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चीतों की तड़ातड़ मौतें

पिछले साल 17 सितंबर को टीवी चैनलों, अखबारों, फेसबुक, ट्विटर पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खबर सुर्खियों में थी. उस दिन उन का जन्मदिन भी था, मगर उस से बड़ी खबर यह थी कि उस दिन मध्य प्रदेश स्थित कूना अभयारण्य में उन्होंने एक मचान पर खड़े हो कर नामीबिया से लाए गए चीते स्वयं पिंजड़े से बाड़े में छोड़े थे और उस के बाद प्रोफैशनल कैमरे से उन चीतों के फोटोग्राफ्स खींचे थे.

6 चीते नामीबिया से भारत हवाई मार्ग द्वारा लाए गए थे. 9 हजार किलोमीटर के सफर के दौरान चीते करीब 10 घंटे तक पिंजड़े में रहे. इस से पहले वे 30 दिनों तक नामीबिया में क्वारंटीन रहे और भारत आने के बाद उन्हें 50 दिनों तक क्वारंटीन में रखा गया. करीब 80 दिन कैद में रहने के बाद इन 6 चीतों में से 2 को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों अभयारण्य में छुड़वाया गया.

गौरतलब है कि मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी चीता परियोजना के तहत इस से पहले भी कई बार कूनो अभयारण्य में चीते ला कर छोड़े गए हैं, इस बात की जांचपरख किए बगैर कि भारत की आबोहवा चीतों को रास आएगी या नहीं या यहां उन के रहने की ठीक व्यवस्था है या नहीं. नतीजा जितना बड़ा इवैंट उतना बड़ा फैल्योर. कूनो में अब तक 9 चीतों की मौतें हो चुकी हैं. एक के बाद एक चीते अकाल मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं और विशेषज्ञ इन की मौत की वजहें तक नहीं पता कर पा रहे हैं.

सितंबर 2022 के बाद ‘प्रोजैक्ट चीता’ के तहत फरवरी 2023 में फिर दक्षिण अफ्रीका के हिंडनबर्ग पार्क से 7 नर और 5 मादा चीतों को वायुसेना के विमान से लाया गया. इस के बाद कूनों में मादा चीते ने 4 शावकों को भी जन्म दिया. जिन में से 3 की अब मौत हो चुकी है.

17 सितंबर को ही जब चीतों को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों कूनो अभयारण्य में छोड़ा गया था तब दोनों चीते इतने डरेसहमे थे कि पिंजड़े से निकाल कर बड़े बाड़े में छोड़े जाने के बावजूद उन में कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा था. करीब एक घंटे तक दुम दबाए वे इधर से उधर छिपने की कोशिश करते रहे. छोड़े जाने के 3 घंटे बाद जा कर उन्होंने थोड़ा सा पानी पिया और कुछ खाया. हालांकि अपने हाथों पिंजड़े का ढक्कन खोल कर चीतों को अभयारण्य में मुक्त करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी काफी खुश थे. चीते छोड़े जाने का वीडियो शेयर करते हुए प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया था- ‘ग्रेट न्यूज. अनिवार्य क्वारंटीन के बाद 2 चीतों को अनुकूलन के लिए कूनो अभयारण्य के बड़े बाड़े में छोड़ दिया गया है. अन्य को भी जल्द ही छोड़ा जाएगा. मु   झे यह जान कर भी खुशी हुई कि सभी चीते स्वस्थ, सक्रिय और अच्छी तरह से समायोजित हो रहे हैं.’

कितना बड़ा    झूठ! चीतों की तड़ातड़ हो रही मौतों ने प्रधानमंत्री के वक्तव्य की धज्जियां उड़ा दी हैं. चीतों के मरने से पशुप्रेमियों में गहरी नाराजगी है तो वहीं नामीबिया के पशु चिकित्सक इस बात से हैरान हैं कि भारतीय वनाधिकारी और डाक्टर न तो उन से सहयोग कर रहे हैं और न ही उन्हें चीतों के बारे में ठीक जानकारियां उपलब्ध करा रहे हैं.

देखरेख में लापरवाही

क्या भारत का वातावरण चीतों के अनुकूल है? क्या यहां के तापमान को वे सहन कर पा रहे हैं? क्या यहां उन की ठीक से देखभाल और निगरानी हो रही है? क्या उन को इन अभयारण्यों में भोजनपानी मिल रहा है? क्या बीमार होने पर उन का इलाज हो रहा है? क्या वे स्वयं शिकार कर पा रहे हैं? क्या अपने क्षेत्र से उजाड़ कर नए क्षेत्र में बसाए गए ये जीव यहां सचमुच खुश हैं? क्या हमारे पशु डाक्टर और वनाधिकारी इतने योग्य और सक्षम हैं कि वे इन जानवरों को हो रही समस्याओं को सम   झ सकें और उन का समाधान कर सकें? 9 चीतों की मौत के बाद ये सवाल अब हर तरफ से उठ रहे हैं. पूछा जा रहा है कि इन मौतों का जिम्मेदार कौन है?

जिस तरह से चीते अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं, उस से तो साफ है कि वन अधिकारियों और यहां के डाक्टरों को चीतों के प्राकृतिक व्यवहार का कतई ज्ञान नहीं है. यही वजह है कि एकएक कर 6 वयस्क चीते और उन के 3 शावक महज 5 महीने के भीतर ही मर गए और जिम्मेदार उन की मौतों का वास्तविक कारण तक नहीं बता पा रहे हैं.

कुछ रहस्य जो कूनो से छनछन कर बाहर आ रहे हैं, उन के मुताबिक, चीतों को जो कौलर आईडी पहनाए गए हैं उन से उन में संक्रमण फैल रहा है. वहीं केंद्रीय वनमंत्री भूपेंद्र यादव कहते हैं कि चीतों की मौत का मुख्य कारण कोई बीमारी नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला संक्रमण है. चूंकि नामीबिया और श्योपुर की जलवायु अलगअलग है और पहला वर्ष होने के कारण उन्हें वहां के वातावरण में ढलने में कठिनाई आ रही है.

मंत्रीजी से यह पूछा जाना चाहिए कि जब उन्हें पता था कि नामीबिया और श्योपुर की जलवायु अलग है और चीते यहां के वातावरण में एडजस्ट नहीं हो पाएंगे तो उन्हें यहां लाया ही क्यों गया? क्या उन को मारने के लिए?

एक अधिकारी का कहना है कि मादा चीता के बच्चों की देखरेख में घोर लापरवाही बरती गई. जब शावकों का वजन घट कर मात्र 40 प्रतिशत रह गया और वे बुरी तरह कमजोर व शिथिल हो गए तब जा कर वन अधिकारियों और डाक्टरों को उन का इलाज करने का खयाल आया. मगर तब तक 3 नन्हे शावक मौत के मुंह में समा गए और बचे हुए एक शावक की हालत भी कोई खास अच्छी नहीं है.

दरअसल चीता ऐसा जीव है जिस के शावकों को पर्याप्त भोजन और अनुकूल वातावरण की जरूरत होती है. मगर कूनो में उन को ठीक भोजनपानी नहीं मिला, जो उन की मौत का कारण बना.

कूनो में मादा चीता दक्षा ने भी दम तोड़ दिया है. वजह यह कि जोड़ा बनाने और प्रजनन कराने के लिए उसे 2 नर चीताओं के साथ छोड़ दिया गया. आपसी संघर्ष में दक्षा की मौत हो गई. एक मादा के पीछे दोदो नर चीता छोड़ने वाले वन अधिकारियों को तो नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए. पशुपक्षी से ले कर मानव जाति तक में एक मादा के पीछे अगर 2 नर हैं तो आपसी संघर्ष निश्चित है जिस में कोई न कोई मारा जाएगा. क्या यह साधारण सी बात भारतीय वन अधिकारियों को नहीं मालूम? मूक जानवर अपने साथ हो रही इस हिंसा और अन्याय की गवाही नहीं दे सकते, इसलिए उन की मौत के जिम्मेदार आराम से नौकरी कर रहे हैं.

अय्याश राजाओं के शौक

इन सब स्पष्ट कारणों के चलते ही नामीबिया से आए विशेषज्ञ चिकित्सक तक सचाई न पहुंच जाए, इसलिए उन के साथ भारतीय वन अधिकारी असहयोग का रवैया इख्तियार किए हुए हैं. यही नहीं, बल्कि अब तो वे चीतों की मौत पर उलटे नामीबिया सरकार पर ही दोषारोपण कर रहे हैं कि नामीबियाई चीते भारत आने से पहले से ही बीमार थे और नामीबिया ने भारत को उन की बीमारी को ले कर कोई जानकारी नहीं दी. अब कूनो में 14 चीते बचे हैं, जिन में 7 नर, 6 मादा और एक शावक हैं.

उल्लेखनीय है कि जब तक भारत में वन क्षेत्र अधिक रहा, यहां चीतों, तेंदुओं और शेरों की पर्याप्त संख्या बनी रही. इन्हें घूमने और अपना शिकार ढूंढ़ने में परेशानी नहीं हुई. लेकिन वन क्षेत्रों के बहुत तेजी से कम होते जाने का असर इन पर पड़ा और शिकार की कमी व अन्य कारणों से ये खत्म होते गए या जंगल से बाहरी बस्तियों में आने पर मनुष्य द्वारा मार दिए गए.

भारत के विभिन्न कोनों में कभी चीते की एक मजबूत आबादी थी. मगर राजामहाराजाओं के वक्त चलने वाले बेरोकटोक शिकार ने चीतों को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया. चीतों को मार कर उन की खाल में भूसा भरवा कर अपने ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाने के शौक ने प्रकृति के इस खूबसूरत प्राणी का लगभग अंत कर दिया. देश में आखिरी बचे 3 चीतों को छत्तीसगढ़ स्थित कोरिया के महाराज रामानुज प्रताप सिंह देव ने वर्ष 1947 में शिकार कर खत्म कर दिया. इस के बाद देश से चीतों का नामोनिशान मिट गया. 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर चीतों को विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया.

समस्या बदलते वातावरण की

आज दुनियाभर में चीतों की संख्या महज 7,000 ही बची है, जिस में से आधे से ज्यादा चीते दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में हैं. ईरान में भी एशियाई चीते हैं, लेकिन वहां उन की संख्या 100 के आसपास ही है.

विदेशों से चीतों को भारत लाए जाने का आइडिया सब से पहले वर्ष 1972 में मध्य प्रदेश के आईएएस अफसर एम के रंजीत ने दिया था. रंजीत 1961 बैच के आईएएस थे. उन्होंने ही इस महत्त्वाकांक्षी चीता प्रोजैक्ट का पहला ड्राफ्ट भी तैयार किया था और उन के समय में ईरान से चीतों को लाने का एक एग्रीमैंट इस शर्त पर साइन हुआ था कि उस के बदले में भारत ईरान को शेर देगा. मगर फिर 1975 में आपातकाल लग गया और यह प्रोजैक्ट ठंडे बस्ते में चला गया.

इस के बाद कई प्रयास हुए मगर सफल नहीं रहे. फिर 2009 में ‘भारत में अफ्रीकी चीता परिचय परियोजना’ का जन्म हुआ. लेकिन इस परियोजना पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी. सरकार की लगातार कोशिशों के चलते आखिरकार 2021 में उच्चतम न्यायालय ने नामीबिया से चीतों को लाए जाने की अनुमति दी. चीता पुनर्वास परियोजना के लिए ‘प्रोजैक्ट टाइगर’ के अंतर्गत वर्ष 2021- 22 से 2025-26 तक के लिए भारत सरकार द्वारा 38 करोड़ 70 लाख रुपए की राशि आवंटित की गई है और कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य को भारत का पहला चीता अभयारण्य नामित किया गया.

मोदी सरकार देश में चीतों को बसाने की कोशिशों के तहत अब तक दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से कुल 20 चीते मंगवा चुकी है और अगले 10 सालों में 100 चीते भारत लाए जाने की योजना है. लेकिन भारत के अभयारण्य में जिस तरह इन विदेशी अतिथियों की मौत हो रही है, यह बहुत चिंताजनक है.

अतीत में जाएं तो पता चलता है कि विदेशी चीतों को भारत की धरती कभी रास नहीं आई. भारत में चीतों को बसाने के प्रयास पहले भी फेल हुए हैं. दक्षिण अफ्रीका के जंगलों से 1993 में दिल्ली के चिडि़याघर में 4 चीते लाए गए थे, लेकिन 6 माह के भीतर ही वे चारों मर गए.

भारत का पर्यावरण दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से अलग है. 75 साल पहले भारत में पाए जाने वाले चीते एशियाई थे, जबकि वर्तमान में भारत में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से चीतों को ला कर बसाने की जबरिया कोशिश हो रही है. लाए जाने से पहले उन्हें कई महीने तक कैद में रखा जाता है और लाने के बाद भी वे कई महीने कैद में बिताते हैं. तब तक वे पिंजड़ों में रहते हैं और उन्हें बकरियों और भैंस का मांस खिलाया जाता है. फिर अचानक एक दिन उन्हें बड़े बाड़े में छोड़ देते हैं और उम्मीद करते हैं कि अब वे खुद शिकार करेंगे. जानवर इस अचानक हुए परिवर्तन को सम   झ नहीं पाते और कई दिनों तक भूखेप्यासे रहते हैं. उन की खानपान की आदत बदलना, जगह का बदल जाना, वातावरण का बदलना उन के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है.

आजाद पसंद जानवर

कुछ एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि कूनो अभयारण्य में चीतों को ट्रैक करने के लिए उन के गले में जो रेडियो कौलर लगाया गया है, उस से उन को संक्रमण हो रहा है. पिछले दिनों जिन 2 चीतों की मौत हुई है, उन की गरदन पर संक्रमण के निशान मिले हैं. जानकारों का कहना है कि चीते खुले में रहते हैं. रेडियो कौलर में पानी या अन्य चीजों की वजह से गीलापन बना रहता है. इस से उन्हें संक्रमण हो जाता है.

चीतों के अलावा भी कई विदेशी पशुओं को भारत लाया गया और वे यहां आ कर मर गए. वन अधिकारियों का लापरवाह रवैया, जीवों के अनुकूलन के संबंध में पूरा ज्ञान न होना, उन की उचित देखभाल का अभाव और भ्रष्टाचार इस की मुख्य वजहें हैं. लखनऊ के चिडि़याघर में 2 साल पहले इजराईल से 6 जेब्रा लाए गए थे. अधिकारी बताते हैं कि वे अब तक यहां के वातावरण को अडौप्ट नहीं कर पाए हैं. 6 में से 2 की मौत हो चुकी है. इन जेब्रा को जबजब थोड़ा खुले स्थान पर छोड़ा गया, वे डर के मारे बदहवास से इधरउधर ऐसे भागते हैं जैसे किसी जेल से आजाद हुए हों. यही वजह है कि 2 जेब्रा की मौत के बाद बचे हुए 4 जेब्रा को अब बिलकुल बंद बाड़ों में कैद कर के रखा गया है जहां वे जी नहीं रहे हैं, सिर्फ घुट रहे हैं. ऐसी कैद में वे क्या जोड़ी बनाएंगे और क्या प्रजनन कर के वंश बढ़ाएंगे?

गिर के जंगलों का हाल

हाल के कुछ महीनों में गुजरात के गिर अभयारण्य में कम से कम 23 एशियाई शेरों की मौत हो चुकी है. वजह है उन के सिमटते वन क्षेत्र, शहरी प्रदूषण का जंगलों में प्रवेश कर जाना, जंगल के किनारे रेलपटरियों का जाल जिन पर आने वाले जानवर अकसर ट्रेनों से टकरा कर मौत के मुंह में समा जाते हैं. गुजरात में शेरों की मौतें कैनाइन डिस्टैंपर वायरस के कारण भी हो रही हैं. गुजरात राज्य वन एवं पशुपालन विभाग ने कुत्तों के टीकाकरण का एक कार्यक्रम शुरू किया है. संभवतया इन से ही यह बीमारी शेरों में फैल रही है, मगर वन अधिकारी एवं पशुचिकित्सक अभी तक यह अनुमान नहीं लगा पाए हैं कि गिर के शेर कितने खतरे में हैं.

वन्य पशुओं को इंसानों से बहुत खतरा है. गिर में शेरों को देखने के इरादे से प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं. जंगल किनारे बसने वाले ग्रामीणों ने अपने राज्य का गौरव पर्यटकों को दिखा कर पैसा कमाने का नया तरीका ढूंढ़ लिया है. यहां बड़ी संख्या में अवैध ‘शेर शो’ शुरू हो गए हैं. जंगल के किनारे जिंदा मुरगा या बकरी बांध कर शेरों को जंगल से बाहर निकालने और पर्यटकों को इन की नुमाइश दिखाने की कोशिश में कई बार ये शेर बस्तियों में घुस जाते हैं और फिर ग्रामीणों द्वारा घेर कर घायल कर दिए जाते हैं अथवा मार दिए जाते हैं. गुजरात के गिर इलाके में खुले कुओं की संख्या भी बहुत ज्यादा है. कई बार शेर या उन के शावक इन कुओं में भी गिर कर दम तोड़ते पाए गए हैं.

वहीं गिर के जंगली इलाकों से हो कर प्रतिदिन करीब 20 मालगाडि़यां गुजरती हैं, इन का शोर और धुआं तो जंगली जीवों के लिए बुरा है ही, इन गाडि़यों से टकरा कर अकसर शेरों की मौत हो जाती है. पिछले वर्ष दिसंबर में अमरैली जिले के बोराना गांव में 3 शेर उस वक्त मारे गए जब वे रेलपटरियां पार करने की कोशिश कर रहे थे.

2017 में गिर के आसपास हुए विद्युतीकरण के कारण शेरों की मौत की 6 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जिन में से एक मादा शेरनी गर्भवती भी थी. गौरतलब है कि देश में अब सिर्फ 674 शेर ही बचे हैं. शेर, चीते, तेंदुए जैसे हिंसक पशु समस्त मानवजाति के लिए प्रकृति द्वारा नियुक्त एक प्रहरी हैं. यदि ये समाप्त हो गए तो अन्य जीवजंतुओं की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि उन को कंट्रोल कर पाना मुश्किल होगा. इस के लिए वन क्षेत्रों को बढ़ाना और वन्य जीव संरक्षण सब से बड़ी जरूरत है, जिस की तरफ सरकार द्वारा कोई गंभीर कदम नहीं उठाए जा रहे.

इकलौती संतान : शादी के बाद

इकलौते बच्चे मांबाप के समस्त प्यार और आशाओं का केंद्र होते हैं. उन्हें लाड़चाव और अटैंशन कुछ ज्यादा ही मिलता है. इस फेर में कई इकलौते बच्चे अपनेआप को स्पैशल समझानेमानने लगते हैं. वे चाहते हैं कि ऐसा ट्रीटमैंट उन्हें औरों से भी मिले. इसी लाड़चाव के वे इतने आदी हो जाते हैं कि बहुत बार वे दूसरों की इच्छाओं, प्रायोरिटी और पसंद का खयाल ही नहीं रखते.

आस्था अकसर परेशान रहती है. कारण, जिस चीज को जहां रखती है वह वहां मिलती ही नहीं है. चीज को ढूंढ़ना उसे समय खोना लगता है. दरअसल, आस्था बहुत ही व्यवस्थित है. उस का ज्यादातर समय घर को व्यवस्थित करने में ही बीत जाता है. मांबाप का इकलौता लड़का अमन जब से आस्था का पति बना है तब से आस्था उस की बेतरतीबी का शिकार है. शादी से पहले अमन की मां अमन का सारा सामान व्यवस्थित करती थी, अब वह यही उम्मीद अपनी पत्नी से करता है. उसे लगता है कि पत्नी उस का ध्यान नहीं रखती. उसे उस से प्यार नहीं है.

उधर आस्था कहती है कि पति का इतना ध्यान रखने पर भी उसे पति की जलीकटी सुननी पड़ती है. कोई दूसरा कब तक किसी का ध्यान रख सकता है. यह काम तो आदत का हिस्सा होना चाहिए. ये हर चीज को पूछते हैं कि कहां रखी है? क्या दूसरों के पास और कोई काम नहीं है? ऐसा काम ही क्यों करें, जिस से दूसरों का समय बरबाद हो. नई डिश बनाने, नए सिरे से घर सजाने आदि क्रिएटिव कामों में समय देने में मजा भी आता है.

अमन मातापिता को कोसता है कि उन्होंने उस के लिए बेकार की लड़की ढूंढ़ी है. वह सारा दिन बोलतीबतियाती रहती है. किसी गंभीर काम में उस की रुचि नहीं. न उसे कंप्यूटर चलाना आता है और न ही सैलफोन. यह नहीं कि मेरा दिमाग खराब करने के बजाय इन चीजों को चलाना सीखे. दरअसल, अमन मातापिता का इकलौता है. उसे ज्यादा समय चुपचाप काम करते हुए गुजारने की आदत है. वह हर चीज को सीखता है और यही उम्मीद औरों से भी करता है. ‘वर्क ह्वाइल वर्क प्ले ह्वाइल प्ले’ वाली अपनी थ्योरी की औरों में कमी पा कर वह बिफर उठता है. उस का कहना है कि अगर कोई कुछ करना या सीखना न चाहे तो न सही, पर कम से कम उसे तो डिस्टर्ब न करे.

मिलता है खूब लाड़प्यार

बहुत बार? इकलौते बच्चों को मांबाप इतना नरिश कर देते हैं कि वे कठिन परिस्थितियों को संभालने की क्षमता खो देते हैं. वे पूरी तरह हर चीज का समाधान किसी पर निर्भर हो कर खोजते हैं. बहुत बार शादी के बाद ऐसे लोग बस यही चाहते हैं कि सभी उन्हें पसंद करें. उन की ही पूछ हो पर ऐसा जरूरी नहीं.

एक पत्नी का कहना है, ‘‘वे अपने मांबाप के इकलौते हैं, पर ससुराल में 3 जमाई हैं. वहां सब को बराबर लेनदेन और प्यार मिलता है. यह इन्हें पसंद नहीं आता. ये ध्यानाकर्षण के लिए अलगअलग तरीके अपनाते हैं. फिर भी जब इन की अपेक्षा पूर्ण नहीं होती तो मेरे पीहर वालों को स्वार्थी और न जाने क्याक्या कह कर मु?ो परेशान करते रहते हैं.’’

मांबाप इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्यारदुलार दे कर बिगाड़ देते हैं. उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि हर जगह वे उस का साथ नहीं दे सकते. ऐसे ही एक लाड़ले को होस्टल से रेस्टिकेट कर दिया गया. वह जूनियरों से शार्गिदों के स्टाइल में काम लेता था. उसे अपने हाथों से कुछ भी करने की आदत नहीं थी. उस के इस आचरण को रैगिंग मान कर कार्यवाही की गई.

यह लाड़प्यार नकारात्मक के बजाय सकारात्मक भी तो बनाया जा सकता है. इकलौते बच्चे भी जिम्मेदारी अच्छी निभाते हैं. सौरभ इकलौता है. वह मांबाप के सारे जरूरी काम निबटा कर टूर पर जाता है. वहां से भी सुध लेता रहता है. वह इसे अपनी प्रमुख जिम्मेदारी मानता है. शादी के बाद उस का यह जिम्मेदारी भरा व्यवहार उस की पत्नी ने भी अपनाया.

इकलौते बच्चों के साथ सब से बड़ी समस्या उन के बिगड़ने की आती है. अकसर इकलौते बच्चे बिगड़ैल और जिद्दी भी होते हैं. अगर बड़े हो कर ये गलत संगत जैसे जुआ, नशे के चंगुल में फंस गए तो अपनी शादीशुदा जिंदगी को भी तहसनहस कर देते हैं.

शादी की तैयारी जरूरी

यों तो शादी की तैयारी हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है पर इकलौते के लिए कुछ ज्यादा ही जरूरी है. उसे शेयर करने की आदत डालनी पड़ सकती है. शादी के बाद मांबाप से ले कर कमरा आदि सब शेयर करना पड़ सकता है, सजीवनिर्जीव सभी चीजें. समय देने की आदत विकसित करना भी आवश्यक है. कुछ को यह पार्टनर का हस्तक्षेप तथा दखलंदाजी लगती है. इस से वे चिड़चिड़े रहते हैं. जीवनसाथी से आदतों के बारे में चर्चा कर ली जाए तो तालमेल बैठाने में सुविधा रहती है.

एक इकलौता युवक कहता है, ‘‘मैं ने शादी से पूर्व पूरी टे्रनिंग ली. सुनाने के बजाय सुनने की आदत डाली. मेरे एक मित्र ने सलाह दी थी कि यार तेरे मांबाप तेरी बातें सुनते हैं, खुश होते हैं, अब तेरी आदत सिर्फ सुनाने की है कोई और कुछ बोले तो तू इधरउधर ?ांकता है. दोस्तों ने तो तुझेल लिया पर बीवी बख्शने वाली नहीं है. तब मैं ने अपना काम करने की आदत डाली ताकि बीवी का मन जीत सकूं.’’

एक युवती कहती है, ‘‘मैं ने मांबाप को सम?ाया कि वे मेरे बिना रहने की आदत डालें वरना गृहस्थी चौपट हो जाएगी. लड़का घरजमाई बन कर रहने से इनकार कर चुका है.’’

घर वालों का सहयोग

एक अन्य युवती ने विद्रोह किया. उस के मांबाप उस के इकलौते होने का हवाला दे कर अपनी पसंद की जगह शादी का दबाव डाल रहे थे. तब उस ने कोर्ट मैरिज कर ली. वह इसे मांबाप का इमोशनल ब्लैकमेल करना कहती है.

पहले छोटीछोटी इच्छाओं का ध्यान रख कर अब इतनी बड़ी इच्छा की कुरबानी आखिर मातापिता क्यों चाहते हैं?

लाड़प्यार का मतलब किसी को अपनी इच्छा के आगे झाकाना नहीं है और न ही इच्छा की कुरबानी को प्यार की परीक्षा मानना चाहिए.

एक इकलौता युवक मांबाप को पे्रम विवाह हेतु मना नहीं पाया. दोनों पक्ष अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. अब युवक की उम्र काफी हो चुकी है. मांबाप माने नहीं. अब उन्हें वंश आगे न बढ़ने का मलाल है.

शादी की तैयारी में घर वालों का सहयोग भी मिल जाए तो अच्छा है. एक दंपती ने भारीभरकम जेवर ज्यों के त्यों बहू को देने चाहे. लेकिन डिजाइन बहू को पसंद न आए. सास उन जेवरों को तुड़वाना नहीं चाहती थी. तब पति ने पत्नी की पसंद के नए जेवर बनवाए और पत्नी व मां दोनों का मन रख लिया.

एक इकलौती बहू कहती है, ‘‘मेरी सास शुरूशुरू में जब यह कहती थीं कि यह खा लो वह खा लो, तो मु?ो यह बहुत अखरता था. पर अब लगता है यह सब तो उन का बरसों से संजोया अरमान है. मेरे बच्चों पर भी वे अपनी जान लुटाती हैं. अब मैं सास की बहुत बातों को सही मानती हूं जैसे ‘मेरे बेटे का हम जैसा ध्यान कोई नहीं रख सकता’, ‘इतना तो उस की बीवी भी उसे नहीं जानती’, ‘उस के पापा को उस के मूड का पता है आदि’.

इकलौते शादी से पूर्व सब कुछ मांबाप

या फिर दोस्तों से शेयर करते हैं, लेकिन शादी के बाद जीवनसाथी को बाधक न सम?ों. थोड़ा ध्यान दे कर जीवन जीने पर लगता है कि जीवन की किसी बड़ी कमी को पूरा कर लिया गया है.

राजनीति और औरतें : लिया वोट, दिया कुछ नहीं

13 अगस्त, 2023 को पूरा प्रदेश आजादी का जश्न मनाने की तैयारी कर रहा था. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के वीवीआईपी क्षेत्र मौल एवन्यू में रहने वाले ब्रजेश सोनी की पत्नी रूपा को प्रसव पीड़ा हो रही थी. वह अपनी पत्नी को ले कर वीरांगना झलकारी बाई महिला एवं बाल अस्पताल गया. रूपा को 4 माह का प्रसव था. उस के पेट में दर्द हो रहा था. रूपा सोनी की दोपहर करीब साढ़े 12 बजे जांच की गई. दर्द महसूस होने पर यहां से श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल गई थीं.

घर पहुंचने के पहले ही राजभवन के पास दर्द तेज हो गया. राजभवन के ही निकट सड़क के किनारे ही कुछ महिलाओं की मदद से रूपा का प्रसव हुआ. सड़क पर प्रसव का मामला सुर्खियों में आ गया.

समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने कहा, ‘एक तो उप्र की राजधानी लखनऊ, उस पर राजभवन के सामने. फिर भी एंबुलैंस के न पहुंचने की वजह से एक गर्भवती महिला को सड़क पर शिशु को जन्म देना पड़ा. मुख्यमंत्रीजी इस पर कुछ बोलना चाहेंगे या कहेंगे? हमारी भाजपाई राजनीति के लिए बुलडोजर जरूरी है, जनता के लिए एंबुलैंस नहीं.’

सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव ने कहा कि, ‘राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था ‘वैंटिलेटर सपोर्ट’ पर है. सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था अपने लाख विज्ञापनों व दावों के बावजूद वैंटिलेटर पर है. एंबुलैंस न मिलने पर रिकशे से अस्पताल जा रही गर्भवती महिला को राजभवन के पास सड़क पर प्रसव के लिए मजबूर होना पड़े तो यह पूरी व्यवस्था के लिए शर्मनाक व सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था की असल हकीकत है.’

प्रसव आज भी बड़ी परेशानी

आज भी शहरों में शतप्रतिशत प्रसव अस्पतालों में नहीं होते. बड़े शहरों में 20 फीसदी प्रसव आज भी दाई की मदद से घरों में होते हैं. गांव और कसबों में यह आंकड़ा बढ़ जाता है. अलगअलग रिपोर्ट और सर्वे को देखने पर यह पाया जाता है कि करीब 30 से 35 फीसदी प्रसव अस्पतालों में नहीं होते.

इस की मूल वजहें 2 हैं. पहली, सरकारी अस्पताल में भीड़ बहुत होती है. दूसरी, मैडिकल स्टाफ मदद नहीं करता. प्राइवेट अस्पताल में प्रसव बहुत महंगा होता है. अब सामान्य रूप से प्राइवेट अस्पताल में प्रसव का खर्च 60 हजार से एक लाख रुपए के बीच आ रहा है. सरकारों ने गरीब वर्ग के लिए कुछ सुविधाएं देने का भले ही प्रयास किया हो पर मध्यवर्ग की महिलाओं के लिए कोई सुविधा नहीं है.

प्रसव ही नहीं, सरकार के पास महिलाओं के माहवारी के दिनों में सैनेटरी पैड्स उपलब्ध कराने की भी कोई योजना नहीं है. सामान्य रूप से बाजार में औसत कीमत का सैनेटरी पैड्स का पैकेट 30 रुपए का मिलता है. औसतन महिलाओं को माह में कम से कम 2 पैकेट की जरूरत पड़ती है. जिस का खर्च 60 रुपए महीने आता है. कुछ गैरसरकारी संस्थाएं कम कीमत के पैड्स उपलब्ध कराती हैं. अब बाजार में दोबारा प्रयोग किए जाने वाले पैड्स मैडिकल स्टोर पर बिकते हैं. केंद्र सरकार के जनऔषधि केंद्रों पर सस्ती कीमत पर ये पैड्स मिल जाते हैं. इन केंद्रों की संख्या सीमित है.

इस कारण आज भी 70 फीसदी महिलाएं सैनेटरी पैड्स का प्रयोग नहीं करतीं. यहां भी सरकार ने महिलाओं के लिए कोई बड़ी योजना नहीं चलाई जिस से हर महिला को हर माह उस की जरूरत के हिसाब से सैनेटरी पैड्स मिल सकें. सैनेटरी पैड्स का उपयोग न करने से महिलाओं को योनि संक्रमण का सामना करना पड़ता है, जो उन की सेहत के लिए खतरनाक होता है. क्या सरकारी राशन की दुकानों के जरिए महिलाओं को मुफ्त में सैनेटरी पैड्स देने की योजना सरकार नहीं चला सकती?

एक अध्ययन में पाया गया कि 8,000 गर्भपात में से 7,997 कन्याभ्रूण के थे. अभी भी हमारा देश लड़कियों को पैदा होने के पहले ही मार देना चाहता है. एक प्राइवेट अस्पताल में प्रसव का खर्च 60 हजार से ले कर एक लाख रुपए तक होता है. इस खर्च को उठाना मध्यवर्ग के लिए मुश्किल होता है.

मध्यवर्ग की महिलाएं यहां भी सरकार के एजेंडे में नहीं दिखती हैं. कट्टरपंथी विचारधारा के लोग महिलाओं की सेहत, सुरक्षा पर ध्यान देने की जगह उन को धर्म से जोड़ने का काम करते हैं. वे चाहते हैं कि महिलाएं सिर पर कलश उठा कर धर्म का प्रचार करती रहें. अपने प्रति हो रहे भेदभाव को महिलाएं सम?ाने की काशिश न करें. धर्म चाहता है कि महिलाएं अभी भी कुरीतियों और रूढि़वादियों में जकड़ी रहें. माहवारी के दिनों में वे घर के कोने में अकेली पड़ी रहें. वे सैनेटरी पैड्स के बारे में बात न करें. कटट्रवादी विचारों के लोग ‘माहवारी’ और ‘सेनेटरी पैड्स’ जैसे शब्दों को खुलेआम प्रयोग करना अच्छा नहीं मानते.

माहवारी के दिनों में अगर लड़कियों के कपड़ों पर कोई दाग दिखता है तो पुरुष वर्ग बड़ी कामुक नजरों से देखता है. कई पुरुष तो इन दिनों में भी सैक्स संबंध बनाने को ले कर उत्तेजित होते रहते हैं. आज भी 18वीं शताब्दी की सोच दिखती है जब औरतों को केवल सैक्स की नजर से देखा जाता था. 21वीं सदी में भी लड़कियां खुल कर इस को खरीद नहीं पाती हैं. आज भी मैडिकल स्टोर में सैनेटरी पैड्स को काली पौलीथिन में पैक कर के दिया जाता है. कट्टरवादी सोच इस का खुलेआम प्रयोग सही नहीं मानती.

सुरक्षित नहीं महिलाएं

महिला सेहत के बाद महिला सुरक्षा की हालत को देखते हैं. उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में 14 अगस्त, 2023 की रात एक दलित लड़की से दरिंदगी की जाती है. अपराधियों की हिम्मत देखिए कि घटना के बाद उस का वीडियो वायरल कर दिया जाता है. वीडियो में 6 लड़के उस के साथ जबरदस्ती करते दिख रहे हैं. उस के शरीर को नोंच रहे हैं. कपड़े फाड़ रहे हैं. लड़की खुद को बचाने के लिए छटपटा रही है, हाथ जोड़ रही है और ‘पापा बचाओबचाओ’ चिल्ला रही है. मणिपुर जैसी घटना थी.

इस तरह की घटनाएं कई हैं. मेरठ में 4 युवकों ने एक नाबालिग लड़की का किडनैप किया. उसे जंगल ले गए. वहां कोल्डड्रिंक में कुछ मिला कर उसे पिला दिया. बेसुध होने के बाद उस के साथ दरिंदगी की. कपड़े निकाल कर उस का न्यूड वीडियो बनाते रहे. लड़की गिड़गिड़ाती रही. अपने कपड़े मांगती रही. इस के बाद आरोपी उसे ब्लैकमेल करने लगे. 3 महीने बाद लड़की का वीडियो वायरल कर दिया.

इन घटनाओं से महिलाओं की हालत का पता चलता है. बात उत्तर प्रदेश की इसलिए क्योंकि कहा जाता है कि योगी सरकार के बुलडोजर का खौफ अपराधियों, दबंगों और माफियाओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है. अपराधी या तो जेल में हैं या प्रदेश छोड़ कर भाग गए हैं. 6 साल में 200 लोगों का एनकांउटर हो चुका है. इस के बाद भी महिलाओं की हालत क्या है, यह देखा जा सकता है. कानून और सजा का खौफ होता तो क्या लखनऊ में ही लिवइन रिलेशन में रह रही 28 साल की रिया गुप्ता की हत्या रिषभ ने 2 गोली मार कर की होती.

पिछले 10 सालों की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 की तुलना में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं में 15.3 फीसदी की वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार 2011 में 228,650 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं जबकि 2021 में 4,28,278 घटनाएं दर्ज की गईं. आज भी भारत में 10 वर्ष से कम उम्र की लगभग 7.84 मिलियन बच्चियों की शादी हो जाती है.

2016 से 2021 के बीच देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के करीब 22.8 लाख मामले दर्ज हुए. इन में से लगभग 7 लाख यानी करीब 30 प्रतिशत आईपीसी की धारा 498ए के तहत दर्ज किए गए थे. धारा 498ए किसी महिला के खिलाफ पति या उस के रिश्तेदारों की क्रूरता से संबंधित है. बलात्कार और यौन उत्पीड़न से मामलों में भी कहीं ज्यादा दहेज उत्पीड़न के मामले हैं. 2014 से 2018 के बीच 5 वर्षों की अवधि में देश में एसिड हमलों के 1,483 पीडि़त दर्ज किए गए. महिलाओं के खिलाफ अपराधों को देखें तो यहां भी मध्यवर्ग की महिलाएं ज्यादा पीडि़त मिलती हैं. धर्म के कट्टरपन के कारण वे इस के खिलाफ साफ कहने से बचती हैं.

महत्त्वपूर्ण नहीं महिलाओं के मुद्दे

कट्टरवादी लोगों की नजर में महिलाओं के मुद्दे अहम नहीं होते. इस का एक उदाहरण उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है. उत्तर प्रदेश उम्मीदों वाला प्रदेश है. दिल्ली की सत्ता का रास्ता लखनऊ हो कर ही जाता है. उत्तर प्रदेश ने ही सब से अधिक प्रधानमंत्री इस देश को दिए हैं. लोकसभा में 80 सदस्य उत्तर प्रदेश से चुन कर जाते हैं. देश के 542 सांसदों में 15 फीसदी सीधे उत्तर प्रदेश से चुने जाते हैं. यहां का असर पूरे देश पर चढ़ता है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर मौडल पूरे देश में चर्चा का विषय है पर उत्तर प्रदेश में यह महिलाओं की हिफाजत नहीं कर पा रहा है.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने ‘1090 महिला पावर लाइन’ को स्थापित किया था. जो राज्य के किसी कोने में भी मुसीबत में फंसी महिलाओं को 7 से 10 मिनट में मदद करने को तत्पर रहती थी. इस के साथ ही साथ ‘1090’ साइबर क्राइम और मोबाइल से महिलाओं को परेशान करने की घटनाओं को तत्काल रोकने का कम करती थी. 2017 के बाद जब प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार आई तो 1090 की जगह हैल्पलाइन नंबर 112 को प्राथमिकता दी. यह नंबर महिलापुरुष दोनों की मदद करता है.

‘महिला हैल्पलाइन 1090’ जैसी हालत ‘उत्तर प्रदेश महिला आयोग’ की भी कर दी गई है. उत्तर प्रदेश महिला आयोग की हालत बताती है कि सरकार महिलाओं के बारे में क्या सोच रखती है. केंद्र और दूसरे राज्यों में भी महिला आयोग बहुत सक्रिय नहीं हैं.

गैरसरकारी संस्थान द्वारा देश के 26 आश्रय घरों का निरीक्षण किया गया. इस के तहत पश्चिम बंगाल में 5, ओडिशा-कर्नाटक में 8-8 और उत्तर प्रदेश के 5 सुधारगृहों का निरीक्षण किया गया. इस में जो बात सामने निकल कर आई उसे देख कर पता चलता है कि बिहार और यूपी के देवरिया में जिस तरह महिलाओं व लड़कियों के साथ दरिंदगी हुई थी, उस को देखने के बाद भी सुधार घरों को ले कर सरकार जागी नहीं है.

अनदेखी की चपेट में मध्यवर्ग की महिलाएं

केंद्रीय स्तर पर भी देखें तो सरकार ने महिलाओं और उन में भी मध्यवर्ग की महिलाओं के लिए कोई अलग योजना नहीं बनाई है. केंद्र की मोदी सरकार उज्ज्वला योजना का बढ़चढ़ कर प्रचार करती है. इस योजना के तहत गरीब वर्ग की महिलाओं को रसोई गैस के चूल्हे और कनैक्शन उपलब्ध कराए गए. आज के समय में रसोई गैस महिलाओं की सब से अधिक जरूरत है. इस की जरूरत इसलिए होती है क्योंकि आंखों और सांस की बीमारियों से यह बचाने का काम करती है.

रसोई गैस में सरकार को चाहिए था कि सब्सिडी बढ़ाए. सरकार ने सब्सिडी देने की जगह पर उस पर जीएसटी लगा रखा है. अगर सब्सिडी जारी रहती तो अधिक से अधिक महिलाएं इस का प्रयोग कर सकती थीं. आज रसोई गैस की कीमत 1,100 रुपए से अधिक है. महंगी होने के चलते उज्ज्वला योजना वाली महिलाएं भी इस का उपयोग नहीं कर पा रही हैं. मध्यवर्ग के लिए भी रसोई गैस की कीमत बो?ा बन गई है. पिछले 10 सालों की बात करें तो किचन का बजट दोगुने से अधिक बढ़ गया है. जबकि इसी दौर में कमाई घट गई है.

नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना और आयकर ने कारोबार और नौकरियों को प्रभावित किया है. जिस का सब से बड़ा प्रभाव मध्यवर्ग पर पड़ा है. इस वर्ग के लिए सरकार खामोश है. इन की बात करने वाली महिला नेता कहीं नहीं दिख रही हैं.

लड़कियों की शिक्षा को ले कर सरकार की योजना है- ‘बेटी पढ़ाओ

बेटी बचाओ’. उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण एआईएसएचई 2020-2021 बताता है कि 12वीं पास करने वाली लड़कियों में केवल 49 फीसदी लड़कियां ही आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन लेती हैं. यानी 51 फीसदी लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं. सरकार का इस तरफ ध्यान नहीं है. यह लड़कियों की अनदेखी है. पढ़ाई छोड़ने का कारण कालेज का दूर होना, गरीबी, जल्दी शादी और लड़कियों के प्रति बढ़ते अपराध हैं.

महिलाओं की दशा के लिए जिम्मेदार कौन

महिलाओं की जो दशा 18वीं सदी में थी वह आज भी जस की तस है. जो फर्क दिख रहा वह टैक्नोलौजी के कारण दिख रहा है. राजनीति और समाज महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने देता. अपवाद के रूप में कुछ महिलाएं जरूर सफल हुई हैं जो धर्म की बंदिशों को तोड़ कर आगे बढ़ी हैं. सरकार चलाने में महिलाओं की क्या भूमिका है, इस को परखने का एक और माध्यम है, मंत्रिमंडल में महिलाओं की भूमिका. 2017 के योगी मंत्रिमंडल में महिला मंत्रियों के रूप में रीता बहुगुणा जोशी कैबिनेट मंत्री, स्वाति सिंह और अनुपमा जायसवाल स्वतंत्र प्रभार और अर्चना पांडेय व गुलाब देवी राज्यमंत्री थीं. 2017 में जब योगी सरकार बनी थी तो महिला मंत्रियों की संख्या 5 थी. रीता बहुगुणा जोशी, स्वाति सिंह और अनुपमा जायसवाल चर्चा में रहती थीं.

2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की 48 महिलाएं विधायक बनीं. महिला मंत्रियों की संख्या जस की तस रही. इन 5 महिलाओं में केवल एक कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्या, एक स्वतंत्र प्रभार गुलाब देवी और 3 राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला, रजनी तिवारी और विजय लक्ष्मी गौतम बनीं. 2017 के मुकाबले 2022 की महिला मंत्री अपनी कोई पहचान नहीं बना पा रहीं. यह बात केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. अगर केंद्रीय मंत्रिमंडल की बात की जाए तो वहां भी हालात ऐसे ही हैं. केंद्र के मोदी मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ही चर्चा में रहती हैं.

निर्मला सीतारमण को जनाधार वाला लोकप्रिय महिला नेता नहीं माना जाता है. स्मृति ईरानी का रोल केवल कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विरोध तक ही सीमित कर दिया गया है. मोदी मंत्रिमंडल में बाकी महिला मंत्रियों को पहचान बनाने का कोई मौका नहीं मिलता है. 78 सदस्यों वाले मोदी मंत्रिमंडल में देखने को 11 महिलाओं को मंत्री बनाया गया है. इन के जब नाम पढ़ेंगे तो लगेगा कि कितनों को आप पहचानते हैं?

इन 11 में जो नाम शामिल हैं उन में निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, साध्वी निरंजन ज्योति, रेणुका सिंह सरूता, दर्शना जरदोश, प्रतिभा भौमिक, शोभा कारंदलजे, भारती पवार, मीनाक्षी लेखी, अनुप्रिया पटेल, अन्नपूर्णा देवी शामिल हैं.

इन महिला नेताओं की पहचान उमा भारती और सुषमा स्वराज जैसी भाजपा नेताओं वाली नहीं बन पा रही है. इस की वजह यह है कि भाजपा महिलाओं के वोट तो लेना चाहती है पर उन को पहचान नहीं देना चाहती. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे सिंधिया इस का बड़ा उदाहरण हैं. राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन वसुधंरा राजे सिंधिया को कोई अहमियत नहीं दी गई है.

वोट तक सीमित रह गई महिलाएं

भारतीय जनता पार्टी महिलाओं के वोट तो लेना चाहती है पर उन को पार्टी और सरकार चलाने में अधिकार नहीं देना चाहती. हर राज्य में सरकार बनाने में महिलाओं की जरूरत सब से अहम हो गई है. इस को सम?ाने के लिए हिंदी बोली वाले राज्यों पर नजर डाल लेते हैं.

बिहार से ले कर यूपी तक महिला मतदाता भाजपा को सत्ता में लाने की बड़ी वजह होते हैं. उत्तर प्रदेश में साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो पता चलता है कि इस चुनाव में बसपा को 32 फीसदी महिलाओं के वोट मिले थे. सपा को

26 फीसदी, भाजपा को 16 फीसदी और कांग्रेस को 8 फीसदी वोट महिलाओं ने दिए थे. 2007 में मायावती को जीत हासिल हुई थी. 2017 में भाजपा को 45 फीसदी महिलाओं के वोट मिले, उस ने सरकार बनाई.

2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को महिला वोटर्स के दम पर जीत मिली थी. इस चुनाव में कुल 52.67 फीसदी मतदान हुआ था, जिन में से 54.49 फीसदी मतदान महिलाओं का था और 51.12 प्रतिशत मतदान पुरुषों का. महिलाओं के वोट पा कर ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने में भी महिला वोटरों का बड़ा हाथ रहा है. इस चुनाव में भाजपा को रिकौर्ड 41 प्रतिशत महिलाओं के वोट मिले थे.

मध्य प्रदेश में 2 करोड़ 60 लाख 23 हजार 733 महिला वोटर्स हैं. इस के अलावा 230 विधानसभा क्षेत्रों में से कम से कम 18 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां महिला वोटर्स की संख्या पुरुष मतदाताओं से ज्यादा है. इन में बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, अलीराजपुर और ?ाबुआ जैसे आदिवासी बहुल जिले शामिल हैं.

10 में एक भी महिला मुख्यमंत्री नहीं

इस विधानसभा चुनाव में नए महिला वोटरों की संख्या में 2.79 फीसदी का इजाफा भी हुआ है. इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में 7.07 लाख नई मतदाताएं सिर्फ महिलाएं हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लाड़ली बहना योजना चला रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में महिला मंत्रियों की

संख्या 3 तक सीमित है. इन के नाम  यशोधरा राजे सिंधिया, मीना सिंह और उषा ठाकुर हैं. जबकि मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या 21 है. गुजरात में 13 महिला विधायक हैं और केवल 2 महिला मंत्री हैं. हरियाणा में 9 महिला विधायक हैं जिन में से एक महिला मंत्री हैं.

आज के समय में भाजपा की 10 राज्यों में सरकारें हैं. भाजपा के 10 मुख्यमंत्रियों में अरुणाचल प्रदेश में प्रेमा खांडू, असम में हिमंता बिस्वा शर्मा, गोवा में प्रमोद सावंत, गुजरात में भूपेंद्रभाई पटेल, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, मणिपुर में एन वीरेन सिंह, त्रिपुरा में माणिक साहा, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं. भाजपा के पूरे कार्यकाल को देखें तो केवल 4 महिलाओं उमा भारती, सुषमा स्वराज, आनंदी बेन पटेल और वसुंधरा राजे सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया गया. इन में से किसी ने भी 5 साल पूरे नहीं किए. मोदीशाह के दौर में कोई भी महिला मुख्यमंत्री नहीं है.

ताकतवर रही हैं गैरभाजपाई महिला नेता

बीते 20-22 सालों में गैरभाजपाई महिला मुख्यमंत्री अधिक ताकतवर रही हैं. इस दौर में भाजपा की केवल 2 महिला नेता आनंदी बेन पटेल और वसुंधरा राजे सिंधिया ही मुख्यमंत्री रही हैं. गैरभाजपाई मुख्यमंत्रियों में बसपा से मायावती, कांग्रेस से शीला दीक्षित और राजिंदर कौर भट्टल, टीएमसी से ममता बनर्जी, एआईडीएमके से जयललिता, राजद से राबड़ी देवी और महबूबा मुफ्ती के नाम प्रमुख हैं. इन सभी ने अपने प्रदेश और राजनीति में बड़ी भूमिका अदा की है. मायावती 4 बार, ममता बनर्जी 3 बार और जयललिता 6 बार मुख्यमंत्री रही हैं.

महिला नेता के रूप में जिन नेताओं ने अपने बल पर पहचान बनाई उन में इंदिरा गांधी का नाम सब से प्रमुख है. इंदिरा गांधी के आलोचक भले ही यह कहते हों कि वे जवाहर लाल नेहरू के नाम के सहारे आगे बढ़ीं. यह केवल आलोचना भर ही है. शुरुआती दिनों में इंदिरा गांधी का कांग्रेस में बहुत विरोध हुआ था. यहां तक कि पार्टी का विभाजन हो गया. इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुडि़या’ कहा जाता था.

कांग्रेस इंदिरा बना कर विरोधियों को जवाब दिया. ‘गूंगी गुडि़या’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी न केवल चुनाव जीतीं बल्कि ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ कहा जाने लगा. आगे चल कर ‘आयरन लेडी’ जैसे खिताब उन को दिए गए. इसी तरह से कुछ और महिला नेताओं को देखें तो सोनिया गांधी का नाम भी देश की ताकतवर नेताओं में शुमार किया जाता है.

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद और सोनिया गांधी ने उन के उत्तराधिकारी के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया था. एक तरह से सोनिया गांधी ने राजनीतिक संन्यास ले लिया था, जिस के बाद कांग्रेस पूरी तरह से खत्म ही हो गई थी. तमाम क्षेत्रीय दल और भाजपा की राजनीति को विस्तार मिलने का मौका मिला. कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से सोनिया 1997 में कलकत्ता में आयोजित पार्टी के पूर्ण सत्र में प्राथमिक सदस्य के रूप में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुईं. 1998 में वे पार्टी अध्यक्ष बन गईं.

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने वेल्लारी और अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और दोनों चुनाव जीते. वेल्लारी में सोनिया गांधी के खिलाफ भाजपा ने अपनी सब से ताकतवर महिला नेता सुषमा स्वराज को चुनाव लड़ाया था. 1999 में सोनिया को 13वीं लोकसभा में विपक्ष की नेता चुना गया. सोनिया की यह सब से बड़ी उपलब्धि थी. 2004 के आम चुनावों में सोनिया गांधी ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को हरा कर केंद्र में सरकार बनाई. डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. 10 साल कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता संभाली.

भाजपा नेता सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते रहे. सुषमा स्वराज ने कहा, ‘अगर सोनिया प्रधानमंत्री बनीं तो वे अपना ‘सिर मुंड़वाने’ और ‘जमीन पर सोने’ का काम करेंगी.’ सोनिया गांधी ने डाक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया और खुद राष्ट्रीय सलाहकार समिति व यूपीए के अध्यक्ष के रूप में काम करती रहीं. सोनिया की अगुआई में यूपीए ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’, सूचना का अधिकार अधिनियम ‘आरटीआई’, शिक्षा का अधिकार ‘आरटीई’ और लड़कियों को संपत्ति में अधिकार जैसे क्रांतिकारी कानून बनाए. सोनिया गांधी ने खुद को साबित कर के राजनीति की.

ताकतवर महिला नेताओं की श्रेणी में कांग्रेस से अलग हुई और तृणमूल कांग्रेस ‘टीएमसी’ बनाने वाली ममता बनर्जी का नाम आता है. वे कांग्रेस से अलग होने के बाद भाजपा की अगुआई वाले एनडीए में रहीं. केंद्र सरकार में मंत्री रहीं. जल्द ही एनडीए से अलग हो कर पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार बढ़ाने का काम किया. ममता बनर्जी ने अपने बल पर पश्चिम बंगाल में सालों से सत्ता संभालने वाले वामपंथी दलों को कुरसी से उतार दिया. 2011 में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. तब से अभी तक वे लगातार मुख्यमंत्री हैं.

ममता बनर्जी के जनून को सम?ाने के लिए उन के संकल्प को देखना चाहिए. बात दिसंबर 1992 की है. ममता एक शारीरिक रूप से अक्षम लड़की फेलानी बसाक को ले कर उस समय के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के पास गईं. फेलानी बसाक के साथ सीपीआई (एम) कार्यकर्ताओं द्वारा बलात्कार किया गया था. पुलिस ने उन्हें उत्पीडि़त करने के बाद गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन को मुख्यमंत्री से मिलने नहीं दिया. इस के बाद ममता बनर्जी ने संकल्प लिया कि अब वे केवल मुख्यमंत्री के रूप में इस बिल्ंिडग में प्रवेश करेंगी. इस के बाद ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री बन कर ही वहां प्रवेश किया.

जयललिता ने फिल्मों से निकल कर राजनीति में अपनी जगह बनाई. दक्षिण भारत में उन को ‘अम्मा’ के रूप से जाना जाता है. वे तमिल फिल्मों की सुपरस्टार थीं. जितनी सफलता उन को फिल्मों में मिली, उतनी ही सफल वे राजनीति में भी हुईं. जयललिता ने 300 से ज्यादा फिल्में कीं और 6 बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं. जयललिता ने 15 साल की उम्र में कन्नड़ फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था. जयललिता उस दौर की पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहन कर काम किया था.

तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता का करिश्माई व्यक्तित्व था. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी चल रही थी, उस दौरान जयललिता की पार्टी को तमिलनाडु में 39 में 37 सीटों पर जीत मिली थी.

एक खूबसूरत, मन मोह लेने वाली अभिनेत्री से तमिलनाडु की 6 बार मुख्यमंत्री बनने का सफर आसान नहीं रहा है. जयललिता ने अपनी जिंदगी में कई उतारचढ़ाव देखे थे. आय से ज्यादा संपत्ति को ले कर जयललिता काफी विवादों में रहीं. अपनी मेहनत से जो मुकाम जयललिता ने हासिल किया वह किसी और के खाते में नहीं है. जयललिता ने कट्टरवादी विचारधारा को नहीं अपनाया. कट्टरवादी विचारों पर चल कर महिलाएं नेता नहीं, केवल पिछलग्गू ही बन सकती हैं.

महिलाओं के लिए काम नहीं करते कट्टरपंथी

कट्टरपंथी विचारों वाले लोग महिलाओं को राजनीति में आगे नहीं लाते. वे महिलाओं के मुद्दों पर काम भी नहीं करते. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हर धर्म महिलाओं को आजादी नहीं देना चाहता. वह चाहता है कि महिलाएं केवल घरगृहस्थी, पूजापाठ में लगी रहें. जो पुरुष कहे उस को ही मान लें. पति और बेटों के लिए व्रत रखे और धर्म के काम करने वालों की सेवा करे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा समर्थित भाजपा सरकार की विभिन्न नीतियों के तहत महिलाओं की दुर्दशा को उजागर करने के लिए अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (एआईडीडब्ल्यूए) द्वारा राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था. आयोजकों ने कहा कि इस से महिलाओं के जीवन पर भारी असर पड़ा. इस में मुद्रास्फीति, महिलाओं पर हिंसा, नौकरी में शोषण और वेतन असमानता जैसे मुद्दे शामिल हैं.

एआईडीडब्ल्यूए की संरक्षक बृंदा करात ने कहा, ‘मौजूदा शासन ‘हिंदुत्व’ शब्द गढ़ने वाले विनायक दामोदर सावरकर के नक्शेकदम पर चल रहा है, जिस का असर देश की आधी आबादी पर दिख रहा है. सावरकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वेदों के बाद मनुस्मृति हिंदुओं के लिए मार्गदर्शक पाठ है और हम जानते हैं कि यह प्राचीन पाठ महिलाओं के सामाजिक जीवन के बारे में क्या सु?ाव देता है.’

सरकार ने सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से कोई काम नहीं किया है. महिलाओं से वोट हासिल करने के लिए भाजपा तमाम हथकंडे अपनाती है. महिला हितों की जब बात आती है तो भाजपा नेता इस बात का तर्क देते हैं कि उन्होंने महिलाओं की बेहतरी के लिए तीन तलाक को खत्म करने का काम किया है. यह बात सही नहीं है. पहले तो तीन तलाक का मसला महिलाओं के एक छोटे से वर्ग मुसलिम महिलाओं के हित से जुड़ा है. दूसरी बात, तीन तलाक खत्म नहीं हुआ है. एक ही बार में तीन बार तलाक तलाक तलाक कह कर तलाक देने की पंरपरा को खत्म किया है. इस से तलाक होने या महिलाओं की दशा में कोई फर्क नहीं पड़ा है. हिंदू महिलाओं के हित में कोई भी कानून नहीं बना है. सामान्य वर्ग की महिलाएं आज भी अपनी कमाई और घर में खर्च के फैसले पति से पूछ कर करती हैं.

संसद और विधानसभा चुनावों में महिलाओं को आरक्षण देने वाला बिल भाजपा नहीं लाई, जबकि इस दौर में भाजपा के पास बिल पास कराने लायक पूरा बहुमत है. असल में भाजपा महिला राजनीति को आगे नहीं बढ़ाना चाहती. जिस तरह से धर्म महिलाओं को पीछे रखना चाहता है उसी तरह से भाजपा भी कर रही है. भाजपा का मातृ संगठन कहे जाने वाले आरएसएस में भी महिला संगठन केवल दिखाने भर के लिए है. संघ की बैठकों में महिलाओं की संख्या न के बराबर होती है. संघ और भाजपा संगठन में भी महिलाओं की संख्या न के बराबर है. भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष और संगठन मंत्री के पद महत्त्वपूर्ण होते हैं. यहां भी महिला नेता नहीं दिखतीं.

दरअसल भाजपा की सोच में ही महिलाओं को ताकतवर पद देना नहीं है. इस कारण ही पिछले 23 सालों में केवल 2 मुख्यमंत्री ही वह दे सकी है. इस दौर में गैरभाजपाई दलों ने 7 महिला नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया है. जब महिलाएं राजनीति में आगे नहीं आतीं तो उस का प्रभाव समाज पर पड़ता है. महिला समाज अपनी हिस्सेदारी को न देख कर निराश और हताश होता है. महिलाओं के कानून बनाने में अहम जिम्मेदारी न होने से उन के हित के कानून नहीं बन पाते.

यूपीए की सरकार के दौरान सोनिया गांधी चेयरपर्सन थीं. उन की रुचि के बाद 2005 में लड़कियों को संपत्ति में अधिकार देने वाला बड़ा कानून बन सका. आज महिलाओं के हित सम?ाने वाली महिला नेताओं की पूरी तरह से कमी दिख रही है. इसी वजह से महिलाओं के हित में कोई कानून नहीं बन रहा है.

कहीं मेरा नाम तो नहीं?

प्रेरणा की विभा मौसी से पटती तो हमेशा से थी, लेकिन अब तक उन से मुलाकात परिवार के अन्य सदस्यों के साथ होती थी. पर इस बार वह अकेली आई थीं और मौसा दौरे पर गए हुए थे. उस रात विभा ने प्रेरणा को अपने कमरे में ही सोने को कहा. सोने से पहले प्रेरणा ने पढ़ने के लिए कोई पत्रिका मांगी.

‘‘कौन सी दूं…’’ विभा ने 3-4 पत्रिकाओं के नाम बोले.

‘‘कोई भी दे दो.’’

‘‘हां, हैं तो सब एक सी ही, नारी उत्थान की हिमायती,’’ विभा बोली, ‘‘मगर, कोई कुछ भी कर ले, नारी उत्थान न कभी हुआ है और न होगा.’’

‘‘वह भला क्यों, मौसी.’’

‘‘क्योंकि पुरुषों से कहीं ज्यादा नारी ही नारी का शोषणा करती है यानी औरत ही औरत की दुश्मन है…”

‘‘जैसे कि सासबहू, ननदभौजाई और देवरानीजेठानी,’’ प्रेरणा ने बात काटी.

‘‘नहीं प्रेरणा, सगी बहनें और कई बार तो मांबेटी तक एकदूसरे का शोषण करती हैं,’’ विभा कसैले स्वर में बोली, ‘‘बेटी के मुकाबले मां का बेटे को ज्यादा सिर चढ़ाना तो सर्वविदित है ही, लेकिन कुछ बेकार की मान्यताओं के कारण बेटियों को उन की मनपसंद शिक्षा न देना या उन की पसंद के वर को नकार देना भी आम बात है और मैं तो इसे भी शोषणा ही कहूंगी.’’

प्रेरणा ने पत्रिका एक ओर रख कर बत्ती बुझा दी और पूछा, ‘‘और अगर व्यक्तिगत मनमुटाव के कारण किसी के प्यार का खून किया जाए तो उसे क्या कहोगी, मौसी.’’

‘‘जुल्म, अत्याचार, शोषण, कुछ भी, मगर ऐसा हुआ किसी के साथ.’’

‘‘हां, मेरे साथ.’’

यह सुन कर पहले तो विभा हक्कीबक्की रह गई, फिर संभल कर बोली, ‘‘तेरी मजाक करने की आदत कुछ ज्यादा ही हो गई है. अपने दिवंगत मातापिता को तो बख्श दे.’’

‘‘सच कह रही हूं मौसी, पापा तो खैर, इस सब में शामिल नहीं थे. मम्मी और लीना मामी के रहमोकरम ने ही कहर ढाया था.’’

तभी विभा के दिमाग में बिजली सी कौंधी. एक बार कुछ उड़तीउड़ती खबर तो सुनी थी कि आजकल शुभा जीजी और लीना भाभी में जबरदस्त ठनी हुई है. जीजी आरोप लगा रही हैं कि लीना का भांजा उन की भोलीभाली एकलौती बेटी को फांस रहा है और लीना का कहना है कि उस के सुशील, मेधावी भांजे को शुभा जीजी घरजमाई बनाने के लिए बेटी से उस पर डोरे डलवा रही हैं.

वैसे, जीजी और भाभी में छत्तीस का आंकड़ा तो शुरू से ही था. जुड़वां होने के कारण जीजी और तिलक भाईसाहब में कुछ ज्यादा ही पटती थी. दोनों घंटों बातें करते थे. पहले तो छोटे बहनभाइयों को इस में कुछ फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन जब शादी के बाद जीजी और दिल्ली में नौकरी कर रहे तिलक भाईसाहब कभी भी चंद दिनों के लिए एकसाथ घर आते, तब वयस्क हुए भाईबहनों को उन के घंटों कमरा बंद कर के अकेले बैठने की आदत बहुत खटकती थी. कुछ कहने पर भाईसाहब मुसकरा कर कह देते, ‘अपनी जीजी से पूछो भई, दरवाजा तो वही बंद करती है.’

जीजी से पूछना बिल्ली के गले में घंटी बांधना था और वह हिम्मत किसी में नहीं थी. भाईसाहब की शादी के बाद भी जीजी ने अपनी यह आदत नहीं छोड़ी. मायके तो वह हमेशा तभी आती थीं जब भाभी और भाईसाहब आते थे, लेकिन साल में 1-2 चक्कर भाई साहब के यहां जरूर लगा आती थीं. भाभी का कहना था कि तब अपने घर में ही उन की स्थिति एक शरणार्थी की सी हो जाती है. जाहिर है, वह तहेदिल से जीजी का स्वागत नहीं करती होंगी, मगर इस से जीजी को कुछ फर्क नहीं पड़ता था. वह मौका मिलते ही अपने लाड़ले भाई के पास चली आती थीं. परोक्ष में अगर उन्होंने भाभी की बुराई नहीं की तो कभी तारीफ भी नहीं की यानी दोनों एकदूसरे को महज इसलिए सहन कर रही थीं कि दोनों ही भाईसाहब को प्यार करती थीं और भाई साहब उन दोनों को, मगर यह शीतयुद्ध मासूम प्यार को ध्वस्त करने लायक विस्फोटक कैसे हो गया.

‘‘लेकिन, भाभी का भांजा तुझे मिला कहां…?’’ विभा ने पूछा.

‘‘उन्हीं के घर. मैट्रिक की परीक्षा दे कर मैं मम्मी के साथ दिल्ली गई थी. वहां जयेश यानी उन का भांजा भी इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा दे कर छुट्टियां गुजारने आया था,’’ प्रेरणा दिमाग पर जोर देती हुई बोली, ‘‘मम्मी जयेश को देख कर बहुत खुश हुईं, ‘अच्छा है, तुम यहां पर हो. तुम्हारे साथ इस लड़की का दिल भी लग जाएगा वरना मुझे यह कहकह कर ही परेशान कर रही थी कि मामा की छोटी बच्चियों के साथ मैं बोर हो जाऊंगी.’

‘‘इस पर जयेश आसमान की ओर देख कर बुदबुदाया, ‘चढ़ जा बेटा सूली पर, पहले तो 2 छोटी बच्चियां थीं. अब एक बड़ी और आ गई बोर करने को.’

‘‘मुझे उस की यह भावभंगिमा बहुत अच्छी लगी, लेकिन उस की चिढ़ाने की कोशिश का मैं मुंहतोड़ जवाब सोच पाती, मम्मी ने फिर पूछा, ‘तुम्हें गाड़ी चलानी आती है, जयेश.’

‘‘जयेश के हां कहते ही मम्मी ने मामा से कहा कि ड्राइवर के बजाय वह जयेश के साथ घूमना पसंद करेंगी,

‘ड्राइवर के साथ न आपस में बातचीत की आजादी रहती है, न ही मरजी से आनेजाने की. उसे तो समय पर छोड़ना होता है…’

‘‘‘और फिर गाड़ी में इतने लोगों के लिए जगह भी तो नहीं है,’ मामी ने भी सहमति जताई, ‘जयेश को ही गाड़ी चलाने दीजिए, सैरसपाटे का मजा रहेगा.’

‘‘और वाकई दिल्ली घूमने का मजा आ गया. मेरी और जयेश की कुछ ही घंटों में दोस्ती हो गई, जो जल्दी प्यार में बदल गई. कब वह जय और मैं प्रे हो गई, पता ही नहीं चला.

‘‘छुट्टियां खत्म हो रही थीं सो बिछुड़ना ही था, पर हमें इस का दुख नहीं था. हम फैसला कर चुके थे कि हम सारी छुट्टियां दिल्ली में ही गुजारा करेंगे.

‘‘यह कोई मुश्किल भी नहीं था, क्योंकि हरेक छुट्टियों में दिल्ली आना मेरी तो नियति थी ही और मामी का लाड़ला होने के कारण जय का तो उन के घर में सदा स्वागत था. और फिर उसे इंजीनियरिंग में दाखिला अपने ही शहर में मिल गया था. सो, छुट्टियों में तो उसे कहीं बाहर जाना ही था. लिहाजा, गरमीसर्दी की छुट्टियों में हमारी मुलाकात मजे से हो जाती थी.

‘‘एक बार मैं ने मम्मी से कहा कि हर बार हम ही दिल्ली आते हैं. एक बार हमें चिन्नीमिन्नी को भी अपने पास बुलाना चाहिए तो मम्मी बोलीं, ‘चाहती तो मैं भी बहुत हूं, पर क्या करूं, तेरे मामा को इतनी फुरसत ही नहीं मिलती.’

‘‘मम्मी के इतना कहते ही चिन्नीमिन्नी चहकीं, ‘पापा को काम करने दीजिए, बूआ, हम मम्मी और जयेश भैया के साथ आ जाएंगे.’

‘‘तभी मामी बोल पड़ीं, ‘हां, यह ठीक रहेगा. ये भी छुट्टियों में कहीं नहीं जा पातीं. सो, इन का घूमना भी हो जाएगा. आप से मिलने और हमें लेने के लिए बाद में तुम्हारे मामा भी आ जाएंगे.’

‘‘और उस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा कि गरमी की छुट्टियों में मैं दिल्ली जाती थी और क्रिसमस की छुट्टियों में मामी और बच्चों को ले कर जय हमारे घर आता था. मैं ने जय को अपनी सहेलियों से भी मिलवा दिया था और उन के पते पर वह अब मुझे पत्र भी लिखता था.

‘‘उस साल जय को छुट्टियों के दौरान किसी फैक्टरी में ट्रेनिग लेना अनिवार्य था. सो, उस से मुलाकात नहीं होगी, सोचसोच कर मेरा हाल बेहाल हो रहा था.

“मेरी हालत देख कर मेरी सहेली साधना ने अपने बड़े भाई से कह कर अपने शहर की एक बड़ी कंपनी में जय की ट्रेनिंग और गेस्टहाउस में रहने का प्रबंध करवा दिया.’’

‘‘अब जय तो यहां आए और मम्मी मुझे ले कर दिल्ली चल दें, इस से पहले ही मैं ने चिन्नीमिन्नी को भी अपने यहां आने को उकसा लिया. अब जय बेखटके उन सब से मिलने के लिए छुट्टी का दिन हमारे साथ गुजारता था. मम्मी को मामा के पास न जाना अच्छा नहीं लग रहा था. सो, उन्होंने एक दिन जय से पूछ ही लिया, ‘फैक्टरियां तो तुम्हारे भोपाल में भी बहुत हैं, फिर तुम इतनी दूर ट्रेनिंग लेने कैसे आ गए.’

‘‘‘यह फैक्टरी अपेक्षाकृत बड़ी थी, इसलिए यहां आ गया.’

‘‘‘तुम्हारी मम्मी ने कहा नहीं कि इतनी देर के लिए घर से इतनी दूर मत जाओ.’

‘‘‘यह तो कुछ ही सप्ताह की ट्रेनिंग है, आंटी, अगले साल तो एमबीए के लिए और उस के बाद नौकरी के लिए न जाने कितनी दूर जाना पड़ेगा.’

‘‘‘कुछ भी हो भई, हम तो अपनी प्रेरणा को अपने से दूर नहीं भेजेंगे. इसी शहर के किसी अच्छे लड़के से उस की शादी करेंगे.’’

‘‘मगर, जय पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. अकेले में मिलते ही उस ने मुझे आश्वासन दिया, ‘चिंता मत करो, मैं ने अपनी सूझबूझ से फैक्टरी में सब को प्रभावित कर लिया है. एमबीए करते ही यहां नौकरी करने आया समझो.’

‘‘मैं बोली कि एमबीए भी तो यहीं से कर सकते हो. मेरी सहेली रश्मि के पिता शिक्षा विभाग में सचिव हैं. वह तुम्हें एडमीशन दिलवा देंगे,’ तो जय बोला, ‘तो फिर मिलवाओ मुझे उन से, ताकि मैं उन्हें प्रभावित कर सकूं. तुम्हारे करीब रहने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.’

‘‘रश्मि के पिता जय से प्रभावित हुए और उन्होंने आश्वासन दिया कि उसे दाखिला अवश्य मिल जाएगा.

‘‘जब जय ट्रेनिंग पूरी कर के जा रहा था तो पापा ने औपचारिकतावश कहा था, ‘तुम्हारा यहां आना अच्छा लगता है. पता नहीं, अब कभी यहां आओगे भी या नहीं,’ तो जय बोला, ‘बहुत जल्दी और शायद हमेशा के लिए. मुझे आप का शहर बहुत पसंद है. मैं एमबीए यहीं से करूंगा और फिर अभी जहां ट्रेनिंग ली है, वहीं नौकरी भी मिल रही है.

‘‘मम्मी को हम दोनों पर शक तो पहले से ही था, अब वह विश्वास में बदल गया. उन्होंने शायद पहली बार मामी को पत्र लिखा और वह भी बहुत लंबा, यह मैं ने लिफाफे की मोटाई से अंदाजा लगाया.

‘‘मैं ने साधना के घर जाने के बहाने से बाहर जा कर जय को फोन कर के सब बताया. उसे ने मुझे आश्वासन दिया कि मम्मी जो कर रही हैं, करने दो, लीना मौसी मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरा अहित कभी नहीं करेंगी.’’

‘‘फिर 3-4 दिन के बाद ही एक रात मामी का फोन आया. उन्होंने मम्मी से पता नहीं क्या कहा, मगर वह बहुत खुश हुईं और बोली, ‘तुम बिलकुल सही कदम उठा रही हो, लीना. अगर तिलक कुछ टालमटोल करे तो मुझे बताना, मैं उसे डांट कर फौरन कुछ करने को कहूंगी.’

‘‘उस के कई दिन बाद फिर मामी का फोन आया और उन्होंने जो कहा, वह सुन कर मम्मी ने कहा कि आज रात वह चैन से सोएंगी.

‘‘मैं जय की बात से आश्वस्त हो चुकी थी. सो, मैं ने उस बातचीत को कोई अहमियत नहीं दी. मेरी बीए फाइनल की परीक्षा करीब आ रही थी. अगर जय की नौकरी लगने तक शादी टालनी थी तो अच्छे नंबर लाने थे, ताकि एमए में दाखिला मिल सके. सो, मैं पढ़ाई में जुट गई.

‘‘परीक्षा के बाद हमेशा की तरह मम्मी मुझे ले कर मामा के घर जाने के बजाय पापा के साथ दक्षिण भारत घुमाने ले गईं. मुझे भी दिल्ली जाने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि 2 महीने बाद तो जय आ ही रहा था.

“लौटने पर जब साधना को फोन किया, तो उस ने बताया कि जय का पत्र आया हुआ है और रश्मि को उस के पापा ने बताया है कि जय ने भी अभी तक दाखिला के लिए आवेदन नहीं किया है.’’

‘‘मेरे आग्रह पर साधना वह पत्र ले कर आ गई. जय ने लिखा था कि लीना मौसी और तिलक मौसाजी ने एमबीए के लिए उस का एडमीशन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में करवा दिया है. अब तो मेरी मम्मी को इस रिश्ते से जो भी एतराज होगा, वह अमेरिका रिटर्न्ड दामाद के लिए उड़नछू हो जाएगा. वह 2 साल बाद लौट कर मेरे शहर में ही नौकरी कर के मुझ से शादी करेगा. बस, मैं 2 साल किसी तरह अपनी शादी टाल दूं.

‘‘यह कोई मुश्किल नहीं था. पापा को मेरी शादी की जल्दी नहीं थी. वह मुझे पहले अच्छी तरह पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना चाहते थे.

“दुखी तो मैं बहुत हुई, लेकिन जय के उज्ज्वल भविष्य की खातिर इतना बिछोह तो सहन करना ही था.

‘‘वैसे, मैं समझ गई थी कि मम्मी के कहने पर ही मामा ने जय का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला करवाया है. उन के खयाल से जय मुझे अमेरिका जा कर भूल जाएगा और मैं भी बिना किसी संपर्क के कब तक उसे याद करूंगी, मगर उन्हें यह नहीं पता था कि हमारा प्यार शाश्वत था और हम एकदूसरे से बराबर संपर्क बनाए हुए थे.

‘‘मम्मी ने मेरे लिए लड़के देखने शुरू कर दिए थे. मैं लड़कों की तसवीर देख कर उन में कुछ ऐसा नुक्स निकालती कि पापा आगे बात चलाने से मना कर देते.

‘‘जय के लौटने का समय नजदीक आ रहा था. मैं ने साधना के भाई से बात की. उन्होंने आश्वासन दिया कि वह जय को अपने यहां उच्च पद पर रख लेंगे. बेहतर रहे कि अगर वह उन्हें तुरंत अपना बायोडाटा भेज दे. तभी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तिलक मामा आ गए. बातोंबातों में पता चला कि अगले सप्ताह वह अमेरिका जा रहे हैं.’’

‘‘मैं पूछे बिना न रह सकी कि क्या वह जयेश से मिलेंगे? इस पर वह बोले, ‘उसी की शादी तय करने तो जा रहा हूं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक भारतीय प्रोफैसर ने जयेश को दाखिला और अतिरिक्त सुविधाएं दी ही इसी शर्त पर थीं कि वह उन की बेटी से शादी कर के वहीं रहेगा. लडक़ी ग्रीनकार्ड होल्डर है. सो, जयेश को भी ग्रीनकार्ड मिल जाएगा और वह अपने भाईबहनों को भी वहीं बुला लेगा. इस तरह पूरे परिवार का कल्याण हो जाएगा.’

‘‘इस पर मैं बोली, ‘लेकिन, मेरा और जय का तो सर्वनाश हो जाएगा, मामा. आप को मालूम नहीं, हम एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं.’

‘‘‘मालूम है, तभी तो जयेश को तुम से दूर, अमेरिका भेजने को मैं ने प्रोफैसर सहाय के साथ यह सौदेबाजी की, वरना तो यह मेरे सिद्धांतों के सर्वथा खिलाफ है.’

‘‘‘पर, आप ने ऐसा क्यों किया, मामा? क्यों नहीं हो सकती मेरी और जयेश की शादी?’ मैं बोली.

‘‘‘महज इसलिए कि जयेश लीना का भांजा है, जिसे तुम्हारी मां पसंद नहीं करतीं. और तुम लीना की उस ननद की बेटी हो, जिसे स्वयं लीना और उस की बहन नापसंद करती है. मैं और तुम्हारे पापा जोरजबरदस्ती कर के अगर तुम दोनों की शादी करवा देंगे, तो तुम्हें ससुराल में तिरस्कार और जयेश को तुम्हारी मां की अवहेलना मिलेगी, जिसे उम्रभर झेलना आसान नहीं होगा. और फिर परिवार का बड़ा लड़का और एकलौती बेटी होने के कारण तुम दोनों का ही अपनेअपने परिवारों के प्रति कुछ दायित्व है. सो बेहतर यही है कि तुम एकदूसरे को भूल जाओ.’

‘‘‘जय शादी करना मान गया…?’ मैं ने पूछा.

‘‘‘अभी उसे इस बारे में कुछ पता नहीं है. उसे ही समझाने मैं अमेरिका जा रहा हूं. और सच पूछो तो, यहां भी मैं तुम्हें ही समझाने आया हूं कि जिद कर के या रोधो कर बेकार में अपनी फजीहज मत करवाना,’ मामा ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मुझे यकीन था कि जय कभी नहीं मानेगा, लेकिन कुछ सप्ताह बाद ही उस की शादी का कार्ड मिला. मैं बुरी तरह टूट गई.

‘‘फिर अचानक जय का पत्र आया. उस ने लिखा था, ‘तिलक मौसाजी के समझाने से मैं ने भी तुम्हारी तरह परिस्थितियों के सामने सिर झुका दिया था, लेकिन समझौता नहीं कर सका यानी अनीता को अपना नहीं पा रहा था. सो, उस के करीब जाते ही आंखें बंद कर के तुम्हारा ही ध्यान कर लेता हूं, काम चल जाता है.

‘‘‘मैं हिंदी में कविता लिखने लगा हूं. अनीता हिंदी पढ़ नहीं सकती तो बेखटके अपने मनोभाव तुम्हें अर्पित करता रहता हूं. तुम्हारा नाम जपने का भी तरीका निकाल लिया है. मैं ने अनीता को बता दिया है कि इंस्पिरेशन को हिंदी में प्रेरणा कहते हैं, जिस की कविता लिखने में हमेशा जरूरत रहती है, सो मैं जबतब चिल्लाता रहता हूं कि मेरी प्रेरणा कहां हो तुम. प्रेरणा, प्रेरणा खयालों में आओ न.’

‘‘उस समय तो मैं बहुत व्यथित हुई थी, लेकिन जयेश ने मेरी जिंदगी में आ कर नए रंग भर दिए. कई बार यह सोच कर दिल में अजब सी कसक भी उठती है कि मैं ने तो नए जीवन को पूरी तरह अपना लिया, लेकिन शायद जय बेचारा अभी भी समझौता कर के जी रहा होगा.’’

‘‘जी रहा होगा. तुझे नहीं पता कि जयेश को मरे तो कई महीने हो गए,’’ अब तक चुपचाप सुनती विभा तपाक से बोल पड़ी. यह सुन कर तो प्रेरणा चौंक पड़ी, ‘‘अचानक कैसे…? क्या एक्सीडेंट हुआ था?”

‘‘नहीं, ब्लड कैसर था उसे. काफी लंबा इलाज चला था.’’

‘‘मौसी, मेरा तो मम्मी और तिलक मामा की मृत्यु के बाद लीना मामी से संपर्क नहीं रहा. आप प्लीज, मुझे उन से जय के परिवार का पता ले कर दीजिए,’’ प्रेरणा ने दुखी स्वर में विनती की.

‘‘अनजान लोगों से क्या अफसोस जताओगी?’’ विभा बोली. इस पर प्रेरणा कुछ हिचकिचाई, ‘‘हां, मौसी. बस, यह जानने के लिए कि उस के अंतिम शब्द क्या थे.’’

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मां की बनारसी साड़ी : भाग 2

सगाई के एक महीने बाद ही शादी की डेट थी. शादी की लगभग सारी तैयारियां हो चुकी थीं. लेकिन यहां होनी को कुछ और ही मंजूर था. पूर्णिमा की शादी की ख़रीदारी कर के जब उस के मांबाबू जी वापस घर लौट रहे थे तब एक ट्रक के टक्कर से उन की गाड़ी खाई में जा गिरी, जिस से पूर्णिमा की मां की मौके पर ही मौत हो गई. मगर उस के बाबूजी बच गए थे.

चूंकि शादी की सारी तैयारी हो चुकी थी, इसलिए सब के विचारविमर्श से यह तय हुआ कि पूर्णिमा की शादी हो जानी चाहिए, क्योंकि लड़के वाले शायद न रुकें. और अगर उन्होंने अपने बेटे का रिश्ता कहीं और तय कर लिया, तो फिर क्या करेंगे हम? दिल पर पत्थर रख कर पूर्णिमा के बाबूजी ने कलपते हृदय से बेटी को विदा किया था.

विदाई के समय उस की मां की बनारसी साड़ी पूर्णिमा के हाथों में पकड़ाते हुए बाबू जी बोले थे कि यह उस की मां की आखिरी निशानी है जिसे वह उन का आशीर्वाद समझ कर रख ले. जबजब वह उस साड़ी को पहनेगी, लगेगा उस की मां उस के साथसाथ है. अपनी मां की बनारसी साड़ी सीने से लगाते हुए पूर्णिमा सिसक पड़ी थी.

यह बनारसी साड़ी पूर्णिमा के लिए सब से अजीज थी, क्योंकि इस साड़ी में उस की मां की यादें जो बसी थीं. जब भी वह इस साड़ी को पहनती, उस में से उसे अपनी मां की खुशबू आती थी. आज भी याद है उसे, जब भी उस की मां इस बनारसी साड़ी को पहनती थी, पूर्णिमा झांकझांक कर उसे देखती और कहती, ‘मां, ई तो साड़ी बहुत सुंदर है. हम भी पहनें जरा.उस पर उस की मां हंसती हुई कहती कि अभी वह बच्ची है. नहीं संभलेगी उस से इतनी भारी साड़ी. लेकिन जब वह बड़ी हो जाएगी न, तब इस साड़ी को पहन सकती है.

इस बनारसी साड़ी में पूर्णिमा की मां कोई देवी की तरह दिखती थी. वह पूर्णिमा को बताया करती थी कि यह बनारसी साड़ी उन की शादी के लिए खास काशी से मंगवाई गई थी. उस बनारसी साड़ी की सब से खास बात यह थी कि उस में सोनेचांदी के बारीक तार से तारकशी की गई थी. उन की शादी के सारे गहने भी बनारस से गढ़वाए गए थे. पूर्णिमा का नानी घर बिहार के भागलपुर जिला में पड़ता था. वहां उस के नाना बहुत बड़े जमींदार थे पहले. लेकिन अब न तो जमींदार रहे और न ही जमींदारी. उन के निकम्मे, नालायक, नकारा बेटों ने पिता की सारी जमीनजायदाद बेचबाच कर शराब-जुए में उड़ा डाला. वो कहते हैं न, ‘पूत सपूत तो क्यों धन संचय- पूत कपूत तो क्यों धन संचय.व्यर्थ ही उन्होंने तीनतेरह कर के इतना धन कमाया, सब बेकार ही गया न.

पूर्णिमा की मां अपनी बनारसी साड़ी को सिंदूर-चूड़ी की तरह ही सुहाग का प्रतीक मानती थी. वह अपनी साड़ी को बड़े ही यत्न से संभाल कर रखती थी. शुभ अवसरों पर ही वे इस साड़ी को पहना करती थीं और फिर तह कर के अच्छे से अलमारी में रख दिया करती थीं. पूर्णिमा को यह साड़ी सौंपते हुए उस के बाबूजी ने कहा था कि यह बनारसी साड़ी उस की मां के दिल के बहुत करीब थी, इसीलिए वह इसे अच्छे से संभाल कर रखे. लेकिन अफसोस की पूर्णिमा अपने बाबूजी की उम्मीदों पर खरी न उतर पाई.

औफिस से आ कर देखा तो पूर्णिमा अब भी अपने कमरे में लेटी हुई थी. मम्मा, ठीक हो आप?” पूर्णिमा के पास बैठते हुए अलीमा ने पूछा, तो वह बोली कि हां, ठीक हूं.

मम्मा, सुबह से देख रही हूं, आप उदास लग रही हो. प्लीज, कोई बात है तो मुझ से शेयर कर सकती हो, आप,” पूर्णिमा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए अलीमा बोली, “आलोक ने कुछ कहा आप से? तो फिर पापा से झगड़ा हुआ क्या? अगर नहीं, तो फिर क्या बात है, बताओ न मुझे.

पूर्णिमा क्या बताती उसे. क्या समझ पाएगी वह उस की भावनाओं को. नहीं, ऐसी बात नहीं है कि वह उसे नहीं समझती. लेकिन आज की जेनरेशन को इमोशन जैसी बातें फुजूल ही लगती हैं. जब उस के खुद के बच्चे ही मां की बातों को इमोशन फूल, फालतू, बकवास कह कर हंसी में उड़ा देते हैं, तो अलीमा से क्या उम्मीद लगाए वह.

देखा नहीं क्या, कैसे पूर्णिमा की जेठानी की बहू ने अपनी सास के दिए गले के नेकलेस को आउट औफ डेट बता कर उसे तुड़वा कर नया बनवा लिया था और बेचारी सास मुंह ताकती रह गई थी. कुछ बोल ही नहीं पाई वो. जबकि वह खानदानी नेकलेस था.

मम्मा, मैं आप के लिए अदरक वाली कड़क चाय बना लाती हूं, फिर हम साथ बैठ कर पिएंगे, ओके,” अलीमा ने इतने प्यार से कहा कि न चाहते हुए भी पूर्णिमा मुसकरा उठी. अलीमा समझ गई कि पूर्णिमा उसे कुछ बताना नहीं चाहती, इसलिए उस ने फिर उस से कोई सवाल नहीं किया. लेकिन मन में बात तो उमड़घुमड़ कर ही रही थी.

अलीमा है तो पूर्णिमा की बहू, लेकिन दोनों के बीच मांबेटी जैसा प्यार था. दोनों में सहेलियों जैसा हंसीमजाक भी चलता, तो कभी गलती करने पर पूर्णिमा उसे डांट भी दिया करती थी. घर में जब उकताहट होने लगती तो दोनों सासबहू चाटपकौड़ी खाने के बहाने घर से निकल पड़तीं और ढेर सारी शौपिंग कर घर लौटतीं. कभी किसी रोज उन का खाना पकाने का मन न होता, तो दोनों आपसी सहमति से बाहर से ही कुछ और्डर कर के मंगवा लेतीं और फिर खूब मजे से नेटफ्लिक्स पर अपनी मनपसंद फिल्म लगा कर देखतीं. अजब ही कहानी हैं इन सासबहू की. अलीमा को वह सिर्फ एक साल से जानती है लेकिन लगता है उस से उस का वर्षों का रिश्ता है. अपने एकलौते आईआईटीइंजीनियर बेटे के मुंह से जब पूर्णिमा और रजत ने यह सुना था कि वह अपने ही औफिस में काम करने वाली अलीमा नाम की एक क्रिश्चियन लड़की से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है तो दोनों शौक रह गए थे. रजत तो एकदम से आगबबूला हो उठा था और अपना आपा खोते हुए बोला था कि इस घर में कभी कोई क्रिश्चियन लड़की हमारी बहू बन कर नहीं आ सकती. और अगर आलोक उन की बातों से इत्तफाक नहीं रखता तो वह इस घर को छोड़ कर जा सकता है. आलोक ने भी तैश में आ कर बोल दिया कि तो ठीक है वह इस घर से निकल जाएगा. पर अलीमा को कभी अपनी ज़िंदगी से नहीं निकाल सकता वो.

बापबेटे के बीच रोज के खींचातानी में पूर्णिमा पिस रही थी. घर का माहौल बिगड़ रहा था सो अलग और यह सब हो रहा था उस अलीमा की वजह से. उस ने ही बापबेटे के बीच इतनी बड़ी खाई पैदा की थी कि वे एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करते थे. उन के बीच बात की शुरुआत झगड़े से शुरू हो कर झगड़े पर ही खत्म होती थी. इधर पूर्णिमा न तो अपने बेटे को समझा पा रही थी और न ही पति को. किसी एक का साथ देती तो दूसरे की नजरों में बुरी बन जाती वो. अजीब ही स्थिति हो गई थी उस की इस घर में.

वैसे, अगर आलोक अपनी जगह सही था तो रजत भी कहां गलत थे. कोई भी बाप यह कैसे सहन कर सकता है कि उस का बेटा जातबिरादरी से बाहर जा कर शादी करे वह भी एक ऐसी लड़की से जिस के मांबाप का तलाक हो चुका है. आखिर रहना तो उन्हें इसी समाज में है न? और कल को उन्हें अपनी बेटी, मीठी की भी तो शादी करनी है न. कौन करेगा फिर उस से शादी जब पता चलेगा कि पूर्णिमा और रजत ने एक क्रिश्चियन बहू उतारी है तो? लेकिन यह बात आलोक समझ ही नहीं पा रहा था.

सो, अब पूर्णिमा ने फैसला किया कि वह अलीमा से मिल कर उसे समझाएगी कि वह उस के बेटे की ज़िंदगी से खुद ही निकल जाए. इसके लिए वह उसे मुंहमांगी कीमत देने को भी तैयार थी. लेकिन अलीमा से मिल कर पूर्णिमा के सारे फैसले धरे के धरे रह गए. इतनी मासूम बच्ची थी वह कि उसे देखते ही पूर्णिमा को उस से प्यार हो आया. और जब झुक कर उस ने पूर्णिमा के पांव छूए और मां कह कर उस के गले लग गई तो पूर्णिमा का रोमरोम सिहर उठा. उसे लगा जैसे मीठी उस के गले लग रही हो. कुछ तो बात है इस लड़की में, ऐसे ही नहीं आलोक इस की खातिर सबकुछ छोड़ने को तैयार हो गयाअपने मन में ही सोच पूर्णिमा ने मन ही मन फैसला कर लिया कि यही लड़की उस के घर की बहू बनेगी.

घर आ कर पूर्णिमा ने रजत को विस्तार से सबकुछ बताया और कहा कि वह जरा ठंडे दिमाग से सोचे. और ज़िंदगी आलोक को गुजारनी है अलीमा के साथ, तो फैसला भी उसी का होना चाहिए? आज जमाना बहुत आगे बढ़ चुका है. अगर हम मांबाप अपने बच्चों को अपनी सोच के दायरे में बांधने की कोशिश करेंगे, तो हो सकता है एक दिन बच्चे वह दायरा तोड़ कर बाहर निकल जाएं और फिर कभी वापस ही न आएं. इसलिए कह रही हूं कि तुम एक बार अलीमा से मिल कर तो देखो. देखना कैसे तुम्हारा भी दिल पिघल जाएगा उस से मिलकर,” पूर्णिमा के बहुत समझाने पर रजत उस से मिलने के लिए राजी तो हो गया, पर मन से नहीं.

लेकिन वह जब अलीमा से मिला, तो लगा, शायद वह खुद भी आलोक के लिए इतनी अच्छी लड़की नहीं ढूंढ़ पाता कभी. रजत ने खुले दिल से आलोक और अलीमा की शादी की रजामंदी ही नहीं दी, बल्कि पूरे धूमधाम से पूरे समाज के सामने अपने बेटे का विवाह भी किया और ग्रैंड पार्टी रखी शहर के बड़े होटल में, जहां जातबिरादरी के लोग भी मौजूद थे. सामने से तो नहीं, पर वे पीठपीछे कहने से बाज नहीं आए कि क्या अपनी जातबिरादरी में लड़की कम पड़ गई थी जो ये लोग क्रिश्चियन बहू उठा लाए अपने बेटे के लिए.

लेकिन वो कहते हैं न, ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहनाउन्हें रत्तीभर भी इस बात से फर्क नहीं पड़ा कि लोग पीठपीछे उन के बारे में क्या बातें कर रहे हैं. फर्क तो इस बात से पड़ा कि आलोक और अलीमा एकदूसरे के साथ कितने खुश दिख रहे थे.

जानबूझ कर अलीमा पूर्णिमा को बाहर घुमाने ले गई थी ताकि उस का मूड थोड़ा ठीक हो. लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. पूर्णिमा की चुप्पी जब अलीमा के बरदाश्त के बाहर हो गई तब उस ने आलोक से बात की. लेकिन वह कहने लगा कि उसे क्या पता कि पूर्णिमा क्यों उदास है. हुआ होगा रजत से किसी बात पर झगड़ा. मीठी बेंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रही है, तो पूछने पर उस ने भी फोन वही बात दोहराई कि शायद रजत से पूर्णिमा का झगड़ा हुआ होगा, इसलिए उस का मूड औफ होगा. रजत से पूछा तो बोला, “नहीं तो. लेकिन लग रहा है पूर्णिमा लड़ने के मूड में है. इसलिए उसे बच कर रहना होगा.

रजत की बात पर अलीमा को हंसी आ गई. पापा, सच में बताइए न, मम्मा उदास क्यों हैं? कल मैं ने मम्मा को उन की अलमारी से कुछ निकालते देखा था पर मुझे देख कर उसे अलमारी में छिपा दिया. क्या चीज हो सकती है, आप को पता है?” उस पर रजत कहने लगा कि हां, पता है उसे.

क्या, बताइए न, प्लीज पापा.

रजत बताने लगा कि उस के पास उस की मां की एक आखिरी निशानी, बनारसी साड़ी थी जो दिवाली के पटाखों से जल गई थी. उस ने सोचा था, उस बनारसी साड़ी को वह अपनी 25वीं शादी की सालगिरह पर पहनेगी. लेकिन अब तो पहन ही नहीं सकती न. और इसलिए भी दुखी है वो कि कल ही के दिन उस की मां का देहांत हुआ था.

ओह, तो इसलिए मम्मा कल रो रही थींअपने मन में सोच अलीमा सोचने लगी कि ऐसा क्या करे जिस से पूर्णिमा की खुशी वापस आ जाए. लेकिन क्या, मीठी को फोन लगा कर पूछा तो वह कहने लगी कि उस के पास कोई आइडिया नहीं है. लेकिन वह साड़ी मां को बहुत अजीज थी. याद है उसे कालेज की फ्रैशर पार्टी में जब उस ने वह साड़ी पहनने के लिए मांगा था तब पूर्णिमा ने यह कह कर उस साड़ी को देने से मना कर दिया था कि एकदम अल्हड़ हो तुम. फाड़ दोगी. इसलिए कोई दूसरी साड़ी पहन लो. अब समझ गई अलीमा कि बात क्या है और वह साड़ी पूर्णिमा को अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी है.

उस रोज जब पूर्णिमा किसी काम से घर से बाहर गई थी तब अलीमा ने उस की अलमारी से वह साड़ी निकाल कर देखा. सच में साड़ी बहुत ही सुंदर थी. लेकिन उस का आंचल बुरी तरह से जल चुका था, बिलकुल भी पहनने लायक नहीं बची थी. देररात तक अलीमा यही सोचती रही कि ऐसा क्या करे वो जिस से पूर्णिमा की खोई खुशियां वापस लौट आएं.

फैसला हमारा है : भाग 2

बड़ी लंबी सी खामोशी के बाद प्रिया ने गंभीर लहजे में जवाब दिया था, ‘मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि किसी लालच के कारण मैं आप से नहीं जुड़ी हूं. मैं जब आप के साथ होती हूं तो बेहद खुश, खुद को बेहद सहज और सुरक्षित महसूस करती हूं. हम जीवनसाथी बनें, ऐसा विचार कभी मेरे मन में नहीं उठा है और न ही अब उठ रहा है. वैसे भी, हमारी जातियां अलगअलग हैं और उन में शादियां आज भी नहीं होतीं.’

‘गुड,’ मल्होत्रा साहब ने फिर से उसे अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया था.

‘लेकिन, क्या आप मु झे दिल से प्यार करते हैं या सिर्फ मेरा शरीर ही…’

मल्होत्रा साहब ने उस के होंठों को चूम कर उसे चुप किया और कहा, ‘तुम बेहद खूबसूरत, बहुत प्यारी, बहुत भोली और सम झदार लड़की हो, प्रिया. मैं बहुत खुश हूं, जो तुम मेरी जिंदगी में आई हो, ढेर सारी खुशियों की बहार ले कर.

‘तुम्हारे बारे में सोच कर मेरा मन नाच उठता है. तुम्हें देख कर दिल खिल उठता है. तुम पास रहो या दूर, मैं तुम्हारे इस सुंदर साथ के लिए सदा आभारी रहूंगा.’

‘और मैं भी आप की.’

‘तुम किसलिए?’

‘मौजमस्ती और सुखसुविधा भरी ऐसी जिंदगी का स्वाद चखाने के लिए, जो आप से जुड़े बिना मु झे कभी नसीब न होती. ऐशोआराम भरी ऐसी जिंदगी, जिस की मैं कल्पना करती तो दुनिया से विदा हो जाती.’

‘तुम्हें खुश रखना मु झे बहुत अच्छा लगता है.’

‘मेरी भी यही सोच है, माई स्वीटहार्ट,’ प्रिया भावुक हो कर मल्होत्रा साहब के सीने से लग गई थी.

उन दोनों ने अपने इस रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखने का हर संभव प्रयास किया था. प्रिया का ज्यादातर समय मल्होत्रा साहब की कोठी में बीतता. वे बाहर ऐसे शानदार व महंगे होटलों में ही जाते, जहां प्रिया के किसी परिचित या रिश्तेदार की मौजूदगी की संभावना न के बराबर होती.

‘मेरा दिल करता है कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ खुल कर घूमूंफिरूं, हंसूंबोलूं, पर तुम्हारी बदनामी का डर मु झे ऐसा नहीं करने देता,’ मल्होत्रा साहब ने एक दिन उदास लहजे में अपनी इच्छा व्यक्त की थी.

‘बनावटी जिंदगी जीते हुए सचाई को छिपाते जाना आज हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है, सर. देखिए, लकड़ी को बनावटी रूप दे कर ये सोफा और पलंग बने हैं. किस रिश्ते में हम बनावटी व्यवहार नहीं करते? क्या शादी की रस्म बनावटी नहीं है? प्रकृति में कहीं भी क्या शादी नाम की प्रथा, मानव समाज को छोड़ कर नजर आती है?’ प्रिया एकदम से उत्तेजित हो उठी थी.

‘मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो प्रेम है, वह बनावटी नहीं है, प्रिया.’

‘मैं जानती हूं, सर और इसीलिए कहती हूं कि हमें इस प्रेम की मिठास को बनाए रखने के लिए ही इसे दुनिया की नजरों से छिपाना होगा. लोगों को खामखां बकवास करने का मौका क्यों दें? ऐसा सोचना डर का नहीं, बल्कि सम झदारी का प्रतीक है, सर,’ प्रिया की इस सोच को सम झ कर मल्होत्रा साहब प्रेमसंबंध को ले कर कहीं ज्यादा सहज हो गए थे.

उस शाम को प्रिया अटैची ले कर मल्होत्रा साहब की कोठी पहुंची तो उस ने उन्हें परेशानी व उल झन का शिकार बने पाया था.

प्रिया ने कई बार उन की परेशानी का कारण पूछा, पर वे जवाब देना टाल गए. तब प्रिया ने गुमसुम बन कर उन के मन की बात जानने के लिए उन पर दबाव बनाया.

प्रिया की यह तरकीब डेढ़ घंटे में ही सफल हो गई और मल्होत्रा साहब ने उस की बगल में बैठ कर अपने मन की परेशानी को बताना शुरू कर दिया.

‘‘आज शाम को घटी 2 बातों ने मेरे मन की शांति हर ली है,’’ मल्होत्रा साहब ने गहरी सांस खींच कर बोलना शुरू किया, ‘‘पहले तो मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी ने तुम्हें ले कर बड़ी घटिया सी बात कही और फिर…’’

‘‘क्या कहा था उन्होंने?’’ प्रिया ने अपने माथे पर बल डाल कर उन्हें टोकते हुए पूछा.

‘‘उस बात को छोड़ो.’’

‘‘नहीं, प्लीज, मैं जानना चाहती हूं.’’

बड़ी  िझ झक के साथ मल्होत्रा साहब ने बताया, ‘‘वह घटिया इंसान जानना चाह रहा था… पूछ रहा था कि तुम एक रात के लिए कितना चार्ज करती हो. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारी जाति की लड़कियां तो शादी से पहले ही जीजाओं, चाचाओं, पड़ोसियों के साथ हंसखेल चुकी होती हैं.’’

‘‘मैं सम झ गई. फिर आप ने क्या जवाब दिया?’’ प्रिया ने उन का हाथ पकड़ कर शांत भाव से पूछा.

‘‘मेरा दिल तो किया था कि घूंसे मार कर उस के दांत तोड़ डालूं, पर बेकार का तमाशा खड़ा हो जाता. मैं ने कड़े शब्दों में फिर कभी ऐसी बकवास करने की हिम्मत न करने की चेतावनी दे दी है.’’

‘‘गुड. मैं उस के व्यवहार से चकित नहीं हूं, सर. हमारा समाज भौतिक स्तर पर खूब तरक्की कर रहा है, पर अधिकतर लोगों की सोच नहीं बदली है. पतिपत्नी के रिश्ते को छोड़ उन्हें स्त्रीपुरुष के हर अन्य संबंध में अनैतिकता और अश्लीलता ही नजर आती है.’’

‘‘इस तरह के लोग तुम्हारी बदनामी का कारण बन जाएंगे, प्रिया. मेरे कारण तुम जिंदगी में दुख और परेशानियां उठाओ, यह मु झे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. तुम्हारी मां ठीक ही कह रही

थीं कि…’’

उम्र भर का रिश्ता : भाग 2

“हां जी सर बनाना तो आता है. पर क्या आप मेरे हाथ का बना हुआ खाएंगे?”

“हां सपना खा लूंगा. मैं इतना ज्यादा कुछ ऊंचनीच नहीं मानता. जब कोई और रास्ता नहीं तो यही सही. तुम बना दो मेरे लिए खाना.”

मैं ने उसे ₹500 का नोट देते हुए कहा, “चावल, आटा, दाल, सब्जी जो भी मिल सके ले आओ और खाना तैयार कर दो.”

“जी सर” कह कर वह चली गई.

शाम में दोतीन डब्बों में खाना भर कर ले आई,” यह लीजिए, दाल, सब्जी और चपाती. अचार भी है और हां कल सुबह चावल दाल बना दूंगी.”

“थैंक्यू सपना. मैं ने डब्बे ले लिए. अब यह रोज का नियम बन गया. वह मेरे लिए रोज स्वादिष्ट खाना बना कर लाती. मैं जो भी फरमाइश करता वही तैयार कर के ले आती. अब मैं उस से और भी ज्यादा बातें करने लगा. उस से बातें करने से मन फ्रेश हो जाता. वह हर तरह की बातें कर लेती थी. उस की बातों में जीवन के प्रति ललक दिखती थी. वह हर मुश्किल का सामना हंस कर करना जानती थी. अपने बचपन के किस्से सुनाती रहती थी. उस के घर में मां, बाबूजी और छोटा भाई है. अभी वह अपने घर में अकेली थी. घरवाले शादी में पास के शहर में गए थे और वहीं फंस गए थे.

वह बातचीत में जितनी बिंदास थी उस की सोच और नजरिए में भी बेबाकी झलकती थी. किसी से डरना या अपनी परिस्थिति से हार मानना उस ने नहीं सीखा था. किसी भी काम को पूरा करने या कोई नया काम सीखने के लिए अपनी पूरी शक्ति और प्रयास लगाती. हार मानना जैसे उस ने कभी जाना ही नहीं था.

उस की बातों में बचपन की मासूमियत और युवावस्था की मस्ती दोनों होती थी. बातें बहुत करती थी मगर उस की बातें कभी बोरियत भरने वाली नहीं बल्कि इंटरेस्ट जगाने वाली होती थीं. मैं घंटों उस से बातें करता.

उस ने शहर की लड़कियों की तरह कभी कॉलेज में जा कर पढ़ाई नहीं की. गांव के छोटे से स्कूल से पढ़ाई कर के हाल ही में 12वीं की परीक्षा दी थी. पर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा हुआ था. दिमाग काफी तेज था. कोई भी बात तुरंत समझ जाती. हर बात की तह तक पहुंचती. मन में जो ठान लेती वह पूरा कर के ही छोड़ती.

शिक्षा और समझ में वह कहीं से भी कम नहीं थी. अपनी जाति के कारण ही उसे मांबाप का काम अपनाना पड़ा था.

उस की प्रकृति तो खूबसूरती थी ही दिखने में भी कम खूबसूरत नहीं थी. जितनी देर वह मेरे करीब बैठती मैं उस की खूबसूरती में खो जाया करता. वह हमेशा अपनी आंखों में काजल और माथे पर बिंदिया लगाती थी. उन कजरारी आंखों के कोनों से सुनहरे सपनों की उजास झलकती रहती. लंबी मैरून कलर की बिंदी हमेशा उस के माथे पर होती जो उस की रंगबिरंगी पोशाकों से मैच करती. कानों में बाली और गले में एक प्यारा सा हार होता जिस में एक सुनहरे रंग की पेंडेंट उभर कर दिखती.

“सपना तुम्हें कभी प्यार हुआ है ?” एक दिन यूं ही मैं ने पूछा.

मेरी बात सुन कर वह शरमा गई और फिर हंसती हुई बोली,” प्यार कब हो जाए कौन जानता है? प्यार बहुत बुरा रोग है. मैं तो कहती हूं यह कोरोना से भी बड़ा रोग है.”

उस के कहने का अंदाज ऐसा था कि मैं भी उस के साथ हंसने लगा. हम दोनों के बीच एक अलग तरह की बौंडिंग बनती जा रही थी. वह मेरी बहुत केयर करती. मैं भी जब उस के साथ होता तो पूरी दुनिया भूल जाता.

एक दिन शाम के समय मेरे गले में दर्द होने लगा. रात भर खांसी भी आती रही. अगले दिन भी मेरी तबीयत खराब ही रही. गले में खराश और खांसी के साथ सर दर्द हो रहा था. मेरी तबीयत को ले कर सपना परेशान हो उठी. वह मेरे खानपान का और भी ज्यादा ख्याल रखने लगी. मुझे गुनगुना पानी पीने को देती और दूध में हल्दी डाल कर पिलाती.

तीसरे दिन मुझे बुखार भी आ गया. सपना ने तुरंत मेरे घरवालों को खबर कर दी. साथ ही उस ने रिसोर्ट के डॉक्टर को भी फोन लगा लिया. डॉक्टर की सलाह के अनुसार उस ने मुझे बुखार की दवा दी. रिसोर्ट के ही इमरजेंसी सामानों से मेरी देखभाल करने लगी. उस ने मेरे लिए भाप लेने का इंतजाम किया. तुलसी, काली मिर्च, अदरक,सौंठ मिला कर हर्बल टी बनाई. एलोवेरा और गिलोय का जूस पिलाया. वह हर समय मेरे करीब बैठी रहती. बारबार गुनगुना कर के पानी पिलाती.

कोई और होता तो मेरे अंदर कोरोना के लक्षण का देख कर भाग निकलता. मगर वह बिल्कुल भी नहीं घबड़ाई. बिना किसी प्रोटेक्टिव गीयर के मेरी देखभाल करती रही. मेरे बहुत कहने पर उस ने दुपट्टे से अपनी नाक और मुंह ढकना शुरू किया.

इधर मेरे घर वाले बहुत परेशान थे. मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती थी मगर सपना ही वीडियो कॉल करकर के पूरे हालातों का विवरण देती रहती. मेरी बात करवाती. खानपान के जरिए जो भी उपाय कर रही होती उस की जानकारी उन्हें देती. मां भी उसे समझाती कि और क्या किया जा सकता है.

इधर पापा लगातार इस कोशिश में थे कि मेरे लिए अस्पताल के बेड और एंबुलेंस का इंतजाम हो जाए. इस के लिए दिन भर फोन घनघनाते रहते. मगर इस पहाड़ी इलाके में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी. आसपास कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं था. इन परिस्थितियों में मैं और मेरे घरवाले सपना की सेवा भावना और केयरिंग नेचर देख कर दंग थे. मम्मी तो उस की तारीफ करती नहीं थकतीं.

कहीं कैंसर न बन जाए कमर दर्द

कमरदर्द गंभीर बीमारियों का एक भयानक संकेत है. पर हम में से कितने कमर और अन्य भागों के दर्द को यह जानते हुए भी गंभीरता से लेते हैं कि यह खतरे की घंटी है और अन्य गंभीर बीमारियों के अलावा कैंसर का भी लक्षण हो सकता है? कैंसर की गिनती आज भी जानलेवा बीमारियों में होती है. यह खून के माध्यम से हड्डियों तक पहुंचता है और सब से आसानी से पीडि़त होती हैं रीढ़ की हड्डियां. कमर के निचले हिस्से का दर्द भी कैंसर का एक आरंभिक लक्षण हो सकता है.

कमरदर्द बहुत तकलीफदेह हो और हमेशा रहता हो तो यह रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर का मामला हो सकता है. कुछ कैंसर ऐसे हैं जिन के आरंभिक चरण में उन्हें सामान्य कमरदर्द से अलग करना कठिन होता है. इसलिए इस तरह के दर्द में यह जांच करवा लेने में बुद्धिमानी है कि मामला कैंसर का तो नहीं.

दर्द और कैंसर

कमरदर्द के कई कारण हैं, जैसे गलत मुद्रा में बैठना जिस से मांसपेशियों में दर्द, डिस्क की समस्या, संक्रमण, आघात, और यहां तक कि रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर हो सकता है. हालांकि कैंसर, शुरू में कमरदर्द के रूप में सामने आ सकते हैं.

रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर होने से कमरदर्द इसलिए होता है क्योंकि हड्डी का आकार बड़ा हो जाता है या वर्टीब्रा (रीढ़ का जोड़) में फ्रैक्चर हो जाता है. यह देखा गया है कि ज्ञात या अज्ञात कैंसर के 80 प्रतिशत मरीजों में यह हड्डियों तक फैल जाता है. चौंकाने वाली बात यह है कि 36 प्रतिशत मामलों में तो कोई लक्षण भी नहीं होता. यह सामान्य कमरदर्द के रूप में मौजूद हो सकता है जो कि ऐसे मरीजों में कैंसर का सब से आम लक्षण है. कुछ कैंसर आसानी से रीढ़ की हड्डियों तक फैल सकते हैं, जैसे स्तन कैंसर, फेफड़े का कैंसर, किडनी का कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, मल्टीपल मायलेमा, लिम्फोमा, पेटआंत के कैंसर और सर्वाइकल कैंसर. चिकित्सक इस प्रकार के दर्द का कारण जानने के लिए आमतौर पर एमआरआई कराते हैं जिस से शरीर संरचना संबंधी विकृतियां ही सामने आती हैं. हालांकि जरूरी है कैंसर की जड़ तक पहुंचना ताकि इलाज की सही योजना बनाई जाए. इस का एक ही रास्ता है – कैंसर का पता लगाने के लिए जांच, जिस से किसी व्यक्ति के शरीर के किसी हिस्से में कैंसर होने का पता चलता है.

लाइलाज नहीं कैंसर

हम में बहुत से लोग यह मान बैठे हैं कि कैंसर लाइलाज है जबकि सच यह है कि समय से बीमारी का पता चले तो इस का इलाज सफल हो सकता है. आमतौर पर विभिन्न प्रयोगशालाओं और संस्थानों में होने वाली संपूर्ण शरीर स्वास्थ्य जांच को जनजन जांच अभियान का रूप दिया गया है जिस का मकसद कम शुल्क पर प्रभावी स्वास्थ्य जांच है और एक बड़ी आबादी को इस का लाभ देने का लक्ष्य रहता है. इन जांचों में बीमारी पकड़ने के लिए सामान्यतया कम सैंसिटिविटी और विवरण होते हैं. भारत में संपूर्ण शरीर स्वास्थ्य जांच के दायरे में आते हैं, फेफड़े का कैंसर, मल में ओकल्ट ब्लड, खून की सूक्ष्मदर्शी जांच, पेशाब की सूक्ष्मदर्शी जांच, पेट का अल्ट्रासाउंड, स्तन की मैमोग्राफी आदि.

अल्ट्रासाउंड आमतौर पर हाल में स्नातक की डिगरी प्राप्त चिकित्सक करते हैं जिन्हें मरीज की हिस्ट्री नहीं पता होती और इसलिए उन्हें कुछ संदिग्ध नहीं लगता. इन जांचों के परिणामों की विश्वसनीयता की अपनी सीमा होती है.

जांच कराएं पता लगाएं

कैंसर का पता लगाने के लिए पूरे शरीर का पीईटी एमआरआई एक बहुत ही विशेषज्ञता की जांच है. एफडीजी आधारित इस जांच में भूखे पेट मरीज के शरीर में रेडियो लेवल ग्लूकोज मोलेक्यूल की सूई दी जाती है. इस से शुरू होती है ग्लूकोज हासिल करने के लिए असामान्य कोशिकाओं की सामान्य कोशिकाओं से प्रतिस्पर्धा. नतीजतन, शरीर में होने वाली असामान्य गतिविधियों का पता चल जाता है जिस की पुष्टि उस हिस्से की व्यापक एमआरआई जांच से कर ली जाती है जिस से, यदि बीमारी हुई तो उस के स्वरूप और फैलाव का पता चल जाता है.

किसी गंभीर बीमारी का लक्षण किसी व्यक्ति को महसूस होने या पता लगने वाला संकेत है जो अन्य लोग आसानी से नहीं देख सकते हैं. अगर आप को भी ऐसा ही कोई लक्षण महसूस हो तो नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं क्योंकि दर्द को नजरअंदाज करने से स्वास्थ्य की कुछ गंभीर, बल्कि जानलेवा समस्याएं भी हो सकती हैं. यदि दर्द और तकलीफ लंबी अवधि तक परेशान करे तो इसे हलके में न लें और रोकथाम के उपाय अवश्य करें. चिकित्सक से सलाह ले कर रोकथाम के उपाय करें ताकि कोई अनहोनी न हो जाए.

क्यों होता है कमरदर्द

–       जब जरूरत से ज्यादा वजन बढ़ता है.

–       नियमित अभ्यास की कमी से शरीर की मांसपेशियां अकड़ जाती हैं.

–       लंबे अंतराल तक एक ही जगह काम करना.

–       आगे की ओर झुक कर चलना या बैठना.

–       हाईहील की सैंडल ज्यादा प्रयोग करना.

–       डिप्रैशन से भी मांसपेशियों में तनाव आ जाता है.

कमरदर्द से कैसे बचें

–       स्वस्थ जीवनशैली, पोषक खानपान और कैल्शियम, विटामिन डी की खुराक.

–       सही तरीके से शारीरिक मुद्रा में उठनाबैठना.

–       मोटापे पर पूरी तरह नियंत्रण.

–       पैरों को आराम पहुंचाने वाले फुटवियर, जो बहुत ऊंची हील के न हों, पहनें.

–       हैवी ऐक्सरसाइज और भारी सामान को झटके से न उठाएं.

–       लगातार या लंबे समय तक बैठें या लेटें नहीं.

कमरदर्द के साइड इफैक्ट

किडनी से जुड़े इन्फैक्शन, संक्रमण, स्पाइनल ट्यूमर, बैकबोन में इन्फैक्शन आदि.

मेरी शादी को साल भर ही हुआ है, लेकिन रोजाना हमारे बीच कलह रहता है, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को साल भर हुआ है. हम ने लव मैरिज की थी, बावजूद इस के हम पतिपत्नी में आए दिन कलह होती रहती है. थोड़ा बहुत लड़ाईझगड़ा तो हर पतिपत्नी में होता है पर जितना हम दोनों लड़ते हैं इतना तो शायद ही कोई लड़ता होगा. हैरानी तो इस बात की है कि शादी से पहले सब ठीक था पर शादी होते ही स्थितियां एकदम से बदल गईं. और मेरे पति भी. विश्वास नहीं होता कि यह वही इंसान है जिस से मैं ने प्यार किया था और जो मेरी छोटी से छोटी इच्छा का भी मान रखता था.

जवाब
आप का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं है इस का दोष आप अपनी लव मैरिज को न दें. अरेंज्ड मैरिज में भी समस्याएं न आती हों ऐसा नहीं है. दिक्कत हर विवाह में कमोबेश आती हैं. अत: अपने विवाह का तुलनात्मक मूल्यांकन न करें कि यदि अरेंज्ड मैरिज करतीं तो सुखी रहतीं.

आप के मामले में मुख्य मुद्दा आप की दोनों विवाहित ननदें हैं. एक अकेली सास से तालमेल बैठाना ही बहुओं के लिए आसान नहीं होता जिस पर 3-3 महिलाएं आप का जीना हराम किए हुए हैं. इसी के चलते आप के पति से आप के संबंध दरक रहे हैं.

स्थिति जैसी भी हो सामंजस्य बैठाने का प्रयास आप को अपने दम पर करना होगा. कहीं थोड़ा मीठा बन कर तो कहीं थोड़ी निर्भीकता दिखाते हुए ताकि पति की मां व बहनों की वजह से उन से आप अपना रिश्ता न बिगाड़े. यद्यपि ऐसा करना आसान नहीं होगा. पर इस के अलावा आप के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है. पति के सामने अपना पक्ष रखें पर उन्हें तानेउलाहने न दें. जो बात आप सामान्य रह कर प्यार से उन्हें समझा सकती हैं वह तकरार से नहीं. उन का मूड देख कर उन्हें समझाए कि उन की बहनों को अपनेअपने घर में जा कर रहना चाहिए, क्योंकि बीच में रहने से रिश्ते दरकते ही हैं जबकि दूरी बना कर रहने से प्यार बढ़ता है.

जहां तक घर से लड़झगड़ कर और नाराज हो कर मायके जाने की बात है, ऐसी भूल दोबारा कतई न करें. इस से आप की छवि बिगड़ती है. समस्याएं उन का समाधान ढूंढ़ने से हल होती हैं न कि पलायन करने से.

आप अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें. थायराइड का इलाज कराएं. इस से आप मोटापे से भी कुछ हद तक छुटकारा पा सकती हैं.

जहां तक मातृत्व के लिए आप की चिंता है तो अभी आप की शादी को मात्र साल भर हुआ है. समय के साथ आप मातृत्व सुख भी प्राप्त कर लेंगी.

समीप के किसी परिवार कल्याण केंद्र में जा कर भी इस बाबत परामर्श ले सकती हैं पर सब से पहले जरूरी है कि अपनी सूझबूझ से अपनी पारिवारिक स्थिति को अनुकूल बनाने का प्रयास करें.

इस के लिए हम सिर्फ सुझाव दे सकते हैं, कोशिश आप को स्वयं करनी होगी. सकारात्मक सोच रखेंगी, हिम्मत और धैर्य से काम लेंगी तो वह दिन दूर नहीं जब आप सब समस्याओं से छुटकारा पा कर अपने दांपत्य को खुशहाल बना लेंगी.

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