हाल ही में धार्मिक रस्मों को नजरअंदाज कर बिहार के जमुई में एक युवा जोड़े ने बगैर दहेज के शादी रचाई. इस शादी में न दहेज का लेनदेन हुआ, न ही बैंडबाजा, बाराती दिखे और न ही पंडित या पुरोहित ही. संविधान का शपथ ले कर आशीष नारायण और निशा कुमारी शादी के बंधन में बंध गए. इस तरीके से शादी करने का निर्णय दोनों ने खुद लिया था.
अलग सोच
यह अनोखी शादी बीते 28 नवंबर को जमुई के एक विवाह भवन में संपन्न हुई. शादी के बंधन में बंधे सरकारी आईटीआई कालेज में पढ़ाने वाले इंजीनियरिंग में एमटेक पास आशीष और एमकौम कर रही निशा की सोच इस मामले में कुछ अलग दिखी.
इन्होंने परंपरा से अलग अपने दिमाग की सुन कर इस शादी को अंजाम दिया जिस में न तो वैदिक मंत्रोच्चारण हुआ और न ही अग्नि को साक्षी मान कर दूल्हादुलहन ने सात फेरे लिए.
दूल्हादुलहन ने एकदूसरे को माला पहनाने के बाद संविधान के विवाह विशेष अधिनियम 1954 के तहत शपथ ली और शादी के बंधन में बंध गए.
संविधान की शपथ क्यों
अपनी इस शादी के बारे में दूल्हे आशीष नारायण का कहना था कि पतिपत्नी के बीच अगर किसी तरह का विवाद होता है तो अदालत में मंत्र और अग्नि की गवाही नहीं होती. विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अनुसार उन्होंने प्रेम और आपसी संबंध के साथ स्वतंत्र रूप से एकदूसरे के विचारों को सहर्ष स्वीकार किया है.
अगर भविष्य में इन दोनों के बीच कुछ विवाद होता है तो उस के समाधान के लिए कोर्ट और कानून का सहारा लेना पड़ता है. यही कारण है कि उन्होंने संविधान का शपथ ले कर शादी करने का निर्णय लिया है.