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आस

श्वेत से जिस्म पर प्रेम की निशानी
देख ले कोई तो कह दे कहानी
होंठ का स्पर्श उंगली के पोर
वाणी है मूक बस सांसों का शोर
उस के छूने का अंदाज निराला है
आंख छलकती हुई मय का प्याला है
 

भूल गई मैं किस दुनिया में हूं
नशा है, मस्ती है, वो एक मधुशाला है
सच है प्यार, मन का चैन है
बिन उस के देह बेचैन है
कैसी तृष्णा कैसी प्यास है
फिर से उस के आने की आस है.

कौम दे हीरे पर विवाद

आएदिन फिल्मों पर विवाद और प्रतिबंध की खबरें सुर्खियां बटोरती रहती हैं. ताजा मामला फिल्म ‘कौम दे हीरे’ का है जो दूसरों से जुदा है. इस पंजाबी फिल्म पर गृह मंत्रालय के एतराज के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने रोक लगा दी है. लिहाजा, फिल्म तय समय पर रिलीज नहीं हो पा रही है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को लिखे पत्र में गृह मंत्रालय ने कहा कि यह फिल्म पंजाब और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित कर सकती है. गौरतलब है कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह पर बनी इस फिल्म को सियासी विरोध और प्रतिबंध की मांगों का सामना करना पड़ रहा है.

औस्कर की दौड़

इस साल भारत की ओर से बंगला फिल्म ‘जातीश्वर’ औस्कर के लिए भेजी जा सकती है. रवींद्र संगीत की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को 4 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं. फिल्म को दर्शकों और आलोचकों से अच्छी सराहना मिली है. सृजित मुखर्जी निर्देशित इस फिल्म में बंगला फिल्मों के सुपरस्टार प्रोसेनजीत चटर्जी ने लीड रोल निभाया है. एंटनी फिरिंगी पर बेस्ड इस फिल्म के मुख्य अभिनेता प्रोसेनजीत चटर्जी ने सोशल साइट पर कहा कि यह मेरे लिए गर्व का क्षण है. जातीश्वर की टीम की कड़ी मेहनत को उस का फल मिलने जा रहा है और यह औस्कर नामांकन के लिए चयनित होने जा रही है. देखना होगा की औस्कर की दौड़ में यह फिल्म कहां तक पहुंचती है.

विवेक का कैंपेन

फिल्म अभिनेता विवेक ओबराय को हमेशा से सामाजिक कार्यों से लगाव रहा है. पहले वे ऐंटी स्मोकिंग कैंपेन का हिस्सा थे और अब वे रक्तदान को ले कर लोगों में जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं. इस के लिए विवेक देश का सब से बड़ा रक्तदान शिविर लगाने जा रहे हैं. शिविर के जरिए विवेक देश के युवाओं से रक्तदान करवा कर विश्व रिकौर्ड बनाने की तैयारी में हैं. इस मुहिम के तहत विवेक एक संस्था के साथ मिल कर करीब 300 शहरों में 700 से भी ज्यादा रक्तदान शिविर लगाएंगे और करीब 1.25 लाख यूनिट खून इकट्ठा कर के विश्व रिकौर्ड बनाने की उम्मीद लगा रहे हैं.

नहीं रहे रिचर्ड

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर औस्कर विजेता फिल्म न बनाने वाले निर्देशक रिचर्ड एटेनबरो अब इस दुनिया में नहीं हैं. 24 अगस्त को उन का 90 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया. गौरतलब है कि रिचर्ड बीमारी के चलते काफी अरसे से व्हीलचेयर पर थे. करीब 6 साल पहले सीढि़यों से गिरने की वजह से उन्हें व्हीलचेयर की मदद लेनी पड़ रही थी. हौलीवुड में यों तो उन्होंने कई फिल्में बनाईं पर भारत में उन की प्रसिद्धि महात्मा गांधी की जीवनी पर बनाई फिल्म ‘गांधी’ को ले कर हुई. रिचर्ड  ‘ब्राइटन रौक’, ‘द गे्रट एस्केप’ और ‘जुरासिक पार्क’ जैसी फिल्मों से भी जुड़े रहे. फिल्म गांधी के लिए उन्हें 2 औस्कर मिले. रिचर्ड फिल्मप्रेमियों को हमेशा याद आएंगे.

सिंघम रिटर्न्स 2

रोहित शेट्टी द्वारा निर्देशिंत ‘सिंघम रिटर्न्स’ उन की पिछली फिल्म ‘सिंघम’ का सीक्वल है. इस बार फिल्म में खलनायकों का जमावड़ा है, जिन से नायक अकेला ही मुकाबला करता है, जैसे कि अमूमन हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता रहा है.

हां, ‘सिंघम रिटर्न्स’ में शेर वाली दहाड़ नहीं है. ‘सिंघम रिटर्न्स’ का यह शेर दहाड़ने के बजाय गोलियां बरसाता है. ‘सिंघम रिटर्न्स’ ऐक्शन ड्रामा फिल्म है. रोहित शेट्टी ने फिल्म के हीरो बाजीराव सिंघम को पहले भी पुलिस अफसर दिखाया था, इस बार भी वह पुलिस की वरदी में है, मगर अब वह डीसीपी बन गया है. इस बार उस का मुकाबला किसी डौन से नहीं है, एक राजनीतिबाज और उस के चेले भ्रष्ट बाबा से है. यह बाबा अपने भक्तों को बेवकूफ बना कर उन की धनदौलत को लूटता है, सुंदरसुंदर स्त्रियों का देह शोषण करता है और रात के अंधेरे में वे सभी काली करतूतें करता है जो ज्यादातर बाबा लोग किया करते हैं.

यह सब करने के लिए बाबाओं को कौन बढ़ावा देता है? उन के अंधविश्वासी भक्त और नेता ही तो बाबाओं की जयजयकार करते हैं. फिल्म में एक जगह बाबा के मुंह से कहलवाया भी गया है, ‘आम आदमी की तकलीफ डर पैदा करती है और डर अंधविश्वास को पैदा करता है. और फिर अंधविश्वास बाबाओं को पैदा करता है.’ फिल्म में इस बाबा ने कई नाटकीय हरकतें की हैं. गनीमत है कि निर्देशक ने बाबाओं की करतूतों को दिखाने की कोशिश की है और माहौल की चिंता नहीं की है. वरना इस फिल्म में नया कुछ भी नहीं है. पुलिस अफसर और भ्रष्ट राजनीतिबाज का ड्रामा है. डीसीपी बाजीराव सिंघम की पोस्ंिटग अब गोआ से मुंबई में हो चुकी है. वह उन भ्रष्ट नेताओं को पकड़ने के लिए मुहिम चलाता है, जिन का कनैक्शन ब्लैकमनी से है.

भ्रष्ट नेता प्रकाशराव (जाकिर हुसैन) के दम पर प्रदेश में मुख्यमंत्री अधिकारी (महेश मांजरेकर) की सरकार चल रही है. प्रकाशराव को एक बाबा (अमोल गुप्ते) का आशीर्वाद प्राप्त है, जिस के माध्यम से वह करोड़ों रुपयों का लेनदेन कर चुनाव में अपनी पार्टी को जीत दिलाना चाहता है. प्रकाशराव एक आदर्शवादी नेता गुरुजी की हत्या भी करवाता है. वह एक पुलिस अफसर को भी मरवाता है. बाजीराव  सिंघम मामले की जांच करता है और उसे प्रकाशराव व बाबा के खिलाफ कई सुबूत मिल जाते हैं. वह उन्हें गिरफ्तार कर लेता है परंतु सरकारी दबाव पड़ने पर उसे उन्हें रिहा करना पड़ता है. आखिरकार वह पुलिस की वरदी उतार कर उन दोनों को खत्म कर डालता है. फिल्म यही दर्शाती है कि हमारी कानून व्यवस्था तो लचर है. जो करना है मारपीट कर कर लो चाहे खलनायक हो या नायक हो.

निर्देशक ने फिल्म में अनुपम खेर को अन्ना हजारे का सा लुक दे कर उसे आदर्शवादी दिखाने की कोशिश की है. आम आदमी पार्टी की याद दिलाने वाले प्रसंग भी फिल्म में डाले गए हैं. दूसरी ओर फिल्म में जबरदस्त ऐक्शन सीन भी हैं, गोलीबारी के साथसाथ रौकेट लौंचरों से मिसाइलें दागी गई हैं और बम धमाके किए गए हैं जो अस्वाभाविक हैं. कारों को हवा में उड़ा कर उन में विस्फोट कराए गए हैं. यह सब देख कर लगा जैसे किसी वार फिल्म के सीन देख रहे हैं. ये हथियार युद्धों में इस्तेमाल होते हैं या आतंकवादियों के हाथ में होते हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स अटपटा है. पूरी पुलिस फोर्स का वरदियां उतार कर सड़कों पर जुलूस की शक्ल में चलना व भ्रष्ट नेताओं के साथ भिड़ जाना कानून और संविधान से बचकाना खेल लगता है. पता नहीं क्यों हमारे निर्माता तर्क को ताक पर रख कर काम करते हैं.

अजय देवगन पर अब उम्र हावी लगती है. फिर भी उस ने अच्छे ऐक्शन सीन दिए हैं. अमोल गुप्ते ने अब तक कई फिल्में निर्देशित की हैं. इस फिल्म में वह भौंडा बहुरुपिया बाबा बन कर रह गया है. महेश मांजरेकर का काम अच्छा है. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष कुछ ठीक है. फिल्म के अंत में योयो हनी सिंह का आइटम सौंग अच्छा बन पड़ा है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. अजय देवगन ने कई संवाद मराठी भाषा में बोले हैं, जो अखरते नहीं हैं. फिल्म का छायांकन अच्छा है. और हां, इस फिल्म में करीना कपूर भी है पर क्यों है, इस को जानने के लिए सीआईडी वाले दया (दयानंद चंद्रशेखर शेट्टी) से पूछना होगा.

अखिल की जोरदार वापसी

भारतीय मुक्केबाज अखिल कुमार मिश्रा ने कोरिया के इंचियोन में होने वाले एशियाई खेलों की 10 सदस्यीय भारतीय पुरुष टीम में शानदार वापसी की है. बैंथमवेट 56 किलोग्राम भारवर्ग से लोकप्रियता हासिल करने वाले अखिल अब 19 सितंबर से 4 अक्तूबर तक होने वाले एशियाई खेलों में 60 किलोग्राम भारवर्ग में मैदान में उतरेंगे. 2008 के एआइबीए विश्व कप में कांस्य पदकधारी अखिल ने अपने चयन के बाद कहा, ‘‘किसी भी खेल में प्रैक्टिस बहुत जरूरी होती है. चोट लगने और पुलिस की ट्रेनिंग के चलते मैं मुक्केबाजी से दूर हो गया था. एक समय तो मेरा वजन भी बढ़ कर 75 किलोग्राम हो गया था. लेकिन परिवार और दोस्तों ने मेरा हौसला बनाए रखा. मेरी पत्नी और ससुर भी मुक्केबाज हैं. उन की भी मदद और अपने आत्मविश्वास के कारण मैं दोबारा रिंग में आया हूं.’’

वर्ष 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदकधारी और वर्ष 2008 ओलिंपिक खेलों के क्वार्टरफाइनल में पहुंचने वाले इस मुक्केबाज को अपने कैरियर में लगातार चोटों से जूझना पड़ा जिस के कारण वे वर्ष 2012 में लंदन ओलिंपिक में भाग नहीं ले सके थे लेकिन उम्मीद है कि इस बार जब वे मैदान में उतरेंगे तो कुछ हलचल जरूर करेंगे.

इस के अलावा 49 किलोग्राम में एल देवेंद्र सिंह, 52 किलोग्राम में मदनलाल, 56 किलोग्राम में शिव थापा, 64 किलोग्राम में मनोज कुमार, 69 किलोग्राम में मनदीप जांगड़ा, 75 किलोग्राम में विकास कृष्ण, 81 किलोग्राम में कुलदीप सिंह, 91 किलोग्राम में अमृतप्रीत सिंह के अलावा 91 किलोग्राम से अधिक भारवर्ग में सतीश कुमार शामिल हैं. वहीं, महिला दल में 5 बार विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली मैरी कौम 51 किलोग्राम भारवर्ग में, राष्ट्रमंडल की रजत पदक विजेता एल सरिता देवी 60 किलोग्राम भारवर्ग में और 75 किलोग्राम भारवर्ग में पूजा रानी मैदान में उतरेंगी.

घर के शेर बाहर ढेर

भारतीय क्रिकेट टीम इन दिनों आलोचनाओं से दोचार हो रही है. वजह साफ है, हमेशा की तरह टीम इंडिया के धुरंधर विदेशी धरती पर कोई कारनामा नहीं दिखा पाए. लौर्ड्स टैस्ट की ऐतिहासिक जीत के बाद लग रहा था कि शायद टीम इंडिया आगे भी कुछ इसी तरह कारनामा करेगी पर अगले टैस्ट मैच में टीम इंडिया बिखर गई.

टैलीविजन चैनलों और अखबारों में फिर से बहस शुरू हो गई कि महेंद्र सिंह धौनी को अब कप्तानी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि विदेशी मैदानों में धौनी का रिकौर्ड देखें तो वे 17 टैस्ट में टीम की कप्तानी कर चुके हैं जिन में 13 टैस्ट भारत हार चुका है.

वैसे भारतीय क्रिकेटरों की हमेशा से ही यह कमजोरी रही है कि घरेलू मैदान में वे शेर हो जाते हैं और विदेशी धरती पर जाते ही उन्हें ढेर होने में देर नहीं लगती. दरअसल, भारतीय टीम को तेज और उछालभरी पिचों पर खेलने की आदत नहीं है क्योंकि घरेलू मैदानों की पिचें इस तरह नहीं बनाई जाती हैं. यह समझ से परे है कि आखिर विदेशी पिचों की भांति यहां वैसी पिचों का निर्माण क्यों नहीं किया जाता. वहीं, बात केवल पिचों की ही नहीं है. बल्लेबाजी में मध्य क्रम को मजबूत करना होगा क्योंकि विराट कोहली की गैरमौजूदगी में मौजूदा टीम के पास कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं है जिस से कि मध्यक्रम मजबूत नजर आ रहा हो. गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण में भी टीम इंडिया विदेशी पिचों पर खरी नहीं उतरती.

दरअसल, आईपीएल के आने के बाद क्रिकेट का स्तर लगातार गिर रहा है और टीम इंडिया लगातार विपक्षी टीमों के सामने घुटने टेकती नजर आ रही है. यह सच है कि क्रिकेट खिलाड़ी अब कारोबारियों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गए हैं. तभी तो मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘विदेशी खेल अपने मैदान पर’ में आईपीएल के नकारात्मक पहलुओं को उजागर करते हुए कहा है कि मुझे डर था कि आईपीएल के बहाने जन्मा क्रिकेट क्लब का नया ढांचा पुराने और सुस्थापित रणजी टूर्नामैंट को बरबाद कर देगा और राष्ट्रीय क्रिकेट को भी नुकसान पहुंचाएगा.

यहां रामचंद्र गुहा की बातें एकदम सटीक बैठ रही हैं. इसलिए केवल धौनी को बदलने से क्रिकेट के अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं, क्रिकेट खेल को बचाना है तो ताबड़तोड़ क्रिकेट यानी आईपीएल के साथसाथ टैस्ट क्रिकेट और एकदिवसीय मैचों के लिए खिलाडि़यों पर भी ध्यान देना होगा, वरना हम घर के ही शेर साबित होते रहेंगे.

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