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‘अलीगढ़’ हमारे समाज के लिए जरूरी फिल्म: करण जौहर

दो बेहतरीन कलाकार मनोज बाजपई और राजकुमार राव एक साथ ‘अलीगढ़’  फिल्म में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म का पोस्टर हाल ही में रिलीज हुआ था. पोस्टर भर से ही फिल्मी कीड़ों के कान खड़े हो गए थे. और अब आ गया है फिल्म का ट्रेलर. जिसको बेहतरीन रिस्पॉन्स मिला है.

फिल्म अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के डॉक्टर श्रीनिवास सिरास पर आधारित है जिन्हें गे होने की वजह से सस्पेंड कर दिया गया था. मनोज बाजपई श्रीनिवास का किरदार निभा रहे हैं, राजकुमार जर्नलिस्ट बने हैं.

‘अलीगढ़’ को पिछले साल कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया गया. जहां फिल्म ने खूब वाहवाही बटोरी. सेक्स के बारे में बात करते फिल्म बनाने वाले जरा हिचकते हैं. क्योंकि सेक्स इशू पर बनी फिल्में बाद में आती हैं, बवाल पहले चला आता है. ऐसे टाइम पर समलैंगिकता पर फिल्म बनाने के लिए हंसल मेहता को सलाम है. लेकिन हर ऑफ-बीट फिल्म बहुत सारी उम्मीद भी लेकर आती है. जिन पर फिल्म खरी उतरेगी या नहीं, ये तो 26 फरवरी को पता चलेगा.

कोल्डप्ले के वीडियो में बियॉन्से संग दिखेंगी सोनम कपूर

सोनम कपूर अंग्रेजी रॉक बैंड कोल्डप्ले के नए गाने A Head Full of Dreams के वीडियो में ‘म्यूज’ यानी इंस्पायर करने वाली औरत का रोल निभाएंगीं. वीडियो में मशहूर सिंगर बियॉन्से भी होंगी, जिन्होंने गाने में बैंड के साथ गाया भी है. वीडियो में सोनम पहनेगीं घागरा चोली, मांग टीका और नाक में नथ.

सोनम की बहन रिया, जो अक्सर उनकी स्टाइलिंग किया करती हैं, ने ही इस बार भी सोनम को तैयार किया है. सोनम ने बताया, “मुझे कोल्डप्ले का म्यूजिक बहुत पसंद है. जैसे दुनिया में सभी कोल्डप्ले को पसंद करते हैं. इस वीडियो में काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है. वीडियो का कॉन्सेप्ट बढ़िया है और काम करते हुए मुझे मजा आया.”

वीडियो के डायरेक्टर है बेन मोर. और शूटिंग मुंबई के गोल्फा देवी मंदिर और वसई फोर्ट में हुई है. लगता है कोल्डप्ले को हो गया है इंडिया से प्यार. पिछली जुलाई में आए थे तो दिल्ली के हौज खास के एक पब में मौज में परफॉर्म कर गए थे. फिर अक्टूबर में अपने गाने Hym For The Weekend का म्यूजिक वीडियो भी मुंबई में शूट किया. और अब आ गई सोनम कपूर वाली खबर.

 

पाकिस्तानी फिजा में खिला सुरीला ‘गुल’ हैं पनारा

चेहरे पर झीनी सी मुस्कान लिए पश्तो सिंगर गुल पनारा. पाकिस्तानी कोक स्टूडियो के सीजन-8 में जब आतिफ असलम के साथ ‘मन अमादेहा अम’ गाना गाती हैं तो मन में पनारा की ‘गुल’ सी आवाज घुलने लगती है. ‘मन अमादेहा अम’ गाने की शुरुआती लाइन इश्क की राह पर चल रहे मुसाफिरों को सुकूं भरे घूंट पिलाती है. ऊपर पश्तो में लिखी लाइन का मतलब है- ‘मैं आ गई हूं. इश्क की फरियाद पर. मैं आ गई हूं, ताकि हमारा मिलन हो सके.’

26 साल की पाकिस्तानी पश्तो कुड़ी गुल पनारा. 20 से ज्यादा पश्तो फिल्म और तीन स्टू़डियो एलबम में आवाज. यूनिवर्सिटी ऑफ पेशावर से सोशल वर्क की पढ़ाई लेकिन पहचान बनी सिंगिंग से. ऐसा नहीं है कि सिर्फ पाकिस्तान या कोक स्टूडियो में ‘मन अमादेहा अम’ गाने के हिट होने के बाद गुल को इंडिया या दूसरे देशों में पहचान मिली. अफगानिस्तान, यूएई और कतर जाकर भी गुल परफॉर्म कर चुकी हैं. इस गाने को ओरिजनली गाया था सिंगर घूघूस ने.

गुल सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव हैं . ट्विटर हैंडल है @gullpanra और वेबसाइट gulpanra.net और इंस्टाग्राम पर Thegulpanra नाम से. इन ई-पतों पर गुल के गाने, तस्वीरों का दीदार किया जा सकता है. गुल को फेम मिला 16 अगस्त 2015 के बाद. जब कोक स्टूडियो सीजन 8 का गाना ‘मन अमादेहा अम’ हुआ रिलीज.

मरी नहीं, जिंदा हूं मैं: गुल

गुल पनारा के बारे में अफवाहें भी खूब उड़ी हैं. अगस्त 2014 में गुल पनारा की मौत की अफवाह भी सोशल मीडिया पर फैली. जिसके बाद गुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, कभी मेरी शादी तो कभी मेरी मौत की झूठी खबरें फैलाई जाती हैं.’ बहरहाल गुल का करियर अभी शुरू हुआ है. शादी या अफेयर से फिलहाल दूर गुल अपने करियर पर कॉन्सन्ट्रेट करना चाहती हैं.

इनोवेशन के लिए सबसे खराब जगह है भारत

इनोवेशन के लिए भारत सबसे खराब देशों में से एक है. एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत 56 देशों की रैंकिंग में 54वें नंबर पर आया है. टेक्नोलॉजी पॉलिसी थिंक टैंक, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन फाउंडेशन (आईटीआईएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की पॉलिसी ग्लोबल इनोवेशन के लिए बेहद खराब है. यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में ‘स्टार्टअप इंडिया’ प्रोग्राम की शुरुआत कर चुके हैं और स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए आसान शर्तों पर बड़े कर्ज देने की बात कह रहे हैं.

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस देश का माहौल इनोवेशन के लिए बेहद खराब हो, वहां स्टार्टअप कैसे सफल होंगे. इसकी सफलता संदेह के घेरे में आ सकती है. आईटीआईएफ ने जिन देशों को अपने सर्वे में शामिल किया है वह विश्व अर्थव्यवस्था में 90 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं.

थाईलैंड, चीन, भारत, अर्जेंटीना और रूस की पॉलिसी खराब

थाईलैंड, चीन, भारत, अर्जेंटीना और रूस की पॉलिसी ग्लोबल इनोवेशन सिस्टम में सबसे खराब है. रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों में कारोबार को लेकर बहुत सारी बाधाएं हैं, जो इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी प्रोटेक्शन के लिए कमजोर वातावरण पैदा करता है. घरेलू इनोवेशन को बढ़ावा देने वाले टैक्स सिस्टम, रिसर्च एंड डेवलपमेंट में निवेश और ह्यूमन कैपिटल जैसे 14 फैक्टर्स को ध्यान में रखकर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है. आरएंडडी से जुड़े टैक्स इनसेंटिव्स के लिहाज से खराब देशों की लिस्ट में भारत टॉप पर है. इसके कारण देश में इनोवेशन का अभाव है.

आरएंडडी पर किसी भी इंसेंटिव की व्यवस्था नहीं

रिपोर्ट के अनुसार भारत में कंपनियों को आरएंडडी पर किसी भी इंसेंटिव की व्यवस्था नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कोई कंपनी अगर 100 रुपए रिसर्च एंड डेवलेपमेंट पर खर्च करती है तो उसे टैक्स क्रेडिट के रूप में सिर्फ 44 रुपए मिलते हैं. सर्वे में शामिल 56 में से 18 देशों में किसी प्रकार का टैक्स इंसेंटिव नहीं मिलता है. हालांकि, भारत सरकार प्रति व्यक्ति 31,600 रुपए आरएंडडी पर खर्च करती है, जो कि लिस्ट में शामिल 18 देशों से अधिक है.

रिपोर्ट के अनुसार कॉर्पोरेट टैक्स के मामले में भारत बाकी देशों से बेहतर है. भारत में इफेक्टिव कॉर्पोरेट टैक्स 26.8 फीसदी है, जो कि ऑस्ट्रिया, मेक्सिको, अमेरिका, जर्मनी, इटली और जापान के मुकाबले कम है.

पूरा हुआ लोन, तो बैंक से ये दस्तावेज लेना न भूलें

घर खरीदना हो या कार, या फिर कोई बड़ा खर्च आ जाए. हम लोन लेकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं. लेकिन हम लोन लेकर बेहद शिद्दत से उसकी किस्‍तें जमा करते हैं. लेकिन एक बार जब लोन पट जाता है, तो अक्‍सर हम काफी लापरवाह हो जाते हैं. कई बार हमारे जरूरी दस्‍तावेज जैसे नो ड्यूज सार्टिफिकेट आदि बैंक से लेना भूल जाते हैं, जिसके चलते हमें अगली बार कर्ज लेने में मुश्किल होती है.

इसलिए बैंक से जरूरी दस्‍तावेज लेना न भूलें, क्‍योंकि नो ड्यूज सार्टिफिकेट के बिना हम यह साबित नहीं कर सकते कि हमने लोन पूरा कर लिया है. नो ड्यूज के साथ ही बैंक क्‍लोजर लैटर और स्‍टेटमेंट ऑफ अकाउंट भी जारी करते हैं, जिसे लेना बहुत ही जरूरी है. सरिता टीम आपको आज इन्‍हीं बिंदुओं के बारे में बताने जा रही है, जो आपको लोन पूरा करने के बाद याद रखनी चाहिए.

कर्ज खत्‍म होने के बाद जरूर लें एनडीसी

अगर आप लोन चुकाने के लिए समय से पहले नकद भुगतान करते हैं तो कर्जदाता बैंक लोन समाप्‍त होते ही एनडीसी ( नो ड्यूज सर्टिफिकेट) जारी कर देते हैं. एनडीसी के जरिये बैंक कर्ज लेने वाले को लिखित रूप में सूचित करता है कि वह अपने असली दस्‍तावेज बैंक से ले जाए. अगर कर्ज लेने वाले व्‍यक्ति को बैंक से एनडीसी नहीं हासिल हुआ है तो तुरंत बैंक में संपर्क करें. यदि आपका एनडीसी खो गया है तो बैंक से तुरंत डुप्‍लीकेट कॉपी ले लें.

होम लोन लिया है तो अपडेट करवा लें ईसी

यदि आपने होम लोन लिया है तो आपको लोन पूरा करने के बाद इंकम्‍ब्रेंस सर्टिफिकेट (ईसी) पर से मॉर्गेज हटवा कर अपडेट करवा लेना चाहिए. इसके लिए आप क्‍लोजर की एक प्रति के साथ रजिस्‍ट्रार से संपर्क कर सकते हैं. ईसी इस बात का सबूत होता है कि प्रॉपर्टी पर किसी तरह का लोन तो नहीं है. ईसी अपडेट की गई प्रॉपर्टी को हम आसानी से रीसेल कर सकते हैं. इसके अलावा आप बैंक से भी वे दस्‍तावेज जरूर ले लें, जो आपने लोन लेते वक्‍त जमा किए थे.

कार लोन पूरा होने पर रजिस्‍ट्रेशन करवा लें दुरस्‍त

जब हम लोन पर कार खरीदते हैं तो उस का रजिस्‍ट्रेशन बैंक के नाम पर होता है. अगर लोन की राशि चुका दी गई है तो रजिस्‍ट्रेशन पेपर गाड़ी के मालिक के नाम पर ट्रांसफर होने जरूरी होते हैं. इसके लिए आप रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस से संपर्क कर सकते हैं. यहां रजिस्‍ट्रेशन पेपर और इंश्‍योरेंस पॉलिसी आवेदन करने के लिए आपको बैंक से मिली क्‍लोजर रिपोर्ट पेश करनी होती है.

पर्सनल और क्रेडिट कार्ड या दूसरे लोन

यदि आपने लोन अगेंस्‍ट प्रॉपर्टी लिया है तो आप कर्ज पूरा होने के बाद बैंक से ये कागजात ले लें. ये कागजात बैंक डिफॉल्‍ट होने की दशा में ही अपने पास रखता है. इसके अलावा यदि आपने पर्सनल लोन लिया है तो यह भी क्‍लोजर रिपोर्ट मिलने के बाद ही खत्‍म माना जाता है. लोन अदा करने के बाद आप अपना क्रेडिट स्‍कोर जरूर जांच लें. कई बार लोन अपडेट नहीं होने के कारण आपका क्रेडिट स्‍कोर निगेटिव ही रहता है.

मस्तीजादेः एक स्तरहीन सेक्स कामेडी फिल्म

पिछले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म ‘‘क्या कूल हैं हम 3’’ के संवाद लेखक मिलाप मिलन झवेरी अब बतौर लेखक व निर्देशक एडल्ट व सेक्स कामेडी फिल्म ‘‘मस्तीजादे’’ लेकर आए हैं. मिलाप ने सारे द्विअर्थी संवादों का पिटारा ‘‘क्या कूल हैं हम 3’’ में पिरो दिया था. इस कारण उनके पास ‘‘मस्तीजादे’’ में द्विअर्र्थी संवाद पिरोने के लिए पिटारा खाली हो चुका था. जिसके चलते ‘‘मस्तीजादे’’ में कई अश्लील शब्द और संवाद ‘क्या कूल हैं हम 3’ से चुराए गए लगते हैं. इतना ही नहीं फिल्म ‘‘मस्तीजादे’’ में मिलाप मिलन झवेरी ने द्विअर्थी संवादो की बजाय अश्लील व फूहड़ अंग प्रदर्शन वाले दृश्यों को भरकर काम चलाने की कोशिश की. अफसोस की बात है कि ‘‘क्या कूल हैं हम 3’’ के मुकाबले’ ‘मस्तीजादे’ ज्यादा स्तरहीन, ज्यादा बेकार और बोर करने वाली फिल्म है.

यूं तो फिल्म ‘‘मस्तीजादे’’ में कहानी का घोर अभाव है. पर फिल्म के घटनाक्रमों के केंद्र में दो दोस्त सनी केले (तुषार कपूर) और आदित्य चोटिया (वीर दास) तथा सनी लियोनी की दोहरी भूमिका है. लैला (सनी लियोनी) और लिली (सनी लियोनी) जुड़वा बहने हैं. पर लैला और लिली के पहनावे व व्यक्तित्व में जबरदस्त विरोधाभास है. यह एक अलग बात है कि जब फिल्म आगे बढ़ती है, तो इंटरवल के बाद लैला और लिली दोनों के रूपों में  बदलाव भी होता है. सनी केले और आदित्य चोटिया दोनो एक विज्ञापन एजेंसी में नौकरी करते हैं. पर उनकी हरकतों की वजह से उन्हे इस कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. यह दोनो अपनी विज्ञापन एजेंसी खोल लेते हैं.तभी सनी केले को लैला और आदित्य को लिली से प्यार हो जाता है. मगर बीच में लिली का प्रेमी देशप्रेमी (शाद रंधावा) आ जाता है. लिली और देशप्रेमी की शादी पटाया में होनी है. इसलिए सारे पात्र पटाया पहुंच जाते हैं. फिर शुरू होता है कन्फ्यूजन का दौर. अंततः सनी केले को लैला और आदित्य को लिली मिल जाती है.

‘‘क्या कूल हैं हम 3’ ’की ही भांति ‘‘मस्तीजादे’’ में भी मिलाप मिलन झवेरी ने हास्य दृश्य पैदा करने के लिए ‘शोले’ सहित कुछ पुरानी फिल्मों का स्पूफ बनाया है. पटकथा के स्तर पर मिलाप झवेरी बुरी तरह से असफल रहे हैं. नग्न या अश्लील सीन को भी वह ठीक से चित्रित नहीं कर पाए. यह सारे सीन बड़े बचकाने, फूहड़ या यूं कहे कि गोबर की तरह थोपे गए लगते हैं. द्विअर्थी संवाद भी ऐसे नहीं है, जो कि दर्शकों को अपनी तरफ खींच सकें. फिल्म में पटकथा के साथ साथ निर्देशकीय कमियां भी नजर आती हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो सनी लियोनी ने अपनी ईमेज के अनुसार ही अभिनय किया है. वह एक सीन में पूर्ण नग्न नजर आती हैं. तो ज्यादातर दृश्यों में वह बिकनी में नजर आती हैं. पर दो चार सीन में जब वह साड़ी में आयी हैं, तो खूबसूरत लगी हैं. सनी लियोनी के प्रशंसक उनसे निराश नहीं होंगे. वीर दास तो अपनी कामिक टाइमिंग के लिए जाने जाते हैं. उनका अभिनय ठीक ठाक रहा. तुषार कपूर तो हर सेक्स व एडल्ट कामेडी वाली फिल्मों में एक जैसे ही नजर आते हैं. फिल्म ‘‘शोले’’ में अंग्रेजों के जमाने के जेलर का किरदार निभाने वाले असरानी को तो शायद निर्देशक ने महज स्पूफ के लिए शामिल किया है. वह लैला व लिली के पिता के किरदार में हैं. मगर  निर्देशक ने उनसे फूहड़ हरकतें ज्यादा करायी हैं. सुरेश मेनन ने ‘गे’ का बहुत ही ज्यादा घिसा पिटा किरदार निभाया है. उनके अभिनय में भी कोई नवीनता नहीं है. शाद रंधावा,रितेश देशमुख, सुष्मिता मुखर्जी के लिए करने को कुछ था ही नहीं.

फिल्म के गीत संगीत भी आकर्षित नहीं करते. बल्कि फिल्म के गीत फिल्म की गति को रोकते ही हैं. बाक्स आफिस पर यह फिल्म सफलता बटोर सकेगी, इसकी उम्मीद तो की ही नहीं जा सकती. प्रितीश नंदी और रंगीता प्रितीश नंदी ने फिल्म ‘‘मस्तीजादे’’ का निर्माण ‘प्रितीश नंदी कम्यूनीकेशन’’ के बैनर तले किया है. फिल्म के पटकथा व संवाद लेखक तथा निर्देशक मिलाप मिलन झवेरी, फिल्म के संगीतकार मीत ब्रदर्स, अमाल मलिक और आनंद राज आनंद हैं.

 

कूल और फंकी गैजेट्स से लैस टीनएजर्स

किशोरों की सुबह मोबाइल अलार्म से शुरू हो कर आईपैड व वीडियोगेम्स, कंप्यूटर और वीडियोचैट, मूवी लैपटौप आदि के इर्दगिर्द गुजरती है. दिनभर वे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप जैसी सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर व्यस्त रहते हैं. इन्हें नएनए गैजेट्स अपनी जीवनशैली में सब से अहम लगते हैं. शायद इसलिए मार्केट में टीनएजर्स के लिए नए साल की शुरुआत यानी न्यू ईयर पर नएनए गैजेट्स लौंच होते हैं. किशोर भी नए साल की शुरुआत एक नए गैजेट को खरीद कर रखना चाहते हैं. कई बार तो टीनएजर्स साल भर अपनी पौकेटमनी से पैसे बचा कर जमा करते हैं ताकि नए साल पर अपना पसंदीदा गैजेट खरीद सकें. ये गैजेट्स किशोरों को न सिर्फ लुभाते हैं बल्कि इन को खरीद कर वे खुद को मौडर्न भी समझने लगते हैं. यही कारण है कि वे हमेशा गैजेट्स को ले कर क्रेजी रहते हैं और हर साल नएनए गैजेट्स बहुत शौक से खरीदते हैं.

आजकल टीनएजर्स के पसंदीदा गैजेट्स हैं, स्टाइल और कूल लुक वाले स्मार्टफोन, टैबलेट, आईपैड, वायरलैस हैडफोन, किंडले ईबुक रीडर्स, ब्लूटूथ स्पीकर, ऐक्सबौक्स और पीएसपी गेम डिवाइस, फिटनैस वाच आदि. आइए, इन गैजेट्स की खासीयत, जरूरत, कीमत, और मौजूदा ट्रैंड्स को समझने की कोशिश करते हैं :   

ईबुक रीडर्स डिवाइस
किसी जमाने में किशोरों में पढ़ने की आदत को काफी अच्छा समझा जाता था. साहित्य से लगाव रखने वाले ये किशोर मेधावी और रचनात्मकशीलता से लैस होते थे, लेकिन बदले वक्त और तकनीकी क्रांति ने इस आदत को छुड़वा कर इन्हें टीवीकंप्यूटर की दुनिया में बिजी कर दिया. हालांकि तकनीक के आने से पढ़ने की कला को भी टैक्नोफ्रैंडली होने का मौका मिला और अब बाकायदा पढ़ने के लिए ईबुक्स रीडर्स डिवाइस बाजार में मौजूद हैं.

इस फील्ड में किंडले बड़ा नाम है. दुनिया भर के किशोर इसी में बैस्टसैलर नावेल से ले कर अपने सिलेबस की किताबें तक पढ़ते हैं. किंडले की तरह ही कोबो ब्रैंड ने पढ़ने की आदत को आसान और रोचक बनाते हुए अपना नया ईरीडर गैजेट लौंच किया है. 6.8 इंच स्क्रीन वाले इस गैजेट की एचडी और 1,440× 1,080 रिजोल्यूशन क्वालिटी इस को बेहतर क्लियरिटी देती है. इस की बेहतर तकनीक स्क्रीन को स्क्रैच फ्री बनाती है.

कोबो के इस ईरीडर की इंटरनल मैमोरी 4 जीबी की है जिसे माइक्रोएसडी कार्ड के जरिए 32 जीबी तक ऐक्सपैंड किया जा सकता है. इस में सब से अच्छी सुविधा यह है कि इस की मदद से यूजर ईबुक के फौंट्स को अपनी सुविधानुसार बदल भी सकते हैं और पढ़ते समय टैक्स्ट को हाइलाइट भी कर सकते हैं. यही नहीं इसे आप फेसबुक के जरिए शेयर भी कर सकते हैं. कंपनी के मुताबिक़ प्रतिदिन औसतन 30 मिनट चलाने पर इस की बैटरी 2 महीने तक चलती है. किंडले और कोबो की तरह और भी कई कंपनियां इस दिशा में प्रयासरत हैं.

आईपैड और टैबलेट का किलर कौंबो 
ईबुक्स पर किताब पढ़तेपढ़ते किशोर जब बोरियत महसूस करने लगते हैं तो मनोरंजन के लिए  आईपैड और टैबलेट का रुख करते हैं, जहां उन को फिल्म संगीत और गपशप की नई दुनिया मिलती है. महानगरों में बस और मैट्रो में सफर करते हुए किशोरों के हाथों में आईपैड और टैबलेट नजर आते हैं. हर तिमाही किशोरों को केंद्र में रख कर कंपनियां नए डिजाइंस, कलर्स और फीचर्स से लैस टैबलेट मार्केट में उतारती हैं.

आजकल वही वर्जन डिमांड में हैं, जो  पूरी तरह से डिटैचेबल और फुल एचडी हैं. ज्यादातर टैबलेट और आईपैड 5 फिंगर टच फीचर्स के साथ मिलते हैं. अगर फिल्म और वीडियो देखने के बाद इस में स्कूल का प्रोजैक्ट बनाना चाहें तो टैबलेट के साथ कीबोर्ड जोड़ कर यह काम कर सकते हैं. बाजार में मौजूद विकल्पों की तर्ज पर इस में इंटेल कोर आई 5 और आई 7 प्रोसैसर वी-प्रो टैक्नोलौजी के साथ है जो इसे फास्ट डिवाइस बनाता है.   

ब्लूटूथ स्पीकर और वायरलैस हैडसैट
चाहे पढ़ाई का वक्त हो या फिर जोगिंग और जिम का, किशोर हर काम गाने सुन कर ही करना चाहते हैं. किशोरों की इसी पसंद को ध्यान में रख कर जेबीएल, सोनी, फिलिप्स, एलजी से ले कर बीटेल जैसे ब्रैंड्स ने बेहद आकर्षक तकनीक से लैस ब्लूटूथ स्पीकर और वायरलैस हैडसैट बाजार में उतारे हैं. इन की खासीयत है कि ये मोबाइल से ले कर आईपैड  और लैपटौप यहां तक कि टीवी में भी आसानी से फिट हो कर संगीत का मजा दोगुना कर देते हैं. ब्लूटूथ स्पीकर वह डिवाइस होती है जो बिना किसी बूफर या ऐक्सटर्नल डिवाइस के असैंबल होती है जो बिना किसी वायर के कनैक्शन के सिर्फ ब्लूटूथ के एपेयरिंग के साथ चल पड़ती है. अच्छी बात यह है कि इस के लिए किसी इलैक्ट्रौनिक इनपुट की जरूरत नहीं होती, क्योंकि इस के अंदर रिचार्जेबल बैटरी लगी होती है.  

आज वायरलैस हैडसैट भी उसी तरह बदल चुके हैं जैसे वौकमैन से ले कर किसी भी एमपी थ्री प्लयेर से गाने सुनने के लिए कानों में हैंडफ्री डाली जाती थीं, लेकिन कई बार तार के उलझ जाने या खराब हो जाने के कारण गाने सुनने का मजा बेकार हो जाता था, लेकिन अब वायरलैस हैडसैट से यह समस्या लगभग खत्म हो गई है. बिना तार के सिर्फ ब्लूटूथ की कनैक्टिविटी से इसे मोबाइल या म्यूजिकल डिवाइस से कनैक्ट कर बिना किसी वायर के संगीत का मजा लेना आसान हो गया है.

पीएसपी, ऐक्स बौक्स और 3डी गेमर्स
अमेरिकन टैक्नोफ्रीक संस्था से जुड़ी रिसर्च की मानें तो दुनिया के टीनएजर्स अपना सब से ज्यादा समय जिस चीज में बिताते हैं वह है गेमिंग. जी हां, न टीवी और न ही कार्टून. इसलिए गारा गेमिंग डिवाइस की मार्केट में कीमत लाखों में और एक डीवीडी गेम की कीमत हजारों में है तो ताजुब नहीं होना चाहिए. गेमिंग से जुड़ा एक अध्ययन यह भी बताता है कि आजकल किशोरों में हिंसक प्रवृत्ति के बढ़ने के पीछे भी गेमिंग का हाथ है.

स्मार्ट वाच, नोटबुक और स्टाइल गैजेट्स
इन के अलावा आजकल मार्केट में स्मार्ट वाच भी आ गई हैं जिन में स्मार्टफोन सरीखे सारे फीचर्स हैं. कलाई पर बांध कर इस स्मार्ट वाच से आप न सिर्फ मेल चैक कर सकते हैं बल्कि कौल भी कर सकते हैं. इस के अलावा म्यूजिक से ले कर फिल्में भी इसी पर देख सकते हैं. कुछ ही ब्रैंड्स हैं, जो स्मार्ट वाच बनाते हैं मसलन एपल, एडिडास और नाइकी, लेकिन इन की कीमत भी ज्यादा है, इसलिए देश में इन की बिक्री उतनी नहीं है. लैपटौप का मिनी रूप ही नोट बुक है, जो टीनएजर्स के हिसाब से लैपटौप का काम करता है. इस में असल काम रैम, हार्डडिस्क और प्रोसैसर का है.

होशियारी से खरीदें गैजेट्स
नए साल की शुरुआत नए गैजेट से करने में कोई बुराई नहीं हैं, लेकिन शुरुआत ही ठगी या पैसों के नुकसान से हो, तो मजा खराब हो जाता है. जी हां, साल की शुरुआत में गैजेट मार्केट नएनए इलैक्ट्रौनिक आइटम्स से भरा होता है. इसी भीड़ में कई बार लोकल और डुप्लीकेट प्रोडक्ट भी बेचे जाते हैं. जिन को इस बारे में अधिक जानकारी नहीं होती वे सस्ते के लालच में ऐसे गैजेट ले कर न सिर्फ ठगी के शिकार होते हैं बल्कि प्रोडक्ट में बाद में आने वाली खराबी को सर्विस सैंटर के अभाव में रिपेयर भी नहीं करा पाते. इसलिए किसी जानकार व्यक्ति के साथ जा कर जिसे क्वालिटी और फीचर्स की अच्छी परख हो, गैजेट खरीदें वरना अगर आप सस्ते के चक्कर में ग्रे मार्केट से उत्पाद खरीदते हैं और उस का कोई बिल भी नहीं मिलता, तो आप उस प्रोडक्ट के बारे में कोई कानूनी कार्यवाही भी नहीं कर सकते. आप को सर्विस और अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलतीं. इसलिए उत्पाद सही स्थान से खरीद कर बिल जरूर लें. लोकल ब्रैंड के बजाय ब्रैंडेड कंपनी का सामान लेना बेहतर होता है, क्योंकि फोन और लैपटौप में विंडो का पायरेटेड वर्जन इस्तेमाल करते समय आप उस के औटोमैटिक अपडेट को चालू नहीं रख सकते. चाहे आप का फोन हो या कंप्यूटर इस के सौफ्टवेयर लगातार अपडेट होते रहते हैं. यह भी ध्यान रखें कि जो गैजेट्स आप ले रहे हैं उन के सर्विस सैंटर आप के आसपास हैं भी या नहीं. इन की खरीदारी में थोड़ी समझदारी दिखाएं वरना हैप्पी न्यू ईयर को हैप्पी लौस ईयर बनते देर नहीं लगेगी.     

जब अहमद की बनाई डिजिटल घड़ी ने मचाई धूम

कोई नया आविष्कार करने के लिए लोगों को क्या कुछ नहीं करना पड़ता. अकसर ऐसा हुआ है जब किसी ने कोई नई चीज ईजाद की, तो उसे शुरुआत में गलत समझ लिया गया. कई बार तो ऐसे लोगों को सनकी तक कहा जाता है. महान वैज्ञानिक आविष्कारक टामस एलवा एडिसन के साथ तो ऐसा कई बार हुआ. उन के कारनामों का मजाक उड़ाया जाता था और माना जाता था कि वे जिंदगी में कभी सफल नहीं होंगे. ऐसा ही एक वाकेआ वर्ष 2015 में अमेरिका के टैक्सास प्रांत में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले 14 वर्षीय लड़के अहमद मोहम्मद के साथ हुआ.

अहमद की घड़ी या बम
टैक्सास के इरविंग स्थित स्कूल में अहमद एक दिन पैंसिल बौक्स से खुद बनाई हुई एक डिजिटल घड़ी ले कर आया. उसे उम्मीद थी कि इस से उस के स्कूल टीचर प्रभावित होंगे और उसे शाबाशी मिलेगी. उस ने बड़े उत्साह से वह डिजिटल घड़ी अपने टीचर को दिखाई. टीचर ने उस की बनाई घड़ी को गौर से देखने के बजाय बम समझ लिया और इस के बारे में स्कूल प्रशासन व पुलिस को सूचित कर दिया. कुछ ही देर में पुलिस स्कूल में आई और अहमद के हाथों में हथकड़ी डाल कर उसे वहां से ले जाया गया. स्कूल प्रशासन ने इस बारे में दलील दी कि बम की सूचना पा कर वही कार्यवाही की गई, जो इस बारे में निर्धारित निर्देशों के तहत की जाती है.

गलती कैसे हुई
जिस स्कूल टीचर को अहमद की बनाई घड़ी बम दिखी थी, उसे अहमद एक आतंकवादी के रूप में नजर आया था. हालांकि बाद में उस टीचर ने दलील दी कि ऐसा भूलवश हुआ. लेकिन पूरे अमेरिका में उस के कृत्य की यह कहते हुए निंदा हुई कि उस की सोच समाज में प्रचलित इस नस्लवादी धारणा से प्रेरित थी कि एक मुसलिम आतंकवादी ही हो सकता है. इस ने पूरे अमेरिका और दुनिया के कई हिस्सों में नाराजगी पैदा कर दी. जब यह खबर और हथकड़ी पहने अहमद व उस की बनाई घड़ी का फोटो सोशल मीडिया पर डाला गया, तो उसे देखने व उस के बारे में जानने वालों की लाइन लग गई. घटना के बाद हाथ में हथकड़ी तथा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लोगो वाली टीशर्ट पहने अहमद मोहम्मद का फोटो कुछ ही घंटे में हजारों बार रीट्वीट कर दिया गया और ट्विटर पर हैशटैग स्टैंड विद अहमद ट्रैंड करने लगा. लोगों ने जहां स्कूल प्रशासन व गलती से घड़ी को बम समझने वाले टीचर की निंदा की, वहीं यह अपेक्षा भी की कि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा इस मामले में दखल देंगे.
ओबामा तक यह खबर पहुंचने की देर थी कि अहमद को फौरन हथकडि़यों से आजाद कराया गया. ओबामा ने अहमद को उस के कौशल के लिए बधाई दी. ओबामा की बधाई को इसलामोफोबिया के आरोपों के बीच स्कूल प्रशासन और पुलिस अधिकारियों के लिए सांकेतिक फटकार के तौर पर देखा गया.

कूल आविष्कार
ओबामा ने अहमद की बनाई घड़ी को एक बेहद दिलचस्प (कूल) आविष्कार बताते हुए पूछा कि क्या वह अपनी घड़ी को व्हाइट हाउस ला सकता है? साथ ही ओबामा ने उसे कई अन्य छात्रों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों, खगोलविदों और जानीमानी हस्तियों के साथ ‘एस्ट्रोनौमी नाइट’ के विशेष मौके पर आमंत्रित किया. डैमोक्रैटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने भी अहमद के साथ हुए दुर्व्यवहार की निंदा करते हुए उस के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया. 20 अक्तूबर को जब अहमद व्हाइट हाउस पहुंचा तो उस का वहां भव्य स्वागत किया गया. वहां मीडिया के साथ हुए इंटरव्यू में अहमद ने कहा कि यह डिजिटल घड़ी उस का पहला आविष्कार जरूर है, लेकिन आखिरी नहीं. वह कई और नई चीजें बनाना चाहता है.

अहमद का सपना
सूडानी-अमेरिकी मांबाप की संतान अहमद का सपना अमेरिका के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट, ‘मैसाच्युसैट्स इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी’ में दाखिला पाना है और वह इस के लिए प्रयासरत भी है. अहमद के प्रयास और सपनों की चर्चा इंटरनैट कंपनी गूगल द्वारा शहर माउंटेन व्यू में लगाए जाने वाले विज्ञान मेले में भी हुई. वहां आने वाले छात्रों ने अहमद से उस के आविष्कार के बारे में जानकारी ली और बताया कि स्कूलों में उस की कितनी चर्चा हो रही है.

रिश्वतखोरी और कोर्ट

क्या इस देश से रिश्वतखोरी को समाप्त करना संभव है? अगर देश की अदालतों का हाल यही रहा तो शायद कभी नहीं. आप चाहे जितना कठिन व कठोर कानून बना लें, मामला तो अदालतों में जाएगा ही और रिश्वतखोर लौबी बहुत ही चालाक, पैसेवाली होने के साथ इतनी पहुंच रखती है कि उसे हर मामले में साफ छूट जाने का विश्वास रहता है.

सुप्रीम कोर्ट के 24 जुलाई, 2015 को दिए गए एक फैसले को सिर्फ उदाहरण के लिए देखें. इस मामले में गुरजंत सिंह नामक व्यक्ति सरकारी कंपनी फूड कौर्पोरेशन औफ इंडिया में टैक्निकल असिस्टैंट के पद पर काम करता था. फूड कौर्पोरेशन की चावल की खरीद को वह तकनीकी प्रमाणपत्र जारी करता था. 30 मई, 2003 को एक व्यापारी के माल को पास करने के लिए उस ने 1 लाख रुपए मांगे पर 50 हजार रुपए में सौदा तय हुआ.

व्यापारी ने हिम्मत दिखा कर फरीदकोट के विजिलैंस औफिसर से शिकायत कर दी और जाल बिछा कर पाउडर लगे, नंबर नोट किए गए नोटों के साथ गुरजंत सिंह को पकड़ लिया गया पर यह मामले का अंत नहीं था. 10-15 गवाह जिला न्यायाधीश के सामने बुलाए गए. उन से क्रौस एक्जामिनेशन किया गया. नवंबर 2005 में गुरजंत को 3 साल की सजा व उस पर 1 लाख रुपए का जुर्माना हुआ. लेकिन वह उच्च न्यायालय में गया.

उच्च न्यायालय ने 9 साल बाद यानी 24 दिसंबर 2014 को निर्णय सुनाया कि सजा बरकरार रखी जाए. गुरजंत सिंह को यह स्वीकार्य न था. उस की सोच के मुताबिक, रिश्वत लेना तो सरकारी व्यक्ति का हक है. वह सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा जहां उस की अपील सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली गई. निर्णय आया 24 जुलाई, 2015 में. निर्णय में सजा घटा कर 2 साल कर दी गई.

इस दौरान शिकायतकर्ता को क्या मिला? एक रिश्वतखोर को पकड़वाने के लिए उसे लगातार अदालतों में आना पड़ा. सरकारी वकीलों से मिन्नतें करनी पड़ीं. वह यह जानता था कि यदि रिश्वतखोर सरकारी नौकर छूट गया तो उस की खैर नहीं होगी.

रिश्वतखोर को जड़ से निकाल फेंकने वाले क्या इस 12 साल के अंतराल को 12 दिन का कर सकते हैं और वह भी न्याय को तानाशाही में बदले बिना? यदि नहीं तो रिश्वतखोरी को समाप्त करने की बात न ही की जाए. यह तो हमारे समाज का अंग है, सरकारी नौकरी का हिस्सा है. रिश्वत के बल पर मात्र टैक्निकल असिस्टैंट कुछ मिनटों में 1 लाख रुपए कमा सकता है और सुप्रीम कोर्ट तक वकीलों की फीसें दे सकता है, इस से साफ है कि रिश्वत के पैर बहुत बड़े हैं. उस के जूतों की मार से कोई नहीं बच सकता. सुप्रीम कोर्ट का रिश्वतखोर की सजा को कम करने वाला यह फैसला संतोष नहीं देता, बल्कि नागरिक को डराता है कि कभी शिकायत न करना, शिकायत करने वाला भी वर्षों भुगतेगा.

 

सफल होने के लिए चुनें अपना लक्ष्य

हर कोई सफलता प्राप्त करना चाहता है, पर सफलता हर किसी को नहीं मिलती. इस का मतलब यह नहीं कि आप सफलता के लिए प्रयास ही न करें. अगर आप भी सफल होने का स्वप्न देखते हैं तो आप के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि आप सब से पहले अपने लक्ष्य का चुनाव करें, उस के बाद उस क्षेत्र में सफल हुए व्यक्तियों से बात करें जिस से आप को सही मार्गदर्शन मिल पाएगा.

लक्ष्य का निर्धारण कर लेने से श्रम एवं समय दोनों की बचत होती है. इस से दीर्घकालीन प्रेरणा और दृष्टि मिलती है. इस के जरिए आप अपने सीमित संसाधनों को अपने लक्ष्य के अनुसार समायोजित कर सकते हैं. नियमित रूप से छोटेमोटे लक्ष्यों का निर्धारण और उस की समीक्षा करने से आप यह निर्धारित कर सकते हैं कि आप ने क्या कुछ हासिल किया. लक्ष्य निर्धारित करने से आप को यह निर्णय करने में मदद मिलती है कि आखिर जीवन में आप को करना क्या है? एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाने के बाद आगे जाने का मार्ग स्वत: दिखाई देने लगता है, जिस पर चल कर आप सफलता के द्वार खटखटा सकते हैं.

अब सवाल उठता है कि लक्ष्य का निर्धारण हम कैसे करें? और किन बातों का ध्यान रखें, जिस से कि हमें असफलता का मुंह न देखना पड़े. अपने जीवन का उद्देश्य बनाते समय सब से पहले खुद की क्षमता का आकलन कर लेना बहुत जरूरी है. हमें शेखचिल्ली के सपनों की तरह अपने जीवन का लक्ष्य नहीं चुनना चाहिए. यह हमेशा याद रखना चाहिए कि हम ने जो भी बनने का स्वप्न देखा है उसे पूरा करने की हमारी क्षमता कितनी और कैसी हैं. अगर आप अपना आकलन करने में अपनेआप को असमर्थ पा रहे हैं तो किसी सीनियर से इस विषय पर बात कर लेनी चाहिए. उक्त व्यक्ति अपने अनुभवों से आप को पूरी जानकारी दे सकेगा. इस जानकारी का उपयोग कर के आप खुद का मूल्यांकन कर सकते हैं. खुद का मूल्यांकन करना इसलिए जरूरी होता है, क्योंकि आप को अपनी लड़ाई खुद लड़नी है.

 दूसरी बात लक्ष्य निर्धारण करते समय अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना है. यह देख लें कि आप का परिवार आप की पढ़ाई, कोचिंग, ट्यूशन, किताबें, ट्रेनिंग जैसे तमाम खर्चे या जो आप बनना चाहते हैं उस से संबंधित खर्चे उठा सकता है या नहीं. इसलिए अपने लक्ष्य को अपने मातापिता को अवश्य बताएं और उन से सलाह लें कि वे आप की कितनी हैल्प कर सकते हैं.

अगर वे आप को आश्वस्त करते हैं कि पैसों की चिंता न करें तो आप पूरी तरह से अपनी तैयारी में लग जाएं. अगर आर्थिक रूप से वे असमर्थ हैं तो आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के बारे में पुनर्विचार करें और साथ ही आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करने के लिए तैयार हो जाएं.

तीसरी और सब से जरूरी बात समय सीमा को समझना है. सभी के लिए समय एक समान होता है यानी 24 घंटे. इसलिए समय की कीमत किसी प्रकार से धन से कम नहीं है. इसलिए आप के पास संघर्ष करने के लिए एक निश्चित समय है. आप अपने सपने को पूरा करने के लिए कितना समय दे सकते हैं?

इस प्रश्न पर अवश्य विचार करें. इस बात का पता कर लें कि आप की फील्ड में लोग कितने समय में सफल होते हैं और सफल होने में उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. आप के पास अपने लक्ष्य को पाने के लिए कितना समय है? क्योंकि समय एक बार चला जाता है तो वह फिर लौट कर नहीं आता.

अगर आप किसी कारण से सफल नहीं हो पाते हैं तो क्या आप दूसरे किसी प्रोफैशन में लौट सकते हैं या नहीं? इसलिए अपना लक्ष्य चुनते समय यह भी सोच कर रखें कि आप असफल भी हो सकते हैं और आप को दो कदम पीछे भी लौटना पड़ सकता है. इसलिए पीछे कहां तक लौट सकते हैं उस लकीर का निर्धारण कर के रखें.

वैसे समझदारी इसी में है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई छोटेछोटे लक्ष्यों का निर्धारण कर के रखें ताकि अगर एक में असफल हो जाएं तो दूसरे लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास किए जा सकें.

इस तरह से अगर आप इन महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखते हैं तो आप को शतप्रतिशत सफलता मिलेगी. वैसे हमें सफलता हमेशा मेहनत और लगन के कारण ही मिलती है. जिस गति से आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं उसी गति से सफलता आप के कदम चूमती है, यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए.

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