ठंड के मौसम में अस्थमा के अटैक होने का खतरा ज्यादा रहता है. ऐसे में इन्हेलेशन थैरेपी सांस न ले पाने की तकलीफ को रोकने में लाभदायक साबित हो सकती है.
सर्दी का मौसम शुरू होते ही स्वादिष्ठ खाने के साथ गरमागरम चाय की चुस्कियां और पिकनिक या पहाड़ों की ट्रिप मौसम के मजे को दोगुना कर देते हैं. लेकिन सर्दी का आगमन 17 साल के कालेज जाने वाले राहुल सिंह के लिए काफी मुश्किलभरा रहता है क्योंकि उसे अस्थमा की समस्या है. राहुल के लिए तो सर्दी में होने वाला मामूली सा जुकाम भी कई बार अस्थमा के अटैक का कारण बन जाता है.
राहुल को बचपन से ही अस्थमा है और यह बीमारी न सिर्फ राहुल के लिए, बल्कि उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है. इस मामले में राहुल अकेला नहीं है, बल्कि दुनियाभर में 235 मिलियन लोग अस्थमा से ग्रस्त हैं. ठंड में यह समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, अकसर लोग मानते हैं कि यह समस्या बुजुर्गों में होती है जबकि अस्थमा फेफड़ों की बीमारी है जिस में फेफड़ों से जाने वाली सांस की नलियों में सूजन आ जाती है. अमेरिकन लंग एसोसिएशन के तथ्यों के अनुसार, अस्थमा बचपन में पाई जाने वाली समस्याओं में आम है और वर्तमान में 18 साल से कम उम्र के 7.1 मिलियन बच्चे इस समस्या से पीडि़त हैं.
अस्थमा और सर्दी का संबंध
अस्थमा से ग्रस्त रोगी के फेफड़ों से जाने वाली सांस की नलियां बहुत ही संवेदनशील होती हैं और ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस या कीटाणुओं की बढ़ोतरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. विभिन्न अनुसंधानों में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, ठंड के मौसम में अस्पताल में अस्थमा से पीडि़त रोगियों की संख्या ज्यादा होती है.
नैशनल इंस्टिट्यूट औफ ट्यूबरक्लोसिस ऐंड रेस्पिरेटरी डिजीज के एमडी (चैस्ट) डा. सुशील मुंजाल का कहना है, ‘‘सांस की नलियों में सूजन के कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं जिस से बलगम जैसा पदार्थ जमा होने लगता है और यह नलियों को सांस लेने में प्रभावित करता है. इस से अस्थमा के रोगियों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. सर्दी में ठंडी हवाओं के कारण सांस की नलियां और ज्यादा सिकुड़ जाती हैं जिस से सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगती है. इसलिए लोगों को यह समझना जरूरी है कि सर्दियों में सही इलाज और दवाओं से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित और मैनेज किया जा सकता है.’’
आम भ्रांतियां
रोगियों और उन के परिवारों में अस्थमा की जानकारी व उस के इलाज को ले कर कई तरह की भ्रांतियां होती हैं.
लोगों को लगता है कि अस्थमा सिर्फ उन्हीं को हो सकता है जिन के परिवार में अस्थमा की समस्या है, अस्थमा संचारी रोग है, अस्थमा को मछली वाली थैरेपी से ठीक किया जा सकता है, अन्य दवाएं ज्यादा बेहतर हैं या सिर्फ योग से अस्थमा अटैक को रोकने में मदद मिलती है.
लोग सोचते हैं कि अस्थमा के ट्रिगर से परहेज करने पर इसे रोका जा सकता है और इन्हेलर अस्थमा के इलाज में आखिरी विकल्प है. अस्थमा को ले कर लोगों में इस तरह की कई भ्रांतियां हैं.
डा. सुशील मुंजाल कहते हैं, ‘‘अस्थमा के इलाज के दौरान रोगी और उस के परिवार वाले अकसर इस से जुड़ी कई गलत सूचनाओं के साथ आते हैं. इसलिए हैल्थकेयर से जुड़े लोगों को रोगियों और उस के परिवार वालों को अस्थमा से जुड़े तथ्यों के बारे में जानकारी देनी चाहिए. अस्थमा को छिपाने के बजाय उस से जुड़े इलाज के महत्त्व को समझाना जरूरी है. इलाज के विकल्पों में सब से कम साइड इफैक्ट्स इन्हेल्ड कोरटिकोस्टेरौयड यानी कि इन्हेलेशन थैरेपी की जानकारी देनी चाहिए.’’
इन्हेलेशन थैरेपी
स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों ने देखा है कि अस्थमा रोगी इसे नियंत्रित करने में काफी लापरवाही बरतते हैं. इसी वजह से लगातार नियमित दवाएं लेने के बावजूद रोगी रोजाना अस्थमा के लक्षणों से प्रभावित रहता है और रोजमर्रा के कामों में उसे दिक्कत महसूस होती है. इस समस्या से नजात पाने के लिए ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेलेशन थैरेपी ज्यादा बेहतर है क्योंकि इस में साइड इफैक्ट्स तो कम होते ही हैं, साथ ही यह जल्दी काम भी करती है. इन्हेलेशन थैरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकोस्टेरौयड सांस की नलियों में जाता है. इस बारे में डा. सुशील मुंजाल कहते हैं, ‘‘मुश्किल यह है कि रोगी स्टेरौयड सुन कर ही इन्हेलर का इस्तेमाल नहीं करना चाहते लेकिन लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि कोरटिकोस्टेरौयड प्राकृतिक रूप से शरीर में भी बनता है जो शरीर की सूजन कम करने में सहायक होता है. इसलिए यह बच्चों के साथसाथ गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित है.’’
रेस्पिरेटरी मैडिसन में प्रकाशित अध्ययन लेख के अनुसार, अस्थमा के लिए इन्हेलेशन थैरेपी और क्लिनिकल प्रभाव के बीच संबंध सकारात्मक है. अध्ययन में वयस्कों, किशोरों और बच्चों में अस्थमा के लक्षणों व फेफड़ों के काम को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में सुधार दिखा है.
सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए बहुत ही कम मात्रा (तकरीबन 25 से 100 माइक्रोग्राम) कोरटिकोस्टेरौयड की जरूरत होती है लेकिन ओरल दवाओं या टैबलेट में ज्यादा मात्रा (तकरीबन 10 हजार माइक्रोग्राम) शरीर में चली जाती है और दवा की बहुत ही कम मात्रा फेफड़ों तक पहुंचती है. अस्थमा रोगी गोली या टैबलेट के माध्यम से लक्षणों को कम करने के लिए 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा लेता है.
डा. सुशील मुंजाल बताते हैं, ‘‘ओरल दवाओं की ज्यादा मात्रा पहले रक्त में घुल कर सभी अंगों में पहुंचती है जिस में फेफड़े भी शामिल हैं लेकिन इन्हेलेशन थैरेपी में कोरटिकोस्टेरौयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, इसलिए लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरौयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थैरेपी से मिलती है.’’ इस तरह आसान विकल्पों से रोगी सर्दी के मौसम में अस्थमा को नियंत्रित कर के मौसम का भरपूर मजा ले सकते हैं.