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जानिए फवाद खान को क्यों है किसिंग सीन से परहेज…?

34 वर्षीय पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान अपने अभिनय करियर की पहली पाकिस्तानी फिल्म ‘‘खुदा के लिए’’ व पाकिस्तानी सीरियल ‘‘जिंदगी गुलजार है’’ की वजह से एक अलग पहचान रखते हैं. वह ना सिर्फ चार्मिंग कलाकार हैं, बल्कि बहुत ही तहजीबदार हैं. वह बहुत ही इमोशनल और संजीदा इंसान हैं. पर वह अपने इमोशंस को सिर्फ अपने करीबों के बीच ही जाहीर करते हैं. वह अपने परिवार और कमिटमेंट के लिए कुछ भी कर सकते हैं. फवाद खान ने सोनम कपूर के साथ बौलीवुड फिल्म ‘‘खूबसूरत’’ से करियर शुरू किया था. अब उनकी दूसरी बौलीवुड फिल्म ‘‘कपूर एंड संस’’ अठारह मार्च को रिलीज हो रही है. करण जोहर निर्मित तथा शकुन बत्रा निर्देशित फिल्म ‘‘कपूर एंड संस’’ में सिद्धार्थ मल्होत्रा व आलिया भट्ट के साथ अभिनय किया है. मगर इस फिल्म में फवाद खान ने आलिया भट्ट के साथ किसिंग व इंटीमसी के सीन करने से इंकार कर दिया. क्योंकि वह किसी भी सूरत में अपने मूल पाकिस्तानी दर्शकों को आहत नहीं करना चाहते.

जी हां! यह कड़ा सच है. जब कुछ दिन पहले हमने मुंबई के नोवाटेल होटल में फवाद खान से एक्सक्लूसिब बातचीत की, तो उन्होने इस बात का खुलासा करते हुए कहा-‘‘यह सच है कि मैं फिल्मों में  किंसिंग सीन करने से परहेज करता हूं. देखिए, हम अपनी शर्ट को एक खास नाप से सीते हैं, जिससे वह हमारे शरीर पर फिट आ सके. मैने भी अपने काम को दर्शकों को ध्यान में रखकर ही तय किया. मगर मैं काम के कुछ पहलुओं को लेकर अलग सोच रखता हूं. मेरी यह सोच मेरे अपने वतन पाकिस्तान के दर्शकों की रूचि का ध्यान रखकर बनी है. मसलन-इंटीमसी के सीन हैं. मैं इस तरह के सीन परदे पर अंजाम नहीं दे सकता. मेरे जो मूल दर्शक हैं, उन्हे जो चीजें या सीन सहज नहीं करती हैं, उनसे बचने का मेरा प्रयास रहता है. पाकिस्तान में सिनेमा की स्थिति बहुत अलग रही है. कुछ समय पहले तक वहां का सिनेमा मृत प्राय था. अब धीरे धीरे अलग तरह का सिनेमा बनने लगा है. अब पाकिस्तान में ‘खुदा के लिए’ जैसी बोल्ड फिल्म बनने लगी है, जिसमें मैंने स्वयं अभिनय किया था. जैसे जैसे वहां सिनेमा की संख्या बढ़ेगी, वैसे वैसे चीजें ज्यादा खुलेंगी. दर्शकों की रूचि भी बदलेगी. पर जब तक ऐसा नहीं होता है, मैं उन्हे अपमानित या ग्लानि का अहसास नहीं कराना चाहता. फिलहाल,मेरी कोशिश यह है कि मैं जिस तरह की कहानियां बताना चाहता हूं,वह उन तक पहुंच जाएं. पर आप यह कहे कि मैं डरकर काम कर रहा हूं. तो ऐसा नहीं है. कलाकार के तौर पर हम डरकर काम नहीं कर सकते. डर मुझे भी होता है, मगर मैं उस डर को नजरंदाज कर देता हॅूं.’’

यानी कि पाकिस्तानी दर्शकों के साथ तारतम्य बनाए रखने के मकसद से ही आपने फिल्म ‘कपूर एंड संस’ में आलिया भट्ट के साथ किसिंग सीन व इंटीमसी के सीन करने से परहेज किया? इस सवाल के जवाब में फवाद खान ने कहा-‘‘जी हां! मैं खुद इस तरह के सीन करने में कम्फर्टेबल नहीं हूं. पर मैं ऐसा करने के लिए दूसरों पर दबाव नहीं डाल सकता. फिल्म का अनुबंध करने से पहले ही मैं अपने निर्माता व निर्देशक को बता देता हूं कि फिल्म में मैं क्या कर सकता हूं और क्या नहीं. यदि निर्माता या निर्देशक को उस वक्त लगता है कि उनकी फिल्म में उन दृश्यों का होना जरुरी है, जिन्हें मैं नहीं करना चाहता, तो वह किसी अन्य कलाकार के बारे में सोचने के लिए स्वतंत्र होता है. बालीवुड में अब तक कुछ फिल्मकारों ने मेरी बात को महत्व देते हुए सीन में बदलाव भी किया है. मैं ऐसे फिल्मकारों का आभारी हूं.’’

जब हमने फवाद खान से पूछा कि किसिंग सीन न करने का आपका निर्णय निजी पसंद का मसला है या पाकिस्तान में किसिंग सीन के बैन होने की वजह से आपने निर्णय कर रखा है? तो फवाद खान ने बड़ी बेबाकी से कहा-‘‘यह मेरी सबसे बड़ी बेवकूफी होगी यदि में यह कहूंगा कि मैं इस तरह की फिल्में देख सकता हूं, इस तरह के काम की प्रशंसा कर सकता हूं, पर मैं खुद इस तरह की फिल्म या इस तरह का काम नहीं करूंगा. मैं खुद किसी चीज को गलत नहीं मानता. किसी चीज को गलत न मानते हुए भी हमें कुछ चीजों का ख्याल रखना जरुरी होता है और किसिंग सीन उन्ही में से है. अगर हमारी पाकिस्तान के दर्शकों को इस तरह के दृश्यों पर आपत्ति न होती, तो मैं इंकार न करता. देखिए, अमरीका में बहुत सारा काम हो रहा है. वहां पर लोग पूरी तरह से न्यूड सीन भी कर रहे हैं. बैक न्यूड सीन भी देते हैं. पर वही सीन भारतीय कलाकार से करने के लिए कहेंगे, तो वह मना कर देंगे. भारतीय कलाकार कहेगा कि हमारे भारतीय दर्शक इसे स्वीकार नहीं करेगे.

जब हमने उनसे कहा कि वह यह मानते हैं कि दर्शकों ख्याल रखने की वजह से कलाकार सीमाओं में कैद होकर रह जाता है? तो इस बात को स्वीकार करते हुए फवाद खान ने कहा-‘‘बिलकुल! मैं कलाकार की अपनी पसंद और दर्शकों की रूचि के बीच एक सामंजस्य बैठाने का प्रयास करता रहता हूं. यदि फिल्म की कहानी में वह बातें हैं, जो कि हर इंसान की जिंदगी में होती हैं, जिसे दर्शकों में से किसी को तकलीफ नहीं होगी, तो वह करने से मैं परहेज नहीं करता. फिल्म भी दर्शक को शिक्षा देने का एक माध्यम होता है. बशर्ते फिल्म बेवजह लोगों को तंग करने के लिए न बनायी जा रही हो. देखिए, सच भी कड़वा होता है. तो कभी कभी इस सच के कड़वे घूंट को भी पीना चाहिए. इसका स्वाद लेना चाहिए. मैने पाकिस्तानी फिल्म ‘‘खुदा के लिए’’ की, जिसे दर्शकों ने पसंद भी किया. इसलिए मैं धीरे धीरे उस लाइन को क्रास करते हुए डार्क किरदार भी निभाना चाहता हूं. लोगो की सोच के अनुरूप वह किरदार अजीब कहे जा सकते हैं. कहने का अर्थ यह है कि हर किरदार को करते समय मैं यह नहीं सोच सकता कि लोग क्या कहेंगे? यदि मैं ऐसा सोचने लगा,तो फिर मैं कलाकार नहीं रह पाउंगा. कोशि करता हॅू कि बेवजह के विवादों को जन्म देने की बजाय कंटेंट पर ध्यान देते हुए काम करता रहूं. कोई ऐसी कहानी होनी चाहिए, जो दिल को छू कर चली जाए.’’

नया बजट किसानों और खेती के लिए

नए बजट ने दूसरे लोगों को भले ही नाखुश किया हो, पर खेती और किसानों का पूरा खयाल रखा है. किसानों के लिए वाकई यह बहुत खुशी की बात है. पिछले कुछ अरसे से लगातार मुसीबतों से घिरे किसानों के लिए यह बजट किसी सौगात से कम नहीं है. इस बार सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए बजट आवंटन करीब दोगुना करते हुए 44485 करोड़ रुपए कर दिया है. इस के अलावा कृषि क्षेत्र के लिए ऋण का लक्ष्य  पिछले साल के 8.5 लाख करोड़ रुपए से बढ़ा कर 9 लाख करोड़ रुपए कर दिया है. सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने पर बल देते हुए साल 2022 तक इसे दोगुना करने की बात कही है. किसानों पर ऋण अदायगी के बोझ को कम करने के लिए बजट में 15 हजार करोड़ रुपए रखे गए हैं. आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने खेती को पहले नंबर पर रखा है. उन्होंने सिंचाई का इंतजाम सुधारने पर काफी जोर दिया है. देश की 46 फीसदी खेती को ही सिंचाई की सुविधा मिली हुई है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जरीए मिशन मोड में 28.5 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचित इलाके में शामिल किया जाएगा. नाबार्ड के जरीए 20 हजार करोड़ रुपए की सिंचाई कार्पस निधि बनाई जाएगी. इसी तरह बारिश सिंचित इलाकों में मनरेगा के जरीए 5 लाख फर्म तालाब, कुएं और कंपोस्ट खाद के लिए 10 लाख गड्ढे बनवाए जाएंगे.

पारंपरिक कृषि विकास योजना के जरीए अगले 5 सालों में 5 लाख एकड़ जमीन पर जैविक खेती की जाएगी. पूर्वोत्तर व पहाड़ी राज्यों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जेटली ने बजट में 412 करोड़ रुपए की राशि तय की है. किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उन से आम फसलों की खेती के अलावा तमाम कमर्शियल उत्पादों की खेती करने की अपील की गई?है. किसानों से खेती के साथसाथ पशुपालन, मधुमक्खीपालन व डेरी कारोबार करने को भी कहा गया है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के कारगर नतीजों के लिए साल 2016-17 के इस बजट में 5500 करोड़ रुपए की राशि रखी गई है. इस बार रसोईगैस सब्सिडी के अंदाज में खाद सब्सिडी की रकम भी सीधे किसानों के खातों में भेजे जाने की तैयारी की जा रही है. शुरू में इस योजना को कुछ खास जिलों में आजमाया जाएगा और नतीजे अच्छे रहने पर इसे सभी जगह लागू कर दिया जाएगा. काबिलेगौर है कि सरकार सालाना 73 हजार करोड़ रुपए की खाद सब्सिडी किसानों को देती?है.

मार्च 2017 तक 14 करोड़ कृषि जोनों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिए जाएंगे. मिट्टी (मृदा) व बीज की जांच की सुविधाओं के साथ उर्वरक कंपनियों के 2 हजार आदर्श खुदरा केंद्र अगले 3 सालों के दौरान खोले जाएंगे. कृषि क्षेत्र में धान की कमी खत्म करने के लिए सरकार ने 0.5 फीसदी का सरचार्ज लगाया है. मंडी कानून में तब्दीली कर के राष्ट्रीय बाजार प्लेटफार्म शुरू किया जाएगा. विदेशी निवेश के जरीए खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों के लिए बाजार तय किए जाएंगे. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए बजट में 5 सौ करोड़ रुपए रखे गए हैं. इस मिशन में जिलों की संख्या बढ़ा कर 622 कर दी गई है. 674 कृषि विज्ञान केंद्रों के बीच 50 लाख रुपए की इनामी रकम के साथ राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता कराई जाएगी.

अब स्टेशन पर मिलेंगे बेबी फूड और दूध

आमतौर पर रेलवे स्टेशनों पर बड़े लोगों के खाने लायक तमाम तरह की चीजें आसानी से मिल जाती हैं, मगर मासूम बच्चों के मतलब की चीजें कतई नहीं मिलतीं. अब भारतीय मम्मियों की यह दिक्कत दूर होने वाली है. रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इस दफे औरतों और मासूम शिशुओं की जरूरतों का भी अपने बजट में पूरापूरा खयाल रखा है. इस बार रेल मंत्री ने महिलाओं को सीटों में आरक्षण दिया, तो नन्हे बच्चों के लिए ट्रेनों और स्टेशनों पर बेबीफूड और दूध का बंदोबस्त करने का वादा भी किया है. यह योजना भले ही मुख्य रूप से छोटे बच्चों के लिए है, लेकिन इस से चेहरे तो तमाम मम्मियों के ही खिले हैं, क्योंकि बच्चों की खातिर परेशान तो उन्हीं को होना पड़ता है. शिशु मुसीबत को क्या जानें, उन्हें तो बस खुराक चाहिए. सिरदर्दी तो मम्मियों की होती है.आमतौर पर ट्रेनों की पैंट्री कार में तमाम तरह के पकवान मौजूद रहते हैं, लेकिन उन में शिशुओं के लायक कुछ नहीं होता. लेकिन अब हालात बदल जाएंगे और शिशुओं के खाने लायक चीजों के साथ कुनकुना दूध भी ट्रेनों व स्टेशनों पर मौजूद होगा

जैविक खेती से भंवर ने कमाया नाम

राजस्थान के जोधपुर जिले के गांव उचियाड़ा के 74 साल के किसान भंवरलाल ने जैविक खेती में नए प्रयोगों से बहुत नाम कमाया है और फसलों का उत्पादन बढ़ा कर कमाई भी की है. भंवरलाल के पास 125 बीघे जमीन है, जिस में 75 बीघे सिंचाई वाली है. साल 1962 में मैट्रिक पास करने के बाद भंवरलाल मास्टर बन गए. 3 साल तक नौकरी करने के बाद वे नौकरी छोड़ कर खेती के काम में लग गए.

भंवरलाल खरीफ में बाजरा, तिल व मूंग की फसल उगाते हैं और रबी में जीरा, सौंफ, मेथी, धनिया, राई व चारा फसलें (रिजका) उगाते हैं. उन के घर में 12 गायें हैं, जिन से खेती के लिए जैविक खाद गोबर के रूप में मिल जाती है. वे गायों को इस तरह रखते हैं कि उन का मूत्र भी एक नाली में बह कर इकट्ठा हो जाए.

जैविक खेती के तहत उन्होंने गौमूत्र इकट्ठा कर के एक ड्रम में भर कर उसे सिंचाई के पानी के साथ मिला कर देना शुरू किया. इस से फसलों के कीटरोग के अंश खत्म हो गए और फसल की पैदावार भी बढ़ी. जैविक खाद के साथ गौमूत्र देने से फसल की गुणवत्ता भी अच्छी रही और अनाज स्वादिष्ठ भी होने लगा. गोबर की खाद व गौमूत्र जमीन में देने से फसलों में सिंचाई भी कम करनी पड़ी. इस से पानी की बचत हुई और गैरजरूरी रासायनिक खाद व दवाओं का खर्च भी बचा. इस के साथ दीमक से बचाव भी हो गया.

जैविक खेती में नवाचारों में छाछ इकट्ठा कर के खट्टा होने पर नीबू की फसल व अन्य फसलों पर छिड़कने से पत्तों का सिकुड़न रोग खत्म हो गया और पत्तों में पीलेपन की बीमारी नहीं रही. नीबू, आक व धतूरे के पत्तों और निंबोली को ड्रम में भर कर उस की 10 किलोग्राम मात्रा में 100 लीटर पानी डाल कर उस से छिड़काव करने से सौंफ, जीरा व धनिया में कीटों व दूसरे रोगों से छुटकारा पाया. भंवरलाल बताते हैं कि जैविक खेती में गोबर की जैविक खाद का बहुत महत्त्व है. इस में घर के पशुओं का गोबर काम आ जाता है. कभीकभी बाहर से भी गोबर खरीदना पड़ता है, जिसे वे गड्ढे में सड़ा देते हैं और फिर जरूरत के मुताबिक फसलों में इस्तेमाल करते हैं. भंवरलाल का कहना है कि यूरिया से बढ़वार तो जरूर होती है, परंतु फसलों में ताकत नहीं होती और खेती टिकाऊ नहीं रहती है.

भंवरलाल के मुताबिक निंबौली को इकट्ठा कर के पीस कर व छान कर फसल पर छिड़काव करने से कीटों व रोगों में कमी होती है. इस से हवा भी साफ रहती है. भंवरलाल लगातार जैविक खेती में आगे बढ़ रहे हैं. उन्हें जहां भी नई जानकारी मिलती है, वे उसे समझ कर अपनाते हैं. पिछले साल भंवरलाल को पशुपालन में जिला स्तर पर प्रगतिशील किसान के नाते 25 हजार रुपए का इनाम दिया गया था. उन्हें उद्यानविभाग से उन्नत बागबानी में जिलास्तर पर 10 हजार रुपए और उन्नतकृषि में 10 हजार रुपए के इनाम भी मिले हैं. उन्होंने किसानों की कई जैविकप्रतियोगिताओं में भाग लिया और उन्हें कई प्रमाणपत्र मिले. इस प्रकार जैविक खेती से भंवरलाल आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने नाम तो कमाया ही है, साथ ही उन की आमदनी भी बढ़ी है. पड़ोसी किसान उन के खेत पर जैविक खेती देखने आते हैं.

भंवरलाल बताते हैं कि जैविक खेती में देशी खाद की करामात होती है. सभी किसान भाई जैविक खेती की तरफ बढ़ें, तो फसल में जहर कम हो सकता है. इस से खर्चा कम होगा, स्वास्थ्य सुधरेगा व खेती में सिंचाई कम होगी. जैविक खेती ही टिकाऊ खेती है. भंवरलाल ने जैविक खेती में तमाम प्रयोग किए हैं.

कुंठा और कानून

हरेक की जिंदगी में एक दौर ऐसा आ ही जाता है जब वह इस देश में पैदा होने पर कोसने से खुद को रोक नहीं पाता. ऐसा ही कुछ मद्रास हाईकोर्ट के जज सी एस करनन के साथ हुआ जिन्होंने खुद अपने तबादले पर स्थगन आदेश लगा कर हैरानी फैला दी थी. तबादला करने वाले जजों के खिलाफ आग उगलते करनन का कहना था कि चूंकि वे पिछड़ी जाति के हैं, इसलिए उन्हें तंग किया जा रहा है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने साथ हुई ज्यादती के खिलाफ एससीएसटी ऐक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराने की भी धौंस दी थी.

लेकिन हफ्ता पूरा भी नहीं गुजरा था कि इन जज साहब को ज्ञान प्राप्त हो गया कि कैसे वे ओबीसी के हो कर एससीएसटी ऐक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराएंगे. इसलिए उन की शर्मिंदगी दूर हो गई और वे मान बैठे कि चूंकि वे हफ्तेभर के लिए कुंठित हो गए थे, इसलिए ऐसा कुछ बोल गए थे. अच्छा है कि शर्मिंदगी के ये दोनों अध्याय जल्द और बिना किसी बड़े विवाद के समाप्त हो गए.

तेजाबी होली

सोनी सोरी एक जुझारू और दुस्साहसी आदिवासी युवती हैं जो लंबे वक्त से आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रही हैं. उन्हें बस्तर में खासा समर्थन भी हासिल है. पिछले साल एक रैली में 10 हजार आदिवासी महिलाएं उन की आवाज पर इकट्ठा हुई थीं तो हर कोई हैरत में पड़ गया था. अब आम आदमी पार्टी में शामिल हो गईं सोनी बीते दिनों जब छत्तीसगढ़ पहुंचीं तो हमलावरों ने उन के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया. उल्लेखनीय बात यह है कि सोनी नक्सलियों की तरह हिंसा में भरोसा नहीं करतीं. इस के बाद भी छत्तीसगढ़ राज्य की पुलिस जाने क्यों उन पर कहर ढाती रहती है. एक बार उन पर झूठे आरोप लगा कर हिरासत में ले कर पुलिस ने उन के गुप्तांगों में पत्थर भर दिए थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इलाज के लिए कोलकाता भेजा था. अब तेजाब किस ने फेंका, इस पर कोई गंभीर नहीं. मानो, आदिवासी हितों की बात और उन के लिए काम करना कोई गुनाह हो.

भूलासन

योग के फायदे गिनाने वालों की कमी नहीं. लेकिन नुकसान यह है कि जब इसे ज्यादा करते हैं तो याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है और योगमाया में डूबा योगी बाहरी दुनिया से कट जाता है. ऐसा ही बीते दिनों योगगुरु रामदेव के साथ हुआ, जब वे जयपुर की एक पत्रकार वार्त्ता में यह कह बैठे कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आत्मा को शांति मिले. आत्मा की शांति की कामना देहत्याग के बाद ही की जाती है. वजह, जब तक वह शरीर में रहती है तब तक अशांत ही मानी जाती है. अटलजी लंबे वक्त से अस्वस्थ हैं, इसलिए आटा, नूडल्स, कौस्मैटिक व किराने के कारोबार में लगे रामदेव भूल गए कि अभी वक्त मुफीद नहीं. लेकिन जबान फिसल गई तो उन्होंने हड़बड़ी में बात संभालने की नाकाम कोशिश की. जाहिर यह हुआ कि योग से एकाग्रता की बात हवाहवाई है वरना रामदेव एक जीवित हस्ती को दिवंगत नहीं बताते.

पकड़े गए साहब

पेशाब करना एक निहायत ही व्यक्तिगत और प्राकृतिक क्रिया है जिसे सार्वजनकि रूप से करते लोग हर कहीं दिख जाते हैं जो इस का वेग या दबाव बरदाश्त नहीं कर पाते. इलाहाबाद के एसडीएम ओ पी श्रीवास्तव अपवाद नहीं निकले जो बीती 23 फरवरी को संगम किनारे बने वोट क्लब पर पेशाब करते हुए एक वीडियो फिल्म में देखे गए. पकड़े गए तो सफाई भी दी. मुमकिन है संगम किनारे बने बोट क्लब में त्रिवेणी से जुड़ी पत्रकारवार्त्ता में जब वे गए थे तब एकाएक ही पेट में मरोड़ उठी हो और जब वे बाथरूम पहुंचे हों तो वहां कुंडी बंद कर पहले से ही कोई दूसरा पीडि़त पेट हलका कर रहा हो, ऐसे में जांच इस बात की होनी चाहिए कि किस शरारती ने इतने गोपनीय ढंग से उन के द्वारा गंगा मैली करने की यह वीडियो फिल्म बना कर वायरल कर डाली.

ले ले बेटा सैल्फी

आज के जमाने में सैल्फी जिसे किसी ने हिंदी अनुवाद में ‘खुद खेंचू’ कह डाला है, गजब की चीज है. फोटो खींचते समय चीज या रसगुल्ला किसी को भी याद कर के मुंह बनाया जा सकता है.

कुछ आत्महत्या करने वाले नौजवान इसे आजमा रहे हैं. आत्महत्या कर के बुजदिली का खिताब पाने से अच्छा है, किसी ऊंचाई की छोर पर पहुंचो, हाथ के मोबाइल को सैल्फी मोड में तानो और बैलेंस बिगड़ जाने की तर्ज में, किसी खाई या उफनती नदी के हवाले अपनेआप को कर दो. अखबार की सुर्खियों में स्वयं खिंचित अंतिम सैल्फी फोटो आ जाती है.

हमें अच्छी तरह याद है. मेला या मीनाबाजार जब कसबे में लगता था तो एक फोटोग्राफर का स्टाल लगा होता था. ढांचे वाली कार या मोटरसाइकिल के साथ फोटो खिंचवाने वाले शौकीनों की एक जमात होती थी. उस जमाने में पत्नी को मीनाबाजार घुमवा देना यानी आज के फौरेन ट्रिप से ज्यादा अहमियत वाला किस्सा था. वह चटखारे लेले कर मीनाबाजार पुराण सालछह महीने जरूर चलाती. अगली बार मीनाबाजार लगने की प्रतीक्षा जोरों से रहती.

उस जमाने में 10-20 देखे गए स्टाल की एकएक चीज की सैल्फी उन की नजरों में खिंची रहती थी. इसी में यदि पति ने फोटो खिंचवाने का प्लान बना लिया तो पत्नी सहित हम सरीखे, 10-12 साल के बच्चों में अति उत्साह का अतिरिक्त संचारी भाव जागृत हुआ रहता था. अपनेअपने स्तर पर हम सब आईने के सामने भिन्नभिन्न पोज बनाने की धुन में व्यस्त हो जाते थे. उधर, फोटोग्राफर को हमारी फोटो फैंटेसी से भला क्या सरोकार होना. दोनों पैर जोड़ कर हाथ जांघ पर रखते हुए सैकंडों में क्लिक कर देता था. मीनाबाजार में खिंचवाए इकलौते फोटो का साजसंभाल जबरदस्त तरीके से होता था.

बाकायदा 7-8 फोटो के संकलन को फ्रेम में जड़वा कर आनेजाने वाले मेहमानों पर अपनी संपन्नता की धौंस जमाई जाती थी. आज वे दिन होते तो मौत की छलांग वाले वीडियो छलांग लगाने वाले की हिम्मत को दाद देते फेसबुक में आएदिन डाले जाते.

दिलचस्प सैल्फी किस्सों में कुछ दर्दनाक यों हैं कि नासिक में पिकनिक मनाने के चक्कर में एक सैल्फी शौकीन को झरनों का बैकग्राउंड मोह इस कदर भारी पड़ा कि सैल्फी से श्रद्धांजलि वाली फोटो फ्रेम में आ गए. ऐसे ही एक जोड़ा ईलूईलू करतेकरते झगड़ बैठा और जब जोड़े की प्रेमिका ने सुसाइड किया तो एक सैल्फी की पूंछ पकड़ कर केस की गिरहें खोली गई थीं. एक सिरफिरे को तेज रफ्तार चलती ट्रेन के साथ सैल्फी लेने की ख्वाहिश थी. उस की ख्वाहिश तो पूरी हुई लेकिन जनाब अंतिम सैल्फी के साथ विदा हो गए.

ऐसा नहीं कि सैल्फी का शौक सिर्फ युवा ही पाले बैठे हों? बड़ीबड़ी हस्तियां भी सैल्फी के खतरनाक संक्रमण से पीडि़त हैं. हमारी मर्डर गर्ल मल्लिका शेरावत को ही ले लीजिए. जब उन्हें लगा कि बेरोजगारी का दुखदायी दौर आ रहा है तो मैडम सीधा अमेरिका पहुंच गईं और जैसेतैसे जुगाड़ कर राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ एक सैल्फी झपट ली. कुछ दिन तक इसी सैल्फी से सोशल मीडिया में मन बहलातेबहलाते मल्लिका बेरोजगारी का गम भूल गईं.

सैल्फी मोड के अन्य किस्सों की कमी नहीं, सेन डियागो में सांप के साथ सैल्फी लेने के चक्कर में सांप ने ऐसा चुंबन दिया कि इलाज में लाखों डौलर फूंक डाले. एक खबर यह भी है कि किसी झाड़ी में छिपे जानलेवा जानवर को बाहर खींच कर उस के साथ तसवीर लेने का शौक 15,300 डौलर की चपत दे गया.

कुछ सिरफिरों की सुरक्षा मानकों को ताक में रख कर सैल्फी लेने को क्या कहा जाए?एक घटना ह्यूस्टन शहर की बताते चलें. एक युवक कनपटी पर रिवौल्वर रख कर सैल्फी ले रहा था. अनहोनी में ट्रिगर का वहीं दबना भी लिखा था, सो दब गया. पुलिस के मुताबिक 19 साल के डिलियन ओलोसो स्मिथ की सैल्फी के लिए कुछ अलग करने की चाहत ने उस की जान ले ली. और हां, इंस्टाग्राम में अधिक ‘लाइक’ पाने की होड़ ने, एक सैल्फीबाज को सक्रिय ज्वालामुखी के मुहाने तक भेज दिया. वहीं अपने देशी खतरों के खिलाड़ी मास्टर ने डी एम मैडम के साथ सैल्फी खींचने की सनक दिखा दी. बेचारे  को वाया सैल्फी थाने की हवा खानी पड़ी. सो होनी को मोबाइल टाल नहीं पाया.

इधर मैं सैल्फी, मीनाबाजार और फोटोग्राफी पर नब्बू के साथ चाय की गुमटी में बीते जमाने के फ्लैशबैक में था, उधर कहीं पास में माइक से भागवत पुराण में कोई संत, जैसा कि अकसर होता है, प्रवचन की मुख्यधारा से हट कर किस्सेकहानियों में भक्तों को बांधने का उपक्रम कर रहे थे. भक्तजनो, इस मिथ्या संसार में आसक्ति ही सभी विवाद की जड़ है. रिश्तों में आसक्ति, पद के प्रति आसक्ति, प्रतिष्ठा के लिए मोह, व्यापार के लिए दौड़भाग, जीतहार के लिए मारकाट, किसी को नीचा दिखाने, किसी से ऊंचा दिखने के लिए आमरण अनशन, ये सब आसक्ति हैं, मोह में फंसे होने का पक्का सुबूत है. मेरा आप सब से आग्रह है कि कल की सभा में आप आएं तो सैल्फी ले कर आएं…

पता नहीं माइक में क्या व्यवधान आया सो बंद हो गया. नब्बू ने कहा, गुरुजी महाराज का प्रवचन अच्छा चल रहा था, अचानक सैल्फी वाली ओछी बात क्यों कह दी? मैं ने चाय के कप को फेंकते हुए कहा, पंडाल पीछे है, चल देख लें. प्रवचन सुनने वाले पुरुषमहिलाओं की अच्छीखासी तादाद थी. प्रवचन किसी यूपी साइड का पंडित कर रहा था. हमारे प्रवेश के बाद माइक वाले ने जैनरेटर मोड में माइक को शुरू कर दिया.

वे बोले, ‘‘आप सब सैल्फी सुन कर अपनेअपने मोबाइल की तरफ देखने लगे, बंधुओ, मेरा आशय एंड्रौयड या स्मार्टफोन से लिए जाने वाले सैल्फी से नहीं है.

‘‘गुणीजनो, हमारे शास्त्रों में सैल्फी का मतलब है ‘आत्मचिंतन’, हम में से हर आदमी चिंतन करता है जिसे मन, दिमाग या बुद्धि संचालित करती है. कल जब आप इस सभा में शामिल हों तो आत्मचिंतन की सैल्फी ले कर आएं. अब प्रश्न यह है कि आत्मचिंतन का सब्जैक्ट क्या हो? मेरी राय में आप सब अपने वर्तमान को टारगेट रखें. जो जिस व्यवसाय में है उस में वह कितना वफादार है, कितनी ईमानदारी की गुंजाइश है और वह कितना दे पाता है? इस सैल्फी का प्रयोग आप महीने में एक बार कर लेंगे तो यकीन मानिए आप की चरबी कम होगी, मोटापा घटेगा, ब्लडप्रैशर ठीक रहेगा, टैंशन दूर होंगे. आज की सभा को यहीं विराम देता हूं.’’

दूसरे दिन हम नब्बू के साथ उत्सुकता से पंडित महाराज और भक्तजनों के बीच होने वाले संवाद को सुनने के लिए पहुंचे. पंडाल लगभग खाली था. पंडित के चेले पंडाल का मुआयना करकर के जा रहे थे. उन में हम ने एक को पकड़ा, ‘‘क्यों, सभा होगी कि नहीं?’’

वह खिसियाया दिख रहा था, ‘देख तो रहे हो, आप 2 आदमियों के लिए कोई प्रवचन होगा क्या?’ वह बुदबुदाया, ‘अपने महाराज भी प्रवचन की टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में ज्ञान की ऊंचीऊंची फेंक गए. कौन सुनता है आजकल, क्या जरूरत थी भला? अच्छा चढ़ावा मिल रहा था. अब तंबू उखाड़ने की नौबत है. भुगतो. कौन आदमी है जो ईमानदार है इस जमाने में, बताओ.’ आत्मचिंतन की सैल्फी में विद्रूप चेहरा किस को भाता है, कोई, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचता. महाराज, उधर, अकेले में अपनी सैल्फी ले रहे हैं. देखो, कहीं दौरा न पड़ जाए उन्हें.

बीमारी बन गई आरक्षण की दवा

‘अजगर करे न चाकरी पंक्षी करे न काज’ की तर्ज पर देश में हर जाति अब आरक्षण की हलवा खाना चाहती है. जनता की इस कमजोरी का लाभ उठा कर नेताओं ने आरक्षण को वोटबैंक बना दिया है. नेता आरक्षण को समाज के सुधार के लिये नहीं, बल्कि कुर्सी पर बने रहने के लिये कर रहे है. यह कारण है कि आरक्षण का लाभ 70 साल के बाद भी अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच सका है. भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र  सरकार ने अपने मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की आरक्षण नीति को नकार दिया है. वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि आरक्षण के मौजूदा प्रारूप से कोई छेडछाड नहीं की जायेगी.

बीमारू समाज को सेहतमंद करने का जो इलाज आरक्षण की दवा के रूप में 70 साल पहले खोजा गया आज खुद बीमारी बन कर समाज के सामने खडा है. 21 प्रतिशत दलित आरक्षण के साथ शुरू हुआ सफर 50 फीसदी तक पहुंच गया है. अगर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय न की होती, तो शायद आरक्षण का प्रतिशत कहीं का कहीं पहुंच गया होता. आरक्षण का लाभ दलित और पिछडे समाज में मुठ्ठी भर लोगों तक ही सीमित रह गया है. जिसकी वजह से दलित और पिछडों का बडा वर्ग अभी भी जस का तस बना हुआ है.

आरक्षण से समाजिक समरसता की कल्पना अब जातीय विवाद तक पहुंच गई है. गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट बिरादरी ने अपने लिये आरक्षण की मांग करते हुये जो रोष दिखाया उससे आने वाले दिनों में वर्ग संघर्ष का संकेत साफ साफ दिख रहा है. आरक्षण को नेताओं ने अपनी कुर्सी को बचाने का हथियार बना लिया. आरक्षण की समीक्षा को इसके खत्म करने की साजिश बता कर आरक्षण का लाभ पा चुके लोग अपनी ही बिरादरी के लोगों को इसके लाभ से वंचित रखना चाहते है. दलित और पिछडी जातियों में आरक्षण का लाभ केवल उन जातियों केा ही मिल सका है जिनके नेता सरकार में रहे है. बाकी समाज की हालत वैसी ही है. तमिलनाडु में दलित युवक की हत्या इसलिये कर दी गई क्योकि उसने ऊंची जाति की लडकी से शादी की थी. आगरा में गलती से दलित के छू जाने से उसको सजा दी गई.

दक्षिण भारत के राज्यों को शिक्षित माना जाता है. शिक्षा ने भी सोच को प्राभवित नहीं किया है. दक्षिण के राज्यों में स्कूल में पढने वाले बच्चे अलग अलग रंग के धागे अपने हाथ में पहन कर आते है. जिससे उनकी जाति का पता चल सके. आरक्षण के जरीये दलित और पिछडों को जो मिला, उसका लाभ उठा चुके लोग अब भी उसको छोडना नहीं चाहते, जिससे कि उनकी ही जाति के दूसरे लोगों का भला हो सके. आरक्षण का लाभ पीढी दर पीढी देने की नीति समाज में नई मुश्किलो को पैदा कर रही है. जरूरत है कि आरक्षण को वोट बैंक से दूर रखकर देश और समाज के हित में समीक्षा की जाये. जिससे जो लोग अब तक आरक्षण का लाभ नहीं पाये उनको भी यह अधिकार मिल सके.

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