‘‘मां का साया यदि मेरे सिर पर न होता तो मैं आज राजकीय विद्यालय की शिक्षिका न होती, बल्कि ऊन कारखाने में एक साधारण मजदूर मात्र बन कर संघर्ष का जीवन जी रही होती. मेरी मां ने हमेशा हर पल मुझे शिक्षा के लिए प्रेरित किया. उन का ध्येय रहा कि मजदूर मां की बेटी भी मजदूर बनी तो फिर उपलब्धि क्या प्राप्त की. उल्लेखनीय तो तभी हो सकेगा जब बेटी शिक्षित हो कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके. मैं ने उन के मन के भाव को समझा और जुट गई पढ़ाईलिखाई में. आज सफल हूं तो सिर्फ मां के दृढ़ निश्चय के कारण.’’ यह कहना है 21 वर्षीया नीलकमल का. ‘‘मेरे जीवन में मां का बड़ा महत्त्व है. विगत 7 वर्षों से हर शैक्षणिक सत्र में मैं फर्स्ट रैंक पर बना हुआ हूं. प्रतिशत की बात करें तो कईकई विषयों में शतप्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं. इस वर्ष भी ए-वन ग्रेड के साथ नंबर वन बन कर दिखाया है. यह सब मेरी मां की कड़ी मेहनत का फल है. उन्होंने मुझ पर अपना अच्छाखासा समय खर्च किया है. मुझे नियमित पढ़ाई का व्यावहारिक ज्ञान उन से ही मिला है. हर दिन 4 घंटे पढ़ना है तो पढ़ना ही है. उन की सिखाई यह आदत मुझे हजारों रुपए खर्च करने वाले छात्रछात्राओं से भी आगे बनाए हुए है. भविष्य में भी नियमित पढ़ाई का मेरा गुण मुझे सहयोग करेगा और यह संभव हुआ है मेरी प्यारी मां की बदौलत.’’ यह कहना है किशोर छात्र आगाज का.यह सिर्फ बानगी है. ऐसे अनेक आगाज और नीलकमल हैं जिन की मांओं ने दिनरात एक कर अपने बच्चों का भविष्य संवारने में अहम भूमिका निभाई है.
समझदारी मां की
समझदार मां अपने बच्चों को शुरू से ही पढ़ाई में मदद करती है. प्यारदुलार के साथ वह उन की नींव को मजबूत करती है. बीकानेर बौयज स्कूल के प्रिंसिपल फादर शीबू कहते हैं, ‘‘मैं ने देखा है कि वे विद्यार्थी ज्यादातर होनहार होते हैं जिन के पीछे उन की मां का भी पुरुषार्थ होता है. क्लास दर क्लास अपने बच्चों में निखार लाने में मां की भूमिका अतुलनीय रहती है. उन की कमियों को मां अच्छे से समझती हैं और जब बात समझ में आ जाती है तो बच्चों में सुधार भी कर देती है.’’
नजर मित्रमंडली पर
किशोर उम्र के विद्यार्थियों की मित्रमंडली पर हर मां की पैनी नजर होनी चाहिए. ‘‘यदि मेरी मां ने मुझे बातूनी और बड़बोले फ्रैंड सर्किल से नहीं बचाया होता तो मैं निश्चित रूप से पढ़ाई में पिछड़ जाती. क्योंकि उस फ्रैंड ग्रुप के बच्चे पढ़ाई में औसत से नीचे जा रहे थे. मां ने मुझे संभाला और मैं पढ़ाई करते हुए आगे बढ़ती गई. पीएचडी कर के आज अधिकारी पद पर हूं,’’ यह कहना है रूबीना का.
असंभव को संभव बनाती है मां
आईटीआई कर रहा किशोर छात्र जावेद कहता है, ‘‘मेरे परिवार में मेरी गिनती मंदबुद्धि बालक किशोर के रूप में होती है. स्वयं मेरे पिता मुझे मंदबुद्धि मानते एवं कहते हैं. यह सच है कि मेरी याददाश्त अच्छी नहीं है. परिणामस्वरूप स्कूली शिक्षा के बारे में उन्होंने सोचा तक नहीं. मगर मेरी मां ने मुझे बाकायदा स्कूल में दाखिला दिलवाया. मेरी स्थिति से डर कर टीचर्स ने पढ़ाने में आनाकानी की. तब मेरी मां ने उसी स्कूल में सिर्फ मेरी खातिर अध्यापन का जौब किया. उन के दृढ़ संकल्प की बदौलत पहले मैं ने 8वीं कक्षा उत्तीर्ण की. 10वीं में आया तो सभी ने कहा कि ओपन बोर्ड से पढ़ाई करवाई जाए. यहां भी मां ने मेरा हाथ थामे रखा और सब की बिन मांगी राय से हट कर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर (राजस्थान) से 10वीं का फौर्म भरवाया. कोर्स को पढ़नेसमझने और अच्छे से याद करने में मुझ से कहीं अधिक मेहनत मां ने की. मैं मंदबुद्धि, थक जाता लेकिन उन को घरबाहर के सारे कामकाज के बाद भी मैं ने पढ़ाते समय हमेशा तरोताजा देखा. आखिरकार मैं 10वीं कक्षा उत्तीर्ण करने में सफल रहा. यह लगभग असंभव था जो संभव हुआ मां की बदौलत.’’
रात्रि जागरण
स्कूल स्तर की पढ़ाई अब सरलसहज नहीं रह गई है. लंबे बड़े स्लेबस के कारण किशोरकिशोरियां अकसर रात्रि में पढ़ने को प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में उन के साथ रातरात भर जागने का काम मां ही ज्यादातर करती देखी जाती हैं. शिक्षाविद एवं चित्रकार डा. मोना सरदार डूडी कहते हैं, ‘‘रात मेरी पढ़ाई का पसंदीदा समय रहा है. यह इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि मेरी खातिर मेरी मां भी नींद का परित्याग कर मुझे प्रोत्साहित करतीं. जब कभी देर रात मां आलस्य को आता देखतीं तो फौरन मुंहहाथ धोने का कह कर मार्गदर्शन कर देतीं. बिना कहे चाय भी बना कर ले आतीं. तब बात समझते देर नहीं लगी कि जब मां अपनी नींद कुरबान कर सकती हैं तो हम अपने लक्ष्य को पाने में पीछे क्यों हटें. मां का मेरे लिए रातभर जागने का सिलसिला वर्षों तक चला.’’
अनपढ़ मां भी किसी से कम नहीं
हमारा देश गांवों में बसता है. महिला शिक्षा अभी भी विशेष उल्लेखनीय नहीं है. मगर अशिक्षित मां भी बच्चों की पढ़ाई में सहयोगी हो सकती हैं. राजस्थान की प्रथम मुसलिम आरएएस महिला शमीम अख्तर अकसर कहा करती थीं कि उन की नानी मां अनपढ़ थीं मगर फिर भी उन्होंने अपनी 5 बेटियों को पढ़ाया और शिक्षक बनाया. आज उसी परिवार में अनपढ़ नानी मां की बदौलत, डाक्टर, प्रोफैसर, वैज्ञानिक, प्रशासनिक अधिकारी आदि सदस्य हैं.