Download App

बुरे काम का अच्छा नतीजा

शीर्षक देख कर किसी का भी चौंकना स्वाभाविक ही है कि ऐसा कैसे हो सकता है? अभी तक तो यही सुनते आए हैं कि बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है. इसलिए हर व्यक्ति को बुरे कामों से बचने की सलाह दी जाती है, उन के नुकसान गिनाए जाते हैं. लेकिन यकीन मानें, बुरे काम का नतीजा अच्छा भी हो सकता है बशर्ते इस से सबक लिया जाए, इस के नुकसान देखे जाएं, फिर चाहे वे खुद के हों या किसी और के. अगर यह समझ आ जाए कि किसी दूसरे के नुकसान से मेरा कोई भला या फायदा नहीं होने वाला तो तय है आप खुद के बुरे के प्रति भी सचेत हो जाएंगे.

18 वर्षीय अभिजीत एक शाम जब दोस्तों के साथ कोचिंग में पढ़ाई कर के बाहर निकला तो सामने गली में गोलगप्पे वाले का ठेला देख ललचा गया. चारों दोस्तों ने तय किया कि घर जाने से पहले गोलगप्पे खाए जाएं.

जेब में पैसे तो थे ही, बातें करतेकरते चारों पहुंच गए ठेले पर और हाथ में प्लेट ले कर यहांवहां की गपें हांकते गोलगप्पे खाने शुरू कर दिए. बातोंबातों में शर्त लग गई कि कौन कितने गोलगप्पे खा सकता है? शर्त के नाम पर अभिजीत की बांछें खिल गईं और वह डींग मारता बोला, ‘‘सब से ज्यादा मैं खाऊंगा.’’

उधर, उस का सहपाठी अरमान भी जोश में था सो चैलेंज दे दिया कि नहीं मैं ज्यादा खाऊंगा. तय हुआ कि जो शर्त हारेगा वह पेमैंट करेगा. बस, फिर क्या था, देखते ही देखते दोनों भरभर कर गोलगप्पे गटकने लगे.

बाकी 2 दोस्त तो इन दोनों की दिलचस्प होड़ देखते रहे पर ठेले वाला अधेड़ चुप न रहा. उस ने इन दोनों को समझाने की कोशिश की कि बेटा ज्यादा गोलगप्पे खाना सेहत के लिए ठीक नहीं. 8-10 ही काफी होते हैं.

इस पर अभिजीत उसे हिकारत से झिड़कते हुए बोला, ‘‘तुम्हें क्या दादा, तुम तो अपने पैसों से मतलब रखो, हमारी शर्त की वजह से आज आप को ज्यादा पैसे मिलेंगे.’’ 

गोलगप्पे वाला बेचारा इस झिड़की के चलते अपना सा मुंह ले कर रह गया और अपने काम में लग गया.

आखिरकार अरमान ने हाथ खड़े कर दिए. वह 35 गोलगप्पे ही खा पाया जबकि अभिजीत ने 40 खाए. जीतने पर अभिजीत ने विजेताओं की तरह चारों तरफ देखा और बोला, ‘‘देखा, इसे कहते हैं विनर. चलो, अब पेमैंट करो.’’

‘मान गए, क्या बात है,’ जैसे जुमले दोस्तों ने फेंके तो अभिजीत फूला न समाया. ‘बाय, कल मिलते हैं,’ कह कर चारों अपनेअपने घर रवाना हो गए. घर जा कर अभिजीत को महसूस हुआ कि पेट से गुड़गुड़ की आवाजें आ रही हैं. ‘गोलगप्पे ज्यादा खा लिए हैं. कुछ देर में पानी अपनेआप सैट हो जाएगा,’ सोच कर उस ने खुद को तसल्ली दी.

लेकिन बात बिगड़ने लगी थी. अपने कमरे में पहुंचा तो सीधा बिस्तर पर जा गिरा. अब गुड़गुड़ के साथ पेट में दर्द भी शुरू हो गया था. डर की वजह से उस की मम्मीपापा से दवा मांगने की हिम्मत नहीं हुई. डिनर के समय मम्मी ने आवाज दी तो जैसेतैसे उठ कर डाइनिंगरूम तक आया और खाने से मना कर दिया. इस पर मम्मीपापा ने हैरानी जताई तो उसे सच बताना ही पड़ा.

सुन कर मम्मीपापा चिंतित हो उठे और पापा ने तो डांट तक दिया कि क्या मूर्खों जैसी शर्तें लगाते हो, जो खुद को ही नुकसान पहुंचाती हैं. जानते हो कि इन दिनों पीलिया फैल रहा है इसलिए बाजार का सड़ागला मत खाया करो.

पापा की डांट पूरी भी नहीं हुई थी कि अभिजीत को उलटियां शुरू हो गईं जिस से मम्मीपापा घबरा गए और उस की पीठ पर हाथ फेरने लगे. आधी रात को मम्मीपापा उसे नजदीक के नर्सिंगहोम में ले गए, जहां उसे भरती कर लिया गया. डाक्टर ने बताया कि फूड पौइजनिंग हुई है और उलटीदस्त के कारण पानी भी काफी निकल गया है. दोचार दिन यहीं रहना पड़ सकता है.

अब तक अभिजीत पस्त पड़ चुका था उस का सिर भी चकरा रहा था. मम्मीपापा की हालत देख उसे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था कि कौन सी मनहूस घड़ी थी जब शर्त लगाई थी. आंखों में बजाय नींद के चिंता और आशंका लिए रात भर मम्मीपापा उस की देखभाल करते रहे.

सुबह तक हालत कुछ सुधरी तो अभिजीत को गोलगप्पे वाले की नसीहत याद आई जो घाटा उठाने को तैयार था लेकिन उस की नसीहत पर ध्यान न देने का नतीजा ही था कि तकलीफ उठाई. मांबाप को भी परेशानी में डाला और इलाज पर 4 हजार रुपए खर्च हुए सो अलग.

चटपटा और जायकेदार खाना गलत या बुरी बात नहीं लेकिन उस की अति कितनी नुकसानदेह होती है यह सबक दोस्तों को भी मिल गया था जो उसे देखने आए थे. उन्होंने अभिजीत के मम्मीपापा को सौरी भी कहा. हालांकि इस में पूरी गलती उन की नहीं थी, अभिजीत भी बराबर का जिम्मेदार था जो जानतासमझता था कि ज्यादा खाना बुरी बात है, जिस का नतीजा अच्छा नहीं निकलता.

ऐसी ही एक और सच्ची घटना भोपाल की है. एक नामी इंजीनियरिंग कालेज की फर्स्ट ईयर की छात्रा स्नेहा (बदला हुआ नाम) को 3 साल पहले 31 दिसंबर की कड़ाके की ठंड में तड़के उस के 2 दोस्त रैडक्रौस अस्पताल में इलाज के लिए लाए थे. स्नेहा की हालत इतनी खराब थी कि उसे आईसीयू में भरती करना पड़ा था.

स्नेहा अचेत थी और उस के दोस्त घबराए हुए थे. डाक्टर आए और इलाज शुरू किया. दरअसल, नए साल के जश्न में आयोजित पार्टी में स्नेहा ने काफी शराब पी ली थी और चूंकि पहली बार पी थी इसलिए हालत बिगड़ गई थी. बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी, दोस्तों की जेब में उसे भरती कराने, रजिस्ट्रेशन फीस और दवा तक के लिए पैसे नहीं थे इसलिए डाक्टरों से यह कह कर वहां से खिसक लिए कि अभी हम एटीएम से पैसे निकाल कर लाते हैं, तब तक आप इलाज शुरू कीजिए. लड़की की नाजुक हालत देख डाक्टरों ने उसे भरती कर लिया था.

बहरहाल, इलाज से धीरेधीरे स्नेहा की हालत सुधरी उस की दवा का पैसा वहां एडमिट एक बुजुर्ग महिला के बेटे ने दिया जो पेशे से पत्रकार व लेखक था. सुबह जब स्नेहा को पता चला कि उस के साथी तो खिसक गए हैं तो वह रोंआसी हो उठी. इधर अस्पताल स्टाफ ने फरमान जारी कर दिया कि बगैर बिल भरे जाने नहीं देंगे और अपना सही नामपता बताओ ताकि तुम्हारे मांबाप को खबर दी जा सके.

लेखक की मध्यस्थता की वजह से मामला निबटा, उन्होंने दवा के बाद बिल भी भरा और स्टाफ को समझाया कि क्या होगा सही नामपता ले लेने से, जब लड़की के घर खबर लगेगी तो घबराए मांबाप भागेभागे आएंगे और उस की यह हालत देख अपना सिर ही पीटेंगे. हो सकता है लड़की की पढ़ाई छुड़वा दें इस से लड़की का भविष्य खराब होगा. उसे सुधरने का एक मौका मिलना चाहिए.

बाद में स्नेहा ने बताया कि नए साल की खुशी में दोस्तों ने पार्टी रखी थी. एक स्थानीय दोस्त का घर खाली था. उस के मम्मीपापा बाहर गए हुए थे. पार्टी में लड़केलड़कियां सभी थे तभी पीनेपिलाने का दौर शुरू हो गया, स्नेहा से पूछा गया तो उस ने मना कर दिया, इस पर उस के दोस्तों ने उसे देहाती, बैकवर्ड और घरेलू जैसे तानों से नवाजा. स्नेहा ने पहले कभी शराब नहीं पी थी इसलिए दोस्तों के कारण उस ने शराब पी ली.

फिर डांस और तेज म्यूजिक की मस्ती में वह कितनी पी गई यह उसे भी पता नहीं. लेकिन जब थोड़ी देर बाद शराब ने असर दिखाया तो स्नेहा झूमने लगी और उस की हालत बिगड़नी शुरू हो गई. यह देख कर बाकी दोस्तों की हालत खराब हो गई.

स्नेहा बेहोश हो कर जब धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी तो सभी घबरा कर एकदूसरे का मुंह ताकने लगे फिर जैसेतैसे उसे नजदीक के अस्पताल लाए.

स्नेहा अब चौथे साल में है लेकिन सभी जूनियर्स व सीनियर्स को शराब पीने के नुकसान बताती रहती है कि पढ़नेलिखने और कैरियर बनाने की उम्र में इस से बच कर रहो और बेहतर है जिंदगी में इसे कभी न ही छुओ.

सिखाता है सबक

अब स्नेहा कहती है अगर उस रात घर पर पता चल जाता तो मैं कहीं की न रहती. जिंदगी भर घर वालों और खासतौर से मम्मीपापा से नजरें नहीं मिला पाती. जाने कैसे मैं दोस्तों के झांसे में आ गई और अपना अच्छाबुरा नहीं सोच पाई. मम्मीपापा की दी गई नसीहतें भूल गई, नशे में कुछ उलटासीधा हो जाता तो… यह सोचते ही वह कांप जाती है और वे दोस्त जो उसे भरती करा कर मुंह छिपा कर भाग निकले थे, क्या वे दोस्त थे.

स्नेहा को जो सबक मिला वह उसे जिंदगी भर याद रहेगा और बुराइयों से दूर रखेगा कि शराब तो बुरी चीज है ही पर उस से बुरे वे दोस्त हैं जो आप को बुरे रास्ते पर ले जाने को उकसाते हैं. इन से बचे रहना जरूरी है.

अभिजीत को अगर फूड पौइजनिंग न होती और स्नेहा शराब के ओवरडोज में अस्पताल में भरती न होती तो वे कभी इन बुराइयों को समझ नहीं पाते. पर जरूरी यह है कि हम हर दिन एक नए बुरे काम को पहचानें तो यकीनन हम बुरे काम को नहीं उस के एक अच्छे नतीजे को अपना रहे होगे.

कमजोर को सताना, छोटीमोटी चोरी, दूसरे को परेशान करना, पढ़ाईलिखाई में लापरवाही बरतना, तेज रफ्तार से बाइक चलाना, शराब, सिगरेट, तंबाकू या गुटके की लत, स्मार्टफोन या कंप्यूटर पर गैरजरूरी साइट्स तलाशना जैसी कई बातें हैं जो बुराइयों के दायरे में आती हैं बशर्ते हम इन्हें दूसरे की या किसी भुक्तभोगी की नजर से देखें तो ये एक सबक और अच्छाई बन हमारे सामने आ खड़ी होती हैं. इसी तरह अनियमित खानपान, देर रात तक जागना, कसरत न करना और पढ़ाई से जी चुराना भी इसी तरह की बुरी बातें हैं.

इस के बाद भी कोई बुरा या गलत काम हो भी जाए तो बहुत ज्यादा पछतावा भी अच्छी बात नहीं, अच्छी बात है उस बुराई की स्वीकारोक्ति और यह प्रण कि अब ऐसा नहीं करेंगे. किसी दुविधा में पड़ जाएं तो पेरैंट्स पर भरोसा करना चाहिए जो बच्चों की हर गलती सुधारने की जिम्मेदारी लेते हैं. उन में ही इतनी सामर्थ्यऔर समझ होती है कि वे जरूरत के मुताबिक डांट कर या समझाबुझा कर सही रास्ता दिखाते हैं. चूंकि वे इस दौर से गुजर चुके होते हैं.

नेलआर्ट बढ़ाए आपके हाथों की खूबसूरती

किशोरियां आजकल फैशन को ले कर बहुत क्रेजी हैं फिर बात चाहे ड्रैस की हो या मेकअप की. यहां तक कि अब वे नेलआर्ट करवाने में भी पीछे नहीं हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर नेल्स खूबसूरत नहीं होंगे तो उन की फिगर्स ब्यूटीफुल नजर नहीं आएंगी.

पहले ओवल शेप्ड नेल्स रखने का चलन था लेकिन जब से नेलआर्ट का फैशन आया है तब से गर्ल्स स्क्वायर शेप्ड नेल्स ज्यादा रखने लगी हैं. उन्हें लगता है कि ऐसे शेप पर नेलआर्ट ज्यादा बेहतर लगती है.

मार्केट में आप को ग्लिटर, स्माइली, स्टार आदि डिजाइंस की नेलआर्ट आसानी से मिल जाएंगी. यहां तक कि अब दोनों हाथों की एक फिंगर पर गोल्डन कलर और बाकी पर डिफरैंट शेड्स का फैशन भी है. इस से नेल्स को भी स्टाइलिश लुक मिलता है.

नेलआर्ट का फैशन आने से अब आप को नेल्स के टूटने पर भी टैंशन नहीं होगी, क्योंकि आप आर्टिफिशियल नेल्स लगा कर उन की खूबसूरती को बरकरार रख सकती हैं.

बस, इस दौरान आप को यह ध्यान रखना होगा कि अगर आप 2 कलर्स से नेलआर्ट कर रही हैं तो दोनों ही डार्क या फिर दोनों ही लाइट न हों और साथ ही नेलआर्ट ज्यादा समय तक टिकी रहे, इस के लिए उन पर अपर कोट अप्लाई करना न भूलें, क्योंकि इस से नेल्स पर शाइनिंग आती है.

इस बात को ले कर भी परेशान न हों कि आप को नेलआर्ट करने में दिक्कत होगी. बाजार में आप को नेलआर्ट किट मिल जाएगी या फिर आप घर पर ही 3-4 नेलपेंट्स को मिला कर नेलआर्ट कर सकती हैं. तो फिर हो जाइए तैयार अपनी फिंगर्स को ब्यूटीफुल लुक देने के लिए.

देश सफाई बनाम जेब सफाई

नई सरकार से उम्मीद की गई थी कि वह ज्यादा कुशलता दिखा कर बरबाद होता पैसा बचाएगी और देश को महंगाई के आतंक से बचाएगी पर वह अपने लंबेचौड़े वादे दूर करने के नाम पर टैक्स बढ़ाने में लगी है जैसे समृद्ध और शांति के लिए यज्ञहवन कराने की सलाह तक तो दी जाती है पर पहले मोटा दानपुण्य वसूल लिया जाता है.

स्वच्छ भारत के लिए सेवा कर को आधा प्रतिशत बढ़ाना देश पर तमाचा मारना है. साल सवा साल में देश कहीं से साफ नहीं हुआ जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश की सफाई देखते रहे और उन के चेलेचपाटे दिमागसफाई में लग गए. अब सफाई के नाम पर आधा प्रतिशत कर बढ़ा कर देशवासियों की जेब साफ कर दी गई है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह कहना कि यह कर तो योगदान है, बहकावा है. सरकार इतना पैसा करों से एकत्र करती है कि इस आधे प्रतिशत से कुछ ज्यादा बनताबिगड़ता नहीं है, यह तो सिर्फ बहाना है.

असल में भारतीय जनता पार्टी सरकार का स्वच्छ भारत का नारा खोखला साबित हुआ है क्योंकि इसे जनसमर्थन न के बराबर मिला. देश गंदा इसलिए है कि यहां गंदगी से प्रेम है, जो कर देने से नहीं जाएगा. सरकार चाहे तो भी, 120 करोड़ लोगों को साफसफाई का पाठ नहीं पढ़ा सकती.

सफाई नागरिकों का अपना कर्तव्य है पर यहां घरों, दफ्तरों, दुकानों, बाजारों, होटलों सब में गंदगी बसी रहती है और लोग ठाट से गंदगी बिखेरते चलते रहते हैं और चिंता नहीं करते. शहरी पढ़ेलिखों और ग्रामीण गंवारों में कोई खास फर्क नहीं है. दोनों बेहद गंदगी फैलाते हैं. कुछ शान से कूड़ेदान का इस्तेमाल करते हैं पर कूड़ेदान को कौन साफ करेगा, इस की कोई चिंता नहीं करता.

सरकार आमदनी बढ़ाने के लिए नएनए कर नएनए नामों से लगा रही है. और स्वच्छता कर ऐसा ही है. जो देश अपने राजपथ तक को साफ न रख पाए तो वह कब क्यों कैसे साफ होगा, यह पहेली ही है.

सपनों से पहले हर बाधा को पार करें: आइरिस मजू

ज्यादातर युवतियां शादी के बाद अपनी दुनिया घरपरिवार तक ही समेट लेती हैं, पर कुछ अपनी मेहनत, लगन और महत्त्वाकांक्षा के चलते अपने जीवन में कुछ ऐसा हासिल करती हैं, जो उन की अलग पहचान बनाता है. ऐसी ही पहचान बनाई है कोचीन में जन्मी आइरिस मजू ने. इन का विवाह आर्मी के कर्नल मजू से हुआ. इन का एक 13 साल का बेटा भी है.

आइरिस मजू आर्मी स्कूल में अंगरेजी टीचर के साथसाथ गोग्रीन नामक कैंपेन में भी बहुत सक्रिय रही हैं. इन्होंने अपने छात्रों के साथ मिल कर बहुत सी रैलियों का आयोजन कर लोगों को वातावरण संरक्षण की जरूरत के बारे में बताया. इन का नारा था कि मोटापे को जलाओ न कि तेल.

रंग लाई मेहनत

विवाहित महिलाओं की इस राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए 300 से भी अधिक प्रविष्टियां आई थीं, जिन में केवल 34 महिलाओं को भाग लेने के लिए चुना गया था. यह प्रतियोगिता केवल ग्लैमर देखने की नहीं थी, बल्कि उन महिलाओं को चुनने की थी, जो किसी सामाजिक अभियान से जुड़ी हों और आइरिस मजू इस से संबंधित सभी मुद्दों का काफी लंबे समय से प्रचार करती आ रही थीं. देश भर में अलगअलग जगहों में रह चुकीं आइरिस को बहुत कुछ जानने को मिला. वातावरण की सुरक्षा व उस के बारे में इन की चाह ने ही इन्हें इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.

इन्होंने अपनी उपलब्धियों की सूची में एक और उपलब्धि तब जोड़ी जब इन्हें एशिया इंटरनैशल के लिए कम्यूनिटी ऐंबैसेडर चुना गया. आइरिस मजू पुणे में आयोजित ईआरएम ग्रुप औफ कंपनीज द्वारा आयोजित ‘मिसेज इंडिया इंटरनैशनल 2015’ की मिसेज इंडिया प्लैनेट प्रतियोगिता की सैकेंड रनरअप रह चुकी हैं.

नई पहचान

दूसरी सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तरह इस में भी रैंप वाक था पर यह इस प्रतियोगिता का बहुत छोटा हिस्सा था. जब इन्होंने पहली बार रैंप पर वाक किया तो अपना सारा ध्यान इसी पर केंद्रित किया. इस के लिए सभी प्रतियोगियों को एक विषय दिया गया जिस के बारे में उन्हें कुछ देर बात करनी थी और उस से संबंधित परियोजनाओं की पहचान भी करनी थी. आइरिस ने उन सब चीजों के बारे में सोचा जो हमारे वातावरण को और अच्छा बना सकें. आइरिस ने इन सब चीजों के लिए बहुत मेहनत की. उन्होंने टेलैंट सैगमैंट के लिए माउथऔर्गन बजाना भी सीखा. समाज के प्रति प्रतिबद्धता इस खिताब का बहुत अहम हिस्सा था. पर प्रतियोगियों का स्वस्थ होना भी जरूरी था.

आइरिस कहती हैं, ‘‘अगर पति और बेटा मदद न करते तो मेरे लिए यह काम बहुत कठिन हो जाता. मैं अपने काम को ले कर बहुत ऐक्साइटेड हूं.’’

आइरिस मजू ने बताया कि एक बार उन के एचओडी ने उन से कहा कि तुम मुझे ‘ए टीचर फौर औल सीजन्स’ कविता की याद दिलाती हो, मुझे उन की यह प्रशंसा आज भी याद है और यह मेरे लिए अब तक की सब से बड़ी प्रशंसा है.

आइरिस को एक ऐसा अवसर मिला, जिस में इन्होंने सभी जवानों के परिवार कल्याण के लिए छोटाबड़ा काम किया. इसे ये अपनी उपलब्धि बताती हैं. इन का कहना है कि जब तक आप का सपना पूरा न हो तब तक आने वाली हर बाधा को पार करें.  li

आम को खास बनाते स्पैशलाइज्ड डिग्री कोर्स

आज भला साधारण भूगोल की पढ़ाई क्यों की जाए जब कामकाज की जरूरतें भूगोल के नएनए क्षेत्र निर्धारित कर रहे हैं और उन्हें समझ कर कुछ विश्वविद्यालय ज्योग्राफिक टूरिज्म या ज्योग्राफिक एनवायरमैंट की डिग्री औफर कर रहे हों? लेकिन यह सिर्फ भूगोल का ही किस्सा नहीं है, यही हाल लगभग हर विषय का है. दरअसल, आज जितने भी विषय विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जा रहे हैं, उन सब की परंपरा कम से कम 100 साल पुरानी है, सिवा एक प्रबंधन कोर्स को छोड़ कर. हम जानते हैं कि जिंदगी लगातार बदलती रहती है और उस की जरूरतें भी बदलती रहती हैं. यही कारण है कि आज से 50 साल पहले रसायन विज्ञान पढ़ने के जो उद्देश्य हुआ करते थे आज वे बदले भी हैं और कई मानों में बहुत व्यापक भी हो गए हैं.

स्नातक स्तर के बाद की पढ़ाई का मतलब जीवन को समृद्ध और परिपूर्ण बनाना है. इसलिए हर अध्ययन के पीछे संबंधित क्षेत्र के कामकाज को बेहतर बनाना प्रमुख उद्देश्य होता है. यों तो बिना चर्चा किए ही कई बार विभिन्न विषयों में परिवर्तन होता रहता है. लगातार नए विकास के साथ उन में अपडेट होता रहता है. बदलते मानकों, नियमों का उन में समावेश भी होता रहता है, लेकिन कई बार ये सब बड़े पैमाने पर और एकसाथ ही करना पड़ता है तब ये सब नए विषय के रूप में नजर आता है.

इसलिए इन दिनों अगर तमाम पारंपरिक पाठ्यक्रमों में विभिन्न नए समायोजनों के साथ विकसित किए गए नए पाठ्यक्रमों का बोलबाला चारों तरफ दिख रहा है तो इस का मतलब है कि अचानक कामकाजी जीवन और जीवन जीने के रंगढंग में बदलाव या नएनए विकास हुए हैं, इसलिए तमाम पुराने पारंपरिक पाठ्यक्रमों में भी नए कौंबिनेशन जरूरी हो गए हैं.

यह अकारण नहीं है कि देश की अग्रणी यूनिवर्सिटी मानी जा रही दिल्ली यूनिवर्सिटी ने पिछले 2 साल में 8 नए डिग्री पाठ्यक्रम पेश किए हैं. ये सभी पाठ्यक्रम सहयोगी विषयों के मिश्रण से विकसित हुए हैं, जो बाजार, रोजगार और उद्योग क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी हैं.

डीयू ने पिछले साल बीटैक लैवल पर जो कंप्यूटर साइंस, फूड टैक्नोलौजी, इंस्ट्रूमेंटेशन, इलैक्ट्रौनिक्स, पौलिमर साइंस, साइकोलौजिकल साइंस और फोरेंसिक साइंस जैसे पाठ्यक्रम पेश किए हैं, वे नए उपयोगी विषयों के मिश्रण से बने पाठ्यक्रम हैं. इसी क्रम में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एमएससी फोरेंसिक साइंस कोर्स शुरू किया है, जिसे कैमिस्ट्री, फिजिक्स, बौटनी, जूलौजी, एंथ्रोपौलिजी, बायोकैमिस्ट्री, बायोफिजिक्स, बायोटैक जेनेटिक, माइक्रोबायोलौजी, बीफार्मा, बीटैक, एमबीबीएस, बीडीएस और लाइफसाइंसेज के बीएससी कोर्सेस करने वाले छात्र कर सकते हैं.

मतलब यह नया एमएससी फोरेंसिक साइंस पाठ्यक्रम इतने किस्म के विषय वाले छात्रों से खुद को जोड़ेगा. भले ही यह व्यापक होने की वजह से बहुत सटीक न दिखे, लेकिन फोरेंसिक क्षेत्र में जिस तरह की जरूरतें और बहुआयामी जटिलताएं पैदा हुई हैं, उन सब को देखते हुए यह पाठ्यक्रम बाजार, रोजगार और आधुनिक कानून व्यवस्था जैसे क्षेत्रों के लिए काफी लाभदायक साबित होगा.

हाल के वर्षों में जिस तेजी से बाजार, रोजगार और बदलती लाइफस्टाइल के चलते विभिन्न पाठ्यक्रमों में बदलाव किया गया है वे तमाम पाठ्यक्रम, नएनए विषय क्षेत्र के रूप में सामने आए हैं. ऐसे विषय क्षेत्र काफी व्यापक और बहुपयोगी हैं. हम यहां इन्हीं पुराने पाठ्यक्रमों की चर्चा कर रहे हैं जो अपने नए रूप में विभिन्न समायोजनों के साथ बिलकुल नए और बहुपयोगी पाठ्यक्रम बन कर उभरे हैं.

इन्हीं नए पाठ्यक्रमों में से एक पाठ्यक्रम है, टूरिज्म ईकोफ्रैंडली इनिशिएटिव, जो कुछ वर्ष पहले आस्ट्रेलिया की चार्ल्स स्टुअर्ट यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ था, लेकिन इस साल बेंगलुरु और मुंबई के कुछ कालेजों ने भी इस पाठ्यक्रम को शुरू किया है. हालांकि सच है कि नए पाठ्यक्रमों को व्यवस्थित ढंग से बाजार और विकास के साथ जोड़ना अभी हमारे यहां उतना संभव नहीं हो पा रहा है, जितना कि विदेशी विश्वविद्यालयों में. फिर भी देश के कुछ विश्वविद्यालय मसलन, दिल्ली यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बंगलौर विश्वविद्यालय, मद्रास यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, दिल्ली, जाधवपुर यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल, काकतिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद जैसे शीर्ष विश्वविद्यालय इस क्षेत्र में पहल कर रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय इन में सब से आगे है.

आमतौर पर पाठ्यक्रमों में अपडेट की परंपरा विज्ञान वर्ग के पाठ्यक्रमों में कहीं ज्यादा सहज है. इसलिए बिना किसी बदलाव के दावे के भी आमतौर पर विज्ञान क्षेत्र के पाठ्यक्रम डेढ़ से 2 दशक के भीतर अपनी आंतरिक बनावट में काफी कुछ बदल जाते हैं, लेकिन एक अच्छी और कदाचित हैरान करने वाली बात यह भी है कि हाल के सालों में विज्ञान वर्ग से अगर ज्यादा नहीं तो लगभग कदम से कदम मिलाते हुए कला, कानून और समाज विज्ञान के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव बड़े पैमाने पर देखा गया है.

मसलन, कानून के क्षेत्र को ही लें. दिल्ली विश्वविद्यालय ने इसी साल से एक साल का एलएलएम पाठ्यक्रम शुरू किया है, जिस की अवधि पहले 2 और 3 साल हुआ करती थी. यह पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय के दावे के मुताबिक ज्यादा सटीक और आज की जरूरतों के हिसाब से कहीं ज्यादा उपयोगी साबित होगा.

गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की ला फैकल्टी में अभी मास्टर लैवल पर जो एलएलएम कोर्स पढ़ाया जाता है वह 2 साल का है, लेकिन इसे ही जब ईवनिंग शिफ्ट के छात्र पढ़ते हैं तो यह 3 साल का हो जाता है. ला फैकल्टी ने अब एक साल का नया कोर्स तैयार किया है, जिस के बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी को यूजीसी ने भी लिखा था. इस नए पाठ्यक्रम के प्रपोजल और कोर्स स्ट्रक्चर को मंजूरी मिल चुकी है.

मगर कानून में डिग्री हासिल करने वालों के लिए देश में नए और बेहतर उपयोगी स्पैशलाइज्ड डिग्री कोर्सेज की कमी नहीं है. देश के तमाम विश्वविद्यालयों और ला स्कूलों ने कानून की मौजूदा जरूरतों के हिसाब से अपने पाठ्यक्रमों में बदलाव किया है. इन्होंने अब पहले से कहीं ज्यादा सटीक एकेडमिक डिग्रियां तैयार की हैं. यह जरूरी भी है, क्योंकि आज अदालतें महज सिनेमाई परदे पर दिखने वाली जैसी नहीं रह गई हैं.

आज के तेज रफ्तार समाज में न सिर्फ अपराधों में बढ़ोतरी हुई है बल्कि वे बहुत जटिल भी हुए हैं. अपराधों में विविधता भी खूब आई है. अब पुराने कानून और उन की पारंपरिक व्याख्याएं कमजोर पड़ गई हैं. यही कारण है कि देशविदेश के तमाम विश्वविद्यालयों और ला इंस्टिट्यूट ने समय के हिसाब से पाठ्यक्रमों को बदला है.

हाल के वर्षों में पूरी दुनिया में राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जबरदस्त ढंग से बढ़ी हैं. इंटरनैट ने पूरी दुनिया को एकदूसरे से जोड़ दिया है. यह जुड़ाव महज तकनीकी संवाद तक ही सीमित नहीं है बल्कि साझे लक्ष्यों, उद्देश्यों, साधनों और योजनाओं तक बढ़ा है. अगर स्पष्ट शब्दों में कहें तो पूरी दुनिया में आम लोगों के भीतर लोकतंत्र की चाह बढ़ी है और इस के लिए संघर्ष करने की भावना भी मजबूत हुई है.

जाहिर है कि लोकतंत्र की इस चाहत और उस के लिए बढ़े आंदोलनों के चलते सरकारों द्वारा दमन भी बढ़ा है. इन सब के चलते कानून के सिपाहियों की मांग न सिर्फ अब पहले से ज्यादा बढ़ गई है बल्कि इस मांग ने कानून के जानकारों को जन महत्त्वाकांक्षाओं को समझने और सत्ता के दमन से उन के लिए सुरक्षित कानूनी रास्ता विकसित करने का दबाव भी डाला है.

इस के चलते कानून के नए पाठ्यक्रमों की जबरदस्त जरूरत पैदा हो गई है. यह अकारण नहीं है कि पुणे के सिंबायोसिस ला कालेज ने 2 साल पहले साइबर ला पर डिग्री देनी शुरू की और आज इसे चाहने वालों की लंबी कतार लगी है. इसी तरह खड़गपुर आईआईटी ने इंटैलैक्चुअल प्रौपर्टी राइट पर डिग्री देना शुरू किया है तो उस के यहां भी सीटों से तकरीबन दसगुना ज्यादा डिग्री की चाह रखने वाले आवेदन कर रहे हैं.

वक्त के हिसाब से नई जरूरतों को समझने में हैदराबाद का एनएएलएसएआर ला स्कूल भी पीछे नहीं रहा, उस ने मीडिया ला पर डिग्री देनी शुरू की है. बिहार की तिलकामाझी भागलपुर यूनिवर्सिटी ने इसी क्रम में टौर्ट्स एंड कौंट्रैक्ट्स जैसे विषय पर डिग्री की शुरुआत की है. इन सभी संस्थानों का अनुभव है कि छात्र इन नए कानून पाठ्यक्रमों का हाथोंहाथ स्वागत कर रहे हैं.

अखबार के फीचर पेज हों, टैलीविजन चैनलों में दिखाई जाने वाली डौक्यूमैंट्री फिल्में या रोजमर्रा के डिस्कशंस, हर जगह राजनीति के बाद अगर किसी दूसरे विषय की सर्वाधिक धूम रहती है तो वह पर्यावरण ही है. दुनिया का बिगड़ता पर्यावरण अगर आज वैश्विक चिंता का विषय है तो जाहिर है इस चिंता पर पठनपाठन के तमाम पाठ्यक्रम भी विकसित होने ही थे. चूंकि रोजगार और बाजार की विभिन्न गतिविधियों में अब पर्यावरण की चिंता एक जरूरी हिस्सा बन गई है, इसलिए आने वाले समय में इस क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा रोजगार या फिर विभिन्न रोजगार इस क्षेत्र के साथ जुड़ने तय हैं. अमेरिका, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया और यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरण पिछले एक दशक से हौट डिग्री कोर्स बना हुआ है पर अब हिंदुस्तान में भी यह अपनी पूरी रूपरेखा के साथ मौजूद है.

छात्र समाज का हिस्सा पहले हैं, अध्ययनअध्यापन का बाद में. इसलिए वे समझते हैं कि पर्यावरण में हासिल की गई डिग्री उन्हें रोजगार दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. मगर आज के छात्र पर्यावरण पाठ्यक्रम के घिसेपिटे तौरतरीकों व उपदेशात्मक विषय क्षेत्र में रुचि नहीं रखते. इसलिए पर्यावरण संबंधी पाठ्यक्रमों को ज्यादा व्यावहारिक और रचनात्मक बनाने की कोशिशें हो रही हैं.

पर्यावरण पाठ्यक्रम में डिग्री हासिल करने वाले एक छात्र के मुताबिक यह लगातार महत्त्वपूर्ण हो रहा है कि पर्यावरण क्षेत्र के विभिन्न जिम्मेदार हिस्सों को विशेषज्ञ नजदीक से पहचानें और उस के साथ इंटेरैक्ट करें, तभी कोई बदलाव हो सकता है. यही कारण है कि अब पर्यावरण को सैद्धांतिक से ज्यादा व्यावहारिक और फील्ड में जा कर काम करने वाले पाठ्यक्रम में बदला जा रहा है.

इस क्षेत्र में अलगअलग महत्त्वपूर्ण डिग्रियां विकसित की गई हैं, जैसे पुणे का आईएनओआरए संस्थान और्गेनिक फार्मिंग पर डिग्री दे रहा है तो इंस्टिट्यूट औफ जैनेटिक इंजीनियरिंग कोलकाता जैनेटिक्स पर डिग्री पाठ्यक्रम दे रहा है. तमिलनाडु के फिशरीज कालेज ने फिशरीज साइंस पर महत्त्वपूर्ण डिग्री देनी शुरू की है जबकि अगर इसी क्रम में हम इंगलैंड और अमेरिका को भी रखें तो लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स एनवायरमैंट पौलिसी पर अमेरिका का नौर्थलैंड कालेज, एनवायरमैंट कैमिस्ट्री पर और अमेरिका की ही कौर्नेल यूनिवर्सिटी लैंडस्केप मैनेजमैंट पर डिग्री दे रही है.

कुल मिला कर आज पढ़ना सिर्फ पारंपरिक ढंग से डिग्री हासिल करना भर नहीं है बल्कि रोजगार और ज्ञान के मामले में ज्यादा सामयिक, ज्यादा उपयोगी और ज्यादा रुचिकर होना है. इसलिए पुराने घिसेपिटे डिग्री पाठ्यक्रमों की जगह आज पूरी दुनिया में विभिन्न सहयोगी विषयों में समायोजित कर के नएनए पाठ्यक्रम विकसित हो रहे हैं. यह न सिर्फ व्यावहारिक है बल्कि ये बुद्धिमत्ता भी दर्शाते हैं.   

सैलरी नेगोशिएशन जरूरी, इन बातों का रखें ध्यान

अक्षत मिठाई का डब्बा ले कर घर लौटा, तो घर में सभी उसे देखते ही समझ गए कि उस की नौकरी लग गई है. सब ने बड़ी गर्मजोशी से उसे बधाई दी. अक्षत भी बहुत खुश था.

तभी अक्षत का सहपाठी राजन उस के घर आया और बोला, ‘मैं गैलेक्सी इंटरनैशनल में मार्केटिंग ऐग्जीक्यूटिव अपौइंट हो गया हूं और सैलरी का पैकेज है पूरे 6 लाख, 60 हजार रुपए. लो मिठाई खाओ,’ कहते हुए उस ने मिठाई का डब्बा अक्षत की तरफ बढ़ा दिया.

अक्षत उस की बात सुन कर हैरान रह गया. वह बोला, ‘‘अरे, क्या बात कर रहा है. गैलेक्सी इंटरनैशनल में तो मैं भी अपौइंट हुआ हूं. वह भी 6 लाख के पैकेज पर… बधाई तू मुझे दे…’’

दोनों की खुल कर बातें हुईं तो पता चला कि दोनों एक ही कंपनी की अलगअलग शाखाओं के लिए मैनेजर अपौइंट हुए हैं, लेकिन सैलरी के मामले में राजन ने बाजी मार ली थी, क्योंकि उस ने मैनेजर के साथ अच्छी तरह नेगोशिएट किया था, जबकि अक्षत ने कंपनी द्वारा बताई गई सैलरी को बिना कुछ कहे स्वीकार कर लिया था. सचाई का पता चलने पर अक्षत उदास हो गया, लेकिन अब कोई उपाय नहीं था.

आप भी अपने संभावित एंप्लौयर से बातचीत करते समय सैलरी के मामले में जरा खुल कर बात कर लें. ध्यान रहे, नौकरी हासिल करने की उतावली में कंपनी द्वारा दिए गए औफर को बिना मोलभाव के स्वीकार कर लेने से आप को अपने दीर्घअवधि के कैरियर में लाखों रुपए का नुकसान हो सकता है. बात पक्की करने जाएं तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें :

मार्केट की अपडेट जानकारी रखें

कोई भी नया बिजनैस शुरू करने से पहले मार्केट में डिमांड और सप्लाई, मौजूदा प्रतिद्वंद्वियों की संख्या, कच्चे माल की उपलब्धता और रिस्क का आकलन करने की जरूरत होती है, वैसे ही जौब के मामले में भी कुछ रिसर्च वर्क करना पड़ता है. आप जहां नौकरी करने जा रहे हैं उस कंपनी के बारे में पूरी जानकारी रखें, अपनी योग्यता और अनुभव के आधार पर जिस पद के लिए आप अप्लाई कर रहे हैं उस की दूसरी कंपनियों में क्या स्टैंडर्ड सैलरी है आदि चीजों की जानकारी अवश्य रखें. जानकारी एकत्रित करने के कई सोर्स हो सकते हैं, लाइन में मौजूद परिचित, कैरियर या रिकू्रटमैंट सलाहकार या इंटरनैट.

गरज न दिखाएं

माना कि आप को काम की काफी जरूरत है, लेकिन अच्छी तनख्वाह चाहिए, तो गरज दिखाने से काम नहीं चलने वाला. आप फलसब्जी या साड़ी खरीदने जाते हैं, तो भाव कम करवाने के लिए ‘जरूरत नहीं’ वाले अंदाज में आगे बढ़ जाते हैं न. तभी तो भाव कम होते हैं. लेकिन आप वहां खड़े ही रहेंगे, तो भाव कम होने वाले नहीं. कुछ ऐसा ही रवैया यहां दिखाना पड़ता है. आप की गरज का संकेत मिलते ही एंप्लौयर सैलरी घटा कर बोलेगा. बातचीत या पत्राचार नपेतुले अंदाज में करने पर ही आप सर्वोत्तम वेतन पाने की उम्मीद कर सकते हैं.

कंपनी को बताएं अपना मोल

अच्छा वेतन पाना है, तो आप को अपनी भावी कंपनी को यह बात बतानी होगी कि आप इस पद के लिए कैसे एक योग्य कर्मचारी साबित होंगे और कंपनी के मौजूदा कार्य को कैसे इम्प्रूव कर सकते हैं. आप को नियुक्त करने से कंपनी को क्याक्या फायदे हो सकते हैं और आप जो वेतन लेंगे वह किस तरह कंपनी को मिले लाभ के सामने नगण्य है.

अपने पैर मजबूत रखें

जाहिर सी बात है कि पैरों तले की जमीन ठोस न हो तो व्यक्ति ज्यादा देर नहीं टिक सकता. आप किसी रोजगारदाता का शुरुआती औफर ठुकराने का साहस तभी बटोर सकते हैं, जब आप की वित्तीय स्थिति इस लायक हो कि आप दोचार महीने बिना नौकरी के बिता सकें. इसलिए कुछ महीने की बचत हाथ में होना या आय के वैकल्पिक स्रोत का होना बेहद जरूरी है वरना आप को ‘जो मिल रहा है वह तो लपको’ के फार्मूले पर ही काम करना पड़ेगा.

अपने सारे पत्ते न खोलें

भावी एंप्लौयर को अपनी पिछली सैलरी व नौकरी के बारे में अन्य बातें खुल कर बताने की गलती न करें. अपनी योग्यताओं जौब प्रोफाइल आदि के बारे में बताएं. घुमाफिरा कर एंप्लौयर आप के घर खर्च, किराए आदि के बारे में जानकारी हासिल करना चाहे, तो गोलमोल जवाब दें.

पगार की पहल एंप्लौयर को करने दें

वेतन से संबंधित चर्चा रोजगारदाता को शुरू करने दें. कई बार नौसिखिए उम्मीदवार खुद सैलरी की बात पूछ कर अपना अनाड़ीपन जाहिर कर देते हैं. अनुभवी एंप्लौयर समझ जाता है कि सामने वाला इस मैदान का नया खिलाड़ी है, सस्ते में पटेगा. वहगेंद आप के पाले में डाल कर आप से एक फिगर उगलवाएगा और फिर उसे कम करने की कोशिश करेगा, जबकि शुरुआत उस के द्वारा करने से आप को नेगोशिएट करने का चांस मिलता है.

मौखिक बात पर भरोसा न करें

कई बार हायरिंग मैनेजर चिकनीचुपड़ी बातें कर के उम्मीदवार को सातवें आसमान पर चढ़ा देते हैं. वे कुछ इस तरह कहते हैं, ठीक है, आप शुरुआत तो कीजिए, हम 6 महीने बाद आप की सैलरी बढ़ा देंगे. अगर वह ऐसा कमिटमैंट करे, तो उस से लिखित में मांगें. लिखित न दें तो समझ जाएं कि यह सिर्फ वादा ही है, जो निभाने के लिए नहीं है.

इन बातों पर भी चर्चा करें

नौकरी पक्की करते वक्त बोनस, छुट्टियां, छमाही रिव्यू, फ्लैक्सी टाइम आदि विषयों पर भी चर्चा कर लें. बोनस या वेतनवृद्धि की पौलिसी, 3 साल में एक बार लंबी छुट्टी, पेड लीव, मैटरनिटी लीव आदि के संबंध में भी खुल कर बात करना फायदेमंद रहता है.        

रोहित वेमुला: हिंदुत्व की बर्बर सोच का शिकार

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दलित शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद पूरे देश में विक्षोभ का ज्वार उमड़ पड़ा है. दलित आक्रोशित हैं, कई शहरों में जुलूस, प्रदर्शन हो रहे हैं और राजनीतिक दलों के बीच सियासत गरमाई हुई है. केंद्र की भाजपा सरकार निशाने पर है. रोहित को जिन हालातों में आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा, वह समाज और व्यवस्था कठघरे में है. आत्महत्या की यह घटना आज 21वीं सदी में देश के शिक्षण संस्थानों में पनप रही जातीय भेदभाव, वैमनस्य की बर्बर और शर्मनाक प्रवृति की पराकाष्ठा है.

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पिछले साल से भाजपा के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद [एबीवीपी] और अंबेडकर स्टूडेंड एसोशिएशन [एएसए] के बीच विभिन्न मुद्दों को ले कर अनबन चल रही थी. एबीवीपी नेता नंदनम सुशील कुमार ने एएसए नेता रोहित वेमुला द्वारा याकूब मेनन को फांसी देने का विरोध करने और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘मुजफ्फरपुर बाकी है’ डौकूमेंटरी के प्रदर्शन को ले कर अपने फेसबुक पर पोस्ट के बाद मामला तूल पकड़ गया. इस पर एएसए के छात्र आंदोलित हो गए और सुशील कुमार से माफी की मांग की.

सुशील कुमार ने विश्वविद्यालय में एएसए छात्रों की गतिविधियों की शिकायत सिकंदराबाद के सांसद एवं केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से की. इस के बाद बंडारू दत्तात्रेय ने अगस्त माह में मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिख कर हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय को जातिवादी और राष्ट्रविरोधी अड्डा बताते हुए इन छात्रों के खिलाफ एक्शन लेने का आग्रह किया. इसी दौरान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने विश्वविद्यालय को एएसए पर काररवाई के लिए एक के बाद एक 5 रिमाइंडर भेजे. इस दबाव के चलते 10 सितंबर को जांच बोर्ड ने रोहित समेत 5 छात्रों संकन्ना, डी प्रशांत, विजय कुमार  और सेसु चेमुदुगुंटा को निलंबन की सजा सुनाई.

रोहित और उस के साथियों को होस्टल से निकाल दिया गया और लाइब्रेरी व परिसर में जाने पर रोक लगा दी गई और रोहित को मिल रही 25 हजार की स्कौलरशिप बंद कर दी गई. इस पर ये छात्र यूनिवर्सिटी कैंपस में खुले में अनशन पर बैठ गए. इन लोगों ने वाइस चांसलर आरपी शर्मा से सजा वापस लेने का आग्रह भी किया. इसी बीच शर्मा की जगह अप्पा राव नए वाइस चांसलर आ गए. 2-2 केंद्रीय मंत्रियों की सक्रियता की वजह से विश्वविद्यालय दबाव में आ गया.

अचानक 17 जनवरी की रात को 26 वर्षीय रोहित द्वारा होस्टल में आत्महत्या करने की खबर आई. इस घटना के बाद मामले की परत खुलने लगी. इस बीच राजनीतिक बयानबाजी और हलचल बढने लगी. विपक्ष के निशाने पर दोनों केंद्रीय मंत्री आ गए. देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन होने लगे. हैदराबाद, दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों के छात्र विरोध जता रहे हैं. गुंटूर जिले के निकट गुरजला गांव के रहने वाले रोहित के पिता मनीकुमार एक प्राइवेट अस्पताल में सिक्यूरिटी गार्ड हैं जबकि मां वेमुला राधिका टेलरिंग का काम करती हैं. रोहित की एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई है. स्टाईपैंड बंद होने से उस पर कर्ज चढ गया था. इस सजा की वजह से रोहित का परिवार आर्थिक संकट में आ गया. प्रतिभाशाली रोहित को अपने सपने चूरचूर होते नजर आने लगे.

रोहित ने आत्महत्या से पहले एक मार्मिक पत्र लिखा. उस ने लिखा था,‘‘मैं हमेशा से एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान का लेखक, कार्ल सगन की तरह. मैं विज्ञान से तारों से, प्रकृति से प्रेम करता हूं पर इस के बाद भी मैं लोगों से प्यार करता हूं. यह जाने बिना कि मेरे लोगों को दूसरे से अलगथलग कर दिया गया है. हमारी भावनाओं को महत्व नहीं दिया जाता. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारे विश्वास अंधे हैं. हमारी पहचान झूठी प्रथाओं द्वारा बनाई जाती है. वास्तव में यह बहुत कठिन हो गया है कि बिना दुख का सामना किए प्रेम किया जाए. इंसान की योग्यता उस की तात्कालिक पहचान और निकट संभावनाओं तक सीमित कर दी गई है. वोट के तौर पर.आंकडे के रूप में. वस्तु के तौर पर. व्यक्ति को एक इंसान के तौर पर कभी नहीं लिया जाता. हर क्षेत्र में, शिक्षा में सड़कों पर, राजनीति में और मरने व जीने में हमें अलग कर दिया गया है. मैं इस तरह का पत्र पहली बार लिख  रहा हूं. यह पहला और आखिरी पत्र है. अगर आप के अनुकूल बात नहीं लिख पाया तो मुझे क्षमा कर देना. मेरा जन्म एक खतरनाक दुर्घटना थी. मैं जीवन भर अपने बचपन की तन्हाई से निकल नहीं पाया. मैं एक ऐसा बच्चा था जिसे बचपन से ही दुत्कारा गया. हो सकता है मैं गलत हूं.

मैं तमाम जिंदगी दुनिया को समझ नहीं पाया हूं. प्यार, दर्द, जीवन और मृत्यु को नहीं समझ सका हूं. इस की कोई जल्दी भी नहीं थी पर इस पूरे समय में मैं ने पाया कि कुछ लोगों के लिए जीवन अभिशाप है. मुझे इस समय की चोट नहीं पहुंची, न मैं दुखी हूं. बस मेरे पास कुछ नहीं है, अपने बारे में कोई चिंता नहीं है, यह दयनीय है. यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं. लोग मुझे स्वार्थी, मूर्ख कह सकते हैं पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं. मैं मौत के बाद की कहानियों में या भूतप्रेत में यकीन नहीं करता. अगर इस संसार में कुछ है जिस पर मेरा विश्वास है वह यह कि मैं तारों की यात्रा कर सकता हूं. और दूसरी दुनिया को जान सकता हूं.

कोई अगर मेरे लिए कुछ कर सकता है तो वह जान ले कि पिछले 7 माह से मुझे स्कौलरशिप नहीं मिली जो कि 1 लाख 75 हजार रुपए बनती है. अगर हो सके तो यह मेरे परिवार को दिलवा देना. मेरे ऊपर 40 हजार रुपए रामजी के उधार हैं. उस ने कभी मुझ से रुपए नहीं मांगे. मेरा अंतिम संस्कार शांति से और सादे तरीके से करना, ठीक उसी तरह जिस तरह मैं इस दुनिया में आया और इस दुनिया से जा रहा हूं. मेरे लिए कोई आंसू मत बहाना. जान लें कि जिंदा रहने के मुकाबले मर कर मैं खुश हूं. भाई उमा, मैं यह सब तुम्हारे कमरे में कर रहा हूं इस के लिए मुझे माफ करना. एएसए परिवार से भी उन्हें मायूस करने के लिए माफी चाहता हूं. आप सब मुझे बहुत प्यार करते हैं, यह मैं जानता हूं. मैं कामना करता हूं कि आप सब का भविष्य सुनहरा हो. अंतिम बार जय भीम.

हां, मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. मेरी आत्महत्या के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है. किसी ने भी मुझे ऐसा करने के लिए नहीं उकसाया, न अपने कृत्यों से, न शब्दों से. यह फैसला मेरा है. इस के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं. मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान मत करना.’’

रोहित का यह पत्र इस देश की दकियानूसी सड़ीगली सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत कुछ कहता है. थोड़े से शब्दों में उस ने बहुत कुछ बयान कर दिया है. पत्र महज सुसाइड नोट नहीं, समाज की बेशर्मी का आईना है. आंख खोल देने वाला है. उस ने दलित होने की वजह से भेदभाव को ले कर अपनी पीड़ा व्यक्त की है. क्या समाज के ठेकेदार, सियासतबाज इस पत्र की गहराई को समझ कर उस पर मनन कर पाएंगे. नहीं, उन की नजर में यह पत्र महज एक डाइंग डिक्लैयरेशन है और उन के बचाव का रास्ता, जिस में रोहित ने अपनी मौत के लिए किसी को कसूरवार नहीं ठहराया है. पत्र में छिपा दलित होने का दंश, दर्द, महसूस कर पाएंगे.

इस घटना पर मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रैस कर के सफाई दी कि रोहित का निष्कासन दलित प्रोफेसर की अध्यक्षता वाली कमेटी का फैसला था. इस बयान के तुरंत बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित प्रोफेसरों ने ईरानी के बयान को झूठ और भ्रामक बताते हुए कहा कि जिस समिति ने रोहित और उस के 4 साथियों के निष्कासन का निर्णय लिया था, उस में कोई भी दलित नहीं था, सारे सदस्य गैरदलित थे. स्मृति ईरानी के बयान के विरोध में विश्वविद्यालय के 15 दलित प्रोफेसरों ने अपने प्रशासनिक पदों से इस्तीफे का ऐलान कर दिया. इन प्रोफेसरों ने कहा कि मंत्री महोदया देश को गुमराह कर रही हैं और मुद्दे को भटका कर जिम्मेदारी से भाग रही हैं. दलित प्रोफेसरों का कहना है कि सच्चाई यह है कि पैनल ने कोई सजा नहीं दी, बल्कि मंत्री की वाइस चांसलर को सिफारिश और दबाव के बाद सजा दी गई.

रोहित की आत्महत्या की घटना कोई नई नहीं है. इस घटना के बाद हिंदू कट्टरपंथी इस बयानबाजी करने लगे मानो वे धर्म की बनाई जाति व्यवस्था और उस की मान्यताओं को बचाव में उतर पड़े हो. इस मामले में संघ और भाजपा की ओर से जिस तरह की बयानबाजी हो रही है उस से उन के ब्राह्मणवादी विचारों की ही पुष्टि हो रही है. सियासी क्षेत्र में ही नहीं, सोशल मीडिया में भी रोहित और उस के दलित छात्र संगठन को दोषी ठहराया जाने लगा. मानो वे कह रहे हों कि एक दलित की मौत उचित ही है. वह जाति व्यवस्था के खिलाफ खड़ा हो रहा था.

हरियाणा के झज्जर में जब मरी हुई गाय की खाल उतारने पर दलितों की हत्या कर दी गई थीं तो विश्व हिंदू परिषद के नेता गिरिराज किशोर ने गाय को दलित से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया था. जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई है दलितों, अल्पसंख्यकों पर हमले बढे हैं. पिछले करीब डेढ साल में सैंकड़ों घटनाएं हुई हैं जिन में एक दर्जन वारदातों की चर्चा दुनिया भर में पहुंचीं. हर बार इन घटनाओं के पीछे कट्टर हिंदू मानसिकता सामने आई.

भारतीय शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच जातिगत विद्वेष, हिंसा आम बात है. समाज के वंचित वर्ग को आरक्षण समानता लाने के उद्देश्य से दिया गया था, वही अब भेदभाव का सब से बड़ा कारण बन रहा है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में एमकौम के छात्र उमेश मेहरा का कहना है कि यूनिवर्सिटी में दलित छात्रों के साथ भेदभाव होता है. कौलिजों में एससी, एसटी के छात्र जहां कम होते हैं, और वहां जाति का पता चलता है तो लोग कन्नी काटने लगते हैं. टीचर भेदभाव नहीं करते पर साथी स्टूडेंट करते हैं. जनरल को प्रोब्लम रहती है कि इन का कोटा है. इन्हें अच्छी नौकरी मिल जाती है. अगर 4-5 दलित छात्र मिल कर एक साथ रहते हैं तब तो कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता पर अकेले को या पीठ पीछे जाति को ले कर अपमानजनक बातें की जाती हैं. नीची जाति वाले हैं, ये लोग तो रिजर्वेशन वाले हैं. इन्हें तो नौकरी मिल जाएगी.

वाल्मीकि समाज के दिल्ली नगर निगम में इंस्पैक्टर राजेश खैरालिया कहते हैं कि जन्म से भेदभाव शुरू हो जाता है. दलित समाज संगठित नहीं है. हमारे नेता टिकाऊ नहीं, बिकाऊ है. हमें लालच दे दिया जाता है. दलित समाज ने संघर्ष किया है. आजादी के आंदोलन में दलित आगे रहे हैं पर जातीय भेदभाव और शोषण आज भी हमारी नियति है. दुर्गा माता की मूर्ति के लिए वेश्या के घर की मिट्टी उठा ली जाती है पर दलित उस से भी गए गुजरे हैं. अभी दिल्ली सरकार में सब से ज्यादा शिकायतें साफसफाई, कूड़े को ले कर आई है. पीडब्ल्यूडी में ऊंची जाति के लोग काम करते हैं इसलिए इस विभाग की कोई शिकायत नहीं है. सफाई के काम में क्यों नहीं ऊंची जाति के लोग आते. सफाई वाल्मीकि करते हैं और उन के ऊपर सुपरविजन ऊंची जातियों के लोग. यमुना एक्शन प्लान में दिल्ली में कई टौयलेट बनाए गए हैं. उन का ठेका ब्राह्मणों को दिया गया पर सफाई करने का काम वाल्मीकि कर रहे हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय में कर्मचारी राजेंद्र कुमार कहते हैं कि विश्वविद्यालय में हम 12 दलित कर्मचारी हैं. हम एक रहते हैं तो कोई मुंह पर कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता पर हमारे साथ भी दोहरा व्यवहार किया जाता है. जी न्यूज में कैमरामैन अशोक कुमार कहते हैं हम लोग भेदभाव महसूस करते हैं.

देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ गया है. भाजपा सरकार आने के बाद वैचारिक संघर्ष की घटनाएं बढी हैं. हिंदुत्व की राजनीति दलित उभार के अस्तित्व में आने के साथ असहज हो रही है. संघ और भाजपा राजनीतिक फायदे के लिए अंबेडकर को अपनाने पर तो उतारू है पर अतीत की सामाजिक व्यवस्था को त्यागने से हिचकिचा रहे हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, आल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मेडिकल साइंसेज [एम्स], एफटीआईआई, जामिया मिलिया, अलीगढ यूनिवर्सिटी जैसे विश्व विख्यात उच्च अध्ययन संस्थानों में संघ और भाजपा दखलंदाजी करने लगे हैं. ऐसे संस्थानों में जातीय वैमनस्य के बीज बोए जा रहे हैं. लोकतांत्रिक मूल्यों और विचारों की स्वतंत्रता को दबाया जा रहा है. पिछले दिनों केंद्र सरकार के एक मंत्री ने गजेंद्र चौहान का विरोध कर रहे एफटीआईआई के छात्रों को नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाला बताया था.

विडंबना है कि जिन उच्च शिक्षण संस्थानों में विचारों की लोकतांत्रिक असहमति जताने की जगह होनी चाहिए, वहां संकीर्णता व्याप्त दिखाई देती है. इसी हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पिछले दशक में 8 दलित छात्रों की आत्महत्या दर्शाती हैं कि शिक्षा संस्थानों में सामाजिक विभाजन किस कदर बढ रहा है. रोहित की आत्महत्या के पीछे हताशा थी कि उसे इस व्यवस्था से न्याय नहीं मिल पाएगा.

सवाल है कि सत्ताधारी आज 21वीं सदी में देश को किस सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था से संचालित करना चाहते हैं. राजनीतिबाज इस व्यवस्था को पूरी ढिठाई के साथ सही साबित करने पर तुले दिखाई देते हैं. इस के लिए हिंदुत्व के स्वामियों, बाबाओं, गुरुओं की पूरी जमात है जो हर हिंसा, अमानवीयता, अत्याचार, असहिष्णुता को धर्मसम्मत जायज करार देने के लिए ऐड़ीचोटी का जोर लगा रही है. ये लोग विद्वेष, जातीय श्रेष्ठता को पूरी ताकत के साथ बनाए रखने की वकालत करते नजर आते हैं. भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी रोहित की आत्महत्या को जायज ही ठहरा रहे हैं.

हमारा ऐसा समाज बना दिया गया है जो वैचारिक विभिन्नता को जरा भी बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रखता. भिन्न विचार वालों से लड़नेमारने पर उतारू दिखता है. हम कैसे समाज का निर्माण कर रहे हैं? क्या विश्वगुरु ऐसे ही बनेंगे? क्या हमें सभ्य कहलाने का हक है?

असल में आज देश भर में विश्वविद्यालयों में पढ रहे दलित छात्रों में जागरूकता आई है. यह जागरूकता मौजूदा जातिवादी व्यवस्था के सामने चुनौती पेश कर रही है. रोहित वेमुला जाति व्यवस्था का भीषण विरोधी था. वह हिंदुत्व विचारधारा का तिरस्कार करता रहा. वह वामपंथी नेताओं पर भी दोहरे मापदंडों का आरोप लगाता था और कांग्रेस व भाजपा को उच्च वर्गीय ब्राह्मण अत्याचारी मानता था. रोहित के पत्र में स्पष्ट है कि वह हिंदू धार्मिक व्यवस्था से बेहद खिन्न है.

दलित छात्रों के ऐसे विचारों से हिंदू धर्म, जाति की कट्टरता के पैरोकार दूसरे विचारों को स्वीकार करने के बजाय हिंसा पर उतारू दिखने लगते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गणतंत्र दिवस के मौके पर आए हुए फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ आतंकवाद पर गंभीर मंत्रणा कर रहे हैं, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हिंसा के उपाय खोज रहे हैं और इस के खिलाफ विश्व जनमत बना रहे हैं पर देश में धार्मिक, जातीय बर्बर सोच का आतंक क्या है? इस पर नियंत्रक के लिए हमारे प्रधानमंत्री कुछ करते नजर नहीं आते. उन संगठनों को सत्ता पक्ष से खुल कर प्रश्रय, प्रोत्साहन मिल रहा है. ऐसे में हम किस मुंह से आतंकवाद से मुकाबले और उस के खात्मे की बात कर सकते हैं?

वार्नर ने बताया कैसे निपटना होगा इंडियन स्पिनरों से…

पहले टी-20 इंटरनेशनल मैच में हार के लिए बल्लेबाजों को जिम्मेदार ठहराते हुए डेविड वार्नर ने कहा कि मेजबान टीम को भारतीय स्पिनर के खिलाफ समझदारी से खेलना होगा और बड़े स्टेडियमों का पूरा फायदा उठाना होगा.

कप्तान एरोन फिंच (44) के अलावा ऑस्ट्रेलिया के अन्य बल्लेबाजों ने आसानी से भारतीय आक्रमण के सामने घुटने टेक दिए थे. वार्नर भी 17 रन बनाने के बाद डेब्यू कर रहे जसप्रीत बुमराह (23 रन पर तीन विकेट) का शिकार बने और वह अपनी गलतियों से सीखना चाहते हैं.

वार्नर ने एमसीजी पर शुक्रवार को होने वाले मैच से पहले कहा, 'बीच के ओवरों में हमारे में से कई खिलाड़ियों ने बड़े शॉट खेलने की कोशिश की और ऑस्ट्रेलिया के बड़े मैदानों का पूरा फायदा नहीं उठाया. मुझे लगता है कि भारत में आप बाउंड्री लगाने की कोशिश में आउट होने से बच सकते हो क्योंकि मैदान थोड़े छोटे होते हैं और फील्डर बल्ले के करीब होते हैं इसलिए आपको अपने शॉट पर अधिक फायदा मिलता है.'

'बल्लेबाजी बेसिक्स में हम फेल हुए'

उन्होंने कहा, 'लेकिन निश्चित तौर पर पिछले मैच में आपकी बल्लेबाजी में बेसिक्स की कमी दिखी और यह बड़े मैदान पर दो रन बनाने की कोशिश करना है.' शेन वाटसन (24 रन पर दो विकेट) ऑस्ट्रेलिया के सबसे सफल गेंदबाज रहे और वार्नर ने इंटरनेशनल क्रिकेट में उनकी वापसी का स्वागत किया.

वार्नर ने कहा, 'बेशक पिछले 18 महीने में उसकी फॉर्म वैसी नहीं रही जैसी वह चाहता था. उसे भी यह पता है. हम सभी को यह पता है. हम हमेशा चाहते हैं कि वह अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता के मुताबिक प्रदर्शन करे और मुझे लगता है कि उसकी गेंदबाजी उसका मजबूत पक्ष है.'

'स्मिथ परिपक्व हो चुका है'

वार्नर ने साथ ही कप्तान (टेस्ट और वनडे में) और बल्लेबाज के रूप में स्टीव स्मिथ के योगदान की भी तारीफ की. स्मिथ के एक बार फिर एलेन बॉर्डर मेडल जीतने की संभावना पर वार्नर ने कहा, 'मुझे लगता है कि एक बार फिर स्टीव स्मिथ को यह मिलेगा. पिछले 24 महीने में उसने शानदार प्रदर्शन किया है.' उन्होंने कहा, 'वह परिपक्व हो गया है. रन बनाते समय वह दबाव में नहीं रहता. मैदान पर वह खुले दिमाग के साथ उतरता है. फिलहाल यह टीम के लिए काफी अच्छी चीज है और जो उसे सम्मान मिल रहा है वह उसका हकदार है.'

एशिया कपः एक साल बाद भिड़ेंगे भारत और पाकिस्तान

टीम इंडिया को वर्ल्ड कप से पहले बैक टू बैट टी-20 मैच खेलने हैं. टी-20 वर्ल्ड कप के मद्देनजर ही इस बार का एशिया कप भी इसी फॉरमैट में खेला जाएगा. एशिया कप 24 फरवरी से 5 मार्च तक बांग्लादेश की मेजबानी में खेला जाएगा.

टूर्नामेंट का फिक्स्चर आ गया है. टीम इंडिया और पाकिस्तान के बीच 27 फरवरी को टी-20 मैच खेला जाएगा. टूर्नामेंट में भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश के अलावा पांचवी टीम नेपाल, यूएई, हांगकांग या अफगानिस्तान में से कोई होगी. इन टीमों के बीच 19 से 22 फरवरी के बीच क्वालिफायर खेला जाएगा.

एशिया कप का फाइनल मैच 5 मार्च को शेर-ए-बांग्ला स्टेडियम में खेला जाएगा.

एशिया कप का फिक्स्चर-

24 फरवरी: बांग्लादेश बनाम भारत

25 फरवरी: श्रीलंका बनाम पांचवीं टीम

26 फरवरी: बांग्लादेश बनाम पांचवीं टीम

27 फरवरी: भारत बनाम पाकिस्तान

28 फरवरी: बांग्लादेश बनाम श्रीलंका

29 फरवरी: पाकिस्तान बनाम पांचवीं टीम

1 मार्च: भारत बनाम श्रीलंका

2 मार्च: बांग्लादेश बनाम पाकिस्तान

3 मार्च: भारत बनाम पांचवीं टीम

4 मार्च: पाकिस्तान बनाम श्रीलंका

साथ खेले 408 मैच, पर कभी साथ नहीं की बल्लेबाजी

दो खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लगभग दो दशक तक 408 मैच साथ में खेले, लेकिन उन्होंने कभी एक साथ बल्लेबाजी नहीं की. है न हैरानी की बात. दो दशक तक ये दोनों खिलाड़ी श्रीलंका की टीम के अहम अंग बने रहे, लेकिन कभी बल्ला पकड़कर एक साथ क्रीज पर नहीं उतरे.

यहां बात हो रही है सनथ जयसूर्या और मुथैया मुरलीधरन की. दोनों अपने- अपने फन में माहिर. ये दोनों 90 टेस्ट, 307 एकदिवसीय और 11 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में साथ में खेले, लेकिन संयोग ऐसा बना कि वे कभी साथ में बल्लेबाजी नहीं कर पाये. जयसूर्या ने करियर की शुरूआत मध्य​ निचले क्रम के बल्लेबाज के रूप में की लेकिन बाद में वह सलामी बल्लेबाज के रूप में स्थापित हो गये. दूसरी तरफ मुरलीधरन हमेशा निचले क्रम के बल्लेबाज रहे. वह अपने करियर में अधिकतर 10वें या 11वें नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतरे. पांच पारियों में वह आठवें और 45 पारियों में नौवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिये आये.

हम उन मैचों की बात करेंगे जिनमें जयसूर्या और मुरलीधरन दोनों साथ में खेले. इस तरह के जिन 408 मैचों का ऊपर जिक्र किया गया है उनकी 267 पारियों में मुरलीधरन ने बल्लेबाजी की थी. संयोग से इन सभी पारियों में जयसूर्या पहले ही आउट हो गये और इसलिए उनके एक छोर पर रहते हुए मुरलीधरन कभी बल्लेबाजी के लिये नहीं उतर पाये. कुछ ऐसे अवसर जरूर आये जबकि जयसूर्या के क्रीज पर रहते हुए मुरलीधरन को बल्लेबाजी का मौका मिल सकता था. मसलन जब मुरलीधरन ने अपने टेस्ट करियर की शुरूआत की तो जयसूर्या तब छठे या सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिये आते थे. लेकिन संयोग ऐसा बना कि या तो तब 11वें नंबर ​के बल्लेबाज मुरलीधरन की बल्लेबाजी की नौबत नहीं आयी या फिर जयसूर्या जल्दी आउट हो गये. उस दौर में जयसूर्या टेस्ट मैचों में दो ऐसी पारियों में नाबाद रहे थे, जिनमें वह सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिये उतरे थे.

जयसूर्या की बात करें तो उन्होंने मुरलीधरन के टीम में रहते हुए कुल 468 पारियां खेली, 15964 रन बनाये, जिसमें 32 शतक और 87 अर्धशतक शामिल हैं लेकिन वह कभी दुनिया के दिग्गज आफ स्पिनर के साथ जोड़ी नहीं बना पाये. रिकार्ड पर गौर करें तो जयसूर्या ने मुरलीधरधन की मौजूदगी वाले मैचों में 39 जोड़ीदारों के साथ साझेदारियां निभायी. उन्होंने ऐसे मैचों में सर्वाधिक 219 बार मर्वन अटापट्टू और 101 बार रोमेश कालूवितर्णा के साथ जोड़ी बनायी. दिलचस्प बात यह है कि मुरलीधरन ने कालूवितर्णा के साथ चार और अटापट्टू के साथ दो पारियों में साथ में बल्लेबाजी की थी.

मुरलीधरन ने शीर्ष क्रम के अन्य बल्लेबाजों जैसे कि तिलकरत्ने दिलशान (दस बार), कुमार संगकारा (सात), माहेला जयवर्धने (पांच), रोशन महानामा, अरविंद डिसिल्वा और रोशन महानामा (तीन . तीन बार) के साथ मिलकर भी बल्लेबाजी की थी. यहां तक कि एशिया एकादश और आईसीसी विश्व एकादश की तरफ से मुरलीधरन ने जो मैच (वनडे और टेस्ट) खेले उनमें उन्हें राहुल द्रविड़ और जाक कैलिस जैसे बल्लेबाजों के साथ क्रमश: दो और चार मिनट तक साथ में बल्लेबाजी करने का मौका मिला था.

मुरलीधरन ने वैसे अपने करियर में सर्वाधिक 67 पारियों में चमिंडा वास के साथ बल्लेबाजी की. जयसूर्या के रहते हुए वह जिन 267 पारियों में बल्लेबाजी के लिये उतरे उनमें उन्होंने 1617 रन बनाये जिसमें एक अर्धशतक भी शामिल है. इनमें टेस्ट मैचों की 113, वनडे की 152 और टी20 की दो पारियां शामिल हैं. इसके उलट गेंदबाजी में आपको जरूर 44 बार कॉट जयसूर्या बोल्ड मुरलीधरन तथा 12 बार कॉट मुरलीधरन बोल्ड जयसूर्या पढ़ने को मिल जाएगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें