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विरासत : क्या लिखा था उन खतों में ? – भाग 2

अपराजिता ने उस लिफाफे को उठा कर पहले दोनों आंखों से लगाया. फिर नजाकत के साथ लिफाफे को खोला तो उस में एक गुलाबी कागज मिला. कागज को आधाआधा कर के 2 मोड़ दे कर तह किया गया था. चंद पल अपराजिता की उंगलियां उस कागज पर यों ही फिसलती रहीं… नानी के स्पर्श के एहसास के लिए मचलती हुईं. जब भावनाओं का ज्वारभाटा कुछ थमा तो उस की निगाहें उस कागज पर लिखे शब्दों की स्कैनिंग करने लगीं:

डियर अप्पू

‘‘जीवन में नैतिक सद््गुणों का महत्त्व समझना बहुत जरूरी है. इन नैतिक सद्गुणों में सब से ऊंचा स्थान ‘क्षमा’ का है. माफ कर देना और माफी मांग लेना दोनों ही भावनात्मक चोटों पर मरहम का काम करते हैं. जख्मों पर माफी का लेप लग जाने से पीडि़त व्यक्ति शीघ्र सब भूल कर जीवनधारा के प्रवाह में बहने लगते हैं. वहीं माफ न कर के हताशा के बोझ में दबा व्यक्ति जीवनपर्यंत अवसाद से घिरा पुराने घावों को खुरचता हुआ पीड़ा का दामन थामे रहता है. जबकि वह जानता है कि वह इस मानअपमान की आग में जल कर दूसरे की गलती की सजा खुद को दे रहा है.

‘‘अप्पू मैं ने तुम्हें कई बार अपने मांबाप पर क्रोधित होते देखा है. तुम्हें गम रहा कि तुम्हारी परवरिश दूसरे सामान्य बच्चों जैसी नहीं हुई है. जहां बाप का जिंदगी में होना न होना बराबर था वही तुम्हारी मां ने जिंदगी के तूफानों से हार कर स्वयं अपनी जान ले ली और एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बाद तुम्हारा क्या होगा… बेटा तुम्हारा कुढ़ना लाजिम है. तुम गलत नहीं हो. हां, अगर तुम इस क्रोध की ज्वाला में जल कर अपना मौजूदा और भावी जीवन बरबाद कर लेती हो तो गलती सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही होगी. किसी दूसरे के किए की सजा खुद को देने में कहां की अक्लमंदी है?

‘‘मेरी बात को तसल्ली से बैठ कर समझने की चेष्टा करना और एकदम से न सही तो कम से कम अगले जन्मदिन तक धीरेधीरे उस पर अमल करने की कोशिश करना… बस यही तोहफा है मेरे पास तुम्हारे इस खास दिन पर तुम्हें देने के लिए.

‘‘ढेर सारा प्यार,’’

‘‘नानी.’’

वक्त तेजी से आगे बढ़ रहा था. अपराजिता अब इंजीनियरिंग के आखिरी साल में थी और अपनी इंटर्नशिप में मशगूल थी. वह जिस कंपनी में इंटर्नशिप कर रही थी, प्रतीक भी वहीं कार्यरत था. कम समय में ही दोनों में गहरी मित्रता हो गई.

बीते सालों में अपराजिता नानी से 18वें जन्मदिन पर मिले सौगाती खत को अनगिनत बार पढ़ा था. क्यों न पढ़ती. यह कोई मामूली खत नहीं था. भाववाहक था नानी का. अकसर सोचती कि काश नानी ने उस के हर दिन के लिए एक खत लिखा होता तो कुछ और ही मजा होता. नानी के लिखे 1-1 शब्द ने मन के जख्मों पर चंदन के लेप का काम किया था. उस आधे पन्ने के पत्र की अहमियत किसी ऐक्सपर्ट काउंसलर के साथ हुए 10 सैशन की काउंसलिंग के बराबर साबित हुई थी.

अब अपराजिता के मस्तिष्क में बचपन में झेले सदमों के चलचित्रों की छवि धूमिल सी हो कर मिटने लगी थी. मम्मीपापा की बेमेल व कलहपूर्ण मैरिड लाइफ, पापा के जीवन में ‘वो’ की ऐंट्री और फिर रोजरोज की जिल्लत से खिन्न मम्मी का फांसी पर झूल कर जान दे देना… थरथर कांपती थी वह डरावने सपनों के चक्रवात में फंस कर. नानी के स्नेह की गरमी का लिहाफ उस की कंपकंपाहट को जरा भी कम नहीं कर पाया था.

नानी जब तक जिंदा रहीं लाख कोशिश करती रहीं उस की चेतना से गंभीर प्रतिबिंबों को मिटाने की, मगर जीतेजी उन्हें अपने प्रयासों में शिकस्त के अलावा कुछ हासिल न हुआ. शायद यही दुनिया का दस्तूर है कि हमें प्रियजनों के मशवरे की कीमत उन के जाने के बाद समझ में आती है.

प्रतीक और अपराजिता का परिचय अगले सोपान  पर चढ़ने लगा था. बिना कुछ सोचे वह प्रतीक के रंग में रंग गई. कमाल की बात थी जहां इंटर्नशिप के दौरान प्रतीक उस के दिल में समाता जा रहा था तो दूसरी तरफ इंजीनियरिंग के पेशे से उस का दिल हटता जा रहा था.

वह औफिस आती थी प्रतीक से मिलने की कामना में, अपने पेशे की पेचीदगियों में सिर खपाने के लिए नहीं. ट्रेनिंग बोझ लग रही थी उसे. अपने काम से इतनी ऊब होती थी कि वह औफिस आते ही लंचब्रेक का इंतजार करती और लंचब्रेक खत्म होने पर शाम के 5 बजने का. कुछ सहकर्मी तो उसे पीठ पीछे ‘क्लौक वाचर’ पुकारते थे.

जाहिर था कि अपराजिता ने प्रोफैशन चुनते समय अपने दिल की बात नहीं सुनी. मित्रों की देखादेखी एक भेड़चाल का हिस्सा बन गई. सब ने इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया तो उस ने भी ले लिया. उस ने जब अपनी उलझन प्रतीक से बयां की तो सपाट प्रतिक्रिया मिली, ‘‘अगर तुम्हें इस प्रोफैशन में दिलचस्पी नहीं अप्पू तो मुझे भी तुम में कोई रुचि नहीं.’’

‘‘ऐसा न कहो प्रतीक… प्यार से कैसी शर्त?’’

‘‘शर्तें हर जगह लागू होती हैं अप्पू…

कुदरत ने भी दिमाग का स्थान दिल से ऊपर रखा है. मुझे तो अपने लिए इंजीनियर जीवनसंगिनी ही चाहिए…’’

यह सुन कर अपराजिता होश खो बैठी थी. दिल आखिर दिल है, कहां तक खुद को संभाले… एक बार फिर किसी प्रियजन को खोने के कगार पर खड़ी थी. कैसे सहेगी वह ये सब? कैसे जूझेगी इन हालात से बिना कुछ गंवाए?

अगर वह प्रतीक की शर्त स्वीकार लेती है तो क्या उस कैरियर में जान डाल पाएगी जिस में उस का किंचित रुझान नहीं है? उस की एक तरफ कूआं तो दूसरी तरफ खाई थी, कूदना किस में है उसे पता न था.

अगले महीने फिर अपराजिता का खास जन्मदिन आने वाला था. खास इसलिए क्योंकि नानी ने अपने खत की सौगात छोड़ी थी इस दिन के लिए भी. बड़ी मुश्किल से दिन कट रहे थे… उस का धीरज छूट रहा था… जन्मदिन की सुबह का इंतजार करना भारी हो रहा था. बेसब्री उसे अपने आगोश में ले कर उस के चेतन पर हावी हो चुकी थी. अत: उस ने जन्मदिन की सुबह का इंतजार नहीं किया. जन्मदिन की पूर्वरात्रि पर जैसे ही घड़ी ने रात के 12 बजाए उस ने नानी के दूसरे नंबर के ‘लैगसी लैटर’ का लिफाफा खोल डाला. लिखा था:

‘‘डियर अप्पू’’

‘‘जल्दी तुम्हारी इंजीनियरिंग पूरी हो जाएगी. बहुत तमन्ना थी कि तुम्हें डिगरी लेते देखूं, मगर कुदरता को यह मंजूर न था. खैर, जो प्रारब्ध है, वह है… आओ कोई और बात करते हैं.’’

‘‘तुम ने कभी नहीं पूछा कि मैं ने तुम्हारा नाम अपराजिता क्यों रखा. जीतेजी मैं ने भी कभी बताने की जरूरत नहीं समझी. सोचती रही जब कोई बात चलेगी तो बता दूंगी. कमाल की बात है कि न कभी कोई जिक्र चला न ही मैं ने यह राज खोलने की जहमत उठाई. तुम्हारे 21वें जन्मदिन पर मैं यह राज खोलूंगी, आज के लिए इसी को मेरा तोहफा समझना.

‘‘हां, तो मैं कह रही थी कि मैं ने तुम्हें अपराजिता नाम क्यों दिया. असल में तुम्हारे पैदा होने के पहले मैं ने कई फीमेल नामों के बारे में सोचा, मगर उन में से ज्यादातर के अर्थ निकलते थे-कोमल, सुघड़, खूबसूरत वगैराहवगैराह. मैं नहीं चाहती थी कि तुम इन शब्दों का पर्याय बनो. ये पर्याय हम औरतों को कमजोर और बुजदिल बनाते हैं. कुछए की तरह एक कवच में सिमटने को मजबूर करते हैं. औरत एक शरीर के अलावा भी कुछ होती है.

‘‘तुम देवी बनने की कोशिश भी न करना और न ही किसी को ऐसा सोचने का हक देना. बस अपने सम्मान की रक्षा करते हुए इंसान बने रहने का हक न खोना.

‘‘मैं तुम्हें सुबह खिल कर शाम को बिखरते हुए नहीं देखना चाहती. मेरी आकांक्षा है कि तुम जीवन की हर परीक्षा में खरी उतरो. यही वजह थी कि मैं ने तुम्हें अपराजिता नाम दिया… अपराजिता अर्थात कभी न पराजित होने वाली. अपनी शिकस्त से सबक सीख कर आगे बढ़ो… शिकस्त को नासूर बना कर अनमोल जीवन को बरबाद मत करो. जिस काम के लिए मन गवाही न दे उसे कभी मत करो, वह कहते हैं न कि सांझ के मरे को कब तक रोएंगे.’’

‘‘बेटा, जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है. मेरा विश्वास है तुम अपनी मां की तरह हौसला नहीं खोओगी. हार और जीत के बीच सिर्फ अंश भर का फासला होता है. तो फिर जिंदगी की हर जंग जीतने के लिए पूरा दम लगा कर क्यों न लड़ा जाएं.

‘‘बहुतबहुत प्यार’’

‘‘नानी.’’

अपराजिता ने खत पढ़ कर वापस लिफाफे में रख दिया. रात का सन्नाटा गहराता जा रहा था, किंतु कुछ महीनों से जद्दोजहद का जो शिकंजा उस के दिलोदिमाग पर कसता जा रहा था उस की गिरफ्त अब ढीली होती जान पड़ रही थी.

दूसरे दिन की सुबह बेहद दिलकश थी. रेशमी आसमान में बादलों के हाथीघोड़े से बनते प्रतीत हो रहे थे. चंद पल वह यों ही खिड़की से झांकती हुई आसमान में इन आकृतियों को बनतेबिगड़ते देखती रही. ऐसी ही आकृतियों को देखते हुए ही तो वह बचपन में मम्मी का हाथ पकड़ कर स्कूल से घर आती थी.

कल रात वाले लैगसी लैटर को पढ़ने के बाद से ही वह खुद में एक परिवर्तन महसूस कर रही थी… कहीं कोई मलाल न था कल रात से. वह जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का निर्णय कर चुकी थी. औफिस जाने से पहले उस ने एक लंबा शावर लिया मानो कि अब तक के सभी गलत फैसलों व चिंताओं को पानी से धो कर मुक्ति पा लेना चाहती हो.

प्रतीक के साथ औफिस कैंटीन में लंच लेते हुए उस ने अपना निर्णय उसे सुनाया, ‘‘प्रतीक मैं तुम्हें भुलाने का फैसला कर चुकी हूं, क्योंकि मेरी जिंदगी के रास्ते तुम से एकदम अलग हैं.’’

‘‘यह क्या पागलपन है? कौन से हैं तुम्हारे रास्ते… जरा मैं भी तो सुनूं?’’ प्रतीक कुछ बौखला सा गया.

नादानियां : भाग 2

प्रथमा खिल उठी. फिलहाल तो उस ने कुछ नहीं मांगा मगर आगे की रणनीति मन ही मन तय कर ली. 2 दिनों बाद उस ने राकेश से कहा, ‘‘आज यह बच्ची आप से आप का दिया हुआ वादा पूरा करने की गुजारिश करती है. क्या आप मुझे कार चलाना सिखाएंगे?’’

‘‘क्यों नहीं, अवश्य सिखाएंगे बालिके,’’ राकेश ने कहा. जब वे बहुत खुश होते हैं तो इसी तरह नाटकीय अंदाज में बात करते हैं.

अब हर शाम औफिस से आ कर चायनाश्ता करने के बाद राकेश प्रथमा को कार चलाना सिखाने लगा. जब राकेश उसे क्लच, गियर, रेस और ब्रेक के बारे में जानकारी देता तो प्रथमा बड़े मनोयोग से सुनती. कभीकभी घुमावदार रास्तों पर कार को टर्न लेते समय स्टीयरिंग पर दोनों के हाथ आपस में टकरा जाते. राकेश ने इसे सामान्य प्रक्रिया समझते हुए कभी इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया मगर प्रथमा के गाल लाल हो उठते थे.

लगभग महीनेभर की प्रैक्टिस के बाद प्रथमा ठीकठाक कार चलाने लगी थी. एक दिन उस ने भी राकेश के ही अंदाज में कहा, ‘‘जहांपनाह, कनीज आप को गुरुदक्षिणा देने की चाह रखती है.’’

‘‘हमारी दक्षिणा बहुत महंगी है बालिके,’’ राकेश ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘हमें सब मंजूर है, गुरुजी,’’ प्रथमा ने अदब से झुक कर कहा तो राकेश को हंसी आ गई और यह तय हुआ कि आने वाले रविवार को सब लोग चाट खाने बाहर जाएंगे.

चूंकि ट्रीट प्रथमा के कार चलाना सीखने के उपलक्ष्य में थी, इसलिए आज कार वही चला रही थी. रितेश अपनी मां के साथ पीछे वाली सीट पर और राकेश उस की बगल में बैठा था. आज प्रथमा को गुडफील हो रहा था. चाट खाते समय जब रितेश अपनी मां को मनुहार करकर के गोलगप्पे खिला रहा था तो प्रथमा को बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था बल्कि वह तो राकेश के साथ ही ठेले पर आलूटिकिया के मजे ले रही थी. दोनों  एक ही प्लेट में खा रहे थे. अचानक मुंह में तेज मिर्च आ जाने से प्रथमा सीसी करने लगी तो राकेश तुरंत भाग कर उस के लिए बर्फ का गोला ले आया. थोड़ा सा चूसने के बाद जब उस ने गोला राकेश की तरफ बढ़ाया तो राकेश ने बिना हिचक उस के हाथ से ले कर गोला चूसना शुरू कर दिया. न जाने क्या सोच कर प्रथमा के गाल दहक उठे. आज उसे लग रहा था मानो उस ने अपने मिशन में कामयाबी की पहली सीढ़ी पार कर ली.

इस रविवार राकेश को अपने रूटीन हैल्थ चैकअप के लिए जाना था. रितेश औफिस के काम से शहर से बाहर टूर पर गया है. राकेश ने डाक्टर से अगले हफ्ते का अपौइंटमैंट लेने की बात कही तो प्रथमा ने कहा, ‘‘रितेश नहीं है तो क्या हुआ? मैं हूं न. मैं चलूंगी आप के साथ. हैल्थ के मामले में कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.’’

दोनों ससुरबहू फिक्स टाइम पर क्लिनिक पहुंच गए. वहां आज ज्यादा पेशेंट नहीं थे, इसलिए वे जल्दी फ्री हो गए. वापसी में घर लौटते हुए प्रथमा ने कार मल्टीप्लैक्स की तरफ घुमा दी. तो राकेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कुछ काम है क्या यहां?’’

‘‘जी हां, काम ही समझ लीजिए. बहुत दिनों से कोई फिल्म नहीं देखी थी. रितेश को तो मेरे लिए टाइम नहीं है. एक बहुत ही अच्छी फिल्म लगी है, सोचा आज आप के साथ ही देख ली जाए,’’ प्रथमा ने गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए कहा.

राकेश को उस के साथ यों फिल्म देखना कुछ अजीब सा तो लग रहा था मगर उसे प्रथमा का दिल तोड़ना भी ठीक नहीं लगा, इसलिए फिल्म देखने को राजी हो गया. सोचा, ‘सोचा बच्ची है, इस का भी मन करता होगा…’

प्रथमा की बगल में बैठा राकेश बहुत ही असहज सा महसूस कर रहा था, क्योंकि बारबार सीट के हत्थे पर दोनों के हाथ टकरा रहे थे. उस से भी ज्यादा अजीब उसे तब लगा जब उस के हाथ पर रखा अपना हाथ हटाने में प्रथमा ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि बहुत ही सामान्य भाव से फिल्म का मजा लेती रही. उन्होंने ही धीरे से अपना हाथ हटा लिया.

ऐसा ही एक वाकेआ उस दिन भी हुआ जब प्रथमा उसे पिज्जा हट ले कर गई थी. दरअसल, उन की बड़ी बेटी पारुल की ससुराल घर से कुछ ही दूरी पर है. पिछले दिनों पारुल के ससुरजी ने अपनी आंख का औपरेशन करवाया था. आज शाम राकेश को उन से मिलने जाना था. प्रथमा ने पूछा, ‘‘मैं भी आप के साथ चलूं? इस बहाने शहर में मेरी कार चलाने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी.’’ सास से अनुमति मिलते ही प्रथमा कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर राकेश के साथ चल दी. वापसी में उस ने कहा, ‘‘चलिए, आज आप को पिज्जा हट ले कर चलती हूं.’’

‘‘अरे नहीं, तुम तो जानती हो कि मुझे पिज्जा पसंद नहीं,’’ राकेश ने टालने के अंदाज में कहा.

‘‘आप से पिज्जा खाने को कौन कह रहा है. वह तो मुझे खाना है. आप तो बस पेमैंट कर देना,’’ प्रथमा ने अदा से मुसकराते हुए कहा. न चाहते हुए भी राकेश को गाड़ी से उतरना ही पड़ा. पास आते ही प्रथमा ने अधिकार से उस की बांहों में बांहें डाल कर जब कहा, ‘‘दैट्स लाइक अ परफैक्ट कपल,’’ तो राकेश से मुसकराते भी नहीं बना.

पिज्जा खातेखाते प्रथमा बीचबीच में उसे भी आग्रह कर के खिला रही थी. मना करने पर भी जबरदस्ती मुंह में ठूंस देती. राकेश समझ नहीं पा रहा था कि उस के  साथ क्या हो रहा है. वह प्रथमा की इस हरकत को उस का बचपना समझ कर नजरअंदाज करता रहा. प्रथमा कुछ और जिद करे, इस से पहले ही वह रितेश का फोन आने का बहाना बना कर उसे घर ले आया.

‘‘यह देखिए. मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं,’’ प्रथमा ने एक दिन राकेश को एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा.

‘‘क्या है यह?’’ राकेश ने उसे उलटपलट कर देखा.

दस्विदानिया : उसने रूसियों को क्या गिफ्ट दिया – भाग 2

कुछ देर सोचने के बाद दीपक ने कहा ‘‘एक आइडिया है, उम्मीद है काम कर जाएगा. उस का फोन नंबर तो होगा तुम्हारे पास?’’

‘‘नहीं, मुझे होटल का नंबर और रूम नंबर पता है.’’

‘‘गुड, तुम उसे फोन लगाओ और कहो कि तुम्हें कस्टम वालों ने पकड़ लिया है. तुम्हारे पर्स में कुछ ड्रग्स मिले. तुम्हें खुद पता नहीं कि कहां से ड्रग्स पर्स में आ गए और अब वही तुम्हारी सहायता कर सकता है.’’

नताशा ने फोन कर उस बिजनैसमैन से बात कर वैसा ही कहा.

उधर से वह फोन पर गुस्सा हो कर

नताशा से बोला, ‘‘यू इडियट, तुम ने मेरे या

इस होटल के बारे में कस्टम औफिसर को क्या बताया है?’’

‘‘सर, मैं ने तो अभी तक कुछ नहीं बताया है… पर परदेश में बस आप का ही सहारा है. आप कुछ कोशिश करें तो मामला रफादफा हो जाएगा. मैं अपने डौलर तो साथ लाई नहीं हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता हूं. खबरदार दोबारा फोन करने की कोशिश की.

अब तुम जानो और तुम्हारा काम… भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारे 4000 डौलर,’’ और उस ने फोन काट दिया.

बिजनैसमैन की बातें सुन कर दोनों एकसाथ खुशी से उछल पड़े. नताशा बोली, ‘‘अब तो मेरे डौलर भी बच गए. पापा के घर का काफी कर्ज चुका सकती हूं. मेरा रिटर्न टिकट तो 2 दिन बाद का है. फिर भी मैं कोशिश करती हूं कि आज रात की फ्लाइट मिल जाए,’’ कह वह रसियन एअरलाइन एरोफ्लोट के काउंटर की तरफ बढ़ी.

दीपक ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रुको, इस की कोई जरूरत नहीं है. तुम अभी मेरे साथ चलो. कम से कम 2 दिन तो मेरा साथ दो.’’

दीपक ने नताशा को एक होटल में ठहराया. काफी देर दोनों बातें करते रहे. दोनोें एकदूसरे का दुखसुख समझ रहे थे. रात में डिनर के बाद दीपक चलने लगा. उसे गले से लगाते हुए होंठों पर ऊंगली फेरते हुए बोला, ‘‘नताशा, या लुवलुवा (आई लव यू). कल सुबह फिर मिलते हैं. दोबरोय नोचि (गुड नाइट).’’

‘‘आई लव यू टू,’’ दीपक के बालों को सहलाते हुए नताशा ने कहा.

अगले दिन जब दीपक नताशा से मिलने आया तो वह स्कारलेट कलर के सुंदर लौंग फ्रौक में बैठी थी. बिलकुल उसी तरह जैसे मास्को के होटल में मिली थी.

दीपक बोला, ‘‘दोबरोय उत्रो. क्रासावित्सा (गुड मौर्निंग, ब्यूटीफुल).’’

‘‘कौन ब्यूटीफुल है मैं या तृसिकी?’’ वह हंसते हुए बोली

‘‘दोनों.’’

‘‘यू नौटी बौय,’’ बोल कर नताशा दीपक से सट कर खड़ी हो गई.

दीपक ने उसे अपनी बांहों में ले कर कहा, ‘‘अब तुम कहीं नहीं जाओगी. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं कल ही अपनी शादी के लिए औफिस में अर्जी दे दूंगा.’’

‘‘आई लव यू दीपक, पर मुझे कल जाने दो. मैं ने पिता की निशानी बचाने के लिए अपनी अस्मिता दांव पर लगा दी… मुझे अपने देश जा कर सबकुछ ठीक करने के लिए मुझे कुछ समय दो.’’

अगले दिन नताशा एरोफ्लोट की फ्लाइट से मास्को जा रही थी. दीपक उसे छोड़ने दिल्ली एअरपोर्ट आया था. उस के चेहरे पर उदासी देख कर वह बोली, ‘‘उम्मीद है फिर जल्दी मिलेंगे. डौंट गैट अपसैट. बाय, टेक केयर, दस्विदानिया,’’ और वह एरोफ्लोट की काउंटर पर चैक इन करने बढ़ गई. दोनों हाथ हिला कर एकदूसरे से बिदा ले रहे थे.

कुछ दिनों बाद दीपक ने अपने सीनियर से शादी की अर्जी दे कर इजाजत मांगने

की बात की तो सीनियर ने कहा, ‘‘सेना का कोई भी सिपाही किसी विदेशी से शादी नहीं कर सकता है, तुम्हें पता है कि नहीं?’’

‘‘सर, पता है, इसीलिए तो पहले मैं इस की इजाजत लेना चाहता हूं.’’

‘‘और तुम सोचते हो तुम्हें इजाजत मिल जाएगी? यह सेना के नियमों के विरुद्ध है, तुम्हें इस की इजाजत कोईर् भी नहीं दे सकता है.’’

‘‘सर, हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. मैं शादी उसी से करूंगा.’’

‘‘बेवकूफी नहीं करो, अपने देश में क्या लड़कियों की कमी है?’’

‘‘बेशक नहीं है सर, पर प्यार तो एक से ही किया है मैं ने, सिर्फ नताशा से.’’

‘‘तुम अपना और मेरा समय बरबाद कर रहे हो. तुम्हारा कमीशन पूरा होने में कितना वक्त बाकी है अभी?’’

‘‘सर, अभी तो करीब 12 साल बाकी हैं.’’

‘‘तब 2 ही उपाय हैं या तो 12 साल इंतजार करो या फिर नताशा को अपनी नागरिकता छोड़ने को कहो. और कोई उपाय नहीं है.’’

‘‘अगर मैं त्यागपत्र देना चाहूं तो?’’

‘‘वह भी स्वीकार नहीं होगा. देश और सेना के प्रति तुम्हारा कुछ कर्तव्य बनता है जो प्यार से ज्यादा जरूरी है, याद रखना.’’

‘‘यस सर, मैं अपनी ड्यूटी भी निभाऊंगा… मैं कमीशन पूरा होने तक इंतजार करूंगा,’’ कह वह सोचने लगा कि पता नहीं नताशा इतने लंबे समय तक मेरी प्रतीक्षा करेगी या नहीं. फिर सोचा कि नताशा को सभी बातें बता दे.

दीपक ने जब नताशा से बात की तो उस ने कहा, ‘‘12 साल क्या मैं कयामत तक तुम्हारा इंतजार कर सकती हूं… तुम बेशक देश के प्रति अपना फर्ज निभाओ. मैं इंतजार कर लूंगी.’’

नताशा से बात कर दीपक को खुशी हुई. दोनों में प्यारभरी बातें होती रहती थीं. वे बराबर एकदूसरे के संपर्क में रहते. धीरेधीरे समय बीतता जा रहा था. करीब 2 साल बाद एक बार नताशा दीपक से मिलने इंडिया आई थी. दीपक ने महसूस किया उस के चेहरे पर पहले जैसी चमक नहीं थी. स्वास्थ्य भी कुछ गिरा सा लग रहा था.

दीपक के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं है, सफर की थकावट और थोड़ा सिरदर्द है.’’

दोनों में मर्यादित प्रेम संबंध बना हुआ था. एक दिन बाद नताशा ने लौटते समय कहा, ‘‘इंतजार का समय 2 साल कम हो गया.’’

‘‘हां, बाकी भी कट जाएगा.’’

बेलारूस लौटने के बाद से नताशा का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था. कभी जोर से सिरदर्द, कभी बुखार तो कभी नाक से खून बहता. सारे टैस्ट किए गए तो पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है. डाक्टर ने बताया कि फिलहाल दवा लेती रहो, पर 2 साल के अंदर कुछ भी हो सकता है. नताशा अपनी जिंदगी से निराश हो चली थी. एक तरफ अकेलापन तो दूसरी ओर जानलेवा बीमारी. फिर भी उस ने दीपक को कुछ नहीं बताया.

इधर कुछ महीने बाद दीपक को 3-4 दिनों से तेज बुखार था.

वह अपने एअरफोर्स के अस्पताल में दिखाने गया. उस समय फ्लाइट लैफ्टिनैंट डाक्टर ईशा ड्यूटी पर थीं. चैकअप किया तो दीपक को 103 डिग्री से ज्यादा ही फीवर था.

डाक्टर बोली, ‘‘तुम्हें एडमिट होना होगा. आज फीवर का चौथा दिन है…कुछ ब्लड टैस्ट करूंगी.’’

दीपक अस्पताल में भरती था. टैस्ट से पता चला कि उसे टाईफाइड है.

डा. ईशा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर में और कौनकौन हैं, आई मीन वाइफ, बच्चे?’’

‘‘मैं बैचलर हूं डाक्टर… वैसे भी और कोई नहीं है मेरा.’’

‘‘डौंट वरी, हम लोग हैं न,’’ डाक्टर उस की नब्ज देखते हुए बोलीं.

बीचबीच में कभीकभी दीपक का खुबार 103 से 104 डिग्री तक हो जाता तो वह नताशानताशा पुकारता. डा. ईशा के पूछने पर उस ने नताशा के बारे में बता दिया. डाक्टर ने नताशा का फोन नंबर ले कर उसे फोन कर दिया. 2 दिन बाद नताशा दीपक से मिलने पहुंच गई. उस दिन दीपक का फीवर कम था. नताशा उस के कैबिन में दीपक के बालों को सहला रही थी.

तभी डा. ईशा ने प्रवेश किया. बोलीं, ‘‘आई एम सौरी, मैं बाद में आ जाती हूं. बस रूटीन चैकअप करना है. आज इन्हें कुछ आराम है.’’

मजबूरियां -भाग 1: ज्योति और प्रकाश के रिश्ते से निशा को क्या दिक्कत थी

‘‘अब सिर दर्द कैसा है आप का?’’ थोड़ी देर बड़े प्रेम से सिर दबाने के बाद ज्योति ने प्रकाश से पूछा.

‘‘तुम्हारे हाथों में जादू है, ज्योति,’’ प्रकाश उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया, ‘‘दर्द उड़नछू हो गया. अब मैं खुद को बिलकुल तरोताजा महसूस कर रहा हूं, पर यह कमाल हर बार तुम कैसे कर देती हो?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘कौन सा कमाल?’’ ज्योति बोली.

‘‘मेरे थकेहारे शरीर और दिलोदिमाग में जीवन के प्रति उमंग और उत्साह भरने का कमाल,’’ प्रकाश ने जवाब दिया.

‘‘मैं कोई कमाल नहीं करती जनाब, उलटा मैं जब आप के साथ होती हूं तब मेरी जीवन बगिया के फूल खिल उठते हैं,’’ ज्योति ने कहा.

‘‘और जरूर उन्हीं खूबसूरत फूलों की शानदार महक मु झे यों मस्त और तरोताजा कर जाती है, डार्लिंग,’’ अपनी गरदन घुमा कर प्रकाश ने एक छोटा चुंबन ज्योति के गुलाबी होंठों पर अंकित कर दिया.

‘‘बड़ी जल्दी शरारत सू झने लगी है, साहब,’’ कहते हुए ज्योति के गोरे गाल शर्म से गुलाबी हो उठे.

‘‘तुम कितनी सुंदर हो,’’ अपना मुंह उस के कान के पास ला कर प्रकाश ने कोमल स्वर में कहा, ‘‘एक बात मु झे अभी भी बहुत हैरान कर जाती है.’’

‘‘कौन सी बात?’’ ज्योति ने पूछा.

‘‘हमारी जानपहचान अब 5 साल पुरानी हो गई है. सैकड़ों बार मैं तुम्हें प्रेम कर चुका हूं. पर अब भी मेरा छोटा सा चुंबन तुम्हारे रोमरोम को पुलकित कर जाता है. यही बात मु झे हैरान करती है.’’

‘‘है न कमाल की बात. अब जवाब दो कि जादूगर मैं हुई कि आप?’’ ज्योति शरारती अदा से मुसकराई तो प्रकाश ने इस बार एक लंबा चुंबन उस के होंठों पर अंकित कर दिया.

अपनी सांसें व्यवस्थित करने के बाद प्रकाश ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘जादूगरनी तो तुम हो ही ज्योति. पहली मुलाकात के दिन से ही तुम्हारा जादू मेरे सिर चढ़चढ़ कर बोलने लगा था.’’

‘‘याद है आप को हमारी वह पहली मुलाकात?’’ ज्योति ने पूछा.

‘‘बिलकुल याद है, मीठे खरबूजे चुनने में तुम ने मेरी खुद आगे बढ़ कर मदद की थी,’’ प्रकाश बोला.

‘‘और मैं ने जब अपने खरीदे खरबूजे प्लास्टिक के थैले में डाले तो थैला ही फट गया और थैले में रखे आलूप्याज भी चारों तरफ बिखर गए थे. कितनी चुस्ती दिखाई थी आप ने उन्हें समेटने में. भला 3-4 आलूप्याज निकालने को खरबूजे वाले के ठेले के नीचे घुसने की क्या जरूरत थी आप को?’’ पुराना दृश्य याद कर के ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘अरे, अगर ठेले के नीचे न घुसता तो कील में अटक कर मेरी कमीज न फटती. अगर कमीज न फटती तो तुम अफसोस प्रकट करने की मु झ से ढेरों बातें न करतीं. तब हमारा आपस में न परिचय होता, न हम साथसाथ थोड़ी देर पैदल चलते. उस 15 मिनट के साथसाथ चलने में ही तो हमारे दिलों में एकदूसरे के लिए प्रेम का बीज पड़ा था, मैडम. इसलिए मेरा ठेले के नीचे घुसना बड़ा जरूरी था. यदि मैं ऐसा न करता तो दुनिया की सब से खूबसूरत, सब से प्यारी सर्वगुणसंपन्न युवती के प्यार से वंचित रह जाता या नहीं?’’ प्रकाश का बोलने का नाटकीय अंदाज ज्योति को हंसाहंसा कर उस के पेट में बल डाल गया.

‘‘तुम से उस दिन मिल कर पहली नजर में ही मु झे ऐसा लगा था जैसे मु झे अपने सपनों का राजकुमार मिल गया हो,’’  प्रकाश की गोद में सिर रख कर लेटते हुए ज्योति ने भावुक स्वर में कहा.

‘‘और जब बाद में तुम्हें यह मालूम चल गया कि तुम्हारे सपनों का राजकुमार शादीशुदा है, 2 बच्चों का पिता है तब तुम ने उस की तसवीर को अपने दिल से क्यों नहीं निकाल फेंका?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘बुद्धू, इतने सोचविचार में ‘प्रेम’ कहां पड़ता है. प्रेम को अंधा कहा जाता है, जनाब. जिस से हो गया, हो गया. जिस से नहीं, तो नहीं. कोई जोरजबरदस्ती नहीं चलती प्रेम में.’’

‘‘ठीक कहती हो तुम, निशा के साथ मेरी शादी हुए 18 साल से ज्यादा समय बीत चुका है. हमारे बीच प्रेम का अंकुर कभी जड़ ही नहीं पकड़ सका. एकदूसरे के दिलों में जगह नहीं बना पाए

कभी हम. तुम्हारे मेरे साथ संबंधों  की जानकारी होने के बाद उस से मेरे संबंध बहुत बिगड़ गए हैं, ज्योति,’’ प्रकाश बोला.

‘‘मेरे कारण आप उन से मत उल झा करें, प्लीज. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मैं आप के जीवन में समस्याएं पैदा करूं. मेरा प्रेम आप की सुखशांति और खुशियों के अलावा और कुछ भी नहीं मांगता,’’ कहते हुए ज्योति की आंखों में आंसू  िझलमिला उठे.

‘‘तुम कुछ मांगती नहीं. और मैं जो तुम्हें देना चाहता हूं वह दे नहीं सकता. अपनी मजबूरियां देख कर कभीकभी मु झे लगता है, मैं ने तुम से प्रेमसंबंध जोड़ कर तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया है,’’  कहता हुआ प्रकाश उदास हो उठा.

‘‘बिलकुल गलत,’’ ज्योति फौरन हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारा प्रेम मेरे लिए अनमोल है. प्रेम से मिलने वाला सुख सात फेरों का मुहताज नहीं होता. बस, मु झे तुम्हारे होंठों पर हंसी नजर आती रहे तो मैं अपने जीवन से, अपने हालात से कभी शादी न करने के अपने फैसले से, तुम्हारे प्रेम से पूरी तरह संतुष्ट हूं.’’

निर्णय : भाग 2

मन की कड़वाहट मन में ही दबा ली थी उस ने इस समय. कुछ ही देर पहले तो मां ने छोरियां जनने वाली डायन कहा था उसे. ‘मुझे तो पहले से ही शक था कि यह इस का अपना जाया नहीं है,’ जिज्जी बोली थीं. दोनों आंगन में चारपाई डाले साग बीन रही थीं. उन्हें पता नहीं था कि वह आंगन के ठीक ऊपर लगे लोहे के जाल की मुंडेर पर खड़ी सुन रही है. अभी नहा कर निकली थी वह. सफर में पहने अपने व सोनू के कपड़े धो डाले थे उस ने. तार पर सूखने को डाल रही थी. ‘इस औरत ने पता नहीं क्या जादू कर रखा है. अपना नीलाभ तो ऐसा कभी नहीं था. इतने साल भनक तक न लगने दी सचाई की. अब जो भी है, इस अपाहिज से पीछा तो छुड़ाना ही होगा भाई का,’ जिज्जी की जहरीली फुफकार से उस का रोमरोम जल उठा था. कोई स्त्री इतनी कठोर कैसे हो सकती है. मां कहती हैं, उन का बेटा उस के बहकावे में आ गया है. बेशक, अलग गृहस्थी बसा कर बैठी है, पर बहू है घर की, बहू बन कर रहे. सिर पर चढ़ कर नाचने न देंगे. नीलाभ अनाथ नहीं है, उस के सिर पर मां का साया है अभी. बहू हो कर इतना बड़ा निर्णय लेने का उस अकेली को कोई हक नहीं.’

कलेजा बर्फ हो गया था उस का. हाथपांव सुन्न हो गए थे. घरभर के ठंडे व उपेक्षित व्यवहार का कारण पलभर में उसे समझ आ गया था. उसे ट्रेन पर बिठाते ही नीलाभ ने इन लोगों के आगे वह सारा सच उगल दिया था जिसे वे दोनों आज तक अपनी परछाईं से भी छिपा कर रखते थे. मां ने क्या आग उगली, जिज्जी ने क्या दंश दिए, सब बेमानी हो गए थे नीलाभ के विश्वासघात के आगे. अपना वश नहीं चला तो उस पर घर वालों का दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे नीलाभ. यहीं चूक गए नीलाभ. पहचान नहीं पाए उसे. वह तो उसी क्षण उसी रात पूर्णरूपेण मां बन गई थी बेटे की. ममता भी कहीं आधीअधूरी होती है. अब शरर में कुछ दोष है तो है. इस नन्ही सी जान की सेवा के लिए परिवार या नीलाभ कौन होते हैं रोड़ा अटकाने वाले. अब यह तो नहीं हो सकता कि एक दिन अचानक से एक अनजान बालक को गोद में डाल दिया और कहा, ‘यह लो, बेटा बना लो. फिर कह दिया, नहीं, यह बेटा नहीं हो सकता, छोड़ आओ कहीं.’ वह हैरान थी कि कमी उजागर होते ही बेटे पर जान न्योछावर करने वाला पिता इतना कठोर हृदय कैसे हो सकता है.

भीतर की सारी उथलपुथल भीतर ही समेटे ऊपर से सामान्य दिखने की कोशिश में अपनी सारी ऊर्जा खर्च करती वह बूआ के घर में सब से मिलतीमिलाती रही थी. नामकरण से लौट कर रात को मां तथा जिज्जी ने उसे आ घेरा था. उन्हें हजम ही नहीं हो रहा था कि उस ने सब से इतना बड़ा झूठ बोला कैसे. शक तो पहले से ही था. न दिन चढ़ने की खबर लगने दी, न दर्द उठने की, सीधा छोरा जनने की खबर सुना दी थी. छोरा न हुआ, कुम्हड़ा हो गया कि गए और तोड़ लाए. ‘अब नीलाभ नहीं चाहता है तो तू क्यों सीने से चिपकाए है छोरे को. छोड़ क्यों नहीं देती इसे. पता नहीं किस जातकुजात का पाप है. अच्छा हुआ कि छोरा अपाहिज निकला वरना हमें कभी कानोंकान भनक न होती.’ बिफर तो सुबह से ही रही थीं दोनों, पर पता नहीं कैसे जब्त किए बैठी थीं. शायद उन्हें डर था कि ये सब बातें उठते ही क्लेश मच जाएगा घर में. उस के रोनेबिसूरने, विरोध तथा विद्रोह के स्वर इतने ऊंचे न हो जाएं कि उन की गूंज बूआ के घर एकत्र हुए मेहमानों तक पहुंच जाए. सब को पता था कि वह आई हुई है विशेष तौर पर समारोह में सम्मिलित होने. बिफर कर कहीं वहां जाने से इनकार कर देती तो बिरादरी में मां सब को क्या बतातीं उस के न आने का कारण.

सिर झुकाए बैठी वह सोच रही थी कि यदि सोनू की मां का कुछ अतापता होता तो नीलाभ अवश्य ही उसे वापस सौंप देते बच्चा. पर वह फिलहाल अनजान लड़की तो आसन्नप्रसवा थी जब नीलाभ के नर्सिंग होम में पहुंची थी. आधी रात का समय, स्टाफ और मरीज अधिक नहीं थे उस समय. बस, एक आपातकालीन मरीज की देखभाल करने के लिए रुके हुए थे नीलाभ. कुछ ही पलों में बच्चा जना और पता नहीं चुपचाप कब बच्चा वहीं छोड़ कर भाग निकली थी वह लड़की. पहले तो घबरा गए नीलाभ, पुलिस को सूचना देनी होगी. फिर अचानक उन की छठी इंद्रीय सक्रिय हो उठी. लड़का है. जो यों इसे पैदा कर के छोड़ कर भाग निकली है, वह वापस आने से तो रही. उन्होंने तुरंत उसे फोन किया तथा अस्पताल बुला लिया. एक बिस्तर पर लिटा कर पास ही पालने में वह नवजात शिशु लिटा दिया. सुबह  होतेहोते यह खबर चारों ओर फैल गई कि रात में पुत्र को जन्म दिया है डाक्टर साहब की पत्नी ने. सब हैरान थे. अच्छा, मैडम गर्भवती थी, पता ही न चला. अड़ोसपड़ोस भी हैरान था. सब को डाक्टर साहब ने अपनी बातों से संतुष्ट कर दिया. वैसे भी वह कहां ज्यादा उठतीबैठती थी पड़ोस में. छोटे शहरों में भी आजकल वह बात नहीं रही. कौन किस की इतनी खबर रखता है. बधाइयां दी गईं, मिठाइयां बांटी गईं, जश्न हुए. यही मां और जिज्जी बलाएं लेती न आघाती थीं. और अब इतना जहर. 5 बजे की ट्रेन थी उस की वापसी की. उस के निकलने से घंटा भर पहले सरिता आ पहुंची थी उस से मिलने. कोई और वक्त होता तो वह सौ गिलेशिकवे करती अपनी प्यारी ननद, अपनी बचपन की सखी सरिता से. पर जब से आई थी, इतने तनाव, क्लेश और परेशानियों में फंसी थी कि उसे स्वयं भी कहां याद रहा था एक बार सरिता को फोन ही कर लेना.

मेरे पति मुझे अपने साथ कहीं भी ले जाना पसंद नहीं करते हैं, अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी शादी हुए अभी 2 वर्ष ही हुए हैं. मैं दिखने में बहुत खूबसूरत नहीं हूं जबकि मेरे पति काफी हैंडसम हैं जिस कारण वे मुझे अपने साथ कहीं भी ले जाना पसंद नहीं करते. इस से धीरेधीरे मैं तनाव में रहने लगी हूं. खुद को कैसे खूबसूरत बनाऊं ताकि मेरे पति मेरी ओर आकर्षित हो सकें?

जवाब

हर पुरुष की यही ख्वाहिश रहती है कि उस की पत्नी खूबसूरत हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप के पति आप को इग्नोर करें. पतिपत्नी का रिश्ता परस्पर प्यार की बुनियाद पर टिका होना चाहिए. जरूरी नहीं कि इंसान का चेहरा ही खूबसूरत हो. आप अपनी बातों, ड्रैसिंग स्टाइल, बात करने के अंदाज, नखरों और सैक्स अपील से पति को आकर्षित कर सकती हैं. हताश हो कर बैठने के बजाय आप खुद को बदलिए, फिर देखिए.

मंजिल तक : भाग 2

उन के चेहरे पर खुशी देख कर धर्मा को एक अजीब संतोष हुआ. आगे बढ़ कर भाभी की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘आप के बिना रहना कितना मुश्किल होगा, भाभी.’’ भाभी की आंखें सजल हो गईं. आंचल के कोर से उस ने चतुराई से आंसू पोंछ डाले. धर्मा ने आहिस्ते से कहा, ‘एक बात और कहनी है, भाभी.’’ ‘‘कहो धर्मा,’’ भाभी ने बड़ी आत्मीयता से कहा. ‘‘वह जो मैं ने अभी कहा था न कि आप सुंदर हैं, स्मार्ट हैं, पढ़ीलिखी हैं वगैरहवगैरह. सब ?ाठ था. आप भी मेरी तरह अंगूठा छाप हैं,’’

धर्मा ने कहा और इस के पहले कि भाभी के हाथ आता, वह वहां से नौदोग्यारह हो गया. सोनिया ने वीजा के लिए जरूरी सारे कागजात पूरे किए और चंद ही दिनों में अमेरिका का वीजा उस के पासपोर्ट की शोभा बन चुका था. धर्मा सोनिया पर दिलोजान निसार कर रहा था, सुबहशाम उस का तसव्वुर और रातदिन उस घड़ी का इंतजार जब सोनिया अमेरिका जाएगी और वह भी पीछेपीछे अमेरिका पहुंच जाएगा, जहां वे एक नया जीवन शुरू करेंगे, जिस में ढेर सारा प्यार होगा और बहुत सारा विश्वास एवं समर्पण. आखिरकार, वह दिन आ भी गया जब सोनिया अमेरिका जाने के लिए तैयार थी. धर्मा ने मुंबई आ कर सोनिया को विदाई दी और आंखों में भविष्य के सपने संजोए भारी मन से वापस अपने गांव आ गया.

न्यूयौर्क जा कर सोनिया ने आगे की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया और बाकी के वक्त में छोटीमोटी नौकरी भी कर ली. वादे के मुताबिक धर्मा हर महीने सोनिया को पैसे भेजता रहता और सप्ताह में एक बार उन की आपस में बात होती रहती. पढ़ाई की वजह से बात छोटी ही होती और फिर धीरेधीरे बातों का सिलसिला बादलों में छिपे चांद की तरह हो गया. वक्त बदलता रहा और शीघ्र ही सोनिया ने अपनी पढ़ाई समाप्त कर के वहां एक अच्छी कंपनी में नौकरी हासिल कर ली. नौकरी शुरू करने के बाद तो धर्मा के लिए सोनिया से बात करना ही दुश्वार हो गया. अभी फोन रखती हूं, जरूरी मीटिंग है, शाम को बात करती हूं. मगर वह शाम कभी न आती. धर्मा भाभी को सारी बातें बताता रहता और धर्मा की बातें सुन कर भाभी के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएं आतीजातीं.

उस शाम जब धर्मा किसी काम से दिल्ली गया था तो भाभी ने सोनिया से फोन पर बात की. सोनिया ने फोन उठा तो लिया मगर बातचीत बढ़ाना नहीं चाहती थी, ‘‘मैं अभी’ सोनिया कुछ कहना चाह रही थी कि भाभी ने बात काट दी, ‘‘तुम्हारी मीटिंगों से ज्यादा जरूरी मेरी बात है. मु?ो तुम्हारे रंगढंग ठीक नहीं लग रहे. धर्मा तुम से अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है, अपना हर वादा निभाया उस ने. अब उसे इंतजार है कि तुम उसे वहां कब बुलाऊंगी.’’ ‘‘मैं कोशिश कर रही हूं, भाभी. मगर धर्मा के पास न कोई डिगरी है न कोई हुनर, उज्जड किस्म का आदमी है. दिमाग के नाम पर जीरो वाट का बल्ब. मैं करूं तो क्या करूं.’’ भाभी को काटो तो खून नहीं, फोन उस के हाथ से छिटक कर गिर पड़ा और वह स्वयं भी वहीं निढाल हो कर गिर पड़ीं. सोनिया की नीयत पर अब उसे शक न करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. आंखों के सामने धर्मा का चेहरा घूमने लगा.

विश्वास के स्तर के इतने बड़े हृस की उन्हें जरा भी आशा न थी. अगले रोज जब धर्मा आया तो भाभी उस से नजरें मिलाने से बच रही थीं. हाथमुंह धोते हुए धर्मा ही बोल पड़ा, ‘‘भाभी, सोनिया का नंबर लगातार बंद आ रहा है. लगता है, नैटवर्क की गड़बड़ है.’’ ‘‘सोनिया ने मोबाइल नंबर बदल दिया होगा, धर्मा. वह तु?ा से बात करने से कतरा रही है. उस ने मेरे विश्वास की डोर को सोचीसम?ा साजिश के तहत तोड़ दिया. तुम्हारी असली गुनहगार मैं हूं. सम?ा नहीं आता कि मैं तुम्हें क्या कहूं, क्या सलाह दूं.’’ ‘‘मु?ो इस बात का एहसास था भाभी, इसलिए मैं दिल्ली गया था. बड़ी मुश्किल से एक महीने का टूरिस्ट वीजा मिला है. अगले हफ्ते ही मैं न्यूयौर्क जाऊंगा. सरपंचजी का बेटा सोमू वहां बरसों से है. मैं ने उसे सारी बातें सम?ा दी हैं और उस ने वादा किया है कि वह मेरी पूरी मदद करेगा. उस का एक जानकार वकील है जिसे मैं ने सोनिया पर नजर रखने को और उस के बारे में सबकुछ पता करने को कहा है. उस के जरिए सोनिया से मिल कर सारी बातें साफ कर लूंगा.’’

‘‘फिर,’’ भाभी को सम?ा नहीं आ रहा था कि धर्मा के मन और मस्तिष्क में क्या उथलपुथल चल रही थी. उस ने बिना भाभी की तरफ देख कर कहा, ‘‘और फिर सोनिया यहां होगी, तुम्हारे पास अपनी गलती का प्रायश्चित्त करने के लिए, तुम्हारे कदमों में सिर रखने के लिए.’’ ‘‘लेकिन उस ने इनकार कर दिया तो.’’ ‘‘खाली हाथ तो नहीं लौटूंगा, भाभी. यह मेरी जिद भी है और तुम से वादा भी. जिस ने तुम्हें कष्ट दिया है उसे इस दर्द की टीस का एहसास तो दिलाना ही पड़ेगा.’’ न्यूयौर्क हवाई अड्डे पर सोमू ने बड़ी गर्मजोशी से धर्मा का स्वागत किया और उसे अपने घर ले गया. ‘‘मेरे पास सिर्फ एक महीने का वक्त है, सोमू और मु?ो सोनिया से मिलना ही पड़ेगा. तू मु?ो किसी तरह से उस के पास ले चल. फिर देखता हूं कि वक्त की धारा मोड़ कर हमें किस मुहाने पर ले कर जाती है.’’ ‘‘मैं कोशिश करता हूं कि तुम्हें जल्द से जल्द सोनिया तक ले जा सकूं हालांकि सोनिया अब पहले वाली सोनिया नहीं है. उस के पास दौलत है,

थोड़ीबहुत शोहरत भी है, रुतबा है.’’ सोमू की कुछ ही दिनों की मेहनत रंग लाई. उस ने सोनिया को विश्वास में लिया और दक्षिण अफ्रीका से आए एक बिजनैस डैलिगेशन से मिलने का वक्त ले लिया. डैलिगेशन जब मिलने गया तो उस में सब से आगे धर्मा था. ‘‘तुम, तुम यहां?’’ धर्मा को सामने देख कर सोनिया मानो आकाश से धरातल पर गिर पड़ी पर जल्द ही वह सारा माजरा सम?ा गई. ‘‘तुम्हारा चौंकना स्वाभाविक है. तुम से मिलने के लिए, अपनी होने वाली पत्नी तक पहुंचने के लिए मु?ो एक नकली डैलिगेशन का सहारा लेना पड़ा. मैं तुम से बात करना चाहता हूं, अपने बारे में, तुम्हारे बारे में, हम दोनों के बारे में.’’ ‘‘देखो धर्मा, यह औफिस है. यहां मैं काम करती हूं, आज मेरे पास बिलकुल वक्त नहीं है. मैं अभी न्यूयौर्क से बाहर जा रही हूं और वैसे भी यहां यों बात करना मुनासिब नहीं होगा. मैं तुम से शनिवार को मिलती हूं. शाम 5 बजे इसी औफिस के पीछे न्यू एंपायर कौफी हाउस में.’’ ‘‘देख लो सोनिया, मेरे पास वक्त बहुत कम है और खोने को कुछ भी नहीं है और तुम्हारी तिजोरी भरी पड़ी है. तुम्हारी एक गलत चाल तुम से यहां पर तुम्हारी करतूतों के हिसाब मांग सकती है. एक बात और याद रखना कि मैं अनपढ़ जरूर हूं लेकिन बेवकूफ नहीं.’’ सोमू ने धर्मा को ले जा कर चंद्रा से मिलवाया जो वकील के साथसाथ एक रजिस्टर्ड डिटैक्टिव भी था. ‘‘सोनिया के बारे में जो भी सूचनाएं आप ने भेजीं उन से एक बात शीशे की तरह साफ है कि उस ने अपने बारे में यहां बहुतकुछ फर्जी बताया हुआ है. अपनी डिगरी, भारत में विभिन्न कंपनियों में अपने काम का अनुभव, बैंक खातों की जानकारी सबकुछ ?ाठा है. उस की यह इमारत ?ाठ की बुनियाद पर टिकी हुई है.

’’ ‘‘और अमेरिका में ऐसे आर्थिक अपराध सामान्य नहीं माने जाते. इन की सजा भी उतनी ही सख्त है जितनी अन्य अपराधों की है. आप की मंगेतर को न सिर्फ वापस भारत डिपोर्ट कर सकते हैं बल्कि यहां के कानून के मुताबिक उन्हें अच्छीखासी जेल की सजा भी मिल सकती है.’’ उत्तर में धर्मा ने एक फीकी मुसकान फेंकी और इजाजत लेते हुए बोला, ‘मैं भी कुछ ऐसा ही चाहता हूं.’’ तय दिन और तय समय पर धर्मा सोनिया से मिलने तय जगह पर पहुंच गया, ‘‘तुम आज जिस मुकाम पर पहुंची हो वहां तुम्हें पहुंचाने में मेरा प्यार, मेरी भाभी की आत्मीयता और मेरी धरती का बलिदान छिपा है. तुम ने तीनों का अपमान किया. मैं अच्छी तरह से जानता था कि तुम निहायत स्वार्थी और मतलबी किस्म की इंसान हो मगर मैं ने अपनी भाभी के निश्च्छल प्रेम पर अपनी सोच को कुरबान कर दिया और तुम ने इस का यह सिला दिया?’’ ‘‘मैं तुम से रिश्ता तोड़ना नहीं चाहती थी, बस, एक अच्छे मौके का इंतजार कर रही थी.’ सोनिया कुछ कहना चाह रही थी मगर धर्मा ने उसे रोक दिया.

नौर्मल डिलीवरी से ज्यादा फायदेमंद क्यों मानी जाती है सिजेरियन, जानें

सामान्य हो सकने वाली डिलीवरी के केस में भी औपरेशन करने वाले डाक्टरों के बीच आजकल सक्सैसफुल सिजेरियन का रिकौर्ड बनाने की होड़ सी लगी है. इसे ये अपने प्रोफाइल में तो जोड़ते ही हैं, साथ ही इस से अपनी और अपने मालिकों की जेबें भी भरते हैं. अमीर हो या गरीब, इन के चंगुल में एक बार आ जाने पर मुश्किल से ही निकल पाता है. स्वास्थ्य सुविधाओं का निजीकरण होने के बाद सरकारी अस्पताल तो अनाथ बच्चों की तरह पल रहे हैं. उन में न तो सही ढंग के वार्ड बचे हैं और न  ही बैड.

दिल्ली के एक मैटरनिटी होम में प्रैग्नैंसी टैस्ट कन्फर्म होने के बाद ज्योति और विकास का जोड़ा घर पहुंचा. उस मैटरनिटी होम के बारे में विकास ने अपने साथियों और रिश्तेदारों से बड़ी तारीफ सुन रखी थी, ऐसे में उन्हें अपने पहले बच्चे के जन्म के लिए वही अस्पताल सब से उपयुक्त लगा. पहली बार वहां की गाइनी डाक्टर से मीटिंग हुई. दोनों को डाक्टर का स्वभाव बड़ा अच्छा लगा. कभी कोई परेशानी न हो इस के लिए डाक्टर ने अपना पर्सनल नंबर भी दे दिया. तमाम टैस्ट व आएदिन अस्पतालों के चक्कर काटना तो जैसे ज्योति और विकास के लिए आम हो गया था. प्रसव का समय आया तो विकास ने अपनी पत्नी के गर्भ की नियमित जांच ठीक एक दिन पहले भी कराई थी. खैर, भरती होने के बाद डाक्टर ने ज्योति के डिलीवरी केस को काफी कौंप्लिकेटेड बताते हुए उसे सिजेरियन डिलीवरी कराने की सलाह दी.

सवाल उठता है कि ठीक एक दिन पहले तक ज्योति के सारे टैस्ट सामान्य थे और बच्चा भी स्वस्थ बताया गया था. लेकिन मात्र रात बीतने के बाद उस की डिलीवरी में अड़चनें क्यों बताई गईं. ज्योति और विकास को डाक्टरों ने इस तरह भयभीत किया कि बच्चे के सिर में गर्भनाल फंस गई है, जिस से बच्चे के गले में फंदा भी लग सकता है आदि. डर कर और पहले बच्चे की चाह में उन्हें सिजेरियन डिलीवरी करानी पड़ी. देखा जाए तो अकेले ज्योति और विकास के साथ ही ऐसा नहीं हुआ बल्कि आएदिन डाक्टरों के जाल में लोग फंसते रहते हैं. दिल्ली एनसीआर के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, निजी अस्पतालों में लगभग 75 से 80 फीसदी बच्चे औपरेशन से पैदा होते हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में केवल 40 फीसदी सिजेरियन होते हैं. बड़े शहरों में लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी होती है. कइयों को ज्यादा उम्र के कारण नौर्मल डिलीवरी में परेशानी होती है. डाक्टरों के मुताबिक, नौर्मल डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा होती है.

सिजेरियन प्रसव की सलाह निजी अस्पतालों में यों ही नहीं दी जाती. सामान्य डिलीवरी कराने के उसे 15 हजार रुपए के बीच मिलते हैं तो वहीं सिजेरियन करने पर यही रेट 25 से 50 हजार रुपए और इस से ऊपर तक वसूल लिए जाते हैं. दुनियाभर में औपरेशन के जरिए प्रसव के चलन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता जताते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया तभी अपनाई जाए जब मैडिकल तौर पर जरूरी हो. औपरेशन के जरिए होने वाले प्रसव का मां और बच्चा दोनों पर बुरा असर पड़ता है. किसी भी देश के लिए 10-15 फीसदी के बीच सिजेरियन मामले उचित हैं लेकिन इस से ज्यादा मामले खतरनाक संकेत देते हैं. 5 में से 1 महिला सिजेरियन डिलीवरी के रास्ते को चुनती है. कई देशों में औपरेशन के जरिए प्रसव की महामारी देखी जा रही है. यहां तक कि कई ऐसे केसों में औपरेशन कर दिए जाते हैं जबकि इस अप्राकृतिक डिलीवरी की जरूरत नहीं होती है. सिजेरियन करते समय पेट पर चीरा लगा कर बच्चे को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है. सामान्य प्रसव में महिला को 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है जबकि सिजेरियन में कम से कम उसे 5 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है.

कब जरूरी है सिजेरियन

कैलाश अस्पताल, नोएडा की गाइनोकोलौजिस्ट डा. दीप्ती मैथानी के अनुसार :

-गर्भवती महिला का ब्लडप्रैशर बढ़ने या दौरा पड़ने की स्थिति में सिजेरियन औपरेशन किया जाता है वरना दिमाग की नसें फट सकती हैं और लिवर व किडनी खराब हो सकते हैं.

-कभीकभी देखा गया है कि छोटे कद वाली महिलाओं के कूल्हे की हड्डी छोटी होने के कारण बच्चा सामान्य तरीके से नहीं हो पाता.

-कई बार दवाओं से बच्चेदानी का मुंह नहीं खुल पाता, ऐसे में सर्जरी करनी पड़ती है. ज्यादा खून बहने पर भी सिजेरियन औपरेशन करना पड़ सकता है.

-बच्चे की धड़कन कम होने या गले में गर्भनाल लिपटी होने, बच्चे का आड़ा या उलटा होना, कमजोरी या खून का दौरा कम होने पर भी औपरेशन किया जाता है.

-बच्चा जब पेट में ही गंदा पानी (मल-मूत्र) कर दे तो उसे मिकोनियम कहते हैं इस स्थिति में भी तुरंत औपरेशन कर बच्चे की जान बचाई जाती है.

सिजेरियन और भ्रांतियां

समाज में सिजेरियन डिलीवरी के बाबत काफी भ्रम है, जिन में से कुछ ये हैं:

पहला बच्चा सिजेरियन हो तो दूसरा सामान्य नहीं होता? ऐसे में सिजेरियन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि दूसरी बार प्रसव पीड़ा के दौरान टांके फटने का डर रहता है. पर यह जरूरी नहीं कि पहला केस अगर अप्राकृतिक हो तो दूसरा सामान्य नहीं हो सकता.

आम धारणा बन गई है कि सिजेरियन के बाद महिला बस पूरा आराम ही करे. माना कि सर्जरी के बाद महिला को ज्यादा से ज्यादा आराम की जरूरत होती है लेकिन 1 महीने के बाद उसे अपने रोजमर्रा के काम करना शुरू कर देना चाहिए. डाक्टर द्वारा बताए गए व्यायाम भी करें अन्यथा महिला मोटी हो सकती है.

सिजेरियन डिलीवरी के बाद बौडी फूलती ही है? ऐसा नहीं है कि औपरेशन होने के बाद आप मोटी हो ही जाएंगी. यह गलत धारणा है. सब का बौडी स्ट्रक्चर अलगअलग होता है.

कब जरूरी है डिलीवरी?

गाइनोकोलौजिस्ट डा. दीप्ती मैथानी के मुताबिक, डिलीवरी 37 हफ्ते और 40+1 हफ्ते के बीच होनी उचित रहता है. यह चक्र कंपलीट है और बच्चा पूरा स्वस्थ रहता है. कम हफ्ते में डिलीवरी होने पर मां और बच्चे दोनों को कई प्रकार के कौंप्लिकेशंस हो जाते हैं. इसलिए ध्यान रखिए और समयानुसार खाइए पीजिए और डाक्टर की सलाह अनुसार ही चलिए.

वहीं, बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस को देखते हुए देर से बच्चे को जन्म देना एक ट्रैंड सा बन गया है. विज्ञान शादी की उम्र तो नहीं बताता पर बच्चे को जन्म देने के लिए 20 से 35 वर्ष के बीच की उम्र सही बताई गई है. 18 साल से कम आयु में बच्चे के जन्म के लिए शरीर तैयार नहीं होता. वहीं, 35 साल के बाद बच्चे के जन्म में कई तरह की मैडिकल परेशानियों खड़ी हो सकती हैं जो मां और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.

शरीर में बदलाव

सिजेरियन डिलीवरी के बाद में शरीर में कई बदलाव देखे जा सकते हैं, जैसे :

गर्भवती होने पर वजन का बढ़ना स्वाभाविक है. सिजेरियन डिलीवरी होने पर मोटापा कुछ कम तो होता है पर इतना नहीं. त्वचा फीकी पड़ने लगती है और पूरा शरीर थुलथुला हो जाता है. टांके कटने के बाद डाक्टर से सलाह कर के व्यायाम करना शुरू करें. ध्यान रखें ऐसी ऐक्सरसाइज न करें कि जिस से शरीर में खिंचाव या दर्द महसूस होने लगे. हां, यह सच है कि हारमोंस के प्रभाव से जोड़ों में ढीलापन और दर्द हो जाता है व पेट की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं.

सामान्य डिलीवरी वाली महिलाएं 6 हफ्तों के बाद किसी भी तरह की ऐक्सरसाइज करना शुरू कर सकती हैं और अगर आप की डिलीवरी सिजेरियन है तो 3 महीनों के बाद ही ऐक्सरसाइज शुरू करें. अगर डिलीवरी के बाद नियमित रूप से उचित ऐक्सरसाइज और उचित खानपान का ध्यान रखा जाए तो शायद आप का वजन बढ़े ही नहीं.

सिजेरियन करवाने के शौकीनों को याद रखना चाहिए कि औपरेशन बिना जोखिम के नहीं होता. इस औपरेशन में अधिक रक्तस्राव होता है. यह संक्रामक भी हो सकता है. दवाएं रिऐक्ट कर सकती हैं. बच्चे को जितने इक्विपमैंट्स से निकाला जाता है उन से भी चोट लग सकती है. जीवनभर वजन उठाने में परेशानी हो सकती है.

अस्पताल में सामान्य डिलीवरी का जहां खर्च 5 हजार से 15 हजार रुपए तक आता है तो वहीं सिजेरियन का यही खर्च इस का चौगुना हो जाता है. यदि इस में एनेस्थीसिया, सहायक, पेडियाट्रिशियन और अस्पताल का खर्च को शामिल कर दिया जाए तो 50 हजार रुपए के ऊपर तक का बिल समाने आ जाता है. आजकल निजी अस्पतालों से जुड़े कुछ गाइनी डाक्टर अपना वेतन नहीं लेते, वे जो सिजेरियन करते हैं उन में उन की मोटी फीस शामिल होती है. ये कमाई दो नंबर की होती है. मुंबई के एक उपनगर घाटकोपर में एक गाइनी के घर आयकर का छापा पड़ा तो उस महिला ने गद्दे में रुई के स्थान पर नोट ठूंस रखे थे. आजकल अधिकांश गाइनी की कमाई सिजेरियन औपरेशनों और गर्भपातों से खूब हो रही है.

सिजेरियन बना बाधा

डाक्टरों द्वारा मरीजों के परिजनों को इस कदर भयभीत किया जाता है कि वे खुद कह उठते हैं, ‘जैसा आप ठीक समझें. डाक्टर साहब आप पैसों की चिंता न करें, बच्चे को बचा लीजिए.’ ज्यादातर डाक्टर जो परिजनों को डराते हैं वे कुछ इस तरह से हैं जैसे गर्भनाल में बच्चा फंस गया है, बच्चा उलटा है, बच्चा मूवमैंट नहीं कर रहा, धड़कन नहीं आ रही बच्चे की, बच्चे के मुंह में मल चला गया है. बच्चे का सिर बहुत बड़ा है और ऐसे में उस के बाहर आने में कौंप्लिकेशंस हो सकते हैं, गर्भवती महिला हमारे साथ सपोर्ट नहीं कर पा रही है, बच्चा बेहद कमजोर है इसलिए फौरन ऐक्शन लेना पड़ेगा आदि. दरअसल, सिजेरियन औपरेशन करना डाक्टरों का पैसा कमाने का धंधा बन गया है. डर कर लोग अपनी पत्नी या बच्चे को बचाने के लिए भावुक हो उठते हैं. आप के साथ कभी ऐसा हो तो सोचसमझ कर ही व सारे पहलुओं को जान कर ही उचित निर्णय लें.

भोर- राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास- भाग 2

ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है.

एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां,

2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया.

पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास.

फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था.

राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती.

एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा.

पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

अब वह न तो अपने खाने का ध्यान रखती थी न ही ढंग से आराम करती थी. देर रात तक दोस्तों और अनजान लोगों के साथ भटकते रहने की आदत से उस की जिंदगी अव्यवस्थित बन चुकी थी.

एक दिन रात को 3 बजे किसी अनजान आदमी ने राजवी के मोबाइल से अक्षय को फोन किया, ‘‘आप की वाइफ ने हैवी ड्रिंक ले लिया है और यह भी लगता है कि किसी ने उस के साथ रेप करने की कोशिश…’’

अक्षय सहम गया. फिर वह वहां पहुंचा तो देखा कि अस्तव्यस्त कपड़ों में बेसुध पड़ी राजवी बड़बड़ा रही थी, ‘‘प्लीज हैल्प मी…’’

पास में खड़े कुछ लोगों में से कोई बोला, ‘‘इस होटल में पार्टी चल रही थी. शायद इस के दोस्तों ने ही… बाद में सब भाग गए. अगर आप चाहो तो पुलिस…’’

‘‘नहींनहीं…,’’ अक्षय अच्छी तरह जानता था कि पुलिस को बुलाने से क्या होगा. उस ने जल्दी से राजवी को उठा कर गाड़ी में लिटा दिया और घर की ओर रवाना हो गया. राजवी की ऐसी हालत देख कर उस कलेजा दहल गया था. आखिर वह पत्नी थी उस की. जैसी भी थी वह प्यार करता था उस को.

घर पहुंचते ही उस ने अपने फ्रैंड व फैमिली डाक्टर को बुलाया और फर्स्ट ऐड करवाया. उस के चेहरे और शरीर पर जख्म के निशान पड़ चुके थे.

दूसरे दिन बेहोशी टूटने के बाद होश में आते ही राजवी पिछली रात उस के साथ जो भी घटना घटी थी, उसे याद कर रोने लगी. अक्षय ने उसे रोने दिया. ‘जल्दी ही अच्छी हो जाओगी’ कह कर वह उसे तसल्ली देता रहा पर क्या हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. खाना बनाने वाली माया बहन की हैल्प से उसे नहलाया, खिलाया फिर उसे अस्पताल ले जाने की सोची.

वैलेंटाइन डे : पति पत्नी की प्यार भरी कहानी – भाग 2

‘‘अंकल, मैं एक और उदाहरण दूं?’’ टिंकू ने बड़े उत्साह से पूछा.

‘‘मैं मना कर दूं तो रुक जाओगे?’’ मैं ने बड़़ी आशा से पूछा.

‘‘न, रुकूंगा तो नहीं. आप की इज्जत रखने के लिए यों ही पूछ लिया था. चूंकि टिंकू की मम्मी टीचर हैं इसीलिए बेटे को भी बातबात पर उदाहरण देने की आदत है.’’

‘‘सुनिए, अंकल, विदेशी अपने मांबाप को ‘ओल्ड एज होम’ में रखते हैं और ‘मदर्स डे’ या ‘फादर्स डे’ के दिन फूलों का गुलदस्ता दे कर उन्हें विश करते हैं.’’

टिंकू की बात मुझे बहुत जंची.

‘‘चल, जा, अपनी पढ़ाई कर. छोटा मुंह बड़ी बात,’’ श्रीमतीजी ने उसे डांट दिया. शायद उन्हें याद नहीं था कि टिंकू मेरे बेटे से 4 साल बड़ा था. श्रीमतीजी का यह तेवर शायद इसलिए बना कि वह भी अपने सासससुर को अपने घर में फटकने नहीं देती थीं.

दोपहर के करीब 2 बजे सुमित का फोन आया :

‘‘यार, घर में महाभारत छिड़ा हुआ है. खाना तो क्या चाय तक नसीब नहीं हुई. बड़ी भूख लगी है.’’

‘‘यहां भी वही हाल है,’’ मैं ने रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘तू जल्दी से घर से बाहर आ जा,’’ वह मेरा बचपन का दोस्त था और इत्तफाक से हमें एक ही विभाग में नौकरी भी मिल गई थी.

पहले हमारे मकान बहुत दूर थे पर बाद में हम ने पासपास में मकान किराए पर ले लिए. बाहर सड़क पर वह मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या बात है?’’ मैं जानता था पर यों ही पूछ लिया जो आम बात है.

‘‘चल, चलतेचलते बात करते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘सब से पहले किसी होटल में  चलते हैं,’’ सुमित बोला तो मैं जान गया कि वह अधिक देर तक भूखा नहीं रह सकता. खाना खाने के बाद हमारी जान में जान आई.

‘‘हम लोगों ने तो खा लिया पर बाकी बीवीबच्चों का क्या होगा?’’ मैं ने सुमित से पूछा.

‘‘मेरे बच्चों ने तो कुछ बना कर खा लिया है. उन्होंने उसे भी खिला दिया होगा. हां, तू बबलू के लिए कुछ ले ले. वह बेचारा छोटा है.’’

मुझे याद आया कि बेटे को मैगी बना कर खिला दी गई थी. फिर भी मन न माना तो मैं ने दोनों के लिए खाना पैक करवा दिया.

अब सुमित ने भी कुछ खाने की चीजें बंधवा लीं. पेट में आग ठंडी पड़ी तो उस ने कहा, ‘‘अरे, यार, कुछ खरीदना ही पडे़गा वरना मेरी तो खैर नहीं. बच्चे भी मेरे ही पीछे पड़ गए हैं. उन सब ने मुझे जंगली और गंवार करार दे दिया है़.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो.  सुबह माधव का बेटा टिंकू आया था. वह जले पर और नमक छिड़क गया.’’

‘‘तो ऐसा करते हैं कि पहले यह खाना घर में दे कर हम दोनों बाजार का एक चक्कर लगा आते हैं. देखते हैं कि बाजार में औरतों के लिए क्याक्या चीजें मिलती हैं.’’

‘‘मगर हम खरीदेंगे क्या. मैं ने तो जिंदगी में कभी औरतों का कोई सामान नहीं खरीदा,’’ मैं ने दीनहीन बन कर कहा.

‘‘तो क्या हुआ? अब सीखेंगे,’’ सुमित हेकड़ी बघार कर बोला, ‘‘हम हमेशा उन्हें अपना पर्स सौंप देते हैं. इस से 2 नुकसान होते हैं. पहला हमारा बजट बिगड़ता है. दूसरा नुकसान यह है कि हमारे ही पैसों से चीजें खरीद कर हम को धत्ता बताती हैं.’’

‘‘मगर मेरे पास तो 500-600 से अधिक रुपए नहीं हैं. सारे पैसे वह पहले सप्ताह में ही उड़ा देती है,’’ मैं ने मायूसी से कहा.

‘‘वही हाल मेरा भी है और उस पर पूरा महीना आगे पड़ा है. खैर, फिलहाल घर जा कर पैसे  ले कर आओ. बाद की बाद में सोचते हैं.’’

दोनों अपनेअपने घरों में खाना रख कर पैसे ले कर वापस आए.

हमारे पास अब भी इतने पैसे नहीं थे कि हम सोनेचांदी की कोई चीज खरीद सकें. सो इधरउधर देखते हुए आगे बढे़ जा रहे थे.

मैं ने कहा ‘‘चलो, कोई अच्छी सी साड़ी ले लेते हैं,’’ इस पर सुमित बोला, ‘‘नहीं, यार, साड़ी तो उसे तोहफा भी नहीं लगेगी. उसे ऐसे रख लेगी जैसे सब्जियों का थैला रख लिया हो.’’

हम ने तरहतरह के तोहफों के बारे में सोचा मगर कुछ भी नहीं जंचा. कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैं अकेला चला जा रहा हूं. मेरे साथ सुमित नहीं है. चारों ओर देखा मगर वह कहीं नजर न आया. मैं पलट कर वापस चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद वह नजर आया. वह भी शायद मुझे ही ढूंढ़ रहा था.

‘‘कहां चला गया था यार? कब से तुझे ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने डांटा.

‘‘वाह, उलटा चोर कोतवाल को डांटे. एक तो मुझे छोड़ कर खुद आगे निकल गया, ऊपर से अब मुझे ही डांट रहा है.’’

‘‘यार, मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. यहीं सामने मैं ने एक आर्टीफिशियल ज्वेलरी की दुकान देखी. 1 ग्राम सोने की कोटिंग वाली. हम कह देंगे असली है.’’

‘‘पागल हो गया है? सुबह उठ कर औरतें इन्हीं गहनों और साडि़यों की दुकानों पर मंडराती रहती हैं. ?ाट पहचान जाएंगी. उन के सामान्य ज्ञान का इतना कम अंदाजा मत लगा,’’ डांटने की बारी सुमित की थी, ‘‘पकडे़ गए तो बीवी से ऐसी धुनाई होगी कि जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाओगे,’’ उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘शाम तक हम दोनों यों ही भटकते रहे. कुछ भी खरीद नहीं पाए. हार कर घर लौटने ही वाले थे कि मेरी नजर एक इत्र की दुकान पर पड़ी.

‘‘यार, सुमित, चल, परफ्यूम ही खरीद लेते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मेरे वाली तो कभी परफ्यूम लगाती ही नहीं.’’

‘‘मेरे वाली भी कहां खरीदती है? मेरे खयाल से खरीदे हुए परफ्यूम के बजाय तोहफे में मिले हुए को इस्तेमाल करना औरतें ज्यादा पसंद करती हैं, ‘‘मैं ने ज्ञान बघारा.

‘‘ऐसा क्यों?’’ सुमित ने भोलेपन से पूछा.

‘‘क्योंकि इन की कीमत उन की नजर में ज्यादा होती है और किसी को दिखती भी नहीं.’’

‘‘वाह यार, तू तो गुरु हो गया है. मेरी बीवी परफ्यूम का प्रयोग तब करती है जब उसे किसी अच्छे फंक्शन में जाना हो और जाने से पहले मु?ा पर भी 2-4 छींटे मार देती है.’’

हम दोनों परफ्यूम की दुकान में घुस गए. वहां विविध रंगों और आकृतियों की छोटीबड़ी सुदर कांच की बोतलें इस प्रकार सजी हुई थीं कि जिस ने जिंदगी में कभी परफ्यूम का प्रयोग न किया हो उस का मन भी उन्हें खरीदने को बेचैन हो उठे.

हम दोनों थोड़ी देर तक दुकान में मोलभाव कर यह सम?ा गए कि 150-200 रुपए  में बढि़या परफ्यूम मिल जाता है. हम ने जांचपरख कर एकएक परफ्यूम की बोतल खरीद ली. बाहर निकलने के बाद सुमित के दिमाग में एक संदेह उठा.

‘‘यार, इन लोगों को तो कीमती तोहफे चाहिए. भला ये 200 रुपए वाली छोटी सी शीशी उन की नजर में क्या चढ़ेगी. मुझे तो लगता है इसे हमारे ही सिर पर दे मारेंगी.’’

‘‘तू फिकर क्यों करता है? मैं ने उस का भी उपाय सोच लिया है. कह देंगे हमारे दफ्तर का कोई दोस्त दुबई से लौट कर आया है या हम ने उसी से यह परफ्यूम 1,500 रुपए दे कर खरीदा है.’’

‘‘अरे वाह, तेरा दिमाग तो उपायों से भरा पड़ा है. इन लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि विदेशी परफ्यूम क्या होता है.’’

‘‘हां, मगर आज इसे कहीं छिपा कर रखना होगा. कल शाम को आफिस से आने के बाद ही तो दे पाएंगे.’’

यही तय हुआ. हम ने अच्छे से गिफ्ट पैक करा कर उसे अपनेअपने स्कूटर की डिक्की में छिपा दिया. हम खुशीखुशी घर वापस लौटे. पत्नी ने चुपचाप खाना लगा दिया. हम खाने के कार्यक्रम के बाद चुपचाप मुंह ढांप कर पड़ गए.

अगली शाम कुछ समय यहांवहां बिता कर शाम ढलतेढलते घर पहुंचे. सुमित सीधे अपने घर चला गया. मेरा घर थोड़ा आगे था. गाड़ी से उतर कर मैं ने देखा कि दरवाजे पर ताला लटक रहा है. सारे खिड़कीदरवाजे बंद. मैं सिर पकड़ कर वहीं सीढि़यों पर बैठ गया. हो गई हमारी खटिया खड़ी. हमारी धर्मपत्नी हम से बहुत नाराज है. हमें निकम्मा करार देते हुए घर छोड़ कर मायके चली गई. हम गलीमहल्ले में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.

हमारी आधी घरवाली, जिस की हम चुपकेचुपके आराधना करते हैं (आजकल पुरानी वस्तु दे कर नई लेने की बहुत सी स्कीमें चल रही हैं. काश, ऐसी कोई स्कीम होती) उस की नजरों में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी? सुमित हमेशा कहता है कि यार तू बहुत लकी है जो तुझे खूबसूरत साली मिली. मुझे तु?ा से जलन होती है, क्योंकि मेरी कोई साली नहीं है. तू अपनी साली को हमेशा अच्छे से पटा कर रख क्योंकि बीवी अगर केक है तो साली क्रीम है. तू तो जानता है कि लोग केक  से ज्यादा क्रीम के ही दीवाने होते हैं.

हम वहां अंधेरे में बैठे बिसूरते रहे कि हमें किसी की आवाज सुनाई दी. हम ने आंखें खोलीं तो पाया कि सामने सुमित का बेटा समीर खड़ा था. उस ने मुझे घूरते हुए दोबारा आवाज दी, ‘‘अंकल, घर चलिए, पापा बुला रहे हैं.’’

इस से पहले कि मैं उस से कुछ पूछता वह वहां से हवा हो गया. मैं 2 मिनट तक यों ही बैठा रहा, फिर धीरे से उठा और अपने पांव को घसीटते हुए सुमित के घर पहुंचा. दरवाजे पर ही मुझे सुमित की पत्नी ने दबोच लिया, ‘‘क्यों भाई साहब, कहां रह गए थे? आप लोगों को समय पर घर की याद भी नहीं आती.’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है…’’

‘‘बसबस, कहानियां मत सुनाओ, चलो अंदर.’’

मैं सिर झुकाए भाभी के पीछेपीछे अंदर चला आया.

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