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वैलेंटाइन डे : पति पत्नी की प्यार भरी कहानी – भाग 2

‘‘अंकल, मैं एक और उदाहरण दूं?’’ टिंकू ने बड़े उत्साह से पूछा.

‘‘मैं मना कर दूं तो रुक जाओगे?’’ मैं ने बड़़ी आशा से पूछा.

‘‘न, रुकूंगा तो नहीं. आप की इज्जत रखने के लिए यों ही पूछ लिया था. चूंकि टिंकू की मम्मी टीचर हैं इसीलिए बेटे को भी बातबात पर उदाहरण देने की आदत है.’’

‘‘सुनिए, अंकल, विदेशी अपने मांबाप को ‘ओल्ड एज होम’ में रखते हैं और ‘मदर्स डे’ या ‘फादर्स डे’ के दिन फूलों का गुलदस्ता दे कर उन्हें विश करते हैं.’’

टिंकू की बात मुझे बहुत जंची.

‘‘चल, जा, अपनी पढ़ाई कर. छोटा मुंह बड़ी बात,’’ श्रीमतीजी ने उसे डांट दिया. शायद उन्हें याद नहीं था कि टिंकू मेरे बेटे से 4 साल बड़ा था. श्रीमतीजी का यह तेवर शायद इसलिए बना कि वह भी अपने सासससुर को अपने घर में फटकने नहीं देती थीं.

दोपहर के करीब 2 बजे सुमित का फोन आया :

‘‘यार, घर में महाभारत छिड़ा हुआ है. खाना तो क्या चाय तक नसीब नहीं हुई. बड़ी भूख लगी है.’’

‘‘यहां भी वही हाल है,’’ मैं ने रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘तू जल्दी से घर से बाहर आ जा,’’ वह मेरा बचपन का दोस्त था और इत्तफाक से हमें एक ही विभाग में नौकरी भी मिल गई थी.

पहले हमारे मकान बहुत दूर थे पर बाद में हम ने पासपास में मकान किराए पर ले लिए. बाहर सड़क पर वह मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या बात है?’’ मैं जानता था पर यों ही पूछ लिया जो आम बात है.

‘‘चल, चलतेचलते बात करते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘सब से पहले किसी होटल में  चलते हैं,’’ सुमित बोला तो मैं जान गया कि वह अधिक देर तक भूखा नहीं रह सकता. खाना खाने के बाद हमारी जान में जान आई.

‘‘हम लोगों ने तो खा लिया पर बाकी बीवीबच्चों का क्या होगा?’’ मैं ने सुमित से पूछा.

‘‘मेरे बच्चों ने तो कुछ बना कर खा लिया है. उन्होंने उसे भी खिला दिया होगा. हां, तू बबलू के लिए कुछ ले ले. वह बेचारा छोटा है.’’

मुझे याद आया कि बेटे को मैगी बना कर खिला दी गई थी. फिर भी मन न माना तो मैं ने दोनों के लिए खाना पैक करवा दिया.

अब सुमित ने भी कुछ खाने की चीजें बंधवा लीं. पेट में आग ठंडी पड़ी तो उस ने कहा, ‘‘अरे, यार, कुछ खरीदना ही पडे़गा वरना मेरी तो खैर नहीं. बच्चे भी मेरे ही पीछे पड़ गए हैं. उन सब ने मुझे जंगली और गंवार करार दे दिया है़.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो.  सुबह माधव का बेटा टिंकू आया था. वह जले पर और नमक छिड़क गया.’’

‘‘तो ऐसा करते हैं कि पहले यह खाना घर में दे कर हम दोनों बाजार का एक चक्कर लगा आते हैं. देखते हैं कि बाजार में औरतों के लिए क्याक्या चीजें मिलती हैं.’’

‘‘मगर हम खरीदेंगे क्या. मैं ने तो जिंदगी में कभी औरतों का कोई सामान नहीं खरीदा,’’ मैं ने दीनहीन बन कर कहा.

‘‘तो क्या हुआ? अब सीखेंगे,’’ सुमित हेकड़ी बघार कर बोला, ‘‘हम हमेशा उन्हें अपना पर्स सौंप देते हैं. इस से 2 नुकसान होते हैं. पहला हमारा बजट बिगड़ता है. दूसरा नुकसान यह है कि हमारे ही पैसों से चीजें खरीद कर हम को धत्ता बताती हैं.’’

‘‘मगर मेरे पास तो 500-600 से अधिक रुपए नहीं हैं. सारे पैसे वह पहले सप्ताह में ही उड़ा देती है,’’ मैं ने मायूसी से कहा.

‘‘वही हाल मेरा भी है और उस पर पूरा महीना आगे पड़ा है. खैर, फिलहाल घर जा कर पैसे  ले कर आओ. बाद की बाद में सोचते हैं.’’

दोनों अपनेअपने घरों में खाना रख कर पैसे ले कर वापस आए.

हमारे पास अब भी इतने पैसे नहीं थे कि हम सोनेचांदी की कोई चीज खरीद सकें. सो इधरउधर देखते हुए आगे बढे़ जा रहे थे.

मैं ने कहा ‘‘चलो, कोई अच्छी सी साड़ी ले लेते हैं,’’ इस पर सुमित बोला, ‘‘नहीं, यार, साड़ी तो उसे तोहफा भी नहीं लगेगी. उसे ऐसे रख लेगी जैसे सब्जियों का थैला रख लिया हो.’’

हम ने तरहतरह के तोहफों के बारे में सोचा मगर कुछ भी नहीं जंचा. कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैं अकेला चला जा रहा हूं. मेरे साथ सुमित नहीं है. चारों ओर देखा मगर वह कहीं नजर न आया. मैं पलट कर वापस चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद वह नजर आया. वह भी शायद मुझे ही ढूंढ़ रहा था.

‘‘कहां चला गया था यार? कब से तुझे ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने डांटा.

‘‘वाह, उलटा चोर कोतवाल को डांटे. एक तो मुझे छोड़ कर खुद आगे निकल गया, ऊपर से अब मुझे ही डांट रहा है.’’

‘‘यार, मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. यहीं सामने मैं ने एक आर्टीफिशियल ज्वेलरी की दुकान देखी. 1 ग्राम सोने की कोटिंग वाली. हम कह देंगे असली है.’’

‘‘पागल हो गया है? सुबह उठ कर औरतें इन्हीं गहनों और साडि़यों की दुकानों पर मंडराती रहती हैं. ?ाट पहचान जाएंगी. उन के सामान्य ज्ञान का इतना कम अंदाजा मत लगा,’’ डांटने की बारी सुमित की थी, ‘‘पकडे़ गए तो बीवी से ऐसी धुनाई होगी कि जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाओगे,’’ उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘शाम तक हम दोनों यों ही भटकते रहे. कुछ भी खरीद नहीं पाए. हार कर घर लौटने ही वाले थे कि मेरी नजर एक इत्र की दुकान पर पड़ी.

‘‘यार, सुमित, चल, परफ्यूम ही खरीद लेते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मेरे वाली तो कभी परफ्यूम लगाती ही नहीं.’’

‘‘मेरे वाली भी कहां खरीदती है? मेरे खयाल से खरीदे हुए परफ्यूम के बजाय तोहफे में मिले हुए को इस्तेमाल करना औरतें ज्यादा पसंद करती हैं, ‘‘मैं ने ज्ञान बघारा.

‘‘ऐसा क्यों?’’ सुमित ने भोलेपन से पूछा.

‘‘क्योंकि इन की कीमत उन की नजर में ज्यादा होती है और किसी को दिखती भी नहीं.’’

‘‘वाह यार, तू तो गुरु हो गया है. मेरी बीवी परफ्यूम का प्रयोग तब करती है जब उसे किसी अच्छे फंक्शन में जाना हो और जाने से पहले मु?ा पर भी 2-4 छींटे मार देती है.’’

हम दोनों परफ्यूम की दुकान में घुस गए. वहां विविध रंगों और आकृतियों की छोटीबड़ी सुदर कांच की बोतलें इस प्रकार सजी हुई थीं कि जिस ने जिंदगी में कभी परफ्यूम का प्रयोग न किया हो उस का मन भी उन्हें खरीदने को बेचैन हो उठे.

हम दोनों थोड़ी देर तक दुकान में मोलभाव कर यह सम?ा गए कि 150-200 रुपए  में बढि़या परफ्यूम मिल जाता है. हम ने जांचपरख कर एकएक परफ्यूम की बोतल खरीद ली. बाहर निकलने के बाद सुमित के दिमाग में एक संदेह उठा.

‘‘यार, इन लोगों को तो कीमती तोहफे चाहिए. भला ये 200 रुपए वाली छोटी सी शीशी उन की नजर में क्या चढ़ेगी. मुझे तो लगता है इसे हमारे ही सिर पर दे मारेंगी.’’

‘‘तू फिकर क्यों करता है? मैं ने उस का भी उपाय सोच लिया है. कह देंगे हमारे दफ्तर का कोई दोस्त दुबई से लौट कर आया है या हम ने उसी से यह परफ्यूम 1,500 रुपए दे कर खरीदा है.’’

‘‘अरे वाह, तेरा दिमाग तो उपायों से भरा पड़ा है. इन लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि विदेशी परफ्यूम क्या होता है.’’

‘‘हां, मगर आज इसे कहीं छिपा कर रखना होगा. कल शाम को आफिस से आने के बाद ही तो दे पाएंगे.’’

यही तय हुआ. हम ने अच्छे से गिफ्ट पैक करा कर उसे अपनेअपने स्कूटर की डिक्की में छिपा दिया. हम खुशीखुशी घर वापस लौटे. पत्नी ने चुपचाप खाना लगा दिया. हम खाने के कार्यक्रम के बाद चुपचाप मुंह ढांप कर पड़ गए.

अगली शाम कुछ समय यहांवहां बिता कर शाम ढलतेढलते घर पहुंचे. सुमित सीधे अपने घर चला गया. मेरा घर थोड़ा आगे था. गाड़ी से उतर कर मैं ने देखा कि दरवाजे पर ताला लटक रहा है. सारे खिड़कीदरवाजे बंद. मैं सिर पकड़ कर वहीं सीढि़यों पर बैठ गया. हो गई हमारी खटिया खड़ी. हमारी धर्मपत्नी हम से बहुत नाराज है. हमें निकम्मा करार देते हुए घर छोड़ कर मायके चली गई. हम गलीमहल्ले में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.

हमारी आधी घरवाली, जिस की हम चुपकेचुपके आराधना करते हैं (आजकल पुरानी वस्तु दे कर नई लेने की बहुत सी स्कीमें चल रही हैं. काश, ऐसी कोई स्कीम होती) उस की नजरों में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी? सुमित हमेशा कहता है कि यार तू बहुत लकी है जो तुझे खूबसूरत साली मिली. मुझे तु?ा से जलन होती है, क्योंकि मेरी कोई साली नहीं है. तू अपनी साली को हमेशा अच्छे से पटा कर रख क्योंकि बीवी अगर केक है तो साली क्रीम है. तू तो जानता है कि लोग केक  से ज्यादा क्रीम के ही दीवाने होते हैं.

हम वहां अंधेरे में बैठे बिसूरते रहे कि हमें किसी की आवाज सुनाई दी. हम ने आंखें खोलीं तो पाया कि सामने सुमित का बेटा समीर खड़ा था. उस ने मुझे घूरते हुए दोबारा आवाज दी, ‘‘अंकल, घर चलिए, पापा बुला रहे हैं.’’

इस से पहले कि मैं उस से कुछ पूछता वह वहां से हवा हो गया. मैं 2 मिनट तक यों ही बैठा रहा, फिर धीरे से उठा और अपने पांव को घसीटते हुए सुमित के घर पहुंचा. दरवाजे पर ही मुझे सुमित की पत्नी ने दबोच लिया, ‘‘क्यों भाई साहब, कहां रह गए थे? आप लोगों को समय पर घर की याद भी नहीं आती.’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है…’’

‘‘बसबस, कहानियां मत सुनाओ, चलो अंदर.’’

मैं सिर झुकाए भाभी के पीछेपीछे अंदर चला आया.

सुगंध : धन दौलत के घमंड में डूबे लड़के की कहानी – भाग 2

जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.

उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.

वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.

‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.

मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.

उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.

पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.

उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.

एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.

उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.

हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.

‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’

मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.

उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.

फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’

यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’

‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’

‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’

‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.

बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.

‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.

‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’

अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.

इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.

फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.

‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.

दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.

नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.

नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

जीवन और नाटक : माहिका ने क्यों किया चोरी छिपे विवाह ?

‘‘माहिका बेटे, देख तो कौन आया है. जल्दी से गरम पकौड़े और चाय बना ला. चाय बढि़या मसालेदार बनाना.’’ जूही ने अपनी बेटी को पुकारा और फिर से अपनी सहेली नीलम के साथ बातचीत में व्यस्त हो गई.

‘‘रहने दे न. परीक्षा सिर पर है, पढ़ रही होगी बेचारी. मैं तुम्हें लड़कियों के फोटो दिखाने आई हूं. पंकज अगले माह 25 का हो जाएगा. जितनी जल्दी शादी हो जाए अच्छा है. उस के बाद उस की छोटी बहन नीना का विवाह भी करना है. ले यह फोटो देख और बता तुझे कौन सी पसंद है,’’ नीलम ने हाथ में पकड़ा लिफाफा जूही की ओर बढ़ाया. देर तक दोनों बारीबारी से फोटो देख कर मीनमेख निकालती रहीं.

कुछ देर बाद जूही ने 2 फोटो निकाल कर नीलम को थमा दिए.

‘‘दोनों ही अच्छी लग रही हैं. वैसे भी हमारेतुम्हारे पसंद करने से क्या होता है. पसंद तो पंकज की पूछो. महत्त्व तो पंकज की पसंद का है. है कि नहीं? हमारीतुम्हारी पसंद को कौन पूछता है. यों भी फोटो से किसी के बारे में कितना पता लग सकता है. असली परख तो आमनेसामने बैठ कर ही हो सकती है.’’

तब तक माहिका पकौड़े और चाय ले कर आ गई थी.

‘‘सच कहूं जूही, तेरी बेटी बड़ी गुणवान है, जिस घर में जाएगी उस का तो जीवन सफल हो जाएगा,’’ नीलम ने गरमगरम पकौड़े मुंह में रखते हुए प्रशंसा की झड़ी लगा दी.

‘‘माहिका तू भी तो बता अपनी पसंद,’’ नीलम ने माहिका की ओर फोटो बढ़ाए.

‘‘आंटी मैं भला क्या बताऊंगी. यह तो आप बड़े लोगों का काम है.’’ माहिका धीमे स्वर में बोल कर मुड़ गई.

‘‘ठीक ही तो कह रही है, बच्चों को इन सब बातों की समझ कहां. वैसे भी परीक्षा की तैयारी में जुटी है.’’ जूही बोली.

‘‘तुझे नहीं लगता कि आजकल माहिका बहुत गुमसुम सी रहने लगी है. पहले तो अकसर आ जाती थी, दुनिया भर की बातें करती थी, घर के काम में भी हाथ बंटा देती थी, पर अब तो सामने पड़ने पर भी कतरा कर निकल जाती है.’’

‘‘इस उम्र में ऐसा ही होता है. मुझ से भी कहां बात करती है. किसी काम को कहो तो कर देगी. दिन भर लैपटौप या फोन से चिपकी रहेगी. इन सब चीजों ने तो हमारे बच्चों को ही हम से छीन लिया है.’’

‘‘सो तो है पर हमारा भी तो अधिकतर समय फोन पर ही गुजरता है,’’ जूही ऐसी अदा से बोली कि दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंसीं.

नीलम को विदा करते ही जूही काम में जुट गई.

‘‘नीलम आती है तो जाने का नाम ही नहीं लेती. रजत के आने का समय हो गया है. अभी तक खाना भी नहीं बना है. रजत का कुछ भरोसा नहीं. कभी चाय पीते हैं, तो कभी सीधे खाना मांग लेते हैं,’’ जूही स्वयं से ही बातें कर रही थी.

‘‘माहिका तुम अब तक फोन से ही चिपकी हुई हो. यह क्या तुम तो रो रही हो. क्या हुआ?’’ माहिका का स्वर सुन कर जूही उस के कमरे में पहुंची थी.

‘‘कुछ नहीं अपनी सहेली स्नेहा से बात कर रही थी, तो आंखों में आंसू आ गए.’’

‘‘क्यों क्या हुआ? सब ठीक तो है.’’

‘‘कहां ठीक है. बेचारी बड़ी मुसीबत में है.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’

‘‘लगभग 4 वर्ष पहले उस ने सब से छिप कर मंदिर में विवाह कर लिया था. पर अब उस का पति दूसरी शादी कर रहा है.’’

‘‘क्या कह रही है? स्नेहा ने 4 वर्ष पहले ही विवाह कर लिया था? उस के मातापिता को पता है या नहीं?’’

‘‘किसी को पता नहीं है.’’

‘‘दोनों साथ रहते हैं क्या?’’

‘‘नहीं विवाह होते ही दोनों अपने घर लौट कर पढ़ाई में व्यस्त हो गए.’’

‘‘दोनों के बीच संबंध बने हैं क्या?’’

‘‘नहीं, इसीलिए तो दूसरा विवाह कर रहा है.’’

‘‘इस तरह छिप कर विवाह करने की क्या आवश्यकता थी. आजकल की लड़कियां भी बिना सोचेसमझे कुछ भी करती हैं. स्नेहा के मातापिता को पता लगा तो उन पर क्या बीतेगी?’’ जूही चिंतित स्वर में बोली.

‘‘पता नहीं आप ही बताओ अब वह क्या करे?’’

‘‘चुल्लू भर पानी में डूब मरे और क्या. उस ने तो अपने मातापिता को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘थोड़ी ही देर में यहां आ रही है स्नेहा. आप ही उसे समझा देना.’’

‘‘यहां क्या करने आ रही है? उस से कहो अपने मातापिता से बात करे. वे ही कोई रास्ता निकालेंगे.’’ मांबेटी का वार्तालाप शायद कुछ और देर चलता कि तभी दरवाजे की घंटी बजी और स्नेहा ने प्रवेश किया.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के गले लिपट कर खूब रोईं. जूही सब कुछ चुपचाप देखती रहीं. समझ में नहीं आया कि क्या करे.

‘‘अब रोनेधोने से क्या होगा. अपने कमरे में चल कर बैठो मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं आंटी, कुछ नहीं चाहिए. मेरी चिंता तो केवल यही है कि इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा?’’ स्नेहा गंभीर स्वर में बोली.

‘‘सच कहूं, स्नेहा मुझे तुम से यह आशा नहीं थी.’’

‘‘पर मैं ने किया क्या है?’’

‘‘लो और करने को रह क्या गया है. तुम्हें छिप कर विवाह करने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मैं ने छिप कर विवाह नहीं किया आंटी? आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है.’’

‘‘समझती हूं मैं. पर मेरी मानो और जो हो गया सो हो गया, अब सब कुछ अपने मातापिता को बता दो.’’

‘‘मेरे मातापिता का इस से कोई लेनादेना नहीं है. वैसे भी मैं उन से कोई बात नहीं छिपाती. इस समय तो मुझे माहिका की चिंता सता रही है. आप को ही कोई राह निकालनी पड़ेगी जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘साफसाफ कहो न पहेलियां क्यों बुझा रही हो.’’

‘‘आंटी माहिका ने जो कुछ किया वह निरा बचपना था. जब तक उसे अपनी गलती समझ में आई, देर हो चुकी थी. मुझे भी लगा कि देरसबेर पंकज इसे स्वीकार कर लेगा पर यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. माहिका बेचारी हर साल पंकज के लिए करवाचौथ का व्रत करती रही पर वह नहीं पसीजा. अब बेचारी माहिका करे भी तो क्या?’’

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? विवाह तुम ने नहीं माहिका ने किया था?’’

‘‘वही तो. चलिए आप की समझ में तो आया. अभी तक तो आप मुझे ही दोष दिए जा रही थीं.’’ स्नेहा हंस दी.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं. माहिका इतनी बड़ी बात छिपा गईं तुम? हम ने क्याक्या आशाएं लगा रखी थीं और तुम ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. अब यह और बता दो कि किस से रचाया था तुम ने यह अद्भुत विवाह.’’

‘‘पंकज से.’’

‘‘कौन पंकज? नीलम का बेटा?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘नीलम जानती है यह सब?’’

‘‘मुझे नहीं पता.’’

‘‘पता क्या है तुझे कमबख्त. राखी बांधती थी तू उस को. मुझे अब सब समझ में आ रहा है इसीलिए तू करवाचौथ का व्रत करने का नाटक करती थी. तेरे पापा को पता चला तो हम दोनों को जान से ही मार देंगे. उन्हें तो वैसे भी उस परिवार से मेरा मेलजोल बिलकुल पसंद नहीं है,’’ वे क्रोध में बोलीं और माहिका को बुरी तरह धुन डाला.

‘‘आंटी क्या कर रही हो? माना उस से गलती हुई है पर उस के लिए आप उस की जान तो नहीं ले सकतीं.’’ स्नेहा चीखी.

जूही कोई उत्तर दे पातीं उस से पहले ही माहिका के पापा रजत ने घर में प्रवेश किया. उन के आते ही घर में सन्नाटा छा गया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करें.

‘‘स्नेहा बेटे, कब आईं तुम और बताओ पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ बात रजत ने ही शुरू की.

‘‘जी ठीक चल रही है.’’

‘‘आज बड़ी शांति है घर में. जूही एक कप चाय पिला दो, बहुत थक गया हूं.’’ उत्तर में जूही सिसक उठीं.

‘‘क्या हुआ? इस तरह रो क्यों रही हो. कुछ तो कहो.’’

‘‘कहनेसुनने को बचा ही क्या है, माहिका ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा.’’

‘‘क्या किया है उस ने?’’

‘‘उस ने विवाह कर लिया है.’’

‘‘क्यों मजाक करती हो. कब किया उस ने विवाह?’’

‘‘4 साल पहले किसी मंदिर में.’’

‘‘और हम से पूछा तक नहीं?’’ रजत हैरानपरेशान स्वर में बोले.

‘‘हम हैं कौन उस के जो हम से पूछती?’’

‘‘तो ठीक है, हम उस के विवाह को मानते ही नहीं. 4 साल पहले वह मात्र 15 वर्ष की थी. हमारी आज्ञा के बिना विवाह कर कैसे सकती थी. हम ने उस के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे हैं. उन का क्या?’’ रजत बाबू नाराज स्वर में बोले. कुछ देर तक सब सकते में थे. कोई कुछ नहीं बोला. फिर अचानक माहिका जोर से रो पड़ी.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘पापा, मैं पंकज के बिना नहीं रह सकती. भारतीय नारी का विवाह जीवन में एकबार ही होता है.’’

‘‘किस भारतीय नारी की बात कर रही हो तुम? आजकल रोज विवाह और तलाक हो रहे हैं. जिस तरह पंकज के बिना 19 साल से रह रही हो, आगे भी रहोगी.’’

‘‘देखा स्नेहा मैं न कहती थी. पापा भी बिलकुल पंकज की भाषा बोल रहे हैं. पर मेरे पास अपने विवाह के पक्के सबूत हैं.’’

‘‘कौन से सुबूत हैं तुम्हारे पास,’’ रजत ने प्रश्न किया.

‘‘विवाह का फोटो है. गवाह के रूप में स्नेहा है और पंकज के कुछ मित्र भी विवाह के समय मंदिर में थे.’’

‘‘अच्छा फोटो भी है? बड़ा पक्का काम किया है तुम ने. ले कर तो आओ वह फोटो.’’ माहिका लपक कर गई और फोटो ले आई. रजत ने फोटो के टुकड़ेटुकड़े कर के रद्दी की टोकरी में डाल दिए.

‘‘कहां है अब सुबूत और स्नेहा बेटे बुरा मत मानना. तुम माहिका की बड़ी अच्छी मित्र हो जो उस के साथ खड़ी हो. पर इस समय अपने घर जाओ. जब हम यह समस्या सुलझा लें तब आना. केवल एक विनती है तुम से कि इन बातों का जिक्र किसी से मत करना.’’

‘‘जी, अंकल.’’ स्नेहा चुपचाप उठ कर बाहर निकल गई.

‘‘यह क्या किया आप ने? मैं तो सोच रही थी स्नेहा के साथ पंकज के घर जाएंगे. वही तो जीताजागत सुबूत है.’’ जूही जो अब तक इस सदमे से उबर नहीं पाई थीं आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘मुझे शर्म आती है कि इतना बड़ा कांड हो गया और हम दोनों को इस की भनक तक नहीं लगी. हमारा मुख्य उद्देश्य है माहिका को इस भंवर से निकालना वह भी इस तरह कि किसी को इस संबंध में कुछ पता न चले. हम कहीं किसी के घर नहीं जा रहे, न कोई सुबूत पेश करेंगे. माहिका जब तक अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता.’’

‘‘मुझे नहीं लगता पंकज का परिवार इतने लंबे समय तक प्रतीक्षा करेगा. नीलम तो आज ही बहुत सारे फोटो ले कर आई थी मुझे दिखाने.’’

‘‘समझा, तो यह खेल खेल रहे हैं वे लोग. तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि माहिका का विवाह पंकज से संभव है. मैं ने उसे दसियों बार नशे में चूर पब से बाहर निकलते देखा है. पढ़ाईलिखाई में जीरो पर गुंडागर्दी में सब से आगे.’’

‘‘पर इन का विवाह तो 4 वर्ष पहले ही हो चुका है.’’

‘‘फिल्मों और नाटकों में अभिनेता अलगअलग पात्रों से कई विवाह करते हैं, तो क्या यह जीवन भर का नाता हो जाता है. समझ लो माहिका ने भी ऐसे ही किसी नाटक के पात्र का अभिनय किया था और एक चेतावनी तुम दोनों के लिए, उस परिवार से आप दोनों कोई संबंध नहीं रखेंगे. फोन पर भी नहीं. माहिका जैसी मेधावी लड़की का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. मैं नहीं चाहता कि वह बेकार के पचड़ों में पड़ कर अपना जीवन तबाह कर ले,’’ रजत दोनों से कठोर स्वर में बोले. मृदुभाषी रजत का वह रूप न तो कभी जूही ने देखा था और न ही कभी माहिका ने. दोनों ने सिर हिला कर स्वीकृति दे दी.

कुछ माह ही बीते होंगे कि एक दिन रजत ने सारे परिवार को यह कह कर चौंका दिया कि वे सिंगापुर जा रहे हैं. वहां उन्हें नौकरी मिल गई है. जूही और माहिका चुप रह गईं पर उन का 15 वर्षीय पुत्र विपिन प्रसन्नता से उछल पड़ा.

‘‘मैं अभी अपने मित्रों को फोन करता हूं.’’ वह चहका.

‘‘नहीं, मैं नहीं चाहता कि किसी को पता चले कि हम कहां गए हैं.’’ रजत सख्ती से बोले.

‘‘क्यों पापा?’’

‘‘बेटे हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है. जब तक उस का हल नहीं मिल जाता हमें सावधानी से काम लेना पड़ेगा. इसीलिए हम चुपचाप जाएंगे बिना किसी को बताए.’’

तभी उन्हें पास ही माहिका के सुबकने का स्वर सुनाई पड़ा. जूही उसे शांत करने का प्रयत्न कर रही थी.

‘‘माहिका, इधर तो आओ. क्या हुआ बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं पापा, आप की बात सुन कर लगा आप अब भी मुझ पर विश्वास नहीं करते,’’ माहिका आंसुओं के बीच बोली.

‘‘तुम ने जो किया उस के बाद विश्वास करना क्या इतना सरल है माहिका? विश्वास जमने में सदियां लग जाती हैं पर टूटने में कुछ क्षण. बस एक बात पर सदा विश्वास रखना कि तुम्हारे पापा तुम्हें इतना प्यार करते हैं कि तुम्हारे हितों की रक्षा के लिए किसी सीमा तक भी जा सकते हैं.’’

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए मैं ने आप को बहुत दुख पहुंचाया है,’’ माहिका फूटफूट कर रो पड़ी. सारे गिलेशिकवे उस के आंसुओं में बह गए.

दयादृष्टि : वसंती क्यों डरी-डरी रहती थी ?

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महिला सशक्तीकरण का उदाहरण उच्च पदों पर बैठी महिलाएं नहीं, विनेश फोगाट हैं

हरियाणा की रहने वाली 29 साल की विनेश फोगाट महिला पहलवान हैं. विनेश राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं. इसके अलावा विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कई पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला पहलवान भी वे हैं. फोगाट 2019 में लौरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड्स के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय ऐथलीट भी हैं. कुश्ती से विनेशका पारिवारिक रिश्ता सा है. उनके चचेरे भाई अंतर्राष्ट्रीय पहलवान और राष्ट्रमंडल खेलों के पदक विजेता रहे हैं. विनेश के पिता राजपाल फोगाट भी पहलवान रहे हैं. पहलवान गीता और बबीता विनेश की चचेरी बहनें हैं.

कुश्तीमें आने के लिए विनेश के परिवार को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. उन्हें हरियाणा में अपने गांव में समुदाय के भारी दबाव और विरोध का सामना करना पड़ा. लड़कियों का पहलवानी में आगे आना मुश्किल था. इसके बाद भी विनेश ने हर मुश्किल से लड़ कर पहलवानी की और पदक जीत कर अपने को श्रेष्ठ साबित भी किया. इसके बाद उन्होंने अपनी पंसद के लड़के पहलवान सोमवीर राठी से शादी की.

कुश्ती महासंघ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

विनेश फोगाट सहित 30 भारतीय पहलवानों, ओलिंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक, अंशू मलिक और बजरंग पुनिया सहित अन्य ने जनवरी 2023 में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. इसके बाद भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को भंग करने की मांग की. इन सभी का आरोप था कि कोच और अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह वर्षों से महिला खिलाड़ियों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. दावों की जांच के लिए एक निगरानी समिति बनाने की सरकार की पहल के बाद विरोध प्रदर्शन खत्म कर दिया गया.

इसके बाद अप्रैल 2023 में विनेश और महिला पहलवानों ने कहा कि बृजभूषण द्वारा प्रधानमंत्री मोदी और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को रिपोर्ट करने के बादउन्हें मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है. उनको प्रताड़ित किया गया और जान से मारने की धमकी दी गई. विरोध कर रही महिला पहलवान यह चाहती थीं कि बृजभूषण शरण सिंह को कुश्ती महासंघ से हटाया जाए. उनके खिलाफ मुकदमा कायम हो. किसी महिला को कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष बनाया जाए. सरकार ने हर मांग मान ली तो खिलाड़ियों ने भी अपना विरोध छोड़ दिया.

चुनाव में जीता बृजभूषण का सहयोगी

कुश्ती महासंघ से बृजभूषण के बाहर होने के बाद नए चुनाव हुए. उसमें महिला पहलवान अनीता को केवल 7 वोट मिले. 40 वोट पाकर बृजभूषण के करीबी संजय सिंह चुनाव जीत गए. इसके बाद महिला पहलवानों का विरोध फिर से शुरू हो गया. संजय सिंह के कुश्ती महासंघ का चुनाव जीतने के बाद साक्षी मलिक ने भी कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी.

साक्षी मलिक प्रैस कौन्फ्रेंस में संवाददाताओं से बात करने के बाद अपने जूते वहीं टेबल पर छोड़कर चली गईं. साक्षी मलिक ने कहा, ‘अगर प्रैसिडैंट बृजभूषण जैसा आदमी जो उसका सहयोगी है, उसका बिजनैस पार्टनर है, फैडरेशन में रहेगा तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं. मैं आज के बाद आपको कभी भी वहां नहीं दिखूंगी.’

साक्षी मलिक के खेल से संन्यास लेने की घोषणा के बाद पहलवान बजरंग पुनिया ने भी अपना पद्मश्री पुरस्कार सरकार को लौटा दिया. बजरंग पुनिया ने पद्मश्री पुरस्कार लौटाते हुए कहा, ‘जब तक न्याय नहीं मिलता उन्हें सम्मान नहीं चाहिए.’ अपने सोशल मीडिया हैंडल पर बजरंग पुनिया ने लिखा, ‘हमें सिर्फ भगवान पर भरोसा है. मैंने अपना पद्मश्री सम्मान बहनबेटियों के लिए वापस किया था, उनके सम्मान के लिए वापस किया था और जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता तब तक मुझे कोई सम्मान नहीं चाहिए.’ प्रधानमंत्री के नाम सोशल मीडिया पर एक खुला खत लिखा, ‘महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं सम्मानित होकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाऊंगा.’

विनेश ने उठाया बड़ा कदम

विनेश फोगाट प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचा कर अपने सम्मान वापस करना चाहती थीं. विनेश फोगाट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपने फैसले की घोषणा की थी. विनेश फोगाट ने अपने पुरस्कार लौटाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचने का प्रयास किया. पुलिस ने उन्हें रोक दिया. विनेश का कहना था कि ऐसे समय में इस तरह के सम्मान बेमतलब हो गए हैं जब पहलवान न्याय पाने के लिए जूझ रहे हैं.

विनेश फोगाट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखे पत्र को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट किया. इसमें उन्होंने लिखा, ‘साल 2016 में जब साक्षी ओलिंपिक में मैडल जीतकर आई थी तो उसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का ब्रैंडएंबेसडर बना दिया गया. लेकिन अब उन्हें कुश्ती छोड़नी पड़ रही है. क्या महिला खिलाड़ी सरकार के विज्ञापनों में छपने के लिए ही बनी हैं ? हम न्याय के लिए बीते एक साल से सड़कों पर हैं, लेकिन कोई हमारी सुध नहीं ले रहा.

‘हमने अपने न्याय के लिए आवाज उठाई तो हमें देशद्रोही बताया गया. बजरंग ने जिस हालत में अपना पद्मश्री वापस करने का फैसला लिया होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन मैं उसकी फोटो देखकर अंदर दी अंदर घुट रही हूं. अब मुझे भी अपने पुरस्कारों से घिन्न आने लगी है. मुझे मेजर ध्यानचंद खेलरत्न और अर्जुन पुरस्कार दिया गया था लेकिन अब इसका मेरी जिंदगी में कोई मतलब नहीं रह गया है. मैं ये पुरस्कार वापस करना चाहती हूं ताकि सम्मान से जीने की राह में ये पुरस्कार हम पर बोझ न बनें.’

व्यवस्था के खिलाफ विनेश की जंग

उस दौर में जब शासनसत्ता के डर से विरोध में कोई भी कुछ भी कहने से डर रहा हो वहां विनेश फोगाट ने अपनी बात कहने के लिए प्रधानमंत्री से मिलकर बात कहने का साहस दिखाया. वे पीएमओ तक जाने के लिए निकलीं. उनके हाथ में खेल सम्मान थे जो वे पीएम को वापस करना चाहती थीं. लेकिन उनको यह मौका नहीं मिला. इसके बाद भी विनेश फोगाट ने हार नहीं मानी.

वे अपने पुरस्कार लेकर ‘कर्तव्य पथ’ पर गईं. वहां पुलिस ने उनको मना किया. तब विनेश ने ‘कर्तव्य पथ’ पर ही अपने पर पुरस्कार छोड़ दिए. इसके बाद दिल्ली पुलिस सम्मान उठा ले गई. विनेश फोगाट ने ‘कर्तव्य पथ’ का चुनाव इसलिए किया क्योंकि मोदी सरकार ने ‘राजपथ’ का नाम बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ रखते समय देश का कर्तव्य याद दिलाया था. सरकार अपने कर्तव्य भूल गई, जिसके कारण विनेश जैसी महिला पहलवान को यह कदम उठाना पड़ा.

क्या है ‘कर्तव्य पथ’ ?

‘कर्तव्य पथ’ देश की सबसे महत्त्वपूर्ण स्ट्रीट का नाम है. इसका नाम 3 बार बदल चुका है. रायसीना हिल परिसर से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क का नाम पहले ‘किंग्सवे’ था. इसके बगल ‘क्वीन्सवे‘ था. ब्रिटिशकाल में किंग जौर्ज पंचम द्वारा जब राजधानी को कलकत्ता (कोलकाता) से दिल्ली लाया गया तब इसका निर्माण किया गया था. किंग जौर्ज पंचम के निर्देश पर वास्तुकार सर एडविन लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने नई राजधानी का निर्माण किया. किंग जौर्ज पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मैरी ने 15 दिसंबर, 1911 को ब्रिटिशराज की ‘नई राजधानी’ की आधारशिला रखी थी.

किंग के निर्देश पर वास्तुकार सर एडविन लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने नई राजधानी का निर्माण किया, जिसकी भव्यता और स्थापत्य कला ने यूरोप और अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ शहरों को टक्कर दी. इस राजधानी का केंद्र बिंदु रायसीना हिल परिसर था. ‘किंग्सवे’ पर वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) और नौर्थ ब्लौक और साउथ ब्लौक शाही सचिवालय थे. ‘क्वीन्सवे‘ पर ग्रेट प्लेस (विजय चैक) से इंडिया गेट तक एक भव्य मार्ग बनाया गया, जिसके दोनों तरफ हरेभरे लौन, फौआरे और सजावटी लैंप पोस्ट थे.

बेकर ने राष्ट्रपति भवन के पास एक गोलाकार संसद भवन बनाया, जिसका उद्घाटन जनवरी 1927 में तत्कालीन वायसराय लौर्ड इरविन ने किया था. 2 विश्वयुद्धों के बीच शहर का निर्माण किया गया था और इसे बनने में 20 साल से अधिक का समय लगा था. वायसराय इरविन ने ही 13 फरवरी, 1931 को इसका उद्घाटन किया था. राजाओं के चलने के लिए ‘किंग्सवे’ और उनकी रानियों को चलने के लिए ‘क्वीन्सवे‘ का प्रयोग होता था.

15 अगस्त, 1947 को भारत के आजाद होने पर रायसीना हिल से इंडिया गेट तक के मार्ग किंग्सवे का नाम बदलकर ‘राजपथ’ कर दिया गया. भारत 26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र बन गया और राजपथ 1951 से सभी गणतंत्र दिवस समारोहों का स्थल बन गया. केवल पहला गणतंत्र दिवस समारोह इंडिया गेट परिसर के पीछे इरविन स्टेडियम (कैप्टन ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में आयोजित किया गया था, जहां राजपथ समाप्त होता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क का नाम ‘राजपथ’ से बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ कर दिया. इस तरह से तीसरी बार इसका नाम बदला गया. नाम बदलने के बाद भी इसका काम नहीं बदला. यहां आज भी गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित होते हैं. जिनमें पहले की तरह राष्ट्र प्रमुख सेना की सलामी लेते हैं. जनता केवल दर्शक की तरह होती है. पहले आम जनता यहां गणतंत्र दिवस समारोह को देखने आ भी जाती थी, अब सुरक्षा कारणों से आम जनता कम ही आ पाती है.

‘राजपथ’ का नाम बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ रखने से नेताओं, अफसरों में कोई कर्तव्यबोध बढ़ गया हो, ऐसा भी नहीं है. अगर सरकारी अफसरों, खासकर पीएमओ के अफसरों, का कर्तव्यबोध बदला होता तो विनेश फोगाट का अपने खेल सम्मान वापस करने के लिए ‘कर्तव्य पथ’ तक न आना होता. इससे साफ है कि नाम बदलने से हालात नहीं बदलते. विनेश के पक्ष में पूरा भारत खड़ा है. इसके बाद खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई के नवनिर्वाचित पैनल को निलंबित कर दिया. भारतीय ओलिंपिक संघ (आईओए) ने कुश्ती संघ का कामकाज देखने के लिए एक तदर्थ समिति का गठन कर दिया. कुश्ती संघ को भंग नहीं किया गया है. जिससे साफ है कि कुछ दिनों के बाद इसको बहाल किया जा सकता है.

विनेश फोगाट के पक्ष में राहुल गांधी

कर्तव्य पथ पर विनेश फोगाट का एक वीडियो साझा करते हुए राहुल ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा कि ‘देश की हर बेटी के लिए आत्मसम्मान पहले है, अन्य कोई भी पदक या सम्मान उसके बाद. आज क्या एक घोषित बाहुबली से मिलने वाले राजनीतिक फायदे की कीमत इन बहादुर बेटियों के आंसुओं से अधिक हो गई है? राहुल गांधी ने विनेश फोगाट के खेलरत्न और अर्जुन पुरस्कार लौटाने के बाद पीएम मोदी की आलोचना की है. राहुल ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री देश के अभिभावक होते हैं और उनकी तरफ से ऐसी निष्ठुरता देखकर दुख होता है.’

अपनों का सुख: बूढ़े पिता के आगे शुभेंदु को अपना कद बौना क्यों लग रहा था- भाग 1

खेतीकिसानी करने वाले 70 वर्षीय कृषक शिवजी साह अपनी 65 वर्षीया बीमार पत्नी सुनंदा के साथ झरिया जैसे छोटे शहर के एक गांव में रहते थे. जबकि उन का 25 वर्षीय इकलौता पुत्र शुभेंदु और उन की 22 वर्षीया बहू सुधा पुणे में नौकरी करते थे. दोनों अच्छा पैसा कमाते थे. लेकिन शुभेंदु भूल कर भी मातापिता को जीवनयापन के लिए एक रुपया नहीं भेजता था. वह सुधा के साथ उन्मुक्त जीवन जीने में सारा पैसा फूंक मार कर सिगरेट के धुएं की तरह उड़ा देता था. उन का दांपत्य जीवन अतिआधुनिकता की चकाचौंध में खोता जा रहा था.

रोजाना महंगे होटलों में खानापीना और नित्य नाइट क्लबों में वक्त बिताना उन की आदत सी बन गई थी. बीचबीच में दोनों अपने दोस्तों के साथ बार और पब में जा कर मस्ती लूटते थे. इसी क्रम में एक जाट ग्रुप के कुछ युवकों से शुभेंदु के दोस्तों का झगड़ा हो गया.

तब शुभेंदु ने अपने मोबाइल पर तुरंत किसी को घटना की सूचना दी. उस के बाद बीचबचाव के मकसद से वहां चला गया. जाट ग्रुप के युवक उसी की पिटाई करने लगे. जवाब में शुभेंदु भी उन के ऊपर अपने हाथ साफ करने लगा. दोनों तरफ से जम कर मारपीट होने लगी.

सूचना पा कर पुलिस घटनास्थल पर पहुंची. पुलिस को देखते ही झगड़ा करने वाले दोनों पक्षों के युवक भाग खड़े हुए. लेकिन शुभेंदु भाग नहीं सका और पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

सुबह में सुधा को शुभेंदु के पकड़े जाने की खबर मिली तो वह हैरान रह गई. वह भागीभागी दत्तावाड़ी थाना पहुंची और थाना प्रभारी राजेश कुमार से मिल कर अपने पति को छोड़ने की गुहार लगाई.

“सर, मेरे पति शुभेंदु को छोड़ दीजिए. व़ह बिलकुल निर्दोष है. आज तक उस ने किसी से झगड़ा नहीं किया है. हम पर रहम कीजिए, सर.”

“मौका ए वारदात से पुलिस ने शुभेंदु को गिरफ्तार किया है. वह हर हाल में जेल भेजा जाएगा. तुम उसे जेल से जमानत करा लेना. वैसे भी, होली को ले कर कोर्ट 7 दिनों तक बंद रहेगा. अब जाओ यहां से.”

“सर, मेरे पति को थाना से ही छोड़ दीजिए. जो भी खर्चा लगेगा, मैं देने को तैयार हूं. जेल भेज दीजिएगा तो अकेले जीतेजी मर जाऊंगी. पुणे जैसे महानगर में हमारा कोई नहीं है.”

“शोभना, इसे बाहर निकालो, फालतू बकवास कर रही है.”

“प्लीज़ सर, प्लीज़ सर, हम पर दया कीजिए.”

थानेदार का आदेश पा कर लेडी कान्स्टेबल शोभना सुधा के पास गई और उसे इशारे से बाहर निकल जाने को कहा.

पब मालिक सुबोध वर्मा के लिखित बयान पर थाना में शुभेंदु सहित 5 अज्ञात लोगों पर तोड़फोड़, मारपीट और 50 हजार नकद राशि लूटने का मामला दर्ज किया गया. उस के बाद पुलिस ने शुभेंदु को जेल भेज दिया.

थाना से लौटने के बाद सुधा ने बड़े अरमान से सब से पहले अपने मायके में अपने बड़े भाई श्याम को फोन किया और वस्तुस्थिति की जानकारी दी. साथ ही, शुभेंदु को जेल से बाहर निकालने का आग्रह किया. लेकिन श्याम ने एक सप्ताह बाद पुणे आने की बात कही. उस का जवाब सुन कर वह औंधेमुंह बिस्तर पर गिर गई. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

पति के जेल चले जाने से उस का घर भूतों का डेरा बन गया था. हर तरफ सन्नाटा पसरा था. न खाने की सुध न सोने की फ़िक्र. हर समय शुभेंदु उस की आंखों में नाचता रहता था. इसी तरह उस के भाई श्याम के इंतजार में 2 सप्ताह बीत गए. लेकिन उस का भाई यह भी देखने नहीं आया कि उस की बहन सुधा किस हाल में है.

उस के सुख के साथी इस दुख की घड़ी में उसे देखते ही रास्ता बदल दिया करते थे. कुछ ने अगर हमदर्दी जताई तो निस्वार्थ भाव से नहीं, बल्कि सुधा पर आईं मुसीबत का लाभ उठा कर.

सुधा के एक मित्र थानापुलिस की दलाली करने वाले शिवशंकर ने केस कमजोर करने और शुभेंदु को थाने से घर लाने के लिए लिए 10 हजार रुपए लिए थे, लेकिन पुलिस ने शुभेंदु को नहीं छोड़ा. तब उस ने शिवशंकर से रुपए वापस मांगा तो उस ने थाने में खर्च हो जाने का बहाना बना दिया.

इतना ही नहीं, थाने से एफआईआर की कौपी निकालने के लिए सुधा ने एक हजार रुपए जब अपने करीबी दोस्त राजन बाबू को दिए तो 2 हफ्ते बाद भी नहीं मिल सकी. राजन बाबू जैसे शरीफ़ लोग प्रतिदिन उस से झूठ बोलते रहे कि एफआईआर की कौपी आजकल में मिल जाएगी. वह किन लोगों पर भरोसा करे, उसे समझ नहीं आ रहा था.

शाम को कौलबेल की आवाज सुन कर सुधा अपने बिस्तर से उठी और थकेमन से दरवाजा खोल दिया. सामने दाई मीणा खड़ी थी. उसे देख कर सुधा के मन को थोड़ी ठंडक पहुंची, क्योंकि मीणा उस के सुखदुख की साथी थी.

मीणा ने अंदर आने के बाद दरवाजा बंद कर लिया. किचन में जा कर कौफी बनाने लगी. इसी बीच, एक गिलास पानी देने सुधा के पास गई और बोली,

“मैम, सुना है कि शुभेंदु सर को जेल हो गई है तो अपने मित्र राजन बाबू किस दिन काम आएंगे? उन से मदद लेने में क्या कोई दिक्कत है?”

“क्या कहूं, दिमाग काम नहीं कर रहा है.”

“तो शुभेंदु सर जेल में सड़ते रहेंगे. परसों जेल में आप से मिल कर कितना रो रहे थे. क्या आप भूल गईं?”

“नहीं मीणा, भूली नहीं हूं. राजन बाबू को एफआईआर की कौपी निकालने के लिए एक हजार नकद रुपए दे दिया है. लेकिन 2 सप्ताह बीत गए. एफआईआर की कौपी नहीं मिल पाई है, अब किस से मदद ली जाए?”

“मैम, शुभेंदु सर के डैडीमम्मी को फोन कीजिए न. वे जरूर मददगार साबित होंगे. आखिर अपने लोग अपने नहीं होंगे तो कौन अपना होगा?”

“अपने भाई को फोन किया था, वह नहीं आया. अब किस मुंह से अपने ससुर को फोन करूं? आज से 20 वर्ष पहले अपनी बीमार सासुमां को छोड़ कर हम दोनों पुणे आ गए थे. पता नहीं वे किस हाल में होंगे.”

इतना कह कर सुधा चुप हो गई, जैसे कुछ सोच रही हो. तब मीणा किचन में चली गई.

अपने खयालों में खोई सुधा को लगा कि उस की सासुमां आवाज दे रही हैं-

‘अरे बहू, कहां हो, मारे दर्द के सिर फटा जा रहा है. जल्द मेरे पास आओ न. ठंडा तेल लगा कर थोड़ी मालिश कर दो. अरे, कहां मर गई रे. ओह.’

‘पता नहीं यह बुढ़िया कब मरेगी. रोज़ाना मुझे ही मरने के लिए कोसती रहती है,’ बहू सुधा ने अपनी सास पर अपने मन की भड़ास निकाली.

‘मुझे ही मरने के लिए बोल रही है. हे प्रकृति, कैसा जमाना आ गया है?’ बहू की आवाज सुन कर सुनंदा माथा पकड़ कर रोने लगी.

‘आई मांजी, मरे आप का दुश्मन. आप तो अमृत घट पी कर आई हैं, आप को कुछ नहीं होगा. हमेशा बकबक करना बंद कीजिए तो चैन मिले,’ बोलती हुई सुधा अपनी आंखें मोबाइल फोन से हटाई और चौकी पर लेटी अपनी सास सुनंदा की ओर देखा, जो दोनों हाथों से अपना सिर दबाए कराह रही थीं. उस ने स्टूल पर रखे हुए तेल की शीशी अपने बाएं हाथ में उठाई. शीशी का ढक्कन खोल कर दाएं हाथ की हथेली पर थोड़ा सा तेल लिया और अपनी सास के माथे पर डाल दिया. फिर दोनों हाथों की उंगलियों से ज़ोरज़ोर से मालिश करने लगी.

‘अरे बाप रे बाप, इतने जोर की मालिश. आज ही मार डालोगी क्या? रहने दो बहू, रहने दो. मेरी तो जान ही निकल जाएगी.’

‘सिरदर्द का बहाना करना तो कोई आप से सीखे. जब मालिश करने लगी तो आप ‘रहने दो रहने दो’ की रट लगाने लगीं. आप हमेशा मेरे नाक में दम किए रहती हैं. पता नहीं आप की यह बीमारी कब ठीक होगी.’

‘अरे बहू, मालिश कैसे की जाती है, मुझे तू सिखाएगी, वह भी बाल नोचनोच कर. खैर, जाने दे. तेरी दया की मुझे जरूरत नहीं. मुझे मेरी हालत पर छोड़ दो.’

‘ठीक है, ठीक है. कभी फिर न कहना मालिश के लिए.’

सुधा बीच में ही बोल कर अपने कमरे की ओर चली, तभी बाहर शुभेंदु और उस के ससुर शिव जी की बतकही सुनाई पड़ी. वह दरवाजा की ओट में छिप कर उन की बातें सुनने लगी. उस का पति शुभेंदु कह रहा था,

‘बैंक में काम का लोड बढ़ गया है. जिस के कारण रोजाना समय पर बैंक निकल जाना पड़ता है. शाम को बैंक से डेरा पहुंचने में लेटलतीफ़ हो जाती है. समय से खानापीना नहीं हो पाता है. जिस के कारण शारीरिक कमजोरी महसूस होती है. ऐसे हालात में सुधा को अपने साथ रखूंगा.’

‘लेकिन बेटा, तेरी मां तो बीमार है. अगर बहू तुम्हारे पास रहेगी तो तेरी मां की कौन देखभाल करेगा? उस की कुछ तो चिंता करो.’

‘मां को कुछ नहीं होगा, देखने से तो भलीचंगी लग रही हैं. आप हैं न, उन की देखभाल के लिए. कुछ रुपए भेज दूंगा, उन्हें किसी अच्छे डाक्टर से दिखा दीजिएगा. आज़ हम दोनों पुणे के लिए निकल जाएंगे.’

‘लेकिन बेटा, एकदो सप्ताह और ठहर जाते तो बहुत अच्छा होता,’ पुत्रमोह में शिवजी साह ने आग्रह किया.

साथी : भाग 1

‘‘आप अभी तक होटल में ही रह रही हैं? मगर क्यों?’’ यह कहने के साथ ही कपिल के हाथ क्षणभर को थम गए. प्याले पर उंगलियों की पकड़ कमजोर पड़ने लगी. एक लड़खड़ाहट सी महसूस हुई उन में और होंठों तक आते न आते प्याला वापस टेबल से जा टकराया.

कविता करीब 2 महीने पहले कपिल के औफिस में दिल्ली ब्रांच से ट्रांसफर हो कर आई थी. निराला ही व्यक्तित्व था उस का, सब में घुलमिल कर भी सब से अलग. कुछ ही दिनों में उस ने खुद को यहां के परिवेश में इस कदर ढाल लिया कि नएपन का एहसास ही कहीं खो गया.

‘‘आप ने तो पहले कभी बताया ही नहीं कि अभी तक आप होटल में ही रह रही हैं,’’ कपिल ने अटकते हुए कहा.

‘‘वो, ऐसा है न कपिल साहब, कोई मन की जगह ही नहीं मिली अभी तक. अब दोचार दिन की बात तो है नहीं, क्या पता दोचार महीने रहना हो या दोचार साल, सोचती हूं दोचार जगह और देख लूं.’’

‘‘अभी तक आप को अपने रहने लायक कोई जगह ही पसंद नहीं आई? कमाल है. इतना बुरा भी शहर नहीं है हमारा. एक बात कहूं, तब तक आप मेरे घर में ही शिफ्ट क्यों नहीं कर लेतीं?’’ कहने के साथ ही कपिल स्वयं ही झेंप गया.

माना कि पिछले कुछ हफ्तों में वह औरों की अपेक्षा कविता के कुछ ज्यादा ही करीब आ गया है पर इस का मतलब क्या हुआ.

वह फिर बोला, ‘‘मेरा मतलब है कि मेरा घर बहुत बड़ा है और रहने वाले बहुत कम लोग हैं. जब तक आप का अपना कोई ठिकाना नहीं मिलता, आप भी वहां रह सकती हैं. वैसे भी मकान का वह हिस्सा उपेक्षित पड़ा हुआ है, घर से बिलकुल अलगथलग. मैं वादा करता हूं, मैं खुद मदद करूंगा आप के लिए घर ढूंढ़ने में. मुझे पूरा विश्वास है कि आप को जल्द अपना मनपसंद घर मिल जाएगा.’’

प्रस्ताव बुरा नहीं था. कविता मन ही मन मुसकराती रही. कहना तो चाहती थी कि चलिए, आप की बात मान ली मैं ने पर प्रत्यक्ष में कुछ न कह सकी.

‘‘अरे, आप तो किसी सोच में डूब गईं.’’

‘‘नहीं तो, मैं तो बस यह सोच रही थी कि क्या यह उचित होगा? लोग क्या कहेंगे?’’ कविता एकदम सकपका कर बोली.

‘‘अच्छा, आप भी सोचती हैं यह सब? आप कब से लोगों की परवा करने लग गईं? मैं इतने दिनों में आप को जितना जान सका हूं, इस से तो इसी

सोच में था कि आप के बारे में उचितअनुचित’, ‘लोग क्या कहेंगेजैसी बातों का कोई असर नहीं होता. मगर आप तो इन बातों के लिए बिलकुल विपरीत ही नजर आ रही हैं.’’

‘‘कपिल साहब, मेरी बात छोडि़ए, मुझे सचमुच कोई फर्क नहीं पड़ता,’’ कविता के स्वर में वही पुरानी बेफिक्री थी. साधारण सी कदकाठी वाली कविता इन्हीं विशेषताओं के कारण औरों से अलग दिखती थी. हलके रंग की प्लेन साड़ी, माथे पर छोटी सी काली बिंदी, एक हाथ में घड़ी और एक हाथ में चंद चूडि़यां, बस, यही था उस का साजशृंगार.

सच भी था, कोई फर्क नहीं पड़ता उसे इन बातों से. अगर फर्क पड़ता तो क्या वह किसी की परवा किए बिना अपना मायका और अपनी ससुराल छोड़ आती पर आज उस के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आईं.

‘‘बात सिर्फ मेरी होती तो और बात थी कपिल, मगर मेरे इस फैसले से तो आप भी प्रभावित होंगे ही न. बस, इसीलिए ही सोचना पड़ रहा है.’’

‘‘अजी, आप मेरी छोडि़ए, मुझे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता. बस, आप हांकहें तो मां से इजाजत ले लूं. वैसे भी उन्हें तो कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती, बल्कि वे तो खुश होंगी.’’

हैरान रह गई कविता. उस के जेहन में सवाल उठे, मां से क्यों? क्या वह अकेला है? उस की पत्नी? कोई बच्चे नहीं हैं?

‘‘कहां खो गईं?’’

‘‘कुछ नहीं, बस,’’ इस के आगे कुछ नहीं कह सकी वह. कहती भी तो क्या कपिल से तो कुछ पूछ ही नहीं सकती इस विषय में. उन्होंने तो एकदूसरे से वादा किया है कि वे एकदूसरे के अतीत में झंकने का कभी कोई प्रयास नहीं करेंगे, मगर यह कैसे संभव होगा? शर्तों के दायरे में दोस्ती? चलो, यही सही पर इस की शुरुआत कविता की तरफ से तो कतई नहीं होनी चाहिए. वह किसी भी कीमत पर कपिल जैसे दोस्त को खोना नहीं चाहती. कपिल के विषय में जितना कुछ भी पता था सिर्फ उसी से. उस ने कभी भी किसी और से कपिल के बारे में कुछ भी जानने की कोशिश नहीं की. न ही कभी किसी ने कुछ बताया. शायद बताने जैसा कुछ हो भी न. बहुत सारी बातें समय के साथसाथ अपनेआप ही पता चल गईं, जैसे वह बहुत रिजर्व रहता है, कम बोलता है, गिनेचुने लोगों के साथ उठताबैठता है. शादी हुई है? शायद नहीं, क्या पता, पता नहीं.’’

‘‘लीजिए, बातोंबातों में कौफी तो एकदम ठंडी हो गई,’’ कपिल कौफी की बेहाली पर हंस पड़ा. उस ने दोबारा कौफी और्डर की.

इस बार कौफी ठंडी करने का इरादा दोनों का ही नहीं था, सो दोनों ही खामोश थे. कविता की उंगलियां लगातार प्याले से ही खेलती रही थीं. शायद वह कुछ और ही सोच रही थी. कपिल के विषय में, उस के घर के विषय में या फिर कुछ और?

उसे अच्छी तरह याद है, कपिल के बहुत कहने पर जब वह पहली बार उस के घर गई थी तब भी मुलाकात सिर्फ उस की मां से ही हुई थी. वहां जा कर पता चला कि कपिल का ही जन्मदिन है आज. इस अवसर पर हर साल की तरह उस की मां सुनंदा देवी ने कुछ खास लोगों को ही आमंत्रित किया था, इस बार उन खास लोगों में वह भी शामिल थी.

मां ने ही सबकुछ अपने हाथों से रचरच कर बनाया था. कितने प्यार से खिला रही थीं सभी को. ममता की जीतीजागती मिसाल लग रही थीं वे. कविता तो देखती ही रह गई, क्या अभी भी इस धरती पर हैं ऐसे लोग?

अपनी अपनी तैयारी : भाग 1

‘‘आप ही बताइए मैं क्या करूं, अपनी नौकरी छोड़ कर तो आप के पास आ नहीं सकता और इतनी दूर से आप की हर दिन की नईनई समस्याएं सुलझ भी नहीं सकता,’’ फोन पर अपनी मां से बात करतेकरते प्रेरित लगभग झंझला से पड़े थे.

जब से हम लोग दिल्ली से मुंबई आए हैं, लगभग हर दूसरेतीसरे दिन प्रेरित की अपने मम्मीपापा से इस तरह की हौटटौक हो ही जाती है. चूंकि प्रेरित को अपने मम्मीपापा को खुद ही डील करना होता है, इसलिए मैं बिना किसी प्रतिक्रिया के बस शांति से सुनती हूं.

अब तक गैस पर चढ़ी चाय उबल कर पैन से बाहर आने को आतुर थी, सो, मैं ने गैस बंद की और 2 कपों में चाय डाल कर टोस्ट के साथ एक ट्रे में ले कर बालकनी में आ बैठी. कुछ ही देर में अपना मुंह लटकाए प्रेरित मेरी बगल की कुरसी पर आ कर बैठ गए और उखड़े मूड से पेपर पढ़ने लगे.

‘‘अब क्या हुआ, क्यों सुबहसुबह अपना मूड खराब कर के बैठ गए हो? मौर्निंग वाक करने का कोई फायदा नहीं अगर आप सुबहसुबह ही अपना मूड खराब कर लो,’’ मैं ने प्रेरित को कुछ शांत करने के उद्देश्य से कहा.

‘‘पापा कल पार्क में गिर पड़े, मां को गठिया का दर्द फिर से परेशान कर रहा है. अभी 15 दिन पहले ही तो लौटा हूं कानपुर से, डाक्टर से पूरा चैकअप करवा कर और जहां तक हो सकता था, सब इंतजाम कर के आया था. जैसेजैसे उम्र बढ़ेगी, नितनई समस्याएं तो सिर उठाएंगी ही न. यहां आने को वे तैयार नहीं. बिट्टू के पास जाएंगे नहीं तो क्या किया जाए? नौकरी करूं या हर दिन इन की समस्याएं सुलझता रहूं? इस समस्या का कोई सौल्यूशन भी तो दूरदूर तक नजर नहीं आता,’’ प्रेरित कुछ झंझलाते हुए बोले.

‘‘चलो, अब शांत हो जाओ और अच्छे मन से औफिस की तैयारी करो. आज वैसे भी तुम्हारी इंपौर्टेंट मीटिंग है. कल वीकैंड है, इन 2 दिनों में हमें अम्माबाबूजी की समस्याओं का कोई परमानैंट हल निकालना पड़ेगा वरना इस तरह की समस्याएं हर दूसरेतीसरे दिन उठती रहेंगी,’’ यह कह कर मैं ने प्रेरित को कुछ शांत करने का प्रयास किया और इस के बाद हम दोनों ही अपनेअपने औफिस की तैयारी में लग गए थे.

मैं और प्रेरित दोनों ही आईसीआईसीआई बैंक में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर हैं. अभी हमें मुंबई शिफ्ट हुए 3 माह ही हुए थे. सो, बहुत अच्छी तरह मुंबई शहर से परिचित नहीं थे. हमारी इकलौती बेटी आरुषी 3 माह पहले ही 12वीं पास कर के वीआईटी वेल्लोर से इंजीनियरिंग करने चली गई. उस के जाने के बाद हम अकेले रह गए थे. हम तो अभी तक उस के जाने के दुख में ही डूबे रहते यदि हमारा ट्रांसफर मुंबई न हुआ होता. ट्रांसफर हो जाने पर शिफ्ंिटग में इतने अधिक व्यस्त हो गए हम दोनों कि बेटी का जाना तक भूल गए यद्यपि सुबहशाम उस से बात हो जाती थी.

हम दोनों को ही 10 बजे तक निकलना होता है, इसलिए 8 बजे मेड आ जाती है. टाइम के अनुसार सुशीला मेड आ गई थी. उसे नाश्ताखाने की कुछ जरूरी हिदायतें दे कर मैं बाथरूम में घुस गई.

नहातेनहाते वह दिन भी याद आ गया जब मैं पहली बार प्रेरित से मिली थी. मैं और प्रेरित दोनों ही इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से थे और अब भोपाल के आईआईएएम कालेज से फौरेस्ट मैनेजमैंट में एमबीए कर रहे थे. एक दिन कालेज के ग्रुप पर मैं ने एक मैसेज देखा, ‘इफ एनीवन इंट्रेस्टेड फौर यूपीएससी एग्जाम, प्लीज डी एम टू मी.’

मेरे मन के किसी कोने में भी यूपीएससी बसा हुआ था, सो, मैं ने दिए गए नंबर पर मैसेज किया और एक दिन जब कालेज की लाइब्रेरी में हम दोनों मिले तो अपने सामने लंबी कदकाठी, गौरवर्णीय, सलीके से ड्रैसअप किए सुदर्शन नौजवान को देखती ही रह गई. इस के बाद तो कभी कोचिंग, कभी नोट्स और कभी तैयारी के बहाने मिलनाजुलना प्रारंभ हो गया था और कुछ ही दिनों के बाद हम दोनों के बीच से यूपीएससी तो गायब हो गया और रह गया हमारा प्यार, एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें, एकदूसरे की तारीफ में पढ़े गए कसीदे और भविष्य की लंबीचौड़ी प्लानिंग.

भोपाल के कलिया सोत डैम के पास चारों ओर हरीतिमा से ओतप्रोत एक छोटी सी पहाड़ी पर नेहरू नगर में स्थित आईआईएफएम कालेज में हमारा प्यार पूरे 2 साल परवान चढ़ता रहा. कोर्स के पूरा होतेहोते हम दोनों का ही प्लेसमैंट आईसीआईसीआई बैंक में हो गया था और अब हम दोनों ही विवाह के बंधन में बंध जाना चाहते थे. चूंकि हम दोनों की जाति ब्राह्मण ही थी, इसलिए आश्वस्त थे कि विवाह में कोई बाधा नहीं आएगी. मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी और प्रेरित 2 भाई थे. उन का छोटा भाई प्रेरक (बिट्टू) मैडिकल की पढ़ाई कर रहा था. प्रेरित की मां एक होममेकर थीं और पापा एक राजपत्रित अधिकारी के पद से इस वर्ष ही रिटायर हुए थे.

मेरी मां एक मनोवैज्ञानिक काउंसलर और पापा बैंक मैनेजर थे. अभी उन के रिटायरमैंट में 2 वर्ष थे. हम दोनों ने ही घर में अपने प्यार के बारे में पहले ही बता दिया था. सो, अब औपचारिक मोहर लगनी ही बाकी थी. हम दोनों की मम्मियों ने फोन पर बातचीत भी कर ली थी. इसी सिलसिले में एक दिन प्रेरित के मम्मीपापा कानपुर से इंदौर मुझे देखने या यों कहें कि विधिवत रूप से गोद भराई की रस्म करने आए.

उन लोगों के आने की सूचना मात्र से ही मांपापा खुशी से दोहरे हुए जा रहे थे आखिर उन की इकलौती संतान के हाथ पीले होने का प्रथम चरण का आयोजन जो होने जा रहा था. आने वाले मेहमानों के लिए पूरे घर को पापा ने फूलों से सजा दिया था. मम्मी ने कांता मेड के साथ मिल कर डाइनिंग टेबल पर न जाने कितने व्यंजनों की लाइन लगा दी थी जिन के मसालों की महक से किचन ही नहीं, पूरा घर ही महक उठा था.

अतिथियों को कोई परेशानी न हो, इस के लिए पापा ने हमारे घर के पास में ही स्थित होटल रेडिसन में उन के रुकने की व्यवस्था कर दी थी. होटल से सुबह ही तैयार हो कर प्रेरित और उस के मम्मीपापा हमारे यहां आ गए थे.

चायनाश्ते के बाद मेरी गोदभराई की रस्म के तहत प्रेरित की मम्मी ने साथ लाए फल, मिठाई और कपड़ों के साथसाथ शगुन के नाम पर एक सोने की चेन मेरे गले में डाल दी थी. लंच के बाद जब सब लोग हंसीखुशी के माहौल में बातचीत कर रहे थे तभी प्रेरित की मम्मी मेरे मांपापा की ओर मुखातिब हो कर बोलीं, ‘आप लोग बुरा न मानें तो एक बात पूछ सकती हूं?’

ख्वाब पूरे हुए : भाग 1 – नकुल की शादी से क्यों घर वाले नाराज थे?

“मन्नो, मन्नो.”

“हां, बोलो.”

“फुरसत मिल गई अपने काम से…? या अभी भी पिज्जा डिलीवरी के लिए और जाना है?”

“मन्नो, सुनो तो. यों मुझ पर गुस्सा तो मत करो प्लीज.”

“गुस्सा न करूं तो क्या करूं? रोजाना आधी रात के बाद घर लौटते हो. कभी सोचा है, आधी रात तक का मेरा वक्त कैसे बीतता है अकेले बिस्तर पर करवटें बदलतेबदलते?”

“सब समझता हूं मन्नो, लेकिन मैं करूं तो क्या करूं? घर बैठ जाऊं? पिछले महीने घर बैठा तो था. याद है या भूल गई? दो वक्त की रोटियों तक के लाले पड़ गए थे. इतनी मुश्किल से तो यह नौकरी मिली है. अब इसे भी छोड़ दूं?”

“दूसरी नौकरी तलाशोगे तब तो मिलेगी. तुम्हारी यह आधीआधी रात तक की नौकरी मुझे तो फूटी आंख नहीं सुहाती. दिनदिन की नौकरी करो ना, भलेमानसों की तरह. मैं भी तो नौकरी करती हूं. शाम को 7 बजतेबजते लौट आती हूं कि नहीं? अरे ढूंढ़ोगे तब तो मिलेगी न नौकरी. यों हाथ पर हाथ धर कर तो मिलने से रही नई नौकरी.”

“तो तुम्हारा मतलब है कि मैं हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहता हूं? बस, बस, अपनी नौकरी को ले कर ज्यादा उड़ो मत. तुम चाहती हो कि तुम्हारी इस 10,000 रुपए की नौकरी के दम पर मैं अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ दूं और फिर से सड़कों की खाक छानूं?”

“मेरी 10,000 रुपए की नौकरी तुम्हारी इस फूड डिलीवरी की नौकरी से लाख गुना बेहतर है. कम से कम समय पर घर तो आ जाती हूं मैं.”

“अब कितनी बार आधी रात घर लौटने को ले कर ताने सुनाओगी. बस भी करो यार. अपना स्यापा बंद भी करो. न चैन से खुद रहती हो और न ही मुझे रहने देती हो. जिंदगी नरक बन कर रह गई है.”

“नरक बनी है तुम्हारी करनी से. मेरा उस से क्या लेनादेना? शादी की थी यह सोच कर कि अकेले से दुकेले होंगे तो जिंदगी में सुकून आएगा.

लेकिन यहां तो तुम उलटी ही गंगा बहा रहे हो. बताना जरा, शादी के बाद क्या सुख दिया तुम ने सिवा कंगाली और अकेलेपन के?”

“मैं ने सुख नहीं दिया तो ढूंढ़ लेती कोई रईस आसामी, जो घर बैठाबैठा तुम्हारे सौसौ नखरे उठाता,” भीषण गुस्से से उबलते हुए अपने हाथ में थमा गजरा जमीन पर फेंकते हुए नकुल पत्नी मन्नो पर गरजा और करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगा.

उधर मन्नो भी पति नकुल के आज पहली शादी की वर्षगांठ पर भी आधी रात के बाद घर लौटने को ले कर बेहद गुस्सा थी. अंतस का क्रोध आंखों की राह बह रहा था. मन में खयालों की उठापटक जारी थी.

आंखें मूंद कर सोने का असफल प्रयास करतेकरते मनपंछी कब अतीत के सायों में अटकनेभटकने लगा, उसे तनिक भी एहसास नहीं हुआ.

उस ने एक छोटे से शहर में सफाई कर्मचारी मातापिता के घर में जन्म लिया था. बचपन से ही मातापिता दोनों शहर के एक अपार्टमैंट के प्रांगण को बुहारने का काम करते. वह बचपन से ही एक परिष्कृत रुचि संपन्न लड़की थी. जैसेजैसे उम्र के पायदान पर चढ़ रही थी, मातापिता के सफाई के काम को ओछी नजर से देखती. बेहद संवेदनशील स्वभाव की थी वह. बचपन में जब भी सहेलियां आपस में अपने मातापिता, उन के कामकाज की बातें करतीं, मातापिता का सफाई कर्मचारी के तौर पर परिचय देने पर उन की नजरों में आए बदलाव को भांप जाती और इसे ले कर मन ही मन घुलती. 5वीं-6ठी कक्षा में आतेआते उस की कोई हमउम्र सहेली नहीं बची थी, जिस के साथ वह मन की बातें साझा कर पाती. यहां तक कि उसे अपने घर से लाया टिफिन भी अकेले ही खाना पड़ता. कोई भी सखी ऐसी न थी, जो उस के साथ खाना पसंद करती.
वक्त का कारवां कब रुका है? देखतेदेखते वह 11वीं कक्षा में आ पहुंची. तभी उस की नजरें अपनी ही कक्षा के एक सहपाठी नकुल से भिड़ीं. नकुल को पतलीदुबली, दोनों गालों पर डिंपल वाली, बड़ीबड़ी सीपीनुमा आंखों वाली, उदास सी अपनेआप में खोईखोई क्लास में पीछे अकेली बैठी मन्नो बहुत अच्छी लगती. ख्वाबोंखयालों की उम्र में वक्त के साथ दोनों ही एकदूसरे को दिल दे बैठे और अकसर दोनों स्कूल में एकसाथ देखे जाते.

बरसों से कक्षा की सहेलियों की उपेक्षा से व्यथित मन्नो को जैसे जीवनदान मिला. समय के साथ नकुल से उस की नजदीकियां बढ़ीं और दोनों एकसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.दोनों ही बेहद भावुक स्वभाव के थे. सो, अब एकदूसरे से अलगअलग रहना दोनों को ही रास नहीं आ रहा था.

दोनों ने अपनेअपने घरों में एकदूसरे से विवाह की बात छेड़ी, लेकिन दोनों को ही इस शादी को ले कर जातिभेद की वजह से अपनेअपने मातापिता का सख्त प्रतिरोध सहना पड़ा.

दोनों के मातापिता ने उन के विवाह संबंध से साफसाफ इनकार कर दिया.

करेला और नीम चढ़ा, कच्ची उम्र और प्यार का जुनून, दोनों ने घर से भाग कर शादी करने का फैसला किया, लेकिन भूल गए कि जिंदा रहने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत होती है.

दोनों मन्नो और नकुल ने 12वीं की बोर्ड परीक्षा के बाद अपने घनिष्ठ दोस्तों के उकसाने पर आर्य समाज मंदिर में उन की मौजूदगी में एकदूसरे से ब्याह रचा लिया. नकुल ने अपनी मां को पहले से ही बता रखा था कि वह एक लड़की से प्यार करता है. उसे अपनी मां पर, उन के प्यार पर अटूट भरोसा था कि वह हर हाल में मन्नो को अपनी बहू के तौर पर अपना लेंगे. नकुल सोच ही न पाया कि उस के मातापिता उस से कमतर जाति की सफाई कर्मचारी मातापिता की संतान को अपनी बहू के रूप में हरगिज नहीं स्वीकारेंगे.

विवाह के बाद जब नकुल अपनी नवोढ़ा दुलहन को रोजमर्रा के कपड़ों में सिंदूर से भरी मांग के साथ पिता के घर की दहलीज पर पहुंचा, उस की मां और पिता ने उन दोनों के मुंह पर यह कहते हुए धड़ाम से दरवाजा बंद कर दिया कि, “हमारे घर में लोगों का मैला साफ करने वालों की लड़की के लिए कोई जगह नहीं.”

नकुल ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की कि वे मात्र एक आवासीय कालोनी के प्रांगण को बुहारने का काम करते हैं, मैला साफ करने का नहीं, लेकिन बेटे की इस नाफरमानी से बुरी तरह से रुष्ट पिता ने उन से अपने सारे रिश्ते तोड़ने की कसमें खाते हुए उन दोनों को अपने घर में घुसने तक की इजाजत नहीं दी.

दोनों पतिपत्नी उन के घर की ड्योढ़ी पर घंटों बैठेबैठे उन से दरवाजा खोलने की गुहार करते रहे, लेकिन पिता का मन नहीं पसीजा और थकहार कर नकुल मन्नो को अपने निस्संतान मामामामी के यहां ले गया, जिन का उस पर विशेष स्नेह था. मन्नो के मातापिता ने भी बेटी के इस निरंकुश आचरण से क्षुब्ध हो उस से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे.

मामामामी के यहां वे दोनों करीब महीनेभर रहे. महीना बीततेबीतते मामामामी के व्यवहार में भी तुर्शी आने लगी और दोनों को ही एहसास हुआ कि अब अपनी लड़ाई लड़ने का वक्त आ गया है. सो, दोनों अपने लिए काम की तलाश करने लगे.

जानें क्यों लगती है बार बार भूख ?

भूख लगी है खाना लाओ, भूख लगी है खाना लाओ, क्या आपका पेट भी बार बार यही बात कहता है. अगर हां तो हो जाओ सावधान क्योंकि ये संकेत है आपके अंदर पल रही बीमारी का जैसे हाइपोग्लैकैमिया, डीहाइड्रेशन, ब्लड शुगर में  बदलाव, माइग्रेन जैसी बीमारी के शिकार भी हो सकते है.

कभी कभी हम अधिक तनाव में होते हैं तो भी हमें अधिक भूख लगती है क्योंकि जब आप ज्यादा तनाव में होते हैं तो कोर्टिसोल नाम का हार्मोन शरीर में बनना शुरू हो जाता है. जिस कारण अधिक भूख लगती है. इसके आलावा ज्यादा भूख लगने के कई और कारण भी हैं. इसके कारणों को पहचाने की बजाय कुछ लोग ओवर ईटिंग करने लगते हैं जिससे पाचन तंत्र कमजोर होने लगता है. अगर आपको भी खाना खाने के बाद पेट खाली लगता है तो इस समस्या को नजरअंदाज न करें.

अधिक भूख लगने के कारण

  • पोषक तत्वों की कमी

जब हमारे शरीर को भरपूर मात्रा में पोषण नहीं मिलता तब हमें ऐसा खाने की इच्छा होती है, जिसे खाने से हमें तुरंत एनर्जी मिल जाये. और जब तक वह कमी पूरी नहीं होती तब तक हमें बार बार भूख लगती रहती है.

प्रोटीन और फाइबर की कमी भोजन में प्रोटीन और फाइबर की मात्रा सही होनी चाहिए. खाने में इनकी कमी से व्यक्ति का पेट नहीं भरता और हर समय भूखे होने का अहसास होता रहता है. प्रोटीन और फाइबर युक्त भोजन खाने से पेट भरा- भरा लगाता है.

  • पानी की कमी के कारण

कुछ लोगों को कम पानी पीने की आदत होती है. जिस कारण उनके बाल और त्वचा पर गलत प्रभाव पड़ता है और बौडी डिहाईड्रेट हो जाती है और बार बार भूख लगती है. यह समस्या सर्दियों में अधिक होती है. इसके कारण हमारी त्वचा व बाल खुश्क होने लगते है.

  • हाइपोग्लैकैमिया

इसमें शरीर में ब्लड शुगर का लेवल कम हो जाता है जिसकी वजह से भूख ज्यादा लगती है ताकि शरीर उस खाने को ऊर्जा में परिवर्तित कर सके.

  •  कैलोरी की कमी

शरीर को कार्य करने के लिए संपूर्ण आहार की आवश्यकता होती है. कम कैलरी वाले भोजन का सेवन करने से ज्यादा भूख लगती है. हर पल ऐसा  लगता है जैसे खाना नहीं खाया. इस समस्या से राहत पाने के लिए कैलरी से भरपूर भोजन खाएं.

  • हाइपोथाइरौयडिज्म

थाइरौयड की वजह से शरीर में हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है जिस कारण लगातार भूख लगने लगती है और यह समस्या  हाइपोथाइरौयडिज्म भी हो सकता है.

कैसे करें बचाव

नट्स : जब भूख लगे तो नट्स खा  सकते है लेकिन बिना नमक के जैसे काजू, बदाम, अखरोट या मूंगफली इन्हें खाने से जल्दी भूख भी नहीं लगती और शरीर को भरपूर पोषण मिलता है.

सेब खाएं : सेब में भरपूर फाइबर और  जल की मात्रा होती है . सेब के छिलकों में पेक्टिन पाया जाता है, जो भूख को कम करने में मदद करता है.इसके सेवन से लबे समय तक भूख नहीं लगती.

अगर आपकी भूख पर कंट्रोल नहीं हो पा रहा है तो जरूरी है की गैस्ट्रो डौक्टर से इलाज कराएं क्योंकि यह समस्या आपको मोटापे का शिकार भी बना सकती है और साथ ही आप कई ऐसी बीमारियों घिर सकते हैं जिनका इलाज जल्दी से नहीं हो पाता.

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