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मैं पापी हूं : सीमा ने दरवाजा क्यों बंद किया?

मैं पापी हूं. इस बात को आज मैं सार्वजनिक तौर पर मान रहा हूं. पिछले तकरीबन 40 साल से मैं ने इस बात को अपने सीने में दफन कर रखा है, लेकिन अब जिंदगी की गाड़ी और आगे खिंचती नहीं लगती. बात उन दिनों की है, जब मेरी जवानी उछाल मार रही थी. मैं ने ‘शहर के मशहूर समाजसेवी श्रीश्री डालरिया मल ने सभा की अध्यक्षता की…’ जैसी रिपोर्टिंग करतेकरते आगरा से निकलने वाली एडल्ट मैगजीन ‘मचलती जवानी’ के लिए भी लिखना शुरू कर दिया था. यह ‘मचलती जवानी’ ही मेरे पाप की जड़ है. एक दिन ‘मचलती जवानी’ के संपादक रसीले लाल राजदार की एक ऐसी चिट्ठी आई, जिस ने मेरी दुनिया ही बदल डाली.

उस चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, ‘रहते हैं ऐसे महानगर में, जो सोनागाछी और बहू बाजार के लिए सारे देश मशहूर हैं, और आप हैं कि दमदार तसवीरें तक नहीं भिजवा सकते. भेजिए, भेजिए… अच्छी रकम दिलवा दूंगा प्रकाशक से.’ कैमरा खरीदने के लिए मैं ने सेठजी  से कहा कि कुछ पैसे दे दें. यह सुन कर सेठ डालरिया मल ‘होहो’ कर हंसे थे और शाम तक मैं एक अच्छे से कैमरे का मालिक बन गया था. बहू बाजार की खोली नंबर 34 में एक नई लड़की सीमा आई थी. चेहरा  किसी बंबइया हीरोइन से कम न था. एक दिन सीमा नहाधो कर मुंह में पान रख अपने अधसूखे बालों को धीरेधीरे सुलझा रही थी, तभी मैं उस की खोली में जा धमका.

सीमा ने तुरंत दरवाजा बंद कर सिटकिनी लगा दी और बोली, ‘‘मेरा नाम सीमा है. आप अंदर आइए, बैठिए.’’ मैं पलंग पर बैठते हुए बोला, ‘‘देखो, मैं कुछ करनेधरने नहीं आया हूं. बात यह है कि…’’

‘‘बेवकूफ कहीं के… आज मेरी बोहनी खराब कर दी. चल, निकल यहां से,’’ सीमा चीखते हुए बोली थी. मैं हकबका गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. मैं बोला, ‘‘मैं तुम्हारी बोहनी कहां खराब कर रहा हूं? लो ये रुपए.’’

यह सुनते ही सीमा चौंकी. वह बोली, ‘‘मैं मुफ्त के पैसे नहीं लेती.’’ ‘‘मैं मुफ्त के पैसे कहां दे रहा हूं? इस के बदले मुझे दूसरा काम है.’’

‘‘दूसरा काम…? क्या काम है?’’

‘‘मैं तुम्हारी कुछ तसवीरें खींचना चाहता हूं…’’ यह सुनना था कि सीमा मेरी बात बीच में ही काट कर ठहाका मार कर हंसी, ‘‘अरे, मां रे. ऐसेऐसे मर्द भी हैं दुनिया में?’’

फिर सीमा मेरी ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘मेरे तसवीर देखदेख कर ही मजे लेगा… चल, ले खींच. तू भी क्या याद करेगा…

‘‘और पैसे भी रख अपने पास. जरूरत है, तो मुझ से ले जा 10-20.’’ सीमा ने अंगरेजी हीरोइनों को भी मात देने वाले पोजों में तसवीरें खिंचवाईं. वे छपीं तो अच्छे पैसे भी मिले. जब पहला मनीऔर्डर आया, तो उन पैसों से मैं ने उस के लिए साड़ी और ब्लाउज खरीदा. जब मैं उसे देने गया, तो यह सब देख कर उस की आंखें भर आईं. वह बोली, ‘‘तुम आया करो न.’’ और मैं सीमा के पास आनेजाने लगा. यही मेरा पाप था. उस के लिए कुछ साल पीछे जाना होगा. बात शायद साल 1946 की है. मेरे मातापिता ढाका के धान मंडी इलाके में रहा करते थे, तब मैं प्राइमरी स्कूल की पहली क्लास में भरती हुआ था. स्कूल घर से एक मील दूर था, लेकिन मैं ने जो रास्ता दोस्तों के साथ कंचे खेलते हुए पता कर लिया था, वह चौथाई मील से भी कम था.

मेरे पिता लंबे रास्ते से ले जा कर मुझे स्कूल में भरती करा कर आए. लेकिन अगले दिन से मुझे अकेले ही आनाजाना था और इस के लिए मुझे शौर्टकट रास्ता ही पसंद आया. बहुत दिनों के बाद देश के बंटवारे के बाद जब मैं कलकत्ता आ गया, तो मुझे पता चला कि उस शौर्टकट रास्ते का नाम गली चांद रहमान था. एक दिन मैं ने जब मां से पूछा, ‘‘मांमां, उस रास्ते में बहुत सारी दीदियां और मौसियां अपनेअपने घरों के सामने बैठी रहती हैं. वे कौन हैं?’’

यह सुन कर मां ने मुझे डपटा था, ‘‘खबरदार, जो दोबारा उस रास्ते से गया तो…’’

इस के बाद 2-3 दिनों तक मैं मेन रोड से आया गया, लेकिन फिर वही गली पकड़ ली. एक दिन मैं ने मां को जब अच्छे मूड में देखा, तो अपना सवाल दोहरा दिया. वे बोलीं, ‘‘जा, उन्हीं से पूछ लेना.’’

एक मौसी मुझ से हर रोज बोला करती थीं, ‘‘ऐ लड़के, बदरू चाय वाले को बोल देना तो, लिली 4 कप चाय मांग रही है.’’ वे कभी मुझे एक पैसा देतीं, तो कभी 2 पैसे दिया करती थीं.

अगले दिन मैं ने हिम्मत कर के लिली से ही पूछ लिया, ‘‘मेरी मां ने पूछा है कि आप लोग कौन हैं?’’ मेरा यह सवाल सुन कर लिली के अलावा और भी मौसियां और दीदियां हंस पड़ीं. उन में से एक बोली थी, ‘‘बता देना, हम लोग धंधेवालियां हैं.’’

मां को जब एक दिन फिर अच्छे मूड में देखा, तो उन को बताया, ‘‘मां, वे कह रही हैं कि धंधेवालियां हैं.’’

लेकिन मां शायद अंदर से जलभुनी बैठी थीं. वे बोलीं, ‘‘जा, उन से यह भी पूछना कि कैसा चल रहा है धंधा?’’

मैं ने वाकई यह बात पूछ डाली थी. इस के जवाब में लिली ने हंस कर कहा था, ‘‘जा कर कह देना उन से कि बड़ा अच्छा चल रहा है. इतना अच्छा चल रहा है कि सलवार पहनने की भी फुरसत नहीं मिलती.’’ यह जवाब सुन कर मां ने इतनी जोर से तमाचा मारा था कि गाल सूज जाने की वजह से मैं कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाया था. एक दिन पता नहीं क्या बात हुई कि लंच टाइम में ही छुट्टी हो गई. मास्टर ने कहा, ‘‘सभी सीधे घर जाना. संभल कर जाना.’’

जब मैं गली चांद रहमान से निकल रहा था, तो पाया कि सारी गली में सन्नाटा पसरा था. सिर्फ लिली मौसी ही दरवाजे पर खड़ी थीं और काफी परेशान दिख रही थीं. मुझे देखते ही वे बोलीं,  ‘‘तू हिंदू है?’’ हिंदू क्या होता है, तब मैं यह नहीं जानता था, इसलिए चुप रहा. वे फिर बोलीं, ‘‘सब्जी वाले महल्ले में रहता है न. वहां दंगा फैल गया है. जब तक सब ठीक न हो जाए, तू यहीं छिपा रह.’’ कर्फ्यू लग गया था. 3 दिनों के बाद हालत सुधरी और कर्फ्यू में ढील हुई, तो लिली ने बताया, ‘‘सब्जी वाले महल्ले में एक भी हिंदू नहीं है. लगता है, जो मारे जाने से बच गए हैं, वे कहीं और चले गए हैं.’’ अगले दिन वे मुझे ले कर मेरे टोले में गईं, लेकिन वहां कुछ भी नहीं था, सिर्फ जले हुए मकान थे.

यह देख कर मैं रोने लगा. वे मुझे अपने साथ ले आईं और अपने बेटे की तरह पालने लगीं. तकरीबन सालभर बाद की बात है. मैं गली में गुल्लीडंडी खेल रहा था, तभी कानों में आवाज आई, ‘‘अरे सोनू, तू यहां है? ठीक तो है न? तुझे कहांकहां नहीं ढूंढ़ा.’’ देखा कि मेरी मां और पिता थे. पिता बोले, ‘‘चल, देश आजाद हो गया है. हम लोगों को उस पार के बंगाल जाना है.’  तब तक लिली भी बाहर आ गई थीं.  उन की आंखों में छिपे आंसुओं को सिर्फ मैं ने ही महसूस किया था.

अब आज में लौट आते हैं. सीमा ने पहले दिन के बाद मुझ से कभी कोई पैसा नहीं लिया, बल्कि हर बार देने की कोशिश की. मैं उस के जरीए एक बच्चे का बाप भी बन गया और देखते ही देखते वह लड़का एक साल का हो गया. एक दिन दोपहर को उस के पास गया, तो वह बोली, ‘‘ऊपर से पेटी उतारना तो… मेरी मां ने मुझे चांदी के कंगन दिए थे. कहा था, तेरा बच्चा होगा तो मेरी तरफ से उसे पहना देना.’’ पेटी उतारी गई. कई तरह के पुराने कपड़े भरे हुए थे. उस ने सारी पेटी फर्श पर उलट दी और कहा, ‘‘लगे हाथ सफाई भी हो जाएगी.’’ ट्रंक के नीचे बिछाया गया अखबार उलट कर मैं पढ़ने लगा. तभी उस में से एक तसवीर निकल कर नीचे गिरी. मैं ने उठाई. चेहरा पहचाना हुआ लगा.

मैं ने पूछा, ‘‘ये कौन हैं?’’

‘‘मेरी मां है.’’

‘‘क्या तुम्हारी मां धान मंडी में रहती थीं?’’ मैं ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां, तुम को कैसे मालूम?’’ सीमा ताज्जुब से मुझे देखने लगी.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हारी मां का नाम लिली है?’’

‘‘हां, लेकिन यह सब तुम को कैसे मालूम?’’ सीमा की हैरानी बढ़ती जा रही थी.

लेकिन उस के सवाल के जवाब में मैं ने बहुत बड़ी बेवकूफी कर दी. मैं ने जोश में आ कर बता दिया, ‘‘मैं भी धान मंडी का हूं. बचपन में तुम्हारी मां ने मुझे अपने बेटे की तरह पाला था.’’ यह सुनना था कि सीमा का चेहरा सफेद हो गया.

उस दिन के बाद से सीमा गुमसुम सी रहने लगी थी. एक दिन वह बोली, ‘‘भाईबहन हो कर हम लोगों ने यह क्या कर डाला? कैसे होगा प्रायश्चित्त?’’ पर इस का कोई जवाब होता, तब न मैं उस को देता.

कुछ दिनों बाद मुझे बिहार में अपने गांव जाना पड़ गया. तकरीबन एक महीने बाद मैं लौटा, तो पता चला कि सीमा ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी. हमारा बेटा कहां गया, इस का पता नहीं चल पाया. अनजाने में हो गए पाप का सीमा ने तो जान दे कर प्रायश्चित्त कर लिया था, लेकिन मैं बुजदिल उस पाप को आज तक ढो रहा हूं. मेरे घर के पास ही फकीरचंद रहता था. वह टैक्सी ड्राइवर था. वह एक अच्छा शायर भी था. मेरी तरह उस का भी आगेपीछे कोई नहीं था. सो, हम दोनों में अच्छी पट रही थी. मैं जोकुछ लिखता था, उस का पहला पाठक वही होता था. एक दिन वह मेरे लिखे को पढ़ने लगा. वह ज्योंज्यों मेरा लिखा पढ़ता गया, उस की आंखें आंसुओं से भरती जा रही थीं और जब पढ़ना पूरा हुआ, तो देखा कि वह फफकफफक कर रो रहा था.

मैं ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘अरे, तुम को क्या हो गया फकीरचंद?’’

वह भर्राए गले से बोला, ‘‘हुआ कुछ नहीं. सीमा का बेटा मैं ही हूं.’’

धुंध, भाग 1

“आज फिर से वही फोन कौल…, वही नंबर…, उफ्फ…,” सानविका ने जैसे ही घर का दरवाजा खोलने के लिए अपने पर्स से घर की चाबी निकाली, उस का मोबाइल फोन बज उठा. एक हाथ से घर के दरवाजे का ताला खोलते हुए उस ने दूसरे हाथ से मोबाइल का आंसर बटन दबा दिया.

बहुत देर तक हैलोहैलो करने के बाद भी दूसरी तरफ से कोई जवाब न पा कर उस ने फोन कट कर दिया और दरवाजा खोल कर घर के अंदर आ गई.

आज कालेज में वैसे ही वर्क लोड अधिक था, एक्स्ट्रा क्लासेस लेने पड़े थे उसे. सिर दर्द से फटा जा रहा था. उस ने सोचा था कि घर पहुंच कर एक कप गरम कौफी पी कर आने वाले एग्जाम के लिए क्वेश्चन्स सेट करने का काम पूरा कर लेगी, लेकिन बारबार आने वाले इस अननोन कौल्स ने उसे परेशान कर दिया था. लगातार आने वाले अननोन कौल्स से चिढ़ी हुई सी वह अपने पर्स को डाइनिंग टेबल पर रख सीधे किचन में कौफी बनाने चली गई.

कौफी बनाने के लिए उस ने जैसे ही गैस चालू किया, वापस मोबाइल फोन बज उठा. झुंझलाते हुए उस ने फोन उठा लिया, फोन पर वही नंबर फ्लैश हो रहा था. उस के मुंह से खीज भरी आवाज निकली, ‘यदि बात नहीं करनी है तो किसी को व्यर्थ में फोन कर के क्यों परेशान कर रहा है कोई… कौन है?’ गुस्से में उस ने आंसर बटन दबाते हुए पूछा और साथ ही फोन को स्पीकर पर डाल फ्रिज से दूध निकालने के लिए किचन की ओर बढ़ गई, लेकिन दूसरी तरफ से कांपती हुई जिस आवाज को उस ने सुना, उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

“हैलो, स… सानविका,” कितने वर्षों के बाद वह इस आवाज को सुन रही थी. उस के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, “दीदी, तुम… कैसी हो?”

”हां, सानविका… मैं. क्या तुम मुझ से आ कर मिल सकती हो? देख, मना मत करना… अगर मैं आ पाती तो, मैं ही आ जाती… देख, समीर से कुछ मत बताना. मैं जानती हूं, वह तुम्हें कभी भी मुझ से मिलने नहीं देगा.”

”कैसी बातें कर रही हो दीदी? मैं ने वह सब कब का भुला दिया. मैं ने आप की किसी भी बात को दिल से नहीं लगाया.”

“दिल से नहीं लगाया तो…, इतने वर्षों तक मिलने का मन क्यों नहीं हुआ? मैं जानती हूं कि तेरा दिल काफी बड़ा है. तुम ने तो मुझे कब का माफ कर दिया होगा. लेकिन, मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है, बस, इतनी विनती है कि तू एक बार मुझ से मिलने आ जा… मैं ने बहुत बार कोशिश की तुम से बात करने की, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई,” इतना कहतेकहते साधना के होंठ जैसे सिल गए, लफ्ज जैसे जम गए, गला रुंध सा गया और इस से आगे वह कुछ और कह न सकी और फिर उस ने फोन कट कर दिया.

सानविका के कानों में देर तक उस की बहन साधना की आवाज गूंजती रही. दिमाग के सारे तंत्र उस एक वाक्य पर ठहर से गए. वह देर तक सोचती रही, ‘क्या तुम मुझ से एक बार मिल सकती हो? मैं आ पाती तो…?

‘जाने क्या बात होगी कि साधना दी ने ऐसी बात कही. समीर नाराज है, क्योंकि समीर से मेरा अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और ऐसे में वह कभी भी नहीं चाहेगा कि मैं दीदी के घर जाऊं. उस की नाराजगी जायज भी है.’

Raksha Bandhan : मुंहबोली बहनें- भाग 1

आज अनाइका के मुंह से यह सुन कर कि कल रोहन भैया उस के घर गए थे, मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने मन ही मन तय  किया कि आज कालेज से सीधा ताईजी के घर जाऊंगी और रोहन भैया की अच्छी खबर लूंगी. नाक में दम कर रखा है भैया ने अपनी हरकतों से. लाख बार समझा चुकी हूं उन्हें, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. अपनी इज्जत का तो फालूदा बना ही रहे हैं साथ ही मेरी भी छीछालेदर करवा रहे हैं. कालेज में सारा दिन मैं तमतमाई सी ही रही और कालेज छूटते ही मैं ने अपनी स्कूटी ताईजी के घर की ओर मोड़ ली.

ताईजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे सोनाली, तू इस समय? लगता है सीधा कालेज से ही आ रही है, तब तो तुझे भी जोर की भूख लगी होगी. चल, फटाफट हाथमुंह धो कर आ जा, मैं रोहन का खाना ही लगाने जा रही थी, वह भी बस अभीअभी कालेज से आया है.’’

‘‘ताईजी, खाना तो आप रोहन भैया को ही खिलाइए, मैं तो आज उन का खून पी कर ही अपना पेट भरूंगी,’’ कह कर मैं धड़धड़ाती हुई रोहन भैया के कमरे में घुस गई.

‘‘अरे मम्मा, आप ने इस भूखी शेरनी को मेरे कमरे में क्यों भेज दिया? यह तो लगता है मुझे कच्चा ही चबाने आई है,’’ मेरे तेवर और हावभाव देख कर रोहन भैया पलंग और कुरसी लांघते हुए भाग कर किचन में ताईजी की बगल में आ खड़े हुए.

‘‘ताईजी, आप रोहन भैया को समझा दीजिए, मेरा दिमाग और खराब न करें वरना मैं या तो इन्हें जान से मार डालूंगी या खुद आत्महत्या कर लूंगी, पक गई हूं मैं इन की हरकतों से.’’

‘‘बहन, तू मुझे मारने का आइडिया दिमाग से निकाल दे, उस में काफी प्लानिंग की जरूरत पड़ेगी, ऐसा कर तू ही आत्महत्या कर ले, वही तेरे लिए सरल और परिवार के लिए कम दुखद होगा. मेरे पीछे क्यों पड़ी है तू? और हां, तुझे रस्सी, चूहा मारने की दवा या रेल समयसारिणी जो भी चाहिए बता देना, मैं सब उपलब्ध करा दूंगा. मेरे होते हुए तू भागदौड़ न करना,’’ रोहन भैया ने ऐसा कह कर मेरे गुस्से की आग में 4 चम्मच घी और उड़ेल दिए.

‘‘देखा ताईजी, कैसा जी जलाते हैं, भैया. आप भी इन्हें कुछ नहीं कहतीं इसीलिए तो बिगड़ते जा रहे हैं.’’

‘‘हुआ क्या है, पहले तू मुझे कुछ बताए, तब तो मैं समझूं. तू तो जब से आई है बस, खूनखराबे की ही बातें किए जा रही है. मैं कुछ समझूं तब तो कुछ बोलूं,’’ ताईजी हंसते हुए बोलीं.

‘‘ताईजी, आप इन्हें समझा दीजिए कि मेरी सहेलियों का पीछा करना छोड़ दें,’’ सोनाली गुस्से से बोली.

‘‘ओए कद्दू, कौन करता है तेरी सहेलियों का पीछा? वही मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. कोई कहती है, ‘रोहनजी, प्लीज मेरा लाइब्रेरी कार्ड बनवा दीजिए, रोहन भैया काउंटर पर बड़ी लंबी कतार लगी है, आप प्लीज मेरी फीस जमा करा दीजिए,’ अब कोई इतने प्यार से विनती करे तो मैं कोई पत्थर दिल तो हूं नहीं, जो पिघलूं न? छोटेमोटे काम कर देता हूं. क्या करूं मेरा दिल ही कुछ ऐसा है, किसी को मना कर ही नहीं पाता हूं,’’ अपनी विवशता बताते हुए रोहन बोला.

‘‘हां, जैसे मुझे समझ में नहीं आता कि आप क्यों उन का काम करते हैं. उन पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए भला इस से अच्छा मौका और कहां मिलेगा आप को.’’

‘‘अब तुम ही बताओ मम्मा, इस चुहिया की कुछ सहेलियां मेरे पास आ कर कहती हैं, प्लीज रोहन भैया, हमारा फलां काम करवा दीजिए तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं उन्हें? जब उन्होंने मुझे भैया कह दिया तो मेरी मुंहबोली बहनें हो गईं न और बहनों के प्रति भाई की कुछ जिम्मेदारी बनती है कि नहीं? और कुछ कहती हैं, ‘रोहनजी, प्लीज हमारा फलां काम… रोहनजी प्लीज’ कहने वालों के प्रति तो मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि न जाने भविष्य में इन में से किस के साथ मेरा रिश्ता जुड़ जाए, इसलिए उन के काम तो मैं अपनी तथाकथित बहनों के काम से भी ज्यादा रुचि और मन से करता हूं.’’

‘‘रोहन, तू सचमुच बिगड़ रहा है, जरूरत से ज्यादा नटखटपन अच्छी बात नहीं है, सोनाली तेरी बहन है तो इस की सहेलियां भी तेरी छोटी बहन ही हुईं. तुझे हरएक के साथ तमीज से पेश आना चाहिए,’’ ताईजी उन्हें समझाते हुए बोलीं.

‘‘मम्मा, अब आप भी सोनाली की भाषा न बोलिए. जिस ने मुझे भैया कह दिया वह तो मेरे लिए सोनाली के ही समान हो जाती है पर जो खुद ही मुझे भैया न कहना चाहे, ‘रोहनजी प्लीज…’ कहे तो वहां मैं नटखट कैसे हो गया? नटखट तो वह हुई न?’’

मुझे पता था कि रोहन भैया से बहस में जीतना असंभव है. उन की वाक्पटुता ने ही तो उन के व्यक्तित्व में चार चांद लगा कर उन्हें हमारे कालेज का हीरो बना कर मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी. कालेज में उन के चाहने वालों की एक लंबी कतार है. इसीलिए बहुत सी युवतियां मुझे पुल बना कर उन तक पहुंचने की कोशिश में किसी न किसी बहाने मेरे आगेपीछे लग कर मेरा जीना मुश्किल करती रहती हैं. फिर जिन को रोहन भैया थोड़ा भी भाव दे देते हैं, वे तो तारीफों के पुल बांध कर उन्हें आकाश पर बैठा देतीं और जिन पर उन की नजरें इनायत नहीं होतीं वे उन में दस दोष निकाल देती हैं, मेरे लिए दोनों ही तरह की बातें सुनना बरदाश्त के बाहर हो जाता है और कई बार अनायास ही मैं लड़कियों से बहस कर बैठती हूं.

नरेंद मोदी : आगे पाठ पीछे सपाट की कहानी

क्या आज आप गुजरात मौडल की बात करते हैं या सोचते भी हैं? क्या आप के आसपास कोई ऐसा है जिस ने गुजरात मौडल की प्रशंसा की हो या उसे देखा हो? क्या आप ने 56 इंच के सीने का कोई व्यक्ति देखा है? या फिर यह सब सिर्फ किस्सेकहानियों में ही पाया जाता है, हकीकत बिलकुल भी ऐसा नहीं है.

भारत जैसे देश, जो दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है और है भी, में क्या कोई सिर्फ झूठ का तुमार खड़ा कर देश की जनता को भ्रमित कर सकता है. ऐसी कई बातें आज देश के सामने यक्ष के सवाल बन कर खड़ी हैं. आने वाला समय इन का जवाब देगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में कुछ तथ्य और सच आप के सामने हैं, आप स्वयं अवलोकन करिए और चिंतन कर के निर्णय कीजिए कि सच क्या है और झूठ क्या. क्योंकि, आने वाला समय चुनाव के मौसम का है. ऐसे में हमें एक सजग नागरिक बन कर अपनी भूमिका का निर्वाह करना है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आप को 2014 में लोकसभा चुनाव के पूर्व देश की जनता ने जो स्नेह, सम्मान, प्रेम दिया वह अपनेआप में अभूतपूर्व था. मगर प्रधानमंत्री बनने के बाद आप ने देश को क्या दिया? आप अच्छेअच्छे कपड़े पहनते हैं, दुनियाभर की यात्रा कर रहे हैं और लोग मोदीमोदी कर रहे हैं. इस से भला देश का क्या भला होगा? आप जहां भी जाते हैं वहां के नेताओं, राष्ट्राध्यक्ष को गले से लगा लेते हैं मगर देश की जनता, किसी गरीब आदमी को गले लगाते आप को तो आज तक किसी ने नहीं देखा. जबकि, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी लंबे समय से देश की जनता से मिलते देखे जा रहे हैं. देशवासियों से वे बातें करते हैं, उन के आंसू पोंछने का प्रयास करते हैं. मोदी जी, आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते, क्या यह आप की फितरत में नहीं है.

मोदी जी, आप ने कहा था, गुजरात का विकास मौडल सारे देश मे लाया जाएगा. आप ने कहा बुलेट ट्रेन आएगी, आप ने कहा 100 स्मार्ट सिटी बनाए जाएंगे, आप ने कहा लोकसभा के हर सांसद का एक आदर्श गांव आदिआदि सब कहां हैं? सब झूठ निकला. कुल मिला कर के, आगे पाठ पीछे सपाट.

नरेंद्र मोदी जी, क्या आप भी राजनीति में सपनों के सौदागर हैं. देश की जनता को झूठे ख्वाब दिखा कर उन के वोट बटोर लेना ही आप की जीत है या फिर देश की समृद्धि और आम जनता की सच्ची खुशी. आप ने कहा था, ‘नरेंद्र मोदी का सीना 56 इंच का है’ यह भी बहुत बड़ा झूठ निकला. हालांकि यह 56 इंच का जुमला प्रतीकात्मक था मगर इस के बावजूद, आप का कर्तव्य है कि देश की जनता के विश्वास को बनाए रखते. लेकिन हो तो यह रहा है कि आप के 9 वर्ष के कार्यकाल में एक के बाद एक आश्वासन दिए जा रहे हैं और सिर्फ कांग्रेस, विपक्ष, गांधी परिवार, हिंदूमुसलिम जैसे मसलों पर झूठ और झूठ खड़ा कर के देश की जनता को भ्रमित किया जा रहा है. क्या नरेंद्र मोदी होने का मतलब यह है कि सिर्फ और सिर्फ छलावा और झूठ.

शायद देश में बहुत लोगों को यह जानकारी नहीं होगी कि 56 इंच के सीने का मतलब क्या है. दरअसल, 56 इंच का सीना महान रेसलर गामा पहलवान का था जिस ने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया था. गामा पहलवान को रुस्तम ए हिंद, रुस्तम ए जमां का खिताब मिला था. मगर मोदी के झूठ के सामने मानो आज सच भी पानी भर रहा है.

संविधान की नजर में देश की जनता के विश्वास को तोड़ने का काम किसी अपराध से कम नहीं है. और, इतिहास में इसे हमेशा याद रखा जाएगा कि ऐसा कृत्य देश के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर बैठ कर किस ने किया.

Celina Jaitly पर भद्दी टिप्पणी करना पाकिस्तानी समीक्षक को पड़ा भारी, विदेश मंत्रालय ने की कार्रवाई की मांग

Celina Jaitly Tweet : बॉलीवुड एक्ट्रेस सेलिना जेटली अपनी खूबसूरती और एक्टिंग के लिए आज भी दुनिया भर में जानी जाती हैं. भले ही सेलिना ने लंबे समय से एक्टिंग से दूरी बना रखी है, लेकिन वह सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस से जरूर जुड़ी हुई है. आए दिन वह अपनी फोटो या वीडियो अपने फैंस के साथ साझा करती रहती है, जिसको लेकर वह सुर्खियों में बनी रहती हैं. हालांकि इस बार वह अपनी किसी फोटो या वीडियो के लिए नहीं बल्कि अपने एक ट्वीट के चलते चर्चा में बनी हुई हैं.

दरअसल, इस साल की शुरुआत में उमैर संधू (Umair Sandhu) नामक पाकिस्तानी समीक्षक ने सेलिना जेटली (Celina Jaitly) पर भद्दा कमेंट किया था, जिसका जवाब एक्ट्रेस ने उन्हें उसी समय दिया था. हालांकि अब ये मामला राष्ट्रीय महिला आयोग तक पहुंच गया है. एक्ट्रेस ने ट्वीट कर बताया कि दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के सामने विदेश मंत्रालय ने इस मामले को उठाया है. साथ ही मामले की तुरंत जांच और कार्रवाई करने की भी मांग की गई है.

ट्वीट कर दी जानकारी

आपको बता दें कि बीते दिन अपने ट्विटर अकाउंट पर सेलिना (Celina Jaitly Tweet) ने एक लंबा नोट शेयर किया. साथ ही उन्होंने उस चिट्ठी की भी फोटो शेयर की, जो विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को भेजी थी.

रविवार को सेलिना ने ट्वीट कर लिखा, ‘कुछ महीने पहले खुद को हिंदी फिल्म समीक्षक कहने वाले उमैर संधू (Umair Sandhu) नामक पाकिस्तानी ने मेरे बारे में कई झूठे और भयानक दावे किए. उसने मेरे मेंटॉर फिरोज खान और उनके बेटे फरदीन खान के साथ मेरे संबंधों को लेकर मुझ पर बेतुके आरोप लगाए. इसके अलावा उसने ऑस्ट्रिया में भी मुझे और मेरे परिवार की सुरक्षा को निशाना बनाया. पाकिस्तान से किए गए उसके उत्पीड़न और फर्जी दावों पर मेरे द्वारा दिया गया रिएक्शन वायरल हो गया. पाकिस्तानी नागरिकों के साथ-साथ ट्विटर पर लाखों लोगों ने मेरा सपोर्ट किया जो उसके ट्वीट से हैरान थे.’

विदेश मंत्रालय हुआ मामले को लेकर गंभीर

इसके अलावा सेलिना (Celina Jaitly Tweet) ने अपने नोट में ये भी बताया कि, ‘उमैर ने ऑनलाइन अपनी लोकेशन बदल ली है पर वह पाकिस्तान में ही छिपा हुआ है.’ एक्ट्रेस ने बताया कि ‘जब उमैर (Umair Sandhu) ने उनके खिलाफ ट्वीट किया तो तब उन्होंने इस मामले को राष्ट्रीय महिला आयोग में ले जाने का फैसला किया, जिसके बाद आयोग ने उनकी शिकायत पर तुरंत संज्ञान लेते हुए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव को एक चिट्ठी भेजी. विदेश मंत्रालय ने इस मामले को गंभीरता से लिया है. साथ ही नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग के सामने इस मुद्दे को उठाया.’

उमैर को सबक सिखाके रहेंगी एक्ट्रेस

वहीं सेलिना ने (Celina Jaitly Tweet) आगे लिखा, ‘ये केवल उनके चरित्र पर सवाल उठाने का मामला नहीं है बल्कि उनकी ईमानदारी, मातृत्व, परिवार और उनके मेंटॉर फिरोज खान पर सीधे तौर पर हमला है.’ आगे उन्होंने लिखा, ‘वह एक आर्मी ऑफिसर की बेटी हैं और वह अपनी आखिरी सांस तक ये लड़ाई लड़ती रहेंगी भले ही उन्हें उस व्यक्ति को सबक सिखाने के लिए पाकिस्तान ही क्यों ने जाना पड़े.’

जानें उमैर ने सेलिना पर क्या-क्या लगाए थे आरोप?

आपको बता दें कि साल 2023 की शुरुआत में उमैर संधू (Umair Sandhu) ने एक ट्वीट किया था. उस ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि, ‘सेलिना जेटली बॉलीवुड की एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जो पिता फिरोज खान और बेटे फरदीन खान दोनों के साथ कई बार सोई हैं.’ हालांकि सेलिना ने उमैर को उसी वक्त ट्वीट कर करारा जवाब दिया था, जिसके बाद लोगों का भी उन्हें सपोर्ट मिला था, लेकिन अब ये मामला विदेश मंत्रालय तक पहुंच गया है.

Anupamaa से तीखे सवाल करेगी बरखा, सामने आएगा अंकुश का नाजायज बेटा

Anupamaa Spoiler alert : टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में रोजाना नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. इसी वजह से ये शो लंबे समय से टीआरपी रेटिंग में पहले नंबर पर बना हुआ है. शो के करंट ट्रैक की बात करें तो जहां एक तरफ काव्या की प्रेग्नेंसी का राज जानने के बाद बवाल खड़ा होगा, तो वहीं मेकर्स ने सीरियल में एक और नए ट्विस्ट को जोड़ दिया है. दरअसल, आज के एपिसोड में एक नए किरदार की एंट्री होगी, जिसके आने के बाद कपाड़िया मेंशन में हंगामा खड़ा हो जाएगा.

क्या होगा वनराज का अगला कदम?

आज के एपिसोड (Anupamaa Spoiler alert) में देखने को मिलेगा कि जहां एक तरफ काव्या अपनी प्रेग्नेंसी का सच अनुपमा को बताती है, तो वहीं ये बात कमरे के बाहर दरवाजे पर खड़े होकर वनराज सुन लेता है. जब वनराज को ये बात पता चलती है कि काव्या की कोख में पल रहा बच्चा उसका नहीं है, तो उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है. सच जानने के बाद वनराज क्या करता है ये देखना काफी दिलचस्प होगा.

कपाड़िया मेंशन में होगी अंकुश के नाजायज बेटे की एंट्री

वहीं दूसरी तरफ अंकुश (Anupamaa Spoiler alert) अपने नाजायज बेटे को कपाड़िया मेंशन लेकर आता है. जैसे ही अंकुश का बेटा कपाड़िया परिवार में कदम रखता है वैसे ही बरखा हंगामा खड़ा कर देती है. बरखा अनुपमा से सवाल करती है कि अगर ये बच्चा अनुज की नाजायज औलाद होता तो क्या तब भी तुम उसे हमारे साथ इस घर में रहने देती?

अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुपमा बरखा के सवालों का क्या जवबा देती है. खैर ये सब तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा कि कपाड़िया मेंशन में अंकुश के नाजायज बेटे के आने से कहानी में कब और कैसे नया मोड़ आएगा.

रिश्ते जो खून में रंग गए

सूरज के निकलते ही आसमान में छाई कोहरे की धुंध साफ होने लगी थी. चिडिय़ों की मधुर कलरव ने सुबह होने का आभास कराया तो बागेश्वरी देवी भी उठ गईं. उन की बड़ी बहू पहले ही उठ कर फ्रेश हो गई थी. लेकिन पहली मंजिल पर रहने वाला उन का छोटा बेटा, बहू और पोता अभी तक नहीं उठा था. चायनाश्ते का समय हो गया था, इस के बावजूद वे लोग पहली मंजिल से नीचे नहीं आए थे.

एक बार तो बागेश्वरी देवी को लगा कि शायद ठंड होने की वजह से वे उठ न पाए होंगे. लेकिन इतनी देर तक न कभी बेटा ओमप्रकाश सोता था और न पोता शिवा. इसलिए वह परेशान होने लगीं. वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की कोतवाली शाहपुर के मोहल्ला अशोकनगर में रहती थीं.

मकान की ऊपरी मंजिल पर काम चल रहा था. साढ़े 8 बजतेबजते मजदूर काम पर आ गए थे, लेकिन तब तक ऊपर सो रहे लोगों में से कोई नहीं उठा था. मजदूर जैसे ही सीढिय़ां चढ़ते हुए प्रथम तल पर पहुंचे, उन्हें कमरे के अंदर से दरवाजे के जोरजोर से थपथपाने और औरत के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी. एक मजदूर ने जल्दी से दरवाजे की बाहर से लगी सिटकनी खोल दी.

अंदर से घर की छोटी बहू अर्चना तेजी से बाहर निकली और सीधे सामने वाले कमरे की तरफ भागी. उसे इस तरह भाग कर कमरे में जाते देख मजदूर हैरान रह गए.

अर्चना ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा खुल गया. अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर उस के पांव चौखट पर ही जम गए और वह जोर से चीखी. उस कमरे में बैड पर ओमप्रकाश की लाश चित पड़ी थी. फर्श पर खून ही खून फैला था. उन्हीं के बगल 4 साल के मासूम बेटे शिवा की भी लाश पड़ी थी. दोनों लाशें देख कर ही अर्चना जोर से चीखी थी.

बापबेटे की लाशें देख कर मजदूरों के भी हाथपांव फूल गए. अर्चना रोतीचीखती नीचे सास बागेश्वरी देवी के पास पहुंची. बहू के मुंह से बेटे और पोते की हत्या की बात सुन उन का पूरा बदन कांपने लगा. घर में रोनापीटना मच गया. दोनों की आवाजें सुन कर पड़ोसी भी आ गए. जैसेजैसे यह खबर मोहल्ले में फैलती गई, लोग बागेश्वरी देवी के घर इकट्ïठा होने लगे.

बागेश्वरी देवी की बड़ी बहू ने फोन द्वारा इस घटना की सूचना अपने पति राजकुमार को दे दी. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में इंसपेक्टर थे. छोटे भाई और भतीजे की हत्या की बात सुन कर वह भी सन्न रह गए. उन्होंने कोतवाली शाहपुर के प्रभारी आनंदप्रकाश शुक्ला को फोन द्वारा घटना की जानकारी दे दी.

इंसपेक्टर आनंदप्रकाश शुक्ला तुरंत एसआई रामकृपाल यादव, एएसआई विमलेंद्र कुमार, कांस्टेबल संतोष कुमार, रामविनय सिंह, शिवानंद उपाध्याय और जनार्दन पांडेय को साथ ले कर अशोकनगर स्थित राजकुमार यादव के घर पहुंच गए. मृतक ओमप्रकाश यादव के ससुर दीपचंद यादव राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पीएसओ थे. उन्हें जब घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने गोरखपुर रेंज के आईजी पी.सी. मीणा को फोन किया.

इस के बाद तो आईजी पी.सी. मीणा, डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी, एसएसपी लव कुमार, एसपी हेमंत कुटीयार, सीओ कमल किशोर, क्राइम ब्रांच, एसटीएफ की टीम, डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम वहां पहुंच गईं. थोड़ी ही देर में अशोकनगर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया.

पुलिस ने बड़ी बारीकी से घटनास्थल की जांच की. जिस कमरे में दोनों लाशें पड़ी थीं, वहीं बैड के पास खून से सना एक हथौड़ा और एक कूदने वाली रस्सी पड़ी थी. लाशें देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे ने हथौड़े से ओमप्रकाश की हत्या की थी, जबकि उन के बेटे का रस्सी से गला घोंटा था. पुलिस ने दोनों सामानों को कब्जे में ले लिया.

सभी को यह बात परेशान कर रही थी कि आखिर बच्चे की हत्या क्यों की गई? पुलिस की नजर जब कमरे के दरवाजे की सिटकनी पर पड़ी तो दरवाजे पर सिटकनी तोडऩे जैसा कोई निशान नहीं था. देख कर लग रहा था कि किसी ने सिटकनी के पेंच खोल कर उसे फर्श पर रख दिया था.

जबकि पूछताछ में अर्चना ने बताया था कि उस के पति अंदर से सिटकनी बंद कर के सोए थे. उस ने यह भी कहा था कि लूटपाट का विरोध करने पर लुटेरों ने हथौड़े से उस के पति की हत्या की होगी. उसी समय बच्चा जा गया होगा, तब पहचाने जाने के डर से उन्होंने बच्चे को भी मार दिया होगा. लूटपाट के दौरान खटपट की आवाज सुन कर वह आ न जाए, इसलिए बदमाशों ने उस के कमरे की सिटकनी बाहर से बंद कर दी थी.

अर्चना का बयान पुलिस को कुछ अजीब लग रहा था. बागेश्वरी देवी के बड़े बेटे इंसपेक्टर राजकुमार आ गए तो वह उस कमरे में गए, जहां दोनों लाशें पड़ी थीं. उन्होंने भी कमरे का निरीक्षण किया. उन्हें भी साफ लग रहा था कि यह लूट का मामला नहीं है. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक की मां बागेश्वरी देवी की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दोनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया. तकरीबन 7 साल पहले की बात है.

यह मामला एक तो विभागीय था, दूसरे बात मुख्यमंत्री तक पहुंच चुकी थी, इसलिए उसी दिन शाम को आईजी पी.सी. मीणा, एसएसपी लव कुमार ने एसपी (सिटी) हेमंत कुटीयार, एसपी (क्राइम ब्रांच) मानिकचंद और सीओ (कैंट) कमल किशोर को बुला कर विचारविमर्श करने के साथ इस केस का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए.

एसएसपी लव कुमार के निर्देश पर थानाप्रभारी आनंदप्रकाश शुक्ला ने सब से पहले मृतक ओमप्रकाश और उन की पत्नी अर्चना के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. ओमप्रकाश की काल डिटेल्स से तो कुछ खास नहीं मिला, लेकिन अर्चना की काल डिटेल्स चौंकाने वाली थी. रात साढ़े 12 से डेढ़ बजे के बीच उस ने एक नंबर पर कई फोन किए थे.

जांच में पता चला कि वह नंबर फिरोजाबाद जिले के स्वामीनगर के रहने वाले अजय कुमार यादव का था और उस के फोन की लोकेशन दोपहर के बाद से ले कर उस समय तक गोरखपुर की थी. यही नहीं, इस के पहले भी उस नंबर पर अर्चना की दिन में कईकई बार लंबीलंबी बातें होती रही थीं.

सारा माजरा पुलिस की समझ में आ गया. अर्चना शक के दायरे में आ गई, लेकिन पुलिस ने इस बात का अहसास किसी को नहीं होने दिया. अजय कुमार गोरखपुर में ही था, लेकिन पुलिस के पास उस का कोई फोटो नहीं था, जिस से उसे पहचाना जा सके.

अजय कुमार के फोटो के लिए पुलिस ने सोशल साइट फेसबुक खंगाली तो उस में उस का फोटो मिल गया. लेकिन फेसबुक पर पड़े उस के फोटो देख कर एक बारगी पुलिस को झटका सा लगा, क्योंकि एक फोटो में वह समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ बैठक में था तो दूसरे फोटो में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से हाथ मिला रहा था.

उन्होंने यह बात एसएसपी लव कुमार को बताई तो उन्होंने कहा कि स्थितियों से साफ लगता है कि इन हत्याओं में उसी का हाथ है, इसलिए उसे तुरंत गिरफ्तार करो. देर होने पर वह हाथ से निकल सकता है.

मोबाइल की लोकेशन से पुलिस को पता चल गया था कि अजय कुमार बसअड्ïडे पर है. पुलिस को फोटो मिल ही गया था, इसलिए 22 जनवरी की सुबह पुलिस ने बसअड्डे को घेर लिया. बसअड्ïडे पर भारी मात्रा में पुलिस बल देख कर अजय ने भागने की कोशिश तो की, लेकिन वह भाग नहीं सका. पुलिस उसे पकड़ कर सीधे शाहपुर कोतवाली ले आई.

अजय कुमार के पकड़े जाने की सूचना मिलते ही एसएसपी लव कुमार और एसपी (सिटी) हेमंत कुटीयार थाने आ गए. अजय ने खुद को समाजवादी पार्टी का नेता बताते हुए बिना वजह थाने लाए जाने पर रौब तो खूब झाड़ा, लेकिन जब उस के सामने काल डिटेल्स रखी गई तो उस की सारी हेकड़ी निकल गई.

रुआंसी आवाज में हाथ जोड़ कर उस ने पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. अर्चना की बातों में आ कर मुझ से यह अपराध हो गया. उसी ने मुझ पर पति और बच्चे को रास्ते से हटाने का दबाव डाला था.’’

इस के बाद अजय ने ओमप्रकाश और उन के 4 साल के मासूम बेटे की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अजय ने स्वीकार कर लिया कि इन हत्याओं में अर्चना का भी हाथ था. इसलिए पुलिस अर्चना को गिरफ्तार करने के लिए अजय को साथ ले कर अशोकनगर कालोनी पहुंच गई.

उस समय इंसपेक्टर राजकुमार के घर परिवार वाले तो थे ही, अर्चना के पिता दीपचंद भी मौजूद थे. पुलिस अधिकारी पूछताछ के बहाने उसे लौन में वहां ले आए, जहां अजय कुमार खड़ा था. उसे पुलिस हिरासत में देख कर अर्चना का चेहरा सफेद पड़ गया.

अजय को देख कर अर्चना समझ गई कि उस का खेल खत्म हो गया है. अब उस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है. इस से पहले कि उस से पुलिस कुछ पूछती, उस ने खुद ही कह दिया,  ‘‘हां, मैं ने ही अजय के साथ मिल कर पति और बेटे की हत्या की है. मुझे इस का कोई मलाल भी नहीं है.’’

अर्चना के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर वहां खड़े लोग दंग रह गए. बेटी की करतूत पर दीपचंद तो गश खा कर गिर पड़े और बेहोश हो गए.

पुलिस ने अर्चना को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद एसएसपी लव कुमार ने पुलिस लाइंस में प्रैसवार्ता आयोजित कर अर्चना और अजय कुमार को पत्रकारों के सामने पेश किया तो दोनों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए ओमप्रकाश और उन के 4 साल के बेटे की हत्या के पीछे की पूरी कहानी सुना दी. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना जमनिया के खलीलचक ढडनी के रहने वाले भोलानाथ यादव का 5 लोगों का छोटा सा परिवार था. उन 5 लोगों में 2 तो वह पतिपत्नी थे, बाकी 2 बेटे राजकुमार व ओमप्रकाश और एक बेटी प्रमिला. भोलानाथ साधनसंपन्न किसान थे, इसलिए अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाई. पढ़लिख कर बड़ा बेटा राजकुमार यादव उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर हो गया तो दूसरा बेटा ओमप्रकाश यादव नेत्र परीक्षक.

पिता की मौत के बाद राजकुमार ने पूरे परिवार को अपने साथ रख लिया था. उन की पोङ्क्षस्टग गोरखपुर हुई तो वहां किराए पर रहते हुए उन्होंने कोतवाली शाहपुर के अंतर्गत बशारतपुर की पौश कालोनी अशोकनगर में जमीन खरीद कर अपना मकान बनवा लिया. राजकुमार की शादी हो चुकी थी, ओमप्रकाश ने नेत्र परीक्षक का डिप्लोमा कर लिया तो उन की भी शादी सिंगापुर में हो गई.

शादी के बाद ओमप्रकाश पत्नी को सिंगापुर से गोरखपुर ले आए. पत्नी को गोरखपुर में अच्छा नहीं लगा तो 6 महीने बाद ही वह सिंगापुर लौट गई. उस ने ओमप्रकाश को भी वहां आने को कहा, लेकिन ओमप्रकाश घरपरिवार छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे, इसलिए मना कर दिया.

दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. इसी जिद ने उन के बीच तलाक करा दिया. इस के बाद सन 2009 में 34 साल के ओमप्रकाश की दूसरी शादी लखनऊ के रहने वाले पीएसी के कंपनी कमांडर दीपचंद यादव की बड़ी बेटी अर्चना से हो गई. उस समय अर्चना यही कोई 19 साल की थी.

उन की 2 बेटियों में अर्चना बड़ी थी. वह पढ़ीलिखी और खूबसूरत तो थी ही, स्वच्छंद स्वभाव की भी थी. अकेली घूमना, दोस्ती करना और महंगे मोबाइल फोन रखना उसे अच्छा लगता था. यह प्रवृत्ति उस की शादी के बाद भी बनी रही. खूबसूरत अर्चना को पा कर ओमप्रकाश खुश थे. करीब साल भर बाद उन के घर बेटा पैदा हुआ तो पतिपत्नी ने प्यार से उस का नाम नितिन रखा. घर में सभी उसे प्यार से शिवा कहते थे.  इस तरह ओमप्रकाश का घर खुशियों से भर गया.

ओमप्रकाश जिस मकान में परिवार के साथ रहते थे, वह उन के बड़े भाई राजकुमार यादव का था. वह भी भाई की तरह अपनी मेहनत की कमाई से एक घर बनाना चाहते थे, जिसे वह अपना कह सकें. अपने सपनों का महल खड़ा करने के लिए उन्होंने जीतोड़ मेहनत की. आखिर उन की मेहनत सफल हुई और उन्होंने थाना गुलरिहा के मोगलहा में जमीन खरीद कर सुंदर सा अपना घर बनवा लिया.

उन के बेटे नितिन उर्फ शिवा का जन्मदिन था, उसी दिन वह अपने नए मकान में जाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन उन का यह सपना सपना ही रह गया. क्योंकि अर्चना और ओमप्रकाश के जो 5 साल हंसीखुशी से बीते थे, पिछले साल से उन की खुशियों में अचानक ग्रहण लग गया था.

ओमप्रकाश की बशारतपुर के एक कौंप्लेक्स में औप्टिकल्स की दुकान थी. उन के दुकान पर चले जाने के बाद अर्चना घर में खाली रहती थी. बूढ़ी सास बागेश्वरी देवी और जेठानी नीचे के कमरे में रहती थीं, जबकि वह पहली मंजिल पर. खाली समय में वह टीवी देख कर समय बिताती थी या फिर मोबाइल पर सोशल साइट फेसबुक पर दोस्तों के साथ चैटिंग करती थी.

किसी दिन फेसबुक के ‘ऐडेड फ्रैंड’लिस्ट में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से हाथ मिलाते हुए था सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ बैठे अजय कुमार यादव पर उस की नजर पड़ी तो वह उस से काफी प्रभावित हुई.

उस ने अजय की प्रोफाइल खोल कर देखी तो उस में उस का पता गांव स्वामीनगर, थाना शिकोहाबाद, जिला फिरोजाबाद दिया था. उस का मोबाइल नंबर भी उस में था. अर्चना ने अपने फेसबुक के मुख्य पेज पर अपनी शादी से पहले की आकर्षक फोटो लगा रखी थी.

अजय की राजनीतिक पहुंच देख कर उस ने उसे ‘फ्रेंड रिक्वैस्ट’ भेज दी तो अजय की ओर से रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली गई. उस के बाद उन के बीच चैटिंग शुरू हो गई. जल्दी ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

अजय कुमार यादव फिरोजाबाद के थाना शिकोहाबाद के गांव स्वामीनगर का रहने वाला था. दो भाइयों में वही बड़ा था. उस के घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. गांव में उस के पिता श्यामबहादुर यादव की किराने की दुकान थी. पिता के न रहने पर अजय भी दुकान पर बैठता था.

उस की शादी भी हो चुकी थी. पत्नी काफी खर्चीली थी, जबकि उस के खर्च पूरे करने का अजय के पास कोई साधन नहीं था, इसलिए जल्दी ही दोनों में तलाक हो गया था. पत्नी के चले जाने के बाद अजय अकेला हो गया था. उस के बाद वह समाजवादी पार्टी से जुड़ गया और मेहनत की बदौलत जल्दी ही युवजन सभा में जिला स्तर का पद पा लिया.

फिर तो उस का बड़े नेताओं के बीच उठनाबैठना होने लगा. ऐसे में ही उस का फोटो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी खिंच गया, जिसे उस ने फेसबुक पर अपलोड कर दिया. इस फोटो को काफी लोगों ने लाइक किया.

इसी दौरान अजय ने दूसरी शादी कर ली. दूसरी पत्नी से 2 बच्चे पैदा हुए. लेकिन दूसरी पत्नी से भी उस की अनबन रहने लगी और वह भी नाराज हो कर बच्चों के साथ मायके चली गई. यह 2 साल पहले की बात है. इधर पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से अजय को पार्टी से निकाल दिया गया. लेकिन उस के उस फोटो को देख कर अर्चना तो उस से प्रभावित हो ही चुकी थी.

अजय और अर्चना की दोस्ती होने के बाद जबतब उन की फोन पर भी बातचीत होने लगी थी. जल्दी ही उन की दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे. इसी का नतीजा था कि अर्चना ने अजय को अपने मायके लखनऊ में मिलने के लिए बुला लिया.

उस ने उसे मायके में इसलिए बुलाया था, ताकि मिलने में कोई बाधा उत्पन्न न हो. वहां मां के अलावा घर में कोई और नहीं रहता था. पापा दिन में ड्यूटी पर चले जाते थे, छोटी बहन वंदना की शादी ही हो चुकी थी. वह अपनी ससुराल में रहती थी.

पति से बहाना कर के अर्चना बेटे को ले कर मायके आ गई. अजय उस के दिए पते पर लखनऊ पहुंच गया. अर्चना ने मां से अजय का परिचय पुराने दोस्त के रूप में कराया. इस के बाद दोनों एकांत में मिले तो खुद को रोक नहीं पाए और वासना के प्रवाह में ऐसे बहे कि मर्यादा भंग कर बैठे.

अजय अर्चना से मिल कर फिरोजाबाद लौट गया तो अगले दिन अर्चना भी लखनऊ से गोरखपुर आ गई. इस के बाद उस ने ओमप्रकाश को महत्त्व देना बंद कर दिया. वह हर घड़ी मोबाइल से ही चिपकी रहती. उस की यह आदत न पति को अच्छी लग रही थी और न ही सास को. जब भी कोई उस से कुछ पूछता, वह कोई बहाना बना देती. धीरेधीरे ओमप्रकाश को उस पर शक होने लगा.

इस बीच अजय अर्चना से मिलने उस के ससुराल भी आने लगा था. सास बागेश्वरी देवी ने इस नए चेहरे को देखा तो पूछ बैठीं कि यह कौन है? तब उस ने खुद को अर्चना का दूर का रिश्तेदार बता दिया था, वह अर्चना के सभी रिश्तेदारों को जानती थीं. इतने दिनों बाद यह नया रिश्तेदार कौन आ गया, यह बात बागेश्वरी देवी के गले नहीं उतरी तो उन्होंने ओमप्रकाश से बात की.

ओमप्रकाश ने जब अर्चना से अजय के बारे में पूछा तो अपनी गलती मानने के बजाय वह पति से लडऩे पर आमादा हो गई. बस उसी दिन के बाद उन के रिश्ते में जो दरार पड़ी, वह धीरेधीरे बढ़ती ही गई.

पतिपत्नी के बीच इतनी दूरियां बढ़ गईं कि लगभग रोज ही घर में महाभारत होने लगा. यही नहीं, दोनों अलगअलग कमरों में सोने लगे. ओमप्रकाश नितिन को ले कर सोता था, जबकि अर्चना दूसरे कमरे में अकेली सोती थी.

एक तरह से अब अर्चना के लिए पति उस के प्रेम में रोड़ा बन रहा था. रोजरोज के झगड़े से वह ऊब चुकी थी. इसी का नतीजा था कि उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए अजय से बात की. अजय उस के लिए कुछ भी करने को तैयार था, इसलिए वह उस का साथ देने के लिए राजी हो गया.

पड़ोस में रवि राय के यहां सालगिरह का कार्यक्रम था, जिस में ओमप्रकाश भी सपरिवार जाना था. यही दिन अर्चना को पति को रास्ते से हटाने के लिए उचित लगा. उस ने अजय को फोन कर के 20 जनवरी को गोरखपुर बुला लिया. 3 बजे दोपहर अजय गोरखपुर पहुंच गया. उस समय मकान में काम चल रहा था, इसलिए बागेश्वरी देवी ऊपर थीं. अर्चना ने पीछे की सीढिय़ों से अजय को अपने कमरे में ला कर छिपा दिया.

देर शाम ओमप्रकाश लौटे तो पत्नी से पार्टी में चलने को कहा. उस समय सिर दर्द का बहाना बना कर अर्चना ने पार्टी में जाने से मना कर दिया. ओमप्रकाश ने भी जाने की जिद नहीं की. बेटे को तैयार किया और खुद भी तैयार हो कर चले गए. पति के जाने के बाद अर्चना ने अजय को बाहर निकाला और उसे खिलायापिलाया. ओमप्रकाश के लौटने का समय हुआ तो उसे फिर छिपा दिया.

रात करीब 11 बजे ओमप्रकाश बेटे के साथ पार्टी से लौटे और बेटे के साथ अपने कमरे में सो गए. सोते समय उन्होंने दरवाजे की सिटकनी अंदर से बंद नहीं की. मजदूरों के  जाने के बाद उन के औजारों से हथौड़ा निकाल कर अर्चना ने अपने कमरे में पहले ही रख लिया था. बच्चों की कूदने वाली रस्सी भी उस ने रख ली थी. अपनी इस योजना को वह किसी भी तरह से विफल नहीं होने देना चाहती थी.

सब के सो जाने के बाद अर्चना रात एक बजे के करीब दबे पांव अपने कमरे से निकली और पति के कमरे में गई. देखा कि बापबेटे गहरी नींद में सो रहे हैं तो वापस आई और अजय को हथौड़ा और रस्सी थमा कर एक बार फिर पति के कमरे में आ गई.

अर्चना ने उसे पति पर वार करने के लिए इशारा किया तो अजय ने हथौड़े से ओमप्रकाश के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. भरपूर वार से ओमप्रकाश भले ही चीख नहीं पाया, लेकिन शरीर ने तो हरकत की ही, जिस से नितिन जाग गया. पापा को मारते देख वह चिल्लाने लगा. अर्चना डर गई. दूसरी ओर संगमरमर के फर्श पर खून देख कर अजय भी कांप उठा.

अर्चना ने अजय से बच्चे को खत्म करने को कहा तो अजय की हिम्मत जवाब दे गई. उस ने मना किया तो भेद खुलने के डर से अर्चना कांप उठी. तब उस ने खुद ही बेटे का गला पकड़ लिया. उस समय मां की वह ममता भी नहीं जागी, जिस के बारे में कहा जाता है कि मां की ममता से बढ़ कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं है. मां मर सकती है, लेकिन अपने बच्चों को खरोंच तक नहीं आने दे सकती. लेकिन वासना में अंधी अर्चना ने बेटे को गला दबा कर मार दिया.

पुलिस और घर वालों को गुमराह करने के लिए अर्चना ने घर का सामान बिखेर दिया साथ ही सिटकनी खोल कर फर्श पर रख दी, ताकि सभी को यही लगे कि लूट की नीयत से सिटकनी तोड़ कर अंदर आए लुटेरों ने ओमप्रकाश और नितिन की हत्या कर दी है. इस के बाद दोनों ने बाथरूम में जा कर खून से सने हाथपैर धोए और कमरे में जा कर सो गए.

सुबह 4 बजे दोनों उठे तो अर्चना ने दरवाजा खोल कर बाहर झांका. कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने पीछे की सीढ़ी से अजय को बाहर निकाल दिया. अजय वहां से निकल कर गोरखपुरमहारागंज राष्ट्रीय राजमार्ग पर आया और टैंपो से बसअड्ïडे पर जा कर छिप गया. वह वहां इसलिए रुका था, क्योंकि अगले दिन अर्चना भी उस के साथ जाने वाली थी. वह अर्चना को ले जा पाता, उस के पहले ही पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन के आधार पर उसे पकड़ लिया.

अर्चना ने प्रेमी अजय के साथ मिल कर जो किया, उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी. अब उन की बाकी की ङ्क्षजदगी जेल की सलाखों के पीछे बीतेगी. लेकिन अर्चना को अभी भी अपने किए का दुख नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ममता की ममता

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी के अलगाववादी व कट्टरपंथी एजेंडे की बाढ़ को रोका जा सकता है अगर दूसरे नेता सही तौर पर जनहित की छवि बनाए रख सकें. पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की लाख कोशिशोंकेंद्रीय पुलिस के साए में हिंसा करवाए जाने और राज्यपाल के दखल के बावजूद अगर ममता ने 80 फीसदी से ज्यादा सीटें पा लीं तो इस से यह साबित होता है कि भाजपा का दिल्ली के इंडिया गेट के नजदीक सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाने का दांव कारगर नहीं हुआ.

लोकतंत्र का असल फायदा तभी है जब हर तरह की पार्टियां शासन में हों चाहे उन का शासन सही हो या न. भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में एक बड़ी उम्मीद जगाई थी कि देश को भ्रष्टाचारमुक्त सरकार मिलेगी और देश प्रगति की राह पर दौड़ेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. सरकारी बयानों में हम दुनिया के बहुत तेजी से प्रगति करते हुए देश हों पर प्रधानमंत्री कार्यालय के 5 किलोमीटर दायरे में बसी सैकड़ों झुग्गियों के लोगों के लिए क्या 1857, क्या 1947, क्या 2014, क्या 2023 सब एक सा हैं. हां, तकनीकी के कारण 2 कमीज की जगह 4 कमीज हो गईं, बिजली मिल गईमोबाइल हाथ में है.

पर जो सुविधाएं एक चीनीएक अमेरिकीएक फिलीपीनी के पास हैंवे एक आम भारतीय के पास कतई नहीं हैं. देश की उन्नति इसीलिए हर विश्व इंडैक्स में सालदरसाल नीचे सिखक रही हैसिर्फ जनसंख्या बढ़ रही है.

ममता बनर्जी ने रामनवमी यात्राओंजयश्रीराम के नारों और हिंदूमुसलिम झगड़ों का डट कर मुकाबला कर के ईडीसीबीआईएनआईए के प्रहारों के सामने झुके बिना भाजपा के समर्थकों को गांवों में 5-6 पर धकेल दिया.

देश को आज सब हाथ काम पर चाहिए. सब हाथों में फूलमालाएं और चढ़ावे की टोकरियां नहीं चाहिए. भारतीय जनता पार्टी विश्वमंचों पर चाहे कुछ भी कहती रहेगलीमहल्ले में उस का संदेश एक ही होता है- आओ एक और मंदिर बनाएंआओ अब और भंडारा करेंआओ एक और धर्म का मामला अंगीठी पर चढ़ाएं वगैरहवगैरह.

तृणमूल कांग्रेस जनता को कुछ खास दे रही हो, ऐसा नहीं हैं. वह सिर्फ एक पालन का प्रतीक है. जहां दूसरे राज्यों में सत्ताधारी नेता खुद को जागीरदारजमींदार समझने लगते हैं, ममता बनर्जी आज भी वही सादी धोती में कृश काया वाली अपनी सी दीदी बनी हुई हैं. वे भाजपा के ऊंचे, श्रेष्ठ नेताओं के नफरती दांवों के उलट जनता को यह भरोसा दिला रही हैं कि धर्म के नाम पर लगाई आग से हाथ बहुत दिनों तक नहीं सेंके जा सकते.

सीमा का कर्ज उतारा अंजू ने : इंटरनेशनल होता सावन

इंटरनैशनल होता सावन का रोमांटिक महीना 200 रुपए किलो के टमाटरों को न खरीद पाने की बेबसी और कसमसाहट में जैसेतैसे कट भी जाता, लेकिन मणिपुर की हिंसा और एक महिला को नग्न करते वायरल हुए वीडियो को देख कर तो हर किसी को लगा कि इतनी नफरत क्यों? यह आई कहां से और इस का इलाज क्या है? दिनरात अपने धर्म और संस्कृति की दुहाई देते रहने वालों की यह कहने की हिम्मत नहीं पड़ी कि यही तो हमारे संस्कार और परंपरा हैं. कभी ऐसा हस्तिनापुर में हुआ था, आज मणिपुर में हो गया तो कहां का पहाड़ टूट पड़ा.

लोग जरूरत से ज्यादा दुखी न हों, इसलिए मुहब्बत का संदेश लिए पाकिस्तान से सीमा आ गई. बस फिर क्या था, आवाम को एक काम मिल गया और सचमुच में वे टमाटर और मणिपुर भूलभाल कर अपनी नई भौजाई से हंसीमजाक करने में मसरूफ हो गए.

मीडिया वालों को बैठेबिठाए एक खुदीखुदाई स्टोरी मिल गई और हिंदूमुसलिम करते कट्टरवादियों के भी मुंह बंद हो गए. किसी ने नहीं कहा कि यह हिंदू लव जिहाद है.

सीमा हैदर के सीमा सचिन होते ही माहौल रातोंरात बदल गया. सीमा ने भी किसी को निराश नहीं किया. ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्म के गाने ‘हाय शरमाऊं… किसकिस को बताऊं मैं अपनी प्रेम कहानियां…’ सरीखा कोई गाना गाने के बजाय उस ने अपनी लव स्टोरी उधेड़ कर रख दी. उस की कहानी और जज्बातों को अगर गद्य से पद्य में तबदील करें, तो अलगअलग फिल्म का यह गाना उभर कर आता है, ‘दिल में आग लगाए सावन का महीना, नहीं जीना नहीं जीना तेरे बिन नहीं जीना…’

सावन के गीत विरह और मिलन दोनों हिंदी साहित्यकारों के प्रिय विषय रहे हैं. लेकिन अब वह दौर गया, जब पत्नियां सावन में मायके जाती थीं और उन के मायके पहुंचते ही और कई बार तो पहुंचने के पहले ही पति की चिट्ठी पहुंच जाती थी कि प्रिय, तुम्हारी याद सताती है, जल्द आ जाओ. अब मुझ से रहा नहीं जा रहा वगैरह.

कामकाजी और नौकरीपेशा पत्नियों के पति तो विरहाग्नि नाम के इस सुख से परिचित ही नहीं. सचिन धन्य है, भाग्यशाली है, जो सीमा से उस का विरह बरदाश्त नहीं हुआ और वह धर्म, जाति और सरहदों सहित तमाम सीमाएं तोड़ कर आ गई.

यह और बात है कि सावन परंपरा का पालन करते हुए वह मायके नहीं गई, बल्कि सीधे वाया नेपाल अपनी नई ससुराल भारत आई.

समझने वाले उसे जासूस समझते रहे, इस से उस अर्धपरिपक्व प्रेमिका की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा और न ही उस के अकुशल नाबालिग प्रेमी पर, जो मुग्ध भाव से अपनी प्रेयसी को निहारता रहता है.

किसी के प्रेम को अगर समझना और महसूसना है, तो उन्हें सीमा व सचिन के प्यार की गहराई में उतरने की कोशिश करनी चाहिए. वे दोनों कोई पैसे वाले, खास पढ़ेलिखे या बुद्धिजीवी नहीं हैं, इसलिए वे चालाक भी नहीं हैं. प्रेम की अभिव्यक्ति उन्होंने बेहद सहज ढंग से की है. उस में कोई लागलपेट नहीं है और जिस में ये चीजें होती हैं, वह प्यार नहीं धूर्तता होती है.

इस सोच से परे एक और सोच समानांतर चल रही है कि इस विचित्र दुनिया में बेमकसद कुछ नहीं होता है. जो कुछ भी घटता और होता है, उस के पीछे प्रकृति की कोई मंशा होती है. यह मंशा लोगों का मनोरंजन नहीं थी, बल्कि उन्हें यह मैसेज देना है कि प्यार जायज या नाजायज नहीं होता. वह वाकई रूढ़ियों को तोड़ सकता है, पूरा माहौल बदल सकता है. अब यह आप के ऊपर निर्भर है कि आप उस में क्या देखते हैं.

सचिन के घर वाले और महल्ले के लोगों ने विदेशी बहू को हाथोंहाथ लिया, उसे आशीर्वाद और तोहफे दे कर साबित कर दिया कि औरतें केवल युद्ध से नहीं, बल्कि प्रेम से भी जीती जा सकती हैं और हम भारतीयों में तमाम पूर्वाग्रह छोड़ते एक पाकिस्तानी विवाहिता को बतौर बहू स्वीकारने की हिम्मत और उदारता है. लेकिन हमारी बहूबेटियां ऐसा करती तो हम उन्हें काट डालते, त्याग देते या जीतेजी उन का श्राद्ध कर देते.

इस दोहरेपन का सार यह है कि भगत सिंह पैदा तो हो, लेकिन हमारे यहां नहीं, बल्कि पड़ोसी के यहां हो.

सीमा की मुंहदिखाई की रस्म तो न्यूज चैनल वालों ने पूरी कर ही दी थी, जो दिनरात उसे दिखाते रहे. गोदभराई जैसी किसी रस्म की नौबत सीमा ने आने ही नहीं दी, क्योंकि वह 4-4 बच्चे साथ ले कर आई थी. जिन के बारे में सोशल मीडिया के वीरों ने कहा कि बजरंगी भाईजान में सलमान खान जिस मुन्नी को पाकिस्तान छोड़ आया था, वह 4-4 मुन्ने ले कर वापस आ गई है.

सावन के महीने में फागुन जैसे हंसीमजाक हो रहे हैं. लोग राष्ट्रीय और अपनी रोजमर्राई तकलीफें, तनाव और दुखदर्द भूल कर सीमा व सचिन के प्रसंग पर चर्चा कर हलके हो रहे हैं, यह क्या कम है. टीवी का त्याग कर चुके लोगों ने भी इस लव स्टोरी को देखने के लिए अपना उपवास तोड़ा और कुछ देर के लिए ही सही, जिंदगी की जटिलताओं और घुटन को भूले तो क्यों न इस के लिए सीमा का आभार व्यक्त किया जाए, जिस ने सावन को सार्थक कर दिखाया.

सीमा का सौंदर्य देख सचिन से जलने वालों की भी कमी नहीं, जो सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स से नाउम्मीद हो चुके थे कि इस में फर्जी प्रोफाइल्स और नाम होते हैं. जिसे रिजवाना समझ रिक्वैस्ट भेजो और महीनों रातरात भर जाग कर गुफ्तगू करते रहो, आहें भरते रहो, वह आखिरी रील में रिजवान निकलता है. ऐसे मायूस हो चले युवकों के लिए सीमा और सचिन की प्रेम कहानी आशा का संदेश ले कर आई है.

अब फुरसतिए नौजवान नए जोश के साथ देशीविदेशी विवाहिताओं की प्रोफाइल्स पर जीजान से जुट गए हैं कि शायद उन की किस्मत में भी कोई सीमा या बारबरा ब्रह्माजी ने लिख छोड़ी हो.

इत्तिफाक से पोलैंड की बारबरा पोलाक भी पवित्र सावन के महीने में ही अपने प्रेमी शादाब आलम से मिलने झारखंड के गांव बरतुआ जा पहुंची.

सीमा की तरह विरह में जलती यह युवती भी कोयला या राख नहीं होना चाहती थी. सीमा की तरह ही वह भी खाली हाथ नहीं आई, बल्कि अपने आशिक के लिए बेटी को साथ ले कर आई, जिस से उसे ज्यादा मेहनत न करनी पड़े.

शादाब ने भी दरियादिली दिखाते हुए उस की बेटी को अपना लिया और अपना नाम भी दे दिया. सावन का विरह यूरोप में भी रंग दिखा रहा है.

इन दोनों मामलों ने जता दिया है कि जबजब भारतीय अपनी परंपराओं को भूलने लगेंगे तो उन्हें याद दिलाने विदेशी आएंगे.

बारबरा और शादाब भी शादी के बंधन में बंधने की ख्वाहिश जता रहे हैं. यही हाल अंजू का है, जो हाल ही में पाकिस्तान में अपने प्रेमी नसरुल्लाह के घर जा धमकी है.

मध्य प्रदश की रहने वाली अंजू भी 2 बच्चों की मां है, लेकिन बच्चों को साथ नहीं ले गई. हो सकता है कि नसरुल्लाह पहले से ही बच्चों के मामले में संपन्न हो.

हालफिलहाल तो मीडिया और खुफिया एजेंसियां इन दोनों की जन्म कुंडलियां खंगाल रहे हैं. शुरुआत में तो यही सामने आया है कि इन दोनों की दोस्ती भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हुई, फिर प्यार हो गया और सावन में ही शादी के रूप में व्यक्त हुआ. अंजू अंजू न रही फातिमा बन गई.

अंजू मूलतः हिंदू है, जिस के पूर्वजों ने कभी ईसाई धर्म अपना लिया था. उस का पति अरविंद भी जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि हिंदू ही रहा होगा, लेकिन वह भी पूर्वजों सहित ईसाई हो गया था. यहां तक कोई पेंच या लोचा स्टोरी में नहीं है, पर जल्द ही फसाद खड़ा हो भी सकता है. और हुआ तो इस बात पर होगा कि ईसाई मिशनरियां इफरात से धर्मांतरण कराती हैं.

अंजू ने नसरुल्लाह से निकाह कर इसलाम अपना लिया, ठीक वैसे ही जैसे सीमा ने सनातन आत्मसात कर लिया है यानी एक हिंदू लड़की जो ईसाई है, अब मुसलमान हो जाएगी. ऐसे में हम कैसे गुबार देखते रह सकते हैं. अब दिक्कत यह है कि अगर उस की घर वापसी करना हो तो वह कैसे होगी. उसे पहले मुसलमान से ईसाई और फिर ईसाई से हिंदू बनाया जाएगा या सीधे हिंदू धर्म में वापस ले लिया जाएगा. सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल अंजू को ले कर घरवापिसी विशेषज्ञों के सामने पहली दफा ऐसा धर्म संकट खड़ा होगा, इसलिए उम्मीद इस बात पर है कि वे इस ट्रिपल धर्म के चक्रव्यूह में उलझें ही नहीं.

इस फसाद में सावन किसी को नहीं दिखेगा कि अपने ननिहाल में पलीबढ़ी अंजू भी सीमा और बारबरा की तरह पति से नाखुश थी और मिलन का मौसमी लुत्फ उठाने पाकिस्तान नए बलमा के पास जा पहुंची.

दोष तो इन तीनों मामलों में पतियों का ज्यादा समझ आता है, जो अपनीअपनी बीवियों को प्यार और सुरक्षा नहीं दे पाए. वहीं इन तीनों को भी लगा होगा कि गलीमहल्ले, पड़ोस, कालोनी, शहर और देशप्रदेश में तो हर कोई प्यार करता है, क्यों न हम विदेशों में ट्राई मार कर देखें. इस से शौहरत भी मिलती है. इस लिहाज से इन का कोई दोष नहीं. असल दोष तो रोमांटिक सावन का है, जिस की रूमानी फीलिंग्स गुजरे कल की बातें होती जा रही हैं. हमें तो इन का शुक्रगुजार होना चाहिए, जो इन्होंने जताया और याद दिलाया कि प्यार करना और ऐसा प्यार करना, जो इन्होंने कर दिखाया उतना आसान काम भी नहीं जितना कि समझा जाता है.

अंजू को यह नागवार गुजरा कि सारी शोहरत सीमा बटोरे जा रही है, तो वह भी पाकिस्तानी भाभी बन कर जा पहुंची और सीमा का कर्ज उतार दिया.

नसरुल्लाह के घर और पड़ोस वाले भी उसे बहू स्वीकारते उस की बलैयां ले रहे हैं. दरियादिली की होड़ में वे भारतीयों से उन्नीस नहीं. यही सच्ची इनसानियत है कि धर्म, सरहदें, रंग और नस्ल भेद भुला कर मुहब्बतों की नई इबारतें गढ़ी जाएं. कट्टर होती दुनिया के लिए एकता, मानवता और भाईचारे का संदेश देने अब बुद्ध या महावीर पैदा नहीं होते, बल्कि सीमा और अंजू आ रही हैं, तो नियमकायदे, कानून भूल कर उन का स्वागत करने में हर्ज क्या है. बुद्ध और महावीर अपनी सोती हुई पत्नियों और बच्चों को छोड़ कर भाईचारे का संदेश देने निकले थे. इन तीनों ने पतियों व बच्चों का त्याग किया. जाहिर खुद के लिए नहीं, बल्कि कट्टर होती दुनिया को प्रेम और मानवता का संदेश देने के लिए और लोग हैं कि इस त्याग में भी षड्यंत्र तलाशे जा रहे हैं.

सिर्फ मोटापा नहीं, इन कारणों से भी निकलता है पेट

आमतौर पर पेट बढ़ने को लोग मोटा होना या वजन बढ़ना समझते हैं, हालांकि ऐसा हमेशा नहीं होता. पेट निकलने की समस्या को लोग अकसर अनदेखा कर देते हैं. पेट सिर्फ चरबी की वजह से ही नहीं बढ़ता है बल्कि इस के पीछे सूजन भी हो सकती है. लोग पेट के बढ़ने को वजन बढ़ने से ही जोड़ कर देखते हैं. अगर आप का वजन सामान्य है, या फिर आप अंडरवेट यानी सामान्य वजन से कम वजन वाले हैं और फिर भी पेट बढ़ रहा है तो इस के पीछे कई वजहें हो सकती हैं.

मौजूदा भागदौड़ भरी जिंदगी में बिजी जीवनशैली के चलते आजकल पेट की समस्या बड़ी ही कौमन हो गई है. जी हां, आज के समय में काफी लोग पेट निकलने की समस्या से परेशान हैं. बढ़ी हुई तोंद इंसान के न केवल लुक्स को खराब करती है बल्कि इस की वजह से कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतें भी हो सकती हैं.

पेट के बढ़ने के पीछे पेट में इन्फैक्शन यानी स्टमक फ्लू नाम की बीमारी हो सकती है. यह बीमारी शरीर के पाचनतंत्र में इन्फैक्शन फैलने और फिर सूजन होने के चलते होती है. इस की वजह से वैसे तो पेट से जुड़ी कईं दिक्कतें हो सकती हैं लेकिन उन में से एक है पेट का बाहर निकलना. दरअसल, यह पेट की सूजन हो सकती है जिसे आप एक्स्ट्रा चरबी या फिर पेट के बाहर निकलने का नाम दे रहे हैं.

पेट के बाहर निकलने या बढ़ने यानी स्टमक फ्लू की बीमारी के लक्षण काफी कौमन हैं और इसी वजह से हम उन्हें नज़रअंदाज़ भी कर देते हैं. भूख में कमी, पेटदर्द, जी मिचलाना , उलटी आना, त्वचा में हलकी जलन, मांसपेशियों में तकलीफ, वजन में कमी इस बीमारी के संकेत हो सकते हैं लेकिन हम इन संकेतों को यों ही इग्नोर कर देते हैं.

स्टमक की इस बीमारी का सब से ज्यादा खतरा गरमी के मौसम में होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि यह मौसम इस बीमारी के जीवाणुओं को पनपने के लिए सही माहौल देता है. यही वजह है कि इस मौसम में कटी सब्जी, फल, बासी खाना जल्दी खराब हो जाता है. मक्खी, मच्छरों के ज़रिए ये जीवाणु एक खाद्य पदार्थ से दूसरे तक जाते हैं और जब हम इन खाद्य पदार्थों को खाते हैं तो ये जीवाणु हमारे अंदर चले जाते हैं. सो, ऐसे खाने को खाने से या फिर दूषित पानी को पीने से इस बीमारी के फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है.

जिस्म में खाने या पीने की किसी चीज के जरिए जब ये जीवाणु आ जाते हैं तो 4 से 48 घंटे के भीतर शरीर में इन्फैक्शन फैल जाता है और इंसान बीमार हो जाता है. पेट की सूजन से इस बीमारी को बड़ी ही आसानी के साथ पकड़ा जा सकता है लेकिन इसे यों ही टाल दिया जाता है या फिर इसे एक्स्ट्रा चरबी समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है.

वहीँ, पेट निकलने की समस्या की वजह एक्सट्रा फैट भी हो सकता है लेकिन अगर आप का वजन ज्यादा नहीं है, फिर भी आप का पेट बढ़ रहा है तो समझिए कि आप इस बीमारी का शिकार ही हैं. इस के अलावा अगर ऊपर दिए गए लक्षणों में से कुछ लक्षण आप को महसूस हो रहे हैं तो भी आप को डाक्टर से सलाह लेने की जरूरत है.

पेट की चरबी का बढ़ना

सभी को अच्छा दिखना अच्छा लगता है लेकिन पेट की चरबी हमारी खूबसूरती को काम कर देती है. यह समस्या ज़्यादातर लेडीज में देखी जाती है. हालांकि, पेट की चरबी की समस्या आजकल आम हो गई है और हर उम्र के लोगों में यह पाई जाती है. भारत में 76 फीसदी आबादी मोटापे की चपेट में है.

पेट की चरबी की खास वजहें हैं:

1 टेंशन

टेंशन यानी तनाव लेने से शरीर में कोर्टिसोल नामक एक हार्मोन रिलीज होता है जिस के चलते हमारे पेट के आसपास चरबी बढ़ने लगती है. रोजमर्रा की जिंदगी में लोगों को कई तरह के तनाव होते हैं जिन से यह समस्या आम हो गई है. डाक्टरों का कहना है कि अगर आप अच्छा खाते हैं और एक्सरसाइज भी करते हैं तब भी तनाव की वजह से आप का वजन कम नहीं होगा जिस के कारण हृदयरोग, कैंसर जैसी दूसरी समस्याएं होती हैं.

2 धूम्रपान एवं शराब

वैज्ञानिकों ने शोध में कहा है कि धूम्रपान से आप की पूरी बौडी का का वजन आप के पेट में आ कर जमा हो जाता है, जिस के चलते पेट की चरबी की समस्या होती है. जो भी धूम्रपान और शराब के आदी हैं उन में यह समस्या ज्यादा देखी गई है.

3 खराब खानपान

आज का बदलता खानपान पेट की चराबी को बढ़ावा देता है. आजकल लोगों के खाने में पौष्टिक आहार कम, फास्ट फूड और तेल में ताली चीजें ज्यादा होती हैं जिस के चलते पेट की चरबी होना आम है. रोज ऐसी चीज़े खाना लोगों को पसंद तो हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि उन का खाना ही उन के शरीर को बिगाड़ रहा है.

4 नींद पूरी न होना

डाक्टरों का यह मानना है कि आजकल रोजमर्रा की जिंदगी में लोग अपनी नींद पूरी नहीं कर पाते, जिस की वजह से दिन पर दिन मोटापे की समस्या लोगों में बढ़ती जा रही है. हमारा शरीर एक मशीन की तरह है जिसे आराम की जरूरत भी पड़ती है. हर इंसान को कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद लेनी जरूरी है. इस से इंसान का दिमाग तनावमुक्त रहता है और जिस्म फ्रेश महसूस करता है. अगर वजन काम करना है तो नींद पूरी करनी भी जरूरी है.

बहुत से लोग पेट की चरबी को कम करने के लिए जिम जाते हैं, कुछ लोग दवाइयां खाते हैं जिस पर वे हजारों रूपए खर्च कर देते हैं पर एक शोध में यह पाया गया है कि 30 मिनट रोजाना तेज चलने से आप अपनी पेट की चरबी कम कर सकते हैं. हफ्ते में मात्र 5 दिनों की तेज वाक आप के पेट की चरबी को काम करने में आप की काफी मदद कर सकती है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि वाक हमारे रोज के कामों में शामिल होनी चाहिए. वाक से शरीर फैट रिलीज़ करता है, जिस के नतीजे में शरीर में जमी हुई चरबी कम होती है. यही नहीं, रोज की वाक हृदयरोग की समस्या को दूर रखने में भी मदद करती है, हमारा ब्लडप्रेशर अच्छा रखती है और शुगर होने की सम्भावना को कम करती है. रोज की वाक के साथ हमें अपना खानपान भी सही करना चाहिए, पौष्टिक आहार लेना चाहिए और तलीभुनी चीजों से दूर रहना चाहिए क्योंकि हमारा खाना ही हमारी सेहत तय करता है. सो, आप भी अलर्ट हो जाएं अपनी सेहत के लिए और पेट के निकलने से बचें ताकि चेहरे से ही नहीं बल्कि पूरे जिस्म से खूबसूरत दिखें.

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