वतन की मिट्टी की सोंधी
खुशबू की मुझे तलाश है
नाम, पैसा सबकुछ पा कर भी
मुझे अपनी जड़ों की याद है
उन्मुक्त गगन में विचरते पक्षी को
रही सदा नीड़ की आस है
पाया कम, खोया कहीं ज्यादा है
रहा मुझ को यह मलाल है
अर्थ की इस अर्थहीन दौड़ में
मैं ने मातृभूमि को खोया है
मन आज फिर
उदासउदास है.
– रीता कौशल
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