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बदला वेश बदला मन

सेठ पूरनचंद बहुत ही कंजूस था. अपार धनदौलत होते हुए भी उस का दिल बहुत छोटा था. कभी किसी जरूरतमंद की उस ने सहायता नहीं की थी. वह सदा इसी तिकड़मबाजी में रहता कि किसी तरह उस की दौलत बढ़ती रहे. उस की इस कंजूसी की आदत के कारण उस के परिवार वाले भी उस से खिंचेखिंचे रहते थे. पर सेठ को किसी की परवा नहीं थी.

एक दिन सेठ पूरनचंद शाम को सदा की तरह टहलने निकला. चलतेचलते वह शहर से दूर निकल गया.

रास्ते में एक जगह उस ने देखा, एक चित्रकार बड़े मनोयोग से अपने सामने के दृश्य का चित्र बना रहा है. सेठ भी कुतूहलवश उस के पास चला गया. चित्रकार बड़े सधे हाथों से वह चित्र बना रहा था. सेठ प्रशंसा भरे स्वर में बोला, ‘‘वाह, बड़ा सजीव चित्र बनाया है तुम ने. क्या इनसान की तसवीरें भी बना लेते हो तुम?’’

‘‘जी हां,’’ चित्रकार मुसकराया, ‘‘क्या आप को अपनी तसवीर बनवानी है?’’

‘‘हां, बनवाना तो चाहता हूं पर तुम पैसे बहुत लोगे?’’

‘‘पर आप की जिंदगी की यादगार तसवीर भी तो बन जाएगी. अपनी तसवीर बनवाने के लिए आप को मुझे 3-4 घंटे का समय देना होगा. कल सुबह 8 बजे आप मेरी चित्रशाला में आ जाइए,’’ कहते हुए चित्रकार ने अपनी चित्रशाला का पता सेठ पूरनचंद को दे दिया.

अगले दिन सेठ पूरनचंद सजधज कर चित्रकार की चित्रशाला में पहुंचा. उस के गले में मोतीमाणिक के हार थे, हाथ में सोने की मूठ वाली छड़ी थी, पगड़ी में कलफ लगा हुआ था. चित्रकार ने सजेधजे सेठ को देखा तो बोला, ‘‘सेठजी, आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं?’’

‘‘हांहां, कहो,’’ सेठ बड़ी शालीनता से बोला.

‘‘जैसे आप हैं, वैसी तसवीर बनाने का तो फायदा नहीं. इस में कोई अनोखी बात भी नहीं होगी. तसवीर तो ऐसी बनवानी चाहिए जैसे आप दरअसल हैं ही नहीं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सेठ उलझन में पड़ गया.

‘‘मतलब यह कि आप वह सामने दीवार पर टंगी तसवीर देख रहे हैं?’’

‘‘हां, ‘‘सेठ बोला, ‘‘किसी बड़े रईस की तसवीर मालूम पड़ती है. कोट पर सोने के बटन लगे हैं, सभी उंगलियों में हीरे या सोने की अंगूठियां हैं, कलाई पर कीमती घड़ी बंधी है.’’

‘‘यह असल में किसी रईस की नहीं, एक बेहद गरीब रिकशा चालक की तसवीर है,’’ चित्रकार मुसकराया, ‘‘और क्योंकि आप रईस हैं, इसलिए आप को गरीब भिखारी के वेश में तसवीर बनवानी चाहिए. जो भी उसे देखेगा, एक बार तो हक्काबक्का रह ही जाएगा.’’

’‘हां, कहते तो तुम ठीक हो,’’ सेठ को चित्रकार की बात पसंद आ गई, ‘‘तुम भिखारी के वेश में ही मेरी तसवीर बनाओ.’’

चित्रकार ने सेठ के कीमती वस्त्र व आभूषण उतरवा कर उसे एक चिथड़ा सा लपेटने को दे दिया. बाल बिखेर कर उन में धूल और घास फंसा दिए तथा शरीर को मैलाकुचैला प्रदर्शित करने के लिए मिट्टी लगा दी. फिर उस ने सेठ को एक लाठी पकड़ा कर कोने में खड़ा कर दिया और बोला, ‘‘सेठजी, मैं अब आप का चित्र बनाना आरंभ कर रहा हूं. बिना हिलेडुले खड़े रहिए. लगभग 3 घंटे लगेंगे आप का चित्र पूरा होने में.’’ सेठ ने सामने लगे शीशे में अपना प्रतिबिंब देखा तो मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम ने तो कमाल का मेकअप कर दिया है. सचमुच मैं भिखारी ही लग रहा हूं. कौन कहेगा कि मैं शहर का सब से धनाढ्य सेठ पूरनचंद हूं?’’

चित्रकार ने चित्र बनाना प्रारंभ कर दिया था. इस दौरान चित्रकार का नौकर रघु भी आ गया और कमरे की सफाई करने लगा. बीचबीच में वह बुत की तरह खड़े सेठ पर भी नजर डाल लेता. कमरे में झाड़ू लगा कर वह रसोईघर में चला गया और बरतन मांज कर खाना बनाने लगा. काम करतेकरते उसे 3-4 घंटे हो गए थे. इस दौरान चित्रकार का काम पूरा हो गया. वह सेठ से बोला, ‘‘अभी रंग गीला है. चित्र में कुछ काम अभी बाकी है. आप कल आ कर अपनी तसवीर ले जाइएगा.’’ इस के बाद चित्रकार ने आवाज लगाई, ‘‘रघु, आ कर अपना वेतन ले जाओ.’’

रघु आया तो चित्रकार ने उसे 2 हजार रुपए दे दिए. इतने में चित्रकार से कोई मिलने आया तो वह बाहर चला गया. रघु अब भिखारी के वेश में खड़े सेठ के पास गया और बोला, ‘‘3 घंटे तक खड़ेखड़े तो तुम्हारी कमर अकड़ गई होगी भैया?’’ ‘‘हां,’’ सेठ ने अंगड़ाई ले कर बदन झटकाया और बोला, ‘‘हां भाई, मेरी तो सारी नसें अकड़ गई हैं.’’

‘‘मजबूरी जो न कराए सो थोड़ा. तुम तो बड़े ही गरीब और जरूरतमंद लगते हो. चित्रकार बाबू भला तुम्हारा चित्र बनाने के बदले तुम्हें 100-200 रुपए से ज्यादा क्या देंगे?’’

रघु की बात पर सेठ को मन ही मन हंसी आने लगी. वह समझ गया कि रघु उसे सचमुच भिखारी समझ रहा है. चित्रकार लोग अकसर चित्र बनाने के लिए भाड़े पर ऐसे गरीब जरूरतमंदों को ला कर उन के चित्र बनाते हैं और बदले में उन्हें थोड़ेबहुत रुपए दे देते हैं. तभी रघु ने जेब में हाथ डाला और 500 रुपए का नोट निकाल कर सेठ के हाथ पर रख दिया.

‘‘यह क्या है?’’ सेठ चौंक पड़ा.

‘‘ले लो भैया, तुम बड़े गरीब और जरूरतमंद लगते हो. गरीब तो मैं भी हूं, इसलिए इस से ज्यादा मदद करने की हालत में नहीं हूं. तुम इस नोट को रख लो.’’ फिर रघु वहां से चला गया. सेठ विस्मय से भरा वहीं खड़ा रह गया. वह सोच रहा था कि दुनिया में क्या ऐसे लोग भी होते हैं? यह चित्रकार का नौकर है. मात्र 2 हजार रुपए मिले हैं इसे वेतन के, लेकिन फिर भी इस ने बेझिझक मुझे 500 रुपए दे दिए. रघु गरीब बेशक है, पर दिल का अमीर है.

इस तरह की घटना सेठ पूरनचंद के साथ पहली बार घटी थी. इस का उस के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह अपने बारे में सोच कर स्वयं की रघु से तुलना करने लगा. उस के पास तो करोड़ों की दौलत है पर उस ने कभी किसी गरीब को 2 रुपए भी नहीं दिए. कभी किसी के दुख को नहीं समझा. सेठ का मन पश्चात्ताप से भर उठा. वह सोच रहा था कि अब तक का जीवन तो बीत गया पर अब बाकी का जीवन वह रघु द्वारा दिखाई राह पर चलते हुए बिताएगा. रघु को भी वह अपने कारखाने में अच्छे वेतन पर नौकरी देगा.

शशि का नया शिगूफा : क्या तूल पकड़ेगी दलित प्रधानमंत्री की मांग?

कांग्रेसी नेता शशि थरूर के बारे में हरेक की अपनी एक अलग राय हो सकती है, जिस का औसत निचोड़ यह निकलेगा कि वे एक सैक्सी और रोमांटिक नेता हैं. यह पहचान दिलाने में भगवा गैंग और समूचे दक्षिणपंथ की पुरजोर कुंठित कोशिशें भी हैं. लेकिन हर कोई यह भी जानता है कि वे एक पर्याप्त शिक्षित बुद्धिजीवी, संभ्रांत और अभिजात्य जमीनी नेता हैं, जिस के नाम वैश्विक स्तर के कई सम्मान और रिकौर्ड दर्ज हैं. एक सफल स्थापित लेखक और स्तम्भकार भी वे हैं.

भारतीय राजनीति में सक्रिय और स्थापित हुए उन्हें अभी 15 साल भी पूरे नहीं हुए हैं, पर इस अल्पकाल में वे अपनी खास पहचान गढ़ने में कामयाब हुए हैं. खासतौर से कांग्रेस की तो वे जरूरत बन चुके हैं.

बावजूद इस हकीकत के कि गांधीनेहरू परिवार के प्रति अंधभक्ति उन में नहीं है, लेकिन कांग्रेस के मद्देनजर इस परिवार की जरूरत को वे भी नकार नहीं पाते.

इन्हीं शशि थरूर ने 2 दिन पहले एक अमेरिकी टैक कंपनी के दफ्तर के उद्घाटन कार्यक्रम में कहा कि इंडिया गठबंधन 2024 के चुनाव में बहुमत ला भी सकता है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस की तरफ से बतौर प्रधानमंत्री राहुल गांधी या मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकित किए जा सकते हैं.

यह एकाएक यों ही दिया गया वक्तव्य नहीं है, बल्कि इसे कांग्रेसी रणनीति का एक हिस्सा ही माना जाना चाहिए, जो भविष्य को ले कर काफी उत्साहित है और उस की अपनी ठोस वजहें भी हैं.

एक तरह से शशि थरूर ने एक बार फिर से दलित प्रधानमंत्री की सनातनी मांग को उठाया है. साथ ही, राहुल गांधी का नाम विकल्प के रूप में पेश कर दिया है.

अगर कांग्रेस 200 से ऊपर सीट ले गई तो तय है कि वह राहुल से कम पर तैयार नहीं होगी और 150 से 180 के बीच रही तो मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर देगी.

इस में कोई शक नहीं कि इंडिया गठबंधन के सभी दल राहुल गांधी के नाम पर हाथ नहीं उठा देंगे. ममता बनर्जी इन में प्रमुख हैं, क्योंकि क्षेत्रीय दलों में उन के पास लोकसभा की सब से ज्यादा सीटें रहने की संभावना है.

अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव भी अपने दलों और कांग्रेस की सीटों की संख्या देख सौदेबाजी करेंगे, लेकिन यह तय है कि वर्ष 2024 में इन में से किसी के पास भी कांग्रेस से एकचौथाई सीटें भी नहीं होंगी. नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और स्टालिन ज्यादा एतराज राहुल के नाम पर जताएंगे, ऐसा हालफिलहाल लग नहीं रहा. क्योंकि नरेंद्र मोदी का जादू अब उतार पर है. हालांकि हिंदीभाषी प्रदेशों में वह बढ़त पर रहेगा, लेकिन यह संख्या कितनी होगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता.

5 राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद तसवीर थोड़ी और साफ होगी. हालात ठीक वैसे या लगभग वैसे भी हो सकते हैं, जैसे वर्ष 1977 में जनता पार्टी के गठन के वक्त थे.

शशि थरूर ने दलित समुदाय के मन में एक उम्मीद तो जताई है कि अगर वे इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोट करते हैं, तो देश को पहला दलित प्रधानमंत्री मिलने की उम्मीद बरकरार है, जिस पर वर्ष 1977 में जनता पार्टी ने पानी फेर दिया था. तब भी विरोध करने वालों में जनसंघ सब से आगे थी, जो आज भाजपा के नाम से जानी जाती है.

तब यह हुआ था ?

‘बाबूजी’ के नाम से मशहूर उच्च शिक्षित जगजीवन राम का राजनीति में अपना एक अलग रुतबा हुआ करता था, जो उपप्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री भी रहे. बिहार के भोजपुर इलाके के इस कद्दावर दलित नेता ने कांग्रस छोड़ जनता पार्टी का दामन थाम लिया था. जयप्रकाश नारायण तब कांग्रेस और इंदिरा गांधी के विरोध में अलगअलग सिद्धांतों और विचारधारा वाले राजनीतिक दलों को एक निशान के नीचे लाने में कामयाब हो गए थे. तब सब का एजेंडा इंदिरा हटाओ था, लेकिन उन की जगह कौन? यह विवाद सामने आया, तो जनता पार्टी में रार पड़ गई.

सब से तगड़ी दावेदारी जगजीवन राम की ही थी, लेकिन उन्होंने चूंकि इमर्जेंसी का प्रस्ताव रखा था, इसलिए उन का विरोध शुरू हो गया जो एक बहाने से ज्यादा कुछ नहीं था. मकसद था, एक दलित को देश की सब से ताकतवर कुरसी पर बैठने देने से रोकना. तब इस दौड़ में प्रमुखता से जनसंघ के मोरारजी देसाई और भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह थे.
सांसदों में जनसंघ के सब से ज्यादा 93 और इस के बाद भारतीय क्रांति दल के 71 सदस्य थे. जगजीवन राम की बनाई कांग्रेस फौर डेमोक्रेसी को 28 सीटें मिली थीं और इतने ही सदस्य सोशलिस्ट पार्टी के थे. इस पार्टी के वरिष्ठ नेता जार्ज फर्नांडीज और मधु दंडवते जगजीवन राम के पक्ष में थे.

चरण सिंह न तो मोरारजी देसाई को चाहते थे और न ही जगजीवन राम को, लेकिन जब इन दोनों में से किसी एक को चुनने का मौका आया, तो वह मोरारजी देसाई के नाम पर सहमत हो गए. लेकिन यह सब आसान नहीं था.

जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ी ही इस उम्मीद और अघोषित शर्त पर थी कि उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाया जाएगा. जनता पार्टी के जनक जयप्रकाश नारायण और जेबी कृपलानी ने जैसेतैसे मानमनोव्वल कर के जगजीवन राम को सहमत किया और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए.
इस के बाद जो हुआ, वह भारतीय राजनीति के इतिहास का दिलचस्प अध्याय है. 3 साल में ही जनता पार्टी की सरकार विसर्जित हो गई और 1980 में कांग्रेस ने शानदार वापसी की. 1980 का चुनाव जनता पार्टी ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पेश कर ही लड़ा था, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया. फिर धीरेधीरे जनता पार्टी खत्म हो गई. इस के साथ ही खत्म हो गई दलित प्रधानमंत्री की मांग, जो बाद में रस्मीतौर पर छिटपुट उठती रही.

अब यह हो सकता है

वर्ष 2024 को ले कर भाजपा पिछली बार की तरह निश्चिंत नहीं है. इस की बड़ी वजह प्रमुख विपक्षी दलों का लगभग जनता पार्टी की तरह एक हो जाना और उस का जितनी जिस की आबादी उतनी उस की भागीदारी वाला नारा है, जो कभी बसपा के संस्थापक कांशीराम ने दिया था. अब सभी की प्राथमिकता आधी आबादी वाले पिछड़े हैं, लेकिन 20 फीसदी वाले दलितों को भी कोई नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है, जिन का साथ 16 फीसदी मुसलिम और 9 फीसदी आदिवासी भी दे सकते हैं.

अगली लड़ाई अगर धर्म यानी सनातन बनाम जाति हुई, जिस की संभावना ज्यादा है, तो भाजपा को सब से ज्यादा नुकसान होना तय है. इसलिए वह जातिगत जनगणना से कतरा रही है. इंडिया गठबंधन 15 बनाम 85 के फार्मूले पर काम कर रहा है. 15 फीसदी सवर्णों के अलावा कितने फीसदी पिछड़े दलित उस का साथ देंगे, इसी समीकरण पर वर्ष 2024 का फैसला होगा.

दक्षिण भारत से तो भाजपा खारिज हो ही रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, ओडिशा में नवीन पटनायक, झारखंड में हेमंत सोरेन और दिल्ली व पंजाब में अरविंद केजरीवाल के चलते उसे कुछ खास हाथ नहीं लगना.
लोकसभा सीटों के हिसाब से देखें, तो कोई 280 सीटों पर वह कमजोर है और लगभग इतने पर ही गठबंधन दलों के साथ मजबूत भी है.

शशि थरूर का बयान ऐसे वक्त में आया है, जब चुनाव वाले 5 राज्यों में मिजोरम को छोड़ कर दलित एक बड़ा फैक्टर है, जो अगर कांग्रेस की तरफ झुक गए तो अगली लोकसभा के नतीजे भी हैरान कर देने वाले होंगे, जैसा कि शशि थरूर अपने बयान में जोड़ते हैं.

यह कहना बहुत मुश्किल है कि इंडिया गठबंधन अपने मकसद में कामयाब हो ही जाएगा. उस की राह में भी कम रोड़े और कम चरण सिंह और मोरारजी देसाई नहीं. इस के बाद भी गठबंधन की गंभीरता और मजबूरी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अगर उस का मकसद वाकई भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को खत्म करना होगा तो त्याग कइयों को करना पड़ेगा.

तिरुवंतपुरम से शशि थरूर ने दो विकल्प दिए हैं. तीसरे को गिना ही नहीं तो इस के पीछे उन का संदेश साफ दिख रहा है कि मिशन तभी कामयाब होगा, जब सभी कांग्रेस को बौस मान लें. राष्ट्रीय दल होने के नाते वह इस की हकदार भी है और सीटों की गिनती में भी स्वाभाविक रूप से अव्वल रहेगी.

दलित प्रधानमंत्री का मुद्दा उछालना हालांकि पुराना शिगूफा है, जिस में इकलौता फायदा यह है कि भाजपा के पास कोई राष्ट्रीय स्तर का दलित नेता ही नहीं है. बाकी छोटेमोटे दलित दल उस ने ओलाउबर टैक्सी की तरह हायर कर रखे हैं.
बचीं मायावती, तो वे भी कांट्रेक्ट पर ही काम कर रही हैं और बसपा को एकचौथाई डुबो चुकी हैं. ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर बात अगर बनती दिखती है तो इस में कांग्रेस को कोई घाटा भी नहीं है क्योंकि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनना ही चाहेंगे, यह भी अभी स्पष्ट नहीं है.
मुमकिन है कि वे एक बार फिर परदे के पीछे से सरकार चलाना पसंद करें. ठीक वैसे ही जैसे वर्ष 2003 से 2013 तक चलाई थी, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि गठबंधन का हश्र जनता पार्टी सरीखा न हो. वह सफल हो भी सकता है क्योंकि उस के कुनबे में कोई जनसंघ या मोरारजी देसाई नहीं है, जो दलितों के नाम पर नाक को रुमाल से ढक लें.

‘कलंक’ के बाद Varun Dhawan क्यों वापस करना चाहते थे धर्मा प्रोडक्शन के पैसे ?

Varun Dhawan : हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया, बदलापुर, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, अक्टूबर, कलंक और जुग-जुग जियो जैसी फिल्मों से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले अभिनेता ”वरुण धवन” के आज करोड़ों चाहने वाले हैं. बहुत ही कम समय में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई हैं. हालांकि अब तक के अपने करियर में ”वरूण” ने कई उतार-चढ़ाव भी देखे हैं.

दरअसल एक्टर (Varun Dhawan) की जिंदगी में एक समय ऐसा भी आया था जब एक के बाद एक उनकी कई फिल्में फ्लॉप हो रही थी, जिसके चलते वह काफी परेशान भी हो गए थे. हालांकि हाल ही में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘जुग-जुग जियो’ और ‘बवाल’ सुपर हिट रही थी. दोनों फिल्मों को दर्शकों का खूब प्यार मिला था. लेकिन आज हम एक ऐसे किस्से के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसको सुनने के बाद आप हैरान जरूर हो जाएंगे.

क्या धर्मा प्रोडक्शन ने वापस ले लिए थे अपने पैसे ?

दरअसल, बीते दिनों मीडिया से बात करते हुए अभिनेता ”वरूण धवन” (Varun Dhawan) ने अपने करियर के बारे में खुलकर बात की थी. उन्होंने कहा था कि, ‘कोरोना काल के बाद से लोगों की आदतों में काफी बदलाव आया था. लोग थियेटर में फिल्मों को देखने से ज्यादा घर पर ही उन्हें देखना पसंद करते थे. लेकिन अब धीरे-धीरे फिर से लोग थियेटर की तरफ बढ़ रहे हैं. पर अब वो वह ही फिल्में देखना पसंद करेंगे जो उन्हें अच्छी लगेंगी. इसलिए ये हमारे लिए चुनौती है कि हम अच्छी फिल्में बनाएं.’

इसी के साथ उन्होंने (Varun Dhawan News) एक हैरान कर देने वाला किस्सा भी बताया. उन्होंने बताया कि, ‘जब उनकी फिल्में फ्लॉप हो रही थी और उनका सही समय नहीं चल रहा था तो तब भी लोगों का नजरिया उनके लिए कुछ खास नहीं बदला. लेकिन फिल्म ‘कलंक’ के रिलीज होने के बाद उन्होंने एक फैसला किया था कि वो ‘धर्मा प्रोडक्शन’ से मिले मेहनताने के पैसे वापस कर देंगे. इसकी उन्होंने धर्मा प्रोडक्शन के सामने इसकी पेशकश भी रखी थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया. हालांकि इसके बाद फिर फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर’ के प्रोड्यूसर ने आराम से पैसे बना लिए थे.’

अब से सिर्फ ऐसी ही फिल्में करेंगे एक्टर

अपनी बात को पूरा करते हुए इसी के आगे वरूण (Varun Dhawan) ने कहा, ‘इसके बाद मैंने सोच लिया था कि अब से मुझे सिर्फ और सिर्फ अच्छी फिल्में ही बनानी हैं, क्योंकि मैं जानता हूं कि अच्छी फिल्मों को लोग कभी न कभी सराहेंगे ही.’ इसी के साथ उन्होंने कहा कि, ‘इन तमाम समस्याओं और इन खराब चीजों ने मुझे कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित ही किया हैं.’

इन तमाम स्टार्स ने वरूण को समाझाया है

इसके अलावा फ्लॉप फिल्मों पर ”वरूण धवन” (Varun Dhawan) ने कहा, ‘बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान से लेकर अजय देवगन और अनिल कपूर आदि कई सीनियर स्टार्स ने उन्हें समझाया था कि जिंदगी में फेल होने के साथ डील करना कोई नई चीज नहीं होती है. सचिन तेंदुलकर भी तो कभी जीरो पर आउट हुए ही होंगे. तो इसलिए जो हो गया वो हो गया. अब आगे बढ़ो और काम करो.’

इसी के आगे उन्होंने कहा, ‘जब अचानक रात को 1 बजे आपके सीनियर आपको फोन करते हैं और कहते हैं कि आगे बढ़ते रहो तो ये बात सुनकर बहुत अच्छा लगता है. इसलिए अब इन बातों से मुझे फर्क नहीं पड़ता और अगर आप एक अच्छे एक्टर हैं तो एक्टिंग करिए व काम करिए.’

वरूण- शादी से रिश्ते में नहीं आया कोई बदलाव

वहीं अपनी निजी जिंदगी के बारे में ”वरुण” (Varun Dhawan) ने कहा, ‘शादी के बाद मुझे ऐसा नहीं लगता है कि उनका और उनकी पत्नी का रिश्ता बदल गया है. वो उनके साथ बहुत खुश हैं’ आपको बता दें कि अभिनेता ”वरूण धवन” ने साल 2021 में अपनी लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड ”नताशा दलाल” से शादी की थी. उनकी शादी में बॉलीवुड जगत से जुड़े कई लोग शामिल भी हुए थे.

मेरे घर पर हमेशा रिश्तेदारों का तांता लगा रहता है, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं जिस में मेरे 2 बच्चे, पति और सासससुर रहते हैं. मेरी उम्र 43 वर्ष है और बच्चे 21 व 17 वर्ष के हैं. मैं कामकाजी महिला हूं और जब औफिस से वापस घर आती हूं तो वहां रिश्तेदारों का तांता लगा देखती हूं. सासससुर दोनों ही घर में रहते हैं और जब देखो तब किसी न किसी रिश्तेदार को फोन कर घर पर बुला लेते हैं. कभी दूर की मौसी तो कभी चाची. उन का चायनाश्ता, खानापीना सब मुझे ही देखना पड़ता है. घर का माहौल अस्तव्यस्त हो जाता है और बच्चों को पढ़ने में भी परेशानी होती है. मुझे समझ नहीं आता कि इस समस्या से कैसे बचा जाए.

जवाब

आप का परेशान होना जायज है परंतु साथ ही, आप का अपने सासससुर का इस उम्र में अपने सगेसंबंधियों से मिलने की इच्छा का मान रखना भी जरूरी है. उम्र के इस पड़ाव में आ कर लोग बिजी रहना चाहते हैं. आप ने यह नहीं बताया कि बच्चे उन से बातचीत करते हैं या नहीं. ऐसा न हो कि वे अकेलापन महसूस करते हों और इस वजह से रिश्तेदारों को बुलाते हों. आप ठहरीं कामकाजी और पति के बारे में आप ने बताया नहीं कि वे क्या करते हैं. आप भी उन्हें समय नहीं देतीं और आप के पति भी हो सकता है उन से ज्यादा बातचीत न करते हों, इसलिए वे ज्यादा अकेलापन महसूस करते हों. इस स्थिति में आप अपने सासससुर से बात कर के उन्हें अपनी परेशानी से अवगत कराएं. उन से यह कहें कि वे हफ्ते में केवल एक या दो दिन ही किसी रिश्तेदार को घर पर बुलाएं जिस से न आप को परेशानी होगी और न ही आप के सासससुर की इच्छा का अनादर होगा. वे बड़े हैं, इस बात को समझेंगे. साथ ही, बच्चों से कहें कि वे उन से बातचीत करें. घुलमिल कर आप सभी एकदूसरे को समय देंगे तो इस समस्या का हल अपनेआप ही हो जाएगा.

डायबिटीज मरीजों को होती हैं त्वचा की ये बीमारियां

आज लोगों में डायबिटीज की समस्या बेहद आम है. देश की एक बड़ी आबादी है जो इस परेशानी से जूझ रही है. डायबिटीज के मरीजों को कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है. उन्हें अपनी डाइट, ब्लड शुगर और वजन जैसी जरूरी चीजों का खासा ध्यान रखना पड़ता है. इन चीजों में हल्की सी भी लापरवाही जान पर बन आती है. पर क्या आपको पता है कि डायबिटीज के मरीजों में त्वचा की बीमारी के खतरे अधिक होते हैं. उन्हें त्वचा संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि डायबिटीज के मरीजों को किस तरह की त्वचा संबंधित बीमारियां हो सकती हैं.

डायबेटिक डर्मोपैथी

इस बीमारी में त्वचा पर गोल और ओवल आकार के निशान पड़ जाते हैं. आमतौर पर ये बीमारी पैर के ऊपरी हिस्से पर होती है.

स्किन इंफेक्शन

डायबिटीज के मरीजों में स्किन इंफेक्शन का खतरा अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि वो इस बात को लेकर सजग रहें.

डायबेटिक ब्लिस्टर

डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहे लोगों में ये बीमारी देखी जाती है. इस बीमारी में लोगों को कई जगहों पर छाले हो जाते हैं. डायबिटीज के मरीजों की स्किन पर होने वाले छाले काफी बड़े होते हैं और इन छालों में ना खुजली होती है और ना ये लाल पड़ते हैं.

अकन्थोसिस निगरिकन्स (Acanthosis Nigricans)

त्वचा से जुड़ी ये बीमारी आम तौर पर मोटापा से पीड़ित लोगों में होती है. इसमें गर्दन, कोहनी पैर की त्वचा गहरे भूरे रंग में बदल जाती है. इन परेशानियों से निजात पाने के लिए वजन कम करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा बाजार में बहुत से ऐसे क्रीम मिलते हैं जिनके प्रयोग से आप इस परेशानी से निजात पा सकते हैं.

मोको कहां ढूंढे रे बंदे

आज फिर कांता ने छुट्टी कर ली थी और वो भी बिना बताए. रसोई से ज़ोर – ज़ोर से बर्तनों का शोर आ रहा था. बेचारे गुस्से के कारण बहुत पिटाई खा रहे थे. पर इस गुस्से के कारण कुछ बर्तनों पर इतनी जम के हाथ पड़ रहा था कि मानो उनका भी  रंग रूप निखर आया हो. वही जैसे फेशियल के बाद चेहरे पर आता है. अरे, “आज मुझे पार्लर भी तो जाना है.” अचानक याद आया. सारा काम जल्दी – जल्दी निपटा  दिया. थकान भी लग रही थी. पर सोचा चलो, वही रिलैक्स हो जाऊंगी. घर का सारा काम निपटा कर मैं पार्लर पहुंच गई.

जब फेशियल हो गया तो पार्लर वाली बोली…….
“दीदी कल देखना, क्या ग्लो आता है.” उफ़….एक तो उसका “दीदी” बोलना और दूसरा अंग्रेजी का “ग्लो” ग्लो~~ वाह!! सच, मन कितना आनंद से भर जाता है. खुश होकर मैंने कुछ टिप उसके हाथ में रख दी, “थैंक यू दीदी” उसने कहा.सच में अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस होने लगा, जैसे न जाने कितना महान काम कर दिया हो.घर वापसी के लिए पार्लर का दरवाज़ा खोलते समय सचमुच में एक सेलेब्रिटी वाली फीलिंग आने लगती है. लगता है जैसे बाहर कई सारे फोटोग्राफर और ऑटोग्राफ लेने वाले इंतजार में खड़े होंगे… मैडम, मैडम!हेल्लो.. हेल्लो.. प्लीज़ प्लीज़ एक फोटो. इधर,  इधर, मैडम. ऐसा सोचते ही एक गर्वीली मुस्कुराहट अनायास ही चेहरे पर आ गई.

पर ये क्या? पार्लर से निकलते ही सब्ज़ी वाला भईया दिख गया। उफ़…मेरे ख्यालों की
दुनिया जैसे पल भर में गायब हो गई. मुझे देखते ही वो अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बोला “हां,…. चाहिए कुछ?” मैं जैसे सपने से जागी.अरे हां,आलू तो खत्म हो ही गए है. परांठे कैसे बनेंगे कल.सन्डे को कुछ स्पेशल तो सबको चाहिए ही. फिर चाहे लंच में छोले चावल बन जाएंगे. टमाटर भी लेे ही लेती हूं. रखे रहेंगे, बिगड़ते थोड़े ही है. कुछ और सब्जियां भी ‘सेफर साइड योजना’ के तहत लेे ली जाती है.अब आती है असली जिम्मेदारी निभाने की बारी..यानी हिसाब लगवाने की बारी “क्या भईया, क्यूं इतनी मंहगी  लगा रहे हो?”
“हमेशा तो आपसे ही लेती हूं.”

“आज क्या कोई पहली बार सब्ज़ी थोड़े खरीद रही हूं आपसे?”
“उधर, बाहर मार्केट में बैठते हो तो कम भाव लगाते हो”
“हमारी कॉलोनी में आते ही सबके भाव बढ़ जाते है”
अन्तिम डायलॉग बोलते समय थोड़ा फक्र महसूस होता है. देखा हम कितनी पॉश कॉलोनी के वासी है. परन्तु फ्री का धनिया और हरी मिर्च मांगते वक्त मैं अपने वास्तविक रूप में लौट आती.बनावट तो अस्थाई होती है, वास्तविकता ही हमारे साथ स्थाई रूप से रहती है.पर ये हमें शायद बहुत कम या कहिए देर से समझ आता है.

खैर….सब्जी वाले के साथ मोल भाव करने और कुछ एक्स्ट्रा लेने में अपनी कला पर खुद को ही शाबाशी दे डाली, हमेशा की तरह। वरना, घर पर ये सब बताओ तो इन समझदारी की बातों को भला कौन समझता है? उल्टा प्रवचन अलग मिल जाता है पतिदेव से …”क्या तुम भी, यूं दो – चार रुपयों के लिए इन मेहनतकश लोगो से इतना तोल मोल करती हो” इतनी सुबह- सुबह दूर मंडी से तुम्हें ये सब घर बैठे ही मिल जाता है. ये भी तो फ्री होम डिलीवर ही है. हमें तो इनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए.

उहं मैंने मन ही मन  मुंह बनाया. अरे, घर चलाना कोई खेल नहीं है. बहुत सारी बातें सोचनी पड़ती है. ये मर्दों के बस की बात नहीं है. अपने और उनके दोनों के ही हिस्से की बातें मैं मन ही मन सोच रही थी.
जब सब्ज़ियां खरीद ली तो याद आया. ओह, हां.. .’ब्रेड और मख्खन भी तो नहीं है और छोटे बेटे ने अपना शैंपू लाने के लिए भी तो कहा था।’ कुछ चिप्स और चॉकलेट भी लेे लूंगी उसके लिए. घर पहुंचते ही  बोलता है “मेरे लिए क्या लाई हो मम्मी?” दुकान पर पहुंची तो कुछ अन्य वस्तुओं पर भी नज़र गई । उन्हें देख कर सोचा..”अच्छा हुआ जो नजर पड़ गई, ये सामान भी तो लगभग खत्म ही होने लगा है.” ये तो बहुत अच्छा हुआ, जो देखकर याद आ गया। वरना फिर से आना पड़ता.
सारा सामान लेे कर  थकी – हारी घर पहुंची। रिक्शे वाले से भी थोड़ी बहस हो गई किराए को लेकर. आज तो सारा मूड ही खराब हो गया.

डोरबेल बजाई तो चीकू ने दरवाज़ा खोला और चिल्ला कर बोला… पापा,  “मम्मी आ गई हैं.” “पता नहीं क्यूं ये हमेशा अपने पापा को सावधान होने का संकेत देता है.” जैसे, “मैं नहीं, कोई खतरे की घड़ी आ गई हो.”
हमेशा की तरह मैंने इस बात को नजर अंदाज़ किया.
चीकू बोला ,”मेरे लिए क्या लाई हो मम्मी?” हर बार उसकी यही जिज्ञासा होती.
अरे। “हर बार क्यूं पूछते हो?” “मैं कोई विदेश यात्रा से आती हूं.” थकान अब तल्खी में बदल रही थी.
पतिदेव ने शायद इसे महसूस कर लिया था. वे कमरे से बाहर आये और माहौल की नज़ाकत को समझते हुए चिंटू को अंदर जाने का इशारा किया और सामान भीतर लेे जाने के लिए उठाने लगे. फिर अचानक जैसे उन्हें कुछ याद आया. वे  सहानुभूति जताते हुए बोले…अरे,,”तुम तो पार्लर गई थी ना?”
“क्या पार्लर बंद था?” ओह! “लगता है सारा समय घर की खरीदी में ही निकल गया.”

क्या इन्हें मेरा “ग्लो” नजर नहीं आ रहा? बाल भी तो ठीक कराए थे, क्या वो भी दिखाई नहीं पड़  रहे?
एक वो पार्लर वाली है जो बोल रही थी….”दीदी”, “आप अपने पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही हो” “देखो तो कितनी ड्रायनेस आ गई है हाथों पर और बाल भी कितने हल्के होते जा रहे है”
“आप थोड़ा जल्दी जल्दी विजिट किया करे” सच में मेरा कितना ख्याल करती है, और इन्हें देखो, इतना कुछ करवा कर आने के बाद भी पूछ रहे है…”क्या पार्लर नहीं गई?”
हद है. दिनभर की थकान,  सबसे हुई बहस और पति की नज़र का दोष.एक धमाके का रूप ले चुका था. मैंने जोर से पांव पटके और धड़ाम से दरवाज़ा बंद किया और कहा..

“कभी तो मुझ पर ध्यान दीजिए, कभी तो फुरसत निकालिए” “क्या आपको कहीं भी?… कुछ?.. सुंदरता नजर आती है?” मैंने एक – एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा “हर समय बस, ये अख़बार और टीवी”
“क्या बार बार वही न्यूज सुनते रहते हो””घर -बाहर का सारा काम कर करके मेरे चेहरे का ग्लो ही खत्म हो गया” ये देखो, बर्तन मांज – मांज कर मेरे हाथ कितने ड्राई हो गए है”

“ये नाखून तो जैसे सारे ही टूट गए है.” मैं  गुस्से में बोल रही थी.
आवाज़ से लग रहा था, बस रो ही पडूंगी, पर उनके सामने रोना अपनी बात को कमज़ोर बनाना था। मैं सीधे अपने कमरे में चली गई. अचानक एक छोटे से प्रश्न पर इतना भड़क जाना? उनकी कुछ समझ नहीं आ रहा था. पतिदेव ज्यादा बहस के मूड में नहीं  थे. चुपचाप सारा सामान रसोई में रख अख़बार उठा कर पढ़ने लगे.

कुछ देर बाद मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला। देखा रसोई में कुछ खुसुर – पुसुर हो रही थी.
चीकू की आवाज़ आ रही थी….”पापा आज बाहर से कुछ मंगवा  ले?”और पतिदेव बोल रहे थे..”यार चीकू मैगी ही बना लेते है।” “अब, मम्मी से कौन पता करे कि उन्हें क्या खाना है?”

अब मुझे अपने आप पर भी गुस्सा आने। आखिर इतना बवाल करने की क्या जरूरत थी.
मैंने रसोई में जाकर बिना प्यास के पानी पिया। बस टोह लेने के लिए कि क्या चल रहा है. फिर सपाट और संयमित स्वर में पूछा..”क्या खाओगे?” दोनों एक साथ बोल उठे…”खिचड़ी”
“ये तो कमाल हो गया, यार चीकू ” पापा ने बड़ी प्रशंसा भरी नज़रों से चीकू को शाबाशी दी और चीकू ने भी अपनी आंखे झपकाकर पापा को “टू गुड” कहा।  “वाह!”
“इतनी अंडरस्टैंडिंग” सच में कमाल ही है. जो खिचड़ी के नाम से ही बिदकते हो आज खुद खिचड़ी खाने के लिए कह रहे हैं. जो मैं अपनी थकान की स्थिति के विकल्प रूप में बनाती हूं. मैं मन ही मन मुस्कुराई पर स्वयं की प्रतिष्ठा के मद्देनजर चेहरा संजीदा ही बनाए रखा.

अब वे दोनों चुपचाप रसोई से बाहर निकल कर टेबल लगाने लगे. खाने के बाद के सारे काम निपटा कर जब मैं चीकू के कमरे में गई तो वो सो चुका था. आज इसे अकारण ही डांट दिया. बहुत बुरा लग रहा था. कॉमिक्स उसके हाथ से निकाल कर हौले से उसके बालों को सहलाया. बत्ती बंद कर  मैंने अपने कमरे की ओर रुख किया.

आश्चर्य है आज उनके हाथ में न अख़बार था न मोबाइल मुझे देख कर वे थोड़ा मुस्कराए मुझे थोड़ा अटपटा लगा. पता नहीं क्या बात है? मैं उनकी ओर पीठ घुमाकर  अपने ड्राई हाथों पर क्रीम मलने लगी. आज थोड़ी ज्यादा देर तक हाथों को क्रीम मलती रही. शायद उनके बुलाने का इंतजार कर रही थी. सोचे जा रही थी…”इतना धैर्य भी भला किस काम का? जो बोलने में भी इतना समय लगे।” मन में बोले गए वाक्य के पूरा होने की देर थी कि आवाज़ आई…”आओ!” “तुम्हें कुछ दिखाना है” ये हो क्या रहा है? शाम के खाने से लेकर अभी तक आश्चर्य ही आश्चर्य इतने आश्चर्य वाली धाराएं तो पहले कभी नहीं देखी.

मैं बिना कुछ कहे बैठ गई..वे अलमारी से एक बड़ा सा लिफाफा निकाल रहे थे. मैं सोच रहीं थीं, अभी न तो मेरा जन्मदिन है, न शादी की सालगिरह. फिर तोहफे लेने देने वाली परंपरा भी तो ज़रा कम ही है हमारे बीच.उन्होंने वो बड़ा सा लिफाफा मेरे सामने रख दिया. “ये क्या?”  “लिफाफा तो पुराना सा दिख रहा है” मुझे कुछ अजीब लगा.
मैंने धीरे से पूछा… ..
…..”क्या है इसमें ?”
“आज तुम पार्लर से आकर पूछ रही थी ना…. कि क्या मुझे  कहीं भी, किसी भी रूप में कुछ सुंदरता दिखाई देती है?”
“ये वही सुंदरता वाला लिफाफा है.”
वे एकदम शांत और संयत आवाज़ में बोले।

अब तो सच में, मैं आश्चर्य के समुद्र में गोते लगाने लगी।
देखो, अनु, “सुंदरता की सबकी अपनी परिभाषा होती है।” “सुंदरता देखने का सबका अपना अलग – अलग नज़रिया होता है।”
“किसी को तन की सुंदरता मोहित करती है, तो किसी को मन की, कोई स्वभाव की सुंदरता देखता है तो कोई भाषा की।”
“कोई  प्रकृति की सुंदरता में खो जाता है, तो किसी को खेत – खलिहान में काम करने वाले उन मेहनतकश मजदूर और उन पर लगी उस माटी की सुंदरता मोहित करती है।” “कोई रसोई में खाना बनाती उस गृहिणी और उसके माथे पर आने वालेे पसीने की बूंदों में सुंदरता देखता है, जिसमें परिवार के लिए स्नेह झलकता है, जो मैं तुममें भी अक्सर देखता हूं।” “मुझे तुम्हारा वो ग्लो ज्यादा अच्छा लगता है, तो इसमें मेरा क्या कसूर है?” वे बोलते जा रहे थे। मैं अपना सिर नीचे किए बस उन्हें सुन रही थी। आंखों में आंसू डबडबाने लगे थे।
तभी लिफाफे के खुलने की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
“ये देखो।” मैंने पनीली आंखों से देखा….”ये मां की बरसों पुरानी तस्वीर है।” मैंने देखा सासू मां की उस ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर को … एक सादी सी सुती साड़ी पहने, माथे पर बड़ी सी बिंदी, बालों की एक लंबी ढीली सी चोटी।इतनी सादगी और कितनी सुंदर। मैं मोहित हो कर देखने लगी। सचमुच सुंदर।
फिर निकली एक बड़ी सी राखी जो बचपन में बहन ने बांधी थी। उस समय वो कलाई से भी काफी बड़ी रही होगी। मुझे अपने भाई की याद गई वो भी तो ऐसी ही बड़ी सी राखी बंधवाता था और फिर सारे मोहल्ले को दिखता था। उसे याद कर मैं धीरे से हंस पड़ी।
फिर निकली एक पुरानी सी कैसेट जिसमें मेरी नानी के गाए भजन और उनके साथ की गई बातचीत की पर्ची लगी हुई थी।
पिताजी जी के साथ देखी गई फिल्म का पोस्टर। सचमुच कमाल।
हमारी पहली यात्रा के टिकिट, चीकू की पहली पेंटिंग वाला कागज़। सारी चीजे इतने जतन से संभाली हुई।
अब तो मेरी बहुत कोशिश से रोकी हुई रुलाई फूट पड़ी।
“देखो अनु,” “मैं तुम्हारा दिल दुखना हरगिज़ नहीं चाहता।” “पार्लर जाना कोई बुरी बात नहीं है।” “न ही मैंने तुम्हें कभी रोका है।”
“अपने आप को अच्छा रखना और लगना कोई गुनाह नहीं है।”
“दरसअल, हमें जो अच्छा लगता है, हम चाहते है सामने वाले को भी वो, उसी रूप में अच्छा लगे और वो उसकी तारीफ करे,पर ऐसा हर बार जरूरी तो नहीं।”
“उसकी अपनी सोच हमसे अलग भी तो हो सकती है।”
“मुझे लगता है, जब हम सुंदरता का कोई रूप देख कर खुश होते है,तो आपकी आंतरिक खुशी  चेहरे पर अपने आप आ जाती है।”
उस खुशी से चेहरा दमकने लगता है। शायद तभी चेहरे को दर्पण कहा   जाता है। बिना बोले ही कितनी बातें कह जाता है।
“मेरा अपना सुंदरता का क्या नज़रिया है, वो मैंने तुम्हें बता दिया।”
“मेरा तुम्हारा मन दुखाने का कभी भी कोई मकसद नहीं होता।”  एक गहरे निःश्वास के साथ वे चुप हो गए।

उस दिन मैं एक नए संवेदनशील इंसान से मिली।अब मेरी आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे। सुंदरता की ऐसी परिभाषा तो शायद मैंने पहले कभी सोची ही नहीं।आज कुछ अलग सा महसूस किया था। सच,एक नया अर्थ समझ आया था.
मुझे लगा जैसे आज संवेदनाओं की कितनी उलझने सुलझ गई थी।
दूर बादलों की ओट से चांद बाहर निकल रहा था। ठीक मेरे मन की तरह। शिकवे- शिकायतों के सारे काले बादल शांत, श्वेत चांदनी में बदल गए थे। खिड़की से झांकती चांदनी मुस्कुरा रही थी।
हम दोनों खामोश थे।बस आंखें बोल रही थी।
मैंने उनकी ओर देखा और  झूठ – मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा… चलिए, “अब सो जाइए। कल सुबह मुझे आलू के परांठे भी बनाने है।”
“वाकई। तुम्हारे आलू परांठे होते बहुत सुंदर है।” पतिदेव एक शरारती मुस्कान लिए बोले।
देखा नहीं? “उन्हें देखते ही मेरे और चीकू के चेहरे पर कितना “ग्लो”~~ आ जाता है।”
हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।

टुकड़ों में बंटी जिंदगी

मैं मंदबुद्धि था. अपने मन के जज्बात व्यक्त करता भी कैसे जब समझ ही कुछ नहीं आता था. लोगों की तिरस्कृत नजरों को झेलता हुआ मैं अब बस दूसरे के हाथों की कठपुतली मात्र रह गया था… पिता की गलतियों के कारण ही मैं मंदबुद्धि बालक पैदा हुआ. जब मैं मां के गर्भ में था तो मेरी मां को भरपूर खाना नहीं मिलता था. उन को मेरे पिता यह कह कर मानसिक यंत्रणा देते थे कि उन की जन्मपत्री में लिखा है कि उन का पहला बच्चा नहीं बचेगा. वह बच्चा मैं हूं. जो 35 वर्षगांठ बिना किसी समारोह के मना चुका है.

पैदा होने के बाद मैं पीलिया रोग से ग्रसित था, लेकिन मेरा इलाज नहीं करवाया गया. मेरी मां बहुत ही सीधी थीं मेरे पापा उन को पैसे नहीं देते थे कि वे अपनी मरजी से मेरे लिए कुछ कर सकें. सबकुछ सहते हुए वे अंदर से घुटती रहती थीं. वह जमाना ही ऐसा था जब लड़कियां शादी के बाद अपनी ससुराल से अर्थी में ही निकलती थीं. मायके वाले साथ नहीं देते थे. मेरी नानी मेरी मां को दुखी देख कर परेशान रहती थीं. लेकिन परिवार के अन्य लोगों का सहयोग न मिलने के कारण कुछ नहीं कर पाईं. मैं 2 साल का हो गया था, लेकिन न बोलता था, न चलता था. बस, घुटनों चलता था.

मेरी मां पलपल मेरा ध्यान रखती थीं और हर समय मु झे गोदी में लिए रहती थीं. शायद वे जीवनभर का प्यार 2 साल में ही देना चाहती थीं. मेरे पैदा होने के बाद मेरे कार्यकलाप में प्रगति न देख कर वे बहुत अधिक मानसिक तनाव में रहने लगीं. जिस का परिणाम यह निकला कि वे ब्लडकैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण 3 महीने में ही चल बसीं. लेकिन मैं मंदबुद्धि बालक और उम्र भी कम होने के कारण सम झ ही नहीं पाया अपने जीवन में आए इस भूचाल को. सूनी आंखों से मां को ढूंढ़ तो रहा था, लेकिन मु झे किसी से पूछने के लिए शब्दों का ज्ञान ही नहीं था.

मुझे अच्छी तरह याद है जब मेरी मां का क्रियाकर्म कर के मेरे मामा और नाना दिल्ली लौटे तो मु झे एक बार तो उन्होंने गोद में लिया, लेकिन मेरी कुछ भी प्रतिक्रिया न देख कर किसी ने भी मेरी परवाह नहीं की. बस, मेरी नानी ने मु झे अपने से बहुत देर तक चिपटाए रखा था. मेरे पापा तो एक बार भी मु झ से मिलने नहीं आए. मां ने अंतिम समय में मेरी जिम्मेदारी किसी को नहीं सौंपी. लेकिन मेरे नानानानी ने मु झे अपने पास रखने का निर्णय ले लिया. उन का कहना था कि मेरी मां की तरह मेरे पापा मु झे भी यंत्रणा दे कर मार डालेंगे. वे भूले नहीं थे कि मेरी मां ने उन को बताया था कि गलती से मेरी बांह पर गरम प्रैस नहीं गिरी थी, बल्कि मेरे पिता ने जानबू झ कर मेरी बांह पर रख दी थी, जिस का निशान आज तक मेरी बांह पर है. एक बार सीढ़ी से धकेलने का प्रयास भी किया था.

इस के पीछे उन की क्या मानसिकता थी, शायद वे जन्मपत्री की बात सत्य साबित कर के अपना अहं संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे थे. वे मु झे कभी लेने भी नहीं आए. मां की मृत्यु के 3 महीने के बाद ही उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया. यह मेरे लिए विडंबना ही तो थी कि मु झे मेरी मां के स्थान पर दूसरी मां नहीं मिली, लेकिन मेरे पिता को दूसरी पत्नी मिलने में देर नहीं लगी. पिता के रहते हुए मैं अनाथ हो गया. मैं मंदबुद्धि था, इसलिए मेरे नानानानी ने मु झे पालने में बहुत शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्ट सहे. शारीरिक इसलिए कि मंदबुद्धि होने के कारण 15 साल की उम्र तक लघु और दीर्घशंका का ज्ञान ही नहीं था, कपड़ों में ही अपनेआप हो जाता था और उन को नानी को साफ करना पड़ता था.

रात को बिस्तर गीला हो जाने पर नानी रात को उठ कर बिस्तर बदलती थीं. ढलती उम्र के कारण मेरे नानानानी शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो गए थे. लेकिन मोहवश वे मेरा बहुत ध्यान रखते थे. मैं स्कूल अकेला नहीं जा पाता था, इसलिए मेरे नाना मु झे स्कूलबस तक छोड़ने जाते थे. मु झे ऐसे स्कूल में भेजा जहां सभी बच्चे मेरे जैसे थे. उन्होंने मानसिक कष्ट सहे, इसलिए कि मेरे मंदबुद्धि होने के कारण नानानानी कहीं भी मु झे ले कर जाते तो लोग परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए मेरे असामान्य व्यवहार को देख कर उन को ताने देते. उस से उन का मन बहुत व्यथित होता. फिर वे मु झे कहीं भी ले कर जाने में कतराने लगे. उन के अपने बच्चों ने भी मेरे कारण उन से बहुत दूरी बना ली थी.

कई रिश्तेदारों ने तो यहां तक भी कह दिया कि मु झे अनाथाश्रम में क्यों नहीं डाल देते? नानानानी को यह सुन कर बहुत दुख होता. कई बार कोई घर आता तो नानी गीले बिस्तर को जल्दी से ढक देतीं, जिस से उन की नकारात्मक प्रतिक्रिया का दंश उन को न झेलना पड़े. मैं शारीरिक रूप से बहुत तंदुरुस्त था. दिमाम का उपयोग न होने के कारण ताकत भी बहुत थी, अंदर ही अंदर अपनी कमी को सम झते हुए सारा आक्रोश अपनी नानी पर निकालता था. कभी उन के बाल खींचता कभी उन पर पानी डाल देता और कभी उन की गोदी में सिर पटक कर उन को तकलीफ पहुंचाता. मातापिता के न रहने से उन के अनुशासन के बिना मैं बहुत जिद्दी भी हो गया था. मैं ने अपनी नानी को बहुत दुख दिया.

लेकिन इस में मेरी कोई गलती नहीं थी क्योंकि मैं मंदबुद्धि बालक था. नानानानी ने आर्थिक कष्ट सहे, इस प्रकार कि मेरा सारा खर्च मेरे पैंशनधारी नाना पर आ गया था. कहीं से भी उन को सहयोग नहीं मिलता था. उन्होंने मेरा अच्छे से अच्छे डाक्टर से इलाज करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वैसे भी मु झे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी. नानी मेरे भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं और मेरे कारण मानसिक आघात सहतेसहते थक कर असमय ही 65 वर्ष की उम्र में ही सदा के लिए विदा हो गईं. उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष की रही होगी. अब तक मानसिक और शारीरिक रूप से मैं काफी ठीक हो गया था. अपने व्यक्तिगत कार्य करने के लिए आत्मनिर्भर हो गया था. लेकिन भावाभिव्यक्ति सही तरीके से सही भाषा में नहीं कर पाता था. टूटीफूटी और कई बार निरर्थक भाषा ही बोल पाता था.

मेरे जीवन की इस दूसरी त्रासदी को भी मैं नहीं सम झ पाया और न परिवार वालों के सामने अभिव्यक्त ही कर पाया, इसलिए नानी की मृत्यु पर आए परिवार के अन्य लोगों को मु झ से कोई सहानुभूति नहीं थी. वैसे भी, अभी नाना जिंदा थे मेरे पालनपोषण के लिए. औपचारिकता पूरी कर के सभी वापस लौट गए. नाना ने मु झे भरपूर प्यार दिया. उन के अन्य बच्चों के बच्चों को मु झ से ईर्ष्या भी होती थी कि उन के हिस्से का प्यार भी मु झे ही मिल रहा है. लेकिन उन के तो मातापिता भी थे, मैं तो अनाथ था. मेरी मंदबुद्धि के कारण यदि कोईर् मेरा मजाक उड़ाता तो नाना उन को खूब खरीखोटी सुनाते, लेकिन कब तक…? वे भी मु झे छोड़ कर दुनिया से विदा हो गए. उस समय मैं 28 साल का था, लेकिन परिस्थिति पर मेरी प्रतिक्रिया पहले जैसी थी. मेरा सबकुछ लुट चुका था और मैं रो भी नहीं पा रहा था. बस, एक एहसास था कि नाना अब इस दुनिया में नहीं हैं. इतनी मेरे अंदर बुद्धि नहीं थी कि मैं अपने भविष्य की चिंता कर सकूं. मु झे तो पैदा ही कई हाथों की कठपुतली बना कर किया गया था. लेकिन अभी तक मैं ऐसे हाथों के संरक्षण में था, जिन्होंने मु झे इस लायक बना दिया था

कि मैं शारीरिक रूप से बहुत सक्षम और किसी पर निर्भर नहीं था और कोई भी कार्य, जिस में बुद्धि की आवश्यकता नहीं हो, चुटकियों में कर देता था. वैसे भी, जो व्यक्ति दिमाग से काम नहीं करते, शारीरिक रूप से अधिक ताकत वाले होते हैं. मेरी मनोस्थिति बिलकुल 2 साल के बच्चे की तरह थी, जो उस के साथ क्या हो रहा है, उस के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है, सम झ ही नहीं पाता. लेकिन मेरी याद्दाश्त बहुत अच्छी थी. गाडि़यों के नंबर, फोन नंबर तथा किसी का घर किस स्थान पर है. मु झे कभी भूलता नहीं था. कहने पर मैं कोई भी शारीरिक कार्य कर सकता था, लेकिन अपने मन से कुछ नहीं कर पाता था. नाना की हालत गंभीर होने पर मैं ने अपने पड़ोस की एक आंटी के कहने पर अपनी मौसी को फोन से सूचना दी तो आननफानन मेरे 2 मामा और मौसी पहुंच गए और नाना को अस्पताल में भरती कर दिया. डाक्टरों ने देखते ही कह दिया कि उन का अंतिम समय आ गया है. उन के क्रियाकर्म हो जाने के बाद सब ने घर की अलमारियों का मुआयना करना शुरू किया. महत्त्वपूर्ण दस्तावेज निकाले गए. सब की नजर नाना के मकान पर थी. मैं मूकदर्शक बना सब देखता रहा. भरापूरा घर था. मकान भी मेरे नाना का था. मेरे एक मामा की नजर आते ही मेरे हृष्टपुष्ट शरीर पर टिक गई.

उन्होंने मेरी मंदबुद्धि का लाभ ले कर मु झे मेरे मनपसंद खाने की चीजें बाजार से मंगवा कर दीं और बारबार मु झे उन के साथ भोपाल जाने के लिए उकसाते रहे. मु झे याद नहीं आता कि कभी उन्होंने मेरे से सीधेमुंह से बात भी की हो. तब तो और भी हद हो गई थी जब एक बार मैं नानी के साथ भोपाल उन के घर गया था और मेरे असामान्य व्यवहार के लिए उन्होंने नानी को दोषी मानते हुए बहुत जलीकटी सुनाई. उन को मामा की बातों से बहुत आघात पहुंचा. जिस कारण नानी निश्चित समय से पहले ही दिल्ली लौट गई थीं. अब उन को अचानक इतना प्यार क्यों उमड़ रहा था. यह सोचने की बुद्धि मु झ में नहीं थी. इतना सहयोग यदि नानी को पहले मिलता तो शायद वे इतनी जल्दी मु झे छोड़ कर नहीं जातीं. पहली बार सब को यह विषय विचारणीय लगा कि अब मैं किस के साथ रहूंगा? नाना से संबंधित कार्यकलाप पूरा होने तक मेरे मामा ने मेरा इतना ब्रेनवौश कर दिया कि मैं कहां रहना चाहता हूं?

किसी के भी पूछने पर मैं झट से बोलता, ‘मैं भोपाल जाऊंगा,’ नाना के कई जानने वालों ने मामा को कटाक्ष भी किया कि कैसे सब खत्म हो जाने के बाद उन का आना हुआ. इस से पहले तो उन को वर्षों से कभी देखा नहीं. इतना सुनते ही ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ मुहावरे को सार्थक करते हुए वे उन पर खूब बरसे. परिणाम यह निकला कि बहुत सारे लोग नाना की तेरहवीं पर बिना खाए ही लौट गए. आखिरकार, मैं मामा के साथ भोपाल पहुंच गया. मेरी दाढ़ी और बाल बहुत बड़ेबड़े हो गए थे. सब से पहले मेरे मामा ने उन्हें संवारने के लिए मु झे सैलून भेजा, फिर मेरे लिए नए कपड़े खरीदे, जिन को पहन कर मेरा व्यक्तित्व ही बदल गया था. मेरे मामा की फैक्ट्री थी, जिस में मैं उन के बेटे के काम में हाथ बंटाने के लिए जाने लगा. जब मैं नानी के साथ एक बार यहां आया था, तब मु झे इस फैक्ट्री में घुसने की भी अनुमति नहीं थी. अब जबकि मैं शारीरिक श्रम करने के लायक हो गया तो उन के लिए मेरे माने ही बदल गए थे. धीरेधीरे मु झे सम झ में आने लगा कि उन का मु झे यहां लाने का उद्देश्य क्या था? मैं चुपचाप एक रोबोट की तरह सारा काम करता. मु झे अपनी इच्छा व्यक्त करने का तो कोई अधिकार ही नहीं था. दिल्ली के जिस मकान में मेरा बचपन गुजरा, उस में तो मैं कभी जा नहीं सकता था क्योंकि प्रौपर्टी के झगड़े के कारण उस में ताला लग गया था. और मैं भी मामा की प्रौपर्टीभर बन कर रह गया था, जिस में कोई बंटवारे का झं झट नहीं था. उन का ही एकछत्र राज्य था. मैं अपने मन से किसी के पास जा नहीं सकता था, न किसी को मु झे बुलाने का अधिकार ही था. मेरा जीवन टुकड़ों में बंट गया था.

मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं था. मैं अपना आक्रोश प्रकट भी करता तो किस के सामने करता. कोई नानानानी की तरह मेरी भावना को सम झने वाला ही नहीं था. मैं तो इस लायक भी नहीं था कि अपने पिता से पूछूं कि मेरे इस प्रकार के टुकड़ों में बंटी जिंदगी का उत्तरदायी कौन है? उन को क्या हक था मु झे पैदा करने का? मेरी मां अंतिम समय में, मेरे पिता की ओर इशारा कर के रोते हुए मामा से कह रही थीं, ‘इस ने मु झे बीमारी दी है, इस को मारो…’ लेकिन प्रतिक्रियास्वरूप किसी ने कुछ नहीं किया, करते तो तब जब उन को मेरी मां से प्यार होता. काश, मु झे इतनी बुद्धि होती कि मैं अपनी मां का बदला अपने पिता से लेता. लेकिन काश ऐसा कोई होता जो मेरा बदला जरूर लेता. जिस के पास बुद्धि है. मेरी कथा को शब्दों का जामा पहनाने वाली को धन्यवाद, कम से कम उन को मु झ से कुछ सहानुभूति तो है, जिस के कारण मु झ मंदबुद्धि बालक, जिस को शब्दों में अभिव्यक्ति नहीं आती, की मूकभाषा तथा भावना को सम झ कर उस की आत्मकथा को कलमबद्ध कर के लोगों के सामने उजागर तो किया.

बुलावा आएगा जरूर

भाग्यश्री अपने नाम के विपरीत थी. कुछ भी नहीं था उस के पास अपने नाम जैसा. बचपन से ले कर अब तक मातापिता की उपेक्षा ही सही, लेकिन फिर भी मायके में प्यार पाने की उम्मीद उस ने कभी नहीं छोड़ी.

ब तबीयत कैसी है मां?’’ दयनीय दृष्टि से देखती भाग्यश्री ने पूछा.

मां ने सिर हिला कर इशारा किया, ‘‘ठीक है.’’ कुछ पल मां जमीन की ओर देखती रही. अनायास आंखों से आंसू की  झड़ी  झड़ने लगी. सुस्त हाथों को धीरेधीरे ऊपर उठा कर अपने सिकुड़े कपोलों तक ले गई. आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘प्रकृति की मरजी है बेटा.’’

परिवार के प्रति आक्रोश दबाती हुई भाग्यश्री ने कहा, ‘‘प्रकृति की मरजी कोई नहीं जानता, किंतु तुम्हारे लापरवाह बेटे को सभी जानते हैं और… और पिताजी की तानाशाही. दोनों के प्रति तुम्हारे समर्पित भाव का प्रतिदान तुम्हें यह मिला कि तुम दोनों की मानसिक चोट से आहत हो कर यहां तक  पहुंच गईं? जिंदगी जकड़ कर रखना चाहती है, लेकिन मौत तुम्हें अपनी ओर खींच रही है.’’

मां ने आहत स्वर में कहा, ‘‘क्या किया जाए, सब समय की बात है.’’

भाग्यश्री ने अपनी आर्द्र आंखों को पोंछ कर कहा, ‘‘दवा तो ठीक से ले रही हो न, कोई कमी तो नहीं है न?’’

पलभर मां चुप रही, फिर बोली, ‘‘नहीं, दवा तो लाता ही है.’’

‘‘कौन? बाबू?’’ भाग्यश्री ने पूछा.

‘‘और नहीं तो कौन, तुम्हारे पिताजी लाएंगे क्या, गोबर भी काम में आ जाता है, गोथठे के रूप में. लेकिन वे? इस से भी गएगुजरे हैं. वही ठीक रहते तो किस बात का रोना था?’’ कुछ आक्रोश में मां ने कहा.

भाग्यश्री सिर  झुका कर बातें सुनती रही.

‘‘और एक बेटा है, वह अपनेआप में लीन रहता है, कमरे में  झांक कर भी नहीं देखता. आने में देरी हो जाए, तो मन घबराता है. देरी का कारण पूछती हूं, तो बरस पड़ता है. घर में नहीं रहने पर इधर बाप की चिल्लाहट सुनो और आने पर कुछ पूछो, तो बेटे की  िझड़की सुनो. बस, ऐसे ही दिन काट रही हूं,’’ आंसू पोंछती हुई मां ने कहा, ‘‘हां, लेकिन सेवा तुम्हारे पिताजी करते हैं मूड ठीक रहा तो, ठीक नहीं तो चार बातें सुना कर ही सही, मगर करते हैं.’’

भाग्यश्री ने कई बार सोचा कि मां की सेवा के लिए एक आया रख दे, मगर इस में भी समस्याएं थीं. एक तो यह कि इस माहौल में आया रहेगी नहीं, हरवक्त तनाव की स्थिति, बापबेटे के बीच वाकयुद्ध, अशांति ही अशांति. स्वयं कुछ भी खा लें, मगर आया को तो ढंग से खिलाना पड़ेगा न. दूसरा यह कि भाग्यश्री की सहायता घरवाले स्वीकार करेंगे? इन सब कारणों से वह लाचार थी. वह मां के पास बैठी थी, तभी उस के पिताजी आए. औपचारिकतावश भाग्यश्री ने प्रणाम किया. फिर चुपचाप बैठी रही.

भाग्यश्री ने अपने पिताजी की ओर देखा. उन के चेहरे पर क्रोध का भाव था. निसंदेह वह भाग्यश्री के प्रति था.

पिछले 10 वर्षों में वह बहुत कम यहां आईर् थी. जब उस ने अपनी मरजी से शादी की, पिताजी ने उसे त्याग दिया. मां भी पिताजी का समर्थन करती, किंतु मां तो मां होती है. मां अपना मोह त्याग नहीं पाई थी. शादी भी एक संयोग था. स्नेहदीप के बिना जीवन अंधकारमय रहता है. प्रकाश की खोज करना हर व्यक्ति की प्रवृत्ति है.

व्यक्ति को यदि अपने परिवेश में स्नेह न मिले तो बूंदभर स्नेह की लालसा लिए उस की दृष्टि आकाश को निहारती है, शायद स्वाति बूंद उस पर गिर पड़े. जहां आशा बंधती है, वहां वह स्वयं भी बंध जाता है. भाग्यश्री के साथ भी ऐसी ही बात थी. नाम के विपरीत विधाता का लिखा. दोष किस का है- इस सर्वेक्षण का अब समय नहीं रहा, लेकिन एक ओर जहां भाग्यश्री का खूबसूरत न होना उस के बुरे समय का कारण बना, वहीं, दूसरी ओर पिता का गुस्सैल स्वभाव भी. कभी भी उन्होंने घर की परिस्थिति को देखा ही नहीं, बस, जो चाहिए, मिलना चाहिए अन्यथा घर सिर पर उठा लेते.

घर की विषम परिस्थितियों ने ही भाग्यश्री को सम झदार बना दिया. न कोई इच्छा, न शौक. बस, उदासीनता की चादर ओढ़ कर वह वर्तमान में जीती गई. परिश्रमी तो वह बचपन से ही थी. छोटे बच्चों को पढ़ा कर उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की. उस का एक छोटा भाई था. बहुत मन्नत के बाद उस का जन्म हुआ था. इसलिए उसे पा कर मातापिता का दर्प आसमान छूने लगा था. पुत्र के प्रति आसक्ति और भाग्यश्री के प्रति विरक्ति यह इस घर की पहचान थी.

लेकिन, उसे अपने एकांत जीवन से कभी ऊब नहीं हुई, बल्कि अपने एकाकीपन को उस ने जीवन का पर्याय बना लिया था. कालांतर में हरदेव के आत्मीय संसर्ग के कारण उस के जीवन की दिशा ही नहीं बल्कि परिभाषा भी बदल गई. बहुत ही साधारण युवक था वह, लेकिन विचारउदात्त था. सादगी में विचित्र आकर्षण था.

भाग्यश्री न तो खूबसूरत थी, न पिता के पास रुपए थे और न ही वह सभ्य माहौल में पलीबढ़ी थी. किंतु पता नहीं, हरदेव ने उस के हृदय में कौन सा अमृतरस का स्रोत देखा, जिस के आजीवन पान के लिए वह परिणयसूत्र में बंध गया. हरदेव के मातापिता ने इस रिश्ते को सहर्ष स्वीकार किया. भाग्यश्री के मातापिता ने उस के सामने कोई आपत्ति जाहिर नहीं की, मगर पीठपीछे बहुत कोसा. यहां तक कि वे लोग न इस से मिलने आए, न ही उन्होंने इसे घर बुलाया. खुश रह कर भी भाग्यश्री मायके के संभावित दुखद माहौल से दुखी हो जाती. उपेक्षा के बाद भी वह अपने मायके के प्रति लगाव को जब्त नहीं कर पाती और यदाकदा मांपिताजी, भाई से मिलने आती, किंतु लौटती तो अपमान के आंसू ले कर.

कुछ माह बाद ही भाग्यश्री को मालूम हुआ कि उस की मां लकवे का शिकार हो गई है. घबरा कर वह मायके आई. अपाहिज मां उसे देख कर रोने लगी, मानो बेटी के प्रति जितना भी दुर्भाव था, वह बह रहा हो. किंतु, पिताजी की मुद्रा कठोर थी. मां अपनी व्यथा सुनाती रही, लेकिन पिताजी मौन थे. आर्थिक तंगी तो घर में पहले से ही थी, अब तो कंगाली में आटा भी गीला हो गया था. मां के पास वह कुछ देर बैठी रही, फिर बहुत साहस जोड़ कर, मां को रुपए दे कर कहने लगी, ‘इलाज में कमी न करना मां. मैं तुम्हारा इलाज कराऊंगी, तुम चिंता न करना.’

उस की बातों को सुनते ही पिताजी का मौन भंग हुआ. बहुत ही उपेक्षित ढंग से उन्होंने कहा, ‘हम लोग यहां जैसे भी हैं, ठीक हैं. तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. मिट्टी में इज्जत मिला कर आई है जान बचाने.’ विकृत भाव चेहरे पर आच्छादित था. कुछ पल चुप रहे, फिर उन्होंने कहा, ‘तुम्हारे आने पर यह रोएगी ही, इसलिए न आओ तो अच्छा रहेगा.’

घर में उस की उपेक्षा नई बात नहीं थी. आंसूभरी आंखों से मां को देखती हुई उदासी के साथ वह लौट गई. मातापिता ने उसे त्याग दिया. मगर वह त्याग नहीं पाई थी. इस बार 5वीं बार वह सहमीसहमी मां के घर आई थी. इस बार न उसे उपेक्षा की चिंता थी, न पिताजी के क्रोध का भय था. और न आने पर संकोच. मां के दुख के आगे सभी मौन थे.

उसे याद आई. छोटे भाई के प्रति मातापिता का लगाव देख कर वह यही सम झ बैठी थी कि यह घर उस का नहीं. खिलौने आए तो उस भाई के लिए ही. उसे याद नहीं कि उस ने कभी खिलौने से खेला भी था. खीर बनी, तो पहले भाई ने ही खाई. उस के खाने के बाद ही उसे मिली. मां से पूछती, ‘हर बार उसी की सुनी जाती, मेरी बात क्यों नहीं? गलती अगर बाबू करे तो दोषी मैं ही हूं, क्यों?’

लापरवाही के साथ बड़े गर्व से मां कहती, ‘उस की बराबरी करोगी? वह बेटा है. मरने पर पिंडदान करेगा.’ मां के इस दुर्भाव को वह नहीं भूली. पति के घर में हर सुख होने के बाद भी वह अतीत से निकल नहीं पाई. बारबार उसे चुभन का एहसास होता रहा. लेकिन अब? मां की विवशता, लाचारी और कष्ट के सामने उस का अपना दुख तुच्छ था.

कुछ पल वह मां के पास बैठी रही. फिर बोली, ‘‘बाबू कहां है?’’ बचपन से ही, वह भाई को बाबू बोलती आई थी. यही उसे सिखाया गया था.

‘‘होगा अपने कमरे में,’’ विरक्तभाव से मां ने कहा.

भाग्यश्री कमरे में जा कर बाबू के पास बैठ गई. पत्थर पर फूल की क्यारी लगाने की लालसा में उसे कुछ पल अपलक देखती रही. फिर साहस समेट कर बोली, ‘‘आज तक इस घर ने मु झे कुछ नहीं दिया है. बहनबेटी को देना बड़ा पुण्य का काम होता है.’’

बाबू आश्चर्य से उसे देखने लगा, क्योंकि किसी से कुछ मांगना उस का स्वभाव नहीं था.

‘‘क्या कहती हो दीदी? क्या दूं,’’ बाबू ने पूछा.

‘‘मन का चैन,’’ याचक बन कर उस ने कहा.

बाबू चुप रहा. बाबू के चेहरे का भाव पढ़ कर उस ने आगे कहा, ‘‘देखो बाबू, हम दोनों यहीं पलेबढ़े. लेकिन, तुम्हें याद है? मांपिताजी का सारा ध्यान तुम्हीं पर रहता था. तुम्हीं उन के लिए सबकुछ हो. उन के विश्वास का मान रख लो. मु झे मेरे मन का चैन मिल जाएगा.’’ बोलतेबोलते उस का गला भर आया. कुछ रुक कर फिर बोली, ‘‘याद है न? मां तुम्हें छिप कर पैसा देती थीं जलेबियां खाने के लिए. मैं मांगती, तो कहतीं ‘इस की बराबरी करोगी? यह बेटा है, आजीवन मु झे देखेगा.’  और मैं चुप हो जाती. मां के इस प्रेम का मान रख लो बाबू. पहले उस के दुर्भाव पर दुख होता था और अब उस की विवशता पर. दुख मेरे समय में ही रहा.’’

‘‘तुम क्या कह रही हो, मैं सम झ नहीं पा रहा हूं,’’ कुछ खी झ कर बाबू ने कहा, ‘‘क्या कमी करता हूं? दवा, उचित खानापीना, सभी तो हो रहा है. क्या कमी है?’’

‘‘आत्मीयता की कमी है,’’ भाग्यश्री का संक्षिप्त उत्तर था. ‘चोर बोले जोर से’ यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है. खी झ कर बाबू बोला, ‘‘हांहां, मैं गलत हूं. मगर तुम ने कौन सी आत्मीयता दिखाई? आज भी कोई पूछता है कि भाग्यश्री कैसी है, तो लगता है कि व्यंग्य से पूछ रहा है.’’

बाबू की यह बात उसे चुभ गई. आंखें नम हो गईं. मगर धीरे से कहने लगी, ‘‘हां, मैं ने गलत काम किया है. तुम लोगों के सताने पर भी मैं ने आत्माहत्या नहीं की, बल्कि जिंदगी को तलाशा है, यही गलती हुई है न?’’

बाबू चुप रहा.

‘‘देखो बाबू,’’ भरे हुए कंठ से उस ने कहा, ‘‘बहस नहीं करो. मैं इतना ही जानती हूं कि मांपिताजी, मांपिताजी होते हैं. मैं ने इतना अन्याय सह कर भी मन मैला न किया. फिर तुम्हें क्या शिकायत है कि इन के दुखसुख में हाल भी न पूछो? दवा से ज्यादा सद्भाव का असर होता है.’’

‘‘कौन कहता है?’’ बात का रुख बदलते हुए बाबू ने कहा, ‘‘कौन शिकायत करता है? क्या नहीं करता? तुम्हें पता है सारी बातें? कौन सा ऐसा दिन है, जब पिताजी मु झे नहीं कोसते? एक सरकारी नौकरी न मिली कि नालायक, निकम्मा विशेषणों से अलंकृत करते रहते हैं. बीती बातों को उखाड़उखाड़ कर घर में कुहराम मचाए रहते हैं. घर की शांति भंग हो गई है.’’ वह अपने आंसू पोंछने लगा.

बात जब पिताजी पर आई, तो कमरे में आ कर चीखते हुए भाग्यश्री को बोलने लगे, ‘‘हमारे घर के मामले में तुम कौन हो बोलने वाली? कौन तुम्हें यहां की बातें बताता है? यह मेरा बेटा है, मैं इसे कुछ बोलूं तो तुम्हें क्या? यह हमें लात मारे, तुम्हें क्या मतलब?’’

बात कहां से कहां पहुंच गई. भाग्यश्री को भी क्रोध आ गया. वह कुछ बोली नहीं, बस, आक्रोश से अपने पिताजी को देखती रही. पिताजी का चीखना जारी था, ‘‘तुम अपने घर में खुश रहो. हमारे घर के मामले में तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं है.’’

‘हमारा घर?

‘पिताजी का घर?

‘बाबू का घर? मेरा नहीं? हां, पहले भी तो नहीं था. और अब? शादी के बाद?’ भाग्यश्री मन में सोच रही थी.

पिताजी को बोलते देख, मां ने आवाज लगाई. भाग्यश्री मां के पास चली गई. मां ने रोते हुए कहा, ‘‘समय तो किसी का कोई बदल नहीं सकता न बेटा? मेरे समय में ही दुख लिखा है, इसलिए तो बापबेटे की मत मारी गई. आपस में भिड़ कर एकदूसरे का सिर फोड़ते रहते हैं. तुम बेकार मेरी चिंता करती हो. तुम्हें यहां कोई नहीं सराहता, फिर क्यों आती हो.’’ यह कहती हुई वह फूटफूट कर रो पड़ी.

पिताजी के प्रति उत्पन्न आक्रोश ममता में घुल गया. कुछ देर तक भाग्यश्री सिर नीचे किए बैठी रही. आंखों से आंसू बहते रहे. अचानक उठी और बाबू से बोली, ‘‘मां, मेरी भी है. इस की हालत में सुधार यदि नहीं हुआ, तो बलपूर्वक मैं अपने साथ ले जाऊंगी,’’ कहती हुई वह चली गई.

महल्ले में ही उस का मुंहबोला एक भाई था, कुंदन. वह बाबू का दोस्त भी था. उदास हो कर लौटती भाग्यश्री को देख कर वह उस के पीछे दौड़ा, ‘‘दीदी, ओ दीदी.’’

भाग्यश्री ने पीछे मुड़ कर देखा. बनावटी मुसकान अधरों पर बिखेर कर हालचाल पूछने लगी. उसे मालूम हुआ कि फिजियोथेरैपी द्वारा वह इलाज करने लगा है. उस की उदास आंखें चमक उठीं. याचनाभरी आवाज में कहा, ‘‘भाई, मेरी मां को भी देख लो.’’

‘‘चाचीजी को? हां, स्थिति ठीक नहीं है, यह सुना, लेकिन किसी ने मु झ से कहा ही नहीं,’’ कुंदन ने कहा.

‘‘मैं कह रही हूं न,’’ व्यग्र होते हुए भाग्यश्री ने कहा.

दो पल दोनों चुप रहे. कुछ सोच कर भाग्यश्री ने फिर कहा, ‘‘लेकिन भाई, यह बताना नहीं कि मैं ने तुम्हें भेजा है. नहीं तो मां का इलाज करवाने नहीं देंगे सब.’’

‘‘लेकिन, लेकिन क्या कहूंगा?’’

‘‘यही कि, बाबू के मित्र हो, इसलिए इंसानियतवश. और हां,’’ भाग्यश्री ने अपने बटुए में से एक हजार रुपया निकाल कर देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरा पता लिख लो, मेरे घर आ कर ही अपना मेहनताना ले लेना.’’

कुंदन उसे देखता रहा. भाग्यश्री की आंखों में कृतज्ञता छाई थी, बोली, ‘‘भाई, तुम्हारा एहसान मैं याद रखूंगी. बस, मेरी मां को ठीक कर दो.’’

कुंदन सिर हिला कर कह रहा था, ‘‘ठीक है.’’

दो माह बाद वह फिर से मायके आई. हालांकि कुंदन से उसे मालूम हो गया था कि मां की स्थिति में बहुत सुधार है, फिर भी वह देखना चाहती थी. भाग्यश्री के मन में एक अज्ञात भय था. जैसे कोई किसी दूसरे के घर में प्रवेश कर रहा हो वह भी चोरीचोरी. जैसेजैसे घर निकट आ रहा था, उस के कदम की गति धीमी होती जा रही थी और हृदय की धड़कन बढ़ती जा रही थी.

वहां पहुंच कर उस ने बरामदे में  झांका. मां, पिताजी और बाबू तीनों बैठ कर चाय पी रहे थे. सभी प्रसन्न थे. आपस में बातें करते हुए हंस रहे थे. भाग्यश्री ने शायद ही कभी ऐसा दृश्य देखा होगा. भाग्यश्री वहीं ठहर गई. उस ने अपने भाई से ‘मन का चैन’ मांगा था, भाई ने उसे दे दिया. मायके से प्राप्त उपेक्षा, तो उस का दुख था ही, लेकिन यह ‘मन का चैन’ उस का सुख था.

‘ठीक ही है,’ उस ने सोचा, मैं तो इस घर के लिए कभी थी ही नहीं. फिर अपना स्थान क्यों ढूढ़ूं? आज मन का चैन मिला, इस से बड़ा मायके का उपहार क्या होगा. मन का चैन ले कर वह वहीं से लौट आई, बिन बुलाए कभी न जाने के लिए.

बाहर निकल कर नम आंखों से अपने मायके का घर देख रही थी. अनायास उस के अधरों पर वेदना के साथ एक मुसकान दौड़ आई. उंगली से इशारा करती हुई, भरे हुए कंठ से वह बुदबुदाई, ‘मुझे पता है पिताजी, एक दिन आप मु झे बुलाएंगे जरूर. मन का चैन पा कर वह प्रसन्न थी, किंतु मायके के विद्रोह से उस का अंतर्मन बिलख रहा था. उस ने मन से पूछा, ‘लेकिन कहां बुलाएंगे?’ मन ने उत्तर भी दे दिया, ‘जल्द ही बुलाएंगे.’

अपनी आंखों को पोंछती हुई वह एकाएक मुड़ी और अपने घर की ओर चल दी. मन में विश्वास था कि एक दिन बुलावा आएगा, हां, बुलावा आएगा जरूर.

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फर्जी वीजा : अगला शिकार आप तो नहीं

हरकोई देश से बाहर जाना चाहता है। कोई उच्च शिक्षा के लिए तो कोई नौकरी और बेहतर अवसरों के लिए. यूके, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूरोपियन देशों के वीजा के लिए लगी लंबीलंबी कतारें इस बात का सुबूत हैं. अपने देश से दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की जरूरत पड़ती है. पासपोर्ट बनवा लेना आसान है. पासपोर्ट सेवाओं के आवेदन के लिए भारत सरकार की आधिकारिक वैबसाइट www.passportindia.gov.in है. आप मोबाइल ऐप एमसेवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

वीजा का आवेदन औफलाइन और औनलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकता है. वीजा कई तरह के होते हैं जिन में ऐंप्लौयमैंट वीजा, बिजनैस वीजा, स्टडी वीजा, टूरिस्ट वीजा, रिसर्च वीजा खास हैं. पासपोर्ट बनाने वाली स्थानीय संस्थाएं होती हैं. लेकिन दिक्कत आती है वीजा को ले कर, जो उन देशों की संस्थाओं द्वारा दिया जाता है जहां वे जाना चाहते हैं.

वीजा एक प्रकार का आधिकारिक दस्तावेज है जो दर्शाता है कि आप को एक निश्चित अवधि के लिए या स्थायी रूप से किसी विशेष देश में प्रवेश करने, छोड़ने और रहने की अनुमति देता है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र हो सकता है जो किसी देश के इमिग्रेशन अधिकारियों द्वारा आप के सभी दस्तावेजों को ठीक से जांचने और सत्यापित करने के बाद जारी किया जाता है.

एक बार जब आप को वीजा मिल जाता है तो इस का मतलब है कि आप को किसी देश में प्रवेश करने और एक विशिष्ट अवधि के लिए वहां रहने की अनुमति है. हालांकि, वीजा के माध्यम से प्राप्त अनुमति अस्थायी है जिसे स्थायी बनाने के लिए आप को एअरपोर्ट पर वीजा की चैकिंग से भी गुजरना पड़ता है, वहां पास होने पर ही आप किसी देश में ऐंट्री ले सकते हैं.

बढ़ रहे हैं फ्रौड के मामले

विदेश जाने की लालसा के साथसाथ वीजा घोटाले भी बढ़ रहे हैं. वीजा इमीग्रेशन में होने वाले सब से ज्यादा घोटाले नौकरियों के नाम पर होते हैं. वर्क वीजा दिलाने के ऐवज में घोटालेबाज नौकरियों की तलाश कर रहे लोगों को बड़ेबड़े देशों में फ्रौड नौकरी के अवसर में फंसा कर अच्छाखासा पैसा ले लेते हैं. इच्छुक लोगों को प्लैसमेंट के नाम पर शुल्क देने को कहा जाता है जो अधिकतर देशों में अवैध है.

हाल ही में वीजा फैसिलिटेशन सर्विसेज ग्लोबल (वीएफएस ग्लोबल) जोकि एक वीजा सलाहकार के क्षेत्र की जानीमानी कंपनी है, का एक अखबार में छपे ऐडवरटोरियल में कहना है कि वीजा आवेदन, वीजा की अवधि और उस पर प्रक्रिया करने की समय सीमा संबंधित निर्णय राज्य दूतावासों/वाणिज्य दूतावासों के हाथ में है. व्हीएफएस ग्लोबल और इस के ही जैसी संस्थाएं केवल वीजा आवेदन प्रक्रिया के प्रशासनिक और गैर निर्णयात्मक पहलुओं को संभालती है. हम वीजा आवेदन के निर्णय के मामले में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं या उसे प्रभावित नहीं करते.

व्हीएफएस ग्लोबल सोशल मीडिया, ईमेल, एसएमएस या कौल पर आप को अपनी व्यक्तिगत जानकारी देने या अग्रिम भुगतान करने के लिए मना करती है. उन का कहना है कि यदि आप को वीजा आवेदन प्रक्रिया को शीघ्रता से पूरा करने के लिए व्यक्तिगत खातों में भुगतान करने के लिए कहा जाता है, तो समझ लीजिए कि आप घोटालेबाजों के संपर्क में हैं. व्हीएफएस इस से सर्तक रहने के लिए कहता है.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी

वीजा प्रक्रिया को पूरा होने में कई तरह के दस्तावेज और समय लगता है, जिस को कम और जल्दी करने के चक्कर में लोग अकसर जालसाजों के हाथों में फंस जाते हैं. दस्तावेजों का निरीक्षण इसे और भी लंबा बना देता है क्योंकि यह किसी देश की सुरक्षा का मामला होता है.

वीजा के लिए लंबीलंबी कतारे लगी होती हैं। इंतजार महीनों भर तक का होता है. ऐसे में लोग कम जानकारी के अभाव में और जल्दी जाने की चाह में जालसाज और फ्रौड कंपनियों के हाथों चढ़ जाते हैं और अपना कीमती वक्त और पैसा गंवा बैठते हैं.

अगस्त, 2023 की घटना का जिक्र करते हुए रीडिट वैबसाइट पर एक महिला अपना अनुभव शेयर करती हैं. उन का कहना था कि एक आदमी ने मुझे व्हाट्सऐप के माध्यम से कनैक्ट किया और कहा कि वह भी कनाडा जा रहा है। उस ने अपना एक अच्छाखासा प्रोफाइल बना रखा था. मैं जानना चाहती थी कि यह किस हद तक जा सकता है तो मैं ने उस से आगे की जानकारी ली. उस ने मुझे अपनी कंसल्टैंसी में एक महिला से बात कराई जिस का कहना था कि वह उस की सीनियर है. उस महिला ने मुझे ₹45 लाख की बड़ी राशि देने की बात कही. मैं हैरान थी। मैं ने देने से मना कर दिया और दोनों को ब्लौक कर दिया. वीजा के लिए उन्हें इतनी फीस की डिमांड करना ही उन्हें शक के घेरे में डाल देता है. महिला की सतर्कता थी कि वह उन से बच गई.

इमिग्रेशन वीजा के नाम पर देश में बड़े पैमाने पर कंपनियां और उन के ऐजेंट काम कर रहे हैं, जो वीजा इमीग्रेशन कंसल्टैंट और काउंसिलिंग के नाम पर अच्छाखासा पैसा वसूल लेते हैं.

कनाडा, आस्ट्रलिया, यूके और अमेरिका जैसे देशों के लिए वीजा की डीमांड बढ़ रही है जिस के चलते वीजा की इच्छा रखने वाले स्टूडैंट्स और नौकरीपेशा वीजा फ्रौड के चंगुल में भी आ रहे हैं. ये लोग एक बङी धनराशि के बदले लोगों को फ्रौड वीजा पकड़ा रहे हैं. इंटरनैट पर ऐसी कंपनियों की भरमार है जो वीजा ऐजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं. जानकारी के अभाव में कुछ लोग इन कंपनियों के चंगुल में फस जाते हैं.

पुलिस गिरफ्त में जालसाज

इसी का उदाहरण है दिल्ली में गल्फ देशों में जैसे युनाइटेड अरब अमीरात, कतर, कुवैत, सऊदी अरब में नौकरी और वीजा का वादा कर के लोगों को ठगने वाले 2 लोगों को पिछले दिनों गिरफ्तार किया गया था. पुलिस के मुताबिक आरोपियों ने ‘मीट वीजा’ नाम से एक फर्म की शुरुआत की. इसी फर्म के अंदर पिछले 4 महीनों में वे करीब 300 लोगों को अपनी ठगी का शिकार बना चुके थे. इन के निशाने पर खाड़ी देशों में नौकरी की तलाश कर रहे लोग होते थे.

वे सोशल मीडिया में विज्ञापन के जरिए लोगों को फंसाते और उन्हें अपने कार्यालय बुला कर पासपोर्ट और कुछ पैसा ऐडवांस जमा कराते. सबकुछ वास्तविक लगे उस के लिए उन्होंने एक डायग्नोस्टिक सैंटर से भी सांठगांठ कर रखी थी. जहां वे वीजा की इच्छा रखने वालों को स्वास्थ्य परिक्षण के लिए भेजते थे. फिर पासपोर्ट स्टैंप के लिए नेपाल भेज दिए जाते. उन्हें धोखे का पता तब चलता जब वे बाकी पैसा दे चुके होते और इमीग्रेशन काऊंटर पर जाते, जहां अधिकारी उन्हें इस बात की जानकारी देता था.

ऐसे ही अगस्त, 2023 में ही चंडीगढ़ के सैक्टर 17 स्थित इमीग्रेशन कंपनी बीबी कांउसिल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. यह मामला 19 लोगों की शिकायत पर दर्ज किया गया था. अंबाला के सुखविंदर सिंह ने बताया कि उन से इमिग्रेशन के नाम पर ₹2.65 लाख वसूले। भटिंडा के गुरूचरण सिंह से ₹7.43 लाख तथा लुधियाना की एक महिला से करीब ₹8.80 लाख. यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता, छोटेछोटे ऐजेंटों के अलावा बङीबङी कंपनियों से जुङे लोग भी इस में शामिल हैं.

सितंबर 2023 में ब्रिटिश हाई कमिशन ने दिल्ली पुलिस को फ्रौड वीजा ऐजेंट के बारे में आगाह किया जोकि दिल्ली और उस के आसपास के क्षेत्रों में अपना नैटवर्क चला रहे हैं जिस में वे हरियाणा, गुजरात और पंजाब के लोगों को अपना टारगेट बनाते हैं. यह ऐजेंट एक व्यापक संगठित नेटवर्क के हिस्से के रूप में काम करते हैं.

लिखित शिकायत में अंतर्राष्ट्रीय इमिग्रेशन के तीसरे सचिव एंड्र्यू लौंगली ने वीजा आवेदन को आसान बनाने के लिए ऐजेंट द्वारा नई दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमीशन को नकली और जाली दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने का शक जाहिर किया था.
विस्तृत जांच में अब तक 2 मुख्य ऐजेंटों का पता चला है, जिन्होंने नई दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग को 8 अलगअलग क्रैडिट कार्डों का उपयोग कर के कम से कम 164 वीजा आवेदन जमा किए थे. 107 वीजा आवेदनों में नकली और जाली सहायक दस्तावेज शामिल होने की जानकारी भी दी गई.

इस तरह के नेटवर्क्स पूरे देश में फैले हुए हैं जो लोगों को ठग रहे हैं और गैर कानूनी तरीके से लोगों को देश के बाहर भेज रहें हैं, जिस का खमियाजा इस में फंसने वालों को भुगतना पड़ रहा है.

ऐसा ही एक मामला 2023 में साल की शुरुआत में उठा था जिस में 700 से अधिक भारतीय छात्रों को कनाडा से निर्वासन का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि उन्हें पता चला कि उन के शैक्षणिक संस्थान के प्रवेशपत्र नकली थे. इस धोखाधड़ी का खुलासा तब हुआ जब कनाडा में छात्रों ने स्थायी निवास के लिए आवेदन किया. कैनेडियन बौर्डर सर्विस ऐजेंसी (सीबीएसए) ने उन दस्तावेजों की जांच की जिन के आधार पर उन के वीजा जारी किए गए थे और पाया कि दस्तावेज नकली थे. इस तरह उन 700 छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया था.

इसी तरह फ्रौड वीजा के मामले में बढ़ोत्तरी के कारण आस्ट्रेलिया के 5 विश्वविद्यालयों ने चुनिंदा भारतीय राज्यों को जिन में राज्यस्थान, उत्तर प्रदेश शामिल हैं, में भारतीय छात्रों पर बैन लगा दिया है.

कैसे फंसाते हैं झांसे में ?

घोटालेबाज अकसर नकली वैबसाइट बनाते हैं, जो वैध वीजा सेवा प्रदाताओं की हूबहू नकल करते हैं. इन वेबसाइटों के बीच असली और नकली का अंतर करना मुश्किल हो जाता है. वीजा ऐजेंट और काउंसलर के नाम से ये सोशल मीडिया, कौल और मैसेज के माध्यम से आप तक पहुंचते हैं. आप को औफिस बुला कर या खुद आप के घर पहुंच पासपोर्ट व बाकी दस्तावेज जमा करते हैं और फीस के तौर पर अच्छाखासा अमाउंट भी. और इस तरह आप इन का शिकार बन जाते हैं.

ऐसा भी करते हैं 

अकसर लोग नौकरी और नौकरी वीजा के जुगाड़ के नए तरीके ढूंढ़ते हैं. बीएम मानिया जोकि एक युटूयूबर है, ट्रैवल और वीजा फ्रौड पर ब्लौग बनाते हैं। एक ब्लौग में वे बताते हैं कि लोग पहले जौब औफर न होने पर ट्रैवल वीजा पर विदेश चले जाते हैं फिर विदेश में नौकरी ढूंढ़ जौब लैटर हासिल कर नौकरी वीजा पर विदेश में रहने लगते हैं. पर यह जिनता आसान दिखता है उतना है नहीं। सबकुछ सैट हो जाने के बाद टूरिस्ट वीजा को वर्क वीजा में बदलने के लिए भारत में ही इमिग्रेशन काउंटर पर आप से ढेरों सवाल पूछे जाएंगे. किसी तरह जब आप यहां से निकल जाते हैं तो विदेश पहुंच कर भी इमीग्रेशन काउंटर पर आप को उन के सवालों का सामना करना पड़ेगा। जरा सा भी संदिग्ध दिखाई देने पर पूरी संभावना है कि आप को वापस डिपोर्ट कर दिया जाएगा.

इस के अलावा लोग विदेशी नागरिकों से मैरिज कर उस देश की रैजीडेंसी हासिल करने का रास्ता भी अपनाते हैं.

मैरिज स्कैम एक दूसरा इमिग्रेशन फ्रौड है. स्कैम करने वाले आप को विदेशों की परमानैंट रैजीडेंसी के नाम पर विदेशी नागरिक से शादी की बात कर के पैसों की डिमांड करते हैं. ये आप को मैरिज सर्टिफिकेट और ग्रीन कार्ड (नागरिकता कार्ड) दिलाने का वादा करते हैं और गायब हो जाते हैं.

अगस्त, 2023 का ही मामला है. भिलाई की रहने वाली युवती के व्हाट्सऐप पर एक मैसेज आया कि उस का नाम यूके के मैरिज ब्यूरो में सिलेक्ट कर लिया गया है. फिर एक अज्ञात शख्स उस से बात करने लगा. तय हो गया कि शादी के बाद दोनों यूके में बस जाएंगे. युवती ने मैडिकल और वीजा के नाम पर धीरेधीरे कर अज्ञात शख्स को ₹3 लाख 9 हजार भेज दिए. बाद में उसे ठगे जाने की जानकारी हुई.

कैसे बचें ?

आज के डिजिटल युग में वीजा घोटाले और धोखाधड़ी वाली वैबसाइटें विदेशों में रहने और यात्रा करने के इच्छुक लोगों के लिए एक बढ़ती चिंता का विषय बन गई है. इंटरनैट ने वीजा आवेदन प्रक्रियाओं को और अधिक सुविधाजनक बना तो दिया है, लेकिन इस के साथसाथ धोखेबाजों के लिए नएनए रास्ते भी खोल दिए हैं.

ई-वीजा के नाम पर धोखेबाजियां बढ़ती जा रही हैं, जिस को देखते हुए 2017 में मिनिस्ट्री औफ होम अफेयर्स गवर्नमैंट औफ इंडिया या गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा एक ऐडवाइजरी जारी की गई थी जिस में उन का कहना था कि भारत सरकार आवेदक या वीजा की इच्छा रखने वाले की ओर से ई-वीजा के आवेदन करने के लिए किसी भी अधिकृत ऐजेंट को नियुक्त नहीं करती है. वह आम जनता को भी सलाह देते हुए कहती है कि वे ऐसे फर्जी ई-वीजा पोर्टलों के झांसे में न आएं जो इस के लिए मोटी रकम ले कर ऐक्सप्रेस ई-वीजा सेवाएं प्रदान करने का दावा करते हैं. ई-वीजा और संबंधित वीजा सेवाओं के लिए भारत सरकार की आधिकारिक वैबसाइट www.Indianvisaonline.gov.in है।

देशविदेश की सरकारें भी इस तरह के फ्रौडों से नागरिकों को सतर्क करती रहती है. इसलिए वीजा ऐप्लीकेशन लगाने से पहले इस के नियमकानूनों को समझ लेना एक जरूरी कदम है.
इसी को देखते हुए यूएस डिपार्टमैंट औफ स्टेट, आस्ट्रेलियन गवर्नमैंट, गवर्नमैंट औफ पौलेंड, कनाडाई गवर्नमैंट, न्यूजीलैंड गवर्नमैंट जैसे ही कई सरकारों ने वीजा से जुड़े फ्रौडों की जानकारी और सतर्कता के उपाय अपनी ऐंबेसी की वैबसाइट पर डाल दिए हैं जिन की मदद से आप फ्रौड करने वालों के जाल में फंसने से बच सकते हैं.

कैसे करें आवेदन ?

आप अपने गंतव्य देश के दूतावास में वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं या आप किसी प्रतिष्ठित या विश्वसनीय थर्ड पार्टी वीजा सेवा के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं जिस का वर्षों का अनुभव व रिकौर्ड हो. नहीं तो आप सीधे भारत सरकार के ई-वीजा पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं.

वीजा अप्रूवल पूरी तरह से आधिकारिक मामला है जिस में इमीग्रेशन अधिकारियों द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं को पूरा किए जाने की आवश्यकता होती है. वीजा सेवा प्रदाता केवल गाइड कर सकता है। यह प्रोसेस को तेज या धीमा करने की क्षमता नहीं रखते न ही यह वीजा की गारंटी दे सकते हैं. इसलिए ऐसे लोगों के झांसे में न आएं जो गारंटी और जल्दी वीजा की बात करते हैं क्योंकि ये किसी देशविशेष की अंदरूनी सुरक्षा का मामला है तो डौक्यूमेंट वैरिफिकेशन में वक्त लगाता है.

अच्छी ऐजैंसियों की पहचान आप भारत सरकार द्वारा प्रदान किए गए उन के लाइसेंस नंबर की जांच से कर सकते हैं. ये कंपनियां रजिस्टर भी होती हैं और विश्वसनीय भी. किसी भी कंपनी की जांच उस के लाइसैंस नंबर को भारतिय इमिग्रेशन की वैबसाइट से कन्फर्म किया जा सकता है.

सोशल मीडिया में आने वाले विज्ञापनों के माध्यम से ये धोखेबाज लोगों को विदेशों में नौकरियों के लुभावने सपने दिखा कर उन को बेवकूफ बना कर उन का फायदा उठा रहे हैं. जैसेजैसे लोगों की रूची विदेशों की तरफ बढ़ रही है ये फ्रौड भी बढ़ रहे हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप किसी के झांसे में न आएं।

ऐसा न हो की इंस्टाग्राम और यूट्यूब के ऐडों के चक्कर में आप अपनेआप को अपनी डैस्टीनेशन कंट्री से वीजा धोखाधड़ी के चलते ब्लैकलिस्ट करा लें. इसलिए जरूरी होगा आप सुरक्षा का ध्यान रखें.

क्या होता है असर ?

वीजा फ्रौड विदेश जाने के इच्छुक नागरिकों के भविष्य को प्रभावित करता है. मुख्यतौर पर आर्थिक रूप से. ऊपर दिए गए सभी उदाहरणों से साबित होता है कि लोग अपने जीवन की जमापूंजी को किस तरह फ्रौड करने वालों के हाथों में थमा दे रहे हैं. मांबाप अपनी संतानों के बेहतर भविष्य के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं और एक गलती के चलते सारा पैसा और उन का भविष्य अधर में लटक जाता है.

विदेश यात्राओं में तेजी न केवल दुनियाभर के भारतीयों के लिए, बल्कि घोटालेबाजों के लिए भी एक सुनहरा मौका बन गई है. विदेशों में बसने की लालसा भारतियों का धोखेबाजों का शिकार बना रही है. इस से बचे जाने की जरूरत है। नहीं तो भविष्य में इस के बढ़ने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता. सुरक्षित तरीके से वीजा नियमों का पालन करते हुए इन फ्रौडों से बचा जाना ही एकमात्र उपाय है.

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