“कितना प्यार करते हो?” थोड़ी चुप्पी के बाद मालती बोली.
“मैं उस के साथ आगे का जीवन जीना चाहता हूं. मैं…मैं… शादी करना चाहता हूं प्रीति से,” एक सांस में कह गया अभय. वह जानता था कि वह जिस से यह बात कर रहा है वह प्रीति की सास है. मालती के जवाब के इंतजार में वह अपनी उंगलियां चटकाने लगा.
“और प्रीति, क्या वह भी तुम्हें प्रेम करती है?” मालती ने सवाल किया.
मालती के सवाल से अभय के चेहरे पर पीड़ा नजर आई. एक पल को वह खामोश हो गया और फिर धीरे से बोला,”वह बात नहीं कर रही. मुझे यकीन है कि उस के दिल में मेरे लिए जगह है लेकिन स्वीकार नहीं कर रही,” अभय ने निराश हो कर कहा.
“तुम्हारे लिए उस के मन में जगह है यह कैसे कह सकते हो अभय? जब तक वह स्वीकार न करे, तुम यह कैसे मान बैठे हो कि वह तुम्हें प्यार करती है?” मालती के स्वर में थोड़ी तेजी थी.
“प्लीज आंटी, आप नाराज न हों. वह आप से, नेहा से बहुत प्यार करती है. आप दोनों के अलावा उसे कुछ नजर नहीं आता,” अभय के चेहरे पर कुछ चिंतित भाव थे. उस की बात मालती के दिल में धक से लग गई. कहीं सच में उन के कारण ही तो प्रीति अपने लिए कुछ सोचना नहीं चाहती.
“आंटी…मेरा मतलब, मैं आप का दिल नहीं दुखाने…सौरी आंटी…मुझे ऐसे नहीं कहना चाहिए था,” अभय को अपनी गलती का एहसास हुआ.
“कोई बात नहीं अभय. तुम ने कुछ गलत नहीं कहा,” मालती बोली.
“मुझे आप अपना बेटा नहीं बना सकतीं?” अभय ने अचानक से कहा.
इस बात से मालती की आंखों में नमी उतर आई. वह उस के चेहरे को देखने लगी.
“मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मुझे आप का फेवर चाहिए बल्कि इसलिए कह रहा हूं क्योंकि प्रीति आप को बहुत प्यार करती है. आप के परिवार का हिस्सा बन कर शायद प्रीति मुझे अपना ले,” अभय ने दीन भाव से कहा.
“मेरा बेटा बनने का बोझ अपने दिमाग पर मत लो अभय. यदि प्रीति तैयार हो जाए तो मुझे उस की शादी तुम से करने में खुशी होगी क्योंकि मैं खुद चाहती हूं प्रीति को बेटी की तरह विदा कर दूं,” मालती ने उठते हुए कहा.
“आंटी… मैं शायद कुछ गलत कह गया. क्या करूं, मुझे बहुत सजा कर कहना नहीं आता लेकिन मैं बस इतना कहूंगा कि प्रीति के परिवार का हिस्सा बनना चाहता हूं. मैं रोहन की जगह नहीं ले रहा लेकिन नेहा का भाई जरूर बनना चाहता हूं,” अभय ने अपनी बात दृढ़ता से रखी.
“मालती उस के सिर पर हाथ रख कर हौले से मुसकराई और वहां से निकल गई.
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“मां, आप अंधेरे में क्यों बैठी हो, तबीयत ठीक है न?” लाइट का स्वीच औन कर के प्रीति बोली.
“हां, तबीयत ठीक है,” मालती बोली.
“तो ऐसे अकेली क्यों बैठी हो? डिनर तैयार है. नेहा भूख से परेशान हो रही है और आप यहां अंधेरे में…चलिए खाना खाते हैं,” प्रीति ने कहा.
“तुम दोनों खा लो, मुझे भूख नहीं,” मालती लेटते हुए बोली.
“क्या बात है मां, आप परेशान लग रही हो. नया बौस… परेशान तो नहीं कर रहा वह?” प्रीति ने कहा.
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. कौफी पी ली थी और साथ में सैंडविच भी तो भूख नहीं लग रही. नींद भी आ रही है. तुम दोनों खा लो न,” मालती ने बहाना बना कर कहा.
“पक्का न,” प्रीति ने शंकित हो कर कहा.
“पक्का मेरी अम्मां,” मालती ने हाथ जोड़ कर कहा. प्रीति हंसती हुई कमरे से बाहर निकल गई.
अभय की बात उस के दिमाग को चोट दे रही थी. अपने अतीत में झांकती मालती अकेलेपन से सिसक उठी. टूट कर प्रेम किया था प्रकाश ने लेकिन वह निभा न सकी. राघव का नाम और बच्चों की परवरिश उस के लिए जरूरी था. जाने कैसे सामना करेगी वह उस का.
आंखों में जैसे धुंध सी उतर आई. अपने सीने को भींच मालती सुबकने लगी. दर्द था कि कहीं दबा था जो बारबार खरोंच लगा देता. रोहन की मौत ने उसे एक बार फिर तोड़ दिया उस पर प्रीति का अकेलापन…
“नहीं…मैं प्रीति को अकेले तड़पने नहीं दूंगी. मुझे कुछ करना होगा. समझाना होगा प्रीति को,” खुद से बडबड़ाती मालती उलझन से निकलने की कोशिश करने लगी.
फोन की गैलरी में प्रीति की हंसती तसवीर अभय के चेहरे पर मुसकान ले आई,’समझती क्यों नहीं प्रीति. मुझे तुम्हारी जरूरत है. मैं प्यार करता हूं तुम से,’ वह बुदबुदाया.
‘तुम्हारी बेरूखी मार रही है मुझे. कैसे यकीन दिलाऊं तुम्हें कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं. तुम पर हक रखना चाहता हूं. अपना हक देना चाहता हूं. बस, एक बार कह दो न अपने दिल की बात,’ अभय की आंखों से टपटप आंसू बह निकले और मोबाइल पर भी जा गिरे. वह मोबाइल अपनी उंगलियों से साफ करने लगा कि तभी प्रीति का नंबर डायल हो गया. अभय को इस का आभास नहीं हुआ. वह कुरसी पर सिर टिका अधलेटा हो गया था. देर रात मोबाइल पर अभय का कौल देख प्रीति घबरा गई. वह फोन नहीं उठाई.
“भाभी, देखो न किस का फोन है?” नेहा ने प्रीति से कहा.
“पता नहीं किस का नंबर है. अननोन लग रहा है,” प्रीति आंखें चुरा कर बोली.
“आप फिर भी एक बार फोन उठा लो. क्या पता कोई जरूरतमंद हो,” नेहा ने कहा तो प्रीति फोन ले कर बालकनी में चली गई. कान में फोन लगाई तो उधर से कोई आवाज नहीं आई.
“हैलो…हैलो…इतनी रात को फोन क्यों किया? हैलो…” अभय अब भी अपनी आंखें बंद किए बैठा था. उसे आभास भी नहीं था कि फोन पर प्रीति है. अभय का जवाब न सुन कर प्रीति को गुस्सा आ गया. वह फोन काट दी और दनदनाती वापस आ कर बिस्तर पर बैठ गई.
“क्या हुआ भाभी, कौन था?” नेहा ने उसे गुस्से में देख कर पूछा.
“पता नहीं कौन था. जवाब ही नहीं दिया,” प्रीति बोली.
“तब तो कोई सिरफिरा होगा. छोड़ो न. सो जाओ,” लाइट बंद कर के नेहा प्रीति के बगल में लेट गई.
अभय ने अपना फोन उठाया तो देखा कि प्रीति को रिंग गई थी. वह हड़बड़ा गया. तुरंत प्रीति का नंबर मिलाया.
लेकिन प्रीति ने इस बार फोन काट दिया. अभय परेशान हो समझ नहीं पाता कि क्या करे. वह व्हाट्सऐप पर मैसेज लिख देता है, “प्रीति सौरी, पता नहीं कैसे तुम्हें रिंग चली गई. हो सकता है कि स्क्रीन साफ करते समय ऐसा हो गया हो.”
अभय का मैसेज पढ़ कर प्रीति ने कोई जवाब नहीं दिया. फोन स्वीच औफ कर के रख दी. उस की आंखों के सामने रोहन का चेहरा नजर आने लगा. धीरेधीरे वह चेहरा धुंधला हो अभय के चेहरे में बदलने लगा. प्रीति घबरा कर अपनी आंखें भींच ली.
“उठ जाओ दोनों, 7 बज गए हैं. प्रीति औफिस नहीं जाना क्या?” मालती ने प्रीति को हिलाते हुए कहा.
“सोने दो मां…आज मन नहीं है कहीं जाने का. छुट्टी ले लेती हूं,” प्रीति आंखें बंद किए ही बोली.
“क्या करोगी पूरा दिन घर में अकेली? चलो उठो निकलो सब अपने काम पर,” मालती ने उस की चादर खींच कर कहा.
“प्लीज मां, मुझे 1-2 जगह औनलाइन इंटरव्यू देने जाना है. इसलिए आज औफिस नहीं जा रही,” प्रीति ने अंगङाई लेते हुए कहा.
“इंटरव्यू, लेकिन क्यों? अच्छीखासी जौब है तुम्हारी, फिर बदलने की क्यों सोच रही हो?” मालती समझ गई थी कि प्रीति अभय से दूर रहने के लिए ऐसा कर रही है.
“अरे मां, इतना परेशान क्यों हो जाती हो? आगे बढ़ना है ग्रोथ करनी है तो बदलाव जरूरी है वरना तरक्की कैसे होगी,” प्रीति समझाते हुए बोली.
“यही बात जीवन पर भी लागू होती है बेटा. पुराने दुख, तकलीफ हमें छोडेंगे नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे. यह जो दर्द तुम ओढ़ कर बैठी हो न यह उतार दो प्रीति. सोचो बच्ची,” इतना कह कर मालती कमरे से निकल गई.
प्रीति उसे बाहर जाते देखती रही. उस का ध्यान अभय के मैसेज की ओर गया. फोन उठा उस के इनबौक्स को ओपन कर मैसेज टाइप कर बोली,
“कोई बात नहीं.”
फोन रख प्रीति वाशरूम चली गई. नेहा चुपचाप प्रीति का फोन उठा कर रात में आई कौल को देखने लगी. अभय का नाम देख नेहा सोच में पड़ गई. फोन वापस रख चादर मुंह पर ढक कर लेट गई.
वाशरूम से निकल कर प्रीति रसोई में मालती के पास जा कर खड़ी हो गई,”मां, हटिए मैं बना देती हूं नाश्ता.”
“रहने दो बेटा, बन गया है. चल तू बाहर बैठ. अभी काफी टाइम है कुछ बातचीत करते हैं,” मालती ने कप में चाय डालते हुए कहा. ट्रे उठा कर प्रीति ड्राइंगरूम में आ गई. मालती उस के पीछे थी. मेज पर ट्रे रख प्रीति सोफे पर बैठ गई.
“नौकरी छोड़ने का फैसला कहीं अभय की वजह से तो नहीं किया तुम ने?” मालती ने सीधे सवाल किया.
उस के इस सवाल पर प्रीति हड़बड़ा गई,”नहीं मां, ऐसी बात नहीं है.”
“तो कैसी बात है प्रीति, तुम और अभय अच्छे दोस्त हो. फिर अचानक क्या हुआ जो अभय तुम्हें लेने आना छोड़ दिया? तुम कुछ नहीं बताती, उस का जिक्र तक नहीं सुनती. आखिर हुआ क्या है? अगर अभय ने कुछ गलत किया है तो मुझे बताओ. बात करती हूं उस से,” मालती एक ही सांस में कह गई.
“अब आप से कैसे बताऊं मां…” उंगलियों को उमेठते हुए प्रीति खड़ी हो गई.
“कैसे क्या, अपने मुंह से बताओ. हुआ क्या है तुम दोनों के बीच?” मालती ने शब्दों पर जोर डालते हुए कहा.
“वह पागल हो गया है… दिमाग खराब हो गया है उस का….वह मुझ से…उस की हिम्मत देखो मां…वह बोल रहा था कि मुझ से प्यार करता है. उस ने कैसे सोच लिया कि मेरे अकेले होने का फायदा उठा लेगा,” इतना बोल कर प्रीति हांफने लगी. मालती उसे गले से लगा ली और उस की पीठ को सहलाने लगी.
“शांत मेरी बच्ची,” उस की मनोदशा देख मालती को अपना गुजरा वक्त याद आ गया. प्रकाश को बेइज्जत कर के घर से निकालते हुए मालती तड़प कर रोती रही लेकिन किसी को अपना दर्द दिखा नहीं पाई. प्रीति की हालत ऐसी न थी कि अभय का जिक्र दोबारा करे. वह उसे ऐसे ही गले लगाए बैठी रही. प्रीति की आंखों से बहते आंसू उस के कंधे को भिगोते रहे.
“सौरी मां…” खुद को नियंत्रित कर प्रीति मालती से अलग हो गई.
“सौरी क्यों? मां के कंधे से नाक साफ करने के लिए सौरी बोल रही हो न,” मालती ने प्रीति को हंसाने के लिए कहा.
“क्या मां आप भी. मेरी नाक नहीं बहती,” आंसू पोछते हुए प्रीति हंस पड़ी.
“हो गया आप दोनों का, मुझे भी कोई नाश्ता देगा या ऐसे ही रहूं भूखी,” नेहा अपने कमर पर हाथ रख दोनों के पीछे खड़ी थी.
•••••••••••••
“आप मुझे आज मिल सकते हैं अभयजी?” नेहा कालेज की कैंटीन में बैठी थी.
“हां नेहा, सब ठीक है न,” अभय का मन आशंका से धड़क उठा.
“सब ठीक है. मुझे आप से मिलना है बस. आप आ रहे हैं न?” नेहा के स्वर में जिद थी.
“ठीक है, कितने बजे आऊं?” अभय ने पूछा.
“आप लंच ब्रेक में आ सकते हैं. यदि कोई दिक्कत न हो तो या फिर मैं ऐसा करती हूं औफिस के पास ही आ जाती हूं,” नेहा ने कहा.
“नहीं कोई दिक्कत नहीं. मैं पहुंच जाऊंगा,” इतना कह अभय ने फोन रख दिया. प्रीति औफिस नहीं आई थी. अभय के मन में आशंकाओं के बादल उमड़ने लगे. 12 बजे थे. नेहा के कालेज तक पहुंचने में आधा घंटा लग सकता था. अभय स्टाफ को बता औफिस से निकल गया. बाइक की रफ्तार कुछ ज्यादा थी लेकिन उस के दिमाग में चलते विचारों से कम ही. लगभग 20 मिनट बाद वह नेहा के कालेज के बाहर था. बाइक को गेट से कुछ दूर पार्क कर अभय आतेजाते स्टूडैंट्स को देखने लगा. समय धीरेधीरे सरक रहा था. वह बारबार घड़ी देख लेता. ठीक 1 बजते ही अभय ने नेहा को मैसेज कर अपने आने की खबर दे दी. 10 मिनट बाद नेहा और अभय कालेज के पास एक रेस्तरां में थे.
“एक बात पूछूं अभय भैया…मैं आप को भैया कह सकती हूं न?” नेहा ने हिचकते हुए कहा.
“मुझे खुशी होगी, नेहा. वैसे भी मैं ने हमेशा तुम्हें छोटी बहन की तरह ही देखा है,” अभय के चेहरे पर मुसकान खिल गई.
“तो फिर वादा कीजिए, प्रीति भाभी को खुश रखेंगे,” नेहा ने अपनी हथेली अभय के सामने फैला कर कहा. उस की बात पर अभय चौंक गया. वह चुपचाप नेहा को देखने लगा.
“कुछ बोलिए भाई, मुझ झल्ली के भाई बन कर प्रीति भाभी को हमेशा खुश रखोगे न?” नेहा ने फिर कहा.
“मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या कहूं. प्रीति की खुशी तो मेरा जीवन है लेकिन प्रीति को मैं पसंद नहीं,” अभय ने आंखों को झुका कर कहा.
“तो पसंद कवाएंगे भाई, पहले यह बताओ कि आप के पेरैंट्स इस शादी के लिए तैयार हो जाएंगे?” नेहा बोली.
“मैं बात कर चुका हूं. वे तैयार नहीं हैं लेकिन मैं ने स्पष्ट कह दिया है कि प्रीति के अलावा कोई और मेरी जिंदगी में नहीं आ सकती,” अभय ने साफ कहा.
“लेकिन अगर आप के पेरैंट्स नहीं माने तो यह शादी कैसे होगी?” नेहा ने कहा.
“वह मुझ पर छोड़ दो. प्रीति भी तो नहीं मान रही. मेरी शक्ल नहीं देखना चाहती वह. पागल सोचती है कि मैं उस पर दया कर रहा हूं जबकि जानती नहीं कि दया मैं मांग रहा हूं उस से उस की,” अभय झल्लाते हुए बोला.
“नहीं मान रही तो मना लेंगे…डोंट वरी भाई. बस, आप अपनी कोशिश करते रहो, मैं अपनी करती रहूंगी लेकिन मेरी एक शर्त है,” नेहा ने आंखें मटका कर कहा.
“बोलो क्या शर्त है? मुझे मंजूर है,” बिना शर्त जाने अभय ने मंजूरी दे दी.
“आप मेरे रोहन भाई की तरह मुझे भाई का प्यार दोगे. मुझे मेरा भाई चाहिए. ऐसा भाई जिस के हाथों में मेरी राखी चमके. बनेंगे ऐसा भाई?” नेहा की आंखों में पानी उतर आया.
उसे देख अभय अपनी जगह से उठ नेहा के नजदीक आ कर उसे गले से लगा लिया.
“तुम ने मुझे बहुत बड़ा सम्मान दे दिया, नेहा. मैं इस रिश्ते को ताउम्र निभाऊंगा. वादा रहा. और सुनो, तेरी प्रीति भाभी मेरी जिंदगी में न भी आए लेकिन तेरा यह भाई हमेशा तेरे साथ रहेगा,” अभय का गला भर्रा गया.
2 साल से रुके दर्द को नेहा की आंखें बहाने लगीं. प्रीति और मालती को संभालती नेहा अपने अंदर बह रहे जख्म को छिपाए हंसती रहती लेकिन आज अभय के साथ जुडे प्यारे रिश्ते ने उस जख्म पर मरहम रख दिया.
“चलो, अब मैं चलता हूं वरना जौब चली जाएगी अपनी. रूला दिया पगली ने,” नेहा के सिर पर चपत लगा कर अभय बोला. नेहा ने सहमति में गरदन हिला कर हामी भर दी.
ग्रामीण शाखा में अपने ट्रांसफर लैटर को हाथ में लिए मालती प्रकाश के केबिन को घूर रही थी. जानती थी कि प्रकाश उस से दूर रहने के लिए ही यह सब कर रहा है. कुछ सोच वह अपनी जगह से उठ कर प्रकाश के केबिन की ओर चल दी. “बौस हैं अंदर?” मालती ने मोहन से पूछा.
“हां हैं लेकिन फोन कौल पर हैं. बोल रहे थे कि कोई डिस्टर्ब न करे,” मोहन ने टोपी ठीक करते हुए कहा.
“ठीक है. चलो मेरे लिए चाय ले आओ. सिरदर्द हो रहा है मेरा,” मालती ने मोहन से कहा.
“पर मैडम, बौस ने बुलाया तो?” मोहन असंजस में था.
“अरे बाबा, मैं बता दूंगी कि मैं ने भेजा है. परेशान न हो. तुम्हें कोई डांट नहीं पङेगी,” मालती ने प्यार से कहा.
मोहन कैंटीन की ओर तेजी से निकल गया. भावनाओं को कंट्रोल कर मालती प्रकाश के केबिन में चली गई. अचानक मालती को सामने देख प्रकाश हड़बड़ा गया. दोनों एकदूसरे के सामने खड़े आंखें चुरा रहे थे.
“मेरा…मैं अपने ट्रांसफर की बात करने…” मालती ने शुरुआत की.
“मुझे लगता है कि तुम्हारा…मतलब आप का ट्रांसफर ही ठीक रहेगा ताकि आप आराम से अपना काम कर सकें,” प्रकाश ने फाइलों को उलटते हुए कहा.
“लेकिन ग्रामीण शाखा मेरे घर से काफी दूर है. मुझे दिक्कत हो जाएगी,” मालती थोड़ी नाराजगी से बोली.
“ऐप्लिकेशन दे दो. विचार करेंगे,” मालती की आंखों से बचता प्रकाश अपने मन को काबू किए था.
“लेकिन अचानक ट्रांसफर का डिसीजन किस बेस पर लिया गया? क्या मैं ठीक से काम नहीं कर रही थी?” मालती ने कहा.
“ठीक से तो रिश्ता निभाना चाहता था. लेकिन तुम ने उस रिश्ते को झट से तोड़ दिया. अब इतने सवाल क्यों? मैं चला गया लेकिन तुम ने पलट कर एक बार भी मुझे नहीं रोका. मैं प्यार करता था तुम से मालती, लेकिन तुम ने मुझे झूठा बना मुझ पर तोहमत लगा दी,” प्रकाश ने अपनी आवाज पर काबू रखते हुए वर्षों की शिकायतों को मालती के सामने फेंक दिया.
मालती की आंखें मन के भावों को रोकने की जुगत करने लगीं लेकिन लाल होता चेहरा उस के दर्द के उफान की चुगली कर रहा था.
“बोलो न मालती, क्यों डर गईं समाज से? क्यों नहीं मेरा साथ दिया?” प्रकाश फिर बोला.
“अब इन बातों का कोई फायदा नहीं. वक्त गुजर चुका है और हमारी भावनाएं भी वक्त के बाद पुरानी हो गई हैं. समाज के सामने लड़ने के लिए एक औरत को सब से पहले खुद का कत्ल करना होता है. लेकिन मैं डरपोक निकली. मैं नहीं छोड़ पाई अपने बुजुर्ग सासससुर को, अपने रिश्तों को. वह वक्त आज सा नहीं था प्रकाश…मैं इतनी बहादुर नहीं थी,” फफक पड़ी मालती.
“सालों से अपने प्रेम की कब्र पर सीमेंट चढ़ा रही हूं ताकि प्लास्टर झड़ कर कमजोर न हो जाए. इस मजबूत कब्र पर मेरी जिम्मेदारियों के फूल चढ़ाए गए थे जिन्हें मैं ने चुना था. तुम समझ नहीं पाओगे क्योंकि विधवा मैं थी तुम नहीं,” मालती ने प्रकाश की नाराजगी पर सवाल खड़ा कर दिया.
“बस, एक बार मेरा हाथ थाम लेतीं. मैं तुम्हें मुरझाने न देता. यकीन तो करतीं मुझ पर,” प्रकाश ने कहा.
“यकीन नहीं होता तो तुम से प्रेम न करती. लेकिन प्रकाश, इतनी स्वार्थी नहीं थी कि अपनी सफेद चादर के नीचे तुम्हारे रंग ढंक लेती. तुम्हें खिलने का हक था मुरझाने का नहीं. चलती हूं. हो सके तो दोस्त बन इस रिश्ते की कड़वाहट को कम करने की कोशिश करेंगे. यहीं रह कर, इसी औफिस में,” ट्रांसफर लैटर प्रकाश की टेबल पर रख मालती केबिन से बाहर निकल गई.
प्रकाश उसे जाते देखता रहा.
“आज भी तुम वैसी ही हो मालती. चलो प्रेम नहीं दोस्ती को निभाएंगे,” इतना कह कर प्रकाश ने लैटर फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया.
“कैसा रहा आज का दिन मां?” पानी का गिलास मालती के हाथों में दे कर प्रीति ने पूछा.
“बहुत अच्छा गुजरा, नए बौस से मिल कर आई,” इतना कह मालती सोफे पर पसर गई.
“तो बताओ कैसे दिखते हैं आप के खूशट बौस,” प्रीति जिज्ञासा से मालती के नजदीक बैठ गई.
“मैं उन्हें पहले से जानती हूं, उस समय से जब पहली बार नौकरी के लिए औफिस में कदम रखा था,” मालती ने कहा.
“अच्छा, नाम क्या है उन का? क्या पहले भी आप के बौस थे वह?” प्रीति ने उत्सुकता से पूछा.
“प्रकाश नाम है. सहकर्मी थे मेरे. प्रकाश मुझ से शादी करना चाहते थे,” इतना कह कर मालती प्रीति के चेहरे की ओर देखने लगी.
“क्या बात करती हो मां, आप को कहा था उन्होंने?” चौंकते हुए प्रीति बोली.
“प्रेम करता था प्रकाश मुझे लेकिन समाज विधवा को प्रेम की इजाजत नहीं देता. लांछन लगा कर बदनाम करता है. मैं हिम्मत नहीं कर पाई और प्रकाश को दोषी बना दिया,” मालती ने कहा.
“पर मां, जब आप उन्हें प्रेम ही नहीं करती थीं तो आप का कोई दोष नहीं,” प्रीति ने कहा.
“मैं…प्रेम करती थी प्रकाश से लेकिन कायर थी. उसे सम्मान न दे सकी. ताउम्र भय में बिता दी और जीती रही उस नाम के साथ जो मुझे मंझधार में छोड़ गया. बहुत कठिन होता है अकेले जीना. बहुत कठिन,” मालती की आंखों में आंसू थे.
“मां,” प्रीति उस की हथेलियों को सहलाने लगी.
“प्रीति, प्रेम की कद्र करो. समाज, रिश्ते और संबंध सब छूट जाते हैं. कोई साथ नहीं होता जब तुम रोते हो, जब तुम अकेले होते हो. एक साथी होना चाहिए जिसे अपना दुख अपनी पीड़ा कह सको,” मालती ने प्रीति को समझाते हुए कहा.
“पर मां, अपने पहले प्यार को कैसे भुलाया जा सकता है. यह धोखा नहीं है क्या? कैसे हम किसी के न होने से रिश्ता खत्म कर दें. नहीं मां, यह सही नहीं,” प्रीति ने कहा.
“यह खुद को धोखा है. अकेले रह कर कौन सा यश कमाना है? कौन सा पुण्य. प्रीति, तुम अकेली खुश हो तो कुछ नहीं कहूंगी. लेकिन बेटा, एक उम्र आएगी जब तुम्हारे आसपास बस सन्नाटा होगा. अपने जीवन को दांव पर लगा कर उस की याद में मत घुलो, जो चला गया तुम्हें छोड़ कर. तुम्हारे सामने तुम्हारा भविष्य है, अभय है जो तुम्हारी खुशी से ही खुश रहेगा. सोचो प्रीति सोचो,” मालती ने प्रीति के सिर पर हाथ फेर कर कहा.
“मां ठीक कह रही है, भाभी. भाई ने आप को कहा था कि हमारा खयाल रखना. इसलिए आप अपनी जिंदगी हमारे लिए कुरबान कर रही हो. पर हमारी खुशी इसी में है कि आप अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो. मुझे भाई चाहिए भाभी, मेरे लिए भाई ले आओ,” नेहा ने विनती करते हुए कहा.
“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. मैं कुछ नहीं जानती. मैं बस इतना जानती हूं कि मैं रोहन से बहुत प्यार करती हूं और किसी को उस की जगह नहीं दे सकती. मेरे जिस्म पर किसी और का स्पर्श मुझ से बरदाश्त नहीं होगा,” इतना कह प्रीति रोने लगी.
“अभी तुम भावुक हो कर सोच रही हो. अभी भी तुम उस रिश्ते के बोझ में दबी हुई हो जिस रिश्ते से रोहन तुम्हें आजाद कर के चला गया. तुम्हारे दिल में अभय ने दस्तक दी है उसे सुन लो. प्रेम बारबार मौका नहीं देता. मत करो दरवाजा बंद. अपने लिए न सही अभय के लिए खोल दो यह दरवाजा,” इतना कह कर मालती अपने कमरे में चली गई. नेहा देर तक प्रीति को सुबकते देखती रही फिर मालती के पास जा कर लेट गई.
घर में सन्नाटा पसर गया. कोई कुछ नहीं बोल रहा था. ड्राइंगरूम में अंधेरे ने कुछ ज्यादा ही काला रंग डाला था जो मालती के कमरे से आती रोशनी से भी नहीं मिट रहा था. अचानक डोरबेल ने सन्नाटे में पत्थर मार दिया. प्रीति ने अपनी आंखों को साफ कर लाइट जलाई और दरवाजा खोल दिया. सामने अभय खड़ा था. उसे देख प्रीति का दिल जोर से कांप गया.
“मैं अंदर आ सकता हूं?” अभय के सवाल पर प्रीति सामने से हट गई. बिना जवाब दिए वह अपने कमरे में जा कर कोने में बैठ गई. उस की आहट सुन कर मालती बाहर आई,”अभय, क्या हुआ बेटा?” अभय को अचानक अपने घर देख मालती का चौकन्ना होना लाजिम था.
“मैं यहां से गुजर रहा था तो सोचा आप से मिलता चलूं, आंटी. प्रीति भी औफिस नहीं आई थी, तबीयत ठीक है न उस की?”
“मैं ठीक हूं अभय, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं,” प्रीति सामने थी.
“मैं बस…अच्छी बात है तुम ठीक हो. औफिस नहीं आईं तो चिंता स्वाभाविक है. दोस्त हूं तुम्हारा,” अभय इस बार खामोश होने के मूड में नहीं था.
“तुम दोनों बैठो मैं चाय लाती हूं,” इतना कह मालती किचन की ओर चली गई.
“प्रीति, तुम मुझ से नाराज न हो. भले ही मैं तुम्हें प्यार करता हूं लेकिन जबरन तुम्हारी जिंदगी में शामिल नहीं होऊंगा. मेरी भावनाएं मेरी हैं उस से तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होने दूंगा,” अभय ने प्रीति की ओर देख कर कहा. उस की बात सुन प्रीति कुछ नहीं बोली. पैरों से फर्श कुरेदती रही.
“भाई, आप यहां, अरे वाह. अच्छा हुआ आप आ गए. मैं इन दोनों बोरिंग शक्लों के साथ रह कर बोर हो चुकी हूं. हर वक्त फूलकुमारी बनीं घूमती रहती हैं दोनों,” नेहा अभय के पास ही बैठ गई.
“इतने बोरिंग चेहरे भी नहीं हैं इन के,” अभय हंसते हुए बोला.
“अच्छा तो हम फूलकुमारी हैं. तुम्हें बताती हूं मैं लड़की,” मालती चाय के साथ ड्राइंगरूम में थी.
अभय और नेहा इस तरह बातें कर रहे थे जैसे शुरू से एकदूसरे के साथ रहते हों. नेहा अभय को भाई कह रही थी, यह सुन कर प्रीति की आंखों के सामने रोहन का चेहरा घूमने लगा.
दोनों की चुहलबाजी माहौल को हलका बना रही थी. लग नहीं रहा था कि कुछ समय पहले घर में एक अलग मातमी माहौल था. अभय की उपस्थिति घर में पुरुष की कमी को दूर कर रही थी.
“ओह, मुझे भूख लग रही है. 9 बज गए हैं मां,” नेहा बोली.
“खाना बना कहां है जो खाओगी. मेरे तो घुटने दर्द कर रहे हैं और प्रीति का सिर. तो बची तुम तो जाओ रसोई में,” मालती ने कहा.
“देख लो भाई. यही होता है मेरे साथ. अब 9 बजे क्या बनेगा भला,” नेहा बच्चों की तरह बोली.
“अरे परेशान क्यों हो. औनलाइन मंगवा लेते हैं. मैं हूं न,” अभय भी नेहा के साथ हो गया.
प्रीति खामोशी से नेहा और मालती के चेहरे पर आई चमक को देख रही थी. अभय में उसे रोहन की झलक दिखने लगी. मन की आंखों पर पड़ी धुंध छट रही थी और उस के सामने एक खिलखिलाता परिवार था. 11 बज चुके थे लेकिन रौनकें अब भी घर के कोने में फैली थीं. अभय की उपस्थिति में नेहा और मालती प्रीति की ओर ध्यान नहीं दे रही थीं, यह देख प्रीति को हंसी आ गई. उन के जीवन की कमी वह समझ गई.
“मैं सोने जा रही हूं मां. सुबह औफिस जाना है न. अभय आप मुझे औफिस ड्रौप कर दोगे न?” प्रीति की आवाज में कुछ बदलाव था जो अभय के कानों से होता दिल में उतर गया.
“हां प्रीति, मैं आ जाऊंगा,” उस की जबान पर आई खुशी नेहा और मालती के मन को सुकून दे गई. मालती ने प्रीति की ओर देखा. प्रीति ने आंखों से अपनी सहमति दे मालती के दिल पर पड़ा पत्थर हटा दिया.
“थैंक यू भाभी, मुझे भाई देने के लिए,” इतना कह कर नेहा प्रीति के गले लग गई. दुख की छांव सुख में बदल गई थी, जहां गुलमोहर खिले थे.