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पत्नी के नाम से मकान खरीदने से क्या है फायदे, आप भी जानिए

नैशनल हाउसिंग बैंक की सालाना रिपोर्ट में एक सुखद और चौका देने वाली बात यह कही गई है कि लोग अब तेजी से होम लोन ले रहे हैं जो कि अर्थव्यवस्था के लिहाज से उल्लेखनीय बात है. रिपोर्ट के मुताबिक 50 लाख से ज्यादा कीमत वाले होम लोन 120 फीसदी तक बढ़े हैं. लोग किस तेजी से अपना घर बनाने के लिए कर्ज ले रहे हैं यह बात इस तथ्य से भी उजागर होती है. पिछले एक साल में बैंकों के कुल लोन में 65 फीसदी हिस्सा 50 लाख से ज्यादा के लोन का रहा.

साफ दिख रहा है कि मिडिल क्लास के लोगों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा मकान खरीदने में लग रहा है. यह जरूरत भी है और निवेश भी है जिस के चलते कोविड के बाद 57 हजार से भी ज्यादा के हाउसिंग प्रोजैक्ट लौंच हुए हैं . दिलचस्प बात यह है कि प्रौपर्टी की कीमतों में भी बढोतरी हुई है जो ज्यादा असर लोगों की जेब पर नहीं डाल रही है. जाहिर है होम लोन का सहूलियत से मिल जाना इस की बड़ी वजह है.

होम लोन अब खुली किताब की तरह हो गए हैं जिन को बारीकी से देखें तो कुछ फायदे की गुंजाइश भी नजर आती है बशर्ते यह पत्नी के नाम पर लिया जाए तो. पत्नी के नाम पर लिया जाने वाला होम लोन आपसी प्यार और बौंडिंग बढ़ाने के अलावा कुछ पैसे भी बचाता है.

ये हैं फायदे

– कई बैंक पत्नी के नाम पर होम लोन लेने पर ब्याज में छूट देते हैं जो देखने में बहुत मामूली लगती है लेकिन पूरी किश्तें चुकता होने तक यह राशि काफी बढ़ जाती है. प्रचलित ब्याज दर में 0.05 फीसदी की छूट बैंक देते हैं.

– पत्नी के नाम होम लोन लेने से एक बड़ा फायदा टैक्स में छूट का भी मिलता है. अगर पति पत्नी दोनों आवेदन देते हैं तो सैक्शन 80 सी के तहत 2 लाख रुपए और मूलधन पर 5 लाख रुपए का फायदा वे उठा सकते हैं.

– पत्नी को सह आवेदक बनाने पर यानी जौइंट होम लेने का एक और फायदा ईएमआई का है जिस का भार किसी एक पर नहीं पड़ता . जौइंट होम लोन में पति पत्नी दोनों के बैंक अकाउंट लिंक होते हैं. इस में यह ध्यान रखना जरूरी है कि दोनों में से किसी एक के अकाउंट में ईएमआई का पैसा होना चाहिए. नहीं तो सिविल स्कोर पर फर्क पड़ता है.

– पत्नी के नाम होम लेने पर रजिस्ट्री शुल्क में छूट मिलती है जो अलगअलग राज्यों में अलगअलग है. आमतौर पर यह एक फीसदी है यानी रजिस्ट्री फीस अगर 8 लाख रुपए है तो 8 हजार रुपए का लाभ होता है. दिल्ली में यह छूट 2 फीसदी है.

– अगर पत्नी का सिविल स्कोर ठीकठाक है और पति का कम है तो लोन मिलने में दिक्कत नहीं आती. आप के लोन का प्रस्ताव खारिज होने की आशंका कम हो जाती है.

– अगर पत्नी भी कामकाजी है तो ईएमआई चुकाना सहूलियत वाला काम हो जाता है.

पति पत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास पर टिका होता है. पत्नी के नाम मकान खरीदने से आपसी रिश्ते और भी मजबूत होते हैं. इस से किसी तीसरे से कानूनी विवाद होने की संभावना भी कम हो जाती है और पत्नी का आत्मविश्वास भी बढ़ता है. यह ठीक है कि ब्याज आयु टैक्स में छूट शुरू में बहुत बड़ी नहीं दिखती लेकिन आखिरी मासिक किश्त तक हिसाब आप लगाएंगे तो जो पैसा बचता है वह 2 से 5 लाख रुपए तक का होता है.

मेरी पड़ोसन कभी भी बिना बताएं घर में आ जाती हैं, बताएं मैं उन्हें घर में आने से कैसे रोकूं ?

सवाल

हमारे पड़ोस में एक आंटी रहती हैं. वे जब चाहे हमारे घर में चली आती हैं. हमें उन का इस तरह बेमतलब और बेवक्त आना पसंद नहीं है. पर हम से उन्हें कुछ कहते नहीं बनता. हम उन्हें कुछ सालों से जानते हैं, इसलिए कुछ कह नहीं सकते पर वे खुद भी तो समझ सकती हैं कि उन के कारण हमें परेशानी होती है. वे हमें देख कर टीकाटिप्पणी और टोकाटाकी करने लगती हैं जो हमें अच्छा नहीं लगता. उन्हें आने से कैसे रोकें, कुछ बताएं.

 जवाब

देखिए, आजकल वैसे भी समय ऐसा नहीं है कि आप आपसी रिश्ते या दोस्ती देखें. इस समय आप के लिए सब से ज्यादा जरूरी होना चाहिए हर बाहरी व्यक्ति से दूरी बनाए रखना. आप उन से यदि यह नहीं कह सकते कि आप को उन का अपने घर आनाजाना पसंद नहीं है तो कम से कम आप उन से कह सकते हैं कि देश में चल रही महामारी को देखते हुए उन्हें अपनी और आप सभी की सेहत का ध्यान रखते हुए दूरी मैंटेन करनी चाहिए और अपने घर में रहना चाहिए.

वे आप के घर आती हैं तो किसी व्यक्ति से मिलने ही आती होंगी, जैसे आप की मम्मी या कोई और. वे जब आप के घर आएं तो कह दीजिए कि आप की मम्मी फ्री नहीं हैं और कुछ काम कर रही हैं, सो, उन से बैठ कर बात नहीं कर सकतीं. शायद इस से वे वापस चली जाएं. आप एकदो दिन एकसमान बहाना बनाएंगे तो हो सकता है वे आप का इशारा समझ जाएं और खुद ही बिना कहे घर आना कम कर दें या बंद कर दें.

चुनाव लड़ने का आनंद : क्यों जबरदस्ती मुस्कुराने लगा रोहरानंद ?

रोहरानंद भी लोकतंत्र में हिस्सेदारी कर रहा है. अर्थात् चुनाव में एक प्रत्याशी बतौर  मुश्के तान कर खड़ा हो गया है. शहर में अधिवक्ता संघ की सरगर्मी थी . दुर्भाग्य से रोहरानंद एडव्होकेट भी है .सोचा,संबंधों का रिनिवल हो जाएगा. लोग जो सक्रिय होते हैं उन्हें ही स्मरण रखते हैं, बाकी को यह बेदर्द जमाना भूल जाता है.

मैं भी एक ऐसा ही इंसान हूं , जिसे लोग नोटिस में ही नहीं लेते .चुनाव एक ऐसा मेला है, जिसमें शिरकत करने वाला रातों-रात चर्चा में आ जाता है.

यही अनमोल विचार,सोचते, गुनते  रोहरानंद ने नामांकन भरने का साहस पूर्ण निर्णय लिया और इस निर्णय को बरकरार रखने में बड़ी हिम्मत जुटाई.

इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण है, आपका साथी रोहरानंद दरअसल एकांतजीवी है. समस्या यह है कि  चुनाव लड़ने के खातिर आदमी में भदेसपन के साथ चंचल होने का गुण निरापद है.

तो, रोहरानंद ने साहस जुटाया और नामांकन पत्र खरीदा और यह सोच कर कि मेने नामांकन पत्र खरीद लिया है, भयभीत होने लगा .सोचा, मैं भला क्या चुनाव जीतूगां. बेकार है, छोड़ो यह धंधा  . फिर स्मरण आया बच्चू! भूल गया, तेरा उद्देश्य क्या है ? चुनाव तो तू क्या जीतेगा, तेरा उद्देश्य तो चुनावी वैतरणी में स्वयं को नामचीन बनाना है.

पाठकों ! दरअसल,रोहरानंद को यह प्रतीत होता है कि चुनाव लड़ने से आदमी को खुशी मिलती है .लोग चर्चा करते हैं… अरे! सुना, फलां भी चुनाव लड़ रहा है ? कोई कहता है- अच्छा !!

कोई कहता है- यार ! अध्यक्ष पद के कितने दावेदार हैं ?

प्रतिउत्तर में आठ-दस नाम गिनाए जाते हैं. शहर में आदमी चर्चा का सबब  बन जाता है. रोहरानंद को लगता है, क्या यह कम उपलब्धि है ?

पांच सौ रूपये में, सप्ताह भर चर्चा में रहना .अखबारों में छाये रहना, कम बड़ी विजय है ? सो, रोहरानंद ने डर को दूर भगाया और नामांकन पत्र भर ही दिया. सच, इसके साथ ही हृदय में ऐसे ऐसे विचार उठने लगे कि मत पूछिए.

एक मन कहता- रोहरानंद ! अगरचे तू जीत गया तो ?

मन में बैठा समझदार अंश कहता- रोहरानंद ! तू भला कैसे जीतेगा ? तू हारेगा यह तय है.

मन कहता- कम से कम चर्चा में तो रहेगा ? चल…फिर हृदय में भाव उठता- अगर नामांकन रद्द हो गया तो ? आखिर कुछ के नामांकन रद्द भी होते हैं . हो सकता है रोहरानंद तुम्हारा ही नामांकन रद्द हो जाए.

आंखों के सामने भय आकर खड़ा हो गया. मैंने अपने परम मित्र रामानंद के समक्ष अपनी चिंता को व्यक्त किया.

उन्होंने कहा- रोहरानंद ऐसा नहीं होगा ?

मैं- भला क्यों नहीं होगा ? हर चुनाव में कुछ नामांकन तो रद्द होते ही हैं.

रामानंद- होता होगा मगर अधिवक्ता का नामांकन भला कैसे रद्द होगा ? दूसरे चुनाव में लोग अधिवक्ताओं से नामांकन भरवाते हैं यह सोच कर कि अधिवक्ता ने भरा है ,अब अगर अधिवक्ताओं का नामांकन रद्द हो गया तो यह एक बड़ी खबर होगी.

रोहरानंद गंभीर हो गया . उसका चेहरा और भी सुर्ख हो चला था. वह मन ही मन सोच रहा था- अगर उसका नामांकन रद्द हो गया तो ? उसे उसकी संभावना सौ फीसदी लग रही थी .गला सूख रहा  था.

रामानंद ने अधिकारपूर्वक कहा- सच ! यह एक बड़ी खबर होगी . और यह छपना चाहिए कि जब वकील होकर अपना नामांकन नहीं भर सकते तो दूसरों का केस क्या लडेंगे.

रोहरानंद जबरदस्ती मुस्कुराने लगा .मगर हृदय की गति तेज हो गई थी. कहा- हां ! इस पर विशेष बुलेटिन भी बनाया जा सकता है .लोकल न्यूज़ ऐसा कर सकते हैं . वकील के फुटेज दिखाए जाएंगे फिर व्हाईस होगी- यही है वह अधिवक्ता जिसने बडे जोर शोर से  नामांकन भरा था .दोस्तों ! इनका नामांकन त्रुटि पाए जाने पर रद्द हो गया… यह इनकी  योग्यता है….

रामानंद हंसने लगा .रोहरानंद ने कहा- मित्र ! हो सकता है जो वकील कभी एक रूपया किसी पत्रकार को नहीं देता ऐसी स्थिति में देने को मजबूर हो जाये. रामानंद पुनः हंसने लगा.

रोहरानंद- और जैसे ही वकील साहब कुछ रूपये पत्रकार को देंगे न्यूज़ रुक जाएगी.

रामानंद जो कि स्वयं भी वरिष्ठ पत्रकार है,मुंह में जीभ चुभलाने लगे थे .

रोहरानंद ने कहा- मित्र ! मानो पैसे लेने के बाद भी न्यूज़ प्रसारित हो गई तो ? पैसा भी गया और इज्जत भी.

खैर ! राम-राम कर वह दिन भी व्यतीत हुआ जब क्लियर हो गया कि रोहरानंद का नामांकन रद्द नहीं हुआ है. जान में जान आई .

मगर जैसा कि होता है एक समस्या गई दूसरी मुंह बाएं आकर खड़ी हो गई.

एक मित्र का फोन आया- भाई साहब ! आप भी चुनाव लड़ रहे हैं ?

रोहरानंद- हां, दुर्भाग्य से मेरा नामांकन रद्द नहीं हुआ, सो मैदान में हूं.

मित्र ने कहा- मैं आपकी मदद करूंगा.

रोहरानंद- हां, मैं आपकी मदद का इंतजार ही कर रहा हूं .क्या है मुझे लगता है मैं चुनाव बुरी तरह हार रहा हूं. मित्र ने आश्वस्त भाव से कहा- क्यों डरते हैं, में हू न. 25 वोट तो मैं दिलाऊंगा .

रोहरानंद के उदास चेहरे पर खुशी  विस्तारित हुई- ऐसा है तो भला मैं कहां हारने वाला . फिर तो मैं आसानी से जीत जाऊंगा.

मित्रों! रोहरानंद भारी असमंजस में दिन व्यतीत कर रहा है. एक मन कहता है- हारेगा .एक मन कहता जीतेगा  एक मन कहता अरे हार भी गया तो क्या ? क्योंकि तू कौन सा चुनाव जीत सका है .कौन सा चुनाव जीत सकता है ? तू तो बस खडा है क्या यही कम है… चुनाव अर्थात लोकतंत्र और चुनाव डेमोक्रेसी में भागीदारी का अपना आनंद है जिसमें भागीदारी करना ही तेरे लिए गर्व का विषय होना चाहिए. सो मित्रों ! आपका अदद दोस्त, यह रोहरानंद हारने के लिए एक चुनाव में शिरकत कर रहा है.

देवकन्या : श्यामलाल कहां से आया था ?

राधिका मैडम ने उबाकई ली, फिर इधरउधर नजर दौड़ाई. बस में आज उन के रास्ते का स्टाफ कम था. कहीं छुट्टी तो नहीं है? कोई नेता अचानक मर गया होगा. उन्होंने पिता को फोन किया. कोई नेता नहीं मरा था, छुट्टी भी नहीं थी. बस चलने लगी. उन्होंने बैग से ‘हनुमान चालीसा’ निकाली और पढ़ने लगीं. थोड़ी देर में बस स्टैंड आ गया. वे धीरेधीरे नीचे उतरीं. घड़ी देखी. 8 बजे थे. आधा घंटा देर हो गई थी. वे आराम से चलते हुए स्कूल पहुंचीं. 3-4 छात्र आए थे. एक नौजवान भी खड़ा था.

राधिका मैडम ताला खोल कर अंदर गईं और कुरसी पर पसर गईं. उस नौजवान ने कमरे में आ कर नमस्ते कहते हुए एक कागज उन की तरफ बढ़ा दिया. राधिका ने देखा कि वह जौइनिंग लैटर था. नाम पढ़ा. श्यामलाल आदिवासी. उन्होंने मुंह बनाया और श्यामलाल को कुरसी पर बैठने को कहा. फिर पूछा, ‘‘क्या आईपीएससी से चयनित हो? कितने नंबर आए थे?’’ जवाब का इंतजार न करते हुए वे फिर बोलीं, ‘‘इस गांव में सभी आदिवासी हैं. बच्चों को पढ़ाने नहीं भेजते. मैं तो थक गई. अब तुम कोशिश करो. यहां गांव में वनवासी संगठन का एकल स्कूल चलता है. बहुत से बच्चे वहीं पढ़ने जाते हैं.’’

श्यामलाल बोल पड़ा ‘‘हम पढ़ाएंगे, तो हमारे यहां भी आने लगेंगे.’’ यह सुन कर राधिका मैडम का पारा चढ़ गया. उन्हें लगा कि यह नयानया मास्टर बना भील उन्हें निकम्मा कह रहा है. उन्होंने दबाव बनाने के लिए कहा, ‘‘तुम मेरे पति को तो जानते ही होगे. सुगम भारती नाम है उन का. धर्म प्रसार का काम करते हैं. राष्ट्रवादी सोच है. बहुत दबदबा है उन का…’’ अचानक राधिका मैडम को लगा कि श्यामलाल का ध्यान उन की देह पर है. उन्होंने ब्लाउज से बाहर झांकती ब्रा की लाल स्ट्रिप को ब्लाउज में दबाने की कोशिश की. श्यामलाल के चेहरे पर उलझन थी. वह उठ गया और पढ़ने आए 4-5 छात्रों से बातें करने लगा.

मिड डे मील बन कर आ गया. दाल में पानी ही पानी था. रोटियां कच्ची व कम थीं. राधिका मैडम ने 55 छात्रों की हाजिरी भरी थी. श्यामलाल कुछ कहना चाहता था कि राधिका बोलीं, ‘‘मैं तुम्हारा जौइनिंग लैटर नोडल सैंटर में देने जा रही हूं. यह लो स्कूल की चाबी.’’ उन के जाने के बाद श्यामलाल ने गांव का चक्कर लगाया. घरघर जा कर बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने को कहा. मांबाप के मुंह से राधिका मैडम की बुराई सुन कर उसे लगा कि बहुत मेहनत कर के ही स्कूल जमाया जा सकता है. दूसरे दिन राधिका मैडम रोजाना की तुलना में और देर से स्कूल पहुंचीं. साढ़े 8 हो गए थे. स्कूल खुला था. तकरीबन 30 बच्चे क्लास में बैठे थे. श्यामलाल कविताएं बुलवा रहा था.

राधिका मैडम दूसरे कमरे में जा कर ‘धम्म’ से कुरसी पर बैठ गईं. उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था. श्यामलाल को बुला कर वे बोलीं, ‘‘तुम यह क्या कर रहे हो? क्यों पढ़ा रहे हो? इन सभी के लिए मिड डे मील बनाना होगा. काफी खर्चा होगा बेकार में.’’ श्यामलाल ने कहा, ‘‘मैडम, सरकार दे रही है न गेहूंचावल पकाने का खर्च.’’

राधिका का गुस्सा बढ़ गया. उन्होंने साड़ी के अंदर हाथ डाला और ब्लाउज के बटन से खेलने लगीं. श्यामलाल का ध्यान भी उसी तरफ चला गया. हलके सफेद रंग के ब्लाउज में से काले रंग की ब्रा दिख रही थी. राधिका मैडम के बड़ेबड़े उभार… श्यामलाल के होंठों पर जीभ घूम गई. राधिका ने पल्लू पीठ पीछे से घुमा कर छाती को ढक दिया. श्यामलाल घबरा कर दूसरे कमरे में चला गया और बच्चों को पढ़ाने लगा. अगले दिन ही श्यामलाल की मेहनत रंग लाने लगी. 50 छात्र पढ़ने आए थे. कुछ ने नई कमीज पहनी थी, कुछ के पास नई स्लेट थी.

राधिका मैडम आज और देर से आईं. मिड डे मील की सब्जीमसाले ले कर पति के साथ मोटरसाइकिल पर आई थीं. श्यामलाल का परिचय हुआ. बातचीत का सिलसिला चला. सुगम भारती बोले, ‘‘तुम ने अच्छा किया. स्कूल जमा दिया. अब इन बच्चों को श्लोक, मंत्र, सरस्वती की प्रार्थना, राष्ट्रगीत सुनाओ. पर ध्यान रखना भाई, गांव में चल रहे अपने एकल स्कूल पर असर न हो. वे भी हमारी संस्कृति का जागरण कर रहे हैं, वरना ईसाई मशीनरी…’’ श्यामलाल ने टोक दिया, ‘‘ईसाई और हिंदू की खींचतान में हमारी आदिवासी संस्कृति उलझ गई है, खत्म होने लगा है हमारा आदि धर्म…’’ सुगम भारती ने टोका, ‘‘भाई श्यामलाल, हमतुम अलग नहीं हैं. हमारे पूर्वज एक ही हैं.’’

बहस हद पर थी. श्यामलाल बोला, ‘‘आर्य हैं आप. हम मूल निवासी, राक्षस, असुर, दैत्य…’’ सुगम भारती ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम ईसाई तो नहीं हो? कौन सी किताबें, पत्रिकाएं पढ़ते हो जो ऐसी गैरों सी बातें करते हो? अभी तो मुझे कुछ काम है, फिर कभी बात करेंगे,’’ कह कर वे चल दिए. श्यामलाल क्लास में गया. वहां वह पढ़ाता रहा. वक्त कहां निकल गया, पता ही नहीं चला. राधिका मैडम समय से ही घर के लिए निकल गईं. श्यामलाल बस में बैठ गया. उस का विचार मंथन चल रहा था, ‘डाक्टर अंबेडकर ने संविधान का प्रारूप बनाया, इसीलिए देश में समानता की धारा चल रही है, वरना ये लोग तो ‘मनुस्मृति’ ही लागू करते. हमारी अशिक्षा, पिछड़ेपन, गरीबी की वजह पूर्व जन्म के कर्म बताते हैं. हमारा अन्न नहीं लेते, पर रुपया लपक लेते हैं. हम पर अपने कर्मकांड लाद रहे हैं. हम इन के यजमान हैं. गौतम बुद्ध ने सही कहा है कि पहले अनुभव, फिर विश्वास, आस्था व श्रद्धा. जानो, न कि मानो.

‘ईश्वर है तो पहले पता तो लगे कि कहां है? स्वर्गनरक कहां है? ये कहते हैं कि पहले मानो, फिर जानो. पहले आस्था, श्रद्धा, फिर अनुभव. क्यों भाई, क्यों? ईसाई मशीनरी ने शिक्षा, स्वास्थ्य के माध्यम से लोगों का दिल जीता, धर्म बदला. तभी तो ये लोग हमें पढ़ाने आए हैं. एकल स्कूल चला रहे हैं, वरना इन्हें कहां फुरसत थी हमारे शोषण से.’ श्यामलाल घर पहुंच गया. खाट पर डाक पड़ी थी. डाकिया महीने में 1-2 बार ही आता था. वह सारी डाक एकसाथ दे जाता था. अगले दिन श्यामलाल स्कूल पहुंचा. स्कूल खुला देख कर वह हैरान हुआ. राधिका मैडम स्कूल में आ गई थीं. श्यामलाल ने नमस्ते कहा और वह क्लास में चला गया.

राधिका का देर से स्कूल आना, जल्दी चले जाना, कभीकभी नहीं आ कर दूसरे दिन दस्तखत करना चलता रहा. श्यामलाल पढ़ाता रहता, अपना काम करता रहता. कभीकभी दोनों एकसाथ बैठते तो बातें चलतीं, मजाक होता, उंगलियों का छूना भी हो जाता. एक दिन श्यामलाल मोटरसाइकिल ले कर स्कूल आया. उसे शहर जाना था, पर छुट्टी के बाद राधिका मैडम उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गईं. श्यामलाल को मजबूरन उन के घर जाना पड़ा. सुगम भारती घर पर ही थे. बातचीत चली, तो बहस में बदल गई. ‘‘हमारे आध्यात्मिक मूल्य एक हैं. यह भूभाग पवित्र है, इसीलिए हम एक राष्ट्र हैं. हमारा धर्म हमें आपस में जोड़ता है. हमें अपनी भारत माता की तनमनधन से सेवा करनी चाहिए,’’ सुगम भारती लगातार बोलते रहे. श्यामलाल बहस नहीं करना चाहता था. बहस कटुता बढ़ाती है. मतभेद को मनभेद में बदल देती है, फिर भी जब हद हो गई, तो वह बोल ही गया, ‘‘आप के शास्त्र में यह क्यों लिखा है कि पूजिए विप्र शील गुण हीना, शुद्र न गुनगान, ज्ञान प्रवीणा?’’

इतने में सुगम भारती के दफ्तर का चपरासी रजिस्टर ले कर आ गया. उन्होंने 15-20 दिनों के दस्तखत एकसाथ किए. श्यामलाल की आंखों में उठे सवाल को जान कर वे बोले, ‘‘क्या करूं? राष्ट्र सेवा में लगा रहता हूं, दफ्तर जाने का वक्त ही नहीं मिलता. देश पहले है, दफ्तर तो चलता रहेगा.’’ राधिका चाय ले कर आ गईं. बहस रुक गई. घरपरिवार की बातें चल पड़ीं. एक दिन स्कूल में हाथ की रेखाएं देखते हुए राधिका ने अपना ज्योतिष ज्ञान बताया, ‘‘तुम्हारे अनेक लड़कियों से संबंध रहेंगे.’’ श्यामलाल मुसकरा दिया. राधिका ने कहा, ‘‘भारतीजी बाहर गए हैं…’’ और वे भी मुसकरा दीं.

अतीत के झरोखे : क्या दो प्रेमियों की हो पाई शादी ?

राधा और अविनाश न्यूयौर्क एअरपोर्ट से ज्योंही बाहर निकले आकाश उन से लिपट गया. इतने दिनों के बाद बेटे को देख कर दोनों की आंखें भर आईं. तभी उन के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी. आकाश ने उन का सामान डिक्की में रखा और उन दोनों को बैठने को कह आगे जा बैठा. जूही ने पीछे मुड़ कर अपनी मोहिनी मुसकान बिखेरते हुए उन दोनों का आंखों से ही अभिवादन किया तो राधा को ऐसा लगा मानों कोई परी धरती पर उतर आई हो. राधा ने मन ही मन बेटे के पसंद की दाद दी. करीब घंटे भर की ड्राइव के बाद गाड़ी एक अपार्टमैंट के सामने रुकी. उतरते ही जूही का उन दोनों का पैर छू कर प्रणाम करना राधा का मन मोह गया. बड़े प्यार से उन्होंने जूही को गले लगा लिया. आकाश का 1 कमरे का घर अच्छा ही लगा उन्हें. जूही और आकाश दोनों मिल कर सामान अंदर ले आए. जब वे दोनों फ्रैश हो गए, तो जूही चाय बना लाई. चाय पीते हुए राधा जूही को निहारती रहीं. लंच कर अविनाश और राधा सो गए.

‘‘उठिए न मम्मी… आप के उठने का इंतजार कर के जूही चली गई.’’

उठने की इच्छा न होते हुए भी राधा को उठना पड़ा. फिर बड़े दुलार से बेटे का माथा सहलाती हुई बोलीं, ‘‘अरे, चिंता क्यों कर रहा है? मुझे और तेरे पापा को तेरी जूही बहुत पसंद है… सब कुछ अपने जैसा ही तो है उस में… अमेरिका में भी तुम ने अपनी बिरादरी की लड़की ढूंढ़ी यही क्या कम है हमारे लिए? अब जल्दी से उस के परिवार वालों से मिलवा दे. जब यहीं पर शादी करनी है, तो फिर इंतजार क्यों?’’

राधा की बातों से आकाश उत्साहित हो उठा. बोला, ‘‘उस के परिवार में केवल उस के पापा हैं. अपनी मां को तो वह बचपन में ही खो चुकी है. उस के पापा ने फिर शादी नहीं की. जूही को उस की नानी ने ही पाला है. उस के पापा चाहते हैं कि शादी के बाद हम उन्हीं के साथ रहें. लेकिन मैं ने इनकार कर दिया. जिस घर में हम शिफ्ट करने वाले हैं वह उसी एरिया में है. कल चल कर देख लीजिएगा.’’

बेटे की बातों से राधा भावविभोर हो रही थीं. उन के अमेरिका आने से पहले आकाश की पसंद को ले कर सभी ने उन्हें कितना भड़काया था. आकाश तो वैसा ही है… कहीं कोई बदलाव नहीं है उस में… दूसरों की खुशी देख कर लोग जलते भी तो हैं. ऐसे भी आकाश स्कूल से ले कर इंजीनियरिंग करने तक टौप ही तो करता रहा था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आ रहा था तो भी लोगों को कितनी जलन हुई थी. शादी के बाद जूही को ले कर जब इंडिया जाऊंगी तो उस के रूपरंग को देख कर सभी ईर्ष्या करेंगे, ऐसा सोचते ही राधा मुसकरा उठीं.

‘‘क्या सोच कर मुसकरा रही हैं मां?’’ आकाश के पूछने पर राधा वर्तमान में लौट आईं.

‘‘कुछ भी तो नहीं रे… सब कुछ ठीक हो जाए तो सियाटल से अनीता और आदित्य भी आ जाएंगे… सारा इंतजाम कर के मैं आई ही हूं,’’ राधा बोलीं.

आकाश ने फोन पर ही जूही को बता दिया कि वह मम्मी को बहुत पसंद है. दूसरे दिन सवेरे ही जूही पहुंच गई. देखते ही राधा ने उसे गले लगा लिया. फिर उस के घर के बारे में पूछने लगीं.

जूही भी उन से कुछ खुल गई. उस ने उन से पूछा, ‘‘आकाश की तरह क्या मैं भी आप दोनों को मम्मीपापा कह सकती हूं?’’

राधा खुशी से बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? अब आकाश से तुम अलग थोड़े ही हो,’’ कुछ ही दिनों की बात है जब तुम भी पूरी तरह से हमारी हो जाओगी.’’

राधा की बात पर जूही ने शरमा कर सिर झुका लिया. ‘‘अच्छा तो मम्मीजी आप लोग पापा और नानी से मिलने कब चल रहे हैं? वे दोनों आप से मिलने के लिए उत्सुक हैं.’’ फिर अगले दिन का करार ले कर ही जूही मानी. दूसरे दिन सुबह से ही राधा को जूही के घर जाने के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साहित देख कर अविनाश उन से छेड़खानी कर रहे थे. इसी बीच जूही गाड़ी ले कर आ गई. तैयार हो कर राधा और अविनाश कमरे से बाहर निकले. ‘एक युवा बेटे की मां भी इस उम्र में इतनी कमनीय हो सकती है?’ सोच जूही मुसकरा उठी. रास्ते में सड़क के दोनों ओर की प्राकृतिक सुंदरता देख कर राधा मुग्ध हो उठीं कि सच में अमेरिका परियों और फूलों का देश है.

1 घंटे के बाद फूलों से सजे एक बड़े से घर के सामने गाड़ी रुकी तो उतरते ही एक बड़ी उम्र की संभ्रांत महिला ने सौम्य मुसकान के साथ उन का स्वागत किया, जो जूही की नानी थीं. लिविंगरूम में जूही के पापा अविनाश के पास आ कर बैठ गए. राधा की ओर मुड़े ही थे कि वे चौंक  गए और उन के अभिवादन में उठे हाथ हवा में झूल गए. उधर राधा के जुड़े हाथ भी उन की गोद में गिर गए, जिसे अविनाश के सिवा और कोई न देख सका. राधा के चेहरे पर स्तब्धता थी. सारी खुशियां काफूर हो गई थीं. उन की महीनों की चहचहाट पर अचानक चुप्पी का कुहरा छा गया था. वे असहज हो कर सिर को इधरउधर घुमाते हुए अपनी हथेलियों को मसल रही थीं.

जूही की नानी ही बोले जा रही थीं. माहौल गरम हो गया था जिसे सहज बनाने का अविनाश अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे थे. लंच के समय भी अनमनी सी राधा को देख कर आकाश और जूही हैरान थे कि अचानक इन्हें क्या हो गया? आखिर जूही की नानी ने राधा को टोक ही दिया, ‘‘क्या बात है राधाजी, क्या मैं और आशीष आप को पसंद नहीं आए? हमें देखते ही चुप हो गईं… छोडि़ए, आप को हमारी जूही तो पसंद है न?’’

यह सुनते ही राधा सकुचा तो गईं, लेकिन बड़े ही रूखे शब्दों में कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है… अचानक सिरदर्द होने लगा.’’

‘‘कुछ भी कहिए, लेकिन अमेरिका में जन्म लेने के बावजूद जूही की परवरिश बेमिसाल है. इस का सारा श्रेय आप लोगों को जाता है. जूही हम दोनों को बहुत पसंद है… शायद इंडिया में भी हम आकाश के लिए ऐसी लड़की नहीं ढूंढ़ पाते… क्यों राधा ठीक कहा न मैं ने?’’

राधा ने उन की बातें अनसुनी कर दीं. अविनाश की बातों से आशीष थोड़ा मुखर हो उठे. बोले, ‘‘तो अब बताइए कि कैसे आगे का कार्यक्रम रखा जाए?’’

जवाब में राधा ने कहा, ‘‘हम आप को सूचित कर देंगे… अब हम चलना चाहेंगे. आकाश, उठो और टैक्सी बुलाओ… मुझे मानहट्टन होते हुए जाना है… क्यों न हम नीति से मिलते चलें. मामा मामी के आने से वह भी बड़ी उत्साहित है. इन सब बातों के लिए जूही को तकलीफ देना ठीक नहीं है.’’

राधा की बातों से सभी चौंक गए.  ‘‘इस में तकलीफ जैसी कोई बात नहीं है,’’ आशीषजी बोले, ‘‘अविनाशजी, अगर आप की इजाजत हो तो 2 मिनट मैं अकेले में आप की पत्नीजी से कुछ बातें करना चाहूंगा… जूही जब मात्र 10 साल की थी तभी उस की मां गुजर गईं. अपने कुछ किए गलत कामों का प्रायश्चित्त करने के लिए सभी के आग्रह करने के बावजूद मैं ने दूसरी शादी नहीं की… मैं ने अकेले ही मांबाप दोनों का प्यार, संस्कार दे कर उसे पाला है… जब तक मैं राधाजी की सहमति से पूर्ण संतुष्ट नहीं हो जाता इस रिश्ते के लिए स्वयं को कैसे तैयार कर पाऊंगा?

जवाब में अविनाश का हंसना ही सहमति दे गया. फिर आशीषजी और राधा को छोड़ कर बाकी सभी बाहर निकल गए. आशीष राधा के समक्ष जा कर खड़े हो गए और फिर भर आए गले से बोले, ‘‘राधा, तुम से छल करने वाला, तुम्हें रुसवा करने वाला तुम्हारे सामाने खड़ा है… जो भी सजा दोगी मुझे मंजूर होगी… मेरी बेटी का कोई कुसूर नहीं है इस में… तुम से मेरी यही प्रार्थना है कि जूही और आकाश को कभी अलग नहीं करना वरना दोनों टूट जाएंगे. एकदूसरे के बगैर वे जी नहीं पाएंगे… सभी की खुशियां अब तुम्हारे हाथ में हैं. जूही ही तुम लोगों को छोड़ने जाएगी. इतनी ही देर में उस का चेहरा उदास हो कर कुम्हला गया है,’’ कह कर आशीष बाहर निकल आए और फिर जूही को इन सब के साथ जाने को कहा तो जूही और आकाश के मुरझाए चेहरे खिल उठे. पूरा रास्ता राधा आंखें बंद किए चुप रहीं. लौटने के बाद भी वे अनमनी सी लेट गईं, जबकि बाहर से आ कर बिना चेंज किए बैड पर जाना उन्हें कतई पसंद नहीं था.

अविनाश लिविंग रूम में बैठ कर टीवी देखते रहे. शाम हो गई थी. राधा उठ गई थीं. बोलीं, ‘‘सुनिए मैं सामने ही घूम रही हूं. आकाश आ जाए तो आप भी आ जाइएगा,’’ और फिर चप्पलें पहनते हुए सीढि़यां उतर गईं. बच्चों के पार्क में रखी बैंच पर जा बैठीं. आंखें बंद करते ही 32 साल से बंद अतीत चलचित्र की तरह आंखों के आगे घूम गया… बड़ी ही धूमधाम से राधा की मंगनी आशीष के साथ हुई थी. किसी फंक्शन में आशीष ने उन्हें देखा था और फिर उस की नजरों में बस गई थीं. मंगनी होने के बाद वे आशीष से कुछ ज्यादा ही खुल गई थीं. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. सब के सो जाने के बाद धीरे से वे फोन को उठा कर अपने कमरे में ले जाती. और फिर शुरू होता प्यार भरी बातों का सिलसिला जो देर रात तक चलता. 2 महीने बाद ही शादी का मुहूर्त्त निकला था. इसी बीच अचानक आशीष को किसी प्रोजैक्ट वर्क के सिलसिले में 6 महीने के लिए न्यूयौर्क जाना पड़ा.

शादी नवंबर तक के लिए टल गई. वे मन मसोस कर रह गईं. लेकिन आशीष उज्ज्वल भविष्य के सपनों को आंखों में लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गया. फिर राधा अपनी एम.एससी. की परीक्षा की तैयारी में लग गईं. आशीष फिर कभी नहीं लौटा. अमेरिका जाने पर आशीष एक गुजराती परिवार में पेइंगगैस्ट बन कर रहने लगे. अमेरिका उन्हें इतना भाया कि वह वहां से न लौटने का निश्चय कर किसी कीमत पर वहां रहने का जुगाड़ बैठाता रहा. यहां तक कि अपनी कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी. सब से सरल उपाय यही था कि वह वहां की किसी नागरिकता प्राप्त लड़की से ब्याह कर ले. फिर आशीष ने उसी गुजराती परिवार की इकलौती लड़की से शादी कर ली. उस के इस धोखे से राधा टूट गई थी. उन्हें ब्याह नाम से चिढ़ सी हो गई थी.

फिर कुछ महीने बाद अविनाश के घर से आए रिश्ते के लिए न नहीं की. सब कुछ भुला अविनाश की पत्नी बन गईं. समय के साथ 2 बच्चों की मां भी बन गईं. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश की. पढ़नेलिखने में ही नहीं, बल्कि सारी गतिविधियों में दोनों बड़े काबिल निकले. बी.टैक करते ही बेटी की शादी सुयोग्य पात्र से कर दी. बेटी यहीं सियाट्टल में है. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. बड़े अरमान के साथ बेटे की शादी का सपना आंखों में लिए यहां आई थीं. टैनिस टूरनामैंट में आकाश और जूही पार्टनर बने और विजयी हुए. ऐसे ही मिलतेजुलते दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. आकाश ने फेसबुक पर मां यानी राधा से जूही का परिचय करा दिया था. राधा को जूही में कोई कमी नजर नहीं आई. इसलिए उन के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. अब तक के जीवन में सभी प्रमुख निर्णय राधा ही लेती आई थीं, तो अविनाश को क्यों ऐतराज होता? राधा की खुशी ही उन के लिए सर्वोपरि थी. चूंकि जूही की मां नहीं थी और उसे नानी ने ही पाला था और वे इंडिया आने में लाचार थे, इसलिए निर्णय यही हुआ था कि अगर सब कुछ ठीकठाक हुआ तो वहीं शादी कर देंगे. इस निर्णय से उन की बेटी और दामाद दोनों बहुत खुश हुए. जूही के पिता के परिवार के बारे में उन्होंने ज्यादा छानबीन नहीं की और यहीं धोखा खा गईं. कितना सुंदर सब कुछ हो रहा था कि इस मोड़ पर वे आशीष से टकरा गईं और बंद स्मृतियों के कपाट खुल कर उन्हें विचलित कर गए… बेटे से भी नहीं कह सकतीं कि इस स्वार्थी, धोखेबाज की बेटी के साथ रिश्ता न जोड़ो… सिर से पैर तक उस के प्यार में डूबा हुआ है. वह भी क्यों मानने लगा अपनी मां की बात. दर्द से फटते माथे को दोनों हाथों से थाम वे सिसक उठीं.

तभी अचानक कंधों पर किसी का स्पर्श पा कर मुड़ीं तो पीछे अविनाश को खड़ा पाया. राधा के हाथों को सहलाते हुए वे उन की बगल में बैठ गए और बड़े सधे स्वर में कहने लगे, ‘‘राधा, अंदर से तुम इतनी कमजोर हो, मैं ने कभी सोचा न था. इतनी छोटी बात को दिल से लगाए बैठी हो. कुछ सुना था और कुछ अनुमान लगा लिया. अरे, आशीष ने तुम्हारे साथ जो किया वह कोई नई बात थोड़े है. यह देश उसे सपनों की मंजिल लगा. जूही की सुंदरता से साफ पता चलता है कि उस की मां कितनी सुंदर रही होगी… वीजा, फिर नागरिकता, रहने को घर, सुंदर पत्नी, सारी सुखसुविधाएं जब उसे इतनी सहजता से मिल गईं तो वह क्या पागल था कि देश लौट आता सिर्फ इसलिए कि उस की मंगनी हुई है? फिर जीवन में सब कुछ होना पहले से ही निर्धारित रहता है तुम्हारी ही तो ऐसी सोच है. तुम्हें मेरी बनना था तो ये महाशय तुम्हें कैसे ले जाते? माना कि बहुत सारी सुखसुविधाएं तुम्हें नहीं दे पाया लेकिन मन में संचित सारे प्यार को अब तक उड़ेलता रहा हूं. अचानक कल से मम्मी को हो क्या गया है, पापा? आकाश का यह पूछना मुझे पसोपेश में डाल गया है. हो सकता है वह सब कुछ समझ भी रहा हो. इतना नासमझ भी तो नहीं है.’’

राधा की आंखों से बहते आंसुओं ने अविनाश को आगे और कुछ नहीं कहने दिया. कुछ देर बाद आंचल से अपने आंसुओं को पोंछती हुई राधा ने कहा, ‘‘मैं कल से सोच रही हूं कि अगर जूही का जैनेटिक्स भी अपने बाप जैसा हुआ तो यह हमारे बेटे को हम से छीन लेगी… कितनी निर्ममता से आशीष अपनों को भूल गया था… उसे देखने के लिए मांबाप की आंखें सारी उम्र तरसती रह गईं और वह घरजमाई बन कर रह गया. इस की बेटी ने कहीं मेरे सीधेसादे बेटे को घरजमाई बना लिया तो हम भी बेटे को देखने को तरसते रह जाएंगे.’’ राधा की बातें सुन कर अविनाश को हंसी आ गई. तभी आकाश भी उन दोनों को खोजते हुए वहां आ गया. सकुचाई हुई मम्मी और हंसते हुए पापा को देख कर प्रश्न भरी आंखों से उन्हें देखा. अविनाश अपनेआप को अब रोक नहीं सके और सारी बात बता दी.

इतना सुनना था कि आकाश छोटे बच्चे की तरह राधा से लिपट गया. बोला, ‘‘मम्मी, आप के लिए जूही तो क्या पूरी दुनिया को छोड़ सकता हूं… इतना ही जाना है आप ने अपने बेटे को? फिर आप दोनों को भी मेरे साथ ही रहना है… आप दोनों के लिए ही तो इतना बड़ा घर लिया है… ऐसे भी इंडिया में है ही कौन आप दोनों का…. एक घर ही तो है? आराम से अब मेरे पास रहें. बीचबीच में दीदी से भी मिलते रहें.’’ आकाश की बातों से राधा के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और फिर से 2 हफ्ते बाद ही बड़ी धूमधाम के साथ आकाश और जूही शादी के बंधन में बंध कर हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड चले गए. 1 महीने बाद आने का वादा ले कर बेटी, दामाद एवं नाती सियाट्टल चले गए तो अविनाश ने भी हंसते हुए राधा से कहा, ‘‘क्यों न हम भी हनीमून मना लें… हमारी शादी के बाद तो हमारे साथ हमारे पूरे परिवार ने भी हनीमून मनाया था… याद तो होगा तुम्हें… तुम से मिलने को भी हम तरस कर रह जाते थे. अब बेटे ने विदेश में अवसर दिया है तो हम क्यों चूकें और फिर अभी हम इतने बूढ़े भी तो नहीं हुए हैं.’’ अविनाश की बातें सुन राधा मुसकरा दीं और फिर शरमा कर अविनाश से लिपटते हुए अपनी सहमति जता दी.

मेरी खातिर : माता-पिता के झगड़े से बच्चों की जिंदगी पर क्या असर पड़ता है ?

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5 राज्यों के चुनावी परिणाम ने BJP के लिए 2024 की डगर की आसान

5 राज्यों – मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनाव के जो नतीजे सामने आ रहे हैं वे निश्चिततौर पर भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद उत्साहवर्धक हैं.पार्टी 3 राज्यों में स्पष्ट तौर पर सरकार बनाने जा रही है.

धर्म की बिसात पर अपनी गोटियां खेलने वाली बीजेपी को यह उम्मीद नहीं थी कि जीत इतनी शानदार होगी. राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा और ‘इंडिया’ गठबंधन से बीजेपी में यह धुकधुकी तो थी कि कहीं हिंदू राष्ट्र और राममंदिर निर्माण का बीजेपी का चुनावी मुद्दा विपक्षी पार्टियों के मुद्दे – भूख, बेरोजगारी, जातीय जनगणना वगैरा के आगे फीके ना पड़ जाएं मगर आश्चर्यजनक  रूप से जनता ने स्वयं से जुड़े मुद्दों की अनदेखी कर धर्म के आगे घुटने टेक दिए और बीजेपी के सपने को साकार कर दिया.

दरअसल बीजेपी को यह जीत इसलिए हासिल नहीं हुई है कि उस ने विकास के कोई बहुत बड़े काम कर दिए हैं या बेरोजगार युवाओं को नौकरियां दे दीं या देश से गरीबी मिटा दी, बीजेपी को यह सफलता इसलिए मिली है क्योंकि इस वक़्त दुनियाभर में युद्ध और तनाव का माहौल है. गाजा-इजरायल और रूस-यूक्रेन के बीच कई महीनों से जो घमासान युद्ध हो रहा है उस में लाखों लोग मारे गए हैं. लाखों महिलाएं और बुजुर्ग घायल हुए हैं, बच्चों की लाशें उठाए मांबाप की चीखें आसमान का सीना छलनी कर रही हैं और यह सब हिन्दुस्तान के लोग इंटनैट और सोशल मीडिया के माध्यम से अपने स्मार्ट फोन पर देख रहे हैं इतनी लाशें, दर्दनाक चीखें, बमों के धमाके, ध्वस्त होती आलीशान इमारतें, मलबे में दबे लोग, मिट्टी के टीलों में अपने मांबाप को ढूंढते नन्हे नन्हे बच्चे, अस्पतालों में घायल खून से सने मासूमों की तस्वीरों ने पूरी दुनिया में एक भय का वातावरण बना रखा है. विश्वयुद्ध की संभावना से लोग डरे हुए हैं. अभी साल नहीं बीता है कोविड महामारी ने लाखों लोगों की जानें लील लीं. उस से उबरे ही थे कि युद्ध की विभीषिकाओं ने हमें डराना शुरू कर दिया. ऐसे में इंसान सहारे के लिए कोई मजबूत छवि तलाशता है. भारत में नरेंद्र मोदी की छवि एक मजबूत और ताकतवर व्यक्ति के रूप में गढ़ी जा चुकी है.

गरीब और कम पढ़ा लिखा आदमी आपदाओं और परेशानियों से जल्दी डर जाता है. डर के कारण भगवान की तरफ भागता है. धर्म की गोद में छुप जाना चाहता है. हमारी मानसिक स्थिति को बीजेपी खूब अच्छी तरह भांप चुकी है. यही वजह थी कि 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी राज्य में स्थानीय नेताओं के चेहरों को कोई तवज्जो नहीं दी गई बल्कि हर जगह मोदी का चेहरा सामने रख कर चुनाव लड़ा गया.

नरेंद्र मोदी बेहद दमदार व्यक्ति के रूप में सामने है. अंतर्राष्ट्रीय मसलों को सुलझाने के लिए जिस की पूछ होती है. किसी भी अन्य पार्टी में मोदी की छवि के बराबर कोई नेता नहीं है. जनता को लगता है कि अगर विश्व युद्ध छिड़ा या देश पर कोई आंच आई तो उस से मोदी ही निपट सकते हैं और किसी में इतनी ताकत नहीं है. फिर जनता मोदी को हिंदू धर्म के उत्थान और राममंदिर के निर्माण से भी जोड़ कर देखती है. लिहाजा इस बार चुनाव में लोगों ने अपने क्षेत्रीय मुद्दों को दरकिनार कर मोदी को मजबूत करने के लिए बीजेपी के माथे जीत का सेहरा बांधना ज्यादा ठीक समझा.

अंतर्राष्ट्रीय गड़बड़ियां और युद्ध भारत के चुनावों पर जो असर डाल सकते थे उस को विपक्षी पार्टियां देख नहीं पाईं. वे जातीय मसलों में ही उलझी रह गईं. 5 राज्यों के जो नतीजे आए हैं उस के बाद देश में क्षेत्रीय समस्याएं, बेरोजगारी, गरीबी, भूख, अपराध जैसी चीजें जस की तस बनी रहेंगी. अब आगे कई सालों तक इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा. अलबत्ता इन नतीजों से बीजेपी की ताकत में इतनी बढ़ोत्तरी अवश्य हो गई कि इस के दम पर 2024 के लोकसभा चुनाव की वैतरणी वह बहुत आसानी से पार कर लेगी.

सीबीएसई में दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में ग्रेडिंग का सालों पुराना सिस्टम बदला

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में अब छात्रों को डिवीजन या डिस्टिंक्शन  नहीं मिलेगा क्योंकि सीबीएसई ने ग्रेडिंग का अपना सालों पुराना सिस्टम बदलने का फैसला किया है. इस से पहले सीबीएसई ने शिक्षा के क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के उद्देश्य से मेरिट सूची जारी करने की प्रथा भी समाप्त कर दी थी. सीबीएसई बोर्ड पिछले कुछ साल से 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा में टौप करने वाले छात्रों की लिस्ट जारी नहीं करता है.

बोर्ड ने इस के पीछे का तर्क देते हुए कहा था कि ऐसा छात्रों के बीच अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए किया गया है.यह दृष्टिकोण केवल परीक्षा प्रदर्शन के बजाय समग्र सीखने पर ध्यान केंद्रित करने, अधिक संतुलित शैक्षिक वातावरण को बढ़ावा देने और अंततः रटने की प्रक्रिया से दूर जाने को प्रोत्साहित करेगा, जो छात्रों के भविष्य और करियर के लिए अच्छा होगा.

अब बोर्ड ने 30 नवंबर को सभी स्कूलों को नोटिस जारी कर बताया है कि सीबीएसई के दसवीं और बारहवीं के नतीजों में अब ओवरऔल डिविजन, डिस्टिंक्शन या एग्रीगेट अंक भी नहीं दिए जाएंगे.अगर हायर स्टडीज के लिए या नौकरी के लिए परसेंटेज कैलकुलेशन की जरूरत पड़ती है तो संस्थान या कंपनी खुद ये कैलकुलेशन कर सकती है.बोर्ड इस बारे में कोई जानकारी नहीं देगा.बोर्ड न तो परसेंटेज की गिनती करेगा और न ही रिजल्ट में इस की कोई जानकारी दी जाएगी.अधिसूचना में कहा गया है, ‘इस संबंध में सूचित किया जाता है कि परीक्षा के अध्याय 7 की उपधारा 40.1 (iii) उपनियम यह निर्धारित करते हैं कि:- कोई समग्र डिवीजन/डिस्टिंक्शन/एग्रीगेट नहीं दिया जाएगा’.

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने आगामी 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं से पहले यह बड़ा बदलाव किया है. सीबीएसई ने तय किया है कि अगर छात्र पांच से अधिक पेपर देगा तो उस के सब से अच्छे पांच विषय तय करने का फैसला छात्र के संबंधित स्कूल या संस्थान को होगा.कुल मिला कर कोई श्रेणी, विशेष योग्यता या कुल प्राप्तांक नहीं दिए जाएंगे. सीबीएसई का मानना है कि इस से छात्रछात्राओं में हीन भावना का विकास नहीं होगा. डिवीजन खराब होने पर छात्र हताशा और अवसाद में चले जाते थे. आत्महत्या के मामले भी सामने आते थे. जबकि नंबर या ग्रेड से किसी छात्र की काबिलियत को नहीं आंका जा सकता है. हर बच्चे में अलगअलग तरह का गुण होता है, जिस को उभरना, विकसित करना ही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए.

अगले साल सीबीएसई बोर्ड परीक्षा का आयोजन 15 फरवरी से किया जाना है. सीबीएसई बोर्ड कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं दोनों कक्षाओं की परीक्षाएं एक ही दिन 15 फरवरी से शुरू होने वाली है, जो अप्रैल तक चलेंगी. यद्यपि बोर्ड ने अब तक कक्षा 10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा का विस्तृत शेड्यूल जारी नहीं किया है. वहीं सीबीएसई 10वीं, 12वीं प्रैक्टिकल परीक्षाएं एक जनवरी से शुरू होने वाली है.

सीबीएसई का यह निर्णय स्वागत योग्य है. इस से मार्क्स के पीछे या फिर डिवीजन के पीछे भागने की जो मारामारी थी वह अब समाप्त हो जाएगी.अब स्कूल स्तर से ही अंक तालिका जारी होगी इस से छात्रछात्राओं को कुंठाग्रस्त होने की जो स्थिति बनती थी, उस पर विराम लगेगा.

केलिकुंचिका : भाग 3

जरमनी पहुंच कर दुर्गा को बिलकुल अलग माहौल मिला. जरमनी के लगभग एक दर्जन से ज्यादा शीर्ष विश्वविद्यालयों हीडेलबर्ग, एलएम यूनिवर्सिटी म्यूनिक, वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी, टुएबिनजेन यूनिवर्सिटी आदि में संस्कृत की पढ़ाई होती है. उसे देख कर खुशी हुई कि जरमनी के अतिरिक्त अन्य यूरोपियन देश और अमेरिका के विद्यार्थी भी संस्कृत पढ़ते हैं. वे जानना चाहते हैं कि भारत के प्राचीन इतिहास व विचार किस तरह इन ग्रंथों में छिपे हैं. भारत में संस्कृत की डिगरी तो नौकरी के लिए बटोरी जाती है लेकिन जरमनी में लोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए संस्कृत पढ़ने आते हैं. इन विद्यार्थियों में हर उम्र के बच्चे, किशोर, युवा और प्रौढ़ होते हैं. दुर्गा ने देखा कि इन में कुछ नौकरीपेशा यहां तक कि डाक्टर भी हैं. दुर्गा को पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन में जरमन टीचर संस्कृत पढ़ाते हैं. हम अपनी प्राचीन संस्कृति और भाषा की समृद्ध विरासत को सहेजने में सफल नहीं रहे हैं. यहां का माहौल देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जरमन लोग ही शायद भविष्य में संस्कृत के संरक्षक हों. वे दूसरी लेटिन व रोमन भाषाओं को भी संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं.

दुर्गा का बेटा शलभ भी अब बड़ा हो रहा था. वह जरमन के अतिरिक्त हिंदी, इंगलिश और संस्कृत भी सीख रहा था. दुर्गा ने कुछ प्राचीन पुस्तकों, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, गीता और वेद के जरमन अनुवाद भी देखे और कुछ पढ़े भी. जरमन विद्वानों का कहना है कि भारत के वेदों में बहुतकुछ छिपा है जिन से वे काफी सीख सकते हैं. सामान्य बातें और सामान्य ज्ञान से ले कर विज्ञान के बारे में भी वेद से सीखा जा सकता है.

जरमनी आने पर भी दुर्गा हमेशा अपनी सहेली माधुरी के संपर्क में रही थी. उस ने माधुरी को कुछ पैसे भी लौटा दिए थे जिस के चलते माधुरी थोड़ा नाराज भी हुई थी. माधुरी से ही दुर्गा को मालूम हुआ कि उस की दीदी अमोलिका और पापा दीनानाथ अब नहीं रहे. अमोलिका का बेटा बंटी कुछ साल नानी के साथ रहा था, बाद में वह अपने पापा जतिन के पास चला गया. उस की नानी भी उसी के साथ रहती थी. बंटी 16 साल का हो चुका था और कालेज में पढ़ रहा था. इधर, दुर्गा का बेटा शलभ 15 साल का हो गया था. वह भी अगले साल कालेज में चला जाएगा. दुर्गा के निमंत्रण पर माधुरी जरमनी आई थी. वह करीब एक महीने यहां रही. दुर्गा ने उसे बर्लिन, बोन, म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, कौंलोन आदि जगहें घुमाईं. माधुरी इंडिया लौट गई.

दुर्गा से यूनिवर्सिटी की ओर से वेद पढ़ाने को कहा गया. उस से वेद के कुछ अध्यायों व श्लोकों का समुचित विश्लेषण करने को कहा गया. दुर्गा ने वेदों का अध्ययन किया था, इसलिए उसे पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस के पढ़ाने के तरीके की विद्यार्थियों और शिक्षकों ने खूब प्रशंसा की. दुर्गा अब यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, बल्कि उसे अन्य पश्चिमी देशों में भी कभीकभी पढ़ाने जाना होता था.

5 वर्षों बाद शलभ फिजिक्स से ग्रेजुएशन कर चुका था. उसे न्यूक्लिअर फिजिक्स में आगे की पढ़ाई करनी थी. पीजी में ऐडमिशन से पहले उस ने मां से इंडिया जाने की पेशकश की तो दुर्गा ने उस की बात मान ली. दुर्गा ने उस के जन्म की सचाई अब उसे बता दी थी. सच जान कर उसे अपनी मां पर गर्व हुआ. अकेले ही काफी दुख झेल कर, अपने साहस के बलबूते पर मां खुद को और मुझे सम्मानजनक स्थिति में लाई थी. शलभ को अपनी मां पर गर्व हो रहा था. हालांकि वह किसी संबंधी के यहां नहीं जाना चाहता था लेकिन दुर्गा ने उसे अपने पिता जतिन और नानी से मिलने को कहा. माधुरी ने दुर्गा को जतिन का ठिकाना बता दिया था. जतिन आजकल नागपुर के पास वैस्टर्न कोलफील्ड में कार्यरत था.

इंडिया आ कर शलभ ने पहले देश के विभिन्न ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों का भ्रमण किया. बाद में वह पिता से मिलने नागपुर गया. उस दिन रविवार था, जतिन और नानी दोनों घर पर ही थे. डोरबैल बजाने पर जतिन ने दरवाजा खोला. शलभ ने उस के पैर छुए. जतिन बोला, ‘‘मैं ने तुम को पहचाना नहीं.’’ शलभ बोला, ‘‘मैं एक जरमन नागरिक हूं. भारत घूमने आया हूं. मैं अंदर आ सकता हूं. मेरी मां ने मुझे आप से मिलने के लिए कहा है.’’

शलभ का चेहरा एकदम अपनी मां से मिलता था. तब तक उस की नानी भी आई तो उस ने नानी के भी पैर छू कर प्रणाम किया. जतिन और नानी दोनों शलभ को बड़े गौर से देख रहे थे. शलभ ने देखा कि शोकेस पर उस की मौसी और मां दोनों की फोटो पर माला पड़ी हुई है. शलभ ने दोनों तसवीरों की ओर संकेत करते हुए पूछा, ‘‘ये महिलाएं कौन हैं?’’

जतिन ने बताया, ‘‘एक मेरी पत्नी अमोलिका, दूसरी उन की छोटी बहन दुर्गा है, अब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘एस तुत मिर लाइट,’’ शलभ बोला. ‘‘मैं समझा नहीं,’’ जतिन ने कहा.

‘‘आई एम सौरी, यही पहले मैं ने जरमन भाषा में कहा था,’’ शलभ बोला. ‘‘अरे वाह, कितनी भाषाएं जानते हो,’’ जतिन ने हैरानी जताई.

‘‘सब मेरी मां की देन है,’’ शलभ ने कहा. फिर दुर्गा की फोटो को दिखाते हुए शलभ बोला, ‘‘तो ये आप की केलिकुंचिका हैं.’’

‘‘व्हाट?’’

‘‘केलिकुंचिका यानी साली, सिस्टर इन लौ.’’

‘‘यह कौन सी भाषा है…जरमन?’’

‘‘जी नहीं, संस्कृत.’’

‘‘तो तुम संस्कृत भी जानते हो?’’

‘‘जी, आप की केलिकुंचिका संस्कृत की विदुषी हैं, उन्हीं ने मुझे संस्कृत भी सिखाई है.’’

‘‘वह तो बहुत पहले मर चुकी है.’’

‘‘आप के लिए मृत होंगी.’’

‘‘व्हाट? हम लोगों ने उसे ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी, पर वह नहीं मिली. आखिर में हम ने उसे मृत मान लिया.’’

‘‘अच्छा, तो अब चलता हूं, कल दिल्ली से मेरी फ्लाइट है.’’

शलभ ने उठ कर दोनों के पैर छुए और बाहर निकल गया. ‘‘अरे, जरा रुको तो सही, हमारी बात तो सुनते जाओ, शलभ…’’

वे दोनों उसे पुकारते रहे, पर उस ने एक बार भी मुड़ कर उन की तरफ नहीं देखा.

सिसकता इश्क़ : भाग 3

यह देख रशिका रोती हुई वहां से दौड़ी और उस के पीछे गजाला. उस दिन रशिका ने डांस कंपीटिशन तो जीत लिया लेकिन शक और धर्म के नाम पर जो विष रशिका के मातापिता रशिका के ज़ेहन में बचपन से बोते आ रहे थे कि गजाला के क़ौम के लोग कभी किसी के नहीं होते, ये लोग पीठ पर वार करते हैं, उस जहर ने आज रशिका को हमेशा के लिए गजाला से जुदा कर दिया.

उस दिन रशिका के पीछे गजाला भी दौड़ी थी और वह दौड़ती हुई सीढ़ियों से फिसल कर गिर गई. गजाला के सिर पर काफी गहरी चोट लगने की वजह से उस ने 2 दिनों के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया. रशिका ने अपनी सब से अच्छी दोस्त गजाला को सदा के लिए खो दिया. उसे अपनी इस गलती का एहसास तब हुआ जब अचानक एक रोज़ राशि से उस की मुलाकात हुई और राशि ने गजाला की सचाई बयां करते हुए कहा-

“रशिका, तुम कैसी हो, तुम्हारे पास गजाला जैसी सच्ची दोस्त थी और तुम ने उसे अपनी बेतुकी सोच की वजह से खो दिया. हां, मैं उस दिन डांस कंपीटिशन में तुम्हें हराना चाहती थी, मैं चाहती थी कि गजाला वह नशे की दवाई तुम्हारे पानी की बोतल में मिला दे लेकिन उस ने ऐसा करने से मना कर दिया था. जानती हो, गजाला ने उस दिन मुझ से क्या कहा था. तुम्हें तो पता भी नहीं है कि उस ने मुझ से क्या कहा था. उस ने मुझ से कहा कि रशिका मेरी सब से अच्छी सहेली है और मैं अपने जीते जी उस के साथ किसी को भी ग़लत नहीं करने दूंगी. और तुम ने क्या किया, तुम उस की दोस्ती का मान भी नहीं रख पाईं.”

इतना कह कर राशि तो चली गई लेकिन रशिका आज भी उस नामुराद घड़ी और खुद को कोसती रहती है और खुद को गजाला की मौत के लिए जिम्मेदार मानती है. यह सब सोचते हुए रशिका की आंखों से नींद गुम हो गई थी. कल हैदराबाद लौटना था. रशिका ने यह फैसला ले लिया कि हैदराबाद पहुंचते ही वह हनीफ से इजहारे मोहब्बत कर देगी क्योंकि वह एक बार फिर अपनी जिंदगी से किसी अच्छे इंसान को नहीं खोना चाहती और उस ने यह भी तय कर लिया कि वह अपने मातापिता को भी हर हाल में इस शादी के लिए राज़ी कर लेगी.

अगली सुबह सभी पांचों साथ में ही एयरपोर्ट पहुंचे. बीती रात रशिका संग की अपनी बदतमीजी पर राजीव को अफसोस था और वह शर्मिंदा भी था. उस ने रशिका से माफी भी मांगी. रशिका ने ऊपरी तौर पर उसे माफ कर दिया लेकिन मन ही मन रशिका अब भी राजीव के रात वाले बरताव पर बेहद नाराज़ थी.

यहां हैदराबाद पहुंचते ही फिर सभी अपने बनावटी रूप में आ गए और एक सभ्य, संस्कारी व धार्मिक होने का चोला पहन कर घूमने लगे. इधर रशिका अपना हाल ए दिल हनीफ से बयां करने के मौके तलाशने लगी और उधर हनीफ बैंगलुरु से आने के बाद से ही रशिका से दूर रहने लगा. रशिका जब भी हनीफ से मिलने को कहती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. रशिका अपने लिए हनीफ की आंखों में प्यार देख चुकी थी, अब बस, वह हनीफ की जबानी सुनना चाहती थी.

एक रोज़ औफिस के फूड कोर्ट में हनीफ अकेले बैठा कौफी पी रहा था. यह देख रशिका उस के पास जा बैठी और अपने दिल के सारे पन्ने उस के सामने खोल कर रख दिए. हनीफ बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए चुपचाप सुनता रहा. उस के बाद अपनी कौफी पी रशिका से कुछ कहे बगैर उठ खड़ा हुआ और वहां से जाने लगा. यह देख रशिका भी उठ खड़ी हुई और हनीफ का हाथ पकड़ उसे रोकती हुई बोली-

“मैं जानती हूं, तुम मुझसे प्यार करते हो. तुम्हारी आंखों में इस वक़्त भी मैं अपने लिए प्यार देख रही हूं. तुम अभी कुछ नहीं कहना चाहते, मत कहो. मैं तुम्हारे हां का इंतजार करूंगी और हां, मैं आज ही अपने मम्मीपापा से हमारे लिए बात भी करूंगी.”

इतना कह कर रशिका ने हनीफ का हाथ छोड़ दिया. हनीफ बुत की तरह खड़ा रहा और रशिका वहां से चली गई. उस रात रशिका ने अपने मातापिता से फोन पर हनीफ के बारे में बताते हुए उस से शादी करने की अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी. हनीफ के बारे में सुन कर रशिका के मातापिता ने उसे फौरन इंदौर आने को कहा ताकि वे इस विषय पर बात कर सकें.

अगले दिन रशिका औफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले कर इंदौर आ गई. घर पहुंचते ही रशिका के मातापिता उस पर बरस पड़े. रशिका की मां चिल्लाती हुई उस से बोली-

“पूरे हैदराबाद में तुझे कोई और लड़का नहीं मिला, दूसरी जाति में भी नहीं. तुम तो गैरधर्म में शादी करना चाहती हो, ऊपर से तलाक शुदा आदमी के साथ जिस का एक बेटा भी है. तुम्हारा दिमाग ठिकाने पर तो है.”

यह सुन रशिका बोली- “मम्मी, हनीफ तलाकशुदा जरूर है लेकिन उस में केवल हनीफ की ही गलती नहीं है. उस में उस लड़की की भी उतनी ही गलती है, वह भी तो शादी कर के अपनी शादी निभा नहीं पाई.”

“कभी सोचा है वह लड़की अपनी शादी निभा क्यों नहीं पाई क्योंकि वह अपना धर्म छोड़ कर दूसरे धर्म में चली गई थी और जिस धर्म में तुम जाना चाहती हो न, उस धर्म के लड़के किसी गैरधर्म की लड़की से प्यार नहीं करते, बस जिहाद करते हैं, जिहाद…समझी. आज वह तुम से शादी करेगा, कल तुम्हें तलाक़तलाक़तलाक कह कर दे देगा और फिर किसी तीसरी की तलाश में निकल जाएगा. तुम्हें मालूम है, वह अपने धर्म के मुताबिक 4 शादियां कर सकता है. तब क्या करोगी,” रशिका की मां गुस्से में तिलमिलाती हुई बोली.

“मां, हनीफ ऐसा कुछ नहीं करेगा. उस की एक शादी टूट गई है, इस का मतलब यह नहीं है कि वह बुरा है,” रशिका ने अपनी मां को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. तब रशिका ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह शादी करेगी तो हनीफ से ही करेगी.

रशिका का इतना कहना था कि रशिका के पिता, जो अब तक कुछ नहीं कह रहे थे, भड़क उठे और बोले, “यह शादी किसी भी सूरत में नहीं हो सकती. अगर तुम उस लड़के से शादी करती हो तो दोबारा इस घर की चौखट पर कभी पैर मत रखना. यह समझ लेना कि तुम्हारे मातापिता तुम्हारे लिए मर गए हैं.”

रशिका अपने मातापिता के आशीर्वाद से हनीफ संग शादी के बंधन में बंधना चाहती थी, इसलिए वह पूरे एक हफ्ते इंदौर में रुकी और अपने मातापिता को इस शादी के लिए राज़ी करने का प्रयत्न करती रही लेकिन अंत तक वे नहीं माने और रशिका निराश हो कर हैदराबाद लौट आई.

यहां हैदराबाद में जब रशिका औफिस पहुंची तो उसे हनीफ कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उस का मोबाइल भी बंद बता रहा था. रशिका ने जब संदीप और राजीव से हनीफ के बारे में पूछा तो उन्हें भी कुछ मालूम नहीं था. राजीव ने इतना कहा कि उस ने लास्ट टाइम हनीफ को उपासना के साथ देखा था पर आज उपासना भी औफिस नहीं आई थी.

रशिका बारबार कभी हनीफ का नंबर डायल करती तो कभी उपासना का. लेकिन दोनों का ही नंबर बंद बता रहा था. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर दोनों का नंबर बंद क्यों बता रहा है. आखिरकार रशिका का पूरा दिन ऐसे ही बीत गया और सारी रात आंखों ही आंखों में कटी. दूसरे दिन जब रशिका औफिस पहुंची तब भी हनीफ का कुछ पता नहीं था. वह सोच ही रही थी कि आखिर हनीफ कहां होगा. उसी वक्त रशिका के सामने उपासना आ खड़ी हुई. उपासना को सामने खड़ा देख रशिका भी खड़ी हो गई और वह उपासना से बोली, “मैं कल से तुम्हारा और हनीफ का मोबाइल ट्राई कर रही हूं, तुम्हारा नंबर भी बंद बता रहा है और हनीफ का भी, तुम्हें पता है हनीफ कहां है?”

उपासना लंबी सांस लेती हुई रशिका को उस की चेयर पर बिठाती हुई बोली, “कल मैं छुट्टी पर थी और मेरे मोबाइल की बैटरी खराब हो गई थी, इसलिए मेरा मोबाइल बंद था. रही बात हनीफ की, तो मुझे नहीं पता वह कहां है. हां, इतना जरूर पता है कि उस ने यह कंपनी और जौब दोनों छोड़ दी है.”

इतना कहने के बाद उपासना अपने पर्स से एक बंद लिफाफा रशिका को देती हुई बोली, “यह लिफाफा हनीफ तुम्हारे लिए छोड़ गया है.” यह कह कर उपासना वहां से चली गई.

धड़कते दिल और कंपकंपाते हाथों से रशिका ने वह बंद लिफाफा खोला जिस पर लिखा था-

“रशिका, मैं जानता हूं तुम्हारे दिल में मेरे लिए जो जज्बात हैं. मैं यह भी जानता हूं कि तुम्हारे मातापिता इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे और उन के आशीर्वाद के बगैर मैं तुम्हारा हाथ नहीं थाम पाऊंगा. मैं एक बार फिर शादी कर के अपने प्यार को जिहाद का नाम नहीं देना चाहता, इसलिए प्यार को, बस, प्यार ही रहने दो…”

इतना पढ़ कर रशिका की आंखों से अश्रुधारा बहने लगे. उस के बाद रशिका ने झिलमिलाती आंखों से जो पढ़ा, उस में मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी की एक ग़ज़ल की पंक्ति लिखी थी-

“वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा…”

यह पढ़ने के बाद रशिका ने नम आंखों से वह लिफाफा संभाल कर अपने बैग में रख लिया. आज एक बार फिर ऊंचनीच, जाति, धर्म, संप्रदाय, क़ौम जैसे बेमाने शब्दों की वजह से 2 प्यार करने वाले दिल जुदा हो गए और प्यार फिर हार गया.

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