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मुलायम का फिल्मनामा

नेताओं पर पहले भी फिल्में बनी हैं लेकिन ज्यादातर सिर्फ प्रचार माध्यम बन कर रह गईं. वास्तविकता से परे और आलोचना से बचती इन फिल्मों के पिटने की मुख्य वजह यही रही. इसी साल लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर बनी फिल्म कब आई और कब गई, किसी को पता ही नहीं चला. अब खबर है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने खुद के जीवन पर बनने वाली बायोपिक फिल्म को हरी झंडी दे दी है. फिल्म में रघुवीर यादव मुलायम के किरदार में नजर आएंगे. कहा तो यह जा रहा है कि इस फिल्म में  मुलायम के राजनीतिक संघर्ष की कहानी दिखाई जाएगी लेकिन लगता नहीं कि ऐसी फिल्में नेताओं के घोषणापत्र से ज्यादा कुछ और होंगी.

रिलीज से पहले लीक हुई फिल्म

फिल्म इंडस्ट्री में अब तक पाइरेसी को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और न ही सरकारी तंत्र की तरफ से ऐसा कोई प्रयास हुआ है. नतीजतन, रिलीज के दिन ही सड़कों पर नई फिल्मों की सीडी 10-20 रुपए में मिलने लगती हैं. ऐसा हर बड़ेछोटे शहर में होता है. लेकिन अब पाइरेसी एक कदम आगे बढ़ चुकी है. आलम यह है फिल्म की रिलीज के हफ्तों पहले फिल्म को इंटरनैट पर लीक कर दिया जाता है जिस से निर्माता को भारी नुकसान होता है. फिलहाल इस की चपेट में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की आने वाली फिल्म ‘मांझी : द माउंटैन मैन’ आ गई है. रिलीज से पहले ही इस की प्रीव्यू कौपी औनलाइन साइटों पर लीक हो चुकी है. इस फिल्म को केतन मेहता ने निर्देशित किया है. फिल्म बिहार के दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने अपने जीवन के 22 साल पहाड़ काट कर रास्ता बनाने में लगा दिए.

फिल्म समीक्षा

दृश्यम

दृश्यम एक सस्पैंस थ्रिलर फिल्म है, जिस में निर्देशक ने अंत तक सस्पैंस के साथसाथ रोमांच भी बनाए रखा है. यह फिल्म पहले मलयालम में बनी, फिर तमिल, तेलुगू, कन्नड़ में बनी. निर्देशक ने मूल फिल्म में कोई बदलाव न कर के इसे हिंदी में बनाया है.फिल्म का नायक अजय देवगन है और उस ने ढिशुमढिशुम वाली ऐक्ंिटग नहीं की है. उस ने अपनी ‘सिंघम’ वाली छवि को तोड़ा है और एक शांत पिता, पत्नी से प्यार करने वाले पति और एक बेचारे पुलिस की ज्यादतियों के मारे नागरिक की भूमिका निभाई है. वह चौथी कक्षा फेल है, मगर स्मार्ट है. स्मार्ट वह हिंदी फिल्में देखदेख कर हुआ है. वह केबल औपरेटर का बिजनैस करता है और रातरात भर हिंदी फिल्में, खासकर मर्डर मिस्ट्री वाली, देखता रहता है.

कहा जाता है कि फिल्में देख कर लोग अपराध करना सीख जाते हैं लेकिन ‘दृश्यम’ अपराध कर के कानून की निगाह में किस जुर्म की सजा से कैसे बचा जाए, यह बताती है, साथ ही यह भी बताती है कि अगर आदमी में परिस्थितियों को परखने की समझ हो तो वह बड़ी से बड़ी मुसीबत से खुद को बचा सकता है.‘दृश्यम’ आजकल टीवी पर दिखाए जा रहे ‘सीआईडी’ प्रोग्राम के किसी क्राइम एपिसोड जैसी लगती है, मगर यह उस प्रोग्राम से कहीं ज्यादा रोमांचक है. फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में सक्षम है. खासकर मध्यांतर के बाद का हिस्सा, जिस में दिखाया गया है कि नायक और उस का परिवार खौफनाक पुलिस वालों की हिंसक, बर्बर, गैरकानूनी पूछताछ से कैसे निबटता है.फिल्म की कहानी एक पारिवारिक ड्रामा सी है, जिस में परिवार के प्रति हो रहे ब्लैकमेल से बचते हुए एक गुनाह को दिखाया गया है और उस गुनाह को छिपाते हुए दिखाया गया है. फिल्म में दिखाया गया है कि जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता. यह हर व्यक्ति का हक है कि वह अपने परिवार की रक्षा करे और कानून की निगाह में अगर कोई काम गुनाह हो पर असल में मात्र आत्मरक्षा हो तो उस में कुछ करने को तैयार रहे.

फिल्म की कहानी काल्पनिक है. गोवा के एक गांव में विजय साल्गांवकर (अजय देवगन) अपनी पत्नी नंदिनी (श्रेया सरन) और 2 बेटियों मंजु (इशिता दत्ता) और अनु (मृणाल जाधव) के साथ रहता है. वह इंस्पैक्टर गायतौंडे (कमलेश सावंत) से पंगा ले बैठता है. एक दिन घर लौटने पर वह अपनी पत्नी व बेटियों को परेशान पाता है. पूछने पर उसे पता चलता है कि मंजू के हाथों एक 16 साल के लड़के सैम का मर्डर, जिसे असल में होमीसाइड नौट अमाउंटिंग टू मर्डर कहा जाएगा, हो जाता है और उन्होंने उस की लाश घर के बगीचे में दफना दी है. विजय इस हादसे पर परदा डाल कर अपने परिवार को बचाने की जुगत करता है क्योंकि वह जान जाता है कि जो मरा वह सैम गोवा की बेरहम, वहशी सी आईजी मीरा देशमुख (तब्बू) का बेटा था.

मीरा देशमुख पूरे पुलिस महकमे को हिला कर रख देती है. तब भी जब उसे पता चल जाता है कि उस का बेटा ब्लैकमेलर है. लेकिन चौथी फेल विजय पुलिस महकमे को हर मोड़ पर चकमा देता है और अंत तक पुलिस को पता नहीं चल पाता कि सैम की लाश कहां है. मध्यांतर से पहले का भाग इतना प्रभावशाली नहीं है जितना मध्यांतर के बाद का भाग. इस भाग में विजय और पुलिस के बीच चूहेबिल्ली का खेल चलता रहता है. फिल्म का क्लाइमैक्स दर्शकों को चौंकाता है. लगता है जैसे विजय पुलिस के फंदे में फंस जाएगा लेकिन वह पूरी बाजी ही पलट देता है. पूरी फिल्म अजय देवगन ने अपने कंधों पर संभाली हुई है. आईजी की भूमिका में तब्बू ने अच्छा काम किया. श्रेया सरन पर निर्देशक ने कम ध्यान दिया है. इंस्पैक्टर गायतौंडे की भूमिका में कमलेश सावंत का काम भी अच्छा है. फिल्म का निर्देशन अच्छा और कसा है. फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. फोटोग्राफी अच्छी है. छायाकार ने गोवा के ग्रामीण इलाकों को एक्सप्लोर किया है. संवाद और बेहतर होते तो अच्छा होता. दर्शकों के लिए यही सलाह है कि अपराध न करें पर अगर कर दिया तो पुलिस हर हथकंडा अपनाएगी जिस में खोज कम मारपीट से कनफैशन कराना ज्यादा है. भारतीय पुलिस की असल पोलपट्टी इस फिल्म में खोली गई है और पुलिस वाले कितने पौवर ब्लाइंड होते हैं, दिखाया गया है. महिलाएं पुरुषों से कहीं कम नहीं हैं और क्रूरता उन में भी पुरुष पुलिस वालों की तरह रगरग में भर जाती है.

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बैंगिस्तान

खासकर युवाओं के लिए एक बात. इस फिल्म को ‘यंगिस्तान’ जैसी न समझना, न ही यह ‘बंगिस्तान’ है. यह ‘बैंगिस्तान’ है. आप कहेंगे, यह भी कोई नाम है. जनाब, यह निर्देशक की कल्पना है. इस का मतलबवतलब कुछ नहीं. इस फिल्म में 2 युवा नायक हैं. दोनों ही फिदायीन हैं. दोनों ही धर्मगुरुओं के बहकावे में आ कर जिहाद की राह पर चल पड़ते हैं और धर्मगुरु हैं कि हंसतेमुसकराते, एकदूसरे की हां में हां मिलाते ‘धर्म नहीं सिखाता आपस में वैर रखना’ जैसी धारणा पर बातें करते नजर आते हैं. जहां ‘यंगिस्तान’ में मौजमस्ती थी, म्यूजिक था, डांस थे, सैक्सी बालाएं थीं, इस ‘बैंगिस्तान’ में ऐसा कुछ भी नहीं है. फिल्म में इतनी ज्यादा ऊलजलूल बकवास भरी पड़ी है कि फिल्म मुख्य मुद्दे से हट कर रह गई है और इसे झेल पाना मुश्किल हो गया है. फिल्म की कहानी में एक काल्पनिक देश बैंगिस्तान है जिस के उत्तर में हिंदू रहते हैं और दक्षिण में मुसलमान. प्रवीण (पुलकित सम्राट) हिंदू है. उस पर एक धर्मगुरु का प्रभाव है. हफीज (रितेश देशमुख) मुसलमान है. उस का दर्द यह है कि हर कोई उसे आतंकवादी समझता है. एक दिन धर्मगुरु की बातों में आ कर प्रवीण आत्मघाती हमला करने के लिए पोलैंड जाने को तैयार हो जाता है. किसी तरह हफीज को भी इस काम के लिए तैयार कर लिया जाता है. वहां जा कर प्रवीण अल्लारखा खान बन जाता है और हफीज ईश्वरचंद शर्मा. दोनों की मुलाकात एक बारगर्ल रोजी (जैकलीन फर्नांडीस) से होती है. दोनों एक ही मकान में ऊपरनीचे रहते हैं और बम बनाने की कोशिश करते हैं. दोनों को एकदूसरे का मकसद पता चल जाता है. लेकिन दोनों को पुलिस पकड़ लेती है. उधर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे धर्म सम्मेलन में दुनियाभर से धर्मगुरु पहुंचते हैं लेकिन वहां आतंकवादियों द्वारा बम पहले ही पहुंचाया जा चुका होता है. प्रवीण और हफीज दोनों मिल कर उस बम को सम्मेलन में फटने से रोकते हैं. उन्हें वाहवाही मिलती है और धर्मगुरुओं की किरकिरी होती है.

फिल्म का मध्यांतर से पहले का भाग बचकाना लगता है. दूसरे भाग में फिल्म रफ्तार पकड़ती है, क्लाइमैक्स कुछ अच्छा बन पड़ा है. अभिनय की दृष्टि से न तो रितेश देशमुख प्रभावित कर पाता है, न ही पुलकित सम्राट. दर्शकों को रितेश देशमुख की ऐसी भूमिका शायद ही पसंद आए. जैकलीन फर्नांडीस के काम में दम है. फिल्म की लंबाई ज्यादा है. निर्देशक ने पूरा ध्यान संदेश देने में ही लगाया है. लेकिन संदेश भी वह असरदायक तरीके से नहीं दे सका है. फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. फिल्म का गीतसंगीत निराश करता है. छायांकन अच्छा है.

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आई लव न्यूयौर्क

सनी देओल अपने मुक्के के लिए मशहूर है. जब तक वह फिल्म में अपना भारीभरकम मुक्का नहीं चलाता, दर्शकों को मजा नहीं आता. यकीन मानिए इस फिल्म में सनी देओल आप को एक शरीफ इंसान की तरह कपड़े पहने एग्जीक्यूटिव के रूप में दिखेगा. और अगर आप ने कंगना राणावत की ‘क्वीन’, ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न्स’ फिल्में देखी होंगी तो इस फिल्म में उसे एक टीचर की भूमिका में देख कर हैरान ही होंगे. इन दोनों पसंदीदा कलाकारों को इस रूप में देख कर आप को बिलकुल भी मजा नहीं आएगा. दरअसल, यह फिल्म कई साल पुरानी है और डब्बे में बंद पड़ी थी, अब जा कर रिलीज हो पाई है. फिल्म की कहानी शिकागो में रहने वाले युवक रणधीर सिंह (सनी देओल) और न्यूयौर्क में रह रही स्कूल टीचर टिक्कू (कंगना राणावत) की है. नए साल की पूर्व संध्या पर रणधीर सिंह की प्रेमिका रिया (तनीषा चटर्जी) उस के घर पर पार्टी मनाने आती है, मगर रणधीर उसे नहीं मिलता. वह घंटों उस का इंतजार करती है. नशे में धुत रणधीर न्यूयौर्क पहुंच चुका होता है. उसे दोस्तों ने खूब शराब पिला दी थी. वह नशे की हालत में टिक्कू के घर पहुंच जाता है. वहां टिक्कू अपने प्रेमी इशान (नवीन चौधरी) का इंतजार कर रही है. इशान वहां आता है, रणधीर को देख कर उसे गलतफहमी हो जाती है. वह टिक्कू से बे्रकअप कर चला जाता है. अब धीरेधीरे टिक्कू और रणधीर में आपस में प्यार पैदा होता है और टिक्कू रणधीर का हाथ थाम लेती है.

फिल्म की यह कहानी बहुत ही धीमी गति से चलती है. फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. निर्देशन भी ढीलाढाला है. संवाद बोलते वक्त डबिंग की खराबी महसूस होती है. सनी देओल को इस तरह की भूमिका में दर्शक पचा नहीं पाएंगे. कंगना राणावत का चुलबुलापन और मस्ती गायब है. फिल्म का गीतसंगीत थोड़ाबहुत अच्छा है. छायांकन अच्छा है. शिकागो और न्यूयौर्क की लोकेशनें सुंदर बन पड़ी हैं. 

यह भी खूब रही

मेरी दादी के 10 पोतियां थीं. बात मेरे भाई की शादी के अवसर की है. हम बरात ले कर आगरा गए. शादी में बहुत मजा आया. पर विदा के समय जब बैंड पर विदाई धुन बजी तो हमारा रोना निकल गया. सब हमें ही देखे जा रहे थे कि यह क्या, रोना इन का क्यों शुरू हो गया. हमें याद ही नहीं रहा कि हम लड़के वाले हैं. मंडप पर दुलहन, दूल्हा भी हमें देख रहे थे. दूल्हे की हंसी रुक ही नहीं रही थी. वह बोला, ‘‘तुम सब क्यों रो रहे हो? रोना तो मुझे चाहिए.’’ मंडप पर बैठे सभी हंस पड़े. और लड़की वालों ने खुशीखुशी विदा कर दिया. आज जब भी हम किसी शादी में जाते हैं तो वही बात याद आ जाती है.

रीता मेहरोत्रा, फरीदाबाद (हरियाणा)

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हमारे घर पर एक नवविवाहित जोड़ा आया. मैं ने उन्हें प्रेमपूर्वक सोफे पर बिठाया. मेरा 11 वर्षीय बेटा दौड़ते हुए आया और उन दोनों के सामने एकदम शाश्वत दंडवत तरीके से लेट गया. वे दोनों बेचारे चौंक गए और अचकचा कर खड़े हो गए. ‘खुश रहो, खुश रहो’ कहते हुए वे लोग समझे बच्चे को प्रणाम करने का तरीका इन के यहां इसी तरह सिखाया गया लगता है. वे कहने लगे, ‘आजकल हायहैलो के जमाने में आप का बच्चा इतना संस्कार वाला है, यह देख कर अत्यंत प्रसन्नता हुई. सच, आप का बेटा बड़ा हो कर अच्छा इंसान बनेगा.’ हकीकत यह थी कि मेरा बेटा सोफे के नीचे अपना क्रिकेट का बैट रखता था, उस को निकालने के लिए वह लेट गया था. और उस चौंकने व अचकचाने के मध्य उन्हें इस बात का पता तक नहीं चला कि वह अपना बैट ले कर नौ दो ग्यारह हो गया. उस वक्त तो किसी तरह मैं ने हंसी को दबाए रखा. उन के जाने के बाद हंसहंस कर मैं बेहाल हो गई.

अंजू अशोक गट्टानी, जोरहाट (असम)

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हम लोग अपने मित्र भार्गव साहब के यहां घूमने के लिए गए हुए थे. शाम के वक्त खाना खा कर परिवार सहित टहलने के लिए निकले. टहल कर जब वापस आ रहे थे तो एक सड़क पार करनी थी. गाडि़यों के निरंतर आनेजाने के कारण सड़क पार नहीं कर पा रहे थे. गाडि़यां कुछ कम हुईं, केवल एक बस दूर से आती नजर आ रही थी. भार्गव साहब ने मेरे पति से कहा कि आ जाओ. मेरे पति ने कहा कि रुक जाओ, इस को भी निकल जाने दो. भार्गव साहब ने कहा, ‘अरे, बस अभी दूर है और इस से पहले एक स्पीड ब्रेकर भी है.’ मेरे पति हाजिरजवाब हैं. उन्होंने कहा कि तुझे तो पता है यहां स्पीड ब्रेकर है, बस वाले को थोड़े ही पता है कि यहां ब्रेकर है. इस बात पर हम सभी बिना हंसे नहीं रह सके.

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

पाठकों की समस्याएं

मैं विवाहित महिला हूं. पति के साथ अच्छे संबंध हैं लेकिन न जाने क्यों पति जब भी किसी महिला की तारीफ करते हैं तो मुझे ईर्ष्या होती है और असुरक्षा की भावना जन्म लेने लगती है. मेरे इस व्यवहार से मेरे और पति के बीच लड़ाई भी हो जाती है. मैं उन्हें किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती. मुझे समझ नहीं आता कि मैं खुद को किस तरह समझाऊं कि उन के इस व्यवहार को सामान्य ले सकूं?

एक पत्नी होने के नाते आप अपनी जगह सही हैं और ऐसा उन्हीं परिस्थितियों में होता है जब हम किसी से अत्यधिक प्यार करते हैं और चाहते हैं कि उस प्यार पर सिर्फ हमारा ही हक हो, कोई उस का साझीदार न बने. आप अपने पति के इस व्यवहार को इस तरह समझिए कि जैसे आप को कोई साड़ी, ड्रैस या हेयरस्टाइल पसंद आता है तो आप उस की तारीफ करती हैं? ठीक उसी तरह आप के पति भी अन्य महिला की तारीफ इसी मंशा से करते हैं. इस में कुछ गलत नहीं है. जब आप के पति आप से प्यार करते हैं तो डरने की कोई बात नहीं है. बेबात उन पर शक कर के आप अपना और उन का खुशहाल रिश्ता खराब मत कीजिए.

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मैं 18 वर्षीय लड़की हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे स्तनों का आकार बहुत बड़ा है जिस की वजह से मुझे परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मैं क्या करूं? सलाह दीजिए.

वैसे तो स्तनों का छोटा, बड़ा या सामान्य आकार का होना प्राकृतिक होता है. लेकिन कई बार जैनेटिक कारणों, हार्मोनल असंतुलन, ओबेसिटी यानी अधिक वजन, दवाओं का साइड इफैक्ट्स और स्तनपान कराने के चलते भी स्तनों का आकार बढ़ जाता है. रिसर्च में तो यह बात भी सामने आई है कि तनाव से भी स्तनों का आकार बढ़ता है. बड़े स्तनों के कारण शरीर के पोश्चर पर प्रभाव पड़ता है, साथ ही गरदन व कमरदर्द की भी समस्या हो सकती है. इस के अलावा बड़े स्तनों के कारण वेल फिटेड ड्रैसेज नहीं मिलतीं और फिटेड ब्रा पहनने के कारण त्वचा पर ड्राइनैस, रैशेज व इंफैक्शन की समस्या हो सकती है. बड़े स्तनों का आकार घटाने के लिए आप अपने खानपान में बदलाव लाएं. अगर वजन बढ़ा हुआ है तो वेट मैनेजमैंट करें, क्योंकि फैट घटने से स्तनों का आकार भी घटेगा. हैल्दी व बैलेंस्ड डाइट लें. साथ ही, ब्रिस्क वौकिंग, जौगिंग व स्विमिंग करें. लेकिन इन सब के दौरान फिटनैस इंस्ट्रक्टर और डाक्टर के संपर्क में अवश्य रहें. इन उपायों के अतिरिक्त बाजार में अनेक ब्रेस्ट रिडक्शन पिल्स व क्रीम मौजूद हैं जो ब्रैस्ट के फैट टिश्यूज को टारगेट कर के उन का आकार घटाने में मददगार होती हैं.

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मैं 24 वर्षीय युवक हूं. समस्या यह है कि मेरी गर्लफ्रैंड, जिस से मेरा विवाह होने वाला है, मुझ पर विश्वास नहीं करती. हर बात पर शक करती है. मैं अपनी हर बात उसे बताता हूं, कुछ भी उस से छिपाता नहीं हूं. फिर भी न जाने क्यों वह मुझ पर विश्वास नहीं करती. मैं उस का विश्वास पाने के लिए क्या करूं?

कई बार लड़कियां लड़कों को जांचनेपरखने के लिए उन पर शक करती हैं. बातबात पर पूछताछ करती हैं. शायद आप की गर्लफ्रैंड के इस व्यवहार के पीछे भी यही कारण हो. वह आप से वैवाहिक बंधन में जुड़ने से पहले आप को पूरी तरह जांचपरख लेना चाहती हो. आप अपनी तरफ से उस से कोई भी बात मत छिपाइए और उसे विश्वास दिलाने की कोशिश कीजिए कि आप पूरी तरह उस के योग्य हैं और उसे हमेशा खुश रखेंगे.

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मैं 34 वर्षीय विवाहित युवक हूं. समस्या यह है कि पिछले डेढ़ सालों से मेरी सैक्स के प्रति बिलकुल इच्छा नहीं होती. पत्नी की ओर से भी कोई समस्या नहीं है. वह खूबसूरत है, पूरी तरह से मेरे साथ एडजस्ट करती है. ऐसे में मुझे पत्नी को संतुष्ट न रखने का अपराधभाव होता है. मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है और मैं क्या करूं ताकि सैक्स के प्रति मेरी रुचि दोबारा जागृत हो उठे.

आप के केस में अच्छी बात है कि पत्नी को आप से कोई शिकायत नहीं है और वह आप के साथ एडजस्ट कर रही है. आप जानने की कोशिश कीजिए कि पिछले डेढ़ सालों में आप के लाइफस्टाइल में क्या बदलाव आया है. कई बार अधिक तनाव, काम की भागदौड़ या हार्मोनल बदलाव भी सैक्स के प्रति अरुचि का कारण बनते हैं. आप अधिक से अधिक समय पत्नी के साथ अकेले में व्यतीत करें. रोमांटिक फिल्में देखें व रोमांटिक किताबें पढ़ें. इस से भी कोई लाभ न हो तो किसी सैक्सोलोजिस्ट से संपर्क करें.

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मैं 23 वर्षीय युवती हूं. एक महीने पहले मेरी सगाई हुई है. मेरा मंगेतर दिल का बहुत अच्छा है पर न जाने क्यों उसे छोटीछोटी बात पर गुस्सा आ जाता है जो मुझे परेशान करता है. मैं उसे जितना समझने की कोशिश करती हूं उतना ही अधिक कन्फ्यूज्ड हो जाती हूं. वह हमेशा मुझ से कहता है कि मैं उसे समझने की कोशिश करूं जबकि वह मेरी भावनाओं को नहीं समझता, मुझ में कमियां ढूंढ़ता रहता है. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं? सलाह दीजिए.

आप अपने मंगेतर के घरपरिवार के माहौल को समझने की कोशिश कीजिए. क्या उन के घरपरिवार के अन्य सदस्य भी ऐसे ही हैं या वह किसी समस्या से परेशान है, यह जानने की कोशिश कीजिए. कई बार इंसान किसी बात से परेशान होता है और वह कह नहीं पाता और गुस्से के रूप में अपनी प्रतिक्रिया देता है. आप अपने मंगेतर से अकेले में खुल कर बात कीजिए और पूछिए कि वह क्या समझाना चाहता है, उस की समस्या क्या है. सारी बात जान कर ही कोई निर्णय लीजिए.   

मेरे पापा

बचपन में मैं अपने पापा के साथ ‘कानपुर प्राणी उद्यान’ यानी चिडि़याघर घूमने गया. रंगबिरंगे पक्षियों व जीवों को देखने की मन में बड़ी उत्सुकता थी. जैसे ही मैं किसी जीव या पिंजरे के पास पहुंचता, मैं अपनी जेब में रखी मूंगफलियां व खाने की चीजें पिंजरे में फेंकता. अपने पापा के मना करने के बाद भी वही क्रम दोहराता रहा. कुछ देर घूमने के बाद हम लोग एक बैंच पर जा बैठे. पापा मुझे प्यार से समझाते हुए कहने लगे, ‘‘तरहतरह के पक्षी व जीवजंतु यहां इसलिए रखे गए हैं जिस से कि हम यह समझ सकें ये भी हमारी ही तरह इसी पृथ्वी पर रहते हैं, पास से हम इन्हें देख कर अपना ज्ञान बढ़ा सकें. वे हमारी भाषा नहीं जानते लेकिन यहां आने वाला हर व्यक्ति इन्हें कुछ न कुछ खिलाएगा तो ये बीमार हो जाएंगे.’’ पापा की कही बातों का मुझ पर गहरा असर पड़ा. उस दिन से मुझे पशुपक्षियों से बेहद प्यार हो गया. मैं अपने पापा को धन्यवाद देती हूं जिन्होंने मुझे इतनी अच्छी बात सिखाई.

किंशुक कटियार, कानपुर (उ.प्र.)

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मेरे पापा एक आदर्श इंसान थे. हम 3 बहनें और एक सब से छोटा भाई. मेरे पापा के जीवन का एक ही मकसद था कि हम चारों भाईबहन इतना पढ़ें कि जिंदगी की हर मुश्किल का डट कर सामना कर सकें. असल में बचपन में मेरे पापा को पढ़ने का बहुत शौक था. दादाजी के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे तथा न ही उन्हें बच्चों को पढ़ाने का चाव था. सो, मेरे पापा केवल मैट्रिक ही पास कर सके. वे अपना सपना अपने बच्चों को पढ़ा कर साकार करना चाहते थे. वे जीजान से इसी कोशिश में लगे थे कि हम पढ़ें. वे खुश थे क्योंकि उन का सपना सच हो रहा था. मैं और मझली छोटी बहन एमए तथा बीएड कर चुके थे. मझली बहन की शादी भी कर दी. मेरी सब से छोटी बहन एमएससी कर रही थी. भाई 12वीं कक्षा में पढ़ रहा था. सब अच्छा चल रहा था लेकिन 2005 में मेरे पापा का कार दुर्घटना में निधन हो गया. हमारे परिवार पर जैसे दुखों का पहाड़ गिर पड़ा. सचमुच, उन्होंने सारी उम्र हमारी पढ़ाई पर लगा दी. एक समय ऐसा भी था जब आर्थिक हालात बहुत नाजुक हो गए थे, घर तक बेचना पड़ा लेकिन पापा ने हमारी पढ़ाई नहीं रुकने दी. उन्हें गर्व था कि उन के बच्चे पढ़ रहे हैं. जब उन के सुख देखने का समय आया तो वे अब नहीं रहे. पापा को गए वर्षों बीत चुके हैं, पर आज भी दिल चाहता है कि उन से बात करूं. उन को बताऊं कि मैं, आज अपने घर में कितनी खुश हूं.        

संदीप राणा, कोटकपूरा (पंजाब)

मातृभूमि

वतन की मिट्टी की सोंधी

खुशबू की मुझे तलाश है

नाम, पैसा सबकुछ पा कर भी

मुझे अपनी जड़ों की याद है

उन्मुक्त गगन में विचरते पक्षी को

रही सदा नीड़ की आस है

पाया कम, खोया कहीं ज्यादा है

रहा मुझ को यह मलाल है

अर्थ की इस अर्थहीन दौड़ में

मैं ने मातृभूमि को खोया है

मन आज फिर

उदासउदास है.

         – रीता कौशल

 

दिल के नजदीक

रोमरोम अब है तुम्हारा

चाहे तो तसदीक कर लो

भले खुशियों में न करो

अपने गम में शरीक कर लो

बेजान सा दिल मेरा

धड़क उठेगा बेसाख्ता गर-

थाम कर हाथ मेरा

अपने दिल के नजदीक कर लो.

                   – डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

 

ये पति

एक बार मैं अपने पति के साथ एक परिचित से मिलने गई. काफी कोशिशों के बाद भी हम बारबार रास्ता भटक रहे थे. आखिर में इन्होंने एक दुकानदार से रास्ता इस प्रकार पूछा, ‘‘सुनो दाज्यू, इसी ढलान में क्या गंजेबाल वाले पीसी तिवारी रहते हैं?’’ दुकानदार ने एक पल सोचा, फिर बोला, ‘‘अरे भाईसाहब, या तो तिवारी गंजा होगा या फिर बाल वाला, यह गंजेबाल का क्या मतलब?’’ ‘‘मेरा मतलब आगे से आधा सिर गंजा व पीछे से बाल वाला.’’ इन का ऐसा विवरण सुन कर मैं तो खिलखिला कर हंसने लगी और ये दोनों खिसिया कर चुप हो गए.

दीपा, भोपाल (म.प्र.)

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हमारी शादी की 8वीं वर्षगांठ थी. इस बार हम ने वर्षगांठ अकेले ही मनाने का फैसला किया. ये सुबह को जल्दी घर आने का वादा कर के औफिस चले गए. शाम तक मैं ने घर की अच्छी तरह से साफसफाई कर के तथा फिश, चिकन, रोटी आदि बना कर पूरी तरह तैयारी कर ली थी. फिर मैं सजसंवर कर इन का इंतजार करने बैठ गई. रात के 10 बज गए परंतु ये नहीं आए. मेरा गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा था. लगभग 10.30 को ये घर आए. इन को देख कर मैं भड़क गई और जोरजोर से खरीखोटी सुनाने लगी. ये मेरा गुस्सा देख कर केक, जो साथ ले कर आए थे, को डाइनिंग टेबल पर रख कर बिना बोले बैडरूम में गए और बिस्तर में दुबक कर लेट गए. गुस्से में मैं भी भुनभुनाती हुई बिस्तर में जा कर लेट गई. थकी हुई तो थी ही, मुझे नींद आ गई. थोड़ी देर बाद मेरी आंख खुली. देखा, रात के पौने 12 बज गए थे. और ये सोए पड़े थे. मुझे इन को यों भूखा सोया देख कर बहुत तरस आया. मैं जल्दी से उठी और सोचा कि जल्दी से खाना गरम कर इन को मना कर उठाती हूं और 12 बजे तक केक काट कर खाना खाएंगे. लेकिन जैसे ही मैं ने डाइनिंग टेबल पर पहुंच कर खाने के डोंगे खोले, मैं अवाक् रह गई. सारे डोंगे खाली थे. मेरे सोते ही ये जल्दी से उठे और सारा खाना चट कर गए थे. और फिर आराम से दूर जोरजोर से खर्राटे भरते हुए सो गए थे.

वो रात मैं ने भूखे ही सो कर गुजारी. सुबह उठ कर इन्होंने जल्दी से खुद नाश्ता बना कर मुझे जगाया तथा मुझे मना कर, माफी मांगते हुए नाश्ता कराया. आज हमारी शादी को 20 साल हो गए हैं लेकिन हम ने फिर कभी भी अकेले अपनी वर्षगांठ नहीं मनाई है पर जाने क्यों आज भी अपनी 8वीं वर्षगांठ याद कर के अच्छा लगता है.

सुषमा कौशिक, द्वारका (न.दि.)

स्मार्ट टिप्स

  1. अगर आप की त्वचा औयली है तो प्राकृतिक क्लींजर, जोकि दूध और शहद से बना हो, से चेहरा साफ करें. इस से चेहरे की अत्यधिक गंदगी साफ होती है. चाहें तो ओट्स और दही मिला कर पैक भी बना सकते हैं.
  2. बालों में सप्ताह में एक बार हेयर मास्क जरूर लगाएं, इस से बालों को पोषण मिलेगा. यह मास्क बनाने में आसान है. एक केला व एक अंडा लें, इन्हें आपस में मथ लें और बालों पर लगाएं. 30 मिनट बाद बालों को धो लें.
  3. घर छोटा है तो सामान को अलगअलग रखने के लिए बेंत की सुंदर टोकरियों तथा बक्सों का प्रयोग करें. इस तरह वस्तुएं केवल व्यवस्थित ही नहीं रहतीं बल्कि घर भी साफ रहता है.
  4. केले के छिलकों को मिक्सी में पीस लें और इसे गरम पानी में मिला कर रख दें. जब पानी ठंडा हो जाए तो पेड़ और पौधों में डाल दें. ऐसा करने से पौधे काफी अच्छे हो जाएंगे.
  5. लैपटौप पर काम करते वक्त चायकौफी से दूर रहें. कोई भी तरल पदार्थ आप के लैपटौप को नुकसान पहुंचा सकता है.
  6. अपनी उंगली पर शहद की एक बूंद लें और उस से अपने सूखे होंठों की मसाज करें. इस से आप के सूखे होंठ फटेंगे नहीं.
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