यह देख रशिका रोती हुई वहां से दौड़ी और उस के पीछे गजाला. उस दिन रशिका ने डांस कंपीटिशन तो जीत लिया लेकिन शक और धर्म के नाम पर जो विष रशिका के मातापिता रशिका के ज़ेहन में बचपन से बोते आ रहे थे कि गजाला के क़ौम के लोग कभी किसी के नहीं होते, ये लोग पीठ पर वार करते हैं, उस जहर ने आज रशिका को हमेशा के लिए गजाला से जुदा कर दिया.
उस दिन रशिका के पीछे गजाला भी दौड़ी थी और वह दौड़ती हुई सीढ़ियों से फिसल कर गिर गई. गजाला के सिर पर काफी गहरी चोट लगने की वजह से उस ने 2 दिनों के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया. रशिका ने अपनी सब से अच्छी दोस्त गजाला को सदा के लिए खो दिया. उसे अपनी इस गलती का एहसास तब हुआ जब अचानक एक रोज़ राशि से उस की मुलाकात हुई और राशि ने गजाला की सचाई बयां करते हुए कहा-
“रशिका, तुम कैसी हो, तुम्हारे पास गजाला जैसी सच्ची दोस्त थी और तुम ने उसे अपनी बेतुकी सोच की वजह से खो दिया. हां, मैं उस दिन डांस कंपीटिशन में तुम्हें हराना चाहती थी, मैं चाहती थी कि गजाला वह नशे की दवाई तुम्हारे पानी की बोतल में मिला दे लेकिन उस ने ऐसा करने से मना कर दिया था. जानती हो, गजाला ने उस दिन मुझ से क्या कहा था. तुम्हें तो पता भी नहीं है कि उस ने मुझ से क्या कहा था. उस ने मुझ से कहा कि रशिका मेरी सब से अच्छी सहेली है और मैं अपने जीते जी उस के साथ किसी को भी ग़लत नहीं करने दूंगी. और तुम ने क्या किया, तुम उस की दोस्ती का मान भी नहीं रख पाईं.”
इतना कह कर राशि तो चली गई लेकिन रशिका आज भी उस नामुराद घड़ी और खुद को कोसती रहती है और खुद को गजाला की मौत के लिए जिम्मेदार मानती है. यह सब सोचते हुए रशिका की आंखों से नींद गुम हो गई थी. कल हैदराबाद लौटना था. रशिका ने यह फैसला ले लिया कि हैदराबाद पहुंचते ही वह हनीफ से इजहारे मोहब्बत कर देगी क्योंकि वह एक बार फिर अपनी जिंदगी से किसी अच्छे इंसान को नहीं खोना चाहती और उस ने यह भी तय कर लिया कि वह अपने मातापिता को भी हर हाल में इस शादी के लिए राज़ी कर लेगी.
अगली सुबह सभी पांचों साथ में ही एयरपोर्ट पहुंचे. बीती रात रशिका संग की अपनी बदतमीजी पर राजीव को अफसोस था और वह शर्मिंदा भी था. उस ने रशिका से माफी भी मांगी. रशिका ने ऊपरी तौर पर उसे माफ कर दिया लेकिन मन ही मन रशिका अब भी राजीव के रात वाले बरताव पर बेहद नाराज़ थी.
यहां हैदराबाद पहुंचते ही फिर सभी अपने बनावटी रूप में आ गए और एक सभ्य, संस्कारी व धार्मिक होने का चोला पहन कर घूमने लगे. इधर रशिका अपना हाल ए दिल हनीफ से बयां करने के मौके तलाशने लगी और उधर हनीफ बैंगलुरु से आने के बाद से ही रशिका से दूर रहने लगा. रशिका जब भी हनीफ से मिलने को कहती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. रशिका अपने लिए हनीफ की आंखों में प्यार देख चुकी थी, अब बस, वह हनीफ की जबानी सुनना चाहती थी.
एक रोज़ औफिस के फूड कोर्ट में हनीफ अकेले बैठा कौफी पी रहा था. यह देख रशिका उस के पास जा बैठी और अपने दिल के सारे पन्ने उस के सामने खोल कर रख दिए. हनीफ बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए चुपचाप सुनता रहा. उस के बाद अपनी कौफी पी रशिका से कुछ कहे बगैर उठ खड़ा हुआ और वहां से जाने लगा. यह देख रशिका भी उठ खड़ी हुई और हनीफ का हाथ पकड़ उसे रोकती हुई बोली-
“मैं जानती हूं, तुम मुझसे प्यार करते हो. तुम्हारी आंखों में इस वक़्त भी मैं अपने लिए प्यार देख रही हूं. तुम अभी कुछ नहीं कहना चाहते, मत कहो. मैं तुम्हारे हां का इंतजार करूंगी और हां, मैं आज ही अपने मम्मीपापा से हमारे लिए बात भी करूंगी.”
इतना कह कर रशिका ने हनीफ का हाथ छोड़ दिया. हनीफ बुत की तरह खड़ा रहा और रशिका वहां से चली गई. उस रात रशिका ने अपने मातापिता से फोन पर हनीफ के बारे में बताते हुए उस से शादी करने की अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी. हनीफ के बारे में सुन कर रशिका के मातापिता ने उसे फौरन इंदौर आने को कहा ताकि वे इस विषय पर बात कर सकें.
अगले दिन रशिका औफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले कर इंदौर आ गई. घर पहुंचते ही रशिका के मातापिता उस पर बरस पड़े. रशिका की मां चिल्लाती हुई उस से बोली-
“पूरे हैदराबाद में तुझे कोई और लड़का नहीं मिला, दूसरी जाति में भी नहीं. तुम तो गैरधर्म में शादी करना चाहती हो, ऊपर से तलाक शुदा आदमी के साथ जिस का एक बेटा भी है. तुम्हारा दिमाग ठिकाने पर तो है.”
यह सुन रशिका बोली- “मम्मी, हनीफ तलाकशुदा जरूर है लेकिन उस में केवल हनीफ की ही गलती नहीं है. उस में उस लड़की की भी उतनी ही गलती है, वह भी तो शादी कर के अपनी शादी निभा नहीं पाई.”
“कभी सोचा है वह लड़की अपनी शादी निभा क्यों नहीं पाई क्योंकि वह अपना धर्म छोड़ कर दूसरे धर्म में चली गई थी और जिस धर्म में तुम जाना चाहती हो न, उस धर्म के लड़के किसी गैरधर्म की लड़की से प्यार नहीं करते, बस जिहाद करते हैं, जिहाद…समझी. आज वह तुम से शादी करेगा, कल तुम्हें तलाक़तलाक़तलाक कह कर दे देगा और फिर किसी तीसरी की तलाश में निकल जाएगा. तुम्हें मालूम है, वह अपने धर्म के मुताबिक 4 शादियां कर सकता है. तब क्या करोगी,” रशिका की मां गुस्से में तिलमिलाती हुई बोली.
“मां, हनीफ ऐसा कुछ नहीं करेगा. उस की एक शादी टूट गई है, इस का मतलब यह नहीं है कि वह बुरा है,” रशिका ने अपनी मां को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. तब रशिका ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह शादी करेगी तो हनीफ से ही करेगी.
रशिका का इतना कहना था कि रशिका के पिता, जो अब तक कुछ नहीं कह रहे थे, भड़क उठे और बोले, “यह शादी किसी भी सूरत में नहीं हो सकती. अगर तुम उस लड़के से शादी करती हो तो दोबारा इस घर की चौखट पर कभी पैर मत रखना. यह समझ लेना कि तुम्हारे मातापिता तुम्हारे लिए मर गए हैं.”
रशिका अपने मातापिता के आशीर्वाद से हनीफ संग शादी के बंधन में बंधना चाहती थी, इसलिए वह पूरे एक हफ्ते इंदौर में रुकी और अपने मातापिता को इस शादी के लिए राज़ी करने का प्रयत्न करती रही लेकिन अंत तक वे नहीं माने और रशिका निराश हो कर हैदराबाद लौट आई.
यहां हैदराबाद में जब रशिका औफिस पहुंची तो उसे हनीफ कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उस का मोबाइल भी बंद बता रहा था. रशिका ने जब संदीप और राजीव से हनीफ के बारे में पूछा तो उन्हें भी कुछ मालूम नहीं था. राजीव ने इतना कहा कि उस ने लास्ट टाइम हनीफ को उपासना के साथ देखा था पर आज उपासना भी औफिस नहीं आई थी.
रशिका बारबार कभी हनीफ का नंबर डायल करती तो कभी उपासना का. लेकिन दोनों का ही नंबर बंद बता रहा था. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर दोनों का नंबर बंद क्यों बता रहा है. आखिरकार रशिका का पूरा दिन ऐसे ही बीत गया और सारी रात आंखों ही आंखों में कटी. दूसरे दिन जब रशिका औफिस पहुंची तब भी हनीफ का कुछ पता नहीं था. वह सोच ही रही थी कि आखिर हनीफ कहां होगा. उसी वक्त रशिका के सामने उपासना आ खड़ी हुई. उपासना को सामने खड़ा देख रशिका भी खड़ी हो गई और वह उपासना से बोली, “मैं कल से तुम्हारा और हनीफ का मोबाइल ट्राई कर रही हूं, तुम्हारा नंबर भी बंद बता रहा है और हनीफ का भी, तुम्हें पता है हनीफ कहां है?”
उपासना लंबी सांस लेती हुई रशिका को उस की चेयर पर बिठाती हुई बोली, “कल मैं छुट्टी पर थी और मेरे मोबाइल की बैटरी खराब हो गई थी, इसलिए मेरा मोबाइल बंद था. रही बात हनीफ की, तो मुझे नहीं पता वह कहां है. हां, इतना जरूर पता है कि उस ने यह कंपनी और जौब दोनों छोड़ दी है.”
इतना कहने के बाद उपासना अपने पर्स से एक बंद लिफाफा रशिका को देती हुई बोली, “यह लिफाफा हनीफ तुम्हारे लिए छोड़ गया है.” यह कह कर उपासना वहां से चली गई.
धड़कते दिल और कंपकंपाते हाथों से रशिका ने वह बंद लिफाफा खोला जिस पर लिखा था-
“रशिका, मैं जानता हूं तुम्हारे दिल में मेरे लिए जो जज्बात हैं. मैं यह भी जानता हूं कि तुम्हारे मातापिता इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे और उन के आशीर्वाद के बगैर मैं तुम्हारा हाथ नहीं थाम पाऊंगा. मैं एक बार फिर शादी कर के अपने प्यार को जिहाद का नाम नहीं देना चाहता, इसलिए प्यार को, बस, प्यार ही रहने दो…”
इतना पढ़ कर रशिका की आंखों से अश्रुधारा बहने लगे. उस के बाद रशिका ने झिलमिलाती आंखों से जो पढ़ा, उस में मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी की एक ग़ज़ल की पंक्ति लिखी थी-
“वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा…”
यह पढ़ने के बाद रशिका ने नम आंखों से वह लिफाफा संभाल कर अपने बैग में रख लिया. आज एक बार फिर ऊंचनीच, जाति, धर्म, संप्रदाय, क़ौम जैसे बेमाने शब्दों की वजह से 2 प्यार करने वाले दिल जुदा हो गए और प्यार फिर हार गया.