मेरे पति पीसीएस अधिकारी थे. जिस दिन उन्होंने सर्विस जौइन की थी, शपथ ली कि मैं अपनी सैलरी के अलावा एक पैसा भी ऊपर की कमाई का नहीं लूंगा. पूरी ईमानदारी के साथ जौब करूंगा. बहुत छोटी सी घटना है. उन दिनों इन की पोस्टिंग करहल तहसील, जिला मैनपुरी में थी. सब की तरह मेरी भी आदत थी कि माह के आरंभ में ही पूरे माह के लिए खानेपीने का सामान खरीद लेती थी.

माह के अंतिम दिन चल रहे थे. खानेपीने की चीजें लगभग समाप्त हो रही थीं. चीनी तो बिलकुल खत्म हो चुकी थी. घर में थोड़ा सा गुड़ रखा था, अत: हम लोग गुड़ की चाय बना कर पी रहे थे. एक दिन सुबह लगभग 8 बजे एक कानूनगो इन के पास औफिस के किसी काम से आए. कुक से 2 प्याले चाय इन्होंने बाहर मंगा ली. कानूनगो ने भी चाय पी और फिर चले गए.

जाने के लगभग 1 घंटे बाद कानूनगो 5 किलो चीनी ले कर आए और बोले, ‘‘साहब, मु?ो यह देख कर बहुत कष्ट पहुंचा कि आप लोग गुड़ की चाय पी रहे हैं.’’ मेरे पति ने ‘धन्यवाद’ के साथ चीनी लेने से मना कर दिया. साथ में यह भी हिदायत दी कि इस तरह की कोई बात उन्हें कतई पसंद नहीं है. उन्होंने अपनी शपथ को अपने पूरे कार्यकाल में मुसकराते हुए निभाया.

साधना श्रीवास्तव, पुणे (महा.)

 

बात उन दिनों की है जब मेरे भैया का और मेरा ऐक्सिडैंट हुआ था. हम दोनों बाइक पर सवार हो कर जीटी रोड से घर की तरफ आ रहे थे. मेरे पति व मेरी दीदी दूसरी गाड़ी से आ रहे थे. अचानक सामने से एक मारुती कार तेजी से आई और उस ने हमारी बाइक को टक्कर मार कर हवा में उछाल दिया. गिरने के बाद क्या हुआ हमें कुछ याद नहीं. कुछ समय बाद मु?ो होश आया तो मैं ने अपने को एक खाई में जख्मी हालत में पाया.

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