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बच्चों के मुखसे

बात उन दिनों की है जब मैं शादी के बाद पहली बार पति के साथ वापी आई थी. पति के औफिस चले जाने के बाद मु?ो घर में बोरियत महसूस न हो, इस के लिए पति के एक घनिष्ट मित्र की पत्नी मुझे अपने घर ले जाती थीं. वे हमारे घर के सामने ही रहती थीं. पहले दिन ही उन का साढ़े 4 वर्षीय पुत्र, जो जूनियर केजी में पढ़ता था, घर लौटते ही अपनी मां से बोला, ‘‘मम्मी, टीचर ने बोला है, अगले फ्राइडे कंपीटिशन है, लवस्टोरी याद कर के आना.’’  

मैं कुछ क्षण चुप रही, फिर जब अपनी उत्सुकता को रोक न सकी तो पूछ ही लिया, ‘‘दीदी, ये स्कूल वाले कैसे हैं जो बच्चों को लवस्टोरी याद कर के आने को बोला है?’’ इस पर उन्होंने जोर का ठहाका लगाया और बोलीं, ‘‘अरे मीनाक्षी, उन्होंने लवस्टोरी नहीं बल्कि लव, स्टोरी याद कर के आने को बोला है.’’ दरअसल, उस बच्चे का नाम ‘लव’ था.

मीनाक्षी अरविंद कुमार, वापी (गुज.)

 

मेरा 3 वर्ष का नाती दक्ष बहुत ही सम?ादारी की बातें करता है. एक दिन उस के पापा ने पीने के लिए जैसे ही पानीभरा गिलास मुंह से लगाया, दक्ष अपने लिए पानी मांगने लगा. सो, उस के पापा ने वही पानी का गिलास उसे देने के लिए हाथ बढ़ाया. वह तुरंत बोला, ‘‘नहीं पापा, मु?ो आप का ?ाठा पानी नहीं पीना, मु?ो अपना वाला सच पानी पीना है.’’ हम सब का हंसतेहंसते बुरा हाल था कि बच्चा ?ाठा और जूठा में अंतर नहीं जानता.

सरिता असारी, जबलपुर (म.प्र.)

 

मैं प्रीप्राइमरी कक्षा की अध्यापिका हूं, जिस में साढ़े 3 साल के बच्चे पढ़ते हैं. हर साल की तरह अप्रैल माह में नए बच्चों का आगमन हुआ. उन में एक बच्चा ऐसा भी था जो दिखने में बहुत छोटा था मगर बातें दुनियाभर की करता था. एक दिन उस के पिता, जो उसे रोज लेने आते थे, देर तक नहीं आए.

मैं ने उस से बात करने की गरज से पूछा कि पापा क्या करते हैं तो बोला कि पापा की फू्रटी की दुकान है. कुछ देर बाद उस के पापा आए और कहने लगे कि यह घर पर स्कूल की कोई बात नहीं बताता, क्या स्कूल में भी चुप रहता है?

मैं ने कहा, ‘‘क्लास में तो यह बहुत बातें करता है बल्कि आज ही बता रहा था कि आप की फू्रटी की दुकान है.’’ उस के पापा जोर से हंसे और बोले, ‘‘असल में यह जब भी दुकान आता है तो फू्रटी जरूर पीता है. बच्चे की भोली बातों पर हम दोनों बहुत हंसे.

अंजू भाटिया, जयपुर (राज.) 

सवाल

क्यों तुम्हारी आंखों में

तूफान उमड़ आया है

क्या किसी ने फिर

यादों के झरोखे पे खटखटाया है?

 

जो फूल दिया था उस ने कभी

खिलाखिला, महकामहका

क्या वही सूखा हुआ

किताब में निकल आया है?

 

जो तराना उस ने सुनाया था कभी

किसी पेड़ के नीचे

क्या वही पास से गुजरते

किसी ने गुनगुनाया है?

 

जो डोर बांधी थी कसमों की, वादों की, साथ में उस डाल पर

क्या उसी डाल का कोई पत्ता

उड़ कर इधर चला आया है?

 

क्यों मुरझाया हुआ है चेहरा

आज इस कदर यों तुम्हारा

क्या ख्वाबों में मुसकराता

वही चेहरा उतर आया है?

 

न पूछो, न टोको, न कहो कुछ भी

न कोई सवाल करो अब

बड़ी मुश्किल से मैं ने

मन को थपका कर सुलाया है.

जयश्री वर्मा

 

डहेलिया मन मोहे

दिल लुभाते डहेलिया के फूल घर, आंगन और बगीचे को अपनी रंगबिरंगी किस्मों से खूबसूरत गुलदस्ते में तबदील कर देते हैं. इन फूलों को लगाने और नर्सरी से जुड़ी तमाम जानकारियां दे रहे हैं गंगाशरण सैनी.

मौसमी फूलों में डहेलिया अपने विविध रंग, रूप व आकारों के कारण उद्यान को आकर्षक व मनमोहक बनाता है. उद्यानप्रेमी इसे आसानी से उगा सकते हैं. डहेलिया की जन्मभूमि मैक्सिको है. वनस्पति वैज्ञानिक ऐंडरोस डेहल के नाम पर इस फूल का नाम ‘डहेलिया’ रखा गया. यह एक अत्यंत आकर्षक उद्यानी पौधा है. इस का तना खोखला होता है, इस के फूलों से गुलदस्तों को सजाया जाता है. डहेलिया के नाना प्रकार की संरचना वाले विभिन्न रंग, रूप व आकार के फूल पाए जाते हैं. थोड़ी सी देखभाल और मेहनत से आप भी डहेलिया के मनमोहक फूल गमलों व क्यारियों में उगा कर लाभान्वित हो सकते हैं.

वर्गीकरण

डहेलिया सोसाइटी ने डहेलिया को 11 भागों में विभक्त किया है, परंतु इन में 3 वर्ग प्रमुख हैं :

जायंट डैकोरेटिव : इस वर्ग के फूलों की पंखडि़यां सघन व एकदूसरे पर चढ़ी प्रतीत होती हैं. इस के फूलों के मध्य में एक पीली या भूरी घुंडी होती है. फूल का व्यास 30-45 सैंटीमीटर तक होता है.

कैक्टस : यह डहेलिया की सब से उन्नत प्रजाति है. इस के फूलों की पंखडि़यां नुकीली, कुछ सघन व मुड़ी हुई होती हैं. इस प्रजाति के फूलों का व्यास भी 30-45 सैंटीमीटर होता है.

पौमपोन डहेलिया : इस प्रजाति के फूलों का व्यास लगभग 7.5 सैंटीमीटर होता है. फूल सफेद, गुलाबी, पीले, लाल व हलके बैगनी रंग के होते हैं. इस प्रजाति की किस्में गमलों में उगाने हेतु उत्तम हैं.

विश्व में डहेलिया की लगभग 24 हजार किस्में उपलब्ध हैं, जिन में से लगभग 2 हजार किस्मों की व्यावसायिक खेती की जाती है.

प्रवर्धन

डहेलिया का प्रवर्धन 3 विधियों द्वारा किया जाता है :

बीज द्वारा : फूल की नई किस्मों के विकास में इसे बीज द्वारा उगाया जाता है. जब डहेलिया को क्यारियों में उगाया जाता है तो बीज द्वारा ही उगाया जाता है.

कलमों द्वारा : इस विधि का उपयोग व्यावसायिक उद्यमियों द्वारा किया जाता है. कलमें कांचघरों में उगाई जाती हैं. इन्हें नवीन शाखाओं से उस समय काटा जाता है जब उन पर पत्तियों के 3-4 समूह आ चुके हों. इन कलमों को सावधानीपूर्वक काटछांट कर पंक्ति से पंक्ति में एकदूसरे से 2.5 सैंटीमीटर की दूरी पर शुद्ध बालू में उगाते हैं.

कंदों द्वारा : यह डहेलिया के प्रवर्धन की सब से आसान व प्रचलित विधि है. इस में कंदीय जड़ों को अलगअलग कर के क्यारियों में रोपा जाता है. कंद को अलग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक कंद के साथ तने का कुछ भाग अवश्य रहे, ताकि उस से नवीन शाखा का विकास हो सके. कंदीय जड़ों को अलगअलग कर के रोपा जाता है.

आबोहवा व मिट्टी

डहेलिया उगाने के लिए खुली धूप वाली जगह उत्तम रहती है. ऐसे स्थान के आसपास बड़े वृक्ष नहीं होने चाहिए. डहेलिया को वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है परंतु उचित जल निकासी वाली रेतीली दोमट भूमि और मिट्टी में जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों तो वह सर्वोत्तम मानी गई है. भूमि की समय पर जुताई करना या भूमि को 30 सैंटीमीटर की गहराई तक खोदना और उस के बाद हैरो चला कर पाटा लगाना चाहिए.

सहारा देना

डहेलिया की लंबी बढ़ने वाली किस्मों को सहारा देना जरूरी होता है. तने के निचले भाग से निकलने वाली अतिरिक्त शाखाओं को निकालते रहना चाहिए. यदि प्रदर्शनी हेतु पौधे तैयार करने हों तो एक तने पर केवल एक ही कली रहने दें और शेष कलियों को तोड़ दें. ऐसे पौधों को कुछ समय के लिए छायादार स्थानों पर रखें. फूल आते समय उगे पौधों को छाया में रखने से फूलों का रंग फीका नहीं पड़ता है और इस तरह सुंदर फूलों का भरपूर आनंद उठाएं.

बाल बाल बचे

कुछ दिन पहले हम अपने भाईभाभी को ले कर ताजमहल देखने के लिए आगरा गए. प्रवेशद्वार पर हमारे पास जो भी खानेपीने की चीजें थीं, रख ली गईं. सामान्य औपचारिकता पूरी होने के बाद हम अंदर पहुंचे. अचानक भाभी की तबीयत खराब हो गई. डाइबीटिक होने के कारण उन्हें तुरंत कुछ खानेपीने की जरूरत थी. मेरे पति ताज के बाहर से कोल्डड्रिंक्स लाने के लिए चले गए. लेकिन उन के जाने व आने के बीच की अवधि में भाभी की तबीयत और भी खराब हो गई.

तभी एक दंपती पर हमारी नजर पड़ी. उन की गोद में बच्चा था. उन्होंने अपने साथ बच्चे के लिए दूध का पाउडर रखा था. हमारी परेशानी देख कर उन लोगों ने वह पाउडर भाभी के लिए दे दिया. धन्य हैं वह दंपती जिन्होंने अपने बच्चे की भूख की परवा न करते हुए वक्त पर भाभी की जान बचाई.

नीरू श्रीवास्तव, मथुरा (उ. प्र.)

 

एक बार मैं अपने पति के साथ मोटरसाइकिल पर जा रही थी. मैं गर्भवती थी. रास्ते में एक छोटा बच्चा सड़क पर भागता हुआ निकला. उसे बचाने के चक्कर में मोटरसाइकिल का संतुलन बिगड़ गया और मैं अपनी सीट से फिसल गई. सड़क पर गिरतेगिरते मैं ने अपने पति की बैल्ट पकड़ ली. रुकतेरुकते भी मोटरसाइकिल 25-30 फुट घिसटती गई. लेकिन इतना घिसटने के बाद भी मु?ो कुछ न हुआ और मेरा बच्चा भी बच गया. मैं बैल्ट न पकड़ती तो जाने क्या होता.

आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

 

हमें अपने लिए जल्दी ही एक फ्लैट लेना था. हम ने कई बिल्डरों के फ्लैट देखे. उन में से एक फ्लैट ठीक लगा. हम ने फ्लैट की बुकिंग करा ली और बुकिंग राशि के लिए चैक बिल्डर को दे दिया. घर आ कर हम खुश थे कि मनपसंद जगह उचित कीमत में मिल गई.

अगले दिन जब मैं औफिस गया तो वहां दोस्तों के बीच फ्लैटों के विषय में बातें हो रही थीं और लोग उसी जगह की बात कर रहे थे. उन की बातों से पता चला कि कुछ कानूनी कारणों से वह जमीन हमारे बिल्डर के नाम पर नहीं थी. मैं ने तुरंत बिल्डर को फोन लगाया. पहले तो उस ने बुकिंग का चैक देने से मना कर दिया. परंतु काफी कहनेसुनने पर कुछ पैसे काट कर देने के लिए तैयार हो गया. 2 दिन बाद बिल्डर के एक आदमी का फोन आया और उस ने बताया कि हस्ताक्षर मैच न होने के कारण मेरा चैक कैश नहीं हो पाया. इस तरह मैं ठगी से बच गया.

अविनाश जैन, लोधी रोड (दिल्ली)

गुलजार करे आशियाना गुलदाऊदी

बदलते मौसम खासकर शीतऋतु में गुलदाऊदी के रंगबिरंगे फूल न केवल आप के आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाते हैं बल्कि आप के आशियाने और बगिया को भी गुलजार करते हैं. इस की सुंदरता से आप का घर कैसे खिलखिलाए, बता रहे हैं अशोक कुमार चौहान.

शीतऋतु आते ही सब से पहले गुलदाऊदी के पौधों पर भिन्नभिन्न रंगों के फूल खिलते हैं. पाश्चात्य जगत ने इसे गुलदाऊदी यानी ‘सुनहरा फूल’ की संज्ञा दी है. गुलदाऊदी के फूल घर की सजावट में चारचांद लगाते हैं. इस की सफेद, पीली, बसंती, गुलाबी, बैगनी आदि रंगों की किस्में विकसित की जा चुकी हैं.

गुलदाऊदी के फूलों को कई वर्गों में बांटा गया है. पुष्पों का वर्गीकरण उस की पंखड़ी की आकृति व आकार पर निर्भर होता है. गुथे हुए गोल गेंदनुमा फूल को ‘इनकर्व्ड’, आधा खुला आधा गोल फूल को इंटरमीडिएट, बाहर की ओर बिखरी पंखड़ी वाले को रिफ्लैक्स्ड, तंतुनुमा सूर्यकिरणों जैसे फूल को स्पून कहते हैं. छोटे फूलों वाली किस्में एनीमोन, कोरियन पोम्पान, वटन आदि भी पाई जाती हैं.

गुलदाऊदी के फूलों को बगीचे या गमलों में उगाने के लिए काफी समय पहले से तैयारी करनी पड़ती है. इस के लिए पिछले वर्ष के पौधों से अंकुरित नई जड़ें, जिन्हें सर्कस कहते हैं, निकाल कर नए पौधे तैयार करने पड़ते हैं या पुराने पौधों की शाखाओं के शीर्ष भाग से 3 से 4 पत्तियों वाली कटिंग काट कर उन्हें रेत में लगा कर गुलदाऊदी के नए पौधे तैयार किए जाते हैं. कटिंग की लंबाई 3 इंच होनी चाहिए और सुबह के वक्त कटिंग को काटना अच्छा रहता है. कटिंग से जल्दी जड़ें निकलें, इस के लिए नीचे के कटे भाग को रुटेक्स के पाउडर से उपचारित कर लें.

कटिंग लगाने में घुली हुई रेत का प्रयोग किया जाए तो और भी बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं. कटिंग लगाने के लिए उथले गमले, चाहे वे गोल या चौकोर हों, प्रयोग करना बेहतर रहता है. इस प्रकार पौधों से कटिंग को ले कर 5 सैंटीमीटर की दूरी पर इन गमलों में समूहों में लगाते हैं. इन में लगाने के 15 से 20 दिन में जड़ें निकल आती हैं और नए पौधे तैयार हो जाते हैं.

तैयार पौधे लगाने के लिए 4 हिस्सा दोमट मिट्टी, 4 हिस्सा पत्ती की खाद और 4 हिस्सा गोबर की सड़ी खाद मिला कर मिश्रण तैयार कर के गमले भर देने चाहिए. मिट्टीजनित रोग न होने पाएं, इस के लिए थिमेट-10 जी या डायथेन एम-45 की 3 ग्राम मात्रा प्रति 10 इंच के आकार के गमलों में रोपाई से पूर्व गमलों में मिश्रण भरते समय मिलाना चाहिए.

वर्षा ऋतु का समय इस पौधे की वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है. छोटे फूल वाली किस्मों के पौधों को घना करने व प्रति पौधा अधिक संख्या में फूल लेने के लिए ‘पिंचिंग’ करनी चाहिए. इस से पौधे को उचित आकार भी दिया जा सकता है. छोटे फूल वाली किस्मों के पौधों की उचित देखभाल कर के लगभग 100 फूल प्रति पौधे हासिल किए जा सकते हैं. ये एकसाथ खिलते हैं, जिस से पूरा गमला फूलों से भरा हुआ बहुत खूबसूरत दिखाई देता है.

बड़े आकार के फूल देने वाली किस्मों को उगाने के लिए 8 से 9 इंच आकार के गमलों का चुनाव उपयुक्त रहता है. यदि प्रति पौधे से एक फूल लेना चाहते हैं तो पिंचिंग करने की आवश्यकता नहीं है किंतु यदि एक पौधे से 2 से 3 फूल लेने हों तो पिंचिंग करने की आवश्यकता होती है. पौधों में पिंचिंग करने के लिए पौधे के शीर्ष का 3 से 4 इंच हिस्सा हाथ से नोंच देते हैं. यह कार्य पौधों में कलिका बनने से 10 सप्ताह पहले करना उपयुक्त रहता है. इस कार्य को करने से पौधे की ऊंचाई घटती है जबकि प्रति पौधे में फूलों की संख्या बढ़ जाती है और पौधे का फैलाव भी बढ़ जाता है.

गुलदाऊदी के पौधों की वृद्धि के दौरान उन को सीधा बढ़ने के लिए सहारा देने की आवश्यकता पड़ती है. सहारा देने के लिए बांस की डंडियों का प्रयोग करते हैं. बड़े फूल वाली किस्मों में स्टेकिंग के लिए डंडियों को पौधों की प्रारंभिक वृद्धि अवस्था में ही गाड़ना उपयुक्त रहता है ताकि जड़ों को कोई नुकसान न पहुंचे. छोटे फूलों वाली किस्मों में स्टेकिंग के लिए गमले के किनारे डंडियों को चक्राकार स्थिति में 4 जगह लगाने की आवश्यकता होती है और उन्हें सुतली या धागे से आपस में बांध देते हैं.

गृहवाटिका से खाद्य सुरक्षा

सब्जियां हमारे भोजन को स्वादिष्ठ, पौष्टिक और संतुलित बनाने में सहायक हैं. इन के माध्यम से शरीर को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण, आवश्यक अमीनोएसिड व विटामिन मिलते हैं. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने भोजन में लगभग 100 ग्राम पत्तेदार सब्जियां, 100 ग्राम जड़ वाली सब्जियां और 100 ग्राम दूसरी सब्जियां खानी चाहिए.

बाजार में उपलब्ध सब्जियां व फल आमतौर पर ताजे नहीं होते तथा महंगे भी होते हैं. साथ ही उन में मौजूद रोगाणुओं व हानिकारक रसायनों की मात्रा के कारण वे स्वास्थ्यकर भी नहीं होते. इसलिए बेहतर है कि खाने के लिए सब्जियों को अपने घर या घर के आसपास गृहवाटिका यानी किचन गार्डन में उगाएं जिस से खाद्य सुरक्षा के साथसाथ वाटिका में कार्य करने से घर के सदस्यों का व्यायाम भी हो जाए.

गृहवाटिका से कुछ हद तक सभी लोग जुड़ सकते हैं चाहे वे गांव में रहते हों या शहर में. बड़े शहरों में जहां पौधे उगाने के लिए जमीन की उपलब्धता नहीं है वहां भी कुछ चुनिंदा सब्जियों को गमलों व डब्बों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. गांव में जहां जगह की कमी नहीं है, वहां सब्जियों के अलावा फल वाले पौधे जैसे पपीता, केला, नीबू, अंगूर, अमरूद, स्ट्राबैरी, रसभरी आदि भी आसानी से उगाए जा सकते हैं.

गृहवाटिका बनाते समय ध्यान रखें :

  1. गृहवाटिका के लिए खुली धूप व हवादार छायारहित स्थान या घर के पीछे दक्षिण दिशा सर्वोत्तम होती है.
  2. सिंचाई का प्रबंध अच्छा व स्रोत पास में होना चाहिए.
  3. अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि इस के लिए उपयुक्त होती है. सड़ी हुई गोबर की खाद की सहायता से खराब भूमि को भी सुधार कर गृहवाटिका के योग्य बनाया जा सकता है.
  4. गृहवाटिका का आकार व माप, स्थान की उपलब्धता, फल व सब्जियों की आवश्यकता और समय की उपलब्धता आदि पर निर्भर करता है. चौकोर आकार की गृहवाटिका सर्वोत्तम मानी जाती है.
  5. अगर वाटिका खुली जगह में बना रहे हैं तो उस के चारों ओर लकड़ी, बांस आदि की बाड़ बनानी चाहिए.
  6. जमीन की 10-15 सैंटीमीटर गहराई तक खुदाई करें व कंकड़पत्थर निकाल कर मिट्टी को भुरभुरा बना कर आवश्यकतानुसार क्यारियां बना लेनी चाहिए.
  7. क्यारियों में सड़ी गोबर की खाद व जैविक खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए.
  8. सीधे बुआई की जाने वाली व नर्सरी द्वारा लगाई जाने वाली सब्जियों को लगाने से पूर्व जैव फफूंदनाशी व जैव कल्चर से उपचारित करने के बाद उचित दूरी पर बनी कतारों में बोना चाहिए.
  9. क्यारियों में समयसमय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए.
  10. गृहवाटिका में कीट नियंत्रण व बीमारियों से बचाव के लिए रासायनिक दवाओं का कम से कम प्रयोग करना चाहिए. नीमयुक्त व जैविक दवाओं का ही प्रयोग करना चाहिए.
  11. उपलब्ध जगह का अधिक से अधिक प्रयोग करने के लिए बेल वाली सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, करेला, खीरा आदि को दीवार के साथ उगा कर छत या बाड़ के ऊपर ले जा सकते हैं.
  12. जड़ वाली सब्जियां जैसे मूली, शलगम, गाजर व चुकंदर को गृहवाटिका की क्यारियों की मेड़ों के ऊपर बुआई कर के पैदा किया जा सकता है.

मौसमी फल व सब्जियां

ग्रीष्मकालीन सब्जियां : (बुआई का समय जनवरी से फरवरी) टमाटर, मिर्च, भिंडी, करेला, लौकी, खीरा, टिंडा, अरबी, तोरई, खरबूजा, तरबूज, लोबिया, ग्वार, चौलाई, बैगन, राजमा आदि.

वर्षाकालीन सब्जियां : (बुआई का समय–जून से जुलाई) टमाटर, बैगन, मिर्च, भिंडी, खीरा, लौकी, तोरई, करेला, कद्दू, लोबिया, बरसाती प्याज, अगेती फूलगोभी आदि.

शरदकालीन सब्जियां : (बुआई का समय–सितंबर से नवंबर) फूलगोभी, गाजर, मूली आलू, मटर, पालक, मेथी, धनिया, सौंफ, शलगम, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकली, सलाद पत्ता, प्याज, लहसुन, बाकला, बथुआ, सरसोंसाग आदि.

उपरोक्त सब्जियों के अलावा गृहवाटिका में कुछ बहुवर्षीय पौधे या फलवृक्ष भी लगाने चाहिए, जैसे अमरूद, नीबू, अनार, केला, करौंदा, पपीता, अंगूर, करीपत्ता, सतावर आदि.

आवश्यक सामग्री

यंत्र : फावड़ा, खुरपी, फौआरा, दरांती, टोकरी, बालटी, सुतली, बांस या लकड़ी का डंडा, एक छोटा स्प्रेयर.

बीज : गृहवाटिका में कम जमीन के अंदर अधिक से अधिक उत्पादन देने वाले गुणवत्तायुक्त बीज या पौध को विश्वसनीय संस्था से खरीद कर प्रयोग करें.

पौधा : अधिकतर सब्जियों की पौध तैयार कर के बाद में रोपाई करते हैं. नर्सरी के अंदर स्वस्थ पौध तैयार कर के फिर उन की रोपाई कर या संस्था से पौध खरीद कर उन्हें गृहवाटिका में लगा कर सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

जैविक व रासायनिक खाद : गोबर या कंपोस्ट खाद का प्रयोग ही गृहवाटिका के अंदर करना चाहिए. इन के उपयोग से पौष्टिक व सुरक्षित सब्जियां उगाई जा सकती हैं. परंतु कभीकभी अभाव की दशा व अधिक उत्पादन हेतु यूरिया, किसान खाद, सुपर फास्फेट, म्यूरेट औफ पोटाश की थोड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है.

कीटनाशी व रोगरोधी दवाएं : गृहवाटिका के अंदर कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप होता है तो ग्रसित पौधों के उस भाग को काट कर मिट्टी में दबा दें. प्रकोप होने पर जैविक कीटनाशी दवाओं का ही प्रयोग करें.

गृहवाटिका में छोटीछोटी क्यारियां बना कर और उन में सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिला कर क्यारियां समतल कर के उन में बीज की बुआई व पौध की रोपाई कर हलकी सिंचाई कर दें. आवश्यकतानुसार समयसमय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए. बीचबीच में पौधों को सहारा देना चाहिए. सब्जियां तैयार होने के बाद उन की उचित अवस्था में तुड़ाई कर के उन्हें उपयोग करें. उचित प्रबंधन व देखभाल के साथ गृहवाटिका के अंदर ताजी, पौष्टिक व स्वादिष्ठ सब्जियां पैदा की जा सकती हैं जो परिवार के भोजन को अधिक पौष्टिक व संतुलित बना सकती हैं. इस प्रकार, गृहवाटिका हमारी खाद्य सुरक्षा का एक विकल्प भी है.     

यह भी खूब रही

बात मई महीने की है. हमारे एक परिचित संपन्न व्यक्ति की बेटी की शादी तय हुई थी. साधारण रंगरूप की लड़की इंजीनियरिंग करने के बाद एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रही थी. उस ने इंटरमीडिएट उत्तीर्ण लड़के से शादी करने के लिए हां कर दी थी. वह एक छोटी फैक्टरी चला रहा था. तिलक के 2 दिन पहले लड़के वालों ने लड़की के परिवार वालों को बात करने के लिए बुलाया व दहेज में 10 लाख रुपए की मांग कर दी, जिस के लिए लड़के को इशारा करते हुए लड़की के चाचा ने देख लिया था. लड़की वालों ने मन ही मन ऐसे लोगों के यहां शादी न करने का निश्चय कर लिया.

तिलक वाले दिन सारी व्यवस्था लड़के वालों ने की थी, परंतु टीका करने के लिए लड़की वालों की तरफ से कोई नहीं गया. लड़के वालों का फोन आ रहा था. अंत में लड़के वालों को मैरिज हौल का किराया, सजावट, खानेपीने के सामान आदि का खर्च दे कर बिना तिलक वापस लौट जाना पड़ा.

राधेश्याम गुप्ता, कोलकाता (प.बं.)

 

बात कुछ महीने पहले की है. मेरे पति बनारस से लखनऊ जा रहे थे. चूंकि इन्हें अकस्मात जाना पड़ा था इसलिए ये रिजर्वेशन नहीं करा पाए थे. टिकट ले कर ये टे्रन की जनरल बोगी में चढ़े तो देखा कि एक महाशय आमनेसामने की दोनों बर्थ पर अपना सामान रखे हुए थे. ये सामान खिसका कर बैठने लगे तो उन महाशय ने कहा, ‘‘यहां मेरे आदमी बैठे हुए हैं.’’ मेरे पति ने उन से पूछा, ‘‘आप के कितने आदमी हैं?’’ वे बोले, ‘‘12.’’ मेरे पति तपाक से बोले, ‘‘आप एक और आप के आदमी 12.’’ यह सुनते ही आसपास बैठे यात्री हंसने लगे और वे महाशय सकपका गए. उन्होंने तुरंत सामान हटा कर मेरे पति को बैठने की जगह दे दी.

श्वेता सेठ, सीतापुर (उ.प्र.)

मेरी दीदी ने जब अपने बेटे की शादी तय की थी तभी से होने वाली बहू सुमि के गुणगान शुरू कर दिए थे. सब से कहतीं कि मेरी बहू कराटे और ताइक्वांडो ऐक्सपर्ट है, पलक ?ापकते किसी को भी धूल चटा सकती है आदि. शादी के बाद जब भी कोई मिलने वाला आता तो दीदी का वही आलाप शुरू हो जाता. बहू भी इस सब को सुन कर घमंड से भरी रहती.

एक बार रात के 3 बजे थे. हमारे घर में चोर घुसा. खटपट की आवाज से दीदी की नींद खुल गई. वे जोरजोर से चिल्लाईं तो चोर बहू के कमरे की तरफ भागा. उधर, शोर सुन कर बहू भी बाहर निकल आई. चोर उस के सामने था, सब लोग चिल्लाए, ‘‘सुमि, पकड़ो, सुमि, मारो.’’ सुमि चोर को देखते ही गश खा कर गिर पड़ी. सब दीदी की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे कि यही है आप की कराटे व ताइक्वांडो ऐक्सपर्ट बहू?

अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

मसालों की बागबानी

खाने में स्वाद का तड़का लगाते मसालों की बागबानी न सिर्फ थाली में खुशबू फैलाती है बल्कि घर व बाग को प्रदूषणमुक्त बनाने में कारगर है. वर्तमान में मसालों की बागबानी फसलों के समूह का किस तरह अहम हिस्सा बन कर उभरी है, बता रही डा. रेखा व्यास.

हर पौधा उपयोगी है. यह और बात है कि कई पौधे ऐसे हैं जिन की उपयोगिता से हम अपरिचित हैं. आयुर्विज्ञानी चरक के गुरु ने चरक और एक और छात्र को उपयोगी वनस्पति लाने को कहा. वह छात्र सुबह से शाम तक घूम कर कुछ वनस्पतियों के नमूने ले कर वापस आ गया. चरक कई दिन तक न लौटे. जब लौटे तो खाली हाथ. सब ने खूब उपहास किया. गुरु ने इस का कारण पूछा तो उन्होंने बताया,  ‘मैं ने कई जगह भ्रमण किया. हर वनस्पति उपयोगी है, अब मैं किसकिस को साथ लाता. मु?ो कोई अनुपयोगी भी नहीं लगी कि मैं उसे ही साथ ला कर आप को दे देता कि यह अनुपयोगी है, शेष उपयोगी. अपनी बात प्रमाणित करने के लिए मैं वनस्पतियों के गुण भी लिख कर लाया हूं.’

अमूमन घर में छोटेछोटे पेड़पौधे, लताएं लगाई जाती हैं जो घर के अनुकूल हों और जिन के लिए घर भी अनुकूल हो. जगह कम होने के कारण कुछ लोगों को नितांत उपयोगी पौधे ही पसंद आते हैं. फूल कैक्टस, बोनसाई आदि उन्हें अपनी दृष्टि से महंगे व कम उपयोगी लगते हैं. हालांकि ये घर को ईकोफ्रैंडली और प्रदूषणमुक्त बनाने में भी कारगर होते हैं. ऐसी स्थिति में नितांत उपयोगी का कौंसैप्ट कुछ पौधे तक सीमित कर देता है. राजस्थान के एक किसान विनोद कुमार कहते हैं, ‘‘बड़े शहरों में फूल कैक्टस, सजावटी पौधों की मांग रहती है तो छोटे शहरों में खाद्य में काम आने वालों की पूछ होती है. इसलिए वे गमलों में करी पत्ते, मिर्च व धनिया के पौधे उगाते हैं और घर की जरूरत को पूरी करने के साथ अच्छा पैसा भी कमा लेते हैं.

मसालेदार पौधे कम जगह में आसानी से उगाए जा सकते हैं. ज्यादातर इन के पत्ते उपयोगी होते हैं. इसलिए इन्हें हैंडल करना आसान होता है. इन की कटाईछंटाई प्राकृतिक रूप से होती रहती है. पत्तों व डंठलों की सफाई का अतिरिक्त काम भी नहीं बढ़ता. इस तरह की पौध में धनिया, पुदीना, मिर्च, मेथी, अजवाइन, हलदी, राई, सरसों आदि लगा सकते हैं. एक पौध या पौध ?ांड आराम से मध्यम आकार के गमले में जगह बना लेता है. यदि इस तरह के दोदो गमले लगा दिए जाएं तो वे एक परिवार की सामान्य आवश्यकता पूरी कर सकते हैं. चूंकि इन में रासायनिक खाद नहीं डलती इसलिए ये धीरे व प्राकृतिक रूप से पनपते हैं. इन्हें खेत से बाजार तक का सफर करना नहीं पड़ता इसलिए ये अपना रूपगुण व पोषण नहीं खोते. धनिया, पुदीना की कुछ पत्तियां ही सब्जी, दाल आदि को खुशबूदार बना देती हैं.

अजवाइन की पत्तियां सूखे अजवाइन के मुकाबले तेज गंध लिए हुए होती हैं, इसलिए इन की कम मात्रा भी पर्याप्त रहती है. सूखी अजवाइन आकार में छोटी होने के चलते शरीर से पूरी की पूरी निकल जाती है. उस से पोषण नहीं मिल पाता जबकि पत्तीदार अजवाइन की कम मात्रा में ही ज्यादा पोषण मिल सकता है. खातेखाते उस की आदत पड़ सकती है यानी टैस्ट डैवलप हो सकता है.

मिर्च ?ांड में और गमले में अच्छीखासी तैयार हो जाती है. यदि लालमिर्च के विकल्प के रूप में उगाई जा रही है तो तेज चटपटी मिर्च बोनी चाहिए. गृहिणी पूजा कहती हैं, ‘‘हम ने आंध्रा वाली छोटी मिर्चें उगा रखी हैं. एक दिन में 4-5 मिर्च हमारी सब्जी और चटनी के लिए पर्याप्त होती हैं. 4-5 गमलों में उगाई गई मिर्चें सालभर के लिए पर्याप्त रहती हैं. हमें बाजार से मिर्चें खरीदे कई साल हो गए.’’

सुश्री राधा बताती हैं कि वे चूंकि गाती हैं इसलिए घर की अजवाइन उन के लिए स्वाद और स्वास्थ्यकारी रहती है. वे बताती हैं, ‘‘पत्तियों का पाउडर बना कर सालभर के लिए रख लेती हूं. बेमौसम वह खूब काम आता है. फिर बोने के लिए भी खास मेहनत नहीं करनी पड़ती. थोड़े सी अजवाइन के दाने प्लास्टिक की मिट्टीभरी बालटी और मिट्टी के गमलों में बुरक देती हूं, बस.’’

पूसा के प्रख्यात सब्जी वैज्ञानिक डा. प्रीतम कालिया कहते हैं, ‘‘मसालेदार पौधे वे हैं जिन के पत्तों को या बीजों को  ग्राइंड कर के काम में लाते हैं. ये पौधे परोमेटिक होने के साथसाथ मैडिसिनल भी होते हैं. घरेलू स्तर पर इन के लिए किसी खास प्रजाति की संस्तुति नहीं की जाती. आमतौर पर मौसम व उस स्थान की जलवायु के अनुसार इन्हें आसानी से लगाया और तैयार किया जा सकता है.’’

केरल में कालीमिर्च, राजस्थान में जीरा, राई, सरसों, दिल्ली में लौंग, कालीमिर्च आसानी से उगाई जा सकती हैं. खाद विज्ञानी डा. जी सी श्रोनिम कहते हैं, ‘‘पौधा छोटा हो तो भी वह प्रदूषण को कम करता है, इसलिए ऊपर के घरों या छोटे घरों में भी इन की उपयोगिता है. मसालेदार पौधे, हलदी को छोड़ कर, ज्यादा गहरे नहीं होते. ये छोटे बरतनों, गमलों, बालटियों आदि में भी लगाए जा सकते हैं.’’

गौरतलब है कि इन घरेलू पौधों में खाद की ज्यादा जरूरत नहीं होती. उम्दा मिट्टी व गोबर का मिट्टी में मिलना भी इन के लिए पर्याप्त रहता है. एक ही गमले में बारबार एक ही चीज के बजाय बदलबदल कर लगाना ज्यादा उपयोगी रहता है. चूंकि इन घरेलू उत्पादों को सीधे धो कर तोड़ते ही उपयोग में लाया जा सकता है इसलिए इन की गुणवत्ता लाजवाब होती है.

बोनसाई : कद छोटा काम बड़ा

बोनसाई ऐसा वृक्ष होता है जिसे एक छोटे पात्र में उगा कर परिपक्व बना दिया जाता है. बोनसाई छोटे पात्रों में सजावटी वृक्षों या झाड़ियों को उगाने की एक कला है जिस में उन की वृद्धि को बाधित कर दिया जाता है. पौधा उगाने की इस विशेष पद्धति में ट्रे जैसे कम ऊंचाई के गमले या किसी अन्य पात्र में पौधे को उगाया जाता है और उस की समयसमय पर कटाईछंटाई कर के उस की वृद्धि को रोका जाता है. सालों की मेहनत के बाद जा कर कोई पौधा बोनसाई वृक्ष बनता है.

बोनसाई का उद्देश्य खाद्य या औषधीय उत्पादन नहीं होता. ये आनुवंशिक रूप से बौने पौधे भी नहीं होते (जोकि एक भ्रांति है). किसी भी पादप जाति के पौधे का बोनसाई विकसित किया जा सकता है. बोनसाई उगाने की तकनीक में टहनियों की छंटाई, जड़ों को छोटा करना, पात्र बदलना और पत्तियों को छांटने जैसी गतिविधियां एक निश्चित अंतराल पर करनी होती हैं.

बोनसाई पौधे उगाना कम खर्चीला और अधिक रोचक काम होता है. अपनी पसंद के पौधे को चुन कर उसे बोनसाई वृक्ष में विकसित करना अपनेआप में एक अनोखा अनुभव होता है. बोनसाई दरअसल पौधा उगाने की एक असामान्य विधि होती है जिस में बीज से बोनसाई का विकास नहीं होता बल्कि एक परिपक्व पौधे या उस के किसी हिस्से से इसे विकसित किया जाता है.

खुले मैदान या बागीचे में उगने वाले पेड़ अपनी जड़ों को भूमि के नीचे कई मीटर तक बढ़ा कर विकसित कर पाते हैं क्योंकि उन के विकास में कोई बाधा नहीं होती. इस के अलावा प्राकृतिक आवास में विकसित पेड़, सैकड़ों से ले कर हजारों लिटर पानी अपनी जड़ों के द्वारा अवशोषित कर जाते हैं. मगर बोनसाई के मामले में आम पेड़ों की इन दोनों ही आजादियों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया जाता है. चूंकि इन पेड़ों का आकार छोटा रखना होता है इसलिए इन्हें छोटे पात्रों में उगाया जाता है और छोटे पात्र में इन की जड़ों को अपने पांव पसारने के लिए भूमि और मिट्टी नहीं मिल पाती व जड़ छोटी होती है जिस कारण ये अधिक पानी का अवशोषण भी नहीं कर पाते.

एक मानक बोनसाई पात्र की ऊंचाई 25 सैंटीमीटर से भी कम होती है और इस का आयतन 2 से ले कर 10 लिटर तक होता है. प्रकृति में विकसित वृक्षों की टहनियां और पत्तियां बड़े आकार की होती हैं. प्राकृतिक रूप से एक सामान्य वृक्ष परिपक्व दशा में 5 मीटर या इस से भी ऊंचा होता है. वहीं, सब से बड़े आकार के बोनसाई वृक्ष की ऊंचाई अधिकतम 1 मीटर होती है. अधिकांश बोनसाई इस से छोटे आकार के होते हैं. आकार में इस फर्क से वृक्ष का समूचा जीव विज्ञान प्रभावित हो जाता है. मसलन, वृक्ष की परिपक्वता, पोषण, वाष्पोत्सर्जन, कीट प्रतिरोध क्षमता के साथ कई दूसरे जैविक पहलुओं पर व्यापक असर पड़ता है.

देखभाल

  1. पानी नियमित तौर पर देना चाहिए जो बोनसाई वृक्ष की प्रजाति की आवश्यकता विशेष पर आधारित होता है.
  2. बोनसाई वृक्ष की दशा और आयु के अनुसार नियमित अंतराल पर गमला या पात्र बदलना यानी रिपौटिंग करनी चाहिए.
  3. प्रत्येक बोनसाई वृक्ष की आवश्यकताओं के अनुसार मिट्टी के घटकों और उर्वरक को सुनिश्चित करना चाहिए. बोनसाई विकसित करने वाली मिट्टी हमेशा ढीली होनी चाहिए ताकि इन से हो कर पानी की निकासी लगातार होती रहे.
  4. बोनसाई के विकास में उचित स्थान का चयन करना भी एक जरूरी पहलू होता है.

आमतौर पर बोनसाई वृक्षों की रिपौटिंग वसंत ऋतु में करनी चाहिए. रिपौटिंग में नर्सरी या भूमि में विकसित पौधे को वहां से निकाल कर बोनसाई पात्र में रोपा जाता है. रिपौटिंग से पहले पात्र के आकार के अनुसार जड़ों की छंटाई कर दी जाती है. पुरानी जड़ें पानी और पोषक पदार्थों का अवशोषण बहुत धीमी गति से करती हैं या नहीं कर पाती हैं इसलिए उन्हें काट कर हटा देना चाहिए, ताकि नई जड़ें विकसित हों जो पानी और पोषक पदार्थों का भलीभांति अवशोषण कर सकें. मिट्टी को भी नियत समयांतराल पर बदलते रहना चाहिए जिस से कि बोनसाई वृक्ष की पत्तियों में वृद्धि होती रहे. अगर गमले या बोनसाई पात्र की मिट्टी के ऊपर जड़ पसरने लगे या पात्र के नीचे का सुराख, जड़ों के अधिक निकल जाने से बंद होने लगे (जिस से पात्र के नीचे के सुराख से पानी की निकासी अवरुद्ध होने लगती है) तो ऐसी स्थिति में रिपौटिंग करनी चाहिए.

जड़ों को वायु, पानी और रसायनों की आवश्यकता होती है. जड़ों को वायु नहीं मिलने से सब से अधिक परेशानी सामने आती है. वृक्ष की जड़ों को पानी जितनी वायु मिलनी जरूरी होती है. पानी की उचित निकासी मिट्टी की सब से महत्त्वपूर्ण विशेषता होती है. वायु और पानी के बाद जड़ों को रसायनों (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम आदि) के रूप में खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है. इन में से कुछ रसायन वायु और पानी से प्राप्त होते हैं जबकि अन्य मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों से मिलते हैं.

बोनसाई उगाने के लिए पानी की निकासी वाले पात्रों का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए और ये पात्र चिकनी मिट्टी, प्लास्टिक या लकड़ी के हो सकते हैं. पानी के निकास मार्ग के ऊपर एक स्क्रीन (1/8 इंच आकार वाली) लगाई जाती है. पात्र के अंदर जड़ों में घुमाव नहीं होना चाहिए और न ही पात्र की दीवारों से जड़ों को चिपकना चाहिए. इसीलिए जड़ों को समयसमय पर कैंची से काटते रहना जरूरी होता है. पात्र में बोनसाई वृक्ष को केंद्र से थोड़ा हट कर लगाना चाहिए.

नई मिट्टी में बनने वाली जड़ें बहुत आसानी से टूट सकती हैं, इसलिए वृक्ष को इधरउधर स्थान परिवर्तन भूल कर भी नहीं करना चाहिए. नई जड़ें 2 से 4 हफ्तों में मजबूत हो जाती हैं. पहली बार पानी डालने से पहले मिट्टी को कुछ समय तक सूखा छोड़ देना चाहिए ताकि जड़ वृद्धि के लिए उत्तेजित हो. वाष्पोत्सर्जन से होने वाली पानी की क्षति को रोकना जरूरी होता है.

वाष्पोत्सर्जन, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पत्तियों की सतह पर मौजूद सूक्ष्म छिद्रों (रंध्र) द्वारा होता है, इसलिए बोनसाई वृक्षों की पत्तियों से पानी की क्षति को रोकने के लिए उन्हें अकसर छायादार, नम और ऐसी जगहों पर रखना चाहिए जहां हवा न चलती हो.

बोनसाई आज दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया है. लगभग 90 देशों में और करीब 36 भाषाओं में बोनसाई पद्धति पर 1200 पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं. इस के अलावा बोनसाई पर केंद्रित ढेरों पत्रिकाएं, जर्नल, और ब्लौग अस्तित्व में हैं जो इस की अपार लोकप्रियता को बयां करते हैं.

जीवन की मुसकान

मेरे पति पीसीएस अधिकारी थे. जिस दिन उन्होंने सर्विस जौइन की थी, शपथ ली कि मैं अपनी सैलरी के अलावा एक पैसा भी ऊपर की कमाई का नहीं लूंगा. पूरी ईमानदारी के साथ जौब करूंगा. बहुत छोटी सी घटना है. उन दिनों इन की पोस्टिंग करहल तहसील, जिला मैनपुरी में थी. सब की तरह मेरी भी आदत थी कि माह के आरंभ में ही पूरे माह के लिए खानेपीने का सामान खरीद लेती थी.

माह के अंतिम दिन चल रहे थे. खानेपीने की चीजें लगभग समाप्त हो रही थीं. चीनी तो बिलकुल खत्म हो चुकी थी. घर में थोड़ा सा गुड़ रखा था, अत: हम लोग गुड़ की चाय बना कर पी रहे थे. एक दिन सुबह लगभग 8 बजे एक कानूनगो इन के पास औफिस के किसी काम से आए. कुक से 2 प्याले चाय इन्होंने बाहर मंगा ली. कानूनगो ने भी चाय पी और फिर चले गए.

जाने के लगभग 1 घंटे बाद कानूनगो 5 किलो चीनी ले कर आए और बोले, ‘‘साहब, मु?ो यह देख कर बहुत कष्ट पहुंचा कि आप लोग गुड़ की चाय पी रहे हैं.’’ मेरे पति ने ‘धन्यवाद’ के साथ चीनी लेने से मना कर दिया. साथ में यह भी हिदायत दी कि इस तरह की कोई बात उन्हें कतई पसंद नहीं है. उन्होंने अपनी शपथ को अपने पूरे कार्यकाल में मुसकराते हुए निभाया.

साधना श्रीवास्तव, पुणे (महा.)

 

बात उन दिनों की है जब मेरे भैया का और मेरा ऐक्सिडैंट हुआ था. हम दोनों बाइक पर सवार हो कर जीटी रोड से घर की तरफ आ रहे थे. मेरे पति व मेरी दीदी दूसरी गाड़ी से आ रहे थे. अचानक सामने से एक मारुती कार तेजी से आई और उस ने हमारी बाइक को टक्कर मार कर हवा में उछाल दिया. गिरने के बाद क्या हुआ हमें कुछ याद नहीं. कुछ समय बाद मु?ो होश आया तो मैं ने अपने को एक खाई में जख्मी हालत में पाया.

अंदरूनी चोटों की वजह से मैं उठ नहीं पा रही थी और भैया घायल अवस्था में बेहोश पड़े हुए थे. उन्हें काफी चोटें आई थीं. संयोग से महाराष्ट्र के मंत्री कृपाशंकर की गाड़ी उसी रास्ते से गुजर रही थी. उन्होंने हमारी हालत देखी तो तुरंत अपनी गाड़ी रुकवा दी और कुछ लोगों की मदद से हम भाईबहन को अपनी गाड़ी से  अस्पताल भिजवाया. उन की मदद से समय रहते हमारा इलाज शुरू हो गया और कुछ दिनों में हम बिलकुल ठीक हो गए.

उस दिन मु?ो एहसास हुआ कि इंसानियत और मानवता आज भी जिंदा है वरना आजकल तो लोग रोड ऐक्सिडैंट को अनदेखा कर के आगे बढ़ जाते हैं.

  सरिता भूषण, वाराणसी (उ.प्र.)

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