खर्च या निवेश

लोकसभा में भाजपा के उपनेता गोपीनाथ मुंडे ने ताल ठोंकते हुए कह दिया कि वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने 8 करोड़ रुपए खर्च किए थे, अब जिसे जो करना है सो कर ले. सब हैरान हैं कि कोई मुंडे का क्या कर लेगा. बात पतिपत्नी के विवाद के बाद के उपसंहार जैसी है जिस में पत्नी खी?ा कर धौंस दे डालती है कि जो बने सो कर लो, मैं मायके जा रही हूं.

चुनाव आयोग क्या करेगा, क्योंकि मुंडे की स्वीकारोक्ति थानों में अपराधियों सरीखी है जिसे अदालत में पुलिस को साबित करना होता है. जाहिर है बात अगर बढ़ेगी तो मुंडे कहेंगे यह कि मैं ने तो यों ही मजाक या गुस्से में कह दिया था. बहरहाल, लोकतंत्र का, नियमों का और कानूनों का मखौल उड़ा कर मुंडे ने अपनी व दूसरे सांसदों की पोल खोल दी है.

सर्वव्यापी अंधविश्वास

दुनिया में एक ही चीज है जो सभी जगह बराबरी से पाई जाती है और वह है अंधविश्वास. इस के शिकार रंक भी होते हैं और राजा भी. दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला फेफड़ों के संक्रमण के चलते लंबे समय तक जोहांसबर्ग के प्रिटोरियर अस्पताल में भरती रहे. इसी दौरान पता चला कि उन का असल संक्रमण वायरल नहीं बल्कि पितृदोष है.

पितृदोष दरअसल कोई लाइलाज बीमारी नहीं बल्कि अंधविश्वास है. जब पंडेपुजारियों को कुछ नहीं सू?ाता तो परेशानियों की वजह वे पितृदोष के सिर मढ़ देते हैं और फिर उस की शांति व निवारण के नाम पर तगड़ी रकम दक्षिणा के रूप में ऐंठते हैं. पूर्वज श्राप क्यों देते हैं और निंदित कर्म क्यों करते हैं यह कोई नहीं बताता. वजह, सभी लोग सबकुछ धर्म व भाग्य के अधीन मानते हैं. यों 94 साल की उम्र में इंसान बीमार होता ही होता है, मंडेला बीमार हुए तो इस में कुछ नया नहीं था. हां, उन के बीमार होने से यह जरूर साबित हो गया कि यूरोप, एशिया और अफ्रीका में अंधविश्वासों के मामले में फर्क तो दूर की बात है, कोई मतभेद तक नहीं है.

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