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कबाड़ : क्या सपना कभी उन यादों को भुला पाई ?

‘‘सुनिए, पुताई वाले को कब बुला रहे हो? जल्दी कर लो, वरना सारे काम एकसाथ सिर पर आ जाएंगे.’’

‘‘करता हूं. आज निमंत्रणपत्र छपने के लिए दे कर आया हूं, रंग वाले के पास जाना नहीं हो पाया.’’

‘‘देखिए, शादी के लिए सिर्फ 1 महीना बचा है. एक बार घर की पुताई हो जाए और घर के सामान सही जगह व्यवस्थित हो जाए तो बहुत सहूलियत होगी.’’

‘‘जानता हूं तुम्हारी परेशानी. कल ही पुताई वाले से बात कर के आऊंगा.’’

‘‘2 दिन बाद बुला ही लीजिए. तब तक मैं घर का सारा कबाड़ निकाल कर रखती हूं जिस से उस का काम भी फटाफट हो जाएगा और घर में थोड़ी जगह भी हो जाएगी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. वैसे भी वह छोटा कमरा बेकार की चीजों से भरा पड़ा है. खाली हो जाएगा तो अच्छा है.’

जब से अविनाश की बेटी सपना की शादी तय हुई थी उन की अपनी पत्नी कंचन से ऐसी बातचीत चलती रहती थी. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, काम का बोझ और हड़बड़ाहट बढ़ती जा रही थी.

घर की पुताई कई सालों से टलती चली आ रही थी. दीपक और सपना की पढ़ाई का खर्चा, रिश्तेदारी में शादीब्याह, बाबूजी का औपरेशन वगैरह ऐसी कई वजहों से घर की सफाईपुताई नहीं हुई थी. मगर अब इसे टाला नहीं जा सकता था. बेटी की शादी है, दोस्त, रिश्तेदार सभी आएंगे. और तो और लड़के वालों की तरफ से सारे बराती घर देखने जरूर आएंगे. अब कोई बहाना नहीं चलने वाला. घर अच्छी तरह से साफसुथरा करना ही पड़ेगा.

दूसरे ही दिन कंचन ने छोटा कमरा खाली करना शुरू किया. काफी ऐसा सामान था जो कई सालों से इस्तेमाल नहीं हुआ था. बस, घर में जगह घेरे पड़ा था. उस पर पिछले कई सालों से धूल की मोटी परत जमी हुई थी. सारा  कबाड़ एकएक कर के बाहर आने लगा.

‘‘कल ही कबाड़ी को बुलाऊंगी. थक गई इस कबाड़ को संभालतेसंभालते,’’ कमरा खाली करते हुए कंचन बोल पड़ीं.

आंगन में पुरानी चीजों का एक छोटा सा ढेर लग गया. शाम को अविनाश बाहर से लौटे तो उन्हें आंगन में फेंके हुए सामान का ढेर दिखाई दिया. उस में एक पुराना आईना भी था. 5 फुट ऊंचा और करीब 2 फुट चौड़ा. काफी बड़ा, भारीभरकम, शीशम की लकड़ी का मजबूत फ्रेम वाला आईना. अविनाश की नजर उस आईने पर पड़ी. उस में उन्होंने अपनी छवि देखी. धुंधली सी, मकड़ी के जाले में जकड़ी हुई. शीशे को देख कर उन्हें कुछ याद आया. धीरेधीरे यादों पर से धूल की परतें हटती गईं. बहुत सी यादें जेहन में उजागर हुईं. आईने में एक छवि निखर आई…बिलकुल साफ छवि, कंचन की. 29-30 साल पहले की बात है. नईनवेली दुलहन कंचन, हाथों में मेहंदी, लाल रंग की चूडि़यां, घूंघट में शर्मीली सी…अविनाश को अपने शादी के दिन याद आए.

संयुक्त परिवार में बहू बन कर आई कंचन, दिनभर सास, चाची सास, दादी सास, न जाने कितनी सारी सासों से घिरी रहती थी. उन से अगर फुरसत मिलती तो छोटे ननददेवर अपना हक जमाते. अविनाश बेचारा अपनी पत्नी का इंतजार करतेकरते थक जाता. जब कंचन कमरे में लौटती तो बुरी तरह से थक चुकी होती थी. नौजवान अविनाश पत्नी का साथ पाने के लिए तड़पता रह जाता. पत्नी को एक नजर देख पाना भी उस के लिए मुश्किल था. आखिर उसे एक तरकीब सूझी. उन का कमरा रसोईघर से थोड़ी ऊंचाई पर तिरछे कोण में था. अविनाश ने यह बड़ा सा आईना बाजार से खरीदा और अपने कमरे में ऐसे एंगल (कोण) में लगाया कि कमरे में बैठेबैठे रसोई में काम करती अपनी पत्नी को निहार सके.

इसी आईने ने पतिपत्नी के बीच नजदीकियां बढ़ा दीं. वे दोनों दिल से एकदूसरे के और भी करीब आ गए. उन के इंतजार के लमहों का गवाह था यह आईना. इसी आईने के जरिए वे दोनों एकदूसरे की आंखों में झांका करते थे, एकदूसरे के दिल की पुकार समझा करते थे. यही आईना उन की नजर की जबां बोलता रहा. उन की जवानी के हर पल का गवाह था यह आईना.

आंगन में खड़ेखड़े, अपनेआप में खोए से, अविनाश उन दिनों की सैर कर आए. अपनी नौजवानी के दिनों को, यादों में ही, एक बार फिर से जी लिया. अविनाश ने दीपक को बुलाया और वह आईना उठा कर अपने कमरे में करीने से रखवाया. दीपक अचरज में पड़ गया. ऐसा क्या है इस पुराने आईने में? इतना बड़ा, भारी सा, काफी जगह घेरने वाला, कबाड़ उठवा कर पापा ने अपने कमरे में क्यों लगवाया? वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. वह अपनी दादी के पास चला गया.

‘‘दादी, पापा ने वह बड़ा सा आईना कबाड़ से उठवा कर अपने कमरे में लगा दिया.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘दादी, वह कितनी जगह घेरता है? कमरे से बड़ा तो आईना है.’’

दादी अपना मुंह आंचल में छिपाए धीरेधीरे मुसकरा रही थीं. दादी को अपने बेटे की यह तरकीब पता थी. उन्होंने अपने बेटे को आईने में झांकते हुए बहू को निहारते पकड़ा भी था.

दादी की वह नटखट हंसी… हंसतेहंसते शरमाने के पीछे क्या माजरा है, दीपक समझ नहीं सका. पापा भी मुसकरा रहे थे. जाने दो, सोच कर दीपक दादी के कमरे से बाहर निकला.

इतने में मां ने दीपक को आवाज दी. कुछ और सामान बाहर आंगन में रखने के लिए कहा. दीपक ने सारा सामान उठा कर कबाड़ के ढेर में ला पटका, सिवा एक क्रिकेट बैट के. यह वही क्रिकेट बैट था जो 20 साल पहले दादाजी ने उसे खरीदवाया था. वह दादाजी के साथ गांव से शहर आया था. दादाजी का कुछ काम था शहर में, उन के साथ शहर देखने और बाजार घूमने दीपू चल पड़ा था. चलतेचलते दादाजी की चप्पल का अंगूठा टूट गया था. वैसे भी दादाजी कई महीनों से नई चप्पल खरीदने की सोच रहे थे. बाजार घूमतेघूमते दीपू की नजर खिलौने की दुकान पर पड़ी. ऐसी खिलौने वाली दुकान तो उस ने कभी नहीं देखी थी. उस का मन कांच की अलमारी में रखे क्रिकेट के बैट पर आ गया.

उस ने दादाजी से जिद की कि वह बैट उसे चाहिए. दीपू के दादाजी व पिताजी की माली हालत उन दिनों अच्छी नहीं थी. जरूरतें पूरी करना ही मुश्किल होता था. बैट जैसी चीजें तो ऐश में गिनी जाती थीं. दीपू के पास खेल का कोई भी सामान न होने के कारण गली के लड़के उसे अपने साथ खेलने नहीं देते थे. श्याम तो उसे अपने बैट को हाथ लगाने ही नहीं देता था. दीपू मन मसोस कर रह जाता था.

दादाजी इन परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. उन से अपने पोते का दिल नहीं तोड़ा गया. उन्होंने दीपू के लिए वह बैट खरीद लिया. बैट काफी महंगा था. चप्पल के लिए पैसे ही नहीं बचे, तो दोनों बसअड्डे के लिए चल पड़े. रास्ते में चप्पल का पट्टा भी टूट गया. सड़क किनारे बैठे मोची के पास चप्पल सिलवाने पहुंचे तो मोची ने कहा, ‘‘दादाजी, यह चप्पल इतनी फट चुकी है कि इस में सिलाई लगने की कोई गुंजाइश नहीं.’’

दादाजी ने चप्पल वहीं फेंक दीं और नंगे पांव ही चल पड़े. घर पहुंचतेपहुंचते उन के तलवों में फफोले पड़ चुके थे. दीपू अपने नए बैट में मस्त था. अपने पोते का गली के बच्चों में अब रोब होगा, इसी सोच से दादाजी के चेहरे पर रौनक थी. पैरों की जलन का शिकवा न था. चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी.

हाथ में बैट लिए दीपक उस दिन को याद कर रहा था. उस की आंखों से आंसू ढलक कर बैट पर टपक पड़े. आज दीपू के दिल ने दादाजी के पैरों की जलन महसूस की जिसे वह अपने आंसुओं से ठंडक पहुंचा रहा था.

तभी, शाम की सैर कर के दादाजी घर लौट आए. उन की नजर उस बैट पर गई जो दीपू ने अपने हाथ में पकड़ रखा था. हंसते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्यों बेटा दीपू, याद आया बैट का किस्सा?’’

‘‘हां, दादाजी,’’ दीपू बोला. उस की आंखें भर आईं और वह दादाजी के गले लग गया. दादाजी ने देखा कि दीपू की आंखें नम हो गई थीं. दीपू बैट को प्यार से सहलाते, चूमते अपने कमरे में आया और उसे झाड़पोंछ कर कमरे में ऐसे रख दिया मानो वह उस बैट को हमेशा अपने सीने से लगा कर रखना चाहता है. दादाजी अपने कमरे में पहुंचे तो देखा कि दीपू की दादी पलंग पर बैठी हैं और इर्दगिर्द छोटेछोटे बरतनों का भंडार फैला है.

‘‘इधर तो आइए… देखिए, इन्हें देख कर कुछ याद आया?’’ वे बोलीं.

‘‘अरे, ये तुम्हें कहां से मिले?’’

‘‘बहू ने घर का कबाड़ निकाला है न, उस में से मिल गए.’’

अब वे दोनों पासपास बैठ गए. कभी उन छोटेछोटे बरतनों को देखते तो कभी दोनों दबेदबे से मुसकरा देते. फिर वे पुरानी यादों में खो गए.

यह वही पानदान था जो दादी ने अपनी सास से छिपा कर, चुपके से खरीदा था. दादाजी को पान का बड़ा शौक था, मगर उन दिनों पान खाना अच्छी आदत नहीं मानी जाती थी. दादाजी के शौक के लिए दादीजी का जी बड़ा तड़पता था. अपनी सास से छिपा कर उन्होंने पैसे जोड़ने शुरू किए, कुछ दादाजी से मांगे और फिर यह पानदान दादाजी के लिए खरीद लिया. चोरीछिपे घर में लाईं कि कहीं सास देख न लें. बड़ा सुंदर था पानदान. पानदान के अंदर छोटीछोटी डब्बियां लौंग, इलायची, सुपारी आदि रखने के लिए, छोटी सी हंडिया, चूने और कत्थे के लिए, हंडियों में तिल्लीनुमा कांटे और हंडियों के छोटे से ढक्कन. सारे बरतन पीतल के थे. उस के बाद हर रात पान बनता रहा और हर पान के साथ दादादादी के प्यार का रंग गहरा होता गया.

दादाजी जब बूढ़े हो चले और उन के नकली दांत लग गए तो सुपारी खाना मुश्किल हो गया. दादीजी के हाथों में भी पानदान चमकाने की आदत नहीं रही. बहू को पानदान रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अत: पानदान स्टोर में डाल दिया गया. आज घर का कबाड़ निकाला तो दादी को यह पानदान मिल गया, दादी ने पानदान उठाया और अपने कमरे में ले आईं. इस बार सास से नहीं अपनी बहू से छिपा कर.

थरथराती हथेलियों से वे पानदान संवार रही थीं. उन छोटी डब्बियों में जो अनकहे भाव छिपे थे, आज फिर से उजागर हो गए. घर के सभी सदस्य रात के समय अपनेअपने कमरों में आराम कर रहे थे. कंचन, अविनाश उसी आईने के सामने एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. दादादादी पान के डब्बे को देख कर पुरानी बातों को ताजा कर रहे थे. दीपक बैट को सीने से लगाए दादाजी के प्यार को अनुभव कर रहा था जब उन्होंने स्वयं चप्पल न खरीद कर उन पैसों से उसे यह बैट खरीद कर दिया था. नंगे पांव चलने के कारण उन के पांवों में छाले हो गए थे.

सपना भी कबाड़ के ढेर में पड़ा अपने खिलौनों का सैट उठा लाई थी जिस से वह बचपन में घरघर खेला करती थी. यह सैट उसे मां ने दिया था.

छोटा सा चूल्हा, छोटेछोटे बरतन, चम्मच, कलछी, कड़ाही, चिमटा, नन्हा सा चकलाबेलन, प्यारा सा हैंडपंप और उस के साथ एक छोटी सी बालटी. बचपन की यादें ताजा हो गईं. राखी के पैसे जो मामाजी ने मां को दिए थे, उन्हीं से वे सपना के लिए ये खिलौने लाई थीं. तब सपना ने बड़े प्यार से सहलाते हुए सारे खिलौनों को पोटली में बांध लिया था. उस पोटली ने उस का बचपन समेट लिया था. आज उन्हीं खिलौनों को देख कर बचपन की एकएक घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी. दीपू भैया से लड़ाई, मां का प्यार और दादादादी का दुलार…

जिंदगी में कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें दोबारा जीने को दिल चाहता है, कुछ पल ऐसे होते हैं जिन में खोने को जी चाहता है. हर कोई अपनी जिंदगी से ऐसे पलों को चुन रहा था. यही पल जिंदगी की भागदौड़ में कहीं छूट गए थे. ऐसे पल, ये यादें जिन चीजों से जुड़ी होती हैं वे चीजें कभी कबाड़ नहीं होतीं.

कैरियर की ऊंचाई पर पहुंच कर इन ऐक्ट्रैस का हुआ निधन, पीछे छोड़ी करोड़ों की संपत्ति

अभिनेत्री और मौडल पूनम पांडे की मृत्यु की खबर भले ही एक घटिया पब्लिसिटी स्टंट थी, जिस के लिए उन्हें बहुत ट्रोल किया गया और उन्हें बहुत भलाबुरा भी कहा गया, लेकिन इतना तो सच है कि बौलीवुड की कुछ ऐक्ट्रैसेस ऐसी भी हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया और उन के पीछे रह गई करोड़ों की संपत्ति, जिसे ले कर कभी कोर्टकचहरी तो कभी अनायास ही उन के पेरैंट्स के पास संपत्ति चली गई.

बौलीवुड या टीवी इंडस्ट्री की ऐसी अभिनेत्रियों की अचानक मृत्यु हो जाना, उन के फैन्स को चौंकाने वाला था. इन एक्ट्रैस ने बहुत ही कम समय में खूब नाम और पैसा कमाया, क्योंकि इन के अभिनय को दर्शकों ने काफी पसंद किया. ये ऐसी अभिनेत्रियां थीं जिन की गिनती फिल्म इंडस्ट्री की सब से ज्यादा फीस लेने वाली ऐक्ट्रैसेस में होती थी. कम समय में दुनिया छोड़ने वाली इन ऐक्ट्रैस ने अपने सफल अभिनय कैरियर के दौरान करोड़ों की संपत्ति कमाई और मौत के बाद अपने परिजनों के लिए छोड़ कर चली गईं.

आइए जानते हैं ऐसी अभिनेत्रियों के बारे में जिन की करोड़ों की जायदाद को पेरैंट्स ने कैसे लिया क्योंकि वयस्क पेरैंट्स के गुजरने पर उन की जायदाद को बच्चे खुशीखुशी ले लेते हैं, जबकि एक पेरैंट्स के आगे उन के बच्चे का कम उम्र में गुजर जाना वाकई तकलीफदेय होता है.

दिव्या भारती

बौलीवुड में सब से खूबसूरत ऐक्ट्रैस में शुमार दिव्या भारती की मौत मात्र 19 साल की उम्र में रहस्यमय तरीके से हो गई थी. अपने समय में वे बौलीवुड की पौपुलर और सब से ज्यादा फीस लेने वाली ऐक्ट्रैस थीं.

मात्र 14 साल की उम्र में उन्हें फिल्मों के औफर मिलने लगे थे. एक साल के छोटे से वक्त में उन्होंने करीब 14 फिल्मों में काम किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वे एक फिल्म के लिए 25 लाख रुपए चार्ज करती थीं. उन की मानें तो दिव्या भारती अपने पीछे 247 करोड़ रुपए की संपत्ति छोड़ गई थीं. जब उन का निधन हुआ तो उन के परिवार को पूरी संपत्ति मिली. अभी उन के पिता की मृत्यु हो चुकी है, जबकि उन की मां अभी जीवित हैं. दिव्या ने काफी पैसे इधरउधर इन्वैस्ट कर रखे थे, जो बाद में उन के पेरैंट्स को मिले.

दिव्या किसी फिल्मी परिवार से नहीं थीं. पिता ओमप्रकाश भारती बीमा कंपनी में अफसर थे और मां मीता भारती एक गृहिणी. दिव्या ने 9वीं क्लास तक ही पढ़ाई की. 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ कर मौडलिंग करना शुरू कर दिया था. इस के बाद से उन्हें फिल्मों के औफर आने लगे थे. फिल्म ‘विश्वात्मा’ उन की पहली सफल फिल्म थी.

सौंदर्या

तमिल फिल्मों की मशहूर अदाकारा सौंदर्या का निधन मात्र 32 साल की उम्र में एक प्लेन क्रैश में हो गया था. सौंदर्या ने 140 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया था. बौलीवुड फिल्म ‘सूर्यवंशम’ में वे अमिताभ बच्चन के अपोजिट नजर आई थीं. बताया जाता है कि वे अपने पीछे करीब 50 करोड़ की संपत्ति छोड़ गई थीं.

सौंदर्या के रिश्तेदार उन की संपत्ति पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिस की अनुमानित कीमत 50 करोड़ रुपए है. सौंदर्या लोकसभा चुनाव से पहले आंध्र प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रचार कर रही थीं. 17 अप्रैल को उन का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उन के भाई अमरनाथ के साथ उन की मृत्यु हो गई. उन की मां के एस मंजुला और उन के पूर्व पति जी एस रघु एकतरफ हैं, जबकि उन की भाभी निर्मला (अमरनाथ की विधवा) और उन का बेटा सात्विक दूसरी तरफ.

कथित तौर पर दिवंगत अभिनेत्री ने एक वसीयत छोड़ी थी और इस की सामग्री के अनुसार, सौंदर्या के पास सोने के आभूषणों और अन्य संपत्तियों के अलावा 6 संपत्तियां थीं. वसीयत में कथित तौर पर सात्विक को एक घर दिया गया है, जबकि दूसरा घर, जो उस समय बन रहा था, उन की मां, भाई के परिवार और उन के परिवार की संयुक्त संपत्ति है.

इस में कहा गया है कि हैदराबाद में संपत्ति से होने वाली आय को उन की मां, भाई और उस के परिवार व उस के पति और बच्चों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना था. अन्य 2 संपत्तियां उन के पति और बच्चों को दी गई हैं. कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई जब अमरनाथ के बेटे सात्विक ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि संपत्ति पर उस का अधिकार उस की दादी ने छीन लिया है जो सौंदर्या की वसीयत का सम्मान नहीं कर रही थीं.

जिया खान

अभिनेत्री जिया खान ने काफी कम उम्र में बौलीवुड में सफलता हासिल कर ली थी. उन्होंने महज 25 साल की उम्र में खुदकुशी कर ली थी. इस के बाद पुलिस को 6 पन्नों का सुसाइड नोट मिला था, जो एक्ट्रैस ने सूरज पंचोली के नाम लिखा था. मामले में ऐक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया था. ऐक्टर पर जिया को खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप था.

इतनी कम उम्र में जब वे कैरियर की ऊंचाइयां छू रही थीं तब यह हादसा हुआ था. जिया ने अपने कैरियर में अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे दिग्गज अभिनेताओं के साथ काम किया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिया अपने पीछे करीब 10 से 15 करोड़ रुपए की संपत्ति छोड़ गई थीं जो उन की मां को मिली.

प्रत्युषा बनर्जी

झाड़खंड के जमशेदपुर की रहने वाली दिवंगत अभिनेत्री प्रत्युषा बैनर्जी से सभी परिचित हैं. वे धारावाहिक ‘बालिका बधू’ में आनंदी की भूमिका निभा कर चर्चित हुई थीं. प्रत्युषा बनर्जी ने बौयफ्रैंड राहुल राज के आचरण के कारण आत्महत्या कर ली थी. उन के प्रेमी राहुल राज पर इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें जमानत दे दी गई.

प्रत्युषा ने अपने पीछे करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति रख छोड़ी थी, जो उन के पेरैंट्स को मिल गई, लेकिन इतनी कम उम्र में अचानक आत्महत्या कर लेने के बाद उन का परिवार टूट कर बिखर गया और सबकुछ गंवा दिया. अब प्रत्युषा के मांबाप घोर तंगी से गुजर रहे हैं.

प्रत्युषा बनर्जी के पिता शंकर बनर्जी कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है मानो बेटी की मौत के बाद कोई बड़ा तूफान आया हो और सबकुछ ले कर चला गया हो. केस लड़तेलड़ते वे अपना सबकुछ गंवा बैठे हैं. उन के पास अब एक रुपया भी नहीं बचा है.

शंकर बनर्जी ने कहा था कि उन की बेटी ने ही उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचाया था. वही उन का एकमात्र सहारा थी, लेकिन प्रत्युषा के जाने के बाद मानो कोई बड़ा तूफान आ गया हो. अब उन की जिंदगी बहुत मुश्किल से कट रही है. स्थिति ऐसी है कि अब वे एक कमरे में रहने को मजबूर हैं और कई बार कर्ज तक ले चुके हैं.

फरवरी के पहले सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार, जानें पूरी डिटेल्स

बौलीवुड के लिए 2024 की शुरुआत बहुत ही खराब रही. जनवरी माह के चारों सप्ताह बौक्सऔफिस पर मायूसी छाई रही. इस की मूल वजह यह रही कि बौलीवुड के फिल्मकार इन दिनों दर्शकों को मूर्ख मान कर फिल्में बना रहे हैं. ऐसे में फिल्मों का बौक्सऔफिस पर डूबना तय है.

जनवरी माह में कटरीना कैफ, हृतिक रोशन, दीपिका पादुकोण व पंकज त्रिपाठी भी बौक्सऔफिस पर बुरी तरह से असफल रहे हैं. फरवरी माह की शुरुआत नवाजुद्दीन सिद्दीकी व रेगिना कासांडा की फिल्म ‘सेक्शन 108’ से हुई. यह फिल्म 2 फरवरी को सिनेमाघरों में अकेले ही पहुंची. इस दिन फिल्म ‘सेक्शन 108’ के अलावा कोई दूसरी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई. फिर भी यह चाय पीने का पैसा भी इकट्ठा नहीं कर पाई.

रासिख खान निर्देशित फिल्म ‘सेक्शन 108’ पूरे सप्ताह में महज 5 लाख रुपए ही इकट्ठा कर पाई. पहले दिन इस फिल्म ने सिर्फ 60 हजार रुपए कमाए थे. फिल्म की इस बुरी दुर्गति को देख कर अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निर्माता से आग्रह किया कि वे इस फिल्म के बौक्सऔफिस आंकड़ों की जानकारी किसी को न बताएं.

फिल्म ‘सेक्शन 108’ की कहानी एक अरबपति के गायब हो जाने से शुरू होती है और अदालत जल्द ही उसे मृत घोषित करने वाली है. बीमा कंपनी को अंदाजा हो गया है कि गायब हुए अरबपति के नामित व्यक्ति को मुआवजा देना पड़ेगा. पर बीमा कंपनी को लगता है कि यह एक धोखाधड़ी है, इसलिए बीमा कंपनी अपना केस लड़ने में मदद के लिए एक वकील ताहूर खान को नियुक्त करती है. वकील ताहूर खान की भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं. परदे पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी कहीं से भी वकील नजर नहीं आते. कहानी व पटकथा में कोई दम नहीं है.

बौलीवुड में चर्चाएं गरम हैं कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी ऐसे कलाकार हैं जिन की एक भी फिल्म 2017 के बाद अब तक ओटीटी प्लेटफौर्म अथवा सिनेमाघरों में दर्शक नहीं जुटा पाई, उन को ले कर लोग अति घटिया, नीरस पटकथा व बेसिरपैर की कहानी वाली फिल्में बना कर क्यों नुकसान उठा रहे हैं, समझ से परे है.

उधर, अपने अभिनय में सुधार लाने के बारे में सोचने के बजाय अहं के शिकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा है कि लोग उन्हें फिल्में नहीं देंगे तो वे अपना सबकुछ बेच कर खुद अपने लिए फिल्म बनाएंगे क्योंकि उन के अंदर अभिनय प्रतिभा कूटकूट कर भरी हुई है.

मेरे पति मुझे छोड़कर किसी और औरत के पास चले गए हैं, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 30 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 7 साल हो चुके हैं. 2 बच्चे भी हैं. मेरा दांपत्य जीवन बहुत ही खुशहाल था. पतिपत्नी में बेहद प्यार और गजब की अंडरस्टैंडिंग थी. लगता था कि हम जैसे दंपतियों के लिए ही मेड फौर ईच अदर जैसा जुमला बना है. पर कुछ महीनों से पति के व्यवहार में अप्रत्याशित बदलाव आ गया है. वे बातबात पर झल्लाने लगे हैं. मुझ से कटेकटे रहने लगे हैं. मेरे साथ समय बिताना, कहीं बाहर घूमने जाना तो दूर पास बैठने तक का वक्त नहीं है. और तो और दोनों बच्चों में भी उन की कोई दिलचस्पी नहीं रही.

पहले तो मैं यही समझती रही कि शायद अपने कारोबार की टैंशन है. सुनते हैं कि बिजनैस में कंपीटिशन काफी बढ़ गया है. पर घर वालों से पता चला कि ऐसी कोई समस्या नहीं है. तब मैं ने उन्हें 2-3 दिन तक लगातार कुरेदा तो एक दिन सचाई उन के मुंह से निकल ही गई.

पति ने बताया कि मैं उन के लायक ही नहीं हूं. वे तो यह शादी करना ही नहीं चाहते थे. घर वालों के दबाव में आ कर शादी के लिए हां करनी पड़ी. यह उन के जीवन की सब से बड़ी भूल थी.

मैं ने कहा कि आज तक तो आप ने कभी जाहिर नहीं किया, कि मैं जबरन आप के गले पड़ा ढोल हूं जिसे आप मजबूरन बजा रहे हैं. लगता है बाहर कोई मिल गई है, जिस के चलते ऐसे तेवर दिखा रहे हैं. बड़ी बेशर्मी से उन्होंने स्वीकार लिया कि यही सच है. कोई है जो सौ फीसदी उन के काबिल है और उसी के साथ रहना चाहते हैं. यह सुन कर मैं गुस्से से पागल हो गई. खूब खरीखोटी सुनाई. बात जब हद से बढ़ गई तो पांव पटकते हुए रात को ही चले गए.आज 15 दिन हो चुके हैं उन्हें घर से गए हुए. मैं अपनी ससुराल में हूं. उन के घर वाले भी मुझे ही दोष दे रहे हैं. कहते हैं कि पति से इस तरह जबान नहीं लड़ानी चाहिए थी. न मैं भलाबुरा कहती और न वे घर छोड़ कर जाते.

मैं क्या करूं? मैं उन्हें किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहती. खासकर अपने दोनों बच्चों की खातिर. आप को अपने पति का और उस लड़की का नंबर दे रही हूं. कृपया आप मेरे पति को समझाएं कि वह घर लौट आएं और उन की माशूका को भी समझाएं कि वह मेरा घर न तोड़े.

जवाब

आप स्वीकार करती हैं कि शुरुआती सालों में आप का दांपत्य जीवन खुशहाल रहा. पति आप को चाहते थे. आप की और घरपरिवार की परवाह करते थे. आप लोगों में अच्छा तालमेल था. फिर यकायक यह कैसे खत्म हो गया और स्थिति इतनी बदतर हो गई कि पति न केवल आप की उपेक्षा करने लगे, बल्कि उन्होंने बाहर विवाहेतर संबंध भी बना लिए?

आप स्थिति को समझने का प्रयास करेंगी तो पाएंगी कि चूक आप से ही हुई है. आप छोटे बच्चों की परवरिश और घरपरिवार की जिम्मेदारियों में इस कदर मसरूफ हो गईं कि पति निरंतर उपेक्षित होते गए. जब घर से उन्हें प्यार नहीं मिला तो उन्होंने घर से बाहर आप का विकल्प तलाश लिया.

शुरूशुरू में जब पति के स्वभाव में आप ने परिवर्तन और अपने लिए बेरुखी देखी थी, आप को तभी सतर्क हो जाना चाहिए था. माना कि छोटे बच्चों की परवरिश आसान काम नहीं है पर इस जिम्मेदारी को निभाते हुए भी पति की अनदेखी कई बार भारी पड़ती है जैसाकि आप के मामले में हुआ.

यदि जानेअनजाने में हुई आप की अनदेखी से आप को पति के व्यवहार में बदलाव दिख रहा था तो आप को सतर्क हो जाना चाहिए था. उन्हें यह एहसास नहीं होने देना चाहिए था कि उन का महत्त्व दिनोंदिन गौण होता जा रहा है.

यदि आप स्थिति को संभाल लेतीं तो बेहतर था. पर आपने स्थिति को संभालने के बजाय लड़झगड़ कर मामले को और उलझा लिया.

अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है. घबराएं नहीं. आप पति की ब्याहता और उन के बच्चों की मां हैं और सब से बड़ी बात उन के घरपरिवार में रह रही हैं तो अव्वल तो आप के पति ज्यादा दिन बाहर रहेंगे नहीं, क्योंकि समाज के प्रति भी उन की जवाबदेही है और फिर उन की तथाकथित प्रेमिका एक विवाहित पुरुष को अधिक दिनों तक बरदाश्त नहीं करने वाली.

आप अपनी ससुराल से बड़े सदस्यों यथा सासससुर या जेठ अथवा किसी ऐसे संबंधी को उन्हें समझाने के लिए भेजें. आप अपने घर वालों को साथ ले कर स्वयं भी उन्हें मनाने जा सकती हैं. देरसवेर वे लौट आएंगे.

रही हमारे द्वारा मध्यस्थता कराने (उन्हें फोन पर समझानेबुझाने) की तो यह उचित नहीं होगा. इस से वे और भड़क जाएंगे कि घर की बात आप चौराहे तक ले आईं.

सरिता में हम आप की समस्या और उस का निवारण गोपनीयता के साथ सिर्फ प्रकाशित कर सकते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

क्या थी सलोनी की सच्चाई: भाग 1

छोटे से कस्बे , शाहपुर  की टीचर्स कॉलोनी से थोड़ी थोड़ी दूर बने छोटे छोटे घरों में से एक में सलोनी अपने पति मुकेश के साथ बैठी नाश्ता कर रही थी , दोनों बहुत ही अच्छे मूड में थे , मुकेश ने प्यार भरी नजर सलोनी पर डाल कर कहा , सलोनी , मैं बहुत खुश हूँ कि मेरा विवाह तुमसे हुआ , कहाँ तुम इतनी सुन्दर सलोनी , कहाँ मैं आम सा दिखने वाला ,’ कहकर मुकेश मुस्कुराया तो सलोनी ने बड़ी अदा से कहा ,” अब झूठी तारीफें बंद करो , वैसे लगता ही नहीं कि विवाह के दो साल पूरे हो गए हैं और आज हम इस ख़ुशी में स्वामी गोरखनाथ जी की कुटीर में उनका आशीर्वाद लेने जा रहे हैं.”

”हाँ , लगता तो नहीं कि दो साल हो गए , तुम्हारी सुंदरता तो और बढ़ गयी है.”

”चल , झूठे ,” कहकर सलोनी नाश्ते की प्लेट्स समेटने लगी. सचमुच फिर दुल्हन की तरह सजी संवरी सलोनी मुकेश के साथ स्वामी जी की कुटिया पर पहुंची , शाहपुर  छोटी जगह ही है , कस्बे के बाहर की तरफ एक बड़ी सी ‘स्वामी कुटीर ‘ में  कई लोग फर्श पर बैठे स्वामीजी से अपनी अपनी समस्याओं का समाधान पूछ रहे थे , स्वामी जी एक एक को अपने पास बुलाते , बिठाते और आँख बंद करके कुछ सोचते , फिर कोई उपाय बता देते , लोग एक तरफ रखे दान पात्र में कुछ डालते और चले जाते , सलोनी पर स्वामी जी की नजर पड़ी , उनकी नजरों में चमक उभर आयी , थोड़ा जल्दी जल्दी सबको निपटाया , फिर उन दोनों को अपने पास बुला  लिया , मुकेश ने उनके पैर छूते हुए कहा ,” स्वामी जी , आशीर्वाद दें , आज हमारे विवाह को दो साल हो गए हैं. स्वामीजी  ने दोनों के सर पर हाथ रखा , फिर धीरे से अपना हाथ सलोनी की कमर तक ले आये , सलोनी से नजरें मिलीं , सलोनी मुस्कुरा दी , मुकेश ने दो शातिर खिलाडियों की नजरों का यह खेल नहीं देखा , मुकेश ने कहा ,” बाकी तो सब आपकी कृपा है , बस यही आशीर्वाद दें कि अगली सालगिरह पर हम तीन हो जाएँ , हमारे जीवन में अब एक बच्चे की ही कमी है.” स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा ,” बच्चे तो ईश्वर की देन हैं , जब भी ईश्वर की मर्जी होगी , बच्चा  हो जायेगा , इसमें चिंता कैसी , धैर्य रखो ”

इसके बाद दोनों शाहपुर  से एक किलोमीटर दूर बाइक से एक पीर साहब, शौकत मियां  से मिलने गए , वहां पीर साहब कई लोगों पर फूंक मार कर ही उनकी बीमारियां ठीक कर रहे थे , कुछ लोग अपने साथ पानी की बोतल लाये हुए थे , पीर साहब होठों में कुछ बुदबुदाते , फिर पानी पर फूंक मारते , लोग उनके  आगे रखी चादर में कुछ रुपए रखते और कई बार उनके आगे सर झुकाते , उन्हें शुक्रिया कहते चले जाते.ये पीर साहब बड़े पहुंचे हुए थे , लोग बहुत दूर दूर से इनके पास पानी लेकर आते थे , इन्हे पानी वाले बाबा भी कहा जाता था लोगों का कहना था कि इनका पढ़ा हुआ पानी पीकर बड़ी बड़ी बीमारियां ठीक हो जाती हैं , पीर साहब का अपना भरा पूरा परिवार था , दूर खेतों में एक बढ़िया सा मकान इन्ही लोगों के विश्वास के पैसों से बन चुका था.धनी, अनपढ़ , मूर्ख लोगों की एक पूरी जमात थी जो अपने घर में किसी के बीमार होने पर इन्हे झाड़ फूंक करवाने  घर भी ले जाती  और अच्छी रकम भी देती. पीर बाबा शौकत मियां ने जब सलोनी को देखा तो उनका दिल धड़क उठा.दोनों उनके सामने बैठ गए , सलोनी ने कहा , बाबा , आज हमारी शादी को दो साल हो गए हैं , दुआ करें कि अगले साल मैं जब आज के दिन आपके पास आऊं तो मेरी गोद में एक बच्चा हो”

शौकत मियां करीब पचास की उम्र के तेज दिमाग के , कसरती बदन वाले इंसान थे , गंभीर सी आवाज में कहा ,’ बच्चा तो अल्लाह की देन है , जब अल्लाह की मर्जी होगी ,, तभी तुम्हारी गोद  में बच्चा होगा , उसी की मर्जी से सब होता है , हाँ , इतना जरूर है कि मेरे पास आती रहो , तुम्हारे लिए कुछ अलग से पढ़कर दुआएं करूँगा”

दोनों ने हाँ में सर हिलाया , शौकत ने तरसती सी निगाहों से सलोनी को  देखा , सलोनी इन  निगाहों को खूब पहचानती  , वह उठते उठते मुस्कुरा दी , शौकत उसके हुस्न को देखते रह गए.दोनों घर आ गए.मुकेश मुंबई में कई टैक्सी चलाता, चलवाता था , कुछ लोगों के साथ एक फ्लैट लेकर शेयर करता था , सलोनी यहीं शाहपुर में रहती , मुकेश ही आता जाता रहता , कभी दो महीने में , कभी पांच छह महीने भी हो जाते, दोनों का घर दूर गांव में था , जहाँ सलोनी को रहना बिलकुल सहन नहीं था , उसे आज़ादी पसंद थी , इसलिए वह कभी मुकेश के साथ जाने की ज़िद भी नहीं करती थी , उसके अकेलेपन की मुकेश चिंता करता तो वह कहती कि वह बस उसके आने के इंतज़ार में दिन काट लेती है , कुछ बच्चों को पढ़ाकर अपना टाइम पास कर लेती है , मुकेश ज्यादा कुछ न कहे , इसलिए कभी मायके , कभी ससुराल भी रह आती..

मुकेश और सलोनी दोनों को पीरों और बाबाओं के आश्रमों में जाने की बहुत आदत थी , दोनों ने ही अपने अपने घरों में हमेशा यही माहौल देखा था कि कोई परेशानी आयी नहीं और झट से पहुँच गए किसी बाबा या पीर के दर पर. दोनों इन्ही लोगों के पास चक्कर काटते रहते.मुकेश बहुत ही धर्मभीरु इंसान था , सलोनी तेज तर्रार , चालाक , सुंदर  लड़की थी , मुकेश को अपने इशारों पर नचाना उसे खूब आता , दोनों को अपने गांव में जाने में कोई रूचि नहीं रहती थी , अब दोनों की अलग दुनिया थी. कुछ दिन हमेशा की तरह मुकेश और सलोनी ने खूब मस्ती करते हुए बिताए. फिर मुकेश के मुंबई जाने का टाइम आ गया.सलोनी ने कुछ उदास रहकर दिखाया , मुकेश ने अगले महीने फिर आने का वायदा किया , कहा , बहुत ड्राइवर्स के साथ रहता हूँ , काम अच्छा तो चल रहा है , जल्दी ही अलग घर ले कर तुम्हे साथ ही ले जाऊंगा.”

Valentine’s Day 2024 : वैलेंटाइन डे पर गर्लफ्रेंड को करना हैं इंप्रेस, तो दें ये गिफ्ट

फरवरी का रोमांटिक महीना है. लव बर्ड्स के लिए यह किसी फैस्टिव अवसर से कम नहीं जिस में अपनी बात अपने क्रश से पहली बार, झिझकते ही सही, कहने का अच्छा मौका मिलता है और अपने लविंग पार्टनर पर दिल खोल कर प्यार बरसाने व अपने रिश्ते को और अधिक गहराइयों में ले जाने का मौका होता है.

बहुत प्रेमी ऐसे होते हैं जो अपने लववन से प्यार तो करते हैं लेकिन उन्हें जताना नहीं जानते या जताने में विश्वास नहीं रखते. उन का मानना होता है कि प्यार जताने की चीज नहीं होती, प्यार वह एहसास होता है जो सामने वाले को अपनेआप महसूस हो जाता है.

अब सोचो, आप की प्रेमिका आप को प्यार से ‘आई लव यू’ कहे और आप पलट कर एक बार भी ‘आई लव यू टू’ इसलिए न कहें, ‘भई, हम तो सख्तई में रहते हैं, प्यार बहुत है पर ये 3 शब्द बोल के प्यार कम थोड़े हो जाएगा.’ तो बात मानिए ऐसा सोचना आप की गलतफहमी है. कहीं ऐसा न हो, प्यार ही हाथ से चला जाए. क्योंकि अगर आप अपनी प्रेमिका से अपना प्यार ऐक्सप्रैस ही नहीं कर पाए तो यकीनन आगे गलतफहमी ही पैदा होनी है.

सुननेकहने के लिए यह बढि़या है कि प्यार किया तो जताना क्या, पर भई, प्यार जता दोगे तो क्या कुछ बिगड़ जाएगा? हमारी मानो तो प्यार बढ़ेगा ही. इंसानों ने लाखों सालों के ह्यूमन डैवलपमैंट में कुछ फीलिंग्स और एक्सप्रैशन डैवलप किए हैं तो जाहिर है इन का यूज अपनी फीलिंग्स जताने के लिए ही किया जाता है.

अब सुनिए पौइंट की बात, प्यार दबा के नहीं, जता के ही बढ़ता है. रोमांटिक फरवरी में वैलेंटाइन का मौका है. आप का क्रश, आप का प्यार जो भी हो, आप उसे जब तक ठीक से अपने दिल की बात एक्सप्रैस नहीं करेंगे तब तक उस के दिल तक आप की फीलिंग्स सीधी नहीं पहुंच पाएंगी.

नया जमाना है तो नए जमाने के कुछ सलीके हैं. इसलिए हम आप को बताने जा रहे हैं अपने प्यार को सादगीभरे तरीके से एक्सप्रैस करने वाले ऐसे गिफ्ट्स जिस से आप अपनी प्यारभरी फीलिंग्स को आसानी से अपनी गर्लफ्रैंड को कन्वे कर दें.

हैंड रिटन लैटर विद चौकलेट : ओल्ड इस गोल्ड. यकीन मानिए तरीका पुराना है पर आज भी अपनी बातों को सब से सलीके से कहने और सरप्राइज देने के लिए एकदम कारगर. आप ने पूरे साल अपनी प्रेमिका को व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम या फेसबुक में बहुत मैसेज भेजे होंगे, लेकिन उन प्लेटफौर्म्स में न वह दम है न खास वजन. हैंड रिटन लैटर जो कमाल पहले करते थे, जैसा रोमांसिज्म पहले जगाते थे आज भी वे उतने ही कारगर हैं. यह नया एक्सपीरियंस देगा और एक्साइटेड भी होगा.

फोटो कोलाज : यह एक आइडल वैलेंटाइन डे गिफ्ट है. अपनी प्रेमिका के साथ बिताए गए यादगार पलों की तसवीरों का कोलाज चेहरे पर खुशी ला देता है. परिपक्व हो चुके प्रेमियों के लिए यह एक बेहतरीन विकल्प है.

स्पैशल प्लांट के सीड्स : अब यह हैरान कर सकता है कि सीड्स (बीज) गिफ्ट देने की भी कोई चीज है. देखिए, किसी रैस्टोरैंट में डिनर या लंच के लिए जाना बड़ी बात नहीं, या गर्लफ्रैंड को शौपिंग कर गिफ्ट देना भी बड़ी बात नहीं. लेकिन लव बौंडिंग समय के साथ बढ़े, इस के लिए ऐसी चीज अगर आप अपनी गर्लफ्रैंड को देते हैं जिस का वह खयाल रखे तो इस से रिश्ता मजबूत होगा.

पेट् (लिटल डौगी) : रिलेशनशिप केयरिंग करना सिखाता है. अगर आप की प्रेमिका या गर्लफ्रैंड पेट् पालना पसंद करती है तो उसे एक सुंदर सा पेट् गिफ्ट में दे सकते हैं. डौमी उस की पसंद का हो, यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

अपने हाथ से बनाई स्पैशल फूड डिश : कोविडकाल में बाहर निकलना सेफ नहीं. कहीं घूमना एक बेहतर औप्शन हो सकता था लेकिन ऐसी सिचुएशन में बाहर निकलना ठीक नहीं तो आज सब से अच्छा औप्शन यह है कि घर में इस दिन को पूरी तरह से एंजौय किया जाए. गर्लफ्रैंड के लिए स्पैशल डिश बनाई जा सकती है. प्यारभरी कोई रोमांटिक फिल्म देख कर एक अच्छे दिन का गिफ्ट दिया जा सकता है.

भरोसा : किसी भी रिश्ते में भरोसा सब से अहम होता है. आप तमाम गिफ्ट खरीद के दे सकते हैं, पर भरोसा पाना और भरोसा देना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है. भरोसा देना भी हर किसी के बस का नहीं. डरिए नहीं, मेरे भरोसे का मतलब यह भी नहीं कि जनमजनम तक साथ रहूंगा टाइप, ऐसा भरोसा भी बचकाना ही है.

ऐसा भरोसा हो जिस में आप की पार्टनर को आप के साथ कम्फर्ट महसूस हो, जब तक वह आप के साथ है तब तक आप उसे कमिटैड लगें, आप से कोई बात कहने में वह  ि झ  झके नहीं, चाहे आप की कमजोरियां ही क्यों न हों और किन्हीं अगरमगर से आशंकित न हो.

कौंजेनाइटल हार्ट डिसीज के इलाज में न करें देरी, नहीं तो बढ़ सकती है परेशानी

16 साल का दिनेश दिखने में एकदम नौर्मल बच्चा है. उस को बचपन से हार्ट की समस्या थी. वह ठीक से सांस नहीं ले पाता था. बारबार चैस्ट इन्फैक्शन होता था. काफी जांचों के बाद पता चला कि उसे कौंजेनाइटल हार्ट डिसीज है.

2 सर्जरी के बाद वह नौर्मल हो पाया. आज वह स्कूल में टौपर है और अच्छी जीवनशैली जी रहा है. वैसी ही बीमारी की शिकार थी नासिक की 8 साल की ऊषा, जो अचानक काली पड़ जाती थी. उस का विकास ठीक से नहीं हुआ था, जिस से वह सही तरह से चल नहीं पाती थी. सर्जरी के बाद अब वह भी नौर्मल हो चुकी है.

फोर्टिस अस्पताल, मुंबई की पेडियाट्रिक कार्डियोलौजिस्ट डा. स्वाति गरेकर इस बारे में कहती हैं कि यह समस्या बच्चों में आम है. दुनिया में एक हजार बच्चों में से करीब 8 बच्चों में यह बीमारी पाई जाती है. असल में गर्भ में हृदय और बड़ी रक्त वाहिनियों में विकास के दौरान हुए दोषों के चलते इन विकारों का जन्म होता है. समय रहते इस का इलाज करने पर बच्चा एक लंबा जीवन अच्छी तरह बिता सकता है.

हार्ट की यह समस्या गर्भ से शुरू होती है और 18 हफ्तों बाद जब अच्छी तरह से सोनोग्राफी की जाती है, तो उसे देखने पर इस का पता लगा लिया जाता है. फिर इसे मातापिता की सहमति से गर्भ में रहने दिया जाता है. जन्म के बाद फिर इस का इलाज किया जाता है. हालांकि, कई बार इसे पता लगाना मुश्किल भी होता है. सो, बच्चे में अगर जन्म के बाद कुछ बदलाव आए, तो तुरंत डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए. इस के कुछ लक्षण ये हैं :

  • बच्चे का ठीक से न बढ़ना.
  • मां का दूध पीने में मुश्किल होना.
  • वजन कम होना.
  • बारबार निमोनिया का शिकार होना.
  • बीचबीच में बच्चे का नीला पड़ जाना.

ऐसा होते ही तुरंत इकोकार्डियोग्राफी करवा लेनी चाहिए, ताकि बच्चे के हृदय की जांच हो सके. इस के आगे डा. स्वाति कहती हैं कि इस बीमारी के कुछ रिस्क फैक्टर हैं, जिन्हें भी जान लेना जरूरी है-

  • अगर आप पौल्यूशन युक्त जगह पर रहते हों.
  • आसपास ‘लेड’ का पाइप हो.
  • वंश में किसी को यह बीमारी हुई हो.
  • गर्भधारण के बाद पोषक खाने में कमी हो.
  • गर्भधारण के बाद बिना जाने कोई दवा ले ली हो.

एक दिन के बच्चे का भी कार्डियोवैस्कुलर सर्जन इलाज कर सकते हैं. इस का इलाज थोड़ा महंगा है, क्योंकि इसे करने वाले खास डाक्टर होते हैं. इस के इलाज में 2 से 3 लाख रुपए का खर्च आता है, किसी बच्चे को एक सर्जरी, तो किसी को 2 बार सर्जरी कर ठीक किया जाता है. इलाज के बाद मातापिता की काउंसलिंग की जाती है, ताकि वे बच्चे की सही देखभाल कर सकें.

Valentine’s Day 2024 : साथ साथ – उस दिन कौन सी अनहोनी हुई थी रुखसाना और रज्जाक के साथ ?

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तुम टूट न जाना : प्रेम को किस बात का डर था ?

‘हैलो… हैलो… प्रेम, मुझे तुम्हें कुछ बताना है.’

‘‘क्या हुआ वाणी? इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’ फोन में वाणी की घबराई हुई आवाज सुन कर प्रेम भी परेशान हो गया.

‘प्रेम, तुम फौरन ही मेरे पास चले आओ,’ वाणी एक सांस में बोल गई.

‘‘तुम अपनेआप को संभालो. मैं तुरंत तुम्हारे पास आ रहा हूं,’’ कह कर प्रेम ने फोन काट दिया. वह मोबाइल फोन जींस की जेब में डाल कर मोटरसाइकिल बाहर निकालने लगा.

वाणी और प्रेम के कमरे की दूरी मोटरसाइकिल से पार करने में महज

15 मिनट का समय लगता था. लेकिन जब कोई बहुत अपना परेशानी में अपने पास बुलाए तो यह दूरी मीलों लंबी लगने लगती है. मन में अच्छेबुरे विचार बिन बुलाए आने लगते हैं.

यही हाल प्रेम का था. वाणी केवल उस की क्लासमेट नहीं थी, बल्कि सबकुछ थी. बचपन की दोस्त से ले कर दिल की रानी तक.

दोनों एक ही शहर के रहने वाले थे और लखनऊ में एक ही कालेज से बीटैक कर रहे थे. होस्टल में न रह कर दोनों ने कमरे किराए पर लिए थे. लेकिन एक ही कालोनी में उन्हें कमरे किराए पर नहीं मिल पाए थे. उन की कोशिश जारी थी कि उन्हें एक ही घर में या एक ही कालोनी में किराए पर कमरे मिल जाएं, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा समय एकदूसरे के साथ गुजार सकें.

बहुत सी खूबियों के साथ वाणी में एक कमी थी. छोटीछोटी बातों को ले कर वह बहुत जल्दी परेशान हो जाती थी. उसे सामान्य हालत में आने में बहुत समय लग जाता था. आज भी उसने कुछ देखा या सुना होगा. अब वह परेशान हो रही होगी. प्रेम जानता था. वह यह भी जानता था कि ऐसे समय में वाणी को उस की बहुत जरूरत रहती है.

जैसे ही प्रेम वाणी के कमरे में घुसा, वाणी उस से लिपट कर सिसकियां भरने लगी. प्रेम बिना कुछ पूछे उस के सिर पर हाथ फेरने लगा. जब तक वह सामान्य नहीं हो जाती कुछ कह नहीं पाएगी.

वाणी की इस आदत को प्रेम बचपन से देखता आ रहा था. परेशान होने पर वह मां के आंचल से तब तक चिपकी रहती थी, जब तक उस के मन का डर न निकल जाता था. उस की यह आदत बदली नहीं थी. बस, मां का आंचल छूटा तो अब प्रेम की चौड़ी छाती में सहारा पाने लगी थी.

काफी देर बाद जब वाणी सामान्य हुई तो प्रेम उसे कुरसी पर बिठाते हुए बोला, ‘‘अब बताओ… क्या हुआ?’’

‘‘प्रेम, सामने वाले अपार्टमैंट्स में सुबह एक लव कपल ने कलाई की नस काट कर खुदकुशी कर ली. दोनों अलगअलग जाति के थे. अभी उन्होंने दुनिया देखनी ही शुरू की थी. लड़की

17 साल की थी और लड़का 18 साल का…’’ एक ही सांस में कहती चली गई वाणी. यह उस की आदत थी. जब वह अपनी बात कहने पर आती तो उस के वाक्यों में विराम नहीं होता था.

‘‘ओह,’’ प्रेम धीरे से बोला.

‘‘प्रेम, क्या हमें भी मरना होगा? तुम ब्राह्मण हो और मैं यादव. तुम्हारे यहां प्याजलहसुन भी नहीं खाया जाता. मेरे घर अंडामुरगा सब चलता है. क्या तुम्हारी मां मुझे कबूल करेंगी?’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो वाणी? मेरी मां तुम्हें कितना प्यार करती हैं. तुम जानती हो,’’ प्रेम ने उसे समझाने की भरपूर कोशिश की.

‘‘पड़ोसी के बच्चे को प्यार करना अलग बात होती?है, लेकिन दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाने में सोच बदल जाती?है,’’ वाणी ने कहा.

वाणी की बात अपनी जगह सही थी. जो रूढि़वादिता, जातिधर्म के प्रति आग्रह इनसानों के मन में समाया हुआ है, वह निकाल फेंकना इतना आसान नहीं है. वह भी मिडिल क्लास सोच वाले लोगों के लिए.

प्रेम की मां भी अपने पंडित होने का दंभ पाले हुए थीं. पिता जनेऊधारी थे. कथा भी बांचते थे. कुलमिला कर घर का माहौल धार्मिक था. लेकिन वाणी के घर से उन के संबंध काफी घरेलू थे. एकदूसरे के घर खानापीना भी रहता था. यही वजह थी कि वाणी और प्रेम करीब आते गए थे. इतने करीब कि वे अब एकदूसरे से अलग होने की भी नहीं सोच सकते थे.

प्रेम को खामोश देख कर वाणी ने दोबारा कहा, ‘‘क्या हमारे प्यार का अंत भी ऐसे ही होगा?’’

‘‘नहीं, हमारा प्यार इतना भी कमजोर नहीं है. हम नहीं मरेंगे,’’ प्रेम वाणी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला.

‘‘बताओ, तुम्हारी मां इस रिश्ते को कबूल करेंगी?’’ वाणी ने फिर से पूछा.

‘‘यह मैं नहीं कह सकता लेकिन

हम अपने प्यार को खोने नहीं देंगे,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘आजकल लव कपल बहुत ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं. आएदिन ऐसी खबरें छपती रहती हैं. मुझे भी डर लगता है,’’ वाणी अपना हाथ प्रेम के हाथ पर रखते हुए बोली. वह शांत नहीं थी.

‘‘तुम ने यह भी पढ़ा होगा कि उन की उम्र क्या थी. वे नाबालिग थे. वे प्यार के प्रति नासमझ होते हैं, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए. हर चीज का एक समय होता है. समय से पहले किया गया काम कामयाब कहां होता है. पौधा भी लगाओ तो बड़ा होने में समय लगता है. तब फल आता है. अगर फल भी कच्चा तोड़ लो तो बेकार हो जाता है. उस पर भी आजकल के बच्चे प्यार की गंभीरता को समझ नहीं पाते हैं. एकदूसरे के साथ डेटिंग, फिर शादी. पर वे शादी के बाद की जिम्मेदारियां नकार जाते हैं.’’

‘‘यानी हम लोग पहले पढ़ाई पूरी करें, फिर नौकरी, उस के बाद शादी.’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिन, क्या?’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

अब प्रेम को पूरी बात समझ में आई कि वाणी का डर उस की मां, समाज और जातपांत को ले कर था. थोड़ी देर चुप रह कर वह बोला, ‘‘कोई भी बदलाव विरोध के बिना वजूद में आया है भला? मां के मन में भी यह बदलाव आसानी से नहीं आएगा. मैं जानता हूं. लेकिन मां में एक अच्छी बात है. वे कोई भी सपना पहले से नहीं संजोतीं.

‘‘उन का मानना है कि समय बदलता रहता है. समय के मुताबिक हालात भी बदलते रहते हैं. पहले से देखे हुए सपने बिखर सकते हैं. नए सपने बन सकते हैं, इसलिए वे मेरे बारे में कोई सपना नहीं बुनतीं. बस वे यही चाहती हैं कि मैं पढ़लिख कर अच्छी नौकरी पाऊं और खुश रहूं.

‘‘वे मुझे पंडिताई से दूर रखना चाहती हैं. उन का मानना है कि क्यों हम धर्म के नाम पर पैसा कमाएं जबकि इनसानों को जोकुछ मिलता है, वह उन के कर्मों के मुताबिक ही मिलता है. क्या वे गलत हैं?’’

‘‘नहीं. विचार अच्छे हैं तुम्हारी मां के. लेकिन विचार अकसर हकीकत की खुरदरी जमीन पर ढह जाते हैं,’’ वाणी बोली.

‘‘शायद, तुम मेरे और अपने रिश्ते की बात को ले कर परेशान हो,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘हां, जब भी कोई लव कपल खुदकुशी करता है तो मैं डर जाती हूं. अंदर तक टूट जाती हूं.’’

‘‘लेकिन, तुम तो यह मानती हो कि असली प्यार कभी नहीं मरता है और हमारा प्यार तो विश्वास पर टिका है. इसे शादी के बंधन या जिस्मानी संबंधों तक नहीं रखा जा सकता है.’’

तब तक प्रेम चाय बनाने लगा था. वह चाय की चुसकियों में वाणी की उलझनों को पी जाना चाहता था. हमेशा ऐसा ही होता था. जब भी वाणी परेशान होती, वह चाय खुद बनाता था. चाय को वह धीरेधीरे तब तक पीता रहता था, जब तक वाणी मुसकरा कर यह न कह दे, ‘‘चाय को शरबत बनाओगे क्या?’’

जब पे्रम को यकीन हो जाता कि वाणी नौर्मल?है, तब चाय को एक घूंट में खत्म कर जाता.

‘‘मैं अपनी थ्योरी पर आज भी कायम हूं. मैं ने तुम्हें प्यार किया है. करती रहूंगी. चाहे हमारी शादी हो पाए या नहीं. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या…?’’ चाय का कप वाणी को थमाते हुए प्रेम ने पूछा.

‘‘लड़की हूं न, इसलिए अकसर शादी, घरपरिवार के सपने देख जाती हूं.’’

‘‘मैं भी देखता हूं… सब को हक है सपने देखने का. पर मुझे पक्का यकीन है कि ईमानदारी से देखे गए सपने भी सच हो जाते हैं.’’

‘‘क्या हमारे भी सपने सच होंगे…?’’ वाणी चाय का घूंट भरते हुए बोली.

‘‘हो भी सकते हैं. मैं मां को समझाने को कोशिश करूंगा. हो सकता है, मां हम लोगों का प्यार देख कर मान जाएं.’’

‘‘न मानीं तो…?’’ यह पूछते हुए वाणी ने अपनी नजरें प्रेम के चेहरे पर गढ़ा दीं.

‘‘अगर वे न मानीं तो हम अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे. हमारे प्यार को रिश्ते का नाम नहीं दिया जा सकता तो मिटाया भी नहीं जा सकता. हम टूटेंगे नहीं.

‘‘तुम वादा करो कि अपनी जान खोने जैसा कोई वाहियात कदम नहीं उठाओगी,’’ कहते हुए प्रेम ने अपना दाहिना हाथ वाणी की ओर बढ़ा दिया.

‘‘हम टूटेंगे नहीं, जान भी नहीं देंगे. इंतजार करेंगे समय का, एकदूसरे का,’’ वाणी प्रेम का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर भींचती चली गई, कभी साथ न छोड़ने के लिए.

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