नेह का प्रतिदान भी कितना कठिन है
आज जाना
विस्मृत पलों की सुरभि को
अनजान फूलों में बसाना
फिर नयी माला बनाना
क्या कहीं इतना सरल है
आज जाना
मौन के वाचाल क्षण को
वाकपटुता से भुलाना
फिर नया इतिहास रचना
क्या कहीं इतना सरल है
आज जाना
- सुभाषिनी शर्मा
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