समाज में जितना हौवा गैरबिरादरी में विवाह करने का बना दिया गया है, उतना डर शायद किसी और चीज का नहीं है. न जाने कितनी प्रेम कहानियां प्रेमीप्रेमिका के दूसरी जाति के होने पर दम तोड़ देती हैं. कभी लड़का, कभी लड़की सारी उम्र एक टीस के साथ आहें भरते जीते रह जाते हैं.

अपनी मरजी से विवाह करना किसी भी तरह से गलत नहीं है. इस के विपरीत दूसरे धर्म में, किसी दूसरी जाति में शादी करना आजकल के माहौल में प्रेम, सद्भाव बनाए रखने के लिए ज़रूरी है. कल्पना कर के देखिए ऐसे एक समाज की जहां कोई धर्म, जाति महत्त्व नहीं रखते. सब एक हैं, जीवन का आनंद हंसीख़ुशी उठा रहे हैं, मिलजुल कर रह रहे हैं, पतिपत्नी किसी तीर्थ की ओर नहीं बल्कि किसी शानदार पर्यटन स्थल की ओर जा रहे हैं, नई, खिली उमंगों के साथ, समुद्र, पहाड़ों की सैर कर रहे हैं.

पर यह इतना आसान भी नहीं है कि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से प्रेम किया और आराम से विवाह कर लिया. आसान तब है जब इस की पूरी तरह से जानकारी हो जाए कि इस विषय में क़ानून क्या कहता है. तो क्या कहता है क़ानून, आइए, एक नज़र डालते हैं, जानते हैं-

कुछ समय पहले केरल से एक खबर आई थी, वहां एक मुसलिम दंपती ने 29 साल बाद दोबारा शादी की. कारण यह था कि शरीयत कानून से की गई शादी में उन की बेटियों को पैतृक हक़ नहीं मिल पा रहा था. यह शादी उन्होंने स्पैशल मैरिज एक्ट के अनुसार की. यह भी खबर आई थी कि पिछले दिनों बौलीवुड ऐक्ट्रैस स्वरा भास्कर और फहाद अहमद ने भी इसी कानून के अनुसार शादी की थी. अभी अपने देश में विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955, मुसलिम मैरिज एक्ट 1954 या स्पैशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत होते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...