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उधार का रिश्ता : भाग 2 – उस दिन क्या हुआ थाा सरिता के साथ ?

मैं ने उसे हर तरह से समझाने की कोशिश की थी. उस ने मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया था, केवल सैल्यूट किया और मेरे औफिस से बाहर चली गई थी. मैं सोचने लगा कि ‘लिव इन रिलेशन’ कैसा रिश्ता है जो धीरेधीरे समाज की युवा पीढ़ी में फैलता जा रहा है, बिना इस के परिणाम सोचे. मैं दूरदूर तक इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रहा था. मैं खुद को असहाय महसूस कर रहा था. इसी स्थिति में मैं औफिस पहुंचा. हालांकि मुझ से कहा गया था कि मैं जिस स्थिति में हूं वैसे ही आ जाऊं लेकिन मैं यूनीफार्म में पहुंचा. मुझे नाइट सूट में जाना अच्छा नहीं लगा, वह भी अपने सीनियर अधिकारी के समक्ष.

औफिस में आते ही मैं ने ब्रिगेडियर साहब व बीएम साहब को सैल्यूट किया और अपनी कुरसी पर आ कर बैठ गया. सुबह के 8 बज चुके थे. सभी जवान और अधिकारी काम पर आ चुके थे. अर्दली मेरे औफिस के बाहर आ कर खड़ा हो गया था.

‘‘आस्क अर्दली टू क्लोज द डोर ऐंड नौट अलाऊ ऐनीबडी टू कम इन,’’ ब्रिगेडियर साहब ने कहा.

मैं ने अर्दली को बुला कर वैसा ही करने को कहा.

‘‘मेजर रंजीत, नाऊ टैल मी व्हाट इज योर ऐक्शन प्लैन?’’ बीएम साहब ने सीधे सवाल किया.

‘‘सर, मैं ने कैप्टन सरिता के पेरैंट्स को इनफौर्म कर दिया है, जिस में केवल उस की मौत की बात लिखी है. सुसाइड के बारे में कुछ नहीं कहा है. मिलिटरी पुलिस ने बौडी उतार कर पोस्टमौर्टम के लिए भेज दी है. और मामले की जांच कराने के लिए मैं ने अपने सहायक को निर्देश दे दिया है कि वह ब्रिगेड हैडक्वार्टर को निवेदन कर दे.’’

‘‘ओके, फाइन,’’ बीएम ने कहा.

‘‘अब आगे, सर?’’ बीएम साहब ने अब ब्रिगेड कमांडर साहब से कहा.

कमांडर साहब बोले, ‘‘मेजर रंजीत, यह आप के हाथ में कैप्टन सरिता की डायरी है?’’

‘‘जी सर.’’

‘‘आप ने पढ़ा इसे?’’

‘‘नहीं सर, मैं पढ़ नहीं पाया.’’

‘‘मैं मानता हूं, जो कुछ हुआ, गलत हुआ. कैप्टन सरिता जैसी होनहार अफसर इस कदर भावना में बह कर अपनी जान गंवा देगी, मैं ने इस का अंदाजा नहीं लगाया था.’’

ब्रिगेड कमांडर साहब के चेहरे से दुख साफ झलक रहा था, लगा जैसे उस की मौत में कहीं न कहीं वे स्वयं को भी दोषी मानते हों.

‘‘रंजीत, क्या कैप्टन सरिता को औन ड्यूटी शो नहीं किया जा सकता?’’

मैं ब्रिगेड कमांडर साहब को कैप्टन सरिता का हत्यारा मानता था. कैप्टन सरिता तो बच्ची थी लेकिन वे तो बच्चे नहीं थे. वे उसे समझाते तो संभवत: यह नौबत न आती. लेकिन आज वे एक अच्छा काम करने जा रहे थे. मन के भीतर अनेक प्रकार के विरोध होने पर भी, कैप्टन सरिता के परिवार वालों के लिए मैं इस का विरोध नहीं कर पाया और कहा, ‘‘सर, ऐसा हो जाए तो बहुत अच्छा होगा.’’

‘वैसे भी इस आत्महत्या को हत्या साबित करना बहुत कठिन था,’ मैं ने सोचा.

‘‘ओके, मेजर बतरा, मेरे औफिस में एक मीटिंग का प्रबंध करो. ओसी प्रोवोस्ट यूनिट (मिलिटरी पुलिस), कमांडैंट मिलिटरी अस्पताल और इंक्वायरी करने वाली कमेटी के चेयरमैन को बुलाओ. मेजर रंजीत तुम भी जरूर आना, प्लीज.’’

‘‘राइट सर. एट व्हाट टाइम, सर?’’

‘‘11 बजे और कोर्ट औफ इंक्वायरी के लिए जो आप लैटर लिखें उस में सुसाइड शब्द का इस्तेमाल मत करें, जस्ट यूज डैथ औफ कैप्टन सरिता.’’

‘‘सर’’ मेरे इतना कहते ही सब उठ कर चले गए. मैं ने असिस्टैंट साहब को बुलाया और कैप्टन सरिता की डैथ के संबंध में ब्रिगेड हेडक्वार्टर को लिखे जाने वाले लैटर के लिए आदेश दिए. मैं ने अर्दली को बुला कर चायबिस्कुट लाने के लिए कहा. वह ले आया तो धीरेधीरे चाय की चुसकियां लेने लगा. मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं बंगले पर जा कर नाश्ता करता और फिर मीटिंग पर जाता. मैं कैप्टन सरिता की डायरी को भी एकांत में पढ़ना चाहता था, इसलिए उसे औफिस के लौकर में बंद कर दिया.

11 बजने में 10 मिनट बाकी थे जब मैं ब्रिगेड हैडक्वार्टर के मीटिंग हौल में पहुंचा. सभी अधिकारी, जिन्हें बुलाया गया था,आ चुके थे, केवल बीएम साहब और कमांडर साहब का इंतजार था. मैं ने सभी अधिकारियों को सैल्यूट किया और अपने लिए निश्चित कुरसी पर जा कर बैठ गया.

Valentine’s Day 2024 : थोड़ा सा इंतजार- अतीत की यादों में तनुश्री क्यों डूब गई ?

कई दिनों से तनुश्री अपने बेटे अभय को कुछ बेचैन सा देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी छोटी से छोटी बात मां को बताने वाला अभय अपनी परेशानी के बारे में कुछ बता क्यों नहीं रहा है. उसे खुद बेटे से पूछना कुछ ठीक नहीं लगा. आजकल बच्चे कुछ अजीब मूड़ हो गए हैं, अधिक पूछताछ या दखलंदाजी से चिढ़ जाते हैं. वह चुप रही.

तनुश्री को किचन संभालते हुए रात के 11 बज चुके थे. वह मुंहहाथ धोने के लिए बाथरूम में घुस गई. वापसी में मुंह पोंछतेपोंछते तनुश्री ने अभय के कमरे के सामने से गुजरते हुए अंदर झांक कर देखा तो वह किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह एक पल को रुक कर फोन पर हो रहे वार्तालाप को सुनने लगी.

‘‘तुम अगर तैयार हो तो हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं…नहीं मानते न सही…नहीं, अभी मैं ने अपने मम्मीपापा से बात नहीं की…उन को अभी से बता कर क्या करूं? पहले तुम्हारे घर वाले तो मानें…रोना बंद करो. यार…उपाय सोचो…मेरे पास तो उपाय है, तुम्हें पहले ही बता चुका हूं…’’

तनुश्री यह सब सुनने के बाद दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ गई. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरी. अभय की बेचैनी का कारण उस की समझ में आ चुका था. इतिहास अपने आप को एक बार फिर दोहराना चाहता है, पर वह कोशिश जरूर करेगी कि ऐसा न हो, क्योंकि जो गलती उस ने की थी वह नहीं चाहती थी कि वही गलती उस के बच्चे करें.

तनुश्री अतीत की यादों में डूब गई. सामने उस का पूरा जीवन था. कहने को भरापूरा सुखी जीवन. अफसर पति, जो उसे बेहद चाहते हैं. 2 बेटे, एक इंजीनियर, दूसरा डाक्टर. पर इन सब के बावजूद मन का एक कोना हमेशा खाली और सूनासूना सा रहा. क्यों? मांबाप का आशीर्वाद क्या सचमुच इतना जरूरी होता है? उस समय वह क्यों नहीं सोच पाई यह सब? प्रेमी को पति के रूप में पाने के लिए उस ने कितने ही रिश्ते खो दिए. प्रेम इतना क्षणभंगुर होता है कि उसे जीवन के आधार के रूप में लेना खुद को धोखा देने जैसा है.

बच्चों को भी कितने रिश्तों से जीवन भर वंचित रहना पड़ा. कैसा होता है नानानानी, मामामामी, मौसी का लाड़प्यार? वे कुछ भी तो नहीं जानते. उसी की राह पर चलने वाली उस की सहेली कमला और पति वेंकटेश ने भी यही कहा था, ‘प्रेम विवाह के बाद थोड़े दिनों तक तो सब नाराज रहते हैं लेकिन बाद में सब मान जाते हैं.’ और इस के बहुत से उदाहरण भी दिए थे, पर कोई माना?

पिछले साल पिताजी के गुजरने पर उस ने इस दुख की घड़ी में सोचा कि मां से मिल आती हूं. वेंकटेश ने एक बार उसे समझाने की कोशिश की, ‘तनु, अपमानित होना चाहती हो तो जाओ. अगर उन्हें माफ करना होता तो अब तक कर चुके होते. 26 साल पहले अभय के जन्म के समय भी तुम कोशिश कर के देख चुकी हो.’

‘पर अब तो बाबा नहीं हैं,’ तनुश्री ने कहा था.

‘पहले फोन कर लो तब जाना, मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं.’

तनुश्री ने फोन किया. किसी पुरुष की आवाज थी. उस ने कांपती आवाज में पूछा, ‘आप कौन बोल रहे हैं?’

‘मैं तपन सरकार बोल रहा हूं और आप?’

तपन का नाम और उस की आवाज सुनते ही तनुश्री घबरा सी गई, ‘तपन… तपन, हमारे खोकोन, मेरे प्यारे भाई, तुम कैसे हो. मैं तुम्हारी बड़ी दीदी तनुश्री बोल रही हूं?’ कहतेकहते उस की आवाज भर्रा सी गई थी.

‘मेरी तनु दीदी तो बहुत साल पहले ही मर गई थीं,’ इतना कह कर तपन ने फोन पटक दिया था.

वह तड़पती रही, रोती रही, फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गई. पति और बच्चों ने दिनरात उस की सेवा की. सामाजिक नियमों के खिलाफ फैसले लेने वालों को मुआवजा तो भुगतना ही पड़ता है. तनुश्री ने भी भुगता.

शादी के बाद वेंकटेश के मांबाप भी बहुत दिनों तक उन दोनों से नाराज रहे. वेंकटेश की मां का रिश्ता अपने भाई के घर से एकदम टूट गया. कारण, उन्होंने अपने बेटे के लिए अपने भाई की बेटी का रिश्ता तय कर रखा था. फिर धीरेधीरे वेंकटेश के मांबाप ने थोड़ाबहुत आना- जाना शुरू कर दिया. अपने इकलौते बेटे से आखिर कब तक वह दूर रहते पर तनुश्री से वे जीवन भर ख्ंिचेख्ंिचे ही रहे.

जिस तरह तनुश्री ने प्रेमविवाह किया था उसी तरह उस की सहेली कमला ने भी प्रेमविवाह किया था. तनुश्री की कोर्ट मैरिज के 4 दिन पहले कमला और रमेश ने भी कोर्ट मैरिज कर ली थी. उन चारों ने जो कुछ सोचा था, नहीं हुआ. दिनों से महीने, महीनों से साल दर साल गुजरते गए. दोनों के मांबाप टस से मस नहीं हुए. उस तनाव में कमला चिड़चिड़ी हो गई. रमेश से उस के आएदिन झगड़े होने लगे. कई बार तनुश्री और वेंकटेश ने भी उन्हें समझाबुझा कर सामान्य किया था.

रमेश पांडे परिवार का था और कमला अग्रवाल परिवार की. उस के पिताजी कपड़े के थोक व्यापारी थे. समाज और बाजार में उन की बहुत इज्जत थी. परिवार पुरातनपंथी था. उस हिसाब से कमला कुछ ज्यादा ही आजाद किस्म की थी. एक दिन प्रेमांध कमला रायगढ़ से गाड़ी पकड़ कर चुपचाप नागपुर रमेश के पास पहुंच गई. रमेश की अभी नागपुर में नईनई नौकरी लगी थी. वह कमला को इस तरह वहां आया देख कर हैरान रह गया.

रमेश बहुत समझदार लड़का था. वह ऐसा कोई कदम उठाना नहीं चाहता था, पर कमला घर से बाहर पांव निकाल कर एक भूल कर चुकी थी. अब अगर वह साथ न देता तो बेईमान कहलाता और कमला का जीवन बरबाद हो जाता. अनिच्छा से ही सही, रमेश को कमला से शादी करनी पड़ी. फिर जीवन भर कमला के मांबाप ने बेटी का मुंह नहीं देखा.

इस के लिए भी कमला अपनी गलती न मान कर हमेशा रमेश को ही ताने मारती रहती. इन्हीं सब कारणों से दोनों के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी.

तनुश्री के बाबा की भी बहुत बड़ी फैक्टरी थी. वहां वेंकटेश आगे की पढ़ाई करते हुए काम सीख रहा था. भिलाई में जब कारखाना बनना शुरू हुआ, वेंकटेश ने भी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. नौकरी लगते ही दोनों ने भाग कर शादी कर ली और भिलाई चले आए. बस, उस के बाद वहां का दानापानी तनुश्री के भाग्य में नहीं रहा. सालोंसाल मांबाप से मिलने की उम्मीद लगाए वह अवसाद से घिरती गई. जीवन जैसे एक मशीन बन कर रह गया. वह हमेशा कुछ न कर पाने की व्यथा के साथ जीती रही.

शादी के बाद कुछ महीने इस उम्मीद में गुजरे कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. जब अभय पेट में आया तो 9 महीने वह हर दूसरे दिन मां को पत्र लिखती रही. अभय के पैदा होने पर उस ने क्षमा मांगते हुए मां के पास आने की इजाजत मांगी. तनुश्री ने सोचा था कि बच्चे के मोह में उस के मांबाप उसे अवश्य माफ कर देंगे. कुछ ही दिन बाद उस के भेजे सारे पत्र ज्यों के त्यों बंद उस के पास वापस आ गए.

वेंकटेश अपने पुराने दोस्तों से वहां का हालचाल पूछ कर तनुश्री को बताता रहता. एकएक कर दोनों भाइयों और बहन की शादी हुई पर उसे किसी ने याद नहीं किया. बड़े भाई की नई फैक्टरी का उद्घाटन हुआ. बाबा ने वहीं हिंद मोटर कसबे में तीनों बच्चों को बंगले बनवा कर गिफ्ट किए, तब भी किसी को तनु याद नहीं आई.

वह दूर भिलाई में बैठी हुई उन सारे सुखों को कल्पना में देखती रहती और सोचती कि क्या मिला इस प्यार से उसे? इस प्यार की उसे कितनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी. एक वेंकटेश को पाने के लिए कितने प्यारे रिश्ते छूट गए. कितने ही सुखों से वह वंचित रह गई. बाबा ने छोटी अपूर्वा की शादी कितने अच्छे परिवार में और कितने सुदर्शन लड़के के साथ की. बहन को भी लड़का दिखा कर उस की रजामंदी ली थी. कितनी सुखी है अपूर्वा…कितना प्यार करता है उस का पति…ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हुआ होता.

प्यार…प्यार तो शादी के बाद अपने आप हो जाता है. जब शादी की बात चलती है…एकदूसरे को देख कर, मिल कर अपनेआप वह आकर्षण पैदा हो जाता है जिसे प्यार कहते हैं. प्यार करने के बाद शादी की हो या शादी के बाद प्यार किया हो, एक समय बाद वह एक बंधाबंधाया रुटीन, नमक, तेल, लकड़ी का चक्कर ही तो बन कर रह जाता है.

कच्ची उम्र में देखा गया फिल्मी प्यार कुछ ही दिनों बाद हकीकत की जमीन पर फिस्स हो जाता है पर अपने असाध्य से लगते प्रेम के अधूरेपन से हम उबर नहीं पाते. हर चीज दुहराई जाती है. संपूर्ण होने की संभावना ले कर पर सब असंपूर्ण, अतृप्त ही रह जाता है.

अगले दिन सुबह तनुश्री उठी तो उस के चेहरे पर वह भाव था जिस में साफ झलकता है कि जैसे कोई फैसला सोच- समझ कर लिया गया है. तनुश्री ने उस लड़की से मिलने का फैसला कर लिया था. उसे अभय की इस शादी पर कोई एतराज नहीं था. उसे पता है कि अभय बहुत समझदार है. उस का चुनाव गलत नहीं होगा. अभय भी वेंकटेश की तरह परिपक्व समझ रखता है. पर कहीं वह लड़की उस की तरह फिल्मों के रोमानी संसार में न उड़ रही हो. वह नहीं चाहती थी कि जो कुछ जीवन में उस ने खोया, उस की बहू भी जीवन भर उस तनाव में जीए.

अभय ने मां से काव्या को मिलवा दिया. किसी निश्चय पर पहुंचने के लिए दिल और दिमाग का एकसाथ खड़े रहना जरूरी होता है. तनुश्री काव्या को देख सोच रही थी क्या यह चेहरा मेरा अपना है? किस क्षण से हमारे बदलने की शुरुआत होती है, हम कभी समझ नहीं पाते.

तनुश्री ने अभय को आफिस जाने के लिए कह दिया. वह काव्या के साथ कुछ घंटे अकेले रहना चाहती थी. दिन भर दोनों साथसाथ रहीं. काव्या के विचार तनुश्री से काफी मिलतेजुलते थे. तनु ने अपने जीवन के सारे पृष्ठ एकएक कर अपनी होने वाली बहू के समक्ष खोल दिए. कई बार दोनों की आंखें भी भर आईं. दोनों एकमत थीं, प्रेम के साथसाथ सारे रिश्तों को साथ ले कर चलना है.

एक सप्ताह बाद उदास अभय मां के घुटनों पर सिर रखे बता रहा था, ‘‘काव्या के मांबाप इस शादी के खिलाफ हैं. मां, काव्या कहती है कि हमें उन के हां करने का इंतजार करना होगा. उस का कहना है कि वह कभी न कभी तो मान ही जाएंगे.’’

‘‘हां, तुम दोनों का प्यार अगर सच्चा है तो आज नहीं तो कल उन्हें मानना ही होगा. इस से तुम दोनों को भी तो अपने प्रेम को परखने का मौका मिलेगा,’’ तनुश्री ने बेटे के बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, ‘‘मैं भी काव्या के मांबाप को समझाने का प्रयास करूंगी.’’

‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आता, मैं क्या करूं, मां,’’ अभय ने पहलू बदलते हुए कहा.

‘‘बस, तू थोड़ा सा इंतजार कर,’’ तनुश्री बोली.

‘‘इंतजार…कब तक…’’ अभय बेचैनी से बोला.

‘‘सभी का आशीर्वाद पाने तक का इंतजार,’’ तनुश्री ने कहा.

वह सोचने लगी कि आज के बच्चे बहुत समझदार हैं. वे इंतजार कर लेंगे. आपस में मिलबैठ कर एकदूसरे को समझाने और समझने का समय है उन के पास. हमारे पास वह समय ही तो नहीं था, न टेलीफोन और न मोबाइल ताकि एकदूसरे से लंबी बातचीत कर कोई हल निकाल सकते. आज बच्चे कोई भी कदम उठाने से पहले एकदूसरे से बात कर सकते हैं…एकदूसरे को समझा सकते हैं. समय बदल गया है तो सुविधा और सोच भी बदल गई है. जीवन कितना रहस्यमय होता है. कच्चे दिखने वाले तार भी जाने कहांकहां मजबूती से जुड़े रहते हैं, यह कौन जानता है.

Valentine’s Day 2024 : वैलेंटाइन डे – सुमित की बीवी ने क्या कोई गलत काम किया था ?

`वैसे तो आजकल ‘बर्थ डे’, ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’, ‘रिब्बन डे’, ‘रोज डे’, ‘वैलेंटाइन डे’ आदि की भरमार है पर इन में सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है ‘वैलेंटाइन डे’ को. क्यों? पता नहीं, पर एक बुखार सा चढ़ जाता है. सारा माहौल गुलाबी हो जाता है, प्यारमोहब्बत की अनदेखी रोमांचक तरंगें तनमन को छू कर उत्तेजित कर देती हैं. महीना भर पहले जो हर किसी की जबान पर यह एक बार चढ़ जाता है तो फिर कई दिनों तक उतरने का नाम ही नहीं लेता. मुझे सुबह की पहली चाय पीते हुए अखबार पढ़ने की आदत है. आज मेरे सामने अखबार तो है पर चाय नहीं. देर तक इंतजार करता रहा पर चाय नहीं आई. दिमाग में एक भी शब्द नहीं जा रहा था. गरमगरम चाय के बिना अखबार की गरमगरम खबरें भी बिलकुल भावशून्य लगने लगीं. जब दिमाग ने बिलकुल ही साथ देने से मना कर दिया तो मैं ने अखबार वहीं पटक दिया और किचन की ओर चला.

देखा, चूल्हा ठंडा पड़ा है. माथा ठनका, कहीं पत्नी बीमार तो नहीं. मैं शयनकक्ष की ओर भागा. मैं इसलिए चिंतित नहीं था कि पत्नी बीमार होगी बल्कि इसलिए परेशान था कि सच में अगर श्रीमतीजी की तबीयत नासाज हो तो उन का हालचाल न पूछने के कारण उन के दिमाग के साथ यह नाचीज भी आउट हो जाएगा. कहीं होतेहोते बात तलाक तक न पहुंच जाए. अजी, नहीं, आप फिर गलतफहमी में हैं. तलाक से डरता कौन है? तलाक मिल जाए तो अपनी तो चांदी ही चांदी हो जाएगी. मगर तलाक के साथ मुझे एक ऐसी गवर्नेस भी मिल जाए जो हर तरह से मेरे घर को संभाल सके. यानी सुबह मुझे चाय देने से ले कर, दफ्तर जाते वक्त खाना, कपड़ा, मोजे देना, बच्चों की देखभाल करना, उन की सेहत, पढ़ाई- लिखाई आदि पर ध्यान रखना, फिर घर की साफसफाई आदि…चौबीस घंटे काम करने वाली (बिना खर्चे के), एक मशीन या रोबोट मिल जाए. फिर मैं तो क्या दुनिया में कोई भी किसी का मोहताज न होगा. मैं ने शयनकक्ष में जा कर क्या देखा कि मेरी पत्नी तो सच में ही बिस्तर में पड़ी है. मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘अरे, यह तुम्हें क्या हो गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

पत्नी ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे क्या हुआ है? मैं तो अच्छीभली हूं.’’ ‘‘फिर मुझे चाय…’’ उस का तमतमाया चेहरा देख कर मैं चुप हो गया.

‘‘क्यों? क्या मैं कोई नौकरानी हूं कि सुबह उठ कर सब की जरूरतें पूरी करती रहूं. आज मेरा चाय बनाने का मूड नहीं है.’’ मैं भौचक्का रह गया. यह क्या कह रही है? मैं कुछ समझ नहीं पाया. इतने में बबलू आ गया.

‘‘मम्मी, मेरा टिफिन बाक्स तैयार है? तुम ने वादा किया था, याद है कि आज मेरे टिफिन में केक रखोगी?’’ ‘‘मैं ने कुछ नहीं रखा.’’

‘‘क्यों, मम्मी? आज सभी बच्चे अपनेअपने घर से अच्छीअच्छी चीजें लाएंगे. मैं ने भी उन को प्रौमिस किया था कि मैं केक लाऊंगा.’’ मैं बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे, बबलू, आज क्या खास बात है? आप की बर्थ डे है क्या?’’

बबलू ने अपना माथा ठोक लिया. ‘‘पापा आप भी न…अभी पिछले महीने ही तो मनाया था मेरा बर्थ डे.’’

‘‘यू आर राइट,’’ मैं खिसियाते हुए बोला. कैसे भूल गया मैं बबलू का बर्थ डे जबकि मेरी जेब में उस दिन इतना बड़ा होल हो गया था कि टूटे मटके के पानी की तरह सारा पैसा बह गया था. ‘‘फिर आज क्या बात है जो आप सारे बच्चे इतने खुश हो?’’

बबलू ने फिर माथा ठोक लिया. यह आदत उसे अपनी मम्मी से विरासत में मिली थी. दोनों मांबेटे बारबार मेरी नालायकी पर इसी तरह माथा ठोकते हैं. ‘‘पापा, आप को इतना भी नहीं मालूम कि आज सारी दुनिया ‘वैलेंटाइन डे’ मनाती है. जानते हैं दुनिया में इस दिन की कितनी इंपोर्टेंस है? आज के दिन लोग अपने बिलव्ड को अच्छा सा गिफ्ट देते हैं.’’

चौथी कक्षा में पढ़ रहे बेटे के सामान्य ज्ञान को देखसुन कर मेरा मुंह खुला का खुला और आंखें फटी की फटी रह गईं. वाह, क्या बात है. फिर उस की आवाज आई, ‘‘पापा, आप ने मम्मी को क्या गिफ्ट दिया?’’

मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई. तो यह राज है श्रीमती के मुंह लपेट कर पडे़ रहने का. मैं यह सोच कर अंदर से परेशान हो रहा था कि अब मुझे इस कहर से कौन बचाएगा? मैं ने अपने बेटे के बहाने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटे, वैलेंटाइन का अर्थ भी जानते हो? वैलेंटाइन किसी संत का नाम है जिस ने हमारे प्रसिद्ध संत कबीर की तरह दुनिया को पे्रम का संदेश दिया था. यह पे्रम या प्यार किसी के लिए भी हो सकता है. मातापिता, भाईबहन, गुरु, दोस्त आदि. मीरा कृष्ण की दीवानी थी, राधा कृष्ण की पे्ररणा. यह सब प्यार नहीं तो और क्या है? आज का विकृत रूप प्यार…खैर, जाने दो, तुम नहीं समझोगे.’’ ‘‘क्या अंकल, बबलू क्या नहीं समझेगा? आप ने जो कहा वह मैं समझ गया. बबलू ने ठीक ही तो कहा था, आप ने आंटी को क्या तोहफा दिया?’’

‘‘हूं,’’ सांप की फुफकार सुनाई दी. मैं ने पलट कर देखा. मेरी पत्नी मुझे घूर रही थी. मैं ने उधर ध्यान न देते हुए टिंकू से पूछा, ‘‘तुम कब आए, टिंकू?’’ ‘‘अभीअभी, अंकल. आप बात को टाल रहे हैं. खैर, आंटी से ही पूछ लेता हूं. आंटी, अंकल ने आप को क्या तोहफा दिया? कुछ नहीं न?’’ टिंकू को जैसे अपनी आंटी को उकसाने में मजा आ रहा था.

‘‘हुंह, ये क्या देंगे मुझे तोहफा, कंजूस मक्खीचूस. जेब से पैसे निकालने में नानी मरती है,’’ उस ने मुंह बिचकाया. ‘‘जानेमन, मैं तुम्हें क्या तोहफा दूंगा. हम तो जनमों के साथी हैं जिन्हें ऐसी औपचारिकताओं की जरूरत नहीं पड़ती.’’

‘‘रहने दो, ज्यादा मत बनो. अगले जनम में भी इसी कंजूस पति को झेलना पडे़गा. इस से तो मैं कुंआरी भली,’’ मेरी पत्नी बोल पड़ी. बच्चों के सामने कबाड़ा हो गया न. ‘‘सुनो भी यार, मेरा सबकुछ तुम्हारा ही तो है. अपनी सारी तनख्वाह महीने की पहली तारीख को तुम्हें ला कर दे देता हूं और घर तो तुम्हीं चलाती हो. मेरे पास दोस्तों को चाय पिलाने के भी पैसे नहीं बचते. मैं तुम्हें कोई ऐसावैसा तोहफा नहीं दे सकता न? जिस दिन मैं इतना अमीर हो जाऊं कि दुनिया का सब से खूबसूरत और अनमोल तोहफा तुम्हें दे सकूं, उसी दिन मैं तुम्हें तोहफा दूंगा.’’

मैं ने अपने बचाव में पासा फेंका तो वह सही निशाने पर जा कर लगा. श्रीमतीजी के चेहरे पर गुस्से का स्थान शरम ने ले लिया. छूटते ही मैं ने एक और तीर छोड़ा, ‘‘दूसरी बात यह है डार्लिंग, विदेशों में लड़की और लड़के के बीच की केमिस्ट्री कब अपना इक्वेलिब्रियम खो दे कुछ ठिकाना नहीं रहता. इस साल पत्नी की सीट पर कोई है पर अगले साल कौन होगा कुछ पता नहीं. इसलिए उन्होंने एक भी साल का पड़ाव पार कर लिया तो अपने को बहुत भाग्यशाली मानते हैं. और इतना भी झेलने के लिए एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं,’’ मेरे इतने लंबे भाषण का उस पर कुछ तो असर होना चाहिए. ‘‘अंकल, मैं एक और उदाहरण दूं?’’ टिंकू ने बड़े उत्साह से पूछा.

‘‘मैं मना कर दूं तो रुक जाओगे?’’ मैं ने बड़़ी आशा से पूछा. ‘‘न, रुकूंगा तो नहीं. आप की इज्जत रखने के लिए यों ही पूछ लिया था. चूंकि टिंकू की मम्मी टीचर हैं इसीलिए बेटे को भी बातबात पर उदाहरण देने की आदत है.’’

‘‘सुनिए, अंकल, विदेशी अपने मांबाप को ‘ओल्ड एज होम’ में रखते हैं और ‘मदर्स डे’ या ‘फादर्स डे’ के दिन फूलों का गुलदस्ता दे कर उन्हें विश करते हैं.’’ टिंकू की बात मुझे बहुत जंची.

‘‘चल, जा, अपनी पढ़ाई कर. छोटा मुंह बड़ी बात,’’ श्रीमतीजी ने उसे डांट दिया. शायद उन्हें याद नहीं था कि टिंकू मेरे बेटे से 4 साल बड़ा था. श्रीमतीजी का यह तेवर शायद इसलिए बना कि वह भी अपने सासससुर को अपने घर में फटकने नहीं देती थीं. दोपहर के करीब 2 बजे सुमित का फोन आया :

‘‘यार, घर में महाभारत छिड़ा हुआ है. खाना तो क्या चाय तक नसीब नहीं हुई. बड़ी भूख लगी है.’’ ‘‘यहां भी वही हाल है,’’ मैं ने रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘तू जल्दी से घर से बाहर आ जा,’’ वह मेरा बचपन का दोस्त था और इत्तफाक से हमें एक ही विभाग में नौकरी भी मिल गई थी. पहले हमारे मकान बहुत दूर थे पर बाद में हम ने पासपास में मकान किराए पर ले लिए. बाहर सड़क पर वह मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘क्या बात है?’’ मैं जानता था पर यों ही पूछ लिया जो आम बात है. ‘‘चल, चलतेचलते बात करते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘सब से पहले किसी होटल में चलते हैं,’’ सुमित बोला तो मैं जान गया कि वह अधिक देर तक भूखा नहीं रह सकता. खाना खाने के बाद हमारी जान में जान आई. ‘‘हम लोगों ने तो खा लिया पर बाकी बीवीबच्चों का क्या होगा?’’ मैं ने सुमित से पूछा.

‘‘मेरे बच्चों ने तो कुछ बना कर खा लिया है. उन्होंने उसे भी खिला दिया होगा. हां, तू बबलू के लिए कुछ ले ले. वह बेचारा छोटा है.’’ मुझे याद आया कि बेटे को मैगी बना कर खिला दी गई थी. फिर भी मन न माना तो मैं ने दोनों के लिए खाना पैक करवा दिया.

अब सुमित ने भी कुछ खाने की चीजें बंधवा लीं. पेट में आग ठंडी पड़ी तो उस ने कहा, ‘‘अरे, यार, कुछ खरीदना ही पडे़गा वरना मेरी तो खैर नहीं. बच्चे भी मेरे ही पीछे पड़ गए हैं. उन सब ने मुझे जंगली और गंवार करार दे दिया है़.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. सुबह माधव का बेटा टिंकू आया था. वह जले पर और नमक छिड़क गया.’’ ‘‘तो ऐसा करते हैं कि पहले यह खाना घर में दे कर हम दोनों बाजार का एक चक्कर लगा आते हैं. देखते हैं कि बाजार में औरतों के लिए क्याक्या चीजें मिलती हैं.’’

‘‘मगर हम खरीदेंगे क्या. मैं ने तो जिंदगी में कभी औरतों का कोई सामान नहीं खरीदा,’’ मैं ने दीनहीन बन कर कहा. ‘‘तो क्या हुआ? अब सीखेंगे,’’ सुमित हेकड़ी बघार कर बोला, ‘‘हम हमेशा उन्हें अपना पर्स सौंप देते हैं. इस से 2 नुकसान होते हैं. पहला हमारा बजट बिगड़ता है. दूसरा नुकसान यह है कि हमारे ही पैसों से चीजें खरीद कर हम को धत्ता बताती हैं.’’

‘‘मगर मेरे पास तो 500-600 से अधिक रुपए नहीं हैं. सारे पैसे वह पहले सप्ताह में ही उड़ा देती है,’’ मैं ने मायूसी से कहा. ‘‘वही हाल मेरा भी है और उस पर पूरा महीना आगे पड़ा है. खैर, फिलहाल घर जा कर पैसे ले कर आओ. बाद की बाद में सोचते हैं.’’

दोनों अपनेअपने घरों में खाना रख कर पैसे ले कर वापस आए.

हमारे पास अब भी इतने पैसे नहीं थे कि हम सोनेचांदी की कोई चीज खरीद सकें. सो इधरउधर देखते हुए आगे बढे़ जा रहे थे. मैं ने कहा ‘‘चलो, कोई अच्छी सी साड़ी ले लेते हैं,’’ इस पर सुमित बोला, ‘‘नहीं, यार, साड़ी तो उसे तोहफा भी नहीं लगेगी. उसे ऐसे रख लेगी जैसे सब्जियों का थैला रख लिया हो.’’

हम ने तरहतरह के तोहफों के बारे में सोचा मगर कुछ भी नहीं जंचा. कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैं अकेला चला जा रहा हूं. मेरे साथ सुमित नहीं है. चारों ओर देखा मगर वह कहीं नजर न आया. मैं पलट कर वापस चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद वह नजर आया. वह भी शायद मुझे ही ढूंढ़ रहा था. ‘‘कहां चला गया था यार? कब से तुझे ढूंढ़ रहा हूं,’’ मैं ने डांटा.

‘‘वाह, उलटा चोर कोतवाल को डांटे. एक तो मुझे छोड़ कर खुद आगे निकल गया, ऊपर से अब मुझे ही डांट रहा है.’’ ‘‘यार, मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. यहीं सामने मैं ने एक आर्टीफिशियल ज्वेलरी की दुकान देखी. 1 ग्राम सोने की कोटिंग वाली. हम कह देंगे असली है.’’

‘‘पागल हो गया है? सुबह उठ कर औरतें इन्हीं गहनों और साडि़यों की दुकानों पर मंडराती रहती हैं. झट पहचान जाएंगी. उन के सामान्य ज्ञान का इतना कम अंदाजा मत लगा,’’ डांटने की बारी सुमित की थी, ‘‘पकडे़ गए तो बीवी से ऐसी धुनाई होगी कि जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाओगे,’’ उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘शाम तक हम दोनों यों ही भटकते रहे. कुछ भी खरीद नहीं पाए. हार कर घर लौटने ही वाले थे कि मेरी नजर एक इत्र की दुकान पर पड़ी. ‘‘यार, सुमित, चल, परफ्यूम ही खरीद लेते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मेरे वाली तो कभी परफ्यूम लगाती ही नहीं.’’ ‘‘मेरे वाली भी कहां खरीदती है? मेरे खयाल से खरीदे हुए परफ्यूम के बजाय तोहफे में मिले हुए को इस्तेमाल करना औरतें ज्यादा पसंद करती हैं, ‘‘मैं ने ज्ञान बघारा.

‘‘ऐसा क्यों?’’ सुमित ने भोलेपन से पूछा. ‘‘क्योंकि इन की कीमत उन की नजर में ज्यादा होती है और किसी को दिखती भी नहीं.’’

‘‘वाह यार, तू तो गुरु हो गया है. मेरी बीवी परफ्यूम का प्रयोग तब करती है जब उसे किसी अच्छे फंक्शन में जाना हो और जाने से पहले मुझ पर भी 2-4 छींटे मार देती है.’’ हम दोनों परफ्यूम की दुकान में घुस गए. वहां विविध रंगों और आकृतियों की छोटीबड़ी सुदर कांच की बोतलें इस प्रकार सजी हुई थीं कि जिस ने जिंदगी में कभी परफ्यूम का प्रयोग न किया हो उस का मन भी उन्हें खरीदने को बेचैन हो उठे.

हम दोनों थोड़ी देर तक दुकान में मोलभाव कर यह समझ गए कि 150-200 रुपए में बढि़या परफ्यूम मिल जाता है. हम ने जांचपरख कर एकएक परफ्यूम की बोतल खरीद ली. बाहर निकलने के बाद सुमित के दिमाग में एक संदेह उठा. ‘‘यार, इन लोगों को तो कीमती तोहफे चाहिए. भला ये 200 रुपए वाली छोटी सी शीशी उन की नजर में क्या चढ़ेगी. मुझे तो लगता है इसे हमारे ही सिर पर दे मारेंगी.’’

‘‘तू फिकर क्यों करता है? मैं ने उस का भी उपाय सोच लिया है. कह देंगे हमारे दफ्तर का कोई दोस्त दुबई से लौट कर आया है या हम ने उसी से यह परफ्यूम 1,500 रुपए दे कर खरीदा है.’’ ‘‘अरे वाह, तेरा दिमाग तो उपायों से भरा पड़ा है. इन लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि विदेशी परफ्यूम क्या होता है.’’

‘‘हां, मगर आज इसे कहीं छिपा कर रखना होगा. कल शाम को आफिस से आने के बाद ही तो दे पाएंगे.’’ यही तय हुआ. हम ने अच्छे से गिफ्ट पैक करा कर उसे अपनेअपने स्कूटर की डिक्की में छिपा दिया. हम खुशीखुशी घर वापस लौटे. पत्नी ने चुपचाप खाना लगा दिया. हम खाने के कार्यक्रम के बाद चुपचाप मुंह ढांप कर पड़ गए.

अगली शाम कुछ समय यहांवहां बिता कर शाम ढलतेढलते घर पहुंचे. सुमित सीधे अपने घर चला गया. मेरा घर थोड़ा आगे था. गाड़ी से उतर कर मैं ने देखा कि दरवाजे पर ताला लटक रहा है. सारे खिड़कीदरवाजे बंद. मैं सिर पकड़ कर वहीं सीढि़यों पर बैठ गया. हो गई हमारी खटिया खड़ी. हमारी धर्मपत्नी हम से बहुत नाराज है. हमें निकम्मा करार देते हुए घर छोड़ कर मायके चली गई. हम गलीमहल्ले में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.

हमारी आधी घरवाली, जिस की हम चुपकेचुपके आराधना करते हैं (आजकल पुरानी वस्तु दे कर नई लेने की बहुत सी स्कीमें चल रही हैं. काश, ऐसी कोई स्कीम होती) उस की नजरों में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी? सुमित हमेशा कहता है कि यार तू बहुत लकी है जो तुझे खूबसूरत साली मिली. मुझे तुझ से जलन होती है, क्योंकि मेरी कोई साली नहीं है. तू अपनी साली को हमेशा अच्छे से पटा कर रख क्योंकि बीवी अगर केक है तो साली क्रीम है. तू तो जानता है कि लोग केक से ज्यादा क्रीम के ही दीवाने होते हैं. हम वहां अंधेरे में बैठे बिसूरते रहे कि हमें किसी की आवाज सुनाई दी. हम ने आंखें खोलीं तो पाया कि सामने सुमित का बेटा समीर खड़ा था. उस ने मुझे घूरते हुए दोबारा आवाज दी, ‘‘अंकल, घर चलिए, पापा बुला रहे हैं.’’

इस से पहले कि मैं उस से कुछ पूछता वह वहां से हवा हो गया. मैं 2 मिनट तक यों ही बैठा रहा, फिर धीरे से उठा और अपने पांव को घसीटते हुए सुमित के घर पहुंचा. दरवाजे पर ही मुझे सुमित की पत्नी ने दबोच लिया, ‘‘क्यों भाई साहब, कहां रह गए थे? आप लोगों को समय पर घर की याद भी नहीं आती.’’ ‘‘नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है…’’

‘‘बसबस, कहानियां मत सुनाओ, चलो अंदर.’’ मैं सिर झुकाए भाभी के पीछेपीछे अंदर चला आया.

भाभी सोफे की ओर बैठने का संकेत कर के अंदर चली गईं. शायद आवाज सुन कर सुमित बाहर निकल आया और उस के साथ में भाभी भी. हाथ में टे्र पकड़ रखी थी. उन्होंने नमकीन की प्लेट मेरी ओर बढ़ा दी.

‘‘भाभी, आप जानती हैं…’’ मैं अभी इतना ही बोल पाया था कि हाथ की प्लेट मेरी ओर सरका कर वह फिर अंदर चली गईं और जब वापस आईं तो उन के पीछेपीछे बबलू भी था. वह वीडियो गेम खेल रहा था. मैं अपनी जगह से उठ कर उस की ओर जा ही रहा था कि द्वार पर मेरी पत्नी दिखी. उस के हाथ में चाय की टे्र थी.

‘‘चलिए, आप दोनों जल्दी से हाथमुंह धो लीजिए. चाय ठंडी हो रही है. फिर बैठ कर बातें करते हैं,’’ भाभी ने हुक्म दिया.

मैं और सुमित आज्ञाकारी बच्चों की तरह चुपचाप हाथमुंह धो कर फटाफट आ गए. चाय पीतेपीते ज्यादा बातें दोनों महिलाएं ही कर रही थीं, बच्चों और टीवी का शोर अलग चल रहा था. 9 बज रहे थे. ‘‘अच्छा, अब चलते हैं,’’ मैं ने उठने का उपक्रम करते हुए कहा.

‘‘कहां जाते हैं? बैठिए भी. लगता है भाई साहब को भूख लगी है.’’ वह उठीं और अंदर चली गईं. उन के पीछेपीछे मेरी पत्नी भी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. अंदर से भाभी की आवाज आई तो सुमित अंदर चला गया.

सुमित कमरे से बाहर आते हुए बोला, ‘‘चल यार.’’ उस ने केवल इतना कहा और मैं उस के पीछेपीछे बाहर निकल आया और गहरी सांस ली.

‘‘सुमित, बात क्या है? मुझे तो डर लग रहा है.’’ ‘‘मुझे क्या पता यार. मैं तो अभी- अभी तेरे साथ ही घर लौटा हूं.’’

‘‘मगर हम जा कहां रहे हैं?’’ ‘‘तेरी भाभी ने पान मंगाए हैं.’’

पान ले कर जब हम घर पहुंचे तो देखा कि खाने की मेज तरहतरह के पकवानों से भरी थी. हमारे सिर चकराने लगे…जैसे हम कोई मायावी दुनिया में पहुंच गए हों. ‘‘चलिए, खाना लग गया है, बस, आप लोगों का इंतजार था.’’

आज्ञाकारी बच्चों की तरह हम ने उस आदेश का पालन किया. खाना परोसने से पहले भाभी ने एक फरमान जारी किया, ‘‘चलिए, निकालिए हमारा गिफ्ट. फिर हम खाना शुरू करते हैं. बच्चे भी भूखे हैं.’’

हम ने चुपके से अपनाअपना गिफ्ट उन दोनों के हाथों में थमा दिया. बच्चों ने जोरजोर से तालियां पीटीं और खाने की मेज पर टूट पडे़. दोनों ने मिल कर तीनों बच्चों के लिए प्लेटें लगा दीं. जब हम भी खाने बैठ गए और लगने लगा कि वातावरण कुछ सामान्य हो चला है तब मैं ने हिम्मत कर के पूछ लिया, ‘‘भाभी, एक बात पूछूं?’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप क्या पूछने वाले हैं. अब इन लोगों को ज्यादा सस्पेंस में रखना ठीक नहीं है. क्यों? बता दें न?’’ उन्होंने मेरी पत्नी की ओर देखा. उस ने कहा, ‘‘मैं बताती हूं. जबजब हम सुनते थे कि कोई पति अपनी पत्नी को किसी न किसी अवसर पर गिफ्ट देता है तो हमारे दिलों में जलन होती थी, क्योंकि हमें कभी कुछ नहीं मिलता. हम ऐसे अवसरों पर एकदूसरे के सामने कुढ़ लेती थीं और कर ही क्या सकती थीं, लेकिन कल हम दोनों ने तय कर लिया कि तुम दोनों को सबक सिखाना चाहिए. इसलिए हम ने खाना नहीं बनाया. यह हमारा पहला कदम था. ‘‘चूंकि यह बात पहले से तय थी इसलिए हम ने ज्यादा खाना बना कर रख दिया था और वही अगले दिन बच्चों को खिला दिया. हम ने अपने लिए भी बनाया था मगर विश्वास करो, हमारा खाने का मन नहीं हुआ. हां, इतना अवश्य मानती हूं कि मैं ने डब्बों में रखे सूखे नाश्ते खा कर, चाय पी कर काम चलाया, भूख जो नहीं सह पा रही थी.’’

भाभी ने अपनी तरफ से जोड़ा, ‘‘मैं ने भी, लेकिन जब हम ने देखा कि तुम दोनों खाने का समय निकल जाने के बाद भी हमें बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गए तो हम ने सोचा कि तुम लोग खापी कर आ जाओगे. मगर तुम लोगों की यह बात हमारे दिलों को छू गई कि हमारे ऐसे कठोर व्यवहार के बावजूद तुम ने हमारे लिए खाना पैक करवाया. हमारे दिलों में ग्लानि हुई. हमारा क्रोध शांत हुआ तो दिमाग विचारशील हो गया. फिर पिंकू ने बताया कि तुम लोग किसी गिफ्ट के बारे में बात कर रहे थे, वह भी चौक पर खडे़ हो कर.’’ ‘‘पिंकू कहां था?’’ सुमित ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘वह वहीं से गुजर रहा था. अपने दोस्त के घर कोई सीडी देखने जा रहा था,’’ भाभी ने कहना जारी रखा, ‘‘मैं ने देखा कि तुम अंदर से पैसे ले कर कहीं चले गए. आज जब छोटू भाई ने फोन किया कि तुम ने 2 गिफ्ट पैक कराए और बचा पैसा वापस लेना भूल गए तो सारी बात हमारी समझ में आ गई.’’ ‘‘मगर वह दुकान वाला तुम्हें कैसे जानता है?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘याद नहीं हम ने किशोर भाई की बेटी की शादी के लिए वहीं से गिफ्ट लिया था. उस समय उस के पास गिफ्ट रैपर खत्म हो गया था, तब उस ने बाहर से तुरंत रैपर मंगवा कर पैक कर के दिया था. तुम ने उस की इस तत्परता की तारीफ की थी. यही नहीं जब भी कोई तोहफा लेने का अवसर आता है, हम दोनों उसी दुकान पर जाते हैं. इसलिए दुकानदार ऐसे ग्राहकों का बहुत खयाल रखता है.’’ ‘‘अच्छा, तो हमें भी अपनी गलती को मान लेना चाहिए, क्यों यार?’’ सुमित की आंखों की भाषा को मैं ने पढ़ लिया और स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया.

सुमित ने पहले अपना गला साफ किया फिर गिलास उठा कर पूरा पानी पी गया. इस के बाद हिम्मत जुटा कर उस ने सारी घटना उन दोनों के सामने बयां कर दी. ‘‘यह विदेशी परफ्यूम नहीं है. सोलह आने देशी, वह भी अपने ही गोलबाजार से खरीदा हुआ है. हमें माफ कर दो. वादा करते हैं कि अगली बार कोशिश करेंगे कि कुछ अच्छा सा तोहफा आप लोगों को दे सकें…वह भी आप के बिना मांगे,’’ हम दोनों ने सिर झुका लिया.

मैं ने सुना, मेरी बीवी कह रही थी, ‘‘नहींनहीं, आप ऐसा न कहिए. हम पहले ही अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं. आप लोग हमें माफ कर दीजिए. कल इन्होंने मजाक में ही सही, बिलकुल ठीक कहा था कि जहां रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती वहां तोहफे दे कर या शारीरिक हावभावों के प्रदर्शन द्वारा बारबार रिश्तों को साबित करना पड़ता है. हमारे यहां ऐसे दिखावे की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि ये रिश्ते दिलों के हैं और इन की जड़ें मजबूत हैं.’’ वातावरण को गंभीर होता देख उसे फिर से हलका बनाने के उद्देश्य से मैं ने कहा, ‘‘सोच लो. अभी भी अपना वक्तव्य बदल सकती हो. जनमजनम के चक्कर में न पड़ो वरना इसी कंजूस मक्खीचूस को झेलना पडे़गा. इस से तुम कुंआरी भली,’’ मैं ने पत्नी को छेड़ते हुए कहा.

सब ठठा कर हंस पडे़. उसे भी मजबूर हो कर हंसना पड़ा.

वह नाजुक सी लड़की : क्या मंजरी और रोहन की शादी हो पाई ?

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सपने देखने वाली लड़की : क्या गहरी खाई की ओर बढ़ रही थी शिप्रा ?

देवांश उसे दूर से एकटक देख रहा था. देख क्या रहा था,नजर पड़ गई और बस आंखें ही अटक गई उसपर !विश्वास नहीं होता – यह वही है या उस जैसी कोई दूसरी?

मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल  स्टेशन पर पीठ पर एक बैग लादे वह अकेली खड़ी है !

देवांश का ध्यान अपने काम से भटक गया था.सवारी गई तेल लेने! पहले यह शंका तो निवारण कर ले! बिहार के समस्तीपुर से यहां मुंबई में अकेले! लग रहा है,अभी अभी ट्रेन से उतरी है.

चाहता है उसे अनदेखा कर सवारी ढूंढे, कहीं वह नहीं हुई तो थप्पड़ भी पड़ सकता है.

आजकल की स्टंटमैन लड़कियां! देवांश इनसे दूर ही रहता है!

लेकिन अगर वही हुई तो? यह जरूर उसका फिर नासमझी में उठाया  गया कदम होगा !

वह इसके घरवालों को जानता है, वे ऐसे बिलकुल नहीं कि बेटी को अकेले मुंबई आने दें! इसके पापा का साइकिल में हवा भरने, पंक्चर बनाने की एक छोटी सी दुकान है. एक बड़ा भाई है जो पहिए वाले ठेले पर माल ढुलाई करता है. इससे दो बड़ी बहनें हैं जिनकी जैसे तैसे शादी हुई थी.

आज से पांच साल पहले जब देवांश मुंबई भाग आया था तब यह शायद बारह साल के आसपास की रही होगी.उस वक्त देवांश बीस वर्ष का था. शिप्रा उस समय सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी .सजने का बड़ा शौक था  इसे. इस कारण हरदम इसकी मां इस पर टिक टिक करती रहती.दुकान से लगे छोटे से घर में ये अपने भाई, मां, पप्पा के साथ रहती थी .

अब तक वह इधर उधर देखती ,कुछ सोचती, थोड़ा थोड़ा चलती देवांश से अनजान उसकी ओर ही बढ़ी चली आ रही थी.

देवांश भी अब तक उसके नजदीक आ चुका था.

“तुम शिप्रा हो न? यहां कैसे?”

पहले शिप्रा ने खुद को छिपाने का प्रयत्न किया लेकिन देवांश का अपनी बात पर भरोसा देख उसे मानना पड़ा कि वह समस्तीपुर के फुलचौक की शिप्रा ही है.

अपनी बात को टालने की गरज से शिप्रा ने प्रतिप्रश्न किया – “तुम यहां कैसे?”

“बीस साल की उम्र में मुंबई भाग आया था. हीरो बनना था. सालभर खूब एड़ियां घिसी, फिल्मी स्टूडियो के बाहर कतारें लगाई, प्रोड्यूसर डायरेक्टर के पीछे भागता रहा, लेकिन रात ?

वह तो पिशाचिनी की तरह भूखी प्यासी मुझे निगलने को आती थी.

स्टूडियो के बाहर नए लड़के लड़कियों की इतनी भीड़ कि कौन किसे पूछे? उनमें जिनके पहचान के  निकल जाते, उन्हें  किसी तरह अन्दर जाने का मौका मिल जाता.लेकिन इतना तो काफी नहीं होता न! मंजे हुए कलाकारों के सामने खड़े होने की भी कुबत कम लोगों में ही होती है! फिर गिड़गिड़ाना भी आना चाहिए, इज्जत पर बाट लगाकर काम के लिए हाथ फैलाना भी आना चाहिए! मैंने तो साल भर में हाथ जोड़ लिए! मेरा औटो जिंदाबाद! पहले भाड़े पर लेकर चलाता था, अब अपना है, मीरा रोड पर अपनी खोली भी है!  मगर तुम यहां क्यों आ गई? बारहवीं बोर्ड दिया?” एक साथ इतनी बातें कहने के पीछे देवांश की एक ही मंशा थी कि वो मुंबई की जिंदगी और अपने सपनों की वास्तविकता को समझे!

“देकर ही आई हूं! मुझे एक हीरो से मिलना है, उसके साथ मुझे हीरोइन का रोल करना है! मै ठान कर आई हूं, हार नहीं मानूंगी.”

अब तक शिप्रा अपने नए स्मार्ट फोन पर किसी का नंबर ढूंढने में लगी थी.

देवांश ने कहा-” तुम्हारे पप्पा मेरी साइकिल कई बार ऐसे ही ठीक कर दिया करते थे .कुछ तो मेरा भी फर्ज बनता है, अपने जगह की हो, कहां मारी मारी फिरोगी! अच्छा हुआ जो मै तुम्हे मिल गया! चलो मेरे घर. वहीं रहकर काम ढूंढ़ लेना.”

इस बीच शिप्रा की उससे बात हो जाती है जहां वह फोन लगा रही थी. बात समाप्त होते ही शिप्रा का रुख थोड़ा बदल सा जाता है. वह अब जल्दी निकलना चाहती है.

“देवांश जी मुझे जल्दी निकलना होगा, हरदीप जी से बात हो गई, उन्हीं के कहने पर यहां आई हूं . वे मुझे अपने स्टूडियो में बुला रहे हैं, इंटरव्यू करेंगे, और फोटो शूट भी!”

“ये सब पक्का है? देखो, मुंबई है ,सही गलत की पहचान जरूरी है, ठगी न जाओ!”

“देवांश जी मुझे अभी जाना है, आपको बाद में बताऊंगी .

आप भैया के साथ स्कूल पढ़े हो, मेरे घरवालों को पहचानते हो, अभी कुछ बताना मत उन्हें, पता चला तो मेरी जबरदस्ती शादी कर देंगे. मै बड़ी स्टार बनना चाहती हूं, दीदियों की तरह गृहस्थी में अभी से नहीं पीसना मुझे!”

जाना कहां है? चलो छोड़ देता हूं तुम्हे.”

“करजत नाम की कोई जगह है- वहीं कहीं बता रहे हैं”

“मेरा फोन नंबर रख लो, रात को वापिस आ जाना, अपना नंबर दे दो, मै अपना पता तुम्हे लिख भेजूंगा. मुंबई अनजान नई लड़कियों के लिए ठीक नहीं, शोषण हो सकता है!”

“मुझे जल्द पहुंचाइए देवांश जी, कहीं देर न हो जाए!”

औटो भीड़ को काटते जैसे तैसे गंतव्य की ओर दौड़ रहा था.

शिप्रा को अपने सपनों के आगे जिंदगी की चुनौतियां तुच्छ नजर आ रही थी.देवांश समझ चुका कि यह चट्टानों से टकराए बिना नहीं मानेगी.

देवांश भी तो ऐसा ही था. कितनी रातें उसने आंखों में काटी, कितने दिन फाकों में! और जब काम मिलने को हुआ तो जैसे सर दीवार से जा टकराया! गीगोलो! अमीर औरतों के ऐश के लिए खरीदा गया गुलाम; उसे धोखा देकर ले जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी कि अचानक जैसे उसे दो कदम पीछे आकर फिर से सोच लेने की मति आई, उसके तो होश ही उड़ गए! किसी तरह बच कर निकला था वह! औटो दौड़ाते वह बेचैन हो गया.

लड़की को पता नहीं कहां पहुंचाने जा रहा है वह!

“हरदीप जी को कैसे जानती हो?”

“फेसबुक से, मेरी सुन्दरता देख उन्होंने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी. बाद में मुझे समझाया कि मै आसानी से हीरोइन बन सकती हूं अगर किसी तरह मुंबई पहुंच जाऊं!  वे मुझे स्टार बना देंगे. जोखिम तो लेना पड़ता है सपने पूरे करने के लिए!”

“पैसे हैं तुम्हारे पास?”

“घर में रखे दो हजार उठा लाई हूं, मां के चांदी के पायल भी,जब तक चले, फिर तो रुपए मिल ही जाएंगे.”

“कई बार नई लड़कियों का शोषण होता है, सावधान रहना!”

मतलब?”

“कोई तुम्हारा नाजायज फायदा उठा कर तुम्हे ठग सकता है,जैसे कोई कहे कि हम तो तुम्हे नाम पैसा सब देंगे, बदले में तुम क्या दोगी,तो -”

” जो कहेंगे वही करने का कहूंगी!”

“अरे! तुम्हारी उम्र कितनी है! तुम्हे समझ नहीं आती क्या बात!”

“अठारह साल!”

” छोड़ो, इससे आगे और क्या क्या समझाऊं तुम्हे! अगर रात को वापिस मेरे पास आने का मन हो तो फोन कर लेना मुझे.”

उस रात तो क्या महीने भर देवांश को शिप्रा का पता नहीं लग पाया.

और एक रात अभी वह अपने कमरों की बत्ती बुझाकर सोने चला ही था कि उसके दरवाजे पर किसी ने आवाज दी .

थोड़ा झल्लाया, दिन भर के खटे मरे, नींद से बोझिल आंखों में स्वागत सत्कार का आल्हाद कहां से लाए? झल्लाहट में दरवाजा खोला और सामने शिप्रा को देख अवाक रह गया.

सुंदर सजीली,एक ही नजर में भा जाने वाली लडकी जैसे अचानक कोयले के खदान से उठ आई हो! आंखों के नीचे गहरी कालिख!तनाव से चेहरा सूखा सा! विषाद के गहरे बादल जैसे अभी बरस पड़ेंगे!

“आओ आओ, फोन कर देती तो लेने चला आता! कहां रही अब तक?

“अंदर आ जाने दो देवांश जी! सब बताती हूं!”

पहले से  ज्यादा समझदार लगी शिप्रा.

रात के दस बज रहे थे, देवांश ने अपना डिनर ले लिया था.सो उस ने बिहारी स्टाईल में दाल भात आलू चोखा ,पापड़, सलाद लगाकर शिप्रा को खिलाया, और  अपने छोटे से पलंग पर उसका बिस्तर लगा दिया.

देवांश बगल वाले छोटे कमरे में अपनी खटिया बिछा कर अभी जाने को हुआ कि शिप्रा ने उसकी कलाई पकड़ ली.

“यहीं इसी कमरे में सो जाओ.अलग मत सोओ !”

“अरे क्यों ?” देवांश को आश्चर्य हुआ.

शिप्रा ने अपना सर झुका लिया.

“कहो!” देवांश ने जोर दिया.

रात कोई दूसरे कमरे से आकर मुझ पर सोते वक्त हमला न कर दे इसका डर लगता है, अच्छा है कोई साथ ही सो रहे, किसी के दरवाजे खोल कर अंदर आ जाने के डर से मै रात को सो ही नहीं पाती!”

“क्या हुआ था, मुझे बताओ, मै तुम्हारा हर डर दूर कर दूंगा .”

उसके स्नेह भरे स्वर में अपनेपन की ऐसी आश्वस्ति थी कि शिप्रा का तनाव कुछ कम होने लगा.

देवांश के पलंग पर दोनो आसपास बैठे थे, शिप्रा कहने लगी-”

उस दिन प्रोड्यूसर हरदीप जी के स्टूडियो के बाहर वेटिंग हौल में रात के आठ बजे तक बैठी मै इंतजार करती रही, आपने मुझे वहां करीब दोपहर के एक बजे छोड़ा था. सोच रही थी आपको फोन कर ही लूं, कि पियोन आकर मुझे बुला ले गया. मुझे एक आलीशान बड़े से कमरे में ले आया वह. यहां सोफे से लेकर पलंग तक सब कुछ मेरी कल्पना से परे की बेहतरीन चीजें थीं.सब कुछ अब जैसे जल्दी होने लगा था. मै घबराई भी थी और उत्सुक भी!

बाहर से मै लौक कर दी गई थी, मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर इंतजार करती रही.

कुछ देर बाद हरदीप जी आए.पचपन के आसपास की उम्र होगी उनकी .आराम से बात की, मुझे कुछ छोटे विकनी टाईप के कपड़े दिए और उसे पहन कर आने को कहा. मै झिझक गई, तो आंखें इस तरह तरेरी कि मुझे बदलने जाना पड़ा .बाथरूम से वापिस आई तो देखा तीन लोग शूट के लिए आ पहुंचे थे. जैसा कहा गया वैसा कर दिया, शूटिंग पूरी होने पर  हरदीप जी ने मुझसे कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करवाये. बाकी लोगों के जाने के बाद हरदीप जी ने मुझे नजदीक बिठा कर शाबासी दी और उनके साथ सहयोग करने पर जल्द मुझे स्टार बनाकर मेरे पसंद के हीरो के साथ रोल देने का वादा किया. डिनर आ गया था, और वो बहुत लाजवाब था. हरदीप जी को मैंने अनुरोध किया कि वे बाहर से दरवाजा मत लगाएं,”

“ये तुम्हारा मामला नहीं है” कहकर वे बाहर से बन्द कर चले गए.

फिर ये सिलसिला चल निकला . कभी बाहर भी शूट को ले जाते तो उनकी वैन में, काम ख़तम होते ही मुझ पर ताला जड़ दिया जाता. कितना भी समझा लूं,  वे मुझे सांस लेने की इजाजत नहीं देते!”

“सोते हुए तुम पर कभी हमला हुआ था? क्या वजह है तुम्हारे डर की?”

“यूं तो जैसे मै उनकी खरीदी गुलाम थी. कभी साज सज्जा के नाम पर, कभी दृश्य और संवाद के कारण वे सभी मेरी देह को खिलौना ही समझते. लेकिन इसके बाद की वो रात मेरे लिए बुरा सपना था! मुझे सपनों से डर लगने लगा है!”

“कहोगी क्या हुआ था?”अनायास ही अधिकार का स्वर मुखर हो गया था देवांश में, लेकिन वह तुरंत संभल गया.

“इस तरह उनके कहे पर उठते बैठते बीस दिन हो गए थे. थकी हारी रात को मै सो रही थी.मध्य रात्रि में जैसे मेरे कमरे को किसी ने बाहर से खोला, मुझे अंदर से बन्द करने की सख्त मनाही थी.

नींद में होने की वजह से जब तक संभल पाती किसी ने अजगर की तरह मुझ पर कब्जा कर लिया, मै उसके पंजो में छटपटाती सी शिथिल पड़ गई. फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. लेकिन सुबह सब कुछ सामान्य रहता  जैसे किसी को कुछ मालूम ही न हो. मै पागल सी होने लगी. मै वहां से निकलना चाहती थी, हरदीप जी से कहा तो सबके सामने मेरा कांट्रैक्ट पेपर दिखा दिया. मुझे हस्ताक्षर करते वक़्त उसे पढ़ना चाहिए था. तीन महीने के मुझे पचास हजार मिलने थे,और एक दिन भी पहले छोड़ना चाहूं तो प्रति दिन दो सौ के हिसाब से जितना बने. मेरे सपनों पर काली स्याही फैल गई थी, मै स्टार बनने के लिए  तिल तिल कितना मरती! शायद पचास हजार का शिकंजा कसकर वे कई को रोक रखते थे और मनमानी करते थे, मुझे लगा आखिर तक शायद वे खुद ही ऐसे हालात पैदा कर दें कि मै तीन महीने से पहले ही छोड़ने को बाध्य हो जाऊं! फिर क्यों नहीं अभी ही निकल जाऊं! मैंने तय किया कि अब और नहीं!

मुझे उन्होंने छह हजार पकड़ा दिए, और मै अपना सबकुछ खो कर निकल आई.”

सब कुछ खोकर से क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम इज्जत की बात कर रही हो? तुमने आगे बढ़ने और सपनों को पूरा करने के लिए जोखिम उठाया, इस जोखिम उठाने को इसलिए गलत नहीं कह सकते क्योंकि तुम एक लड़की हो और सपने बेचने वाले लोग गिद्ध है ! वे जो गिद्घ बने बैठे हैं, उन्हें अपनी इज्जत बचाने के लिए सभ्य होना चाहिए! हां तुम्हारी गलती इतनी है कि जब तुम्हे मैंने आगाह किया, सतर्क होने को समझाया तुमने अपनी धुन में मेरे अनुभव को तवज्जो नहीं दी, सपने देखना और उसके पीछे दौड़ना फिर भी आसान है, लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जुनून के साथ धीरज की जरूरत होती है, और यह जरा कठिन है!”

“क्या मुझे वापिस समस्तीपुर जाना चाहिए?”

“क्यों? जीवन में कुछ अच्छा सोचने के लिए देहरी तो लांघना ही पड़ता है. मुझे सपने देखना पसंद है, और सपने देखने वाली लड़की भी! अब चलो शुरू से शुरू करते हैं. तुम्हे अब आगे बढ़ाने में मै मदद करूंगा. जिंदगी मसाला चाय नहीं – कि बना और पीया, सपने अच्छे हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने में समझदारी चाहिए! समझी !”देवांश ने उसकी आंखों में अपने नजर की मुस्कुराहट बिखेर कर हलके से शिप्रा की हथेली को दबाया. विश्वास और संवेदना से भरी लजाती सी मुस्कान शिप्रा के दिल का हाल बता रही थी.

“सपने पूरे हो जाएं और मुझे भी अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहो तो बन्दा हमेशा हाजिर है ! कभी बता नहीं पाया मगर हमेशा चाहता था कि तुमसे दोस्ती हो जाय!”देवांश मन को धीरे धीरे खोल रहा था.

“देवांश तुम जैसे प्यारे इंसान क्या सचमुच के होते हैं? क्या यह भी तो कोई सपना नहीं ! ”

शिप्रा ने देवांश के कंधे पर अपना सर टिका दिया था.मन का बोझ पिघलने लगा था.सपने देखने का अपराध बोध जाता रहा, शिप्रा फिर से हसीन सपनों को सच करने का सपना देखने लगी थी.

राजनीति की रामायण में हेमंत सोरेन के बाद किस का नंबर

निर्माता रामानंद सागर के धार्मिक धारावाहिक ‘रामायण’ के एक दृश्य में रावण का दरबार लगा है. चर्चामंत्रणा इस बात पर हो रही है कि एक मामूली बंदर आखिर कैसे सोने की लंका जला गया. होतेहोते बात विभीषण पर होने लगती है कि आखिर उस का भवन कैसे बच गया. हनुमान ने उसे नुकसान क्यों नही पहुंचाया. रावण का बेटा मेघनाथ शक जाहिर करता है कि काका विभीषण, राम से मिले हुए हैं. उलट इस के, रावण का ससुर माल्यवान दामाद को समझाता है कि युद्ध खत्म कर दिया जाए क्योंकि जब राम का दूत इतना शक्तिशाली है तो खुद राम कितने ताकतवर होंगे. इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

रावण नहीं माना लेकिन समझने वालों को यह समझ आ गया कि चूंकि विभीषण के महल में राम नाम की सिक्योरटी प्लेट लगी थी, उस के लौन में तुलसी का पौधा लगा था, और तो और, उस के घर विष्णु के पवित्र चिन्ह, मसलन शंख, गदा और चक्र भी थे, इसलिए हनुमान ने उसे बख्श दिया.

कलियुग की लोकतांत्रिक रामायण का ताजा पहलू यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बच गए हैं. हनुमानरूपी ईडी से बचने के लिए उन्होंने सीधे सरकार की शरण ले ली और धर्मभतीजे तेजस्वी को बलि के बकरे की तरह आगे कर दिया है. अपनी निष्ठा जताने को उन्होंने ताजा बयान यह दिया है कि राहुल गांधी बेतुके और निराधार बयान दे रहे हैं. जातिगत जनगणना का आइडिया कांग्रेस का नहीं बल्कि हमारा था. असल में अपनी न्याय यात्रा के बिहार में दाखिल होते ही राहुल ने नीतीश की दुखती रग पर हाथ यह कहते रख दिया था कि हम समझ सकते हैं कि उन पर दबाव था.

यह दबाव सरकार दूत अतुलित बलधामा ईडी का था या कोई और बात थी या कोई और डील हुई है, यह राम जाने लेकिन अजब इत्तफाक यह था कि नीतीश के अपने आंगन में तुलसी का पौधा रोपते ही पूरे लालू कुनबे पर बलधामा की गाज गिरी. इन दिनों देश की राजनीति में रामायण का सा मंचन हो रहा है. संसद जय श्री राम के नारों से गूंज रही है. स्कूल, कालेजों, बसों और मेट्रो रेल तक में राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी वाला भजन गाया जा रहा है. दूसरी दीवाली तो 22 जनवरी को धूमधाम से मन ही चुकी है.

ताज़ी खबर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी की है जिस ने बजट की खामियों को ढक दिया है क्योंकि बजट में खूबी तो कोई होती नहीं और खामियों को नजरअंदाज करने की आदत अब अभक्तों को भी पड़ गई है. हेमंत सोरेन का गुनाह क्या था और कुछ है भी या नहीं, इस से किसी को कोई मतलब नहीं. यह मान लिया गया है कि समूचा विपक्ष (नीतीश जैसों को छोड़ कर) आसुरी टाइप का है, इसलिए उसे सत्ता तो सत्ता, कहीं भी रहने का अधिकार नहीं. उस की जगह जेल में है, सो एकएक कर सभी की मुश्कें कसी जा रही हैं जिस से रामराज्य की स्थापना में आड़े आ रहे जनता द्वारा चुने गए ये अड़ंगे साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करते दूर किए जा रहे हैं.

हेमंत सोरेन का असल गुनाह यह है कि वे आर्य संस्कृति से इत्तफाक नहीं रखते, वे आदिवासियों को हिंदू नहीं मानते और वे पोंगापंथ के भी हिमायती नहीं हैं, इसलिए उन्हें भी सबक सिखाया जा रहा है. अब देखना दिलचस्प होगा कि कविताओं और शेरोशायरी के जरिए आत्मविश्वास दिखा रहे हेमंत के इरादे हेमंत ऋतू तक भी टिक पाते हैं या नहीं. हालफ़िलहाल लग तो रहा है कि वे नीतीश कुमार की तरह डर कर समझौता नहीं करेंगे.

रामायण मंचन का एक दृश्य चंडीगढ़ मेयर चुनाव में भी देखने को आया. त्रेतायुग में जब राम ने बाली को धोखे से मारा था तब उस ने राम पर आरोप लगाते पूछा था कि राम, तुम तो भगवान हो, फिर तुम ने मुझे छल से क्यों मारा. उस ने तो राम को कपटी और अधर्मी तक कह दिया था. रामायण के एक श्लोक में वह कहता है-

न त्वामं विनिह्त आत्माम धर्म ध्वजम अधार्मिकम,

जाने पाप समाचारम तृने कृपम इव आवृतम.

अर्थात, मुझे ज्ञात नहीं था कि आप की आत्मा को मार डाला गया है. मुझे ज्ञात नहीं है कि आप धर्म के अधर्मी ध्वजवाहक हैं, मुझे ज्ञात नहीं है कि आप अच्छी तरह से ढके हुए भूसे की तरह कपटी हैं.

दम तोड़ते बाली ने कई बार राम को राघव कह कर सवाल पूछे हैं लेकिन आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्डा मीडिया के सामने बाली की तरह बता और पूछ रहे थे कि भाजपा ने देशद्रोह किया है. फर्जीवाड़े से हुई जीत कोई माने नहीं रखती. चंड़ीगढ़ मेयर चुनाव में भाजपा के मनोज सोनकर को 16 और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को महज 12 वोट मिले. क्योंकि आप कांग्रेस के 8 पार्षदों के वोट पीठासीन अधिकारी ने अवैध घोषित कर दिए थे. इस बाबत उन्होंने वह वीडियो भी मीडियाकर्मियों को दिखाया जिस में भाजपा अल्पसंख्यक मोरचे के पदाधिकारी रहे पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह कैसे भाजपा के मसीहा बनते आप व कांग्रेस के पार्षदों के वोट पर स्याही लगा रहा है.

मासूम राघव चड्डा के मुताबिक, भाजपा जब मेयर चुनाव में खुलेआम धांधली कर रही है तो आम चुनाव जीतने के लिए क्याकुछ नहीं करेगी. हकीकत वे भी जानतेसमझते हैं कि सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा कुछ भी कर सकती है. हालफ़िलहाल तो वह चुनचुन कर विरोधियों को ईडी वगैरह के जरिए अंदर कर रही है जिस से नरेंद्र मोदी के चक्रवर्ती सम्राट बन जाने के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा पकड़ने की जुर्रत कोई न करे. लोग खुद से ताल्लुक रखते मुद्दे बजट पर सवाल नहीं कर रहे. उन की उत्सुकता इस बात में है कि हेमंत सोरेन के बाद अब कौन तेजस्वी यादव या पहले अरविंद केजरीवाल या कोई और.

राहुल गांधी सरकार पर यह कहते हमलावर हैं कि भ्रष्टाचार में डूबी भाजपा सत्ता की सनक में लोकतंत्र को तबाह करने का अभियान चला रही है. जो प्रधानमंत्री के साथ नहीं गया वह जेल जाएगा. हेमंत सोरेन को इस्तीफ़ा देने को मजबूर करना संघवाद (आरएसएस वाला संघवाद नहीं) की धज्जियां उड़ाने जैसा है. इस लिहाज से तो नीतीश कुमार ने गलत कुछ नहीं किया बल्कि समझदारी दिखाई है कि कौन बुढ़ापे में जेल की चक्की पीसे, उस से तो बेहतर है कि जनता की सेवा करो, राम नाम भजो, उसी में सार और मोक्ष है.

देश गर्त में जाए, तो जाता रहे. लोग दिमागीतौर पर गुलाम होते हैं, तो होने दो. पैसा चंद हाथों में सिमट रहे, तो सिमटने दो. इन में और इन से हमारा क्या बिगड़ रहा है. जब जनता खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रही है तो भुगतेगी भी खुद. अब कोई जयप्रकाश या अन्ना हजारे पैदा नहीं हो रहा तो इस में किसी का क्या दोष. जब अधर्म, पाप और अत्याचार हद से ज्यादा बढ़ जाएंगे तब प्रभु स्वयं अवतार लेंगे.

वैसे, माहौल तो यह कहता है कि भगवान अवतार ले चुके हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकर्जिन खड़गे कुछ दिनों पहले ही देहरादून से कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी खुद को विष्णु का 11वां अवतार समझते हैं. वे चाहते हैं कि लोग हर सुबह देवताओं या गुरुओं के बजाय केवल उन के चेहरे पर ध्यान केंद्रित करें.

इस में कोई शक नहीं कि आसन्न चुनावों को ले कर नरेंद्र मोदी घबराए और डरे हुए हैं और इसी हड़बड़ाहट में तानाशाहों जैसा व्यवहार भी करने लगे हैं. लेकिन लोकतंत्र में सुकून देने वाली इकलौती बात यही है कि जनता देर से सही, कुछ नुकसान उठाने के बाद ही सही, सही चुनाव करने को मजबूर हो जाती है. 2014 में उस का मोदी को चुनने का फैसला गलत नहीं था क्योंकि तब नरेंद्र मोदी सुधार और रोजगार सहित भ्रष्टाचार से मुक्ति की बातें कर रहे थे लेकिन अब वे सत्ता के स्वाभाविक अहंकार और अहं ब्रह्मास्मि की फीलिंग का शिकार हो गए हैं ठीक वैसे ही जैसे कभी इंदिरा गांधी हो गई थीं, यह और बात है कि उन्होंने धर्म और पूजापाठ को अपनी ढाल नहीं बनाया था. इस गलती को मोदी ने सुधारा है, इसलिए वे थोड़ा लंबा खिंच रहे हैं.

अफसरों ने बनाया चुनावी बजट : पीएम योजनाओं पर दिखी खास मेहरबानी

Union Budget 2024 : वर्ष 2024 के आम चुनाव के पहले मोदी सरकार का यह अंतिम बजट है. इस में चुनावी जुमले को आर्थिक ढांचे में पेश करने का काम किया गया है. कुछ समय पहले अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जातीय गणना के मुद्दे को कुंद करने के लिए कहा था कि उन के लिए केवल 4 जातियां गरीब, युवा, महिला और किसान ही देश में हैं. कोई भी बजट अगर विकास के लिए नहीं है और कोई भी विकास अगर जनता के लिए नहीं है तो वह व्यर्थ है.

समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखो है, ‘भाजपा सरकार ने जनविरोधी बजटों का एक दशक पूरा कर के एक शर्मनाक रिकौर्ड बनाया है, जो फिर कभी नहीं टूटेगा क्योंकि अब सकारात्मक सरकार आने का समय आ गया है. यह भाजपा का ‘विदाई बजट’ है.’

पहले बजट नेता बनाते थे तो सामाजिकता का ध्यान रखा जाता था. आज का बजट अफसर बनाते हैं तो वे केवल आर्थिक ध्यान रखते है. देश का विकास तभी होगा जब अर्थ और समाज के बीच तालमेल होगा. आर्थिक बजट बनने से अमीर और अमीर जबकि गरीब और गरीब होते जाएंगे. इस बजट में बेरोजगारी को दूर करने की कोई स्पष्ट सोच नहीं दिख रही. बजट में केवल बयानबाजी होती दिखी है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट के बारे में कहा, ‘इस में गरीबों, महिलाओं, युवाओं और किसान यानी अन्नदाता पर फोकस किया गया है. उन की आकांक्षा और उन का कल्याण हमारी सब से बड़ी प्राथमिकता है. इन सभी चारों को सरकार का समर्थन मिलेगा. उन के सशक्तीकरण से देश आगे बढ़ेगा. पीएम मोदी भी इन्हें 4 जातियां बता चुके हैं जिन पर सरकार का फोकस है.’ इस से यह बात साफ हो गई है कि यह बजट केवल पीएम योजनाओं पर फोकस करते हुए चुनावी लाभ के लिए बनाया गया है.

वित्त मंत्री के बजट से साफ है कि यह बजट वित्त विभाग की जगह पीएमओ के द्वारा बनाया गया है. इस वजह से यह जनता की रुचि की जगह सरकारी दस्तावेज अधिक लग रहा है. जनता भी समझ नहीं पा रही है कि उस के लिए खुश होने जैसा क्या है? बजट पेश करने के पहले निर्मला सीतारमण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलने पहुंचीं. राष्ट्रपति ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दही खिला कर उन का स्वागत किया. किसी भी शुभ चीज से पहले भारतीय परंपरा में दही खिलाने की प्रथा रही है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना लगातार 6ठा बजट पेश किया. वे 5 पूर्ण बजट और एक अंतरिम बजट पेश कर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के क्लब में शामिल हो गई हैं. सीतारमण पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री हैं, जो जुलाई 2019 से अब तक 5 पूर्ण बजट पेश कर चुकी हैं. पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने सर्वाधिक 10 बार बजट पेश किए थे.

मोदी सरकार के 2014 में सत्ता संभालने के बाद वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी भाजपा के दिग्गज नेता अरुण जेटली को सौंपी गई थी. उन्होंने साल 2014-15 से 2018-19 तक लगातार 5 बार बजट पेश किए. जेटली के खराब स्वास्थ्य के कारण 2019 के आम चुनावों के पहले वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार पीयूष गोयल को सौंपा गया. उन्होंने एक फरवरी, 2019 को अंतरिम बजट पेश किया था.

2019 के आम चुनावों के बाद मोदी सरकार में वित्त विभाग का जिम्मा निर्मला सीतारमण को सौंपा गया. वे इंदिरा गांधी के बाद बजट पेश करने वाली दूसरी महिला भी बनीं. इंदिरा गांधी ने वित्त वर्ष 1970-71 के लिए बजट पेश किया था. यह बजट वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पेश होने वाला अंतरिम बजट लेखानुदान है. यह सरकार को अप्रैलमई के आम चुनावों के बाद नई सरकार आने तक कुछ निश्चित मदों में खर्च करने का अधिकार देगा.

खर्च का बढ़ाने वाला बजट

सरकार ने मोबाइल फोन सस्ते करने की घोषणा की है. यह जनता का खर्च बढ़ाने वाला काम है. सरकार ने अब यह मजबूरी बना दी है कि लोग सस्ते मोबाइल फोन की जगह पर महंगे फोन का प्रयोग करें. फोन का मुख्य काम बात करना होता है. इस के अलावा जरूरी मैसेज एक दूसरे तक पहुंच जाएं, इस के लिए 15 सौ से 2 हजार रुपए तक में आने वाले नौर्मल फोन के प्रयोग सब से अच्छा होता था. धीरेधीरे यह फोन स्मार्टफोन में बदल गया. इस की वजह से साइबर अपराध बढ गए. इस के साथ ही लोगों का खर्च बढ़ गया. 10 साल पहले 5 से 10 हजार रुपए में अच्छा स्मार्टफोन आता था. अब यह कीमत बढ़ कर 25 से 30 हजार रुपए हो गई है.

महंगे मोबाइल फोन की कीमत 2 लाख रुपए से भी ऊपर पहुंच गई है. ताज्जुब यह है कि इन की कीमत बढ़ गई जबकि इन की लाइफ कम हो गई. यह स्मार्टफोन एक से दो साल तक ही चलता है. मोबाइल फोन आज एक तरह से स्टेटस सिंबल हो गया है. सरकार के नियमकानूनों के चलते महंगे मोबाइल फोन जरूरी हो गए हैं.

अब सरकार मोबाइल पार्ट्स की इंपोर्ट ड्यूटी घटा कर जनता पर एहसान करने का दिखावा कर रही है. कस्टम एक्ट 1962 के सैक्शन 25 के तहत सरकार ने इस बजट में मोबाइल पार्टस पर इंपोर्ट ड्यूटी को 15 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दिया है. इस इंपोर्ट ड्यूटी कटौती के बाद देश में मोबाइल फोन का निर्माण सस्ता हो जाएगा और लोगों को सस्ते फोन मिल पाएंगे. बजट में हर तरफ इस बात पर ध्यान दिया गया है कि जनता लोन ले कर काम करे.

बचत योजनाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया गया है. पहले लोग बचत करते थे, फिर अपने काम करते थे. अब लोन ले कर अपने काम करते हैं. सरकार और बैंकों को ब्याज देते हैं. ऐसे में कई बार हालात बन जाते हैं कि कर्ज चुका न पाने की हालत में लोग आत्महत्या कर लेते हैं. आत्महत्या करने के मामलों में पहला नंबर आर्थिक होने लगा है. बजट में खर्च बढाने वाले प्रावधान अधिक किए गए हैं.

चुनावी है बजट

मोदी सरकार का यह बजट पूरी तरह से चुनावी है. सरकार ने जिन मुद्दों पर वोट लेने की रूपरेखा बनाई है, बजट में उन्हीं पर ध्यान दिया गया है. वित्त मंत्री ने कहा कि पीएम किसान योजना के तहत 11.8 करोड़ किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है. पीएम किसान योजना के तहत सरकार 3 समान मासिक किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपए का वित्तीय लाभ प्रदान करती है. यह पैसा देशभर के किसान परिवारों के बैंक खातों में ‘डीबीटी’ के जरिए डाला जाता है. फरवरी 2019 में अंतरिम बजट में इस की घोषणा की गई थी.

वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलने से उन की भोजन संबंधी चिंताएं खत्म हो गई हैं. उन्होंने लोकसभा में अंतरिम बजट पेश करते हुए कहा कि 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तो भारत भारी चुनौतियों का सामना कर रहा था और सरकार ने सही तरीके से चुनौतियों पर काबू पाया. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि उन की सरकार गरीब आबादी के लिए मुफ्त राशन योजना को 5 साल के लिए बढ़ाएगी. बजट पर पीएमओ की छाया साफ झलकती है.

वित मंत्री ने कहा कि मध्यवर्ग के लिए विशेष आवास योजना ले कर सरकार आएगी. किराए के घरों, झुग्गी बस्तियों एवं चाल में रहने वाले लोगों के लिए योजना बनेगी. ग्रामीण आवास योजना के तहत सरकार 3 करोड़ रुपए का लक्ष्य हासिल करने के करीब है. अगले 5 वर्षों में 2 करोड़ से अधिक घरों का निर्माण किया जाएगा. पीएम स्वनिधि से 78 लाख रेहड़ी-पटरी दुकानदार पीएम विश्वकर्मा योजना से भी लाभांवित होगे. देश में 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है, सरकार गरीबों को सशक्त बना रही है.

बजट के जरिए देश को यह भी बताया जा रहा है कि अगर मोदी सरकार वापस आई तो अगले 5 साल देश के लिए अभूतपूर्व विकास का समय होगा, विकसित भारत का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा. वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट पेश करते हुए कहा कि सरकार ने पीएम मुद्रा योजना के तहत कुल 22.5 लाख करोड़ रुपए के 43 करोड़ लोन दिए हैं. सीतारमण ने अपने चुनाव पूर्व बजट में कहा कि जनधन खातों के माध्यम से 34 लाख करोड़ रुपए के डायरैक्ट बैनिफिट ट्रांसफर से 2.7 लाख करोड़ रुपए की बचत हुई है. वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में महिलाओं को 30 करोड़ रुपए मुद्रा योजना ऋण की बाबत दिए गए हैं.

दिमाग में चिप फिट कर इंसान को रोबोट बनाने की कोशिश में एलन मस्क

इंसानी दिमाग को सदियों से धर्म की चाबुक से चलाया जा रहा है. पूरी पृथ्वी पर अलगअलग भूखंड में जितने भी धर्म मनुष्य द्वारा गढ़े गए, पीढ़ी दर पीढ़ी उन के नियमों का पालन जबरन कराया जाता रहा है. धर्म की घुट्टी जन्म लेने के साथ ही पिलाई जाने लगती है और यह घुट्टी हम मृत्यु तक पीते हैं. धर्म के आगे सोचविचार निषिद्ध है. इस के आगे सारे तर्कवितर्क फेल हैं. आस्था पर बहस वर्जित है. सवाल पूछने की पूरी तरह मनाही है. कुल जमा यह कि अपने दिमाग का इस्तेमाल ही नहीं करना है. जो बताया गया है उस का आंखें मूंद कर पालन करना है.

कोई पूछ नहीं सकता कि ईश्वर कहां है? कौन है? कैसा है? किस ने देखा उसे? किसी से मिलता क्यों नहीं? डरता है क्या? अकेले दम पर इतनी बड़ी दुनिया बना ली तो अपना घर बनाने की जिम्मेदारी इंसान पर क्यों छोड़ दी? अभी कहां रह रहा है? दुनियाभर के अलगअलग धर्मों में उस के लाखों घर हैं तो एकसाथ इतने घरों में रहता कैसे है? इस तरह के लाखों सवाल हैं जिन के जवाब धर्म और धर्म को पैदा कर के उसे ढोने वालों के पास नहीं हैं, इसीलिए उन्होंने पूरी दबंगई से सवालों पर रोक लगा रखी है. धर्म ने हमारे दिमाग को कैद कर रखा है. वो जैसा चाहता है वैसे हमारे दिमाग को चलाता है. जिस दिशा में चाहता है उस दिशा में चलाता है मगर हमें खुद हमारे दिमाग का इस्तेमाल नहीं करने देता है.

आजकल धर्म के साथसाथ सोशल मीडिया ने हमारे दिमाग पर कब्जा जमा लिया है. सोशल मीडिया धर्म के ढोंग-ढकोसलों को हमारे दिमागों में और ज़्यादा पुख्ता करता है. साथ ही, सोशल मीडिया पूरे समाज की सोच और गति को निर्धारित करता है. सोशल मीडिया एकजैसी सोच पैदा कर के बड़ेबड़े समूह बना रहा है. उन समूहों को गति दे रहा है. समूहों को आपस में लड़वा रहा है. हम सोशल मीडिया पर चस्पां हर चीज को सच मान रहे हैं, उन पर विश्वास कर रहे हैं. उस के अनुसार हम काम कर रहे हैं. हम ने अपने दिमाग का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया है.

अब साइंस और तकनीक हमारे दिमाग पर कब्जा जमाने के लिए आगे बढ़ रही हैं. इंसान को रोबोट बनाने के लिए चिप बनाई जा रही हैं. ये चिप दिमाग में लगेंगी और चिप हमें इंस्ट्रक्शन देंगी कि क्या करना है और क्या नहीं. पहले इंसान ने रोबोट बनाए, अब इंसान को ही रोबोट बनाने की तैयारी है.

वैज्ञानिक एलन मस्क की न्यूरोटैक्नोलौजी कंपनी न्यूरालिंक ने दावा किया है कि ऐसा बस एक चिप के जरिए संभव होगा. जिन के दिमाग में चिप लगाईं जाएगी वो लोग बिना हाथ लगाए सिर्फ अपनी सोच से ही कंप्यूटर और मोबाइल जैसी चीजें चला सकेंगे. हालांकि कहा जा रहा है कि ये चिप लकवाग्रस्त रोगियों, मिर्गी के मरीजों या पार्किंसन बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए डैवलप की जा रही हैं, यानी जिन के शरीर के अंगों पर उन के दिमाग का कंट्रोल नहीं रह गया है, उन के दिमाग में चिप लगा कर उन के रोजमर्रा के कामों को आसान किया जाएगा, लेकिन सोचिये जब दिमाग में लगने वाली चिप बड़ी संख्या में बनने लगेंगी तो क्या ये मानव जीवन और पृथ्वी के अस्तित्व के लिए सुरक्षित होंगी?

आखिर चिप में क्या भरा गया है, यह तो उस को बनाने वाला और उस को कंट्रोल करने वाला ही जानता होगा. यह चिप जब आप के दिमाग में फिट कर दी जाएगी तो उस का कंट्रोल किस के हाथ में होगा? क्या उस डाक्टर के हाथ में या चिप बनाने वाले वैज्ञानिक के हाथ में? चिप से अगर आप के दिमाग को इंस्ट्रक्शन मिले कि अमुक व्यक्ति की हत्या कर दो, या अमुक जगह आग लगा दो, या अमुक जगह बम गिरा दो तो उस गुनाह के गुनाहगार आप होंगे, या वो डाक्टर या वो वैज्ञानिक? इन बातों पर क्या अपने दिमाग का इस्तेमाल इंसान को नहीं करना चाहिए?

अभी भले चिप को बनाने के पीछे रोगमुक्ति को कारण बताया जा रहा हो मगर एक बार जब इन का प्रोडक्शन बड़े पैमाने पर शुरू हो जाएगा तो हम मनुष्य, अन्य जीवों और पृथ्वी पर आने वाले खतरे को कैसे रोक पाएंगे?

एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक का कहना है की पहली बार उस ने इंसानी दिमाग में वायरलैस कंप्यूटर चिप को प्रत्योपित करने में सफलता हासिल कर ली है. जिस के जरिए लकवाग्रस्त व्यक्ति के हाथोंपैरों को चलाना संभव होगा. दावा तो यह भी है कि इस की बदौलत किसी नेत्रहीन की आंखों में रोशनी भी वापस लाई जा सकती है. यही नहीं, इस के जरिए बधिर लोग सुन भी सकते हैं. सोशल मीडिया मंच एक्स पर एलन मस्क ने लिखा कि जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में यह चिप लगाई गई है वह तेजी से स्वस्थ हो रहा है.

न्यूरालिंक प्रत्यारोपण प्रक्रिया के तहत दिमाग में इलैक्ट्रोड प्रत्यारोपित करते हैं. इन इलैक्ट्रोड की मदद से मिर्गी और पार्किंसन के मरीजों को लाभ होने का दावा किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि चिप की मदद से लकवाग्रस्त रोगी अपने आसपास के लोगों से बात कर सकते हैं. न्यूरालिंक ने अपने इस उत्पाद को टैलीपैथी नाम दिया है. न्यूरालिंक इंसानी दिमाग के पैदा होने वाले सिग्नल समझ रही है. मस्क भविष्य में इस में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के इस्तेमाल की योजना बना रहे हैं.

हालांकि बंदरों पर जब उन्होंने इस चिप का प्रयोग किया तो काफी होहल्ला मचा था, पर एलन ने सफाई दी कि इस से किसी बंदर की मौत नहीं हुई. होहल्ला मचने के बाद जान का ख़तरा कम करने के लिए इस का परीक्षण बीमार बंदरों पर होने लगा. पर अब वे मनुष्य पर भी परीक्षण शुरू कर चुके हैं. मनुष्य पर परीक्षण का उद्देश्य कंपनी को अपने डिवाइस के लिए सही डिज़ाइन तैयार करने में मदद करना है. न्यूरालिंक का कहना है कि इस साल वह 11 सर्जरी करेगी.

अलगअलग जानवरों पर प्रत्यारोपण के परीक्षण के बाद अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने पिछले साल मई में मनुष्यों पर इस के परीक्षण की अनुमति न्यूरालिंक को दी थी मगर फिजीशियन कमेटी फौर रिस्पौन्सिबल मैडिसिन जैसे समूहों ने तभी इस की कड़ी आलोचना की थी. उन का आरोप था कि न्यूरालिंक द्वारा जानवरों पर की गईं अनेक सर्जरी विफल हुई हैं. गौरतलब है कि इलैक्ट्रोड को पहली बार 2004 में सिंक्रोन और प्रिसिजन न्यूरोसाइंस कंपनी ने प्रदर्शित किया था, पर वे ज्यादा सफल नहीं हुए थे.

न्यूरालिंक एलन मस्क की स्टार्टअप कंपनी है जो 2017 में शुरू की गई. 2019 तक इस में 15.8 करोड़ डौलर की फंडिंग हुई. इस में अकेले एलन मस्क के 10 करोड़ डौलर लगे हैं. मस्क की ब्रेन-चिप कंपनी को मानव परीक्षण के लिए इंडिपेंडेंट इंस्टिट्यूशनल रिव्यू बोर्ड से रिक्रूटमैंट की मंजूरी मिली थी. परीक्षण उन लोगों पर हो रहा है जो सर्वाइकल स्पाइनल कौर्ड में गंभीर चोट के कारण बिस्तर पर पड़े हैं.

एलन बड़ी संख्या में लोगों पर परीक्षण करने के लिए उतावले हैं. इस के लिए उन्होंने परीक्षण में शामिल होने के लिए लोगों का आह्वान किया है. अमीर आदमी एलन मस्क ने जाहिर है, इस के लिए बड़ी धनराशि का लालच रखा होगा. उन्होंने कुछ शर्तें भी रखी हैं. जो लोग परीक्षण में शामिल होना चाहते हैं उन की उम्र कम से कम 22 साल होनी चाहिए. परीक्षण में 6 साल का समय लगेगा. परीक्षण में शामिल लोगों को यात्रा भत्ता और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी. अगर अध्ययन में सबकुछ ठीक रहा तो इस चिप को बाजार में आने में 5 से 10 साल का समय लगेगा.

सोचिए दिमाग में चिप फिट करवा कर बाजारों में घूमने वाले लोग आप से बात करते समय, आप से व्यवहार करते समय किस के द्वारा संचालित हो रहे होंगे. क्या एलन मस्क दुनिया को अपना रोबोट बनाने की राह पर बढ़ रहे हैं? सो, आप अपना दिमाग इस्तेमाल करें. सरिता पढ़ें. आप अपने को धर्म और सोशल मीडिया से संचालित होना बंद करें वरना एक दिन इन के जरिए एलन मस्क और उस की तरह की सोच रखने वाले राजनीतिक लोग आप के दिमाग में चिप फिट करवा कर आप को अपना रोबोट बनाने में सफल हो जाएंगे.

पौलीसिस्टिक ओवरी डिजीज क्या होती है, जानें इसके कारण और बचाव के उपाय

पीसीओडी यानी पौलीसिस्टिक ओवरी डिसीज (पीसीओडी) एक स्थिति है, जो महिलाओं में हार्मोनों के स्तर को प्रभावित करती है. इस में गर्भाशय में कई छोट- छोटे सिस्ट बन जाते हैं इसीलिए इसे पौलीसिस्टिक ओवरी डिसीज कहते हैं. जिन महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है उन में पुरूष हार्मोनों का स्राव सामान्य से अधिक होता है. यह समस्या 15 से 44 वर्ष की महिलाओं में हो सकती है क्योंकि इसी दौरान उन्हें पीरियड्स आते हैं और वे प्रेग्नेंट होती हैं.

अमूमन 24 से 25 प्रतिशत महिलाएं इस की शिकार होती हैं. कुछ सालों पहले तक यह समस्या 30 से 35 साल के ऊपर की महिलाओ में ज्यादा होती थी परन्तु अब कम उम्र की लड़कियों में भी यह दिखने लगा है. पीसीओडी महिलाओं में बांझपन का सबसे प्रमुख कारण है क्योंकि यह फीमेल हार्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रौन के स्राव को प्रभावित करता है.

क्या हैं पीसीओडी के लक्षण

  1. पीरियड्स समय पर न होना

समय पर मासिक धर्म का न आना, छोटी उम्र में ही अनियमित पीरियड्स आना आदि इस का सबसे बड़ा संकेत होता है.

  1. अत्यधिक रक्तस्त्राव होना

जब पीरियड्स आता है तो सामान्य से अधिक दिनों तक आता है और रक्तस्त्राव भी अधिक होता है.

  1. अचानक वज़न बढ़ जाना

जिन महिलाओं को पीसीओडी होता है उन में से आधे से अधिक महिलाओं का वजन औसत से अधिक होता है या वे मोटी होती हैं. उन्हें वजन कम करने में भी परेशानी आती है.

4.  अनचाहे स्थानों पर बालों का विकसित होना

पीसीओडी से ग्रस्त अधिकतर महिलाओं के चेहरे और शरीर के अन्य भागों जैसे छाती, पीठ और पेट पर बाल उगने लगते हैं. कईं महिलाओं में अनचाहे बालों की समस्या अत्यधिक बढ़ जाती है जिसे हिरसुटिज़्म कहते हैं.

  1. मेल पैटर्न बाल्डनेस

इस बीमारी में महिलाओं के शरीर और चेहरे पर तो अनचाहे बाल उगने लगते हैं लेकिन सिर के बाल अत्यधिक झड़ने लगते हैं.

  1. त्वचा पर गहरे रंग के चकते पड़ जाना

शरीर की त्वचा पर जगहजगह गहरे रंग के चकते पड़ने लगते हैं. यह उन स्थानों पर अधिक पड़ते हैं जहां त्वचा फोल्ड होती है जैसे गर्दन पर, स्तनों के नीचे आदि.

कारण

कुछ ऐसे सामान्य कारण हैं जो पीसीओडी की चपेट में आने का खतरा बढ़ा देते हैं:

  1. शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना.
  2. वजन सामान्य से अधिक बढ़ जाना.
  3. अनुवांशिक कारण (अगर आप की मां और बहन को यह समस्या है तो आप के इस की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है).
  4. अत्यधिक तनाव (इस के कारण हार्मोन असंतुलन की आशंका बढ़ जाती है).

उपचार

पीसीओडी का वैसे तो कोई स्थायी उपचार नहीं है लेकिन जीवनशैली में परिवर्तन ला कर और कुछ जरूरी उपाय कर के इस के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है;

वजन कम करें

अगर आप अपने वज़न को 5% भी कम कर लेंगी तो पीसीओडी की गंभीरता कम होने लगेगी. वजन कम होने से प्रैग्नैंसी की संभावना भी बढ़ जाती है.

व्यायाम

व्यायाम करने से आप का वजन कंट्रोल में रहेगा और पीसीओडी की वजह से होने वाली इन्सुलिन रेसिसटेंट की समस्या भी कम हो जाएंगी. आप ब्रिस्क वाक, दौड़ना, तैराकी या एरोबिक व्यायाम कर सकती है.

संतुलित आहार

अपने खाने में पिज़्ज़ा, बर्गर जैसे शरीर के लिए नुकसानदायक आहार लेने की जगह हरे पत्तेदार सब्जी और फलों को शामिल करें.

दवाईयां

हार्मोन के स्राव को संतुलित करने वाली, पीरियड्स को नियमित करने वाली, मुंहासों, अनचाहे बालों और पिग्मेंटेशन का उपचार करने वाली विभिन्न दवाईयां आती हैं.

सर्जरी

हिरसुटिज़्म (अनचाहे बालों के अत्यधिक विकास) के लिए लेजर उपचार उपलब्ध है. गर्भाश्य से सिस्ट निकालने के लिए लैप्रोस्कोपिक सर्जरी भी की जाती है जिसे लैप्रोस्कॉपिक ओवेरियन ड्रिलिंग कहा जाता है. इस सर्जरी में लेज़र या अत्यधिक नुकीली सुईंयों द्वारा अंडाशय के सिस्ट में छेद किया जाता है.

आईवीएफ

जो महिलाएं गर्भाश्य में कई सिस्ट बनने के कारण मां नहीं बन पाती हैं उन के लिए असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक के इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ) के द्वारा संतान प्राप्ति करना संभव है.

पीसीओडी के कारण होने वाली स्वास्थ्य जटिलताएं

बांझपन

पीसीओडी के कारण शरीर में एंड्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

एंडोमेट्रियल कैंसर

पीसीओडी के कारण अंडोत्सर्ग नहीं हो पाता है जिस से गर्भाश्य की सब से अंदरूनी परत निकल नहीं पाती है और वह समय बीतने के साथसाथ मोटी होती जाती है. गर्भाश्य की सब से अंदरूनी परत का मोटा हो जाना एंडोमेट्रियल कैंसर की चपेट में आने का खतरा बढ़ा देता है.

मेटाबालिक सिंड्रोम

पीसीओडी की शिकार अधिकतर महिलाएं मोटी होती हैं. मोटापे और पीसीओडी दोनों के कारण रक्तदाब, रक्त में शूगर और बुरे कोलेस्ट्राल का स्तर बढ़ जाता है. इन फैक्टर्स को एकसाथ मेटाबालिक सिंड्रोम कहते हैं और इन के कारण हृदय रोग, डायबिटीज़ और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

अवसाद

पीसीओडी में हार्मोनों के स्तर में परिवर्तन आने, बांझपन, अनचाहे बालों के विकसित होने और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होने के कारण कईं महिलाएं अवसाद और एंग्जाइटी की शिकार हो जाती हैं.

कब करें डाक्टर से संपर्क:

  1. दो महीने से आप को पीरियड्स नहीं आ रहें हैं लेकिन आप प्रैग्नैंट नहीं हैं.
  2. आप 12 महीने से अधिक समय से गर्भधारण करने का प्रयास कर रही हैं लेकिन सफल नहीं हो पा रही हैं.
  3. वज़न कम करने के प्रयासों के बावजूद आप का वज़न बढ़ता ही जा रहा है.
  4. आप को डायबिटीज के लक्षण दिखाई दें जैसे अत्यधिक भूख या प्यास लगना, नजर धुंधली हो जाना या वजन बहुत कम हो जाना.

इंदिरा आईवीएफ अस्पताल की डा. सागरिका अग्रवाल से की गई बातचीत पर आधारित

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