Download App

पाठकों की समस्याएं

मैं 26 वर्षीया युवती हूं. मातापिता का बचपन में ही देहांत हो गया था, तब से मैं अपनी मौसी व मौसा के साथ रहती हूं. मेरी मौसी एक प्राइवेट संस्थान में नौकरी करती हैं और मौसा घर पर  रहते हैं. मेरी समस्या यह है कि मौसी जैसे ही सुबह नौकरी पर चली जाती हैं, मौसा मेरे साथ जोरजबरदस्ती करते हैं और शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं. शुरूशुरू में मैं ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की पर वे अपनी बात पर अड़े रहे. वे मुझे धमकाते हैं कि अगर मैं ने उन की बात नहीं मानी तो वे किसी न किसी बहाने मुझे घर से निकाल देंगे और मुझे बदनाम कर देंगे. मौसी को इस बारे में कुछ भी पता नहीं है. मैं उन की इस जबरदस्ती से तंग आ चुकी हूं. जब भी मेरी शादी के लिए कोई रिश्ता आता है तो वे उस लड़के में कोई न कोई कमी निकाल कर शादी के लिए टाल देते हैं. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं, कहां जाऊं? कोई आसरा नहीं है. क्या इस बारे में मुझे अपनी मौसी से बात करनी चाहिए? कहीं वे मुझ पर अविश्वास तो नहीं करेंगी? मैं डरती हूं कि मेरे मौसा के बारे में सचाई बताने से कहीं मौसी की जिंदगी बरबाद न हो जाए. मैं उन से कैसे पीछा छुड़ाऊं. मैं उन से नफरत करती हूं, फिर भी मजबूरीवश मुझे यहां रहना पड़ रहा है. मैं बहुत परेशान हूं. मेरी समस्या का समाधान करें.

युवतियों, महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण की अधिकांश घटनाएं, उन के अपने घरों में, उन के अपने नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा घटित होती हैं और डर व मजबूरीवश अधिकांश मासूम लड़कियां सबकुछ चुपचाप सहती रहती हैं. आप के साथ ऐसा ही हो रहा है. हमारी सलाह है कि आप बिना डरे इस शोषण के बारे में अपनी मौसी से बात करें और यदि आप को झिझक हो रही है तो घर के किसी विश्वस्त सदस्य को इस बारे में बताएं और उन्हें मौसी से इस बारे में बात करने को कहें. आप डर रही हैं, इसलिए आप के मौसा फायदा उठा रहे हैं. आप को अपने खिलाफ हो रहे इस अपराध के खिलाफ आवाज उठानी होगी और डट कर इस का मुकाबला करना होगा. आप की मौसी को अपने पति की इस गंदी हरकत का अवश्य पता चलना चाहिए. मौसी व मौसा के रिश्ते को बचाने के लिए आप अपनी जिंदगी दांव पर हरगिज न लगाएं. आप 26 वर्ष की हैं, अगर पढ़ीलिखी हैं, अपने पैरों पर खड़ी हैं तो यहां से चली जाएं लेकिन अपने मौसा की सचाई सब को बता कर जाएं, ताकि समाज के सामने उन का घिनौना चेहरा उजागर हो सके और उन्हें उन के दुष्कर्म की सजा मिले.

*

मैं 28 वर्षीया अविवाहित युवती हूं. 3 वर्षों से एक लड़के से प्यार करती थी. लेकिन 1 साल पहले उस लड़के की कहीं और शादी हो गई. वह लड़का कहता है कि उस ने मजबूरीवश शादी की थी और वह आज भी मुझ से प्यार करता है और शादी करना चाहता है. मैं बहुत कन्फ्यूज्ड हूं कि मैं क्या करूं. कृपया मेरी मदद कीजिए.

प्यार और शादी कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं है. आप की बातों से लगता है कि आप ने इसे गुड्डेगुडि़यों का खेल ही समझ रखा है कि जब चाहे किसी से प्यार कर लिया, फिर किसी और से शादी कर ली, फिर पहले वाले से प्यार हो गया. में रिश्ते सोचसमझ कर बनाए व निभाए जाते हैं. आप के लिए यही सलाह है कि आप उस लड़के को भूल जाइए और उस से कहिए कि भले ही उस ने शादी मजबूरीवश की है लेकिन अब उस लड़की की जिंदगी बरबाद न करे. अब उसी के साथ निभाए. उसी से प्यार करे. आप उस लड़के की तरफ से ध्यान हटा कर अपनी नई भावी जिंदगी के बारे में सोचिए. जिंदगी दो नावों पर सवार हो कर नहीं जी जा सकती. अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाइए और अपना ध्यान इधरउधर मत भटकाइए. आप के भटकाव से उस लड़की की जिंदगी तो बरबाद होगी ही, आप भी कहीं की न रहेंगी.

*

मैं एक विवाहित महिला हूं. उम्र 47 वर्ष है. मेरी समस्या यह है कि मेरे पति ने अब तक मुझ से कभी प्यार से बात नहीं की. जराजरा सी बात पर गुस्सा हो जाते हैं. सहवास में भी मेरी इच्छा या अनिच्छा उन के लिए कोई माने नहीं रखती. मुझे बेमन से उन का साथ देना पड़ता है. हाल ही में एक लड़का मेरी जिंदगी में आया है. वह उम्र में मुझ से काफी छोटा है. वह मुझे अच्छा लगता है लेकिन वह मुझे पसंद करता है या नहीं, यह मैं नहीं जानती पर मुझे उस में कुछ आकर्षण दिखाई देता है और मेरा मन उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने को करता है पर डर के मारे मैं अभी तक हिम्मत नहीं कर पाई हूं. मैं क्या करूं? बहुत असमंजस की स्थिति में हूं. एक तरफ पति का बेरुखापन है तो दूसरी तरफ उस नवयुवक की तरफ आकर्षण. समझ नहीं आता क्या करूं. अपने मन को किस तरह समझाऊं.

आप ने इतने वर्षों तक पति का साथ निभाया है लेकिन आज आप को उन में कमियां दिखाई दे रही हैं. उम्र के इस पड़ाव पर अपने से कम उम्र के युवक के प्रति आप का आकर्षण आप को शोभा नहीं देता. आप ने यह नहीं बताया कि आप के बच्चे हैं या नहीं और अगर हैं तो कितने बड़े हैं. आप अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचिए. उन में अपना मन लगाइए. और आप ने अब तक अगर उस लड़के से शारीरिक संबंध बनाने की हिम्मत नहीं की है तो आगे भी न करें. यह आप की और उस लड़के दोनों की जिंदगी में तूफान ले आएगा. वह लड़का अभी मैच्योर नहीं है, उसे सहीगलत की समझ नहीं है लेकिन आप समझदारी से काम लीजिए और अपने पति से जो शिकायत है उसे सुलझाने की कोशिश कीजिए.

सचेत रहें एटीएम धारक

जबलपुर निवासी राकेश मुदलियार के मोबाइल पर कौल आई. कौल करने वाले ने खुद को बैंक का शाखा प्रबंधक बताते हुए उन से कहा, ‘‘आप का एटीएम कार्ड बहुत पुराना हो गया है और जांच के लिए आप का कार्ड बंद करना पडे़गा.’’ उस के बाद उस ने एटीएम नंबर मांगा. फिर एक नंबर दिया और कहा कि इस नंबर में अपना एटीएम पिन जोड़ दें तो उन्हें नया एटीएम पिन दे देंगे. जैसा उस तथाकथित बैंक अधिकारी ने कहा, राकेश ने वैसा ही किया. फिर क्या था उन के बैंक खाते से 78,400 रुपए निकाल लिए गए 

इस घटना के 4 दिन बाद ही संजय के मोबाइल पर फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘मैं बैंक के मुंबई औफिस से जनरल मैनेजर बोल रहा हूं. तुम्हारा एटीएम 1 घंटे बाद बंद हो जाएगा. अगर एटीएम चालू रखना है तो एटीएम कार्ड के ऊपर लिखा नंबर बता दो.’’ उस की बातों में आ कर संजय ने नंबर बता दिया. उस ने पासवर्ड पूछा तो 4 नंबर का पासवर्ड भी बता दिया. फिर क्या था उस व्यक्ति ने 27 हजार रुपए की खरीदारी कर ली. पुलिस ने मोबाइल धारक के विरुद्ध भादंवि की धारा-420 एवं 66 आईटी ऐक्ट का अपराध पंजीबद्ध कर दिया. इस तरह की ठगी एटीएम धारकों के साथ की जा रही है. एटीएम धारकों के साथ ठगी करने वाले गिरोह कुछ दिन शांत रहने के बाद फिर से सक्रिय हो जाते हैं. गिरोह के सदस्य अपनेआप को बैंक का अधिकारी बता कर लोगों को ठग रहे हैं.

ऐसे भी ठगे जा रहे हैं

एटीएम धारक एटीएम मशीन के पास भी ठगी का शिकार हो रहे हैं. एटीएम मशीन से पैसे निकालते समय यदि राशि नहीं निकल रही है, तो वहीं खड़ा व्यक्ति आप की मदद करने को आ जाएगा और आप से एटीएम कार्ड ले कर उसे देखेगा, एटीएम मशीन में डालेगा, फिर निकालेगा. इसी दौरान वह हाथ की सफाई दिखाते हुए आप को दूसरा एटीएम कार्ड थमा देगा और आप से एटीएम मशीन में डालने को कहेगा और पिन नंबर भी डालने को कहेगा, जिसे वह याद कर लेगा. जब पैसे नहीं निकले तो एटीएम मशीन खराब होने की बात कहेगा. यह सुन कर आप घर चले जाएंगे. फिर वह व्यक्ति आप के एटीएम कार्ड से पैसे निकाल लेता है. यही नहीं, जहां हम एटीएम कार्ड डालते हैं वहां पर कार्ड को रीड करने वाली मशीन लगा दी जाती है और जहां पिन नंबर डालते हैं, ठीक उस के ऊपर एक कैमरा लगा देते हैं, जो पिन नंबर को रीड कर लेता है और वह पिन नंबर पैनड्राइव में सेव हो जाता है. इस तरह की ठगी का कोई ठोस समाधान नहीं निकला तो एटीएम धारक अपना एटीएम कार्ड बंद करवा कर सीधे बैंक से ही ट्रांजैक्शन करने लगेंगे और तब बैंक वालों का काम फिर से बढ़ जाएगा.

हालांकि सभी बैंकों में स्पष्ट लिखा हुआ होता है कि बैंक शाखा के अधिकारी या कर्मचारी एटीएम के पिन से संबंधित जानकारी कभी अपने ग्राहकों से नहीं पूछते. यदि कोई व्यक्ति अपनेआप को बैंक अधिकारी बता कर आप से एटीएम कार्ड की तथा कुछ व्यक्तिगत जानकारी जैसे एटीएम कार्ड नंबर, वैधता दिनांक, आप का नाम, पता, बैंक का खाता नंबर, जन्मतिथि और अंत में धीरे से एटीएम पिन नंबर भी मांगता है तो सचेत हो जाएं. यह इतना सुनियोजित ढंग से होता है कि व्यक्ति उक्त सारी जानकारी बिना सोचेसमझे दे डालता है. कुछ ही घंटों के बाद उसे पता चलता है कि उस के खाते से किसी ने महंगा सामान खरीद लिया है या उस के खाते से हजारों का कैश निकल चुका है.

क्या है साइबर क्राइम?

किसी भी व्यक्ति की आइडैंटिटी या पहचान चोरी कर के उस के व्यक्तिगत बैंक खाते तथा सोशल अकाउंट की जानकारी हासिल कर उन का दुरुपयोग करना साइबर क्राइम श्रेणी में आता है. अकेले अमेरिका में इंटरनैट का उपयोग करने वाले 64 प्रतिशत लोग इस के शिकार हो चुके हैं. वहां हर 10 में से एक उपभोक्ता आइडैंटिटी थैफ्ट के जाल में फंस जाता है. यदि आप की भी पहचान चोरी हुई है तो उस का पुख्ता प्रमाण अपने पास रखें, जैसे किसी ने आप की फर्जी आईडी बना कर किसी सोशल साइट पर आपत्तिजनक तसवीरें, कमैंट्स या अन्य चीजें पोस्ट की हैं, आप उस का पिं्रट निकाल कर रख लें और शीघ्र ही साइबर क्राइम ब्रांच में इस की शिकायत करें. तकनीक के फायदे हैं तो उस के नुकसान भी हैं. लोग इस का गलत उपयोग भी कर रहे हैं. ऐसा कोई भी इलैक्ट्रौनिक यंत्र, जो किसी सूचना को अपने में समेटता है और फिर उस सूचना का उपयोग अवैधानिक तरीके से किया जाता है, तो यह साइबर क्राइम पर नियंत्रण के लिए बनाए गए आईटी ऐक्ट के दायरे में आता है.

बड़ी विडंबना यह है कि साइबर क्राइम ब्रांच मात्र बड़ेबड़े शहरों में ही है. यदि अपराधी पकड़ा जाता है तो न्यायालय में प्रकरण दायर करने के लिए व्यक्ति को उसी शहर में जाना पड़ता है, जहां पर साइबर क्राइम की ब्रांच होती है. ऐसे में गांव के लोग न्याय से वंचित हो रहे हैं. उपरोक्त साइबर क्राइम यूनिट के अलावा महाराष्ट्र के थाणे व पुणे, गुजरात के गांधीनगर, झारखंड के रांची, हरियाणा के गुड़गांव, जम्मूकश्मीर के जम्मू, केरल के तिरुअनंतपुरम, बिहार के पटना, पंजाब के पटियाला, पश्चिम बंगाल के कोलकाता, उत्तर प्रदेश के लखनऊ व आगरा, उत्तराखंड के देहरादून आदि के पुलिस कार्यालय में साइबर क्राइम यूनिट उपलब्ध हैं.

दिन दहाड़े

हमारा संयुक्त परिवार है, घर काफी बड़ा है. डेढ़ साल से कोई मेड भी नहीं थी. ऐसे में ससुरजी ने एक लड़की को काम पर रखा. लड़की चुप रहती पर काम तेजी से व साफसफाई से करती थी. वह सुबह 10 बजे आती और शाम 6 बजे जाती. उसे काम पर आए 3 दिन ही हुए थे. एक दिन मैं ने उसे शाम को 5 बजे छोटी देवरानी के रूम से आते देखा. मैं ने पूछा, ऊपर क्यों गई थी तो कहने लगी वाशरूम गई थी. मैं ने कहा, हमारे यहां सर्वेंट वाशरूम अलग बना हुआ है. ऊपर मत जाया करो. 10 मिनट बाद ही वह घर चली गई. मुझे शक हुआ. मैं ने चैक किया. उस ने मेरी ही अलमारी से नकदी व कुछ जेवर चुरा लिए थे. वह मेरी अलमारी पर नजर रखे थी. लेकिन परिवार के साथ सहयोग व पुलिस प्रशासन की तत्परता से 4 घंटे के भीतर ही वह पकड़ी गई. मुझे मेरा सामान मिल गया.

सोनाली जैन, राजनांदगांव (छ.ग.)

*

मेरी पड़ोसिन के यहां एक महिला आई. उस ने खुद को शहर की नामी दुकान का कर्मचारी होना बताया. पड़ोसिन को दुकान की एक स्कीम बताई और उसे 2 नारियल (जो मिट्टी के बने हुए थे) दिए. उस ने कहा कि नारियल को फोड़ने पर एक में से दुकान से कोई भी इलैक्ट्रौनिक सामान खरीदने पर 3 हजार से 5 हजार रुपए तक का डिस्काउंट कूपन व दूसरे नारियल में से एक निश्चित उपहार की पर्ची निकलेगी. पड़ोसिन उस महिला की बातों में आ गई. उस ने महिला से 500 रुपए में मिट्टी के 2 नारियल खरीद लिए. एक नारियल को फोड़ने पर दुकान का 5 हजार रुपए का डिस्काउंट कूपन निकला. दूसरे नारियल में से चम्मच सैट की पर्ची निकली. वह महिला, पड़ोसिन को चम्मच सैट, जिस की कीमत 100 रुपए होगी, और दुकान के नाम का डिस्काउंट कूपन दे कर चलती बनी. दूसरे दिन पड़ोसिन डिस्काउंट कूपन ले कर दुकान पहुंची. दुकानदार ने ऐसी किसी भी स्कीम देने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह महिला हमारी दुकान की कर्मचारी नहीं है, साथ ही यह कूपन भी फर्जी है. 

भावना भट्ट, भोपाल (म.प्र.)

*

हमारे पड़ोस में एक लड़का है. उस की उम्र लगभग 22 वर्ष है. स्वभाव से बड़ा मिलनसार व हंसमुख है. एक दिन वह सड़क के किनारे पैदल चलता हुआ बाजार से घर वापस आ रहा था. उस ने अपना मोबाइल फोन कान से लगा रखा था. अचानक तेज रफ्तार मोटरसाइकिल सवार 2 लोग पीछे से आए और मोबाइल फोन झपट कर फुर्र हो गए. वह लड़का ताकता व चिल्लाता रह गया, कोई कुछ न कर सका.

बृजलाल उमरार, जालौन (उ.प्र.)

मोबाइल फोनसेवा प्रदाता कंपनी का जलवा

हमारी आर्थिक तरक्की और गरीबों की संख्या घटने की रफ्तार भले ही धीमी हो, लेकिन देश का मोबाइल फोनसेवा का बाजार तेजी से तरक्की कर रहा है. आंकड़ों के अनुसार, देश में मोबाइल कनैक्शन आधी से अधिक आबादी के पास है. भारत की मोबाइल कंपनियां भी अच्छा कारोबार कर रही हैं. सरकारी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनियां बीएसएनएल और एमटीएनएल ईमानदारी से तो काम करती हैं लेकिन सेवा प्रदाता के रूप में उन की साख अच्छी नहीं है. अच्छी सेवा नहीं होने के कारण लोग इन कंपनियों की सेवा लेने से कतराते हैं. निजी क्षेत्र की कंपनियां भारती एअरटेल की देश में भी अच्छी स्थिति है. उपभोक्ता अच्छी सेवा प्रदाता कंपनी को प्राथमिकता देते हैं. देश में एअरटेल की स्थिति जो भी हो, लेकिन विदेशों में उस का डंका बज रहा है. वर्ल्ड सैल्युलर इनफौरमेशन सर्विस के हाल में जारी डाटा के अनुसार, सुनील भारती मित्तल की कंपनी भारती एअरटेल दुनिया की तीसरी सब से बड़ी मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी है. कंपनी के पास 30.30 करोड़ ग्राहक हैं. उस से पहले चाइना मोबाइल और वोडाफोन हैं जिन की ग्राहक संख्या क्रमश: 62.62 करोड़ तथा 40.30 करोड़ हैं. चीन की यूनीकौम तथा अमेरिका की मोविल उस की तुलना में पीछे हैं. दक्षिण एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीप के 20 देशों में एअरटेल यूनिकौम तथा मोविल से आगे है. एअरटेल का यह जलवा भारतीय मोबाइल फोनसेवा प्रदाता कंपनियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होना चाहिए और उन्हें पहले, देश में अपनी सेवाएं बेहतर बनाने के लिए काम करना चाहिए. मुश्किल यह है कि सभी भारतीय मोबाइल कंपनियां ग्राहकों के हितों के बजाय अपनी कमाई को महत्त्व दे रही हैं.

इलाज के लिए निजी अस्पताल लोगों की पसंद

सरकार हर साल स्वास्थ्य बजट बढ़ाती है और लोग स्वस्थ रहें, इस के लिए नीतियां बना कर आमजन को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने का दावा करती है. महानगरों से ले कर गांवों तक अस्पताल खोल कर लोगों को स्वास्थ्य सेवा तत्परता से देने का प्रचार किया जा रहा है जबकि हकीकत में ये सब नाममात्र की घोषणाएं हैं. गांव को तो छोड़ो, कसबों तक में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. वहां सिरदर्द, बुखार और सामान्य मरहमपट्टी के अतिरिक्त कोई व्यवस्था नहीं है. स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सरकार की इसी उदासीनता के चलते लोग निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हो रहे हैं. ‘मरता क्या न करता’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए गरीब भी निजी अस्पतालों में लुटने को बाध्य हैं. सरकारी अस्पतालों में जहां सुविधा है वहां शल्य चिकित्सा के लिए मरीजों की लंबी कतारें हैं और 8-10 माह बाद लोगों का नंबर आ रहा है. उस के ठीक विपरीत, निजी अस्पताल में एक सप्ताह में ही सर्जरी हो जाती है. लोग मजबूरन निजी अस्पतालों की तरफ भाग रहे हैं, इस से देश में गरीबी का आंकड़ा बढ़ रहा है. गरीब अपने मरीजों का इलाज सरकारी अस्पतालों की तुलना में 5 से 6 गुणा अधिक कीमत पर निजी अस्पताल में करा रहे हैं.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के 2014 के सर्वेक्षण के अनुसार, देश में 70 प्रतिशत लोग निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. एनएसएसओ ने 3.3 लाख लोगों पर कराए सर्वेक्षण के आधार पर कहा है कि शहरी क्षेत्रों में 79 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 72 प्रतिशत लोग इलाज के लिए निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं. लोगों के इस रुख को देखते हुए पिछले 10 साल में निजी अस्पतालों, चैरिटेबल संस्थाओं और क्लीनिकों की संख्या में 4 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च बहुत अधिक है. पिछले वर्ष सरकारी अस्पतालों में इलाज पर औसत खर्च 6,120 रुपए और निजी अस्पतालों में 25,850 रुपए दर्शाया गया है. एक दशक पहले यह अंतर लगभग दोगुना था. इसी तरह से कैंसर जैसी घातक बीमारी पर सरकारी अस्पतालों में औसत खर्च 24,526 रुपए और निजी अस्पतालों में78 हजार रुपए से अधिक बताया गया है. चर्म रोग जैसी बीमारियों में तो निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च 10 गुना से अधिक है.

सैट टौप बौक्स पर ‘मेक इन इंडिया’ का जादू

देश का हर घर केबल औपरेटरों की मनमानी से लंबे समय तक पीडि़त रहा है. उस सेवा के खट्टे अनुभव हर व्यक्ति की यादों का अटूट हिस्सा हैं. कई जगह आज भी लोग इस के संचालकों के दुर्व्यवहार से पीडि़त हैं. जिन नगरों में सरकार ने सख्ती दिखाते हुए सैट टौप बौक्स सेवा शुरू की है वहां भी केबल औपरेटरों की मनमानी थमी नहीं है.राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही कई औपरेटर हैं जो निर्धारित फौर्म में भरी गई सूचना के अनुसार उपभोक्ता को सेवा नहीं दे रहे हैं. हर माह केबल सेवा के बदले दिए जाने वाले भुगतान के लिए रसीद देने का तो सवाल ही नहीं उठता. औपरेटरों ने कार्ड बना रखे हैं और उसी पर सेवा के बदले लिए जाने वाले भुगतान की राशि दर्ज होती है. यह मनोरंजन कर चोरी का उन के लिए सुविधाजनक उपाय है. इन औपरेटरों की मनमानी से परेशान उपभोक्ता डीटीएच सेवा की तरफ भाग रहे हैं लेकिन वहां भी परेशानी है. सैट टौप बौक्स का बाजार फैल रहा है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. सरकार की इसे हर शहर में लागू करने की योजना है. सरकार सख्ती करे तो इस में पारदर्शिता को बरकरार रखा जा सकता है मगर चप्पेचप्पे पर बैठे घपलेबाज पारदर्शिता से डरते हैं और वे ऐसे सभी प्रयासों को व्यर्थ करने की कोशिश में लगे रहते हैं.

बहरहाल, सैट टौप बौक्स बनाने की कंपनियों में होड़ लग गई है. ये सारी कंपनियां‘मेक इन इंडिया’ नारे के तहत अपना कारोबार बढ़ाना चाहती हैं. भारतीय इलैक्ट्रौनिक्स बाजार को अपनी कुल मांग के लिए 65 फीसदी तक आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. हाल में दुपहिया वाहन बनाने वाली मशहूर कंपनी हीरो इंडिया ने सैट टौप बौक्स निर्माण की घोषणा की है और कंपनी की योजना इस कारोबार में अगले कुछ साल में 500 करेड़ रुपए खर्च करने की है.

ट्यूशन : एक जबरन जरूरत

5 वर्षीय अभिषेक एक पब्लिक स्कूल में पहली कक्षा का छात्र है. 2 बजे स्कूल से आने के बाद 4 बजे तक वह खानापीना और आराम करता है. 4 बजते ही अपना स्कूल बैग उठा कर एक और स्कूल यानी ट्यूशन जाने के लिए तैयार हो जाता है. यह दिनचर्या सिर्फ अभिषेक की ही नहीं, बल्कि स्कूल जाने वाले हर आयु व कक्षा के छात्रों की है. जीवनशैली में बदलाव, अभिभावकों की बढ़ती अपेक्षाएं, उच्च कैरियर की आकांक्षा, अभिभावकों के पास समयाभाव ने ट्यूशन को बच्चों की दिनचर्या का एक आवश्यक अंग बना दिया है. लेकिन क्या सिर्फ उपरोक्त कारण ही ट्यूशन को एक जरूरी जरूरत बनाते हैं? ट्यूशन क्यों एक जरूरी जरूरत बन गई है? क्यों ट्यूशन के बिना हर अभिभावक व विद्यार्थी स्वयं को बेसहारा महसूस करता है? पल्लवी गुप्ता, जिन की बेटी राधिका दूसरी कक्षा में पढ़ती है, कहती हैं, ‘‘आज हर जगह इतना कंपीटिशन हो गया है कि बिना प्रोफैशनल सहयोग के बच्चों को आगे रखना बहुत ही मुश्किल हो गया है. परीक्षाएं, पाठ्यक्रम सभीकुछ इतना तनावपूर्ण है कि हर कदम पर एक मददगार की जरूरत पड़ती है. ऐसे में आज की पीढ़ी व अभिभावक दोनों ही एक ऐसा समस्यासाधक चाहते हैं जो उन्हें हर कदम पर हर समय पढ़ाई व कैरियर के क्षेत्र में मदद कर सके फिर चाहे वह रोजमर्रा का होमवर्क हो, स्कूली परीक्षाएं हों या नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं. स्कूल द्वारा दिए गए होमवर्क, जो नएनए विषयों से भरे होते हैं, आम आदमी की समझ से बाहर होते हैं.’’

ट्यूटर ट्रबलशूटर

पहले जितनी अंगरेजी की जानकारी छठीसातवीं कक्षा के छात्र को होती थी आज उस से अधिक, अच्छी अंगरेजी एक नर्सरी का छात्र जानता है. अच्छे पब्लिक स्कूलों के छात्र ऐसी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते हैं कि बड़ों में भी हीनभावना आ जाती है. ऐसे में बच्चों को समय के साथ हर जरूरी जानकारी देने, कक्षा में आगे रहने के लिए ट्यूशन एक मूलमंत्र बन गया है. ट्यूटर न केवल छात्रों को परीक्षाओं के लिए तैयार कराते हैं बल्कि रोज के कठिन होमवर्क से भी निजात दिलाते हैं. इन ट्यूटर की एक निश्चित कार्यशैली होती है जिस में निश्चित समय के अंदर कोर्स पूरा कराना, साप्ताहिक टैस्ट ले कर अच्छे अंक दिलाना उन का मुख्य ध्येय होता है. रश्मि जौहरी, जो स्वयं एक पत्रकार हैं, मानती हैं कि अपने बच्चों को एक जगह 1 घंटे के लिए बैठा कर पढ़ाना अपनेआप में एक समस्या है, ऊपर से कठिन पाठ्यक्रम की अधूरी जानकारी बच्चों के सामने अभिभावकों को अनपढ़ व अज्ञानी सिद्ध कर देती है. ट्यूशन भेजने से बच्चा गृहकार्य, अपनी परीक्षाओं के बारे में गंभीर रहता है और ध्यान से मन लगा कर बढ़ता है. रश्मि जब अपनी तीसरी कक्षा की बेटी को पढ़ाने बैठती थीं तो थोड़ी ही देर में परेशान हो कर झुंझला जाती थीं. ऐसे में केवल समय बरबाद होता था, कुछ परिणाम हाथ नहीं आता था. इसलिए थक कर उन्होंने अपनी बेटी को ट्यूशन पर भेजना शुरू कर दिया है.

7वीं कक्षा के छात्र मेहुल के अनुसार, ‘‘ट्यूशन जाने से पहले मुझे साइंस विषय बहुत मुश्किल लगता था, कुछ समझ में नहीं आता था. लेकिन ट्यूशन में जिस तरह से साइंस को समझाया गया, अब वह विषय मेरा फेवरेट बन गया है. स्कूल टीचर का पढ़ाया थोड़ी देर समझने के लिए तो ठीक है लेकिन किसी भी विषय को हमेशा के लिए समझने के वास्ते ट्यूशन ही सही रहता है क्योंकि वहां हर विषय को अकेले में आसान तरीके से समझाया जाता है.’’ आज की ट्यूशन व्यवस्था परिणाम आधारित हो गई है. इस का निश्चित उद्देश्य एक निश्चित समय के अंदर कोर्स पूरा करना होता है. ट्यूटर का ध्येय होता है कि हर छात्र हर विषय में अधिकतम अंक प्राप्त करे, इस के लिए वे कोर्स को विभिन्न तरीकों द्वारा सरल व रुचिकर बनाते हैं. वे अभिभावकों के प्रति उत्तरदायी होते हैं. ट्यूटर की नीति व योग्यता छात्रों को प्रोत्साहित करने के साथसाथ उन में विषय के प्रति रुचि भी पैदा करती है. यही कारण है कि आज बोर्ड के परीक्षा परिणाम में छात्रों के शतप्रतिशत अंक आते हैं जबकि कुछ वर्षों पूर्व तक अगर 60 या 70 प्रतिशत अंक आते थे तो बहुत समझा जाता था. यह ट्यूशन की मदद का ही परिणाम है.

ट्यूशन का अर्थ बेफिक्री नहीं

अंजू साहनी, जिन का बेटा अतिशय प्रारंभ से ही ट्यूशन जाता है, कहती हैं, ‘‘ट्यूशन भेज देना ही काफी नहीं. ट्यूशन भेज देने भर से अभिभावकों की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. ट्यूशन में क्या पढ़ाया जा रहा है, घर में पढ़ने व याद करने को क्या दिया जा रहा है, ट्यूशन भेजने के बाद छात्र के परीक्षा परिणाम में कितना अंतर आया, इन सब पर नजर रखना भी अभिभावक की जिम्मेदारी है. आज के प्रतियोगिता भरे दौर में बच्चे को प्रारंभ से ही एक ऐसे सहारे की जरूरत होती है जो न केवल उस की शिक्षा संबंधी आधार व नींव को मजबूत करे बल्कि अंत तक एक सफल कैरियर प्राप्त कराने में छात्र की मदद करे. इसलिए ट्यूशन एक फैशन या स्टेटस सिंबल न हो कर, समय की एक जरूरी मांग बन गई है. जहां तक इस सहारे की कीमत या फीस का सवाल है, यह शिक्षा के स्तर से ले कर कैरियर के निर्माण तक बड़ी तेजी से बढ़ती है. बाजार में ट्यूशन की विभिन्न कक्षाओं की फीस कुछ इस प्रकार है : अगर ट्यूशन की फीस देने के बाद आप का बच्चा अधिकतम अंक प्राप्त कर लेता है तो यह फीस उस अच्छे परीक्षा परिणाम का सही मुआवजा है. स्कूलों में तो पाठ्यक्रम को समझना एक खानापूरी मात्र है. ऐसे में ट्यूशन ही पूरे पाठ्यक्रम को गंभीरता से समझने व जानने का एकमात्र जरिया बन जाता है जिसे अपनाना हर छात्र व अभिभावक की आवश्यक जरूरत बन गई है. हालांकि, यह जबरन जरूरत है क्योंकि छात्रों के अभिभावक स्कूलकालेजों को फीस देते ही हैं.

उत्तर प्रदेश के थाने में जली महिला

उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में कानून व्यवस्था सुधारने व औरतों के प्रति होने वाले अपराधों को कम करने के लिए जितनी कोशिश कर रही है, उत्तर प्रदेश पुलिस उस पर लगातार कालिख पोतने का काम कर रही है. पुलिस महकमे की करतूतें प्रदेश सरकार को शर्मसार कर रही हैं. बदायूं कांड के बाद बाराबंकी के कोठी थाने में आंगनबाड़ी में काम करने वाली नीतू द्विवेदी की जल कर मौत हो गई. नीतू की मौत अपने पीछे ऐसे सवाल छोड़ गई है, जिन के जवाब देना सरकार के लिए नामुमकिन है. विरोधियों को एक बार फिर यह आरोप लगाने का मौका मिल गया है कि समाजवादी सरकार के कार्यकाल में पुलिस महकमा ज्यादा ही तानाशाह हो जाता है. बाराबंकी जिले के पुलिस अफसर लगातार इस कोशिश में हैं कि वे यह साबित कर दें कि नीतू को थाने में पुलिस ने नहीं जलाया, बल्कि उस ने खुद आग लगाई थी. दूसरी ओर जलने के बाद नीतू ने 2 दिन तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष किया. वह बाराबंकी के जिला अस्पताल से लखनऊ के सिविल अस्पताल तक तड़पती रही. इस बीच उस ने मरने से पहले बयान दिया, जिस में बारबार कहा कि उसे कोठी थाने में एसओ यानी थानाध्यक्ष राय साहब यादव और एसआई अखिलेश राय ने जलाया.

अस्पताल में भरती नीतू ने बारबार कहा कि उस की मुलाकात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कराई जाए. वह उन को सच बताना चाहती है. वह मुख्यमंत्री से मांग करना चाहती थी कि उसे जलाने वालों को फांसी दी जाए. नीतू का इलाज लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में चल रहा था.  उस से केवल 500 मीटर दूर 5, कालीदास मार्ग पर मुख्यमंत्री का सरकारी आवास है. नीतू अपना दर्द मुख्यमंत्री को बिना सुनाए इस दुनिया से विदा हो गई.

पति को छुड़ाने गई थी थाने

बाराबंकी जिला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मात्र 27 किलोमीटर दूर है. जिला हैडक्वार्टर से 25 किलोमीटर दूर कोठी थाना पड़ता है. कोठी थाना जिले के सब से पुराने थानों में से एक है. साल 1916 में यह थाना अंगरेजों के राज में बना था. तब से ले कर अब तक यहां ऐसी घटना नहीं हुई कि किसी औरत को थाने में ही जला दिया गया हो. इस से साफ पता चलता है कि पुलिस महकमा आज अंगरेजों के राज से भी ज्यादा शोषण करने वाला हो गया है. इस वारदात की शुरुआत 4 जुलाई, 2015 से हुई. शनिवार की शाम को सेमरावां गांव के रहीमपुर महल्ले के रहने वाले गंगाराम की पत्नी ने पड़ोसी नंदकिशोर तिवारी के बेटे दीपक पर छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया. इस बीच गंगाराम को गोली मार दी गई. गंगाराम को इलाज के लिए लखनऊ के मैडिकल कालेज भेजा गया. गंगाराम की पत्नी ने नंदकिशोर और उस के बेटे दीपक पर आरोप लगाया कि उन लोगों ने ही गंगाराम को गोली मारी है. पुलिस ने गंगाराम की पत्नी की तहरीर पर नंदकिशोर, दीपक और नौमीलाल पर हत्या की कोशिश का मुकदमा दर्ज किया. तलाश करने पर भी पुलिस को नंदकिशोर नहीं मिला. नंदकिशोर के न मिलने पर कोठी थाने की पुलिस ने नंदकिशोर के बहनोई रामनारायण द्विवेदी को पकड़ लिया और उसे थाने ले आई. रामनारायण बसंतपुर गांव के गहा पुरवा में रहते थे. पुलिस ने रामनारायण से कहा कि वह अपने रिश्तेदार नंदकिशोर को पुलिस के सामने हाजिर कराए.

रामनारायण को पुलिस रविवार, 5 जुलाई को थाने लाई थी. उसे रातभर थाने में रखा और उस पर अपने रिश्तेदार को हाजिर कराने का दबाव बनाया. सोमवार 6 जुलाई को सुबह 10 बजे रामनारायण की पत्नी नीतू द्विवेदी अपने पति को छुड़ाने थाने गई, तो पुलिस ने उस के साथ बदतमीजी की. नीतू का आरोप था कि थाने के एसओ राय साहब और एसआई अखिलेश राय ने उस के साथ बलात्कार करने की कोशिश की. जब वे इस में कामयाब नहीं हुए तो उस के जेवरात छीन कर उस के ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. बचने के लिए नीतू उन लोगों के चंगुल से छूट कर थाने से बाहर निकली और सड़क पार कर के बरगद के पेड़ के नीचे गिर गई, जहां राहगीरों ने आग बुझाई. बाद में कोठी थाने के 2 सिपाही हीरा यादव और पंकज द्विवेदी उसे ले कर पहले बाराबंकी अस्पताल गए और बाद में उसे लखनऊ के सिविल अस्पताल भेजा गया. वहीं पर 7 जुलाई को नीतू ने दम तोड़ दिया.

पुलिस की मनमानी

नीतू की थाने में जलने की घटना का पता चलते ही बाराबंकी पुलिस मामले की लीपापोती में लग गई. बाराबंकी के एसपी अब्दुल हमीद ने थाने पहुंच कर नीतू के बेटे आशीष को थाने बुलवाया और उस से मनमानी रिपोर्ट लिखने के लिए तहरीर ले ली. इस रिपोर्ट में पुलिस ने एसओ राय साहब और एसआई अखिलेश के खिलाफ सुसाइड के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया. पुलिस के दबाव में कोठी थाने के आसपास का कोई भी आदमी घटना की सही जानकारी देने को तैयार नहीं है. नीतू की लखनऊ में मौत के बाद गांव गहा मजरा बसंतपुर में पुलिस की इस दरिंदगी के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखने वाला था. गांव में चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था. नीतू के 3 बेटे और एक बेटी हैं.

एक तरफ समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता और पुलिस यह मानती है कि नीतू ने खुद ही आग लगाई थी, दूसरी तरफ नीतू का परिवार और भारतीय जनता पार्टी की बाराबंकी से सांसद प्रियंका सिंह रावत और पूर्व विधायक सुंदरलाल दीक्षित का मानना है कि पुलिस सच को छिपाने के लिए घटना को गलत दिशा में ले जा रही है. आईजी, जोन लखनऊ, जकी अहमद कहते हैं कि घटना अमानवीय है, किसी को बख्शा नहीं जाएगा. जांच के बाद दोषियों को अरैस्ट किया जाएगा. मामले को सुलझाने में बाराबंकी के डीएम योगेश्वर राम मिश्रा, कमिश्नर सूर्य प्रकाश मिश्रा, डीआईजी वी के गर्ग ने हर पक्ष को समझाने का काम किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दोषी पुलिस वालों को सस्पैंड करने और नीतू के परिवार को 5 लाख रुपए की मदद देने की बात की.  इस घटना ने एक सवाल खड़ा किया है कि पुलिस आरोपी को पकड़ने के लिए अभी भी उस के परिवार के सदस्यों व नातेरिश्तेदारों को पकड़ कर उन पर दबाव बना रही है. इस के जरिए वह कमाई भी करती है. पुलिस की इस बात को अगर मान भी लिया जाए कि नीतू को थाने में नहीं जलाया गया, उस ने खुद आग लगा ली, तब भी यह सवाल जवाब मांग रहा है कि ऐसे हालात पुलिस ने बनाए ही क्यों कि कोई आत्मदाह करने जैसा फैसला ले ले. एक तरफ प्रदेश सरकार औरतों की मदद के लिए उत्तर प्रदेश महिला सम्मान प्रकोष्ठ और 1090 महिला हैल्पलाइन जैसे कदम उठा चुकी है तो दूसरी ओर एक औरत थाने में जल रही है. पुलिस की यह करतूत प्रदेश सरकार पर भारी पड़ेगी.

सरकारी नौकरियों का पागलपन

दरअसल, सरकारी नौकरियों और सरकारी नौकरी करने वालों में से ज्यादातर की कमोबेश यही कहानी है. इस का अंदाज इस एक उदाहरण से लगाया जा सकता है कि राजधानी दिल्ली में तकरीबन 3 लाख सरकारी अध्यापक हैं. लेकिन सरकारी स्कूलों का जो रिजल्ट है, रिजल्ट से भी ज्यादा सरकारी स्कूलों के बच्चों की जो बौद्धिक व मानसिक स्थिति है, उसे देख कर तरस आता है. दुख इस बात का है कि सरकार किन अध्यापकों पर इतना पैसा लुटा रही है? इस के उलट निजी और पब्लिक स्कूलों में 10 से 15 हजार रुपए मासिक तनख्वाह पाने वाले अध्यापक वह रिजल्ट दे रहे हैं जो रिजल्ट सरकारी अध्यापक देने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते. दरअसल, सरकारी कर्मचारी इस देश पर और किसी भी सरकार पर एक तरह का बोझ ही हैं. मगर हर सरकार को अपनी मौजूदगी और अपने वजूद के लिए एक तामझाम की जरूरत होती है, इसलिए निठल्ले सरकारी कर्मचारियों की यह फौज बदस्तूर न सिर्फ बनी हुई है, बल्कि बढ़ती जा रही है.

नकारात्मक पहलू

मुंबई स्थित एक निजी बैंक के सेल्स एक्जीक्यूटिव विश्वनाथ आचार्य कहते हैं, ‘‘मैं सुबह 7 बजे घर से निकलता हूं और रात में कब पहुंचूंगा, कुछ पता नहीं क्योंकि प्राइवेट बैंक महज उस के कर्मचारी होने के चलते मुझे तनख्वाह नहीं देता बल्कि मुझे हर समय परफौर्म कर के दिखाना होता है. मुझे वेतन और कमीशन उसी परफौर्मेंस के आधार पर मिलते हैं.’’ दूसरी तरफ मुंबई की ही मीरा रोड स्थित सरकारी बैंक की एक शाखा में आर मेहता क्लर्क हैं. उन के पास अगर आप किसी चैक या पासबुक से संबंधित काम के लिए जाएं तो कहेंगे नाम लिखा जाओ, कल आ कर देख जाना. अगर आप कहो कि आप ने बड़ी मुश्किल से आज का समय निकाला है और कल नहीं आ पाएंगे तो मेहता साहब कहेंगे फिर मत आना. उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि ग्राहक के मन में, उन के व्यवहार का क्या असर पड़ेगा? चूंकि सरकारी बैंक कर्मचारी की नौकरी और महीने में मिलने वाली उन की तनख्वाह ग्राहक की सुविधा व संतुष्टि से जुड़ी नहीं है. नतीजतन वे एक बार भी नहीं कहते कि ग्राहक आएं और बारबार आएं.

दरअसल, सरकारी कर्मचारी अगर पक्का है तो उसे इस बात का खौफ नहीं रहता कि उस की नौकरी छूट जाएगी. इस वजह से कभी भी नौकरी को ले कर फिक्रमंद नहीं होता. दूसरे शब्दों में, वह नौकरी बचाने के लिए, ग्राहकों को संतोषजनक सेवा देने की गरज नहीं समझता. जबकि दूसरी तरफ प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने वाला कोई भी शख्स इस बात को भलीभांति जानता है कि उस की नौकरी तभी तक सुरक्षित है जब तक वह अपनी कंपनी को कमा कर देगा और अपने कामकाज से ग्राहकों को खुश रखेगा. बस, यही एक ऐसी धारणा है जिस से दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का फर्क दिखाई पड़ता है. अगर कोई सरकारी कर्मचारी काम करना भी चाहता है तो उस के सहकर्मी, जो खुद काम नहीं कर रहे होते हैं, उसे भी नहीं करने देते हैं. उन्हें पता है कि अगर एक काम करता रहा तो बाकी सब लोगों की साख खराब होगी. इसलिए अच्छे से अच्छा और कामकाज का संकल्प रखने वाला सरकारी कर्मचारी भी एक बार नौकरी पाने के बाद काम नहीं कर पाता. यह सरकारी संस्थानों में कामकाज की नकारात्मक संस्कृति का नतीजा है.

बेरोजगारों की लंबी फौज

हमारे देश में 99.99 फीसदी आम आदमी सरकारी क्षेत्र में ही नौकरी पाना चाहता है क्योंकि वह शौर्टकट के जरिए रातोंरात अमीर होना चाहता है. सरकारी नौकरी से जुड़ी तमाम सुविधाएं उसे ललचाती हैं और वह इन के लिए घूस देने से ले कर कुछ भी करने को तैयार रहता है. यह एक किस्म का नशा है और हमारी तमाम पीढि़यों की कार्यक्षमता को यह नशा बरबाद कर रहा है. लोग समझते हैं अगर सरकारी नौकरी मिल गई तो कमाने का जरिया भी मिल जाएगा यानी घूस का जुगाड़ हो जाएगा. इसलिए प्राइवेट नौकरी कभी उस की प्राथमिकता में नहीं होती. वह बिना काम किए अच्छी तनख्वाह पाना चाहता है और ऊपर से कमाई का जरिया भी बरकरार रखना चाहता है, इसलिए सरकारी नौकरी चाहता है. यह सरकारी आंकड़ा है जिसे मौजूदा सरकार की कैबिनेट ने जारी किया है. वास्तविक आंकड़ा इस से भी ज्यादा भयावह होने की पूरी आशंका है. श्रम मंत्रालय की इकाई श्रम ब्यूरो द्वारा जारी ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक बीते वित्त वर्ष में बेरोजगारी की दर बढ़ कर 4.9 हो गई है जबकि पहले 4.7 प्रतिशत थी. सब से अधिक बेरोजगारी की दर सिक्किम में आंकी गई. महिलाओं में भी बेरोजगारी 7.2 से बढ़ कर 7.7 प्रतिशत हुई है.

औद्योगिक संगठन एसोचैम की 1 साल पहले आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में तकरीबन 10 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, लेकिन विडंबना यह है कि जितने बेरोजगार हैं, उन से भी 5 फीसदी ज्यादा योग्य कामगारों की भी दरकार है. मतलब यह कि एक तरफ जहां हमारे यहां रोजगार की भारी कमी है उस से भी कहीं ज्यादा कमी योग्य कामगारों की भी है. निसंदेह यह स्थिति पूरी तरह विरोधाभासी है. लेकिन अगर आप इस स्थिति का विश्लेषण करेंगे तो समझ जाएंगे कि यह आंकड़ा विरोधाभासी नहीं है बल्कि हमारी दयनीय आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति को दर्शाता है.

वास्तव में हिंदुस्तान में 80 फीसदी से ज्यादा आम लोगों की पहली ख्वाहिश सरकारी नौकरी करने की होती है. इस के बाद ही वे दूसरी नौकरियों के बारे में सोचते हैं. भारत में भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाले संगठनों, विशेषकर करप्शन वाच इंटरनैशनल के मुताबिक, सब से ज्यादा रिश्वतें सरकारी नौकरी पाने के लिए, अच्छे स्कूलों में ऐडमिशन हासिल करने के लिए, पुलिस से मामला सुलटाने के लिए और सरकारी अस्पतालों में अच्छी चिकित्सा सुविधा हासिल करने के लिए दी जाती हैं. यह सम्मिलित घूस कोई डेढ़ लाख करोड़ रुपए के आसपास है यानी हमारे कुल बजट का 8 से 9 फीसदी हिस्सा. इस में भी सब से बड़ा हिस्सा सरकारी नौकरी पाने के लिए खर्च होता है. अलगअलग संगठनों के अनुमानों के मुताबिक, भारत में कोई 36 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा सरकारी नौकरियां पाने में बतौर घूस के रूप में खर्च होते हैं. कहने का मतलब यह कि सरकारी क्षेत्र की नौकरियों का इस कदर आकर्षण है कि लोग उन्हें हासिल करने के लिए कुछ भी करने और किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं.

बावजूद इस आकर्षण और मारामारी के, वास्तविकता यह है कि सभी तरह की सरकारी और अर्धसरकारी नौकरियां बमुश्किल 2 करोड़ के आसपास हैं. उन में भी अब इतने तकनीकी किंतुपरंतु लग गए हैं कि अगर हम विशुद्ध सरकारी नौकरियों की ही बात करें तो ऐसी नौकरियां मुश्किल से 1 करोड़ 80 लाख के आसपास होंगी. जबकि देश में काम करने के लिए तैयार कार्यबल 38 करोड़ से ज्यादा है और कार्य कर सकने की क्षमता रखने वाला कार्यबल (वर्कफोर्स) 59 करोड़ 80 लाख से ज्यादा है. भारत में तकरीबन 60 करोड़ नौकरियों की जरूरत है जबकि सरकारी, अर्धसरकारी और पब्लिक सैक्टर अंडरटेकिंग जैसे क्षेत्रों की कुल मिला कर 2 करोड़ के आसपास ही नौकरियां हैं.

कैसे बनेगा विकसित राष्ट्र

सरकारी नौकरियों के लिए पागलपन या इस के लिए दीवानगी कहां तक जायज है, यह अहं सवाल है. सरकारी नौकरियों के पागलपन के पीछे हमारी अकर्मण्य मनोस्थिति, दिलोदिमाग में सुरक्षित महसूस करने की कमजोरी और भ्रष्टाचार से फायदा उठाने का लालच जिम्मेदार है. जबकि आज की तारीख में 20 करोड़ से ज्यादा नौकरियां हर किस्म के निजी क्षेत्रों से मिला कर आती हैं. क्या सरकारी नौकरियों का लालच और निजी क्षेत्र के प्रति सरकार और प्रशासन का गैर दोस्ताना रवैया भारत को भी विकसित राष्ट्र बना सकता है? कभी नहीं. भारत को अगर 2020 तक विकसित राष्ट्र में तबदील होना है तो हमारी अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार को सालाना 8 से 12 फीसदी तक पहुंचाना पड़ेगा और बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र में रोजगार विकसित करने पड़ेंगे. क्योंकि 2012 तक अगर हम ने 8 से 12 करोड़ के बीच नए रोजगार सृजित नहीं किए और पुराने रोजगारों को बनाए रखने में कामयाबी नहीं हासिल की तो भारत को विकसित राष्ट्र बनाए जाने का सपना टायंटायं फिस्स हो जाएगा.

यह तभी संभव है जब देश के सामाजिक स्वभाव और उस की मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन हो, सरकारी नौकरी का पागलपन खत्म हो. इस के लिए दी जाने वाली करोड़ों की घूस का खेल खत्म हो और निजी क्षेत्र में रोजगार बढ़ाए जाने व विकसित किए जाने का अनुकूल माहौल बने. निश्चित रूप से ये कई चीजें हैं और सभी चीजें जब एकसाथ काम करेंगी तब कहीं जा कर एक सकारात्मक नतीजा हासिल होगा. मगर इन कई चीजों में सब से बड़ी बात और चीज सरकारी नौकरियों के प्रति अंधआकर्षण ही है. अगर निजी क्षेत्र की नौकरियों के प्रति आम भारतीयों में यही आकर्षण पैदा हो जाए तो वह मन मार कर या यहां होने को अपनी तौहीन समझ कर काम न करें. वे ऐसा करेंगे तो इस से उत्पादन बढ़ेगा, रोजगार का विस्तार होगा और देश का विकास होगा.

भारत के रोजगार परिदृश्य को 8 फीसदी की दर से विकसित होने के लिए हर साल 4 से 6 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है. जाहिर है यह निवेश सरकारी क्षेत्र में संभव नहीं है. इसलिए सिर्फ सरकारी क्षेत्र में नौकरियों के भरोसे न तो हमारा भला हो सकता है और न ही देश का. ऐसे में जरूरी है कि हम सरकारी क्षेत्र की नौकरियों के अलावा रोजगार के दूसरे विकल्पों को न सिर्फ तलाशें बल्कि उन में भरपूर रुचि लें और उस की संस्कृति विकसित करें तभी देश में मौजूदा कार्यबल को काम मिल सकता है और समृद्धि आ सकती है.

बलात्कार की परिभाषा

बलात्कार के बढ़ते मामलों की रिपोर्टों के साथसाथ आरोप सिद्ध न होने पर छूटने वाले बेचारे पुरुषों की गिनती भी बढ़ती जा रही है. बलात्कार के बहुत से मामले ऐसे आ रहे हैं जिन में महिला महीनों व सालों तक यौन संबंध रखने के बाद शिकायत करती है कि उस से विवाह का वादा कर के या उसे कोई धमकी दे कर साथ सोने को उकसाया गया था. अदालतें आमतौर पर इस तरह के मामलों में पेश की गई गवाही से संतुष्ट नहीं होतीं. अगर स्त्रीपुरुष दोनों सहमति से संबंध बनाएं तो उसे गुनाह नहीं कहा जा सकता. और यदि न धोखा हो, न ही जोरजबरदस्ती तो यौन संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता. काफी मामलों में तो शुरू में शिकायत करने वाली महिला ही मुकर जाती है कि उस के साथ बलात्कार हुआ. और वह स्वीकार कर लेती है कि संबंध सहमति के आधार पर बने थे. अब एक अदालत ने रोचक सवाल खड़ा किया है कि ऐसे पुरुष, जिस पर बलात्कार का आरोप सिद्ध न हुआ हो, को पीडि़त पक्ष कहा जाए या नहीं. आखिर उस ने महिला की गलत शिकायत के कारण महीनों जेल में गुजारे होंगे, समाज का अपमान सहा होगा, उस की नौकरी या व्यवसाय पर फर्क पड़ा होगा और भारी पैसा खर्चा हो गया होगा. ऐसे में इस तरह के पुरुष को पीडि़त न कहा जाए तो किसे कहा जाए?

बलात्कार के बहुत से मामले ऐसे ही होते हैं जहां महिला बदले की भावना से आरोप लगाती है भले ही उन दोनों में सहमति से यौन संबंध बने हों. जो वास्तविक अपराध के मामले होते हैं उन में तो बलात्कारी व पीडि़ता एकदूसरे को जानते ही नहीं और बलात्कारी चोरों की तरह इज्जत पर हमला करता है. मुसीबत वहां है जहां दोनों एकदूसरे को जानते ही नहीं, चाहते भी हैं. बलात्कार रबड़ की एक ऐसी रस्सी बन गई है जिसे ज्यादा खींचोगे तो पुरुष और सभी, पुराने जमाने की तरह अलगथलग रहने को मजबूर हो जाएंगे. अगर दोस्ती की स्वतंत्रता देनी ही है तो यौन स्वतंत्रता भी देनी होगी और बलात्कार की परिभाषा भी बदलनी होगी कि यह केवल जबरदस्ती वाले मामलों में ही होता है और इस का झूठा आरोप पुरुष को पीडि़त बना कर उसे उलटा शिकायत करने का हक देगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें