. कालेज में जब भी वह अपने दोस्तों को स्मोकिंग करते देखता तो उसे लगता कि काश, मैं भी ऐसा कर पाता. कुछ समय तक तो उस ने खुद को इस आदत से दूर रखा, लेकिन जब उस के दोस्तों ने उसे कहा कि यार तू भी एक बार स्मोकिंग कर के तो देख, कितना मजा आता है. तेरी अलग ही धाक होगी. लड़कियां भी आजकल ऐसे ही लड़कों को पसंद करती हैं जो मौडर्न हों न कि तेरे जैसे दब्बू. यह बात सुनते ही उसे लगा कि मेरे फ्रैंड्स बात तो सही कह रहे हैं और उस में उन की बातों से मानो ऐसा जोश आया कि उस ने स्मोकिंग में अपने दोस्तों का रेकौर्ड तोड़ दिया.

इस परिवर्तन से भले ही वह अपने फ्रैंड सर्कल में छा गया, लेकिन उस की इस आदत से उस के परिवार वाले तंग आ गए, क्योंकि इस से न सिर्फ पैसा बरबाद होता बल्कि स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता, जो आशू पहले हट्टाकट्टा था अब बिलकुल पतला हो गया. पेरैंट्स ने उसे कई बार प्यार से समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर कोई असर न हुआ. अपनी मनमरजी व दोस्तों से प्रभावित होने का नतीजा यह निकला कि वह मुंह के कैंसर का शिकार हो गया, जिस के कारण वह कुछ भी खा नहीं पाता था और जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सिर्फ आशू ही नहीं बल्कि आशू जैसे सैकड़ों किशोर हैं जो इस आदत का शिकार हैं और इस कारण असमय मृत्यु का शिकार भी हो रहे हैं.

किशोरों को यह बात समझनी होगी कि तंबाकू को चाहे खैनी, गुटखे, पानमसाले, पान के जर्दे के रूप में खायाचबाया जाए या फिर सिगरेट, बीड़ी, हुक्का से धुएं की शक्ल में उतारा जाए यह नुकसान ही करता है. इस के सेवन से शरीर खोखला हो जाता है.

अमेरिकन लंग्स एसोसिएशन के अनुसार, सिगरेट में 600 तत्त्व होते हैं और जब हम उसे जलाते हैं तो उस में से 7 हजार से भी ज्यादा कैमिकल्स उत्पन्न होते हैं, जिन में से अधिकांश कैमिकल्स जहरीले और 69 के करीब कैंसर के लिए जिम्मेदार होते हैं. इन में से अधिकांश तत्त्व, सिगार और हुक्का पाइप्स में जो तंबाकू इस्तेमाल किया जाता है, समान होते हैं. नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के अनुसार, सिगरेट के मुकाबले सिगार में अधिक मात्रा में जहरीले तत्त्व होते हैं.

यदि आप यह सोचते हैं कि सिगरेट के मुकाबले हुक्का, पाइप ज्यादा सेफ हैं तो आप गलत सोच रहे हैं, क्योंकि सिगरेट के मुकाबले आप इस से ज्यादा धुआं अपने शरीर में ले रहे हैं. हुक्का स्मोक में ज्यादा जहरीले तत्त्व और ज्यादा कार्बनमोनोऔक्साइड के संपर्क में आते हैं, जो बहुत खतरनाक है.

स्मोकिंग हानिकारक क्यों

स्मोकिंग सिर्फ एक बीमारी के लिए नहीं बल्कि अनेक बीमारियों जैसे कैंसर, सांस की बीमारी, हृदयरोग के लिए जिम्मेदार है. यहां तक कि असमय मृत्यु भी इसी के कारण अधिक होती है. आप आंकड़े देख कर हैरान होंगे कि यूएसए में 4 लाख 80 हजार और यूके में 1 लाख लोग प्रतिवर्ष स्मोकिंग के कारण मरते हैं. कैंसर में लंग्स कैंसर बहुत ही कौमन है. अमेरिकन लंग्स एसोसिएशन के अनुसार, लंग्स कैंसरग्रस्त पुरुष 90% अपना लंग्स कैंसर स्मोकिंग के कारण बढ़ा लेते हैं. 90% लंग्स कैंसर का कारण स्मोकिंग है. इस के अतिरिक्त पुरुष स्मोकर्स में लंग्स कैंसर 23 गुना ज्यादा तीव्रगति से बढ़ता है, स्मोकिंग न करने वालों की तुलना में. फीमेल स्मोकर्स में यह अनुपात 13 गुना है.

स्मोकिंग केवल लंग्स कैंसर का ही कारक नहीं है, इस के और भी कारण हैं. इन में और भी कई तरह के कैंसर होते हैं. ब्लैडर कैंसर, किडनी कैंसर, गले का कैंसर, मुंह का कैंसर, आमाशय का कैंसर, नाक का कैंसर और बे्रट कैंसर.

यूके के कैंसर रिसर्च के अनुसार, ग्रेट ब्रिटेन में हर 15 मिनट में एक व्यक्ति की लंग्स कैंसर से मृत्यु होती है. यहां तक कि स्मोकिंग के कारण दोबारा कैंसर होने की आशंका भी बढ़ जाती है.

बौडी पर स्मोकिंग के इफैक्ट

सैंट्रल नर्वस सिस्टम

तंबाकू के अंदर मूड औल्ट्रिंग ड्रग निकोटिन होता है. निकोटिन मात्र कुछ सैकंड में ही बे्रन में पहुंच जाता है. निकोटिन के मस्तिष्क में जाते ही आप थोड़ी देर के लिए खुद को काफी फ्रैश महसूस करेंगे, लेकिन जैसेजैसे इस का असर कम होने लगता है, आप खुद को काफी थका हुआ महसूस करने लगते हैं. स्मोकिंग के कारण मोतियाबिंद होने और आंखों के खराब होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. इतना ही नहीं, इस से आप की खाने को टेस्ट करने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है, जिस के कारण आप खाने को ऐंजौय नहीं कर पाते. हमारे शरीर में स्टै्रस हारमोन होता है वह भी निकोटिन के कारण प्रभावित होता है, जिस से हम थकेथके और तनाव में रहने लगते हैं. साथ ही तनाव में रहने के कारण हमारी नींद भी प्रभावित होती है.

रेस्पिरेटरी सिस्टम

स्मोकिंग द्वारा शरीर में गए धुएं से फेफड़े खराब हो जाते हैं. ज्यादा स्मोकिंग करने से हमारे फेफड़े खतरनाक कैमिकल्स को फिल्टर करने की क्षमता भी खो देते हैं. कफ के माध्यम से भी स्मोकिंग के जहरीले तत्त्व बाहर नहीं निकल पाते और लंग्स में प्रवेश कर जाते हैं. स्मोकिंग करने वालों में सर्दीजुकाम, फ्लू और इन्फैक्शन होने का खतरा ज्यादा रहता है. एक सर्वे के अनुसार जिन बच्चों के पेरैंट्स ज्यादा स्मोकिंग करते हैं उन में कफ व अस्थमा की समस्या ज्यादा रहती है साथ ही कानों में इन्फैक्शन का खतरा भी बना रहता है.

स्किन पर प्रभाव

स्मोकिंग से स्किन पर बहुत घातक प्रभाव पड़ता है. सिगरेट में मौजूद जहरीले तत्त्वों के कारण स्किन का रंग बदलने लगता है, त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं और समय से पहले बुढ़ापा झलकने जैसी समस्या भी झेलनी पड़ती है. नाखूनों और उन के आसपास की स्किन सिगरेट पकड़ने के कारण ब्राउन और पीलीपीली सी दिखने लगती है. ज्यादा स्मोकिंग से दांतों पर भी पीले धब्बे पड़ जाते हैं.

हृदयवाहिका सिस्टम डैमेज

स्मोकिंग के कारण पूरा कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम (हृदयवाहिका) डैमेज हो जाता है. जब निकोटिन आप के शरीर पर प्रभाव डालता है तो इस से आप का ब्लड शुगर बढ़ जाता है, जिस से आप थकाथका सा महसूस करने लगते हैं. स्मोकिंग से गुड कोलैस्ट्रोल लैवल कम और ब्लडप्रैशर बढ़ जाता है. इतना ही नहीं स्मोकिंग से स्ट्रोक तक का खतरा भी बढ़ जाता है. जिन स्मोकर्स की बाईपास सर्जरी हो चुकी है उन में दिल से संबंधित बीमारियां स्मोकिंग से ज्यादा बढ़ जाती हैं.

घटती यौन क्षमता

ज्यादा स्मोकिंग करने वाले पुरुषों की सैक्स क्षमता घटती है. यहां तक कि सिगरेट पीने वाली महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है और गर्भवती महिलाओं को गर्भपात या समय से पहले डिलीवरी होने जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. जो गर्भवती महिलाएं स्मोकिंग करने वाली महिलाओं के आसपास या फिर सिगरेट के धुएं के संपर्क में रहती हैं उन के बच्चों का जन्म के समय वजन बहुत कम होता है.

युवाओं में क्यों बढ़ रहा है धूम्रपान का चलन

– आज युवा अपने दिमाग से कम और देखादेखी चीजों को ज्यादा अपनाते हैं. धूम्रपान का बढ़ता शौक भी इसी का परिणाम है.

– अपने ग्रुप में खुद को मौडर्न दिखाने के लिए.

– तनाव से नजात पाने के लिए.

– खुद को ज्यादा ऊर्जा देने के लिए.

– अपने घर में किसी को ऐसा करते देख खुद भी वैसा ही करने की कोशिश करना.

– अब हम बड़े हो गए हैं, इस बात का एहसास करवाने के लिए.

– गर्ल या बौयफ्रैंड पर अपना विशेष प्रभाव जमाने के लिए. ठ्ठ

तंबाकू के धुएं में हानिकारक कैमिकल्स

निकोटिन : निकोटिन बहुत जल्दी और तुरंत असर करने वाला ड्रग है. शरीर में जाते ही यह 15 सैकंड में मस्तिष्क तक पहुंच जाता है. जिसे भी इस की एक बार आदत पड़ गई उस के लिए इसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है. निकोटिन एक तरह का कीटनाशक है.

इस का अधिक प्रयोग करने से उलटी, डिप्रैशन, विकास कम होना और यहां तक कि भू्रण विकास में भी बाधा उत्पन्न होती है.

कार्बनमोनोऔक्साइड :  यह बहुत ही खतरनाक गैस होती है. अगर आप के आसपास जरूरत से ज्यादा कार्बनमोनोऔक्साइड होगी और आप उसे लेंगे तो कोमा तक में जा सकते हैं. कार्बनमोनोऔक्साइड से मांसपेशियों और हार्ट का फंक्शन भी स्लो हो जाता है.

टार : टार में बहुत सारे ऐसे रसायन हैं जिन का कैंसर को बढ़ाने में अहम रोल होता है. जब कोई व्यक्ति सिगरेट के माध्यम से धुआं अंदर खींचता है तो 70% टार लंग्स में ही रह जाते हैं जो लंग्स कैंसर का कारण बनते हैं.

धातु : इस में खतरनाक धातु और लैड होता है.

कैसे छोड़ें धूम्रपान

– अगर आप एक दिन में 10-12 सिगरेट पीते हैं तो एक सप्ताह तक 8 कर दीजिए, फिर अगले सप्ताह 6, फिर 4, 2 और अंत में बिलकुल बंद कर दीजिए.

– प्रत्येक बार आधा सिगरेट ही पिएं.

– कम निकोटिन वाली सिगरेट का इस्तेमाल करें. इस से धीरेधीरे आप की यह आदत कम हो जाएगी.

– ऐसे लोगों या दोस्तों के साथ कम रहें जो सिगरेट के आदी हों, क्योंकि इस से आप लाख कोशिश करने के बावजूद अपनी इस आदत को नहीं छोड़ पाएंगे.

– जब कभी आप की धूम्रपान करने की इच्छा हो तो अपना ध्यान वहां से हटा कर किसी और कार्य में लगा लें.

– धूम्रपान करने का मन करे तो सौंफ, इलायची आदि चबा लें.

– व्यायाम करने से धूम्रपान से फेफड़ों में होने वाली कमजोरी दूर होगी और साथ ही धूम्रपान न करने की इच्छाशक्ति प्रबल होगी.

– धूम्रपान छोड़ने पर अगर कोई भी दिक्कत आए तो डाक्टर से सलाह लें.

Friendship Day Special : चित और पट- नीरा को उसकी सहेली वर्तिका ने क्या पट्टी पढ़ाई?

आधी रात को नीरा की आंख खुली तो विपिन को खिड़की से झांकते पाया. ‘‘अब क्या हुआ? मैं ने कहा था न कि वक्तबेवक्त की कौल्स अटैंड न किया करें. अब जिस ने कौल की वह तो तुम्हें अपनी प्रौब्लम ट्रांसफर कर आराम से सो गया होगा… अब तुम जागो,’’ नीरा गुस्से से बोलीं.

‘‘तुम सो जाओ प्रिय… मैं जरा लौन में टहल कर आता हूं.’’ ‘‘अब इतनी रात में लौन में टहल कर क्या नींद आएगी? इधर आओ, मैं हैडमसाज कर देती हूं. तुरंत नींद आ जाएगी.’’

थोड़ी देर बाद विपिन तो सो गए, पर नीरा की नींद उड़ चुकी थी. विपिन की इन्हीं आदतों से वे दुखी रहती थीं. कितनी कोशिश करती थीं कि घर में तनाव की स्थिति पैदा न हो. घरेलू कार्यों के अलावा बैंकिंग, शौपिंग, रिश्तेदारी आदि सभी मोरचों पर अकेले जूझती रहतीं. गृहस्थी के शुरुआती दौर में प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर घर में आर्थिक योगदान भी किया. विपिन का हर 2-3 साल में ट्रांसफर होने के कारण उन्हें हमेशा अपनी जौब छोड़नी पड़ी. उन्होंने अपनी तरक्की की न सोच कर घर के हितों को सर्वोपरि रखा. आज जब बच्चे भी अपनीअपनी जौब में व्यस्त हो गए हैं, तो विपिन घर के प्रति और भी बेफिक्र हो गए हैं. अब ज्यादा से ज्यादा वक्त समाजसेवा को देने लगे हैं… और अनजाने में ही नीरा की अनदेखी करने लगे हैं.

हर वक्त दिमाग में दूसरों की परेशानियों का टोकरा उठाए घूमते रहते. रमेशजी की बेटी

का विवाह बिना दहेज के कैसे संपन्न होगा, दिनेश के निकम्मे बेटे की नौकरी कब लगेगी, उस के पिता दिनरात घरबाहर अकेले खटते रहते हैं, शराबी पड़ोसी जो दिनरात अपनी बीवी से पी कर झगड़ा करता है उसे कैसे नशामुक्ति केंद्र ले जाया जाए आदिआदि. नीरा समझासमझा कर थक जातीं कि क्या तुम समाजसुधारक हो? अरे, जो मदद मांगे उसी की किया करो… सब के पीछे क्यों भागते हो? मगर विपिन पर कोई असर न पड़ता.

‘‘नीरा, आज का क्या प्रोग्राम है?’’ यह वर्तिका थी. नए शहर की नई मित्र. ‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर सुन हम दोनों फिल्म देखने चलेंगी आज,’’ कह वर्तिका ने फोन काट दिया. वर्तिका कितनी जिंदादिल है. उसी की हमउम्र पर कुंआरी, ऊंचे ओहदे पर. मगर जमीन से जुड़ी, सादगीपसंद. एक दिन कालोनी के पार्क में मौर्निंग वाक करते समय फोन नंबरों का आदानप्रदान भी हो गया.

फिल्म देखने के बाद भी नीरा चुपचाप सी थीं.

‘‘भाई साहब से झगड़ा हो गया है क्या?’’ वर्तिका ने छेड़ा. ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है… तू नहीं समझ पाएगी,’’ नीरा ने टालना चाहा.

‘‘क्योंकि मेरी शादी नहीं हुई है, इसलिए कह रही हो… अरे, मर्दों से तो मेरा रोज ही पाला पड़ता है. इन की फितरत को मैं खूब समझती हूं.’’ ‘‘अरे, तुम तो सीरियस हो गई मेरी प्रगतिशील मैडम… ऐसा कुछ भी नहीं है. दरअसल, मैं विपिन की तनाव उधार लेने की आदत से परेशान हूं… उन्हें कभी किसी के लिए अस्पताल जाना होता है, कभी किसी की औफिस वर्क में मदद करनी होती है,’’ नीरा उसे विस्तार से बताती चली गईं.

‘‘अच्छा एक बात बताओ कि क्या विवाह के शुरुआती दिनों से ही विपिन ऐसे हैं या फिर अब ऐसे हुए?’’ कौफी शौप में बैठते हुए वर्तिका ने पूछा. ‘‘शादी के 10-15 साल तो घरेलू जिम्मेदारियां ही इतनी अधिक थीं. बच्चे छोटे थे, किंतु जैसेजैसे बच्चे अपने पैरों पर खड़े होते गए, विपिन की जिम्मेदारियां कम होती गईं. अब तो विवाह के 26 वर्ष बीत चुके हैं. बच्चे भी अलग शहरों में हैं. अब तो इन्हें घर से बाहर रहने के

10 बहाने आते हैं,’’ नीरा उकता कर बोलीं. ‘‘तुम्हारे आपसी संबंधों पर इस का असर तो नहीं पड़ रहा है?’’ वर्तिका ने पूछा.

‘‘मैं ने पहले इस विषय पर नहीं सोचा था. मगर अब लगता है कि हमारे संबंधों के बीच भी परदा सा खिंच गया है.’’ ‘‘तो मैडम, अपने बीच का परदा उठा कर खिड़कियों में सजाओ… अपने संबंध सामान्य करो… उन्हें इतनी फुरसत ही क्यों देती हो कि वे इधरउधर उलझे रहें,’’ वर्तिका दार्शनिकों की तरह बोली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. अब यह कर के भी देखती हूं,’’ और फिर नीरा शरारत से मुसकराईं तो वर्तिका भी हंस पड़ी. आज विपिन को घर कुछ ज्यादा ही साफ व सजा नजर आया. बैडरूम में भी ताजे गुलाबों का गुलदस्ता सजा मिला. ‘आज नीरा का जन्मदिन तो नहीं या फिर किसी बेटे का?’ विपिन ने सोचा पर कोई कारण न मिला तो रसोई की तरफ बढ़ गए. वहां उन्हें नीरा सजीधजी उन की मनपसंद डिशेज तैयार करती मिलीं.

‘‘क्या बात है प्रिय, बड़े अच्छे मूड में दिख रही हो आज?’’ विपिन नीरा के पीछे खड़े हो बोले. ‘‘अजी, ये सब आप की और अपनी खुशी के लिए कर रही हूं… कहा जाता है कि बड़ीबड़ी खुशियों की तलाश में छोटीछोटी खुशियों को नहीं भूल जाना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है… आई एम इंप्रैस्ड.’’ रात नीरा ने गुलाबी रंग का साटन का गाउन निकाला और स्नानघर में घुस गईं.

‘‘तुम नहा रही हो… देखो मुझे रोहित ने बुलाया है. मैं एकाध घंटे में लौट आऊंगा,’’ विपिन ने जोर से स्नानघर का दरवाजा खटका कर कहा. नीरा ने एक झटके में दरवाजा खोल दिया. वे विपिन को अपनी अदा दिखा कर रोकने के मूड में थीं. मगर विपिन अपनी धुन में बाय कर चलते बने.

2 घंटे इंतजार के बाद नीरा का सब्र का बांध टूट गया. वे अपनी बेकद्री पर फूटफूट कर रो पड़ीं. आज उन्हें महसूस हुआ जैसे उन की अहमियत अब विपिन की जिंदगी में कुछ भी नहीं रह गई है. दूसरे दिन नीरा का उखड़ा मूड देख कर जब विपिन को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने रात में नीरा को अपनी बांहों में भर कर सारी कसक दूर करने की ठान ली. मगर आक्रोषित नीरा उन की बांहें झटक कर बोलीं, ‘‘हर वक्त तुम्हारी मरजी नहीं चलेगी.’’

विपिन सोचते ही रह गए कि खुद ही आमंत्रण देती हो और फिर खुद ही झटक देती हो, औरतों का यह तिरियाचरित्तर कोई नहीं समझ सकता. उधर पीठ पलट कर लेटी नीरा की आंखें डबडबाई हुई थीं. वे सोच रही थीं कि क्या वे सिर्फ हांड़मांस की पुतला भर हैं… उन के अंदर दिल नहीं है क्या? जब दिल ही घायल हो, तो तन से क्या सुख मिलेगा?

2 महीने के बाद वर्तिका और नीरा फिर उसी कौफी शौप में बैठी थीं. ‘‘नीरा, तुम्हारी हालत देख कर तो यह नहीं लग रहा है कि तुम्हारी जिंदगी में कोई बदलाव आया है. तुम ने शायद मेरे सुझाव पर अमल नहीं किया.’’

‘‘सब किया, लेकिन लगता है विपिन नहीं सुधरने वाले. वे अपने पुराने ढर्रे पर

लौट गए हैं. कभी अस्पताल, कभी औफिस का बहाना, लेटलतीफी, फोन पर लगे रहना, समाजसेवा के नाम पर देर रात लौटना… मुझे तो अपनी जिंदगी में अब तनाव ही तनाव दिखने लगा है. बच्चे बड़े हो गए हैं. उन की अपनी व्यस्तताएं हैं और पति की अपनी, सिर्फ एक मैं ही बिलकुल बेकार हो गई हूं, जिस की किसी को भी जरूरत नहीं रह गई है,’’ नीरा के मन का गुबार फूट पड़ा. ‘‘मुझे देख, मेरे पास न तो पति हैं और न ही बच्चे?’’ वर्तिका बोल पड़ी.

‘‘पर तेरे जीवन का लक्ष्य तो है… औफिस में तो तेरे मातहत पुरुष भी हैं, जो तेरे इशारों पर काम करते हैं. मुझे तो घर पर काम वालियों की भी चिरौरी करनी पड़ती है,’’ नीरा रोंआसी हो उठी. ‘‘अच्छा दुखी न हो. सुन एक उपाय बताती हूं. उसे करने पर विपिन तेरे पीछेपीछे भागने लगेंगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ ‘‘मतलब एकदम साफ है. तू ने अपने घर को इतना व्यवस्थित और सुविधायुक्त कर रखा है कि विपिन घर और तेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियों से निश्चिंत हैं और अपना वक्त दूसरों के संग बांटते हैं… तेरे लिए सोचते हैं कि घर की मुरगी है जब चाहे हलाल कर लो.’’

‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया,’’ नीरा उलझन में पड़ कर बोलीं. ‘‘तो बस इतना समझ ले विपिन को तनाव लेना पसंद है, तो तू ही उन्हें तनाव देना शुरू कर दे… तब वे तेरे पीछे भागने लगेंगे.’’

‘‘सच में?’’ ‘‘एकदम सच.’’

‘‘तो फिर यही सही,’’ कह नीरा ने एक बार फिर से अपनी गृहस्थी की गाड़ी को पटरी पर लाने को कमर कस ली. ‘‘सुनो, यह 105 नंबर वाले दिनेशजी हैं न उन की पत्नी तो विवाह के 5 वर्ष बाद ही गुजर गई थीं, फिर भी उन्होंने अपनी पत्नी के गम में दूसरी शादी नहीं की. अपनी इकलौती औलाद को सीने से लगाए दिन काट लिए. अब देखो न बेटा भी हायर ऐजुकेशन के लिए विदेश चला गया.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब से कालोनीवासियों की खबरें मिलने लगीं… तुम तो अपनी ही गृहस्थी में मग्न रहती हो,’’ विपिन को नीरा के मुख से यह बात सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ. ‘‘अरे, कल घर आए थे न उत्सव पार्टी का निमंत्रण देने. मैं ने भी चाय औफर कर दी. देर तक बैठे रहे… अपनी बीवी और बेटे को बहुत मिस कर रहे थे.’’

‘‘ज्यादा मुंह न लगाना. ये विधुर बड़े काइयां होते हैं. एक आंख से अपनी बीवी का रोना रोते हैं और दूसरी से दूसरे की बीवी को ताड़ते हैं.’’ ‘‘तुम पुरुष होते ही ऐसे हो… दूसरे मर्द की तारीफ सुन ही नहीं सकते. कितने सरल हृदय के हैं वे. बेचारे तुम्हारी ही उम्र के होंगे, पर देखो अपने को कितना मैंटेन कर रखा है. एकदम युवा लगते हैं.’’

‘‘तुम कुछ ज्यादा ही फिदा तो नहीं हो रही हो उन पर… अच्छा छोड़ो, मेरा टिफिन दो फटाफट. मैं लेट हो रहा हूं. और हां हो सकता है आज मैं घर देर से आऊं.’’ ‘‘तो इस में नई बात क्या है?’’ नीरा ने चिढ़ कर कहा, तो विपिन सोच में पड़ गए.

शाम को जल्दी पर घर पहुंच कर उन्होंने नीरा को चौंका दिया, ‘‘अरे, मैडम इतना सजधज कर कहां जाने की तैयारी हो रही है?’’ ‘‘यों ही जरा पार्क का एक चक्कर लगाने की सोच रही थी. वहां सभी से मुलाकात भी हो जाती है और कालोनी के हालचाल भी मिल जाते हैं.’’

विपिन हाथमुंह धोने गए तो नीरा ने उन का मोबाइल चैक किया कि आज जल्दी आने का कोई सुराग मिल जाए. पर ऐसा कुछ नहीं मिला. ‘‘आज क्या खिलाने वाली हो नीरा? बहुत दिन हुए तुम ने दालकचौरी नहीं बनाई.’’

‘‘शुक्र है, तुम्हें कुछ घर की भी याद है,’’ नीरा के चेहरे पर उदासी थी. ‘‘यहां आओ नीरा, मेरे पास बैठो. तुम ने पूछा ही नहीं कि आज मैं जल्दी घर कैसे आ

गया जबकि मैं ने बोला था कि मैं देरी से आऊंगा याद है?’’ ‘‘हां, मुझे सब याद है. पर पूछा नहीं तुम से.’’

‘‘मैं अपने सहकर्मी रोहित के साथ हर दिन कहीं न कहीं व्यस्त हो जाता था… आज सुबह उस ने बताया कि उस की पत्नी अवसाद में आ गई थी जिस पर उस ने ध्यान ही नहीं दिया था. कल रात वह अचानक चक्कर खा कर गिर पड़ी, तो अस्पताल ले कर भागा. वहीं पता चला कि स्त्रियों में मेनोपौज के बाद ऐसा दौर आता है जब उन की उचित देखभाल न हो तो वे डिप्रैशन में भी चली जाती हैं. डाक्टर का कहना है कि कुछ महिलाओं में अति भावुकता व अपने परिवार में पकड़ बनाए रखने की आदत होती है और उम्र के इस पड़ाव में जब पति और बच्चे इग्नोर करने लगते हैं तो वे बहुत हर्ट हो जाती हैं. अत: ऐसे समय में उन के पौष्टिक भोजन व स्वास्थ्य का खयाल रखना चाहिए वरना वे डिप्रैशन में जा सकती हैं.’’ ‘‘मुझे क्यों बता रहे हो?’’ नीरा पलट

कर बोलीं. ‘‘सीधी सी बात है मैं तुम्हें समय देना चाहता हूं ताकि तुम खुद को उपेक्षित महसूस न करो. तुम भी तो उम्र के इसी दौर से गुजर रही हो. अब शाम का वक्त तुम्हारे नाम… हम साथ मिल कर सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करेंगे.’’

मेरी त्वचा सांवली होने के साथ-साथ औयली भी है, मुझे ऐसे उपायों के बारे में बताइएं जिससे मेरी त्वचा पर रंगत और निखार आ जाएं

सवाल

मेरी त्वचा सांवली है और साथ ही औयली भी है, जिस की वजह से चेहरे पर रौनक नहीं दिखती. कृपया त्वचा की रंगत निखारने का कोई उपाय बताएं?

जवाब

किसी का गोरा या काला होना जीन्स पर निर्भर करता है. फिर भी घरेलू उपायों से चेहरे की रंगत को थोड़ा निखारा जा सकता है. आप बेसन में दही व शहद मिला कर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाएं. पेस्ट के सूखने के बाद उसे पानी से मसाज करते हुए धो लें.

बेसन जहां चेहरे के औयल को कम करेगा, वहीं शहद रैशेज होने से बचाव करेगा. इस के अलावा आप बादाम के पाउडर में मिल्क पाउडर और रोजवाटर मिला कर पैक बना कर चेहरे पर लगाएं. सूखने पर कच्चे दूध की सहायता से धो लें. यह पैक भी आप के चेहरे की रंगत को निखारने में मदद करेगा.

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कई बार ज्यादा खाने की आदत से बचना मुश्किल हो जाता है. आप घर में स्वस्थ खाना खाते हैं, तो आप को लगता है कि सब ठीक है और फिर बाहर जा कर खुद को जंक फूड से घिरा हुआ पाते हैं. उसे देख कर भूख लगने लगती है और आप डाइट भूल कर जंक फूड का मजा लेने पहुंच जाते हैं.

पेश हैं, कुछ तरीके जो आप की इस आदत को छुड़ाने में आप की सहायता करेंगे:

  1. खाने में सिरका और दालचीनी डालें:

खाने को स्वादिष्ठ और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए बहुत से मसाले और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. सिरके से ग्लाइसैमिक इंडैक्स कम होता है. खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ाए बगैर सलाद की ड्रैसिंग, सौस और भुनी हुई सब्जियों में इस से ऐसिडिक फ्लेवर मिलता है.

2. भूख न लगने पर खाएं:

भूख तेज लगने की स्थिति में व्यक्ति ज्यादा खा लेता है. ज्यादा खा लेने से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करेंगे, जिस से इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है और आप थकान महसूस करने लगते हैं. उस के बाद भूख भी जल्दी लगती है और आप फिर जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं. भूख को मारने के बजाय दूसरे तरीके को आजमा कर देखें. जब आप को भूख न लग रही हो या हलकी लग रही हो, तब खाएं. इस से आप कम खाएंगे और धीरेधीरे भी. दिन भर में कम खाने के कई लाभ हैं. इस के अलावा इस आदत से व्यक्ति ऊर्जावान भी रहता है.

3. पेय कैलोरीज के बजाय पानी पीएं:

जूस और सोडा जैसे पेय कैलोरीज से कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि ये इंसुलिन के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. बेहतर होगा कि इन पेयपदार्थों के बजाय आप पानी पीएं. स्वाद के लिए उस में नीबू, स्ट्राबैरी या खीरा मिला सकते हैं. अपनी ड्रिंक्स में कभी कैलोरी न मिलाएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी पीने का लक्ष्य निर्धारित करें. अपनी भूख को नियंत्रित करने के लिए हर भोजन से 20 मिनट पहले 1 गिलास पानी पीने की आदत जरूर डालें.

4. धीरेधीरे खाएं:

खाने को निगलने की स्थिति में उस से तुष्ट होने में कुछ समय लगता है. यह देरी करीब 10-30 मिनट तक की हो सकती है. इसी देरी की वजह से हम कई बार जरूरत व इच्छा से ज्यादा खाना खा लेते हैं. हम जितना तेज खाते हैं उतना ही अधिक मात्रा में खा जाते हैं. हर कौर को कम से कम 10 बार चबा कर खाएं. इस साधारण से नियम का पालन कर आप का खाने की मात्रा पर नियंत्रण बना रहेगा और आप अपने भोजन का आनंद लेते हुए खा सकेंगे.

5. स्नैक्स लेते रहें:

भोजन के  बीच में औलिव औयल या चीनी मिश्रित 1 गिलास पानी लिया जा सकता है. बिना नमक वाले बादाम भी ले सकते हैं. दिन में एक बार ऐसा करने से अपनी भूख पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यह तरीका बहुत कारगर साबित हो सकता है अगर आप को अपना वजन कम करना हो. इस से घ्रेलिन नियंत्रित होता है, जोकि भूख बढ़ाने वाला हारमोन है और फिर फ्लेवर व कैलोरी के बीच का संबंध कमजोर हो जाता है. अगर आप चाहते हैं कि यह तरीका काम करे तो हलके स्नैक्स लें और ध्यान रखें कि स्नैक्स लेने के आधे घंटे पहले और बाद तक आप पानी के सिवा और कुछ न लें.

6. फ्रंट डोर स्नैक:

आप को यह बात अच्छी तरह पता होगी कि अत्यधिक भूख के समय किसी प्रकार का दृढ़ निश्चय काम नहीं करता है. घर से निकलते ही बाहर लुभावना जंक फूड नजर आने लगता है, इसलिए कोशिश करें कि घर से निकलने से पहले स्वस्थ खाना खा कर या ले कर चलें. घर के मेन दरवाजे के पास बादाम या केले के चिप्स जैसी चीजें रखें और निकलने से तुरंत पहले उन का सेवन करना न भूलें. इस से आप को बाहर निकलते ही भूख नहीं लगेगी.

– डा. साक्षी कक्कड़, पारस ब्लिस हौस्पिटल

हिंदू औरतें विरासत में पिछड़ी

आज रश्मि से मुलाकात हुई तो उस की बातों ने झकझोर कर रख दिया. उस के भाई की पिछले साल दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. 2 बहनों का एकलौता भाई था. एक महीने के भीतर ही भाभी ने सब जमीनजायदाद अपने नाम लिखवा ली. मकान में भी ताला लगा दिया और खुद अपने पीहर के पास ही एक घर खरीद लिया. दोनों बहनों ने बात करने की कोशिश की, लेकिन उन को बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया.

रश्मि के मातापिता कई साल पहले ही गुजर गए थे. छोटी बहन की तब तक शादी नहीं हुई थी. पिता की तेरहवीं के दिन भाई ने कोर्ट में ले जा कर दोनों बहनों से कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए थे. कारण बताया था कि पिता की जोड़ी हुई रकम बैंक से तब तक मिलेगी नहीं, जब तक कि तीनों बच्चों की लिखित सहमति नहीं होगी.

रिश्तेदारों ने भी भाई का ही साथ दिया था. बहनों ने भाई का सहयोग किया, लेकिन अब स्थिति ऐसी आ गई थी कि पिता के घर के दरवाजे उन के लिए बंद हो चुके थे. सुन कर बहुत धक्का सा लगा. सहेली होने के नाते मैं रश्मि की मदद करना चाहती थी, इसलिए कुछ और महिलाओं से बात करने की ठानी.

सरकार ने महिलाओं को उन का हक देने के लिए जो कानून बनाए हैं या संशोधन किए हैं, क्या उन से महिलाओं को उन का हक मिल रहा है या स्थिति और भी बिगड़ गई है?

पड़ोस में रहने वाली काव्या की शादी को एक साल ही हुआ था. उस ने बताया कि शादी से पहले ही उस के भाई ने पिता से कह कर उस का राजीनामा ले लिया था कि विवाह के पश्चात वह पिता की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मांगेगी. मेरी जिज्ञासा और बढ़ रही थी.

महल्ले में पिछले ही महीने एक अंकल की मृत्यु हुई थी. उन की पत्नी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी. 2 ही बच्चे थे उन के. बहन ने अपना हिस्सा मांगा तो भाई ने बात करना ही बंद कर दिया.

बहन भी उच्च शिक्षा प्राप्त है. उस ने भाई के ऊपर कोर्ट में केस दर्ज किया और अपनी ससुराल का घर छोड़ कर पिता के ही घर में दूसरी मंजिल पर आ कर रहना शुरू कर दिया. केस चल रहा है. दोनों भाईबहनों की मुलाकात कोर्ट परिसर में ही होती है. बातचीत तो बिलकुल बंद है.

मध्यम वर्ग में लड़कियों को पिता की संपत्ति में अधिकार मिलने की यही जमीनी हकीकत है. अधिकार मिले या नहीं मिले, लेकिन रिश्ते तो बिगड़ ही गए हैं. जहां लड़कियां चुप हैं, वहां उन की स्थिति ऐसे मेहमानों जैसी है, जिन के आने से कोई खुश नहीं होता है, सिवा उन के मां बाप के. जो अपना अधिकार मांग रही हैं, उन्हें किसी का सहयोग मिलना तो दूर उलटे सब से अलगथलग रह कर जीवन बिताने पर मजबूर कर दिया जाता है. अपनों के विरुद्ध ही अदालत में जा कर लड़ाई लड़नी पड़ती है. कई बार तो मातापिता को भी बेटों का ही साथ देते हुए देखा जाता है, क्योंकि उन्हें उसी घर में रहना है. पीहर की संपत्ति का यह हाल है, तो क्या ससुराल में वो अपना अधिकार ले पा रही हैं? चलिए, पता करते हैं.

सौम्या अपनी बहनों में सब से ज्यादा पढ़ीलिखी है. शादी हुई तो 4 भाईबहनों के परिवार में आ गई. विवाह के समय सास ने अपने पुराने गहने पहनाए. सब को लगा कि उसे बहुत अच्छी तरह रखेंगे ससुराल वाले. पर, विवाह के तुरंत बाद छोटीमोटी बातों को ले कर लड़के को सुनाना शुरू कर दिया. पति दूसरे शहर में नौकरी करता था. पति ने उसे अपने साथ ले जाना ही उचित समझा.

अब स्थिति ऐसी है कि ससुर ने रिटायरमैंट के बाद जो मकान बनाया, वह भी बड़े लड़के के नाम से है. दोनों बहनों ने अपने ससुराल वालों से सब रिश्ते खत्म कर रखे हैं. परिवार सहित पिता के घर में ही आतीजाती हैं. उन के बच्चे भी अधिकतर वहीं रहते हैं. जो जेवर सास ने चढ़ाए थे, वे भी बैंक में रखने के नाम पर ले लिए गए और फिर वापस नहीं मिले हैं.

सौम्या के पति की नौकरी से ही उन के परिवार का पूरा खर्च चलता है. वह भी ट्यूशन पढ़ा कर थोड़ीबहुत सहायता कर रही है. घर में सब का यही कहना है कि छोटा लड़का अपनी पारिवारिक (मातापिता के प्रति) जिम्मेदारियां नहीं निभा रहा है. सौम्या समझ ही नहीं पाती है कि उन की क्या गलती है? क्यों उन के साथ यह सब किया जा रहा है?

ऐसा नहीं है कि जहां एक ही बेटा हो, वहां समस्या नहीं होती है. पति के साथ काम करने वाले एक लड़के की शादी मातापिता की मरजी से ही हुई. एकलौता लड़का है. बड़ी बहन की पहले ही शादी हो चुकी थी. शादी तक सब ठीक रहा. कुछ महीनों बाद ही मांबाप की बहू को ले कर शिकायतें शुरू हो गईं. ननद सर्विस करती है. उस की ससुराल भी उसी शहर में है. ननद अपनी बेटी को रोज सुबह ननिहाल में छोड़ती और फिर शाम को खाना खा कर, पति का खाना साथ ले कर वापस जाती.

बहू पहले तो सब चुपचाप करती रही, लेकिन गर्भ ठहर जाने के कारण उस की तबीयत खराब रहने लगी. मांबाप ने एकलौते बेटे को बहू के साथ घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया. पोते को देखने भी नहीं आए हैं. 2 साल का होने वाला है.

एक ही शहर में होने के कारण कभीकभार आपस में टकरा जाते हैं, लेकिन अनजान बन आगे बढ़ जाते हैं. अब लड़का दूसरे शहर में तबादले की कोशिश में जुटा हुआ है.

इन सब बातों को देखने पर लगता है कि मध्यम वर्ग न तो कानून के अनुसार ही चल रहा है और न ही रिश्तों को बिखरने से बचा पा रहा है. लड़कियों को न तो अपने पिता की संपत्ति में हक मिल रहा है और न ही ससुराल में उन का कोई हक है. पढ़ने में बुरा लग सकता है, लेकिन पढ़ीलिखी लड़कियां भी इस कानून के मोह में आ कर ससुराल वालों के साथ तालमेल बिठाना ही नहीं चाह रही हैं. अपने पीहर से उन की केवल औपचारिक विदाई हो रही है. वैसे, मांबाप के जीवित रहने तक वे वहीं रह रही हैं. उन के पति और बच्चे भी वहीं आनाजाना रखते हैं.

विभा की दोनों ननदें शादी के एक साल बाद ही ससुराल वालों से अलग हो गईं. उन की मां ने भी उन का पूरा साथ दिया. दोनों के ही पति प्राइवेट सैक्टर में कार्यरत हैं. सास ने ससुर से संपत्ति में अपना हक पूरा ले लिया और अब पूरी तरह मायके पर ही निर्भर हैं. उन के बच्चों के जन्मदिन से ले कर कालेज में एडमिशन तक की सारी जिम्मेदारी विभा के पति को ही निभानी पड़ती है. वे दुकान चलाते हैं, जिस पर ससुर भी साथ में बैठते हैं. पूरे साल उन का अनवरत आवागमन जारी रहता है, लेकिन उन के मातापिता में से कोई भी बीमार हो जाए या कोई और समस्या हो जाए, तो उन्हें समय निकालना मुश्किल हो जाता है.

ये केवल कुछ ही उदाहरण हैं, जो अलगअलग जगहों से लिए गए हैं. इन के अलावा भी अनेकों उदाहरण हैं, जिन में गृहक्लेश और घरेलू हिंसा का एक बड़ा कारण लड़की का विवाह के बाद भी अपने पीहर में बने रहना ही है.

इन सभी उदाहरणों में एक बात समान है कि किसी को भी मायके की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिला है. बस तनावपूर्ण जीवन उन की नियति बन गया है.

यहां पर मैं यही कहना चाहती हूं कि सरकार कोई भी कानून बनाने से पहले यदि एक सर्वे करवाए तो बेहतर स्थिति हो सकती है. इक्कीदुक्की घटनाओं के अनुसार, कानून बनाने या उस में बदलाव करने से उचित परिणाम नहीं मिल सकते हैं.

कुछ परिवारों में आपसी सहमति से झगड़े सुलझ भी जाते हैं. रिंकी के ससुर का संपत्ति के नाम पर बस एक मकान ही था. पुराना और बड़ा मकान. रिंकी की ननद दूर दूसरे शहर में रहती थी. पिता के जाने के बाद उस ने अपना हक मांगा तो रिंकी के पति ने मकान का ऊपर वाला हिस्सा उन्हें दे दिया, लेकिन वो खुश नहीं थी. पिता को गए हुए सालभर भी नहीं हुआ था और मकान को बेचना पड़ा, क्योंकि उन्हें मकान की आधी कीमत चाहिए थी, मकान नहीं. मां ने अपनी बेटी का ही साथ दिया. मकान बिक गया. अब रिंकी एक बड़ा फ्लैट किराए पर ले कर रह रही है. उस की सास 6 महीने उन के साथ रहती है और 6 महीने बेटी के साथ.।भाईबहन का रिश्ता केवल मां के कारण चल रहा है.

भौतिकतावादी युग में वैसे भी रिश्तेनाते अपना महत्व खो चुके हैं. रहीसही कसर इन कानूनों ने पूरी कर दी है. अब लड़की पढ़ीलिखी है, खुल कर अपने अधिकार के बारे में बोल सकती है, लेकिन छीन नहीं सकती है. घर को बचाने के लिए या कहें कि दोनों घरों की इज्जत बचाने की चाह में वह अदालत का दरवाज़ा नहीं खटखटा पा रही है और क्लेशयुक्त जिंदगी एम जीने को मजबूर है.

कहना जरूरी समझती हूं कि बेटी को बाप की संपत्ति में हक देने के साथ ही यह भी अनिवार्य कर देना चाहिए कि विवाह के बाद दामाद ससुराल में ही रहे. तभी कानून व्यावहारिक रूप ले पाएगा या फिर मातापिता को बच्चों की गृहस्थी बसने से पहले अपनी वसीयत बना देनी चाहिए. लड़कियों को भी इस सच को नहीं नकारना चाहिए कि उन्हें मातापिता ने लड़कों के समान परवरिश दी है और किसी भी घर में दो लड़कों में भी संपत्ति का बंटवारा समान रूप से नहीं होता है. मांबाप का किसी बच्चे से अधिक लगाव अथवा किसी एक का घर में दबदबा भी बंटवारे पर प्रभाव डालता है.

कानून बनाने वालों को भी पुनः इस विषय पर विचार करने की आवश्यकता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि लड़कियों को लड़कों के बराबर हक देने के चलते हम वृद्धाश्रम की नींव खुद ही रख रहे हैं. वही लड़की किसी घर की बहू भी है. अपने हक के चलते यदि वह पीहर से ही नाता रखेगी तो ससुराल वालों से कैसे निभाएगी? दूसरी ओर बहू से इतनी अपेक्षाएं होते हुए भी ससुराल में उसे हक नहीं दिया जाना भी उस के मायके के प्रति लगाव को बढ़ावा देता है.

अंत में मैं युवा लड़कियों से ही इस विषय पर सोचने के लिए आग्रह करूंगी, क्योंकि कानून उन के लिए ही बनाया गया है. भाई के बराबर संपत्ति में हक मांगिए, लेकिन जिम्मेदारी भी उस के बराबर बांटिए. जब मातापिता को सहारा देना है, तब आप भाई के बराबर खड़े रहिए तो बात बनेगी. हक आप लें और भाई की आलोचना करते रहें, दूसरी ओर मांबाप वृद्धाश्रम में रहें, यह स्थिति सुखद नहीं है.

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व्यंग्य : क्विटाक्विटी खेलें आओ

छुपाछुपी के खेल का जमाना लद गया. अब जमाना आ गया है क्विटाक्विटी हुआ का. वैसे भी फिजिकल से डिजिटल के युग में आ गए हैं हम. किस के पास समय है छुपाछुपी खेलने का? इस के लिए ज्यादा जगह चाहिए. क्विटाक्विटी डिजिटल खेल है और मोबाइल फोन से आसानी से खेला जा सकता है. मोबाइल फोन तो आजकल सर्वाधिक आवश्यक भी है और सर्वाधिक महत्वपूर्ण भी. दिलोदिमाग से भी कुछ ज्यादा.

क्विटाक्विटी को समझने के लिए एक वाकिए को जानना जरूरी है. हुआ यों कि किसी ‘फाइल’ को ले कर एक व्हाट्सएप ग्रुप में झड़प हो गई. सामान्य तौर पर व्हाट्सएप ग्रुप बनता है किसी और उद्देश्य के लिए और उस का प्रयोग होने लगता है किसी और उद्देश्य के लिए. मुख्यतः चुटकुले शेयर करने और गुड मौर्निंग, गुड ईवनिंग करने के लिए ये ग्रुप बनते हैं. सैल्फी ले कर अपलोड करना भी एक बहुत बड़े सामाजिक महत्व का काम है. ‘आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास’ सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप पर नहीं हर चीज पर लागू होता है.

उदाहरण के लिए, जनता सरकार चुनती है किसी और उदेश्य के लिए और सरकार काम करती है कुछ और. इसी प्रकार सरकार कर्मचारी का चयन करती है किसी और काम के लिए और चयनित होने के बाद कर्मचारी करने लगता है कुछ और ही काम.

आज के युग में ज्ञान का सर्जन हर मस्तिष्क में इतना अधिक होने लगता है और इस का कारण है हर स्थान पर ज्ञान की उपलब्धता. हर हाथ में मोबाइल है, हर मोबाइल में व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम सदृश ज्ञानकुंड, बल्कि ज्ञानसागर उपलब्ध है. ज्ञान के अत्यधिक मात्रा में सर्जन हर ओर फैले अनेकानेक माध्यमों पर उपलब्ध ज्ञान के कारण होता है. व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि ओपन यूनिवर्सिटी का दायित्व बखूबी निभाते हैं. ऐसे और न जाने कितनी यूनिवर्सिटी हैं, जो हर स्मार्टफोन में उपलब्ध हैं. अब जब ज्ञान की इतनी प्राप्ति हो, तो उस के निष्कासन के लिए कोई तो स्थान चाहिए. और इस ज्ञान के उत्सर्जन के लिए सोशल मीडिया से बेहतर स्थान और क्या हो सकता है भला? जहां से कुछ प्राप्ति होती है, वहां कुछ देना भी जरूरी है.

कबीरदास का जमाना बीत चुका है और ‘बुरा जो देखन…’ का सिद्धांत तो उन के जमाने में ही अप्रचलित हो चुका था. आज तो उस की क्या पूछ रहेगी, बल्कि उन के जमाने में भी उन के अलावा शायद ही कुछ लोग इस बात को मानते होंगे कि उन से बुरा कोई नहीं है. आज सभी अपने स्थान पर सही होते हैं, सभी का नजरिया उन के अपने दृष्टिकोण में सही होता है. पर एक बात पर अधिकतर लोग एकजैसे होते हैं और वह है कि वे जो सोचते हैं, वही सही है, बाकी लोगों की सोच गलत है. अधिकतर लोग, सभी नहीं, कुछ ही सही, पर अपवाद हैं इस के भी. और ये अपवाद सामान्य व्यक्ति नहीं माने जाते हैं. दब्बू माने जाते हैं. बिना रीढ़ के प्राणी माने जाते हैं.

तो क्विटाक्विटी की बात किस संदर्भ में हो रही है, जानना जरूरी है. एक ग्रुप में किसी फाइल को ले कर दो विपरीत विचार वाले कुछ व्यक्ति लड़ पड़े. आजकल वैसे भी फाइल को ले कर हर स्थान पर 2 गुट बन गए हैं. इसे कई आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है. एक उदाहरण मफलर ग्रुप और शाल ग्रुप का ले सकते हैं. मफलर ग्रुप का मत अलग होता है, तो शाल वाले का मत अलग होता है. पंजा ग्रुप और कमल ग्रुप अलग हो सकता है. हाथी ग्रुप, साइकल ग्रुप न जाने कितने ग्रुप हैं. पप्पू ग्रुप और फेंकू ग्रुप भी है. प्रांतवार अलग ग्रुप हैं, वर्गवार अलग ग्रुप हैं और कई आधार पर ग्रुपों की भरमार है.

तो हुआ यों कि एक गुट के व्यक्ति ने कुछ ऐसा पोस्ट किया, जो दूसरे गुट के व्यक्ति को नागवार लगा. तत्क्षण उस व्यक्ति को ग्रुप से बाहर कर दिया गया. अब इस अन्याय को कौन सहता भला. विपक्षी गुट के कई लोग भी एडमिन थे. सो फिर से उन्हें शामिल कर लिया गया. और जवाब में दूसरे उस व्यक्ति को ही ग्रुप से निकाल दिया गया, जिस ने गुटनिकाला के पुनीत कार्य को प्रारंभ किया था. इस निकालानिकाली में कुछ लोग तुनक कर खुद भी क्विट करने लगे. इस प्रकार इसे निकालो उसे निकालो के साथ ही क्विटाक्विटी का खेल भी प्रारंभ हो गया.

कुछ समझदार लोगों ने बीचबचाव किया कि उन का ग्रुप अलग उद्देश्य के लिए बना है और जिस उद्देश्य के लिए बना है, उस के लिए ही उस का प्रयोग होना चाहिए. शेष बातों के लिए अलग मंच हो सकता है. पर उन से भी जो अधिक समझदार थे उन पर इस बीचबचाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अब जिन के, मन में यह बात हो कि ‘भला जो देखन मैं चला, भला न मिलया कोई, जो पोस्ट ढूंढा आपना, मुझ से सच्चा न कोई’, वह इस बात के लिए कैसे सहमत हो सकता है कि उस ने जो पोस्ट किया है, वह गलत हो सकता है. इस बात पर अड़ गए कि वे सही हैं. दूसरा पक्ष भी अड़ गया कि मैं सही तू गलत, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी के तर्ज पर. कुछ देर दोनों ने अपनेअपने सींग अड़ाए रखे. और जब कुछ ज्यादा समझदार लोग उन्हें समझाने लगे, तो फिर उन के अंदर का फूफा जाग गया और खेल शुरू हो गया क्विटाक्विटी का.

फूफा सरीखा नाराज सदस्य तुरंत ग्रुप क्विट करता है. पहले एक ने ग्रुप को क्विट किया, फिर दूसरे ने. कुछ बिलकुल निष्क्रिय सदस्य भी इस क्विटाक्विटी के खेल को देख कर क्विट होने को ले कर सक्रिय हो गए. उन के ग्रुप में होने का आभास भी कुछ लोगों को तभी हुआ, जब उन्होंने ग्रुप छोड़ दिया. वैसे ही जैसे कुछ लोग जब पुरस्कार वापस करते हैं, तभी पता चलता है कि उन्हें कभी पुरस्कार मिला भी था. कुछ लोग उन्हें मनाने और ग्रुप में वापस बुलाने में लगे हैं. सामान्य तौर पर देखा गया है कि जो ग्रुप छोड़ने में आगे होते हैं, वे फिर से ग्रुप में जुड़ने में भी अगुआ होते हैं. देखें आगे मामला क्या होता है, कितने लोग ग्रुप में वापस आते हैं. पर अभी तो निकालानिकाली के साथ ही क्विटाक्विटी का खेल शुरू हो चुका है.

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