रोहित शेट्टी द्वारा निर्देशिंत ‘सिंघम रिटर्न्स’ उन की पिछली फिल्म ‘सिंघम’ का सीक्वल है. इस बार फिल्म में खलनायकों का जमावड़ा है, जिन से नायक अकेला ही मुकाबला करता है, जैसे कि अमूमन हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता रहा है.
हां, ‘सिंघम रिटर्न्स’ में शेर वाली दहाड़ नहीं है. ‘सिंघम रिटर्न्स’ का यह शेर दहाड़ने के बजाय गोलियां बरसाता है. ‘सिंघम रिटर्न्स’ ऐक्शन ड्रामा फिल्म है. रोहित शेट्टी ने फिल्म के हीरो बाजीराव सिंघम को पहले भी पुलिस अफसर दिखाया था, इस बार भी वह पुलिस की वरदी में है, मगर अब वह डीसीपी बन गया है. इस बार उस का मुकाबला किसी डौन से नहीं है, एक राजनीतिबाज और उस के चेले भ्रष्ट बाबा से है. यह बाबा अपने भक्तों को बेवकूफ बना कर उन की धनदौलत को लूटता है, सुंदरसुंदर स्त्रियों का देह शोषण करता है और रात के अंधेरे में वे सभी काली करतूतें करता है जो ज्यादातर बाबा लोग किया करते हैं.
यह सब करने के लिए बाबाओं को कौन बढ़ावा देता है? उन के अंधविश्वासी भक्त और नेता ही तो बाबाओं की जयजयकार करते हैं. फिल्म में एक जगह बाबा के मुंह से कहलवाया भी गया है, ‘आम आदमी की तकलीफ डर पैदा करती है और डर अंधविश्वास को पैदा करता है. और फिर अंधविश्वास बाबाओं को पैदा करता है.’ फिल्म में इस बाबा ने कई नाटकीय हरकतें की हैं. गनीमत है कि निर्देशक ने बाबाओं की करतूतों को दिखाने की कोशिश की है और माहौल की चिंता नहीं की है. वरना इस फिल्म में नया कुछ भी नहीं है. पुलिस अफसर और भ्रष्ट राजनीतिबाज का ड्रामा है. डीसीपी बाजीराव सिंघम की पोस्ंिटग अब गोआ से मुंबई में हो चुकी है. वह उन भ्रष्ट नेताओं को पकड़ने के लिए मुहिम चलाता है, जिन का कनैक्शन ब्लैकमनी से है.