श्वेत से जिस्म पर प्रेम की निशानी
देख ले कोई तो कह दे कहानी
होंठ का स्पर्श उंगली के पोर
वाणी है मूक बस सांसों का शोर
उस के छूने का अंदाज निराला है
आंख छलकती हुई मय का प्याला है
 

भूल गई मैं किस दुनिया में हूं
नशा है, मस्ती है, वो एक मधुशाला है
सच है प्यार, मन का चैन है
बिन उस के देह बेचैन है
कैसी तृष्णा कैसी प्यास है
फिर से उस के आने की आस है.

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