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हैप्पी न्यू ईयर

बौलीवुड में अब एक के बाद एक बिग बजट की फिल्में बनने लगी हैं. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘बैंगबैंग’ का बजट भी सवा सौ करोड़ का था. अब शाहरुख खान की रिलीज हुई नई फिल्म हैप्पी न्यू इयर का बजट भी 150 करोड़ का माना जा रहा है. इस से पहले सलमान खान की कई फिल्मों का बजट भी 100 करोड़ से अधिक था. ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का बजट भले ही 150 करोड़ का हो परंतु फिल्म की कहानी सवा रुपए वाली है. इस सस्ती सा कहानी पर शाहरुख खान ने 150 करोड़ रुपए लगा कर फिल्म को भव्य बनाया है. कोई और फिल्म निर्माता अगर इस फिल्म को बनाता तो फिल्म की कहानी की धज्जियां उड़ जातीं.

‘हैप्पी न्यू ईयर’ को दीवाली के मौके पर रिलीज किया गया है. पिछले कई महीनों से शाहरुख खान इस फिल्म का प्रमोशन कर रहा था. टीवी पर फिल्म के प्रोमोज बारबार दिखाए जा रहे थे जिन में एक ही डायलौग दोहराया जा रहा था, ‘इस दुनिया में 2 तरह के लोग होते हैं – विनर्स और लूजर्स’. जाहिर है शाहरुख खान खुद को विनर साबित करना चाह रहा था. शाहरुख खान ने इस से पहले रोहित शेट्टी के निर्देशन में ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’ फिल्म बनाई, जो खूब चली. ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’ फुल एंटरटेनमैंट फिल्म थी. ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में भी एंटरटेनमैंट का मसाला है. परंतु ‘चेन्नई एक्सप्रैस’ जैसा नहीं है. ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में शाहरुख खान अपनी बांहें फैलाता है तो उस के फैंस खुश हो जाते हैं. लेकिन जब वह फाइटिंग करता है तो लगता है उस का दमखम अब टूटने की कगार पर है. इसी लिए उस ने बारबार अपने 8 पैक ऐब्स दिखाए हैं.

हम तो यही कहेंगे कि ‘बौलीवुड में 2 तरह की फिल्में बनती हैं – अच्छी और खराब.’ तो जनाब, हैप्पी न्यू ईयर न तो बहुत अच्छी है, न खराब. फिल्म की लंबाई बहुत ज्यादा है. फिल्म का फर्स्ट हाफ आप को कुछकुछ इरिटेट करता है, सैकंड हाफ दिलचस्प है. फिल्म का कैनवास काफी बड़ा है. फिल्म चमचमाती और कलरफुल है. आंखों को चुंधियाती है. किरदारों के कौस्ट्यूम्स शानदार हैं. सैकंड हाफ में दुबई में शूट की गई फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भव्य है. डांस सीक्वैंस बढि़या हैं. फिल्म में कौमेडी भी है. देशभक्ति भी है. यह अच्छा है कि करोड़ों डौलर के हीरों की चोरी वाली इस फिल्म में गोलीबारी नहीं है.

कहानी है चार्ली (शाहरुख खान) की, जो बोस्टन से पढ़ कर आया है. उसे अपने पिता की मौत का बदला एक डायमंड किंग चरण ग्रोवर (जैकी श्रोफ) से लेना है. इस के लिए उसे चरण ग्रोवर के करोड़ों डौलर के हीरे चुरा कर उसे फंसाना है. वह एक टीम बनाता है. इस टीम में वह टैमी (बोमन ईरानी), नंदू (अभिषेक बच्चन) जग (सोनू सूद), राहन (विवान शाह) और मोहिनी (दीपिका पादुकोण) को शामिल करता है. चरण ग्रोवर ने हीरों को एक जबरदस्त तिजोरी में बंद कर रखा है और वह तिजोरी उस के बेटे विकी ग्रोवर (अभिषेक बच्चन की दूसरी भूमिका) के अंगूठे को टच करने से खुलती है. इन हीरों को चुराने के लिए चार्ली की यह टीम दुबई में होने वाली एक वर्ल्ड डांस कंपीटिशन में हिस्सा लेती है. पूरी टीम योजनाबद्ध तरीके से हीरों को चुराती है और वर्ल्ड डांस चैपियनशिप भी जीतती है. दुबई पुलिस चरण ग्रोवर और उस के बेटे को गिरफ्तार कर जेल भेज देती है.

फिल्म की बदले की यह कहानी मध्यांतर से पहले काफी धीमी गति से चलती है. मध्यांतर के बाद भी फिल्म में सभी किरदारों को चोरी का प्लान बनाते हुए ही दिखाया गया है. सिर्फ क्लाइमैक्स में ही हीरों को चुराने का सीन रोमांचक बन पड़ा है. फिल्म का निर्देशन कुछ हद तक अच्छा है. उस ने अभिषेक बच्चन से अच्छी कौमेडी कराई है. फिल्म की लोकेशंस, गीतसंगीत सब कुछ अच्छा है. शाहरुख खान अपने किरदार में पहले की फिल्मों की अपेक्षा कमजोर रहा है. उस के चेहरे पर उम्र अपना प्रभाव दिखाती है. सोनू सूद ने अपने गुस्सैल स्वभाव से दर्शकों को हंसाया है. उस के कानों से निकलते धुएं को देख कर दर्शक जम कर हंसते हैं. बोमन ईरानी भी ठीकठाक है. विवान को अभी बहुत कुछ सीखना पड़ेगा. एक बंद हो चुके डांस बार में काम करने वाली डांस गर्ल के किरदार में दीपिका पादुकोण ने अपने डांस का जलवा बिखेरा है. दुबई के होटल अटलांटिक और उस के आसपास की लोकेशनें मन मोह लेती हैं.

इस फिल्म को बना कर शाहरुख खान भले ही लूजर नहीं विनर बन जाए, नए साल की शुरुआत में ‘हैप्पी न्यू ईयर’ सेलिबे्रट करे परंतु अगर वह यह सोचे कि उस ने दर्शकों को कोई तोहफा दिया है तो यह उस की भूल होगी.

सैफ शर्मिला को नोटिस

दीवाली पर आतिशबाजी करना, तेज आवाज में संगीत बजाना और पार्टी करना सब को पसंद है. लेकिन यह पसंद कभीकभी भारी पड़ जाती है, जैसा कि सैफ अली खान और शर्मिला टैगोर के साथ हुआ. हुआ यों कि सैफ, शर्मिला अपने परिवार के साथ पटौदी पैलेस में पार्टी कर रहे थे. यह पार्टी पैलेस के आसपास रहने वालों को कुछ खास रास नहीं आई. लिहाजा, उन्होंने शिकायत कर दी. शिकायत मिलते ही प्रशासन ऐक्शन में आया और आननफानन नोटिस जारी कर दिया. उम्मीद है कि भविष्य में सैफ और उन का परिवार पार्टी करते समय आसपास वालों का भी ध्यान रखेंगे.

जेल में पीके

संजय दत्त भले ही जेल में सजा काट रहे हों लेकिन उन की फिल्में धड़ाधड़ रिलीज हो रही हैं. जल्द ही उन की आमिर खान के साथ फिल्म ‘पीके’ और इमरान हाशमी के साथ ‘उंगली’ रिलीज होगी. दिलचस्प बात तो यह है कि ‘पीके’ के टे्रलर रिलीज के मौके पर फिल्म के निर्माता विधु विनोद चोपड़ा ने इच्छा जताई कि यह फिल्म संजय दत्त को जेल में दिखाई जाए. गौरतलब है कि संजय दत्त पुणे के यरवदा जेल में हैं. वैसे संजय दत्त इस फिल्म में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जबकि आमिर खान प्रमुख भूमिका में हैं. देखना होगा कि विधु की संजय को फिल्म दिखाने की कोशिश क्या रंग लाती है.

रोम में छाई हैदर

निर्देशक विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘हैदर’ भारतीय सिनेमाघरों में जबरदस्त प्रशंसा बटोरने के बाद रोम में झंडे गाड़ रही है. दरअसल, फिल्म का इटली में प्रीमियर रखा गया था, जहां इस फिल्म को उत्साहजनक रिस्पौंस मिला. और तो और, इस फिल्म ने एक इतिहास भी रच दिया. शेक्सपियर के मशहूर उपन्यास ‘हैमलेट’ पर आधारित इस फिल्म को 9वें रोम फिल्म फैस्टिवल में ‘पीपल्स चौइस अवार्ड’ दिया गया है. गौरतलब है कि यह अवार्ड इस से पहले किसी भी भारतीय फिल्म को नहीं मिला. जैसे ही अवार्ड मिलने की बात फिल्म की स्टारकास्ट को पता चली, वे फूले नहीं समाए. शाहिद कपूर ने जहां ट्विटर पर अपनी खुशी का इजहार किया, वहीं श्रद्धा ने भी इस जीत पर खुशी जाहिर की.

खलनायक या नायक

अभिनेता गोविंदा काफी अरसे से फिल्मों से गायब हैं. पिछली बार उन्हें अक्षय कुमार की फिल्म ‘हौलीडे’ में कैमियो करते देखा गया था. हालांकि उन के अपने प्रोडक्शन में बनी फिल्म रिलीज की राह तक रही है लेकिन वे जल्द ही यशराज बैनर्स की फिल्म ‘किल दिल’ में पहली बार खलनायक की भूमिका में नजर आएंगे. गोविंदा के मुताबिक, वे भले ही फिल्म में विलेन बन रहे हों लेकिन यशराज की फिल्मों में खलनायक को भी नायक की तरह पेश किया जाता है. इसलिए उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है. वे कहते हैं कि पहले उन्होंने फिल्मों में साइड रोल करने से इनकार कर दिया था लेकिन अब वे बदल चुके हैं और आने वाली फिल्मों में छोटी व महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते दिखेंगे. खैर, देर आए दुरुस्त आए गोविंदा.

निर्माता बनीं अनुष्का

बौलीवुड में फिल्में 100 करोड़ रुपए से 200 करोड़ तक का क्लब बना रही हैं. इन करोड़ों के मुनाफे में फिल्म निर्माता के साथसाथ अभिनेता भी हिस्सेदार बन रहे हैं. कारण, वे भी फिल्म में बतौर सहनिर्माता जुड़ जाते हैं. देखादेखी अभिनेत्रियां भी भला कहां पीछे रहतीं. वे भी फिल्म निर्माण में उतर रही हैं. शिल्पा शेट्टी व प्रीति जिंटा तो फिल्म निर्माता बन चुकी हैं. अब अनुष्का शर्मा भी निर्माता बन कर काफी उत्साहित हैं. पहले उन्होंने फिल्म ‘एनएच10’ का निर्माण किया. खबर है कि उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस में बनने वाली दूसरी फिल्म का ऐलान कर दिया है. जाहिर है फिल्म ‘एनएच10’ की तरह इस में भी वही ऐक्ंिटग करेंगी. लेकिन जरा संभल कर अनुष्का, फिल्म निर्माण में आप भी शिल्पा, प्रीति व दिया मिर्जा की तरह हाथ मत जला बैठना.

भारत भूमि युगे युगे

इस बार दीवाली सूरत के हीरा व्यापारी साबजीभाई ढोलकिया के नाम रही जिन्होंने अपने संस्थान के कर्मचारियों को 50 करोड़ रुपए के उपहार बांट दिए. इन में गहने, फ्लैट्स व नकदी शामिल रहे. इसे दान या उपहार कुछ भी कह लें, उन के इस कदम ने नौकरमालिक यानी कर्मचारीनियोक्ता के संबंधों को झकझोर दिया है जिस पर तय है कि लंबी बहस होगी. बिलाशक करोड़ों का यह बोनस प्रचार के लिए नहीं था. साबजीभाई बहुत नीचे से ऊपर उठे हैं, लिहाजा उन के इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए कि इस से रत्नकारों, जिन में सुनार भी शामिल हैं, की छवि चमकेगी. दूसरी अहम बात उन का यह कहना था कि अगर मैं हार्वर्ड में पढ़ा होता तो इतनी दरियादिली नहीं दिखा पाता. व्यावसायिक क्रूरता किसी सुबूत की मुहताज नहीं, लेकिन कुछ व्यापारी, उद्योगपति ऐसे हैं जो अपने कर्मचारियों के योगदान को पुरस्कृत भी करते हैं.

सिद्धू का यज्ञ

पूर्व क्रिकेटर व भारतीय जनता पार्टी के नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर के होली सिटी स्थित अपने नए घर में  अपने जन्मदिन यानी 20 अक्तूबर को 101 ब्राह्मण इकट्ठा कर रखे थे. सालभर से सिद्धू एक यज्ञ करवा रहे थे जिस का मकसद घर की सुख, शांति, स्वास्थ्य वगैरह थे. इन्हीं दिनों सिद्धू अपनी  सुरक्षा व्यवस्था में कटौती किए जाने से भी चर्चा में थे. अंधविश्वासों को बढ़ावा देते इस यज्ञ से धर्मों की वास्तविकता, जो दरअसल आपसी बैर है, भी उजागर हुई जब सिख धर्म के पैरोकारों ने इस बात पर एतराज जताया कि नवजोत सिद्धू को शिवलिंगों के बीच बैठ कर मंत्रोच्चार वगैरह नहीं करना चाहिए था. यानी पाखंड करने और फैलाने के लिए दूसरे धर्म का सहारा लेने की जरूरत नहीं, इस का इंतजाम तो हर धर्म में है.

राजभवन में भागवत

आम तो आम देश का खास और बुद्धिजीवी आदमी भी यह तय नहीं कर पा रहा कि आखिर देश चला कौन रहा है भाजपा, एनडीए, नरेंद्र मोदी या फिर आरएसएस लेकिन यह साफ दिख रहा है कि आरएसएस और उस के मुखिया मोहन भागवत की पूछपरख काफी बढ़ रही है. बीते दिनों उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने मोहन भागवत को राजभवन में आमंत्रित किया तो मीडियाकर्मियों ने सवालों की बौछार लगा दी. मौका था ‘राजभवन में राम नाईक’ पुस्तक के विमोचन का जो तबदील हो गया ‘राजभवन में मोहन भागवत क्यों,’ जिस पर नाईक का कहना था कि राजभवन सभी के लिए खुला है. भागवत तो मेरे निजी मित्र हैं तो उन्हें कैसे न बुलाता. आरएसएस को उदारवादी सामाजिक संगठन की मान्यता दिलाने में जुटे हिंदूवादियों की यह कोशिश साजिश ही कही जाएगी कि वे कट्टर हिंदूवाद को सत्ता के जरिए थोप रहे हैं.

स्मृति साड़ी हाउस

इसे हार की कसक और 2019 में जीत के लिए तैयारी ही कहा जाएगा कि अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी के हाथों हारने के बाद भी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दीवाली के ठीक पहले तकरीबन 7 हजार साडि़यां इस संसदीय क्षेत्र में बंटवाईं और उन के साड़ी वितरकों ने संकेत भी दिया कि साड़ी बांटने का यह सिलसिला जारी रहेगा. इत्तफाक से उसी दौरान निर्वाचन आयोग सरकार से सिफारिश कर रहा था कि पेड न्यूज को अपराध की श्रेणी में रखा जाए. पर ऐसे अनपेड तोहफों को किस श्रेणी में रखा जाएगा, इस सवाल का जवाब भी दिया जाना जरूरी है. स्मृति ने कितने पैसे इस बाबत खर्च किए, इस का विवरण नहीं मिला है. मतदाताओं को लुभाने का यह टोटका सनातनी है, लेकिन चल रहा है. हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर जल्द ही राहुल गांधी पैंटशर्ट अमेठी भिजवाने लगें.

आप के पत्र

सरित प्रवाह, अक्तूबर (प्रथम) 2014

‘किस काम का ऐसा खाता’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय पढ़ा. यह प्रधानमंत्री जन धन योजना पर एक सटीक टिप्पणी है. इस योजना का कोई भी प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ समाज के किसी भी तबके को होने वाला नहीं है. लगता है इस का उद्देश्य जनता का ध्यान बेकाबू महंगाई, लचर कानून व्यवस्था, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, देश की सीमाओं पर लगातार हो रहे अतिक्रमण व अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों से हटाना है. सरकार 5 हफ्तों में 5 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले जाने को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर के अपनी पीठ थपथपा रही है. भाजपा के कार्यकर्ता लोगों को खाली सपने बेच रहे हैं.

हमारे घर में झाड़ूपोंछा करने वाली प्रौढ़ महिला का बैंक खाता लोगों ने यह कह कर खुलवा दिया है कि कुछ समय के बाद सरकार उस के खाते में 1 लाख रुपए डाल देगी. उस ने मुझे अपने बैंक के कागज दिखाते हुए पूछा, ‘बाबूजी, मुझे 1 लाख रुपए कब तक मिल जाएंगे ताकि मैं अपनी बेटी की शादी कर सकूं?’ मुझे उस के भोलेपन पर तरस आया. उसे कैसे बताता कि 1 लाख रुपए की बीमा की रकम उस के परिवार को उस के मरने पर मिलने वाली है, जीतेजी नहीं. उस के लिए भी, बीमा कंपनी के पेचीदा नियमों के जाल को पार करना होगा.

आप की यह आशंका भी निर्मूल नहीं है कि बैंकों की नौकरशाही, कर्जा मंजूर करने और उस की वसूली में अनपढ़ व गरीब खातेदारों के भोलेपन का भी जम कर फायदा उठाएगी. बैंकों की कार्यप्रणाली पढ़ेलिखों को भी आसानी से समझ में नहीं आती है तो बेचारे अर्धशिक्षित लोग चालाक बैंककर्मियों से कैसे निबटेंगे? जिस योजना की शुरुआत ही बीमा के 1 लाख रुपए की भ्रांति से हुई हो उस की सफलता संदेहास्पद है. पिछले कुछ समय से चालू कर्मठ महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों की योजना काफी हद तक अच्छे परिणाम दे रही है. अच्छा होगा कि सरकार उसे ही और आकर्षक बना कर पेश करे.

बी डी शर्मा, यमुना विहार (दिल्ली)

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अक्तूबर (प्रथम) अंक में ‘राहुल की टिप्पणी निरर्थक’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय में आप के विचार प्रशंसनीय हैं. यह तो बिलकुल सत्य है कि विपक्ष का काम ही छींटाकशी करना होता है. इसलिए राहुल गांधी की टिप्पणी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. नरेंद्र मोदी का ड्रम व बांसुरी बजाने का प्रयत्न इस बात को दर्शाता है कि वे मेजबान देश को खुश कर सकें. खाद्यपदार्थों के दाम तो पहले से ही बेतहाशा बढ़ रहे हैं. मोदी ड्रम व बांसुरी न बजाते तो भी इन वस्तुओं की कीमत कम होने वाली नहीं थी. हमें तो यह देखना है और अच्छी तरह सतर्क रहना है कि मोदी पूर्ण बहुमत पा कर तानाशाही वाले तेवर न अपना सकें क्योंकि जब जनता साथ हो तो आमतौर पर नेता मनमानी करने लगते हैं और अपने से असहमत लोगों को दुश्मन समझने लगते हैं. जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तो वहां पर राहुल गांधी की सक्रियता सार्थक होगी, इस में दोराय नहीं.

कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)

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‘राहुल की टिप्पणी निरर्थक’ शीर्षक से प्रकाशित आप के विचारों के संबंध में यह कहना है कि अगर समस्त पार्टी के नेतागण सत्ताप्राप्ति के दांवपेच छोड़, एकदूसरे की कमियों पर कटाक्ष करने के बजाय एकजुट हो कर देश की आंतरिक व बाहरी समस्याओं का निदान सोचते तो जनता कितनी खुशहाल रहती. लेकिन नहीं, ये तो देश को लूट कर अपनी सात पुश्तों तक के लिए धन इकट्ठा करेंगे. जनता की आशाओं के धरातल पर भले ही मोदीजी अभी खरे न उतरे हों, उन के मंत्रिमंडल के लोग जैसे भी हों, लेकिन वे देश की संपत्ति, जो जनता की अमानत है, को स्वार्थ हेतु प्रयोग नहीं करेंगे, जैसा कि अब तक होता आया है.

आप की टिप्पणी ‘हिम्मत न हारें’ भी अच्छी लगी. दरअसल, अकेले, असहाय, कमजोर, साधनहीन, संतानहीन, जिन के बच्चे विदेश जा बसे हैं और जिन्हें पैंशन वगैरह की सुविधा न हो, उन बुजुर्गों के लिए कुछ ऐसे सामाजिक व सरकारी कदम उठाए जाने चाहिए ताकि वे सिर उठा कर जी सकें. सरकार उन के वोटबैंक से लाभान्वित होती है तो उस का फर्ज भी बनता है कि उन्हें हाशिए पर न रखे. भ्रष्ट सरकारी तंत्र होने के कारण बुजुर्गों की, वृद्ध महिलाओं की, अति वरिष्ठों की कठिनाइयों को सरकार को समझना चाहिए व उन के निवारण के लिए कदम उठाने चाहिए.    

 रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

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आप की टिप्पणी ‘दिल्ली में सरकार’ के संबंध में कहना चाहूंगा कि देश में बेशक एक पार्टी और एक सशक्त नेता की सरकार भले ही बन गई हो मगर देश की राजधानी आज भी बिना सरकार के सिसक रही है. यह तो ‘चिराग तले अंधेरा’ वाली बात हो गई. सरकार बनाने के जिम्मेदार भी चुप बैठे जोड़तोड़ के तमाशे देख रहे हैं. क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था की जाती कि नए चुनाव करा कर सब से बड़ी पार्टी को निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाए. राहुल की निरर्थक टिप्पणी पर तो यही कहा जा सकता है कि उन्होंने विपक्ष का कर्तव्य निभाया है. सत्तासीन पक्ष कुछ भी करे, विपक्ष को अनी उपस्थिति (कुछ भी बोल कर) दर्ज करानी ही है. स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए गए भाषण के पश्चात उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने कह दिया था कि भाषण तो ठीक था मगर ‘इलैक्शन स्पीच’ जैसा लग रहा था. जीतनराम मांझी ने रोज पौवा पीने वाले बयान से पहले, रिश्वत दे कर अपना बिल (बिजली का) कम करवाने वाला बयान भी दिया था. इन नेताओं को भ्रष्टाचार की जड़ें पता होती हैं तो सतता में आने पर भी कुछ करते क्यों नहीं, यह ताज्जुब की बात है.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

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अक्तूबर (प्रथम) अंक, जो दीवाली विशेषांक था, बहुत पसंद आया. विशेषकर ‘डाइटिंग छोड़ें डाइट का मजा लें’ लेख उपयुक्त समय पर उचित चीज प्रस्तुत करता है. लेखक ने यह बिलकुल सही कहा कि आज हम डाइटिंग के चक्कर में तीजत्योहारों का आनंद लेना भूल गए हैं. यह तो प्रत्यक्ष ही है कि इस अवसर पर हर प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं. हां, हम डाइटिंग के चक्कर में उन का लुत्फ न उठाएं, यह अलग बात है. खुशी के इस अवसर पर पूरे परिवार के साथ इन का मजा लीजिए. भोजन पर संयम रखना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी उपर्युक्त अवसरों का आनंद लेना भी है.    

कृष्णा मिश्रा, लखनऊ (उ.प्र.)

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सख्ती जरूरी है

जब व्यक्ति आसानी से नहीं सुधरता तो उस से कड़ाई से पेश आया जाता है. मामला शहर में फैले अतिक्रमण का है. अवैध रूप से कारोबार करने वालों से रास्ते तंग हो गए हैं. इन की माली हालत अच्छी न समझ प्रशासन भी इन पर सख्त नहीं होता. प्रशासन अतिक्रमण करने वालों को हटाता तो है लेकिन ये फिर से उसी जगह पर आ जाते हैं. इन के साथ सख्ती किए जाने की जरूरत है. इन्हें स्थायी तौर पर हटा दिया जाना चाहिए. ये नगरपालिका की जमीन का उपयोग करते हैं, उस का कोई किराया, टैक्स नहीं देते.

दिलीप गुप्ता, बरेली (उ.प्र.)

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अंधभक्ति का हश्र

आजकल मंदिरों और धार्मिक मेलों में भगदड़ बढ़ रही है और लोग मर रहे हैं. 3 अक्तूबर को पटना में विजयदशमी के मेले में भगदड़ मच गई, जिस में 37 लोग मारे गए. भारत में अंधविश्वास के कारण लोग मंदिरों और मेलों में जाते हैं. भीड़ को कम करने का कोई उपाय नहीं किया जाता. अच्छा है भीड़ को कम करने के लिए ऐसे स्थानों पर टिकट लगाया जाए. इस से भीड़ कम होगी और कमाई भी हो जाएगी. गरीबों के लिए टीवी पर प्रोग्राम दिखाए जाएं.       

इंदर गांधी, करनाल (हरि.)

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जानवरों के बच्चे

हमारा देश, जो हमेशा से दूसरे के गुणों, संस्कृतियों को अपनाने की संस्कृति को बढ़ावा देता रहा है, दूसरे धर्मों को अपने अंदर समाहित रखने का गुण रखता है, आज इसी देश की औलादें जानवरों में तबदील होती जा रही हैं जो अपने ही देश के निवासियों (पूर्वोत्तर भारतीयों) के साथ बुरा बरताव कर रही हैं. यह काम तो जानवरों का है जो अपनी भूख मिटाने को अपनी ही औलादों को खा जाते हैं. जिस देश में समानता का अधिकार है, वहां के लोग अपने ही देश के लोगों को बाहरी साबित करें, क्या यह उचित है? क्या हम अपने ही देश के टुकड़े कर देंगे? एक नया देश बनने देंगे या पूर्वोत्तर के लोगों में और उन के दिलों में अपने देश के लिए प्रेम पैदा करेंगे या उन को अलगाववाद की आग में झोंक देंगे? जरा सोचें, ‘हिंदी हैं हम वतन हिंदोस्तां हमारा’ गीत कितना सच होगा?

सुमित कौशल, आगरा (उ.प्र.)

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सौहार्द से कोई लेनादेना नहीं

राष्ट्रीय पर्वों पर हम ‘सारे जहां से अच्छा…मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना…’ गीत गाते हैं. ऐसे आजादी के तराने सुन कर हम भावुक होते हैं. लेकिन इन गीतों से कोई संदेश नहीं लेते. आज बस सांप्रदायिक तनाव की बात होती है. कोई एक स्थान पर मसजिद बनाना चाहता है, दूसरा समुदाय इस का विरोध करता है. कभी अपनी बात ऊंची रखने के लिए झगड़ा होता है. हिंदू शोभायात्राएं निकालते हैं तो मुसलमान भी किसी बहाने अपनी यात्राएं निकालते हैं. इन का भी सांप्रदायिक सौहार्द से कोई लेनादेना नहीं होता बल्कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होता है. जब भी कोई धार्मिक पर्व होता है तो लोगों की जानमाल की रक्षा हेतु प्रशासन पुलिस की ड्यूटी लगाता है, फिर भी हमारे नेता सियासतबाजी कर के माहौल गरमाते हैं.

 दिलीप, बरेली (उ.प्र.)

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सम्मान मिले महिलाओं को

सम्मान की इच्छा करने वाले को सम्मान नहीं मिलता. वह मिलता उसे ही है जो उस की चिंता बिना किए ही अपने कर्तव्य पर डटा रहता है. नारी को भोगने की वस्तु समझा जाता है. हिंदू संस्कृति कहती है कि नारी को बहन और मां की तरह सम्मान देना चाहिए पर उस के लिए नारी को भी अपने चरित्र में बदलाव लाना होगा. आज का पहनावा, बोलचाल भी आदमी को नारी के खिलाफ भड़काती है. पुराने समय में कहा जाता था आदमी अंगार है और नारी घी के समान है. दोनों को साथसाथ काम नहीं करना चाहिए. चाणक्य के अनुसार, नारी में यौन इच्छा आदमी से 8 गुणा अधिक होती है. अब गर्भ का डर कम है. गोलियां हैं, अबौर्शन है, इसलिए वे शौर्टकट से काम कराने में बोल्ड हो गई हैं. कई बार शौर्टकट से काम कराने में धोखे का भी सहारा लेती हैं. झूठे बलात्कार का आरोप लगाती हैं. दहेज मांगने के झूठे आरोप में फंसवाती हैं. कानून का दुरुपयोग करती हैं. ऐसे में नारी को सम्मान कैसे मिलेगा?  

इंदर, अंबाला छावनी (हरियाणा)

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जीवन में उजाला भरा रहे

दीवाली विशेषांक का अग्रलेख ‘आत्मविश्वास के उजाले में मनाएं रोशनी का पर्व’ पढ़ा. पढ़ कर लगा कि जिस व्यक्ति के अंदर आशा का दीया जलता रहे वह प्रेम, शांति, आत्मविश्वास और साहस का दीया जला कर सरलता से सफलता पा सकता है और अपना जीवन सफल बना सकता है. अच्छे और बुरे पल प्रत्येक मनुष्य के जीवन में आते हैं. अच्छे और सुनहरे पल उज्ज्वलता के सूचक होते हैं तो बुरे पल कालिमा से भरे होते हैं. मनुष्य को सदा अपने सामने जीवन का उज्ज्वल पक्ष ही रख कर सोचना चाहिए. जीवन के उज्ज्वल पक्ष को सामने रखने वाला व्यक्ति ही आशावादी होता है. आशा के कारण ही व्यक्ति गंभीर बीमारियों से भी मुक्ति पा लेता है और अपने जीवन को निरोग, स्वस्थ व सरल बनाता है.

जीवन में यदि आशा का दीपक जलता रहे तो फिर किसी भी दीए के बुझने की चिंता नहीं होती क्योंकि आशा का दीपक प्रत्येक बुझे दीपक को फिर से जला देता है और व्यक्ति के जीवन में खुशियों व सफलता के ऐसे अनगिनत दीयों को जला देता है जिन का प्रकाश पूरे परिवार को जगमग कर देता है. इसलिए तो कहा जाता है कि जलता रहे आशा का दीपक.        
 

शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी, फिरोजाबाद (उ.प्र.)

जरूरी है निवेश में नौमिनी होना

शिप्रा को 2 महीने हो गए बैंक के चक्कर काटते हुए. एक तो असमय पति का साथ छूट गया, ऊपर से बतौर नौमिनी उन का नाम दर्ज न होने की वजह से उन के बैंक अकाउंट में जमा रुपए और लौकर में रखे गहने निकालने के लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करतेकरते वे टूट सी गईं. गलती बैंक वालों की नहीं थी. शिप्रा के पति ने जरा सी समझदारी से काम लिया होता, तो इतनी जटिलताएं उत्पन्न नहीं होतीं. कुछ आसान सी औपचारिकताएं पूरी करते ही शिप्रा को उन के खाते में जमा रकम और लौकर खोल कर उस में रखा सामान निकालने की सुविधा मिल जाती.

अकसर ऐसी गलती बहुत से लोग करते हैं. शेयरों, म्यूचुअल फंड्स, फिक्स डिपौजिट्स या अन्य जमाओं के फौर्म भरते वक्त हम नौमिनेशन वाले कौलम को गैरजरूरी मानते हुए नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि फौर्म के इस कौलम को निवेश वित्तीय संस्थाओं ने आवश्यक न रख कर वैकल्पिक/ऐच्छिक श्रेणी में रखा है. नौमिनी न नियुक्त होने की सूरत में निवेशक की मृत्यु होने की स्थिति में जमा रकम को प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो जाता है. कई सारी कानूनी औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद ही उसे प्राप्त किया जा सकता है. निवेशक ने नौमिनी नियुक्त कर रखा हो, तो बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा दिए गए फौर्म के साथ मृत्यु प्रमाणपत्र संलग्न कर के या आवेदन के साथ मृत्यु प्रमाणपत्र संलग्न कर के जमा कर देने पर आसानी से जमा रकम को प्राप्त किया जा सकता है. वहीं नौमिनी न होने की सूरत में वसीयतनामा, कानूनी उत्तराधिकारियों की प्रमाणीकृत सूची आदि देने की आवश्यकता पड़ जाती है.

क्या है नौमिनी

नौमिनी एक ऐसी व्यवस्था है जिस के अंतर्गत निवेशक अपनी संपत्ति में अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सकता है और निवेशक के न होने पर नौमिनी उस की संपत्ति पर अपना दावा पेश कर सकता है. कोई भी व्यक्ति अपनी चल, अचल संपत्ति के अलावा जीवन बीमा, भविष्य निधि, बैंक खातों, फिक्सड डिपौजिट और डीमैट में नौमिनी बना सकता है. डाकघर की कुछ योजनाओं जैसे पीपीएफ, कर्मचारी भविष्य निधि और जीवन बीमा की कुछ पौलिसियों में एक से ज्यादा नौमिनी बनाए जा सकते हैं. इन योजनाओं में मातापिता, पतिपत्नी को 50:50 फीसदी का उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है.

भागमभाग की जिंदगी में जहां कभीकभी कुछ भी दुर्घटना घटित हो सकती है. ऐसे में घर के कमाने वाले सदस्य के चले जाने पर परिवार को आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े इस के लिए जरूरी है कि पति विवाह के बाद अपनी प्रौपर्टी, बीमा पौलिसी या अन्य निवेश में अपनी पत्नी को नौमिनी बनाए. महिलाओं को नौमिनी बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और बीमा नियामक प्राधिकरण (इरडा) भी निवेशकों को समयसमय पर प्रेरित कर रहा है ताकि पति के न होने की स्थिति में उसे संकट का सामना न करना पड़े.

जानने योग्य बातें

  1. अधिकांश निवेश प्रपत्रों में नौमिनी का नाम, उम्र, पता और निवेशक से संबंध आदि जानकारियां दर्ज करने के लिए कौलम बने होते हैं. इन्हें अवश्य पूर्ण करें.
  2. निवेश के समय, नौमिनी का नाम आदि दर्ज करना भूल गए हों तो संबंधित बैंक/शेयर ब्रोकर/म्यूचुअल फंड या वित्त संस्था से नौमिनी फौर्म मांग कर तुरंत उसे भर कर जमा कर दें. नौमिनी पंजीकरण की संख्या दी जाती है, उसे भी जान लें.
  3. जरूरत पड़ने पर एक से अधिक नौमिनी भी नियुक्त किए जा सकते हैं और उन के हिस्से के प्रतिशत का उल्लेख भी किया जा सकता है. इस के लिए संबंधित संस्थान से सलाह लेना उचित होगा.
  4. अगर निवेशक एक से ज्यादा हैं तो सभी संयुक्त निवेशकों द्वारा नौमिनेशन फौर्म में हस्ताक्षर करना जरूरी होता है. भले ही औपरेट करने का निर्देश कुछ भी दिया गया हो.
  5. नौमिनी निवेश को अपने खाते में ट्रांसफर करवा सकता है, जिसे बाद में वह निकाल सकता है. इस के लिए उसे पैन कार्ड का ब्यौरा और केवाईसी की औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ सकती हैं.
  6. हिंदू संयुक्त परिवार के कर्ता और पावर औफ एटौर्नी होल्डर नौमिनेशन करने या बदलने के लिए अधिकृत नहीं होते. इन्हें किसी निवेश में नौमिनी भी नियुक्त नहीं किया जा सकता है.
  7. आप्रवासी भारतीय को नौमिनी नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन निवेश की रकम भारतीय करैंसी में ही दी जाती है.
  8. अधिकांश मामलों में व्यक्तिगत हैसियत से ही किसी को नौमिनी नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन कुछ निवेशों में ट्रस्ट या शैक्षणिक संस्थानों को भी नौमिनी बनाया जा सकता है.

नज़ारों से भरपूर ओडिशा

भारत में कुछ पर्यटन स्थल ऐसे हैं जो अपनी संस्कृति व विरासत के मामले में अनूठे हैं. ओडिशा राज्य उन्हीं में से एक है. आप को जान कर हैरानी होगी कि ओडिशा के 3 प्रमुख दर्शनीय स्थल मितरकर्णिका वन्यजीव अभयारण्य, चिलका झील तथा ऐतिहासिक शहर भुवनेश्वर को संयुक्त राष्ट्र वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है. एक ओर जहां ओडिशा का लहलहाता हरित वन आवरण फलफूलों तथा पशुपक्षियों की व्यापक किस्मों के लिए मेजबान का काम करता है वहीं वहां चित्रलिखित सी पहाडि़यों तथा घाटियों के मध्य अनेक चौंका देने वाले प्रपात तथा नदियां हैं जो विश्वभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 500 किलोमीटर तटरेखा वाले ओडिशा में जहां बालेश्वर तट, चांदीपुर तट, कोणार्क तट, पारद्वीप तट, पुरी तट हैं जो उत्तर भारत के पर्यटकों को नया अनुभव देते हैं वहीं प्राकृतिक सौंदर्य, लहलहाते हरित वन आवरण, फलफूलों तथा पशुपक्षियों की मेजबानी करते अभयारण्य, जैसे नंदन कानन अभयारण्य, चिलका झील पक्षी अभयारण्य हैं, जो वनस्पतियों और जीवजंतुओं को कुदरती वातावरण में फलनेफूलने का मौका देते हैं.

चिलका झील

एशिया की सब से बड़ी खारे पानी की झील चिलका सैकड़ों पक्षियों को आश्रय  देने के साथसाथ भारत के उन कुछेक स्थानों में से है जहां आप डौल्फिन का दीदार भी कर सकते हैं. राज्य के समुद्रतटीय हिस्से में फैली यह झील अपनी खूबसूरती एवं वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है. अफ्रीका की विक्टोरिया झील के बाद यह दूसरी झील है, जहां पक्षियों का इतना बड़ा जमघट लगता है. चिलका झील ओडिशा की एक ऐसी सैरगाह है जिसे देखे बिना ओडिशा की यात्रा पूरी नहीं हो सकती. सूर्य की किरणें व झील के ऊपर मंडराते बादलों में परिवर्तन के साथ यह नयनाभिराम झील दिन के हर पहर में अलगअलग रूप व रंग में नजर आती है.

फूलबानी

पूर्वी भारत के मध्य ओडिशा राज्य में बसा फूलबानी शहर प्राकृतिक दृष्टि से काफी खूबसूरत स्थान है. चारों ओर पहाड़ों से घिरे फूलबानी के 3 ओर पिल्लसंलुकी नदी बहती है. फूलबानी, कंधमाल जिले का मुख्यालय है जहां आ कर पर्यटकों को सुकून मिलता है. भीड़भाड़ से दूर इस इलाके में अपूर्व शांति है. पहाडि़यों की चोटियों से फूलबानी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. यहां सितंबर से मई के बीच कभी भी जाया जा सकता है. भुवनेश्वर यहां का निकटतम हवाई हड्डा है जबकि बहरामपुर निकटतम पूर्वीय तटीय रेलवेलाइन पर स्टेशन है जो भारत के मुख्य नगरों से जुड़ा हुआ है. ओडिशा का कंधमाल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथसाथ हस्तशिल्प के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां के दरिंगबाड़ी को ओडिशा का कश्मीर कहा जाता है. दिलोदिमाग को तरोताजा करने के लिए यह नगर श्रेष्ठ है. यहां का वन्य जीवन, पहाड़ व झरने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. फूलबानी से 98 किलोमीटर दूर कलिंग घाटी है. इस घाटी के पास ही दशमिल्ला नामक स्थान है जहां पर सम्राट अशोक ने कलिंग का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा था. यह घाटी सिल्वी कल्चर गार्डन व आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी जानी जाती है.

चंद्रभागा समुद्री तट

ओडिशा का चंद्रभागा समुद्री तट सैरसपाटे, नौका विहार व तैराकी के लिए बेहतरीन जगह है. अगर आप अपने कुछ खास पलों को खूबसूरत यादगार का रूप देना चाहते हैं तो यहां जरूर आएं. कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर जिसे वहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस तट पर वार्षिक चंद्रभागा मेला लगता है. इस दौरान यह तट पर्यटकों, रंगों व प्रकाश से जीवंत हो उठता है. यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है. इस के अतिरिक्त यह पुरी, कोलकाता, दिल्ली, अहमदाबाद, विशाखापट्टनम आदि शहरों के रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है.

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