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हौलीडे

यह कहा जाता है कि ‘अ सोल्जर इज नैवर औफ ड्यूटी’. ‘हौलीडे’ नामक इस फिल्म में अक्षय कुमार एक सोल्जर की भूमिका में है और चौबीसों घंटे वह अपने मिशन को पूरा करने में लगा रहता है यानी नैवर औफ ड्यूटी.

टाइटल से तो यह फिल्म छुट्टियां मनाने और मौजमस्ती करने वाली लगती है लेकिन ऐसा नहीं है. फिल्म आतंकवाद पर है. आतंकवाद खुलेआम वाला नहीं, गुपचुप वाला यानी स्लीपर्स सैल. स्लीपर्स सैल हमारेआप के बीच रहने वाले ऐसे लोग होते हैं जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होते हैं, उन्हें यह पता नहीं होता कि उन का इस्तेमाल कौन किसलिए कर रहा है. स्लीपर्स सैल के लोग कोई भी हो सकते हैं, आप का दूध वाला, ड्राइवर, नौकर, दुकानदार, दफ्तर का बौस…कोई भी हो सकता है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि भारतीय रक्षा मंत्रालय का जौइंट सैके्रटरी स्लीपर्स सैल का मुखिया है.

‘हौलीडे’ तमिल फिल्म ‘तुप्पाकी’ की रीमेक है. इस फिल्म के निर्देशक ए आर मुरगादास ने 6 साल पहले आमिर खान की फिल्म ‘गजनी’ का निर्देशन किया था. ‘गजनी’ और ‘हौलीडे’ में काफी फर्क है. ऐक्शन थ्रिलर दोनों फिल्में हैं लेकिन निर्देशक ने ‘हौलीडे’ में ऐक्शन के साथसाथ हास्य और रोमांस को भी डाला है. जरूरी है कि हास्य और रोमांस होगा तो गाने होंगे ही. अब आप ही बताइए, आतंकवाद वाली फिल्म में भला गानों का क्या काम. गाने कहानी के प्रवाह में बाधा ही पैदा करते हैं.

फिल्म की कहानी बहुत बढि़या नहीं है लेकिन फ्लैट भी नहीं है. कैप्टन विराट बक्शी (अक्षय कुमार) फौज में है. वह जम्मू में तैनात है. 40 दिनों के हौलीडे पर वह मुंबई आता है. उस के घर वाले उसे एक लड़की साहिबा (सोनाक्षी सिन्हा) दिखाने ले जाते हैं लेकिन विराट उसे रिजैक्ट कर देता है. साहिबा उसे बहुत सीधीसादी लगती है. अगले दिन शहर में हो रहे एक बौक्ंिसग मुकाबले में वह साहिबा को बौक्ंिसग करते देखता है तो अपना इरादा बदल लेता है.

उन्हीं दिनों मुंबई में आतंकवादियों द्वारा एक साजिश रची जा रही थी. एक जबरदस्त बम धमाके में स्कूली बच्चों की बस के परखचे उड़ जाते हैं. अपने दोस्त पुलिस इंस्पैक्टर (सुमित राघवन) के साथ विराट एक आतंकवादी को पकड़ता है. उसी से विराट को जानकारी मिलती है कि मुंबई में 12 जगहों पर बम धमाके होने हैं. विराट का सामना लेटैस्ट तकनीक में माहिर आतंकवादियों के सरगना (फ्रेडी दारूवाला) से होता है, जो पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को खुश करने में लगा है. विराट पहले तो एकएक कर इन स्लीपर्स सैल के तमाम लोगों को मार गिराता है. अंत में इस सैल के सरगना को भी खत्म करता है. छुट्टियों में वह साहिबा से सगाई कर ड्यूटी पर लौट जाता है.

फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी इस की लंबाई है. लगभग 3 घंटे की इस फिल्म को जबरदस्ती खींचा गया है. अक्षय कुमार ने ऐक्शन दृश्य इस तरह किए हैं जैसे वह निर्देशक पर एहसान कर रहा हो.  गोविंदा ने कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है.

सोनाक्षी के हिस्से में कुछ सीन ही आए हैं. उस ने खानापूरी ही की है. फ्रैडी दारूवाला का काम काफी अच्छा है. सुमित राघवन प्रभावित नहीं कर सका. फिल्म का निर्देशन परंपरागत है. निर्देशक ने गति ढीली नहीं होने दी है. गीतसंगीत पक्ष साधारण है. छायांकन अच्छा है.

महिलाओं को मिले सम्मान : सीमा बिस्वास

‘बैंडिट क्वीन’, ‘खामोशी’, ‘हजार चौरासी की मां’, ‘समर’, ‘दीवानगी’, ‘कंपनी’ आदि फिल्मों के जरिए अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकीं सीमा बिस्वास को चुनौतीपूर्ण काम करना पसंद है. अपने कैरियर के बारे में उन्होंने खुल कर बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश :

आप ने हमेशा लीक से हट कर फिल्मों में काम किया, इस की वजह?

मैं अर्थपूर्ण फिल्मों में काम करना पसंद करती हूं, जिस से समाज को कुछ सीख मिले. मेरी पिछले दिनों रिलीज फिल्म ‘मंजूनाथ’ में भी ऐसी ही बात थी. सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म को हमारे देश में दिखाया जाना जरूरी था इसलिए मैं ने यह फिल्म की.

आप का यहां तक पहुंचना कितना मुश्किल रहा?

मैं असम के एक छोटे से शहर तलबाड़ी की रहने वाली हूं. मेरा पूरा परिवार हमेशा कला के क्षेत्र से जुड़ा रहा है. मेरी मां मीरा बिस्वास एक नामचीन महिला रंगकर्मी हैं. जब मैं छोटी थी तो थिएटर ग्रुप ने असम में मुझे अभिनय के लिए बुलाया. मैं ने काम किया, सब को मेरा अभिनय पसंद आया. तब से मुझे इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली. पर मेरी मां हमेशा शिक्षा को अहमियत देती थीं. गे्रजुएशन के बाद उन्होंने मुझे दिल्ली के एनएसडी में 3 साल का कोर्स करने की अनुमति दी. वहां मैं ने पढ़ाई के दौरान कई बड़ेबड़े कलाकारों के साथ नाटकों में काम किया. काफी साल बाद एक दिन फिल्म निर्मातानिर्देशक शेखर कपूर एक शो के दौरान मुझ से मिले और ‘बैंडिट क्वीन’ का औफर दिया.

‘बैंडिट क्वीन’ में काम करने के बाद आप काफी चर्चा में रहीं, क्या आप को इस इमेज से बाहर निकलने में समय लगा?

हां, समय अवश्य लगा क्योंकि आप जैसी फिल्म से काम शुरू करते हैं वैसी आप की इमेज बन जाती है. जब शेखर कपूर मेरे पास आए और स्क्रिप्ट सुनाई तो कलाकार की दृष्टि से मुझे वह बहुत अलग और आकर्षक लगी. क्योंकि तब तक मैं बहुत सारे नाटकों में काम कर चुकी थी. पर बोल्ड सीन की जब बात आई तो मैं ने करने से मना कर दिया. शेखर कपूर ने समझाया कि यह लड़की नहीं बल्कि एक मांस का लोथड़ा है जिस के साथ नाइंसाफी हुई है पर मैं ने सहज न होने की वजह से बौडीडबल का सहारा लिया. इस के बाद मुझे काफी समय लगा उस इमेज से निकलने में. लेकिन मैं ने आज तक कई अच्छी और अलग तरह की फिल्में कीं. मैं ने अपनी इमेज को कभी कैश नहीं किया.

आप किस तरह की फिल्मों को अधिकतर चुनती हैं?

फिल्म कैसी भी हो, अगर स्क्रिप्ट रुचिकर है, दिल को छूती है तो हां कर देती हूं. कई फिल्मों में मेरी भूमिका छोटी थी मगर प्रभावशाली थी. निर्देशक और कलाकार के समन्वय को भी देखती हूं. ‘बैंडिट क्वीन’ के बाद उस तरह की कई फिल्में मेरे पास आईं, लोगों ने कहा ‘बैंडिट क्वीन’ पूरी कहानी नहीं है, हम पूरी फिल्म बनाना चाहते हैं. पर मैं ने मना कर दिया कि मैं 4-5 साल तक वैसी फिल्म नहीं करूंगी. ‘बैंडिट क्वीन’ को करने में काफी मेहनत लगी थी. बारबार वैसी ही भूमिका नहीं करना चाहती थी.

फिल्मों में बोल्ड सीन करना किसी कलाकार के लिए कितना मुश्किल होता है?

उस वक्त तो ‘बैंडिट क्वीन’ में मैं ने वह सीन नहीं किया था. लेकिन 150 से 200 कू्र मैंबरों के बीच में ऐसे भावुक दृश्य को भाव के साथ फिल्माना आसान नहीं होता.

असम के छोटे शहर से मुंबई जैसे बड़े शहर में आ कर रहना कितना मुश्किल था?

मैं बहुत ही शर्मीली हूं. मेरे घर में हमेशा बड़ेबड़े कलाकार आतेजाते रहते थे. उस समय मैं रसोई में चली जाती थी. मैं इंट्रोवर्ट हूं. अभी भी मैं किसी पार्टी में नहीं जाती. घरेलू हूं. जो भी काम मुझे मिलता है उस पर अधिक केंद्रित रहती हूं. क्या पहना है या कहां जा रही हूं, उस पर कभी नजर नहीं रखती. इतना अवश्य देखा कि असम में जो महिलाओं को सम्मान मिलता है वह यहां नहीं मिलता था. खासकर दिल्ली में अनुभव बहुत खराब था. बहुत बुरा लगता था पर मैं अपने काम के अलावा किसी दूसरी बात पर ध्यान नहीं देती.

ग्लैमर वर्ल्ड में रहने के लिए क्या जरूरी है?

यहां सिर्फ ‘लुक’ से काम नहीं चलता, अभिनय आना चाहिए, साथ ही मेहनत और ईमानदारी बहुत आवश्यक है.

अभिनय के अलावा क्या प्रोड्यूसर या निर्देशक बनना चाहती हैं?

प्रोड्यूसर बनने के लिए मेरे पास इतना पैसा नहीं है. पर निर्देशक शायद बनूं, क्योंकि हर दृश्य को करते वक्त मैं कुछ अलग महसूस करती हूं. निर्देशक बनने के लिए पूरी फिल्म को करने की हिम्मत रखनी पड़ती है. तभी एक फिल्म का बनना संभव होता है.

आगे और क्याक्या कर रही हैं?

अभी एक आस्ट्रेलियन फिल्म पूरी की है. ‘चार फुटिया छोकरे’ नाम की एक फिल्म कर रही हूं. इस के अलावा थिएटर में तो काम करती ही रहती हूं.

महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार आया है?

महिलाएं आज किसी अत्याचार को चुपचाप नहीं सहतीं. पुलिस और कानून का सहारा लेती हैं. उन्हें अपने अधिकार पता हैं. पर समाज की सोच को अभी और बदलने की आवश्यकता है. इस के अलावा अपराधी को जल्दी और कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि वे अपराध करने से डरें. किसी भी घटना के पीछे समाज, परिवार और व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है. किसी एक को दोषी ठहराना ठीक नहीं.

हौकी इंडिया की धमकी, पैसा नहीं तो खेल नहीं

एक तरफ खेल को बढ़ावा देने के लिए सरकार बड़ीबड़ी बातें करती है वहीं दूसरी तरफ हौकी इंडिया ने सरकार को धमकी दी है कि अगर पर्याप्त धनराशि मुहैया न कराई तो राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पुरुष और महिला टीम को नहीं भेजा जाएगा.

हौकी इंडिया के महासचिव नरेंद्र बत्रा का कहना है कि भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई ने उन्हें सूचित किया है कि 31 मार्च तक के लिए उन के पास 31 लाख रुपए बचे हैं. इस धनराशि से टीम हौकी को एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए नहीं भेजा जा सकता है.

बत्रा का कहना है कि हमें एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और भारत में चैंपियन ट्रौफी में हिस्सा लेना है और इस के लिए हम ने साई को वर्ष 2014-15 के लिए 38 करोड़ रुपए का बजट दिया था. लेकिन उन्होंने महज 10 करोड़ रुपए ही दिए जिन में से अप्रैल से ले कर जून तक 9.69 करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हैं. अब इतनी कम धनराशि में भला हौकी टीम को खेलों के लिए कैसे भेजा जा सकता है, जबकि पिछले वर्ष 24 करोड़ रुपए दिए गए थे.

एक ओर जहां क्रिकेट की दुनिया में  एक खिलाड़ी पर लाखोंकरोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय खेल हौकी के पास इतना पैसा नहीं है कि वह राष्ट्रमंडल व एशियाई खेलों में शिरकत कर सके. इस से शर्मनाक बात हौकी के लिए और क्या होगी.

सुआरेज ने किया फीफा को फीका

दुनियाभर में इन दिनों फीफा वर्ल्ड कप की खुमारी छाई हुई है. जिन मुल्कों की टीमों ने फीफा में शिरकत की है वे तो लुत्फ उठा ही रहे हैं, भारत जैसे कई मुल्क बिना अपने देश की टीमों की परवा किए फुटबाल के इस कार्निवाल में पूरी तरह से रमे हुए हैं.

इस दिलचस्प मुकाबले में बड़े उलटफेर के साथसाथ कुछ हरकतें भी ऐसी हुईं कि जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उरुग्वे और इटली के बीच दिलचस्प मुकाबला चल रहा था, प्रशंसक यह तय नहीं कर पा रहे थे कि जीत किस की होगी. इसी बीच उरुग्वे के लुईस सुआरेज ने इटली के डिफैंडर जार्जियो चेलिनी के कंधे पर दांत गड़ा दिए. मैच के दौरान रैफरी से तो सुआरेज बच गए लेकिन कैमरे से नहीं बच पाए. फीफा ने इसे गंभीरता से लेते हुए सुआरेज पर 9 मैच और 4 महीने के लिए फुटबाल की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी. मजेदार बात तो यह है कि भले ही ज्यादातर प्रशंसकों को मालूम नहीं होगा लेकिन यह बात सट्टेबाजों को मालूम जरूर थी क्योंकि सट्टेबाज पहले ही सट्टा लगा चुके थे कि इस बार सुआरेज का शिकार कौन होगा.

हालांकि फीफा वर्ल्ड कप में इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं. वर्ष 2010 में औटमन बक्कल उस के बाद ब्रैनिस्लाव इवानोविच के साथ भी ऐसा ही हुआ था. दांत गड़ाने के अलावा वर्ष 2006 में फ्रांस के कप्तान जिनेदिन जिदान ने इटली के मार्को मातेरात्जी की छाती पर अपना सिर दे मारा था.  इसी तरह वर्ष 1990 में वर्ल्ड कप के दौरान नीदरलैंड के फ्रैंक रिकौर्ड ने पश्चिमी जरमनी के रूडी वौलर पर थूक दिया था. वर्ष 2010 में फाइनल मुकाबले में नीदरलैंड के खिलाड़ी नाइजेल डी जोंग को स्पेन के साबी एलोंसो पर छाती के बराबर किक करने के लिए पीला कार्ड दिखा कर बाहर कर दिया गया था. ऐसी एक नहीं कई घटनाएं घट चुकी हैं.

बहरहाल, भले ही उरुग्वे ने वह मैच जीत लिया लेकिन सुआरेज की हरकत ने फीफा को कहीं न कहीं फीका तो जरूर कर ही दिया क्योंकि उस जीत की चर्चा कम और सुआरेज की हरकत की चर्चा कुछ ज्यादा ही रही

पाठकों की समस्याएं

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 7 वर्ष हो चुके हैं. मेरी और मेरे पति की उम्र में 7 वर्ष का अंतर है. उन की सैक्स के प्रति रुचि कम रहती है और वे चाहते हैं कि सैक्स में मैं ही पहल करूं, जो मैं करती भी हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या हमारी उम्र में रोज सैक्स कर सकते हैं. इस के अलावा मेरी एक समस्या यह भी है कि मेरे पति मुझ से अपना मोबाइल फोन शेयर नहीं करते. मुझे डर है कि कहीं उन का कोई अफेयर तो नहीं चल रहा? मैं असमंजस में हूं.

पहली बात आप की और पति की उम्र में 7 वर्ष का अंतर कोई माने नहीं रखता. यह सामान्य बात है. कई सफल विवाहित जोड़ों में तो इस से भी अधिक आयु का अंतर रहता है. यह आप का मात्र वहम है कि उम्र का अंतर उन की सैक्स के प्रति अरुचि का कारण है और अगर वे चाहते हैं कि सैक्स में आप पहल करें तो इस में भी कोई बुराई नहीं है. यह अच्छी बात है कि आप पहल करती हैं. सैक्स कितनी बार करें, इस बात का भी उम्र से कोई लेनादेना नहीं है. जहां तक पति द्वारा आप से मोबाइल शेयर न करने की बात है, आप बेवजह बातों को बढ़ा रही हैं. पतिपत्नी के बीच नजदीकी के साथ स्पेस यानी दूरी भी जरूरी है. आप क्या उन के फोन से उन की जासूसी करना चाहती हैं? अपने मन से बेवजह का शक निकाल दीजिए और पति पर विश्वास कीजिए.

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. घर की आर्थिक परिस्थितियों के कारण मैं ने नौकरी करनी प्रारंभ कर दी. वहां एक लड़के से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. उसी दौरान किसी बात पर मेरे परिवार में झगड़ा हुआ और मैं ने नीद की गोलियां खा लीं. जब मेरे दोस्त को इस बात का पता चला तो उस ने मेरी मां से हमारी शादी के बारे में बात कर ली. और पिछले 3 सालों से हम पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं पर पिछले कुछ दिनों से वह बदल गया है. मुझ पर शक करने लगा है, लड़ाईझगड़ा करता है. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं? सब घर वालों की मरजी से हुआ.

आप के दोस्त ने आप की मां से आप दोनों के विवाह की बात की तो फिर विवाह क्यों नहीं किया? बिना विवाह किए आप दोनों का एकसाथ पतिपत्नी की तरह रहना आप की सब से बड़ी गलती है. समाज में अमान्य ऐसे रिश्तों का यही अंत होता है. क्या आप ने यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि आप के दोस्त का आप के प्रति व्यवहार के बदलने के पीछे क्या कारण है? हो सकता है उस ने आप की परिस्थितियों का फायदा उठाया हो और अब वह आप से छुटकारा पाना चाहता हो. यह आप की गलतफहमी है कि सब घर वालों की मरजी से हुआ. आप की इस दशा के लिए आप के घर वाले जिम्मेदार नहीं हैं. बिना विवाह के रहने का निर्णय आप दोनों का था. अब आप व्यर्थ ही घर वालों को दोषी ठहरा रही हैं. वर्तमान स्थिति में आप अपने दोस्त से खुल कर बात करें कि वह चाहता क्या है तभी साथ रहने या अलग होने का निर्णय लें.

मैं 20 वर्षीय अविवाहित हूं और अपनी ही कंपनी में नौकरी करने वाली एक युवती से प्यार करता हूं. वह भी मुझ से प्यार करती है. हम दोनों विवाह भी करना चाहते हैं लेकिन समस्या यह है कि वह विवाहित है और उस की 1 बेटी भी है. हमें क्या करना चाहिए?

उस युवती के प्रति आप का प्यार, प्यार नहीं आकर्षण है. आप की उम्र अभी केवल 20 वर्ष है और वह युवती विवाहित और 1 बेटी की मां है. ऐसे में आप दोनों का विवाह कैसे हो सकता है? क्या वह युवती अपने पति से खुश नहीं है जो आप से विवाह करना चाहती है? इस उम्र में आप एक विवाहित युवती के प्यार में पड़ने की गलती कर रहे हैं जो आप को और उस के वैवाहिक जीवन को बरबादी की तरफ ले जा सकता है.

मैं रेलवे से रिटायर्ड हूं. अपनी 33 वर्षीय बेटी को ले कर बहुत परेशान हूं. जब वह 16 साल की थी तभी से शादी की जिद करती थी. काफी भागदौड़ के बाद 2005 में मैं ने उस की शादी कर दी. लेकिन ससुराल में वह स्वयं को स्थापित नहीं कर पाई और 3-4 बार ससुराल छोड़ कर चली आई जिस से उस की शादी 2009 में टूट गई. उस के इस व्यवहार पर जब उसे डाक्टर को दिखाया तो पता चला वह सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रस्त है. पिछले ढाई साल से उस का इलाज चल रहा है लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा. उस की एक 7 साल की बेटी भी है. इस बीच उस की जिद पर मैं ने जनवरी में उस की दूसरी शादी भी कर दी. लेकिन वहां भी वह 2 महीने से ज्यादा नहीं निभा पाई. आजकल वह मेरे साथ मेरे घर पर है. लेकिन अब वह मेरे साथ भी नहीं रहना चाहती. कहती है, मुझे कहीं भी किसी नारी निकेतन, आश्रम या सड़क पर छोड़ दो. क्या ऐसी कोई संस्था होगी जो उसे रख सके? मैं संस्था को 5 हजार रुपए प्रतिमाह तक भुगतान कर सकता हूं. मैं बहुत परेशान हूं. सलाह दीजिए.

सिजोफ्रेनिया एक मानसिक डिसऔर्डर है जिस में रोगी असामान्य व्यवहार करता है, हमेशा दूसरों के प्रति शंका का भाव रखता है और भ्रम में रहता है. आप ने अपनी बेटी की अभी तक की जो भी स्थिति बताई उस के आधार पर कोई भी आश्रम या संस्था उसे नहीं रखना चाहेगी क्योंकि उस का व्यवहार वहां रह रहे अन्य लोगों के लिए भी समस्या खड़ी कर सकता है. ऐसे में आप के पास सिर्फ एक ही उपाय बचता है कि आप  अपनी बेटी को अपने साथ ही रखें और उस की देखरेख स्वयं ही करें.

बच्चों के मुख से

मैं ने बीएससी प्रथम वर्ष के लिए ऐडमिशन फार्म मंगवाए थे. हम सभी बैठ कर उस कालेज की पत्रिका पढ़ रहे थे. तभी मेरा छोटा भाई कुछ सोच कर अचानक बोला, ‘‘दीदी, आप कितनी भी कोशिश कर लें, आप का ऐडमिशन इस कालेज में नहीं हो सकता.’’
हम सब ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्यों?’’
उस ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘यह तो महिला कालेज है और आप महिला नहीं, लड़की हो.’’ उस की बात का मतलब समझते ही हम खूब हंसे.

आरती जांगड़ा, भिवानी (हरियाणा)

मेरी पोती अनाया 5 वर्ष की है, ज्यादातर फोन वही उठाती है. एक दिन फोन पर उस से किसी ने कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से बात करा दो.’’ ‘‘वे नहीं हैं.’’ उधर से कहा, ‘‘अच्छा, अपनी मम्मी से बात करा दो.’’
अनाया ने कहा, ‘‘कौन सी मम्मी से बात कराऊं?’’
फिर उधर से पूछा, ‘‘तुम्हारी कितनी मम्मी हैं?’’ अनाया झट से बोली, ‘‘3 हैं.’’
शाम को अनाया के पापा अमित का दोस्त आया और बोला, ‘‘अरे यार, तेरी 3-3 बीवी हैं?’’ पहले तो अमित सकपकाया, फिर बोला, ‘‘अरे, यह बड़ी ताई को विशी मम्मी कहती है और मझली ताई को मणी मम्मी कहती है.’’
सभी घर में बैठे थे. यह बात सुन कर खूब हंसे.

राजरानी गोयल, जनपथ (न.दि.)

मेरी भांजी नन्नू नर्सरी कक्षा में पढ़ती है. एक दिन उस की मम्मी ने पूछा, ‘‘बेटा, डोमैस्टिक ऐनिमल्स के नाम बताओ.’’ नन्नू सोचने लगी तो उस की मम्मी ने हिंट देते हुए कहा, ‘‘वे जो घर में रहते हैं.’’
‘‘अच्छा मम्मी, पापा, दिद्दा…’’ तुरंत जवाब देते हुए, मुड़ कर अपने पापा से पूछा, ‘‘पापा, आप भी डोमैस्टिक हो ना?’’

वंदना, सहारनपुर (उ.प्र.)

बेटे के घर आई मीना कुछ दिनों बाद जब वापस जाने को तैयार हुई तो पोता गट्टू अपनी जिद पर अड़ गया और बोला, ‘‘दादी, आप न जाइए. आप यहीं रहिए.’’
बेटे की जिद को देख कर बहुत बोलने वाली बहू बोली, ‘‘दादी का घर तो लखनऊ में है, इसलिए वे यहां कैसे रह सकती हैं. उन्हें जाने दो.’’
इतना सुनते ही गट्टू तपाक से बोला, ‘‘आप का घर भी तो नानी का घर है. जब आप अपने बेटे के साथ रहती हैं तो दादी भी तो अपने बेटे के पास रह सकती हैं.’’

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

कोरे ख्वाब

हम ने उन्हें मूरत क्या कह दिया

वो रातभर चेहरे को छिपाते रहे

अल्फाज ये दुहराने के लिए

वो घंटों मुझे सताते रहे

कभी हथेली से चेहरे को छिपा कर

कभी घूंघट से सिर को सजा कर

बैठ कर आईने के सामने कभी

वो यों ही सारी रात मुसकराते रहे

ये उन के प्यार के हैं इशारे कैसे

हमें उन के ख्वाब कोरे ही आते रहे

होगी इस रात की सुबह भी कभी

रातभर सपने कोरे देखते रहे.

छोटी बातें

ये छोटीछोटी बातें

जुगनू से नन्हें तारोंभरी रातें

गीले गेसू से टपकती हैं

चेहरे पर ठंडी बूंदें

गरम चुंबन और प्याला चाय का,

ऐसे होती हैं दिन की शुरुआतें

रसोई से आती सोंधी सुगंध

हुजूर, आज नाश्ते का क्या है प्रबंध

‘ब्रीफकेस’ ले कर खड़ा हूं

कि बांहों में आ जाओ

बांधो मेरी ‘टाई’

और कर दो विदा

‘औफिस’ दूर है ‘ट्रेन’ में

साथियों से हंसता हुआ संबंध

खट्टेमीठे अनुभव पर

योजना, संकल्प और अभियान

खूबसूरत ‘स्टाफ’ का अभिवादन

‘बौस’ का शिक्षण और भाषण

‘औफिस’ बंद और अब

रंगीन शाम का ‘प्लान’

घर आ कर बच्चों से संवाद और ‘ट्यूशन’

उन की परेशानियों का निदान

हर क्षण है एक आभूषण

हम सब को है अब ‘पार्टी’ का ध्यान

रात में बीवी की बांहों में प्यार

शृंगार और मनुहार के कई प्रकार

हर दिन, हर घड़ी है सोने की खदान

सपनों में जाने की अब हमें क्या दरकार.

हमारी बेडि़यां

हमारे एक परिचित की क्रौकरी और प्लास्टिक के सामान की दुकान है. दीवाली की शाम उन्होंने अपनी दुकान पर पूजन किया. हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि पूजा का दीया पूरी रात जलना चाहिए, इसलिए वे दीया जलता हुआ छोड़ कर घर चले गए. तभी चूहे ने दीया गिरा दिया. दीपक का तेल चारों तरफ फैल गया और उस ने आग पकड़ ली. वहां रखा प्लास्टिक का सामान धूंधूं कर के जलने लगा. दुकान का सारा सामान जल कर खाक हो चुका था. पुरानी मान्यताओं के चलते उन्हें लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा.

श्वेता सेठ, सीतापुर (उ.प्र.)

मेरे ससुराल में एक रीति है कि जब बेटी की शादी होती है तो दूल्हे की साली घर की दहलीज पार करने से पहले सलवार के दोनों पोंचे पकड़ कर दूल्हे के गले में डाल देती है. शगुन के पैसे मिलने पर धीरे से सलवार गले से निकाल ली जाती है. मेरी ननद की शादी थी. जब जंवाई बाबू घर के अंदर प्रवेश करने लगे तो मेरी छोटी ननद ने जीजाजी के गले में सलवार डाल दी. चारों ओर हंसी गूंज उठी. थोड़ी देर में ही अचानक दूल्हे की दर्द से कराहती हुई चीख सुन कर सन्नाटा छा गया. हुआ यह कि सलवार गले से निकालते समय सिर पर सजे हुए मुकुट में फंस गई जिस से दूल्हे के माथे से खून की धारा बहने लगी. ‘मैं यहां नहीं शादी करूंगा’, कहता हुआ दूल्हा वहां से भाग गया. काफी मानमनुहार के बाद दूल्हा वहां आया और शादी संपन्न हो सकी.

कैलाश भदौरिया, गाजियाबाद (उ.प्र.)

मेरे एक मित्र बिहार के जमुई जिले में कार्यरत थे. उन की मां की मृत्यु हो चुकी थी, पिता बेगुसराय जिले के एक गांव में अपने घर पर रहते थे. अचानक एक दिन शाम को उन्हें घर से सूचना मिली कि उन के पिताजी की तबीयत काफी खराब है, वे घर जल्द नहीं पहुंचे तो पिताजी का मुख भी नहीं देख पाएंगे. वे एक किराए की गाड़ी ले कर रात में ही बेगुसराय के लिए चल पड़े. जमुई व मुंगेर जिले के बीच लंबा घना जंगल पड़ता है जहां अकसर लूटपाट की घटनाएं होती रहती हैं. यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित भी है.

गाड़ी जब 10 बजे रात्रि में जंगल से गुजर रही थी तो एक बिल्ली ने रास्ता काट दिया. चालक ने गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी. उस ने कहा कि गाड़ी तभी आगे बढ़ेगी जब विपरीत दिशा से कोई गाड़ी आ जाएगी. इसी बीच, अपराधियों के एक गिरोह ने मेरे मित्र को मारपीट कर नकद रुपए, पत्नी के गहने व अन्य सामान लूट लिया. अगले दिन शाम तक जब वे अपने घर पहुंचे तब तक उन के पिताजी का देहांत हो चुका था. समाज में फैले इस अंधविश्वास के कारण वे लूटपाट की घटना का शिकार बन गए.     

के चंद्र, पटना (बिहार)

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