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जब बीवी बन जाए घर में बौस

सम्मान न खोने दें: आप ने प्यारप्यार में कुछ ज्यादा ही छूट तो नहीं दे दी जो उस का गलत फायदा उठा कर वह आप के सिर पर सवार होने की कोशिश

कर रही हो. अत: प्यार करें, लेकिन अपने सम्मान को न खोने दें.

अपने दब्बूपन को बदलें: खुद को भी टटोलें कि कहीं आप कुछ ज्यादा ही दब्बू तो नहीं हैं  हर जगह चाहे पड़ोसी से लड़ाई हो या रिश्तेदारी में कोई बात, आप अपनी बीवी को आगे तो नहीं कर देते  अगर ऐसा है तो सब से पहले अपनी इस आदत को बदलें, क्योंकि बाहर रोब जमातेजमाते यह ऐटिट्यूड वह घर में आप पर भी अपनाने लगी है.

हिम्मत भी दिखाएं: हर बार टालना भी कोई उपाय नहीं है. इसलिए एक बार हिम्मत कर के आमनेसामने बात कर ही लें कि आखिर इस तरह के व्यवहार की वजह क्या है  पत्नी को साफसाफ शब्दों में यह भी समझा दें कि अब इस तरह की बातें आप और सहन नहीं करेंगे. हो सकता है आप की इस धमकी के बाद वह सुधर जाए.

बिजी रखें: आप खुद को बिजी रखें ताकि आपस में उलझने के मौके कम आएं. जब आप खुद को बिजी रखेंगे तो वह भी आप से कम ही बोलेगी.

ओवर रिऐक्ट न करें: यह भी हो सकता है कि वह सही बात कह रही हो, बस कहने का अंदाज थोड़ा कर्कश हो. यह उस का नेचर भी हो सकता है, इसलिए यह भी सोचें कि कहीं आप ही तो ओवर रिऐक्ट नहीं कर रहे

राकेश अपने दफ्तर में सीनियर पोस्ट पर काम करता है. औफिस में उस की खूब चलती है. कई लोग उस के नीचे काम करते हैं. मगर उस का यह रोब और रुतबा घर आते ही खत्म हो जाता है, क्योंकि घर आते ही बीवी का मिजाज देखते ही उस के हौसले पस्त हो जाते हैं. बीवी के आगे उस की एक नहीं चलती. बीवी की जीहुजूरी के अलावा राकेश के पास कोई और चारा नहीं है. आखिर बात घर में शांति की है.

यह कहानी सिर्फ राकेश की ही नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से पति हैं, जिन्हें बीवी के इस तरह के ऐटिट्यूड को ले कर हमेशा शिकायत रही है. लेकिन वे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते. माना यह समस्या मुश्किल है, लेकिन ऐसी भी नहीं कि इस से निबटा ही न जा सके. बस इस के लिए थोड़ी सी समझदारी और हिम्मत की जरूरत है.

इस चिकचिक डौट कौम से कैसे बचें

टहल आएं: जब बीवी ऐसा ऐटिट्यूड दिखाने के मूड में हो तो इधरउधर टहल लें. मतलब उस सिचुएशन में पड़ने से बचें. उस स्थिति से जितना बचेंगे तकरार की संभावना उतनी ही कम होगी.

काम करें लेकिन सोचसमझ कर: अगर दफ्तर से आते ही या घर पर खाली बैठा देख कर वह आप को घर का काम करने का हुक्म सुनाती है और खुद टीवी के सामने बैठ जाती है तो उस से कहें कि आप भी अभी थक कर आए हैं या अभी मैं रिलैक्स कर रहा हूं, थोड़ी देर बाद दोनों मिल कर सारा काम निबटा लेंगे. घर का काम पुरुष नहीं कर सकते, ऐसा नहीं है, लेकिन वह किस ढंग और ऐटिट्यूड के साथ कराया जा रहा है उस पर डिपैंड करता है.

वार्निंग दें: न तो आप खुद बेवजह बीवी पर चिल्लाएं और न ही उसे ऐसा करने दें. उसे समझाएं कि बात आराम से भी हो सकती है वरना चिल्लाना आप को भी आता है. इस से वह अगली बार आप से बदतमीजी करने से पहले एक बार जरूर सोचेगी.

आपसी विश्वास बढ़ाएं: बीवी को प्यार से भी समझाया जा सकता है कि उसे उस का इस तरह का व्यवहार आप को बिलकुल पसंद नहीं है. उसे खुद में थोड़ा बदलाव लाने की जरूरत है. साथ में यह भी कहें कि अगर उसे भी आप में कुछ खामियां नजर आती हैं तो आप भी खुद को बदलने को तैयार हैं. इस से आप दोनों के बीच आपसी समझ और विश्वास बढ़ेगा.

नेक सलाह

– ज्यादा रोब जमाने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि पति की नजरों में आप की इज्जत एक धेले की भी न रह जाए.

– हो सकता है कि आप दफ्तर में अपने पति की बौस हों, लेकिन यह बात कभी न भूलें कि यह घर है आप का दफ्तर नहीं. इसलिए हर बात में हुक्म न चलाएं.

– पति की तो छोडि़ए, बच्चे भी आप से डरने लगेंगे और पीठ पीछे आप की चुगली करेंगे कि मम्मा कितनी बुरी हैं और यह बात आप को कभी पसंद नहीं आएगी.

ऐटिट्यूड के कारण जानें

– क्या वह आप से कहीं ज्यादा गुड लुकिंग है

– क्या वह दफ्तर में भी आप की बौस है

– क्या वह बहुत अमीर घर से है

– क्या वह अपने मायके में बच्चों में सब से बड़ी है जो अपने भाईबहनों पर रोब चलातेचलाते यह उस की आदत हो गई

– क्या आप दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हैं, जिन की वजह से पत्नी फ्रस्ट्रेट फील करती हो और उस का गुस्सा वह आप पर निकालती हो

जब बेवजह आए गुस्सा

यदि आप को अकसर गुस्सा आता है और आप अपने साथी पर बेवजह चिल्लाते हैं, तो आप को अपने खून में ग्लूकोज के स्तर की जांच करानी चाहिए. ग्लूकोज का स्तर सामान्य से कम होने पर लोग गुस्सैल और आक्रामक हो जाते हैं.

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में संचार एवं मनोविज्ञान के प्रोफैसर ब्रैड बुशमैन का कहना है कि अध्ययन से पता चला है कि किस तरह भूख जैसा सामान्य सा कारक भी परिवार में कलह, लड़ाईझगड़ा और कभीकभी घरेलू हिंसा की वजह बन जाता है.

शोध में 107 विवाहित युगलों पर अध्ययन किया गया, जिस में हर जोड़े से पूछा गया कि अपने विवाहित जीवन से संतुष्ट होने के बारे में उन की क्या राय है  21 दिनों तक किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि विवाहित जोड़े में हर शाम ग्लूकोज का स्तर साथी के साथ संबंधों पर प्रभाव डालता है.

जिन लोगों में ग्लूकोज का स्तर कम पाया गया, वे अपने साथी पर ज्यादा गुस्सा करते हैं, उन पर हावी होने की कोशिश कर उन्हें दबाने के प्रयास में तेज आवाज में बात करते हैं. ग्लूकोज का स्तर कम होने से उत्पन्न भूख और क्रोध की स्थिति बेहद करीबी रिश्तों को भी प्रभावित कर सकती है

मैं गृहिणी हूं और मैं जानना चाहती हूं कि फाइब्रौयड्स की समस्या क्या होती है?

सवाल

मैं 35 वर्षीय गृहिणी हूं. मैं जानना चाहती हूं कि फाइब्रौयड्स की समस्या क्या होती है?

जवाब

फाइब्रौयड कैंसर रहित ट्यूमर होता है, जो गर्भाशय की मांसपेशीय परत में विकसित होता है. इसे यूटरिन फाइब्रौयड मायोमास या फाइब्रोमायोमास भी कहते हैं. जब गर्भाशय में केवल एक ही फाइब्रौयड हो तो उसे यूटरिन फाइब्रोमा कहते हैं. फाइब्रौयड का आकार मटर के दाने से ले कर तरबूज के बराबर हो सकता है. कभीकभी इन ट्यूमरों में कैंसरग्रस्त कोशिकाएं भी विकसित हो जाती हैं जिन्हें लियोमायोसारकोमा कहते हैं. हालांकि इस तरह के मामले बहुत कम देखे जाते हैं.

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छुपाएं नहीं दिखाएं बेबी बंप्स

वर्ष 2011 में मलेशियन डेयरी फ्रीसो ने जब मलेशियाई गर्भवती महिलाओं को अपने लुक्स और बढ़ते पेट के आकार को लेकर सैल्फ कोंशियसनैस से उबरने में मदद के उद्देश्य से फेसबुक पर कैंपेन चलाया था तब इस कैंपेन में देश की महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. कैंपेन के तहत गर्भवती महिलाओं को अपने बेबी बंप्स के साथ एक पिक्चर क्लिक कर के फ्रीसो के पेज पर अपलोड करनी थी.

मलेशियन सैलिब्रिटी  डीजे मम द्वारा इस कैंपेन में सब से पहले बेबी बंप वाली तस्वीर अपलोड की गई. इस के बाद तो मलेशियन महिलाओं ने हिचकिचाहट के तमाम पैमानों को दरकिनार कर अपनी बेबी बंप्स के साथ तस्वीरें अपलोड करना शुरू कर दीं. इस कैंपेन द्वारा 20000 से भी अधिक मलेशियन गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान लुक्स को लेकर होने वाली झिझक को दूर करने का प्रयास किया गया था.

यदि हम भारत जैसे विकसित देश की बात करें, जहां डिजिटल क्रान्ति वर्षों पहले ही दस्तक दे चुकी है, वहाँ इस तरह का डिजिटल कैंपेन अब तक नहीं किया गया जिस में आम गर्भवती महिलाओं ने हिस्सा लिया हो. मगर भारत की कुछ सैलिब्रिटीज द्वारा अपने बेबी बंप्स की तस्वीरें ट्वीट करने या इंस्टाग्राम पर अपलोड करने के कई मामले देखे गए हैं.

समाज की दोहरी मानसिकता में फंसे बेबी बंप्स 

हाल ही में अभिनेत्री करीना कपूर खान द्वारा कराए गए प्री मैटरनिटी फोटोशूट के चर्चा में आने के बाद जरूर 1-2 गर्भवती महिलाओं ने इसे खुद पर आजमाया है मगर उन के फोटोशूट को सोशल मीडिया पर ज्यादा सराहा नहीं गया. इंदौर की वीर वाधवानी इन्हीं महिलाओं में से एक है. उन्होने करीना कपूर के फोटोशूट की देखादेखी यह शूट कराया और उन्हीं के पोज की नकल भी की. मगर जहां करीना कपूर खान को उनके फोटोशूट के लिए दर्शकों की प्रशंसा मिली वहीं वीर को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लोगों वीर के इस स्टेप को एक्शन सीकिंग स्टंट तक कह दिया . फिर क्या वीर की तस्वीरें एल्बम की परतों में बंद हो कर रेह गईं बस मगर यहाँ लोगों की डिप्लोमैटिक सोच पर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि एक सैलिब्रिटी और एक आम महिला, दोनों ही एक ही अवस्था में हैं मगर व्यवहार दोनों के साथ अलगअलग क्यों?

इस बात का जवाब देते हुये कानपुर स्थित सखी केंद्र की संचालिका एवं सोशल एक्टिविस्ट नीलम चतुर्वेदी कहती हैं, ‘समाज महिलाओं के चरित्र को हमेशा खुद से ही वर्गीकृत कर देता है. यदि इस संबंध में बात की जाये तो समाज की सोच यहाँ दोहरी हो जाती है. करीना कपूर खान एक्ट्रेस है तो फोटो खिंचवाना उसके पेशे का हिस्सा है. मगर वीर जैसी आम महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं क्योंकि समाज उन्हें बन्दिशों में जकड़ कर रखना चाहता है और यदि वे इस बंदिश को तोड़ती हैं तो उनका चरित्र हनन कर उन्हें कदम पीछे खींचने को मजबूर कर दिया जाता है. लोग उनकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं जिससे घबराकर वह अपने द्वारा लिए गए फैसलों को गलत समझने लगती हैं.

मोटे दिखने की हिचकिचाहट 

भारत में यह ट्रैंड नया नहीं है. बीते 5-6 वर्षों से बॉलीवुड सेलेब्स इस तरह के फोटोशूट करा रहे हैं. हॉलीवुड में तो बरसों पहले ही यह ट्रैंड आगया था. माना जाता है की बेबी बंप्स के साथ ओपन होने का ट्रैंड हॉलीवुड एक्ट्रेस डेमी मूर ने शुरू किया था. बॉलीवुड एक्ट्रेसेस में भी प्री मैटरनिटी का क्रेज दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और उनकी देखादेखी आम महिलाएं भी बेबी बंप्स के साथ प्री मैटरनिटी फोटोशूट में दिलचस्पी दिखा रही हैं. बावजूद इस के सोशल मीडिया पर केवल अभिनेत्रियों के ही इस तरह के फोटोशूट देखने को मिलते हैं.

माना की पुरानी घिसिपीटी परम्पराओं और धार्मिक ढकोसलों के अनुसार गर्भवती महिला को ज्यादा किसी के सामने नहीं आने की अनुमति होती है. घर के बड़े बुजुर्ग इस अवस्था में महिलाओं को पेट ढक कर रखने की भी सलाह देते हैं. मगर मगर 21 वीं सदी की महिलाएं इन ढकोसलों को पीछे छोड़ कर काफी आगे बढ़ चुकी हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वह महिलाएं हैं, जो 9वें महीने में भी दफ्तर जाना नहीं छोड़ती. मगर बात जब बेबी बंप्स शोऑफ की आती है तो यही महिलाएं अपने कदम पीछे खींच लेती हैं.
दिल्ली मैट्रो में करोल बाग से वैशाली तक रोजाना सफर करने वाली मयंका की प्रैगनैंसी का 8वां महिना चल रहा है. मयंका का पहला बेबी है इसलिए वह बेहद एक्साइटेड हैं लेकिन बेबी बंप के साथ पब्लिक प्लेस पर उन्हें थोड़ा अटपटा लगता हैं. इसलिए मयंका हमेशा दुपट्टे से अपना पेट ढाँक कर रखती हैं. वह ऐसा क्योंक करती हैं ? पूछने पर वह बताती हैं, ‘बड़ा सा पेट थोड़ा अजीब लगता है. हाला कि जहां जाओ सब केयर करते हैं मगर निगाह तो मेरे पेट पर जाती ही है, तो थोड़ा खुद को लगता है कि कैसी दिख रही हूँ. ’

मयंका अकेली नहीं बल्कि हर गर्भवती महिला की भारत में यही कहानी है. बढ़ा हुआ पेट लेकर कैसे किसी के सामने जाएँ? ऐसे में प्री मैटरनिटी फोटोशूट कराने का हौसला कम ही महिलाएं दिखा पाती हैं.
ऐसी ही बुलंद हौसले वाली महिला हैं दिल्ली निवासी हीना. हीना ने 2013 में अपनी पहली संतान को जन्म देने से 2 दिन पूर्व ही प्री मैटरनिटी फोटोशूट कराया था. अपना अनुभव बताते हुये वह कहती हैं, ‘पहले हिचकिचाहट हुई थी थोड़ी. लग रहा था कि मोटी दिखूंगी. मगर पति और सास के सहियोग से यह मेरे लिए आसान हो सका.

घरवालों के साथ से बन सकती है बात 

भारतीय लोगों की मानसिकता गर्भवती महिला के शरीर में होने वाले प्रतिदिन के बदलाव को अलगअलग रूप में परिभाषित करती है. इनमें सबसे पहले उस के खुद के घरवाले आते हैं. बस यहीं पर गर्भवती का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वो खुद को दूसरों की नज़र से देखने लगती है. इस अवस्था में महिलाओं की साइकोलौजी के बारे में बात करते हुये मनोचिकित्सक प्रतिष्ठा त्रिवेदी कहती हैं, ‘गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं. उनका वजन बढ़ जाता है,शरीर का आकार बदल जाता है, चेहरे पर परिपक्वता आजाति है. इन्हें आसानी से स्वीकार करना हर महिला के बस में नहीं होता. अलगअलग लोग जब उनके लुक्स के लिए अलगअलग बात करते हैं, उन्हें सलाह देने लगते है, तो उनका थोड़ा बहुत असहज होना स्वाभाविक है. मगर गर्भवती के बेबी बंप्स दिखना तो प्राकृतिक है. इस बात को समझना मुश्किल नहीं है. ’
कई बार पति द्वारा मज़ाक में फिगर खराब होने की बात सुन कर भी गर्भवती महिला भावुक हो जाती हैं. यहाँ पति को इस बात का ध्यान रखना है कि मज़ाक का विषय सावधानी से चुने. पुष्पावति सिंघानिया रिसर्च इंस्टिट्यूट में हैड गाइनाक्लौजिस्ट राहुल मनचंदा कहते हैं, ‘बेबी बंप्स केवल 7वें, 8वें और 9वें महीने में ही मैच्योर स्टेज पर होते हैं. प्रसव के बाद साल भर के अंदर महिलाएं वापिस से अपने पुराने बॉडी शेप को पा सकती हैं. इसलिए वजन कभी कम नहीं होगा यह सोचना गलत है. वजन को लेकर महिलाओं का भावुक होना समझा जा सकता है क्योंकि हार्मोनल बदलाव से उनका मूड स्विंग होता रेहता है. असल में तो वह भी यह बात जानती हैं कि ऐसा हमेशा के लिए नहीं है. मगर महिलाओं को इस बात का बारबार एहसास करना पड़ता है ताकि वह अवसाद जैसी गंभीर स्थिति का शिकार न हो. यह काम केवल पति और महिला के घरवाले ही कर सकते हैं.
प्री मैटरनिटी फोटोशूट भी महिलाओं की लुक्स को लेकर चिंता पर काबू पाने का अच्छा विकल्प है . इस बाबत चाइल्ड फोटोग्राफर साक्षी कहती हैं, ‘कहते हैं कि मानव प्रकृति कि सबसे खूबसूरत संरचना है. तो फिर एक नई ज़िंदगी को जन्म देने वाली महिला की यह अवस्था बदसूरत कैसे हो सकती है. बल्कि इस अवस्था में हर दिन होने वाले परिवर्तनों को तस्वीर में कैद करके रख लेना चाहिए. ताकि बाद में यही तस्वीरें अपने बच्चे को दिखाई जा सकें. बच्चे भी इन तस्वीरों की मदद से खुद को भावनात्मक रूप से माँ से जोड़ पाते हैं. ’

वैसे बेबी बंप्स को फ़्लौंट न होने देने कि चिंता सिर्फ शहरी महिलाओं को होती है. गाँव की औरतों को इसकी कोई चिंता नहीं होती. इस बाबत मनोचिकित्सक प्रतिष्ठा कहती हैं, ‘शहर की हर महिला स्लिम दिखना चाहती है. यह गलत भी नहीं ओवरवेट होना बीमारियों को न्यौता देना होता है. मगर प्रैगनैंसी कोई बीमारी नहीं है. बच्चे की ग्रोथ के साथसाथ बेबी बंप्स मैच्योर होते जाते हैं . यह एक प्रक्रिया है. अच्छी बात है की आधुनिक समय में महिलाएं इस पूरी प्रक्रिया को तस्वीरों में कैद कर सकती हैं. बाद में इन्हीं तस्वीरों को देख कर पुरानी यादें ताजा की जाती हैं. ’

अंधविश्वास से रहें दूर 

इन सब के अतिरिक गर्भवती महिलाओं को कैमरे से जुड़े मिथों पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए. एक मिथ के अनुसार गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की इलैक्ट्रोनिक किरणें गर्भवती के पेट पर नहीं पड़नी चाहिए जब कि इस मसले पर गाइनाक्लौजिस्ट डॉक्टर राहुल की राय अलग है. वह कहते हैं, ‘पहले ट्राइमिस्टर में, जब बच्चे के ऑर्गन्स बन रहे होते हैं तब एक्सरे कराना माना होता है मगर उसके बाद कोई परेशानी नहीं है. जहां तक बात कैमरे से तस्वीर लेने की है तो विज्ञान में ऐसे प्रमाण कहीं नहीं मिलते कि बच्चे या माँ पर इसका कोई बुरा असर पड़ता हो.’ कई लोग यह भी कहते हैं कि गर्भवती महिला के तस्वीर खिंचवाने से बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ता है और पेट का आकार कम हो जाता है. मगर डॉक्टर राहुल इस बात का भी खंडन करते हैं. वह कहते हैं, ‘पेट का आकार कम है तो इंट्रायुट्राइन ग्रोथ रिटारडेशन की संभावना होती है, जिसमें बच्चे की ग्रोथ ठीक नहीं होती. मगर इसकी वजह गर्भवती द्वारा अच्छी डाइट न लेना होता है. मगर पेट का साइज ज्यादा है तो यह भी अच्छी बात नहीं ऐसे में बच्चा मधुमेह का शिकार हो सकता है. इन दोनों ही स्थितियों का कैमरे से कोई लेना देना नहीं होता है.’

अतः प्री मैटरनिटी फोटोशूट को हौआ समझने या गर्भवती द्वारा अपने बेबी बंप्स के साथ सोशल मीडिया में फोटो अपलोड करने को आलोचना का विषय बनाना केवल मानसिक संक्रामण की निशानी है. जिसका इलाज किसी भी चिकित्सक के पास नहीं है.

राहुल गांधी की जीत पर राजा की फजीहत, अब क्या करेंगे मोदी

देश की महाअदालत यानि उच्चतम न्यायालय ने मोदी उपनाम को ले कर की गई टिप्पणी को ले कर आपराधिक मानहानि मामले में काग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर 4 अगस्त, 2023 को रोक लगा दी. 2019 में उन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.

सूरत की मजिस्ट्रैट कोर्ट ने राहुल गांधी को इस मामले में 2 साल कैद की सजा सुनाई थी. इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद राहुल गांधी ने महाअदालत की ओर रुख किया था.

विषाक्त माहौल

दरअसल, आज देश में भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद राजनीति और समाज में जो माहौल विषाक्त हुआ है उस की नजीर शायद आजाद हिंदुस्तान में किसी भी शोधकर्ता को नहीं मिल सकती. राहुल गांधी से भयभीत भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सरकार किस कांग्रेस को कमजोर करना चाहती है इस का सब से बड़ा उदाहरण है राहुल गांधी का मोदी उपनाम मानहानि मामला. जिस पर देश के आवाम की ही नहीं दुनिया की निगाहें लगी हुई थीं.

सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि मानहानि के मामले में देशभर में लाखों मामले आज भी चल रहे हैं और पहले भी चले होंगे मगर कभी भी किसी को इतनी कठोर सजा नहीं मिली होगी. सब से बड़ी बात यह है कि इस फैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी के सभी नेताओं के चेहरे जहां पहले खिले हुए थे, अब मुरझाए दिखाई दिए.

गलत सोच

उच्चतम न्यायालय के फैसले का किसी भी बड़े नेता ने स्वागत नहीं किया है. आमतौर पर राजनीति को खेल भावना से लिया जाना चाहिए, देशसेवा की भावना से लिया जाना चाहिए. अगर आज भाजपा देश की सत्ता चला रही है और देश का विकास करने का प्रयास कर रही है तो कल कांग्रेस थी और उस ने ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई है। मगर इस भावना से हट कर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं को नेस्तनाबूद कर दिया जाए और उन की कमर ही तोड़ दी जाए ताकि कोई भी चुनाव जीत ही न पाए और हमारी सत्ता अबाध गति से चलती रहे. यह सोच लोकतंत्र के लिए बेहद नुकसानप्रद है.

दरअसल, निचली अदालत से सजा के कारण केरल के वायनाड से राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता भी समाप्त कर दी गई थी. अब उस के लिए भी लोकसभा का रास्ता साफ हो गया है.

न्याय जिंदा है

देश की महा अदालत में जो घटनाक्रम गठित हुआ वह कुछ इस प्रकार था : सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते समय कोई कारण नहीं बताया, सिवाय इस के कि उन्हें अवमानना मामले में शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी थी.

दरअसल, शीर्ष अदालत ने रफाल विमान खरीद सौदा मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन की ‘चौकीदार ही चोर है’ टिप्पणी को गलत तरीके से बताने के लिए राहुल गांधी द्वारा बिना शर्त माफी के बाद उन के खिलाफ अवमानना काररवाई बंद करते हुए भविष्य में उन्हें और अधिक सावधान रहने की चेतावनी दी गई थी.

कुल मिला कर राहुल गांधी को जो न्याय मिला है वह लोकतांत्रिक इतिहास में दर्ज हो गया। यह एक ऐसा फैसला है जो आज की राजनीति का चरित्र उजागर कर गया है.

राहुल गांधी लड़ पाएंगे चुनाव

देश की महा अदालत ने कहा,” जब तक राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक दोषसिद्धि पर रोक रहेगी.”

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाली का रास्ता साफ हो गया है. वे 2024 का समर लड़ सकेंगे और नेतृत्व कर सकेंगे. अब राहुल गांधी या उन के प्रतिनिधि को दोषसिद्धि पर रोक के आदेश की प्रति लोकसभा सचिवालय को दिखानी होगी. अब जब सचिवालय को आदेश की प्रति मिल जाएगी तो वह राहुल की अयोग्यता को समाप्त करने के संबंध में अधिसूचना जारी करने की प्रक्रिया शुरू करेगा.

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तत्काल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात कर राहुल गांधी की सदस्यता जल्द से जल्द बहाल करने का आग्रह किया है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खङगे ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया है और कहा है कि देखना है कि अब कब तक और कितना समय लगेगा राहुल गांधी की सदस्यता बहाली पर. दूसरी तरफ, एक बार फिर राहुल गांधी ने बड़ी बात अपने स्वभाव के अनुरूप कही है कि वे अपना काम ईमानदारी से करते रहेंगे.

Kumkum के 21 साल हुए पूरे, जूही-हुसैन ने फैंस को दिया गिफ्ट

Juhi Parmar And Hussain Kuwarjerwala Dance Video : छोटे पर्दे के सबसे पसंदीदा शो ‘कुमकुम- एक प्यारा सा बंधन’ (Kumkum- Ek Pyaara Sa Bandhan) की यादें आज भी लोगों के जहन में जिंदा है. स्टार प्लस का ये सीरियल आज के ही दिन 21 साल पहले शुरू हुआ था. इस डेली सोप ने लगभग 7 सालों तक टीवी पर राज किया था.

शो के मुख्य किरदार एक्ट्रेस जूही परमार और हुसैन कुवाजरवाला के साथ-साथ बाकी एक्टर-एक्ट्रेस को भी दर्शकों का खूब प्यार मिला था. जूही-हुसैन की कैमेस्टी लोगों को इतनी पसंद आई थी कि ये जोड़ी टीवी की पसंदीदा जोड़ी बन गई थी. अब सीरियल के 21 साल पूरे होने पर जूही परमार और हुसैन ने अपने फैंस के लिए एक क्यूट डांस वीडियो शेयर किया है.

कुमकुम अवतार में नजर आई जूही 

इस डांस वीडियो में जूही परमार (Juhi Parmar) हुसैन (Hussain Kuwarjerwala) संग ‘बनके तेरा जोगी’ गाने पर ठुमके लगा रही हैं. वीडियो में देखा जा सकता है कि पहले जूही जीन्स और टॉप में डांस कर रही है और फिर बाद में कुमकुम के अवतार में आ जाती हैं.

जूही ने 21 साल की दोस्ती को किया याद

इस वीडियो को शेयर करते हुए जूही परमार (Juhi Parmar) ने हुसैन के लिए एक खूबसूरत-सा पोस्ट भी लिखा है. कैप्शन में एक्ट्रेस ने लिखा, “कुमकुम के 21 साल का मतलब हमारी दोस्ती के भी 21 साल हैं. हम कुमकुम के सेट पर मिले और बाकी इतिहास है. लोगों ने दोनों की केमिस्ट्री ऑनस्क्रीन देखी, लेकिन हमारे लिए ये पर्दे के पीछे की हमारी दोस्ती भी थी, जहां हम खूब हंसे और साथ में बेहतरीन समय बिताया. कभी-कभी हम सालों तक नहीं मिलते और फोन पर भी बात नहीं करते, लेकिन जब मिलते हैं तो ऐसा कभी नहीं लगता कि कभी कोई दूरी रही हो.”

लोगों ने वीडियो पर लुटाया प्यार

इसके आगे उन्होंने (Juhi Parmar) लिखा, “हमारी दोस्ती निर्बाध है और यही इसकी खूबसूरती है. वही पागलपन भरी नोक-झोंक, हंसी-मजाक और लगातार बक-बक. बस और क्या चाहिए. हमारी टॉम एंड जेरी वाली दोस्ती उसी समय शुरू हुई जब सुमित कुमकुम सभी की सबसे पसंदीदा ऑनस्क्रीन जोड़ी बन गए और मुझे आशा है कि यह वैसा ही रहेगी.”

आपको बता दें कि जूही और हुसैन (Hussain Kuwarjerwala) का ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और लोग जमकर अपनी पसंदीदा जोड़ी पर प्यार लुटा रहे हैं.

साउथ एक्टर Mohan की सड़क पर पड़ी मिली लाश, भीख मांगने को थे मजबूर

South Actor Mohan Death: साउथ सिनेमा के जाने-माने एक्टर मोहन की मौत हो गई है. मोहन की मौत की खबर सुनने के बाद उनके फैंस समेत तमिल स्टार्स को झटका लगा है. दरअसल बीते दिन तमिलनाडु के मदुरै शहर के थिरुपरनकुंद्रम इलाके में एक्टर की लाश सड़क पर संदिग्ध परिस्थितियों में पाई गई.

काम ना मिलने से थे परेशान

मोहन ने कमल हासन समेत कई बड़े स्टार्स के साथ काम किया था. इसके अलावा उन्हें ‘नान कडुवुल’ फिल्म में आर्य की मुख्य भूमिका के लिए भी जाना जाता हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मोहन (Actor Mohan) को पिछले कई समय से फिल्मों में काम नहीं मिल रहा था जिस कारण वह मदुरै के थिरुपरनकुंड्रम में शिफ्ट हो गए थे. उनकी पत्नी का 10 साल पहले निधन हो गया था, जिसके बाद से वह गरीबी में जी रहे थे. उनकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गई थी कि वो भीख मांगने के लिए मजबूर थे.

पहचान में भी नहीं आ रहा था शव

आपको बता दें कि 31 जुलाई को मोहन की मौत हुई थी. उनका शव सड़क पर संदिग्ध हालात में मृत पाया गया था, उनकी (Actor Mohan)हालत इतनी खराब थी कि शक्ल पहचान में भी नहीं आ रही थी. सड़क पर शव को पड़े देख कुछ ही समय में लोगों की वहां भीड़ जुट गई जिसके बाद पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस की जांच में पता चला कि वह एक्टर मोहन का शव था. फिलहाल पुलिस ने मोहन के परिवार वालों को उनकी मौत की सूचना दे दी है.

फिल्म ‘अप्पोर्वा सगोधरंगल’  से मिली थी प्रसिद्धि

साल 1989 में आई फिल्म ‘अप्पोर्वा सगोधरंगल’ में मोहन ने सुपरस्टार कमल हासन के बेस्‍ट फ्रेंड की भूमिका निभाई थी, जिसमें उनके रोल को काफी पसंद किया गया था. इसके बाद मोहन (Actor Mohan) को बतौर कॉमेडी एक्टर कई बड़ी फिल्मों में काम करने का मौका मिला था लेकिन पिछले कुछ समय से उन्हें एक भी फिल्म में कास्ट नहीं किया गया, जिससे वह काफी परेशान थे.

Friendship Day Special : दोस्ती- क्यों अनिकेत ने पिता के दबाव में शादी की?

आकांक्षाखुद में सिमटी हुई दुलहन बनी सेज पर पिया के इंतजार में घडि़यां गिन रही थी. अचानक दरवाजा खुला, तो उस की धड़कनें और बढ़ गईं.

मगर यह क्या? अनिकेत अंदर आया.दूल्हे के भारीभरकम कपड़े बदल नाइटसूट पहन कर बोला, ‘‘आप भी थक गई होंगी. प्लीज, कपड़े बदल कर सो जाएं. मुझे भी सुबह औफिस जाना है.’’

आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, यह सुन कर और झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली. अपने सूटकेस से खूबसूरत नाइटी निकाल कर पहनी और फिर वह भी बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गई.

अजीब थी सुहागसेज. 2 अनजान जिस्म जिन्हें एक करने में दोनों के परिवार वालों ने इतनी जहमत उठाई थी, बिना एक हुए ही रात गुजार रहे थे. फूलों को भी अपमान महसूस हुआ. वरना उन की खुशबू अच्छेअच्छों को मदहोश कर दे.

अगले दिन नींद खुली तो देखा अनिकेत औफिस के लिए जा चुका था. आकांक्षा ने एक भरपूर अंगड़ाई ले कर घर का जायजा लिया.

2 कमरों का फ्लैट, बालकनी समेत अनिकेत को औफिस की तरफ से मिला था. अनिकेत एअरलाइंस कंपनी में काम करता है. कमर्शियल विभाग में. आकांक्षा भी एक छोटी सी एअरलाइंस कंपनी में परिचालन विभाग में काम करती है. दोनों के पिता आपस में दोस्त थे और उन का यह फैसला था कि अनिकेत और आकांक्षा एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच रहेंगे.

आकांक्षा को पिता के फैसले पर कोईर् आपत्ति नहीं थी, पर अनिकेत ने पिता के दबाव में आ कर विवाह का बंधन स्वीकार किया था. आकांक्षा ने औफिस से 1 हफ्ते की छुट्टी ली थी. सब से पहले किचन में जा कर चाय बनाई, फिर चाय की चुसकियों के साथ घर को संवारने का प्लान बनाया.

शाम को अनिकेत के लौटने पर घर का कोनाकोना दमक रहा था. जैसे ही अनिकेत ने घर में कदम रखा, करीने से सजे घर को देख कर उसे लगा क्या यह वही घर है जो रोज अस्तव्यस्त होता था? खाने की खुशबू भी उस की भूख को बढ़ा रही थी.

आकांक्षा चहकते हुए बोली, ‘‘आप का दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक,’’ एक संक्षिप्त सा उत्तर दे कर अनिकेत डाइनिंग टेबल पर पहुंचा. जल्दी से खाना खाया और सीधा बिस्तर पर.

औरत ज्यादा नहीं पर दो बोल तो तारीफ के चाहती ही है, पर आकांक्षा को वे भी नहीं मिले. 5 दिन तक यही दिनचर्या चलती रही.

छठे दिन आकांक्षा ने सोने से पहले अनिकेत का रास्ता रोक लिया, ‘‘आप प्लीज 5 मिनट

बात करेंगे?’’

‘‘मुझे सोना है,’’ अनिकेत ने चिरपरिचित अंदाज में कहा.

‘‘प्लीज, कल से मुझे भी औफिस जाना है. आज तो 5 मिनट निकाल लीजिए.’’

‘‘बोलो, क्या कहना चाहती हो,’’ अनिकेत अनमना सा बोला.

‘‘आप मुझ से नाराज हैं या शादी से?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप जानते हैं मैं क्या जानना चाहती हूं?’’

‘‘प्लीज डैडी से बात करो, जिन का फैसला था.’’

‘‘पर शादी तो आप ने की है? आकांक्षा को भी गुस्सा आ गया.’’

‘‘जानता हूं. और कुछ?’’ अनिकेत चिढ़ कर बोला.

आकांक्षा समझ गई कि अब सुलझने की जगह बात बिगड़ने वाली है. बोली, ‘‘क्या यह शादी आप की मरजी से नहीं हुई है?’’

‘‘नहीं. और कुछ?’’

‘‘अच्छा, ठीक है पर एक विनती है आप से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या हम कुछ दिन दोस्तों की तरह रह सकते हैं?’’

‘‘मतलब?’’ अनिकेत को आश्चर्य हुआ.

‘‘यही कि 1 महीने बाद मेरा इंटरव्यू है. मुझे लाइसैंस मिल जाएगा और फिर मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाऊंगी 3 सालों के लिए. उस दौैरान आप को जो उचित लगे, वह फैसला ले लीजिएगा… यकीन मानिए आप को परेशानी नहीं होगी.’’

अनिकेत को इस में कोई आपत्ति नहीं लगी. फिर दोनों साथसाथ नाश्ता करने लगे. शाम को घूमने भी जाने लगे. होटल, रेस्तरां यहां तक कि सिनेमा भी. आकांक्षा कालेजगर्ल की तरह ही कपड़े पहनती थी न कि नईनवेली दुलहन की तरह. उन्हें साथ देख कर कोई प्रेमी युगल समझ सकता था, पर पतिपत्नी तो बिलकुल नहीं.

कैफे कौफीडे हो या काके दा होटल, दोस्तों के लिए हर जगह बातों का अड्डा होती है और आकांक्षा के पास तो बातों का खजाना था. धीरेधीरे अनिकेत को भी उस की बातों में रस आने लगा. उस ने भी अपने दिल की बातें खोलनी शुरू कर दी.

एक दिन रात को औफिस से अनिकेत लेट आया. उसे जोर की भूख लगी थी. घर में देखा तो आकांक्षा पढ़ाई कर रही थी. खाने का कोई अतापता नहीं था.

‘‘आज खाने का क्या हुआ?’’ उस ने पूछा.

‘‘सौरी, आज पढ़तेपढ़ते सब भूल गई.’’

‘‘वह तो ठीक है… पर अब क्या?’’

‘‘एक काम कर सकते हैं, आकांक्षा को आइडिया सूझा,’’ मैं ने सुना है मूलचंद फ्लाईओवर के नीचे आधी रात तक परांठे और चाय मिलती है. क्यों न वहीं ट्राई करें?

‘‘क्या?’’ अनिकेत का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

‘‘हांहां, मेरे औफिस के काफी लोग जाते रहते हैं… आज हम भी चलते हैं.’’

‘‘ठीक है, कपड़े बदलो. चलते हैं.’’

‘‘अरे, कपड़े क्या बदलने हैं? ट्रैक सूट में ही चलती हूं. बाइक पर बढि़या रहेगा… हमें वहां कौन जानता है?’’

मूलचंद पर परांठेचाय का अनिकेत के लिए भी बिलकुल अलग अनुभव था.

आखिर वह दिन भी आ ही गया जब आकांक्षा का इंटरव्यू था. सुबहसुबह घर का काम निबटा कर वह फटाफट डीजीसीए के लिए रवाना हो गई. वहां उस के और भी साथी पहले से मौजूद थे. नियत समय पर इंटरव्यू हुआ.

आकांक्षा के जवाबों ने एफआईडी को भी खुश कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाइए, अपने दोस्तों को भी बताइए कि आप सब पास हो गए हैं.’’

आकांक्षा दौड़ते हुए बाहर आई और फिल्मी अंदाज में टाई उतार कर बोली, ‘‘हे गाइज, वी औल क्लीयर्ड.’’ फिर क्या था बस, जश्न का माहौल बन गया. खुशीखुशी सब बाहर आए. आकांक्षा सोच रही थी कि बस ले या औटो तभी उस का ध्यान गया कि पेड़ के नीचे अनिकेत उस का इंतजार कर रहा है. आकांक्षा को अपने दायरे का एहसास हुआ तो पीछे हट कर बोली, ‘‘आप आज औफिस नहीं गए?’’

‘‘बधाई हो, आकांक्षा. तुम्हारी मेहनत सफल हो गई. चलो, घर चलते हैं. मैं तुम्हें लेने आया हूं,’’ अनिकेत ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की.

आकांक्षा चुपचाप पीछे बैठ गई. घर पहुंच कर खाना खा कर थोड़ी देर के लिए दोनों सो गए. शाम को आकांक्षा हड़बड़ा कर उठी और फिर किचन में जाने लगी तो अनिकेत ने रोक लिया, ‘‘परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम आज खाना बाहर खाएंगे या मंगा लेंगे.’’

‘‘ओके,’’ आकांक्षा अपने कमरे में आ कर अपना बैग पैक करने लगी.

‘‘यह क्या? तुम कहीं जा रही हो?’’ अनिकेत ने पूछा.

‘‘जी, आप के साथ 1 महीना कैसे कट गया, पता ही नहीं चला. अब बाकी काम डैडी के पास जा कर ही कर लूंगी. और वहीं से 1 हफ्ते बाद अमेरिका चली जाऊंगी.’’

‘‘तो तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो?’’

‘‘जी नहीं. आप से जो इजाजत मांगी थी, उस की आखिरी रात है आज, आकांक्षा मुसकराते हुए बोली.’’

‘‘जानता हूं, आकांक्षा मैं तुम्हारा दोषी हूं. पर क्या आज एक अनुरोध मैं तुम से कर सकता हूं? अनिकेत ने थोड़े भरे गले से कहा.’’

‘‘जी, बोलिए.’’

‘‘हम 1 महीना दोस्तों की तरह रहे. क्या अब यह दोस्ती प्यार में बदल सकती है? इस 1 महीने में तुम्हारे करीब रह कर मैं ने जाना कि अतीत की यादों के सहारे वर्तमान नहीं जीया जाता… अतीत ही नहीं वर्तमान भी खूबसूरत हो सकता है. क्या तुम मुझे माफ कर सकती हो?’’

उस रात आकांक्षा ने कुछ ही पलों में दोस्त से प्रेमिका और प्रेमिका से पत्नी का सफर तय कर लिया, धीरधीरे अनिकेत के आगोश में समा कर.

Friendship Day Special: ढलती उम्र की दोस्ती

60 वर्षीय प्यार, 60 वर्षीय विवाह अकसर गौसिप का विषय बनते हैं. 55 से 60 तक की उम्र होतेहोते लगभग हर स्त्रीपुरुष पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके होते हैं. उन के बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो चुके होते हैं. उन की शादियां हो चुकी होती हैं और वे अपनी गृहस्थी में मस्त रहने लग जाते हैं.

दूषित खानपान और प्रदूषित वातावरण से उत्पन्न बीमारियों की वजह से आज व्यक्ति समय से पहले ही न केवल शारीरिक क्षीणता का शिकार हो जाता है बल्कि औसत आयु घट जाने के कारण कई बार इस उम्र में पतिपत्नी में से कोई एक अकेला ही रह जाता है और यहीं से शुरू हो जाता है कभी पूरे परिवार की धुरी रह चुके इंसान का एकाकीपन से सामना.

काश, इन को भी कोई हमउम्र साथी मिल जाता जो इस उम्र में इन की भावनाओं को समझता, इन के साथ समय गुजारता और इन होंठों को मुसकान देता ताकि जिंदगी बोझिल न बनती.

आज वृद्धावस्था की ओर बढ़ता हर व्यक्ति एकाकीपन के एहसास मात्र से घबराने लग गया है. मातापिता अगर स्वस्थ हैं और दोनों ही जीवित हैं तब तो वे चाहे अकेले रह रहे हों या बेटेबहू उन के पास हों, उन का जीवन सामान्य ढंग से गुजरता रहता है. किंतु स्थिति शोचनीय और दयनीय तब हो जाती है जब पति या पत्नी में से कोई एक अकेला रह जाता है दुनिया में.

और तब होता यह है कि कई बार अपना अकेलापन दूर करने के लिए

60-65 वर्षीय स्त्री या पुरुष घर से बाहर निकल कर अपना मन बहलाने के लिए नएनए मित्र बनाना शुरू कर देते हैं. क्योंकि घर के सदस्यों के पास उन की भावनाओं को समझने व उन के साथ वक्त गुजारने के लिए समय नहीं होता.

रेलवे के उच्च पद से रिटायर होने के बाद अनिरुद्ध अपने बेटेबहू के पास दिल्ली रहने आ गए. हालांकि बेटेबहू उन का पूरा खयाल रखते थे फिर भी उन के औफिस चले जाने के बाद घर के शांत वातावरण में दिनभर चुपचाप पड़े रहने से वे धीरेधीरे अवसाद से घिरने लगे.

तब बेटेबहू के समझाने पर उन्होंने सुबहशाम घर के पास के पार्क में जा कर बैठना और टहलना शुरू कर दिया. वहां उन का परिचय उसी सोसायटी में रहने वाली एक ऐसी महिला से हुआ जिन की स्थिति भी लगभग अनिरुद्ध जैसी ही थी. औपचारिक बातों से शुरू उन की बातचीत धीरेधीरे प्रगाढ़ता की ओर बढ़ने लगी तो लोगों में चर्चा का विषय बन गई. बात उन के बेटेबहू तक पहुंची, तो सुन कर उन्हें बुरा लगा और उन्होंने इस बारे में अनिरुद्ध से बात की.

तब उन्होंने बड़े शांतभाव से जवाब दिया, ‘‘हम पर उंगली उठाने वाले वे लोग ही होंगे जिन के जीवन में अभी अकेलापन नहीं पसरा होगा.

‘‘अकेलेपन से हार कर डिप्रैशन में पहुंच कर अपनेआप को नुकसान पहुंचाने या कुंठित हो कर अपने बच्चों की खुशियों में दखलंदाजी करने से कहीं बेहतर है हम जैसे लोग अपनी ही उम्र के लोगों के साथ अपने सुखदुख बांट कर खुश रहें. दोस्ती जब होती है तब वह उम्रजातिलिंग कुछ नहीं देखती. इस उम्र की दोस्ती सिर्फ इतना देखती है कि सामने वाला उसे कितना समझता है.

‘‘यह संयोग ही है कि इस समय मुझे दोस्त के रूप में एक महिला मिली हैं जो कि मुझे भावनात्मक रूप से समझ रही हैं. मैं ने उन से दोस्ती इसलिए नहीं की कि वे एक महिला हैं, बल्कि वे मेरी भावनाओं को समझ रही हैं, इसलिए दोस्ती हो गई है.

‘‘मैं आज उम्र के इस पड़ाव पर तुम्हारी मां के न रह जाने के कारण जिस मानसिक खालीपन से गुजर रहा हूं उन्हें वे बिना कहे समझ जाती हैं क्योंकि वे एक महिला हैं, और वे भी किसी की पत्नी थीं. और जब युवावस्था में लड़केलड़कियों की दोस्ती सामान्य बात है तो इस उम्र में असामान्य क्यों लग रही है आप लोगों को?’’

उन की बात सुन कर उन के बेटेबहू को भी लगा कि इस में इतना असामान्य क्या है जो किसी तरह की आपत्ति की जाए. वृद्ध हो जाने का मतलब यह तो नहीं होता कि उन से उन की खुशियां छीन ली जाएं. उन्हें किसी से दोस्ती करने का अधिकार न रह जाए. ठीक से सोचने के बाद अनिरुद्ध की दोस्ती बेटेबहू को भी अनुचित नहीं लगी और बाद में वे खुद भी उस महिला के साथ मिलनेजुलने लगे और उन के साथ एक पारिवारिक दोस्ताना व्यवहार बना लिया. अब बेटेबहू को कहीं बाहर भी जाना होता तो वे निश्चिंत हो कर चले जाते हैं कि उन के पीछे उन के पिता का खयाल रखने के लिए आंटी हैं.

मोनिका की परिस्थितियां कुछ अलग तरह की थीं. उस की शादी के 2 महीने बाद ही पति विदेश चले गए. वहां से उन का पत्र आया, ‘‘मैं मम्मीपापा को मना नहीं कर सका, इसलिए तुम से शादी करनी पड़ी, जबकि सच यह है कि मैं यहां पहले ही शादी कर चुका हूं.’’ मोनिका के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. वह तलाक ले कर मायके जाने के बारे में सोचती, इस से पहले ही उसे पता चला कि वह गर्भवती है. ऐसे में उसे अपना और अपने बच्चे, दोनों का जीवन अधर में लगा.

फैसला जल्दी लें

उस ने मायके जाने के बजाय सासससुर के पास ही रह कर उस बच्चे के सहारे ही जीवन गुजारने का फैसला कर लिया. पर जब तक मोनिका के सासससुर जीवित रहे और वह बेटी की परवरिश में व्यस्त रही तब तक उस का जीवन ठीकठाक गुजर गया, किंतु जब बेटी की शादी हो गई तब अकेलेपन से घबरा कर उस की तबीयत खराब रहने लगी. बेटी अपने साथ चलने को कहती पर वह नहीं मानती.

तब उस के बेटीदामाद ने कुछ अलग तरीके से सोचना शुरू किया और किसी ऐसे पुरुष की तलाश में जुट गए जो मोनिका की ही तरह अकेला हो और अकेलेपन से जूझ रहा हो. आखिरकार उन्हें एक रिटायर्ड इंजीनियर मिल गए जिन के बच्चे विदेश में सैटल थे और वे यहां अकेले दिन गुजार रहे थे. उन्होंने उन की मुलाकात मोनिका से करवा दी. उस के बाद वे धीरेधीरे उन दोनों के मन में यह बात बिठाने लगे कि अगर वे दोनों शादी कर लें तो उन की जिंदगी का अकेलापन खत्म हो जाएगा.

शुरू में मोनिका बिफर पड़ी थी, कहने लगी, ‘‘पूरी जिंदगी अकेले गुजार दी, अगर शादी ही करनी थी मुझे तो तभी कर ली होती मैं ने. इस उम्र में शादी की बात कर के समाज में मेरी थूथू करवाना चाहती हो?’’

तब उस की बेटी उस के गले में बांहें डाल कर रो पड़ी और बोली, ‘‘मां, तब तुम्हारे पास मैं थी, एक वजह थी मैं तुम्हारे लिए. पर अब ऐसा अकेलापन जीने नहीं देगा आप को और आप की चिंता में मैं भी कहीं भी खुश नहीं रह पाऊंगी. मां, आप समाज की चिंता न करें क्योंकि यह वही समाज है जिस ने पापा द्वारा आप के साथ किए अन्याय पर भी केवल आपस में खुसुरफुसुर ही की होगी, आप का दर्द बांटने के लिए एक कदम भी आप के साथ चला नहीं होगा.’’ बेटी की जिद्द के आगे मोनिका ने घुटने टेक दिए.

इस उम्र में विवाह करना सहज नहीं था दोनों के लिए. कुछ दिनों तक तो सभी असहज ही रहे किंतु धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होता गया. जिंदगीभर समस्त जिम्मेदारियों से अकेली जूझती मोनिका इस उम्र में एक पुरुष का संबंध पा कर बहुत सुकून महसूस करने लगी. इंजीनियर साहब के बेटों ने तो मोनिका को कभी ‘मां’ संबोधन नहीं दिया किंतु बचपन से ‘पापा’ शब्द कहने को तरसती मोनिका की बेटी ने इंजीनियर साहब को पापा बुला कर अपनी जिंदगी के खालीपन को दूर कर लिया.

बदलता परिवेश बदलती सोच

आज हमारा परिवेश और रहनसहन बहुत तेजी से बदल रहा है. रहनसहन, खानपान के साथसाथ समाज को देखने का हमारा नजरिया भी दिनप्रतिदिन बदलता चला जा रहा है. बदलती परिस्थितियों ने ही हमारे सोचने के ढंग को भी परिवर्तित किया है. आज इंसान अपनी जिंदगी के निर्णय सही, गलत और अच्छेबुरे की कसौटी पर कस कर लेने के बजाय अपनी सुविधा और सुकून के हिसाब से लेने लगा है.

सामाजिक सोच और सामाजिक ढांचों के परिवर्तन में संयुक्त परिवार का विघटन अहम भूमिका निभा रहा है. रोजीरोटी की तलाश ने संयुक्त परिवारों को एकल परिवारों में विभक्त कर दिया है जिस की वजह से अनेक ऐसी नई व्यवस्थाएं जन्म ले चुकी हैं जिन के बारे में पहले कभी किसी ने सोचा तक नहीं था, पर आज उन्हें अपनाना लोगों की मजबूरी बनती जा रही है.

एकल परिवार के प्रचलन ने हमें जो एक सब से खतरनाक चीज उपहारस्वरूप दी है वह है एकाकीपन. और एकाकीपन का यह कीड़ा धीरेधीरे अब इंसानों को खाने लगा है. बदलते परिवेश और परिस्थितियों के अनुसार सही समय पर निर्णय ले कर कुछ ऐसे कदम उठाने, जोकि सहज और सरल तो नहीं पर हितकारी होते हैं, में हिचकिचाहट नहीं करनी चाहिए.

विनीता की शादी के पहले ही उस की सास की मृत्यु हो चुकी थी. एकदो साल बाद ही उस के देवर की भी शादी हो गई. कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक चलता रहा किंतु धीरेधीरे विनीता और उस की देवरानी अपने ससुर की बातों से अजीब सी उलझन में पड़ने लगीं. वे अपनी बहुओं से इस तरह की बातें करने लगे जैसी बातें कोई सास तो कर सकती है बहू से, पर ससुर नहीं.

उन की बातों से तंग आ कर विनीता की देवरानी ने विनीता से कहा, ‘‘हमें पापाजी की शादी करा देनी चाहिए, वरना ये तो हमारा जीना दुश्वार कर देंगे.’’ बात तो विनीता को भी ठीक लगी पर जब उस ने अपने पति से यह बात कही तो वे भड़क उठे, और आइंदा ऐसी बात न कहने और न ही सोचने की जबरदस्त हिदायत दे दी. पर इस का परिणाम अच्छा नहीं हुआ.

ससुर की बातों से बचने के लिए विनीता और उस की देवरानी उन से कन्नी काटने लगीं. बेटे कहते भले ही कुछ नहीं थे पर पिता की बातों से परेशानी उन्हें भी होती थी, इसलिए वे भी उन से कटेकटे से रहने लगे. बेटों को अपनी पत्नियों की बात न मानने का दुख उस दिन हुआ जब उन्हें बाहर से यह शिकायत मिलनी शुरू हुई कि उन के पिताजी आतीजाती बहूबेटियों को ताकते रहते हैं और देख कर मुसकराते हैं. पर तब तक समय हाथ से निकल चुका था.

कम उम्र में ही पत्नी का साथ छूट जाने से उन के स्वभाव में आए परिवर्तन को उन की बहुओं ने समय रहते ही पकड़ लिया था पर समाज के डर से उन के विवाह की बात को उन के पति जामा न पहना सके, जिस का खमियाजा समय गुजर जाने के बाद उन्हें भुगतना पड़ा.

हर उम्र की समस्याएं

कहने का मतलब यह है कि हर उम्र की तरह वृद्धावस्था की ओर बढ़ते स्त्रीपुरुषों को भी संगीसाथी की जरूरत होती है. जिस तरह से हर उम्र की अलगअलग समस्याएं होती हैं उसी तरह ढलती उम्र की भी अनेक समस्याएं होती हैं जिन्हें हरेक के साथ नहीं बांटा जा सकता. इसलिए किसी ऐसे इंसान की तलाश में मन भटकता है जिस के साथ पलदोपल बैठने से सुकून मिले.

भरेपूरे परिवार में ढलती उम्र में भी व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से व्यस्त रहता है. उसे घर से बाहर निकल कर साथी ढूंढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती है किंतु जहां बुजुर्ग अकेलेपन से घबरा कर ऐसा करते हैं वहां भी बच्चों द्वारा उन्हें स्वीकार करना सहज नहीं होता है और न ही सब के बच्चे स्वीकार कर पाते हैं.

उमा के दोनों बच्चे विदेश में बस चुके थे. पति की मृत्यु के बाद जब वह अकेली रह गई तो बच्चों ने उसे अपने साथ चलने के लिए कहा. किंतु विदेश में जा कर अनजान लोगों के बीच बुढ़ापा काटना उसे मंजूर नहीं हो रहा था, साथ ही, बहुएं न जाने किस प्रकार का व्यवहार करें वहां. यह सब सोच कर उस ने यहां अकेले ही रहने का फैसला किया. कुछ समय बाद उस की मुलाकात अपने बेटे के दोस्त के पिता से हुई जो कि अपनी पत्नी के न रहने के बाद से अकेले रह रहे थे.

दोनों ने एकदूसरे का सुखदुख और अकेलापन बांटने के लिए एकसाथ रहने का फैसला किया. वे शादी के रिश्ते में नहीं बंधना चाहते थे. पर एकदूसरे के साथ बहुत भावनात्मक संबल महसूस करते थे. आखिरकार उन्होंने फैसला किया कि वे रहेंगे तो अपनेअपने घर पर ही, किंतु जब भी दिल करेगा, एकदूसरे के घर पर आ कर रहने में संकोच नहीं करेंगे.

उन का साथ न ही किसी रिश्ते में बंधा था और न ही उस में किसी प्रकार का दोष था, किंतु दोनों ही परिवारों के बच्चों ने बहुत हंगामा मचाया. तब उमा ने बच्चों से कहा, ‘‘अगर तुम में से कोई हमारी देखभाल के लिए भारत वापस आ जाए और हमारे साथ रहे तो फिर हमें किसी बाहरी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ेगी. किसी गैर के सहारे जीना हम भी कहां चाहते हैं भला.’’

उमा की बात सुन कर बच्चों को जैसे सांप सूंघ गया. विदेश की ठाटबाट छोड़ कर बुजुर्ग माता की देखभाल के लिए यहां आ जाना उन्हें भला कहां गवारा था. सो, चुप हो जाने में ही उन्होंने भलाई समझी.

बच्चों की अपने प्रति बेरुखी से खिन्न उमा ने बच्चों की मरजी के खिलाफ अपनी सहूलियत के हिसाब से अपनी जिंदगी का फैसला ले लिया. मांबेटों के बीच एक अनदेखी सी रेखा खिंच गई. बेटे, बस, कभीकभार फोन पर हालचाल का आदानप्रदान कर लेते.

उमा जब कभी कमजोर पड़ती और बच्चों को याद कर के रोने लगती, तब फिर वह खुद ही अपनेआप को समझा लेती थी कि जब वह घर में अकेली पड़ी सिर्फ अपने बच्चों को ही याद किया करती थी और उन के आने का इंतजार किया करती थी तब ही कौन सा उन के बच्चे आ जाया करते थे और उन से घंटों बातें कर के उन का मन बहलाने की कोशिश करते थे. तब भी चंद मिनट ही बात होती थी और अब भी. पर अब कम से कम इतना तो है कि बुखार में तपने पर कोई दवा और फल तो ला कर दे देता है, वरना पहले तो हफ्तों बुखार में तपती पड़ी रह जाती थी, न कोई दवा लाने वाला और न ही कोई पूछने वाला कि दवा खाई या नहीं?

जरूरत समझें

जब परिस्थितियां इतनी बदल चुकी हैं कि बच्चे अपने मातापिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने लग गए हैं तो अपनी खुशी और सम्मान के लिए बुजुर्गों द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों को विवाद और गौसिप का विषय हरगिज नहीं बनाना चाहिए. बल्कि, ऐसे कदम उठाने के पीछे छिपे कारणों पर विचार कर के अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए. तलाक, पुनर्विवाह, विधवा विवाह, लिवइन रिलेशन, वृद्धाश्रम जैसी अनेक व्यवस्थाओं का प्रारंभिक विरोध और आलोचना करने वाला हमारा यह समाज वक्त और परिस्थितियों की आवश्यकता को समझ कर जिस तरह उन्हें स्वीकार कर चुका है, ठीक उसी तरह उसे ढलती उम्र की दोस्ती के कारणों और मजबूरियों को गहराइयों से समझ उसे गौसिप व मजाक का विषय बनाना बंद कर देना चाहिए क्योंकि ऐसे कदम उठाना वरिष्ठजनों के लिए वृद्धाश्रम में घुटघुट कर जीने से कहीं ज्यादा बेहतर है.

दोस्ती अनमोल है इसकी बुनियाद सच्चाई है

दोस्ती  इस सृष्टि का अनमोल रिश्ता है, यह अकेला ऐसा रिश्ता है, जिसको कभी भी कितने ही लोगों से बांटा जा सकता है. यह रिश्ता खून के रिश्ते से भी अधिक गहरा और सगे रिश्ते से भी अधिक सच्चा होता है. ज़माने के बदलते दौर के साथ दोस्ते के स्वरूप भी बदला है, आधुनिक जीवन में तकनीक का बढ़ता योगदान दोस्ती के दायरे कों और फैला दिया है .

सोशल -नेट्वर्किंग सीटो और तकनीक ने हमारे दोस्तों कों और अधिक हमारे नजदीक ला दिया है. आधुनिक परिवेश में दोस्ती के स्वरूपों कों भापने और दोस्ती के अनमोल रिश्तो कों समझने के उद्देश्य से हमने कई युवाओ के बात किया, बातचीत के बाद जो नतीजो से पत्ता चला कि  आधुनिकता के इस दौर में भी दोस्ती का सच्चा रिश्ता सच, भरोसे और विश्वास पर टिका हुआ है.  आज भी दोस्ती का नीव सच के बुनियाद पर टिका है. आज भी बचपन के दोस्त  सबसे अधिक याद आते है . सृष्टि के इस अनमोल रिश्तो कों लेकर कि गई बातचीत के नतीजे विनय सिंह की कलम से…

दोस्ती इंसानी रिश्तों की रंगीनियों से भीगा एक खूबसूरत एहसास है. किसी ने कहा है कि दोस्त है तो जिंदगी है. तों कोई कहते है कि दुनिया में और कुछ न मिले और एक अच्छा दोस्त मिल जाए तो जीवन सफल है, लेकिन दुनिया की हर चीज मिल जाए और दोस्त न मिले तो सब कुछ व्यर्थ है. आधुनिक परिवेश में दोस्ती के स्वरूपों कों भापने और दोस्ती के अनमोल रिश्तो के रंग रूप कों जानने और समझने के उद्देश्य से हमने उत्तरप्रदेश,बिहार और दिल्ली के 200  युवाओ से बात कर दोस्ती से जुड़े विभिन्न प्रश्नों पर उनके विचार जानने की कोशिश किया  . जिसके परिणाम स्वरूप दोस्ती से जुड़े कई बाते उभर कर सामने आई जो साफ शब्दों में यह संदेश देती है कि  आज भी स्कूल के क्लास रूम से,कालेज के गलियारों तक बाजार के भीड़ से मॉल की शीतलता तक, गाँव के चौपाल से शहर के चराहे तक , छोटे शहरों के बड़े सपनों से बड़े शहरों की बड़ी उम्मीदों तक दोस्ती विभिन्न स्वरूपों में भिन्न रंग-रूपों में दिखता है . आज भी दोस्ती का सच्चा रिश्ता विश्वास और भरोसे के नीव पर टिका है. आज भी कई दोस्त अपने दोस्त के लिए अपने घर पर झूठ बोलते है, कई दोस्त तो अपने दोस्त को इस कदर चाहते है कि वह उसके बारे में एक शब्द भी बुरा नही सुन सकते है, तो कई दोस्त अपने दोस्ती को लेकर कई दफा अपने प्रेमी/प्रेमिका से लड़ पड़ते है .

 65 फीसदी मानते है दोस्त हमारे और नजदीक गये है

64 फीसदी लोगो के लिए आज भी उनके जिन्दगी के सफ़र  में दोस्ती एक अनमोल रिश्ता है , तो 28 फीसदी युवा इसे रिश्ते नाते  से ऊपर का रिश्ता मानते है. वही बाकि लोग इसे सामान्य संबंध मानते है . 38 प्रतिशत लोग अपने दोस्त से पहली बार स्कूल में मिले, तो 42 फीसदी लोगो को अपने दोस्त से कॉलेज पढाई के दौरान मिले .  वही बाकि लोग चलते- फिरते किसी को  सफ़र में , किसी को  काम करते हुई अपने दफ्तर में,  किसी को किसी कार्यकम या किसी आयोजन के दौरान में मिले और वह उनके  दोस्त बन गये .  आज भी 48 फीसदी लोग अपने दोस्त को प्यार से ऊपर मानते है , वही 18 फीसदी लोगो का मानना है कि दोस्ती और प्यार दोनों अपने जगह पर अलग रिश्ता है.  आज भी 39 फीसदी दोस्ती को अधिक प्यार से अधिक तबज्जो देते है, वही बाकि बचे लोग  प्यार में अधिक तबज्जो देते है.  62 फीसदी लोग मानते है कि  उन्होंने कई दफा दोस्तों के लिए  अपने घर वालो से भी  झूठ बोला है .  65 फीसदी लोग मानते है कि आज के समय में दोस्त हमारे और नजदीक आ गये है.

 दोस्ती का कोई मोल नही

बनारस  की रहने वाली साक्षी मानती है कि दोस्ती अनमोल है, इसका कोई मोल नही लेकिन साक्षी यह भी कहती है, कि हर एक दोस्त एक तरह का नही होता है. कोई दोस्ती के रिश्तो कों प्यार के रोमांटिक जाल में उलझाकर दोस्तों से बहुत कुल पाना चाहते है, तों कई बिना किसी मोल के हर वक्त अपने दोस्तों का साथ देते है .

आज भी बहुत याद आते दिल्ली के  फ्रैंड

पुणे में टच महिंद्रा में कार्यरत अश्वनी कहते है कि उन्हें आज भी उन्हें दिल्ली के कॉलेज फ्रैंड बहुत याद आते है. स्कूल की दोस्तों और कॉलेज की दोस्ती कों अन्य दोस्तों से अलग बताते हुए अश्वनी कहते है कि मै खुश नसीब हूँ कि मेरे पास आज भी मेरे  बचपन के दोस्त नटखट दोस्त है और साथ ही कॉलेज के वहा फ्रैंड भी है, जिनके साथ मिलकर मैंने कई फिल्मो का फस्ट शो देखा है , और खूब मस्ती की है .

दोस्ती के बीच कभी धर्म और समुदाय माईने नहीं रखता

भारतीय रेलवे में कनिष्ठ इंजीनियर के पद पर कार्यरत अलीगढ के मोहमद अनवर कहते है कि  दोस्ती धरती का सबसे सुंदर रिश्ता है .  हम  दोस्ती को कितनी ही कैटेगरी में बांट ले लेकिन एक सच दोस्त वही है, जो तमाम रूकावटो के बावजूद जीवन भर साथ निभाते हैं .  अलीगढ के अनवर बताते है कि दोस्ती के बीच कभी धर्म और समुदाय माईने नहीं रखता है.  अनवर के सबसे चाहे दोस्त प्रमोद चौबे है, जो  गया ( बिहार) के रहने वाले है . अनवर और प्रमोद पिछले दस साल से दोस्त है , इन दोनों दोस्तों की पहली मुलाकात अलीगढ विश्वविध्यालय के इंजीनियरिंग के क्लास रूम में आज से दस साल पहले हुआ था .  तब इन्होने ने भी नही सोचा था, कि यह किसी दिन एक दूजे के बिन नहीं रह पायेगे . अनवर बताते है कि आज उनके प्रमोद के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है, किसी के घर कोई भी पारिवारिक आयोजन हो, उसमें पहुचना पड़ता है .

पूछे गये प्रश्न – 

आपके माईने में दोस्ती क्या है ?

आपके सबसे खास मित्र से आपकी पहली मुलाकात कहा हुई ?

दोस्ती और प्यार में आप किसे अधिक तबज्जो देते है ?

दोस्तों के लिए क्या कभी आप ने अपने बॉय फ्रैंड या गर्ल फ्रैंड से लडाई किया है ?

हर एक दोस्त जरुरी होता है, इस वाक्य में आप कितना विश्वास करते है ?

क्या आप मानते है कि आज समय में दोस्त हमारे और नजदीक आ गये है ?

क्या कहते है नवयुवक

चंद्रप्रकाश   –  जिंदगी की रपटीली राहों पर सफर आसान बनाने वाला हमराही है दोस्त.

प्रिया – दोस्ती यानि परिवार और प्रियतम से अलग रिश्तों की एक नई और अनमोल धुरी . सगे संबंधियों से परे एक ऐसा नाता, जिसका हर रेशा विश्वास की आँच पर पककर मजबूत हुआ है .

कुमुद  – हमारे जीवन को हर पल संगीतमय रखने वाली धुन है दोस्ती  .

पायल   – जीवन सफ़र में के सुख-दुख से भरे राहों पर कई लोग मिलते हैं लेकिन जिस शख्स का प्रतीक  चिन्ह  के निशान हमारे मन मस्तिष्क को आन्दित कर दे, हर मुसीबत में उसका साथ मिले और हर सुख उसके बिना अधूरा हो, वही हमारा पक्का दोस्त होता है .

रोहित – दोस्ती यानी एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें प्यार, तकरार, इजहार, इंकार, स्वीकार जैसे भाव तो भरे ही हैं, विश्वास और त्याग की भावना भी चरम पर रहती है.

स्वेता – मानवीय संबंधों के संग्रह का सबसे चमकता सितारा है दोस्ती.

Friendship Day Special : दोस्ती का एक रिश्ता ऐसा भी

मेरी सहेली रागिनी मेरे घर आई हुई थी. अभी कुछ ही देर हुई होगी कि मेरी बेटी का फोन आ गया. मैं रागिनी को चाय पीने का इशारा कर बेटी के साथ तन्मयता से बातें करने लगी. हर दिन की ही तरह बेटी ने अपने दफ्तर की बातें, दोस्तों की बातें बताते, घर जा कर क्या पकाएगी इस का मेन्यू और तरीका डिस्कस करते हुए मेरा, अपने पापा, नानानानी सहित सब का हालचाल ले फोन रखा. जैसे ही मैं ने फोन रखा कि रागिनी बोल पड़ी, ‘‘तुम्हारी बेटी तुम से कितनी बातें करती है. मेरे बेटे तो कईकईर् दिनों तक फोन नहीं करते हैं. मैं करती हूं तो भी हूंहां कर संक्षिप्त सा उत्तर दे कर फोन औफ कर देते हैं. लड़की है न इसलिए इतनी बातें करती है.’’

मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. मेरा बेटा भी तो होस्टल में रह कर पढ़ रहा है. वह भी अपनी दिन भर की बातें, पढ़ाईलिखाई के अलावा अपने दोस्तों के विषय में और अपने कैंपस में होने वाली गतिविधियों की भी जानकारी देता है. सच पूछो तो रागिनी मुझे या मेरे बच्चों को आपस में बातें करने के लिए टौपिक नहीं तलाशने होते हैं.’’ मैं रागिनी के अकेलेपन और उदासी का कारण समझ रही थी. बच्चे तो उस के भी बाहर चले गए थे पर उस का अपने बच्चों के साथ संप्रेषण का  स्तर बेहद बुरा था. उसे पता ही नहीं रहता कि उस के बच्चों के जीवन में क्या चल रहा है. बेटे उदास हैं या खुश उसे यह भी नहीं पता चल पाता. कई बार तो वह, ‘‘बेटा खाना खाया? क्या खाया?’’ से अधिक बातें कर ही नहीं पाती थी.

मैं रागिनी को बरसों से जानती हूं, तब से जब हमारे बच्चे छोटे थे. मैं जब भी रागिनी के घर जाती, देखती कि वह या तो किसी से फोन पर बातें कर रही होती या फिर कान में इयरफोन लगा अपना काम कर रही होती. उस के घर दिन भर टीवी चलता रहता था. बच्चे लगातार घंटों कार्टून चैनल देखते रहते. रागिनी या उस के पति का भी पसंदीदा टाइम पास टीवी देखना ही था. अब जब बच्चों ने बचपन में दिन का अधिकांश वक्त मातापिता से बातें किए बगैर ही बिताया था तो अचानक उन्हें सपना तो नहीं आएगा कि मातापिता से भी दिल की बातें की जा सकती हैं.

जैसा चाहे ढाल लें

वाकई यह मातापिता के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वे अपने बच्चों के वक्त को, उन के बचपन को किस दिशा में खर्च कर रहे हैं. बच्चे तो गीली मिट्टी की तरह होते हैं. उस गीली मिट्टी को अच्छे आचारव्यवहार और समझदारी की धीमी आंच में पका कर ही एक इनसान बनाया जाता है. जन्म के पहलेदूसरे महीने से शिशु अपनी मां की आवाज को पहचानने लगता है. एक तरह से बच्चा गर्भ से ही अपने मातापिता की आवाज को सुननेसमझने लगता है. इसलिए बच्चों के सामने हमेशा अच्छीअच्छी बातें करें. अनगढ़ गीली मिट्टी के बने बाल मानस को आप जैसे चाहें ढाल लें.

बाल मनोचिकित्सक मौलिक्का शर्मा बताती हैं कि जो मातापिता अपने बच्चों से शुरुआत से ही खूब बतियाते हैं, हंसते हैं हंसाते हैं, अपनी रोजमर्रा की छोटीछोटी बातें भी शेयर करते हैं, उन के बच्चों को भी आदत हो जाती है अपने मातापिता से सारी बातें शेयर करने की. और फिर यह सिलसिला बाद की जिंदगी में भी चलता रहता है. लाख व्यस्तताओं के बीच अन्य दूसरे जरूरी कामों के साथ बच्चे अपने मातापिता से जरूर बतिया लेते हैं. संयुक्त परिवारों में बच्चों से बातें करने, उन्हें सुनने वाले कई लोग होते हैं मातापिता से इतर, इस के विपरीत एकल परिवारों में मातापिता दोनों  अपनेअपने काम से थके होने के चलते बच्चों को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते हैं बातचीत करनी तो दूर की बात है.

मातापिता से सीखते हैं बच्चे

होली फैमिली हौस्पिटल, बांद्रा, मुंबई के चाइल्ड साइकोलौजिस्ट डाक्टर अरमान का कहना है कि अपने बच्चों के बचपन को सकारात्मक दिशा में खर्च करना मातापिता का प्रथम कर्तव्य है. अकसर घरों में बच्चों को टीवी के सामने बैठा दिया जाता है, खानापीना खाते हुए वे घंटों कार्टून देखते रहते हैं. खुद मोबाइल, कंप्यूटर या किसी भी अन्य चीज में व्यस्त हो जाते हैं. इस दिनचर्या में बेहद औपचारिक बातों के अलावा मातापिता बच्चों से बातें नहीं करते हैं. बच्चों के सामने बातें करना मानो आईने के समक्ष बोलना है, क्योंकि आप के बोलने की लय, स्वर, लहजा, भाषा वे सब सीखते हैं. बातचीत के वे ही पल होते हैं जब आप अपने अनुभव और विचारों से उन्हें अवगत करते हैं, अपनी सोच उन में रोपित करते हैं. जैसा इनसान उन्हें बनाना चाहते हैं वैसे भाव उन में भरते हैं.

आप जब बूढ़े हो जाएं तब भी आप के बच्चे आप से बातें करने को लालायित रहें तो इस के लिए आप को इन बातों पर अमल करना होगा:

– छोटे बच्चों को खिलातेपिलाते, मालिश करते, नहलाते यानी जब तक वह जगा रहे उस के साथ कुछ न कुछ बोलते रहें. ऐसे बच्चे जल्दी बोलना भी शुरू करते हैं.

– थोड़ा बड़ा होने पर गीत और कहानी सुनाने की आदत डालें. इस से कुछ ही वर्षों में बच्चे पठन के लिए प्रेरित होंगे. उन्हें रंगबिरंगी किताबों से लुभाएं और किताबों से दोस्ती कराने की भरसक कोशिश करें.

– टीवी चलाने के घंटे और प्रोग्राम तय करें. अनर्गल, अनगिनत वक्त तक न आप टीवी देखें और न ही बच्चों को देखने दें. यदि आप अपने मन को थोड़ा साध लेते हैं, तो यकीन मानिए आप स्वअनुशासन का एक बेहतरीन पाठ अपने बच्चों को पढ़ा देंगे.

– अपने संप्रेषण के जरीए आप छोटे बच्चों में कई अच्छे संस्कार रोपित कर सकते हैं जैसे  देश प्रेम, स्वच्छता, सच बोलना, लड़की को इज्जत देना इत्यादि. आज का आप के द्वारा रोपित बीजरूपेण संस्कार के वटवृक्ष के तले भविष्य में समाज और देश खुशहाल होगा.

– यदि छोटा बच्चा कुछ बोलता है, तो उसे ध्यान से सुनें. कई बार मातापिता बच्चों की बातों को अनसुनी करते हुए अपनी धुन में रहते हैं. अपने बच्चों की बातों को तवज्जो दें. उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि आप उन की बातों को हमेशा ध्यान से सुनेंगे चाहे कोई और सुने या नहीं.

– लगातार संप्रेषण से ही आप बच्चे में किसी भी तरह की आ रही तबदीलियों को भांप सकेंगे. ठीक इसी तरह जब आप से अलग वह रहेगा/रहेगी तो आप की अनकही बातों को वह महसूस कर लेगा. मेरी बेटी हजारों मील दूर फोन पर मेरी आवाज से समझ जाती है कि मैं बीमार हूं, दुखी हूं या उस से कुछ छिपा रही हूं.

– बच्चों के संग बोलतेबतियाते आप दुनियादारी की कई बातें उन्हें सिखा सकते हैं. एकल परिवार में रहने वाला बच्चा भी इसी जरीए रिश्तों और समाज के तौरतरीकों से वाकिफ होता है. यदि बच्चे आप से पूरी तरह खुले रहेंगे तो आप उन्हें बैड टच गुड टच और सैक्स संबंधित ज्ञान भी आसानी से दे सकेंगे.

– सिर्फ छुट्टियों में बात करने या वक्त देने वाली सोच से आप बच्चों के कई हावभावों से अनभिज्ञ रह जाते हैं. परीक्षा की घड़ी हो या पहले प्यार का पल युवा होते बच्चे अपनी बचपन की आदतानुसार आप से शेयर करते रहेंगे. फिर दुनिया में आप से बेहतर काउंसलर उन के लिए कोई नहीं होगा.

– यकीन मानिए अपने बच्चों से बेहतर मित्र दुनिया में कोई नहीं होता है. संप्रेषण वह पुल होता है, जो आप को अपने बच्चों से जोड़े रखता है ताउम्र.

Friendship Day Special: दिल से नहीं दिमाग से निभाएं दोस्ती

व्हाट्सऐप पर कुछ दोस्तों ने एक गु्रप बनाया और उस के बाद उस पर संदेशों का आदानप्रदान शुरू हुआ. ऐसे में एक दिन जब रमेश ने एक शायरी पोस्ट की तो रश्मि को लगा कि रमेश उस की व्यक्तिगत जिंदगी पर कमैंट कर रहा है. इस के बाद रश्मि ने उस ग्रुप में कई गुस्से वाले मैसेज भेजे और अपने गुस्से का इजहार किया जबकि रमेश ने हर बार सफाई दी कि उस ने बस एक शायरी पोस्ट की और किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का उस का इरादा नहीं था. न ही उसे रश्मि की व्यक्तिगत जिंदगी की ही जानकारी थी. रश्मि ने रमेश की एक भी बात नहीं मानी और उस ग्रुप से अलग हो गई.

विवेक के बड़ी कंपनी में मैनेजर बनने की यह 5वीं सालगिरह थी. वह खुश था कि इन 5 वर्षों में उस ने लगन और मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है और तरक्की कर रहा है. कंपनी ने उसे 5 साल में कहां से कहां पहुंचा दिया और कंपनी ने भी इन सालों में कितनी तरक्की की है. उस दिन पता नहीं विवेक को क्या सूझा कि उस ने अपने फेसबुक अकाउंट पर कंपनी में 5 साल पूरे होने और इतनी तरक्की पाने की जानकारी तो दी ही, साथ ही उस ने उन दिनों को याद किया जब उस ने इस नई कंपनी को जौइन किया था.

अपने पोस्ट में उस ने उन सारी बातों को शेयर किया कि कैसे उस के कालेज के उस के सहपाठियों और सीनियर्स ने उस की इस नौकरी पर कमैंट पास किए थे. इस का परिणाम यह हुआ कि उस के पोस्ट शेयर करते ही कमैंट और लाइक करने वालों की बौछार हो गई, वहीं जिन लोगों का नाम पोस्ट में लिखा था, उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कमैंट देने शुरू कर दिए. इतना ही नहीं, उस की सहयोगी रही राधा ने तो पुलिस केस करने की धमकी भी दे डाली कि विवेक हमारा मजाक उड़ा रहा है और उस में अपने पद का घमंड आ गया है. अंजाम यह हुआ कि विवेक ने न सिर्फ फेसबुक से उस पोस्ट को हटाया बल्कि अपने कुछ दोस्तों को ब्लौक भी कर दिया. इस तनाव ने विवेक का मूड खराब कर दिया, जिस से उस का पार्टी का सारा मजा भी फीका पड़ गया.

उपरोक्त दोनों ही मामले वास्तविक जीवन से जुड़े हैं. दोनों ही मामलों में दोनों पक्षों की ओर से गलतियां हुईं, जिस से गलतफहमी पैदा हुई और परिणाम यह हुआ कि वर्षों की दोस्ती टूटी. हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहां दोस्ती दिल से नहीं दिमाग से निभाने की जरूरत होती है, बदलते वक्त के साथ भले ही सोशल मीडिया के जरिए हम खुद को अधिक सामाजिक दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन वास्तविकता के धरातल पर हम सामाजिक नहीं हैं. एक ओर जहां हम सोशल नैटवर्किंग साइट्स, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप पर हमेशा ऐक्टिव रहते हैं वहीं हम अपने दोस्तों के दुखसुख से कोई मतलब नहीं रखते.

मैसेज लिखने से पहले रखें खयाल

यदि आप कोई मैसेज या कमैंट लिख रहे हैं तो पोस्ट करने से पहले सौ बार सोचें कि आप की प्रतिक्रिया किसी की भावना को ठेस तो नहीं पहुंचा रही. हालांकि किसी के दिल में क्या है, यह तो आप नहीं जान सकते लेकिन सावधानी बरत सकते हैं. व्यक्तिगत आक्षेप से बचें. भले ही आप सोशल मीडिया के जरिए एकदूसरे के निकट हों लेकिन वैसे आप एकदूसरे से दूर हैं और नहीं जानते कि जब सामने वाला आप का संदेश पढ़ रहा है तो उस की मनोदशा क्या है और वह क्या सोच रहा है. मैसेज शेयर करने से पहले अपने स्तर का भी खयाल रखें. द्विअर्थी संदेश भूल से भी शेयर न करें. इस से सामने वाले पर आप की गलत छवि बनती है और कोई आप का कितना भी अच्छा दोस्त हो, धीरेधीरे वह आप से दूर होता जाएगा.

अकसर ऐसा होता है कि हम किसी संदेश को पढ़ कर तुरंत खुश हो जाते हैं तो उतनी ही जल्दी गुस्सा भी हो जाते हैं. ऐसे में किसी छोटी सी बात को भी तिल का ताड़ बना डालते हैं और अपने संबंधों का भी खयाल नहीं करते हैं.

मसलन, पिछले 10 वर्ष से जरमनी में रह रही स्वाति का मानना था कि भारत में लड़कियों की स्थिति नहीं बदली है और पाश्चात्य देशों की लड़कियां भारत के मुकाबले काफी स्वतंत्र रूप में जीती हैं. जब उस ने अपने मन की बात व्हाट्सऐप पर अपने ग्रुप में शेयर की तो उस के अधिकतर दोस्तों ने इस का विरोध किया. उस के दोस्तों का मत था कि भारत की सामाजिक व्यवस्था दूसरे देशों से अलग है और यहां की लड़कियां शुरुआती दौर से फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं. केवल देह दिखाने वाले कपड़े पहनना स्वतंत्रता नहीं है. वहीं कुछ दोस्तों का मत था कि जब स्वाति 10 साल से भारत आई ही नहीं तो वह वर्तमान में यहां की लड़कियों की स्थिति के बारे में कैसे अच्छे से बता सकती है. इस बहस में स्वाति ने आवेश में आ कर भारत के सभी दोस्तों को आउटडेटेड कह दिया. जबकि सचाई यह है कि पिछले 10-12 साल में भारत की लड़कियों ने काफी तरक्की की है और हर मोरचे पर अपनी पहचान कायम की है.

ऐसे में यह हुआ कि स्वाति की सोच को ले कर उस के तमाम दोस्तों में आक्रोश उत्पन्न हुआ और सभी ने उस की बातों को अनदेखा करना शुरू कर दिया. इसलिए हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि हम कोई बात सार्वजनिक तौर पर रख रहे हैं तो उस में सचाई कितनी है और कितना दम है. यदि किसी मुद्दे पर बहस हो रही है तो सुबूतों और तर्कों के आधार पर अपनी बात रखें. हमेशा खुद पर काबू रखें और आवेश में आ कर अपना गुस्सा दूसरों पर न दिखाएं. हमेशा खयाल रखें कि जितना आप को गुस्सा आता है, उस से कहीं अधिक गुस्सा सामने वाले को भी आ सकता है.

गलत धारणाओं से बचें

किसी के संदेश या कमैंट को हमेशा अपने ऊपर न लें. यदि रमेश की शायरी को रश्मि दिल पर न लेती और उस तरह प्रतिक्रिया न करती तो संबंधों में खटास पैदा नहीं होती. याद रखें, दोस्ती का बंधन काफी नाजुक होता है. इसे बनने में देर लगती है लेकिन टूटने में जरा भी वक्त नहीं लगता. मान लीजिए रमेश ने जानबूझ कर रश्मि को चोट पहुंचाने के लिए शायरी लिखी, पर यदि रश्मि उसे नजरअंदाज कर देती तो उस का क्या बिगड़ जाता. वैसे भी रश्मि के पास इस बात का क्या सुबूत था कि रमेश ने उसे प्रताडि़त करने के लिए ही वह शायरी पोस्ट की थी.

जानबूझ कर किसी की हंसी न उड़ाएं

दोस्तों के साथ मजाक करना अलग बात है लेकिन किसी की हंसी उड़ाना दूसरी बात. मजाक की बात का कोई बुरा नहीं मानता लेकिन मजाकमजाक में हंसी उड़ाने की बात को हर कोई समझता है. मजाक में कभी भी कोई ऐसी बात न करें जिस से सामने वाले को ठेस पहुंचे. विवेक के मामले को देखें तो हम पाते हैं कि नई कंपनी में नौकरी पाने के वक्त उस के सहयोगियों और सीनियर्स ने उस का मजाक उड़ाया था. यह बात उस के दिल पर लगी थी. वह उसे भूला नहीं था. यही कारण था कि कंपनी में 5 साल होने और कंपनी के कारोबार में वृद्धि होने के साथसाथ अपनी पदोन्नति की खुशी को वह छिपा नहीं पाया. वह अपनी प्रतिक्रिया में उन बातों को भी छिपा नहीं पाया जो उस के दिल में थीं. गलती दोनों तरफ की थी. पहली बात तो यह कि यदि कोई व्यक्ति कोई नया काम कर रहा है, किसी नए क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है, लीक से हट कर कोर्स करने की सोच रहा है तो उस का मजाक न बनाएं, उसे हतोत्साहित न करें. जहां तक संभव हो, उसे प्रोत्साहित करें. मान लें कि विवेक के नई कंपनी जौइन करने और वहां की स्थिति को ले कर उस के दोस्त चिंतित रहे हों, ऐसे में विवेक को सही ढंग से समझाने की जरूरत थी न कि कमैंट पास करने की. ऐसा भी हो सकता है कि विवेक को उस के दोस्तों ने मजाकमजाक में उस के भविष्य को ले कर चिंतित होने की बात कही हो, जिसे विवेक समझ न पाया हो.

फिर यदि 5 साल बाद विवेक ने पुरानी बातों को याद ही कर लिया तो उस में गुस्सा करने वाली बात ही क्या है. जितना सफल विवेक का कैरियर हुआ, उतना उस के दोस्तों का नहीं हो पाया तो जलन तो हो ही सकती है. लेकिन इस मामले में उस के दोस्तों ने भी अपनी भड़ास निकाली. यदि 5 साल पहले आप ने उस की नौकरी को ले कर मजाक बनाया और उस ने सारी बातें सोशल मीडिया के माध्यम से व्यक्त कीं तो इस में बुराई क्या है? ध्यान रखें, यदि आप किसी के साथ मजाक करते हैं तो सामने वाले के मजाक को भी स्वीकारें. उस का भी सम्मान करें. हां, यह बात और है कि मजाक करने के शब्द और समय सब के अलगअलग होते हैं.

अपनी हद को समझें

केवल सोशल मीडिया के प्लेटफौर्म पर ही नहीं, दोस्ती निभाने के लिए भी काफी कुछ सहना पड़ता है. एकदूसरे की भावना का खयाल रखना पड़ता है. जिंदगी में छोटीमोटी परेशानियां आती रहती हैं और ऐसे में कोई ऐसी हरकत करना, जिस से सामने वाले के दिल को ठेस पहुंचे, आप को विपरीत परिस्थिति में खड़ा कर सकता है. यदि आप अपने दायरे में रहेंगे तो संबंधों का निर्वाह बेहतर ढंग से कर पाएंगे. याद रखें, यदि पूरी जिंदगी में एक अच्छा दोस्त मिल जाए तो आप दुनिया के चुनिंदा खुशनसीबों में से एक हैं.

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