पाकिस्तानी अवाम बढ़ती महंगाई को ले कर सड़कों पर है. चारों तरफ हायतोबा मची है. लोग भूखों मर रहे हैं. लोगों के पास न रोटी है न रोजगार. राजनीतिक अस्थिरता और बिगड़ती आर्थिक स्थिति ने पड़ोसी देश पाकिस्तान में महंगाई के एक नए तुफान को जन्म दे दिया है.
पाकिस्तान के सिर पर आज 100 अरब डौलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज है. उच्च ब्याज दर और जर्जर आर्थिक हालात के कारण कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार न्यूनतम स्तर पर आ चुका है. ऐसे में पाकिस्तान के ऊपर डिफौल्ट होने का खतरा भी मंडरा रहा है.
इतिहास गवाह है कि जो राष्ट्र धार्मिक कट्टरता की नींव पर खड़ा हुआ वे या तो तबाह हो गए या तबाह होने की राह पर हैं. धर्म की दकियानूसी मान्यताओंप्रथाओं ने ऐसे राष्ट्रों की कभी तरक्की नहीं होने दी. इस के उलट जिन देशों ने धर्म को नागरिकों के व्यक्तिगत सीमा में रख कर आधुनिक शिक्षा, नई खोजों, आविष्कारों और अनुसंधानों पर ध्यान दिया वे तेजी से तरक्की के रास्ते पर बढ़ गए. आज भारत चंद्रयान-3 को चांद पर सफलतापूर्वक लैंड करवा कर जहां इतिहास बना चुका है, वहीं पाकिस्तान में मौलाना 50 साल तक यही तय करने में लगे रहे कि कैमरे से तसवीर खींचना हराम है या हलाल. आज भी कुछ इसे हराम ही मानते हैं.
धर्म के नाम पर खूनखराबा
प्राकृतिक संसाधन किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास की आधारशिला होते हैं. पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन राष्ट्र के आर्थिक विकास की कुंजी हैं. लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति और उस का सही प्रयोग तभी संभव होता है जब लोग शिक्षित हों, उन्हें वैज्ञानिक जानकारी हो, तकनीकी ज्ञान हो. आप के सामने सोने का पहाड़ खड़ा हो मगर अल्लाह… अल्लाह… करने से, उस के सामने बैठ कर नमाज पढने से, दुआ मांगने से या मंत्रोच्चारण करने या पूजापाठ, दियाबाती, आरती करने से वह गहने में नहीं बदलेगा. सोने के सिक्के या गहने बनाने के लिए शिक्षा, तकनीक और साइंस की जानकारी चाहिए.
सिर्फ उन्नत विज्ञान व तकनीक द्वारा ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और उपयोग कर के कोई देश आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और मजबूत बन सकता है. आज जिन देशों को विकसित देशों की श्रेणी में रखा गया है वे उच्च शिक्षा, विज्ञान एवं उन्नत तकनीकी का समुचित उपयोग कर के ही विकसित हुए हैं. धर्म का झंडा बुलंद कर के, अपने ही नागरिकों को आपस में लड़वा कर, अपनी ही औरतों पर जुल्म कर के और धर्म के नाम पर खूनखराबा कर के नहीं.
ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जरमनी आदि देशों ने अपने बच्चों की शिक्षा पर सब से ज्यादा ध्यान दिया. लड़कियों और लड़कों की शिक्षा में कोई असमानता नहीं रखी. उन का कौशल विकास किया. नौकरियों में स्त्रीपुरुष की बराबर की भागीदारी हुई. धर्म को लोगों के घर तक सीमित रखा और घर के बाहर देश और समाज की उन्नति और सशक्तिकरण के लिए कार्य हुए.
उन्होंने औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया. विकसित हुए देशों में लोहाइस्पात उद्योग, रसायन उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, मोटरगाड़ी निर्माण उद्योग, पोत व वायुयान निर्माण उद्योग आदि का तीव्र गति से विकास हुआ. कृषि के यंत्रीकरण ने उन के लिए प्रगति के द्वार खोले.
बदहाली के कगार पर हैं ये देश
इस के विपरीत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, अल्जीरिया, बेलारूस, उज्बेकिस्तान, तुर्की, म्यांमार, श्रीलंका जैसे अनेक देश आज बदहाली की कगार पर हैं क्योंकि इन देशों पर धर्मजाति, भाषासंप्रदाय जैसी चीजें हावी रहीं. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद सदियों से अधिकांश मुसलिम देशों में सिर्फ लड़ाईयां ही हो रही हैं. इंसानों का खून बह रहा है. औरतों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं. बच्चों के कत्ल हो रहे हैं या उन्हें धार्मिक लड़ाकू, जिहादी या आतंकी बनने की ट्रेनिंग मिल रही है.
जिन देशों में धर्म लोगों पर हावी है वहां धर्म ने पुरुषों के दिमाग कुंद कर दिए हैं. ऐसी मानसिकता और सोच उन के अंदर विकसित की कि वह धर्म और जिहाद के रास्ते पर हैं तो ही ठीक और नेक रास्ते पर हैं. उन के अंदर धार्मिक कट्टरता पैदा की गई. उन को सिखाया गया कि कोई तुम्हारे धर्म को फैलने में बाधा बने, कोई तुम्हारे धर्म की तरफ आंख उठा कर देखे तो उस को खत्म कर दो. यानी धर्म ने हिंसा सिखाई और हिंसा को बढ़ावा दिया. शांति वार्ता का कोई मार्ग नहीं सुझाया क्योंकि वार्ता और तर्क तो वही करता है जिस का दिमाग खुला हुआ हो और जो सचमुच शिक्षित हो.
धर्म ने तरक्की को बाधित कर इंसान को बंधनों में जकड़ दिया. 5 वक्त नमाज पढ़ो, सिर पर टोपी पहनो, औरतों को सिर से पैर तक बुरके में ढंक कर रखो, उन को बाहर मत निकलने दो, उन्हें अपने इशारे पर नचाओ, उन की इच्छा का दमन करो, उन्हें पढ़ने मत दो, घरों में कैद हो कर वे सिर्फ धार्मिक कृत्य करें, नमाज पढ़ें, रोजा रखें, घर की सफाई करें, खाना पकाएं, पति की ख्वाहिशें पूरी करें, उस के बच्चे पैदा करें और उन को पालें.
धर्म ने मर्द को औरत का मालिक नियुक्त कर दिया. ऐसा मालिक जिस की सोच में हिंसा भरी हुई है, लिहाजा उस ने सबसे पहले अपने ही घर की औरतों पर उस हिंसा का प्रदर्शन शुरू किया. फिर धर्म के प्रचार के लिए बाहर निकला और बाहर की औरतों, बच्चों पर उस ने हिंसा का प्रयोग किया. अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाकों का उदाहरण सामने है.
पिछले 2 दशकों से भारत की मुख्य चिंता है कट्टरता
पिछले 2 दशकों से भारत में भी धर्म का प्रचार बड़े जोरशोर से हो रहा है. बहुसंख्यक अपने धर्म को ले कर उग्र हैं. अधिकांश युवा जिन्हें शिक्षित हो कर कामकाज से जुड़ना था, वे शिक्षा से विमुख हो कर धर्म का झंडा हाथ में उठा कर सड़कों पर नारे बुलंद करते और अल्पसंख्यक समाज पर जुल्म करते दिखते हैं. इन बेरोजगार और खाली युवाओं की धार्मिक सेना तैयार हो रही है जो कट्टरपंथी सत्तारूढ़ नेतृत्व के आह्वान पर खून की नदियां बहाने को तैयार बैठे हैं. क्या हम पकिस्तान जैसे जाहिल देश का अनुकरण नहीं कर रहे?
पाकिस्तान की बुनियाद धर्म के नाम पर रखी गई थी. धर्म का हवाला दे कर वह भारत से अलग हुआ था. पाकिस्तान को जाहिल कठमुल्लाओं ने ऐसे अपने काबू में किया कि आतंकी गतिविधियों में लिप्त यह देश कभी तरक्की नहीं कर पाया.
पाकिस्तान में कभी सही मानों में जनतांत्रिक सरकार की स्थापना नहीं हुई. धार्मिक कट्टरता में जकड़े जनरलों और मुल्लाओं ने पकिस्तान को अपहृत कर तबाह कर दिया.
पाकिस्तान की दुविधा
पाकिस्तान की दुविधा यह है कि वहां मुल्लाओं और सेना के जनरलों दोनों ने एक स्वतंत्र देश के रूप में इस की लगभग आधी अवधि के दौरान राजनीतिक शक्ति को नियंत्रित किया और लोकतंत्र के शासन को प्रतिबंधित किया. जनरल जिया उल हक ने मुल्लाओं को व्यापक शक्तियां दीं, जिन्होंने धार्मिक रूढ़ियों, परंपराओं, दकियानूसी खयालातों और औरतों को बंधक बना कर रखने वाले प्रतिगामी कानून बनाए जो आज तक नहीं बदले गए. 7 दशक बीत जाने के बाद भी कोई भी निर्वाचित सरकार उन्हें बदलने की हिम्मत नहीं कर पाई.
पाकिस्तान में महिलाएं जनसंख्या का 48.76% हैं, मगर शिक्षा के क्षेत्र में वे बहुत पीछे हैं. विश्व स्तर पर महिलाएँ श्रम शक्ति का 38.8% हैं, लेकिन पाकिस्तान में केवल 20% के आसपास हैं, जो दक्षिण एशिया में सब से कम है. महिलाओं के लिए स्कूल, कालेजों और प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या उन की आबादी के लिहाज से बहुत कम है. पिछड़े इलाकों में बलात्कार, औनर किलिंग, हत्या और जबरन विवाह के मामले भी सामने आते हैं. दरअसल, लिंग संबंधी सभी संकेतकों पर पाकिस्तान का प्रदर्शन खराब है.
चौंकाती है रिपोर्ट
ग्लोबल जैंडर गैप इंडैक्स रिपोर्ट, 2022 ने महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में पाकिस्तान को 156 देशों में 145वें स्थान पर रखा. यहां महिलाएं शैक्षिक उपलब्धि के मामले में 135वें स्थान पर हैं. स्वास्थ्य के मामले में महिलाएं 143वें स्थान पर और राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 95वें स्थान पर हैं.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2018-19 में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन का अंतर करीब 34% है. पाकिस्तान में मतदान प्रक्रिया में भी औरतों की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले 20% कम है. महिलाओं की गतिशीलता बढ़ाने के लिए पाकिस्तान में कभी कोई नीति, योजना बनाने की बात नहीं होती है. पितृसत्तात्मक मानसिकता और सामाजिक मानदंड उन के विकास में सब से बड़े बाधक हैं.
प्रधानमंत्री के रूप में बेनजीर भुट्टो का चुनाव एक बड़ी उपलब्धि की तरह लग रहा था मगर उन का शासन बहुत अल्पकालिक और अराजकता से भरा हुआ रहा. उन के वक्त में पाकिस्तान ने अपने इतिहास की सब से खराब जातीय और सांप्रदायिक हिंसा देखी. बेनजीर ने अपने चुनाव अभियानों के दौरान महिलाओं के सामाजिक मुद्दों, स्वास्थ्य और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने महिला पुलिस स्टेशन, अदालतें और महिला विकास बैंक स्थापित करने की योजना की भी घोषणा की. महिलाओं के अधिकारों को कम करने वाले विवादास्पद हुदूद कानूनों को रद्द करने का भी वादा बेनजीर ने किया. लेकिन एक औरत को सत्ता शीर्ष पर बरदाश्त न कर पाने वाली पितृमानसिकता ने आखिरकार बेनजीर को बम धमाके में उड़ा कर खत्म कर दिया.
सरकार बनाम सेना
पाकिस्तान में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, उस के ऊपर हमेशा सेना की तलवार लटकती रहती है. जिसे धार्मिक सेना कहना ज्यादा ठीक होगा. कई बार तो वहां सेना ने ही सत्ता संभाली है. जनरल अयूब से लेकर याह्या खान, जनरल जिया उर रहमान और फिर जनरल परवेज मुशर्रफ तक ने पाकिस्तान की सत्ता संभाली. इन के बाद जनरल परवेज कयानी और जनरल बाजवा ने भी परदे के पीछे से सत्ता का संचालन किया. मगर उन्होंने नागरिक सरकार को स्वतंत्र हो कर कभी काम नहीं करने दिया. अगर नागरिक सरकार स्वतंत्र हो कर काम कर पाती तो पकिस्तान की हालत बेहतर होती क्योंकि जनता के नुमाइंदे जनता का दर्द कुछ हद तक तो समझते हैं. वे उन की बेहतरी के लिए कुछ काम जरूर करते. मगर पाकिस्तान में नागरिक सरकार के सामने न केवल सेना को खुश रखने की मजबूरी होती है बल्कि उस से ज्यादा जिहादी तंजीमों के मुल्लाओं के तलवे सहलाने होते हैं.
पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ़ (पीटीआई) सैन्य समर्थन से सत्ता में आई और आने के 2 साल से भी कम समय में पीटीआई सरकार ने बड़ा राजनीतिक स्थान सेना को सौंप दिया है. सरकार ने सुनिश्चित किया है कि भले ही देश पर 33 ट्रिलियन रुपए से अधिक का कर्ज चढ़ गया है और देश अंतर्राष्ट्रीय महामारी से जूझ रहा है, मगर प्राथमिकता हमेशा सेना और मुल्ला की इच्छाओं और चाहतों को दी जानी चाहिए.
हालांकि जब 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग पकिस्तान का राग अलापा और भारत से उस को तोड़ा तो उस का इरादा पकिस्तान को कोई कट्टर इसलामिक कंट्री बनाने का नहीं था. जिन्ना बड़े खुले विचारों के व्यक्ति थे. बहुत पढ़ालिखे, आले दरजे के वकील और आधुनिकता के सांचे में ढले हुए. उन्होंने शादी भी पारसी धर्म की लड़की रत्तीबाई से की थी, जिस का मुल्लाओं ने बड़ा विरोध किया था. धर्म के आधार पर अलग देश की मांग सिर्फ जिन्ना के राजनीतिक लालच के कारण थी और देश के सब से ऊंचे पद पर बैठने की लालसा थी. पाकिस्तान बना कर उन्होंने अपनी यह ख्वाहिश पूरी की.
जिन्ना पाकिस्तान में जनतांत्रिक सरकार बनाने की इच्छा रखता थे. यही वजह थी कि उन्होंने वकील और दूरदर्शी दलित नेता जोगिंदरनाथ मंडल को अपने साथ पाकिस्तान आने के लिए मनाया और पाकिस्तान की संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता की जिम्मेदारी उन को दी. बाद में जोगिंदरनाथ मंडल पाकिस्तान के कानून मंत्री बनाए गए.
कौन थे जोगिंदरनाथ मंडल
जोगिंदरनाथ मंडल की पाकिस्तान में वही हैसियत थी, जो भारत में बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की थी. भारत और पाकिस्तान दोनों के पहले कानून मंत्री दलित थे. जब भारत में संविधान लिखने की प्रक्रिया शुरू हुई तो नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में एक गैर कांग्रेसी दलित नेता डा. भीमराव आंबेडकर को जगह दी और देश का पहला कानून मंत्री बनाया. उन्हें देश के संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना का पहला भाषण सिर्फ उन की एक परिकल्पना नहीं थी, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति भी थी. उसी रणनीति के तहत उन्होंने अपने भाषण से पहले बंगाल के हिंदू दलित नेता जोगिंदरनाथ मंडल से संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता करवाई. हालांकि अब पाकिस्तान की नेशनल असैंबली की वेबसाइट पर उस के पहले अध्यक्ष के तौर पर मंडल का नाम मौजूद नहीं है. धर्म की कट्टरता में अंधे पाकिस्तान ने खुली सोच रखने वाले और देश को प्रगति की राह दिखाने वाले मंडल को जिन्ना के मरते ही दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका और पाकिस्तानी दस्तावेजों से उन का नामोनिशान मिटा दिया. इतिहास पर स्याही फेरने और उसे बदलने का बिलकुल वैसा ही काम आज हिंदुत्व का झंडा उठाए मोदी सरकार करने में लगी है. पर दस्तावेजों पर स्याही फेरने से इतिहास न तो मिटता है, न बदलता है.
जोगिंदरनाथ मंडल का जन्म बंगाल के एक कस्बे बाकरगंज में एक किसान परिवार में हुआ था. उन के पिता चाहते थे कि घर में कुछ हो या न हो उन का बेटा शिक्षा जरूर हासिल करे.
जोगिंदरनाथ मंडल ने अंबेडकर की तरह ही उच्च शिक्षा प्राप्त की. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बारिसाल की नगर पालिका से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की. उन्होंने निचले तबके के लोगों के हालात सुधारने के लिए संघर्ष किया. वह भारत के बंटवारे के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन्होंने महसूस किया कि उच्च जाति के हिंदुओं (सवर्णों) के बीच रहने से दलितों जिन्हें उन दिनों शूद्रों की संज्ञा दी गई थी, की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता. उन्होंने सोचा कि पाकिस्तान नीची जाति के लिए एक बेहतर अवसर हो सकता है.
अधिकारों के लिए संघर्ष
उन्होंने जिन्ना के आश्वासन के बाद पाकिस्तान जाने का फैसला किया और अपने पाकिस्तान चुनने की वजह भी साफ की. उन्होंने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान को इसलिए चुना क्योंकि उन का मानना था कि मुसलिम समुदाय ने भारत में अल्पसंख्यक के रूप में अपने अधिकारों के लिए बहुत संघर्ष किया है. लिहाजा वे अपने देश में यानी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ न केवल न्याय करेगा, बल्कि उन के प्रति उदारता भी दिखाएगा. हालांकि कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उन की इस सोच पर पानी फेर दिया और जिन्ना की मौत के बाद उन को पकिस्तान छोड़ने के लिए भी मजबूर कर दिया.
इतिहासकारों का मानना है कि 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान के संस्थापक और देश के पहले गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने संविधान सभा की पहली बैठक में अध्यक्ष के तौर पर अपने भाषण में पाकिस्तान के भविष्य का खाका पेश करते हुए रियासत (सत्ता) को धर्म से अलग रखने का ऐलान किया था. जिन्ना ने कहा था, “हम एक ऐसे दौर की तरफ जा रहे हैं जब किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. एक समुदाय को दूसरे पर कोई वरीयता नहीं दी जाएगी. किसी भी जाति या नस्ल के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. हम इस मूल सिद्धांत के साथ अपनी यात्रा शुरू कर रहे हैं कि हम सभी नागरिक हैं और हम सभी इस राज्य के समान नागरिक हैं.”
यह सच है कि नए राज्य के भविष्य के नागरिकों के लिए समान अधिकारों के जोरदार दावे जिन्ना ने किए. जिन्ना को इस बात पर पूरा विश्वास था कि धार्मिक राष्ट्रवाद के जिस राक्षस को उन्होंने जगाया था उस पर वे काबू कर लेंगे, मगर उन की वह सोच गलत साबित हुई. जिन्ना की अचानक मौत ने पाकिस्तान के चरमपंथियों को बेकाबू कर दिया. जिन्ना के खास जोगिंदरनाथ मंडल को उस माहौल में न सिर्फ पूरी तरह से अलगथलग कर दिया गया बल्कि धार्मिक चरमपंथियों ने उन के लिए जिंदगी इतनी मुश्किल कर दी कि उन्हें पाकिस्तान छोड़ कर भागना पड़ा.
जिन्ना की मौत के बाद मंडल ने देखा कि पाकिस्तान का रास्ता जिन्ना के ‘दृष्टिकोण’ से अलग हो चुका है. जिन्ना की मौत के बाद कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन से जोगिंदरनाथ मंडल बहुत ज्यादा निराश हुए. धार्मिक कट्टरता के कारण पाकिस्तान में अब अल्पसंख्यकों से किए गए वादों को पूरा करने वाला कोई नहीं था. ऐसे लोग सरकार में आ गए थे जो बहुत शिद्दत के साथ मजहब को रियासत पर थोप रहे थे. पाकिस्तान को एक इसलामिक राज्य बनाने के लिए अल्पसंख्यकों की सभी चिंताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था. उन पर जुल्म होने शुरू हो गए थे. उन के धार्मिक स्थलों को मटियामेट किया जाने लगा था. उन्हें सरकारी नौकरियों और सत्ता से बेदखल कर दिया गया. बिलकुल वैसे ही जैसे आज भारत में हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाली सरकार कर रही है.
जोगिंदरनाथ मंडल के पाकिस्तान छोड़ने और भारत वापस लौटने के फैसले का कारण पाकिस्तान में पैदा हो चुकी धार्मिक कट्टरता ही थी, जिसने मुसलिम लीग के नेताओं के लिए मंडल को अस्वीकार्य बना दिया था. उन्होंने उन की निष्ठा पर महज इसलिए सवाल उठाए क्योंकि वह एक नीची जाति के हिंदू थे. ऐसे बहुतेरे जोगिंदरनाथ मंडल विभाजन के वक्त पकिस्तान गए जिन्होंने वहां एक जनतांत्रिक सरकार बनने का सपना देखा. लेकिन ऐसे सभी लोगों को धार्मिक कट्टरपंथियों ने दरकिनार कर दिया.
दिवालिया होने की कगार पर पाकिस्तान
बीते 75 साल में उसी कट्टरता के चलते पाकिस्तान आज दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है. आज वह अपने मित्र देशों और इसलामी भ्राता देशों से वित्तीय मदद की गुहार लगा रहा है. चीन का लौहमित्र, अमेरिका और पश्चिमी देशों का दुलारा रह चुके और इसलामी देशों के संगठन (ओआईसी) की नेतागीरी करने वाले पाकिस्तान को आज कोई सहयोग करने को तैयार नहीं है. पाकिस्तान में समझदार लोग इस के पीछे का राज समझते हैं, लेकिन इस के लिए गहन आत्ममंथन करने को तैयार नहीं हैं.
पाकिस्तानी मीडिया के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा का भंडार घट कर करीब 4 अरब डौलर के सब से निचले स्तर पर आ गया है. पाकिस्तान पर करीब 268 अरब डौलर का कर्ज है जिस में से 31 अरब डौलर का कर्ज पाकिस्तान ने चीन से ही लिया है. पर्यवेक्षकों का मानना है कि पाकिस्तान को यदि तत्काल 20-25 अरब डालर की मदद नहीं मिलेगी तो जल्द ही श्रीलंका जैसे हालात वहां बन सकते हैं. गेहूं के आटे और दैनिक जीवन के लिए अन्य घरेलू सामान आम आदमी को नहीं मिल रहे. मुद्रास्फीति की दर 40% से ऊपर चल रही है. आखिर जब महंगाई की मार असहनीय हो जाएगी तो श्रीलंका की तरह पाकिस्तान का मध्यवर्ग भी सड़कों पर उतरने को बाध्य होगा.
आयात के लिए पाकिस्तान को हर महीने 8 से 10 अरब डौलर की जरूरत होती है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार यदि खाली ही रहा तो पाकिस्तान पैट्रोलडीजल आयात नहीं कर सकेगा. इस से पाकिस्तान में घोर कुहराम मच सकता है. इस वजह से पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था ही बैठ सकती है. तब पाकिस्तान की मौजूदा सरकार के लिए घरेलू हालात को संभालना और कितना मुश्किल होगा इस का अनुमान लगाया जा सकता है. धर्म और भारत विरोध के नशे में धुत्त पाकिस्तान ने वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप अपने को नहीं ढाला, जिस का नतीजा है कि चीन, तुर्की और खाड़ी के कुछ देशों को छोड़ कर अन्य विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने पाकिस्तान से किनारा किया हुआ है. पाकिस्तान में धन का निवेश करने और उसे गंवाने के लिए कोई तैयार नहीं है.
राजनीतिक, आर्थिक अस्थिरता व अराजकता के माहौल में विदेशी निवेश तो बंद ही है, घरेलू उद्योगपति भी नए निवेश नहीं कर रहे हैं. 2 साल तक चली कोविड महामारी और पिछले साल अगस्त में आई भीषण बाढ़ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को और रसातल में भेज दिया है.
इस दयनीय हालात का लाभ पाकिस्तान का जिहादी तबका उठा सकता है. पाकिस्तान के घोर उग्रवादी संगठन तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने पहले ही पाकिस्तान की नागरिक सरकार और सेना की नाक में दम कर रखा है. टीटीपी का साम्राज्य फैलता जा रहा है और एक बार फिर वह इस्लामाबाद के नजदीक मनोरम स्वात घाटी पर कब्जा करने की फिराक में है और पाकिस्तान की सेना और सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारी खर्च कर जिन जिहादियों को भारत के भीतर आतंकवादी वारदातें करने के लिए जैश ए मोहम्मद व लश्कर ए तैयबा में भरती करने के लिए तैयार किया वे अब टीटीपी में भरती होने लगे हैं.
साफ है कि पाकिस्तान की सेना और सरकार भीतर और बाहर दोनों मोरचों पर अपना अस्तित्व बचाने में ही जुटी है, जिस पर होने वाले हजारों करोड़ रुपए का सालाना खर्च यदि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधारने पर लगाया जाता तो पाकिस्तान के आज जैसे हालात नहीं होते.