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मेरी दोस्त के पति मुझे अश्लील मैसेज भेजते हैं, मैं ये बात अपनी फ्रैंड को कैसे बताऊं?

सवाल
मेरी एक 40 वर्षीया फ्रैंड है, जिस के घर मेरा खूब आनाजाना है. लेकिन अब उस के पति मुझे अश्लील मैसेज भेजते हैं. यहां तक कि मुझे फोन कर के मिलने को बुलाते हैं. मेरी 20 वर्षीय बेटी है, जिस के कारण मेरा अपनी फ्रैंड से भी बात करने का मन नहीं करता. वह भी मुझे कहती है कि आजकल तुम मुझ से कटीकटी सी रहती हो. कैसे उसे अपनी स्थिति समझाऊं?

जवाब
भले ही वह आप की फ्रैंड है जिस से आप का दिल का रिश्ता है लेकिन उस के पति का आप को गलत निगाहों से देखना व मैसेज वगैरह करना बिलकुल भी सही नहीं है. आप की तो जवान बेटी है. जिस इंसान ने आप को नहीं छोड़ा उस की नीयत कब आप की बेटी के प्रति बदल जाए, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में आप उन के किसी मैसेज का जवाब न दें और अपनी फ्रैंड को भी पूरी बात से अवगत कराएं ताकि उस के मन में आप के प्रति कोई गलतफहमी पैदा न हो और वह भी अपने पति पर नजर रख सके.

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सितंबर, 2016, दिल्ली में एक 21 वर्षीय लड़की की दिन में चाकू मार कर हत्या कर दी गई. हत्यारा कई महीनों से उसे स्टौक कर रहा था. पिछले साल ही अक्तूबर में 24 वर्षीय ब्यूटीशियन की हत्या कर दी गई थी. यह हत्यारा भी कई दिनों से स्टौक कर रहा था. पिछले ही साल चेन्नई में भी ऐसी 3 घटनाएं घटीं. इसी साल बैंगलुरु में नववर्ष पर मास मोलेस्टेशन की घटना के साथ एक अन्य स्त्री के साथ भी उस के घर के पास ही उसी रात छेड़छाड़ की घटना हुई. इन घटनाओं की सीसीटीवी की क्लिपिंग्स देखते ही देखते वायरल हो गईं. महिलाओं के साथ होेने वाले अपराध एक बार फिर सब के सामने आ गए. पुलिस ने कहा कि बैंगलुरु वाली महिला को स्टौक किया जा रहा था. ऐडवोकेट मृणालिनी देशमुख निर्भया केस के बाद वर्मा कमेटी द्वारा बनाए नियम की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, ‘‘स्टौकिंग वह आरंभिक अवस्था है, जिस का अंत शारीरिक शोषण या रेप हो सकता है. महिलाओं का चोरी से पीछा करने वालों को सख्त प्रतिक्रिया देनी चाहिए. उन्हें स्टौकिंग के खिलाफ फौरन शिकायत दर्ज करवानी चाहिए. उस के बाद पुलिस की ड्यूटी है कि वे उन्हें बुला कर सख्त चेतावनी दे ताकि फिर यह हरकत न दोहराई जाए.’’

सचेत रहें

महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली समाजसेविका शर्मिला खेर बताती हैं, ‘‘नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के अनुसार स्टौकर हमेशा परिचित होता है. वह आप का डेली रूटीन जानता है. अत: महिलाओं को हमेशा सचेत, चौकन्ना रहना चाहिए. स्टौकर से निबटने के लिए उस का सामना करना चाहिए. यदि वह कौल या मैसेज कर रहा है, तो उसे बता दें कि उस की कौल्स रिकौर्ड हो रही हैं और मैसेज पुलिस डायरी में जा रहे हैं. यदि वह सामने है तो चिल्लाएं, लोगों से हैल्प के लिए कहें. महिलाओं को अपने इंट्यूशन पर भरोसा करना चाहिए. यदि आप अपने आसपास एक आम चेहरा अकसर देखें तो उस से पूछताछ करें, उस की फोटो लें, सोशल नैटवर्क साइट्स पर पोस्ट कर दें ताकि लोग जान लें.’’

कई महिलाएं स्टौकर्स से परेशान हो कर सिस्टम तक पहुंचने की कोशिश करती भी हैं, पर कुछ खास फायदा नहीं होता है. एक एनजीओ के कार्यकर्ता अनवर अली कहते हैं, ‘‘कई महिलाएं छेड़खानी या ऐसे केस में परेशान हो कर हमारे पास आती हैं. जब वे पुलिस के पास जाती हैं. वे अकसर रजिस्टर कर लेते हैं और महिलाओं से ऐसी शरारतों की तरफ ध्यान न देने के लिए कहते हैं. इस से ऐसे लोगों को और ज्यादा सैक्सुअल अपराध करने की राह मिल जाती है.’’

किसी भी महिला का यदि कोईर् पीछा, फोन, मैसेज या ब्लैंक कौल्स करता है, तो वह स्टौकिंग का दोषी है.

कैसे लें सहायता

क्या हैल्पलाइन नंबर सचमुच काम करते हैं?

यदि आप को स्टौक किया जा रहा है और अगर आप मुंबई पुलिस की महिला और शिशु हैल्पलाइन नंबर 103 को कौल करने की कोशिश कर रही हैं, तो संभवतया आप की कौल लोकल पुलिस स्टेशन पर डाइवर्ट कर दी जाएगी. मुंबई के एक समाचारपत्र ने इसे टैस्ट भी किया.

पुलिस औफिसर ने जवाब दिया, ‘‘यह हैल्पलाइन बच्चों, सीनियर सिटीजन सब के लिए है, सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं और यदि यह स्टौकिंग या मोलेस्टिंग की बात है तो आप पास के पुलिस स्टेशन जाएं. हम आप की सहायता नहीं कर पाएंगे, क्योंकि यहां साइबर क्राइम नहीं देखे जाते.’’

अनन्या जैन 1 हफ्ते से अनजान नंबर से आने वाली कौल्स से परेशान थी. वे लोकल पुलिस स्टेशन गईं. वे बताती हैं, ‘‘एक रात एक व्यक्ति मुझ से फोन पर अश्लील बातें करने लगा. वह कई नंबरों से फोन कर मुझे परेशान कर रहा था. पहले मैं ने उसे बहुत डांटा फिर महसूस किया कि मुझे उकसा कर उसे मजा आ रहा है. जब मैं ने साइबर सैल डिपार्टमैंट में फोन किया, तो उन्होंने मुझे रात 12 बजे लोकल पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत करने के लिए कहा जबकि मैं विशेषरूप से महिला पुलिस अधिकारी को बता चुकी थी कि मैं अकेली रहती हूं और यह कोईर् पास में ही हो सकता है. अगले दिन जब मैं पुलिस स्टेशन गई, तो उन्होंने उस का नंबर लिया और मुझे उस का फोन उठाने से मना किया. महिला इंस्पैक्टर ने तो हद कर दी, उस ने कहा कि वह सिर्फ फोन पर धमकियां दे रहा है. अभी तक उस ने तुम्हारा रेप नहीं किया है.’’

मृणालिनी कहती हैं, ‘‘यदि आप स्टौकर को ब्लौक कर के स्वयं को सुरक्षित समझते हैं, तो यह आप की भूल है.’’

कितना करें नजरअंदाज

एमसीसी कौलेज मुलुंड की स्टूडैंट वर्षा गुप्ता कहती हैं, ‘‘स्टौकिंग विशेषरूप से शहर में अकेले रहने वाली लड़कियों के लिए बहुत आम है. कूरियर, फूड डिलिवरी वाले, गार्ड्स आदि के पास हमारे फोन नंबर आसानी से आ जाते हैं. हर 15 दिनों में मेरे पास अलगअलग नंबरों से अश्लील मैसेज आते हैं. इन्हें इग्नोर करना ही मुझे सब से आसान लगता है.’’

अकसर महिलाओं को अपने आसपास के लोगों से सपोर्ट नहीं मिलती है. 30 वर्षीय सीमा बंसल का कहना है, ‘‘मैं अंधेरी में किराए पर अकेली रहती थी और पास के किराना स्टोर से सामान लिया करती थी. कुछ दिनों बाद वह दुकानदार मुझे कभी भी फोन करने लगा और वक्तबेवक्त डोरबैल बजाने लगा. बिल्डिंग सैक्रेटरी ने उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने में मेरी मदद की. पुलिस ने उसे डरायाधमकाया. उस के बाद वाचमैन की गैरमौजूदगी में बिल्डिंग में आ कर गंदगी फैलाने लगा. मेरी सोसायटी के लोगों ने मुझे ही कौंप्लैक्स छोड़ कर जाने के लिए कहा, क्योंकि मैं अकेली लड़की थी, जिस की वजह से ये सब हो रहा था.’’

एक उच्चपदस्थ महिला पुलिस अधिकारी बताती हैं, ‘‘ऐसे मामलों में इंडियन पीनल कोड की धारा 354 और 354डी के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है. यह उन महिलाओं के लिए है, जिन्हें शारीरिक रूप से या एसएमएस या सोशल मीडिया अथवा फोन पर स्टौक किया जा रहा है. कई लड़कियां शिकायत करने के लिए सामने भी नहीं आना चाहतीं, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि उन का परिवार उन्हें ही गलत समझ सकता है.’’

स्टौकर को कैसे पहचानें

• आंकड़ों के अनुसार 80% तक स्टौकर कोई आप का जानने वाला होता है. ध्यान रखें कि काम पर जाते या वापस आते समय कोई आप का पीछा तो नहीं कर रहा. प्रतिदिन एक ही रास्ते से न आएंजाएं.

• स्टौकर का मुख्य उद्देश्य आप को डराना भी है. अत: डरने के बजाय खतरा महसूस करते ही मदद मांगें. शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाए जाने की प्रतीक्षा न करें.

• स्टौकर आप तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करेगा. चाहे शारीरिक रूप से या वर्चुअल वर्ल्ड द्वारा. लगातार मैसेज या कौल्स भी कर कसता है. जब भी आप अकेले सफर कर रही हों, वह आप के आसपास भी हो सकता है, सतर्क रहें सुरक्षित रहें.

पंछी एक डाल के

‘‘औफिस के लिए तैयार हो गईं?’’ इतनी सुबह रजत का फोन देख कर सीमा चौंक पड़ी.

‘‘नहीं, नहाने जा रही हूं. इतनी जल्दी फोन? सब ठीक है न?’’

‘‘हां, गुडफ्राईडे की छुट्टी का फायदा उठा कर घर चलते हैं. बृहस्पतिवार की शाम को 6 बजे के बाद की किसी ट्रेन में आरक्षण करवा लूं?’’

‘‘लेकिन 6 बजे निकलने पर रात को फिरोजाबाद कैसे जाएंगे?’’

‘‘रात आगरा के बढि़या होटल में गुजार कर अगली सुबह घर चलेंगे.’’

‘‘घर पर क्या बताएंगे कि इतनी सुबह किस गाड़ी से पहुंचे?’’ सीमा हंसी.

‘‘मौजमस्ती की रात के बाद सुबह जल्दी कौन उठेगा सीमा, फिर बढि़या होटल के बाथरूम में टब भी तो होगा. जी भर कर नहाने का मजा लेंगे और फिर नाश्ता कर के फिरोजाबाद चल देंगे. तो आरक्षण करवा लूं?’’

‘‘हां,’’ सीमा ने पुलक कर कहा.

होटल के बाथरूम के टब में नहाने के बारे में सोचसोच कर सीमा अजीब सी सिहरन से रोमांचित होती रही. औफिस के लिए सीढि़यां उतरते ही मकानमालिक हरदीप सिंह की आवाज सुनाई पड़ी. वे कुछ लोगों को हिदायतें दे रहे थे. वह भूल ही गई थी कि हरदीप सिंह कोठी में रंगरोगन करवा रहे हैं और उन्होंने उस से पूछ कर ही गुडफ्राईडे को उस के कमरे में सफेदी करवाने की व्यवस्था करवाई हुई थी. हरदीप सिंह सेवानिवृत्त फौजी अफसर थे. कायदेकानून और अनुशासन का पालन करने वाले. उन का बनाया कार्यक्रम बदलने को कह कर सीमा उन्हें नाराज नहीं कर सकती थी.

सीमा ने सिंह दंपती से कार्यक्रम बदलने को कहने के बजाय रजत को मना करना बेहतर समझा. बाथरूम के टब की प्रस्तावना थी तो बहुत लुभावनी, अब तक साथ लेट कर चंद्र स्नान और सूर्य स्नान ही किया था. अब जल स्नान भी हो जाता, लेकिन वह मजा फिलहाल टालना जरूरी था.

सीमा और रजत फिरोजाबाद के रहने वाले थे. रजत उस की भाभी का चचेरा भाई था और दिल्ली में नौकरी करता था. सीमा को दिल्ली में नौकरी मिलने पर मम्मीपापा की सहमति से भैयाभाभी ने उसे सीमा का अभिभावक बना दिया था. रजत ने उन से तो कहा था कि वह शाम को अपने बैंक की विभागीय परीक्षा की तैयारी करता है. अत: सीमा को अधिक समय नहीं दे पाएगा, लेकिन असल में फुरसत का अधिकांश समय वह उसी के साथ गुजारता था. छुट्टियों में सीमा को घर ले कर आना तो खैर उसी की जिम्मेदारी थी. दोनों कब एकदूसरे के इतने नजदीक आ गए कि कोई दूरी नहीं रही, दोनों को ही पता नहीं चला. न कोई रोकटोक थी और न ही अभी घर वालों की ओर से शादी का दबाव. अत: दोनों आजादी का भरपूर मजा उठा रहे थे.

सीमा के सुझाव पर रजत ने शाम को एमबीए का कोर्स जौइन कर लिया था. कुछ रोज पहले एक स्टोर में एक युवकयुवती को ढेर सारा सामान खरीदते देख कर सीमा ने कहा था, ‘‘लगता है नई गृहस्थी जमा रहे हैं.’’ ‘‘लग तो यही रहा है. न जाने अपनी गृहस्थी कब बसेगी?’’ रजत ने आह भर कर कहा.

‘‘एमबीए कर लो, फिर बसा लेना.’’

‘‘यही ठीक रहेगा. कुछ ही महीने तो और हैं.’’

सीमा ने चिंहुक कर उस की ओर देखा. रजत गंभीर लग रहा था. सीमा ने सोचा कि इस बार घर जाने पर जब मां उस की शादी का विषय छेड़ेंगी तो वह बता देगी कि उसे रजत पसंद है. औफिस पहुंचते ही उस ने रजत को फोन कर के अपनी परेशानी बताई.

‘‘ठीक है, मैं अकेला ही चला जाता हूं.’’

‘‘तुम्हारा जाना जरूरी है क्या?’’

‘‘यहां रह कर भी क्या करूंगा? तुम तो घर की साफसफाई करवाने में व्यस्त हो जाओगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सीमा ने मम्मी को फोन कर बता दिया कि रंगरोगन करवाने की वजह से वह रजत के साथ नहीं आ रही. रविवार की शाम को कमरा सजा कर सीमा रजत का इंतजार करने लगी. लेकिन यह सब करने में इतनी थक गई थी कि कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. रजत सोमवार की शाम तक भी नहीं आया और न ही उस ने फोन किया. रात को मम्मी का फोन आया. उन्होंने बताया, ‘‘रजत यहां आया ही नहीं, मथुरा में सुमन के घर है. उस के घर वाले भी वहीं चले गए हैं.’’

सुमन रजत की बड़ी बहन थी. सीमा से भी मथुरा आने को कहती रहती थी. ‘अब इस बार रजत घर नहीं गया है. अत: कुछ दिन बाद महावीर जयंती पर जरूर घर चलना मान जाएगा,’ सोच सीमा ने कलैंडर देखा, तो पाया कि महावीर जयंती भी शुक्रवार को ही पड़ रही है.

लेकिन कुछ देर के बाद ही पापा का फोन आ गया. बोले, ‘‘तेरी मम्मी कह रही है कि तू ने कमरा बड़ा अच्छा सजाया है. अत: महावीर जयंती की छुट्टी पर तू यहां मत आ, हम तेरा कमरा देखने आ जाते हैं.’’

‘‘अरे वाह, जरूर आइए पापा,’’ उस ने चिंहुक कर कह तो दिया पर फिर जब दोबारा कलैंडर देखा तो कोई और लंबा सप्ताहांत न पा कर उदास हो गई.

अगले दिन सीमा के औफिस से लौटने के कुछ देर बाद ही रजत आ गया. बहुत खुश लग रहा था, बोला, ‘‘पहले मिठाई खाओ, फिर चाय बनाना.’’

‘‘किस खुशी में?’’ सीमा ने मिठाई का डब्बा खोलते हुए पूछा.

‘‘मेरी शादी तय होने की खुशी में,’’ रजत ने पलंग पर पसरते हुए कहा, ‘‘जब मैं ने मम्मी को बताया कि मैं बस से आ रहा हूं, तो उन्होंने कहा कि फिर मथुरा में ही रुक जा, हम लोग भी वहीं आ जाते हैं. बात तो जीजाजी ने अपने दोस्त की बहन से पहले ही चला रखी थी, मुलाकात करवानी थी. वह करवा कर रोका भी करवा दिया. मंजरी भी जीजाजी और अपने भाई के विभाग में ही मथुरा रिफायनरी में जूनियर इंजीनियर है. शादी के बाद उसे रिफायनरी के टाउनशिप में मकान भी मिल जाएगा और टाउनशिप में अपने बैंक की जो शाखा है उस में मेरी भी बड़ी आसानी से बदली हो जाएगी. आज सुबह यही पता करने…’’

‘‘बड़े खुश लग रहे हो,’’ किसी तरह स्वर को संयत करते हुए सीमा ने बात काटी.

‘‘खुश होने वाली बात तो है ही सीमा, एक तो सुंदरसुशील, पढ़ीलिखी लड़की, दूसरे मथुरा में घर के नजदीक रहने का संयोग. कुछ साल छोटे शहर में रह कर पैसा जोड़ कर फिर महानगर में आने की सोचेंगे. ठीक है न?’’

‘‘यह सब सोचते हुए तुम ने मेरे बारे में भी सोचा कि जो तुम मेरे साथ करोगे या अब तक करते रहे हो वह ठीक है या नहीं?’’ सीमा ने उत्तेजित स्वर में पूछा.

‘‘तुम्हारे साथ जो भी करता रहा हूं तुम्हारी सहमति से…’’

‘‘और शादी किस की सहमति से कर रहे हो?’’ सीमा ने फिर बात काटी.

‘‘जिस से शादी कर रहा हूं उस की सहमति से,’’ रजत ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘तुम्हारे और मेरे बीच में शादी को ले कर कोई वादा या बात कभी नहीं हुई सीमा. न हम ने कभी भविष्य के सपने देखे. देख भी नहीं सकते थे, क्योंकि हम सिर्फ अच्छे पार्टनर हैं, प्रेमीप्रेमिका नहीं.’’

‘‘यह तुम अब कह रहे हो. इतने उन्मुक्त दिन और रातें मेरे साथ बिताने के बाद?’’

‘‘बगैर साथ जीनेमरने के वादों के… असल में यह सब उन में होता है सीमा, जिन में प्यार होता है और वह तो हम दोनों में है ही नहीं?’’ रजत ने उस की आंखों में देखा.

सीमा उन नजरों की ताब न सह सकी. बोली, ‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो, खासकर मेरे लिए?’’

रजत ठहाका लगा कर हंसा. फिर बोला, ‘‘इसलिए कह सकता हूं सीमा कि अगर तुम्हें मुझ से प्यार होता न तो तुम पिछले 4 दिनों में न जाने कितनी बार मुझे फोन कर चुकी होतीं और मेरे रविवार को न आने के बाद से तो मारे फिक्र के बेहाल हो गई होतीं… मैं भी तुम्हें रंगरोगन वाले मजदूरों से अकेले निबटने को छोड़ कर नहीं जाता.’’

रजत जो कह रहा था उसे झुठलाया नहीं जा सकता था. फिर भी वह बोली, ‘‘मेरे बारे में सोचा कि मेरा क्या होगा?’’

‘‘तुम्हारे घर वालों ने बुलाया तो है महावीर जयंती पर गुड़गांव के सौफ्टवेयर इंजीनियर को तुम से मिलने को… तुम्हारी भाभी ने फोन पर बताया कि लड़के वालों को जल्दी है… तुम्हारी शादी मेरी शादी से पहले ही हो जाएगी.’’

‘‘शादी वह भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़की के साथ? मैं लड़की हूं रजत… कौन करेगा मुझ से शादी?’’

‘‘यह 50-60 के दशक की फिल्मों के डायलौग बोलने की जरूरत नहीं है सीमा,’’ रजत उठ खड़ा हुआ, ‘‘आजकल प्राय: सभी का ऐसा अतीत होता है… कोई किसी से कुछ नहीं पूछता. फिर भी अपना कौमार्य सिद्ध करने के लिए उस समय अपने बढ़े हुए नाखूनों से खरोंच कर थोड़ा सा खून निकाल लेना, सब ठीक हो जाएगा,’’ और बगैर मुड़ कर देखे रजत चला गया. रजत का यह कहना तो ठीक था कि उन में प्रेमीप्रेमिका जैसा लगाव नहीं था, लेकिन उस ने तो मन ही मन रजत को पति मान लिया था. उस के साथ स्वच्छंदता से जीना उस की समझ में अनैतिकता नहीं थी. लेकिन किसी और से शादी करना तो उस व्यक्ति के साथ धोखा होगा और फिर सचाई बताने की हिम्मत भी उस में नहीं थी, क्योंकि नकारे जाने पर जलालत झेलनी पड़ेगी और स्वीकृत होने पर जीवन भर उस व्यक्ति की सहृदयता के भार तले दबे रहना पड़ेगा.

अच्छा कमा रही थी, इसलिए शादी के लिए मना कर सकती थी, लेकिन रजत के सहचर्य के बाद नितांत अकेले रहने की कल्पना भी असहनीय थी तो फिर क्या करे? वैसे तो सब सांसारिक सुख भोग लिए हैं तो क्यों न आत्महत्या कर ले या किसी आश्रमवाश्रम में रहने चली जाए? लेकिन जो भी करना होगा शांति से सोचसमझ कर. उस की चार्टर्ड बस एक मनन आश्रम के पास से गुजरा करती थी. एक दिन उस ने अपने से अगली सीट पर बैठी महिला को कहते सुना था कि वह जब भी परेशान होती है मैडिटेशन के लिए इस आश्रम में चली जाती है. वहां शांति से मनन करने के बाद समस्या का हल मिल जाता है. अत: सीमा ने सोचा कि आज वैसे भी काम में मन नहीं लगेगा तो क्यों न वह भी उस आश्रम चली जाए. आश्रम के मनोरम उद्यान में बहुत भीड़ थी. युवा, अधेड़ और वृद्ध सभी लोग मुख्यद्वार खुलने का इंतजार कर रहे थे. सीमा के आगे एक प्रौढ दंपती बैठे थे.

‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए तो ठीक है, लेकिन यह युवा पीढ़ी यहां कैसे आने लगी है?’’ महिला ने टिप्पणी की.

‘‘युवा पीढ़ी को हमारे से ज्यादा समस्याएं हैं, पढ़ाई की, नौकरी की, रहनेखाने की. फिर शादी के बाद तलाक की,’’ पुरुष ने उत्तर दिया.

‘‘लिव इन रिलेशनशिप क्यों भूल रहे हो?’’

‘‘लिव इन रिलेशनशिप जल्दबाजी में की गई शादी, उस से भी ज्यादा जल्दबाजी में पैदा किया गया बच्चा और फिर तलाक से कहीं बेहतर है. कम से कम एक नन्ही जान की जिंदगी तो खराब नहीं होती? शायद इसीलिए इसे कानूनन मान्यता भी मिल गई है,’’ पुरुष ने जिरह की, ‘‘तुम्हारी नजरों में तो लिव इन रिलेशनशिप में यही बुराई है न कि यह 2 लोगों का निजी समझौता है, जिस का ऐलान किसी समारोह में नहीं किया जाता.’’

जब लोगों को विधवा, विधुर या परित्यक्तों से विवाह करने में ऐतराज नहीं होता तो फिर लिव इन रिलेशनशिप वालों से क्यों होता है?

तभी मुख्यद्वार खुल गया और सभी उठ कर अंदर जाने लगे. सीमा लाइन में लगने के बजाय बाहर आ गई. उसे अपनी समस्या का हल मिल गया था कि वह उस गुड़गांव वाले को अपना अतीत बता देगी. फिर क्या करना है, उस के जवाब के बाद सोचेगी. कार्यक्रम के अनुसार मम्मीपापा आ गए. उसी शाम को उन्होंने सौफ्टवेयर इंजीनियर सौरभ और उस के मातापिता को बुला लिया.

‘‘आप से फोन पर तो कई महीनों से बात हो रही थी, लेकिन मुलाकात का संयोग आज बना है,’’ सौरभ के पिता ने कहा.

‘‘आप को चंडीगढ़ से बुलाना और खुद फिरोजाबाद से आना आलस के मारे टल रहा था लेकिन अब मेरे बेटे का साला रजत जो दिल्ली में सीमा का अभिभावक है, यहां से जा रहा है, तो हम ने सोचा कि जल्दी से सीमा की शादी कर दें. लड़की को बगैर किसी के भरोसे तो नहीं छोड़ सकते,’’ सीमा के पापा ने कहा. सौरभ के मातापिता एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराए फिर सौरभ की मम्मी हंसते हुए बोलीं, ‘‘यह तो हमारी कहानी आप की जबानी हो गई. सौरभ भी दूर के रिश्ते की कजिन वंदना के साथ अपार्टमैंट शेयर करता था, इसलिए हमें भी इस के खानेपीने की चिंता नहीं थी. मगर अब वंदना अमेरिका जा रही है. इसे अकेले रहना होगा तो इस की दालरोटी का जुगाड़ करने हम भी दौड़ पड़े.’’

कुछ देर के बाद बड़ों के कहने पर दोनों बाहर छत पर आ गए.

‘‘बड़ों को तो खैर कोई शक नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि हम दोनों एक ही मृगमरीचिका में भटक रहे थे…’’

‘‘इसीलिए हमें चाहिए कि बगैर एकदूसरे के अतीत को कुरेदे हम इस बात को यहीं खत्म कर दें,’’ सीमा ने सौरभ की बात काटी.

‘‘अतीत के बारे में तो बात यहीं खत्म कर देते हैं, लेकिन स्थायी नीड़ का निर्माण मिल कर करेंगे,’’ सौरभ मुसकराया.

‘‘भटके हुए ही सही, लेकिन हैं तो हम पंछी एक ही डाल के,’’ सीमा भी प्रस्ताव के इस अनूठे ढंग पर मुसकरा दी.

वसीयत : प्रेम के उफान में कैसे बह निकलती है युवा पीढ़ी?

सामने दीवार पर टंगी घड़ी शाम के 7 बजा रही थी. पूरे घर में अंधेरा पसरा हुआ था. मेरे शरीर में इतनी ताकत भी नहीं थी कि उठ कर लाइट जला सकूं. सुजाता, उस की बेटी, मैं और मेरी बेटी, इन्हीं चारों के बीच अनवरत चलता हुआ मेरा अंतर्द्वंद्व.

आज दोपहर, मैं अपनी सहेली के घर जा कर उस को बहुत अच्छी तरह समझा आई थी कि कोई बात नहीं सुजाता, अगर आज बेटी किसी के साथ रिलेशनशिप में रह रही है तो उसे स्वीकार करना ही हमारे हित में है. अब तो जो परिस्थिति सामने है, हमें उस के बीच का रास्ता खोजना ही पड़ेगा और अब अपनी बेटी का आगे का रास्ता साफ करो.

तो, तो क्या मेरी बेटी अपरा भी. नहीं, नहीं. लगा, मैं और सुजाता एक ही नाव में सवार हैं…नहीं, नहीं. मुझे कुछ तो करना पड़ेगा. फिर किसी तरह अपने को संभाल कर अजीत के आने का समय देख चाय बनाने किचन में चल दी.

उलझते, सोचते, समझते दिल्ली में इंजीनियरिंग कर रही अपनी बेटी अपरा के आने का इंतजार करने लगी. उस ने आज घर आने की बात कही थी.

वह सही वक्त पर घर पहुंच गई. उस के आने पर वही उछलकूद, खाने से ले कर कपड़ों तक की फरमाइशें मानो घरआंगन में छोटी चिडि़या चहचहा रही हो. डिनरटाइम पर सही समय देख सुजाता की बेटी का जिक्र छेड़ा तो वह बोली, ‘अरे छोड़ो भी मां, हमें किसी से क्या लेनादेना.’’

‘‘अच्छा चल, छोड़ भी दूं, पर कैसे बेटा? कैसे इस जहर से अपने गंदे होते समाज को बचाऊं?’’

‘‘मां, सब की अपनीअपनी जिंदगी है, जो जिस का मन चाहे, सो करे,’’ वह बोली.

मैं ने लंबी सांस ली और कहा, ‘‘अच्छा बेटा, मैं सोच रही हूं कि इस कमरे का परदा हटा दूं.’’

‘‘अरे, क्यों मां, कुछ भी बोलती हो. यह क्या हो गया है तुम्हें, बिना परदे के घर में कैसे रहेंगे,’’ वह झुंझलाई.

‘‘क्यों मेरी भी तो अपनी जिंदगी है, जो चाहे मैं करूं,’’ मेरा लहजा थोड़ा तल्ख था. मैं आगे बोली, ‘‘आज आधुनिकता के नाम पर हम ने अपनी संस्कृति, सभ्यता, लोकलिहाज, मानमर्यादा के सारे परदे भी तो उतार फेंके हैं. अपने वेग और उफान में सीमा से आगे बढ़ती नदी भी सदा हाहाकार मचाती है और आज की पीढ़ी भी क्या अपने घरपरिवार, समाज, रिश्तों को दरकिनार कर अपनी सीमा से आगे नहीं बढ़ रही है.

‘‘मैं मानती हूं कि हमारे बच्चे उच्च शिक्षित, समझदार और परिपक्व हैं किंतु फिर भी जीवन की समझ अनुभव से आती है और अनुभव उम्र के साथ. हम सब उम्र की इस प्रौढ़ता पर पहुंच कर भी जीवन के कुछ निर्णयों के लिए तुम्हारे बाबा, दादी, नानू, नानी पर निर्भर हैं.’’ अपरा चुपचाप सुनती जा रही थी.

थोड़ी देर रुक कर मैं फिर बोली, ‘‘प्रेम तो दिल से जुड़ी एक भावना है और विवाह एक अटूट बंधन, जो हमारे सामाजिक ढांचे का आधार स्तंभ है. और यह लिवइन रिलेशनशिप क्या है? बेटा, चढ़ती हुई बेल भी तभी आगे बढ़ती है जब उसे बांध कर रखा जाए, सो बिना बंधे रिश्तों को क्या भविष्य? क्यों आंख बंद कर अपने भविष्य को गर्त में ढकेल रहे हो? हमारी संस्कृति में आश्रम व्यवस्था के नियम भी इसीलिए बने थे, किंतु अब तो ये सब दकियानूसी बातें हो कर रह गई हैं.

‘‘माना कि आज समय बहुत बदल गया है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम बड़े लोगों ने अपने को नहीं बदला.

बड़ों की स्वीकृति है तभी ज्यादातर शादियां लवमैरिज होती हैं. किंतु आज आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति को त्याग, पश्चिम की आयातित

संस्कृति की नकल करना बंद करो. सोचो और समझो कि तुहारे लव, ब्रेकअप, टाइमपास लव और टाइमपास रिलेशनशिप के क्या भयावह परिणाम होंगे. असमय बनाए संबंधों के अनचाहे परिणाम तुम्हारे कमजोर कंधे क्या…? बेटा, हर चीज का कुछ नियम होता है, बिना समय के तो पुष्प भी नहीं पल्लवित होते. इस तरह तो सारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी.

‘‘हमेशा याद रखना कि मांबाप कभी बच्चों का अहित नहीं सोचते. इसलिए अपने जीवन के अहम फैसले तुम खुद लो. किंतु उन से छिप कर नहीं, बल्कि उन्हें अपने फैसलों में शामिल कर के. बचपन तो जीवन के भोर के मानिंद रमणीय होता है किंतु जीवन का अपराह्न आतेआते तपती धूप में मांबाप ही तुम्हारे वटवृक्ष हैं, उन से जुड़े रहो, अलग मत हो.’’

तभी अजीत, थोड़ा माहौल को संभालते हुए, ताली बजाते हुए अपरा

से बोले, ‘‘अरे भई, इतनी नसीहत, तुम्हारी मां तो बहुत अच्छा भाषण देने लगी हैं, लगता है अगले चुनाव की तैयारी है.’’

मैं मन ही मन बोली, ‘नसीहत नहीं, वसीयत.’

पूरी तरह सहज अपरा 2 दिन रह कर फिर दिल्ली जाने के लिए तैयार होने लगी. बुझे मन और आंखों में आंसू लिए, जब उसे छोड़ मैं अपने कमरे में वापस आई तो मेरा मन सामने टेबल

पर रखे कार्ड को देख खुशी से नाच उठा जिस पर उस ने लिखा था, ‘यू आर ग्रेट, मौम.’

क्या नुक्स निकालने वाले पति परफेक्ट होते हैं?

प्रतिमा पोस्टग्रैजुएट है. शक्लसूरत भी ठीकठाक है. खाना भी अच्छा बनाती है. व्यवहारकुशल भी है. चाहे रिश्तेदार हों, पड़ोसी हों या फिर सहेलियां सभी में वह लोकप्रिय है. मगर पति की नजरों में नहीं. क्यों? यह सवाल सिर्फ प्रतिमा के लिए ही नहीं है, बल्कि ऐसी बहुत सी महिलाओं के लिए है, जिन की आदतें, तौरतरीके, रहनसहन उन के पति के लिए नागवार होते हैं, तो क्या हमेशा अपनी पत्नी में नुक्स निकालने वाले पति परफैक्ट होते हैं? हर व्यक्ति का अपनाअपना स्वभाव, तौरतरीके, नजरिया और पसंद होती है. ऐसे में हम यह सोचें कि फलां हमारी तरह नहीं है इसलिए परफैक्ट नहीं है, तो यह ज्यादती होगी. यह जरूरी नहीं कि जिस में हम नुक्स निकालते हैं उस में कोई गुण हो ही न.

प्रतिमा को ही लें. वह अच्छा खाना बनाती है. व्यवहारकुशल भी है. वहीं उस के पति न तो व्यवहारकुशल हैं और न ही उन में कोई बौद्धिक प्रतिभा है, जिस से वे दूसरों से खुद को अलग साबित कर सकें. सिवा इस के कि वे कमाते हैं. कमाने को तो रिकशे वाला भी कमाता है. प्रतिमा स्वयं घर पर ट्यूशन कर के क्व 8-10 हजार कमा लेती है. सुबह 5 बजे उठना. बच्चों के लिए टिफिन तैयार करना, उन्हें तैयार करना, घर को इस लायक बनाना कि शाम को पति घर आए तो सब कुछ व्यवस्थित लगे. शाम को बच्चों को खुद पढ़ाना. अगर पति कभी पढ़ाने लगें तो पढ़ाने पर कम पिटाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं.

अत्यधिक अपेक्षा

पति महोदय किसी भी हालत में सुबह 7 बजे से पहले नहीं उठते हैं. वजह वही दंभ कि मैं कमाता हूं. मुझ पर काम का बोझ है. सुबह पहले उठना और रात सब से बाद में सोना प्रतिमा की दिनचर्या है. उस पर पति आए दिन उस के काम में मीनमेख निकालते रहते हैं. उस की हालत यह है कि दिन भर खटने के बाद जैसे ही शाम पति के आने की आहट होती है वह सहम जाती है कि क्या पता आज किस काम में नुक्स निकालेंगे? पति महोदय आते ही बरस पड़ते हैं, ‘‘तुम दिन भर करती क्या हो? बच्चों के कपड़े बिस्तर पर पड़े हैं. अलमारी खुली हुई है. आज सब्जी में ज्यादा नमक डाल दिया था. मन किया फेंक दूं.’’

सुन कर प्रतिमा का मन कसैला हो गया. यह रोजाना का किस्सा था. कल अलमारी बंद थी. आज नहीं कर सकी, क्योंकि उसी समय पड़ोसिन आ गई थी. ध्यान उधर बंट गया. बच्चे की कमीज का बटन निकल गया था. उसे लगाने के लिए उस ने उसे बिस्तर पर रखा था. अब कौन सफाई दे. सफाई देतेदेते शादी के 10 साल गुजर गए, पर पति की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कभीकभी प्रतिभा की आंखें भीग जातीं कि उस की भावनाओं से पति को कुछ लेनादेना नहीं. उन्हें तो सब कुछ परफैक्ट चाहिए.

पति की तानाशाही

सवाल उठता है कि परफैक्ट की परिभाषा क्या है? सब्जी में नमक कम है या ज्यादा कैसे परफैक्ट माना जाएगा? हो सकता है कि जितना नमक पति को पसंद हो उतना प्रतिमा को नहीं. प्रतिमा ही क्यों उस के घर आने वाले हर मेहमान को प्रतिमा का बनाया खाना बेहद पसंद आता है. ऐसे में पति की परफैक्शन की परिभाषा को किस रूप में लिया जाए? क्या यह पति की तानाशाही नहीं कि जो वे कह रहे हैं वही परफैक्ट है? नुक्स निकालने की आदत एक मनोविकार है. मेरी एक परिचिता हैं. वे भी ऐसे ही मनोविकार से ग्रस्त हैं. चैन से बैठने की उन की आदत ही नहीं है. जहां भी जाएंगी सिवा नुक्स के उन्हें कुछ नहीं दिखता. नजरें टिकेंगी तो सिर्फ नुक्स पर. किसी की आईब्रो में ऐब नजर आएगा, तो किसी की लिपस्टिक फैली नजर आएगी. किसी की साड़ी पर कमैंट करेंगी.

हर आदमी एक जैसा नहीं होता. बेशक प्रतिमा के पति को सब कुछ परफैक्ट चाहिए परंतु उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि अकेली प्रतिमा से चूक हो सकती है. इस का मतलब यह नहीं कि उसे डांटाफटकारा जाए. औफिस और घर में फर्क होता है. औफिस में सफाई के लिए कर्मचारी रखे जाते हैं. मगर घर में पत्नी के हिस्से तरहतरह के काम होते हैं. हर काम में वह समान रुचि दिखाए, यह संभव नहीं. इसलिए परफैक्शन के लिए पति का भी कर्तव्य होता है कि पत्नी के काम में हाथ बंटाए.

कलह की शुरुआत

किसी भी चीज की अति बुरी होती है. परफैक्शन के चलते घरघर नहीं, बल्कि जेलखाना बन जाता है. ऐसे लोगों के घर जल्दी कोई जाता नहीं. अगर पत्नी के मायके के लोग चले आएं, तो पति महोदय सामने तो कुछ नहीं कहेंगे, पर उन के जाते ही उलाहना देना शुरू कर देंगे, ‘‘तुम्हारे भाईबहनों को तमीज नहीं है. दो कौड़ी की मिठाई उठा लाए थे.’’ मायके के सवाल पर हर स्त्री आगबबूला हो जाती है. हंसमुख स्वभाव की प्रतिमा की भी त्योरियां चढ़ जातीं. फिर शुरू होती कलह.

नुक्स के चलते पति से मिली लताड़ का गुस्सा पत्नियां अपने बच्चों पर निकालती हैं. वे अकारण उन्हें पीटती हैं, जिस से बच्चों की परवरिश पर बुरा प्रभाव पड़ता है. धीरेधीरे पत्नी के स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी आ जाता है. वह अपनी खूबियां भूलने लगती है. प्राय: ऐसी औरतें डिप्रैशन की शिकार होती हैं, जो घरपरिवार के लिए घातक होता है. क्या पति महोदय इस बारे में सोचेंगे? पति के नुक्स निकालने की आदत की वजह से जब कभी प्रतिमा मायके आती है, तो ससुराल जाने का नाम नहीं लेती. जाएगी तो फिर उसी दिनचर्या से रूबरू होना पड़ेगा. जब तक पति औफिस नहीं चले जाते तब तक उस का जीना हराम किए रहते हैं. वह बेचारी दिन भर घर समेटने में जुटी रहती है ताकि पति को शिकायत का मौका न मिले. मगर पति महोदय तो दूसरी मिट्टी के बने हैं. शाम घर में घुसते ही नुक्सों की बौछार कर देंगे.

समझौता करना ही पड़ता है

नुक्स निकालने वाले व्यवहारकुशल नहीं होते. उन के शुभचिंतक न के बराबर होते हैं. नकारात्मक सोच के चलते वे सभी में अलोकप्रिय होते हैं. माना कि पति महोदय परफैक्ट हैं, तो क्या बाकी लोग अयोग्य और नकारा हैं? प्रतिमा की बहन एम.एससी. है. स्कूल में पढ़ाती है. अच्छाखासा कमाती है. वहीं उस के पति भी सरकारी कर्मचारी हैं. घर जाएं तो कुछ भी सिस्टेमैटिक नहीं मिलेगा. तो भी दोनों को एकदूसरे से शिकायत नहीं है. वे लोग सिर्फ काम की प्राथमिकता पर ध्यान देते हैं. जो जरूरी होता है उस पर ही सोचते हैं. रही घर को ठीकठाक रखने की बात तो वह समय पर निर्भर करता है. काम में परफैक्शन होना अच्छी बात है. मगर इस में टौर्चर करने वाली बात न हो. जरूरी नहीं कि हर कोई हमारी सोच का ही हो खासतौर पर पतिपत्नी का संबंध. समझौता करना ही पड़ता है. प्रतिमा साड़ी का पल्लू कैसे ले, यह उस का विषय है. वह किसी से कैसे बोलेबतियाए यह उस पर निर्भर करता है. पति महोदय अपने हाथों जूतों पर पौलिश तक नहीं करते. यह काम भी प्रतिमा को ही करना पड़ता है. उस में भी नुक्स कि तुम ने ठीक से चमकाए नहीं. प्राय: यह काम पति खुद करता है.

पत्नी ही क्यों पति को अपने बच्चों की आदतों में भी हजार ऐब नजर आते हैं. पति को पत्नी के हर काम में टोकाटाकी से बाज आना चाहिए वरना पत्नी, बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. उन्हें हमेशा भय रहता है कि वे कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं? क्या पति के काम में नुक्स नहीं निकाला जा सकता? खुद उन का बौस उन के काम में नुक्स निकालता होगा. पति इसलिए चुप रहते होंगे कि उन्हें नौकरी करनी है. ऐसे ही प्रतिमा चुप इसलिए रहती है कि उसे कमाऊ पति के साथ जीवन गुजारना है.

खुद पहल करें

मिस्टर परफैक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान की फिल्म ‘धोबीघाट’ असफल रही. गलतियां वही करता है, जो काम करता है. खाना खाते समय चावल का दाना गिर जाए इस का मतलब यह नहीं कि उसे खाना खाने का तरीका नहीं आता. नुक्सनिकालने वाले पति अगर खाने पर साथ बैठेंगे तो चैन से खाना भी नहीं खाने देंगे. कभी ठीक से कौर न उठाने के लिए टोकेंगे, तो कभी पानी का गिलास न होने पर टोकेंगे. वे खुद पानी का गिलास रख कर पत्नी का काम हलका नहीं करेंगे. गृहस्थ जीवन में यह सब होना आम बात है. इसे नुक्स नहीं समझना चाहिए. एक औरत किसकिस पर ध्यान दे? कमी रह ही जाती है. फिर हर आदमी एक जैसा नहीं होता. अगर हमें गृहस्थ जीवन में कुछ खास चाहिए, तो खुद पहल करनी होगी. पत्नी को मुहरा बना कर उसे डांटनाडपटना खुदगर्जी है. पतियों को यह सोचना चाहिए

फर्क देवर और पति में

19 नवंबर की सुबह 10 बजे राजू थाना लहरापुर पहुंचा और थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह को बताया कि बीती रात किसी ने उस के भाई वीरेंद्र की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश गांव के बाहर नलकूप वाले कमरे में पड़ी है.

हत्या की खबर पा कर धर्मपाल सिंह ने राजू से कुछ सवाल पूछे और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. रवानगी से पहले उन्होंने सीओ राकेश सिंह को भी घटना से अवगत करा दिया था.

राजू लहरापुर थाने के गांव अनेसों का रहने वाला था, जो थाने से 7 किलोमीटर दूर उत्तरपश्चिम दिशा में था. पुलिस को वहां पहुंचने में आधे घंटे का समय लगा. घटनास्थल पर भीड़ जुटी हुई थी. थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह भीड़ को हटा कर उस कमरे के अंदर पहुंचे, जहां वीरेंद्र की लाश पड़ी थी.

लाश के पास मृतक की पत्नी शांति दहाड़ें मार कर रो रही थी. कमरे में पड़ी चारपाई पर वीरेंद्र की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. बिस्तर खून से तरबतर था. दीवारों पर भी खून के छींटें पड़े थे. वीरेंद्र के सीने में गोली मारी गई थी, जिस से उस की मौत हो गई थी. मृतक की उम्र 35 साल के आसपास रही होगी.

थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह अभी जांचपड़ताल कर ही रहे थे कि सीओ राकेश सिंह भी आ गए. उन्होंने फोरेंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया था. टीम ने कमरे से साक्ष्य एकत्र कर लिए. राकेश सिंह ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, मृतक की पत्नी भाई तथा गांव के मुखिया से पूछताछ की.

पूछताछ में मृतक के भाई राजू ने बताया कि उस का बड़ा भाई वीरेंद्र नलकूप की रखवाली के लिए रात को नलकूप के कमरे में सोता था. कभीकभी वह खुद भी वहां सो जाता था. बीती रात 8 बजे खाना खा कर वह नलकूप पर सोने आ गए थे.

सुबह 8 बजे वह उन के लिए नाश्ता ले कर आया तो देखा कि किसी ने गोली मार कर उन की हत्या कर दी थी. उस ने हत्या की जानकारी पहले भाभी शांति को दी, उस के बाद गांव के अन्य लोगों को. इस के बाद हत्या की सूचना देने थाना लहरापुर चला गया.

“तुम्हारे भाई की गांव में किसी से रंजिश तो नहीं है?” राकेश सिंह ने पूछा.

“नहीं साहब, हमारी गांव में किसी से कोई रंजिश नहीं है.”

“कोई लेनदेन का विवाद?”

“नहीं, भैया किसी से कोई लेनदेन नहीं करते थे. हम अपनी हैसियत के मुताबिक ही रहते थे. कर्ज लेना भैया को बिलकुल पसंद नहीं था. हां, वह शराब के शौकीन जरूर थे, लेकिन खानेपीने में अपना ही पैसा खर्च करते थे.”

राकेश सिंह ने मृतक की पत्नी शांति से पूछताछ की तो वह फफकफफक कर रो पड़ी. चंद मिनट बाद उस के आंसुओं का सैलाब रुका तो बोली, “साहब, मेरे पति अच्छेभले थे. कोई तनाव या परेशानी नहीं थी. रात 8 बजे खाना खा कर वह नलकूप पर सोने आए थे. पता नहीं रात में किस ने मेरा सुहाग उजाड़ दिया. सुबह देवरजी उन्हें नाश्ता देने आए तो हमें उन की हत्या की जानकारी मिली.”

“तुम्हें किसी पर शक है?” धर्मपाल सिंह ने पूछा.

“साहब, मुझे चोरों पर शक है. लगता है, रात में चोर नलकूप की मोटर चुराने आए थे, वह जाग गए होंगे और चोरों को ललकारा होगा, तब उन्होंने गोली मार दी होगी.”

गांव के मुखिया भगवत ने सीओ राकेश सिंह को चौंकाने वाली जानकारी दी. उन्होंने बताया कि वीरेंद्र की हत्या का राज घर में ही छिपा है. वीरेंद्र की पत्नी शांति का चालचलन ठीक नहीं है. उस के अपने देवर राजू से नाजायज रिश्ते हैं.

वीरेंद्र उन अवैध रिश्तों का विरोध करता था, साथ ही शांति से मारपीट भी. शक है कि शांति और राजू ने मिल कर वीरेंद्र को मार डाला है.

यह जानकारी मिलते ही राकेश सिंह ने राजू को हिरासत में ले लिया और मृतक वीरेंद्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए औरैया जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह राजू को ले कर थाना लहरापुर आ गए.

थाने पर राकेश सिंह तथा धर्मपाल सिंह ने राजू से पूछताछ शुरू की तो वह घडिय़ाली आंसू बहाने लगा. उस की आंखों से बहते आंसू देख कर एक बार तो ऐसा लगा कि वह निर्दोष है. लेकिन जब धर्मपाल सिंह ने राजू से कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और भाई की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

अगले दिन पुलिस ने राजू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने खेत के पास झाडिय़ों में छिपा दिया था.

राजू गिरफ्तार हुआ तो शांति घबरा गई. वह अपना सामान समेट कर भागने की तैयारी कर रही थी कि पुलिस ने उसे भी पकड़ लिया. थाने पर जब उस का सामना अपने देवर राजू से हुआ तो उस ने भी सच बताना ठीक समझा. उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

चूंकि राजू और उस की भाभी शांति ने वीरेंद्र की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक के चचेरे भाई ध्रुवपाल को वादी बना कर राजू व शांति के खिलाफ वीरेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों से की गई पूछताछ में अवैध रिश्तों की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

औरैया जनपद में तिरवाबिंदियापुर रोड पर  एक कस्बा है सहार. इसी कस्बे में रहने वाले राजकुमार की बेटी थी शांति. राजकुमार ने शांति का विवाह औरैया जिला के थाना लहरापुर के अंतर्गत आने वाले अनेसों गांव निवासी वीरेंद्र के साथ किया था.

वीरेंद्र के मातापिता की मौत हो चुकी थी. वह अपने छोटे भाई राजू के साथ रहता था. उस के पास 10 बीघा जमीन थी, जिस में अच्छी उपज होती थी. कुल मिला कर उन का जीवन खुशहाल था.

देखतेदेखते 5 साल बीत गए, पर शांति की गोद सूनी ही रही. गोद सूनी रहने का दोष शांति अपने पति पर देती थी,  जिस से दोनों में झगड़ा होता रहता था. इस झगड़े से वीरेंद्र इतना परेशान हो जाता था कि वह शराब के ठेके पर पहुंच जाता और फिर लडख़ड़ाते कदमों से ही घर लौटता.

धीरेधीरे 3 साल और बीत गए. लेकिन शांति को मातृत्व सुख नहीं मिला. शांति समझ गई कि वह अक्षम पति से मातृत्व सुख कभी प्राप्त नहीं कर सकती. इसलिए वह पति से घृणा करने लगी.

शराब पीने को ले कर दोनों में झगड़ा इतना बढ़ता कि वीरेंद्र शांति को जानवरों की तरह पीट देता. समय के साथ मनमुटाव इतना बढ़ा कि वीरेंद्र घर के बजाय खेत पर बनी नलकूप की कोठरी में सोने लगा.

शांति स्वभाव से मिलनसार थी. राजू भाभी के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब शांति उस से खुल कर हंसीमजाक करती. शांति का यह व्यवहार धीरेधीरे राजू को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में शांति का सौंदर्यरस पीने की कामना जागने लगी.

एक दिन राजू खाना खाने बैठा तो शांति थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ढंकते हुए बोली, “लो देवरजी खाना खा लो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.”

राजू को भाभी की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, “भाभी, तुम भी अपनी थाली परोस लो, साथ खाने में मजा आएगा.”

खाना खाते वक्त दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो राजू बोला, “भाभी, तुम सुंदर और सरल स्वभाव की हो, लेकिन भैया ने तुम्हारी कद्र नहीं की. मुझे पता है कि अभी तक तुम्हारी गोद सूनी क्यों है? वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं.”

यह कह कर राजू ने शांति की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में शांति पति से संतुष्टï नहीं थी. उसे न तो मातृत्व का सुख प्राप्त हुआ था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेर्ईमान हो चुका था. आखिरकार उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्टï नहीं रहेगी. इस के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

औरत जब जानबूझ कर बरबादी के रास्ते पर कदम रखती है तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही शांति के साथ हुआ. शांति जवान भी थी और पति से असंतुष्टï भी. वह मातृत्व सुख भी चाहती थी. अत: उस ने देवर राजू के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया. राजू वैसे भी शांति का दीवाना था.

एक शाम शांति बनसंवर कर चारपाई पर लेटी थी. तभी राजू आ गया. वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. शांति को राजू की आंखों की भाषा पढऩे में देर नहीं लगी. शांति ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. राजू के शरीर में हलचल मचने लगी.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद होश दुरुस्त हुए तो शांति ने राजू की ओर देख कर कहा, “देवरजी, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. लेकिन हमारे बीच रिश्ते की दीवार है. अब मैं इस दीवार को तोडऩा चाहती हूं. तुम मुझे बस यह बताओ कि हमारे इस नए रिश्ते का अंजाम क्या होगा?”

“भाभी, मैं तुम्हें कभी धोखा नहीं दूंगा. तुम अपना बनाओगी तो तुम्हारा ही बन कर रहूंगा.” कह कर राजू ने शांति को बाहों में भर लिया.

ऐसे ही कसमोंवादों के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता ही नहीं चला. उस दिन के बाद राजू और शांति बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया.

राजू अपनी भाभी के प्यार में इतना अंधा हो गया कि उसे दिन या रात में जब भी मौका मिलता, वह शांति से मिलन कर लेता. शांति भी देवर के पौरुष की दीवानी थी. उन के मिलन की किसी को कानोकान खबर नहीं थी.

कहते हैं कि वासना का खेल कितनी भी सावधानी से खेला जाए, एक न एक दिन भांडा फूट ही जाता है. ऐसा ही शांति और राजू के साथ भी हुआ. एक रात पड़ोस में रहने वाली चचेरी जेठानी रूपा ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे राजू और शांति को देख लिया. इस के बाद तो इन की पापलीला की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

वीरेंद्र को जब देवरभाभी के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत शांति से बात की तो उस ने नाजायज रिश्तों की बात सिरे से खारिज कर दी. उस ने कहा, “राजू सगा देवर है. उस से हंसबोल लेती हूं. पड़ोसी इस का मतलब गलत निकालते हैं. उन्होंने ही तुम्हारे कान भरे हैं.”

वीरेंद्र ने उस समय तो पत्नी की बात मान ली, लेकिन मन में शक पैदा हो गया, इसलिए वह चुपकेचुपके पत्नी पर नजर रखने लगा. परिणामस्वरूप एक रात वीरेंद्र ने शांति और राजू को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. वीरेंद्र ने दोनों की पिटाई की और संबंध तोडऩे की चेतावनी दी.

लेकिन इस चेतावनी का असर न तो शांति पर पड़ा और न ही राजू पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब वे सतर्कता बरतने लगे. जिस दिन वीरेंद्र, शांति को राजू से हंसतेबतियाते देख लेता, उस दिन शराब पी कर शांति को पीटता और राजू को भी भलाबुरा कहता. उस ने गांव के मुखिया से भी भाई की शिकायत की, साथ ही राजू को समझाने के लिए भी कहा कि वह घर न तोड़े.

शांति शराबी पति की मारपीट से तंग आ चुकी थी. इसलिए उस ने एक दिन शारीरिक मिलन के दौरान राजू से पूछा, “देवरजी, हम कब तक इस तरह चोरीछिपे मिलते रहेंगे? आखिर कब तक उस शराबी की मार खाते रहेंगे? कहीं किसी दिन उस ने शराब के नशे में मेरा गला घोंट दिया तो..?”

“ऐसा नहीं होगा भाभी. तुम साथ दोगी तो मैं भाई को ही ठिकाने लगा दूंगा.”

“मेरी मांग का सिंदूर मिटा कर क्या मुझे विधवा बना दोगे?”

“नहीं, मैं तुम्हारी मांग में सिंदूर भर कर तुम्हें अपना बना लूंगा.”

“तो ठीक है, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.”

इस के बाद शांति और राजू ने वीरेंद्र की हत्या की योजना बना डाली. योजना के तहत राजू ने किसी अपराधी से 2 हजार रुपए में तमंचा व 2 कारतूस खरीदे और उन्हें घर में छिपा कर रख दिया. इस के बाद दोनों उचित समय का इंतजार करने लगे.

हत्या की योजना बनने के बाद वीरेंद्र के प्रति शांति का व्यवहार नरम पड़ गया. वह दिखावटी रूप से उस के प्रति प्यार जताने लगी. कभीकभी वह शारीरिक मिलन के लिए नलकूप वाली कोठरी पर भी चली जाती. पत्नी के इस व्यवहार से वीरेंद्र को लगा कि उस ने भाई से संबंध खत्म कर लिए हैं.

18 नवंबर, 2015 की रात 8 बजे वीरेंद्र घर आया. शांति ने उसे बड़े प्यार से खाना खिलाया. इस के बाद वह खेतों पर नलकूप वाली कोठरी पर सोने चला गया. उस के जाते ही राजू और शांति ने बात कर के अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचाने का निश्चय कर लिया.

गांव के ज्यादातर लोग जब गहरी नींद सो गए तो राजू ने कमर में तमंचा खोंसा और शांति के साथ खेतों पर जा पहुंचा. शांति ने कोठरी के दरवाजे की कुंडी खटखटाई. इस पर वीरेंद्र ने पूछा, “कौन?”

“मैं हूं शांति. दरवाजा खोलो.”

वीरेंद्र ने सोचा, शांति शारीरिक मिलन के लिए आई है. इसलिए उस ने सहज ही दरवाजा खोल दिया. दरवाजा खुलते ही राजू ने कमर में खोसा तमंचा निकाला और वीरेंद्र के सीने पर 2 फायर झोंक दिए. गोली लगते ही वीरेंद्र खून से तरबतर हो कर चारपाई पर गिर पड़ा. चंद मिनट तड़पने के बाद उस ने दम तोड़ दिया. भाई की हत्या करने के बाद राजू ने तमंचा झाडिय़ों में छिपा दिया और शांति के साथ घर आ गया.

सुबह 8 बजे दिखावे के तौर पर राजू नाश्ता ले कर नलकूप पर गया और वहां से बदहवास भागता हुआ गांव आया. गांव वालों को उस ने भाई की हत्या हो जाने की जानकारी दी.

कुछ देर बाद वह थाना लहरापुर पहुंचा और थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह को हत्या की सूचना दी. सूचना पाते ही धर्मपाल सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू कर दी. जांच में देवरभाभी के नाजायज रिश्तों के चलते वीरेंद्र की हत्या का रहस्य उजागर हो गया.

21 नवंबर, 2015 को थाना लहरापुर पुलिस ने अभियुक्त राजू और शांति को औरैया कोर्ट में रिमांड मजिस्टे्रट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल से जुड़ी बीमारियों में वरदान है ये फल, जानें फायदे

Jujube Fruit Benefits : आज के समय में दिल की बीमारियां तेजी से लोगों में बढ़ रही हैं. खराब लाइफस्टाइल और अस्वस्थ खान पान की वजह से लोगों को कई परेशानियां हो रही है. हालांकि दिल से जुड़ी बीमारियों में बेर खाना काफी फायदेमंद होता है. इसमें वो सभी जरूरी पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए आवश्यक होते है. इसमें विटामिन सी, पोटैशियम, फास्‍फोरस, मैंगनीज, आयरन, जिंक और एंटीऑक्सीडेंट्स की उच्चा मात्रा होती हैं तो आइए जानते हैं बेर (Jujube Fruit Benefit) खाने के फायदों के बारे में-

बेर खाने के स्वास्थ लाभ

  1. बेर (Jujube Fruit Benefit) में नाइट्रिक ऑक्साइड भी होता है, जो ब्लड फ्लो के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है.
  2. बेर में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है, जिसकी वजह से इसे खाने से शरीर की इम्यूनिटी बूस्ट होती है.
  3. बेर में फाइटोकॉन्स्टिट्यूएंट्स भी पाया जाता है, जो हार्ट को हेल्दी बनाता है. इसके अलावा रोजाना बेर (Jujube Fruit Benefit) का सेवन करने से दिल की बीमारियां भी दूर रहती हैं.
  4. बेर में विटामिन बी1, बी2, बी3, बी6 और सी की भी भरपूर मात्रा होती है. जहां विटामिन बी कॉम्प्लेक्स दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, तो वहीं ये तनाव और चिंता को भी कम करता है.
  5. इसके अलावा बेर (Jujube Fruit Benefit) में मैंगनीज, पोटेशियम, मैग्नीशियम और तांबा जैसे कई खनिज भी होते हैं, जो ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डियों को स्वस्थ बनाते हैं.

Kartik Aryan ने जुहू में खरीदा नया घर, कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश

Kartik Aryan New House : बॉलीवुड एक्टर कार्तिक आर्यन ने अपने अभिनय से लाखों लोगों को अपना दीवाना बना रखा है. उनकी हर एक फिल्म को दर्शकों का खूब प्यार मिलता है. इस समय वह फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ को लेकर सुर्खियों में बने हुए हैं, जिसे लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. हालांकि अब अपनी फिल्म के सक्सेस होते ही उन्होंने (Kartik Aryan New House) मुंबई में एक नया घर खरीद लिया है, जिसकी कीमत करोड़ों में बताई जा रही है.

जानें कितने करोड़ का है एक्टर का नया आशियाना

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan New House) ने जुहू के पॉश इलाके में एक लग्जरी अपार्टमेंट खरीदा है. इस प्रॉपर्टी की बाजार में वैल्यू कम से कम 7.49 करोड़ रुपये है, लेकिन अभिनेता ने ये घर 17 करोड़ 50 लाख रुपये प्रीमियम पर खरीदा है. जो कि जुहू स्कीम के एनएस रोड नंबर 7 पर सिद्धि विनायक बिल्डिंग में दूसरी मंजिल पर है. एक्टर का ये नया घर 1,593.61 वर्ग फुट के एरिया में फैलै है. खास बात ये है कि कार्तिक ने जहां ये प्रॉरर्टी खरीदी है, वो पूरा इलाका सबसे महंगी प्रॉपर्टी में से एक है.

एक बिल्डिंग में दो अपार्टमेंट के मालिक बने कार्तिक

आपको बता दें कि, इस बिल्डिंग की आठवीं मंजिल का एक अपार्टमेंट पहले से ही कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) के परिवार के पास है. इसी साल कार्तिक की मां डॉ. माला तिवारी ने अभिनेता शाहिद कपूर से ये अपार्टमेंट 7.5 लाख रुपये प्रति माह पर किराए पर लिया था.

गौरतलब है कि जुहू में घर खरीदना लंबे समय से बॉलीवुड सेलेब्स की पहली पसंद बना हुआ है. यहां पर अमिताभ बच्चन से लेकर अनिल कपूर, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र और सोनाक्षी सिन्हा आदि जैसे कलाकारों के भी घर हैं.

‘‘नीयतः लेखकों व निर्देशक की गलत नीयत का प्रतिफल..’’

रेटिंग: पांच में से एक स्टार

निर्माताः विक्रम मल्होत्रा

लेखकः गिरवानी ध्यानी, अनु मेनन, अद्वैत काला और प्रिया वेंकटरमन

निर्देशकः अनु मेनन

कलाकारः विद्या बालन, राम कपूर, राहुल बोस, नीरज काबी, अमृता पुरी,  शशांक अरोड़ा, निकी वालिया और प्राजक्ता कोली व अन्य

अवधिः दो घंटे

निर्माता विक्रम मल्होत्रा, निर्देषक अनु मेनन और अभिनेत्री विद्या बालन की तिकड़ी ‘‘शकुंतला’’ के तीन वर्षों बाद अब अगाथा क्रिस्टी शैली की रहस्य व रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘नीयत’’ लेकर आयी है. सात जुलाई को सिनेमाघरों में पहुंची यह फिल्म काफी निराश करती है. फिल्म की कहानी के केंद्र में स्कॉटलैंड का प्राचीन ‘स्कॉटिष महल’ है और कहानी एक हत्या/आत्महत्या को सुलझाने को लेकर है. इंग्लैंड में रहने वाली निर्देषक अनु मेनन का दावा है कि इंग्लैंड में ज्यादातर प्राचीन महल भारतीयों के स्वामित्व में हैं. एक बार फिर यह फिल्म इस बात की ओर इशारा करती है कि जब फिल्मकार को उसकी फिल्म के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी मिल रही हो तो वह अच्छी फिल्म बनाने में यकीन नही करता. इस फिल्म को इंग्लैंड सरकार से सब्सिडी मिली है.

कहानीः फिल्म की कहानी स्कॉटलैंड में समुद्री किनारे पर स्थित स्कॉटिश महल के अंदर घटित होती है. जहां भारतीय किरदारों का जमावड़ा है. इस आलीशान ब्रिटिश महल के मालिक आषीष कुमार (राम कपूर) मूलतः भारतीय अरबपति हैं. उन्होने अपने जन्मदिन पर एक भव्य पार्टी का आयोजन किया है. जिसमें शामिल होने वाले सभी मेहमान भी भारतीय ही हैं. यहां का चीफ ऑफ स्टाफ तनवीर (दानिष रजवी) भारतीय है और वह गोरों की कमान संभालता है. एके की दूसरी विश्वसनीय कर्मचारी के (अमृता पुरी) हैं. ए के के मेहमानों में डॉं. संजय (नीरज काबी), उनकी पत्नी व बेटा, एके की पूर्व प्रेमिका नूर (दीपानिता शर्मा अटवाल), तांत्रिक कार्य कर ए के का उपचार करने वाली जारा (निकी अनेजा), आषीष कपूर की वर्तमान प्रेमिका लिसा (शहाना गोस्वामी), रयान कपूर की गर्ल फ्रेंड गीगी (प्राजक्ता कोली), आशीष कपूर के समलैंगिक साले जिमी मिस्त्री (राहुल बोस) हैं.

अपने जन्मदिन का केक काटने से पहले आशीष कुमार उर्फ एके यह घोषणा कर हर किसी को स्तब्ध कर देते हैं कि वह भारत सरकार, भारतीय सीबीआई अफसर के सामने आत्म समर्पण कर देगें. क्योंकि उन्हें अपने खिलाफ 20,000 करोड़ के वित्तीय धोखाधड़ी मामले में न्याय मिलने का भरोसा है. भारी वित्तीय नुकसान के अलावा, एके को उन सात निवेशकों की आत्महत्याओं के लिए भी दोषी ठहराया गया है, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई उनकी कंपनी को दे दी थी. बहरहाल, सीबीआई ऑफिसर मीरा राव (विद्या बालन), आशीष कपूर को भारत ले जाने के लिए आती हैं. एके और उसके

अनयंत्रित नशीली दवाओं का सेवन करने वाले बेटे रयान (शशांक अरोडा़) के बीच एक घिनौना विवाद शुरू हो जाता है, यहां तक कि रयान के पिता की नाक पर भी चोट लगती है. क्रोधित एके अपने महल से बाहर जाने से पहले अपने बेटे और अन्य मेहमानों को जोंक करार देता है. जल्द ही मेहमान आशीष कपूर को चट्टान के नीचे देखकर दंग रह जाते हैं. ए के का हस्तलिखित पत्र देखकर सभी इसे आत्महत्या बताते हैं. मगर मीरा राव का मानना है कि यह कोई आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है

बहरहाल, इंटरवल के बाद आशीष कपूर की हत्या कैसे हुई,  इसकी पड़ताल ही फिल्म की धुरी बन जाती है, जिसके चारों तरफ इसके किरदार चक्कर काटने लगते हैं. मीरा राव एक एक कर गुत्थियां सुलझाने की कोशिश करती है. शक के दायरे में पार्टी का हर मेहमान है और हर मेहमान के दिल में छुपी बातें भी इस हत्या का आधार बनाने की तरफ इशारा भी करती हैं.

लेखन व निर्देषनः गिरवानी ध्यानी, अनु मेनन, अद्वैत काला और प्रिया वेंकटरमन ने संयुक्त रूप से फिल्म का लेखन करते हुए फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कहानी में कुछ भी नयापन नही है. इस तरह की सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. फिल्मकार ने कहानी का कैनवास तो फैला दिया, पर उसे समेटना नही आया. क्योकि किसी भी लेखक ने अपने दिमाग का उपयोग ही नहीं किया. आशीष कुमार जो कि शून्य से अरबपति बने हैं, उन्हे लोगों को ठगने व मूर्ख बनाने में महारत हासिल है, तब भी वह मीरा राव की असलियत नही समझ पाते. हर किरदार भूल जाता है कि हाथ में बंदूक लेते ही जिसके हाथ कांपने लगे, वह सीबीआई अफसर कदापि नहीं हो सकता. उपर से हास्यास्पद पहलू यह है कि इस सीबीआई अफसर को केमिस्टी यानी कि रासायनिक पदार्थों व उसके उपयोग आदि का बहुत बेहतीन ज्ञान है. मीरा राव के महल में पहुंचते ही हमारे जैसे दर्शक समझ जाते है कि यह नकली है, पर चार चार लेखक व एक निर्देशक इस बात को नहीं समझ पाती…वाह..क्या फिल्मकार हैं….कहानी व पटकथा अति लचर व अति सुस्त है. इंटरवल से पहले फिल्म धीमी गति से चलती है, पर किरदारों का परिचय जिस तरह से होता है, उससे कुछ उम्मीदे बंधती हैं. मगर इंटरवल के बाद फिल्म जिस तरह से

आगे बढ़ती है उसे देखते हुए अहसास होता हे कि लेखक व निर्देषक ने सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया. जब आप मौलिक सोच की बजाय नकल के भरोसे रहते हैं, तब ऐसा ही होता है. इस फिल्म के कई दृश्य विदेषी सीरीज व फिल्मों की भी याद दिलाते हैं. तो वहीं मेहमान भी अमीरों की धारणा पर सवाल उठाते हैं. लेखकों व निर्देषक अनु मेनन को सीबीआई के काम करने के तरीकों, उनकी चाल -सजयाल आदि की कोई समझ ही नही है. क्या संदिग्ध अमीर किरदार किसी सीबीआई अफसर के साथ मारपीट कर सकता है? ए के का साला जिम्मी मिस्त्री अपने भांजे रॉयन के मन में पिता आषीष कपूर के खिलाफ इतना जहर भर देता है कि रॉयन पार्टी में सभी के सामने अपने पिता पर घंूसा चला देता है.

आखिर फिल्मसर्जक इस दृष्य के माध्यम से युवा पी-सजय़ी को क्या संदेष देना चाहती हैं? क्या वह अपने पिता के साथ ऐसा ही व्यवहार करती रही हैं? फिल्म के सभी किरदार अमीर व सभ्य समाज का हिस्सा हैं,मगर संवाद टपोरी वाले हैं. निर्देषक अनु मेनन को समलैंगिक’ रिष्तों व गे समुदाय से कुछ ज्यादा ही प्यार हो गया है. उनके निर्देषन में बनी फिल्म ‘षकुंतला’ में शकुंतला के पति ‘गे’ थे. तो वहीं ‘नीयत’ में आषीष कपूर और जिम्मी मिस्त्री गे हैं. दोनों के बीच समलैंगिक संबंध हैं. वही विद्या बालन भी समलैंगिक हैं. मगर फिल्मसर्जक ‘गे’ किरदार या समलैंगिक संबंधों का भी चित्रण सही-सजयंग से करने में विफल रही हैं. कुल मिलाकर फिल्म ‘‘नीयत’ की कमजोर कड़ी हैं इसके लेखक व इसकी निर्देषक. कहानी व पटकथा में अनगिनत त्रुतियां हैं.

अभिनयः इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी विद्या बालन हैं, जिन्होनें सीबीआई अफसर मीरा राव का किरदार निभाया है.इस फिल्म में अपने अभिनय से विद्या बालन ने साबित कर दिया कि शादी के बाद न सिर्फ वह पत्रकारों के संग अपने रिश्तों को भूल चुकी हैं,बल्कि अभिनय की एबीसीडी भी भूल गयी हैं. हर दृष्य में वह अपने सपाट चेहरे के साथ मौजूद रहती हैं.माना कि लेखकों ने मीरा राव के किरदार का सही चित्रण नही किया है, मगर बतौर अदाकारा उन्होने क्या किया. वास्तव में अनु मेनन के निर्देषन में फिल्म ‘‘शकुंतला’’ से उनके अभिनय में ढ़लान शुरू हुआ था. उसके बाद ‘शेरनी’ व ‘जलसा’ में भी उनके अभिनय में कोई सुधार नजर नही आया था.अब ‘नीयत’ से तो लगता है कि विद्या बालन ने स्वयं ने अपनी अभिनय यात्रा पर विराम लगाना चाहती हैं.इस बार तो विद्या बालन के धुर प्रशंसक भी स्तब्ध हैं. आखिर ‘डर्टी पिक्चर’ वाली या ‘बौबी जासूस’ वाली अभिनेत्री विद्या बालन कहां गायब हो गयीं? अषीष कपूर के किरदार में राम कपूर को फिल्मकार ने विजय माल्या वाला लुक दे दिया है,पर लगता है कि उन्होने बेमन काम किया है .अन्यथा इस किरदार में उनके पास अपनी अभिनय क्षमता के नए आयाम विखेरने के अवसर थे. दीपानिता शर्मा, शशांक अरोड़ा, शहाना गोस्वामी, नीरज काबी, अमृता पुरी, प्राजक्ता कोली, निकी अनेजा वालिया की परफार्मेंस में भी कुछ खास बात नजर नहीं आती. अति सूक्ष्म किरदार में शेफाली छाया अवष्य अपनी छाप छोड़ जाती हैं.

फिसलता सुप्रीम कोर्ट

देश में बहुत इस गलतफहमी में थे कि ‘किंग कैन डू नो रौंग’ यानी राजा गलती नहीं कर सकता. यह भ्रामक, झूठा अत्याचारी, अनचाही, अलोकतांत्रिक कथन 1950 में संविधान के हथौड़े से जमीन में कहीं गहरे कीलों से ठोंक कर ढक दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट के मामले अपने बुलडोजर से उसे निकाल ही दिया, सरकार के हर कार्यालय पर मोटे अक्षरों से फिर लिख दिया.

सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने फैसला दिया है कि सरकार गलत हो ही नहीं सकती चाहे वह किसी की भी संपत्ति छीने, किसी को जेल में बंद करे, साथ ही, उसे अपने ‘शिकार’ को यह बताने की आवश्यकता भी नहीं है कि उस का कुसूर क्या है. सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं को उस जगह गाड़ दिया है जहां 1950 में ‘किंग कैन डू नो रौंग’ का कथन गाड़ा गया था.

अब एक नागरिक की आजादी सरकारी हाथों में है. सरकार उस से खुश है तो वह घर में परिवार के साथ रह सकता है, अपना काम कर सकता है, जहां चाहे आ-जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि अगर सरकार के पास न खुश रहने के कारण हैं तो उस की आजादी, उस की संपत्ति छीनी जा सकती है. यह फैसला अमेरिका के रो वर्सेस वेड मामले के फैसले से भी ज्यादा भयंकर है जिस में एक औरत से उस का अपने बच्चे, जिस ने जन्म ही नहीं लिया, को मारने का हक था. 3 भारतीय जजों ने वही किया जो अमेरिका के जार्ज बुश और डोनाल्ड ट्रंप के नियुक्त जजों ने किया.

यह सरकार की मेहरबानी पर अब निर्भर है कि कोई नागरिक या भारत में मिला विदेशी जेल में रहेगा या बाहर. कोई सरकार सारे देश को जेल में बंद नहीं कर सकती पर जिस के पास भी सरकार की खामी निकालने के तथ्य व हिम्मत हो, उसे बंद करने का अर्थ है सब के मन में दहशत पैदा कर देना.

यह मामला क्या था, जजों ने क्या, क्यों कहा, इस पर न जाइए. मुख्य बात यह है कि आम नागरिक के संवैधानिक अधिकार अब सरकार के पास गिरवी रखे जा चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट, जिस का काम नागरिकों को किसी भी सरकार को आतंकवादी बनने से रोकता था, ने सरकार के हाथों में मशीनगन पकड़ा दी हैं जो देश के दुश्मनों के साथ सरकार के अपने दुश्मनों पर आसानी से चलाई जा सकती है.

सरकार सब जानती है. सरकार सिर-माथा है. सरकार मेहरबान तो जी जहान जैसी सोच फिर वापस आ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या दी है कि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की, नागरिकों के साथ जैसी मरजी वैसा व्यवहार कर सकती है.

जीवन चलते रहने का नाम है

जीवन की तुलना हमेशा बहने वाली नदी से की जाती है. एक नदी अविरल बहती है, समुद्र में लहरें लगातार गतिशील रहती हैं, हवा एक पल के लिए भी नहीं रुकती. मौसम एक निश्चित अवधि पर बदलता है. शीत, ग्रीष्म, शरद, शिशिर, बसंत आदि ऋतुएं एक निश्चित प्रारूप के अनुसार बदलती रहती हैं. सूर्य, चंद्रमा, तारे अपनेअपने निश्चित समय पर उदय और अस्त होते हैं. उसी प्रकार जीवन भी निरंतर आगे बढ़ने का नाम है.

जीवन की निर्बाध गति के मार्ग को समस्याएं अवरुद्ध करती हैं लेकिन यही समस्याएं जीवनरूपी मार्ग को और भी सुदृढ़ करती हैं और आगे चलने को प्रेरित भी करती हैं. कठिनाइयों के पर्वतों से टकरा कर कहीं मनुष्य टूट न जाए, निराशा की अंधकारमय खाई में कहीं वह खो न जाए, समस्याओं के समुद्र में डूब न जाए बल्कि सफलताओं की चोटी पर सदैव चढ़ता रहे, इसी का नाम जीवन है.

जीवनरूपी पथ पर फूल मिले या कांटे, दुख या सुख, आशा या निराशा, जीवन सदैव चलता रहता है. दुविधा के चौराहे पर रुकना या किसी लक्ष्य के अभाव में पीछे मुड़ जाना जीवन का उद्देश्य नहीं है क्योंकि जीवन का एकमात्र उद्देश्य है निरंतर चलना.

मनुष्य के जीवन में कई मोड़ ऐसे भी आते हैं जब वह परेशानियों के सामने टूट जाता है. वह सोचने लगता है कि वह थक चुका है और परेशानियों के सामने घुटने टेक देने चाहिए. लेकिन ऐसे कठिन समय पर मनुष्य को धैर्य के साथ मुश्किलों का डट कर सामना करना चाहिए. जीवन कहता है कि रुकना नहीं है, निरंतर चलते रहना है.

जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है. यह संघर्ष तब तक चलता रहता है जब तक सांसें चलती रहती हैं. संघर्ष से बच कर कहीं भी भागा नहीं जा सकता. आदिम अवस्था में गुफा में निवास करने वाला मनुष्य संघर्ष से ही सभ्यता के ऊंचे दुर्ग पर पहुंच सका. संघर्ष के मार्ग से ही हमें जीत की चोटियां मिलीं तो कहीं पराजय की अथाह गहराइयों में भी आशा का इंद्रधनुष मिला, तो कहीं निराशा के गहरे बादल भी मिले. प्रकृति और प्रतिकूल परिस्थितियों के विरुद्ध युद्ध करते हुए मनुष्य ने समाज और परिवार की नींव डाली, पृथ्वी के आंचल पर अन्न के दाने उगाए, भाषा और अग्नि का आविष्कार किया और आखिरकार मनुष्य सभ्य कहलाया.

मनुष्य अज्ञान और अंधकार में लिपटा हुआ है. वह समस्याओं के जंजाल में जकड़ा हुआ है. वह मोह, भ्रम, आशानिराशा के जाल में फंसा हुआ है. जीवन मनुष्य को सदैव इस से आगे निकलने की प्रेरणा देता है. इसी प्रेरणा के कारण ही वह आगे बढ़े, ऊपर उठे यही जीवन का मूल मंत्र है.

जीवन का सब से महान आदर्श रहा है अंधकार से प्रकाश की ओर चलना, मृत्यु के भय से अमरता की ओर चलना, बुराइयों और असत्य के चक्रव्यूह से निकल कर अच्छाई और सत्य की ओर चलना. इस प्रकार जीवन सदैव आगे बढ़ने का नाम है.

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